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प्रस्तावना
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बताया है कि महाकम्मपयडिपाहुडका विषय बहुत विस्तृत था, और वह संक्षेपरूपसे कण्ठस्थ रखनेके लिए गाथारूपमें ग्रथित या गुम्फित होकर आचार्य-परम्परासे प्रवहमान होता हुआ चला आ रहा था, उसका जितना अंश आ. शिवशर्मको प्राप्त हुआ, उसे उन्होंने अपनी 'कम्मपयडी-संगहणी में संग्रहित कर दिया । इसी प्रकार उनके पूर्ववर्ती जिस आचार्यको जो विषय अपनी गुरुपरम्परासे मिला, उसे उन-उन आचार्योंने उसे गाथाओंमें गुम्फित कर दिया, ताकि उन्हें जिज्ञासु जन कण्ठस्थ रख सकें। समस्त उपलब्ध जैनवाङ्मयका अवलोकन करने पर हमारी दृष्टि एक ऐसे ग्रन्थ पर गई, जो षट्खण्डागमके प्रथमखण्ड जीवस्थानके साथ रचना-शैलीसे पूरी पूरी समता रखता है और अद्यावधि जिसके कर्ताका नाम अज्ञात है, किन्तु पूर्वभृत्-सूरि-सूत्रितके रूपमें विख्यात है। उसका नाम है जीवसमास । *
__इसमें कुल २८६ गाथाएँ हैं और सत्यरूपणा, द्रव्यप्रमाणानुगम आदि उन्हीं आठ अनुयोगद्वारोंसे जीवका वर्णन ठीक उसी प्रकारसे किया गया है, जैसा कि षट्खण्डागमके जीवस्थान नामक प्रथम खण्डमें । भेद है, तो केवल इतना ही, कि आदेशसे कथन करते हुए जीवसमासमें एक-दो मार्गणाओंका वर्णन करके यह कह दिया गया है कि इसी प्रकारसे धीर वीर और श्रुतज्ञ जनोंको शेष मार्गणाओंका विषय अनुमार्गण कर लेना चाहिए। तब षट्खण्डागमके जीवस्थानमें उन सभी मार्गणा स्थानोंका वर्णन खूब विस्तारके साथ प्रत्येक प्ररूपणामें पाया जाता है । यही कारण है कि यहां जो वर्णन केवल २८६ गाथाओंके द्वारा किया गया है, वहां वही वर्णन जीवस्थानमें १८६० सूत्रोंके द्वारा किया गया है ।
जीवसमासमें आठों प्ररूपणाओंका ओघ और आदेशसे वर्णन करनेके पूर्व उस उस प्ररूपणाकी आधारभूत अनेक बातोंकी बड़ी विशद चर्चा की गई है, जो कि जीवस्थानमें नहीं है। हां, धवला टीकामें वह अवश्य दृष्टिगोचर होती है । ऐसी विशिष्ट विषयोंकी चर्चावाली सब मिलाकर लगभग १११ गाथाएँ हैं । उनको २८६ में से घटा देने पर केवल १७५ गाथाएँ ही ऐसी रह जाती हैं, जिनमें आठों प्ररूपणाओंका सूत्ररूपमें होते हुए भी विशद एवं स्पष्ट वर्णन पाया जाता है । इसका निष्कर्ष यह निकला कि १७५ गाथाओंका स्पष्टीकरण षट्खण्डागमकारने १८६० सूत्रोंमें किया है। .
यहां यह शंका की जा सकती है कि संभव है षट्खण्डागमके उक्त जीवस्थानके विशद एवं विस्तृत वर्णनका जीवसमासकारने संक्षेपीकरण किया हो। जैसा कि धवला-जयधवला टीकाओंका संक्षेपीकरण गोम्मटसारके रचयिता नेमिचन्द्राचार्यने किया है । पर इस शंकाका समाधान यह है कि पहले तो गोम्मटसारके रचयिताने उसमें अपना नाम स्पष्ट शब्दों में प्रकट किया है ।
* यह अपने मूलरूपमें विविध ग्रन्थों के संकलनके साथ प्रकाशित हो चुका है।
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