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प्रस्तावना
उक्त गाथाकी चूर्णिमें १० प्ररूपणाओंके नाम ठीक षट्खण्डागमके सूत्रोंके शब्दोंमें ही गिनाये गये हैं।
षट्खण्डागम पृ. ५८६ पर प्रथम कालविधानचूलिका प्रारम्भ करते हुए जो चार अनुयोगद्वार ज्ञातव्य कहे हैं, वे और उन चारोंकी प्ररूपणाके सूत्र कम्मपयडीकी स्थितिबन्धप्रकरणवाली गा. ६८-६९ के आधार पर रचे गये हैं। वे दोनों गाथाएं इस प्रकार हैं---
१ ठिइबंधट्ठाणाई सुहुमअपज्जत्तगस्स थोवाइं । बायरसुहुमेयर बितिचउरिदियअमणसन्नीणं ॥ ६८ ॥ संखेज्जगुणाणि कमा असमत्तियरे य बिंदियाइम्मि । नवरमसंखेज्जगुणाणि संकिलेसा य सव्वत्थ ॥ ६९ ।।
( कम्मपयडी बन्धनकरण पत्र १६०) यहां यह द्रष्टव्य है कि जिस प्रकार षट्खण्डागममें सूत्रांक ३७ से ५० तक पहले स्थितिबन्धस्थानोंका अल्पबहुत्व कहा गया है, और तत्पश्चात् सूत्र ५१ से ६४ तक संक्लेशविशुद्धि स्थानोंका अल्पबहुत्व कहा गया है, उसकी सूचना भी दूसरी गाथाके चतुर्थ चरण 'संकिलेसा य सव्वत्थ' इस पदसे कर दी गई है । जिसका विस्तार आ. भूतबलिने उक्त सूत्रोंकेद्वारा किया है ।
यहां यह बात भी ध्यान देनेकी है कि षट्खण्डागमके समानही कम्मपयडीचूर्णिमें पहले स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंका और पीछे संक्लेशविशुद्धिस्थानोंका अल्पबहुत्व ठीक उन्ही शब्दों में दिया गया है। जिससे षट्खण्डागमके सूत्रोंका प्रभाव कम्मपयडीकी चूर्णिपर स्पष्ट लक्षित होता है।
षट्खण्डागमके पृ. ५८८ पर सूत्राङ्क ६५ से १०० तक के सूत्रों द्वारा जो स्थितिबन्ध सम्बन्धी अल्पबहुत्व कहा गया है वह कम्मपयडीकी स्थितिबन्धसम्बन्धी गा. ८१-८२ पर आधारित है। इन गाथाओंकी चूर्णिमें जो उक्त अल्पबहुत्व दिया गया है वह गाथाके व्याख्यात्मक पदोंके सिवाय षट्खण्डागमके सूत्रोंके साथ ज्योंका त्यों साम्य रखता है, जिसके लिए चूर्णि उक्त सूत्रोंकी आभारी है। ( देखो कम्मपयडी, स्थिति बं. पत्र १७४-१७५)
षट्खण्डागमके पृ. ५९१ के सू. १०१ से लगाकर १२२ वें सूत्र (पृ. ५९६) तक जो - निषेक प्ररूपणा अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा इन दो अनुयोगद्वारोंसे की गई है, वह कम्मपयडीके बंधनकरणकी गा. ८३-८४ की आभारी है । तथा इन दोनों गाथाओंकी चूर्णि षट्खण्डागमके उक्त सूत्रोंके साथ साम्य रखती है, जो स्पष्टतः उक्त सूत्रोंकी आभारी है । ( देखो कम्मपयडी, स्थिति बं. पत्र १७९-१८० )
षट्खण्डागमके पृ. ५९६ से लेकर जो आबाधाकांडक प्ररूपणा प्रारम्भ होती है, उसका आधार कम्मपयडीकी बंधनकरणकी गा. ८५ और ८६ हैं । षट्खण्डागमके इस प्रकरणके सूत्र १२१ से लगाकर १६४ तकके समस्त सूत्रोंका प्रभाव उक्त दोनों गाथाओंकी चूर्णि पर स्पष्ट
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