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छक्खंडागम अंश आचार्य-परम्परासे उन्हें प्राप्त हुआ, वह उन्होंने ज्यों का त्यों इसमें संग्रह कर दिया है। इसीसे उसका ‘कम्मपयडीसंगहणी ' यह नाम सार्थक है ।
षट्खण्डागममें उपलब्ध अनेक सूत्र गाथाओंसे इतना तो सिद्ध ही है कि वह महाकम्मपयडिपाहुड गाथाओं में निबद्ध रहा है। उसकी वे गाथाएँ धरसेनाचार्यको प्राप्त थीं और कण्ठस्थ भी थीं। उन्हींको आधार बनाकर उन्होंने उनका व्याख्यान पुष्पदन्त और भूतबलिको किया। उन्हींके आधार पर उन्होंने अपनी षट्खण्डागम की रचना की। प्रकरण वश कहीं-कहीं उन्होंने गुरुमुखसे सुनी और पढ़ी हुई गाथाओंको लिख दिया है। उसी महाकम्मपयडिपाहुडकी अनेक गाथाएँ-जिनके आधारपर उन्होंने षट्खण्डागमकी रचना की है -- आचार्य-परम्परासे आती हुई आ. शिवशर्मको प्राप्त हुई और उन्होंने अपनी रचनामें उन्हे संकलित कर दिया- तो इतने मानसे ही क्या वे उनकी रची कहलाने लगेंगी। गो. जीवकांड और कर्मकाण्ड में ऐसी सैकडों . गाथाएँ हैं, जो उसके रचयितासे बहुत पहलेसे चली आ रही हैं, मात्र उनके गोम्मटसारमें संग्रह होनेसे तो वे उसके रचयिता-द्वारा रचित नहीं मानी जा सकती ।
उक्त सर्व कथनका अभिप्राय यह है कि भले ही कम्मपयडीकी रचना षट्खण्डागमसे पीछेकी रही आवे, परन्तु उसमें ऐसी अनेक गाथाएँ हैं, जो बहुत प्राचीन कालसे चली आ रहीं थीं। उनका ज्ञान षटखण्डागमकारको था और उनके आधारपर अमुक-अमुक स्थलके सूत्रोंका उन्होंने निर्माण किया, इसके माननेमें कोई आपत्ति या आक्षेपकी बात नहीं है ।
जीवस्थानका आधार
षट्खण्डागमके छह खण्डोंमें पहला खण्ड जीवस्थान है। इसका उद्गम धवलाकारने महाकम्मपयडिपाहुडके छठे बन्धन नामक अनुयोगद्वारके चौथे भेद बन्धविधानके अन्तर्गत विभिन्न भेद-प्रभेदरूप अवान्तर-अधिकारोंसे बतलाया है, यह बात हम प्रस्तावनाके प्रारम्भमें दिये गये चित्रादिकोंके द्वारा स्पष्ट कर चुके हैं । जीवस्थानका मुख्य विषय सत् , संख्यादि आठ प्ररूपणाओंके द्वारा जीवकी विविध अवस्थाओंका वर्णन करना है। इसमें तो सन्देह ही नहीं, कि जीवस्थानका मूल उद्गमस्थान महाकम्मपयडिपाहुड था। और यतः कर्म-बन्ध करनेके नाते उसके बन्धक जीवका जबतक स्वरूप, संख्यादि न जान लिए जावें, तब तक कर्मोके भेद-प्रभेदोंका और उनके स्वरूप आदिका वर्णन करना कोई महत्त्व नहीं रखता, अतः भगवत् पुष्पदन्तने सबसे पहले जीवोंके स्वरूप आदिका सत् , संख्यादि अनुयोगद्वारोंसे वर्णन करना ही उचित समझा। इस प्रकार जीवस्थाननामक प्रथम खण्डकी रचनाका श्रीगणेश हुआ।
पर जैसा कि मैंने वेदना और वर्गणाखण्ड में आई हुईं सूत्रगाथाओंके आधारपर षट्खण्डागमसे पूर्व-रचित बिभिन्न ग्रन्थोंमें पाई जानेवाली गाथाओंके तुलनात्मक अवतरण देकर यह
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