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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १,५ ११ भव्यत्व- जिन जीवोंके लिये भविष्यमें मुक्ति प्राप्त करना संभव है या जो तद्विषयक योग्यता रखते हैं उन्हे भव्य जीव कहते हैं । तथा जो किसी भी समय मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते हैं या जिन जीवोंमें वैसी योग्यता नहीं है उन्हें अभव्य जीव कहते हैं ।
१२ सम्यक्त्व- आप्त, आगम और पदार्थरूप तत्त्वार्थके श्रद्धानका नाम सम्यक्त्व है। अभिप्राय यह है कि जिनेन्द्र भगवान्के द्वारा उपदिष्ट छह द्रव्य, पांच अस्तिकाय और नव पदार्थोका, आज्ञा और अधिगमसे जो श्रद्धान होता है उसे सम्यक्त्व कहते हैं।।
१३ संज्ञी- जो जीव मनके अवलंबनसे शिक्षा, क्रिया, उपदेश और आलापको ग्रहण कर सकते हैं उन्हें संज्ञी तथा जो उक्त शिक्षा आदिको ग्रहण नहीं कर सकते हैं उन्हें असंज्ञी कहते हैं । ' सम्यक् जानाति इति संज्ञम् ' इस निरुक्तिके अनुसार · संज्ञ' शब्दका अर्थ मन होता है । वह जिन जीवोंके पाया जाता है उन्हें संज्ञी और उक्त मनसे रहित जीवोंको असंज्ञी समझना चाहिये ।
१४ आहारक- जो जीव औदारिक, वैक्रियिक और आहारक इन तीन शरीर तथा छह पर्याप्तियोंके योग्य पुद्गलवर्गणाओंको ग्रहण करते हैं उन्हें आहारक कहते हैं। तथा इस प्रकारके आहारके न ग्रहण करनेवाले जीव अनाहारक कहे जाते हैं । विग्रहगतिको प्राप्त चारों गतिके जीव, प्रतर और लोकपूरण समुद्धातको प्राप्त हुए सयोगकेवली, अयोगकेवली एवं सिद्ध भगवान् अनाहारक होते हैं । इनके सिवाय शेष जीवोंको आहारक जानना चाहिये ।
अब उन खोजे जानेवाले जीवसमासों ( गुणस्थानों ) के अनुयोगद्वारोंकी प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं -
एदेसिं चेव चोदसण्हं जीवसमासाणं परूवणद्वदाए तत्थ इमाणि अट्ठ अणियोगदाराणि णायव्याणि भवंति ।। ५ ॥
इन्हीं चौदह जीवसमासोंकी प्ररूपणारूप प्रयोजनकी सिद्धिमें सहायक होनेसे यहां ये आठ अनुयोगद्वार जानने योग्य हैं ॥ ५॥
तं जहा ॥ ६ ॥ वे आठ अनुयोगद्वार इस प्रकार हैं ॥ ६ ॥
संतपरूवणा दव्वपमाणाणुगमो खेत्ताणुगमो फोसणाणुगमो कालाणुगमो अंतराणुगमो भावाणुगमो अप्पाबहुगाणुगमो चेदि ॥ ७ ॥
सत्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम ये वे आठ अनुयोगद्वार हैं ॥ ७ ॥
१ सत्प्ररूपणा- उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य स्वरूप अस्तित्वका प्रतिपादन करनेवाली प्ररूपणाको सत्प्ररूपणा कहते हैं । (२) द्रव्यप्रमाणानुगम- सत्प्ररूपणा द्वारा जिनका अस्तित्व ज्ञात हो चुका है उन्हींके प्रमाणको प्ररूपणा द्रव्यप्रमाणानुगम अनियोगद्वार करता है । (३) क्षेत्रानुगम
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