________________
प्रस्तावना
[ ९५
गो. कर्मकाण्डमें स्थिति बन्धके भीतर सभी मूल और उत्तरप्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और जधन्य स्थितिका वर्णन किया गया है । उसके पश्चात् आबाधाका लक्षण बतलाकर और प्रत्येक कर्मका आबाधाकाल निकालनेका नियम बतला करके आबाधारहित कर्म निषेकका निरूपण किया गया है। जो वहांके प्रकरणकी रचना-शैलीको देखते हुए उचित है, फिरभी यह तो स्पष्ट ही है कि कर्मकाण्डकी उक्त सन्दर्भकी रचना षट्खण्डागमसूत्रोंकी आभारी है ।
यहां यह बतला देना आवश्यक समझता हूं कि निषेक-प्ररूपणाका जितनाभी वर्णन षट्खण्डागमसूत्रोंमें यहांपर या अन्यत्र देखने में आता है, वह कम्मपयडीकी मूलगाथाओंका आभारी है। निषेक-प्ररूपणासम्बन्धी कम्मपयडी और गो. कर्मकाण्डकी एक गाथाकी तुलना यह अप्रासंगिक न होगीमोत्तणं सगमबाहं पढमाइ ठिईइ बहुतरं दव्यं । एत्तो विसेसहीणं जावुक्कोसं ति सव्वेसि ॥
( कम्मप, स्थिति. पत्र १७८ ) आबाहं बोलाविय पढमणिसेगम्मि देय बहुगं तु । तत्तो विसेसहीणं विदियस्सादिमणिसेओ त्ति
( गो. कर्मकाण्ड ) दोनों गाथाओंकी समता और विशेषताका रहस्य विद्वज्जन स्वयं हृदयङ्गम करेंगे ।
षट्खण्डागमके वेदनाखण्डान्तर्गत द्रव्यविधानचूलिकामें योगसम्बन्धी अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा २८ सूत्रों में की गई है, जब की उक्त वर्णन कम्मपयडी में केवल २ गाथाओंकेद्वारा किया गया है। यहांपर पाठकोंके अवलोकनार्थ हम उसे उद्धृत कर रहे हैं
कम्मपयडी-गाथासव्वत्थोवो जोगो साहारणसुहुमपढमसमयम्मि । बायर वियतियचउरमणसन्नपज्जत्तग जहण्णो ॥ १४ ॥ आइयुगुक्कोसो सिं पज्जत्तजहन्नगेथरे य कमा । उक्कोसजहन्नियरो असमत्तियरे असंखगुणो ॥ १५ ॥
षट्खण्डागम-सूत्रसव्वत्थोवो सुहमेइंदिय-अपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो ॥ १४५ ॥ बादरेइंदिय-अपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेजगुणो ॥ १४६ ॥ बीइंदियअपम्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ १४७ ॥ तीइंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेजगुणो ॥ १४८ ॥ चउरिंदियअपज्जत्तयस्य जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ १४९ ॥ असण्णिपंचिंदियअपजत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेजगुणो । १५० ॥ सण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेजगुणो ॥ १५१ ॥ सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ १५२ ॥ बादरेइंदियअपजत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org