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सिरिभगवंत - पुप्फदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो
तस्स
पढमखंडे जीवट्ठाणे १ संतपरूवणा
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ १ ॥
अरिहंतोंको नमस्कार हो, सिद्धोंको नमस्कार हो, आचार्योंको नमस्कार हो, उपाध्यायोंको नमस्कार हो और लोकमें स्थित सर्व साधुओं को नमस्कार हो ॥ १ ॥
अरिहन्त- अरि अर्थात् शत्रुस्वरूप मोहके जो घातक हैं वे अरिहन्त कहलाते हैं । अथवा जो ज्ञानावरण और दर्शनावरणरूप रजके घातक हैं वे अरिहन्त कहलाते हैं । अभिप्राय यह है कि जो ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय इन चार घातिया कर्मोको नष्ट करके अनन्तचतुष्टयको प्राप्त कर चुके हैं वे अरिहन्त कहलाते हैं ।
सिद्ध- जो ज्ञानावरणादि आठों कर्मोंको नष्ट करके अभीष्ट साध्यको सिद्ध करते हुए कृतकृत्य हो चुके हैं वे सिद्ध कहे जाते हैं । उक्त आठ कर्मों के नष्ट हो जानेपर सिद्धोंमें निम्न आठ गुण स्वभावतः प्रकट हो जाते हैं । केवलज्ञान, केवलदर्शन, अव्याबाधत्व, सम्यक्त्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व, अगुरुलघुत्व और अनन्तवीर्य ।
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आचार्य - जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र तप, और वीर्यरूप पांच प्रकारके आचारका स्वयं निरतिचार आचरण करते हैं तथा अन्य साधुओंको कराते हैं और उसकी शिक्षा देते हैं वे आचार्य कहलाते हैं । इनमें कितने ही चौदह, दस या नौ पूर्वोके पारगामी एवं तात्कालिक स्वसमय व परसमयरूप श्रुतके ज्ञाता भी होते हैं ।
उपाध्याय - जो द्वादशांगरूप स्वाध्यायका उपदेश देते हैं, अथवा तात्कालिक प्रवचनका व्याख्यान करते हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं ।
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