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छक्खंडागमे जीवठ्ठाणं
[१, १, ६६
वचिजोगो कायजोगो बीइंदियप्पहुडि जाव असण्णिपंचिंदिया त्ति ॥६६॥ . वचनयोग और काययोग द्वीन्द्रियसे लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक होते हैं ॥६६॥ अब एकसंयोगी योगके स्वामीके प्रतिपादनार्थ उत्तरसूत्र कहते हैंकायजोगो एइंदियाणं ॥६७ ॥ काययोग एकेन्द्रिय जीवोंके होता है ॥ ६७ ॥
अभिप्राय यह है कि एकेन्द्रिय जीवोंके एक मात्र काययोग, द्वीन्द्रियसे लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक वचन और काय ये दो योग, तथा शेष ( समनस्क ) जीवोंके तीनों ही योग होते हैं ।
इस प्रकार सामान्यसे योगकी सत्ताको बतलाकर अब किस कालमें किसके कौन-सा योग पाया जाता है और कौन-सा योग नहीं पाया जाता है, इसकी प्ररूपणा करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
मणजोगो बचिजोगो पजत्ताणं अत्थि, अपज्जत्ताणं णत्थि ।। ६८ ॥ मनोयोग तथा वचनयोग पर्याप्तोंके होते हैं, अपर्याप्तोंके नहीं होते ॥ ६८ ॥ अब सामान्य काययोगकी सत्ताका प्रतिपादन करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं--- कायजोगो पज्जत्ताण वि अस्थि, अपज्जत्ताण वि अस्थि ॥ ६९॥ काययोग पर्याप्तोंके भी होता है और अपर्याप्तोंके भी होता है । ६९ ॥
अब आगे जिन पर्याप्तियोंकी पूर्णतासे जीव पर्याप्तक और जिनकी अपूर्णतासे वे अपर्याप्तक होते हैं उन पर्याप्तियों और अपर्याप्तियोंकी संख्या बतलानेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
छ पज्जत्तीओ, छ अपज्जत्तीओ ॥ ७० ॥ छह पर्याप्तियां होती हैं और छह अपर्याप्तियां भी होती हैं ॥ ७० ॥
आहार, शरीर, इन्द्रिय, उच्छ्वास-निःश्वास, भाषा और मन इनको उत्पन्न करनेवाली शक्तिको पूर्णताको पर्याप्ति कहते हैं। वे पर्याप्तियां छह हैं- आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, आनपानपर्याप्ति, भाषापर्याप्ति और मनःपर्याप्ति । इन छह पर्याप्तियोंकी अपूर्णताको अपर्याप्ति कहते हैं। वे अपर्याप्तियां भी छह हैं- आहार-अपर्याप्ति, भाषा-अपर्याप्ति, इन्द्रिय-अपर्याप्ति, आनपान-अपर्याप्ति और मन-अपर्याप्ति ( देखिये पीछे पृ. १७)।।
अब उन पर्याप्तियोंके आधारको बतलानेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैंसणिमिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइडि ति ।। ७१ ॥
पूर्वोक्त ठहों पर्याप्तियां तथा छहों अपर्याप्तियां संज्ञी मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक होती हैं ॥ ७१ ॥
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