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छक्खंडागम
॥ ६२ ॥ मिच्छत्तेण कालगदसमाणो दसवाससहस्साउट्ठिदिएसु देवेसु उववण्णो ॥ ६३ ॥ अंतोमुहुत्तेण सव्वलडं सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो ॥ ६४ ॥ अंतोमुहुत्तेण सम्मत्तं पडिवण्णो ॥६५॥ तत्थ य भवट्ठिदिं दसवास सहस्साणि देसूणाणि सम्मत्तमणुपालइत्ता थोवावसेसे जीविदव्वए त्ति मिच्छत्तं गदो ।। ६६ ॥ मिच्छत्तेण कालगदसमाणो बादरपुढविजीवपज्जत्तएसु उववण्णो ॥ ६७ ॥ अंतोमुहुत्तेण सव्वलहुं सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो ॥ ६८ ॥ अंतोमुहुत्तेण कालगदसमाणो सुहुमणिगोदजीवपज्जत्तएसु उववण्णो ॥ ६९ ॥ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेहि ठिदिखंडयधादेहि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेण कालेण कम्मं हदसमुत्पत्तियं कादूण पुणरवि बादरपुढविजीवपज्जत्तएसु उववण्णो ॥ ७० ॥ एवं णाणाभवग्गहणेहि अट्ठ संजमकंडयाणि अणुपालइत्ता चदुक्खुत्तो कसाए उवसामइत्ता पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि संजमासंजमकंडयाणि सम्मत्तकंडयाणि च अणुपालइत्ता एवं संसरिदूण अपच्छिमे भवग्गहणे पुणरवि पुवकोडाउएसु मणुसेसु उववण्णो ॥ ७१॥ . सव्वलहुं जोणिणिक्खमणजम्मणेण जादो अट्ठवस्सिओ ॥ ७२ ॥ संजमं पडिवण्णो ॥ ७३ ॥ तत्थ भवट्ठिदि पुत्रकोडिं देसूणं संजममणुपालइत्ता थोवावसेसे जीविदव्बए त्ति य खवणाए अब्भुट्ठिदो ॥ ७४ ॥ चरिमसमयछदुमत्थो जादो । तस्स चरिम समयछदुमत्थस्स णाणावरणीयवेदणा दव्वदो जहण्णा ॥ ७५ ॥
जीवस्थानकी छठी चूलिकामें सभी कर्मप्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति, उत्कृष्ट आबाधा और कर्मनिषेकके प्रमाणकी प्ररूपणा की गई है । इसी प्रकार सातवीं चूलिकामें भी सभी कर्मप्रकृतियोंकी जघन्यस्थिति आदिकी प्ररूपणा की गई है । कम्मपयडीकी मूलगाथाओंमे उक्त दोनों स्थितियोंका वर्णन स्थितिबन्ध प्ररूपणामें गाथाङ्क ७० ते ७८ तक पाया जाता है। इन गाथाओंकी चूणि जब हम उक्त दोनों प्ररूपणाओंके सूत्रोंकी तुलना करते हैं, तो उसपर षटखण्डागमके उक्त स्थलके सूत्रोंका प्रभाव स्पष्ट दिखाई ही नहीं देता, प्रत्युत यह कहा जा सकता है कि उक्त चूर्णि षट्खण्डागमके सूत्रोंको सामने रख कर लिखी गई है। यहां दोनोंकी समातावाला एक उद्धरण देना पर्याप्त होगा
" पंचण्हं णाणावरणीयाणं णवण्हं दंसणावरणीयाणं असादावेदणीयं पंचण्हमंतराइयाणामुक्कस्सओ हिदिबंधो तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ ॥ ४ ॥ तिणि वाससहस्साणि आबाधा ॥ ५॥ आबाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेओ” ॥ ६ ॥
(षट्खण्डा० उक्कस्सट्ठि० चू. पृ. ३०१) अब उक्त सूत्रोंका मिलान कम्मपयडीकी चूर्णिसे कीजिए“ पंचण्हं णाणावरणीयाणं णवण्हं दंसणावरणीयाणं पंचण्डं अंतराइयाणं असातवेयणिंजस्स उक्कस्सिगो उ ठितिबंधो तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ । तिन्नि वाससहस्साणि अबाहा । अबाहूणिया कम्मट्टिती कम्मणिसेगो।
( कम्मपयडी चुणि, बंधनक. पत्र १६३ )
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