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१, १, २७.] संतपरूवणाए गदिमग्गणा
[१३ नहीं है, क्योंकि, सम्यग्दृष्टियोंका पर्याप्त अवस्थामें सातों ही पृथिवीयोंमें सद्भाव पाया जाता है। चूंकि बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि जीव मरकर प्रथम पृथिवीमें उत्पन्न होते हैं, अतः प्रथम पृथिवीकी अपर्याप्त अवस्थाके साथ सम्यग्दर्शनका विरोध नहीं है। किन्तु कोई भी सम्यग्दृष्टि जीव किसी भी अवस्थामें मरकर द्वितीयादि पृथिवियोंम उत्पन्न नहीं होता। अतएव द्वितीयादि पृथिवियोंकी अपर्याप्त अवस्थाके साथ उक्त सम्यग्दर्शनका विरोध है। नरकगतिमें इन चार गुणस्थानोंके अतिरिक्त ऊपरके गुणस्थानोंकी सम्भावना नहीं है, क्योंकि, संयमासंयम और संयम पर्यायके साथ नरकगतिमें उत्पत्तिका विरोध है।
अब तिर्यंचगतिमें गुणस्थानोंका अन्वेषण करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
तिरिक्खा पंचसु हाणेसु अत्थि मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी संजदासजदा त्ति ॥ २६ ॥
तिर्यंच जीव मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत इन पांच गुणस्थानोंमें होते हैं ॥२६ ।।
बद्धायुष्क असंयतसम्यग्दृष्टि और सासादन गुणस्थानवालोंका तिर्यंचगतिके अपर्याप्तकालमें सद्भाव संभव है। परंतु सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संयतासंयतोंका उस तिर्यंचगतिके अपर्याप्त कालम सद्भाव संभव नहीं है, क्योंकि, तिर्यंचगतिमें अपर्याप्त कालके साथ सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संयतासंयतका विरोध है। सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंच, पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंचनी और पंचेन्द्रिय अपर्याप्त तिर्यंच; इन पांच प्रकारके तिर्यंचोमेंसे अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें उक्त पांच गुणस्थान नहीं होते हैं, क्योंकि, लब्ध्यपर्याप्तकोंके एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है। तिर्यंचनियोंमें अपर्याप्त कालमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि ये दो गुणस्थानवाले ही होते हैं, शेष तीन गुणस्थान नहीं होते हैं । चूंकि तिर्यंचनियोंमें सम्यग्दृष्टियोंकी उत्पत्ति नहीं होती है, इसलिये उनके अपर्याप्त कालमें चौथा गुणस्थान नहीं पाया जाता है। कारण यह कि सम्यग्दृष्टि जीव प्रथम पृथिवीके विना नीचेकी छह पृथिवियोंमें, ज्योतिषी, व्यन्तर एवं भवनवासी देवोंमें और सर्व प्रकारकी स्त्रियों में उत्पन्न नहीं होता है, ऐसा नियम है।
अब मनुष्यगतिमें गुणस्थानोंका निर्णय करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
मणुस्सा चोदससु गुणट्ठाणेसु अस्थि मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी मम्मामिच्छाइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी संजदासजदा पमत्तमंजदा अपमत्तसंजदा अपुवकरणपविट्ठसुद्धिसंजदेसु अत्थि उवसमा खवा अणियट्टि-बादरसांपराइय-पविट्ठ-सुद्धिसंजदेसु अस्थि उवसमा खवा सुहुमसांपराइय-पविट्ठ-मंजदेसु अत्थि उवसमा खवा उवसंतकमाय-वीयरायछदुमत्था खीणकसाय-बीयरायछदुमत्था सजोगिकेवली अजोगिकेवलि त्ति ॥ २७ ॥
मनुष्य मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, सेयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण-प्रविष्ट-शुद्धिसंयतोंमें उपशमक और क्षपक, अनिवृत्ति-बादर
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