________________
१६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, ३४. जो आत्माका परिणाम होता है उसे उपयोग कहा जाता है। अभिप्राय यह कि पदार्थके ग्रहणमें शक्तिभूत जो ज्ञानावरणका विशेष क्षयोपशम होता है उसे लब्धि भावेन्द्रिय तथा उस क्षयोपशमके आलंबनसे जो जीवका पदार्थ ग्रहणके प्रति व्यापारविशेष होता है उसे उपयोग भावेन्द्रिय समझना चाहिये । उस उस प्रकारकी इन्द्रियकी अपेक्षा जो अनुवाद अर्थात् आगमानुकूल इन्द्रियोंका कथन किया जाता है उसे इन्द्रियानुवाद कहते हैं। उसकी अपेक्षा एकेन्द्रिय जीव हैं। जिनके एक ही प्रथम इन्द्रिय पाई जाती है उन्हें एकेन्द्रिय जीव कहते हैं । वीर्यान्तराय और स्पर्शनेन्द्रियावरण कर्मके क्षयोपशमसे तथा अंगोपांग नामकर्मके उदयके अवलम्बनसे जिसके द्वारा आत्मा पदार्थगत स्पर्श गुणको जानता है उसे स्पर्शन इन्द्रिय कहते हैं । पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ये पांच एकेन्द्रिय जीव हैं। ये जीव चूंकि एक स्पर्शन इन्द्रियके द्वारा ही पदार्थको जानते देखते हैं, इसलिये उन्हें एकेन्द्रिय(स्थावर) जीव कहा गया है।
वीर्यान्तराय और रसनेन्द्रियावरणके क्षयोपशम तथा अंगोपांग नामकर्मके उदयका अवलम्बन करके जिसके द्वारा रसका ग्रहण होता है उसे रसना इन्द्रिय कहते हैं। जिनके ये दो इन्द्रियां होती हैं उन्हें द्वीन्द्रिय कहते हैं। लट, सीप, शंख और गण्डोला ( उदरमें होनेवाली बड़ी कृमि ) आदि द्वीन्द्रिय जीव हैं । स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियां जिनके पाई जाती हैं उन्हें त्रीन्द्रिय कहते हैं । वीर्यान्तराय और घ्राणेन्द्रियावरण कर्मके क्षयोपशम तथा अंगोपांग नाम कर्मके उदयके अवलम्बनसे जिसके द्वारा गन्धका ग्रहण होता है उसे घ्राण इन्द्रिय कहते हैं । जिन जीवोंके ये तीन इन्द्रियां होती हैं उन्हें त्रीन्द्रिय जीव कहते हैं। जैसे कुन्थु, चींटी, खटमल, जूं और बिच्छू आदि।
चक्षुइन्द्रियावरण और वीर्यान्तरायके क्षयोपशम तथा अंगोपांग नामकर्मके उदयका आलम्बन करके जिसके द्वारा रूपका ग्रहण होता है उसे चक्षुइन्द्रिय कहते हैं। जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियां पाई जाती हैं वे चतुरिन्द्रिय जीव हैं। मकड़ी, भोंरा, मधुमक्खी, मच्छर, पतंगा, मक्खी और दंशसे डसनेवाले कीड़ोंको चतुरिन्द्रिय जीव जानना चाहिये । वीर्यान्तराय और 'श्रोत्रेन्द्रियावरण कर्मके क्षयोपशम तथा अंगोपांग नामकर्मके आलम्बनसे जिसके द्वारा सुना जाता है
उसे श्रोत्र इन्द्रिय कहते हैं। जिन जीवोंके उक्त पांचों ही इन्द्रियां होती हैं वे पंचेन्द्रिय कहलाते हैं। स्वेदज, संमूछिम, उद्भिज, औपपादिक, रसजनित, पोत, अंडज और जरायुज आदि जीवोंको पंचेन्द्रिय • जीव जानना चाहिये। जिनके इन्द्रियां नहीं रही हैं वे शरीर रहित सिद्ध जीव अनिन्द्रिय हैं। वे . चूंकि इन्द्रियोंके पराधीन होकर अवग्रहादिरूप क्षायोपशमिक ज्ञानके द्वारा पदार्थोका ग्रहण नहीं करते हैं, इसलिये उनका अनन्तज्ञान एवं अनन्तसुख अतीन्द्रिय आत्मोत्थ और खाधीन माना गया है।
अब एकेन्द्रिय जीवोंके भेदोंका प्रतिपादन करने के लिये उत्तर सूत्र कहते हैं--
एइंदिया दुविहा बादरा सुहुमा । बादरा दुविहा पजता अपज्जत्ता, सुहुमा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता ॥ ३४ ॥ . एकेन्द्रिय जीव दो प्रकारके हैं- बादर और सूक्ष्म । उनमें बादर एकेन्द्रिय दो प्रकारके है.- पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म एकेन्द्रिय भी दो प्रकारके हैं. पर्याप्त और अपर्याप्त ॥ ३४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org