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१, १, ४०]
संतपरूवणाए कायमग्गणा
[१९
उन एकेन्द्रियादि जीवोंसे परे अनिन्द्रिय जीव होते है ॥ ३८ ॥
सूत्रमें 'तेन ' यह पद जातिका सूचक है। 'परं' शब्दका अर्थ ऊपर है। इससे यह अर्थ हुआ कि एकेन्द्रियादि जातिभेदोंसे रहित जीव अनिन्द्रिय होते हैं, क्योंकि, उनके संपूर्ण द्रव्यकर्म और भावकर्म नष्ट हो चुके हैं।
अब कायमार्गणाका प्रतिपादन करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं.....
कायाणुवादेण अत्थि पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणप्फइकाइया तसकाइया अकाइया चेदि ॥ ३९ ॥
__कायमार्गणाके अनुवादसे पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक और अकायिक (कायरहित ) जीव होते हैं ॥ ३९ ॥
सूत्रके अनुकूल कथन करनेको अनुवाद कहते हैं । कायके अनुवादको कायानुवाद कहते हैं। पृथिवीरूप शरीरको पृथिवीकाय कहते हैं। यह काय जिन जीवोंके होता है उन्हें पृथिवीकायिक कहते हैं । अथवा, जो जीव पृथिवीकायिक नामकर्मके उदयके वशीभूत है उन्हें पृथिवीकायिक कहा जाता है। इस प्रकारसे कार्मण काययोगमें स्थित जीवोंकी भी पृथिवीकायिक संज्ञा बन जाती है, क्योंकि, उनके पृथिवीरूप शरीरके न होनेपर भी पृथिवीकायिक नामकर्मका उदय पाया जाता है । इसी प्रकार जलकायिक आदि शब्दोंकी भी निरुक्ति कर लेना चाहिये । स्थावर नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई विशेषताके कारण ये पांचों ही जीव स्थावर कहलाते हैं। जो जीव त्रस नामकर्मके उदयसे सहित हैं उन्हें त्रसकायिक कहते हैं। जिनका त्रस और स्थावर नामकर्म नष्ट हो गया है उन सिद्धोंको अकायिक कहते हैं । जिस प्रकार अग्निके संबंधसे सुवर्ण कीट और कालिमा रूप बाह्य और अभ्यन्तर दोनों प्रकारके मलसे रहित हो जाता है उसी प्रकार ध्यानरूप अग्निके संबंधसे यह जीव काय और कर्मबन्धसे मुक्त होकर कायरहित हो जाता है।
अब पृथिवीकायिकादि जीवोंके भेदोंका प्रतिपादन करनेके लिये उत्तरसूत्र कहते हैं
पुढविकाइया दुविहा बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा पञ्जत्ता अपज्जत्ता। सुहमा दुविहा पजत्ता अपजत्ता । आउकाइया दुविहा बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा पज्जत्ता अपजत्ता। सुहुमा दुविहा पजत्ता अपज्जत्ता। तेउकाइया दुविहा बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा पजत्ता अपञ्जत्ता । सुहुमा दुविहा पजत्ता अपज्जत्ता । वाउकाइया दुविहा बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा पञ्जत्ता अपजत्ता । सुहुमा दुविहा पज्जत्ता अपजत्ता चेदि ॥ ४०॥
__ पृथिवीकायिक जीव मूलमें दो प्रकारके हैं-बादर और सूक्ष्म । बादर पृथिवीकायिकके भी दो भेद हैं- पर्याप्त और अपर्याप्त । इसी प्रकार सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव भी दो प्रकारके हैं- पर्याप्त
और अपर्याप्त। जलकायिक जीव दो प्रकारके हैं- बादर और सूक्ष्म । बादर जलकायिक जीव दो प्रकारके हैं- पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म जलकायिक जीव दो प्रकारके हैं- पर्याप्त और अपर्याप्त ।
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