Book Title: Danvir Manikchandra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ਰਣਦੀ For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३) ५८) ८) ५) ४०) १०) ९/ = ) €15) ५) ५१) ५) ६) १५) ११) ९) ११) (५) मालावाड़ा ( पेटलाद) के भाइयों द्वारा सराफ गेबीलाल सुंदरजी दाहोद दाहोद के भाइयों द्वारा फुटकर मार्फत जेचंद नाथजी कुशलगढ़ के पंचों द्वारा `सेठ वजेचंद हरीचंद रानकुवा (सूरत) राणापुर के दि० जैन पंच मार्फत जवेरचंद भोजराज शा० प्रेमचंद दीपचंद तारापुर शा० तिलोकचंद रतनजी दाहोद रुदेलके भाइयों द्वारा बसबरीया (बंगाल) के भाइयों दारा मार्फत शा० तलकचंद ईश्वरदास शा. जेसंग भाई गुलाबचंद प्रभासपाटण मखी आव (आनंद) के भाईयों द्वारा समस्त दि० जैन पंच द्रुग सेठ अमृतलाल गुलाबचंद बम्बई सेड गुलाबचंद हीरालाल धूलिया बोधेगांत्रके भाइयों द्वारा घायज (बड़ौदा ) के पंचों द्वारा शा० मोतीचंद नेमचंद नानचंद कस्तूरचंद खीमचंद भगवानदास प्राणजीवनदास माणिकचंद बहेचरदास मकनदास ताराचंद मोतीचंद >" मगनलाल तथा मणीलालकी कंपनी मणीलाल ताराचंदकी कंपनी 33 "" "" 13 "" "" " बुहारी ( पूरत ) "3 "" "" 39 For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ,, अंबेलाल आतमारामकी कंपनी ८२) अंकलेश्वरके दि. जैन पंच मार्फत शा० छोटालाल घेलामाई गांधी १५) टेंभुर्णी (सोलापुर)के भाइयों द्वारा २०॥) रणासणके भाइयों द्वारा मार्फत सेठ पूनमचंद सांकलचंद थांदला ( रतलाम ) के भाइयों द्वारा नाथूराम दीपचन्द्र परवार नरसिंहपुर १२॥) रतलामकी बोर्डिंग द्वारा फुटकर ५) शा. त्रीकमदास खुशालदास बाकरोल ६) देलवाड़के भाइयों द्वारा १५) वेडच " " पेटलाद , , दि. जैन पंच मार्फत सेठ हरजीवन लालचंद बडौदा १०१) सेठ रोडमल मेघराजजी सुसारी जवरचंद कंवरलाल जैन म्हसर शा० दलपतभाई केवलभाई वलसाड मुनीम धरमचंदजी हरजीवनदास पालीताना शा० परभुदास लखमीदास झहेर १०) ,, केवलदास हरजीवनदास , झहेरके भाइयोंद्वारा फुटकर खेरगाम ( सूरत ) के भाईयोंद्वारा श्राविकाश्रम (बम्बई) की श्राविकाओंद्वारा श्री० शिवलाल सुन्दरलाल बैनाड़ा झालरापाटन ९) जांबुडीके भाइयों द्वारा १७॥) सेठ भगवानदास झवेरदास सोजित्राकी मार्फत आए For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . २५) शा० परभूदास हेमचंद सूरत १५) ,, त्रिभोवनदास ब्रीजलाल , ___५) , छगनलाल उत्तमचंद सरैया , , परभुदास पानाचंद सरैया ,, मंछाराम जगजीवनदास ८२।।।-) फुटकर १३९१-५-० इसके बाद सेठजीकी विधवा नवीबाईसे पत्र व्यवहार करने पर आपके द्वारा रु० ५००)की रकम इस फंडमें मिली थी जिससे यह फंड १८९१।-का हो गया। तदनंतर जीवनचरित्रके लिये सामिग्री एकत्रित करनेका काम हमने लिया और सेठजीसे गाढ़ परिचयवाले और जैनसमाजकी उन्नतिके लिये रात्रि दिन लवलीन श्रीमान् जैनधर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने यह चरित्र लिख देनेका काम सहर्ष स्वीकार कर लिया। बादमें इसकी आवश्यक सामग्री एकत्र करनेके लिये 'दिगम्बरजैन,' 'जैनमित्र' आदि पत्रोंमें विज्ञापन छपाया गया और हमने इतस्ततः बहुत पत्र व्यवहार किया; किन्तु खेद है कि हमको आने दो आने समाचार ही सेठजीके बारेमें प्रगट हुए जिसमें आमोदके सेठ हरजीवन रामचंद शाहने सेठजीके कई कार्योंके उल्लेखरूप एक बड़ा लेख भेजा था जिसके लिये हम आपके आभारी हैं। इस प्रकार जब पूर्ण सामग्री न मिल सकी तब हमने जातीय साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक सभी पत्रोंकी फाइलें एकत्रित की जिसमें 'जैनगजट'की पुरानी फाइलें For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) भेजने के लिये भारतवर्षीय दि० जैन महासभा कार्यालयके, सबसे पुराना मासिक 'जैन बोधक' (मराठी) की प्रारंभसे फाइलें भेजने के लिये सेठ रावजी सखाराम दोशी सोलापुरके, 'जिनविजय ' ( मराठी ) मासिककी फाइलें भेजनेके लिये श्रीयुत भरमप्पा पदमप्पा पाटील (होसूर ) के और 'जैनमित्र' तथा 'जैनगजट' की कुछ फाइलें भेजने के लिये बम्बई दि० जैन प्रांतिक सभा कार्यालयके हम आभारी हैं; क्योंकि इन फाइलों से ही इस चरित्र के लिये हमें बहुतसी सामग्री मिल सकी है। 19 अब सेठजीके वंशका विशेष परिचय जाननेकी आवश्यकता थी जिसको आपके लघु भ्राता सेठ नवलचंदजी (जो कि इस जीवनचरित्रको प्रकट हुआ देख नहीं सके और गत वर्ष में स्वर्गवासी हुए हैं ) और आपकी पत्नी श्रीमती परसनबाई को पूछ कर नोट किया था और आपके पिताकी जन्मभूमि भींडर ( मेवाड़ उदयपुर ) का कुछ परिचय प्राप्त किया और स्वर्गीय सेठजीकी जन्मभूमि सूरत शहरका - जो कि " सोनानी मूरत ( सोने की मूर्ति ) कही जाती है और अति प्राचीन शहर है, जहां कई भट्टारक हो गये हैं, कई ग्रन्थ तैयार हुए थे, और कई मंदिरोंका निर्माण हुआ था और उसके आसपास यानी गुजरात देशका प्राचीन इतिहास इस चरित्रमें प्रकट करनेका हमारा और ब्रह्मचारीजीका विचार हुआ था; क्योंकि जिससे स्वर्गीय सेठजीकी जन्मभूमिका महत्व प्रकट हो जाय और साथ २ अपने धर्म की पूर्व महत्ताका परिचय मिल जाय इसलिये इधर उधर घूमकर कई पुस्तकें एकत्रित कीं और कई प्रतिमाओंके लेख उद्धृत ★ For Personal & Private Use Only A Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किये और हस्तलिखित कई ग्रन्थोंसे भी सूरत और आसपासके मन्दिर, प्रतिमाओं और ग्रन्थादिका पता लगाया । सूरत, रांदेर आदिके मंदिरोंकी प्रतिमाओंके लेखादि संग्रह करने में यहांके हमारे उत्साही मित्र भाई छगनलाल उत्तमचंद सरैयाने बहुत सहायता की थी जिसके लिये भाई सरैयाके हम आभारी हैं। इसके सिवाय सेठजीकी फर्मसे स्वर्गवासके बाद आये हुए तार पत्रादि प्राप्त किये और पत्रोंके शोकजनक लेख और कविताएं प्राप्त की। इस तरह इस बृहत् चरित्रकी सामग्री इकट्ठी करनेमें बहुत समय लग गया । फिर मान्यवर ब्रह्मचारीने जब तीसरे वर्ष बड़ौदेमें चौमासा किया था तब इस चरित्रको लिपिबद्ध कर लिया। बाद छपानेका काम प्रारंभ हुआ जिसमें कई कारणोंसे विलंब हुआ और फिर इसमें सेठनीकी कई अवस्थाओंके चित्र, आपकी स्थापित संस्थाओंके चित्र ऐसे कई चित्र प्रकट करनेका इरादा था जिसको प्राप्त करने और तयार करनेमें भी विलंब हुआ । पाठकगण ! आपने बहुतसे जीवनचरित्र पढ़ें होंगे परंतु इस बृहत् चरित्रमें आपको कुछ विशेषता अवश्य ही दृष्टिगोचर होगी; क्योंकि स्वर्गीय सेठजीका वंशपरिचय और अपनी समाजोन्नतिकी कार्य प्रणालीका वर्णन पढ़मेसे पाठकोंको बहुत ही लाभ होगा और सूरत जिलेके जैनोंकी पूर्व कीर्ति-कौमुदीका वर्णन तथा शिलालेख, भट्टारकोंकी पट्टावली तथा जातियोंकी उत्पत्तिका वर्णन पढ़नेसे यह जीवनचरित्र एक संग्रह करने योग्य जैनशास्त्र ही मालूम होगा। जब एक ऐशआराम करनेवाला बहुत बड़ा धनिक अपने पैसेका उपयोम धार्मिक और सामाजिक कार्यो में For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) नहीं करता है तब स्वर्गीय सेठजीने सामान्य धनिक होकर भी सामाजिक और धार्मिक उन्नतिके लिये रात्रि दिन इतना परिश्रम और द्रव्य व्यय किया था कि आज सेठनीकी जोड़का एक भी पुरुष नज़र नहीं आता। इस चरित्रमें करीब २५-२६००) रु०की रकम खर्च हुई है और २००० प्रतियां प्रकट की गईं हैं जो सिर्फ १) रु० लेकर ही प्रथम 'दिगम्बर जैन 'के ग्राहकोंको ही दी जायगी और कुछ प्रतिया समालोचनादिमें तथा अपनी संस्थाओंको भेटमें बटेंगी और शेष करीब २०० ही विक्रीके लिये रह जायगी जो देखते २ बिकजांयगी ऐसी आशा है। स्वर्गीय सेठनीको पुस्तकें प्रकाशित करनेका शौक था और इसकी आवश्यकता है ही इसलिये यह चरित्र बिक जानेपर जोरकम बचेगी उसको स्थायी रखके उसकी उपजमेंसे "दानवीर माणिकचंद सुलभ ग्रन्थमाला" प्रकट करनेका हमारा विचार है जिसके ग्रंथ बिलकुल लागतके मूल्य पर ही प्रकट किये जायगे और हिन्दी तथा गुजराती दोनों भाषाओंके ग्रंथ इसमें प्रकट होंगे। __इस चरित्र में क्या क्या विषय है वह तो इसकी विषयसूची पढ़नेसे मालूम होगा इसलिये यहां विशेष न लिखकर पाठकोंसे हम सिफारिश करते हैं कि आप इस बृहत् चरित्रको आदिसे अंत तक शनैः २ अवश्य पढ़ें और बादमें अपने मित्रोंको भी पढ़नेको देवें । हमारे अजैन भाई भी इस चरित्रको पढ़कर बहुत लाभ, उठा सकेंगे। For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) चार वर्षसे इस चरित्रको पड़नेके लिये सारा जैन समाज लालायित हो रहा था और बहुत समय से अनेक आर्डर भी आ गये थे परन्तु तैयार होनेमें कई कारणोंसे विलंब हो गया इसलिये पाठकों से हम क्षमाप्रार्थी हैं तथा इसमें जो कुछ त्रुटि मालूम पड़ें उसकी सूचना हमको अवश्य देवें क्योंकि यदि इस जीवनचरित्रकी विशेष मांग होगी तो इसकी दूसरी आवृत्ति निकालने का भी हमारा पूर्ण विचार है । इति शुभम् । ' वीर सं० २४४५ पौष वदी ३ गुरुवार ता० २६-१२-१८ सूरत. j जैन जातिसेवकमूलचन्द किसनदास कापड़िया For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-सूची। अध्याय पहिला। . .. १. जीवनचरित्रकी आवश्यकता ... ... ... अध्याय दूसरा। गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन१. गुजरातका महत्व ... ... ... २. सूरत नगर कैसे वसा ? ३. सूरतमें अंग्रेजोंकी सत्ताका जमना... ४. सूरत और रांदेरमें जैनियोंका वर्णन ५. रांदेरमें जैनियों का महत्व और शिलालेख ... ६. नकल शिलालेख, सुरतके बड़ा चउटाकी प्रतिमा ७. ईडरके भट्टारकोंकी नामावलि ... ८. सूरत की गद्दीके भट्टारक... ... ९. सूरत जिलेके मंदिर, प्रतिमा और शिलालेख... १०. काष्ठासंगके भट्टारकोंकी नामावलि... ११. सिंहपुग ज्ञातिका वर्णन ... ... १२. वर्तमानमें सूरतकी स्थिति ... अध्याय तीसरा। उच्च कुलम जन्म १. हूमड़ जातिका वर्णन ... २. हुमड जातिके १८ गोत्र... ३. परतापगढ़के हूमड़ ... ४. सोलापुरमें हूमड़ों का प्रभाव ५. बागड़ देशमें हूमड़ ... ... ... . .. For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. वर्तमानमें हूमड़ोंकी बस्ती ... ७. सेठ माणिकचंद जीका वंश परिचय... ८. सेठ माणिकचंदजीके पिता शाह हीराचंदकी संतान ... ९. सूरतके चंद्रप्रभुके मंदिरका जीर्णोद्धार ... ... १०. बड़े भ्राता सेठ मोतीचंदका जन्म ... ११. सेठ पानाचंदका जन्म... ... .. १२. सेठजीकी भगिनी हेमकुमरी और उनके पुत्र चुन्नीलालका परिचय ... ... १३. दानकी वासनामें सेठ माणिकचंदजीका अवतार १४. सेठ माणिकचंदजीका जन्म ... १६. सेठ चुनीलाल झवेरचंद का जन्म... ___... १६. सेठ नवलचंदजीका जन्म १०३. ० ० १०७ १०८. ق م م ११२ ११६ ११९ ११९ و م अध्याय चौथा। सेठ माणिकचंदजीकी वृद्धि । १. १८५७ के गदरका समय ... ... २. माता विजलीबाईका स्वर्गवास ... ... ३. भ्राता मोतीचंद पानाचंदका बम्बई जाना ... ४. सेठ माणिकचंद और नवलचंदका बम्बई जाना ५. सेठ हीराचंदजीकी पुत्र-सेवा ... ६. भगिनी हेमकुमरीका उपकार ... ७. सेठ माणिकचंदजीका व्यापारमें लगना ८. सुरतसे बम्बई तक प्रथम रेल्वे... ... ९. माणिकचंदजीकी बालपनमें धर्मचर्चा ... १०. वम्बईके वीसा हूमड़ोंमें प्रथम जौहरी ... ११. बम्बईमें 'माणिकचंद पानाचंद' फर्मका प्रारंभ १२. सेठजीकी व्यापारमें कुशलता, सत्यता और न्यायपराणता... १३. सेठ हीराचंदजीको प्रौढ़ विवाहका पक्षपात ... ... १२० १२०. १२२ १२३ १२५ १२५ १२७ १२८ For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१ ३४ १४१ (१४) अध्याय पांचवां। युवावस्था और गृहस्थाश्रम १. मोतीचंदकी ब्रह्मचर्यमें दृढ़ता .... २. सेठ मोतीचंदका विवाह ३. सेठ पानाचंदका विवाह .. ४. पुण्योदयसे व्यापारमें वृद्धि ५. माणिकचंदका परोपकारी स्वभाव... ६. सेठ माणिकचंदका विवाह ७. सेठ हीराचंदजीकी केशरियाजीका यात्रा ... ८. नकल नोटिस जीवहिंसा बंद, श्री केशरियाजी ९. सेठ नवलचंदजीका विवाह ... १०. सेठ हीराचंदजीको कुटुम्ब-संतोष ११. चारों स्त्रियों में एकता ... १२. पूर्व पुण्यका उदय ... ... १४२ १४८ १५० १५७ ૬૨ अध्याय छठा। संतति-लाभ १. व्यापार-वृद्धिका कारण २. विलायतसे व्यापार . ... ३. सेठ माणिकचंदजीको प्रथम पुत्रीका लाभ... ४. त्यागी महाचंदजीका परिचय ५. अंकलेश्वरकी पूजामें माणिकचंदजी ६. सजोतके शीतलनाथजी ७. धरमचंदजीका परिचय... | . ८. प्रेमचंद मोतीचंदका जन्म ९. सेठ मोतीचंदका परलोक १०. विधवा रूपाबाईके धार्मिक विचार १. व्यापारमें अटूट लाभ... ६५ १६५ ૧૬ १७२ १.७४ ... १७७ ___... १७९ For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) १२. चुन्नीलाल झवेरचंदका संबंध ... ... ... १८० १३. सेट माणिकचंदकी द्वितीय पुत्री मगनमतीका जन्म ... १४. सेठ हीराचंदजीका स्वर्गवास ... ... ... १८३ १८९ १९२ १९३ १९६ १९८ १९८ अध्याय सातवां। लक्ष्मीका उपयोग १. सेठ हीराचंद नेमचंद सोलापुरका सेठ माणिकचंदसे परिचय २. सूरतके चंद्रप्रभुके मंदिरका पुन: जीर्णोद्धार... ... ३. सूरतमें क्षुल्लक धर्मदासजी ... ... ... ४. सेठ माणिकचंदजीकी गोमट्टस्वामीकी यात्रा सं० १९४५ ५. हिन्दीको भारतकी राष्ट्रीय भाषा होनेका दावा ६. गोम्मटस्वामीका वर्णन ७. सेट माणिकचंदजीकी दया और गोमट्टस्वामीमें सीढ़ियोंका प्रबन्ध ... ... ... ८. मूलबिद्रीकी यात्रा ... ... ... ९. धवलादि ग्रंथोंके उद्धारका विचार... १०. कुरीतिनिवारण चर्चा ... ... . ११. 'जैनबोधक'का उदय ... १२. सेठ माणिकचंदजीके जाति उद्धारार्थ महत्वपूर्ण पत्रकी नकल ... ... ... ... १३. सोलापुरमें संस्कृत पाठशाला ... ... १४. प्रन्थप्रकाशन कार्यमें ब्रह्मसूरी शास्त्रीका पत्र... १५. भट्टारक विशालकीर्तिका परिचय ... १६. सेठजीकी यात्रा श्री सेव॒जय आदि १७. धरमचंदजी पालीतानाके मुनीम १८. पालीतानाके लिये सेठ नवलचंदका प्रयत्न ... १९. पालीताना तीर्थका हिसाब २१४ २१७ ૨૨૩ 224 २२७ . . . For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) __२३० २०. जुबिलीपर बम्बईमें गौवध बंद... २१. पारसियोंमें मांसाहारकी बंदी ... २२. जमीनका व्यापार ... ... २३. सूरतमें चन्दावाड़ी धर्मशालाका निर्मापण २४. पालीतानाका दौरा और सहायता... २५. बम्बईमें रत्नाकर पेलेसका निर्मापण २६. सेठजीका परोपकार व कार्यकुशलता २७. सोलापुरमें चतुर्विध दानशाला ... . . Mmm mm or : २४७ २५२ २५३ २५४ अध्याय आठवां। संयोग और वियोग। १. सेठजीकी पुत्रियोंकी लग्न ... २. श्रीयुत पंडित गोपालदासजी ... ३. बम्बई दि. जैन सभाकी स्थापना ४. रत्नाकर पेलेसमें श्री चंद्रप्रभु चैत्यालयकी स्थापना ५. सेठ प्रेमचदंको व्यापारकी शिक्षा... ... ६. जैनियों में विलायत जानेकी चर्चा .. ७. दि. जैनियोंकी सभामें विलायत जानेका विचार ८. पं० गोपालदासजीका समुद्रयात्रामें विचार ९. ब्रह्मसूरी शास्त्रीका समुद्र यात्रामें विचार ... १०. वीरचंद राघवजींका चिकागो गमन ११. चौगलेकृत तापापहार स्तोत्र ... १२. सेठजीका मथुरा महासभामें प्रथम गमन ... १३. खड़े होकर उपदेश देनेमें लाला रूपचंदजीकी राय १४. छापके बारेमें वार्तालाप १५. नकल पत्र वीरचंद राघवजी ... १६. सेठ हरजीवन रायचंद... १७. पालीताणा मंदिरकी प्रतिष्ठा ... २५६ _२५७ २५८ २६० २६४ २६५ २६६ २६८ २७४ २७९ For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८१ २८२ २९२ (१७) १८. श्रीमती रूपाबाईके १२३४ उपवासकी विगत १९. सेठ माणिकचंदका परिग्रहप्रमाण व्रत २०. धवल जयधवलके उद्धारार्थ चंदा ... ... २१. बम्बई दि. जैन परीक्षालय ... २२. जैनधर्म पुस्तकप्रचार ... २३. जर्मनीके अफसरका ब्रह्मसूरी शास्त्रीसे संबंध... २४. सेठ नक्लचंद जीकी शिखरजो यात्रा और सीढ़ीका प्रबंध २५. सेठ माणिकचंद स्वयं अध्यापक... २६. मूलचंद किसनदास कापड़ियाका प्रथम परिचय २७. मगनबाईजीका वैधव्य... ... २८. विधवां मगनबाईको पिता द्वाग विद्याभ्यास... २९५ ૨૧૨ ३०. ૨૦૨ ३०३ س س س २५६ س اس अध्याय नवां। समाजकी सच्ची सेवा। १. सं० १९५६ के दुष्कालमें मदद... ... २. बम्बईमें जैनबोर्डिगका विचार... ... ३. , दि. जैन प्रां० सभाका स्थापन ... ४. सेठ माणिकचंदजी और प्रेमचंद व्याख्याता... ५. “ जैनमित्र "के उदयका विचार... ... ६. सेठ ही० गु० जैन बोर्डिंग बम्बईका स्थापन ७. सेठ माणिकचंदजीका शाखप्रेम ... ८. सूरतमें जैन पाठशाला... ... ९. , मंदिर जीर्णोद्धार ... १०. श्री. ललिताबाईका परिचय ... ११. सेठजीका जातियोंके इतिहासके लिये. ईनाम १२. दि. जैन डाइरेक्टरीका विचार... ... १३. पत्नी चतुरबाईका परलोक १४. गुजरातके ४२ ग्रामोंका विरोध मिटाना ... ३२७ ___ ३२८ ام اس اس ३२९ ३३० ३ m ३३३ ३३६ For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५. अकलूजकी प्रतिष्ठा १६. द० म० जैम सभामें सेठजीको मानपत्र १०. सेठजीका द्वितीय विवाह ... १८. बम्बई में रथोत्सव और संस्कृत जैन विद्यालयकी स्थापना १९. सेठ माणिकचंदजीका व्यापारसे पृथक् होना... (१८) ... ... ... ... ... ... ... २०. रु० २०००००) के दानका संकल्प २१. मगनबाईकी निर्लोभता... ... २२. सेठजी और पानाचंदजीकी शिखरजी यात्रा और पार्श्वनाथ टोंकका उपसर्ग निवारण ... २३. सोलापुर में सेठजीको मानपत्र २४. ईडर के संस्कृत प्राकृत प्रन्थोंकी प्रशस्तिका कार्य २५. भारत दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीका स्थापन २६. सेठ प्रेमचंदजीका स्वर्गवास और स्वहस्तलिखित दानपत्र २७. सोलापुरकी बिम्बप्रतिष्ठा और प्रांतिक सभा २८. वैद्यक शिक्षाकी उत्तेजना २९. सेठ पानाचंदजीका स्वर्गवास और दान ३०. गुजरात दि० जैन बोर्डिग अहमदाबादकी स्थापना ३१. स्तवनिधिमें द० म - जैन सभा और मानपत्र ३२. कन्याविक्रय में जातिभोजनका त्याग ३३. लोक बहादुर रावजी कस्तूरचंदजी सोलापुर. ३४. शिक्षण फंडके लिये सेठजीका भ्रमण ३५. कोल्हापुर बोर्डिगकी इमारतका मुहूर्त ३६. अहमदाबाद बोर्डिगमें ५०००) का दान ३७. बोरसद में भ्रमण और मानपत्र ३८. सेठ हरीचंदनाथाका परलोक और २५०००) का दान अध्याय दसवां । महती जातिसेवा - प्रथम भाग । १. अम्बाला में महासभा और सेठजी ... ... ... ... ... ... ... ... ... ROO ... For Personal & Private Use Only ... ... ... 0.0 ... ... ... :: ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ३३९ ३४१ ३४२ ३४४ ३४५. ३४६ ३४६ ३४७ २४० ३५१ ३५२ ३५५ ३५८ ३५९ ३५९ ३६४ ३६७ ३७१ "" ३७३ ३७४ ३७६ ३७७ ३८३ ३८५ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AM 0 0 4 4 4 ૪૧૨ ४१७ २. धर्मादाका द्रव्य ... ... . ... ३. मगनबाईकी तीर्थयात्रा... .. ४. बाबू शीतलप्रसादजीका परिचय... ५. उजैनकी बिम्बप्रतिष्ठामें सेठजी ... .६. सेठजीका दयादान ... ... ७. सेठजीकी सरस्वतिभक्ति ... ८. सेठजी द्वाग स्या० वा. पाठशाला काशीकी स्थापना ... ९. सेठ ठाकोरदास भगवानदास और दि० जैन डाइरेक्टरी... १०. दीवान कोल्हापुरकी जैन समाजपर सम्मति ... ११. 'हीराबाग' धर्मशालामें सवालाखका दान ... १२. सहारनपुरमें महासभा और सेठजी सभापते... १३. बाबू शीतलप्रसादका सेठजीको परिचय ... ૪૨ १४. स्तवनिधि क्षेत्रका हाल... ... ... ૪૨૪ १५. सेठजीको जे० पी० की पदवी और मानपत्र ४३५ १६. कुंडलपुरकी यात्रा और जबलपुर बोर्डिगका प्रबंध ... ४४५ १७. सिवनीमें फूट मिटाना... ४५० १८ जबलपुर बोर्डिगका मुहूर्त ... १९. शिखरजीकी वीसपंथी कोठीका उद्धार .... ४५७ २०. सेठजीको सूरतमें मानपत्र ... ... ४६४ २१. स्या० वा. पाठशाला काशीके लिये १५०००) का संकल्प और रा० ब० नेमीचंदके वाक्य ४६८ २२. हीराबागमें तीर्थक्षेत्र कमेटी का दफ्तर प्रारंभ ४७२ . २३. सेठजीका सरल स्वभाव ... ४७५ २४. फल्टन सरिसे सेठ जीकी मित्रता और कन्याविक्रय निषेध ४७६ २५. भातकुलोमें सभा और सेठजी सभापति ... २६. मुक्तागिरीकी यात्रा ... ... ... ... २७. उपदेशकीय परीक्षा ... .. ૪૮૪ २८. कलकत्तेमें महासभा और सेठजी ४५३ ४७७ ४८० For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९. मगनबाईको सुबर्ण पदक ३०. पं० शिवकुमार शास्त्री ( २० ) ... अध्याय ग्यारहवां । महती जातिसेवा - द्वितीय भाग । ... १. सेठ माणिकचंदजीकी दिनचर्या २. गजपंथापर प्रां० सभा और सेठजी ३. आगरा बोर्डिंगके लिये सेठजीका दौरा ४. शिखरजी पर बंगले बननेका प्रस्ताव ५. सेठजीका दौरा और उदयपुर में पाठशाला ६. फलटन में बिंबप्रतिष्ठा और मानपत्र ... ... ... .... ... ... ... ... ::: ... ... ७. ... सूरत में फुलकौर कन्याशालाकी स्थापना ८. सेठजी द्वारा शिखरजीकी रक्षार्थ खुर्जेमें बृहत् चंदा ९. शिखरजीकी रक्षार्थ सेठजीका उद्योग १०. शिखरजी रक्षामें सेठ चुनीलालका स्वर्गवास... ११. शिखरजीमें लार्ड फ्रेजर और सेठजी १२. 'दिगंबर जैन ' पत्रके लिये सेठजीका प्रयत्न.. १३. तारंगाकी यात्रा और दि० श्वे० की फूट मेटनेका उद्योग १४. आबूजीके दि० जैन मंदिरके उद्धारका प्रयत्न १५. सोलापुरमें बोर्डिंगका विचार १६. पावागढ़में प्रां० सभा और सेठजीको मानपत्र १७. मगनबाई द्वारा स्त्रीशिक्षाका उद्योग १८. सोलापुरमें बोर्डिंगका मुहूर्त १९. कुंडलपुरमें महासभा और सेठजी २०. सेठजीको शिखरजीकी चिंता २१. पावागढ़में तांबेकी खान न खोदनेकी आज्ञा २२. बाबू देवकुमार आराका स्वर्गवास और दान २३. माता - रूपाबाईको मानपत्र ... ... ... ... ... ... For Personal & Private Use Only ... ... ... .. ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... : : ४८८ ४९०. ४९३ ४९६ ४९९ ५०४ ५०५ ५१० ५१४ ५१९ ५२१ ५२३ ५२६ ७३० ५३२ ५४४ ૪૮ ५५० ५५७ ५५८ ५६० ५६२ ५६७ ५६७ ५६९ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ ७८० ५८२ ५८४ ५८८ (२१) २४. इलाहबादमें जैन बोडिंगका उद्योग ५७० २५. दहीगावमें सेठजी और बालविवाह निषेधका प्रस्ताव ... ५७४ २६. बम्बईमें दतियानरेशको मानपत्र... ... २७. म्तवनिधिमें सेठजीका उपदेश और जैनधर्म पर एक अजैन वकीलकी राय ... ... ... ... २८. ताग्गामें प्रां. सभा, अहमदाबाद श्राविकाश्रमका विचार... २९. कोल्हापुर 'चतुरबाई सभागृह' ... ... ३०. धर्मादेके प्रस्तावकी अमली कार्रवाई ... ३१. हुबली बोर्डिंगके लिये सेठजीका उद्योग और स्थापना ... ३२. परीख लल्लूभाईके गुणकी कदर ... ... ३३. महाराज बड़ौदा और सेठजी ... ३४. बम्बईमें त्यागी पन्नालालका केशलोंच और औषधालय... ३५ सर्कारी कौंसिलमें जैन प्रतिनिधिके लिये सेठजीके पत्र व्यवहारकी नकल ... ... ३६. श्राविकाश्रमकी स्थापना ... ... ३७. सेठजीका काठियावाड़में भ्रमण ... ... ... ३८. दाहोदमें सेठजी और मानपत्र ... ... ६०३ ३९ कोल्हापुरमें द० म० जैन सभा और सेठजीका दान... ४०. सोलापुरमें त्यागी पनालालजीका केशलोंच और शीतलप्रसादजीका ब्रह्मचारी होना ... ४१. ब्र. शीतलप्रसादजी रचित बारह भावना ... ... अध्याय बारहवां। महती जातिसेवा-तृतीय भाग । १. सेठजीका पंजाबमें दौरा और लाहौरमें बोर्डिंगका प्रबंध ६२८ २. सेठजीको पुत्र (जीवनचंद्रका) लाभ ... ६३२ ३. सेठजी द्वारा मांसाहार रोंकनेका प्रयत्न ... ... ६ ४. शिखरजीमें महासभा और सेठजीको 'जैनकुलभूषण' का पद । ६३४ ५५ | और ... For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) س س » ६४४ » م م م م ६६७ ६८० ५. भारत दि० जैन महिला परिषद्की स्थापना ... ... ६. वीसपंथी कोठीके मंदिर जीर्णोद्वारार्थ सेठजीका श्रम ... ७. लखनउमें सेठजी और मानपत्र ... ८. लाहौर बोर्डिंगकी स्थापना ... ... ९. सेठजीका विद्याप्रेम और बरिष्टर जुगमंदरलाल १०. गोमट्टस्वामी मस्तकाभिषेक, महासभा और सेठजी सभापति ११. शोकसागर सेठ जी ... ... १२. जयपुग्में सेठजी और मानपत्र ... ... १३. महागज सीकरको बम्बईमें मानपत्र ... १४. इलाहबाद बोर्डिगके लिये सेठजीका दौरा ... १५ सांगलीमें द० म० जैन सभा और सेठजीका वोडिंगके लिये उद्योग ६७१ १६. श्राविकाश्रमका बम्बईमें परिवर्तन . ... ६७६ १७. ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुरकी स्थापना ... ... ६७९ १८. बेलगाम और सांगलीमें बोर्डिंग स्थापन और सेठजीका प्रयत्न १९. सेठजीका प्रतापगढ़ गमन और गिरनारजी क्षेत्रका सुधार २० रतलाम बोर्डिगकी स्थापना ... २१. सेटजीकी ब्रह्मदेश यात्रा ... ... २२. खामगाममें प्रां० सभा और सेटजी २३. सेठजीकी विलायत जाने की इच्छा २४. विलायतम जैन बोर्डिग खोलने का सेठजीका विचार २५. इलाहाबाद बोर्डिंगकी स्थापना ... ... २६. मगनबाईका पंजाब भ्रमण .... २७. शिखरजी तेरापंथी कोटी और चंपापुरीजीका उद्धार ... २८. मंदारगिर तीर्थक्षेत्रका उद्धार ... ७१२ २९. सोलापुरमें चतुरबाई श्राविकाविद्यालय की स्थापना ... ३०. वर्धा दि० जैन बोर्डिंग .. ३१. काशमीरका प्रवास ... . ३२. सेठजीका विद्यार्थिओंसे प्रेम और कोल्हापुर गमन ८८८ ८ ८ ८ ८GGG 600 For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ du A ३ (२३) ३३. अहमदावादमें औषधालयकी स्थापना ... ३४. लंडनमें महावीर ब्रदरहुडकी स्थापना ... ३५. श्री० मगनबाईको ‘जैनमहिलारत्न 'का पद... ३६. हर्मन जैकोबीकी सम्मति जैन बौद्धसे प्राचीन ३७. सोलापुरमें बोर्डिंगके मकानका खुलना ... ३८. धर्मात्मा रूपाबाईका परलोक ... ३९. श्राविकाश्रमकी श्राविका श्री. जीवकोरबाईका मरण __ और दान ... ... ... ... ४०. जबलपुर बोर्डिंगमें सिंघई नारायणदासका दान ४१. सेठजीका स्वर्गवास ... ४२. ढाई लाखका अंतिम दान ७४३ ७४४ ७४९ ७५८ अध्याय तेरहवा । दानवीरका स्वर्गवास । ७७५ १. ढाई लाखके दानकी विगत २. दानावलि ... ... ३. माणिकचंदजी स्मारक फंड ... ४. शोक सभाओंका कोष्टक ... ५. सहानुभूतिसूचक पत्रों की सूची ... ६. मुख्य २ शोकजनक पत्रों की नकल ७. सहानुभूतिसूचक तारोंकी सूची ... ८. मुख्य २ तारों की नकल ९. शोकजनक कवितायें... १०. पत्रोंके शोकजनक लेख... ११. ग्रन्थकर्ताका प्रयोजन ... ८३४ ८८८ - For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ सिद्ध १६ करें .0 ५४ (२४) शुद्धिपत्र। लाइन अशुद्ध शुद्ध २० थीरता थिरता हट १७ शीघ्र १८ प्लोटो प्लेटो २३ का? ८ अय्यु लघु १० तंवतके अंक तीनठी संवतके अंक तीन ही २० पुरुषार्थ पुरुषार्थी विनकसेन विनयसेन १५ उम्मेग्गं उम्मग्गं १२ ग्राम ने काष्ठ ग्राममें काष्ठा १७ यथन कथन १८. कंगूनेदार कंगूरेदार बढ़ाता बढ़ता उत्कृष्ट उत्कट ८ रमणीकता रमणीकताका ३ पुराषार्थी १७ एक १४ संबन्धियोंमें सम्बन्धियोंमेंसे १४ जरता , ur • Pur, ० १०५ २२ १३८ १५७ १९६ १९७ ३२० पुरुषार्थी एक में जाता For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ट. ३३० ३४० ३३३ as "" ३४९ ३५१ ३६५ ३७० 9" ल'. २०८ २३२ २३४ २३६ २४७ २४८ २५५ १९ २२ १७ ११ ३ दुदु १४ १८ १० सुवर्णम १ पंजीकी ४ सिताई व योगान व्याष्टत देशका शोक २१ २००० अशुद्ध अपने जो ३९३ ३९४ ४२१ ४५१ १७ भाई ४५६ १९ अप्रैलको (२५) ७ २ कम २३ १९८० खनपर जमीन ११ वृद्धि १३ महल में कशसे १ पं० आपने ज़ोर शुद्ध डुडु सुवर्णमय फानस सितारे वे योगाने व्यावृत देशकी शौक २०००० भारी अप्रैलको सेठजी छिन्दवाड़ा आए वहां १९४० For Personal & Private Use Only खनका कर्म जीमन बुद्धि महलके फर्शमें पं० Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र. 17 २५८ २६४ २७३ २७७ "" ७० ६ ला. ७२३ ७४४ ११ १६ ४ २० सभासोत २९९ ९ प्रढ़वीए २९७ ४७४ १६ ४९४ ५ ५.२७ १३ ५.३९ १४ ६०० ६२१ १ ७ २४ १६ १३ 20 ८ ( २६ ) अशुद्ध आदनी साश्रार्थ १९५० अल वतन लैट लाला माणिकचंदजी कि हैं ही ज्ञान की सांगलीकी फंद For Personal & Private Use Only शुद्ध आदमी सर्व शास्त्रार्थ १९१७ १ समासांत पुढ़वीए अश वेतन लौट लाट माणिकचंदजीको की है विज्ञान बोर्डिङ्गकी सांगलीका फन Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्गीय श्रीमान दानवौर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचन्द हीराचन्द जौंहरो जे० पौ० वम्बई। जन्म सं २००८ ___ खगवास सं २०७० For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ दानवीर माणिकचन्द्र । स्व० दा० जैन कुलभूषण सेठ माणिकचन्द्र हीराचन्द्र जौहरी जे०पी०बम्बईका संक्षिप्त जीवन चरित्र । अध्याय पहिला | जीवन चरित्रकी आवश्यकता | इ स संसार में कोई भी प्राणधारी एक पर्यायमें बहुत कालतक नहीं रहता । यह बात प्रत्यक्ष है कि लाखों कोशिशोंके किये जानेपर भी एक जीता जागता मानव, एक जगतके जीवोंका मित्र, एक अपनी शक्तियोंको परमात्म-भक्ति में व परोपकार - वृत्ति में लीन करनेवाला, यहां तक कि स्वयं सर्वज्ञ अवस्थाको प्राप्त होनेवाला इस पुद्गलके स्कंधोंसे रचे हुए शरीरमें अपनी आयु से अधिक रह नहीं सक्ता । मरण किसीको नहीं छोड़ता । किन्तु मरण उन्हींका मरणरूप है जो फिर अन्य शरीरको धारण करते हैं । जिन्होंने अपने आत्माके ऊपरसे कारण शरीर अर्थात कार्माण देहको या आठों कर्मों को जला डाला है और उसे शुद्ध निर्विकार ज्ञानानंदमय बना डाला है उनका यह शरीर-वियोग मरण नहीं किन्तु मोक्ष है । वे स्वाधीन, अव्यावाध, For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ ] अध्याय पहिला | आनंदमय होकर निरंतर स्वात्मानुभूति तियाके विलासमें मग्न रह परमामृतका स्वाद लेते हुए परम सुखी रहते हैं। ऐसे महात्माओं को वीर, महावीर, परमविजयी, सिद्ध, परमऐश्वर्य्यधारी, परमप्रभु कहते हैं । आत्मा अपूर्व शक्तियों का भंडार है । इसका लक्षण उपयोग है । ज्ञान क्रियाका स्वामी आत्मा ही है, अन्य कोई भी अनात्मा नहीं । ज्ञान एक गुण है । गुण और गुणका आश्रयी द्रव्य इस जगत में कभी मिटते नहीं, चाहे जितनी उनकी अवस्थायें पलटती चली जावें । निःसन्देह एक अवस्था जरूर मिटनेवाली और अन्य अवस्था होनेवाली है, पर जिसकी दशा पलटती वह अपनी सत्ताको इस जगत में सदा बनाये रखता है । हमको प्रत्यक्ष अनुभव है कि किसीका निश्चयसे नाश नहीं होता । एक उजड़े हुए वृक्षकी शाखायें काटे जानेपर लकड़ी होकर कोयला, राख होती और फिर पानी हवाके साथ इधर उधर बहती हुईं फिरती हैं । वह मसाला, वह द्रव्य, वह चीज़ जो शाखाओं में थी वह इस संसारसे लुप्त न हुई किन्तु एक दूसरी ही हालत में बदल गई, तो भी जो गुण उस शाखा के द्रव्य में थे वे सब उसके उसीमें हैं । 1 ज्ञान आत्माका मुख्य गुण, हरएकके अनुभव में है । हरएक जानता है कि मैं जानता हूं, मैं देखता हूं, मैं सुनता हूं, मैं काम करता हूं, मैं दुःखी हूं, मैं सुखी हूं। इस ज्ञान गुण और इसके स्वामी आत्माका कभी नाश नहीं । ये दोनों अजर अमर अविनाशी अमिट हैं । इससे आत्मा अपने सर्व गुणोंके साथमें इस गतसा ही एक न एक पर्यायमें बना रहता है। जब तक शुद्ध नहीं, मुक्त नहीं, निरंजन नहीं तब तक इसको अपने कर्मों के अनुसार For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन चरित्रकी आवश्यकता । कोई न कोई देहमें अवश्य रहना पड़ता है। कर्म सहित जीवोंका मरण एक नये जन्मके लिये होता है । जो कुछ भी हो यह निश्चय है कि इस शरीरका सम्बन्ध किसीका भी अमर नहीं रह सक्ता । ऐसी दशा में प्रवीण मनुष्य मानव शरीरमें रहते हुए इसका ऐसा उपयोग करते हैं जिससे न कि यह जन्म ही सुन्दर, सुखदायी और हितकारी होता है, किन्तु पर जन्ममें भी शुभ शरीर व शुभ सम्बन्ध पानेका दृढ़ पुण्य उनके साथ हो जाता है। ____ सर्व प्राणधारियोंमें मानव सर्वसे श्रेष्ठ है। इसको मनकी शक्तिका अपूर्व लाभ है। मनकेद्वारा यह बड़े २ आश्चर्ययुक्त तरकीबोंको सोच सक्ता है। आज कल जो हवाई जहाज़, बेतारका तार आदि नाना यंत्र निकल पड़े हैं ये सब मनका ही चमत्कार है। मनके द्वारा यह जगत क्या हैइसमें कौन२ पदार्थ हैं ? उनमें मुझे हितकारी क्या व अहितकारी क्या ? यह सब ज्ञान होता है। सूक्ष्मसे सूक्ष्म तत्व जो एक शुद्ध आत्माका अनुभव है उस तककी पहुंच इस मानवको हो जाती है और यह उस तत्त्वका सेवी होता हुआ जो आनन्द लाभ करता है वह वचन अगोचर है, केवल अनुभवगम्य है। यही अनुभव आत्माके मैलको धीरे२ धोता है, यहां तक कि यही आत्माको शुद्ध कर देता है। ____ मानवोंके लिये धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ हैं। मोक्ष धर्मका अंतिम फल है। अर्थ और कामका भी अंतरंग हेतु पुण्यरूप धर्म है। धर्मसाधन बिना तीनोंका लाभ नहीं, इससे धर्मका सेवन सबसे ज़रूरी है। ___ धर्म वास्तवमें आत्माके उस परिणामको कहते हैं जो शुद्ध For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय पहिला । आत्मा या परमात्माकी ओर तन्मय होता हुआ वीतरागमय हो । यही परिणाम कर्मोंसे मुक्ति देनेवाला है। इसके अलाममें उस परिणामको भी धर्म कहते हैं जो आत्माको पापोंसे बचाकर पुण्य कार्यों में लगाता है पर वीतरागरूप होनेकी चाहसे मिला होता है। जिसका परिणाम क्रोध, मान, माया, लोभ कषायोंकी मंदतामें होता है। वह शुभ परिणाम है और जो इन कषायोंकी अतिशय मंदतामें होता है उसे शुद्ध या वीतराग परिणाम कहते हैं। जो इन दोनोंसे रहित तीव्र कषाय युक्त होकर पांचों इन्द्रियोंके भोगोंमें अनुरागी व पर अहितमें निडर व परकी बुराई व कष्ट देनेमें उत्सुक होता है उसे अशुभ परिणाम कहते हैं । यह अधर्म है क्योंकि पापका कारण है। जो मानव श्रीऋषभदेव, अजितनाथ, चंद्रप्रभु, शीतलनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ व महावीर सरीखे उत्कृष्ट क्षत्रियोंके समान आत्माको शुद्ध करना चाहते हैं वे केवल वीतराग भावके ही रसिक हो योगाभ्यासमें लीन हो साधुपनेके जीवन में रह मुख्यतासे अपना नर जन्म सफल कर मोक्ष पुरुषार्थ साधते हैं । परंतु जो इतनी कषायोंकी हीनता करने में असमर्थ हैं वे घरहीमें रह धर्म, अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थ साधते हैं। यद्यपि अर्थ याने लक्ष्मीका लाभ, काम याने न्यायपूर्वक इन्द्रियोंके भोग, शुभ परिणामसे किये हुए पुण्य कमको अपना अंतरंग कारण रखते हैं पर इनके लिये न्यायपूर्वक बाहरमें उद्यम या पुरुषार्थ किया जाता है तब ये सिद्ध होते हैं। जैसे दो पहियोंके बिना गाड़ी नहीं चलती ऐसे ही अंतरंग और बहिरंग दोनों कारणोंके बिना अर्थ और काम नहीं होते । जो आलसी बाहरी उपायोंमें सुस्त होते हैं वे अंतरंग For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन चरित्रकी आवश्यकता । [ ५ कारण होनेपर भी न तो द्रव्य पैदा कर सक्ते और न न्याय सहित भोग ही पा सक्ते हैं । इस जगतमें वे ही मानव अपने जीवनके सुयशकी सुगंधको चारों ओर फैला जाते हैं जो अपने जीवन की घड़ियों को उनके पल व विपलोंको, आवली व समयोंको सम्हाल २ कर काम में लेते - अर्थात् जो अपने आत्माको परमात्म शक्तिका भंडार निश्चय करते हुए उस शक्तिके खिलाने व उसीकी प्रफुल्लनामें परम सुख अनुभव के श्रद्धानको रखते हुए गृही जीवन में शरीरके इन्द्रिय सम्बन्धी विषयोंकी तुच्छ परवाह रखते हुए अर्थ व कामकी सिद्धि करते हुए परके उपकारमें अपनी शक्तियोंका उपयोग करना अपना कर्तव्य समझते हैं और रात्रि दिन सर्व जीवमात्रका कैसे हित हो इस चिन्तामें, इस उद्योगमें, इस धुन में मस्त रहते हैं । ऐसे परोपकारियोंसे अधिक जीवों का हित होता और उन जीवोंको अपनी उन्नतिका मार्ग सूझता है। जो मानव इस पृथ्वीपर जन्म ले केवल अपनी इन्द्रियों की गुलामीमें ही अपने इस जीवनको बिता कर मृत्युकी शय्यामें सो जाते हैं वे यहां भी अपने जीवनसे बहुतों की हानि करते हैं और परलोकमें भी उनकी आत्माको योग्य पर्यायका लाभ नहीं होता। उनका जीवन पाशविक जीवनसे भी गया- बीता है मानवमें मानसिक, वाचनिक और कायिक ये तीन शक्तियां बड़ी बलवती हैं । जो इनको लोहेकी तरह बेकाम डाल रखते हैं उनकी शक्तियोंमें लोहेकी तरह जंग लग जाता है और वे बेचारे For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ] अध्याय पहिला | उनसे कुछ भी लाभ नहीं उठा सक्ते । करोड़ों मनुष्य इस संसार में ऐसे हैं जिनकी शक्तियां शिक्षा, योग्य उदाहरण व योग्य सहारेके बिना यों ही पड़ी रहती हैं । जिनकी शक्तियोंको शिक्षादेवीकी उपासना नहीं मिलती है वे यों ही रह जाते हैं, कोरे पशुसम जीवन काटते हैं। भारत में करोड़ों मनुष्य इसी रंगके हैं। शिक्षा शक्तियोंको खिलाती है, उन्हें मजबूत करती है, उनसे उपयोग लेना बताती है । मानवको जब धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थोंकी सिद्धि करनी है तब उसको शिक्षा भी ऐसी ही मिलनी चाहिये जो चारों साधनोंमें सहायक हो । यदि वह शिक्षा इनमें से किसी एकको भी हानि करनेवाली होगी तो वह शक्तियोंको उन्मार्ग में उपयुक्त करनेकी तरफ प्रेरणा करेगी । और इसका फल प्रायः ऐसा भी हो जायगा कि वह शिक्षाके होनेपर शिक्षाविहीन रहनेकी अपेक्षा अपनी अधिक हानि कर बैठेगा। इस कारण इन ऊपर कहे हुए चारों वर्गों को साधने में सहायक जो शिक्षा है वही सुशिक्षा है । यही सुशिक्षा मानवकी शक्तियोंको ऐसी चमत्कृत बनायेगी कि जिसे वह जगत के उपकार करने के सिवाय अपना भी उपकार कर लेवेगा । केवल पुस्तकोंके पढ़ने वा रटनेको शिक्षा नहीं कहते - जिस रीतिसे मनुष्यको अपनी मानसिक, वाचनिक और कायिक शक्तियोंको उपयोगी मार्गमें ले जाकर उनसे यथोचित स्वपर उपकारक कार्य लेनेकी योग्यता आजाय वही रीति सुशिक्षा है। जगतमें तीन तरह के मनुष्य होते हैं - उत्तम, मध्यम और जघन्य । उत्तम मनुष्य वे ही हैं जो प्रत्येक कार्य्यको विचारपूर्वक For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन चरित्रकी आवश्यकता । शुरू करते, उसके शीघ्र करनेके लिये अनेक साधनोंको मिलाते, कार्यमें उद्यम करते हुए जो अनेक आपत्ति, उपसर्गऔर कष्ट आजाते उनको समभावसे सहते, ज्यों ज्यों कष्ट पड़ते त्यों त्यों और अधिक उस संकल्प किये हुए कार्यके साधनमें लीन होते और अंततः उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। यदि कदाचित आयु कर्म शीघ्र ही क्षय हो जावे और इस शरीरसे उनकी आत्माका वियोग हो जावे तो भी वे कुछ खेदित नहीं होते किन्तु अपने दृढ़ संकल्प और उद्योगके कारण अपने पीछे ऐसा दृष्टान्त छोड़ जाते हैं जिससे उसी कामके पूरा करने में कोई न कोई उद्योगी निकल आते हैं। और उनका उदाहरण सदाके लिये इस जगत्में अंकित हो जाता है। __ मध्यम मनुष्य वे हैं जो काम तो विचारसे ही शुरू करते हैं और उसके साधन भी मिलाते हैं, पर यदि कष्ट, परीषह और उपसर्ग आनकर खड़े हो जाते हैं तो कायर होकर उस कार्यको छोड़ बैठते हैं। यद्यपि इनमें कार्यको अंतिम हद्द तक पहुंचानेका साहस नहीं होता तो भी उत्तम कार्योंके करनेमें उत्साह दिखलाते हैं व कुछ प्रयत्न भी करते रहते हैं इससे उनका उपयोग हितरूप भावोंमें ही वर्तन किया करता है। जघन्य पुरुष वे हैं जो पहले तो किसी उपयोगी कामका विचार ही नहीं बांधते हैं और यदि किसीके कुछ विचार भी होता है तो उनको कायरता, डर व आलस्य इतना सताता है जिससे वे अपने विचारका कुछ भी उपयोग नहीं कर सक्ते। ऐसे मनुष्य बुरे कामों में तो जल्दी तय्यार हो जाते हैं और उनको जिस तिस For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८] अध्याय पहिला। तरह करते भी हैं पर उनमें भी इनकी शक्ति दृढ़रूप नहीं रहती। उन्मत्त पुरुषकी तरह एकको छोड़ दूसरेमें, दूसरेको छोड़ तीसरेमें घूमा करते हैं। ऐसे पुरुष प्रायः इस जगतमें भाररूप हैं। उत्तम पुरुष अपने कार्योंकी सिद्धि इन नीचे लिखे गुणोंके ही कारणसे कर सक्ते है:... (१) समयकी उपयोगिता-जो लोग अपने समयकी कदर नहीं जानते हैं वे अपने जीवनके मूल्यको नहीं पहचानते हैं। समयोंसे ही यह जीवन बना है। रत्नोंसे अधिक मूल्य हरएक समयका है। एक सेकन्ड या पलमें बेगिनती समय बीत जाते हैं। अपने समयोंकी कदर करना ही जीवनको उपयोगी बनानेका एक मुख्य साधन है। (२) नियमित कामकी विभाग शक्ति-मनुष्यमें शरीरके बलको व स्वास्थ्यको रक्षा करते हुए अपने कामोंको पूरा कर डालनेका अवसर उसी समय आता है जब वे भगवद्भक्ति, शरीर क्रिया, भोजन, शयन आदि नित्यके कामोंको नियमके अनुसार प्रतिदिन करते हैं। जो विना किसी नियमके चाहे-जब खाते, सोते, काम करते हैं उनके बहुतसे काम रह जाते हैं तथा कोई भी काम निराकुलतासे नहीं होता तथा प्रायः अनियमित काम करनेवालोंका शरीर अस्वस्थ रहता है । जो सूर्योदयसे पहले उठकर काममें लगते और रात्रिको ही थीरताके साथ छह सात आठ घंटे आराम करते हैं वे प्रायः नियमसे अपना काम कर सक्ते हैं । (३) दीर्घदर्शिता-मानवके कामोंकी सफलताके लिये उसमें दीर्घदर्शिताकी बहुत बड़ी ज़रूरत है ताकि वह अपने उस For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन चरित्रकी आवश्यकता । [ ९ कार्यके फलको पहले से ही विचार ले और गंभीरता से सोच ले । जो गंभीर विचार नहीं कर सक्ते वे प्रायः अपने कार्यमें विफल हो जाते हैं 1 (४) इन्द्रिय-पराजय - पांचों इन्द्रियोंकी चाहनायें मनुप्यको जब अपना दास बना लेती हैं तब वह उपयोगी कामों से हठ करके उनकी पूर्ति करनेमें लग जाता है जिससे उसका जीवन इन्द्रियोंके दासत्वमें पड़कर बेकार हो जाता है । जो उपयोगी काम करना चाहते हैं वे हमेश: अपनी इन्द्रियोंपर काबू रखते हैं । वे सही-सलामत रहे ऐसी भावनासे उन्हें भोजन - पानादि देते हैं और उनसे खूब काम लेते हैं। मुंहका चटोरापन, मेले तमाशेकी दौड़धूम, नाच - रंगकी चटक-मटक, अतर-फुलेलकी महक आदिसे उनका दिल गन्दा नहीं होता है । (५) सहनशीलता - जगतमें रहते हुए और किसी भी कामकी सिद्धि करते हुए अपने सिवाय और बहुत से लोगोंसे काम पड़ता है। उनके साथ व्यवहारमें कभी २ कठोर शब्द व अनुचित वर्ताचका भी सामना हो जाता है । उस वक्त अपने भावों को सम्हालने और क्रोध न करनेकी बहुत बड़ी ज़रूरत है । जिनमें किसी बात को सहनेकी शक्ति नहीं होती वे हेल-मेलसे नहीं रह सक्ते और न दूसरों से कोई लाभ ले सक्ते हैं । सहनशीलताके गुणसे आदमी जगत् भरको अपने वशमें कर सत्ता है । यह भी कार्यसिद्धिका एक अमूल्य गुण है । (६) धैर्य्य - यह गुण भी बहुत ज़रूरी है। धैर्य्यके बिना कोई काम पार नहीं उतर सक्ता । किसी कामकी सिद्धिका यत्न करते हुए बहुतसे विघ्न व संकट व चिन्तायें उपस्थित होती हैं उस For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ] अध्याय पहिला | 1 समय धैर्य ही एक ऐसा गुण है जो वारवार कोशिश किये जानेकी उत्तेजना देता है । और जो इस गुणको अपने गलेका हार बनाते और कभी आकुलित नहीं होते वे अपने काममें अवश्य सफल होते हैं । (७) नम्रता - - नम्रताकी भी मानवको बहुत बड़ी ज़रूरत है । जो मानव अपने पास धन, बल, तप, विद्या आदि बलोंको बढ़ते हुए देख करके भी अहंकार नहीं करते किन्तु सदा नम्र रहते हैं, वे ही बड़े पुरुष हैं। वे बिना कारण जगतको, अपना बन्धु बना लेते हैं। वास्तव में नम्रताकी छायाके नीचे सब कोई आना चाहते हैं । उसकी सुगंधको सर्व कोई सूंघते हैं। जो किसी भी बात में बलवान् होकर मान नहीं करते हुए नम्र रहते हैं वे ही दूसरोंसे गुण ले सक्ते व दे सक्ते हैं, स्वयं उपकार पा सक्ते व छोटेसे छोटेका भी उपकार कर सक्ते हैं। (८) सत्यता - सत्य बोलना और सत्य व्यवहार मानवकी शोभा व उन्नतिका भंडार है । जो मनमें सोचकर कहते और उसी तरह वर्तन करते हैं वे ही सत्यवादी हैं । जो असत्यको सर्व पापों का सरदार समझते और उससे डरते हैं, जो वादा करते हैं उसको पूरा करते हैं, जो श्रीदशरथ व श्रीरामचंद्रकी भांति दृढ प्रतिज्ञाको निवाहनेवाले हैं वे ही कुछ काम कर जाते हैं। मनुष्यकी वाणी सचके बिना महा अनर्थकी करनेवाली होती है । सत्यता से किसीको दुःख नहीं होता । केवल सत्यतासे ही मनुष्य लौकिक व पारलौकिक सर्व तरहकी उन्नति कर सकते हैं । For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन चरित्रकी आवश्यकता। [११ (९) ब्रह्मचर्य-मानवकी शक्तिको दृढ़ और मनको पवित्र रखनेके लिये मानव जातिके लिये यह एक अति आवश्यक गुण है। जो विवाहित नहीं हैं वे अपने वीर्यकी रक्षा पूर्णपने करके श्री महावीरस्वामीके समान परम वीर बननेका यत्न करते हैं। पर जो विवाहित हैं वे केवल संतानकी इच्छासे गृहसंसारमें वर्तते हैं तो भी इच्छाको आधीन रखते हैं। जो इस गुणकी कदर नहीं करते वे वीर्यको वरवादकर निकम्मे हो जाते हैं और पवित्रता उनके मनसे विदा हो जाती है। जिससे उत्तम विचार व उत्तम कार्य नहीं होने पाते। उत्तम मनुष्य इन ऊपर लिखित नौ या अधिक गुणोंकी बदौलत ही इस नरभवकी घड़ियोंको ऐसे २ कामोंमें लगाते हैं जिससे वे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थोकी सिद्धिमें कुछ उन्नति ५ जाते हैं और जगतका उपकार कर जाते हैं। आज हम अपने पाठकोंको एक उत्तम मनुष्यके जीवनका परिचय कराना चाहते हैं जिसमें ये ऊपर लिखित गुण कूट कूट कर भरे हुए थे व जिसने अपने पौरुषके बलसे गृहस्थ धर्मकी जो उन्नति की व अपनी उन्नतिसे जो दूसरोंका हित किया वह वचनसे अगोचर है। जिनका उस मानवसे रात्रि दिनका सम्बन्ध रहा है . वे अच्छी तरह जानते हैं कि उस मानवमें कैसी २ खूबीके गुण थे। आज वह मानव इस मानव पय्यायमेंसे चला गया है-उसकी आत्मा इस शरीरसे विदा होकर अन्य किसी देहमें चली गई है। यद्यपि अब उसके मन वचन कायके चरित्र दृष्टि में नहीं आते तो भी उस मानवने अपने जीवन में जो कुछ किया है वह कृत्य उसके सर्व जैसेके तैसे मौजूद हैं-वे मरे नहीं हैं। For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ] अध्याय पहिला | हमारा (लेखक) उस उत्तम मानवसे बहुत वर्षोंतक सम्बन्ध रहा है- हमने उसके सद् विचारों और भावनाओंको रात्रिदिन अनुभव किया है अतएव यह हमारा फर्ज आन पड़ा है कि हम उनका एक दिग्दर्शनमात्र वर्णन जगतके मानवोंके हितार्थ करें जिससे अनेक मानव उस उत्तम मानवका दृष्टान्त ले अपने जीवनको उपयोगी बनावें । यद्यपि वे गृहस्थ थे, त्यागी नहीं थे, तो भी हृदयके त्यागी थे वैरागी थे और बड़े पुरुष थे और इसीलिये उनके जीवनका वर्णन हमारे द्वारा हो जाना हमें भी उनके उत्तम मानवीय गुणोंमें प्रेरित करनेवाला है । अतएव उस उत्तम मानवके उपदेशद्वारा इस समय परोपकारता में रात्रिदिन लवलीन सेठ मूलचंद्र किसनदास कापड़िया सम्पादक - "दिगम्बर जैन,” सुरतकी गाके अनुसार दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचंद्र हीराचंद्र जे० पी० सभापति - "भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा" का कुछ चरित्र आगे लिखा जाता है । For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [१३ अध्याय दूसरा। गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । वास्तवमें वह देश अवश्य सौभाग्यशाली होता है जहां महान् व उत्तम पुरुष जन्म लेते हैं। उत्तम पुरुषोंका गुजरातका महत्त्व। शरीर जिप्त प्रदेशके अन्न, जल व वायुसे वृद्धि पाता है, छोटेसे बड़ा होता है, वह प्रदेश वास्तवमें पुण्यशाली है। किसी स्थानको भाग्यवान् कहनेसे उन मानवोंके भाग्यवान् होनेका ही उपचार होता है। गुजरात देश ऐसा ही एक देश है जहां जैनधर्मकी मान्यताके अनुसार श्रीरामचन्द्रजीके सुपुत्र लव और अंकुशने मुनि हो विहार किया, धर्मापदेश दे अनेकोंको स्वसंवेदन ज्ञानसे उत्पन्न आत्मानंदका पान कराया और अंतमें प्रसिद्ध चांपानेर नगरके निकटस्थ पावागढ़ पर्वतके शिखरपर ध्यान धर कर्म इंधनको जला और केवलज्ञान ज्योतिको प्रगट कर अर्हत हो अनेकोंको शुद्ध धर्म मार्गपर चला तथा शेष कर्मोसे आत्माको छुड़ा पवित्र हो परमात्मपदका लाभ किया। ___श्रीगिरनार, शत्रुजय, तारंगा, इन सिद्धक्षेत्रमय पर्वतोंसे शीघ्र गतिको प्राप्त होनेवाले श्रीनेमिनाथ, युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, आदि अनेकों अगणित महात्माओंने इस गुर्जर देशको अपने विहारसे पवित्र कर इन पर्वतोंके शिखरोंसे मुक्तधामका परम अभिराम आनन्दका आस्वाद किया । मौर्य चंद्रगुप्तको सन् ई०के For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] अध्याय दूसरा। ३२० वर्ष पूर्वके अनुमान परम निर्ग्रन्थ दिगम्बरी दीक्षा देनेवाले श्रीभद्रबाहु श्रुतकेवली १२००० साधुसंघ और मुनि प्रभाचंद्र (चंद्रगुप्तका द्वितीय नाम)को साथ लिये हुए मगध देशसे दक्षिणको जाते हुए इसी गुजरात देशमें होकर श्रीगिरनार पर्वत तक गये थे और वहां अपनी आयु निकट जान अपने आचार्य पदका तिलक श्रीविशाखाचार्यको प्रदान किया था और फिर वहांसे मैसूरके श्रवणबेलगोला स्थानमें पहुंच कटवप्र पर्वतपर समाधि मरण ले स्वर्गधाम प्राप्त किया। . श्रीधरसेनाचार्यने प्रथम शताब्दीके अनुमान जिन पुष्पदंत और भूतवलि अतितीव्र बुद्धि मुनियोंको श्रीगिरनार पर्वतपर जैन सिद्धान्त पढ़ाया था। उन्होंने गिरनारसे ९ दिन चलकर कुरीश्वर ग्राममें आकर चतुर्मास किया था और श्रुतस्कंधकी महिमा विस्तारी थी। और फिर दक्षिण देशको विहार किया था । (श्रुतस्कंध) ___यह कुरीश्वर गुजरात देशमें होना चाहिये। संभव है इसीका नाम बिगड़कर अंकलेश्वर हो गया हो। यह बड़ौदेके और सूरतके मध्यमें अब भी प्राचीन जिन बिम्बोंको शोभायमान किये हुए विराजित है। श्रीजेनसेनाचार्य्यने अपने गुरु श्रीवीरसेनाचार्यकी करी हुई श्रीजयधवलकी टीकाको ६०००० श्लोकोंमें गुर्जर देश प्रतिपालक . श्रीअमोघवर्ष के राज्यमें वाटग्रामके भीतर शक संवत् ७५९ फाल्गुण सुदी १० को प्रातःकाल श्रीअष्टाह्निका महोत्सवके समय पूर्ण किया था । (जयधवल प्रशस्ति) यह गुजरात देश श्रीशुभचंद्र, सकलकीर्ति, ज्ञानभूषण आदि For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ १५ बड़े २ विद्वानोंसे सुशोभित रह चुका है जिन्होंने अनेक शास्त्रोंकी टीका व रचना की है । इस धर्म - जन-भरपूर गुजरात देशमें ताप्ती नदी बड़े वेग से सतपुरा पर्वतकी इंजरडी पहाड़ीकी तलहटी से निकलकर खानदेशमें बहती हुई अनुमान ५०० मीलकी लंबाईको लिये हुए रांदेर और सूरत दो बड़े प्रसिद्ध नगरोंके मध्य में आध मील के अनुमान पाटके साथ खंभात की ओर चली जाती है । नर्मद्य गुजराती गद्यात्मक ग्रंथके कर्ता कवि नर्मदाशंकर लाभकर लिखते हैं कि श्रीमहावीर संवत् २७१ व सन् ईसवीके २५५ वर्ष पूर्व इस ताप्ती नदीके उस ओर रांदेर नामका एक बड़ा प्रसिद्ध नगर था । जिसपर संपत्ति नामका जैनी राजा राज्य करता था* वह रांदेर शहर अब भी मौजूद है पर अब वह एक छोटासा कसबा है । वर्तमान में ताप्तीके इस ओर रांदेरके ठीक सामने अतिविख्यात और ऐतिहासिक सूरत नगर मौजूद है । यद्यपि नर्मद्यके कर्ताने यह खुलासा नहीं किया कि जब एक ओर ताप्तीके आजसे २२०० वर्ष पहले एक बड़ा राज्यनगरे था तब उसीके ठीक सामने जहां आज सूरत पाया जाता है वहां उस समय किसी वस्तीकी सुरत थी कि नहीं ? विचारने से यह अवश्य निश्चित होता है कि ताप्तीके इस पार भी कुछ वस्ती अवश्य वसती होगी। संभव है कि उस समय इसका नाम सूरत न हो । * इस कथनको नर्मगद्यके अनुसार ही यहां उल्लेख किया जाता है। For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६] अध्याय दूसरा । सूरत नगर बहुतसे जन इस नगरको सुर्यपुरके नामसे पुकारते हैं तथा नर्म गद्य कर्ताने मी लिखा है कि सूरतसे ८ गांव दूर कामलेज ग्रामके निवासी एक राजाके बड़े २ कैसे वसा ? प्रसिद्ध कुए थे । उनमें एक सूरजवाड़ी नामका कुआ था । उसी वाड़ीके नामसे यह सुरजपुर या सुर्जपुर कहलाता था जो फिर बिगड़के सुरत हो गया । ५वीं गुजराती साहित्य परिषद् सन् १९१५की बैठककी स्वागत कारिणी कमिटीके प्रमुख रा० मधुवचराम बलवचरामने अपने व्याख्यानमें यहांतक अनुमान लगाकर प्रगट किया है कि सन् ईसवी वीसहजार २०००० वर्ष पहले भी यह स्थान आबाद था । आपने अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान् प्रोफेसर डेंटन-कृत “ The Soul of things" नामकी पुस्तक के आधार से लिखा है कि यूनानका विद्वान् प्लैटो अपने किसी पूर्व जन्ममें इसी (सुरत) स्थानके किसी बड़े मंदिरका मुख्य अधिकारी या भक्त था । रामाला के प्रथम भाग आधारसे आप लिखते हैं तत्र सूर्यपुर कहलाता था जिस समय सन ९०० में अब हड़वाली सेना भरुच और सूर्यपुरके आगेसे होकर निकली थी। सन् १९०८ के इम्पीरियल गैजेटियरसे मालूम हुआ कि सन् १९५० में होनेवाले यूनान के विद्वान् प्लोटे ने पुलिपदा नामके व्यापारिक स्थानका वर्णन किया है जिसका नाम शायद फुलपाद होना चाहिये और यह स्थान इसी सूरत नगरका एक पवित्र भाग है । 16 कि यह स्थान जो कुछ हो इसमें सन्देह नहीं कि सुरत और रांदेर दोनों ही अतिप्राचीन नगर ताप्तीके इधर उधर एक शोभनीक स्त्रीके कार्णेमें पड़े हुए सूर्य और चंद्रकी कांतिवत् चमकते हुए मनोहर कुंडलोंकी भांति दीर्घ कालसे शोभा पा रहे थे । For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ hea For Personal & Private Use Only ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी संपादक 'जैन मित्र' इस ग्रंथके लेखक. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहर का दिग्दर्शन। [१७ रांदेर व्यापारमें प्रसिद्ध स्थान था। ताप्तीद्वारा जहाज़ोंका आना जाना खूब होता था और वे जहाज़ कुछ ताप्तीके इधर कुछ उधर कलकत्ते और हवड़ाकी भांति अपना लंगर डाला करते थे। ___ अरब व फारसके व्यापारी भी आया जाया करते थे। ईसवी सन् ७५० में मुसल्मान अब्दुलआबाद सेफा नामके खलीफा अपने बहुतसे साथियोंको लेकर रांदेरमें आकर रहने लगे और धीरे २ मुसल्मानी धर्मका प्रचार करने लगे। ये लोग धीरे २ व्यापारादिसे अपनी सत्ताको मजबूत करने लगे। इनका दल अब्बासी खलीफा या नवायंता (नया आया हुआ) नामसे यहां प्रसिद्ध हुआ। उस वक्त रांदेरकी जैन और हिन्दू वस्ती सुख शांतिमें लीन थी। पर कालांतरमें जैन और हिन्दओंका जोर घटता गया और मुसलमानोंका जोर बढ़ता गया। यहां तक कि ५०० वर्षके अनुमानमें वे ऐसे दृढ़ हो गये कि उन्होंने राज्य सत्ता इनसे छीन ली। सन् १९०८का गैजेटियर बताता है कि बादशाह कुतबुद्दीनके समय १३ वीं सदीमें मुसल्मानोंने अनहिलवाड़के राजपूत राजा भीमदेवको हराकर रांदेर और सूरत लिया। वह हिन्दू राजा सुरतसे १३ मील पूर्व कानरेजके किलेसे भागा और आधीन हो गया। सन् १३४७में मुहम्मद तुघलकके समयमें बलवा होनेपर सूरत जिला लुटा गया। पर सन् १३७३में फीरोज़शाह तुघलकने सूरतकी रक्षार्थ भीलोंसे बचानेके लिये एक किला बनवाया। मुसल्मानोंने यहांके बहुतसे मंदिरोंको तुड़वाकर मसजिदें बनवाई। तथा जैन मंदिरों व मूर्तियोंके पत्थरोंको भी तोड़कर कई मसजिदें बनवाई गई। एक मसजिद ऐसी ही बनी मौजूद भी है जिसपर हिजरी ६४१ व सन् १२२५ है। For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] अध्याय दूसरा । सन् १९०८का गैजेटियर बताता है कि रांदेरकीजमा मसजिद, मियां खखा व मुन्शीकी मसजिदें, जैन मंदिरोंको तोड़कर बनाई गई हैं। नर्मगद्यके कर्त्ताने सूरत नगरके नाम होनेके विषयमें कुछ और भी दंतकथायें लिखी हैं। उनका भी सारांश पाठकोंके ज्ञान हेतु कह देना अनुचित न होगा। ___ताप्ती नदीके तटपर सुरत नगरकी ओर बहुतसे जहाज़ ठहरा करते थे। जहाजका काम करनेवाले माछी लोग वहांपर रहते थे। इससे उस तटके बहुतसे प्रदेशका नाम माछीवाड़ा प्रसिद्ध था । उसी महल्ले में कुछ नागर ब्राह्मग भी रहते थे। उनमें एक ज़मीदारकी विधवा स्त्री अपने पुत्र गोपीके साथ रहा करती थी। उसकी स्थिति बहुत गरीब हो गई थी। रांदेरके एक मुसल्मान नवायताके यहां नृत्यकला करनेवाली एक सुरज नामकी कंचनी इस माछीवाडेमें आकर ठहरी। इसके पास धन भी बहुत था। उस समय गोपीकी गरीब मा उस कंचनीका यथायोग्य काम करके उसकी अधिक स्नेहपात्रा हो गई तथा उसके बालक गोपीको वह सूरज बहुत प्यार करने लगी। जब वह नृत्यकारिणी उस मुसल्मान नवायताके साथ हन करनेके लिये करीब १५०० सन् ई० के जहाज़पर बैठ मक्का जाने लगी तब उसने गोपीकी माको विश्वासपात्रा जान अपना लाखोंका जवाहरात उसको अमानत सौंप दिया। इसमें सन्देह नहीं कि ईमानदारी, सचाई और सरलता ऐसे गुण हैं जो सबको वश कर सक्ते हैं। जब वह सूरन कंचनी लौट कर आई, गोपीकी माने विना किसी कपटके जो कुछ जवाहरात उसने सौंपा था उस For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ १९ सबको वैसाका वैसा ही उस कंचनीके सामने जाके धर दिया। सुरज इसकी सरलता व सत्यताको देख अचंभेमें आ गई। और इतनी प्रसन्न हुई कि वह सब माल उसको दे दिया और दिनपर दिन इससे व उसके पुत्र गोपीसे उनकी सच्ची खिदमतके कारण बहुत ही राजी रहने लगी । सुरजकी उमर छोटी नहीं थी। आयु कर्म शेष होनेसे जब वह मरने लगी तब अपनी सब जायदाद गोपीकी मा और गोपीको दे दी और कहा-तुम इसका अच्छा व्यवहार करना और मेरा नाम मशहूर करना। मैं तो जाती हूं, पर मेरा नाम रहना चाहिये । वास्तवमें जिसके दिलमें सम्यक्त्व नहीं होता, जो आत्माको अजर अमर अविनाशी आनन्दरूप नहीं अनुभव करता, उसके दिलको सन्तोष केवल कषायोंको पोषनेसे ही होता है। सारी दौलतका वियोग होते हुए उस सुरनके दिलमें मान कषायने जोर किया और इसीसे पीछे मेरा नाम रहे इस स्वार्थने कंठगतप्राण होनेपर भी उस कंचनीकी आत्माको नहीं छोड़ा। खैर, गोपी और उसकी माने बहुत से मकानात बनवाये तथा गोपीपुरा बसाया और गुजरातके बादशाह शाह मुहम्मद बेगड़ाके पुत्र खलीलखां अलकाव मुज़फ्फरशाहसे मिलकर नायवका खिताब हासिल किया । गोपी बड़ा उद्योगी था। इसके प्रयत्नसे यहां व्यापार और भी बढ़ने . लगा। सन् १५१६ में इसने एक तालाब बनवाया जो अब खेतरवाड़ी (खेतरपाल) के पास गोपोतालावके नामसे मौजूद है। इस वक्त यूरुपसे पुर्तगाल लोग, जिनको यहां फिरंगी कहते थे, आने लगे थे। सन् १४९८में वास्कोडिगामा पहिले पहिल भारतमें आया। इस समय इस ताप्ती नदीके तटपर उनके जहाज़पर जहाज़ For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] अध्याय दूसरा। आने लगे। ये लोग हिन्दुस्तानी व्यापारियोंके जहाज़ोंसे माल लूटने लगे व शहरमें भी घूमकर प्रजाको कष्ट देने लगे। प्रजाकी पुकार सुन गुजरातके बादशाह मुज़फ्फरशाहने सन् १५१५में यहां किला बंधवाया और इनकी रोक व जांचका प्रबन्ध किया। दिनपर दिन गोपीपुराके आसपास रौनक बढ़ते देख गोपीने उस सुरज कंचनीके मरते समयके वचनको याद किया और उसका नाम कायम रखनेके लिये यही विचार किया कि इस वस्तीका नाम उसीके नामसे प्रसिद्ध हो । बादशाह मुज़फ्फरशाहसे गोपीने सब हाल कहा और सूरज नामः रखनेके लिये निवेदन किया। बादशाहने सिर्फ इस खयालसे कि वेश्याके नामसे नगरका नाम प्रसिद्ध करना ठीक न होगा, यह स्वीकार किया कि आखरी अक्षर जको बदलकर त कर दिया जाय । गोपीने स्वीकार किया और सन् १९२१ में इसका नाम सूरत प्रसिद्ध कर दिया । ज्यों २ व्यापार चमकता गया गुजरात के बादशाहका अमल बढ़ता गया । इस समय सूरत नगर एक बड़ा व्यापारी बन्दर था। सन् १५१४ में पुर्तगाला यात्री बार्बसा आया था। उसने लिखा है, सूरत बड़ा ही कीमती बन्दर था जहां मलाबार आदिसे जहाज़ आते 21 (Barbase describes Surat as a very important seaport frequented by many ships from malabar and all other ports vide Imp.G. 1908)। सन् १५४६ में अहमदाबादके बादशाहने एक किल्ला बनवाया। सन् १५६१ में जब तीसरे मुज़फ्फरशाह गुजरातकी गद्दीपर बैठे तब सूरत मिरज़ाके हाथमें था। यह बादशाह अकबरसे विरुद्ध हो गया, तब देहलीका बादशाह अकबर स्वयं बड़ी भारी फौज For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन। [ २१ लेकर आया और ता० १९ जनवरी सन् १९७३ में सूरतके गोपीपुरामें अपना अड्डा जमा और ६ मार्च १६७३ के दिन किलेपर अपना झंडा गाड़ा और खलीज़खांको अपना कारबारी नियतकर देहली चला गया। देहली पहुंचकर राजा टोडरमलको बंदोबस्तके लिये भेना। उक्त राजाने बहुत अच्छा प्रबन्ध किया। कोई किसीकी ज़मीन न दबावे, कोई कम बढ़ तौलकर दे ले नहीं, बाज़ारका भाव ठीक रहे, ऐसे कई उपयोगी महकमे नियत किये। इस वक्त सुरतमें व्यापार खूब बढ़ रहाथा। जो रांदेरमें था वह सुरतमें चमक उठा था। यूरुपसे भी व्यापारी बहुत आने लगे थे। अकबर, शाहजहां व जहांगीर बादशाहके वक्त में यह Mercantile city:of India भारतका व्यापारी नगर कहलाता था। अकबरकी मालगुज़ारीमें इसको First classport पहले नंबरका बंदर लिखा है ( Imp. G. 1908) जिस वक्त बादशाह जहांगीर देहलीमें राज्य कर रहे थे उसी वक्त इङ्गलैंडमें पहले जेम्स (James अंग्रेजोंका आगमन । the I) का राज्य था और भारतसे __व्यापार करनेके लिये ईस्ट इंडिया कम्पनी बन चुकी थी। कप्तान हेकटर विलियम होकिन्स एक व्यापारी जहाजको लेकर इस कम्पनीकी तरफसे हिन्दुस्तानमें आये और ता० २० अगस्त १६०८ को पहिले पहिल सुरतमें आ लंगर डाला। और बादशाह जेम्सका पत्र ले अंग्रेज लोग देहली दर्बारमें पहुंचे। परंतु उस समय फिरंगियों अर्थात् पुर्तगालोंका अधिक जोर था। वे दूसरे किसीके भी जहाजको लूट लेते थे। वे अंग्रेजोंको नहीं चाहते थे। इन For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] अध्याय दूसरा । पत्रोंके द्वारा अंग्रेजोंने बादशाहसे व्यापारकी आज्ञा मांगी थी व अपनी रक्षा चाही थी । पर ४ वर्ष तक उद्योग करना पड़ा तब कप्तान बेस्टेने ता० ११ जनवरी १६१२ को बादशाहसे यह सनद लिखवा ली कि अंग्रेज लोग व्यापार के लिये अपनी कोठी कर सकते हैं. तथा वे सुरत, खंभात, अहमदाबाद और घोघा में व्यापार कर सकते हैं। इनसे 21) सैकड़ा महसूल लिया जाय तथा इनका एक एलची मुगल दर्बारमें रहे । सन् १६१४ में सर टामसरो प्रथम एलची मुगल दर्बारमें नियत हुआ । इसने बादशाह जहांगीरसे और भी हक प्राप्त किये। अंग्रेज व्यापार करने लगे । उस वक्त यहांसे कपड़ा खरीदकर विलायत बहुत जाता था । अंग्रेज लोग कपड़ा बनानेवालोंको पेशगी रुपया दे माल बनवाते थे और विलायत भेजते थे । सूरत नगर १९७३ से १७५९ तक मुगल बादशाहोंके कबजेमें रहा । इस वक्त यह बहुत तरक्कीपर जाना । सूरतमें व्यापारकी था। यहांसे कपड़ा, रुई, किनखात्र, मसरू, वृद्धि व यूरुपको किनारी, कसब, कारचोब, शाल, मसाला, कपड़ा आदि हीरा, मोती, मीनाकारी, अफीम, अनाज, मिठाई, आदि परदेशको जाते थे और इंगलैंड से सीसा, लोहा, लोहाका तय्यार माल, चीनसे बिलौरी सामान या रेशम, सुमात्रासे मसाला, ईरान से मोती, गलीचा, मेवा, अरबसे अंतर वगैरह, मलावार से देशी उनका कपड़ा, बंगालसे रेशम और शकर, मालवासे अफीम इत्यादि सामान For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [२३ बाहरसे सुरतमें आकर बिकता था । रुईका कपड़ा खूब बुना जाता था । एक गरीब आदमी १ रुईकी आंटी (९ टांक तौलमें) बुन लेता था तो उसको ) मिल जाते थे । सुरतके बंदरमें १००० - १२०० टनके लानेवाले जहाज़ हमेशः तय्यार रहते थे । इस कदर व्यापार था कि सूरतके बाज़ार में २ लाख रुपयेका रोज़ सौदा होता था । こ यहां पर इतना कह देना अनुचित न होगा कि यह भारत दो-ढाई सौ वर्ष में कुछका कुछ हो गया । उस वक्त जब परदेशके व्यापारी यहांसे कपड़ा ले जाते थे तब आज यहां ही कपड़ा आता है । यहांका बुना तो शायद ही कहीं जाता हो। उस वक्त सारा भारत अपने कारीगरोंके बनाये हुए कपड़ोंसे ही अपनेको ढकता था । और यह भी नहीं था कि मोटा माल ही बनता हो किन्तु महीनसे महीन और बढ़िया से बढ़िया कपड़ा भी यहां बनता था । इसके सिवाय यूरुप आदि देशके व्यापारी यहांसे लाखों रुपयों का कपड़ा प्रतिमास अपने देशको भिजवाते थे, उनको भी पूरा करता था । आज यह अपनी कारीगरीको खो बैठा है । इसका कारण केवल आलस्य है । आलस्यसे आज यह ज़रा ज़रासी चीज़ के लिये परदेशका मुंहताज़ हो गया है । जब कि उद्यमके बलसे एक छोटासा जापान प्रदेश अपने लिये सब चीजें आप बनाता है । इतना ही नहीं, पर अपना बना करोड़ोंका माल बाहर बिक्रीके लिये भेजता है । जैसे आजकल बम्बई व्यापारमें प्रसिद्ध है ऐसे ही मुगलोंके जमाने में सूरत प्रसिद्ध था । इस वक्त कम्पनीके सिवाय प्राइवेट अंग्रेज भी बहुत आये और व्यापार करने लगे । औरंगजेब बादशाहके वक्त में ता० ५ जनवरी १६६४ को मराठों का सरदार शिवाजी सूरतको लूटने आया। उस वक्त I For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] ...... अध्याय दूसरा । ... ईस्टइंडिया कम्पनीकी कोठीमें ८७ लाखका माल था । कोठीपर सर जार्न ओकसेन्डनने बड़ी चतुराईसे काम किया। अपना माल बचानेके सिवाय साहूकारोंकी भी रक्षा की तो भी शिवाजी ३० करोडका माल लूट ले गये। साहूकारोंने अंग्रेजोंकी तारीफ बादशाह देहलीको लिख भेजी । इससे प्रसन्न हो बादशाहने ३॥ रु०के बदले सिफ १) सैकड़ा जकात कर दी। १६७० में फिर शिवाजीने ३ दिन सूरत लूटा । इस वक्तंसे मि० कुक ऐसे अंग्रेजोंने भी लूट-पाट शुरू कर दी। १६८० में एक मक्के जाते हुए जहाजको लूटनेसे बादशाहने जकात फिर ३॥) रु० कर दी । इधर कम्पनीने टकसालमें रुपया बनाने का हुकुम बादशाहसे ले लिया। इस वक्त फ्रेंच लोग भी सूरतमें खूब व्यापार कर रहेथे । १६८७ में कम्पनीकी सत्ता बम्बई में होजानेसे व्यापरका जमाव ___ सूरतसे उठ कर बम्बई होने लगा। इस अंग्रेजोंकी सत्ताका वक्त एक अंग्रेज सर जान चाइल्डेने जमना। कम्पनीके नामसे सुरतमें खूब व्यापार किया । पर किसीको कुछ न दिया । बादशाहके हुकमसे हैरिस और ग्लैडस्टोन कैद किये गये । पर यह चाइल्डे भागकर बम्बई गया। ४० जहाज़ मुगलोंके और पकड़े तब लोगोंका विश्वास जाता रहा । बादशाहने अंग्रेज व फ्रेंच आदि परदेशियोंको बहुत धमकाया; पर फल कुछ न हुआ। उधर देहलीमें भी मुगल सल्तनत मौज़ व शौकमें पड़ने लगी। इधर सुरतमें भी सत्ता ढीली पड़ गई। - सन् १७३४ में मराठोंने कुछ गांव दाव लिये तथा पेशवा For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ २५ और गायकवाड़ ने दबाव डालकर अपना कर सूरतपर लगा दिया । १७३४ से १७५९ तक बड़ी भारी गड़बड़ रही । परस्पर फूटकी आग भभक उठी । इस गड़बड़ में अंग्रेजोंने अपना दाव जमा लिया । सूरतके नवात्र मियां अच्चनने मराठोंसे परेशान हो अंग्रेजोंसे संधि की कि अंग्रेज लोग किलेदार रहें, सेनाकी अफसरी करें तथा नवाब दो लाख रुपया प्रतिवर्ष देवे । इस वक्त किलेपर अंग्रेजोंका झंडा गड़ गया तथा नाममात्र मुगलोंका भी गड़ा रहा । इस सूरतपर अंग्रेजों के आधीन नवाब अच्चनके वंशवाले राज्य करते रहे । नवाब अच्चन उर्फ मुईनुद्दीनने १७६३ तक राज्य किया । फिर नवा हफीजुद्दिन १७६३ से १७९० तक राज्य करते रहे । १७९० में निजामुद्दीन नवाब हुए। ये १७९९ तक रहे । इनके समय में सूरतपर बड़ी विपत्ति आई । ये नवाब भी जुल्मी थे । १७९१ में इतना भारी दुर्भिक्ष पड़ा था जिससे १ रुपये में ८ सेर अनाज मिलता था । यद्यपि इस समय यह भाव प्रायः रहा करता है तो भी उस समय अनाजका भाव बहुत मन्दा रहा करता था । इस अपेक्षा वह भाव दुर्भिक्ष · रूपमें ही था । तथा १७९७ में ताप्ती नदीकी बाढ़ आई जिससे भी - सूरत की बरबादी हुई । बहुतसे व्यापारी इधर उधर चल दिये । सन् १७९९ में नसीरुद्दीन गद्दीपर बैठे। उस वक्त नवाब से अंग्रेजोंने ३ || ) लाख रुपया मांगा । नवाब दे नहीं सका तत्र बम्बई के गवर्नर डंकन के हुकमसे सूरतकी सीनेटने सूरतपर अपना पूरा कबजा ता० १५ मई सन् १८०० को जमा लिया और - नवाब की सिर्फ १ लाख रुपया पेन्शन कर दी । यह नियम है कि जब देशका शासक इन्द्रियोंके विषयोंमें लीन For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] अध्याय दूसरा । होकर प्रनाके हितकी चिन्ताको छोड़ देता है और इतना ही नहीं प्रजापर जुल्म करके उससे अपना स्वार्थ साधना चाहता है तब अवश्य उसका पुण्य क्षीण होता है। और राज्यशासनका प्रतापी छत्र उसके हाथसे जाता रहता है। अकबर बादशाहसे ले औरंगजेबके राज्यके पहिले तक मुगल बादशाहोंने प्रजाके हितका खयाल किया तब नीचेके नवाबोंने भी अपने प्रबन्धमें ढील नहीं की। पर जब मुगल बादशाह ऐशो-आराममें लीन हुए, तब इधर उधरके नवाब भी प्रनाशासनमें सुस्त पड़ गये । इसीका यह फल हुआ कि सूरतसे नवाबोंकी सत्ता १८००में बिलकुल उठ गई । पेन्शनवालों में नसीरुद्दीन सन् १८२१ तक और अफजुलुद्दीन सन् १८२४ तक कायम रहे । सूरतपर अंग्रेजी कम्पनीका राज्य हो जानेसे मराठाओंसे सुलह हो गई। काम बदस्तूर चलने लगा। पर इस समय विलायतमें कलोंकेद्वारा कपड़ा बुने जानेसे यहां कपड़ा बुननेका काम कमती होने लगा। बहुतसे लोग बम्बई जाकर रहने लगे । जो उन्नति मुगलोंके समय थी वह सब अवनतिमें परिणत हो गई। वास्तवमें किसी भी वस्तुकी थिरता इस असार संसारमें नहीं है। सब वस्तुयें अपनी दशाओंको पलटनेकी अपेक्षासे क्षणभंगुर हैं। कम्पनीके राज्यमें मुख्य २ बातें इस तरहपर हुई किसन् १८०४ में फिर एक बड़ा भारी दुर्भिक्ष पड़ा जो कि साठोकालके नामसे प्रसिद्ध हुआ । सन् सूरतकी अवनति । १८१८ में सबसे पहले सूरतमें बसनेवाले यूरुपियन पोर्चुगीज़ फिरंगी लोग बिलकुल यहांसे चल दिये। सन् १८२२ में ताप्ती नदीकी बाढ़ आजानेसे बहुतसे For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन | [ २७ मनुष्य डूबे व खराबी हुई । सन् १८२४ में एक अंग्रेजी पुस्तकालय विलंदाके बंदरमें खोला गया जो इस वक्त ऐडुस लाइब्रेरीके साथ मिला दिया गया है । सन् १८३७ ता० । सन् १८३७ ता० २४ अप्रैलको (संवत् १८९३ चैत्र वदी ४) ४ बजे पिछले पहर माछलीपीठमें एक पारसीके यहां आग लगी। यह आग दो दिन तक जली । इसने सुरत शहरका नाश कर दिया । कहते हैं इस अग्निसे ६००० मकान जले, ५०० मनुष्य व अनेक पशु मरे, ७० हजार लोग मुफलिस हो गये । । सन् १८४२ में सबसे पहिले अंग्रेजी स्कूल स्थापित हुआ । सन् १८४३ में निमकपर महसूल नियत किया गया । प्रजाने कबूल न किया, हुल्लड़ हुआ, तब सरकारने कुछ महसूल कम कर दिया । १ मई सन् १८५६ को अमरोलीमें रेलवे बननेका काम चला । तथा १ नवम्बर १८६४ के दिन सूरतसे बम्बई तक रेलगाड़ी चलने लगी । यह सूरत १८वीं सदी अर्थात् सन् १७९७ में बहुत आबाद था । ८ लाख मनुष्योंकी वस्ती थी । परंतु सन् १८९१ में घटकर ६ लाख रह गई । अवनति होते २ सन् १९०१ में सुरत नगर में केवल १ लाखकी वस्ती रह गई, अर्थात् ८५५७७ हिन्दू, २२८२१ मुसल्मान और ४६७१ जैन। कुल सूरत जिल्लेकी वस्ती, जिसमें ८ नगर व ७७० गाम हैं, सन् १९०१ में ६३७०१७ थी। इनमें २ सैकड़ा जैनकी वस्ती थी । सूरत व रांदेर में जैनियों का वर्णन । जैसा ऊपर कहा गया है कि जब रांदेर में संपत्ति राजा जैनी थे व जहां बड़े २ मंदिर थे कि जिनको तोड़कर मसजिदें बनवाई For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८] अध्याय दूसरा । गई हैं तब वहां या कुल सूरत निलेमें जैनियोंका कितना बल होगा, सो पाठकगण स्वयं ही विचार कर सक्ते हैं। खेद है कि जैनियों के प्राचीन इतिहासका कुछ पता नहीं चलता है । वर्तमानमें रांदेर कसबेमें रांदेरमें जैनियोंका महत्त्व अब भी जो हाल मिलता है इससे वहांके पूर्वज जैनियों का महत्त्व भली भांति प्रगट होता है । इस समय वहां श्वेताम्बर जैनियोंकी संख्या ५०० व उनके ६ मंदिर हैं, जब कि १०० व १५० वर्ष पहले २००० की संख्या थी। दिगम्बरियोंकी वस्तीमें अब वहां केवल २ वर हैं जो दसा हुमड़ जातिके हैं। उनके नाम चुन्नीलाल लालचंद और दीपचंद हीराचंद हैं, जब कि १०० व १५० वर्ष पहले वहां दिगम्बर जैनियोंकी बहुत वस्ती थी। उनके रहनेके तीन महल्ले अबतक प्रसिद्ध हैं-निशाल फलिया, सोनी फलिया और हुमड़ फलिया। इसीमें अब दो घर हैं। दिगम्बरी जैन मंदिरोंमें अब केवल एक मंदिर अवशेष है जो बहुत पुराना बना मालूम होता है तथा इसमें बहुतसी प्रतिमायें हैं जो दूसरे मंदिरोंके टूटनेपर लाई गई हों, ऐसा भी संभव है। इस मंदिरके नीचे एक भौंरा है अर्थात् गभारा व तहखाना है। इसमें भी प्रतिमायें सुशोभित हैं। वहां एक धातुकी प्रतिमाका लेख इस भांति है: " सं० १३८७ माघ सुदी ५ रवि० श्रेष्ठि भीमा भायी रूपलता तयोः सुत बालखान श्रीरत्नत्रय बिम् राउल श्रीअभयनंदिशिष्य आचार्य माघनंदी उपदेशेन श्रीमूलसंघे प्रतिष्ठितं " ___ तथा एक शांतिनाथस्वामीकी मूर्तिपर सं० १६४८ है। For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन। [ २९ ऊपरकी वेदीमें जो प्रतिविम्ब हैं उनमें संबत १५१८, १५१९, १५३७, १६४८, १६६५ व १६८३ है। जिनपर प्रायः ऐसे लेख हैं कि विद्यानंदि, मल्लिभूषण, लक्ष्मीचंद्र वीरचंद्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचंद्र बादिचंद्र, या महीचंद्रना उपदेशथी हुमड ज्ञाति आदि... एक बिम्बपर है " १५३७ वैसाख सुदी १२ देवेन्द्रकीर्ति- पदे विद्यानंदि हूमड़जातीय श्रेष्ठी चांपा.. तथा एकपर है “ १५१८ माघ सु. ५ बुधवार देवेन्द्रकीर्ति शिष्य विद्यानंदि उपदेशथी हूमड़वंसे समघर भार्या जीवी ना पुत्री नव करण सिंह.. ............" यहां एक प्राचीन पोथी याने गुटका है जिसमें 'महीचंद्र,प्रभाचंद्र, महीचंद्रके शिष्य ब्रह्मचारी जयसागर' वर्णित है। इन लेखोंसे प्रगट है कि इमड़ ज्ञातिके दिगम्बरी रांदेरमें बहुत माननीय व धनाढ्य हुए हैं। यहां तक कि अभी तक यह प्रसिद्ध है कि जहांगीर बादशाहके समयमें एक धनाढ्य दिगम्बर जैनीकी बुगल रांदेर नगरमें बजा करती थी। तथा ऊपरके लेखोंसे यह भी पता चलता है कि सम्बत् १३८७में आचार्य माघनंदि हुए । माघनादे शब्दके पूर्व भट्टारक शब्द न होनेसे ये निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनि प्रतीत होते हैं । संवत् १५१८ से भट्टारकोंके नाम हैं जिनमें विद्यानन्दि प्रथम है। सूरत नगरके कतारगांवमें विद्यानंदि नामका एक जैनियोंका माननीय स्थान है जहांपर भट्टारकोंकी बहुतसी समाधिये हैं। बहुत संभव है किभट्टारक विद्यानंदिकी पहिली समाधि For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] अध्याय दूसरा | यहां बनने से यह स्थान विद्यानंदिके नामसे प्रसिद्ध हुआ हो। कहते हैं कि यहां मूलवेदीको रायकवाल जातिके शिवामोरारने बनवाई थी । यह जाति भी इस ओर बहुत प्रसिद्ध हो गई है । इस जाति के घर सूरत के सलाबतपुरा, खरादीसेरी व बम्बईपुरा मुहल्लोंमें १०० वर्ष पहिले ४० थे तथा सूरतसे १५ मील बारडोली में २०० वर्ष पहिले ५० घर थे । अब सुरतमें इसका नाम व निशान भी नहीं है परंतु अब भी इस जातिके ५ घर व्यारा में मुखिया सेठ शिवलाल झवेरचंद तथा ८ घर महुआ में मुखिया सेठ इच्छाराम झवेरचंद तथा कुछ घर वांच आदि में भी है। जिस तरह आज कल छोटी २ जातियों में जैनियोंका विभाग होनेसे व जातिमें बाल विवाह, वृद्धविवाह, व्यर्थव्यय आदि कुरीतियों के होनेसे प्रत्येक जातिके स्त्री पुरुषोंकी संख्या बड़े वेग से घट रही है - विधवा व विधुरोंकी संख्या अधिक होनेसे दिनपर दिन संतानक्रम बन्द हो रहा है, ऐसा ही सौ दो सौ वर्ष पहिले भी था । इसीसे इस जातिका अब कोई मनुष्य सूरत में नहीं दिखलाई पड़ता । सूरत नगरमें इस जातिका कैसा गौरव था इसको प्रगट करनेवाला एक शिलालेख नीचे दिया जाता है । यह लेख उन २४ बड़ी भव्य प्रतिबिम्बों से एक प्रतिबिम्पर है जो बड़ा चौटा जिसको अब नानावट कहते हैं, के मंदिरजीमें विराजमान थी और अब वे सब चंदावाड़ी के पासवाले बड़े ( पुराने ) मंदिरजी में स्थापित हैं । नकल शिलालेख | "श्रीजिनो जयति । स्वस्ति श्री १८०५ वर्षे शाके १६७५ : प्रवर्तमाने वैसाख मासे शुकपक्षे चन्द्रवासरे गुर्जरदेशे सूरतबन्दर For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन। [३१ जुग्यादिचैत्यालये श्रीमूलसंघे नन्दीसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्रीपद्मनन्दीदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीदेवेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीविद्यानन्दीदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीमल्लीभूषणदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीलक्ष्मीचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीवीरचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीज्ञानभूषणदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीप्रभाचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीवादीचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीमहीचन्द्रस्तत्पट्टे भट्टारक श्रीमेरुचन्द्रदेवास्तत्प? भट्टारक श्रीजिनचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीविद्यान. न्दीगुरूपेदशात् सूरतवास्तव्य रायकवालजातीय धर्मधुरंधर सम्यक्व्रतधारक गुर्वाज्ञाप्रतिपालक सप्तक्षेत्रविलसतवित् सा कुँवरजीसुत सौजीसुत लक्ष्मीदासस्तत्पुत्रधर्मदासभार्या रतनबाई तयोःसत्पुत्र धर्मधुरन्धर पूजाबिम्बप्रतिष्टासंघवच्छलकरणसमर्थ जैनप्रसिद्धमार्गे विलसतवित् श्रावकाचारचतुर गुर्वाज्ञाप्रतिपालक जगजीवनदास भार्या नवीबहू ताभ्यां विम्बप्रतिष्ठा करीता सेठ श्रीलालभाईस्तेषां पुण्यपवित्रसमस्त प्राणिगणप्रतिपालक करुणामूर्ति सेठ जगन्नाथवाई सान्निध्य विराजमाने श्रीआदिनाथजी मूलनायक नी प्रतिष्ठित नित्यं प्रणमति । श्रीरस्तु । लेखकवाचकयोः भद्रं भूयात् ।” इस लेखसे भट्टारकोंकी वंशावलीका कुछ पता चलता है। रांदेरके जिन मंदिरकी एक प्रतिमापर जैसा ऊपर लिखा है संबत् १५१८ में देवेन्द्रकीर्ति, शिष्य विद्यानंदि हैं। इससे प्रगट है कि ये विद्यानंदि वेही विद्यानन्दि हैं जो बड़ाचौटेके प्रतिबिम्बपर लिखित हैं । संवत् १५१८ से लेकर १८०५ तक नीचेप्रमाण क्रमसे भट्टारक हुए व उनसे पहिले विद्यानंदिके गुरु देवेन्द्रकीर्ति व इनके गुरु भट्टारक श्री पद्मनंदिथे। ऊपरके लेखसे यह भी झलकता है कि इस सुरत जिलेमें सबसे पहिले भट्टारक ये ही पद्मनंदि हुए, क्योंकि इनके पहिलेके For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दूसरा । किसी भट्टारकका नाम लेखमें नहीं है, केवल श्रीकुन्दकुन्दाचार्यजी महाराज हैं, जो परम ऋषि दिगम्बरी आत्मज्ञानी व अनुपम विद्वान् और योगीश्वर थे। ___ सूरतकी गद्दीका संबंध ईडरकी गद्दीसे है, ऐसा सुनते हैं। इस ईडरकी गद्दीके भट्टारकोंकी नामावली इस प्रकार है: १ श्रीभद्रबाहु १८ श्री वसुनन्दी ३५ श्री नागचन्द्र २ ,, गुप्तिगुप्त १९ ,, वीरनन्दी ३६ ,, नयचन्द्र ३ ,, माघनन्दी २० ,, माघनन्दी ३७ ,, हरिचन्द्र ४ ,, जिनचन्द्र २१ ,, माणिक्यनंदी ३८ ,, महीचन्द्र श्री पद्मनन्दी २२ ,, मेघचन्द्र ३९ ,, माघचन्द्र ६ , उमास्वामी २३ ,, शांतिकीर्ति ४० ,, लक्ष्मीचन्द्र ,, लोहाचार्य २४ , मेघकीर्ति ४१ ,, गुणकीर्ति ,, यशःकीर्ति २५ , पद्मकीर्ति ४२ ,, विमलकीर्ति ९ , देवनन्दी २६ ,, विनयकीर्ति ४३ ,, लोकचन्द्र १० ,, गुणनन्दी २७ ,, भूषणकीर्ति ४४ ,, शुभचन्द्र ११ , वज्रनन्दी २८ ,, शीलचन्द ४५ ,, शुभकीर्ति १२ , कुमारनन्दी २९ , नन्दीकीर्ति ४६ , भावचन्द्र १३ ,, लोकचन्द्र ३०, देशभूषण ४७ , महीचन्द्र १४ , प्रभाचन्द्र ३१ ,, अनन्तकीर्ति ४८ , माघचन्द्र १५ ,, नेमिचन्द्र ३२ ,, धर्मचन्द्र ४९ , ब्रह्मचन्द्र १६ , अभयनन्दी ३३ , विद्यानन्दी ५० ,, शिवनन्दी १७ ,, सिंहनन्दी ३४ ,, रामचन्द्र ५१ ,, वीरचन्द्र Marw rur 2 V For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सरत शहरका दिग्दर्शन। [ ३३ ५२ ,, हरिचन्द्र ६९ ,, ललितकीर्ति ८६ ,, गुणकीर्ति ५३ ,, भावनन्दी ७० ,, केशवचन्द्र ८७ ,, वादिभूषण ५४ ,, सुरेन्द्रकीर्ति ७१ ,, चारुकीर्ति ८८ ,, रामकीर्ति ५५ ,, विद्याचन्द्र ७२ ,, अभयकीर्ति ८९ ,, पद्मनन्दी ५६ ,, सूरचन्द्र ७३ ,, वसन्तकीर्ति ९० , देवेन्द्रकीर्ति ,, माघनन्दी ७४ ,, विशालकीर्ति ९१ ,, क्षेमकीर्ति ५८ ,, ....नन्दी ७५ श्रीशुभकीर्ति ९२ , * : ५९ ,, गंगनन्दी ७६ ,, धर्मचन्द्र ९३ ,, नरेन्द्रकीर्ति ६० , हेमकीर्ति ७७ , रतनचन्द्र ,, विजयकीर्ति ६१, चारुकीर्ति ७८ ,, प्रभाचन्द्र ९५ ,, नमिचंद्र ६२ ,, मेरुकीर्ति ७९ ., पद्मनन्दी ९६ ,, रामकीर्ति ६३ ,, नाभिकीर्ति ८० ., सकलकीर्ति ९७ ,, यशःकीर्ति ६४ ,, नरेन्द्रकीर्ति ८१ ,, भुवनकीर्ति ९८ ,, सुरेन्द्रकीर्ति ६५ ,, चन्द्रकीर्ति ८२ ,, ज्ञानभूषण . ९९ , रामकीर्ति ६६ ,, पद्मकीर्ति ८३ ,, विजयकीति १०१ ,, विजयकीर्ति* . १०० ,, कनककीर्ति ६७ ,, वर्द्धमान ८४ ,, शुभचन्द्र ("दिगम्बरजैन, ६८ ,, अकलंक ८५ , सुमतिकीर्ति वर्ष ४ अंक ७) परकी पट्टावलीमें नं० ८३ श्रीविजयकीर्तिदेव सं० १९६८ में मौजूद थे तथा नं० ८० श्रीसकलकीर्ति शिष्यपरम्परामें थे। इसका प्रामाणिक लेख बड़ौदा नवी पोलक चैत्यालयमें विराजित श्री * ये आजकल मौजूद है, परन्तु सर्व सम्मतिसे गद्दीपर नहीं बैठे हैं इसलिये बहुतसे लोग इनको नहीं मानते हैं । For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दूसरा । पद्मनंदिपंचविंशतिका संस्कृत ग्रंथके अंतिम पत्रे ९९ की लिपिप्रशस्तिमें है। यह ग्रंथ बहुत शुद्ध है अन्वयके नं० शब्दोंपर दिये हैं व कठिन शब्दोंके अर्थ भी लिख दिये हैं। परन्तु शुरूके ३० पत्रे नहीं मिलते हैं । सेठ लालचंद कहानदास द्वारा देखनेको मिल सस्ते हैं । ग्रंथ दर्शनीय है। वह प्रामाणिक लेख यह है: " सं० १५६८ वर्षे फागुण मासे शुक्लपक्षे १० दिन गुरौ श्रीगिरिपुरे श्रीआदिनाथचैत्यालये श्रीमूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुंदकुंदाचार्यान्वये भ० श्रीसकलकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीभुवनकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ०. श्रीज्ञानभूषणदेवास्तत्पट्टे भ. श्रीविजयकीर्तिदेवा. स्तत् भगिनि आर्यिका श्रीदेवश्री तस्यै पद्मनंदिपंचविंशतिका श्रीसंघेन लिखाप्य दत्ता।” इस लेखसे यह भी पता लगता है कि श्रीविजयकीर्ति भट्टारककी बहन देवश्री आर्थिका थीं व संस्कृत पद्मनंदिको समझ सक्ती थीं। उन्होंको यह ग्रंथ संबने भेटमें दिया था। यहांपर पाठकों का यह अवश्य भ्रम होगा कि जो नाम इस ईडरके भट्टारकोंकी नामावली में हैं वे सर्व दिगम्बर नग्न मुनि थे या आजकलके ऐसे वस्त्रधारी भट्टारक थे ? जिसके समाधानमें पाठकोंको बताया जाता है कि सन् १२९५ ई० के पहिले सर्व ही मुनि या भट्टारक नग्न होते थे। इस सन्में आलमशाह अलाउद्दीन बादशाह देहली के थे । इनको किसी धर्म में आस्था नहीं थी। इनकी सभामें राघो और चेतन दो ब्राह्मग भी थे जो कि नास्तिक मतके पक्षपाती नत्र मादी तथा विद्वान् थे । ये वादशाहके मनको और भी धर्मशून्य करते रहते थे। एक दिन उन्होंने बादशाहको बहकाया कि For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ३५ सर्व धर्मोकी परीक्षा होनी चाहिये, जो सत्य ठहरे उसके सिवाय सर्वको मुसल्मान बना लिया जावे। बादशाहने देहलीमें आज्ञा दी कि सर्व अपने २ धर्मकी परीक्षा दें और अपने गुरुको लेकर आवें, नहीं तो हमारा धर्म स्वीकार करना पड़ेगा। जैनियोंको भी यह आज्ञा हुई । उस ओर तब कोई दिगम्बर मुनि नहीं थे । उनको ढूंढने के लिये जैनियोंने बादशाह से छह मासका समय मांगा। बादशाहने स्वीकार किया । जैनी लोग दक्षिणकी ओर आये और उन्हें तीन मास बाद गिरनारपर श्रीमाहव सेन ( महासेन ) स्वामीका दर्शन हुआ। उनसे सर्व हाल कहा। जैनी लोग वहीं ठहरे रहे, पर स्वामीका विहार नहीं हुआ। इतनेमें जब छह मास में एक दिन ही शेष रहा तत्र श्रावक लोग घबड़ाये | स्वामीने कहा तुम चिन्ता न करो । तपोबल से | दूसरे दिन प्रातःकाल स्वामी देहलीकी मसानभूमिमें पहुंच गये और सर्व जैनी अपने २ घरों में सोते २ उठे । उसी रात्रिको एक सेटके पुत्रको सर्पने डंस लिया । उसको मृतक समझ लोग वहीं जलानेको आये जहां मुनि महाराज विराजमान थे। मुनिने पुत्रको देखकर कहा हि यह मरा नहीं है सर्व लोग ठहर गये। मुनिने पुत्रको सचेत कर दिया । वह अच्छी तरह खेलने लगा । इस बातकी बड़ी प्रसिद्धि हुई । बादशाह राम्रो और चेतनके साथ मुनि महाराज से मिले। इन ब्राह्मणोंने मुनिको देखते ही कहा कि आपने अपने कमंडलुमें मछलियां क्यों रख छोड़ी हैं? मुनिने कहा कि पूजनके लिये पुप्प हैं, मछलियां नहीं । कमंडलु देखा गया तो पुष्प ही निकले । फिर दोनों ब्राह्मणोंने मुनिराज से षट् मतपर खूब वादानुवाद किया। मुनि महाराजकी विजय हुई। जैन For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दूसरा । धमकी बड़ी प्रभावना हुई । बादशाहने स्वयं प्रशंसा की। मुनि महाराज उसी ओर ठहरे । बादशाहने जैनियोंसे कहा कि आपके गुरु सदा देहलीमें रहें ऐसा कहिये तथा हमारी बेगमें भी दर्शन किया करें इससे उनको वस्त्र रखना चाहिये । जैनी लोग इस बातपर विचार करने लगे। इतनेहीमें अर्थात् सन् १३१५ में फिरोजशाह तुघलक देहलीके बादशाह हुए। दि० जैनियोंके अति आग्रह व बादशाहकी इच्छासे श्रीमहासेनके शिष्य मुनिने वस्त्र रखना स्वीकार किया। बादशाहने ३२ पदकी उपाधियां दीं व कुछ सनदें दी जो देहली, कोल्हापुर, नागौर आदिके भट्टारकोंके पास मौजूद हैं ( देखो, जैनसिद्धान्तभास्कर किरण ४, सफा ११४, छपा १९१५)। उस समयसे जो वस्त्र रखने लगे उनकी भट्टारकोंकी गद्दी प्रसिद्ध हुई। और देहलीके भट्टारकने अपनी शाखाएं भारतके अनेक स्थानोंपर कायम की। यद्यपि कालदोषसे भट्टारकोंका पद वस्त्रसहित स्थापित हो गया तथापि नग्न मुनियोंका कभी अभाव नहीं हुआ था। नग्न मुनि भी होते रहे हैं । सं० १९३४ में श्रीसोमसेन मुनि ५० वर्षके वृद्ध बड़ौदा नगरमें पधारे थे । सोजित्रामें चार्तुमास कियाथा। जैनवद्रीमें बराबर मुनि होते आये हैं। अब भी वहां श्रीअनन्तकीतिजी महाराज मौजूद हैं। झालरापाटनमें थोड़े ही दिन पहिले श्रीसिद्धसेन मुनि हुए हैं। हालमें वहां मुनि चन्द्रसागरजी विराजमान हैं। ___यद्यपि शास्त्राज्ञासे विरुद्ध भट्टारकोंने वस्त्र रक्खा, पर मुसल्मानोंके जमानेमें उन्होंने भारतमें दिगम्बर जैन समाज, धर्म और उनके For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन। [ ३७ मंदिर व शास्त्रोंकी बहुत रक्षा की है । कई तीर्थीका उद्धार किया है। विद्याबलसे अनेक चमत्कार दिखाये हैं व ग्रंथ-रचना भी की है। यद्यपि आज कलके कुछ भट्टारक चारित्रहीन दिखलाई पड़ते हैं तथापि पहिले ये लोग सिवाय वस्त्र रखनेके और सर्व चारित्र-बाह्य क्रिया योग्य करते थे व धर्मकी रक्षार्थ ही जीवनका उपयोग करते थे। सूरतकी गद्दीके भट्टारक । । १ श्रीपद्मनन्दि २ ,, देवेन्द्रकीर्ति ३ ,, विद्यानन्दि (सं० १५१८) ४ ,, मल्लिभूषण (चंदावाड़ीके बड़े मंदिरकी प्रतिमाओंपरसे सं० १५४४) ५ ,, लक्ष्मीचंद्र ६ ,, वीरचंद्र , ज्ञानभूषण ८,, प्रभाचंद्र ९,, वादिचंद्र (चंदाबाड़ीके बड़े मंदिरकी प्रतिमाओंपरसे (सं० १६४१) १० ,, महीचंद्र-( इन्होंने संस्कृतमें पंचमेरुपूजा आदि पुस्तकें __ रची हैं।) ११ ,, मेरुचंद्र (इन्होंने संस्कृतमें नन्दीश्वरपूजाविधान रचा है। सं० १७२२) १२ ,, जिनचंद्र . १३ ,, विद्यानन्दि (सं० १८०५) م م 86 م For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] अध्याय दूसरा। ३०० वर्षोंमें १० भट्टारकोंका क्रमवार होना सर्वथा संभव है। विद्यानन्दिके पीछेके भट्टारकोंके नाम ये हैं:१४ श्री देवेन्द्रकीर्ति (इन्होंने पादरा तथा आमोदके मंदिर बंधवाये हैं। इनके पास १६ शिष्य रहते थे। १५ ,, विद्याभूषण (इन्होंने महुवा, सूरत, अंकलेश्वर, सजोत, सोजित्राके मन्दिर बंधवाये । इनके एक शिष्य पण्डित भाणा था कि जिन्होंने व्याराका मन्दिर बंधवाके सं० १८७१ में प्रतिष्ठा की तथा सोजित्रामें एक मंदिरका मंडप बंधवाया । इनके शिष्य पण्डित पीताम्बर थे, जिन्होंके लिखे हुए कई ग्रन्थ पादराके मन्दिरमें मौजूद हैं।) १६ ,, धर्मचंद्र। १७ ,, चंद्रकीर्ति (ये बंबईवाले सेठ सौभागशाह मेघरानके भाई थे। संवत् १९२८ में नरोड़ामें देवलोक गये। वहां एक प्रतिष्ठा भी कराई थी ।इनके शिष्य पण्डित शिवलालजी महुवामें रहते थे और पालीताणा क्षेत्रपर देखरेख रखते थे। इन्होंने शिखरजीकी यात्रा करते हए सं० १९२९ में शिखरजीकी एक पूजा रची है।) १८,, गुणचंद्र (बागड़ देशमें कई कुरीतियां बंद कराई। जैसेकन्यादानमें गर्दभका दान। अहमदाबाद में रायकवालजातिने वैष्णवकी कंठी बांध ली थी सो तुड़वाके उनके लिये मंदिर बंधवाया। ये अभी हालमें विद्यमान है।) १९ , सुरेन्द्रकीर्ति (ये भी हाल में विद्यमान हैं।) For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ३९ सुरतजिले में दिगम्बर जैनियोंकी वस्ती १०० व १५० वर्ष पहिले निम्न स्थानोंपर थी। वहां पर मंदिरजी भी थे । १ - बलसाड - यहां अब कोई नहीं है न मंदिर है । २ - मंदही - यहां अब कोई नहीं है न मंदिर है । परन्तु यहांके लिखे हुए कई ग्रंथ मिलते हैं । ३ - रांदेर - यहां अब दो घर व एक जूना जिन मंदिर है । ४ - हांसोट - यहां अब कोई नहीं है न मंदिर है परन्तु यहां लिखे ग्रंथ मिलते हैं ५ - महुआ- यहां अब भी १० घर हैं, श्री विघ्नहर पर्श्वनाथका अतिशय युक्त प्राचीन जिनमंदिर है व संस्कृतका अच्छा शास्त्रभंडार है । ६ - कोदादा - यहां अब कोई नहीं है न मंदिर है, परंतु बड़ौदा नवी पोलके दि० जैन चैत्यालय में विराजित श्रीसकलकीर्तिकृत संस्कृत श्रीपालचरित्रसे पता लगता है कि कोदादा में श्रीशीतलनाथस्वामीका मंदिर सं० १६३७ में मौजूद था । ग्रंथलिपिकी प्रशस्ति जो अंतिम पत्र ६७ पर दी हुई है इस भांति है: “ संवत १६३७ वर्षे वैशाख वदि ११ सोमे अदेहीकोदादा शुमस्थाने श्रीशीतलनाथचैत्यालये श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये भ० श्रीपद्मनंदिदेवाः तत्पट्टे भ० श्रीदेवेन्द्रकीर्त्तिदेवाः तत्पट्टे भ० श्रीविद्यानंदिदेवाः तत्पट्टे भ० श्रीमल्लिभूषणतत्पट्टे भ० श्रीलक्ष्मीचंद्र पट्टे भ० श्रीवीरचंदपट्टे भ० श्रीज्ञानभूषणपट्टे भ० श्रीप्रभाचंद्रः तत्प भ० श्रीवादिचंद्रः तेषां मध्ये उपाध्यायधर्मकीर्ति स्वकर्मक्षयार्थे लोख । 99 इस लेख में जितने भट्टारकोंके नाम हैं उनका नाम व ग्राम For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] अध्याय दूसरा। सर्व ऊपर लिखित सूरत गद्दीके भट्टारकोंसे बिलकुल मिलते हैं। सुरत चंदावाडीके मंदिरमें वादिचंद्र भट्टारक प्रतिष्ठित प्रतिमा मौजूद है। ७-नौसारी-यहां अब कोई नहीं है न जैन मंदिर है परन्तु ___ संवत् १९१३ तक यहांपर मंदिरजी था । (-सूरत-यहां पहले ५ जातियोंके जैनी थे अब वीसा हुंबड़के २० घर, दसा हुंदड़के ७५ घर व नरसिंहपुराके २० घर हैं। तो भी पंच पांच गोटकी कहलाती है । रायकवाल व मेवाड़ा नहीं है। यद्यपि मेवाड़ा लोग प्रगटपने वैष्णव हो गये हैं । सूरत शहरमें १०० वर्ष पहले दिगम्बर जनियोंकी संख्या ७०० के अनुमान थी। पहले इनके खास रहनेके मुहल्ले सगरामपुरा, काजीका मैदान और नानावट भी थे। यहां अब कोई घर नहीं है। अब हरिपुरा, नवापुरा, खपाटियाचकला आदिमें रहनेवाले अब केवल २५० हैं। श्वेताम्बर जैनी पहले १२००० थे अब ३००० के अनुमान है। वर्तमानमें श्वे. जैनियोंके ५० मंदिर व ७५ घर चैत्यालय और दि० जैनियों के ६ मंदिर व ९ घर चैत्यालय हैं। इन छह मंदिरों में सर्वसे पुराना मंदिर खपाटिया चकलेमें चंदावाड़ी धर्मशालाके पास छोटा जिन मंदिर है जिसमें एक भौंरा है। इस भौ रेमें ३ बड़ी अवगाहनाकी भव्य प्रतिमाएं विराजमान थीं सो अब ऊपर बेदी बनाकर स्वर्गवासी सेठ चुन्नीलाल झवरचंद जौहरी, सहायक महामंत्री-" भारतवर्षीय दि जैनतीर्थक्षेत्र कमेटी " द्वारा स्थापित की गई हैं । इनमेंसे दोपर लेख हैं जो ऐसी भाषामें हैं कि पढ़ा नहीं जाता। श्रीपार्श्वनाथकी प्रतिबिम्बपर संबत १२३५ वैशाख For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ४१ सुदी १० उल्लिखित है। चंदावाड़ीके पास दूसरा बड़ा मंदिर है जिसमें बहुतसे प्रतिबिम्बोंका समूह है। उनपर संबत व प्रतिष्ठाकारक भट्टारकों का नाम इस भांति है सं० १४९४ श्रीअभयचंद्र सं० १४९९ नंदीश्वरकी मूर्ति, भट्टारकका नाम नहीं है। सं० १५०७ श्रीभट्टारक विद्यानंदि । सं० १५१३ श्रीमट्टारक विद्यानंदि । भुवनकीर्ति । मल्लिभूषण । जिनचंद्र "" 99 "" ,,, १६४१ १५२३ १५४४ 3 १५४८ "" "" 33 "" "" ,, १६४७,, "" "" १६५१ ,, १६६६,, ,, १६७९ ,, १६८४ १६८४ १७१३ "" १६४१ " 34 33 "" " "" "" 35 "" "" 39 "" ܕܪ "" "" "" 55 "" वादिचंद्र | गुणकीर्ति । "9 वादिभूषण । वादिचंद्र । महीचंद्र | महीचंद्र | कुमुदचंद्र । महीचंद्र | मेरुचंद्र | १७२२ 35 35 "" मन्दिर के नीचे के भाग में विराजमान चन्द्रमभुकी प्रतिमापरका लेख | “ V० ॥ संवत् १६७९ वर्षे शाके १५५३ श्रीमूलसभ नन्दीसंघे सरस्वतगछे बलात्कारगणे कुन्दकुन्दान्वये भट्टारक श्रीपद्मनन्दिदेवाः For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२] अध्याय दूसरा । स्त० भ० देवेन्द्रकीर्तिदेवास्त० भ०॥ श्रीविद्यानन्दिदेवास्त० भ० श्रीमल्लीभूषणास्त० भ० श्रीलक्ष्मीचन्द्रस्त० भ० श्रीवीरचन्द्रास्त० भ० श्रीज्ञानभूषणास्त० भ० श्रीप्रभाचन्द्रास्त० भ० श्रीवा दीचन्द्रदेवास्त० भ० श्रीमहीचन्द्रोपदेशात् हंबड़जातीयः वीर्डलवास्तव्यः मातर गोत्रे सं० श्रीवर्द्धमानभार्या संवनादे तयोः पुत्रः स० कुंअरजीत । ० संकोटमदे तयोः पुत्रः सं० श्रीधर्मदासभार्या सं घनादे पुत्री वेभबाई चन्द्रप्रभं प्रणमति ।" चंद्रप्रभुकी बाई ओरकी बड़ी प्रतिमाका लेख । "संवत् १६७९ वर्षे वैशाख वदी ५ गुरौ श्रीमूलसंघे भारती गच्छे श्रीकुंदकुंदाचार्यान्वय भट्टारक श्रीपद्मनंदीदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीदेवेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्प? भ० श्रीविद्यानंदीदेवास्तत्प? भ. श्रीमल्लिभूषणदेवास्तत्प? भ० श्रीलक्ष्मीचंद्रदेवास्तपट्टे भ० श्रीवीरचंद्रदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीशानभूषणदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीप्रभाचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भ० श्रीवादीचंद्रदेवास्तत्पटे भट्टारक श्रीमहीचंद्रोपदेशात् सं० श्रीधर्मदासः श्रीवासुपूज्यं प्रणमति, ___ चन्द्रप्रभकी दाई ओर भी एक आदिनाथ स्वामीकी उतनी ही विशाल प्रतिमा है, लेकिन उसपर कोई लेख नहीं है । यहांके वृद्ध पुरुषोंके कथनके आधारपर तलाश करनेसे ज्ञात हुआ कि ये तीनों प्रतिमाएं पहिले नानावट बड़े चौटेकेके भौरेमें थीं। वहांपर अब सिर्फ घेलामाई मंछालाल दसा हुंबडका एक घर है। उनके आधिन वह भौरा अभी है और वहां तीन प्रतिमाओंके आसन भी मौजूद हैं। यह बड़ा मंदिर संवत् १८९३ में भस्म हो गया था। उस वक्त अग्निकांडसे आधा शहर जल गया था पर प्रतिमाएं सुरक्षित रही थीं। सं० १८९५से १८९८ तकमें फिर तय्यार होकर इसकी For For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ४३ प्रतिष्ठा वैसाख सुदी १२ संबत् १८९९ को भाणा पंडितके द्वारा की गई थी जो यहीं रहते थे और यंत्र मंत्रमें बहुत प्रवीण थे । उस समयकी प्रतिष्ठित पद्मावतीकी मूर्तिपर नीचे प्रकार लेख है। पद्मावतीकी पाषाणकी प्रतिमा । "सं० १८९९ वैशाख सुद १२ गुरुवार श्रीमुलसंघे सरस्वतीगछ बलातकारगण कुंदकुंदाचार्य भट्टारक श्रीविद्यानदितत्पट्टे भ श्रीदेवेन्द्रकीतिस्तत्पेटे भट्टारक श्रीविद्याभूषणजीस्तत्पट्टे भ० श्री धर्मचंद्रस्तरशुरु भ्राता पंडित भाणचंद उपदेशात् सा० वेणिलाल केसुरदास तत्सुता बाई इछाकोर नीत्यं प्रणमति ।" पद्मावती ( पाषाणकी खड्गासन) "सं० १५४४ वर्षे वैशाख शुदी ३ सोमे ॥ श्री मूलसंधे॥ सरस्वतीगछे । बलात्कारगणे ॥ भट्टारक श्रीविद्यानंदीदेवाः तत्प? भट्टारक श्रीमल्लीभूषण ॥ श्रीस्तंभस्तीर्थे । हुंबड ज्ञातये । श्रेष्टी चांपा भार्या रूपिणि तत्पुत्री श्रीआर्जिका आर्जिका रत्न सिरीक्षुल्लिका जिनमती श्रीविद्यानंदी दीक्षिता आर्जिका कल्याण सिरीतत्वल्ली अग्रोतका ज्ञातोसाह देवा भार्या नारिंगदे ॥ पुत्री जिनमती नस्स ही कारापिता प्रणमति श्रेयार्थम् ।" पंचमेरुकी धातुकी बड़ी प्रतिमा। "सं० १५१३ वर्षे वैशाख सुदी १० बुधे श्रीमूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगछे । भ० श्रीप्रभाचन्द्रदेवाःतत्पट्टे भ । श्रीपद्मनंदीतसिष्य श्रीदेवेंद्रकीर्तिदीक्षिताचार्य श्री....विद्यानं For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] अध्याय दूसरा । दि गुरूपदेशात् गाधार वास्तव्य हुंबड ज्ञातीय समस्त श्री संघेन कारापित मेरुशिखरा कल्याण भूयात् " मेरुके नीचे चारों कानों पर चारों दिशाओंमें चार मुनियोंकी मूर्तियां हैं जो जाप करते हुए दाहिना हाथ छातीपर और बांया हाथपर रख हुए हैं । चारों मुनिओंके नाम । १ मुनिश्री कल्याणनंदी मूर्तिः २ भ० श्रीपद्मनंदी देवस्य मूर्तिरियम् ३ मंडलाचार्य श्रीदेवेंद्रकीर्तिः... ४ ........ नंदी मूर्तिः ...... पंचपरमेष्टीकी धातुकी प्रतिमा । “ सं० १५१३ वर्षे वैशाख सुदी १० बुधे श्रीमूलसंघे आचार्य श्रीविद्यानंद गुरूपदेशात हुवड ज्ञातीय दो० डुंगर भा० सोनी देवलदेसुतदोशी शंखा भार्या वासुदिवी०का भार्या मटक्का तेनेदं श्री जिन विम्बं कारिता । " मूर्तिः मूलनायक श्री आदिनाथस्वामीकी प्रतिमा मूलसंघे सं० १३७६ की है। विशेष लेख पढ़ा नहीं जाता । सम्यक ज्ञानका यंत्र । " सं० १६८५ वर्षे माघ सुदी ५ श्रीमूलसंघे कुंदकुंदाचार्यन्वये श्रीवादीचन्द्रस्तत्पट्टे श्रीमही चंद्रोपदेशात् सिंघपुरावंशे संघवी वल्लभजी सं० हीरजी ज्ञानं प्रणमति ।" For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहर का दिग्दर्शन। [ ४५ चौवीसी। " सं० १५४४ वर्षे वैशाख सुदी ३ सोमे श्रीमूलसंघे भ० श्रीभुवनकीर्तिस्त्तपट्टे भ० श्रीज्ञानभूषणगुरूपदेशात् हंबडशाहरामाभार्या कर्मी सु० कर्णाभार्या हासी सुत मना एते नित्यं प्रणम्य श्रीमहावीर जिनम् ।' पार्श्वनाथकी धातुकी छोटी प्रतिमा । "सं० १४९९ वर्षे वैशा वाद ५ गुरुवारे श्रीकाष्ठासंघगणे हुंबडवांशायं जगपालभाः सांति त्रि । सुत नरपालेन श्रीपार्श्वनाथविवं करारि....." सम्यक्ज्ञानका यंत्र ।। __ "सं० १३७८ भाद्र० सुदी १२ साधु चादावोदा प्रणमति नित्यम् ।" तीसरा दि० जैन मंदिर गोपीपुरामें हैं। यहांपर भी बहुत प्रतिबिम्ब हैं अधिकतर काष्टासंघकी गद्दीके भट्टारकोंके द्वारा प्रतिष्ठित हैं। इस मंदिरमें संस्कृत ग्रंथोंका प्राचीन शास्त्र भंडार है, परंतु बहुत ही अव्यवस्थित स्थितिमें पड़ा है। बम्बईके सेठ डाह्याभाई प्रेमचंदका प्रबंध है। खेद है कि वे इनकी सम्हाल नहीं कराते। इस भंडारमें संस्कृत-प्राकृतके अपूर्व २ हजार डेढ़ हजार ग्रंथ हैं। यहांपर एक पद्मावती देवीका प्रतिबिम्ब है उसपर संवत् १६९४ जेठ सुदी १० है । प्रतिष्ठाकारक भट्टारक काष्ठासंघी लक्ष्मीसेन हैं। इसकी प्रतिष्ठा गुर्जरदेश सरत बंदर नरसिंहपुरा ज्ञातीय पंचलालगोत्रे शाह रामजी भार्या फवाई तयोः सुत कल्याणजी भार्या गौरीने की। For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ] अध्याय दूसरा । एक पंचमेरु है उसके १ लेखसे इस तरफ होनेवाले काष्ठासंघी भट्टारकोंके क्रमका पता चलता है । नकल लेख पंचमेरू दि० जैन मंदिर गोपीपुरा सूरत। “संवत १७४७ शाके १६२२ प्रमोदनाम संवत्सरे ज्येष्ट मासे कृष्णपक्षे सातम बुधवासरे नंदीतटगच्छे भट्टारक विधगणे भट्टारकश्रीरामसेनान्वये तत्पट्टे भट्टारक श्रीविशालकीर्त्ति तत्पट्टे भट्टारक श्रीविश्वसेन तत्पट्टे भट्टारकश्री विद्याभूषण तत्पट्टे भट्टारक श्रीभूषण तत्पट्टे भट्टारकश्री चंद्रकीर्त्ति तत्पट्टे भ० श्री राजकीर्त्ति तत्पट्टे भट्टारक पं० लक्ष्मीसेनजी तत्पट्टे भ० श्री देवेन्द्रभूषण तत्पट्टे भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीर्ति प्रतिष्ठितं ।" यहां धातुका एक रत्नत्रयका प्रतिबिम्ब है जिसमें तीन कायोसर्ग प्रतिमाएं एक साथ अंकित होती हैं उसको इधर रत्नत्रय वि कहते हैं । इसका लेख यह है : ....... " सं० १७६२ माघ वदी ७ शुक्र श्रीसूरत बंदरे श्री चंद्रनाथ चैत्यालये काष्ठासंघे नरसिंहपुरा ज्ञातीय कुकालोलानी संघवी नाना सुत हीरजी तस्य भा० त्रिनीबाई तो पुत्रा सुन्दरदासजी हीरजी तथा त्रीकमजी हीरजी तथा हेमजी हीरजी तथा वहन मेघवाई तथा जंगबाई प्रतिष्ठितं" काष्ठासंघ जो नाम उपरक शिलालेख में आये हैं वे सर्व नाम उस संस्कृत गुर्वावली पाठमें है जो ६४ लोलोंकी है तथा जो करमसदके उस संस्कृत गुटके में है जो सुरेन्द्रकीर्ति भट्टार For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [४७ कने अपने खास पढ़नेके लिये संवत् १७४३ चैत्र सुदी १४ रविके दिन श्रीवन्धपुर ( यह कौन नगर है सो इसमें नहीं आया ) के श्रीआदिनाथ चैत्यालयमें लिखवाया था । इस गुटकेके देखनेसे विदित होता है ये सुरेन्द्रकीर्ति विद्वान् थे क्योंकि इसमें प्राकृत संस्कृतकी निम्न भक्तियां हैं-सिद्धभक्ति, श्रुतज्ञानभक्ति, दर्शनभक्ति, चारित्रभक्ति, वीरभक्ति, २४ तीर्थकरभक्ति, चत्त्यभक्ति, वृहद स्वयंभू, पंचमहागुरुभक्ति, शांतिभक्ति, ३४ अतिशयभक्ति, नंदीश्वरभक्ति, समाधिभक्ति, योगभक्ति, निर्वाणभक्ति, अय्यु आलोचनाभक्ति, वृहदालोचनाभक्ति, इनके सिवाय तत्वार्थ सूत्र, ऋषिमंडल, अष्टान्हिका वीनती, आराधनप्रतिबोध, गुर्वावली, वृ.दीक्षा विधिय प्रतिष्ठा विधि है, यह गुटका २७९ पत्रोंका है। इसके २ ३१ में गुर्वावली है। इसके १९ श्लोकसे काष्ठ · का वर्णन इस भांति है कि इस काष्ठासंघके ४ गच्छ हैं-नंदील, माथुर, बागड़ और लाडवागड़। सो यहां नंदीतट गच्छकी गुर्वावली कही जाती है । सो नीचेके क्रमसे नाम हैं१ अर्हदगलभसूरि ४ नागसेन - ७ नोपसेन २ श्रीपंचगुरु ५ सिद्धान्तसेन ८ रामसेन ३ गंगसेन ६ गोपसेन रामसेनके सम्बन्धमें लिखा है कि इन्होंने नारसिंह नामकी जाति स्थापित की। ___ रामसेनोति विदितः प्रतिबोधनपंडितः । स्थापिता येन सज्जातिनरिसिंहाभिधा भुवि ॥२४॥ इससे पता चलता है कि जो ८४ जातियां जैनियोंमें प्रसिद्ध हैं वे प्रायः पंचम कालके मुनि व भट्टारकोंके द्वारा किसी २ खास For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] अध्याय दूसरा । कारणसे स्थापित की गई हैं। वह कारण भी बहुत करके यह हो सक्ता है कि जब किसीने किसी अजैन समूहको एक साथ जैनी किया तब उसका एक खास नाम रखके उसे एक जाति करार दे दिया। ९ नाभिसेन २८ मेरुसेन ४५ सुवर्णकीर्ति १० नरेन्द्रसेन २९ शुभंकरसेन ४६ भानुकीर्ति .. ११ वासवसेन ३० नयकीर्ति ४७ कविभूषण . १२ महेन्द्रसेन ३१ चंद्रसेन ४८ संयमसेन १३ आदित्यसेन . ३२ सोमकीर्ति ४९ विख्यातमूर्ति १४ सहस्रकीर्ति ३३ लघुसहस्र कीर्ति ५० लघु राजकीर्ति १५ श्रुतकीर्ति ३४ महाकीर्ति या ५१ नंदकीर्ति १६ देवकीर्ति महासेन ५२ चारुकीर्ति १७ रामसेन ३५ यशःकोति ५३ विश्वसेन (वादि १८ विनयकीर्ति ३६ गुणकीर्ति प्रसिद्ध) १९ वासवसेन ३७ पद्मकीर्ति ५४ देवभूषण २० महासेन ३८ भुवनकीर्ति ५५ ललितकीर्ति २१ मेघसेन ३९ मल्लकीर्ति या ५६ श्रुतकीर्ति २२ सुवर्णसेन विमलकीर्ति ५७ जयकीर्तदेव २३ विजयसेन ४० मदनकीर्ति ५८ उदयसेन २४ हरिषेण ४१ मेरुकीर्ति ५९ गुणदेवसूरि २५ चारित्रसेन ४२ गुणसेन ६० विशालकीर्ति २६ वीरसेन ४३ सहस्रकीर्ति ६१ अनंतकीर्ति • २७ कुलभूषण ४४ विजयसेन ६२ महेन्द्रसेन For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HIROIDIOHINiscalateral PRELILDENTDELDRENSEENET ROEN कास्कियदि कलवारको सुरेंद्रकीर्ति भट्टारक-सूरत. सं० १७१०. देखो पृष्ठ ५२.) J. V.P. Surat. For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन। [ ४९ ६३ विनयकीर्ति ७८ रामसेन ९० विमलसेन ६४ श्रीजिनसेन ७९ जयकीर्ति या ९१ विशालकीर्ति ... (कवीश्वर) दयाकीर्ति ९२ निश्वसेन ६५ सूर्यकीर्ति ८० राजकीर्ति ९३ विद्याभूषण ६६ विश्वसेन ८१ कुमारसेन (सं० १६० ४*) ६७ श्रीकीर्ति ८२ पद्मकीर्ति ९४ श्रीभूषण या ६८ चारुसेन ८३ पद्मसेन रत्नभूषण ६९ शुभकीर्ति ८४ भुवनकीर्ति ९५ चंद्रकीर्ति या ७० भवकीर्ति (५ विख्यातकीर्ति जयकीर्ति ७१ भवसेन ७२ लोककीर्ति ८६ भावसेन ९६ राजकीर्ति ९७ लक्ष्मीसेन ७४ विजयकीर्ति (स० १४०२) ९८ इन्द्रभूषण या ७५ कौवसेन ८८ लक्ष्मीसेन चंद्रभूषण ७६ सुरसेन ९ धर्मसेन (सं० १७०८) ७७ कुमारसेन (सं० १५४७) ९९ सुरेन्द्रकीर्ति इस संस्कृत गुर्वाक्लीमें सुरेन्द्रकीर्ति तक नाम है उसका संवत् गोपीपुरा मंदिरके पंचमेरुके लेखके व इस गुटकेके अनुसार वि० सं० १७४३ और १७४७ है । प्रतिमाके शिलालेखमें विशालकीर्तिसे सुरेन्द्रकीर्ति तक जो नाम दिये हैं वे बराबर मिलते हैं। इस गुटकेके अंतमें अलग जो नाम गिनाए हैं उनमें कई नाम विशेषणके शामिल किये गए हैं तथा सुरेन्द्रकीर्तिके आगेके चार . * बडौदा मंदिरके प्रतिबिम्बके लेखसे देखो, अध्याय ३ में। ७३ त्रैलोक्यकीर्ति (७ रत्नकीर्ति For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] अध्याय दूसरा। vvvvv... भट्टारकोंके और नाम हैं-सकलकीर्ति, लक्ष्मीसेन, रामसेन और रत्नकीर्ति । ऊपर जो पट्टावली दी है वह आगरा मोतीकटराके दि० जैन मंदिरके सरस्वती भंडारके गुटके नं० १३९ से भी मिलती है। . इसी गोपीपुराके मंदिरमें दूसरे मेरुपर लेख है। उसमें काष्ठासंघ लाड़ वागड़ गच्छका वर्णन है और बघेरवाल जाति प्रतिष्ठाकारक है। इससे मालूम होता है कि वघेरवाल लोग काष्ठासंघ लाड़ वागड़ गच्छको मानते हैं । जब कि नरसिंहपुरा नंदीतट गच्छको मानते हैं। गौपापुरा मंदिरकी एक चौवीसीपरका लेख । _ "सं० १५१३ वर्षे वैशाख सुदी १० बु० आचार्य श्री देवेन्द्रकीर्ति शिष्य श्रीविद्यानंदी देवादेशात् काष्टासंघे हुमड वंशे श्रेष्टी काना भार्या बारु सुत साजण भायो सुहवदे भ्राता सोमसा भार्या रही भानर सींघराज भार्या वरमादे साजण भार्या अधन सुत सदा } सींधराज सुत वदा श्रे साजणे स्वश्रेयाय श्री जिन विंब कारपितम् । श्री घोघा वेलातट वास्तव्य श्री मूलसंधे आर्जका संयम श्री श्रेयार्थम् ।' नवापुरा-मेवाडा मंदिरकी प्रतिमाएं। मेवाड़ाका, गुजरातीका, चोपड़ाका, ऐसे नवापुरामें ३ दिगम्बर जैन मंदिर हैं। जिसमें चिंतामणि पार्श्वनाथका मेवाड़ा जातिका मंदिर प्रसिद्ध है-इसमें भी काष्ठासंघी नंदीतट गच्छकी आम्नाय है यहां जो मुख्य श्रीशीतलनाथस्वामीकी प्रतिमा अभी भौरे में है उसपर यह लेख है। “ स्वस्तिश्री नृप विक्रमात १८१२ माघ सुदी ५ गुरौ श्रीमद काष्टा संघ नंदीतट गच्छे विद्या गुरौ श्रीरामसेनान्वये भट्टारक श्रीलक्ष्मीसेनदेवास्तपट्टे भट्टारक श्री विजयकीर्ति विजयराज्ये सुरतबंदरे वास्तव्य मेवाड़ा ज्ञाती लघु शाखायांम् सा सनाथा विशनदास सुत For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन [५१ विठलभ्राता मूलजी इत्यादि पुत्र पौत्रादिविह सह श्रीसीतलनाथ विम्ब नित्यं प्रणमति " इस लेखमें लक्ष्मीसेनके बाद कई नाम रह गए हैं-विजयकीर्ति सुरेद्रकीर्तिके शिष्य थे तथा शायद इन्हींका नाम सकलकीर्ति है जो गुटके में सुरेन्द्रकीर्तिके पीछे हुए लिखे हैं अथवा यह दूसरे शिष्य हों-क्योंकि यह भी किंबदन्ती कही जाती है कि गोपीपुराके भट्टारकके दो शिष्य थे--तकरार होनेसे जो मूर्ख था उसको लज्जा आई वह विद्या पढ़नेको कर्नाटक गया और खूब विद्वान् होकर करमसदकी गद्दीका भट्टारक हो गया और सूरत आनेका विचार किया, पर गुरुबंधु जिससे झगड़ा हुआ था और जो यहां गोपीपुरामें भट्टारक था उसने सूरतके नबाबसे आज्ञा ले ली कि नर्बदाके इस पार उसको उतरने न दिया जाय । करमसदवाले भट्टारक सूरतके लिये रवाना हुए । भरुच याने भृगुपुर जब आए तब नर्बदा नदीमें नौकावालोंने उतारनेसे इनकार किया तब मंत्र आराधनकर सेत्रजी विछा इस पार आगए तब भरुचके नबाबको नौकावालोंने खबर दी। नबाब आया और इनकी विद्या देखकर क्षमा मांगी। ये आगे चलकर बरियाव आए और ताप्ती नदी उतरना चाही । यहांपर भी नाविकोंने इनकार किया तब फिर आपने मंत्र आराधा सेत्रंजी विछा नदी पारकर बरियावी भागलके द्वारपर सूरतमें आए। वहां द्वार बन्दकर दिये गए । तब फिर मंत्र आराध कर आप आकाश मार्गसे उसी स्थानपर आए जहां' पर नवापुरामें यह मेवाड़ाका मंदिर बना है । सूरतका नबाब व श्रावक आए और इनकी विद्या देखकर सबने क्षमा मांगी। तब For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ] अध्याय दूसरा। आपने वहीं यह मंदिर बंधवाया। इससे साफ प्रगट है कि ये विजयकीर्ति हैं और इनके गुरुभ्राता सकलकीर्ति हैं। दोनोंके गुरुसुरेन्द्रकीर्ति हैं क्योंकि इसी भौं रमें एक चरणपादुका भी है जिसपर यह लेख है " स्वस्ति श्री सं० १८१२ माघ सुदी ५ गुरौ काष्ठा...संघे.... ...............श्री विजयकीर्ति गुरुपदेशात् सुरेन्द्रकीर्ति गुरुपादुका नित्यं प्रणमति तथा यह प्रगट है कि यह सुरेन्द्रकीर्ति सं० १७९० तक रहे विजयकीर्तिने अपने गुरुके स्मरणमें यह पादुका स्थापित करवाई. यह बात भी साफ २ प्रगट है सुरेन्द्रकीर्तिका चित्र उसी समयका खींचा हुआ इस मंदिरजीमें पाया गया है जो पाठकोंके ज्ञान हेतु यहांपर प्रगट किया जाता है । इस मंदिरका प्रबन्ध वीसा मेवाड़ा भगुभाई चुन्नीलाल कस्तूरचंद चोखावाला करते हैं । दसा मेवाड़ाके पहले यहां १०८ घर थे परंतु वे कन्याओंके लोभसे वैष्णवोंसे मिलनेके लिये कंठी बांधकर वैष्णव हो गए तो भी उनमेंसे ८ व १० घरवाले श्री. जिनमंदिरजी दर्शनार्थ अभी भी आते हैं । पद्मावतीकी धातुकी प्रतिमा । "श्री मूलसंघे प्रतिज्ञा श्री श्री काय मुनींद्र ११६४ सशनीय संवत्सरे पुतमय भवतु ।' धातुकी प्रतिमा। "सं० १४९७ मूलसंघे श्रीसकलकीर्ति हुबड ज्ञातीय शाह कर्णा भायी भोली सुता सोमा भात्री भोदी भार्या पासी आदिनाथ प्रणमति।" For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ५३. चौवीसी धातुकी । " सं० १४९० वर्षे वै० सु० ९ सनौ श्री मूलसंघे नंदी संघे बलात्कार गणे स० गच्छे श्री कुं० भ० श्री पद्मनंदी तत्पट्टे श्री श्री शुभचंद्र तस्य भ्राता जगत्रय विख्यात मुनि श्री सकलकीर्ति उप'देशात् हुबड ज्ञातीय ठा० नरवद भार्या वला तयोः पुत्रा ठा देपाल अर्जुन भीमा कृपा चासण चांपा काह्वा श्री आदीनाथ प्रतिमेयं ।” पद्मावतीकी धातुकी प्रतिमा । “सं० १३०४ वर्षे चैत्र सुदी ८ खौ सूरत तीर्थे वास्तव्य हुबड ब्यानां आल्हा रान ठका जूरा गत सेगण राजी धार प्रसादी कर्तव्या । " पार्श्वनाथकी प्रतिमा | "" " सं० १३८० वर्षे महा सुदी १२ खौ श्रीमूल संघे व्याप्रेरवालाज्वये साधु रतन सुत सोया भायी लक्ष्मी प्रणमि तम् तत् । चोपडाका मंदीरकी प्राचीन प्रतिमा । पार्श्वनाथ - सं० १९६० श्री मूलसंघे भट्टारक श्री शुभचंद्र दो० सिंघराज | " पद्मावतीकी प्रतिमा - सं० १२३५ की है । गुजराती मंदिरकी प्राचीन प्रतिमाएं | रत्नत्रयकी धातुकी प्रतिमा । " सं० १५१८ वर्षे श्रीमूलसंघे आचार्य श्रीविद्यानंदी गुरोरुपदेशात् हुबड वंशे दो साइया भार्या अहीवदे तयोः पुत्राः हुया बिम्बभज आस आवा प्रणमति । " चौवीसी धातुकी । “सं० १४९९ बर्षे वै० वदी २ सोमे श्री मूलसंघे सरस्वतिगच्छे For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] अध्याय दूसरा । मुनि देवेंद्रकीर्ति तशिष्य श्री विद्यानंदीदेवा रुपदेशात् श्री हुबड वंश शाह खेता भार्या रुड़ी तयोः पुत्र शा राजा भार्या गौरी द्वितीय गणी तयोः तु० अदा वदा राजा भ्रात्री रुपाणा भार्या अणसु तयों पुत्रौ सदा मलीदास एतेषां मध्ये राजा भग्नी राणी श्रेया चतुर्किशतिका करापिता।" पाषाणकी चौवीसी प्रतिमा । "संवत Z७५ माघ वदी ५ श्रीदोशी लाड हेत्र हुलाका माना दुतीय प्रणमंति।" यह प्रतिमा बहुत प्राचीन मालूम पडती है। संवतका निश्चय नहीं हो सकता तंवतके अंक तीनठी हैं । धातुकी प्रतिमा । "सं० १४२९ वर्षे श्रीमूलसंधे श्री स० गच्छे श्री विद्यानंदी गुरूपदेशात् सिंधपुरा ज्ञातिय श्रेष्ठी पासा भार्या ऐभू पुत्र दामोदर सानवाल श्रीपति श्री आदिनाथ कारापिता ।" आदिनाथ स्वामीकी धातुकी प्रतिमा । “सं० १३८० वर्ष वैशाख सुदी १२ सनौ श्री प्रवरसेन देव उपदेशेन सं० खंडी बाला देव साखे एषज सुत धीजासा माकौसा तत्परिदारण प्रणमति ।" सिद्धयंत्र । "सं० १५०४ वर्षे फाल्गुण सुदी ११ गुरौ श्री गांधार वेला कुले श्री आदिश्वर जिनालये श्री मूल सं० ब० स० गच्छे श्री कु० श्री पद्मनंदी देवा तत्पट्टे श्री सकलकीर्ति देवा तत्शिष्य श्री भुवनकीर्तिदेवन एनेदं श्री सिद्ध........श्री हमडज्ञातीय श्री सुग्राम भार्याहणि जंत्र नित्यं प्रणमति ।" For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ५५ नंदीश्वरकी प्राचीन प्रतिमा । “श्री मूलसंघे भारतीय गच्छाधिप पद्मनंदी शिष्य श्री देवेंद्रकीर्ति नाम्ना श्री विद्यानंदी सच्छष्यः २ श्री संवत चतुर्दश ख्यातै नवतिर्नव संजुता वैशाख कृष्ण पक्षे च दुतीयापि शुभे दिने यो मदविख्यातमते हुबडवंशे जनाधिरवंतशे सुवीयमाल देवा विजयदेवी भवेजाया पुत्राः अजनि भार्या खेतोदा दाख्यो धरणि तले भार्या हांसलदेवी तीतः जाताः त्रया सुता ४ प्रथम साईयो जाता लीलादे भा० गुणवति भार्या भीम मुजदोषाना सद् राजौ तत्सुतौ जातौ द्वितीयः सहदेवाख्यो भार्या मेत्त सुत्तो सुबीर गंगादे या रागी संग तृतीयो निसाये तयोः पुत्रौं ६ जुठानी भार्या सवीरा सुत भक्तौ दे नेर्चा रम्यते मध्ये पापकर्म क्षयार्थ श्रीस्त्रीष्ठं बिम्बं हंसलादं अमदादा भार्या हासंवदे तयोः पुत्री अमकसात्र प्रणमति ।" इस मंदिर में सफेद पाषाणकी और धातुकी कई कायोत्सर्ग प्रतिमाय हैं । जो अतिप्राचीन होनेके कारण ऊपर के लेख पढ़े नहीं जाते । और भी इस मंदिर में एक सुवण अक्षरोंका लाल कागज़ोंपर लिखा श्रीतत्त्वार्थ सूत्र है जिसमें सुनहरी स्याहीसे व्याख्यान करते हुए एक भट्टारकका चित्र है और उसके चारों ओर चौवीस तीर्थंकरका चित्र है । पास ही कुछ श्रोतागण भी बैठे हुए हैं । जो कि वि० सं० १५२६ में मूलसंघी भट्टारक श्री विद्यानंदिके उपदेशसे श्री राहुलस्याना .... विकरमीणीसाने लिखवाया था । सिंहपुरा ज्ञातिका वर्णन । सूरतनगर में झांपाबाजार में सेठ प्रभुदास पानाचंदके यहां एक चैत्यालय है वहां एक पद्मावती देवीकी मूर्ति है जिसपर यह लेख है" सं० १७२२ जेठ सुदी २ मूलसंधे भट्टारक श्री मेरुचंद पट्टे साह For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] अध्याय दूसरा । श्री सिंहपुराज्ञातीय प्रेम जीवा भाई सुत भट्टारक श्री महाचंद्र शिष्य त्र० जयसागर प्रणमति " इस लेखमें सिंहपुरा जातिका वर्णन आया है। इसकी दन्तकथा सूरत में यह प्रसिद्ध है कि इस सिंहपुरा जातिका एक दीवान देहलीकी सल्तनत में था । वहां बादशाहसे कुछ अनबन होनेके कारण वह कुटुम्बसहित खंभातके नबाबके यहां आकर रहा। फिर सुरत, महुआ, व्यारा तथा बलसारमें रहा । सूरत जिलेमें अब भी इस जातिके १५ घर हैं । मुख्य सेठ प्रेमचंद हरगोविन्दभाई देवचंद मोतीरूपावाला सूरत है । परन्तु वे सब घर नरसिंहपुरा जाति से सम्बन्ध करते हैं। क्योंकि सिंहपुरा जातिके और घर इधर नहीं रहे। इस लिये संवत् १९०४ में सिंहपुरा और नरसिंहपुरा दोनों जातियां मिल गई । यहां पर यह कह देना उचित होगा कि समयसमयपर जब जातियां छोटी रह गई तब वे एक दूसरे में मिलती भी गई हैं ऐसा प्रमाण मिलता है । ऐसी दशामें यदि दिगम्बर जैन धर्म पालनेवाली सर्व शुद्ध भिन्न २ जातियां परस्पर खानपान और बेटी व्यवहार करें तो छोटी जातियों के घरोंका नाश न हो। और क्षेत्र विशाल होने से योग्य सम्बन्ध प्रत्येकको प्राप्त हो जावे | इस समय यहां दिगम्बर जैनियोंमें मुख्य सेठ कालीदास वखतचंद हैं जो दशाहुंबड़ हैं। ये ही पांच गोटोंके सेठ कहलाते हैं । वीसाहुमड़ मंत्रेश्वर गोत्री परोपकार - कार्य्यमें लीन सेठ मूलचंद किस नदासजी कापड़िया हैं जो 'दिगम्बर जैन ' पत्रके सम्पादक 'जैन मित्र' के प्रकाशक व 'जैनविजय' प्रेसके स्वामी हैं - नवापुरामें ? जैन पाठशाला व १ फुलकौर जैन कन्याशाला है । धर्मशाला चंदावाड़ी For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ५७ है, जहां परदेशी यात्री ठहरते हैं। नवापुरामें फुलवाड़ी नामक दशा हुँबड़ोंकी वाड़ी भी है। ऊपर दि० जैनियोंकी कुछ स्थितिका जो वर्णन किया गया है उससे पाठकोंको मालूम होगा कि सूरत नगरमें दि० जैन समाजका बहुत बड़ा प्रभाव था। वर्तमानमें इस सूरत शहरकी चौहद्दी इस प्रकार है-उत्तरमें वर्तमानमें सरतकी कतारगाम, पूर्वमें रेलवेकी सडक, दक्षिणमें ऊधनाके मजूरोंकी जमीन स्थिति। तथा पश्चिममें ताप्ती नदी है। पौने दो मील लम्बा सूरत शहर वसा है। यहां रेशम कीनखाब और जरीका काम अच्छा होता है । लकड़ी, चंदन व हाथीदांतपर सुन्दर कढ़ावका काम होता है। गुलामबावा मिल, पीपल्स मिल और स्वदेशी मिल सूत और कपड़े बनानेकी है। देशी कागज़ बनानेकी जमू मिया कागजीकी मिल है। इसके सिवाय कई कातनेके जीन व बांधनेके प्रेस चावलकी मिले व वरफ व सोडावाटर बनानेके कारखाने हैं। मीनाकारी व जवाहरातका जड़ावकाम भी अच्छा होता है। सूरतमें प्रसिद्ध मुहल्ले इस भांति हैं१-बेगमपुरा, बादशाह औरंगजेबकी बहन सूरतमें रही थी उसके नामसे बसा हुआ है इसमें नवावी महल, स्वदेशी मिल देखने योग्य है। २-सलाबतपुरा, सिलावतखाने बसाया यहां ईखदाव मुहम्मदी बाग है। For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८] अध्याय दूसरा। ३-नवापुरा-यहां झांपाबाजार कापड़ बाजार, दि० जैन मंदिर, सेठ माणिकचंदकी पुत्रीके नामसे फुलकौर कन्याशाला व दि० जैन पाठशाला है। दि० जैनियोंकी वस्ती ज्यादा है। यहां गोकुल अष्टमीका मेला होता है । ४-इंद्रपुरा-इंद्र नामके अनावला ब्राह्मणने बसाया। ५-रुस्तमपुरा-अंग्रेजोंके दलाल रुस्तमजीने बसाया। यहां रुस्तम बाग, कबीरका मंदिर व मारकट है। ६-सगरामपुरा-सिवराम नामके अनावेल ब्राह्मणने बसाया। यहां नवसारी बाज़ार, व रोकड़िया हनुमान मशहुर है। तथा उसीका मेला भरता है। ७-सामपुरा-सामजी नामके अनावेल ब्राह्मणने बसाया। ८-रुद्रपुरा-रुद्र नामके अनावेल ब्राह्मणने बसाया। ९-रहमतपुरा-रहमतखाने बसाया । १०-खंडेरावपुरा-इसको खंडेराव मराठाने बसाया। यहां गणपती चौथका मेला भरता है । ११-नानपुरा-यहांपर घलंदों (पुर्तगालों)ने कोठी की थी। प्रसीद्ध स्थान-जहांगीर बंदर या वलंदा बन्दर, प्रिन्सेस बाग, कोर्ट, जेल, सार्वजनिक हाईस्कूल । १२-घास्तीपुरा-सुरतके गयासुद्दीन नवाबके नामसे प्रसिद्ध है। यहां आरमीनियन कबरिस्थान है। १३-सैय्यदपुरा-सैय्यद एद्रुसके नामसे । १४-रामपुरा-रामभाई नामके ब्राह्मणने बसाया। यहां अर्देसरः For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [ ५९ कोटवालका बंगला, अनाथबालाश्रम, अशक्ताश्रम, प्रसिद्ध स्थान है। १५-रुघनाथपुरा-रुघनाथ ब्राह्मणने बसाया । १६-हरिपुरा-हरि ब्राह्मणने बसाया। यहां प्रेमचंद रायचंद श्वे. __जैन कन्याशाला, भवानी बड़, चारखानाका चकला मशहूर है। १७-महीधरपुरा-महीधर ब्राह्मणने बसाया । १८-हैदरपुरा-हैदरखाने बसाया। १९-मंचरपुरा-मंचेरजी पासींने बसाया। यहां दिल्ली दरबाजा है। २० कनपीठ-यहां पहले अनाजका मोटा बाजार था । अब भी अनेक दूकाने ऊंच कौमकी हैं। यहां यूनियन हाईस्कूल,. बेंक व लीमड़ा चौक मशहूर जगह हैं। २१-रहिया सोनीका फलिया (केलापीठ)-रहिया सुनारके नामसे मशहूर है। ऊंच कौम रहते हैं। यहां रामजी, बालाजी, अंबाजी आदिके हिंदू मंदिर प्रसिद्ध हैं। २२-वाड़ी फलिया-यहां संस्कृत पाठशाला है। २३--संघाड़ियावाड़-यहां गुलाबदास भाईदास कन्याशाला है । २४-गोपीपुरा-प्रसिद्ध गोपीने बसाया । यहां श्वे० जैनियोंकी बहुत वस्ती है। यहां मगनभाई प्रतापचंद फ्री लाईबरी,. प्रेमचंद रायचंद धर्मशाला,श्वे. जैन मंदिरों व गोविंदनीका मंदिर प्रसिद्ध हैं। दि० जैन मंदिरजी भी है। २५-खपाटिया चकला-यहां दि० जैनियोंकी वस्ती भी है। सेठ माणिकचंदजीके घरानेकी चंदावाड़ी दि. जैन धर्मशाला, २ दि० जैन मंदिर, रायचंद दीपचंद कन्याशाला, वनिताविश्राम For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दूसरा । है। 'जैनविजय ' प्रेस तथा " दि० जैन ", 'जैन मित्र' पत्रोंका दफ्तर है। २६-केलापीठ-यहां कापड़ बाजार, व मोटा मंदिर है। २७–भागातलाव-यहां स्त्री छोकड़ोंको अस्पताल, पारेख हुन्नरशाला, फिरंगीका कबरिस्तान है। २८-बड़ेखांका चकला–यहा काजीकी मसजिद व मीनारा तथा पशु दवाखाना है। २९-आसुरबेगका चकला-यहाँ जूना दर्वार, मारकेट व जैन पाठशाला है। . ३०-चौक बाजार-यहां मोटी अस्पताल, विक्टोरिया बाग, सुवा वड़खाना, बम्बई बैंक, किला, गवर्नमेंट हाईस्कूल, श्वे. जैन नगिनचंद हॉल, होपपुल, बकसीका दरिया महल प्रसिद्ध है। शनिवारका हाटका मेला भरता है। ३१-मुल्लांचकला-यहां फ्रेज़रका दरियामहल, म्यूनिसिपल हाल, अंग्रेजी कोठी, मिशन हाईस्कूल, चिंतामणि व पाताली हरमानके मंदिर, पारसी आफैनेज, मिरज़ास्वामीकी मसीद, चुड़गरकी मीनारें प्रसिद्ध हैं। ३२-माछलीपीठ-यहां डाक्टर बहरामजीका धर्मादा दवाखाना है। ३३-रानीतलाव-गोपीकी स्त्री द्वारा एक तालाव बनाया गया था उससे यह नाम पड़ा है। शहरमें म्यूनिसिपलटीकी २९ शालाएँ हैं जिनमें ४ गुजराती कन्याशाला, १ उर्दू कन्याशाला, दो अत्यंन शाला, छ: उर्दू शाला, १६ बालकोंकी गुजराती शाला हैं । इसके सिवाय तीन जैनियोंकी, दो पारसियोंकी व ४ मिशनकी कन्याशालाएं हैं। गुजराती पाठशाला For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [६१ ३ मिशनकी, ३ पारसियोंकी, १ जैनोंकी है । ४ फ्री रात्रिशालाएं है। एक संस्कृत शाला, १ पारख हुन्नरशाला तथा ५-६ वोहरोंके मदरसे हैं । अंग्रेजी हाईस्कूल ४ हैं, मिडलस्कूल ३ हैं, पार्सी लड़कियोंकी एक इंग्रेजी स्कूल व मिशन जनानास्कूल व १ फ्री अंग्रेजी रात्रिशाला है। यहां फ्री लायब्रेरी ११ व १२ हैं जिसमें जैनियोंकी मगनभाई प्रतापचंद जैन लायब्रेरी है । एंद्रुस लायब्रेरी सबसे बड़ी है। वर्तमानमें सूरत शहर साधारण व्यापारका स्थान है। पाठकोंको मालूम होना चाहिये कि यही वह नगर है जहां इस पुस्तकके चरित्रनायक सेठ माणिकचन्द्रजीने जन्म धारण किया था । जिस मुहल्लेमें उक्त सेठका जन्म हुआ था उसको अब खपाटिया चकला कहते हैं। जिस साधारण मकानमें उस शरीरने माताके उदरसे अवतार लिया था वह मकान चंदावाड़ी धर्मशालाके. पास जैन मंदिरके बगलमें एक मंजलका छोटासा घर है जिसका अब भी दर्शन होता है। पाठकोंके ज्ञानके लिये हम उसका चित्र यहांपर दिये देते हैं जिससे मालूम होगा कि जिस आत्माने अपने जीवनमें महापरोपकार व अपनी कीर्ति विस्तारी वह पुरुष एक बहुत ही साधारण स्थितिवाले घरमें जन्मे थे। जो अपनी निम्न दशासे ऊपरको चढ़ता है वही पुरुषार्थ और पुण्यात्मा मनुष्य है। जिसने जन्म लेकर अपने वंशकी उन्नति की उसीका जीना सफल है। जो योंही पैदा होकर जीता है वह मरेके समान है । कहा भी है. परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते । स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम् ।। . For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२] अध्याय तीसरा । अध्याय तीसरा। उच्चकुलमें जन्म । जनियोंमें एक प्रसिद्ध जाति हुंबड़ है जिसका मूल निवासस्थान बागड़ या मेवाड़ प्रान्त है हंबड जातिका वर्णन । वहांसे ही इस जातिके लोग निकलकर अर अन्यस्थानों में फैले हैं । हुंबड़ जातिमें अधिकतर दिगम्बराम्नायके माननेवाले व कुछ श्वेताम्बराम्नायी भी हैं । इस जातिकी स्थापनाका क्या इतिहास है उसका कोई प्रामाणिक पता नहीं चलता है। तो भी इस सम्बन्धमें भाई जवाहरलाल गुमानजी वैद्य परतापगढ़ राज्यने जो छानवीन करके पता लगाया है व हमें एक निबन्ध दिया है, उसके आधारपर यह प्रकाशित किया जाता है कि यह जैनियोंकी ८४ जातियोंमेंसे ५५ वीं जाति है । इसको स्थापित करनेवाले विनयसेन आचार्यके शिष्य कुमारसेन हुए हैं। इन्होंने सबत् ८०० के अनुमान बागड़ देशमें इस जातिको स्थापित किया है । इसके प्रमाणमें गुमानजीने वि० सं० ९०९ में श्रीदेवसेनाचार्य रचित प्राकृत दर्शनसारकी गाथाएँ दी हैं जो निम्न प्रकार हैं:गाथा-सिरिवीरसेणसीसो जिणसेणो सयलसच्छविण्णाणी । सिरिपउमणदिपच्छा चउसंगसमुद्धरणधीरो ॥ ३० ॥ भावार्थ-श्रीवीरसेनके शिष्य श्रीजिनसेन सकल शास्त्रोंके ज्ञाता और श्रीपद्मनंदिके पीछे चारों संघोंकी रक्षामें धीर हुए ॥३०॥ For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्चकुल में जन्म | गाथा - तस्सय सीसो गुणवं, गुणभद्दो दिवणाण परिपुष्णो । पक्खोववास मंडिय महोतंवो भावलिंगो य ॥ ३१ ॥ भावार्थ- उनके शिष्य गुणवान श्रीगुणभद्रजी हुए जो दिव्य ज्ञानसे परिपूर्ण, पक्षोपवासके कर्ता, महातपी और भावलिंगी थे ॥३१॥ गाथा - तेण पुणोवि य मुच्चं णेऊण मुणिस्स विणयसेणस्स । सिद्धंतं घोसित्ता सयं गयं सग्गलोयस्स ॥ ३२ ॥ भावार्थ - इन्होंने श्री विनकसेन मुनिको सिद्धांत शास्त्रोंका उपदेशदिया । आप स्वर्गलोक गए । [ ६३ गाथा - आसी कुमारसेणो णदियड़े विषयसेण दिरकयओ । सणास भंजणेण ये अगहिय पुण दिरकओ जाओ ॥३३॥ भावार्थ - विनयसेनका शिष्य कुमारसेन नदीयड़ ग्राममें हुआ उसने सन्यास या समाधिमरणको भंग किया फिरसे दीक्षा दी सो ग्रहण न की ॥ ३३ ॥ गाथा - परिवज्जऊण पिच्छं चमरं णोऊण मोहक लिदेण । उम्मेगं संकलियं वागड़ बिसएसु सव्र्व्वसु ॥३४॥ भावार्थ - उसने मोरकी पछी छोड़कर चमरीकी पीछी ग्रहण की तथा मोहके वशमें होकर सर्व ही बागड़ देशमें प्राचीन मार्गसे रहित उन्मार्गकी प्रवृत्ति की । गाथा - इच्छीणं पुण दिक्खा खुल्लय लोयस् वीर चीरयत्तं । कक्कसकेसग्गहणं छठ्ठे च गुणइदं णाम ॥ ३५ ॥ भावार्थ - स्त्रीको पुनः दीक्षा, क्षुल्लकों को वीरचर्य्या, चमके कर्कस केशोंका ग्रहण बताया व छठे गुणस्थानका विपरीत स्वरूप कहा ॥ ३५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vvvvvwww ६४ ] अध्याय तीसरा । गाथा-आयम सच्छ पुराणं पायच्छित्तं च अण्णहा किंपि । विरइत्ता मिच्छत्तं पविडियं मूढ़ लोएसु ॥ ३६ ॥ भावार्थ-आगम शास्त्र पुराण व प्रायश्चित्तको और प्रकार कहा । इस तरह मूढ़ लोगोंमें मिथ्या प्रवृत्ति चलाई ॥ ३६ ।। गाथा-सो सवण संघवज्झो कुमारसेणो हु समयमिच्छत्तो । चत्तोवसमा रूधो कहो संघं परूवेदि ॥ ३७ ॥ भावार्थ-सो मुनि संघसे बाहर कुमारसेनने आगममें मिथ्यात व उपशमभावरहित रौद्र होकर काष्ठासंघकी प्रवृत्ति की ॥३७॥ गाथा-सत्तसए तेवण्णे विक्कमरायस्स मरण पत्तस्स । णंदियडे वरगामे कठो संघो मुणेयव्वे ॥ ३८ ॥ भावार्थ-विक्रमराजाकी मृत्युके ७९३ वर्ष बाद नंदीतट ग्राममें काष्ठसंघ हुआ ऐसा जानना चाहिये। बागड़ देशमें काष्ठसंघकी प्रवृत्ति अधिक है और बागड़की तीन जातियां अर्थात् नागदा, नरसिंहपुरा और हुबड़ काष्ठसंबके नामसे बोली जाती हैं। हुबड़ोंमें जो मूलसंधी हैं वे बहुत थोड़े हैं। बागड़ देशमें नंदीतट कोई ग्राम अब नहीं है परन्तु मालूम होता है कि नंदिपड़का अपभ्रश नागढूद हुआ और वह कालान्तरमें नागदा हुआ। ८४ जातियोंके सिलसिले में ५४ वीं जाति नागदूह (नागदा) है। जो लोग नंदीतटके निवासी थे वह नागदा जाति हुई तथा इसी मेवाड़ वागड़में नरसिंहपुर पट्टन है वहांके निवासी नरसींहपुरा जाति कहलाई । शेष जो लोग कुमारसेनके शिष्य हुए वे हुमड़ कहलाए। कालांतरमें कोई मूलसंघको मानने लगे। काष्ठासंघकी उत्पत्ति लोहाचार्यजीसे भी कही जाती है। ऐसा For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुल में जन्म | [ ६५ मालूम होता है कि अग्रोहेके अग्रवालोंको जैनी करते हुए जो संघ स्थापित किया वह उनके समय में काष्ठासंघ कहलाया । इधर वागड़ मेवाड़देश में कुमारसेनने मूलसंघसे कुछ अनमिलती प्रवृत्ति चलाई इससे यह भी काष्ठासंघ कहलाया । श्वेताम्बरी लोगों में 'हुवल वार्णकस्य आसीसो' नामकी एक पुस्तक है उसमें हूमडों की उत्पत्तिमें यह लेख है कि - माड़वगढ़ देश मालवा में एक भट्टारक विजयसेनसरि थे उन्होंने अपने शिष्य धनेश्वरसूरि को अपनी वृद्धावस्था जान आचार्यपद दिया । एक दिन धनेश्वरसूरि सभाको व्याख्यान दे रहे थे, तब उनके गुरु आए । कथा - रस में लीन होनेके कारण गुरूको आया न जान किसीने विनय न की जिससे विजयसेनका चित्त खेदिन हुआ सो एक दिन धनेश्वरको बाहर रवाना कर दिया । धनेश्वरसूरी सिद्धपूर पाटन पहुंचे वहां चमत्कार दिखा कर भूपतिसिंह आदि १८००० क्षत्रियों को सेना में ले जाकर संवत ८२० में श्रावक बनाये और उस जातिकी नाम हुंबल रक्खा इस अहंकारसे कि मैंने अपने उपदेश से जैनी किया । यह नाम बिगडकर हूमड हो गया । यह यथन इस कारण ठीक नहीं जचता है कि विजयसेन नाम श्वेताम्बर आचार्यका न होकर दिगम्बर आचार्यका होना चाहिये क्योंकि सेनगण दिगम्बरियों में है । यह विजयसेन नहीं किन्तु विनयसेन हैं, जिनके शिष्य कुमारसेनने हुमड़ ज्ञाति स्थापित की । सं० ८२० व ७८३ करीब २ मिलते हुए हैं । धनेश्वरसूरि बिड़ालसेनके शिष्य नहीं हुए किन्तु यह वल्लभीपुरमें हुए, वहाँ शिलादित्य राजाकी प्रेरणासे सेश्रुंजय माहात्म्य रचा है तथा इनका For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] अध्याय तीसरा। काल भी भिन्न २ है। इस इमड जातिका मुख्य स्थान बागड देशमें होनेसे तथा वहाँ उस जातिके अधिक दिगम्बराम्नायी प्राप्त होनेसे यह बात अधिकतर ध्यानमें जमती है कि कुमारसेनने हुमड़ ज्ञातिकी स्थापना की हो । हुमड़ जातिकी स्थापनाके सम्बन्धमें इतना ही लिखकर यह कहना पड़ता है कि यह जाति भी बहुत उच्च और प्रवीण हुई है । इस इमड़ जातिके अंदर २० गोत्र कहे जाते हैं परन्तु १८ के नाम प्रचलित हैं वह इस प्रकार हैं हमडके १८ गोत्र। १ खेरजु . ७ भद्रेश्वर १३ सोमेश्वर २ कमलेश्वर ८ गंगेश्वर १४ राजीवानो ३ काकडेश्वरं ९ विश्वेश्वर १५ ललितेश्वर ४ उत्तरेश्वर १० संखेश्वर १६ कासवेश्वर ५ मंत्रेश्वर ११ आंबेश्वर १७ बुद्धेश्वर ६ भीमेश्वर १२ चाचनेश्वर १८ संघेश्वर ये नाम कैसे प्रसिद्ध हुए इसका हमारे पास कोई इतिहास नहीं है। हुमड़ जातिमें दो भेद पाए जाते हैं-एक वीसा हूमड, दूसरे दसा हमड। ये दो भिन्न भेद कैसे हुए इसका भी कोई विश्वास योग्य इतिहास नहीं मिलता है। परंतु यह दोनोंही भेदके लोग बहुत अधिक संख्यामें मिलते हैं, कहीं २ वीसोंसे दसा हुमड बहुत ज्यादा हैं। तथा दोनोंही भेदके लोगोंके बनवाए हुए व प्रतिष्ठा कराए हुए जिन मंदिर पाए जाते हैं व दोनोंही समान भावसे श्रीजिन प्रतिबिम्बोंकी प्रछाल व पूजन करते हैं। इस सम्बन्ध में एक दूसरेसे कोई For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [६७ घृणा नहीं है। इन दोनों भेदोंमें खानपान भी सर्व तरहसे होता है। फर्क केवल परस्पर लग्न न होनेका है। बड़ौधामें वाड़ी मुहल्लेके दिगम्बर जैन मंदिरके प्रतिबिम्बोंसे पता लगता है कि संवत १६०४ में काष्ठासंधी भट्टारक विद्याभूषणके उपदेशसे हुंबड़ ज्ञातीय अनंतमतीने श्री पार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिष्ठा कराई । लेख यह है "सं० १६०४ वर्षे वैशाख वदी ११ शुक्रे काष्ठासंघे नंदीतट गच्छे विद्यागणे भट्टारक श्री रामसेनान्वये भ० श्री विशालकीर्ति तत्पट्टे भट्टारक श्री विश्वसेन तत्पट्टे भ० श्री विद्याभूषणेन प्रतिष्ठितं-हूंबड ज्ञातीय गृहीत दीक्षा बाई अनंतमती नित्यं प्रणमति । दूसरे भी इसी मंदिरकी एक प्रतिमाके लेखसे काष्ठासंधी हूंबड़ ज्ञातिका पता लगता है। लेख यह है:___ "सं० १६८६ वर्षे चैत्र वदी ३ भौमे भ० श्री रत्रभूषण भ० जयकीर्ति हूंबड़ ज्ञातीय....पार्श्वनाथं प्रणमति" इस लेखके यह भट्टारक काष्ठासंधी हैं इसके प्रमाणमें एक इसी मंदिरकी दूसरी प्रतिमाका लेख है "श्री काष्ठासंघे सं० १६८६...भ....भूषण भ० जयकीर्ति नरसिंहपुरा ज्ञातीय..." इस लेखसे नरसिंहपुरा जातिका काष्ठासंघी होना भी सिद्ध होता है। नरसिंहपुरा जातिके काष्ठासंघी होनेके प्रमाणमें इसी मंदिरकी एक और प्रतिमाका यह लेख हैं " संवत १६५८ मा. सु. ५ दि० श्री काष्ठासंघे भ० श्री विश्वभूषण गुरूपदेशात् नरसिंहपुरा ज्ञातीय भालण होड़ा गोत्रे सा सिंहदे भा० ब्रह्मयोजिता...." For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८] अध्याय तीसरा । हुमड ज्ञातिका मुख्य केन्द्रस्थान परताबगढ़े राज्य है, उसमें परताबगढके इस जातिके बहुत प्रतिष्ठित दिवान आदि हो ___ गए हैं व अब भी कई उच्च राज्य कर्मचारी हूमड। हैं । परतावगढ़ शहरसे ८ मील देवगढ एक पुरानी वस्ती है। इसको बीकाजी महाराजने सं० १६१० में बसाया था। कई पीढ़ियोंतक यह बड़ाभारी नगर रहा था जिसका प्रमाण यह है कि यहाँ अमृतसागर, केसरविलास, परतापवावड़ी आदि कई मनोहर वापिकाएं हैं व पुराने मकान है। यहाँ दिगम्बर जैनियोंका एक बड़ा आलीशान मंदिर है जिसकी प्रतिष्ठा सं० १७७४ में हुई थीं उस समय हुमड़ोंके यहां ८०० घर थे। इस मंदिरके मूलनायक श्री मल्लिनाथ स्वामी है। मंदिरके प्रतिष्ठाकारक वर्षावत रिषभदासके पुत्र वर्द्धमानजी हुमड़ हुए है । यहाँ एक शिलालेख है उससे पता लगता हैं कि मूलसंवी भट्टारक रत्नचंद्रके उपदेशसे हुमड़ ज्ञातीय मंत्रेश्वर गोत्रधारी संघवी वर्षावतके पुत्र वर्द्धमान आदिकोंने प्रतिष्ठा कराई। हमारे चरित्रनायकका जन्म जिस मंत्रश्वर गोत्रमें हुआ है उसी में यह वर्षांवतनी भी थे। सारांश नकल लेख । "ऊ. स्वस्ति.. विक्रमादित्य समयातीत सं० १७७४ वर्षे शाके १६३९ प्रवर्तमाने माह सुदी १३ रवि श्री देवगढ़ नगर महाराजाधिराज महारावत श्री पृथवीसिंहजी विजयी राज्ये कुंवर श्री पहाड़सिंघ विराजमाने श्री मूलसंधे बलात्कारगणे श्री कुंद० भ० श्रीरत्नचंद्र त. भ० श्री हर्षचंद त० भ० श्रीशुभचंद्र त० भ० श्री अमरचंद्र त. भ० श्री रत्नचंद्र गुरूपदेशात् श्रीमत् हूंबड ज्ञातीय मंत्रीश्वर गोत्रे For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [६९ संघवी बर्षावत भार्या नानी रुक्ष्मणी तयोः पुत्र सं० वर्द्धमान भ्राता उदैभाण साह इंदर खेमजीसा चंद्रमानजी गोविंदजी वल्लमजी, श्री मल्लिनाथप्रासाद प्रतिष्ठा महामहोत्सवैः सह कराविता । बर्द्धमानजीके वंशमें किशनजी अबसे २५ वर्ष पहले हो गए हैं उनके दो महल अब भी यहाँ मौजूद हैं एकमें राज्यका डॉक्टर रहता है। इस बड़े मंदिरजीमें एक वेदी श्री आदिनाथ स्वामीकी हैं इसकी प्रतिष्ठा हूंबड ज्ञातीय अगस्त्य गोत्रे पाड़लिया धारी शाहजी रघुनाथजीने सं० १८३८में कराई थी उस समय यहा सामंतसिंहजीका राज्य था। इनके वंशमें शाह हीरालाल जागीरदार अब भी मौजूद हैं। इसी बड़े मंदिरजीमें एक सहस्रकूट चैत्यालय है जिसकी प्रतिष्ठा पाड़लिया गोत्र धारी फौजके कामदार राघोजी वख्सीने कराई थी। इनके वंशमें अब रामलाल फूलचंद बम्बईमें एक धनिक व प्रतिष्ठित व्यापारी है । देवगढ़में हुमड़ जैनियोंका इतना जोर था कि राज्यकी ओरसे यह आज्ञा हो गई थी "कि दिगम्बरियोंके १० दिन दशलाक्षणी व श्वेताम्बरियोंके ( दिन पर्यसन व सालमें २४ चौदस, २४ आठम व वर्षके पहले दीतवारके दीन कोई पशुघात न करे, न मदिरा बेची जाय ।" इस भावार्थका शिला लेख सं० १७७४ वैसाख सुदी १३ का श्रीपृथ्वीसिंहजी महाराजका देवगढ़के खास चौक बाजार में अब भी लगा हुआ है। ___ अब यहाँ दिगम्बर हुमडोंके केवल ९ घर रह गए हैं क्योंकि अब इसकी वसती उजाड़ है। एक ग्रामके समान है। मनुष्य संख्या २० है । मुखिया भाई कानजी कून्पा, मगनलाल गांधी, गेबीलाल दोसी और बर्द्धमान खापरा है। For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] अध्याय तीसरा । परताबगढ़ शहरमें ८५०० कुल वस्ती है । जिसमें १५०० जैनी हैं इनमें १००० दिग०, ३०० श्वे०, और २०० स्थानकवासी हैं । इन दिगम्बरियोंमें थोडेसे नरसिंहपुरा जातिके हैं जिनका १ जूदा मंदिर है शेष सर्व हूमड़ हैं। इनके ३ मंदिर बड़े २ आलीशान और सुन्दर हैं। पाइलिया गोत्रधारी संवत् १७००के अनुमान जीवराजजी कामदार बड़े प्रसिद्ध हुए उनके बाद क्रमसे बर्दुवानजी, सूरजी, लाननी, कपूरजी, शिवजी, नवलचंदजी, जोधकरणजी प्रधान पदधारी हुए उनके पुत्र काननी परताबगढ़ राज्यकी ओरसे जोधपुरमें वकील हैं। जोधकरणजीके बड़े भाई जोधराजनी भी प्रधान हुए, उनके पोते एक मुन्नालाल है जो वर्तमान महाराज कुंवरके प्राइवेद सेक्रेटरी हैं। दूसरे पन्नालालजी है जो मंगरा जिले में हाकिम रह चुके हैं। इसी गोत्रमें सखारामजी प्रधान हुए हैं इनकी सन्तान शाहनी चम्पालाल हैं जो जातिमें मुखिया व कौंसिलमें काम करते हैं। इसी गोत्रमें लालजी प्रधान हुए हैं उनके वंशमें शाहजी रत्नलाल अब मौजूद हैं यह गोम्मटसार समयसार आदि जैन शास्त्रोंके अच्छे मरमी हैं। हमड़ ज्ञातिकी तलाटी अड़कमें शाह जड़ावचंदजी प्रधान हुए हैं इन्हींके वंशमें पंडित किशनलाल एक अच्छे जैन विद्वान थे जो हालहीमें स्वर्ग पधारे हैं। बंडी अड़कमें शाहजी शंकरलालनी प्रधान होगए हैं जिनके वंशमें पन्नालालजी आदि राज्यमें हेडक्लर्क हैं। " श्री गिरनारजी तीर्थमें दिगम्बर जैनियोंके प्रभावको विस्तारनेवाले बड़ी कस्तूरचंदजी एमड़ यहीं हो गए हैं। यह धनाढ्य, धर्मात्मा व शास्त्रोंके ज्ञाता भी थे । धर्मसे अत्यन्त प्रेम करते थे। प्रसिद्ध For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [७१ जैन विद्वान भागचंदजीकी संगति व वैय्यावृत्तिसे आपको बहुत लाभ होता था। इनके वंशमें बंडी मन्नालाल और हीरालाल विद्यमान है। सं० १९१२ में सेठ लालजी बंडीके खानदानके लोग सेठ कस्तूरचंदजी हीरालालजी आदिने गिरनार तीर्थके मंदिरोंका जीर्णाद्धार कराया तथा एक नवीन मंदिरकी स्थापनाकर उसकी प्रतिष्ठा सं० १९१५ में कराई। इस समय परताबगढ़में घीयावाला, रतनलालजी जुवा और साह कस्तूरचंदजी तलाटी हुमडोंमें मुखिया हैं। हूमड़ जातिके लोक बागड़से निकलकर कुछ मालवामें व कुछ बम्बई, शोलापुर और गुजरातमें आकर बसे हैं। . शोलापुरके इमड़ोंने ऐश्वर्यमें विशेष उन्नति की है। वहाँके प्रसिद्ध सेठ हरीभाई देवकरणने श्री मांगीशोलापुरमें हमड़ोंका तुंगी, सम्मेद शिखर, पालीताना आदि तीर्थो प्रभाव । पर मंदिर जीर्णोद्धारे व धर्मशाला आदिमें बहुत द्रव्य खर्च किया है तथा प्रत्येक धर्मकार्यमें दानार्थ अग्रमामी रहते हैं। इनके वंशके सेठ वालचंद, हीराचंद और फूलचंद तीनों भाई उदारचित्त हैं। इसी तरहं सेठ रावजी नानचंद, सेठ हीराचंद अमीचंद, सेठ सखाराम व हीराचंद नेमचंद, सेठ नाथा रंगजी गांधी है। इन्होंने भी श्री गजपंथा, तारंगा, गिरनार, पावागढ़ आदि तीर्थों पर श्री जिन मंदिर निर्मापण आदिमें बहुत द्रव्य खर्च किया है । सेठ हीराचंद नेमचंद विद्वान और शास्त्रके मरमी तथा जैन जातिके उत्थानमें मुख्य भाग लेनेवाले हैं । सेठ नाथा रंगंनी विद्यादान व शास्त्र प्रचारमें अति प्रेमी हैं। आपके वंशके सेठ For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] अध्याय तसिरा | गंगाराम, रामचंद्रजी आदिने शोलापुर में एक दिगम्बर जैन बोर्डिंग स्थापित किया है । सर्व हूमड़ों की ओर से शोलापुर में चतुर्विध दानशाला अनुमान ४००००) के व्याजसे व ५००००) के व्याजसे ऐलक पन्नालाल दि० जैन पाठशाला है । श्राविकाशाला भी है जिसकी सम्हाल श्रीमती कंकुबाई सुपुत्री सेठ हीराचंद नेमचंद करती है आपको धार्मिक ग्रंथोंका अच्छा मर्म है । शोलापुर के सेठोंने सन् १८९५ तक कहाँ २ प्रतिष्ठा कराई उसका वर्णन । सिद्धक्षेत्र १ सम्मेद शिखर २ चंपापुरी ३ पावापुरी ४ गिरनार ५ पालीताना ६ मांगीतुंगी ७ गजपंथ ८ तारंगा ९ कुंथलगिरि १० सिद्धवरकूट ११ पावागढ़ साल प्रतिष्ठा करानेवालोंके नाम १९३८ पदमसी निहालचंद तथा नानचंद खेमचंद १९३३ मोतीचंद प्रेमचंद तथा जोतीचंद नेमचंद | १९५० रामचंद सांकला । १९२६ खेमचंद उगरचंद, पदमसी निहालचंद तथा नेमचंद निहालचंद | १९५१ हरीभाई देवकरण तथा मोतीचंद परमचंद । १९१६ पानाचंद जोतीचंद तथा हरीभाई देवकरण । १९४४ वस्ता खुशाल । १९२३ हरिचंद, मोतीचंद, अभेचंद, जोतीचंद परमचंद | १९४७ हरिभाई देवकरण, पदमसी निहालचंद १९५१ मलुकचंद गणेश । १९४३ गौतमचंद नेमचंद | For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [७३ फलटनके एमडोंमें सेठ हीराचंद अमुलक एक वैरागी धर्मज्ञाता, ___ श्रद्धालु महात्मा हो गए हैं जिनके रचे हुए फलटनमें हमडोंकी भजनोंका बहुत प्रचार हैं। इसी फलटनके निवासी महिमा। हमड़ जातिमें उत्पन्न बाल ब्रह्मचारी बाबा दुली चंदजी हैं जिनकी अब १०० वर्षकी आयु है जिन्होंने आजन्म जिनवाणीकी सेवा की है। जैपुरके तेरापंथी बड़े मंदिर में एक बहुत बड़ा दर्शनीय सरस्वती भंडार एकत्र किया है बहुतसे ग्रंथोंकी विद्वानोंसे भाषा कराई है व अपने हाथसे नकल की है। आप दिनभर अब भी शास्त्रोंको व किसी रचनाको लिखा ही करते हैं। बहुतसे मंदिरोंकी प्रतिष्ठा कराई हैं। आप मंत्रशास्त्रके भी मरमी हैं। गुजरातमें हूमड़ोंका अधिक जोर ईडर तथा सुरतमें है । बागड़में वांसवाडाके रायबहादुर सेठ चंपालाल विजयचंदजी प्रसिद्ध, • राज्यमान्य और धनाढ्य हैं। बागड़ देशवालें हूमड़ें भी बहुत प्रसिद्ध हो गए हैं। श्री धुलेव केशरियाजीमें प्रायः बहुतसी दि० बागड देशमें हमड़। जैन प्रतिमाओंके प्रतिष्ठाकारक ये लोग हुए हैं। श्री ऋषभदेवके बड़े मंदिरजीके चारों ओर एक बड़ा भारी ऊंचा कंगूनेदार कोट है उसको सागवाड़ा निवासी इमड़ ज्ञातीय कमलेश्वर गोत्रीय दि० जैनी सेठ धनजी करणजीने संवत १८६३में बनवाया है ऐसा क्हापरके शिला लेखसे प्रगट है ( देखो नकल शिला लेख दि० जैन डाइरेक्टरी छपी सन् १९१४ सफा ४७३)। बागड़ देशके एक दूसरे कमलेश्वर गोत्रीय हूमड़ द्वारा संवत For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] अध्याय तसिरा । १७३४की प्रतिष्ठित प्रतिमा श्री सेजय पालीतानाके उस दिगंबर जैन छोटे मंदिरमें है जो पहाडपर है व जिसको अब श्वेताम्बरियोंने अपने कवजेमें कर लिया है उसके शिला लेखकी नकल यह है ___ " सं० १७३४ वर्षे मूलसंधे सरस्वति गच्छे बलात्कार गणे श्री कुंदकुंदाचार्याम्नाये भट्टारक सकलकीर्ति तत्प? श्री पद्मनन्दी · तत्प? भ० श्री देवेन्द्रकीर्ति तत्पट्टे भ० श्री क्षेमकीर्ति शुद्धाम्नाये वागडदेश शीतलवाड़ा नगरे हूमड़ ज्ञातीय लघसीरवाया कमलेश्वर-गोत्रे दोशी श्री सूरदास तथा सूरमद तयोः पुत्र दोसी सांगीता सरताण देतयोः पुत्रीः .... ............... (दि. जैन डाइ० सफा ८००) यह भट्टारक ईडर गादीके मालूम होते हैं। ईडर गादीके भट्टा- . रकोंकी नामावली द्वितीय अध्यायमें दी हैं उसके अनुसार पद्मनंदीसे क्षेमकीर्ति तक तीनों नाम मिलते हैं। सकलकीर्तिके पीछे रामकीर्ति तक नाम इस लेखमें नहीं हैं। केशरियाजी या ऋषभदेवजीका जो मंदिर घुलेव जिला उदयपुरमें है उसमें बड़े मंदिरके चारों ओर जो दालानोंमें वेदिया हैं उनमें दिगम्बर जैन मूर्तियां भट्टारकों द्वारा प्रतिष्ठित हैं-इनके कुछ संवत व भट्टारकके नाम इस भांति हैं सं० प्रतिष्ठाकारक भट्टारक सं० प्रतिष्ठाकारक भट्टारक १७४६ क्षेमकीर्ति १७३४ यशकीर्ति १७७३ देवेन्द्रकीर्ति १७६४ त्रिभुवनकीर्ति १७५३ सुरेन्द्रकीर्ति १७५४-सुरेन्द्रकीर्ति-यह प्रतिमा श्री ऋषभदेवकी श्याम वर्ण है। इस पर जो लेख है उससे प्रगट है कि धुलेवके सुरेन्द्रकीर्ति भट्टारक द्वारा हमड ज्ञातीय सेठ कानजीकी भार्याने प्रतिष्ठा कराई। . १७४६-श्री शांतिनाथ स्वामीकी-इसमें जो लेख है उसमें For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [ ७५ मूलसंघ सरस्वती गच्छ सकलकिर्ति, देवेन्द्रकीर्ति, पट्टे श्री.... कीर्तिद्वारा सूरतवासी हूमड ज्ञातीय विमलदास माणकजी नेमिदास आदि प्रतिष्ठा कराई । इससे भी सुरतके हमड़ों की धनाढ्यता व धर्मज्ञता झलकती है। १७६४ सुमतिकीर्ति १७६८ - श्री वासुपूज्यस्वामीकी - इसकी प्रतिष्ठा भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति द्वारा महुआ वासी हूमड जातीय साह दादा नानजीने कराई । गुजरात देशके श्री तारंगाजी सिद्धक्षेत्रपर एक चांद सूरजकी देहली है उसके भीतर जो शिला लेख है उससे विदित होता है कि उसे दिगम्बर जैन हूमड़ ज्ञातीय गांधी नरपति आदिने बनवाया था। जीर्णोद्धार कराया था। उस लेखकी नकल जो पढ़ी गई और जैनमित्र ता० २१ नव० १९०७ में छपी है सो यह हैं: " संवत १६२५ वर्षे पौष वदी ५ शुक्ले श्री मूलसंधे सरस्वती गच्छे बलात्कार गणे आचार्य कुन्दकुन्दाचार्य भट्टारक श्री शुभचंद्रस्तत्पट्टे भट्टारक श्री सुमतिकर्ति गुरूपदेशात् .... हूमड़ ज्ञातीय गांधी नरपति भार्या...... हूमड़ोंकी वस्ती | हूड़ोंकी वस्ती अर्थात् मनुष्यसंख्या दिगम्बर जैन डाइरेक्टरी छपी सन् १९१४ के अनुसार ( देखो सफा १४२० ) इस भांति है । बंगाल मध्य | राजपूताना गुजरात और कुल वीसा हूमड विहार प्रदेश और मालवा बम्बई आहाता X x ८४६ १७०९ दसा हूड ३ ४५ ४५ | १०६३९ १०६३९ | ७३९२ २,५६६ | १८०७९ कुल २०६३४ For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ammmmmmmm अध्याय तीसरा । वीसा हूमड़ोंकी विगत । राजपूताना व मालवामें ८४६ नीचे भांति है (देखो डाइरेक्टरी सफा १३६१)ग्राम संख्या ग्राम संख्या ग्राम संख्या उज्जैन ७ झालरापाटन ९. भीडर उदयपुर १३० डुंगरपुर ४६ मदसौर कुरावड़ १२ धरियाबाद १४ । रतलाम सलंबर खानपुर सागवाड़ा खेमरा ६५ धुलेब ४६ । सेलाना ७ गलियाकोट १२ परतावगढ़ २४८ जावद ३२ भानपुर २२ कुल ८४६ गुजरात व बम्बईके आहातेमें १७०९ की विगत । ( देखो सफा १३७९-१३८०) ग्राम संख्या ग्राम संख्या ग्राम संख्या आसू ७ कुंभारगांव ७ घोडेगांव इन्दापुर २ कुरबानी १३ चिंचोली १३ ईडर ५० कुरवली ४० जिंती उमरड़ २ केडगांव ६ टेंभुरणी अंतुरणे ६० कोराले ११ तिखंडी १२ कडियादरा ५० खटाव १८ दहीगांव करमाला ६४ खंडाली ८ देवरगणूर १३ कलंब १६ घाडग्याचीवाड़ी १ नातेपुते १११ x oc x oc For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WVvvv उच्च कुलमें जन्म । [७७ ग्राम संख्या ग्राम संख्या ग्राम संख्या नांदल ६ बिबी ४ लोणन्द १५ नान्नज २६ बुध १ वाखरी २२ निगडी ४ भोरगांव २९ वाघोली पलसमंडल १३ भांबुर्डी १६ विडणी पाडली १ भड ४ विहाल पिंपलाचीवाडी ५ भोड्यांची वाडी ७ विजापुर ३२. पिंपोडे १ म्हसवड १०० वीट पिरले ९ मगराचे लिंबगांव २ वेलापुर पुरन्दावडे २१ महीमानगढ ३९ शिरसणं ६ पुना १० मांडवे १८ शोलापूर ५ पंढरपुर ६ माढे २५ सांगवी फडतरी १ मालखांबी ७ सिद्धेश्वर करोली ४० फलटण १७५ मेडद १८ सिपुरे ३ फोंडशिरस २८ लउल १० हातुरने ११ बंबई १५० लवंग १३ हिंगणगांव ७ बारामती १० लासुर्णे ४० विधवन १३ लिम्बझागर ६ मीजान १७०९ नोट-सूरतमें वीसा हूमडकी ५० की संख्या है यह डाइरैकटरीमें लिखनेका छूट गया है । विगत दसा हूमड़। बंगालआहाता-सम्मेदशिखरमें ३ (सफा १३७२।। ० Mirror For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८] अध्याय तीसरा । मध्यप्रदेश । सफा १३२२ बुरहानपुर ३३, मूर्तिजापुर ७, सावरगांव ५-मीजान ४५ राजपूताना मालवा (सफा १३५९) ग्राम संख्या ग्राम संख्या ग्राम संख्या आंजनो १६० खोडन २५ जुहावा १२ आणोद २७५ गढ़ा ५० जेठाना । आंतरी ३५ गढ़ी १५० झाडोल २० आरोन ४९ गनोडा ४५ झाबुआ उदयपुर ४० . गलियाकोट २०० ठाकरणा ओगना ८० गांठोल ६०० डडूका १५५ ओवरी १०१ गामडा ३ डुंगरपुर १५० कचनार १०५ ढालवाडा ६ कनेजरा १५० गुवाडी १५ तलवाडा ३०० कुआं ५० गोरना ४० तेजपुर कुलयारी २२ गंगाधार १ थांदला कुवाला १६ घाटागांव २० थोबावाणा १५ कुशलगढ़ ४२५ घाटोल ३४० दडूका १५० कोकापुर । २५ चीतरी ६० दीवड़ा १२ २३ छानी २०० देवगढ़ १०२ जवास ३० देवल खमरा १४० जाडोल ७ धरियाबाद २७० खाकड ११ धुलेव (रुखबदेव) ४ खूटा ३६ जावरा ५ नरवारी १८६ गावडी २० कोठडा कोठरी जावद For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्न। [ ७९ परतापुर ३५० ग्राम संख्या ग्राम संख्या ग्राम संख्या नवागांव १५० बावलवाडा ८० मोर नादवेल २५ बांसवाडा ७० रतलाम नेनोर १९ बीसाबेडा ३६ राणापुर नोगाम २०० बीसीबाडा ७० रियावन प्रताबगढ़ १११९ बोरी १०० रीचा पचलासाखुर्द १५ भाउगढ ५८ रोयडा परासिया ९५ भानदा ४० सनावदा पाडवा २० भोलूडा २०० समेना पाइसोला २८७ भूदर __७० सह्युमर १२५ मंदसौर पाडा १०४ सलोदा ५५ पारोदा १५० मनासा २२ सागवाड़ा ४५० पीठ ७५ ४६. सालिमगढ २८ बनवानी मावता ६०. सावला २६९ बड़ोदिया १५० मुगाना ___ ९६ सिंगोली बदराणा ७ सिंघाना १० बरधा १० मतवाला ३० सिडोदिया ६० बागीदौरा ४०० मेलखेडा ५० हनुनाउ १२ बावनगजानी १ मोगडा ५० (सिद्धक्षेत्र) मोटा पचलासा १५ मीनान १०६३९ १६ मंदसौर माडोब मुंबई For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.] 9 m or ord अध्याय तीसरा । दसा हूमड बम्बई आहाता । (सफा १३७६-७७-७८-७९) ग्राम संख्या ग्राम संख्या ग्राम संख्या अम्मोड़ा १२ उपाले ४ कुरोली ३ अमनगर १२५ उमदी ११ कुसुंबा ११७ अक्कलकोट ६८ खोरान २०० केम २३ आकलून ८ ८ कण्ह कण्हेरगांव २ कोथले आगरखेड ३१ करेकम्ब ३४ कोरफल आगोती ७ करजगी २१ कोराले आनगर १० करमाले कोरेगांव आप १३ करियाली कोल्हापुर आलंद ११६ करोल कोलेगांव आष्टी ५३ कलमन १२ खनीपुर आष्टे ३ कलस खरडा ५ कलंब १० खरेगांव इन्डी ५७ .कव्हे १४ खांडन इडर १५० किणी १५० किणी खुटे इन्दापुर . ९ कुकेरी २५ खेरोल उज्जनी ४ कुंथलगीरी ६ खोटाना मुवाड़ा ३० उजेड़िया १३५ कुमारगांव ९ खंडाली उपलाई (धाकटी)१४ कुमारी ३ गढोडा २० ..., (थोरली) ४ कुर्दुवाड़ी ३० गणेगांव १६ उपलवाटे १४ कुरुल १२ गारोले ०. आसू १५ ur ०. For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [८१ V vvvvvvvvvvvvvine संख्या २४ ४ ५०० गुलंचे २५ घोटी ४० FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE ग्राम संख्या ग्राम संख्या ग्राम गिर्वी २८ जेऊर २ दारपाल गुंजोटी २५ जेनले ३ दालवडी गुणवड़े १६ जेरूर १२ दाहोद टेंभुर्णी ८ दुधनी गुलबर्गा ४५ ठोंग्याची उपलाई १२ देराले गोखली १९ डोणजे १२ देलवाड घोघा ४० डोरलानी ५७ धमनार तडवेल धाराशिव चडचण १९ तडरगांव ६४ धारीसणा चिकमण्णूर १ तलदंगे २ धूलिया चितरोडा ३० तलोद २५ चुंबली ३ तांदुलवाड़ी २ ननानपर चोपडे १०० तांबे छाला ४० तारापुर १३ नखणे जबलगी १५ तुलशी जबले (सोलापुर)१० तेभाई नलदुर्ग जबले(निजामुद्दीन)६ दगड़ जबले (अष्टी) ३६ दहीगांव जबलगी १७ दहीगांव ३ नातेपुते जांबुली २५ दहीटन ११ नांदगांव जिगुर्डी २ दहीवड़ी ११ नान्नज जिंती ३ दहेल ५ निंबगाम न्हावी ६ . नरखेड़ नरोने Movv vodo नागणपुर नागणसूर ८४ For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ ] नाम निंबरगी निंबलग निर्गुडी नेकाडा नेरी नंदुर प्रांतिज पणदरे परिले संख्या २६ पिंपोडे ४० २ ३ ܘ 3 अध्याय तीसरा । ग्राम संख्या ४५ ३९ बंबई २१ बलसंग ३३ पुलुन पूना पेणूर पंढरपुर फलटण बडोली परड़ा पलसदेव पांग्री पापरी पारोला १२५ बावडे पालदी ३ बावी पालिम २५ बिबि पिंगली पिठेवाड़ी पिंपरज पिपरे पीपलनेर पिंपलनेर ३४ ३ बाकरोल बासटाउन ३ बारामती ९ बालोसणा ४० बुध १ बेवले ६ बोराले १ बोरी भडगांव भांडगांव ग्राम ६ भालेक १३ १७ ८२ २.४८ २० २५० ३४ ܘ ܘ ܐ ३६ ७७ १० २२ १० revoc ४ भावनगर भूम भुथार भोंसे भंडाद कवठे म्हसवड़ म्हेसगांव मउ मगरूल मरोडे मलवडी मसले महूढ़ मांडल मांडवी मालेगांव १३ १८ २० १७ ७ मोहाडी १३ मोहोल For Personal & Private Use Only मुरुम मेंदरगी मोडनिंब संख्या ७० ५० १६ ५. १८ १९ ६ ६० سلام سورہ ३० وں २० ४ २० ३५ १५ १० २३ ५१ ५३ १७ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्राम - मंगलवेढे मंद्रुप मुधोल येवती रखीयाल मोडवाडी रणासण राजाके रांदेल रानकुवा पाले लउल लच्छन लाकरोड़ा लाखेवाडी लासुर्णे लिंबगांव लिंबलक लिंबुरे लंगेर लोणंद संख्या १५. ६ २ ७ ३० ४ ४० वडासण वडूज वदराड ४ वरखेडा १० १३ रखड ४५ उच्च कुलमें जन्म संख्या ३१ ६५ ग्राम वड़गांव वड़गांव ( खरडे) ३ वागदरी वाघोली 2 २८ २३ वागर वांदखेला वालवड वालूज विडणी विजपुर विजापुर ७ वेलापुर ११ सिंदेवाड़ी ४ शिरबल वडगांव ( मद्रप) ३ वडाले वाखरी '७ शिरसाव ३२ शिराल ३५ शेटफल शेटफल शेन्दरी ३१ शेन्दूरणी १५ ० १८ १० ग्राम शिरस शिरसाले ८ शेलगांव सोलापुर सदानामुवाड़ा सरडे सांडावी २ सांगवी ६ सादडवेल शेरीचीवाडी २५ सापडे ३ १० सामोड़े सायरा ६ ४ 'सासकल १२ सीतवाड़ [ ८३ संख्या २ ६८ For Personal & Private Use Only १५ : ११ ८ २४ ४० ३५ ९ ∞ ३०० ३० ६ २२ ४ १२ ३ ५ ३ ૨૦ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ ] ग्राम ग्राम संख्या सुरवडी ९ सोनासण सेलगांव १४ सोनगांव सोनगांव ४ सोनगिर १२१ हातकलंगडा १३ सोनारी ५२ अध्याय तीसरा । संख्या ग्राम ११५ हिराली ६ हिवले हरीवरपीपलगांव ६६ होल संख्या १४ हांतूर मीज़ान ७३९२ नोट - सूरत में दस हूमडकी संख्या १५० की है । यह भी डिरेक्टरी में लिखना छूट गया है । ४ उदयपुरसे २८ मीलपर एक भींडर नामका छोटासा देशी राज्य है । जिसकी अब वार्षिक उपज अनु शेठ माणेकचन्दजीका मान या २ लाखकी है। यद्यपि अब इसमें बंश - परिचय २००० वरोंकी वस्ती है परंतु १०० वा १५० वर्ष पहले इसमें ७ या ८००० aint वस्ती थी जिनमें चौथाई वस्ती जैनियोंकी थी। अब भी वहाँ जैनियोंके ४०० घर हैं, दिगम्बर जैन मंदिर तीन जत्र श्वेताम्ब मंदिर १ है । किसी समय में यहाँ दिगम्बर जैन हुमडोंके बहुत से घर थे परंतु व्यापारादिके निमित्त परदेश जानेके कारण अब यहाँ केवल १० घर ही देखने में आते हैं। For Personal & Private Use Only हम जिस समयकी बात कहते हैं, उस समय भींडर नगर बहुत रमणीक था । जैनियोंकी प्रबलता के कारण वह एक अहिंसामई राज्य था । कहीं पर पशु वधका नाम भी नहीं सुन पड़ता था। मांसका किसीको दर्शन नहीं होता था । मद्य पीना तो दूर रहा. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म [ ८५ उसका कोई नाम भी नहीं लेता था। लोग सत्यवादी व नीति परायण थे। अपने पुण्य कर्मके उदयसे जो उपार्जन करते थे उसमें संतोष पाते हुए तृप्त थे। तौ भी निरुद्यमी नहीं थे। जिन मंदिरोंमें नरनारी धर्ममें लौलीन, विनयको प्रदर्शित करनेवाले तथा अर्हत, साधु और शास्त्रभक्तिमें तन्मय थे। श्री जिनेन्द्रके बिम्बका नित्य अभिषेक करके जलचन्दनादि अष्ट द्रव्यसे बहुत ही विनय और सार गर्भित अर्थ सूचक छन्दोंको पढ़ते हुए पूजन होता हुआ दिग्वलाई पड़ता था । पूजनमें ऐसे लीन हो जाते हुए नरनारी मालूम पड़ते थे कि उनको और किसी बातकी मानो खबर ही नहीं है। पूजनके पीछे शास्त्र सभामें सर्व ही स्त्री पुरुष विनय सहित बैठकर परोपकारी धर्मात्मा शास्त्रमरभी वक्ताके द्वारा जिनवाणीको सुनकर अपना हृदय पवित्र करते थे। शास्त्रके पीछे मंदिरजीके बाहर पात्र भक्तिके निमित्त धर्मात्मा श्रावकोंको अपना घर पवित्र करनेके लिये आमंत्रण देते थे । और भक्ति पूर्वक जघन्य व मध्यम पात्रोंको दान करके आल्हाद भावसे परम पुण्य बांधते थे। कभी २ नगरमें कोई मुनि महाराज व ऐलक, शुल्लक भी आ जाते थे उस समय श्रावक जन भोजनके समय द्वारांपेक्षण करके प्रतिग्रहण करते थे। आहार एकके यहाँ होता था पर आनन्द सब मानते थे । शास्त्रस्वाध्यायमें व सामायिक या जापमें दत्तचित्त श्रावक व श्राविकाएं दीख पड़ती थीं। शामको मंदिरजीमें अनेक जन ध्यानमें लीन दिखलाई देते थे । यद्यपि यह कोई व्यापारी मंडी नहीं थी तो भी लोग जब धर्म कार्य व खानपानसे निवट कर बाजारमें जाते थे तो वहां एक मन हो न्यायपूर्वक लेन देन करते थे। शामको For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ] अध्याय तीसरा | घंटा दो घंटे पहले से ही लोग घर पर आकर संध्याका भोजन कर लेते थे जिससे रात्रिको भोजन न करना पड़े । और व्यापारोंके साथ वहाँ अफीमका व्यापार भी होता था । जबसे चीन देशमें अफीमका ज्यादा व्यवहार होने लगा तबसे भारतको अफीम पैदा करके चीनको भेजना पड़ा। उस समय चीनको बहुत अफीम जाती थी । भींडर में भी अफीम की खेती होती थी और व्यापारी लोग अफीम एकत्र कर बाहर भेजा करते थे । विक्रम सं० १८४० के अनुमान वीसा हमड़ ज्ञाति में मंत्रेश्वर गोत्रधारी एक साधारण व्यापारी गृहस्थ भींडर में निवास करते थे जिनका नाम शाह गुमानजी लालजी था । यह साधारण श्रावक के धार्मिकल्पों में सावधान, शरीर के दृढ़, उद्योगी और विचारशील थे। भींडर में इनके सिवाय और भी कई बड़े २ अफीमके व्यापारी थे । शाह गुमानजी उनकी मंडलीमें जब जाके बैठते थे तत्र अफीमके व्यापारकी बहुतसी बातें सुनते थे । हिन्दुस्तान के प्राय: हर विभागसे अफीम आकर सुरतके बाज़ारोंमें जमा होता था । और वहाँ से जहाजोंके भीडर से सूरत आनेका द्वारा चीन देशको जाया करता था । इससे गुमानजी के कानमें सूरत नगरके व्यापार व कारण । वहाँ की सुन्दरताकी भनक हरसमय पड़कर उनको यह लोभ दिलाती थी कि सूरत में स्वयं जाकर अफीमका काम करना चाहिये । यहाँ पड़े २ साधारण उपज होती है जिससे पूरा गृहस्थीका खर्च भी नहीं चलता है । वास्तवमें जो उद्योगी होते हैं वे द्रव्योपार्जनके योग्य मार्गेको सदा ही ढूंढ़ा करते हैं । और वें. For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमं जन्म । [८७ कृत मनोरथ भी होते हैं। पुरुषार्थी मनुष्य यदि पुण्यके मंद उदयसे धनशाली न भी होवै तौभी अपने खर्चके लायक धन अवश्य पैदा कर लेता है। वह कर्ज लेना बड़ा भारी फन्दा समझता है। आलसी मनुष्य सदा दुःखी रहता है । वह उद्योग करनेके बदलेमें बहुत दुःख व अन्यायसे अपना खर्च चलाकर अपने शरीरकी भी रक्षा करनेमें असमर्थ होता है । यदि उसके आश्रय कुटुम्ब हो तब तो बहुत ही कष्टमें आप भी रहता है और परिवारको भी रखता है। साह गुमानजी पुरुषार्थी थे । इनका मन दिनपर दिन सूरत दखनेको ललचाने लगा। इन्होंने यह भी मुना था कि आजकल बहुतसे इंग्रेज़ लोग सुरतमें आकर खूब व्यापार कर रहे हैं तथा उन्होंने अपनी सत्ता ऐसी जमाई है कि सुरतके किलेपर अंग्रेज़ोंका झंडा गड़ गया है तथा नाम मात्र मुगलोंका भी है । तथा नवाब अञ्चन जो सूरतके नवाव थे वे बिलकुल इंग्रजोंके हाथकी कठ पुतली होकर रहे और उनके पीछे जो नवाब हफीजुद्दीन हैं वे भी उन्हीके हाथमें हैं । गुमानजी जिन्दे दिलके मनुष्य थे। वारवारकी रगड़से जैसे पत्थर घिस जाता है, वारवार पाठ करनेसे जैसे विद्यार्थीको पाउ पक्का हो जाता है, वार वार जाप करनेसे जैसे भाव निर्मल हो जाते हैं, ऐसे ही पुनः पुनः सूरत नगरकी चर्चाने गुमानजीके दिलको मूरत जानेके लिये पक्का ही कर दिया । एक दिन आप श्री जिन मंदिरजीसे आकर रात्रिको बैठे २ विचारने लगे कि यहाँसे सूरतकी यात्रा हम अकेले करें कि कुटुम्बके साथ करें । मनमें यही भाव आया कि परदेशमें अकेले जानेसे अपनी अर्धाङ्गिणीके साथ जानेमें बहुत आराम है। क्योंकि भोजनादिकी चिंतासे छुड़ाकर घरहीके समान सर्व For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८] अध्याय तीसरा । प्रकार आराम देनेवाली स्त्री है । पत्नी सहित पति जंगलमें भी हो तब भी वहाँ घरसाही आराम है और यदि पत्नी रहित पति व पति रहित पत्नी किसी ऊँचे बड़े भारी रत्न जड़ित महलमें भी रहते हों तो एक दूसरेके चित्तको साता नहीं । वास्तवमें पत्नी और पतिके युगलको ही गृहस्थ कहते हैं और यह एक दूसरेके सहायक हैं । पतिका काम बाहर घूमकर द्रव्य लाना है, पत्नीका काम आमदनीके भीतर घरका प्रबन्ध करना, सुन्दर स्वादिष्ट शरीरको लाभकारी भोजन तयार करना, वस्त्रादिको संवारना, घरके खर्चका हिसाब रखना, घरकी सफाई रखना, बच्चोंको पालकर प्रवीण करना, पतिको अपने मधुर मुखके हास्यमई व मिष्ट वाणीसे जैसे चंद्रमा कुमुदनीको प्रफुल्लित करे ऐसे रंजायमान करना, पतिके गृही धर्मके आचरणके पालनमें सहायता देना, व समय पाकर शिल्पादि द्वारा कारीगरीकी चीजें बनाना, तथा कभी काम पड़े और घरका खर्च अधिक हो तो उनको विकवाकर घरका काम चलाना आदि है। सच्ची पत्नी पतिके जीवनको आदर्श रूप बनाने में पूर्ण सहकारी होती है। गुमानजीकी स्त्री पतिव्रता थी-पतिसे अतिशय प्रेम करती. थी-उनके मुखसे उनके मनकी बात समझकर उनके कहनेके पहले ही सर्व काम तय्यार कर देती थी, धर्ममें भी सहायक थी, रसोई भी शुद्ध बनाती थी, कुदेवोंकी भी भक्त न थी। ऐसी स्त्रीके प्रसंगको गुमानजी क्षणभर छोड़ना नहीं चाहते थे। यद्यपि गुमानजीके चित्तमें एकदफे यह बात आई कि यहाँसे चौगुणा खर्च सूरत नगरमें है। कदाचित वहाँ हम आमदनी ज्यादा न कर सके तब हम तो चने फाककर ही काट लेंगे परन्तु स्त्री होनेसे वड़ा भारी खर्च करना पड़ेगा तौभी आपने विचारा कि हमारी स्त्री बड़ी ही संतोषप्रिया For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८९ उच्च कुलमें जन्म। है। यदि हम सूखा खाएँगे तो उसे भी कोई इनकार न होगा। ठहरनेको मकान तो हमें रखना ही पड़ेगा इससे हर तरहं साथ ले जाना ही अच्छा है। तीसरे साहजीने यह भी विचार किया कि हमें बैल गाड़ी करके ही जाना है। हम दोनों एक गाड़ी कर लेंगे और धीरे २ रास्ते में भगवानके मंदिरोंके दर्शन करते हुए सूरत पहुंच जायंगे। ऐसा दृढ़ संकल्पकर विक्रम संवत १८४० अर्थात् इ० सन् १७८३में गुमानजी सपत्नी सूरत नगरको प्रस्थान कर गए । अपने रहनेका मकान अपना ही था उसे अपने कुटुम्बियोंके सुपुर्द कर दिया । अब भी यह मकान भीडरमें मौजूद है और गुमानजीके ही कुटुम्बीजन उसमें बास करते हैं। थोड़े दिनोंमें आप सूरतमें आ पहुंचे और वहाके श्री चंद्रप्रभुके बड़े जिनमंदिरजीमें जो अब चंदावाड़ीधर्मशासेठ माणेकचन्दके लाके पास है दर्शन करनेके लिये गए। भीडरमें पितामहका सूरत गुमानजी एक छोटेसे अफीमके व्यापारी थे। आना। इनकी सीधी आढ़त सुरतके किसी व्यापारीसे ___नहीं थी। आप दर्शन करनेके बाद जाप देकर स्वाध्याय करने लगे। पासमें और भी श्रावक शास्त्र पढ़ रहे थे। उन्होंने इनको मेवाड़ देशका निवासी तथा धर्मात्मा और चतुर जान · पूछा कि आपका कहा निवास है और कैसे आना हुआ ? गुमानजीने अपना सब हाल सरल मनसे कह दिया। वे श्रावक आजकल केसे रूखे मनके न थे, परंतु वात्सल्य गुणके धारी थे । इनको एक श्रावक बड़े आदरसे अपने घर ले गए और हर प्रकारसे खातिर की। गुमानजी अपने साथ अफीम भी लाए थे सो इनके सुपुर्द की। यह भी अफीमके For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० ] अध्याय तीसरा | व्यापारी थे । भींडरकी ताजी अफीमको देखकर गुमानजी से भाव चुकाकर सबकी सब खरीद ली। गुमानजीको इस सौदे में दुगने से ज्यादा लाभ हुआ । उसी मंदिरजीके निकट एक छोटासा एक एकमंजला मकान खाली पड़ा था । उसीको भाड़े लेकर गुमानजी सपत्नी रहने लगे और बाज़ार में अफीमका व्यापार करने लगे । अब यह भींडरसे स्वयं. अफीम मंगाते थे और अच्छे भावोंसे बाज़ार में बेचते थे । अब ये दोनों बड़े सुखसे रहने लगे । भींडर में जो खचकी तंगी रहती थी वह भी मिट गई। यह अपने निकटके कुटुम्बियोंको भी खर्च के लिये भींडर रुपया भेजने लगे और कुछ दान पुण्य भी करने लगे । पूर्वोपार्जित पुण्यका इतना तीत्र उदय नहीं था: जिससे लक्षपति आदि तो नहीं हुए पर वर्ष में कुछ दान पुण्य करने के सिवाय दोसौ चारसों रुपये बचा भी लेते थे । गुमानजी के दिन सूरत में अपनी पतित्रता खीके साथ बड़े ही आनन्दसे बीतने लगे । सूरत में इनको बहुत दिन रहने के पीछे हीराचंद और वखतचंद दो पुत्ररत्नों का लाभ हुआ जिनमें हीराचंद : बड़े और वखतचंद छोटे थे । साह गुमानजीको पुत्रोंका लाभ | साह गुमानजी बड़े विचारशील थे और ब्रह्मचर्यका बहुत खयाल रखते थे | और उनका लग्न भी प्रौढ़ अवस्थामें हुआ था, वाल्यावस्था में नहीं । यद्यपि भींडर में बालविवाहका रिवाज भी था पर वह धनाढ्योंमें था । गुमानजी एक साधारण गृहस्थ थे इससे For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म [९१ इनका विवाह युवावस्थामें हुआ था और उसीके एक दो वर्ष बाद ही यह भींडरसे सुरत आकर रहने लगे थे । गुमानजीने सूरतमें जिस घरका आश्रय लिया था उसको छोड़ा नहीं । आपने और कोई घर भी नहीं बनवाया। उसी घरको उसके मालिकसे खरीद लिया और उसीमें आनन्दपूर्वक अपना जीवन विताया। साह गुमानजीका अपने पुत्रोंके सम्बन्धमें यह विचार था कि यह धर्मके श्रद्धावान हों और अभिषेक पूजन जप व स्वाध्यायमें सावधान हों, कामके योग्य हिसाब किताब व लिखना पढ़ना कर सके और व्यापारमें कुशल हो जावें, अतएव घरके पास श्री बड़े जिन मंदिरजीमें जो पंडित रहते थे उनके पास स्तुति, दर्शन, भक्तामर आदि पढ़वाते थे और दिनमें देशी पाठशालामें साधारण प्राथमिक शिक्षा लेने भेजते थे। जिस समयकी यह वात है उस समय प्रायः बालकोंको पढ़ानेका ऐसा ही कायदा था। धर्मका ज्ञान परोपकारार्थ देनेवाले कोई न कोई धर्मात्मा जिन मंदिरमें अवश्य तय्यार रहते थे। बहुतसे मंदिरों में पंडित या ब्रह्मचारी रहते थे जिनका पठन पाठन ही मुख्य काम होता था । हीराचंद बुद्धिके तीत्र, उत्साही और सुआ-. चरण व आज्ञापालनमें दक्ष थे जब कि वखतचंदकी बुद्धि मंद थी । थोड़े ही दिनोंमें जब हीराचंद हिसाब किताबमें पक्के हो गए तब गुमानजी इनको अपने साथ व्यापार सिखानेके लिये बाज़ारमें ले जाने लगे । वास्तवमें व्यापार भी विना सिखाये व विना उसमें बुद्धि प्रवेश किये नहीं आता है । प्रायः मारवाड़ी लोग व्यापारमें कुशल इसी कारण होते हैं कि उनके पिता उन्हें छोटी उमरसे ही For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ ] अध्याय तीसरा। व्यापार करनेकी रीतियां बताते रहते हैं, जो उनके मगज़में जम जाती हैं । यद्यपि उनमें यह दोष अवश्य होता है कि वे और ऊंची शिक्षा अपने पुत्रोंको देते ही नहीं । व्यापारी शिक्षाके साथ - साथ उनको दिनमें २ व ३ घंटे अच्छे शिक्षक द्वारा साहित्य, नीति व धर्मकी शिक्षा अवश्य दिलानी चाहिये । जहाँ तक देखा गया है जो बालक अपने १० व १५ वर्ष स्कूलकी संगतिमें विताते हुए विश्व विद्यालयकी परीक्षाओंमें उत्तीर्ण होनेके झंझटमें लगनाते हैं वे फिर अपने मनको देशी व्यापारकी ओर नहीं झुका सक्ते । फिर व्यापारकी ओर झुकना उनके लिये कठिन हो जाता है यद्यपि असंभव नहीं है। . हीराचंदका चित्त व्यापारमें लग गया और यह भी पिताकी भांति अफीमका व्यापार करने लगे। थोड़े हीराचंदजीका स्वभाव दिनों बाद वखतचंद भी पिताके साथ व्यापार को जाने लगे पर इनका मन जैसे पढ़ने में कम लगता था वैसे व्यापार में भी न लगा । इनको बाजारकी मिठाई खाने व मेले तमाशे देखनेका अधिक शाक था जब कि हीराचंद अपने पिताकी भांति शुरूसे ही विवेक बुद्धि थे। माता जो घरमें शुद्ध भोजन व मिठाई पकवान बनाती थी उसीको लेकर संतोषी रहते थे। मेले ठेलेका भी शौक न था । सवेरे शाम साधारण धर्म ध्यान में चित्त लगाकर आनन्दित रहते थे। गुमानजीको इस बातका अवश्य विश्वास था कि बाल्यावस्थामें "विवाह करना बहुत हानिकारक होता है । जब तक पकवीर्य न हो तब तक विवाहका ख्याल भी पुत्रके दिलमें नहीं आना चाहिये For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म और उसे वीर्य रक्षा और ब्रह्मचर्यका पूरा २ ध्यान रहना चाहिये। इसी कारण गुमानजी समय २ पर अपने पुत्रों को समझाते रहते थे कि वीर्य रक्षाके बहुत बड़े लाभ हैं। युवावस्था तक इसको भले प्रकार स्थंभन करना चाहिये, किसी भी तरहं इसको खराब नहीं करना चाहिये । बहुतसे पिता अपने पुत्रोंको लज्जाके भयसे ब्रह्मचर्यकी रक्षाके उपायोंकी शिक्षा नहीं देते हैं इस कारण वे कुसंगतिमें पड़कर और हानि लाभसे अजान रहकर अपने ब्रह्मचर्यको बिगाड़ कर अपने मन और शरीरको निर्बल कर बैठते हैं और फिर उन्हींको बड़े होनेपर अपने पूर्व कृत्योंका पछतावा करना पड़ता है। जब हीराचंद २० वर्षसे ऊपर अवस्थाके होगए तब गुमानजीप्रौढ अवस्था ने इनकी लग्न सूरत निवासी एक वीसा हमड विवाह। गृहस्थकी कन्यासे कर दी। इसका नाम विजलीबाई था । यह कन्या १३ वर्षकी थी और यद्यषि लिखना पढ़ना नहीं जानती थी तो भी घरके कामकाजमें बड़ी चतुर, सरलचित्त, सौम्यमूर्ति, दयावती और जिनध. ममें श्रद्धालु थी। ऐसी स्त्री-रत्नको पाकर हीराचंद चित्तमें बहुत ही प्रसन्न हुए और दोनों अति प्रेमके साथ गृहीधर्म सेवने लगे। सेठ गुमानजीकी स्त्री एक दिन कुछ बीमार होगई। सेठजी और गुमानजी और - उनके पुत्रोंने बहुत औषधि की परन्तु आयु कर्म शेष होनेका समय आजाने पर कोई उनकी पत्नीका मरण " उपचार कारगर नहीं हुआ । यद्यपि वह रोगग्रस्त थी पर होशसे नहीं चूकी थी। अपने दिलमें अर्हत सिद्ध जपा करती थी और उसके पति व पुत्र For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४] अध्याय तीसरा । भी उसको धर्मकी बातें सुनाते रहते थे। निदान णमोकार मंत्र सुनते २ उसके प्राण पखेरू शरीरको त्यागकर अन्य गतिमें चलदिये । सेठ गुमानजी और उनके पुत्रोंको खासकर हीराचन्दनीको इस वियोगसे बहुत कष्ट हुआ। गुमानजीका जैसा प्रेम अपनी अर्धागिणी से था उसीके प्रमाणमें उतना ही उन्हें वियोगका दुःख भी हुआ । वास्तवमें इस संसारके पदार्थ सर्व क्षणिक अवस्था वाले हैं। जो किसी अवस्थाके होते हुए हर्ष करेगा उसेही उस अवस्थाको बिगड़ जाते देखकर कष्ट व शोक होगा । जो ज्ञानी व निर्मोही साधुजन होने हैं वे किसीसे मोह नहीं करते अतएव उनको सांसारिक हर्ष और विषाद नहीं होता । यद्यपि गुमानजी शास्त्रके जाननेवाले थे पर विशेष वैराग्यवान न थे । इनको अपनी पत्नीके वियोगका ऐसा दुःख हुआ कि यह भी थोड़े ही दिनोंमें कुछ अस्वस्थ हो गए । और बहुत बीमारी न पाते हुए एक दिन बहुत स्वस्थतासे णमोकार मंत्र जपते हुए तथा श्री अरहंत की प्रतिमाका ध्यान करते हुए शरीरको त्यागकर स्वर्ग पधारे। विवाहके थोडे ही दिनोंके पीछे हीराचन्दको अपने माता पिताका वियोग सहना पडा, परन्तु हीराचन्द. मातापिताके वियोग शास्त्रस्वाध्याय करतेथे इससे अपने मनको का दुःख समझाकर अपने गृहकर्तव्यमें लग गए । शाह गुमानजी हीराचन्दका विवाह तो कर पाये थे परन्तु वखतचन्दका विवाह नहीं कर सकेथे । साह हीराचन्द बड़े बुद्धिमान थे और अपने छोटे भाईसे बहुत प्रेम रखते थे। कुछ काल पीछे हीराचन्दने वखतचन्दकी लग्न करके अपने कर्तव्यको पूरा किया और दोनों For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुल में जन्म [ ९५ भाई एक ही घरमें सुखसे शांति पूर्वक रहने लगे । यद्यपि हीराचंदको छोटे भाई से प्रेम था परन्तु वखतचन्द्रका मन अपने भाईका बाजार व जाति में आदर देखकर ईर्षाभावसे भर आता था और इस कारण कभी २ स्वतंत्र होनेको मन चाहता था । साह हीराचंद अपनी पत्नी विजलीबाईके साथ अति प्रेमसे रहते हुए । सं० १९९३ में एक कन्याका साह हीराचंदजीको लाभ हुआ जिसका नाम हेमकोर ( हेमकुमारी) संतानको लाभ । रक्खा गया । यद्यपि इस युगलको यह इच्छा थी कि पुत्रका लाभ होगा क्योंकि प्रायः सर्वसाधारणको पुत्रीकी अपेक्षा पुत्रकी प्राप्तिका अधिक प्रेम होता है। तौभी शाह हीराचंद को पुत्रीके लामसे किसी प्रकारकी उदासी नहीं हुई । सर्वसे पहले सन्तानका लाभ होनेपर इनको व सर्व कुटुम्बियोंको बड़ा हर्ष हुआ । इन्होंने यथायोग्य उत्सव मनाया । श्री यथायोग्य यथायोग्य दान धर्म किया । मंदिरजी में पूजन कराई व इस वर्ष सूरत नगर में इतनी भारी अग्नि लगी कि आधा नगर भस्म होनेके साथ वह अग्नि साह हीराचंद के मुहल्ले में भी आई । खपाटिये चकले के बहुतसे घर जल गए । साह हीराचंदका घर भी भस्म हो गया । साह हीराचंद ने अपने घर भस्म होनेका दुःख नहीं किया परन्तु बड़ा भारी दुःख जो साह हीराचंद व अन्य श्रावकों को हुआ वह इस चंदावाड़ीके निकटस्थ बड़े मंदिरमें अग्नि लगनेसे हुआ । श्री मंदिरजीमें अग्निकी लपकोंको जाते हुए देखकर साह हीराचंद, वखतचंदने अपने घरकी चिंता छोड़ तुर्त ही निकटके श्रावकोंको बुलाया और मंदिर के भीतर से श्री जिन बिम्बोंकी रक्षा की । सर्व For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ ] अध्याय तीसरा | प्रतिमाओंके सुरक्षित होनेपर मंदिरकी भीतें भस्म हो जानेपर भी श्रावकोंने संतोष माना और साह हीराचंद के साहसकी सराहना की, जिसने अग्रगामी होकर अपना खयाल छोड़ इस उपसर्गको निवारण किया । उस दिन से साहजीने धीरे २ अपना मकान तो ठीक किया ही, पर श्री मंदिरजी के जीर्णोद्धारकी बहुत बड़ी फिक्र की । चार वर्ष पीछे सं० १८९७ में विजलीबाईको दूसरी सन्ततिका लाभ हुआ। इस समय जब विजलीबाईको गर्भ रहा तब साह हीराचंद के चितमें यह उमंग उठी कि अब तो शायद पुत्रकी प्राप्ति अवश्य होगी। परंतु इस वक्त भी साहजीको १ कन्यारत्नकी प्राप्ति ही हुई । साहजीने इसका नाम मंच्छाकोर (मंछाकुमरी ) रक्खा और पूर्वोपार्जित कर्म के उदयसे जो लाभ हुआ उसीमें सन्तोष किया । बिजलीबाई सन्तानकी रक्षा करने में बहुत चतुर थी। योग्य खानपान करती थी ताकि उसके दूध में कोई विजलीबाईकी विकार नहीं हो क्योंकि जो माता ऐसी वैसी संतान रक्षा । चीजें खाकर शरीरको विकारी व रोग ग्रसित कर लेती है उसके विकारी दूधसे बच्चे के शरीर में बहुत से रोग हो जाते हैं। बहुतसे बच्चे तो माताकी गोद में ही कालके ग्रास हो जाते हैं। बिजलीबाई की सावधानीसे न हेमकुंमरीके ना मंच्छा कोई भारी रोग हुआ जिससे माता पिताको चिन्ता हो । मंच्छा जब माताका दूध पान करती थी तब हेमकुमरी चार वर्षकी थी । इसका शरीर बहुत सुन्दर व गठा हुआ था । चिहरा गोल था, चंचलनेत्र थे व मुख हंसता हुआ प्रफुल्लित कमलके समान था । जो कोई देखता उसका दिल उमङ्ग आता और इसे गोदमें लेकर प्यार करता था । For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजीका जन्मगृह सूरत. (देखो पृष्ठ ९१) For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [९७ इसकी बोली भी बड़ी ही मीठी थी। माताने इसको न तो कोई अपशब्द सिखाए थे और न मारना पीटना ही सिखाया था जैसे बहुधा करके माता पिता व कुटुम्बीजन छोटे २ बच्चोंको गाली देना व मारना पीटना सिखाते हैं । माता विजलीबाई हेमकुमरीका हाथ पकड़कर जिन मंदिरजीमें ले जाया करती थी और वहाँ पर कायदेसे हाथ जोड़ना व दंडवत करना सिखलाती थी व भगवानके २४ नाम बुलवाती थी। विजलीबाईने हेमकुमरीकी ऐसी अच्छी आदत डलवाई थी कि वह नित्य प्रति समय पर ही भोजन करती थी और रात्रिके पहले ही भोजनसे निश्चिन्त हो जाती थी। रात्रिको भोजन मांगती ही न थी। हां जल व दूध लिया करती थी। सबेरे उठकर 'जयजय चंद्रप्रभुकी जय' ऐसा कहती थी। विजलीने जैसे हेमकुमरीके पालने में परिश्रम किया था वैसी ही मिहनत मंच्छाके भरणपोषणमें की। विजली अपनी कन्याको न कभी मारती थी न गाली देती थी और न कभी क्रोधभरे शब्द कहती व आकृति दिखाती थी । न कभी उसके मनमें यह खयाल आता था कि यह कन्या पर वर जानेवाली है, इसकी अच्छी तरह रक्षा क्यों करे जैसा बहुधा पुत्रमोही माताएँ स्वार्थ वश खयाल किया करती हैं और कन्याओंको सैकडों गालिया सुनाकर व मारकूटकर, रुलाकर, पटककर, कोसकर, कुढ़कर अपना जला दिल ठंडा करती है और समयपर भोजनपान नहीं खिलाती हैं। बहुधा कन्याएं माता पिताकी बेगौरी और अनुत्साहरूप पालनसे शीघ्रही कालका ग्राप्त हो जाती हैं। साह हीराचंद दोनों पुत्रियोंकी प्रफुल्लित Jain Educion International For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ ] अध्याय तीसरा। मूर्तियोंको देखकर बहुत आनन्दित होते थे और निरन्तर इस बातका उद्योग करते थे कि ये दोनों सुपुत्री बनें, जिससे ये अपने पतिके घरोंको दीप्तमान कर सकें और मेरे यशको उज्वल रखें ।। साह हीराचंद व अन्य श्रावकों ने उस बड़े जिनमंदिरजीके, जो भस्म हो गया था जीर्णोद्धार करनेका बहुत चंद्रप्रभुके मंदिरका ही शीघ्र प्रबन्ध किया, यहां तक कि संवत् जीर्णोद्धार । १८९८ तक वह मंदिर फिरसे तय्यार हो गया, तब मुहूर्त दिखाकर इसकी प्रतिष्ठा करानेकी मिती वैशाख सुदी १२ संवत् १८९९ नियत की गई। देशदेश पत्र भेजकर संघको एकत्रित किया गया। भट्टारकोंकी आम्नायके भाणा पंडितने जो विद्याभूषण भट्टारकके शिष्य थे इस मंदिरकी प्रतिष्ठा विधिके अनुसार की । सूरतमें उस दिन जैन धर्मकी बड़ी प्रभावना हुई । सम्पूर्ण संघके मध्यमें साह हीराचंद अपनी दोनों पुत्रियोंके साथ जिनकी अवस्था क्रमसे ६ और २॥ वर्षकी थी लिये हुए बहुत ही शोभते थे और अन्य सज्जनोंको यह उत्साह होता था कि ये कन्याएं चिरंजीवित रहें तो हम हमारे पुत्रोंसे इनका सम्बन्ध करें । श्रीमंदिरजीकी प्रतिष्ठा होकर सर्व प्रतिमाएँ सविनय विराजमान की गई । भट्टारकोंकी आम्नायमें पद्मावती देवीके मस्तक पर पार्श्वनाथ स्वामीकी छोटी प्रतिबिम्ब हो ऐसी प्रतिमा निर्मापणका रिवाज़ प्रचलित है उसीके अनुसार भाणा पंडितने एक मूर्ति निर्मापण कराय उसकी प्रतिष्ठा की, जिसका लेख दूसरे अध्यायमें दिया गया है । इस समय सूरतमें जितने लोग बाहरसे आए थे उनका भोजनादिसे यथायोग्य सत्कार किया गया। For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । इस धर्मके कार्यमें यद्यपि साह हीराचंदने पंचायतीके साथ धनकी मदद बहुत नहीं दी थी तो भी अपनी उदारतासे अपनी शक्तिसे अधिक सहायता की थी, इतना ही नहीं इस कार्यके मुख्य प्रबन्धकर्ताओंमें साह हीराचंद भी थे। इनके प्रबन्धमें निर्विघ्नतया और विना किसी शिकायतके कार्यकी पूर्ति देखकर लोग इनकी बुद्धि और धर्मवात्सल्यताकी बहुत सराहना करते थे। . माह हीराचंदनीकी जातिमें अति प्रशंसा होते देखकर वखत चंदका मन अप्रसन्न रहता था। इसके सिवाय वखतचंदका पृथक् . वखतचंदकी प्रकृति भी हीराचंदसे नहीं होना। मिलती थी। दूसरे इनकी पत्नी भी अपने पतिको जुदा रहनेकी सम्मति दिया करती थी क्योंकि वह दूरदर्शिता और बुद्धिमत्तासे काम लेना नहीं जानती थी । वखतचंदका मन पृथक् होनेको होता भी था पर जब वह बड़े भाईके वर्तावको अपनी ओर देखता था तब उसका मन तुर्त इस विचारको मिटा देता था। पर उसकी स्त्रीके पुनः पुनः प्रेरणा करने पर वखतचंदका चित्त स्थिर हो गया कि हम कल अवश्य २ अपने भाईसे जुदा हो जायगे । संवत् १९०० में या सन् १८४३में कि जब सूरतमें सर्कार इंग्रेज द्वारा बिठाए हुए निमकके महसूलको प्रमाणसे अधिक समझकर प्रजाने हड़ताल की थी साह वखतचंदने एक दिन सवेरे जब साह हीराचंद श्री मंदिरजीसे निबटकर घरमें आए उदास मुख करके अपने मुँहसे शब्द न निकलते हुए भी बड़ी कठिनतासे ज्यों त्यों कर कह डाला कि मेरी इच्छा आजसे अलग ही रहकर भिन्न ही व्यापार करनेकी है। अब तक तो मैं ज्यों For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] अध्याय तीसरा ।। त्योंकर एक साथ रहा परंतु अब मुझको साथ रहना नहीं है इससे आप सर्व मालका विभाग कर देवें । साह हीराचंदको यह वात वज्रके समान लगी। क्योंकि यह अपने छोटे भाईसे अति प्रेम करते थे और अपनी संतानसे इनकी अधिक खातिर करते थे व किसी प्रकारका कष्ट नहीं होने देते थे। दूसरे हीराचंदनीको अब तक किसी पुत्ररत्नका लाभ भी नहीं हुआ. था, अतएव वह अपने भाईही को देखकर हर तरह सन्तोष मानते थे। . हीराचंदजीने वग्वतचंदसे इस नादानीका कारण पूछा परन्तु कुछ उत्तर न पाकर परम्पर मेलके लाभ और भिन्नताके अलाभ भले, प्रकार समझाए, पर जिसकी बुद्धिमें किसी प्रकारका हठ होजाता है वह उसको नहीं छोड़ता। निदान जब वखतचंदकी समझमें कुछ भी नहीं आया तब हीराचंदने लाचार हो पृथक् होनेका प्रबन्ध किया। १५ दिनका समय लेकर सर्व हिसाब तय्यार करके सर्व मालमता रुपया पैसा आधा आधा इस तरह बाँट दिया कि वखतचंद और उसकी स्त्रीको इसमें पूरा २ सन्तोष हुआ। यद्यपि हीराचंदकी कमाई प्रायः उसीके ही परिश्राकी थी पर हीराचंदने अपना स्वार्थ, कुछ न रख धर्म सम्बन्धको मध्यमें डाल कर पुरा २ न्याय कर दिया। विनलीबाईको भी इसमें किसी तरहकी नाराजी नहीं हुई। यद्यपि पृथक् होनेमें अवश्य उसको दुःख हुआ क्योंकि वह वखतचंदकी वहको बहुत चाहती थी और घरके कामकाजमें उससे मदद भी बहुत मिलती थी । पुराना मकान साह हीराचंदके ही अधिकार में आया। वखतचंद दूसरे मकान में रहने लगे। For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुल में जन्म | [ १०१ साह हीराचंद को पुत्र लाभकी चिन्ता अवश्य रहा करती थी सो धर्म और न्याय प्रकृतिधारीके पुण्यके सेठ मोतीचंदका उदयसे संवत् १९०३ में प्रथम पुत्ररत्नका जन्म | लाभ हुआ । साहनी और उनके कुटुम्बि योंने पुत्र लाभका बड़ा ही आनन्द माना । 'हीराचंद धनाढ्य नहीं थे, साधारण गृहस्थ थे, इससे इन्होंने किसी प्रकारका नाच तमाशा न करके केवल मंदिरजीमें उत्सव सहित - पूजन कराई, कुटुम्बियों का भोजनसे सत्कार किया और याचकोंको यथाशक्ति दान बाँटा । खूत्र विचार कर पुत्रका नाम मोतीचंद - रक्खा । यह पुत्र सुन्दराकार और गोल मोतीके समान मुखवाला था। विजलीबाईके पुत्रपालनके हुनरसे पुत्र धीरे २ बढ़ता गया और किसी प्रकार के रोग में ग्रसित न हुआ । इस समय हेमकुमरी १० वर्ष व मंछाकुपरी ६ वर्षकी थीं। हेमकुमरीको माताने वरका कामकाज सर्व धीरे २ सिखला दिया था। साधारण स्थितिके कारण हीराचंद के घर में नौकर चाकर नहीं थे । हेमकुमरी और मंच्छाकुमरी छोटे बच्चेको खिलाने में बहुत सहायता देती थीं। उस समय कन्याओंके पढ़ानेका रिवाज़ बहुत ही कम था इससे हीराचंदने अपनी कन्याओंको अक्षरज्ञान करानेका कुछ उपाय नहीं किया । तौभी जहाँ माता धर्मात्मा, प्रवीण और गुणवाली होती है वहाँ उसकी कन्याएं भी यदि माता चाहे तो प्रवीण बना सक्ती है । विजलीबाईके दिलमें सर्वसे पवित्र काम भगवत् भजन और तब फिर अपने बालकोंकी सेवा थी । - बालिकाकी सुश्रूषा के सामने पतिभक्ति व पतिसेवा भी गौण रूपसे थी । मेरे लड़का लड़की बड़े यशस्वी व उपयोगी हों, धर्मकर्ममें सावधान • For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२] अध्याय तीसरा । हों, आचरणमें कुशल और निर्मल हों, यही भावना निरंतर विजलीबाईके हृदयमें लहराया करती थी। . मोतीचंदके जन्मके २-२॥ वर्ष पीछे ही संवत् १९०५ आषाढ़ सुदी ८ के दिन जब अष्टान्हिकाका महान सेठ पानाचंदका पर्व प्रारंभ होता है, विजलीबाईको दूसरे पुत्रजन्म। रत्नका लाभ हुआ । इस पुत्रका उदय देख कर व इनके मुखको निहारकर माताको बड़ा ही हर्ष हुआ। पिताने इसका नाम पानाचंद रक्खा । यद्यपि हीराचंद अफीमका काम करते थे पर अपना नाम हीरा होनेसे पन्ना हीरा मोती आदि जवाहरातके धन्देका मानो स्वप्न ही देखते थे और यह भावना रखते थे कि हम अपने पुत्रोंको जौहरी ही बनाएंगे। इसी भावनासे प्रेरित हो ऐसे ही नाम अपने पुत्रोंके नियत किये। पानाचंदके जन्मपत्रका हाल सुनकर हीराचंद व कुटुम्बियोंको बड़ा ही आनन्द हुआ। जैसा इसका मुख अपने उच्च भाग्यको प्रगट करता था ऐमा जन्मपत्रने भी सूचित किया। मातापिताको अपने पुण्यके उदय पर बड़ा ही सन्तोष था। इस समय हेमकुमरीकी अवस्था १२ वर्षकी हो गई थी। अबतक इसकी सगाई मातापिताने नहीं की हेमकुमरीका लग्न । थी। यद्यपि चारों ओरसे माँग आरही थी। अब साह हीराचंदने विवाह योग्य जान हेमकुमरीकी लग्न बागड निवासी पर बम्बईमें व्यापार करनेवाले एक वीसाहूमड सेठ प्रेमचंदके पुत्र हेमचंदके साथ बड़े प्रेमके साथ कर दी। इस लग्नमें साह हीराचंदने सम्बन्धियोंका बड़ा सन्मान किया और For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [१०३ न अपनी शक्तिको छिपाकर न स्वशक्तिसे बाहर विवाहमें खर्च उठाया। हेमचंद बड़ा ही सुशील, सौम्यमुख, उद्योगी और धर्भ प्रेमी १८ वर्षका युवान था। हेमकुमरी हेमचंदको प्राप्त होकर परस्पर प्रीतिमें इस तरह रम गई जैसे हेमकी चमक हेममें रम जाती सेठ चुन्नीलालका है और दोनोंकी एकता अति सुन्दराकार परिचय। सुवर्णको दिखाती है। हेमचंद प्रेमचंदका व्यापार बम्बईमें चलता था। यह जरीके कामके लिये प्रसिद्ध थे । अब भी इनके यहाँ ज़रदोज़ी काम बहुत ही अच्छा होता है । सेठ हेमचंद व हेमकुमरीके तीन पुत्रोंमें एक पुत्र सेठ चुन्नीलालजी इस समय बम्बईमें विद्यमान हैं। इनको धर्मसे बड़ा ही प्रेम है। श्री जिनेन्द्रकी भक्ति व स्वाध्यायमें निरन्तर लीन रहते हैं। इनकी स्त्री नंदकोरबाई भी बड़ी धर्मात्मा लिखी पढ़ी व पतिभक्त हैं। इनसे ५ पुत्र व १ पुत्री है। बड़े पुत्रका नाम अमरचंद है, जो व्यापारमें दक्ष है। इससे छोटा पुत्र रतनचंद बी० ए० क्लासमें पढ़ रहा है, तीसरा नौनीतलाल इन्टरमें पढ़ रहा है और और २ लड़के भी विद्याभ्यास करते हैं। सेठ चुन्नीलालजीने श्री पावागढ़ क्षेत्रके एक प्राचीन जिन मंदिरका जीर्णोद्धार कराया है और उसकी प्रतिष्ठामें भी खूब द्रव्य लगाकर उस मौकेपर बम्बई दिगंबर जैन प्रांतिक सभाका वार्षिक अधिवेशन कराया था। आप श्री पावागढ़ क्षेत्रकी प्रबन्धकारिणी सभाके सभापति हैं। व्यापार भी अच्छा चलता है । बम्बईके गुजराती प्रतिष्ठित धनाढयोंमेंसे आप भी एक प्रसिद्ध मान्य पुरुष हैं और गुजराती मंदिरके For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] अध्याय तीसरा । प्रबंध करनेमें आप ही प्रधान व्यक्ति हैं । वास्तवमें जिसकी कुलपरम्परा अच्छी होती है उसकी सन्तति यदि ऐसा कोई अंतराय न पड़े तो वह भी अच्छी ही होती है । हेमकुमरीकी लग्न करने के वाद साह हीराचंद व्यापार में लीन हो गए। माता पिता पानाचन्दकी वृद्धि पाती हुई मूर्तिको देख देखकर हर समय प्रफुल्लित होते थे । सूरत नगर में इंग्रेजी राज्य के होनेसे इंग्रेजी पढ़नेकी चर्चा बढ़ने लगी और साथ ही लोगों में पुस्तक और समाचार पत्र पहनेका भी शौक बढ़ा । संवत् गणपतराव गायक 1 वाड़का दान | १९०७ व सन् १८५० में एडूस एड्स लायब्रेरी नामका पुस्तकालय स्थापित हुआ । लोग इसके द्वारा गुजराती व इंग्रेजी पुस्तक व पत्रोंके पढ़ने का लाभ लेने लगे। संवत् १९०८ व सन् १८५१ में गणपतराव गायकवाड़ जिनको अपने वैष्णव धर्मसे बहुत प्रेम था जंजूरी ग्राम खंडोबाकी यात्रा करनेको निकले थे तब सूरत होकर गए थे। यहाँके नागरिकोंने इनका बहुत सन्मान किया था। गायकवाड़ने स्वधर्म वृद्धि या यश लाभ चाहे जिस कारण से हो सूरत में इतना धर्म व दान किया कि सारे नगर में उनकी कीर्त्ति छा गई। जितने दिन वे ठहरे मानो धर्म व दानका राज्य ही हो गया । उसी समय एक रात्रि को अपनी पत्नी से बातें करते हुए साह हीराचंदने गायकवाड़ के दानकी बड़ी प्रशंसा की और गायकवाड़की जो कुछ चर्चा बाज़ार में सुनी थी वह सब कह सुनाई । उसी कथनमें यह भी बयान किया कि गायकवाड़ने ब्राह्मणोंके सत्कार करनेके सिवाय हरएक मंदिर व पाठशाला में द्रव्यदान किया तथा नगरके For Personal & Private Use Only दानकी वासनाओंमें शेठ माणिकचन्दका अवतार । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [ १०५ गरीबों को तृप्त किया। विजलीबाईका चित्त बड़ा कोमल था। जब वह किसी गुणकी बात सुनती थी तो उसका दिल भर आता था । उसके मन में यह आया कि कि कब मैं इस योग्य होऊँ कि खूब दान धर्म करूँ और सर्वको तृप्त करूँ । विचारते २ उसने हीराचंदजी से कहा कि देखो हमारे भी कभी ऐसे पुण्यका उदय आवे जो हमसे भी खूब दान धर्ममें द्रव्य खर्च किया जावे। साह हीराचंदने कहा कि हम तो इतने भाग्यशाली नहीं है क्योंकि इतने दिन व्यापार करते बीते कभी हम अपने खर्च अधिक नहीं कमा सके । ज्यों त्यों कर हेमकुमारीका विवाह किया था उसके पीछेसे व्यापार साधारण ही चला । हाँ, जिस वर्ष पानाचंद का जन्म हुआ था उस वर्ष व्यापारमें अच्छी पैदा की थी । अब तो साधारण ही लाभ हो रहा है । परंतु यह मुझे आशा है कि पानाचंद अवश्य भाग्यशाली होगा और द्रव्य कमाएगा । उस समय यदि उसका परिणाम दान धर्म में होगा तो वह भी अपने दानकी सुगंधको उसी तरह विस्तारे-गा जैसे आज गायकवाडका यश हो रहा है । इस तरह परस्पर वार्तालाप करते पति पत्नी उस रात्रिको अति प्रेमसे अपने खास शयनालय में सोए । उसी रात्रिको विजलीबाई गर्भवती हुई । विजलीबाईका मन रात्रभर दानकी उमंगमें भीज रहा था । यह वही रात्रि है जिसमें इस पुस्तक के नायक प्रसिद्ध सेठ माणिकचंद - का जीव विजलीबाईके गर्भमें आया, जिस आत्माने गर्भस्थान में 'निवास करते ही उस स्थानको दानधर्मकी वासनासे वासित पाया । ज्यों २ गर्भ बढ़ाता था विजलीबाईका मन दानके लिये उमंगता था । साधारण स्थितिके कारण इतना तो वह अवश्य करती थी For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] अध्याय तीसरा | कि जो कोई अपाहन दरवाज़े पर आ जाता था उसको मुट्ठीभर अन्न जरूर दे आती थी। अच्छी भावनाओंका असर भी अच्छा ही हुआ करता है | विजलीबाई के धर्ममें झुकते हुए भावोंका असर उस गर्भ स्थित बालक पर भी पड़ता था । जगतमें निमित्त नैमित्तिक सम्बन्धसे अनेक अवस्थाएं हो जाती हैं । पूर्वबन्ध जड़ क्रय कर्मोंका असर संसारी आत्मापर पड़ता है । और संसारी आत्मा के भावोंसे पुलका परिणमन होता है। बाहरी पदार्थ भी भावों में असर डालते हैं । 1 सुयोग्य सम्बन्धों में प्राणोंकी वृद्धि करते हुए नौ (९) मास वीत गए और दिवालीकी निकटताका समय सेठ माणिकचन्दका आ गया। इस कारण उच्च कुली सर्व ही जन्म सं० अपने स्थानोंकी सफाई तथा लीपापोती कराने लगे । साह हीराचन्दने भी अपने मकानकी १९०८। शुद्धि व पुताई कराई । कार्तिक वदी १३( आसोज वदी १३ गुज० ) का दिन आ पहुँचा । इसको धनतेरस भी कहते हैं । बहुत से लोग आजकल घरमें कुछ नए बरतन भी खरीद कर लाते हैं । यह दिन एक मंगल दिवस माना जाता है । इसी दिन प्रातःकालके शुभ मुहूर्त्त मैं विजलीबाईने पुत्ररत्नका जन्म दिया । इस समय भी पुत्रका मुख देखकर माता पिताको जो आनन्द हुआ वह वचन अगोचर है । जैसे पाना चंदके मुखपर तेज झलकता था ऐसा ही इस पुत्रके मुख से प्रगट होता था । साह हीराचंद ने इस पुत्रका माणिकचन्द नाम रक्खा और यथायोग्य श्री जिनमंदिरजी में पूजा कराई, कुछ दान बाँटा तथा कुटुम्बियोंको तृप्त किया । For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwmorror उच्च कुलम जन्म । १०७ .....mmmmmmmm amarrrrani जब यह गोदमें खिलानेलायक हुआ इसको देखकर हरएक प्यार करना चाहता था। ऊंचा माथा, बड़ा सिर, बड़ी चक्षु, सुडौल हस्त पग आदि देखनेसे माणिकचंद एक महान पुरुष होगा ऐसी कल्पना बुद्धिमानोंके चित्तमें हो उठती थी। जन्म पत्रसे भी इस बालकके ऐश्वर्यवान व यशस्वी होनेका पता लगता था। इसका शरीर भी बहुत सुन्दर और गठा हुआ था। खपाटिया चकलेका मकान जिसका चित्र पहले दिया गया है और जो अब भी मौजूद है मोतीचंद, पानाचंद और माणिकचंद पुत्र और मंच्छाकुमरी पुत्रीसे बड़ाही रमणीक मालूम होता था । इस समय मंच्छाकुमरीकी आयु ११ वर्षकी, मोतीचंदकी ५ और पानाचंदकी २॥ वर्षकी थी। हेमकुमरीकी तरह मंच्छाकुमरी भी घरके कामकाजमें प्रवीण कर दी गई थी। जब यह १२ वर्षकी हुई मंछाकुमरीका साह हीराचंदने इस कन्याका विवाह सुरत विवाह । निवासी वीसा हूंमड़ गंगेश्वर गोत्री ब्रीजलाल शीतलदासके पुत्र झवेरचंदके साथ कर दिया। झवेरचंद साधारण लिखा पढ़ा था पर बुद्धि तीव्र थी। अपनी मध्यम स्थिति होनेके कारण पिताके साथ व्यापार में जाता था। ____मंच्छाबाई और अवरचंदके संयोगसे संवत् १९२४ चैत्र सुदी ११ के दिन सेठ चुन्नीलालजीका जन्म सेठ चुन्नीलाल भया । यह चुन्नीलाल सेठ माणिकचन्द झवेरचन्दका पानाचंदके व्यापारमें मुख्य सहायक होनेके जन्म। सिवाय धर्म कार्योंमें बड़े ही उत्साही थे। आप भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र क.. For Personal & Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] अध्याय तीसरा । 1 मेटीके सहायक महामंत्री थे, तीर्थभक्त थे । इन्होंने मुरत के सर्वसे प्राचीन श्री शांतिनाथजीके छोटे मंदिरका जीर्णोद्धार संवत् १९९६ में कराया और इसका शिखर बंधवाकर घूमसे प्रतिष्ठा की थी । । जन्म । मोतीचन्द जब ६ वर्षसे अधिकका होगया तब हीराचंदने इसको देशी निशालमें पढ़ने भेज दिया । पानाचन्द सेट नवलचन्दका और गोढ़के बच्चे माणिकचन्दको बिजलीबाई घर ही में नाना प्रकारकी उत्तम शिक्षा दिया करती थी । इतने में वह फिर गर्भवती हुई और संवत् १९११ में चतुर्थ पुत्ररत्नको उत्पन्न किया । इस समय भी पुत्रका लाभ देखकर माता पिताको बड़ा ही सुख भया । हीराचन्दने इसका नाम नवलचंद रक्खा | इसका जन्मपत्र भी इसके सौभाग्यवान और ऐश्वर्यवान होनेकी साक्षी देने लगा । इस तरह चार पुत्रोंसे सुशोभित होकर हीराचंद और विजलीबाई अपने घरको इसी तरह दीप्तमान मानने लगे जैसे राजा दशरथ और कोशल्या श्री रामचंद्र, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्नको देख कर आनन्दित होते थे । हीराचंद अब धर्ममें और अधिक प्रीति करते भए । अधिक समय श्रीजिनेन्द्रकी भक्ति व स्वाध्यायमें व्यतीत करने लगे । तृयीय पुत्र माणिकचंद को उंगली पकड़कर यह मंदिरजी ले जाते थे और अपने पास बिठालेते थे । यह बालक शुरुसेही बहुत विचारवान और शांत मिज़ाज़का था । रोना तो जानता ही न था । सच है जो अपने जीवन में महान कृत्य करनेवाले होते हैं उनकी शुरुसे ही उत्तम चेष्टा For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्च कुलमें जन्म । [ १०९ होती है। उनको पूर्वजन्मका उत्तम संस्कार भी होता है। इसतरह हीराचन्द धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थको भोगते हुए अतिसंतोषसे रहने लगे और जातिमें एक आदरणीय गृहस्थ माने जाने लगे। For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] अध्याय चौथा । अध्याय चौथा। सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । साह हीराचंद अब पुत्रोंकी सम्हाल व उनकी साधारण शिक्षा पर ध्यान रखने लगे। मोतीचंदको दो वर्ष १८५७के गदरका तक देशी निशालमें पढ़ाकर फिर एक गुजसमय। राती स्कूलमें पड़ने भेज दिया, इसी तरह पानाचंदको भी दो वर्ष तक देशी निशालमें पढ़ाकर गुजराती स्कूलमें भेना । इतने में माणिकचंद ६ वर्षके हुए। इसको मंदिरजीमें देर तक बैठनेका शौक था । जो कोई शास्त्र पढ़ता यह बिना समझे भी सुना करता था । संवत् १९१४ या सन् १८५७ बड़ा विकट वर्ष था। सूरतमें लश्करका आना जाना बहुत रहता था। यद्यपि वहाँ कोई हुल्लड नहीं था। पर उत्तर हिंदुतानमें इंग्रेजोंसे देशी फौन बिगड़ उठी थी जिससे देहली, कानपुर, लखनऊ आदि स्थानों में बड़ा भारी गदर हो गया था। प्रजाजन लूटे जाते थे। लोग अपने २ मकान छोड़कर परदेश भाग रहे थे। इतिहासमें यह वर्ष बहुत प्रसिद्ध है। इस समय ईष्ट इंडिया कम्पनीकी सत्ता भारतमें थी। गदर शांत होनेके पश्चात् सन् १८५८की १ नवम्बरको प्रसिद्ध रानी कीन विकटोरियाने मारतकी राज्यसत्ता कम्पनीके हाथसे अपने हाथमें ली और भारतके धर्मकर्ममें समभाव रखने व हस्तक्षेप न करने आदिकी घोषणा प्रसिद्ध की। For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि | [ १११ अवस्था । इस समय माणिकचंदकी अवस्था ७ वर्षकी थी । पिताने इसे देशी निशालमें पढ़ने भेज दिया । नवलचंद घरहीराचन्दकी चिंतित हीमें माता पिताद्वारा शिक्षा प्राप्त करता था । संवत् १९१६ का वर्ष हीराचंद के लिये कठिन था। उधर पुत्रोंका खर्च बढ़नेके साथ २ व्यापार में शिथिलता हो गई। इधर विजलीबाईका शरीर बहुत नर्म रहने लगा और थोड़े दिनोंके पीछे ऐसा शिथिल हो गई कि उससे घरका कामकाज भी न होने लगा । बड़ी कठिनता से कुछ दिन सारे कुटुम्बकी रसोई बनाई परंतु जब अधिक ढीली पड़ गयी अर्थात् शय्यासे उठा नहीं गया तब हीराचंदजी और छोकरोंको मिलकर सबकी रसोई बनानी पडी व घरका सब कामकाज करना पड़ा । इस समय हीराचंद को चित्तमें बहुत खेद रहने लगा । व्यापारमें लाभ कम होनेसे घरका खर्च बडी तंगीसे चलता था तथा अपनी पतिभक्ता स्त्रीके शरीर शिथिल होनेसे मनको और भी उदासी हो गई थी । संसारकी विचित्र दशा है । पुण्य पापकर्मका उदय एकके पीछे दूसरा आया ही करता है । इस समय मोतीचंद् १३, पानाचंद ११, माणिकचंद ८ तथा नवलचंद ५ वर्षके थे I सिवाय छोटे तीनों अपना बहुतसा काम अपने आप कर लिया करते थे। सबोंमें माणिकचन्दको अभीसे धर्मकी बहुत बड़ी लग्न थी, यहाँतक की हररोज पासके मंदिरजीमें जा और लोगोंके साथ श्री जिनेन्द्रकी प्रतिमाओंका प्रछाल किया करता, जाप देता व कभी २ पूजनमें भी खड़ा होता था । पिताको इस समय दुःखी व उदास देखकर मोतीचंद और पानाचंद आश्वासन देते थे, जिसमें For Personal & Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२] . अध्याय चौथा। पानाचंद बड़े साहसके साथ कहते थे कि-पिताजी, आप चिंता न करें, मैं बड़ा हूँगा तब बहुत धन कमाऊँगा । माताकी सेवामें चारों ही पुत्र लवलीन थे । माता अपनी शिथिल अवस्थामें इनको देखदेखकर अपने जीवन में मैंने रत्न उत्पन्न किये ऐसा मानकर परम सन्तोष प्राप्त करती थी और जब कभी प्रेमभरी दृष्टिसे अपने स्वामीको निरखती थी तब अंतरंगमें महासुख प्राप्त करती थी। मनमें सिवाय : अर्हत सिद्ध ' के किसीका स्मरण नहीं करती थी। मुखसे भी यही सदा कहा करती थी। एक दिन विजलीबाईके चित्तमें यह अच्छी तरह जम गया कि अब मेरा अन्तसमय आ गया है। उसने साह माता विजलीबाईका हीराचंदको कहा कि अब मेरी आयु नहीं स्वर्गवास । मालम होती, मुझे धर्मके बचन सुनाओ और जो कुछ मुझसे दान पुण्य कराना हो सो इसी समय करा लो। साह हीराचंदकी आंखोंसे आंसू बहने लगे, दिल घबड़ा गया, पर यकायक मनको सम्हालर कहा-तुम्हें मरणकी चिन्ता नहीं करनी चाहिये । चिन्ता करनेसे भी आयु कम होती है ऐसा शास्त्रोंमें सुना है । धैर्य रक्खो । श्री पंच परमेष्ठिका ध्यान करो। मुझे तो आशा है तुम बहुत शीघ्र अच्छी हो जाओगी। यदि तुम्हारी इच्छा है कि अभी कुछ दान धर्म किया जाय तो तुम्हारे लिये सब कुछ हाज़िर हैं। ये चार पुत्ररत्न तुम्हारे मौजूद है। हमें तुम्हें कोई बातको फिकर नहीं है। साहनीने मोतीचंदको १०) दिये और कहा कि बाज़ार में गांधीके यहाँसे पूजनकी सामग्री ले आ। मोतीचंद समझता था, वह तुर्त गया पर बड़े उदास मनसे For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि | ६ ११३ सामग्री बंधवाकर घर आया । साहजीने तीनों लड़कोंको सामग्री साफ करके तय्यार करने को आज्ञा दी। उन तीनोंके साथ नवलचंद भी चॉवल उलटने पलटने लगा । उस समय माणिकचदका मुंह सबसे अधिक उदास था । यद्यपि वह ८ वर्षका था, पर वह समझता था कि माताजीने अंत समयपर दान करने को यह सामग्री मँगाई है । माणिकचंदका चित्त बड़ा कोमल था। किसी खास बातका उसके दिलपर बड़ा असर हो जाता था । कभी २ आंखसे पानी भी निकलनेको होता था, पर वह रोक लेता था कि और भाई बुरा समझेंगे । सामग्री तय्यार होने पर सूरतके सर्व मंदिरों में दिये जानेको साहजीने थाल सजे और यथायोग्य दो दो एक एक रुपया नगढ़ी रखकर विजलीबाई के सामने रख दिये । बाईने कहा कि हर एक मंदिर में इनको भेज दो । साहजी ने लड़कोंके द्वारा मंदिरों में सामग्री भिजवा दी तथा प्रबन्ध करके २५० ) और उसके सामने रख दिये और कहा - "जहाँ तुम्हारी इच्छा दानकी हो वहाँ दान करो।" इस समय मंच्छाकुमरी भी आ गई थी । वह देखकर रोने को हुई परन्तु साहजीने मना किया । विजलीबाईने २५० ) देखकर एक दफे पति से कहाआप मेरे लिये कष्ट न सहें। मंदिरों में सामग्री भेज दी सो बस है । हीराचंदजीने कहा मैं इस समय लाचार हूँ नहीं तो तुमने जो उपकार किया है उसके लिये मैं कुछ नहीं कर सक्ता । हजारों लाखोंका दान तुम्हारे हाथसे होता । मेरी तो यह भावना थी । यह रकम तो कुछ नहीं है। श्री जिनेन्द्र के प्रतापसे व्यापारद्वारा सब कुछ मिल जायगा, सब कुछ हो लेगा; पर तुम्हारे हाथसे दान तो For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] अध्याय चौथा। होना ही चाहिये। विनलीबाईने पचीस २ रुपये श्री सम्मेदशिखर, पावापुर, चम्पापुर, गिरनार सिद्धक्षेत्रों में, १५) पालीताना सत्रुजय, १५) श्री गजपंथाजी, १५) श्री पावागढ़नी, १५) तारंगाजी सिद्धक्षेत्रोंमें, ४०) भूखोंको अन्नादि घटनेमें और शेष रुपये शास्त्रदानमें देनेको कहे। साहजीने सब लिख लिया। ... हीराचंदको भी.मनमें निश्चय हो गया कि अब इसका शरीर चलता हुआ नहीं मालूम होता । हेमकुमरी भी उन दिनों सूरतमें ही थी। वह भी आ गई। रात्रिको विजलीबाईने हेमकुमरीसे कहा कि, हेम! आज रात्रिको मेरा शरीर नहीं रहेगा ऐसा मालूम होता है; सो तुम मुझे एक दफे देहरासर ले चल कि मैं श्री जिनेन्द्र प्रमुके दर्शन कर लूं। श्री मंदिग्जी पासमें ही था । मंदिरजीमें एक व्यासन थी। वह बलिष्ठ शरीरकी थी। वह अपनी गोदमें विनलीबाईको मंदिरजी ले गई। साथमें दोनों बहनें गई। वहां नहनोंने भगवानके सामने बिठाया। बहुत ही भक्तिसे प्रभुकी शांत छविको निरखकर मन ही मन स्तुति पढ़ झुक गई और वहीं प्रतिज्ञा ले ली कि अबसे आज रातभर मुझे जलपानी आदिका त्याग है जो कुछ वस्त्र व शय्या आदि मेरे पास है उसके सिवाय और परिग्रहका भी त्याग है। ..! घर आकर विजलीबाई शांतिसे शय्यापर लेट गई । इस समय सर्वको निश्चय हो गया कि अब बाईके प्राणान्तका अवसर है। और भी कुटुम्बीनन आ पहुँचे । नवलचंद तो सो गया, पर माणिकचंदको नींद नहीं आई। यह पड़े २ रोने लगा। उधर साह हीराचंदनीका भी जी घबड़ाया और थोड़ी देरके लिये एकान्तमें जाकर खूब रोए । फिर वे मन वांभकर शय्याके पास आए और For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । । ११५ उस समय कुटुम्बियोंका ज्यादा जमाव देखकर इनने सबसे कहा कि इनके पास वे ही रहें जो धर्मके पाठ व णमोकार मंत्र पढ़ें, शेष दूर २ बैठे और इस तरह बात न करें जो इनके कानमें शब्द जाय। र त्रिको अनुमान ३ बजे होंगे तब विनलीबाईने कहा कि मुझे शय्यासे भूमिपर ले लो। भूमिपर वासका साथरा करके उन्हें धीरसे लिटा दिया गया। उस समय साह हीराचंद स्वयं बड़े ही मिष्ट वचनोंसे णमोकार मंत्र पढ़ने लगे व बारह भावना या ममाधिमरणका पाठ सुनाने लगे । धर्मध्यान करते २ विजलीबाईकी आत्मा प्रातःकाल होते होते इस क्षणिक शरीरको छोड़ कर चल दियाजीवके सम्बन्धमें होते हुए जो कान्ति शरीरकी थी वह सब जाती रही। अंगोपांग वैसेके वैसे रहते हुए भी शरीर अचेतन-जड़-मिट्टीके समान होगया । वे नाना प्रकारके ज्ञान पूर्ण विचार जो अभी २ शरीरके आश्रय हो रहे थे वे सर्व बंद होगए । कारण यही कि चैतन्य गुणधारी पदार्थ इस तन रूपी झोपड़ीसे बाहर चला गया । जीवन क्षणिक है। कोई भी शरीरधारी अमर नहीं रह सक्ता, सर्व ही को परलोकमें जाना है, अतएव ज्ञानी जीव परलोकके लिये अवश्य यत्न रखते हैं। जो वर्तमानके विषयभोगोंमें गाफिल हो जाते हैं वे आने आपको ठगत हैं और खोटी गतिमें जानेकी तय्यारी कर लेते हैं । चारों ही पुत्र अपनी माताको अनबोल व मुर्दा देखकर हम असहाय हो गए ऐसा मानते हुए। -माणिकचंद और पिता हीराचंदके आंखोंसे आंसुओंका टपकना बन्द न हुआ। प्रातःकाल ही सर्व दग्ध क्रिया आदिका प्रबन्ध For Personal & Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ] अध्याय चौथा। हुआ। अब वह घर जो विनलीवाई सरीखी स्त्रीरत्नके रहते हुए विजलीके समान चमकता था, बिलकुल सुनसान हो गया। मानो एक प्रकाशमान दीपक ही बुझ गया । घरमें कोई भी स्त्री न होनेसे कुछ दिन तो हेमकोर और मंच्छाने रसोई बनाकर खिलाई तथा घरका कामकाज किया, पर जब वे अपनी ससुराल चली गई तब फिर अकेले हीराचंदजीको द्रव्य कमाने के साथ २ स्त्री सम्बंधी आरंभ कार्य भी करने पड़े, क्योंकि स्थिति साधारण थी, इससे कोई रसोई करनेवालेको नहीं रख सक्ते थे । पर साह हीराचंद बड़े ही बुद्धिमान, धर्मबुद्धि व धैर्यधारी थे, समताके साथ सारा काम करते हुए अपना समय विताते थे, पर जब जरा भी खाली होते थे तभी बिजलीबाईकी स्मृति बिनलीके समान इनके चित्त के सन्मुख चमक उठती थी। वे ऐसी पतिव्रता स्त्रीको कत्र भूल सक्ते थे ? इस समय हेमकुमरी जब बम्बई जाने लगी तब अपने पितासे विनती की कि सूरत में जब व्यापार कम मोतीचंदका बम्बई हो चला है और बम्बई में व्यापारकी वृद्धि जाना। है तब उचित है कि आप मोतीचंदको मेरे साथ कर देवें तो मैं इसे कोई. व्यापारकी शिक्षामें डाल दूँ । हीराचंदकी दशा बहुत शोचनीय थी। इस समय इनके अशुभ कमेका उदय था । यह चाहते ही थे कि मोतीचंदकी उम्र १३ वर्षकी है, इसे कोई आलम्बन मिले; क्योंकि अफीमका व्यापार मंद दशापर है, इसे उसमें जोड़नेसे कोई लाभ न होगा। For Personal & Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । [११७ पुत्री हेमकुमरीके साथ पिताने मोतीचंदको बम्बई भेज दिया । उस वक्त सूरतमें बम्बईकी शोभा और महत्ताकी बड़ी धूम थी। मोतीचंद अपने साथके लड़कोंसे व इधर उधर बम्बईकी बातें सुन चुका था। पिताकी आज्ञा पाते ही यह खुशीसे बहिनके साथ बम्बई चला गया। हेमचंदजीने मोतीचंदको बड़े प्यारसे स्क्वा। भोजनपानादिमें भले प्रकार खातिर की कि जिसमें इसका मन उचाट न हो, और हेमकुमरीकी सम्मतिसे मोतीचंदको मोती पुराना सिखानेके लिये मोती पोरनेवाले एक प्रवीण जौहरीके सुपुर्द कर दिया मोतीचंद बड़े आनन्दसे रहता और मोती पोरनेके हुनरको बड़े प्रेमसे सीखता था। उस समय बम्बईमें मोती पोनेका हुनर जिनको अच्छी तरह आ जाता था वे प्रतिदिन दो २ तीन २ रुपयेकी मजदूरी सुगमतासे कर लेते थे । जब इसको बम्बईमें दो वर्षके अनुमान हो गया और यह इस हुनरमें चतुर हो गया तथा इसे कुछ लाभ भी होने लगा तब हेमकुमरीने अपने पिताको खबर की कि द्वितीय पुत्र पानाचंदको भी यहां भेज दो। पानाचंदकी उमर उस समय १३ वर्षकी थी। यह गुजराती स्कूलमें पांचवीं कक्षा तक पढ़ चुके थे । पिताने इस पानाचन्दका बम्बई भारी आशासे, कि यह बालक चारोंमें तीव्र ___ जाना। बुद्धि और साहसी है, अवश्य यह एक दिन भारी व्यापारी हो जायगा, हेमकौरके लिखते ही इसे भी बम्बई भेज दिया। इसका मन पढ़नेकी अवस्थामें भी द्रव्य कमानेको चला करता था। पितासे आज्ञा पाते ही यह किसी For Personal & Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] अध्याय चौथा । सम्बन्धी के साथ बम्बई आया और अपनी बहिन के यहां ठहरा । बहिन के कहने से सेठ हेमचंढ़ने पानाचंदको भी मोती पुरानेके काम पर सीखनेको बिठा दिया । इसने बहुत ही थोड़े दिनों में इस हुनर को सीख लिया, क्योंकि यह बहुत चतुर व भाग्यशाली था । इसके पगमें पालकीका आकार था। इनको देखकर प्रवीण पुरुष भाग्यशाली कहकर बुलाते थे । बाद सीखनेके इसको भी व्यापारियोंसे मोती पोरनेका काम मिलने लगा । मोतीचन्द और पानाचन्द दोनों भाई बहुत दिलचस्पी से व्यापारियोंका काम कर देते थे, जिससे इनको परिश्रमका अच्छा फल मिलने लगा । एक दिन दोनों भाइयोंने सलाह की कि बहिन के यहां सदा ही खाना पीना अच्छा नहीं । यहाँ परदेशियों के जीमनेके लिये वीसियां व भोजनशालाएं बहुत हैं, हम उनमें खर्च देकर भोजन कर आएंगे और स्वतंत्रता से रहेंगे ऐसा बिवार दोनों भाइयोंने किया और एक दिन अपनी बहिन को अपने मनकी बात समझा दी । हेमकौर बड़ी चतुर व समझदार थी। इनको आज्ञा दे दी। अब ये दोनों बीसी में जीमने लगे और रुपये कमाकर अपने पिताजीको भी भेजने लगे । सं. १९१९ की दिवाली के उत्सव देखनेके लिये इनकी बहिन मंच्छाकुमरी बम्बई आई, क्योंकि उस बम्बईकी दिवाली। समय बम्बईकी दिवालीकी शोभा मशहूर थी । अब भी दिवाली में बम्बई बहुत ही सुसज्जित हो जाती है। मंच्छाबहिन ने अपने दोनों भाइयोंको मोती पुरानेके काम में उद्योगी व अपने परिश्रमसे द्रव्य कमाते व खर्च For Personal & Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सठ माणिकचंदकी वृद्धि । [ ११९ करते हुए देखा तब बहुत ही प्रसन्न हुई और लौटकर अपने पिताको सर्व हाल कहा, तथा यह भी कहा कि यदि आप भी इन दोनों पुत्रोंको साथ लेकर बम्बई जावें तो अच्छा हो । इधर पानाचढ़ने भी अपने पूज्य पिताजीको पत्र लिखा कि आप वहाँ अफीमका काम बन्दकर दोनों भाइयों को लेकर बम्बई चले आवें, जिससे हम सब मिलकर यहां अपना भाग्य अजमावें । साह हीराचंदका काम यहाँ नहीं चलता था, रोज़ स्वयं हाथसे रोटी बनाकर खिलाते थे, इससे साहजीने भी बम्बई चलनेकी ठान ली । इस समय माणिकचंदकी अवस्था १२ वर्षकी थी । यह देशी निशालसे उठकर गुजराती शाला में ५वीं सेठ माणिकचंदजीका कक्षा तक भाषा आदिका ज्ञान कर चुके थे 'छोटे भाई के साथ तथा नवलचंद केवल ९ वर्षके थे । यह देशी बम्बई जाना | निशालसे उठकर किसी गुजराती शाला में भरती नहीं हो सके। घर ही में अपने पूज्य पितासे गुजराती आदि सीखे थे। साह हीराचंद ने अपना सब काम समेट कर बाज़ार में जिसका जो देना था सो सब चुका दिया और संवत् १९२०के प्रारंभ में ही हीराचंदजी दोनों पुत्रोंको लेकर बम्बई आ गए और एक 'वाकनीनी चाल' नामक भाड़ेके मकान में ठहरे | साह हीराचंदजी को यह पसन्द नहीं था कि ब्राह्मण आदि अजैनोंकी व अविवेकी जैनोंकी बीसीमें हीराचंदजीकी पुत्र मूल्य देकर अशुद्ध भोजन किया जाय । उन्होंने जाते ही मोतीचंद और पानाचंदको मी बीसी में नहीं जीमने दिया, अपने हाथसे सेवा । For Personal & Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] ...अध्याय चौथा। रसोई बनाकर रोज चारों पुत्रोंको खिलाने लगे और समयपर बाजार में भी जाकर कुछ साधारण व्यापार करने लगे। - माणिकचंदकी रुचि हिसाब किताबमें देखकर एक सराफके यहाँ बही खाता सीखनेके लिये बैठाया । १ वर्षमें ही यह सब दंग जान गए तब हेमकौरके कहनेसे सेठ हेमचंद प्रेमचंदने अपनी दुकानपर बिठाकर मुनीमतका काम लेना शुरू किया। थोड़े दिनोंके बाद पानाचंदने पिताजीसे कहा कि माणिकचंद बहुत परिश्रमी और चतुर है, मेरी रायमें इसे भी मोती पुराना सिखलाना चाहिये । हीराचंदजीने यह बात मानकर मोती. पुराना सिखलानेमें माणिकचंदको भी लगा दिया। वास्तव में माणिकचंद पानाचंदकी उच्च स्थिति लानेमें मूल निमित्त कारण सेठ चुन्नीलाल हेमचंदकी हेमकुमरीका उपकार । माता हेमकुमरी थी, जिसने अपने पिताको सुखी करने व भाईयोंकी उन्नत दशा कराने में पूरी २ सहायता दी । हेमकुमरीने अपना सच्चा बहिनपना पालन किया । माणिकचंदमें एक यह बड़ाभारी गुण था कि जिस काममें दिल लगाते थे उसमें बिलकुल लवलीन हो जाते थे, वास्तवमें सेठ माणिचंदका उपयोगकी एकाग्रता बड़े २काम व्यापार में लगना। कर सकती है। यह उपयोगकी एकाग्रता है जिसके कारण एक मुनि धर्मध्यानसे शुक्लध्यानको पाकर कर्मोको काट मोक्ष अवस्थाको प्राप्त कर लेते हैं। उपयोगकी एकतासे ही एक विद्यार्थी थोड़े ही कालमें किसी पाठको कंठ कर For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । [१२१ लेता है व समझ लेता है। उपयोगके एक ओर देर तक जमाए रखनेके कारण एक व्यापारी व्यापारके ढंग भले प्रकार सोच सक्ता है। प्रयोजन यह कि हरएक कामको धैर्यके साथ पूरा करनेके लिये उपयोगकी थिरताकी आवश्यकता है। एडिसन जैसे अमेरिका आदि देशोंके विद्वानोंने इसीकी बदौलत नाना प्रकारके यंत्र निर्माण किये हैं। विद्वान् लोग जब एकान्तमें किसी विषयका मनन करते हैं तो उसके भेदको खोज लेते हैं। टेलीग्राफ, टेलिफोन, वेतारका तार, मोटर गाड़ी, हवाई विमान आदि सर्व ही उपयोगकी थिरताके फल हैं । माणिकचंद इस उपयोगी गुणके आश्रयसे कुछ ही महीनों में ही मोती पुराने में चतुर हो गए और अपने दोनों भाइयोंके साथ मोती पोकर द्रव्य कमाने लगे। बाजार में लोग पानाचंद और मणिकचंदके कामको बहुत ही पसंद करते थे और इनको खूब ही काम मिलता था । कामकी अधिकता व अपना यश फैलता देख भाइयोंने पिता जीको कहा कि नवलचंदको भी यह काम नवलचंद भी व्यापारमें सिखाना चाहिये। नवलचंद अब अनुमान शामिल। ११ वर्षके थे । नवलचंदने भी १ वर्ष परिश्रम कर इस कामको सीख लिया। अब चारों भाई मिलकर बाजारके व्यापारियोंका मोती ले लेकर और पो पोकर देते थे। इनको सबसे अधिक एकतासे चारोंकी बाजारमें काम मिलने लगा, क्योंकि यह बहुत व्यापार में वृद्धि। चित्त लगाकर और सफाईसे वक्तके ऊपर सबका काम कर देते थे। चारों भाइयोंमें पूर्ण For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .१२२ ] अध्याय चौथा । .. प्रेम था । किसीके चित्तमें यह ईर्षा भाव नहीं था कि मैं इनसे चतुर हूं व मैं अधिक धनका हकदार हूं। चारोंमें पानाचन्द और माणिकचन्द ही बड़े चतुर और उद्योगी थ, पर यह बहुत ही समझदार, क्षमाशील और सादे मिनाजके थे । अधिक द्रव्य कमानेकी शक्ति रखनेपर भी कभी अपने मुंहसे अपनी बड़ाई नहीं करते थे । यदि इनमें मेल न होता तो इनकी इतनी प्रसिद्धि न होती । एकताके कारण बाजारमें चारों भाइयोंका कोई नाम नहीं लेता, किन्तु "भाई राम"के नामसे पुकारता था । सर्व व्यापारी इन चारोंको एक ही दिलवाले, ईमानदार, सत्यवादी और विश्वासपात्र जानने लगे । चार पांच वर्ष इस तरह मिहनत करने से इन्होंने खर्चसे अधिक रुपया पैदा कर लिया तथा मोती व जवाहरातकी पहचान भी अच्छी तरह कर ली। जब हीराचंदनी सुरतसे बम्बई आए थे तब सूरतसे बम्बई तक रेलगाड़ी नहीं थी, पर संवत् १९२१ या सन् सूरतसे बम्बई तक १८६४ ता० १ नवम्बरसे सूरतसे बम्बई तक रेल्वे। रेलगाड़ी चलने लगी। इन चारों भाइयोंमेंसे - जब किसी की इच्छा होती तब एक दो दिनके लिये सुरत चले जाते थे और वहाँके लोगोंसे व अपनी बहिन मंच्छाबाईसे मिल आते थे। अब इनके मुखोंपर कांति बढ़ गई थी, निराला जोश आरहा था। सूरतके लोग इनको उद्योगशील क कमाऊ जानकर बहुत ही प्रसन्न होते थे और जहा ये जाते थे व जिससे ये मिलते थे वह इनका सन्मान करता था। वास्तवमें देखा जावे तो व्यवहारमें द्रव्य और परमार्थमें आत्मज्ञान ही पूजे जाते हैं। For Personal & Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । ( १२३ जिस गृहस्थ के पास धन होता है उसकी सब लौकिक जन कदर करते हैं । वे यह भय नहीं खाते हैं कि इसको हमें कुछ धन देना पड़ेगा या हमसे यह कुछ मांगेगा, किन्तु इसके विरुद्ध उन्हें यह आशा होती है कि यदि हमें कभी कुछ जरूरत होगी तो इनसे मिल जावेगा । जगत स्वार्थ बुद्धिके नातेसे ही रहता है । इसी तरह जो साधु हैं उनमें यदि आत्मज्ञान और वैराग्य होता है तो जो समझदार हैं व सन्मान करते हैं । गृही धनके विना और साधु वीतरागता सहित आत्मज्ञानके बिना नि:सार है । गृहस्थके दिलको साहसयुक्त व रौनकदार बनानेवाले उद्योग हीमें धनका आगमन है। बस, इसी कारण से अब इन चारों भाइयोंकी हर जगह खातिर होती थी । इनमें से पानाचंद और माणिकचंदके ऊपर लोग अधिक मोह करते थे, क्योंकि चारोंमें यही दो सिंह युगलकी भांति झलकते थे । चारों ही भाई धर्ममें सावधान थे । पूज्य पिताकी कृपा से चारों ही बम्बई में नित्य श्री जिनेन्द्रका दर्शन माणिकचन्दजीको व जाप देकर भोजन करते थे । इनमें सबसे ८ वर्षसे मछाल- अधिक ध्यान धर्मकी ओर माणिकचंदका था । की आदत | इनको ८ वर्षकी अवस्था से श्री मंदिरजीमें प्रछाल पूजा करनेकी इन्होंने में आकर भी जारी रक्खा । यह मंदिर में रोज़ सवेरे जाते, वहीं स्नान कर प्रछाल आदत थी । इसको गुजराती दि० जैन पूजन करते, जाप देते व कुछ पढ़कर घर आ भोजन करते थे । १५ वर्षकी उमर तक इनका स्वाध्याय बहुत मामूली था । एक दिन यह अपने १५ वें वर्ष में अर्थात् संवत् १९२३ में पूजा से For Personal & Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] अध्याय तीसरा । निवटकर बैठे हुए थे तब एक मारवाड़ी शास्त्र के ज्ञाता उस मंदिरमें दर्शनार्थ आये । वे इस बालकको देखकर इसके पास बैठ गए और इससे धर्मकी चर्चा पूछने लगे। इस समय तक यद्यपि ये कुछ पढ़ते तो रहते थे, पर किसी प्रश्नका जवानी उत्तर नहीं दे सक्ते थे। उस विद्वान्ने इनको उपदेश दिया कि तुम नियमसे शास्त्रोंका स्वाध्याय क्रम क्रमसे किया करो और जो माणिकचंदका शास्त्र- बात न समझो वह किसीसे मालूम कर लिया स्वाध्याय प्रारंभ। करो । उसने कहा कि तुम श्रीपद्मपुराण और श्रीरत्रकरंड श्रावकाचारका स्वाध्याय पांच सात बार कर जाओ, तुम्हें बहुतसी चर्चा मालुम हो जायगी। माणिकचंद शुरूसे ही गुणग्राही थे। इस बातको इन्होंने पल्ले बांध उसी दिनसे श्रीपद्मपुराणका स्वाध्याय करना प्रारंभ कर दिया। माणिकचंदको गुजराती पुस्तक व समाचारपत्र वांचनेका भी शौक था। घरमें फुरसतके समय यह नाना प्रकारकी पुस्तकें पढ़ते थे तथा बम्बई में जब कभी व्याख्यान सभा सुनते थे, मौका निकालकर जाते थे और व्याख्यान सुनकर उसका सार ग्रहण करते थे और तीनों भाइयोंका इस तरफ कुछ ध्यान नहीं था। वे साधारण धर्मक्रिया व व्यापार धन्धेमें ही लीन थे। - संवत् १९२४ तक मोती पुरानेकी मजूरी करते रहे किन्तु बहुत सादगीसे रहने, किसी भी व्यसन मजदूरीसे व्यापारमें में न पड़ने और द्रव्यका व्यर्थ व्यय न करने आना। के कारण इनके पास इतनी पूंजी हो गई कि इन्होंने मोती पुरानेका काम छोड़ For Personal & Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • ~ ~ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । । १२५ स्वयं संवत १९२५ में जवाहरातका व्यापार करना शुरू कर दिया। इस वक्त बम्बईमें यद्यपि नरसिंहपुरा जातीय स्ठ प्रेमचंद बम्बईमें बीमा हमड़ोंमें परम १. धरमचंद जौहरीका काम अच्छा चलता था न तो भी बीसा हमड़ दिगम्बर जैनियों में तो प्रथम जोहरी। सबसे पहले इन्होंने ही जौहरीका काम शुरू किया । पुण्यके उदयसे इनको व्यापार में दिनपर दिन लाभ होता गया । पिता हीराचंदके समान इनकी भी प्रवृत्ति दान करनेमें थी। इनमें सबसे अधिक रुचि दानकी तरफमाणिकचंदजी की थी। जो कुछ रुपया ये चारों भाई कमाते थे उसे पिताजीको पास सोपते थे, वे ही सब हिसाब रखते थे, तथा परस्पर यह भी ठहराव कर लिया था कि आमदनीमेंसे अमुक रकम धर्मादा खात अवश्य निकालना और इस रकममेंसे जब जैसा अवसर होता था दानमें विचारपूर्वक द्रव्यको लगाते रहते थे। संवत् १९२६ की दीपमालिकामें सेठ हीराचन्दने चिट्ठा बनाया और तब मालुम किया कि अब इतना द्रव्य हो गया है जिससे बम्बईमें दूकान खोली जा सकती है। परस्पर सम्मति करके दूकान खोलनेका निश्चय किया । उस समय यह विचार पड़ा कि दूकानका माणिकचंद पानाचंद क्या नाम रक्खा जावे। तब हीराफर्मका खुलना। चदनीने कहा कि जिनका पुण्य व तेज . प्रबल हो उन्हींके नामसे दूकानको चलाना चाहिये । मैं ऐसा पुण्यात्मा नहीं इससे मेरा नाम नहीं होना चाहिये। For Personal & Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] अध्याय चौथा। . तब एकाएक मोतीचंद बोल ठे कि पिताजी ! हम सबमें पुण्याधिकारी, तेजस्वी और चतुर पानाचंद और माणिकचंद हैं इससे इन्हींके नामसे दूकानको प्रारंभ करना चाहिये । सर्वकी सम्मति इसीमें जमी और संवत् १९२७ में माणिकचन्द पानाचन्द जौहरी नामसे दुकान-कोठी स्थापित की। गुजरात देशमें पहले छोटेका फिर बड़ेका नाम रहता है । प्रायः जब किसीका नाम लेते हैं तो पिताके साथ ही लेते हैं, जैसे यदि माणिकचंदजीका नाम लेना होगा तो माणिकचंद हीराचंद नाम कहेंगे। शुभ मुहूर्त में जिनधर्मके अनुसार पूजा पाठ करके माणिकचंद पानाचंद जौहरी नामका फर्म कायम करके बड़ी सावधानीसे व्यापार करना शुरू किया गया। क्योंकि व्यापारी मंडलीमें प्रायः ऐसा होता है कि जब कोई नयी दूकान होती है तो दूसरोंको वह नहीं सहाती है और वे जिस तरह हो उसे हराना चाहते हैं। यदि व्यापारी चतुर होता है तो सर्व दूकानदारोंके ऊपर अपने व्यापारकी उत्तमता, दृढ़ता और सत्यतासे अपना प्रभाव जमा देता है और कुछ दिनोंके बाद उसका काम पक्का समझा जाता है । माणिकचंद और पानाचंद दोनों ही व्यापारमें बड़े ही कुशल थे। इनकी नजर व सचाई व विश्वासपात्रता पहलेसे ही मशहूर थी। इन्होंने दूकान करते ही अपना प्रभाव व्यापारियोंपर डाल दिया। For Personal & Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । [ १२७ इनके हाथ मोतीका बहुत माल आने लगा और ये बहुत नफेके साथ बम्बईके ग्राहकोंमें फिरकर व व्यापारमें कुशलता दलालोंके द्वारा बेचने लगे। सेठ पानाचंद सत्यता वन्याय- माल खरीदनेमें अति चतुर थे, परायणता। जबकि सेठमाणिकचंद माल बेच नेमें अति प्रवीण थे। माणिकचंदकी बातपर ग्राहकोंको तुरंत विश्वास आजाता था और जो दाम यह बताते थे उसको सहन में मान लेते थे । माणिकचंदजीका सत्यवादीपना प्रसिद्ध था। अपनी बड़ी उमस्में जब कभी यह किसीको शिक्षा देते थे तो यही कहते थे कि सत्य बोलो, सत्यव्यवहार करो, सत्यसे ही प्रतीति होती है तथा मैंने सत्यसे ही रुपया कमाया है। व्यापारमें विश्वासपात्रताकी आवश्यकता है और वह प्रतीतिपना सत्य वचन और सत्य व्यवहारसे जमता है। इस समय सेठ पानाचंद और माणिकचंद क्रमसे २२ और १९ वर्ष ही के थे, तथा मोतीचंद २४ और नवलचंद १६ वर्षके थे। चारों भाई मिलकर कोठीमें काम करते थे। किसी मुनीम गुमाश्तेको भी नहीं नियत किया था । सबने काम बांट लिया था। द्रव्य कमाते हुए रहते भी चारों ही भाई अपने पिताके अति दृढ़ उपदेशके कारण ब्रह्मचर्यमें दृढ़ थे। अभी तक इनमें से किसीका लग्न नहीं हुआ था, तौभी किसीको भी किसी खोटे मार्गमें जानेका व्यसन न था। पिताश्री अब भी इनको अपने हाथसे रसोई बनाकर खिलाते थे। इनको दूसरे किसी नौकरकी रसोई खाना व खिलाना For Personal & Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ] अध्याय चौथा । पसन्द न था। सेठ हीराचंद्रको अपने इन चार पुत्ररत्नोंको मेल मिलापके साथ रहते हुए व सदाचारमें चलते हुए व अपनी आज्ञाका उलंघन न करते हुए देखकर जो हर्ष होता था उसका अनुभव वास्तवमें उसी पिताको होसक्ता है जिसके ऐसे ही उद्योगी सदाचारी कई पुत्र हों। पाठकोंको इस बातको जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि सेठ हीराचन्दने २४ वर्षके पुत्रका भी अभी तक मेट हीराचंदजीको विवाह नहीं किया था। हीराचन्द चाहते तो प्रौढ़ विवाहका १२ वर्षकी उम्र में ही विवाह हो जाता, पक्षपात। पर सेट हीराचंद मामूली पुरुष नहीं थे। यद्यपि बाह्य दृश्यमें बहुत भोले और सौभ्य थे; तथा होंठ कटा हआ था सो कोई २ परोक्षमें 'होठ कटे' के नामसे भी पुकार देते थे तथापि अपने दिलमें संसार व व्यवहारको अच्छी तरह समझते थे। एक तो उनको यह विश्वास था कि प्रौढ़ अवस्था ही में लग्न करना चाहिये, दूसरे उनकी यह इच्छा थी कि हमारे पुत्र खूब व्यापारकुशल हों जिससे धनवान हो जावें । किसी बातकी कुशलता व प्रवीणताका लाभ भले प्रकार तब ही होता है जब बिलकुल एक चित्त हो उसीपर लक्ष्य दिया जावे । विद्यार्थी नगरसे एकान्त स्थलमें जब अभ्यास करता है तब उसका चित्त विद्या लाभमें निरन्तराय जमा रहता है । शहरमें या घर में रहकर पढ़नेवाले छात्र प्रायः मौज़शौकमें, सम्बन्धियोंके यहां जाने आनेमें, दावत रखनेमें, मेला ठेला देखनेमें, नाचरंग खेल कूदमें ऐसे लग जाते हैं कि सिवाय कुडके और सर्व अधपढ़े रह जाते हैं । ऐसी दशामें यदि उनकी लग्न For Personal & Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठमाणिकचंदकी वृद्धि | [ १२९ १२, १४, १५, १६ वर्षमें कर दी गई तब फिर उनका ध्यान पढ़नेसे हटकर धसुरालका माल उड़ानेमें व स्त्रीसे मिलनेके रूमाल में बंट जाता है । फल यह होता है कि वे विद्याका लाभ नहीं कर पाते । सेठ हीराचंद यह बात अच्छी तरह जानते थे । इसी लिये जब तक कि मेरे पुत्र जौहरीके काममें प्रवीण न होंगे तब तक मैं इनकी लग्न नहीं करूंगा चाहे जो कुछ हो यद्यपि इनकी माता नहीं है, घर में कोई रसोई बनानेवाला नहीं है तौभी मैं रसोई बनाकर खिलाऊंगा परंतु विवाहकी जल्दी तो नहीं करूंगा इसी दृढ़ प्रतिज्ञाके कारण अनेक सम्बन्धोंकी माँग आनेपर भी हीराचंदजीने अबतक किसीकी सगाई तक भी नहीं की, विवाह तो दूर ही रहै । रसोई खिलाते समय सेठ हीराचंद इनको व्यापारमें साहसयुक्त होनेकी, सदाचार से चलनेकी, व ब्रह्मचर्य्यकी रक्षाकी शिक्षा दिया करते थे । वास्तव में जब तक ऐसा उपकारी पिता नहीं होता तब तक सन्तान उद्योगी और साहसवान नहीं बन सकती । आजकल लाखों पिता अपने पुत्रोंके साथ अन्याय करते हैं, उनके छोटेसे गले में स्त्रीरूपी भारी पाषाण बांध देते हैं, वे विचारे उस भारसे कुचले लकीरके फकीर वन ज्यों त्यों चलते हैं, अपनी बुद्धिको चमत्कृत बनाने का अवसर उनके हाथसे जाता रहता है, इससे वे विचारे शारीरिक, मानसिक व धार्मिक तथा योग्य औद्योगिक उन्नतिमें बहुत पीछे रह जाते हैं इतना ही नहीं किन्तु अवनतिके गर्त में गिर जाते हैं और अपनी गुप्त शक्तियोंको प्रफुल्लित करने के उपायसे वञ्चित रह जाते हैं । आजकल के मातापिताओंको सेठ हीराचंदका दृष्टान्त ग्रहण For Personal & Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ] अध्याय चौथा । करना चाहिये और अपने पुत्रोंको ब्रह्मचर्यके लाभ व अब्रह्मके दोष बताकर विद्या व हुनर सिखलाना चाहिये। जब वे सीख जावे और उसके अनुसार द्रव्य पैदा करने लगे तब ही पुत्रोंकी लग्न करनी चाहिये, विवाह हो जानेपर एक तरहका बन्धन हो जाता है, जिससे नवयुवक अपनी शक्तियोंका विकाश नहीं कर सकते। पाठकोंको यह भी जानकर आश्चर्य होगा कि इतनी उमर होनेपर भी सेठ हीराचंदनीके पुत्रों ने अपने ब्रह्मचर्यको दृढ़ रक्खा, किसी कुसंगतिमें नहीं पड़े, किसी असत् आचारको ग्रहण नहीं किया इस दशाका भी मूल कारण सेठ हीराचंदजीकी शिक्षा और दूसरा कारण लड़कपनसे दर्शन आदि धर्मकार्योका अभ्यास था, तीसरा कारण व्यायाम था, इन सर्वको डंड मुगदर आदि देशी कसरत व कुश्ती लड़ना आता था । वास्तवमें दृढ़ विश्वास और यथार्थ ज्ञान ही चारित्र सुधारके उपाय हैं। पिताकी शिक्षाके ऊपर दृढ़ प्रतीति हीने इनको योग्यमार्गी रखा और ये चारों ही सर्व तरह व्यापार कुशल होकर उन्नतिके मार्गमें अग्रगामी हो गए। पुण्योदयसे व्यापार चलने लगा, लक्ष्मी आने लगी और सुख व शांतिसे अपने पूज्य पिताके साथ निर्वाह करने लगे। For Personal & Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३१ vM युवावस्था और गृहस्थाश्रम । अध्याय पांचवां। MAMALA युवावस्था और गृहस्थाश्रम । एक दिन सेठ मोतीचन्द अपने एक मित्रके साथ शामके वक्त बम्बईमें समुद्रके तट पर हवा खाते हुए टहल मोतीचंदकी ब्रह्म- रहे थे । मनरंजायमानकी बातें होते होते चर्यमें दृढ़ता। मित्रने कहा-“सेठजी! आपकी अर्द्धाङ्गिणी __आपके साथ प्रेममाव रखती है कि नहीं ? मुझे तो पुण्योदयसे ऐसी स्त्रीका समागम हुआ है जिससे मुझे बहुतही आराम है। वह बहुत ही सौम्य और घरके कामकाजमें कुशल है।" सेठ मोतीचंद अपने ही समान वयस्क मित्रको देखकर चित्तमें लज्जायमान हुए और सोचने लगे कि हमारा तो अभी विवाह ही नहीं हुआ है, हम क्या जवाब देवे ? फिर भी अपना मन थांम अपने पूज्य पिताकी शिक्षाको याद कर बोले-" प्रिय मित्र ! मुझे तो अभी तक विवाहकी परवाह नहीं है। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि विवाहके बन्धनमें पड़नेके पहले मनुष्यको धनपात्र, व्यवसाई, दृढ़शरीर, तथा पक्क वीर्य होना चाहिये । सो भाई, मेरे पुण्यके उदयसे यह सब बातें मेरे और मेरे भाइयोंके उद्यमसे मुझे आकर प्राप्त हुई हैं। अब मेरी उम्र २४ वर्षसे अधिक है। अबतक तो मुझे इसका ख्याल न था पर आज तुम्हारे पूछनेसे मुझे कुछ ख्याल आया है कि अब योग्य अर्द्धाङ्गिणीका लाभ हो तो उचित है । तौभी हे मित्र! For Personal & Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२] अध्याय पाँचवाँ । मैं इसका कुछ उद्यम करना उचित नहीं समझता हूं क्योंकि मेरे पूज्य पिता मेरे हितमें पूर्ण उद्योगी हैं, इसका मुझे पूर्ण विश्वास है। वे जब उचित समझेंगे तब मुझे गृही बनावेंगे तबतक मैं अति स्वतंत्र रहता हूँ और ब्रह्मचर्यको पाल, व्यायामकर, योग्य भोजन ले, व्यापारमें उद्यमी रह तथा सदाचारसे चल अपने धर्ममें विश्वास रखता हुआ पूर्ण सुखी हो रहा हूं। हे मित्र ! वास्तवमें यह स्त्री तो शरीरके वीर्यको नष्ट करनेवाली और बहुतसी आकुलताओंमें फंसानेवाली है। हां, गृहस्थको संतानके लाभार्थ पत्नीकी आवश्यकता होती है। . मित्र भी बहुत विचारशील थे-बोले-" सेठजी ! आपके विचार बहुतही अच्छे हैं, मुझे बड़ा हीआनन्द हुआ है। असलमें ब्रह्मचर्यके समान इस मनुष्यका कोई मित्र नहीं है। परमात्माका ध्यान वही कर सकता है जो इसको अच्छी तरह पालता है। आप इसकी चिन्ता न करें । मैं जानता हूं आपके पूज्य पिता बड़े ही गंभीर विचारवाले और धर्मात्मा हैं । आपको अपने जीवनका आधार उनहीको समझकर उनमें भक्ति रखनी चाहिये । फिर मित्रने पूछा कि आजकल आपका व्यापार कैसा चलता है ? सेठ मोतीचंद ने कहा कि मेरे छोटे भाई पानाचंद और माणिकचंद व्यापारमें बहुत कुशल और भाग्यशाली है उनके निमित्तसे बाजारमें बहुत अच्छा काम चल रहा है । यद्यपि अभी लक्षपति तो हम अपनेको नहीं कह सक्ते पर सहस्रोंकी कितनी संख्या तक हम पहुँच गए हैं और पहुँचते जाते हैं। हमारे पानाचंदकी निगाह माल खरीदनेमें ऐसी सुघड़ है कि वे जिस मालको लेते हैं उसमें बहुत अच्छा For Personal & Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१३३ नफा उठाते हैं। मित्र मोतीचंदके इन शब्दोंको सुनकर चित्तमें कहने लगे कि वास्तवमें यह बहुत ही लायक मनुष्य है जो अपने छोटे भाइयोंके गुणानुवाद परोक्षमें कर रहा है और अपने आपको उनके सामने हीन जता रहा है, यही आर्य्ययन है, यही सज्जनता है, यही गुणग्राहकता है, यही एकताका कारण है । यदि परस्पर एक दूसरेके गुणोंको ग्रहण किया जाय और प्रत्यक्ष या परोक्ष एकसे ही भावोंसे गुणोंका कीर्तन किया जाय और दोष व छिद्र देखने में कम दृष्टि दी जावे तो एकतादेवी उनसे कभी नहीं रूठती है, जहाँ एक दूसरेके अवगुणको ग्रहणकर टीका की जाती है वहाँसे एकता रूठ जाती है और फूट चंडालिनीका बास हो जाता है यही गुणग्राहकताका गुण इनके पिता सेठ हीराचंदमें है। हर्षकी बात है कि इन भाइयोंमें वही गुण है तब ही ये चारों भाई एक साथ मिलकर व्यापार करते और रहते हैं- किसी प्रकारकी भिन्नता देखनेमें नहीं आती है । इस तरह अनेक बातें करते २ दोनों मित्र हवा खाकर लौट आए। सेठ मोतीचंद उस रात्रिको घरमें बैठे थे पर मित्रका वह प्रश्न इनके दिमागसे नहीं जाता था इससे कुछ चित्तपर उदासी सी छा रही थी। सेठ हीराचंदजी नित्य रात्रिको अपने चारों पुत्रोंसे दिनभरकी बातें पूछा करते थे तब परस्पर मित्रवत गोष्ठी करते हुए पांचों जने अपना थोड़ा समय विताते थे। यह मित्रगोष्ठी भी एकताके स्थापनका एक मुख्य कारण है । इसके निमित्तसे किसी तरहका अविश्वास व गैरसमझपना नहीं होने पाता है। उस रात्रिको सेठ हीराचंदने मोतीचंदको कुछ उदास देखा । सर्व भाइयोंके सामने तो सेठजीने For Personal & Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ] अध्याय पाँचवाँ । इसका कारण पूछना उचित नहीं समझा क्योंकि यह न्याय ही है कि जो अंत:करणका रहस्य है वह एकान्तमें ही कहा जाता हैं । जब मोतीचंद शयनालयको गए तब सेठ हीराचंद कुछ रात्रि बीतने पर उनको जगा उनकी उदासीका कारण मालूम करने लगे। मोतीचंदको मित्रके प्रश्नकी बात कहते हुए बहुत लज्जा आती थी पर पितासे किसी बातको छिपाना भी वे उचित नहीं समझते थे । उन्होंने थोड़ी देर बाद संध्याकालकी वार्ताको कह दिया । सेट हीराचंद अपने मनमें बिचारने लगे कि अब मुझे देर नहीं करना चाहिये और अपने पुत्रोंकी शीघ्र लग्न मोतीचंदका विवाह | करना चाहिये । मोतीचंदको कहने लगे कि तुमने उसे बहुत योग्य उत्तर दिया । हमने तुमारे लिये योग्य सम्बन्ध ठीक कर लिया है । मोतीचंदने सिर नीचा कर लिया । पाठकोंको पहले कहा जा चुका है कि हूमड़ोंका कि हमड़ों का विस्तार ईडरकी ओर भी था । गुजरात देशमें ईडर एक देशीराज्य है । वहाँपर अब भी वीसाहूमड़ और दशाहूमड़ जैनियोंकी अच्छी वस्ती है, भट्टारककी गद्दी है, और एक प्राचीन दि० जैन शास्त्रभंडार भी है । वहीं गांधी मोतीचंद फूलचंद वीसाहूमड़ एक धर्मात्मा दिगम्बर जैनी रहते थे । संवत् १९९२ में उनको एक कन्याका लाभ हुआ जिसका नाम रूपवती था । यह कन्या स्वरूपमें सुन्दर थी, इसके पिता भी बहुत बुद्धिमान और धार्मिक नियमोंसे परिचित थे । इन्होंने रूपवतीको बड़े प्रेमसे पाला था, इसे शुरू से ही श्रीजिनमंदिरजीमें ले जाया करते थे । इस कन्यामें ऐसी आदत पड़ For Personal & Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १३५ युवावस्था और गृहस्थाश्रम | गई थी कि यह श्री जिनेन्द्रके दर्शन में बड़े भाव लगाती व खूब स्तुति पढ़कर नमस्कार करती थी। मंदिर में हरएक नरनारी इसे देखकर प्रसन्न होते थे । यह कन्या मातापिताकी अति आज्ञाकारिणी थी । उस समय ईडरमें भी कन्याओं की शिक्षाका न तो कुछ प्रबन्ध था और न मातापिताओंको यह भाव ही पैदा होता था कि हम कन्याओंको पढ़ावें । विना पुस्तकके ज्ञानके भी रूपवतीकी माताने इसे घरका सर्व कामकाज बहुत ही सुघड़ रीति से करना बता दिया था । रसोईकी विधि व शुद्धता, पानी छाननेकी विधि, अन्न वीनना, घरकी सफाई, वस्त्र सीना आदि सर्व कामों को यह बहुत चतुराई से करती थी । कभी २ पिता इसको अपने साथ धर्मोपदेश सुनाने को ले जाते थे यह बहुत रुचिसे सुनती और जो सुनती उसे धारण कर लेती थी, इसका चित्त धर्मकथा व धर्मसेवनमें खूब ही लवलीन रहता था । विवेक और दया भी इसके चित्तमें थे जिससे हरएक काममें जीवरक्षाका बहुत विचार रखती थी । यह कन्या मातापिता व कुटुम्बियोंकी अति ही प्यारी थी । माताके आग्रह होनेपर भी गांधी मोतीचंदने रूपवतीकी लग्न अल्प वयमें करना ठीक नहीं समझा । गांधी मोतीचंद यही चाहते थे कि किसी बहुत योग्य सम्बन्धके साथ इसका पाणिग्रहण किया जाय। गुजरातके दूमड़ों में उन दिनों सेठ हीराचंद और उनके पुत्रोंकी कीर्तिकी सुगंध फैल गई थी और हरएक उनके उद्योगकी सराहना करता था । ईडर में भी यही चर्चा होती थी। गांधी मोतीचंदका मन भी यही चाहने लगा कि इस कन्याका सम्बन्ध बम्बईके जौहरी सेठके साथ करें, जिसमें इसका जीवन बहुत सुखसे बीते और यह दान व धर्म For Personal & Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ] अध्याय पाँचवाँ । खूब ही कर सके क्योंकि इसका चित्त अति ही आई और कोमल है । एक दफे गांधी मोतीचंद उस कन्या के साथ बम्बई पधारे और वहाँ मौका पाकर सेठ हीराचंद से मिले और निवेदन किया कि हमारी कन्या रूपवतीको हम आपके श्रेष्ठ पुत्रको देना चाहते हैं । हीराचंद ने उसका जन्मपत्र माँगा तथा वह भी इच्छा प्रगट कि कि यदि आप रूपवतीको यहां लाए हों तो मैं उसे किसी मौके पर देख भी लूँ | गांधी मोतीचंद इस बात से बहुत ही प्रसन्न हुए और कहा कि कल श्री जिनमंदिरजीमें जब वह दर्शन करने जायगी तब आप उसको देख सक्ते हैं । सेठ हीराचंद मंदिरजीमें घंटा आध घंटा रोज सवेरे बैठते थे । दूसरे दिन गांधी मोतीचंद के साथ रूपवती बहुत ही विनयके साथ द्रव्यको लिये दर्शन करनेके लिये श्री जिन मंदिरजी में गई, उस समय सेट हीराचंद शास्त्र स्वाध्याय कर रहे थे । गांधीजी के साथ एक कन्याको दर्शन करते हुए देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए, उसकी चाल, ढाल, विनय भक्ति, स्तुति पठन, सौम्य और सुन्दर रूप सेठ हीराचंद के मनमें नक्श हो गए और उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि इस कन्यासे ही मेरा पुत्र सुशोभित हो, यही सच्ची गृहिणी होगी। दूसरे समय पर गांधी मोतीचंद जब फिर सेठ हीराचंदजी से मिले तब परस्पर वार्तालाप में एक दूसरेकी पसन्दगी हो गई, केवल जन्म पत्रिकाओंका विचार ही करना शेष रहा । थोड़े दिन के बाद यह विचार भी हो लिया । 1 जिस दिन सेठ मोतीचंद और एक मित्रसे बम्बई के समुद्रतट पर वार्तालाप हुआ था उसीके तीन मासबाद संवत् १९२८ में जब मोतीचंद २५ वर्षके थे सेठ हीराचंद इनके विवाहकी तय्यारियां For Personal & Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम | [ १३७ करने लगे । इस समय सेठजीके चित्तमें बड़ा भारी उत्साह था क्योंकि अपने जीवनमें यह पहला ही पुत्रका विवाह था जो इनको करना था। सुरतकी स्थितिसे अब इनकी स्थिति बहुत बदल गई है, बम्बई में भी अब यह सेठोंकी गिनती में है तथा अपनी हूमड़ जातिमें तो यह धनाढ्यों में प्रसिद्ध हैं । इनका व्यापार ज्यों २ दिन बीतते जाते चमकता जाता है | पुण्यात्मा पानाचंद और माणिकचंद जिस सौदे में हाथ डालते हैं लाभ उठाते हैं । सेट हीराचंदने एक रात्रि को अपने चारों पुत्रोंको एकत्र कर सम्मति ली कि इस विवाह में कितना रुपया खर्च करना चाहिये । जिस समय इस बातको छेड़ा गया | नवलचंद जिनकी उमर १७ वर्षकी थी और जिनको कुछ बाहरी चीजोंका शौक अधिक था यकायक कहने लगे कि पिताजी ! आजकल हम लोगों का नाम बहुत प्रसिद्ध हैं, हमें इस विवाह में खूब धन खरचना चाहिये जिसमें हमारी खूब प्रशंसा हो और जातिमें महत्पना प्रगटे । ईडर राज्यमें भी हमारी खूब ही प्रसिद्ध हो । इसकी बात सुनकर सेठ हीराचंद हंसे और बोले कि हमको बहुत उछलना कूदना नहीं चाहिये, हमें अपनी सादी चाल व सादा स्वभाव नहीं छोड़ना चाहिये । व्यापारका क्या भरोसा है ? आज यदि लाभ है कल हानि हो जाय तो क्या किया जायगा ? इससे हमको खूब विचार करके एक रकम इस निमित्त काढ़नी चाहिये और व्यापारमें किसी तरह की जोखम आ जावे सो काम नहीं करना चाहिये । सेठ पानाचंद बोले, पिताजी ! आप कोई शंका न करें। हमारे व्यापार में हानि की कोई आशंका नहीं है । आपके प्रतापसे जो माल अपनी For Personal & Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ] अध्याय पाँचवाँ । निगाह में आता है और खरीदा जाता है उसमें लाभ ही होता है। आप दिल खोलकर खर्च कीजिये | अपने भाग्यके अनुसार हम और बहुत कमा लेवेंगे | माणिकचंदजी ने कहा कि भाई पानाचंद, 1 यह तो तुम्हारा कहना ठीक है पर हरएक काम में पूर्वापर विचारकी जरूरत है | बाजारकी स्थितिको पलटते देर नहीं लगती है । इससे हम लोग कितना रुपया इस विवाह के निमित्त निकालें इसका पक्का आंकड़ा बांधदेना चाहिये, पिताजी उसीमें सब काम निबटावेंगे । पानाचंदजी ने पिता से पूछा कि कितनी रकम आप खरचना चाहते हैं ? सेठ हीराचंदजीने कहा कि विवाह में जितना खर्च किया जाय उतना हो सक्ता है । १ हजारसे १० हजारतक खर्च हो सक्ता है, पर मेरी समझ में २०००) दो हजार रुपयेका अनुमान बांधा जाय तो वश होगा । सर्व भाइयोंके ध्यानमें यह बात जंच गई और तय होगया कि दो हजार रुपये खर्च किये जावें । विवाहका समय निकट आते ही बम्बई में तय्यारियां होने लगीं और नियत मितीपर वारात ईडर पहुंची। सूरत और बम्बई - से बहुत से भाई शामिल हुए। ईडर में गाजेबाजे आदिसे बहुत ही धूमधाम छा गई । बम्बई से बारात आई है इस खबर से बहुत से नरनारी उसके देखने को उत्कृष्ट हो घरसे निकल आए । २५ वर्षके युवान वरको घोड़े पर सवार देखकर बुद्धिमान लोग बहुतही गुण गाते थे कि वास्तव में विवाह तो इसी उमरमें ही करना चाहिये । बारात गांधी मोतीचंदके द्वारपर पहुंची। उसके उपर एक खिड़की में रूपवती वस्त्राभूषणोंसे सज्जित अतिशय यौवनमें परिपूर्ण बैठी थी । For Personal & Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१३९ अब इसकी अवस्था १६ वर्षकी थी। यद्यपि ईडरमें और लोग अपनी २ कन्याओंकी लग्न १२, १३ वर्ष ही में कर देते हैं पर यह खास लग्न बम्बईवालोके सम्बन्धके निमित्तसे इस अवस्थामें हुई । यदि देखा जाय तो १६ और २५ वर्षीया सम्बन्ध बहुत ही प्रौढ़ और योग्य होता है । कन्या रूपवती अपने पतिको अति दृढ जवान देखकर बहुत प्रसन्न हुई। जातिकी रसमके अनुसार लग्नादि क्रियायें हुई । गांधी मोतीचंदने बरातियोंका बहुत ही सन्मान किया, किसी प्रकारकी दिल मैली न हुई जैसी कि बहुधा आजकलके मूर्ख सम्बन्ध करने वालों में हो जाया करती हैं । शुभ महूर्तमें बारात विदा होकर ईडरसे सुरत आई।सूरतमें अपने जन्मके मकानमें ही सेठ मोतीचंद आदि ठहरे । वहाँ अपनी नव वधूको देखकर यह बहुत ही गदगद वदन हो गए और ऐसी सौम्य व रूपवान वधूको पाकर अपने पुण्यके तीव्र उदयको मानते हुए। कुछ दिनों बाद रूपवतीका अपने पिताके घर आना हुआ । सेठ मोतीचद व्यापारार्थ बम्बई आ गए । अभी इनको अपनी पत्नीसे सांसारिक प्रेम करनेका अवसर प्राप्त नहीं हुआ था। सेठ हीराचंदजीने सुरतमें आकर सेठ घेलाभाई धरमचंदजी ___ तासवालाकी कन्या फूलकुमरीसे पानाचंदसेठ पानाचंदका की लग्न करनेका निश्चय किया, चार मास विवाह। पीछे ही विवाहकी मिती नियत की। सेठजी बम्बई गए और पहलेकी तरह इस विवाहमें भी २०००) रु० खरचनेका निश्चय करके ठीक मिती पर विवाहका प्रबन्ध हुआ। पानाचंदकी अवस्था २३ वर्षके अनुमान थी। For Personal & Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ] अध्याय पाँचवाँ । फूलकुमरी करीब १४ वर्षकी थी, पर शरीरमें सुकुमारपना अधिक होनेसे बहुधा अस्वस्थ रहा करती थी। शुभ मुहूर्तमें दोनोंका पाणिग्रहण हुआ । सूरत नगरमें इस विवाहकी खूब धूमधाम हुई । सेठ हीराचंद और सेठ घेलामाई तासवालाने संबंधियोंका यथायोग्य सत्कार करनेमें कोई त्रुटि नहीं की। . सेठ हीराचंद अपने दो पुत्रोंका विवाह कर बहुत ही संतुष्ट हुए । इनमें किसी तरहका अपयश न पाते हुए अपनेको कृतार्थ मानते हुए। थोड़े दिनोंके बाद मोतीचंद और पानाचंदकी पत्नियाँ बम्बईमें आ गई । अब सेठ हीराचंदको अपने हाथसे रूपवतीका सुघडपना। रसोई बनानेसे छुट्टी मिली। ये दोनों स्त्रियां घरका सर्व काम कर लेती थी। दोनोंमें विशेष चतुर रूपवती थी जो अकेले ही सर्व कामकाज करनेमें निरालस्य थी। पानाचंदकी स्त्री निर्बलशरीर होनेके कारण घरके काममें अधिक मदद नहीं दे सकती थी तौभी रूपवतीको इसका कोई दुःख न था, जैसा बहुधा स्त्रियोंमें हो जाया करता है कि परस्पर द्वेष व ई भावसे प्रेम नहीं रखते सो बात इन दोनोंमें न थी। रूपवती बहुत ही सहनशील, समझदार और धर्मात्मा थी। बहुत ही आनन्दसे सारे कुटुम्को हर तरह तृप्त रखती.थी। थोडे ही दिन पीछे रूपवती गर्भावस्थाको प्राप्त हुई । सेठ हीराचंद और मोतीचंदके दिलमें बहुतही हर्ष रूपवतीको कन्या हुआ । सेठ हीराचंदको आशा हुई कि अब लाभ। पौत्रका मुख देखूगा और जन्मोत्सव भले प्रकार करूंगा । ९ मास पीछे रूपवतीने पुत्री For Personal & Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवास्था आर गृहस्थाश्रम । १४१ का जन्म दिया । यद्यपि इससे सेठ हीराचंदजीकी वह आशा पूरी नहीं हुई क्योंकि संसार में सर्व ही काम इच्छानुसार होना अतिशय दुर्लभ है तथापि पुत्रीके होनेमें भी यथायोग्य दान पूजा व उत्सव मनाया गया । गांधी मोतीचंद को भी बहुत हर्ष हुआ । रूपवती इस कन्याको प्राप्त कर बहुत तृप्त हुई और बहुत होशियारी से उसे पालने लगी । अत्र सेठ हीराचंद के कुटुम्बको एक धनाढ्य, न्यायवान गृहस्थीको जैसा संतोष होता है ऐसा संतोष रहने लगा, सो ठीक ही है, जब पुण्यका उदय होता है तब सांसारिक अवस्थाएं साताकारी प्राप्त होती हैं । उधर व्यापार में भी दिनपर दिन वृद्धि हो रही थी। जो मोतीका व्यापार पहले साधारण था वह अब पुण्योदय से व्यापार में बहुत बढ़ गया था । यह मोतीके बड़े व्यापारी बाजार में माने जाने लगे । संवत् १९३० वृद्धि । तक इनके यहाँ लक्ष्मीका अच्छा वास हो चला । इस सालसे यह थोकबंध माल एकत्रकर बम्बई में व परदेशमें भी बेचने लगे । हूमड़ दिगम्बरियों में इनको सर्वसे पहले सफलीभूत सुनकर इधर उधरके बहुत से दिगम्बरी हूमड़ व्यापारार्थ बम्बई आने लगे और अपने२ ग्राम लौटकर इन सेठोंके व्यापार, सादे स्वभाव और कीर्तिकी महिमा गाने लगे । यह भी एक बड़े महत्वकी बात इन चारों भाइयों में थी कि लक्ष्मीकी वृद्धिके साथ विनय, नम्रता और सादगी बढ़ती जाती थी- अभिमान तो पास छूकर नहीं निकलता था । For Personal & Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ ] अध्याय पाँचवाँ | चारों भाईयोंमें सेठ माणिकचन्दकी आदत मिलनसारीकी अच्छी थी। यह सबसे मिलते, उनके दुःख सुखको पूंछते और जो कुछ अपनेसे बनता मदद देते थे । पाठकों को मालूम ही है कि यह रोज श्री जिनमंदिरजीमें प्रछाल पूजन स्वाध्यायादि कार्य्य बड़े प्रेमसे करते थे । बम्बई नगरमें व्यापारादि अनेक कार्योंके निमित्त बहुधा अनेक देशों के जैनी भाई आते और जब वे दर्शनार्थ मंदिरजीमें जाते तो जहाँ तक सेठ माणिकचन्दजीकी दृष्टि पड़ती व मौक़ा होता यह अवश्य उन सबसे मिलते, उनका हाल पूछते और उनके कामकाजमें हर तरह सहायता देते थे। बहुत से दक्षिण व उत्तरके जैनियोंके लौकिक और धार्मिक काम उक्त सेठकी मदद से हो जाते थे । इनके प्रतिदिनका थोड़ा समय इस प्रकार के परोपकार में भी जाता था । कई भाई जो आजीविका बम्बई आवे उनको यह आ जीविकामें जोड़ देते व जब तक विना क्रय कमाए उनको दो चार मास रहना पड़ता यह उनके भोजन खर्चका व ठहरनेका प्रबंध भी कर देते थे । छोटे व बड़े सबके साथ बहुत ही प्रीतिसे बात करना इनका एक जातीय स्वभाव था । अन्य तीन भाइयोंमें मिलनसारीका गुण बहुत ही साधारण था । यदि कोई चाह करके वात करता तो ये सुनकर उसको उत्तर देते थे । ये तीनों भाई अपने नित्य चालू काम करने में ही दत्तचित रहते थे परोपकार की खोज नहीं करते थे तो भी अभिमानी व संकुचित चित्त नहीं थे । जिस परोपकारके काममें सेठ माणिकचंद द्रव्य खर्चनेकी इच्छा प्रगट For Personal & Private Use Only - माणिकचंदका परोपकारी स्वभाव | Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१४३ करते थे सर्व बड़ी ही खुशीसे राजी हो जाते थे। सेठ माणिकचंद परोपकारी व धर्मत्मा हैं यह देखकर सर्व भाइयोंको बहुत ही हर्ष होता था। इस कारण माणिक चंदनीका सुयश अभी ही से दूर दूर तक फैलना शुरू हो गया था। बहुतसे परदेशी हूमड़ बम्बईमें आकर जब यह मालूम करते कि सेठ माणिकचंदजी अभी तक कुमारे हैं तब उनके चित्तमें यह इच्छा हो उठती कि हम अपनी कन्या ऐसे ही योग्य पुरुषको परणावे तो उसका जन्म सफल हो । - शोलापुरे जिलेके करमाला तालुकेके नानेजजवाला ग्रामनिवासी एक मुख्य हुमड़ साह पानाचंद सेठ माणिकचंदजीका उगरचंद दोभाड़ा भीएक दफे बम्बई आये बिवाह। और सेठ माणिकचंदको प्रत्यक्ष देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए । इनके तीन कन्यायें और एक पुत्र था। जिनमें दो कन्यायोंका विवाह हो चुका था और तीसरी कन्या कुमारी थी जो बहुतही सौम्य शरीर, गुणशाली और चतुर थी, जिसका नाम भी चतुरमती था। इसकी माताका नाम माणिकबाई था। इस कन्याके लाभसे मातापिताको बड़ा भारी हर्ष था और इसे सब ही चाहते थे। यह अपने मातापिताकी आज्ञानुसार चलनेवाली व माताके सिखानेसे घरके कामकाजमें अति प्रवीण हो गई थी। मातापिता यह चाहते थे कि इसको किसी 'प्रसिद्ध पुरुषके साथ ही परणाया जाय । सुरतके इन चारों भाइयोंकी कीर्ति दूर २ तक इमडोंमें फैली हुई थी। शाह पानाचंद दोभाड़ा माणिकचंद सेठको कुमारा जानकर बहुत ही संतोषित हो अपने चित्तमें यही ठानते हुए कि हम अपनी चतुरबाईको इन्हींके For Personal & Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] अध्याय पाँचवाँ | साथ परणाएंगे। शाहजी सेठ हीराचंदसे मिले और अपनी इच्छा प्रगट की। सेठ हीराचंद भी यह चाहते थे कि माणिकचंद की आयु अब २२ वर्षकी हो गई है अतएव इसका विवाह हो जाना ही मुनासित्र है, पर सेठजी बहुत चतुर थे । वे ही रेको विना देखे हीरा कहनेवाले नहीं थे । शाह पानाचंदजीको कहा कि यदि आपकी इच्छा अपनी कन्या देने की है तो एक दफे आप उसे लेकर बम्बई आइये, मैं उसे देखकर व जन्म पत्री जांचकर आपसे पक्का सम्बन्ध करूंगा । साह पानाचंदको तो यह खटका था, शायद सेट माणिकचंदकी सगाई कहीं और हो गई हो तो हमें निराश होना पडेगा सो अब वह शंका निकल गई और यह निश्चय हुआ कि अवश्य मेरी मनोकामना पूर्ण होगी क्योंकि वह कन्या भी एक भाग्यशाली है । कौन ऐसा है जो उसके गुणों को पसन्द न करें ? पानाचंदने सेठ हीराचंदजीको कहा कि आपकी इच्छानुसार ही कार्य्य होगा । कुछ काल पीछे दोभाड़ाजी बम्बई में व्यापारिक काम करके लौटे और अपनी पत्नी व चतुरमतीको साथ लेकर श्री कुंथलगिरीकी यात्रा करते हुये बम्बई पधारे और अवसर पाकर सेठ हीराचंदजीको खबर दी कि कल आप मंदिरजीमें मेरी कन्याका निरीक्षण करें। दूसरे दिन साह पानाचंद दोभाड़ा सपत्नीक चतुरमती के साथ श्री जिनमंदिरजी गए । उस समय सेठ हीराचंद स्वाध्याय से निवृत्त हो समतासे बैठे थे इतने में देखते क्या हैं कि एक कन्या चंद्रमा के समान अपनी मुखकी सौम्यताको प्रगट करती हुई बहुत विनयके साथ मुंह नीचा किये जमीनको देखती हुई हाथमें एक वाट - की में सामग्री लिये हुए अति कोमलाङ्गी सुबड़पनेको धारे हुए एक बड़ी स्त्रीके साथ मंदिरजीके भीतर आई । पीछेसे शाह पानाचन्दजी A For Personal & Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम | [ १४५ दोभाड़ा भी आए । इनको देखते ही सेठ हीराचन्दने निश्चयकर लिया कि यही वह कन्या है जिसके लिये माणिकचन्दको दोभाडानीने चाहा है । इसको विनयसे दर्शन करते, सामग्री चढ़ाते, स्तुति करते, प्रदक्षिणा देते व नमस्कार करते हुये देखकर हीराचंदजी बहुतही राजी हुए तथा इसके गुणोंकी झलकसे हीराचंदजीको निश्चय हो गया कि माणिकचंदको हर प्रकार प्रसन्न करनेवाली यह कन्या होगी। उधर सेठ माणिकचंदजी भी स्वाध्याय कर रहे थे । एकाएक वे उठे और उनकी दृष्टि इस कन्याके मुखपर पड़ी, पड़नेके साथ ही इनका मन उसको अपने अंतःकरण में रखकर लोभायमान हो गये । दक्षिण व गुजरातकी स्त्रियों में परदा रखनेका रिवाज न अब है और न पहिले था । यह परदेका रिवाज बंगाल, विहार, युक्तप्रांत और पंजाब में मुसल्मानोंके विशेष सम्बन्धसे ही चला हैं । वह कन्या अपनी माता के साथ एक कोनेमें जाप करने बैठ गई । साह पानाचंद भी जाप पाठ करने लगे। अपने स्वाध्याय करनेके स्थान पर सेठ माणिकचन्द्रजी फिर बैठकर एक और शास्त्रको निकाल बाहरसे देखने लगे पर इनका मन उस कन्या के ख्याल में उलझ गया था । उधर वह कन्या जब अपनी माताके साथ उठी और चलते हुए जब फिर श्री जिनेन्द्रके, सन्मुख नमस्कार करनेको आई तब नमस्कार करने के पीछे चलते हुए उसकी दृष्टि सेठ माणिकचंद पर पड़ी और उसके हृदयने उसको यही गवाही दी कि यदि यह कुमारे हो तो मेरे पति होने योग्य यही हैं । इस कन्याकी अवस्था अनुमान १६ वर्षके होगी । दूसरे समयपर शाह पानाचंद दोभाड़ा सेट हीराचंदजी से For Personal & Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] अध्याय पाँचवाँ । मिले और वातचीत करके व जन्मपत्र आदि देख दिखा कर इस सम्बन्धका पक्का निश्चय कर लिया और शीघ्र ही विवाहकी मिती तय करली। एक दिन सेठ हीराचंद मोतीचंद और पानाचंदको माणिकचंदके इस सम्बन्ध होनेकी बात कह रहे थे व चतुरमती कन्याकी बहुत प्रशंसा कर रहे थे, कारणवश सेठ माणिकचंद भी उस समय घरमें आए और उनके कानमें यह सब शब्द सुन पड़े। इन शब्दोंके सुननेसे सेठ माणिकचंदनीको जो हर्ष हुआ वह वचन अगोचर है। वह जिस रूपको अपने चित्तमें बिठा चुके थे, जिसकी मूर्तिका नक्श अपने अंत:करणकी भूमिपर जमा चुके थे, जिसके पुष्प गुणोंकी सुगंध अपनेको स्पर्शित करानेके लिये आकर्षण कर चुकी थी, उसके लाभका दृढ़ निश्चय जानकर, उससे साक्षात्कार होनेका दृढ़ विश्वास कर व उस मूर्तिके साक्षात् ग्रहणका उमंग धारकर सेठ माणिकचंद अपनी युवावस्थाके निमित्त काम भावके विचारों में उलझकर मन मोदक बनाने लगे। २२ वर्षकी आयु धारी सेठ माणिकचंदकी वारातमें बम्बई व सूरतके बहुतसे हमड़ोंको लेकर सेठ हीराचंद दक्षिणकी ओर रवाना हुए। वहाँपर महाराष्ट्रदेशकी शोभा इनको गुजरातकी अपेक्षा एक . विलक्षणता बताती थी। सेठ हीराचंदने अपने पुत्रोंसे सम्मति करके इस विवाहमें ३०००) रु. खर्च करनेका निश्चय किया। बहतही धूमधामसे नान्नज़नवला ग्राममें बारात पहुँची। गांववाले बम्बईके सेठों व सुरतके गुजरातियोंकी पगड़ियोंको देखकर आश्चर्यान्वित हुए और चतुरमतीके भाग्यकी सराहना करने लगे । सारे ही गांववाले For Personal & Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१४७ सेठ माणिकचंदको सिंह समान तेजस्वी, २२ वर्षका नवयुवक और बलिष्ठ देखकर बहुतही आनन्दित हुए और ऐसा उत्तम सम्बन्ध प्राप्त करलेनेके निमित्त शाह पानाचंद दोभाडाकी बुद्धिमानीकी खूब प्रशंसा करने लगे। शुभ महूर्तमें लग्नादिक क्रियाएँ हुईं। जिस समय सेठ माणिकचंदका हाथ चतुरमतीके हाथसे मिलाया गया उस समय दोनोंको परस्पर स्पर्श होनेसे ऐसा हर्षभाव हुआ कि जैसा किसीको अमृतरसके पीने व चिन्तामणि रत्नके लाभसे होता है । सो बात ठीक ही है जहाँ प्रेमभावका सम्बन्ध होता है वहीं अपनी कल्पनासे रतिपना झलकता है। सांसारिक सुख मनकी कल्पनाका फल है । इस विवाहमें श्री जिनमंदिरजीको व अन्य स्थानोंको दान धर्म भी अच्छी तरह किया गया। इस विवाहको पूर्ण करके और नवीन वढूको लिवाकर सेठ __ हीराचंदनी बम्बई आए और थोड़े दिन सुरूपमतीकी पुत्रीका खसे रहे कि एकाएक सेठ मोतीचंदकी पुत्री परलोक। एक रात्रिको अतिशय शीत पवनके लग जानेसे बीमार पड़ गई। कुछ दिनतक बीमार रही। उसके अच्छे होनेके लिये खूब रुपये खर्च हुए पर वह अच्छी न हुई। उसकी आयुका अंत आन पहुंचा और वह सारे कुटुम्बको उदास करके व रूपवतीको अतिक्लेशित अवस्थामें छोड इस जड़मयी शरीरको छोड़कर चलदी-उसका आत्मा अन्य पर्यायको प्राप्त हो गया। ___ इस समय सेठ हीराचंदजीको जो दुःख हुवा, रूपमतीको For Personal & Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ ] अध्याय पाँचवाँ । जो क्लेश हुवा व मोतीचंदको जो उदासी हुई उसको वे ही जानते हैं। संसारका चरित्र ऐसा क्षणिक है कि किसीका भरोसा नहीं है । जिस वस्तुपर यह आस्था की जाती है कि यह वस्तु हमारे पास बनी रहेगी वही वस्तु कालान्तरमें जब लुप्त हो जाती है तब इस क्षुद्र मनुष्पका कोई वश नहीं चलता और यह हाथ मलकर रह जाता है। जिस कुटुम्बको थोड़े ही दिन पहले सेठ माणिकचंदजीके विवाहसे हर्ष हुआ था उसीको इस समय शोक प्रवाहमें बहना पड़ा। __थोड़े ही दिन पीछे सेठ हीराचंदनीके भाव श्री केशरियाकेशरियाजीको यात्रा जाकी यात्राके हुए। गुजरात व मेवाडके " 'जैनियोंको इस अतिशय क्षेत्रकी पूर्ण भक्ति है। यह क्षेत्र उदयपुर राज्यमें धुलेव व ऋषभदेव नामके ग्राममें है। जहाँ यह क्षेत्र है वहाँ अति प्राचीन श्रीऋषभदेवजी जैनियों के प्रथम तीर्थकरकी बहुत ही मनोज्ञ और सौम्य दिगम्बर जैन विम्ब मूल मंदिरनीमें विराजमान है। वही केशरियाजीके नामसे प्रसिद्ध हो गया है। प्रायः जैनियोंमें भी ऐसे लोग पाए जाते हैं जो किसी लौकिक कामकी सिद्धिके लिये ऐसी कामना करते हैं कि यदि हमारा अमुक कार्य सिद्ध हो जायगा तो हम अमुक काम करेंगे । किसी प्रसिद्ध धनाढ्यने यह भावना की होगी कि हमारा अमुक काम हो जायगा तो हम अमुक तौलभर केशर चढ़ावेंगे। उस कार्यकी सिद्धि उसके पूर्व पुण्यके उदयसे हुई पर उसने यही विश्वास कर लिया कि मैंने जो मानता मांगी थी उसको श्री ऋषभदेवजीने पूर्ण कर दी, उसने वहां बहुतसी केशर चढ़ाई। यह For Personal & Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१४९ बात ज्यों २ प्रसिद्ध हुई और लोग भी ऐसा करने लगे । इस तरह इस क्षेत्र व प्रतिमा दोनोंको केशरियाजीके नामसे पुकारने लगे। यह भव्य मूर्ति करीब ६ फुट उंची पद्मासन श्याम वर्ण अति सौम्य है। इस पर कोई सम्बत नहीं है इससे यह संवत लिखनेके रिवामसे पहलेकी निर्मापित है। इसके चारों ओर और भी दि. जैन मूर्तियां एक धातुपटमें अंकित हैं। इस मूल मंदिरके चारों ओर और भी वेदिया हैं जिनमें दि० जैन मूर्तियां विराजमान हैं, मन्दिरके चारों ओर एक बड़ा भारी कोट हैं जिसको सागवाडा निवासी हमड़ जातीय दिगम्बर जैनी सेठ धनजी करणजीने सं० १८६३ में बनवाया था। इस क्षेत्रकी भक्ति करनेको दिगम्बर श्वेताम्बर सर्व जैनी जाते हैं। पहले सर्व प्रबन्ध दि. जैनियोंके भट्टारकोंके हाथमें था, पीछे उनकी ढीलसे राज्यने एक कमेटीके आधीन किया है जिसमें ८ मेम्बर हैं उसमें अधिकांश श्वेताम्बरी हैं, इससे वहां प्रतिमाओं पर केशार फूल व शृंगारादि होने लगा है। श्वेताम्बरियोंने मूल प्रतिमाजी पर कई वार चक्षु चढ़ाना भी चाहा था परंतु इस प्रतिमाजीके अतिशयके कारण वे ऐसा न कर सके । यद्यपि यहां १०० घर दि. जैनयोंके हैं पर प्रायः सर्व मामूली व्यापारी हैं । मुखिया सेठ बच्छरानजी व सेठ छगनलालजी हैं। यह मंदिर इतना प्रसिद्ध है व इसकी ऐसी मान्यता है कि इसके चारों ओर शिकार खेलना व मत्स्यादि मारना मना है।गांवके बाहर सूर्य कुंड नामका तालाव है जिसके किनारे पर इसी मनाहीका एक लेख है जिसमें हस्ताक्षर जान सी० ब्रुक कैप्टेन स्मुल-हिली ट्रैक्स For Personal & Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० ] अध्याय पाँचवाँ । मेवाड़ खेरवाड़ा ता० २२ मई सन् १८५४ है। इसकी अंग्रेजी नकल यह है NOTICE. To all whom it concerns the shrine of Rikhabdeva being one held in great sanctity by the Hindus of Gujrat and other countries, gentlemen and others encamping in the place are requested not to kill peafoul or peageons in the neighbourhood or to catch the fish in the small pucka tank, near the village or to kill. animals there. Kherwarah John C. Brooke 22 nd May Captain Sule-Hilly Trocks, 1854. Mewar. इस क्षेत्रकी भक्ति करनेकी बहुत कालसे सेठ हीराचंदनीकी इच्छा थी सो अब सर्व कुटुम्बको लेकर सेठ हीराचंदजी केशरियाजी पधार। सेठ माणिकचंद पानाचंद और मोतीचद व्यापारार्थ बम्बई ही में ठहरे । वहाँ जाकर इन्होंने बहुत कुछ दान पुण्य किया। यहाँसे श्रीतारंगानी गिरनारजी और पालीतानाकी यात्रा बड़े भावसे की और धर्ममें जी खोलकर पैसा लगाया । यात्रासे लौटकर श्री केशरियाजीकी वीतराग प्रतिमाकी महिमा अपने पुत्रोंसे कही जिसे सुनते ही माणिकचंदजीसे न रहा गया वे अकेले एक नौकरको साथ ले केशरियाजी पहुंचे और वहां बड़े भावसे पूजन भजन करके बहुत दान पुण्य किया। . सेठ माणिकचंदजीका चरित्र लिखते हुए ता० २५ अक्टूबर For Personal & Private Use Only ___ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । १५१ १९०२का गुजराती पत्र 'सत्यवक्ता' अपने अंक १५ पुस्तक १७में इस भांति कहता है: " तेओ सं० १९३१मां पवित्र स्थान श्रीकेशरीआजीनी महान् यात्राए गया हता, ते समय त्यां मोटो खर्च करी आवा धर्मने शोभा आपनारां मान्य भरेलां कार्यो करी आव्या हता." सेठ माणिकचंदजीको विद्या व धर्ममें शुरूसे ही प्रेम था। इसी कारण वहाके दिगम्बर जैनियोंको आपने शास्त्रस्वाध्याय करने व अपने २ बालकोंको विद्या पढ़ाने व धर्मके स्तोत्रादि सिखानेकी प्रेरणा की। केशरियाजीसे लौटकर सुरत होते हुए माणिकचंदनी बम्बई आए । __अब सेठ हीराचंदनी अपना समय धर्मध्यानमें अधिक देने लगे । इनको न तो अब घरके कामकी चिन्ता थी और न व्यापार की। चारों भाई बड़े प्रेमसे इस तरह द्रव्य उपार्जनमें वृद्धि पा रहे थे जिस तरह दुइजका चंद्रमा प्रतिदिन अपनी कलाको बढ़ाता जाता है। सेठ हीराचंदके चित्तमें कभी २ जो ख्याल उठ आता था वह केवल अपने चतुर्थ पुत्र नवलचंदके सेठ नवलचंदका विवाहका था। नवलचंदकी लग्नके लिये विवाह । हीराचंदके पास प्रतिदिन इधर उधरसे आदमी आते व पत्र आया करते थे पर सेठ हीराचंदने तो यही ही निश्चय कर रक्खा था कि २२ वर्षकी आयु जब तक नवलचंदकी न होगी तब तक हम उसकी लग्न नहीं करेंगे। • तथा सगाई भी १ वर्षसे अधिक पहिले नहीं करेंगे । दिन जाते देर नहीं लगती है। संवत १९३२के अंतमें इनके पास टेंभुरणी For Personal & Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२] अध्याय पाँचवाँ । निला शोलापुर निवासी दोभाडा देवचंद जीवराज बम्बई आकर मिले और अपनी पुत्री प्रसन्नकुमरीका वर्णन किया । हीराचंदजीने जन्मपत्र दिया और लिया तथा पुत्रीके देखनेकी इच्छा प्रगट की । देवचंदजीने कहा-मैं दो मास बाद बम्बई आऊंगा तब मैं उसे लेता आऊंगा । यद्यपि वह ११ वर्षकी है पर शरीर ठिंगना है । मैं आपके पास ही उसे उस समय ले आऊंगा जब आपके पुत्र व्यापारार्थ घरसे बाहर जाते हैं । देवचंदजी अपने कहनेके अनुसार प्रसन्नकुमरीको लाए। सेठ हीराचंदनी उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए। यह भी बहुत ही प्रसन्नचित्त, ठंडेमिज़ाज़ और लज्जावती थी । इसके मुखको देखकर हीराचंदनी राजी हो गए। और संवत् १९३३ में लगकी मिती निश्चित हो गई। ज्योंही देवचंदनी प्रसन्नकुमरीको लिये हुए घरसे बाहर जा रहे थे कि उधरसे नवलचंद किसी कामके लिये घर आए थे सो इस कन्याको सिरसे पैर तक देखकर भौंचकसे रह गए और वह कन्या भी इनके प्रफुल्लित और दृढ़ शरीर व मुखको देखकर आनन्दित हो गई। दोनों अपने २ रास्ते चलदिये पर अपने २ मनमें एक दूसरेके रूपकी झलकको न भुला सके । प्रेमका अंकूरा उसी दिन उग उठा । यह उसी प्रेम अंकूरेका प्रभाव है जिससे आज भी यह प्रसन्नबाई अपने पतिकी प्रेमपात्रारूप होती हुई व कई पुत्रपुत्रियों की माता होकर सेठ नवलचंदके अद्धोंगिणीपनेके कर्तव्यको बजारही है। इस शुभ लग्नमें सेठ हीराचंद एक बडी बारातको लेकर व १००.) खर्चका निश्चयकर दक्षिण दिशामें नवलचंदके विवाहार्थ For Personal & Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम | [ १५३ पधारे । मुरणी छोटासा कसबा है । बम्बईवाले व्यापारियोंका ठाठवाट पहनाव उढ़ाव व वारातका उत्सव देखनेके लिये भासपास ग्रामोंके इतनेलोग आगये थे कि कई दिन तक टेंमुरणीमें एक बड़ाभारी मेलासा होगया था और गरीबोंको भोजनादिसे भी तृप्त किया था। विधिके साथ लग्न होकर सेठ नवलचंद नवोढ़ा प्रसन्न कुमरी के साथ बिदा होकर अति प्रसन्नतासे सर्व संघसहित बम्बई और जैसे और तीनों भाई सपत्नीक गृहीधर्ममें लीन थे ऐसे यह भी लीन होगए । आए अब सेठ हीराचंद चारों ही पुत्रों का विवाहकर और उन्हें व्यापार और गृहस्थधर्म साधनमें तल्लीन कर अपने सेठ हीराचंदजीको कर्तव्यको साधन कर वहुत ही संतुष्ट हुए संतोष । और जब कभी यह अपनी उस सूरत नगरकी उस अवस्थाका मिलान जब कि इनकी स्त्रीका देहान्त हुआ था इस समयसे करते थे तो इनको अपने व अपने पुत्रोंके पुण्योदय पर बहुत ही तृप्तता होती थी। और यही मनमें आता था कि यद्यपि पूर्व्व जन्मकृत पुण्यकर्म्मका उदय ही लक्ष्मी, कीर्ति आदि सामग्रियोंके संयोग करानेमें कारण है तौभी इस जन्मकृत धर्मसेवन से बांधा हुआ पुण्य भी इस जन्ममें अपना उदय दे सक्ता है क्योंकि हमने अनेकवार शास्त्रोंमें सुना है कि जो कर्म्म यह जीव बांधता है उसमें स्थिति अंतमुहूर्त्त तककी पड़ सक्ती है । इससे यदि किसी पुण्य या पापकर्मकी स्थिति १० व २० वर्षकी पड़े तो इसी जन्म में उसका सर्व फल भोग लिया जाता है। इस कारण यह बात बहुत ही उचित है कि बाल्यावस्था से ही धर्मका For Personal & Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] - अध्याय पाँचवाँ । सेवन किया जाय । यह वर्म इस लोक परलोक दोनोंमें उपकारी है । धर्मके सेवनसे इस लोकमें भी मनमें शांति होती है और आगामी भी धर्मका उत्तम फल होता है । यह बड़े आनन्दकी बात है कि हमारे चारों ही पुत्रोंका ध्यान धर्मके सेवनमें है। इस धर्मकी संगतिसे ही वे सदाचारी हैं और कीर्तिमान हो रहे हैं। हीराचंदनी ऐसा विचार करते हुए अब चित्तमें अति शांति रखने लगे। यह बात भी बड़े आनन्दकी थी कि सेठ हीराचंदजीके घर की स्त्रियोंमें कोई तकरार नहीं थी। चारों चारों स्त्रियोंमें ही स्त्रियां बड़े हेलमेलके साथ रहती थीं। एकता। रूपमतीबाईकी शांत प्रकृति व काम करनेकी चतुराई व सहनशीलता और धार्मिक झुकावका ऐसा प्रभाव था कि जिसके सामने अन्य तीनों स्त्रियां रूपमतीकी आज्ञामें चलती थीं। वास्तवमें जिस घरकी स्त्रियोंमें सुमति होती है वहां अवश्य लक्ष्मी और आनन्दका निवास होता है। तथा वह घर ही वास्तवमें वर है जहां सुमति और एकता ५वीका निवास है। उस घरमें पुरुषोंको एक आनन्द बाग नज़र आता है। इसके विरुद्ध जिस घरकी स्त्रियों में अनैक्य व कुमति होती है वहां भावोंके अशुभ रहनेसे प्रायः दारिद्य, दुःख और अपकीर्तिका निवास होता है और वह घर पुरुषोंके लिये एक नर्कके समान भासता है। बाहरके कामकाजसे त्रासित मुख होकर घरमें घुसते हुए उनको और अधिक त्रास भोगना पड़ता है। अपनी पत्नीसे मिष्ट व आनन्दित बचनोंके सुननेके स्थानमें उनको कटुक और दुःखभरी घर भरकी शिकायतें इस तरह सुननेको For Personal & Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम | [ १५५ मिलती हैं जिससे हृदय बड़ी भारी चिन्ता और खेदमें पड़ जाता है । पर जहाँ सुमति व एकताका वास है वहाँ घरमें पहुंचते ही स्त्रियोंके मुख पर प्रफुल्लता दीखती है । जब पति अपनी पत्नी से मिलता है मिष्ट और प्यारकी भरी वार्तालापसे चित्त खिल जाता है । उसकी बाहर की सारी थकावट दूर हो जाती है । यद्यपि शुभ व साताकारी सम्बन्धकी प्राप्तिमें अंतरंग पुण्यका उदय निमित्त कारण है तौभी बाह्य पुरुषाथकी भी आवश्यकता है क्योंकि अंतरंग पुण्योदय होने पर भी धनकी प्राप्ति में बाह्य कारण व्यापारादिका निमित्त मिलाना ही पड़ता है । इसके सिवाय श्री समन्तभद्राचार्य्यने भी दैव अर्थात् पूर्वपुण्यके उदय और पुरुषार्थके सम्बन्धमें एकान्त पक्षका निराकरण करते हुए यही कहा है— अबुद्धिपूर्वीपेक्षायां इष्टानिष्टं स्वदैवतः । बुद्धिपूर्वपेक्षायां इष्टानिष्टं स्वपैौरुषात् ॥ अर्थात- जो कोई कार्य अबुद्धि पूर्वक अर्थात् अपनी बुद्धिके विना लगाए अकस्मात् होता है जिससे अपना इष्ट या अनिष्ट हो, जैसे बैठे २ अपने ऊपर मकानका गिर पड़ना वह कार्य अपने पूर्व कृत कर्मके उदयकी मुख्यतासे होता है पर जो बुद्धि पूर्वक कार्य होते हैं जैसे धनागम, भोजनपान उनमें अपने इष्ट या अनिष्ट होने में मुख्यता अपने पौरुषकी है यद्यपि इसमें भी सिद्धिका होना अंतरंग पुण्यकर्मका उदय है परंतु पुरुषार्थ मुख्य इसलिये है कि यदि उद्योग न होता तो वह पुण्य कर्म यों ही झड़ जाता इसलिये पुरु- पूर्व पुण्यका उदय । For Personal & Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] अध्याय पाँचवाँ। षको तो सदा पुरुषार्थी ही रहना ही चाहिये । सेठ हीराचंदका सन्तोष और चारों भाइयोंका अटूट परिश्रम ही इस उन्नतिमें मुख्य कारण हुआ है। यद्यपि अंतरंग पुण्य कर्मका भी उदय है पर जैन सिद्धान्तानुसार प्रायः बाह्यनिमित्तके न होने पर कर्म विना रस दिखलाए यों भी झड़ जाता हैं। जैसे किसीको भगवत् भननमें २ घंटे लगे उसको उस समय किसी बातकी असाता नहीं है। उस वक्त मन्द असाता वेदनी कर्म अपना विना रस दिये ही झड़ रहा है। युवावस्था व गृहस्थाश्रमके सुख भोगते हुए चारों भाई अपने पूज्य पिताका बहुत ही भक्तिसे सन्मान करते हुए रहने लगे और दिन पर दिन व्यापार वृद्धि करके धन द्वारा अपने ऐश्वर्यको बढ़ाने लगे। ६. N DORE ARS. For Personal & Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [१५७ अध्याय छठा। सन्तति लाभ । ज्यों २ बृटिश राज्यकी दृढ़ता भारतमें होती गई त्यों २ विलायतके साथ भारतका व्यापार संबन्ध व्यापार वृद्धिका बढ़ता गया। संवत १९३२ या सन् १८७५ कारण। में जब यहां लार्ड नार्थब्रुक वायसरायका काम कर रहे थे तब भारतमें एक बड़ी भारी बात यह हुई कि भारतकी रमणीकता हाल जानकर भारतकी सैर करनेके लिये बादशाह इंग्लैण्डके पुत्र प्रिन्स आफ वेल्स बम्बईमें ता. ८ नवम्बरके दिन पधारे, उनके स्वागतार्थ सारा बम्बई नगर खूब सजाया गया था, जगह २ ध्वनाएं सुशोभित थीं, २ मास पहलेसे सर्व नगरवासियोंने अपने २ मकान झाड़ने, पोतने और संवारने शुरू कर दिये थे। हम बादशाहके. पुत्रसे मिलेंगे ऐसी उत्कंठा देशीराजाओं व प्रतिष्ठित मनुष्य और धनपात्रोंको हुई, इससे हमें वस्त्र और आभूषण अच्छे २ बनाने चाहिये, इस भावके जगनेसे बम्बई में जवाहरातकी विक्री खूब बढ़ी । मोतियोंके कंठोंकी बहुत माँग हुई । इस समय सेठ माणिकचंद पानाचंदने बहुत अच्छे २ कंठे तय्यार किये और दलालोंके द्वारा विक्री कर बहुत लाभ उठाया। इन चारों माइयोंमें मोतीको छांट कर ठीक रीतिसे ऐसा सजाना कि उन सर्वकी लड़ी एक विशाल शोभाका विस्तार कर इस बातका एक अपूर्व गुण था। राजकुमार दिहली, पटियाला, ग्वालियर, इन्दौर. आदि स्थानों में भी गए थे For Personal & Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ] अध्याय छठा । इससे वहाँके लोगोंमें भी जवाहरात खरीदनेकी बहुत उमङ्ग हुई थी। सेठ माणिकचंद पानाचंदका बहुतसा मोती इन शहरोंमें भी खूब विका । इतने ही में हिन्दुस्तानमें यह खबर उड़ी कि ता० १ जनवरी सन् १८७७ ( अर्थात् संवत १९३४ ) को दिहली में एक बड़ा भारी दरबार होगा जिसमें सर्व राजा महाराजा आदि प्रतिष्ठित जन शरीक होंगे। इस दरबारकी खबरने और भी लोगोंके चित्तको सुन्दर २ वस्त्राभूषण खरीदनेके लिये उभार दिया । इस मौकेको पाकर उक्त सेट माणिकचंद पानाचंद और भी उद्योग शील हुए और अच्छे २ मोतीके कंठे बनाकर बम्बई व हिंदुस्तानमें विक्रीकर खूब नफा उठाया । यह दरबार भारतमें बड़ा नामी हुआ। पार्लियामेन्टने महारानी क्वीन विक्टोरियाको एम्प्रेस आफ इन्डिया अर्थात् भारतकी बादशाहज़ादीका पद देनेके लिये यह दरबार करवाया था। इससमय भारतके वाइसराय लार्ड लिटन थे। इस दरबारमें बहुतोंको ईनाम व पेन्शने दी गई तथा १६००० कैदी छोड़ दिये गए । माणिकचंदजीको इधर उधर हरएकसे मिलने जानेका व सभा आदि देखनेका बहुतही शौक था। यद्यपि विलायतसे यह दुकानमें व्यापारकी अधिकतासे दिहली व्यापार । तो न जासके पर बम्बईमें इसकी चर्चा में खूब दिल लगाते थे। इन्होंने मालम किया कि विलायतवालोंको भी जवाहरात लेनेका अब शौक हो चला है। नब प्रिन्स आफ वेल्स विलायत लौटकर गए और अपने मित्रोंसे For Personal & Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [१५९ भारतके राजा महाराजा धनाढयोंके आभूषण पहननेका वर्णन किया तबसे वहाके लोगोंमें जवाहरात खरीदनेका जो शौक थोड़ा था वह बहुत ही बढ़ गया । बम्बईमें एक पारसी व्यापारी सेठ फरामजी एण्ड सन्सकी कम्पनी है । इन्होंने पहले पहल विलायके व्यापारियोंको जवाहरात भिनवानेका उद्योग किया। बम्बई में एक जौहरी व्यापारी सेठ साकरचंद लालभाई श्वे. जैनी हैं, सबसे पहली इन्हींके मालको फरामनी कम्पनीने विलायत भेजना शुरू किया। माणिकचंदनी सेठ फरामजीसे मिले और विलायत किस तरह माल भेनना उसका सर्व कायदा जानकर अपने भाई पानाचंद और नवलचंदसे कहा । इस समय मोतीचन्द बीमार थे । इनको भगंदरका रोग हो गया था जिससे दूकान पर बहुत कम आते जाते थे। पानाचंढने कहा कि जब हमारा व्यापार यहीं खूब चमक रहा है तत्र हमें इतनी दूर अपना माल भेजनेकी क्या जरूरत है ? इतनेमें नवलचंद साहस करके बोले कि भाई, व्यापार करनेमें हमें संकोच नहीं करना चाहिये, यहाँ तो हमें थोड़ासा ही लाभ मिलता हैं पर विलायतमें अभी ही मालकी विक्री शुरू हुई. है, वहां शाहज़ादेके लौटनेसे नया २ शौक बढ़ा है, तथा अभी इस बाज़ारमें केवल एक ही व्यापारी माल भेनते हैं वहीं दुगने तिगने हो जानेमें कोई संदेह नहीं है इससे विलायतके साथ व्यापार अवश्य शुरू करना चाहिये। माणिकचंदनीने भी इस बातका समर्थन किया, पानाचंदनी चुप हो रहे । तय हो गया कि फरामजी कम्पनीके मारफत माल भेजा जाय। For Personal & Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६०] अध्याय छठा । बम्बईसे बिलायत माल भेजनेवालोंमें दूसरे देशी व्यापारी सेठ माणिकचंद पानाचंद हुए। प्रथम पारसलमें पहले एक पारसल भेजा उसपर विलायतघाटा। वालोंने बहुत कमती दामोंकी मांग की। इस को देखकर पानाचंद चित्तमें बहुत नाराज़ हुए, पर विलायतवालोंकी जवाहरातके खरीदनेमें सदा ही यह आदत रहती है कि वे पहिले बहुत कम दाम देते हैं फिर धीरे २ बढ़ते हैं, इनके इनकार करनेपर थोड़ा २ दाम बढ़ाकर आफर आया। पानाचंदकी यह आदत नहीं थी कि किसी सोदेमें इतनी देर लगाई जाय। अब भी लागतमें नुकसान ही होता था। पानाचंदने माणिकचंद और नवलचंदको कहा कि विलायतवाले माल पहचानना नहीं जानते हैं। हमने तुम्हारे कहनेसे वहाँ माल भेजा नहीं तो अब तक हम उसमें बहुत कुछ नफा कर लेते, अब तो हम ज्यादा न ठहरकर घाटेसे ही बेचे डालते हैं और आगामी हम माल भेजना पसन्द नहीं करते । दोनों भाइयोंने बहुत समझाया भी कि अभी आप ठहरें, थोड़े ही दिनों में अच्छा ओफर आएगा पर पानाचंदजी झुंझला गए, इस तरह इन्होंने पहिले पारसलमें घाटा सहा ।। कुछ दिन बाद माणिकचंद और नवलचंदने सलाह की कि यह बात तो ठीक नहीं हुई कि हमारी दूसरे पारसलमें दुगना सलाहसे विलायतके व्यापारमें घाटा हो । मुनाफा। हमें फिर भी साहस करना चाहिये और देखना चाहिये कि क्यों नहीं नफा होता है। साकरचन्द लालभाईने तो विलायतके व्यापारमें अच्छी सफलता पाई For Personal & Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तवि लाभ । [१६१ है और हमें भी पहिले पारसलमें नफा होता पर भाईकी जल्दीसे ही नुकसान हो गया है, ऐसा विचार कर एक दिन आपने बड़े भाईसे आग्रहपूर्वक कहा कि हमारे कहनेसे एक छोटासा पारसल एक दफे आप और भेजिये । इनके साहसको देखकर केवल ५०००) की लागतका एक पारसल फिर भेजा गया। इसके ऑफर ऐसे अच्छे आए कि इस पारसलमें इनको ५०००) का मुनाफा हो गया। अब तो तीनों भाइयोंका खूब दिल भर गया और लगातार १५, २०, ३०, ४०, पचास पचास हजारकी लागतके पारसल भेनने लगे और प्रायः हरएकमें दुगना तिगना मुनाफा कमाने लगे। इस तरह इनका विलायतसे व्यापार शुरू हुआ जो अब तक जारी है। संसारकी बहुत ही विचित्र दशा है। कोई भी सदा सुखकी नींद नहीं सो सके । एक न एक आकुलता सेठ पानाचंदकी रूपी कांटा लगा ही रहता है। सेठ पानाचंपत्नीका मरण । दकी स्त्री फुलकुमरी अपनी निर्बलताके कारण सदा ही बीमार रहा करती थी। पानाचंदको इस स्त्रीसे सांसारिक सुखका लाभ यथोचित नहीं हो सका जिससे सेठ पानाचंदका मन कभी२ बहुत उदास हो जाता था। यह फुलकुमरी एक दिन बहुत बीमार हो गई और कुछ दिन पलंग पर पड़ी रही । बहुत कुछ औषधि करने पर भी आराम नहीं हुई और अपने विवाहके ५ वर्ष बाद ही उसका आत्मा देहको त्याग गया । थोड़े ही दिन पीछे पानाचंदका द्वितीय विवाह सांगली ज़िला फलटन निवासी नवीवाईके साथ हो गया। सेठ पानाचंदका इस विवाहको सेठ हीराचंदने बहुत साधारण द्वितीय विवाह । रीतिसे कर दिया था। यह बहुत भोली व आज्ञामें चलनेवाली थी पर कर्मयोगते इसका For Personal & Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] अध्याय छठा । भी शरीर निर्बल और रोगी बना रहता था जिससे सेठ पानाचंदको पत्नीका यथेष्ट सुख प्राप्त करनेमें बहुत अन्तराय भोगना पड़ता था। सेठ माणिकचंद और चतुरमतीमें अतिप्रेम था। चतुरमती गर्भवती हुई और मिती फागुण वदी १ संसेठ माणिकचंदको वत् १८३४ के दिन एक कन्याको उत्पन्न पुत्रीका लाभ। किया निसका नाम सेठ हीराचंदने फूलकुं वरी (फुलकौर) रक्खा । वृद्धावस्थामें पौत्रीका मुख देख हीराचंदकी आत्माको बहुत संतोष हआ। इस कन्याके जन्मका यथोचित उत्सव किया। यह कन्या चतुरमतीके द्वारा दिन परदिन वृद्धिको प्राप्त होने लगी। सेठ माणिकचंद कभी२ घरमें शामके वक्त भोजन करके इसे हाथमें लेकर खिलाते व इसका गुलाबके फूलसदृश मुख देखकर आनन्दित होते थे। इस संवतके चातुर्मासमें अंकलेश्वर (गुजरात) नगर में त्यागी महाचंद्रजीने चातुर्मास किया त्यागी महाचंद्रजीका था । यह त्यागी प्राकृत व संस्कृतके बड़ेभारी परिचय। पंडित थे। इनको गोम्मटसार त्रिलोकसारादि अ नेक ग्रंथ कंठ थे। इन्होंने कई ग्रंथोंकी रचना की है। अधिक निवास सीकर (राजपूताना) की तरफ रहता था। इनका रचा एक जैनेन्द्रपुराण सीकर में मौजूद है जिसके कुछ भाग उनके शिष्य पंडित रिषभदास बड़ाछिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश) के पास देखनेमें आए हैं। इस ग्रंथमें चारों अनुयोगोंका वर्णन प्राकृत, संस्कृत और देश भाषा तथा छंदोंमें हैं, अभी तक इसकी प्रसिद्धि नहीं हुई है। For Personal & Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [ १६३ इनका बनाया हुआ एक लघु जैनेन्द्र व्याकरण है। परताबगढ़ राज्य मालवामें नये दिगम्बर जैन मंदिरजीके भंडारमें इस व्याकरणके ३० पत्रे हमें देखनेको प्राप्त हुए, पूर्ण नहीं मिला । अंकलेश्वरमें किसीके पास पूर्ण है ऐसा सुनते हैं। इसके ५००० श्लोक हैं ऐसा मालूम हुआ है। प्रारंभमें कर्ताने इस भांति प्रतिज्ञा की है। " महावृत्ति शुंभत्सकलवुधपूज्यां सुखकरौं । विलौक्योद्यद् , ज्ञान प्रभुविभयनंदी प्रविहिताम् । अनेकैः सच्छन्दैर्धेमविगतकैः सदृढ़ भूतां ? प्रकुर्वेऽहम् तनुमति महाचन्द्र विबुधः । इसका भाव यही है कि जैनेन्द्र महावृत्तिको देखकर मैं यह वृत्ति लिखता हूँ। अनेकांतासिद्धिः-सूत्रकी व्याख्या इस तरह की है:" प्रकृत्यादि विभागेन अस्तित्वनास्तित्वनित्यत्वानित्यत्वसामान्यासामान्याधिकरण्य विशेषणविशेष्यादिक शब्दानां, सिद्धिरनेका: स्वभावो भवेत् । पृष्ठ ३० वें में है कृष्णश्चकंबलश्च कृष्णकंबलः” यहाँ समासका वर्णन है। इनको बुध महाचंद्र कहते हैं। इन्होंने हिन्दी भाषामें बहुतसे पद व सामायिक पाठ बनाया है जो अति प्रसिद्ध है जिसकी प्रारंभित कड़ी है काल अनंत भ्रम्यो जगमें सहिये दुःख भारी, जन्म मरण नित किये पापको है अधिकारी । कोड़ि भवांतर मांहि मिलन दुर्लभ सामायिक, धन्य आज मैं भयो योग मिलियो सुखदायक । For Personal & Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] अध्याय छठा । इनके पद भी बड़े ही वैराग्यवर्द्धक व आध्यात्मिक हैं। कलकत्तेके ८४ वर्षके वृद्ध पंडित अर्जुनलालजी इनके एक भननको कभी २ कहा करते है जिसकी प्रारंभकी कड़ी यह है। "सुन अताया रे रवि वद्दल छाया रे त्यूं ही कर्म छिपाया मैला हो रह्या रे । तू सिद्ध सरूपी रे नित अचल अरूपी रे जड़ पुद्गल रूपी मांही रमि रह्या रे, उस समय इनके पास केवल एक लंगोट और एक चद्दरकी ही परिग्रह थी। मोरपिच्छिका तथा कमंडल था। दिनमें केवल एक दफे भोजन करते थे तथा उस चातुर्मासमें केवल ४ वस्तु ही रक्खीं थीं। गेहूं, इमली, लालमिरच और सूखी सांगड़ीका साग; और सर्वरसोंका त्याग कर दिया था। इतना होनेपर भी विना किसी शास्त्रको रक्खे हुए व्याख्यान देते हुए इतनी ज़ोरके गंभीर शब्द कहते थे कि बहुत दृरतक आवाज़ जाती थी। इनको किसी भी सवारीपर चढ़नेका त्याग था । चातुर्मासके बाद यह अंकलेश्वरसे पैदल चलनेकी यहाँतक प्रशंसा प्रसिद्ध है कि एक दफे इनको अंकलेश्वरसे श्री कुंथलगिरी प्रतिष्ठाके अवसरपर जाना था तब वहाँपर इनके शिष्य अमरेन्द्रकीर्ति तो रेलके द्वारा कुंथलगिरी गए और यह पैदल ही ठीक मितीपर वहाँ पहुंच गए थे। त्यागी बुध महाचंद्रनीने त्रिलोकसार पूजा बहुत ही मनोहर छन्दोंमें बनाई है । अंकलेश्वरके चातुर्मासमें आपने श्रावकको उपदेश देकर इस बृहत् पूजन करानेके समारंभको कराया जिसका महूर्त वैशाख सुदी ३ का पड़ा । १५ दिनका पूजन विधान हुआ। नगरके बाहर पारसीबाड़ेके नाकेपर खेतकी वाडीमें एक बड़ा भारी मंडप बांधा गया था जिसमें एक बड़े विस्तारके साथ चावलोंसे तीन लोकका For Personal & Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [१६५ मंडल पुरुषाकार बनाया गया। प्रतिदिन श्रीयुत महाचंद्रजी बहुत गाजे बाजेके साथ स्वयं उस अपनी बनाई भाषा पूजनको पढ़ते थे। तीन लोकके अकृत्रिम चैत्यालयोंकी पूजनके समय स्थापना उस मंडलमें ठीक उसी स्थानपर होती थी नहीं कि चावलोंसे वह स्थान निर्देश किया गया था । छोटे २ लकड़ीकी स्थापनाएं उतनी ही बनाई गई थी, जिनपर रकाबी रखकर स्थापनाके समय नियत स्थानपर रक्खी जाती थीं। बाहरसे आसपास ग्रामोंके बहुत भाई आते जाते रहते थे। - इस समय कारणवश सेठ माणिकचंदजी बम्बईसे सूरत आए। वहाँ अंकलेश्वरकी पूजा समारंभकी बात सुनकर अंकलेश्वरकी पूजामें व त्यागी महाचंद्रके दर्शनकी भावना करके सेठ माणिकचंद। सेठ माणिकचंदजी अंकलेश्वर आए। पूजन समारंभ देख व महाचंद्रजीके दर्शन प्राप्तकर आप बहुतही राजी हुए । रात्रिको मंडपमें खूब भजनगान हुआ करता था। गंधर्व भी आए थे। अंकलेश्वरसे ६ मील एक सनोत ग्राम है वहाँपर एक अति प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर है जिसके भौरमें सजोतके शीतल- चतुर्थकालको बहुत ही शांत वीतरागमई नाथजी। पद्मासन ३ हाथ उंची श्री शीतलनाथ स्वामीकी प्रतिबिम्ब विराजमान है। इस बिम्बके दर्शनसे लेखकको जो आनन्द हुआ है वह बचन अगोचर है। उस सजोतमें एक मेवाड़ा दि. जैनी धर्मचंद हरजीव For Personal & Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] अध्याय छठा। नदास फुटकल अनाजकी दूकान करते हुए धर्मचंदजीका सेठसे रहते थे। इनको भजनभाव व नृत्यका शौक था। श्री शीतलनाथजीके सन्मुख भजनभाव करते हुए आनन्द मनाते थे। यह धर्मचंदजी धर्मके बड़े रोचक थे। पहले लड़कईमें तो इनको धर्मसे कुछ भी प्रेम नहीं था इसके दो वर्ष पहले महुवा निवासी एक खंडेलवाल विद्वान् जैन पंडित शिवलालजीने अंकलेश्वरमें चातुर्मास किया था। यह पंडित बहुत विद्वान् व गंभीर ध्वनिके थे। शास्त्र सभा प्रतिदिन करते थे और सर्व लोग सभामें जाते थे। धर्मचंद दिलमें रुचि न रखनेपर भी शर्मके मारे शास्त्रमें बैठ जाते थे और ज्यों त्यों कर समय पूरा करते थे पर पंडितजीकी दृष्टि धर्मचंद पर जम जाती थी। जिसदिन यह नहीं जाते दूसरे दिन पंडितजी टोकते थे। इसपर अधिक भाव होनेका कारण यह था कि धर्मचंदके पिता हरजीवन रतनचंद शास्त्रके जानकार व शास्त्रानुसार आचारके पालनेवाले तथा पंडित शिवलालके मुलाकाती थे । एक गुण इनमें यह था कि यह भनन गान व कवितामें चतुर थे। अपने घरके चैत्यालयमें नित्य खूब गागाकर पूजन करते थे, इसी कारण इनके पुत्र धर्मचंदको भी शुरूसे ही गाने बजानेकी रुचि हुई। यह परोपकारी भी थे । अंकलेश्वरके . १०, १२ लड़कोंको अपने घरमें भक्तामर सूत्रनी पूजा पाठ आदि पढ़ाते थे । इन्होंने रवित्रत कथाका हिन्दीमें एक नाटक बनाया है जिसका नाम रविव्रत आख्यान है। इस नाटकको यह मंदिरजीमें खेलते थे । सर्वस्वांग कायदेसे भरवाते थे। कई इनके साथी भी थे। जिस स्थानपर मुनिका वर्णन आता है वहां नग्न मुनिका भेष न For Personal & Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ। [१६७ बनवाकर एक बड़ा चित्रपट टांगते थे और उसके पीछे एक भाई खड़े होकर मुनिका पाठ करते थे। उपदेश देते थे। इस आख्यानका एक पद नीचे दिया जाता है। " कहो मुनि कौनसी करम गति आई-टेक० सेठ सेठानी पूंछत मुनिसे, सुख गया दरिद्रता आई। कहो० क्या मैंने जैनधर्म भृष्ट कीया, क्या घृतमें तेल मिलाई ॥ कहो. क्या मैंने रात्रि भोजन नहीं पाला, व्रत निंद्या झूठ मिलाई | कहो. हरदास अरहंत चरणकू वारवार बलि जाई ॥ कहो० शिवलालनीके द्वारा बार बार टोके जानेपर एक दिन धर्मचंदको लज्जा आई और यह शिवलालनीसे एकान्तमें मिलकर बोले कि हमें कुछ धर्मकी बात बतावे जिससे मुझे रुचि हो । तत्र शिवलालजीने कहा कि जो पुस्तक हमने तुम्हारे पिताको दी थी व जिसमें दशलाक्षणी व अष्टान्हिका आदि पूजन भाषा द्यानतराय कृत हैं, उसे ले आओ। इस पुस्तकको धर्मचंदजी पहचानते थे क्योंकि दशलाक्षणीके दिनोंमें उस पोथीके द्वारा इनके पिता गावनाकर पूजन पढ़ते थे और यह खड़े हुए द्रव्य चढ़ाते थे। उस समय पहले २ द्यानतराय कृत पूजनोंका प्रचार इसी पोथीसे हुआ । धर्मचंदजी उस पुस्तकको लाए । शिवलालजीने उसमेंसे नीचे लिखी तीन गाथाएं बड़ी कठिनतासे धर्मचंदजीको कंठ कराई और उनका मतलब समझाया गाथा गइ इंदियं च काये । जोये बेये कषाय णाणेय संजम दंसण लेस्सा । भविया सम्मत्त सण्णि आहारे ॥१॥ For Personal & Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय छठा । गुणजीवा पजत्ति । पाणा सण्णाय मग्गणा ऊये । उवऊगो विय कमसो । वीसंतु परूवणा भाणया ॥ २ ॥ झाणाविय पच्चाविय जाय कुलकोड़ि संजुया सव्वे ।। गाहा तियेण भणिया कमेण चौवीस ठाणाणि ॥ ३ ॥ भावार्थ-गति ४, इंद्रिय ५, काय ६, योग १५, वेद ३, कषाय २५, ज्ञान ८, संयम ७, दर्शन ४, लेश्या ६, भव्य २, सम्यक्त ६, संज्ञी २, आहारक २, गुणस्थान १४, जीवसमास १४, पर्याप्ति ६, प्राण १०, संज्ञा ४, उपयोग १२, यह वीस प्ररूपणा कही हैं । तथा ध्यान १६; प्रत्यय अर्थात् आश्रव ५७; जाति ८४ लक्ष; कुलकोड़ १९९॥ इन चारोंको मिलाकर २४ स्थान क्रमसे जानने चाहिये । वास्तवमें इन गाथाओंके उलझावमें डालकर उसके सुलझानेके लिये जो परिश्रम करेगा वह जिनवाणीके रहस्यको जान जायगा। पं० शिवलाल बड़े बुद्धिमान और परोपकारी थे जिन्होंने धर्मचंदके साथ बड़ा उपकार किया। इन गाथाओंको कंठकर अब यह गति आदिका विशेष हाल जाननेके लिये भाषा शास्त्रोंको देखने लगे । इनको शौक इतना बढ़ा कि ये सजोतमें अपनी अनानकी दुकान पर पुस्तक रखते, सौदा देते. २ जब छुट्टी पाते तब वांचते और उसमेंसे एक कापी पर नोट कर लेते थे। इस तरह यह अपनी स्त्रीके साथ सजोतमें धर्म सेवन करते रहते थे। पिताजीका देहान्त हो चुका था, सो इस धर्म विद्या सीखनेकी रुचिके दो वर्ष पीछे ही अंकलेश्वरमें यह उत्सव हुआ था । इस महा पूजाके कार्यमें धर्मचंद मुख्य भाग लेते थे और महाचंदजीसे बहुत हित रखते थे। उनकी भले प्रकार वैय्यावृत्त करते थे। एक दिन For Personal & Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ [ १६९ धर्मचंदजीने महाचंदजी से प्रार्थना की कि इस उत्सव के सम्बन्ध में कोई पद बना दीजिये । महाचंदजीने दूसरे दिन एक पद लिखकर धर्मचंदजीको दे दिया । जिस रात्रिको सेठ माणिकचंद मंडपमें बैठे हुए थे उस रात्रिको धर्मचंदने वह पढ़ मंडप में गाया | इस भजनको सुनकर सेठ माणिकचन्दका प्रेम इस भजनपर हो गया । यह तो पाठकोंको मालूम ही है कि सेठ माणिकचंद गुणग्राही और मिलनसार थे, यह मौका पाकर धर्मचंद से बात करने लगे । धर्मचंद पहले से ही बात करना चाहते थे क्योंकि वे इनके गंभीर सिंह सदृश अति सुन्दर मुख और शरीरको देखकर अपने मनमें यह जान रहे थे कि यह कोई बड़ा भारी सेठ है । इनकासा सुन्दर रूप धर्मचंद के देखनेमें नहीं आया था । यह उस समय धोती, कोट और सुरती पगड़ी पहने हुए थे । दाहने कान में सुन्दर दो गोल मोती और नीलमकी एक कड़ी अटकाए हुए, गलेमें मोतियोंका कंठा डाले हुए, हाथोंमें सुवर्णके कड़े सुवर्णके कड़े पहने हुए एक राजा के समान दीखते थे, पर धर्मचंदका साहस नहीं पड़ता था कि ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति से बात करे । जब माणिकचंदजीने स्वयं बात की तो यह बहुत ही हर्पित हुए और तब इनको मालूम हुआ कि यह सूरत निवासी बम्बई के प्रसिद्ध सेठ माणिकचंद हैं । माणिकचंदनीने धर्मचंदजीके भजन गानेकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि आप यह भजन मुझे नकल करके बम्बई भेज देवें क्योंकि मैं ज्यादा ठहर नहीं सक्ता, कल ही मुझे बम्बई पहुंचना है । धर्मचंदजीने सहर्ष स्वीकार किया | धर्मचंद की स्थिति साधारण थी तथा इनको दिन रात यह दुःख रहता था कि इनको आजीविका के लिये हिंसा For Personal & Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ] अध्याय छठा । कारी गल्लेका व्यापार करना पड़ता था। माणिकचंदसे मिलकर इनको यह भी आशा हुई कि कभी कोई लौकिक काम होगा तो इनसे निकल सकेगा। यह सेठ इतना धनाढ्य और पुण्यात्मा होने पर भी गर्व रहित है। हमारे पाठकोंको मालूम होना चाहिये कि यह धर्मचंद वही परोपकारी तीर्थभक्त भाई धर्मचंद मुनीम पालीताना दिगम्बर जैन कारखाना हैं जिनके उद्योगसे उस तीर्थका बहुत ही सुधार हुआ है व जिन्होंने अपने उपदेशसे हजारों यात्रियोंका कल्याण किया है व कर रहे हैं। इनकी अवस्था अब ६४ वर्षकी हैं। अपने प्रणके अनुसार ५ व ७ दिनमें धर्मचंदने वह भजन नकल करके बम्बई भेज दिया। वह भजन इस भांति है। ( राग जंगलो) मंडलसार त्रीलोक सीरोमणी, पुर अंकलेसर माही हो २ मंडलसार० ॥ टेक ॥ संवत् सत उगनीस तासपरि धरि पैंतीस समाय हो। पंडित राज महेंद्र आवे चोथी शुक्ल चैत्राय हो ॥ १॥ मं० अंकलेश्वरके सर्व पंच बुध राज समीप जु आय हो। बोले उत्सव जिनवरकी प्रभावना करणी चाहि हो ॥ २ ॥ मं० चैत्र शुक्ल पूनिम दिन मंडप आरंभ्यो पुरवांही हो। गज चालीस लंब अति सोभित व्यास वीशगन पायहो ॥ ३ ॥ मं० वदि ग्यारसी रवीवारे मंडल भरणांरंभ कराय हो । सुदि वैशाख तिनी रवीवारै पूंना प्रारंभाय हो ॥ ४ ॥ मं० तादिन श्री जिनचर सुलग्नमैं रथ यात्रा करवाय हो । For Personal & Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [ १७१ नाचत भविजन सनन सनन सन सनन सन नाय हो ॥ ५॥ मं० तननतनन तनतनन ननननननन तान होत सुखदाय हो । छमछमछमछमछमछमछमछम घुधरू नाद कराय हो ॥ ६ ॥ मं० साग्रदिसाग्रदिसंसाग्रदिसायदि नह चलत सारंगी घाय हो। . दम दम दम दम दम दम दम दम होत मृदंग स्वराय हो ॥ ७ ॥ मं० घनन घनन घन घनन घंट घना घनकाय हो । रिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरिरि रूषभश्वर सुखदाय हो।८। मं० ससससससससससससससससर्ज स्वर चलताय हो । गगगगगगगगगगगगगगगग गंधारो स्वर गाय हो ॥९॥ मं० पपपपपपपपपपपपपपपप पंचम नाद कराय हो। मममममममममममममममम मध्यम स्वर सरराय हो ॥१०॥ मं० धधधधधधधधधधधधधधधध धैवेत स्वर सुरराय हो । निनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनिनि निहोत निस्वाद सुखाय हो ॥ ११ ॥ मं० ऐसे गावत और बनावत नरनारी चितलाय हो। श्रीजिनचलत पालखीमें जहां नर तिर्यंच दुतरफाय हो॥१२॥ मं० फिरी श्रीजिनको उत्सव सजूत मंडपमें पधराय हो । करि अभिषेक करि फिरी पूजन महाचंद्र चितलाय हो ॥१३॥ मं० सप्तस्वर संजूत करी पूजा दिन पंद्रहा तक ताय हो। बदि दुतियासनीवारे पूजन पुरण करी सुख पाय हो ॥१४॥ मं० देश देशके नात्री आये मंडल जिन दरसाय हो। पूजन करी करि श्री जीनवरको सब हर्षे मनमाहि हो ॥१५॥ मं०. श्री जीन प्रभावनां ठाईम महाचंद्र बुधराय हो । For Personal & Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] अध्याय छठा । पा यह जन्म सफल लखि अपनो सीकर नगर गया हि हो। ॥ १६ ॥ मंडल सार० ___ पाठकोंको इससे प्रगट होगा कि हमारे चरित्र नायक माणिक चंदजी कैसे धर्मप्रेमी, विद्याप्रेमी और गुणानुरागी थे। सेठ मोतीचंदकी स्त्री रूपमतीको फिर गर्भ रहा था । जबसे इसको यह गर्भ हुआ तबसे इसका प्रेम दान प्रेमचंदका जन्म। व धर्ममें और भी अधिक हो गया था। इसके मनमें पूजा व शास्त्र सुननेकी ही गाढ़ रुचि रहा करती थी । जब संवत १९३४ का चातुर्मास निकट आया तब इसके मनमें यह भावना हुई थी कि मुझे ईडर जाना चाहिये और वहीं मेरेको प्रसूति हो तो अच्छा है क्योंकि यहां कोई बराबर सेवा करनेवाला नहीं है- चतुरबाईके एक छोटी कन्या है और पानाचंद तथा नवलचंदकी बहुएँ बहुत छोटी हैं। रूपमती बहुत बुद्धिमती थी। इसलिये अपने पतिसे इस बारेमें पूछा मोतीचंदने भी यही उचित समझा और अपने पिता सेठ हीराचंदजीको कहा । हीराचंदजीने भी इस बातको पसन्द किया और गांधी मोतीचंदको पत्र दिया। गांधीजी स्वयं आकर रूपमतीको ईडर लेगए। श्रीषोडशकारण व श्री दशलाक्षणी पर्वमें रूपाबाईने ईडरमें खूब धर्मध्यान और कुछ दान भी किया। गर्भावस्थामें ऐसे दान धर्मकी प्रवृत्तिको देखकर सर्व बुद्धिमान यही अनुमान करने लगे कि कोई अतिधर्मात्मा बालक रूपवतीके गर्भ में आया है । यह भी एक निमित नैमित्तिक सम्बन्ध है कि जैसा बालक गर्भमें आता है वैसी ही प्रवृत्ति माताकी हो जाती है। एक दरिद्री पापी पुत्रको गर्भ में रखनेवाली माता मिट्टीके टुकड़े खाती For Personal & Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [१७३ और चने चवाती है व लड़ाई झगड़ा करना अच्छा समझती है। इस सम्बतमें बम्बई और मदरास हाते में पानीके कम पड़नेसे इतना कठोर दुष्काल पड़ा था कि जिससे पार्लियामेन्टमें ऐसी रिपोर्ट की गई कि इस दुष्कालसे साढ़े तेरा लाख आदमी मर गए। ऐसे समयपर रूपावाईने बहुत कुछ अन्नादि बटवाया तथा बम्बईके उदार सेठोंने गुजरात व दक्षिणकी तरफ बहुतसा द्रव्य भेजकर दुष्काल पीड़ितोंकी सहायता की । इतने में आसौज वदी १४ का दिन आगया और प्रातःकाल शुभ नक्षत्रमें रूपमतीने एक बहुतही सौम्य मूर्ति पुत्ररत्नको जन्म दिया। इसके अति सुहावने मुखको देखकर माताको जो हर्ष हुआ वह कहा नहीं जा सकता । गांधी मोतीचंदने अपनी पुत्रीकी संतति रत्नको निरखकर बहुत ही हर्ष माना और बड़ी धूमधामसे इस पुत्रका जन्मोत्सव किया । सर्व कुटुम्बको इसकी ओर बहुत ही प्रेम आकर्षित हुआ इससे सबने इसका नाम प्रेमचंद रक्खा । जन्मपत्र बनवाया गया। ज्योतिषियोंने इसको पुण्यशाली, विद्यावान तथा धर्मात्मा होगा ऐसा कहा । गांधीजीने श्री जिन मंदिरजीमें बड़े उत्सवसे पूजन कराई और कुटुम्जियोंको उचित दिन भोजन कराया व दु:खियोंको दान बांटा । जिस दिन इस पुत्रका जन्म हुआ उसी दिन तार द्वारा बम्बई खबर भेजी गई । सेठ हीराचंद, मोतीचंद आदि सर्व ही कुटुम्बी जन व स्त्रियोंको पुत्र जन्म सुनकर बड़ा ही आनन्द हुआ क्योंकि यह सेठ हीराचंदका प्रथम ही पौत्र था और चारों भाइयोंने एक यही बालक जन्मा था। सेठ हीराचंदने बम्बईके जिन मंदिरजीमें वृहत् पूजन रचाई तथा दानके लिये भी द्रव्य निकाला। For Personal & Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwnear १७४ ] अध्याय छठा । सेठ मोतीचंदको यद्यपि पुत्रके लाभसे बहुत सन्तोष हुआ पर इनको भगन्दरके रोगने बहुत व्याकुल कर रखा था। कितनी ही औषधिय की पर कुछ शान्त न हुआ-रोगको कम होनेके बदले वद्धित देखकर पूज्यपितासे कहा कि अब चातुर्मास वीत गया है ईडरसे कुटुम्बको बुलाना चाहिये मगसर मासमें रूपाबाई पुत्र रत्न प्रेमचंद के साथ बम्बई आई परंतु अपने पतिके रोगको बढ़ा हुआ देखकर बहुत खेदित हुई । मोतीचंदनी बीमारीसे बहुत दुःखित थे पर अपने धर्मके स्मरणमें सावधान थे असातावेदनीय कर्मका उदय है ऐसा मानकर चित्तमें धैर्य लाते थे। और जब कभी अपने पुत्रका मुख देखते तो प्रफुल्लित हो जाते थे क्योंकि यह पुत्र रत्न हरएकको बहुत ही प्यारा लगता था। पुत्रके जन्मको ५ मास ही वीते थे कि फागुणमासमें एकाएक मोतीचंद बहुत ही अधिक बीमार हो गए मोतीचंदका परलोक । और ऐसे वक्त में कि जब रूपाबाई घर काममें लगी थी पिता और भाई सब घरसे बाहर थे। यह अपने कमरेमें लेटे हुए ही यकायक अरहंत अरहंत कहते हुए अपने इस शरीरको छोड़कर चल दिये । थोड़ी देर बाद जब रूपाबाई छोकरेको लिये हुए कमरेमें आई और अपने पतिको बहुत ध्यानसे देखा तो इसे निश्चय हो गया कि इनका आत्मा इस शरीरको छोड़कर चल दिया है। रूपाबाईका स्वरूपवान मुख एकाएक कुम्हला गया । उसके मुखको प्रेमचंद आंख खोलकर देखता है तो आश्चर्यमें भर जाता है । रूपाबाई एकाएक बैठ गई और नीचा मुख करके शोक सागरमें निमग्न हो गई। For Personal & Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [ १७५ संसार की ही बड़ी विचित्र दशा है । ६ वर्ष पहले जिस स्त्रीको अपने पतिके सम्बन्धसे सांसारिक सुखका लाभ हुआ व ५ मास ही पहले जिसको एक अति उत्तम पुत्रका लाभ होकर सन्तोष हुआ उसीको आज अपने प्राणप्रियका वियोग सहना पड़ा ! कर्मो के उदयकी दशा बड़ी ही विचित्र है । जैसे कहीं धूप आती है और थोड़ी देर बाद वही पर छाहीं पड़ जाती है और जहां पर छाहीं होती है वहीं फिर धूप आ जाती है, ऐसे ही पुण्य कर्मके स्थान पर पाप और पापके स्थान पर पुण्य अपनी रंगत दिखलाते हुए अज्ञानीको कभी महा आनन्द व कभी महाशोक में डाल देते हैं परंतु ज्ञानीके लिये एक मात्र नाटकका खेल है। ज्ञानी अपने शरीर के सम्बन्धको ही त्यागना चाहता है। उसके यह भावना है कि यह आत्मा शांत आनन्दमय अवस्थाका लाभ लेवै और सदा ही मुक्त रूप रहे अतएव वह ऐसा विचारता श्लोक तप्तोऽहं देहसंयोगाज्जलं वानलसंगमात् इह देहं परित्यज्य शीतीभूताः शिवैषिणाः (आ० शा ० २५४) भावार्थ – मैं देह संयोगसे उसी तरह दाहको पा रहा हूं जिस तरह अग्निके सम्बन्धसे जल गर्म होकर जला करता है जो मोक्षके इच्छुक साधुजन हैं वे इस देहको त्यागकर शांत हो गए हैं। ऐसा २ विचार करनेवाले ज्ञानीजीवको अपना व दूसरेका देह आत्मा से अलग हो जाय उसमें कोई विषाद नहीं होता । रूपाबाईने यद्यपि अनेक शास्त्र सुने थे और अच्छी तरह आत्मा और देहके भेद विज्ञानको जानती थी, केवल आत्मोन्नतिकी भावनासे धर्म अतिप्रेम साधन करती थी तौ भी इस समय यकायक For Personal & Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय छठा। शोक नोकषायके तीव्र उदयसे इसका चित्त धैर्यसे चलायमान हो गया, मन म्लानित हो गया, तरह २ के विकल्प आने लगे, आंखोंसे भी अश्रुधारा वहने लगी, मेरी कौन रक्षा करेगा ? इस छोटे पुत्रको कौन खिलाएगा ? इसको कौन विद्या पढ़ाएगा ? में कैसे दिन काटूंगी आदि अनेक भावोंके आवेशोंसे मन क्षोभित हो समुद्रकी तरह उगमगाने लगा। __ इतनेहीमें खबर पहुँच गई कि सेठ मोतीचंद एकाएक चलवसे। यह संवाद सेठ हीराचंदको वज्रके समान हृदय भेदनेवाला हुआ। तीनों भाई भी इसे सुनकर, आज हमारे शरणभूत कमरेका एक खंभा टूट गया, आज हम तीन खंभेवाले ही रहकर इस गार्हस्थ्यके वोझको कैसे सम्हाल सकेंगे इत्यादि चिंताओंमें डूब गए । अति उदास मुख हो घरेमें आए और मृत मोतीचंदके जड़माई निर्जीव कलेवरको आभा रहित देखकर कुछ कह सुन न सके और मनमें अति पश्चाताप करते हुए कि हम इनके मरणके अवसरमें इनको कोई धर्मोपदेश न दे सके और न भगवानका पवित्र नाम सुना सके और न दान पुण्य कुछ करा सके। थोड़ी देरमें बम्बईके सारे बाजारमें खबर पहुंच गई कि सेठ हीराचंदके बड़े पुत्र युवावस्थामें ही शरीर त्याग गये। अनेक कुटुम्बीजन व मित्र मुलाकाती जमा हो गए अज्ञानी आंसु भरभरकर रोते हुए और ज्ञानियोंने वस्तुका स्वरूप विचार कर सन्तोष धारण किया । हीराचंद जीने मृत कलेवरको जन्तुओंकी विशेष उत्पत्तिके भयसेपड़ा रखना उचित न समझा और तत्काल स्मशान भूमिमें लिया जाकर दग्ध क्रिया की। इस समय और सबने ही किसी न किसी तरह अपने चित्तको धैर्य For Personal & Private Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजीके भतीजे सेठ प्रेमचंद मोतीचंदजी. J. V, P.Surat. (देखो पृष्ठ १७२) For Personal & Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ। [ १७७ बंधाया और इसे होनेहार मान संतोष धारण किया पर विधवा रूपाबाईके चित्तको जो क्षोभ व कष्ट हुआ वह उसीके या श्री केवलीभगवानके अनुभव गोचर था। रूपाबाईकी अवस्था इस समय २२ वर्षकी थी--खिलती जवानी थी। अति मनोहरांगी रूपाबाईको एक परम विधवा रुपाबाईके पवित्र धर्मकी श्रद्धा ही ऐसी प्यारी धार्मिक विचार । सखी थी जो इसके मनको थांभती थी, इसके वैधव्यपनेके दु:खको मुलाती थी तथा इसके चित्तमें ज्ञान ज्योति प्रगट कराकर संसारकी क्षणभंगुरताका चित्र खींचती थी, जब पतिस्मरणका बहुत कष्ट होता था और यह अपनी दृष्टि पुत्र प्रेमचंद पर डालती तब यह तुर्त प्रसन्न चित्त हो जाती थी। प्रेमचंदको वारवार निरखकर उसके रूप व गुण इसके मनको शोक रहित करनेमें बहुत सहायता देते थे। यद्यपि रूपाबाईको पति वियोगका क्लेश था परंतु उसको किसीने हाय हाय करते, रोते रहते व छाती कूटते नहीं देखा क्योंकि उसके आत्म विचारमें यह भी निश्चय था कि हरएक जीव अपने २ कर्मोंका फल इस शरीरमें भोगता है, आयु भी एक कर्म है । जब इसकी स्थिति पूरी हो जाती है तब हरएकको शरीर छोड़कर जाना होता है। रूपाबाईने श्री पद्म पुराणको कई दफा सुना था । श्री सीताजीका वह वर्णन इसके मनके सामने छाजाता था कि जब अमिकुंडसे रक्षित होनेपर सीताजी तुर्त आयिकाकी दीक्षाके लिये बनको चली गई थी। रामचंदजीके गृहस्थ अवस्थामें रहते हुए व उनकी अंतरंग इच्छा व प्रेम रहने पर भी For Personal & Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ ] अध्याय छठा । ऐसा कि यह अभी दीक्षा न ले और रानमंदिरमें चले, पर सीताजीको शरीरसे प्रेम न था इसीसे शरीरके सम्बन्धी पतिसे भी प्रेम हट गया था--टनका प्रेम आत्माकी ओर आकर्षित हो गया था इसीसे आत्म कल्याण करना पतिकी क्षणिक सेवासे भी उत्तम समझकर सीताजी बनको ही चलदी थी। इस वर्णनको जब २ स्मृतिमें लाती थीं रूपाबाई पतिकी स्मृतिके दुःखको भूलाती थीं और धर्ममें दिन पर दिन दृढ़ भाव करती जाती थीं। सेठ माणिकचंद बड़े विचारशील व दयालुचित्त थे । युवती रूपाबाईको वैधव्यमें - देखकर इनका चित्त भीतरसे भर आताथा और यही विचार करते थे कि इसे किसी तरहका कष्ट न हो । एक दिन सेठजी अपनी भावनके पास जाकर उसको कहने लगे-माताजी, आप कोई चिन्ता न करें, अब आप मन लगाकर खूब दान पुण्य करें, तीर्थ यात्र करें, व्रत उपवास तप करें, पुत्र प्रेमचंदको पालन करें, आपकी आज्ञा हम सब बरह माननेको तयार हैं, मोतीचंदजी अपने हाथसे कुछ दान नहीं कर गए थे। अब आप इच्छानुसार दान धर्म करें, किसी तरहका संकोच मनमें न लावें । यह सर्व लक्ष्मी आपकी ही है। ____रूपाबाईको इन बचनोंसे बहुत ही सन्तोष हुआ। इसके हाथखर्चको प्रति मास १००) कभी १५०) सेठ माणिकचंद दे दिया करते थे। रूपाबाई घरमें सर्वकी सम्हाल रखती हुई तीनों भाइयोंकी स्त्रियोंको संतोषित करती हुई, अपनेसे किसीको कष्ट न हो इस तरह वर्तन करती हुई और पुत्र प्रेमचंदको बड़ी सुरक्षासे पालती हुई रहने लगी। रात्रिको जलपान लेनेका भी त्याग कर दिया, श्रृंगार For Personal & Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ। [१७९ करना बन्द कर उदासीन रूपमें कत्थई रंगके कपड़े पहनने शुरू किये जैसा कि गुजरात देशमें रिवान है। पान खाना त्याग दिया, दिनमें नियम करके दो तीन वार प्रमाणसे भोजन पान करने लगों, प्रायः सदा ही एक न एक रसको छोड़ने लगी, अष्टमी व चतुर्दशीको उपवास व एकासन करने लगीं, दोनों समय कभी तीनों समय बड़े भावसे जाप व सामायिक करने लगीं । जैसा समय मिले पूना सुनने व शास्त्र सुननेमें विताने लगीं। अब घरमें कामकी अधिकतासे रसोई करने वाले नियत हो गए थे, इससे स्त्रियोंके आधीन केवल सामानकी देख भाल व साग तर्कारी आदिकी तय्यारी करना इतना ही काम रह गया था । इधर इन सेठोंका व्यापार खूब बढ़ चला था । विलायतके हर सप्ताहके मेलमें इनके एक २ दो २ पार्सल पचास पचास हजार तकके जाने लगे थे, दूसरे तीसरे दिन विलायतसे मालके आफर तार द्वारा आने लगे थे। तारद्वारा विक्री होने लगी। दो तीन वर्षतक विलायतका व्यापार इतना जोरसे चला कि हरएक पार्स. व्यापारमें अटूट लमें इन्होंने दुगनेसे कम लाभ नहीं किया, लाभ। विलायतमें जवाहरात पहननेका नया शौक पैदा हुआ था उससे मोतीकी खूब ही विक्री हुई । माणिकचंद पानाचंदका फर्म मालकी सुन्दरता, सफाई व छांटमें विलायतमें भी प्रसिद्ध हो गया। इन वर्षोमें लक्ष्मीने सेठोंके घरको अच्छी तरह भर दिया । - इन दिनों चीन देशमें भी माल जाने लगा था । प्रसिद्ध सेठोंने वहां भी माल भेजना और अच्छा नफा करना शुरू कर दिया For Personal & Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० ] अध्याय छठा । विलायत, चीन, व भारत तीनोंके व्यापार में तीनों भाइयोंने बहुत सचाई से वर्तन करके अच्छा धन पैदा किया। इधर जब लक्ष्मीकी कृपा थी तब उधर और चिंता न हो ऐसा नहीं था । सेठ सेठ हीराचंदको लक वेका रोग | हीराचंदको संवत १९३५ में लकवाकी बीमारी हो गई जिससे वे बड़ी कठिनता से मंदिर तक जाते थे, शेष घर में ही पड़े रहते थे । अपने पिताको कष्टावस्थामें देखकर कृत उपकारको न भूलनेवाले कृतज्ञ सेठोंका दिल बहुत दुःख पाता था पर प्रत्येक जीव भिन्नर हैं, हरएकका कर्म्म हरएकके साथ है, कोई महान हितु भी अपने मित्रके सुख तथा दुःखको बटा नहीं सक्ता, erreat अपने बांधे कर्मका फल आप ही भोगना पड़ता है । इस समय इनके घर में एक बालक और रहता था जिसका नाल चुन्नीलाल था, यह सेठ हीराचंदजीकी चुन्नीलाल झवेरचं दूसरी कन्या मंच्छाबाईका पुत्र था जिसकी दका सम्बन्ध | लग्न सेठजीने गंगेश्वर गोत्रधारी सुरतके शाह झवेरचंद ब्रीजलाल के साथ की थी और जिसका जन्म संवत् १९२४ चैत्र सुदी ११ को सुरतमें हुआ था । यह बालक तीक्ष्णबुद्धि था । पिताकी स्थिति बहुत साधारण थी, यह किराने की दलाली करते थे । इसके पिताने इसे गुजराती पांचमी पुस्तकतक पढ़ाकर १० वर्षकी ही उमरमें इसके मामा सेठ माणिकचंद पानाचंदके पास बम्बई भेजा दिया कि यह चतुर होकर धनपात्र हो जावे । यह बालक सेठके घर में बड़े प्रेमसे रक्खा गया । For Personal & Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [१८१ एक वर्ष भी बम्बई आए नहीं हुआ था कि इसके पिताने सुरत बुलाकर इसका विवाह ११ वर्षकी उमरमें ही कर दिया। बम्बईके सेठोंने बहुत रोका पर उसने ध्यान नहीं दिया । इस कन्याकी उम्र ११ की थी और नाम जड़ावबाई था। विवाह होनेपर फिर चुन्नीलालको बम्बईमें भेज दिया। यह सेठोंके साथ रहकर दुकान व घरके काममें पड़ गया और अधिक पढ़ने लिखने पर कुछ भी मन न लगाया, और कुछ काल पीछे मोती पोरनेका काम सीखने लगा। इतने ही में सेठ माणिकचंदकी पत्नी चतुरमतीको द्वितीय गर्भ रहा । इस समय सेठ माणिकचंदको यह द्वितीय पुत्री मगनम- अभिलाषा हुई कि पुत्रका दर्शन हो तो तीका जन्म। अच्छा है । यह वात गृहस्थियोंमें प्रायः स्वाभाविक ही है कि वे पुत्रीकी अपेक्षा पुत्रके अस्तित्वको उत्तम मानते हैं। चतुरमतीको इस गर्भके रहते हुए अपने पतिसे अधिक प्रेम उत्पन्न होता था, यद्यपि प्रेमभाव पहले भी था, पर इस गर्मके कारणसे एक बहुत ही गाढ़ प्रीतिभाव पतिकी ओर झलक उठा था जिससे चतुरबाई सेठ माणिकचंदकी खूब ही सेवा करने लग गई थी, बारबार इनको देखकर प्रसन्न हुआ करती थी। चतुरबाईको धर्मके सम्बन्धमें जैसे रूपाबाईको खबर थी व रुचि थी ऐसी खबर व रुचि नहीं थी, साधारण रीतिसे दर्शन व जपकरना जानती थी, पर जबसे इसके यह गर्भ रहा यह चतुरमती धार्मिक कार्योंमें खूब मन लगाने लगी। मंदिरजीमें For Personal & Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ ] अध्याय छठा । कभी २ पूजन सुनने बैठ जाती, कभी कोई शास्त्र पढ़ता तो सुनने लग जाती, दान धर्म करनेमें भी खूब मन चलने लगा। इसकी ऐसी चेष्टा देख बुद्धिमान जन अपने दिलमें यही जानते हुए कि जो कोई जीव इसके गर्भमें आया है वह कोई पुण्यवान, धर्मात्मा और उत्तम जीव है । सेठ माणिकचंद भी बड़े चतुर थे, इनको भी अपनी पत्नीकी विलक्षण दशा देखकर मनमें यही भान हुआ कि हमारे पुण्य वृक्ष खिला हैं, किसी महान जीवने आकर मेरी स्त्रीके गर्भवासको पवित्र किया है। कुछ मासका गर्म हो गया, तब सेठ माणिकचंदने मनमें विचारा कि यहां रूपावाईके एक छोटे पुत्र प्रेमचंदकी सम्हाल है, पानाचंदकी स्त्री छोटी व निर्बल रोगी है, नवलचंदकी वह बहुत ही छोटी है, यहॉपर प्रसुति होनसे बालककी सम्हाल नहीं हो सकेगी अतएव इसको अपनी माताके यहां भेज देना ठीक होगा । सेठ हीराचन्दजीसे आज्ञा ले आप अपनी स्त्रीको नान्नेज ग्राम पहुँचा आये । धीरे २ प्रसूतिका दिन आ गया और सं० १९३६ के मिती पौष वदी १० (गुजराती मगसर वदी १०) के दिन चतुरमतीने शुभ नक्षत्रमें एक चंद्रमुखी पुत्रीका जन्म दिया। यह कन्या बहुत ही सुन्दर शरीर, सौम्यवदन और गंभीर मुखवाली थी। माता देखकर बहुत प्रसन्न हुई और अपने पिताको इशारा कराया कि सेठ माणिकचंदनीको तार देकर बुला लिया जावे क्योंकि चतुरबाईका अति गाढ़ प्रेम सेठजीकी तरफ हो उठा था । तार पाते ही सेठ माणिकचंद नान्नेज आ गए और पुत्रीकी जन्म कुंडली ठीक करा उसका नाम मगनमती रखा । सेठजी एक माससे अधिक वहीं ठहरे । पुत्रीका गंभीर, सौम्य, गोल और विशाल मुख For Personal & Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ | व शरीरकी सुंदरता देख अपनेको धन्य मानते हुए, पुत्रीजन्म सुनकर कुछ खेद हुआ था पर जब इस तो सारा खेद जाता रहा, इसकी चैतन्यता व आंखकी एक होनहार कन्या बतलाते थे । सेठ माणिकचंद को इस कन्याकी तरफ इतना मोह हुआ कि जैसा किसीको पुत्र पर भी नहीं होता । कई मास बाद सेठजी फिर नान्नेन आए और चतुरबाईको फुलकुमरी और मगनमती के साथ बम्बई ले आए। बम्बईके जौहरी बाजार में ही सेठ हीराचंद मयकुटुम्बके रहते थे । यद्यपि हीराचंदजी लकवेकी बीमारीसे दुःखी रहते थे पर घर में प्रेमचंद व फूलकुमरीको इधर उधर खेलते कूदते, हंसते, गिरते पड़ते और मगनमतीको भी चतुरबाईकी गोद में सेठ हीराचंदका स्वर्गवास । [ १८३ यद्यपि इनको पुत्रीको देखा ज्योति इसे जमीनपर घिसिलते हुए देखकर बहुत ही खुश हो जाते थे । सं० १० १९३७ के दशलक्षणी के दिन आ गए, बम्बई के श्रावक लोग धर्मध्यान में लीन हो गए, नरनारी सुन्दर वस्त्राभूषण पहन सवेरे से ही मंदिरजीमें जा पूजन पाठ पढ़ने सुनने में लग गए । भादो सुदी ९ की प्रातःकालका समय था, पुष्पांजलि व अष्टमी के व्रतवाले सवेरे से ही मंदिरजी आ गए थे, सेठ माणिकचंदजीने अष्टमीका उपवास किया था तथा यह प्रछाल पूजन नित्य ही करते थे सो उस दिन बड़े सवेरे से ही घर से मंदिरजी आ गए थे, ८ बजेके अनुमान पानाचंदजी भी मंदिर चले आए रूपाबाई, नवीबाई व चतुरवाई भी पुत्रपुत्रियोंके साथ मंदिरजी आ गई थी, नवलचंदजी आनेकी तय्यारीमें थे - स्नान करके कपड़े पहन रहे थे। उधर हीराचंदजी अब For Personal & Private Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४] अध्याय छठा। ऐसे अशक्त हो गए थे कि कुछ दिनोंसे इनका मंदिर जाना मी बन्द हो गया था। पर प्रगट रूपसे कोई ऐसी बात नहीं थी कि जिससे सेठ हीराचंदकी तवियत असाध्य व नाजुक समझी जाती हो । उधर तो भादों मासकी खटपट इधर हीराचंदजीने एकाएक णमोकार मंत्र कहते व श्री अरहंत सिद्धको नमस्कार करते हुए अपने ही सहवासमें प्राण छोड़ दिये। एकाएक मरण जानकर तीनों ही सुपुत्र बहुत ही दुःखित हुए। हम अपने पूज्य पिताकी कुछ भी सेवा न कर सके इसका पछतावा करते हुए जो उदासी इनके चित्तको हुई उसका वर्णन नहीं हो सकता है। माणिकचंदनीका चित्त बड़ा कोमल था, इनके अश्रुओंकी धारा वह निकली थी पर थे समझदार । तुर्त सम्हालकर जीवको गया जान व केवल जड़ पुद्गलको देख उसमें अधिक जंतु न पड़े इस ख्यालसे शीघ्र ही सर्व सम्बन्धियोंको एकत्रकर स्मशानमें दग्ध क्रिया की। सेठ हीराचंदजी ६० वर्षकी आयुमें अपने जीवनके कर्तव्यको बहुत ही नीति व परिश्रमसे पूर्ण कर, सेठ माणिकचंद, पानाचंद, नवलचंद ऐसे उद्योगशील धर्म व जाति हितैषी तथा परोपकारी पुत्रोंको छोड़ स्वर्गधाम पधारे। हीराचंदजीके भाव मृत्युके समय आर्तध्यान रूप नहीं थे किन्तु श्री पंचपरमेष्ठीके ध्यानमें अनुरक्त थे जिससे सेठजीकी आत्माको शुभभावोंके निमित्तसे अवश्य शुभ गति प्राप्त हुई होगी। मरण कालमें जैसे भाव होते हैं वैसी ही गति आत्माकी होती है । जिन जीवोंको निरन्तर धर्मध्यान, सामायिक, जाप, पूजन, भक्ति तथा स्वाध्यायका अभ्यास रहता है वे जीव For Personal & Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्तति लाभ । [ १८५ अवश्य मरण कालमें पूर्व अभ्यासके निमित्तसे शुभ भावको प्राप्त कर सकते हैं परंतु जो अपने जीवन में धर्मध्यानका अभ्यास नहीं करते हैं उनके भाव मरणकाल में सांसारिक संबंधके चेतन अचेतन पदार्थों में उलझ जाते हैं जिससे आर्त्त व रौद्र ध्यानके वशीभूत हो वे नीच गतिमें चले जाते हैं, इससे हरएक प्राणीको उचित है कि वह अपनी आत्मा भविष्यको विचार कर धर्मकी शरणको कदापि न त्यागे, गृह सम्बन्धी कामको करते हुए धर्मका अभ्यास करना हरएक गृहस्थका मुख्य कर्तव्य है । सेठ हीराचंद के जीवन वृत्तान्तका अंत इस अध्याय में होता है । इस सेठका जीवन वृत्तान्त मनन करने योग्य है । धैर्य्यको कायम रखते हुए, परिश्रमको न छोड़ते हुए अपने पुत्रोंको योग्य सुआचरणी व धर्मसेवी बनाने में जो भाव उक्त सेठके थे वे प्रशंसनीय थे । इन्होंने बालविवाहसे विरोध करके प्रौढ़ आयुमें जब पुत्र धन कमानेके योग्य हो गए तब उनका विवाह किया, यह बात इस कालमें बहुत ही अनुकरणीय व प्रशंसनीय है । यदि छोटी आयुमें वे लग्न कर देते तो उनके पुत्रोंका उपयोग भोगविलास में अधिक लीन हो जाता और एक महान गरीब व साधारण स्थिति से एक धनाढ्य प्रसिद्ध व्यापारीकी अवस्था में पहुंचना स्वप्न में भी दुर्लभ हो जाता । पुत्रोंको कष्ट न हो, उनका शरीर अशुद्ध वीसीके भोजनसे रोगिष्ट न हो इसलिये वर्षो तक जो सेठ हीराचंदजीने अपने हाथसे रसोई बनाके खिलाई है यह एक अतिशय गंभीर, सहनशील, प्रेमालु और दीर्घ दर्शी व्यक्तिका ही कार्य हो सकता है । वर्तमान काल में भी सेठ हीराचंदजी ऐसे पिताओं की जरूरत है For Personal & Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ . अध्याय छठा । जो अपने स्वार्थका खयाल न करके अपने पुत्रोंको सुपुत्र बनानेमें पूरी २ चेष्टा करें, उनके सच्चे हितको देखें । हमारे पुत्र धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थके पालनमें प्रवीण हों यही भावना मातापिताके दिलों में यदि हो और वे उस मावनाकी सफलतामें प्रमादी न हों तो उनकी सन्तान अवश्य सुयोग्य बन सकती है। भारतका उद्धार उस समय तक होना कठिन है जब तक संतानकी रक्षा और शिक्षाका योग्य प्रबन्ध न होगा। हमारे पाठकोंको सेठ हीराचंदके जीवनसे पूरी २ शिक्षा लेनी चाहिये। For Personal & Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग | अध्याय सातवाँ । -- [ १८७ लक्ष्मीका उपयोग | सेठ माणिकचंदजीको अपने पूज्य पिताके वियोगका बड़ा भारी दुःख था, रह रह कर यह खयाल न लगाना । शुभ कार्यमें देर आता था कि हमने कोई भी भारी दान अपने पितासे नहीं कराया यह हमने बड़ी भूल की । यद्यपि मेरे दिल में तो बहुत दिनसे था कि पिताजी से प्रार्थना करूं कि वे कुछ आज्ञा देवें पर अभी क्या जल्दी है फिर करलेवेंगे इसी खयालसे मैं पिताजीसे कुछ भारी दान न करासका । वास्तवमें जो दान धर्म आदि कार्य करने हों उनको जब सोचे तब ही कर डाले । पीछे करूंगा, इस विलम्ब से बहुधा पछताना पड़ता है क्योंकि हम कर्मभूमियोंकी आयुकी समाप्ति होने के कालका कोई निश्चित समय नहीं है। खैर, यद्यपि अब पिताजीकी आत्माको दानका पुण्य नहीं होगा तोभी मैं उनका यश स्थिर करनेके लिये जहां तक मेरा बरा होगा कुछ दानधर्मके बड़े २ काम अवश्य करूंगा । अब मुझे लक्ष्मीको केवल एकत्र ही नहीं करनी चाहिये किन्तु और भी अधिक दानमें लगाकर सफल करना चाहिये, कारण यदि मैं और पानाचंद भाई मोतीचंदकी तरह अकाल मृत्युके वश हुए तो फिर इतना धन प्राप्तिका परिश्रम वृथा ही चला जायगा, इस भांति विचार कर एक दिन माणिकचंदजीने भाई पानाचंद और नवलचंदसे एकान्त में बात की कि हमलोगोंने For Personal & Private Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८] अध्याय सातवा । अबतक रुपया कमाया तो बहुत पर कोई भारी काम नहीं किया। देखो न, पिताजीसे और न भाई मोतीचंदजीसे हमलोग कुछ दान करा सके, इसी तरह हमलोग भी मर गए तो हमारी यह लक्ष्मी हमारे द्वारा सदुपयोगमें न लग सकेगी। इससे अब कुछ काम करना चाहिये । पानाचंदनीने बड़े साहसके साथ कहा कि दान धर्ममें कहां पर क्या काम करना व किस तरह करना यह सब तुम्हारे सुपुर्द है, तुम विचार करके जिस काममें द्रव्य लगाना चाहो मुझसे केवल पूछलो और खर्च करो, किसी प्रकारका संकोच मत करो, मेरा चित्त तो व्यापारके सिवाय दूसरी वातोंके विचार में कम जाता है तुम अच्छी तरह लक्ष्मीका उपयोग करो । नवलचंदने भी इस बातमें अपनी पसन्दगी प्रगट करनेके अर्थ अपना प्रसन्न मुख दिखा दियाकुछ उत्तर न दिया क्योंकि नवलचंदजीको बात करने में बहुत संकोच होता था । इस समय भारतमें बड़े लाट लॉर्ड रिपनका जमाना था, यह लाट बड़े दयालु, प्रजावत्सल व भारतमें शिक्षा आदिके प्रचार करानेमें उत्साही थे। इनके समयमें बहुतसी प्रबन्धक शक्ति स्थानीय हाकिमोंको दी गई कि वे द्रव्यको एकत्र कर अपनी शक्तिसे उपयोगी कामोंमें लगावें । इनके समयमें शिक्षा की ओर खास ध्यान दिया गया जिसके लिये सर विलियम हन्टरके नेतृत्वमें एक कमीशन नियत किया गया। इनके समयमें नेपाल और काश्मीरके सिवाय सर्व भारतकी जनसंख्या एक साथ पहले पहल सन् १८८१ में लिखी For Personal & Private Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोम । [१८९ इस समय जैनियोंमें भी लिखने पढ़नेकी चर्चा कुछ ज्यादा हो चली थी। रेलवेके निमित्तसे परदेश जाना सेठ हीराचंद नेमचं- आना भी बढ़ गया था । इमड़ोंकी ऐश्वर्य दका सेठ माणिक- वृद्धिका दक्षिणमें शोलापुर नगर अब भी चंदसे परिचय । प्रसिद्ध है । उस समय शोलापुर में सेठ हीरा चंद नेमचंद दोशी परोपकारके काममें प्रसिद्धि पारहे थे। यह शेठ हीराचंद नेमचंद निहालचंद उत्रेश्वर गोत्र धारी दशा हमड़के रत्नबाईसे उत्पन्न दो पुत्रोंमेंसे छोटे पुत्र हैं। बड़े का नाम सखारामजी है, यह मूल निवासी ईडरस्टेटके वांकानेर ग्रामके हैं। नेमचंदके पिता निहालचंद भीमजी पहले व्यापारके लिये फलटनमें बसे और कपड़ेका काम शुरू किया । संवत १८९५ में इन्होंने एक दूकान शोलापुर में भी की। सेठ हीराचंद मगसर वदी ८ (गुजराती कार्तिक वदी ८)सं.१९१३के दिन शोलापुरमें जन्मे। १० वर्षकी उम्रतक सर्कारी शालामें मराठी पढ़ी फिर स्कूल छोड़कर संस्कृत, व्याकरण और काव्यका अभ्यास किया और सागवाड़ाके भट्टारक राजेन्द्रभूषणसे जब वे शोलापुरमें ४ मास ठहरे, भक्तामर व सूक्तमुक्तावलीके अर्थ सीखे। संवत १९२६में यह अपने पिताजीके साथ श्री गिरनार और सेजयकी यात्राको गए थे। जूनागढ़में इनके पिताने अपने भानेजे शाह मोतीचंद खेमचंद और भतीजे दोसी तलकचंद पदमसी आदिके योगमें एक दि० जैनमंदिर नया बंधवाकर सं० १९२६ वैशाखमें प्रतिष्ठा करा दी और वहां चार महीना ठहरे। आयुकर्म समाप्त होनेसे नेमचंद (गु०) वैशाख वदी १४के दिन स्वर्ग पधारे। यात्रासे लौटकर इन्होंने खानगी रीतिसे इंग्रेजीका मी इतना अभ्यास ... For Personal &Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० ] अध्याय सातवाँ । कर लिया कि यह समाचार पत्र व पुस्तकें पढ़ लेते व चिट्ठीपत्री कर लेते थे । सं० १९३० में इनकी लग्न हुई। १७ वर्षकी उम्रसे यह कपड़ेकी दूकान सम्हालने लगे। शोलापुरमें स्पिनिंग एन्ड वीविंग मिल है इसके एजन्ट बम्बई निवासी सेठ वीरचंद दीपचंदजी थे। इनके साथ सेठ हीराचंद कपड़ेका व्यापार करते थे। इनको धर्मशास्त्रोंके वांचनेके सिवाय बाहरी पुस्तकोंके पढ़नेका भी बहुत शौक था । संवत १९३६ में इन्होंने शोलापुरके बाजारमें एक लायब्रेरी (सार्वननिक पुस्तकालय) स्थापित कराया और आप उसके मंत्री हुए। लायब्रेरीके निमित्तसे सेठ हीराचन्दनीकी सर्व साधारणमें बहुत मान्यता हो गई, यहां तक कि संवत १९३७में शोलापुरकी म्यूनिसिपालिटीमें आप सर्कारी मेम्बर नियत हुए । उस समय व्यापारियोंपर कर बढ़ाया गया था उसको उक्त सेठने लोगोंकी तरफसे सर्कारसे लिखा पढ़ी करके बहुत घटवा दिया इससे इनकी बहुत कीर्ति हुई, जैन जातिमें जो कुछ जागृति इस समय फैली हुई है, स्वाध्यायका जो प्रचार हो रहा है, ग्रन्थोंके प्रकाशनका जो कार्य हो रहा है, संस्कृत व धर्म विद्याकी पढ़ाई में विद्यार्थी दत्तचित्त हो रहे हैं इस सर्वके मूल कारण उक्त सेठजी हैं । अब भी आप आनरेरी मजिस्ट्रेट हैं और जाति व धर्मसेवामें लीन हैं तथा बम्बई दिगम्बर जैन प्रान्तिक सभाके सभापति हैं । सं० १९३७को शोलापुरसे आप किसी व्यापारी कार्य्यके निमित्त बम्बई आए उसी समय और भी शोलापुरसे जैनीमें व्यापारी बम्बई आए थे। सेठ हीराचंदजीको शास्त्र स्वाध्यायका नियम था, यह बम्बईके जिन मंदिरमें स्वाध्याय करने लगे इतनेमें क्या For Personal & Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [ १९१ देखते हैं कि एक बहुत स्वरूपवान सेठ सिंहसमान दैदीप्यमान मुखाकृतिको रखनेवाले, धोती दुपट्टा ओढ़े हुए श्री जिनेन्द्रकी प्रछाल पूजा करके आये और शास्त्रम्वाध्याय करने लगे । सेठ हीराचंदने इनको प्रतापशाली व धर्मप्रेमी तथा स्वाध्यायमें अनुरक्त देखकर बात करनेकी इच्छा दिलमें धारण को। जब यह सेठ स्वाध्याय कर चुके तब ही अपना स्वाध्याय पूर्ण किया और इनसे कुछ पूछना ही चाहते थे कि इतने में सेठ माणिकचंदने अपनी आदतके वश स्वयं प्रश्न किया कि आपका कहाँ निवास है, कब आए इत्यादि । परस्पर वार्तालापसे सेठ माणिकचंदने निश्चय कर लिया कि यह एक बुद्धिमान, चतुर, विद्वान्, शास्त्रके मर्मी तथा परोपकारी व्यापारी हैं। आपने सेठ हीराचन्दको अपनी दूकानपर बुलाया । माणिकचन्दनीने दुकानपर इनका बहुत सन्मान किया तथा हित जनाया। यही प्रथम अबसर है जब सेठ माणिकचंदने अपने जीवनके धर्मकायों में मुख्य मंत्र देनेवाले सच्चे धर्मात्मा मित्रसे मिलने का लाभ लिया । बातचीत होते हुए सेठ माणिकचंदने यूछा कि आजकल जैन जातिमें कौन २सी आवश्यकताएं हैं जिनमें धन व्यय करना चाहिये ? उत्तरमें सेट हीरांचंड़ने कहा कि आजकल जैन जातिमें धर्मविद्याका बहुत कम प्रचार है, लोग स्वाध्याय बहुत कम करते है, तथा जो इंग्रेजी पढ़ते हैं उनको धर्म शिक्षा बिलकुल नहीं मिलती, बहुतसे लोग स्वाध्याय करना भी चाहते हैं तो उनको ग्रंथ बड़ी कठिनतासे मिलते हैं, प्रायः पुजा पाठ आदिके ग्रन्थ लिखे हुए अशुद्ध देख पड़ते हैं इससे लोग अशुद्ध पूना पढ़ते हुए दीख पड़ते हैं, आपने अपनी गिरनार व पालीताना For Personal & Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२] अध्याय सातवाँ । की यात्राका हाल भी कहा कि तीर्थोकी व्यवस्था योग्य नहीं है, प्राचीन मंदिर बेमरम्मत पड़े हैं, अंतमें आपने बताया कि हमारी रायमें अब विना खास आवश्यकताके नवीन श्रीजिनमंदिरजी बंधवानेमें द्रव्यको न लगाकर प्राचीन मंदिरोंका जीर्णोद्धार करना चाहिये, तीर्थोकी व्यवस्था सुधारना चाहिये, वहांका हिसाब ठीक कराना चाहिये, धर्मशालाओंकी दुरुस्ती कराना चाहिये, पाठशालाएं आदि स्थापित करना चाहिये, जो इंग्रेजी पढ़नेवाले छात्र धर्मशिक्षा लेवें उन्हें पारितोषिक व मासिक छात्रवृत्ति देनी चाहिये, शुध्र ग्रंथ लिखाने चाहिये व मेरी रायमें तो यदि ग्रन्थ छपाएं जाय तोमी कुछ हर्ज नहीं है। इस बातको सेठ हीराचंदने दबे शब्दोंमें इस लिये कहा था कि उस समय ग्रन्थ छपनेकी बात भी कोई नहीं करता था व जो ऐसा कहता उसे बहुत निन्द्य समझते थे । सेठ माणिकचंदजी बड़े गुणग्राही थे और उत्तम बातको उसी तरह अपनेमें लीन करते थे जैसे कोमल भूमिमें मेघका पानी समा जाता है, सेठ हीराचंदकी बातोंको दिलमें जमाकर उनकी पूर्तिका मनन करने लगे। थोड़ ही दिनोंबाद सेठ माणिकचंदनी सूरत गए और श्री चंद्रप्रमुनीके बड़े जिन मंदिरको जिसके चंद्रप्रभुके मन्दिरका जीर्णोद्धारमें अमिसे भस्म होनाने पर सेठ पुनः जीर्णोद्धार । हीराचंदजीने बहुत उद्योग किया था फिर जीर्ण दशामें देखकर उसका उद्धार करना ऐसा मनमें निश्चय किया और बम्बई आकर अपने भाइयोंसे सम्मति करके जीर्णोद्धारके वास्ते प्रबन्ध किया। मंदिरके नीचे श्री चंद्रप्रभू स्वामी For Personal & Private Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देखो पृष्ठ ४०९] सेठ ठाकुरदास भगवार.दास बंई. 22:22228:lik:8: हीराचंद नेमचंद सोलापुर. [ देखो पृष्ठ १८९] For Personal & Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग | [ १९३ की बेदी सिंहासनादिके बनवाने में करीब २०००) आपने खर्च किये । मंदिरजीको ठीक कराने में सेठ माणिकचंद प्रायः सूरत आते जाते रहे । जब यह मंदिर बन चुका तब संवत् १९३९ में इसकी जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा उक्त सेठोंने बम्बईके दूसरे सेठ माणिकचंद लाभचंद चौकसीके साथ मिलकर बहुत धूमधामसे की जिसमें ८०००) खर्च हुए । भट्टारकं १०८ श्री गुणचंद्रजी प्रतिष्ठाकारक थे। दो तीन नवीन प्रतिमाएं भी आईं थीं इससे पंचकल्याणक विधान हुआ था । शोलापुर से दो उपाध्याय विधि कराने आए थे । इस उत्सव में गुजरातके बहुत लोग एकत्र हुए थे, संख्या १००० के होगी । । इस समय में प्रसिद्ध क्षुल्लक धर्मदासजी भी आए थे। आप बड़े आत्मानुभवी थे, आपने क्षुल्लक धर्मदासजी । सम्यग्ज्ञानदीपिका आदि कई ग्रंथ बनाकर छपवाए हैं। इनके सहपाठी भट्टारक वीरसैन कारंजा व पीतांबरदासजी पारोला आदि हैं । यह तीर्थभक्त भी थे, शिखरजीकी सेवा में बहुत लीन रहते थे, बहुतसी धर्मशाला इनके उपदेशसे वनीं, राजा पालगंज उस समय पार्श्वनाथसिंह थे, जो क्षुल्लकजीका बहुत सन्मान करते थे । राजाके मकान के पास प्राचीन दि० जैन मंदिर है जिसमें बहुत प्राचीन श्री पार्श्वनाथजीकी पद्मासन मूर्ति अतिवीतराग ध्यानाकार है। यह मंदिर जीर्ण होगया था । आपने राजाको उपदेश देकर दुरस्त करवाया और फिर जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा की जिसका शिलालेख वहाँ पत्थर में खुदा हैं। उसकी नकल यह है १३ For Personal & Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ ] अध्याय सातवाँ । श्रीमत् श्रीसम्मेद शिखर मंदिर जैन दि० तस्य जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा करापितं गादि पालगंज राजासाहव श्री श्री पार्श्वनाथासिंहजी प्रतिष्ठाचार्य श्री धर्मदासजी......वदी २ संवत १९३९ मंदिर पालगंजमें अयं सत्यः। एक दफे राजाको कुछ द्रव्यकी जरूरत हुई । आपने देशमें घूमकर ७५०००) जमा करके राजाको कर्ज दिलाए। जब शिखरजीके पहाड़ पर वाडेम नामके अंग्रेजने सूअरका कारखाना किया था उसके उठानेमें आप प्रयत्नशील थे। कलकत्तेके राय बद्रीदासजीसे आपका पत्र व्यवहार रहता था । आपने ही बद्रीदासजीको दृढ़ किया कि इस हिंसाके कामको बन्द करानेका प्रयत्न करो । उस समय दिगम्बर श्वेताम्बरमें पूरा २ मेल था । आपके पत्रकी नकल जैन बोधक' अंक ४१ माह जनवरी १८८९ में छपी है जिसके कुछ वाक्य दिये जाते हैं पत्र मिती भादवा वदी ८ संवत १९४५ " चिठी आपकी श्री शिखरजीस आई जिसका जवाब आपके पास भेजा था । चिठी १ खानदेशसे आई । श्री शिखरजीका आपकू बहुत फिकर है सो ऐसा ही चाहिजे । आपन मजक बी सबसे पहले वाकफ कर्या था जबसैं मैं इस कामकी पुरी २ तंदवीर में हूं। धर्मप्रसादसे सर्व अच्छा होवैगा । आपकी चिठी पाते ही मैंने लाट साहबसे जुवानी सब हाल कहे पीछे अरजी दीनी । उन्होंने उसी वक्त नागपुरके कमीसनरके नाम हुकम जाहारी किया शिखरजीमें जाकर दयाफ्त करो और जबतक दूसरा हुकम न हो चरबीका काम बंद रहै ।............बहुत For Personal & Private Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [ १९५ शहरुसै चिठी आई। आपनै सर्वको खबर दिई आपकी तारीफ कहांतांई लिखें 1 ,, सेठ माणिकचंदने अंकलेश्वर निवासी धर्मचंदजीको खास पत्र देकर सूरत बुलाया था यह वही धर्मचंद है जिन्होंने सं० १९३४ में अंकलेश्वरकी त्रिलोक पूजा विधान के समय सभामें श्रीयुत त्यागी महाचंद्र कृत भजन गाया था और जिसकी नकल सेठ माणिकचंद कों भेजी थी। धर्मचंद नृत्य व गानमें बहुत चतुर थे। सूरतकी इस प्रतिष्ठामें इन्होंने अपने भजनोंसे खूब भक्ति दरशाई जिससे नरनारियों का चित्त धर्मप्रेम से भर गया । एक दिन धर्मचंदने सेठ माणिकचंदजीसे एकान्त में कहा कि मैं एक छोटेसे ग्राम में पड़ा हुआ हिंसाका धन्धाकर रहा हूँ, आप मेरे लिये कुछ काम बताओ जिससे मैं इस हिंसा से बचूँ । सेठ माणिकचंदजीने इस धर्मात्माकी बातको अपने हृदय में घर लिया और उनसे कहा कि तुम कोई चिन्ता न करो, हम विचार करेंगे । इस उत्सव में मंदिरजीको ८०००) की उपज बोली में हुई, उसको सेठ माणिकचंदने जमा कर बम्बई में एक मकान खरीद इसको अब २००००) के करीब तक पहुंचा दिया है । इस वक्त प्रेमचंद और फुलकुमरी ५ वर्ष और मगनमती ३ वर्षकी थीं। इन तीनों को ऐसे मनोहर वस्त्राभूषणोंसे अलंकृत किया गया था कि जो हज़ारों जैन नरनारी सूरत में आए थे वे इनको देखकर मोहित हो जाते थे । सवोंके गलेमें मोतियोंके हार व हीरेके कंठे - बहुत ही शोभाको विस्तार रहे थे । जो सेठ हीराचंदकी पूर्व स्थितिको जानते थे वे इन बच्चोंको देखकर सेठ हीराचंद के उद्योगशील 1 For Personal & Private Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ ] अध्याय सातवाँ। और सदाचारी पुत्रोंके पुण्य और पुरुषार्थकी खूब ही सराहना करते थे। ___ सुरतकी प्रतिष्ठासे इन तीन पुराषार्थी पुरुषोंका यश और भी विस्तृत हो गया। सं० १९४० के जाड़ेके दिन आए । बम्बईमें एक दिगम्बर श्री गोमट्टस्वामीजी र जैन गुजराती प्रसिद्ध धनाढ्य सेठ सौभाग , शाह मेघराज रहते थे। इनकी भी धर्ममें बड़ी कायात्रास.१९४० । प्रीति थी तथा इनके भाई सरत गहीके चंद्रकीनि नामके भट्टारक थे, जिनका वर्णन अध्याय दूसरेमें आया है। इन्होंने एक दिन बम्बई मंदिरमें वर्णन किया कि हमारी इच्छा दक्षिणकी ओर श्री जैनबिद्री और मूलबिद्रीकी यात्रा करनेकी है, जिनभाइयोंकी इच्छा हो साथ चलें । सेठ माणिकचंदनी तुर्त तयार होगए । इनके उद्यत होते ही १२५ मनुष्योंका संघ यात्राके लिये जुड़ गया। सेठ पानाचंद और माणिकचंद और रूपाबाई आदि सर्व कुटुम्ब लड़के बच्चे यात्राको रवाना हुए । घरमें केवल नवलचंद सकुटुम्ब रहे ताकि व्यापारका काम बन्द न पडै । इस यात्रामें इन प्रसिद्ध मोतीके जौहरियोंने बहुत रुपया खर्च करना विचारा । कई महाशयोंको यात्रा करानेमें भली भांति मदद भी की। सेठ माणिकचंद बड़े परोपकारी थे। सबको आराम पहुंचाकर आप आराम करते थे । रास्तेमें सबके टिकट, माल असवावका प्रबन्ध, ठहरनेके लिये स्थानकी तलाश, हिसाबका रखना, वहांवालोंसे वार्तालाप करना यह सब काम बहुतही खटपटी निरालसी सेठ माणिकचंदके जिम्मे था। For Personal & Private Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [ १९७ 1 सर्व संघ सकुशल श्री जैन ब्रद्री पहुंचा । मैसूर राज्यमें श्रवण बेलगोला नामका नगर मैसूर स्टेशनसे ५५ मील व फ्रेंचरांक स्टेशनसे ३० मीलके अनुमान है । वर्तमानमें लोग बम्बईसे हुबली होकर आरसीकेरी स्टेशनसे जाते हैं यहांसे भी ३० मील है । यहाँ गोमहस्वामी की बृहत मूर्ति है जो १ मील दूरसे अपने भव्य दर्शन प्रदान करती है। उस समयकी कुछ व्यवस्था जो थी वह यहाँ " जैनबोधक " अंक ४ पुस्तक १ दिसम्बर सन् १८८५ के अनुसार लिखी जाती है जिस यात्राका वर्णन उस पत्रके सम्पादक सेठ हीराचंदने स्वयं सम्वत १९४१ में यात्रा करके लिखा है- “ बेलगोला ग्राम में ८ दि० जिनमंदिर हैं जिनमें पट्टाचार्यका मंदिर दुरुस्त है शेष नहीं । मंदिरों में घास बढ़ गई है, मंडप में पक्षियोंके घर हैं जिससे दुर्गंध आती है । यहाँ दो पहाड़ एक दूसरेके सन्मुख हैं, एक बड़ा जिसको धोडपेटा दूसरा छोटा जिसको चिकपेटा कहते हैं । बड़ेपर ८ व छोटेपर १४ दि० जैन मंदिर है । व्यवस्था पट्टाचार्य के आधीन है । कई मंदिरोंके दरवाजे नहीं है जिससे पशु पक्षी उपसर्ग करते हैं । यहाँसे १ मील दूर जिननाथपुर एक ग्राम है, यहाँ दो प्राचीन मंदिर हैं । एक प्रतिमा नहीं है, दूसरे में श्री शांतिनाथस्वामीकी बहुत प्राचीन प्रतिमा है जिसकी पीठपर लिखा है कि यह मंदिर कोल्हापुर के भीमसेन सेनापतिने बनवाया । इस मंदिरका कुछ भाग गिर गया है सो गांवका पटेल जैनी न होनेपर भी मंदिर की दुरुस्तीका प्रयत्न करता है। सेठ हीराचंद नेमचंद लिखते हैं कि हमारे साथवालोंने १००) व बेलगुलगांववालोंने २०० ) इस प्रकार २०० ) इसकी दुरुस्तीके लिये ब्रह्मसूरि शास्त्रीको दिये तथा 1 For Personal & Private Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ ] अध्याय सातवाँ । मंदिरोंमें दरवाजे लगानेको भी रुपये पट्टाचार्यको दिये हैं। इस संबंधमें जब सेठ हीराचंद यात्रासे लौट आए तब पट्टाचार्यजीने सेठजीको हिंदी भाषामें पत्र भेजा उसकी नकल " जैनबोधक " में है उसका कुछ सारांश यहां दिया जाता है। ___ "......आपने श्री गोमट्टस्वामीके पहाड़ ऊपर और चिकपेटा ऊपर दरवाजे दुरुस्त करने वास्ते रुपये दे गए थे जिसमेंसे चिकपेटा ऊपर शांतिनाथ महाराजके मंदिरके दरवाजे तयार हो चुके हैं बाकीके तयार करनेके लिये लोहाके सिलापट्टी सब लाए हैं......गोमट्टस्वामीके पहाड़ ऊपर बड़े दरवाजेको खिड़की तयार करके बिठाई है........ जिननाथपुरके मंदिरके दुरुस्तीका काम ब्रह्मसूरि शास्त्री मूलबिद्रीसे यहाँ आवेंगे तब उनके विचारोंसे शुरू करेंगे......काम पूरा करके आपको लिखेंगे चंद्रप्रभ काव्य व्याख्यान सहित छापनेको दिई है.......तयार होनेसे आपके वास्ते एक प्रति भेज देवेंगे........आशीर्वाद सही भट्टारकजीकी द्राविड लिपिमें । इस पत्रकी कुछ नकल यहाँ इसलिये प्रगट की गई है कि हमारे पाठकोंको मालूम हो कि कनड़ी हिन्दीको भारतकी देशमें भी हिन्दी लिखने व पढ़नेका रिवाज राष्ट्रीय भाषा है जिससे भारतकी यदि कोई भाषा व होनेका दावा। लिपि राष्ट्रीय होसक्ती है तो यह हिन्दी भाषा ही है । दूसरे यह कि पट्टाचार्यजी ग्रंथोंके मुद्रणमें विरोधी न होकर सहकारी थे। गोमट्टस्वामीका बड़ा पहाड़ एक ही पत्थरका है ऊपर चढ़नेपर १ बड़ा दरवाजा आता है उसके भीतर जाते ही एक दम खुली, For Personal & Private Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग | [ १९९ निर्मल, शांतस्वरूप, बहुत विस्तीर्ण, मनोहर बाहुबलि स्वामीकी नग्न मूर्ति नज़र आती है। मूर्तिके दर्शनसे अंतःकरणमें एक प्रकारका आश्चर्य युक्त आनंद होता है । १६ हाथ चौड़ी और ४० हाथ ऊंची ऐसी उत्कृष्ट ध्यानारूढ़ तेजस्वरूप मूर्तिकी तरफ रातदिन नेत्र लगाके बैठे तौभी तृप्ति नहीं हो सकती । बाहुबलिस्वामी प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के पुत्र थे, इन्होंने दीर्घकाल तपश्चरण किया था जिससे चरण में वल्मीक लगे हैं उनमेंसे सर्प निकलके पांव से खेल रहे हैं । शरीर के ऊपर वेल चढी हैं ऐसा हुबेहुब भाव पत्थर में मनोहर खुदा हुआ देखने में आता है । गोमट्टस्वामी के बाएं हाथमें बालबोध अक्षर खुदे हैं" चामुण्डराजे करवियलें गंगरजे सुतालय करवियलें" T इस ही अभिप्रायके सीधे हाथमें कानड़ी और द्राविड़ लिपिमें अक्षर खुदे है | चामुण्डराय विक्रम संवत् ६०० के अनुमान हुए है + | उन्होंने सवयं यह अक्षर लिखवाए है ऐसा ब्रह्मसूरि शास्त्री कहते हैं | वाई तरफ जो कनडी अक्षर हैं उनका तात्पर्य है " नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवर्तीका शिष्य बसदी सेठीने कोट बंधायके चौवीस तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएं स्थापित कीं ।" यह प्रतिमाएं श्री बाहुबलि स्वामीकी मूर्तिके पीछे प्रदक्षिणा में विराजित हैं । गोमट्टस्वामीकी बाई तरफकी इमारत में एक तेलिया पत्थरपर लिखा है के नोट- वर्तमान में चामुंडराय के होनेका संवत लगभग माना जाता है । देखो प्रशस्ति गोमट्टबार । For Personal & Private Use Only १०५० Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० ] अध्याय सातवा। शके १२०२ प्रमाथी संवत्सरे कार्तिक सुदी १० सोमवार मैं संबुदेव गोमट्टस्वामीके वास्ते गदियानेकी दूध दररोज देऊंगा। तथा गोमट्टस्वामीके सीधे हाथकी तरफ इमारतमें कूष्मांडिनी देवांकी मूर्ति है जिसके नीचे लेखका भावार्थ है-- . "नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवतीका शिष्य बालचंद्रदेव उनका शिष्य कीर्तिसेठीका पुत्र बम्मसेठीने इस यक्ष देवीकी प्रतिष्ठा की।' कई स्थानों में पत्थरके खुदे हुए प्रतिमाके समीप वत्स सहित गौ, हस्ती, सूर्य, चंद्र हैं, इसका हेतु ब्रह्मसूरि शास्त्री कहते हैं की दान देते समय ये चार साक्षी रखके दान देना ऐसा शास्त्राधार है जिससे यहाँ बताए हैं। चामुंडराजाके पहले कृष्णराजा हुआ है उसके समयका शिलालेख चिकपेटा याने छोटे पहाड़ पर है। अक्षर धवल महाधबलके लिपिके हैं। इसका वर्णन वृहत् हरिवंशमें है । मैसूरका राजा कृष्णराजकी माता देवीरमणी जन धर्मी थी जिसने चिकपेटाके ऊपर श्रीआदिनाथके जीर्ण मंदिरको फिरसे बनवाया । इस ही मंदिरमें श्री भद्रबाहुका चरित्र चंद्रगुप्त राजाके समयका पत्थर में खुदा हुआ है। चिकपेटाके ऊपर श्री भद्रवाहुके पादुका लंबे एक बालिस्त ८ अंगुल हैं। वहाँ बालबोध अक्षरमें लिखा है__"भद्रबाहु स्वामी पादुका जिनचंद्र पणमिदं" और एक यंत्र निकला है। ४० For Personal & Private Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२०१ श्रवणबेलगुल गांवमें एक तालाव है जिसको मैसुरके पहले खजांची अण्णाप्पा सेठी जैनने बंधवाया था । लम्बा फुट ३०० चौड़ा फुट ४०० है। पूर्व बाजूके दर्वाजेपर जैन प्रतिमा पत्थरमें खुदी हुई है। . बेलगुल गांवके बड़े मंदिरको हालीवीड़का राजा नरसिंह बल्लालका मंत्री हुलम्पा भंडारीने शाका १२०० के अनुमान बनवाया था । वहाँ कनड़ीमें शिलालेख है उसका भाव है" नयकीर्ति मुनिका शिष्य भानुकीर्तिको शक १२०० बहुधान्य नाम संवत्सरे चैत्र सुद्ध १ रविवारके दिन सवणपुर नामका गांव (वेलगुलसे एक कोस पर है ) जागीर दिया। दूसरा शिलालेख है जिसमें शाका १२८० कीर्ग संवत्सर भाद्रपद शुद्ध १ है। आगे नहीं पढ़ा गया। यहाँके अनंतनाथके मंदिरको मूलसंघ देशीयगण कुंदकुंदाचार्यान्वय चारुकीर्ति पंडिताचार्यके वक्त मंगा स्त्रीने बनवाया है। शाके १७५२में खरनाम संवत्सरमें मैसुरके राजा कृष्णराजने श्री बाहुबलि स्वामीकी सेवार्थ चारुकीर्ति पट्टाचार्यको ५ गांव इनाममें दिये हैं जो अब तक जागीरमें मौजूद हैं। इन दोनों पर्वतोंपर १४४ शिलालेख हैं जिनकी नकल व इंग्रेजीका उल्था राइस साहबने अपनी पुस्तकमें छपाया है जिसका नाम हैं " Inscriptions at Sravanbelgola " जो बंगलोरके सर्कारी प्रेससे मिलती है। यहाँ पर मुनियोंका सदा निवास रहा है। बहुतसे लेखोमें उनकी पट्टाक्ली व समाधिमरणकी बात है। भद्रबाहु श्रुतकेवलीकी समाधि यहीं हुई। उस समय मौर्यवंशी राजा चंद्रगुप्त मुनि अवस्थामें मौजूद थे। उन्होंने ही अंततक सेवा की थी। For Personal & Private Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ ] अध्याय सातवाँ । ऐसे रमणीक अतिशय क्षेत्रके दर्शन प्राप्त कर सेठ माणिकचंदके संवको बहुत ही आनन्द प्राप्त हुआ । बड़े. सेठ माणिकचंदकी पर्वत पर चढ़ते हुए सेठजीने देखा कि वृद्ध दया और सीढ़ियोंका पुरुष व स्त्रियोंको बहुत ही कष्ट हो रहा है, प्रबन्ध। पत्थर चिकना ढालू है बारबार पैर फिसलता है। सेठजीका शरीर भी छोटा व भारी था। इनको भी पर्वत चढ़ते हुए बहुत कष्ट हुआ। यह चढ़ते २ विचारने लगे कि यदि इस पर्वतपर सीढ़ियां बननावें तो सदाके लिये यात्रियोंका. कष्ट दूर हो जावे । अबतक लाखों हजारों ही यात्री हो गए होंगे किसीके दिलमें यह भाव पैदा नहीं हुआ । पाठकगण, इससे समझ लेंगे कि किस कदर भारी परोपकारबुद्धि सेठ माणिकचंदमें थी। आप ऊपर गए, संघसहित परमानंददायक श्री बाहुबलि स्वामीके दर्शन करके अपने जन्मको कृतार्थ मानते हुए । पानाचंद भी बहुत ही प्रसन्न हुए । सर्वने वहां बड़ी भक्तिसे चरणोंका प्रछाल किया फिरः अष्ट द्रव्यसे खूब भाव लगाकर पूजन करके महान पुण्य उपार्जन, किया । दर्शन करते २ किसीका भी मन नहीं भरा। दूसरे दिन छोटे पर्वतोंके मंदिरोंके दर्शन किये। श्री भद्रबाहस्वामीके सीढ़ियोंके चंदेमें १०००)। सेठ माणिकचंदने अपने भाईसे सलाहकर चरणोंको स्पर्शकर महान आल्हाद प्राप्त करते अपने संघको एकत्रकर निश्चय किया कि बड़े पहाड़पर २००० सीढ़ियां बनवादेनी चाहिये । ५०००) से अधिककी एक पट्टी की जिसमें आपने १०००)की रकम भरी । रुपया एकत्रकर पट्टाचार्यजीके सुपुर्द किया कि इससे सीढ़ियां बनवा दी जावें। यह काम सेठ माणिकचंद nal For Personal & Private Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२०३ ने इतने महत्वका किया कि आजतक इन सीढ़ियोंके द्वारा यात्रियोंको आराम पहुँच रहा है व आगामी पहुंचेगा। ____ वहांसे संबने श्री मूलबिद्री जानेका विचार किया और गाड़ियोंके द्वारा पैदल प्रस्थान किया। मूलबिद्रीके रास्ते व मूलबिद्रीका कुछ हाल ऊपर लिखित जैन बोधकके अनुसार यहां कुछ दिया जाता है:श्रवणबेलगोलासे १ कोस वसतीहेली गाँवमें एक जिन मंदिर है जिसकी प्रतिष्ठा नयकीर्ति बैलगाड़ी द्वारा मूल- सिद्धान्त चक्रवर्तीके हाथसे हुई है । विद्रीकी यात्रा । यहाँसे १३ मील चंद्रायण पट्टण गांव आता है। यहां जैनके २ घर हैं पर मंदिरजी नहीं है। यहासे ८ मील शांतप्राम है जिसको हालीवीड़ी राजा बल्लालकी स्त्री शांतलादेवीने बसाया था। यहाँ शांतिनाथजीका मंदिर है, ४ जैन घर हैं। यहाँसे ८ मील हासन शहर हैं, २ जिन मंदिर हैं, यहाँसे २० मील हालीवीड है यहां ३ जिन मंदिर है श्री आदिनाथजीके मंदिरके बाहर प्रतिमा के नीचे एक लेख है जिसका भाव यह है: "मूल संघ देशीय गच्छ गण पुस्तक कुंदकुंदान्वय, इंगलेश्वर ग्राममें माघनदि भट्टारकके शिष्य दोय श्री नेमिचंद्र भट्टारक देव और श्रीमंत् अभयचंद्र सैद्धांतिक चक्रवर्ती जिसमें पहले हैं सो वालचंद्र पंडितदेवके शिक्षागुरु और दूसरे विद्यागुरु थे। बालचंद्रने कहा था कि शाका शालिवाहन ११९७ भाव संवत्सर भाद्रपद शुद्ध १२ बुधवार मध्याह्न कालमें अपना अंत होगा। एक मास तक For Personal & Private Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४] अध्याय सातवा। अनशन लिया पर्यकासनसे समाधिस्थ हुए। तथा सार चतुष्टयका व्याख्यान नेमिचंद्र बांचते हैं और उनके शिष्य वालचंद्र सुनते हैं। दूसरी तरफ अभक्चंद्र बांचते है और बालचंद्र सुनते हैं ऐसे चित्र हैं और लेख है। चित्र केवल नग्न हैं। शांतिनाथ मंदिरमें मुनि प्रतिमाके नीचे लेख है " कुलभूषण सैद्धांतिक शिष्य माघनंदिके शिष्य शुभनंदिके शिष्य चारुकीर्ति पंडितदेव शाके १२०२ प्रमाधिनाम संवत्सरे कार्तिक वदी ९ शनिवार वालचंद्रके शिष्य अभयचंद्र समाधिस्थ हुए।" यहाँ दूसरी मुनि प्रतिमा है । उसके नीचे लेख है " शाके १२२२ शार्वरी संवत्सरे चैत्र वदी ३ गुरुवार रामचंद्र मलधारी समाधिस्थ हुए। यह बालचंद्र पंडितं देवके शिष्य थे। मुनि प्रतिमाके बाजूमें पीछी कमंडल है । पार्श्वनाथ मंदिरमें एक फूटा हुआ शिला लेख है जिसपर शक १३३२ है । आगे नहीं बंचा। यहाँ एक दूसरा शिला लेख है जिसपर शाका १५७० ईश्वर नाम संवत्सरे फाल्गुण शुद्ध ५ गुरुवार है। इस मंदिर में स्तंभ है जिसपर लिंगायत लोगोंने शिवलिंग स्थापन किया था उसको जैनियोंने निकाल डाला, दोनोंमें झगड़ा • हुआ जिसका फैसला वेलूरके कृष्णापा नाईक आयनवरू कलिकाल अष्टम चक्रवर्ती व्यंकटादि नायकने करके समाधान किया । यहाँसे १० मील वेलूर गाँव है। यहाँ जिनमंदिर नहीं है ' पर एक बड़ा विष्णु मंदिर है, उसके शिलालेखसे प्रगट होता है कि यह पहले जैन मंदिर था फिर विष्णु मंदिर किया गया है। वह लेख इस प्रकार है: For Personal & Private Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२०५ " श्रीमद्विशुद्धबोधाय शांतायामलकीर्तये। स्याद्वाद सत्यवाक्याय, जिनेन्द्राय नमो नमः ॥ १ ॥ जयतु जयतु शश्वत् शासनं जैनमेतत् । सकलविपुलधर्म श्रीलतावद्धमूलं ॥ सुद्दढ़मिहधरित्र्यां यावदेषाधरित्री । वसतिवसतिरुच्चेरर्हतस्थानलक्ष्म्याः ॥ २ ॥" इसमें एक छोटीसी पाषाणकी चौवीसी मूर्ति फूटी पड़ी हैं। इस गांवमें संस्कृत शाला हैं । ६० छात्र पढ़ते हैं। कई न्याय भी सीखते हैं। यहाँसे २२ मील गिरा विजसली नामकी पहाड़ोंकी झाड़ीमें एक खेड़ा गांव है जहाँ इलायची व काली मिर्च बहुत होती है। ९६० तोलेका एक मन, इस तौलसे एक एकड भूमिमें २५ मन इलायची होती है। १ मनका दाम ५३) है। ____ यहाँसे १५ मील जंगलमें एक चौकी है। वहाँसे १६ मील निडगल गांव है। यहां श्री शांतिनाथजीका मंदिर है। यहाँसे वेर १५ मील है, यहां ८ जिन मंदिर हैं। सर्कारसे २६८) साल ईनाम मंदिरोंकी सेवार्थ मिलते है। यहां श्री गौमहस्वामीकी मूर्ति है । श्रवण बेलगोलाकी मूर्तिसे आधे आकार होगी जिसके दक्षिणभागमें लेख है उससे प्रगट होता हैं कि शाका १५५५में तिम्म राजाने प्रतिष्ठा कराई। प्रतिमाजीके पगका तला २॥ हाथ लम्बा है। यहाँ उपाध्याय जैन ब्राह्मण हैं जिनको इन्द्र कहते हैं। उनके ८ व जैनियोंके अनुमान ४० घर हैं। इनमें रोटी व्यवहार है पर बेटी व्यवहार नहीं हैं। यहाँसे मूलबिद्री १२ मील है। यहां १८ For Personal & Private Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६] अध्याय सातवाँ । निन मंदिर हैं। सर्कारसे इन मंदिरोके लिये १०००) वार्षिक अनुमान मिलता हैं। यहीं रत्नोंके बिम्ब व धवल, जयधवल व महाधवल नामके ग्रंथ हैं जिनकी रक्षाके लिये एक कमिटी है उसके मेम्बरोंके नाम हैं: १-कोंडे पदमराज शेट्टी २-राना कुंनम शेट्टी ३-गुम्मण सेट्टी ४-नेमिराज उपाध्ये इन चारोंके सामने इन रत्न बिम्बों वधवलादिग्रंथोंका दर्शन प्राप्त होता है। यह गाँव बंगलोर जिलेमें हैं जहाँ जैनियोंके २००० के अनुमान घर हैं। यहाँ मृत पुरुषकी मिलकियत भानजेको मिलती है ऐसा ही सर्कारी कायदा भी है जिससे जैनी बहुत दरिद्री हुए व नष्ट हुए। यह रिवाज इसके १००० वर्षके अनुमानसे है जिसको भूताल पांड्य राजाने शुरू किया था। अब इसको सब नापसन्द करते हैं । यह रिवान जैन उपायोंमें नहीं है। यह देश तौलव कहाता है। यहाँ उपाध्यायके घर १५ व जैनियोंके करीब २५ घर हैं । यहाँसे १० मील कारकल है । यहाँ १४ जिन मंदिर हैं । नेमिनाथ स्वामीके मंदिरमें जो शिलालेख है उसमें शाका १३७९ ईश्वर नाम संवत्सर कार्तिक मासमें भैरवरायाने बनवाया। शांतिनाथ मंदिर में लेख है सो उसे समस्त गुरुने शक १२७६ भाव संवत्सरमें फाल्गुण शुद्ध ५ बुधवारको बनवाया । चंद्रनाथ मंदिरको शालि० शक १५१४ विनय नाम संवत्सर भाद्रपद शुद्ध ३ रविवार बरमण्णा शेठीने बनवाया । यहाँ भी वेणूरके समान श्री गोमट्ट For Personal & Private Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२०७ स्वामीकी बड़ी प्रतिमा पहाड़ पर है जिसपर लेख है उससे प्रगट है कि शाका १३५३में फाल्गुण सुदी १२ सोमवारको चंद्रवंसी भैरवेन्द्रके पुत्र श्री वीर पांड्य राजाने प्रतिष्ठा कराई । यहाँ चतुर्मुख मंदिरमें बड़ा शिलालेख है । यहाँसे लोग जहाजमें जानेको १८ मील गाडी पर चल मंगलोर बंदर पर आते है । यहाँ भी एक निन मंदिर है । २ घर जैन व १ उपाध्यायका है। यहाँसे जहान पर बैठके २ दिनमें बम्बई पहुँचते हैं। टिकट ११) लगता है। सेठ माणिकचंद संघसहित इसी मार्गसे यात्रा करके जहाज़ द्वारा बम्बई लौट आए। इन्होंने जैनबिद्रीके भंडारमें भी अच्छी रकम दी व रास्तेके मंदिरोंमें भी दान किया। ___ मूडबिद्रीके रत्नबिम्ब व धवलादि प्राचीन ग्रंथोंके दर्शन करते वक्त अच्छी रकम भेट धरी जिसे देखधवलादि ग्रन्थोंके कर वहाँके पंच और भट्टारकजी बहुत प्रसन्न उद्धारका विचार । हुए । सेठ माणिकचंदनीने दर्शन करते समय यह ज़रूर ध्यानमें लिया कि यह प्राचीन ग्रंथ जिन ताडपत्रों पर है वे बहुत जीर्ण हो गए हैं। वहाँके लोगोंको सेठजीने कहा कि इनकी दूसरी प्रति करानी चाहिये । तब वहाँके लोगोंने कहा कि ये तो इसी प्रकार बहुत दिनोंसे हैं, हम तो दर्शन करके व कराके कृतार्थ होते हैं, हम गृहस्थी तो वांच ही नहीं सक्ते, भट्टारकजी इस प्राचीन लिपिको पढ़ नहीं सक्ते, हां; जैनबिद्रीमें ब्रह्मसूरि शास्त्री है वे ही इसको पढ़मा जानते हैं। इस तरह बड़े आनन्दसे सेठजी यात्रा करके निर्विघ्न घर लौटे। रूपाबाईजीको इस यात्रासे बड़ा ही आनन्द हुआ । पुत्र प्रेमचंदजी For Personal & Private Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८] अध्याय सातवाँ । बड़े भावसे दर्शन करता था । चतुरमती फूलकुमरी और मगनमती कन्याओंको हरएक यात्रामें साथ रखती थी और दर्शन पूजन कराके. बहुत आनन्द मानती थी। पानाचंदनीको भी इस यात्रासे बहुत धर्म लाभ हुआ। यात्रासे लोटकर सेठनीके चित्तमें उन प्राचीन ग्रंथोंके उद्धारकी बात जमी रही और यह विचार करके कि यह काम किस तरह सम्पादन हो। आपने शोलापुरके सेठ हीराचंद नेमचंदको याद किया क्योंकि इनकी विद्वता व बुद्धिमानी सेठ माणिकचंदके चित्तमें उल्लिखित हो गई थी। अपनी यात्राका समाचार सेठ हीराचंदको लिखा और प्रेरणा की कि आप स्वयं यात्रा करके उन ग्रन्थोंको देखें और उनके उद्धारका उपाय करें। सेठ हीराचंदने पत्र पाकर उत्तर दिया कि हम अबके अर्थात् संवत् १९४१के जाड़े में श्रीमूलबिद्रीकी यात्राको यथा संभव अवश्य जावेंगे। अब सेठनीने प्रेमचंद और फुलकुमरीको ६ वर्षसे अधिक जान इनके पढ़ानेको एक अच्छी गुजराती प्रेमचंद, फुलकुमरी ओर शालामें भेजा तथा घर पर भी एक अध्यापक मगनमतीको शिक्षा । नियत किया तथा धर्मकी शिक्षा मुख जवानी इन बालकोंको माता रूपाबाई दिया करती थी व सेठ माणिकचंदजी भी देते थे, तथा मगनमतीको तो यह बहुत चाहते थे, २॥ वर्षकी उमरसे सेठजो इसको अपने साथ ___ नोट-गुजराती संवत दीवालीसे जब कि मारवाड़ी संवत चैत्र सुदी १ से शुरू होता है इससे मारवाडी सं० की अपेक्षा सं० For Personal & Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठनी युवावस्थामें ३० वर्षके निकट . J.V.P. Surat. (देखो पृष्ठ १८७) For Personal & Private Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग। [२०९ भोजनके समय लेकर बैठते थे, फुरसतके समय खिलाते थे, धमकी बातें बताते थे और पास ही शयन कराते थे। जब यह शाला जाने योग्य हुई तब इसको भी भेजा। इस समय भारतमें लार्ड रिपनके पीछे लार्ड डफरिन वाइसराय थे। इनके समयमें अमीर काबुलसे जो कई वषोंसे झगडा चलता था मो शांत हो गया, सरकारसे गाढ़ी मित्रता हो गई ओर प्रति वर्ष एक लाख २० हज़ार पाउंड अमीर काबुलसे सोको मिला करे, ऐसा ठहराव हो गया। तथा ब्रह्माका मुल्क जो अब तक स्वतंत्र था सो सन् १८८५ में भारतमें मिला लिया गया, इससे ब्रह्मा और भारतमें व्यापारकी वृद्धि होने लगी। सेठ माणिकचंदकी सूचनाके अनुसार सेठ हीराचंदजी जैन मा बिदी और मूलबिद्रीकी यात्राको शोधपुरसे सेठ हीराचंद नेमचं- मगसर सुदी ६, सं० १९४१ को रवाना हुए दकी जैनविद्री मूल- और गुज० प्रोष वदी ११ को लौट आए। बिद्रीकी यात्रा। यह शोलापुरसे रायचूर आरकोनम होते हुए ___ बेंगलोर शहर पहुंचे । वहाँ एक जिन मंदिर नया देखा परंतु उसमें प्रतिमाएं सब पुरानी देखीं सिर्फ मूल नायक कायोत्सर्ग पीतलके बिम्बको सं० १९३९का श्रवणवेल गोलाके पारशनाथ शास्त्री द्वारा प्रतिष्ठित पाया। यहाँ प्रतिमाओंके इधर उबर दो भिन्न सिंहासनों पर पद्मावती देवीको विराजित राया पर क्षेत्रपालकी स्थापना कहीं नहीं देखी । यहाँ २० जैन घर हैं मंडीमें जैन जिणापा मंदिरकी व यात्रियोंकी अच्छी सम्हाल रखते हैं। इनके पास कनड़ी भाषामें द्वादशानुप्रेक्षा छपी हुई देखकर For Personal & Private Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० ] | अध्याय सातवाँ । बहुत हर्ष बहुत हर्ष हुआ कि इधर सेठ हीराचंद को हुआ कि इधर ग्रन्थोंक छपने का रिवाज है। पूछने से मालूम भी हुआ कि इधर कोई विरोध नहीं करता है । इस समय सेठ हीराचंदजीके दिलमें यह पक्का इरादा हो गया कि यात्रा से लौट कर जिस तरह बने ग्रंथोंक मुद्रण करके प्रचार करनेका कार्य्य हाथमें लेना चाहिये । यहाँ से मैसूर गए। वहाँ एक धनवान व्यापारी मोदीखाने तिमात्रा के मकान में उतरे थे। इनके यहाँ जिन चैत्यालय है तथा इनके ४ पुत्र हैं १ शांतराजय्या, २ अनंत राजय्या, ३ ब्रह्मसूरिअय्या ( इन्होंने मैट्रिकुलेशन तक इंग्रेजी अध्ययन किया था ), ४ पद्मनाभरैय्या | यहाँ सेठजीने ग्रंथ भंडार देखा उसमें पुरुदेव चम्पू, जीवंधर चम्पू, गद्यचिंतामणि आदि ग्रंथ देखे । यहाँ नाग कुमार और राजण्णा दो जैन संस्कृतके विद्वानोंसे मिले । यहाँ अपार पिले फोटोग्राफर से १२) रु० में सेठजीने श्रवण बेलगोलाके दोनों पहाड़ों के गोमट्टस्वामी तथा चारुकीर्ति पट्टाचार्य के ऐसे ४ फोटो लिये । यहाँसे शारंगपट्टण होते हुए गाडी द्वारा श्रवणबेलगोला आए । श्रवणबेलगोला में पहुंचकर इन्होंने विद्वान शास्त्री ब्रह्मसूरिजी से बहुत प्रीति उत्पन्न की। उन्हींके साथ वहाँ की यात्रा भी की तथा वहाँ के भट्टारक पट्टचार्यजी से भी बहुत स्नेह बढ़ाया । मनमें यह विचारा कि जो ब्रह्मसूरि शास्त्री हमारे साथ मूलबिद्री चले तो उन बलादि ग्रन्थोंका महत्त्व प्रगट होवे और उनके जीर्णोद्धारका उपाय किया जावे । सेठजीने अपने संघसे पट्टी करके वहाँके मंदिरादिकी मरम्मतके लिये जो रुपया दिया इससे इनका प्रभाव बेलगोला के जैनियों पर अच्छा पड़ा । ब्रह्मसूरिजीने अपना शास्त्र मंडार भी दिखाया For Personal & Private Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२११ जिसकी सूची जैन बोधक ' अंक २९ मास जनवरी सन् १८८८ में मुद्रित है इसमें निम्न अपूर्व ग्रंथ है १-केवलज्ञान होरी जैन ज्योतिष ग्रंथ श्लोक संख्या १०००० संस्कृत चंद्रसेनकृत . २-क्रिया निघंट १००० बौधमती व्याकरण ३-कारक निघंट , ४-न्याय विनिश्चय अलंकार ३००००, वृहद् अनंताचार्य कृत ५-त्रिविक्रम वृत्ति ४००० प्राकृत व्याकरण त्रिविक्रमदेवकृत ६-माघनंद संहिता मूल टिप्पण ५००० माघनंदि ७-पुरुदेव चंपू ३००० हरिचंद कविकृत ८-प्रायश्चित्त समुच्चय टीका ३००० ९-मूलाचार टीका ८००० कल्याणकीर्ति १०-लोक विभागी ३००० ११-शास्त्रचार समुच्चयव्याख्या २००० माघनंदि व्याख्या 'प्रभाचंद्र कृत। ये ग्रंथ प्रकाशित होने योग्य हैब्रह्मसूरिशास्त्रीको अनेक ऐसे काम थे जिससे वे सेठजीके साथ मूलबिद्री नहीं जा सक्ते थे परंतु सेठ हीराचन्दने प्रेम व आग्रहसे तथा धवलादि ग्रन्थोंके पढ़नेकी उत्कंठासे अपने सर्व परिवार सहित चलनेकी तयारी की। उस समय सेठनीके साथ लाला रिषभदास आगरा, बाबा दुलीचंदजी, तोडूमलनी उजैन, कस्तूरचंदजी और भगतनी, पन्नालाल, वेणाचंद कालुनवाले, मोतीचंद फलटनवाले, नेमचंद म्हसवड़वाले आदि कई भाई थे । रास्तेमें सर्वके साथ धर्म चर्चा करते हुए मूलबिद्री पहुंचे। वहाँ श्री पार्श्वनाथ स्वामीके मंदिरजीमें अब सर्व संघके For Personal & Private Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२] अध्याय सातवाँ। मामने धवलादि ग्रंथ जो सिद्धान्त ग्रन्थोंके नामसे प्रसिद्ध हैं दर्शनार्थ वहाँके पट्टाचार्य और पंचोंने निकाले उस समय सर्व संघको बड़ा आनन्द हुआ । ब्रह्मसूरी शास्त्रीका मूलबिद्री में बहुत सन्मान था। पुराने ताड़पत्र पर लिखे हुए कुछ पत्रोंका संग्रह भीतर भंडारसे पंच लोग निकाल कर लाते थे और उसीको दूरसे दर्शन कराकर भेट चढ़वाकर लोगोंको बिगकर देते थे। जब ब्रह्मसूरिजीने इन पत्रोंको पढ़ा तो इनमें कुछ और ही वर्णन पाया । धवलादि ग्रंथोंका कुछ भी अंश न था क्योंकि सुरिनी वयोवृद्ध विद्वान थे । इनको मालुम' था कि उनमें गुणस्थान मार्गणा स्थान आदि सम्बन्धी सूक्ष्म चर्चा है तथा श्री गोमट्टसार इन्हीके कुछ अंशको लेकर श्री नेमिचंद्र सिद्धान्त चक्रवर्तीने लिखा है तब सूरिनीको बड़ा आश्चर्य हुआ और पट्टाचार्यनीसे कहा कि यह तो सिद्धान्त ग्रन्थ नहीं है आप भीतरसे और ग्रंथ निकलवाइये, उनमें श्री धवलादिको ढूंगा जावे । पंचलोग कुछ लज्जित हुए, भीतरसे और जीर्ण ताड पत्रों पर लिखें हुए ग्रन्थ लाए। उन सबको देखकर सुरी शास्त्रीने धवल और जयधवल ग्रंथोंको छांटकर अलग किया और उन्हें अति विनयसे बिराजमान कर सूरि शास्त्रीने बहुत ही मिष्ट ध्वनिसे मंगलाचरण पढ़के उसका अर्थ किया तथा कुछ और भी सुनाया। उस समय सेठजीने पंचोंसे निवेदन किया कि यदि आप लोग शास्त्रीजीसे इस ग्रंथको दोतीन दिन धवलादि ग्रंथोंका तक सुनैं तो आपको और हमें सर्वको पढ़ाजाना। विशेष लाभ होवै । उधर बाबा दुलीचंदजीने भी यही इच्छा प्रगटकी। उस समय थोड़ासाः For Personal & Private Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२१३ ग्रंथका वर्णन सुननेसे जो आनन्द सर्वको हुआ था उसको विचारते हुए उन लोगोंसे नाहीं न होसकी और वे इस बात पर राजी होगए। दूसरे व तीसरे दिन भी सर्व संघने शास्त्रीजीके मुखसे श्री धवल और जयधवलके इधर उधरके कई भाग सुनके बहुत आनन्द प्राप्त किया । सेठ हीराचंद लिखते हैं कि इन पुस्तकोंकी लिपि जूनी कनड़ी है तथा सुनते समय हमने कुछ श्लोक लिख भी लिये थे। इस तरह सेठजीने अपनी खातरी करके कि यही धवल जयधवल हैं तथा अति जीर्ण होगए हैं इनकी नकल होनी चाहिये इस विचारको अपने मनमें रक्खा और ब्रह्मसूरी शास्त्रीसे सम्मति मिलाते रहे कि इनकी प्रति आप कर देखें तो बहुत अच्छा है क्योंकि उस लिपिको उस प्रान्तमें भी पढ़नेवाले सिवाय वृद्धमूरि शास्त्रीजीके और कोई नहीं था। सूरि शास्त्रीने कहा कि यह काम बहुत काल लेवेगा तथा यहाँके भाइयोंको भी समझाना होगा । यह काम कई वर्षोका है । मुझे व एक दोको और कई वर्षों तक ठहरना हो तव ही इनकी नकल होसक्ती हैं क्योंकि इनमें क्रमसे ६०००० और ७२००० श्लोक हैं। सेठ हीराचंद मंगलोर बंदरसे जब बम्बई आए तब एक दिन ठहरे थे औरसेठ माणिकचंदसे मिलधवलजयधवलकी प्रति-कर सव हाल कहा। दोनोंने परस्पर लिपिका विचार। बात की कि किसी उपायसे इन धवलादि ग्रन्थोंकी प्रतिलिपि हो और बालबोधमें भी होकर हम सवको उनका लाभ मिले तो एक बहुत आवश्यक काम हो जावे । हीराचंदजी बहुत गंभीर थे। सेठजीसे कहा कि हम कोई न कोई उपाय करेंगे, आप चिंता न करें। For Personal & Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ ] अध्याय सातवाँ। सेठ हीराचंद शोलापुर लौटकर जैन जातिकी सेवामें विशेष ___ दत्तचित्त हुए। उन दिनों एमडोंमें कन्याकुरीति निवारण विक्रय बालविवाह व कन्या बड़ी वर छोटेकी चर्चा। लग्न व वृद्धविवाह इन तीन कृरीतियोंका __ बहुत रिवाज था। शोलापुर जिले में आकलूज निवासी वीसा हुमड मेठ गंग राम नत्थूराम प्रसिद्ध नाथारंगजीवाले भी बहुत परोपकारी व जातिकी कुरीतियोंको देखकर उनके लिये दुःखित थे व इनके मिटानेके लिये बहुत प्रयत्न शील थे। शोलापुरमें सेठ हीराचंदको उद्योगशील जानकर गंगारामजीने चैत्र सुदी २ बुधवार शाके १८०७ को एक पत्र लिखा कि ऊपरकी तीन कुरीतियोंके मिटानेका यत्न करें । उनके कुछ शब्द यहाँ दिये जाते हैं। ___ येणें प्रमाणे तीन रीति चालू आहेत. त्या आपले धर्म विरुद्ध आहेत व त्यां पासून आपलें लोकांत फार नीचत्त्व आले आहे व पुढे काही दीवसांनी याचे परिणाम फार वाईट होणार आहेत. या साठी काही या वहिवाटी सुधारण्या विषयी प्रयत्न करण्याचे माझे मनांत फार दिवसां पासून पालन घोळत आहे. व मी गांवोगांवच्या लोकांचे मत गरीब व श्रीमंत यांचे घेत असतो. तरी या कामी कोणाचे विरुद्ध मत फारसे नाही. मात्र खऱ्या अंतःकरणाने झटणारा मनुष्य असला म्हणजे त्याचे प्रयत्नाने या वाईट चाली हळूहळू निघून जातील या विषयी तुमचा अभिप्राय काय आहे तो कळवाल तर बरे होईल." भाव यह हैं-यह तीन रीति धर्म विरुद्ध हैं । इनसे लोग नीच होते जाते हैं। कुछ दिनोंमें और भी खराब दशा होजाय For Personal & Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२१५ गी। इसके सुधारमें प्रयत्न करनेकी मेरे मनमें बहुत दिनोंसे, है । मैंने गांव गांवमें जाके गरीब व श्रीमंतोंके मत लिये तो कोई मुझसे विरुद्ध मत नहीं घरते, मात्र अतःकरणसे उद्योग करनेवाला मनुष्य चाहिये तो यो कुरितियां धीरे २ निकल जायगी। आपका क्या अभिप्राय है सो लिखें। इस पत्रको देखकर सेठ हीराचंदजीने शोलापुर जिलेके ___ ग्रामोंके भाईयोंके अभिप्राय मंगानेको - जैनबोधक का उदय । पत्र भेनने प्रारंभ किये। कुछ दिनोंबाद जैन बोधक' नामक एक मासिक पत्रकी पहली जिल्द छपवाकर सेप्टेम्बर सन् १८८५ का अंक प्रसिद्ध किया और खास २ जैनियोंको जिनका आपको परिचय था भेना । दिगम्बर जैनियोंमें इस समय तक केवल १ वर्ष रहले सबसे प्रथम एक ही मासिक पत्र और निकला था जिसको ज्योतिषरत्न पंडितजियालाल जैन चौधरी ने सन् १८८३ में निकाला था इसका नाम “ जैन प्रकाश हिंदुस्तान" रक्खा था। यह हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओंमें निकला था परंतु अधिक दिन चल नहीं सका था। जैन बोधकने समाजके जागृत करने में बहुत उपकार किया है। इसको १८९८ तक स्वयं हीराचंदने फिर पं० कलापा भरमापा निटवेने सन् १९११ तक' चलाया । फिर पांच वर्ष बंद रहा और अब इस वर्ष यह फिर शोलापुरसे जीवरान गौतमचंद दोशी द्वारा संपादित होकर निकलने लगा है। इस पत्रके पहले अंकमें सम्पादकने पत्र निकलनेके मुख्य उद्देश्य प्रगट किये हैं उनका सार इस भांति है: For Personal & Private Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] अध्याय सातवा । : (१) अजैनोंको बताना कि जैन मत नास्तिक नहीं है। (२) धार्मिक विद्याकी वृद्धि कराना । - (३) जैन विद्वानोंके कितने विषयों में भिन्न मतोंको मिलाकर एक मत करना। (४) शकाओंको प्रगट कर विद्वानोंका समाधान प्रकाशित करना। (५) यात्रा सम्बन्धी हाल प्रगट करना । (६) तीर्थक्षेत्रों आदिका हिसाब मंगाकर प्रगट करमा । (७) देश भिन्न होनेसे जो रीति भिन्न पड़ गई है उनको ज्ञास्त्रके अनुसार कराके परस्पर संबंध दृढ कराना। (८) विवाहादि कार्य शास्त्राधारसे चलवानेका प्रयत्न करना । (९) विद्या व नीति मार्गकी वृद्धि की प्रेरणा करना। इसका पहला अंक सेठ माणिकचंदजीके पास भी भेजा गया था पर उसको किसी औरने लेलिया था-सेठजीक देखनेमें नहीं आया। एक दिन मंदिरजीमें सेठजीको किसीने एक छापी हुई पुस्तक देदी, उसको देखकर आपको बहुत ही हष हुआ कि जैनियोंमें भी पत्र निकलना शुरू हुआ। आप यकायक सब बांच गए। सम्पादक अपने मित्र सेठ हीराचंदजीको समझकर इनको इस बातसे बहुत खेद हुआ कि सेठ हीराचंद नेमचंदने मुझे सीधे पत्र क्यों नहीं भेजा ? अभी तक सेठ हीराचंदके साथ सेठ माणिकचंदका दिल खोलकर पत्र व्यवहार व मेल नहीं हुआ था। अतएव बहुत सन्मानके साथ सेठ माणिकचंदने अपनी दूकानके नामसे एक पत्र लिखा। पाठकोंको उचित है कि इस पत्रको खूब ध्यानसे पढ़े। इससे उनको For Personal & Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२१७ पता लग जायगा कि ३३ वर्षकी अवस्थामें सेठ माणिकचंदनीके धर्म व जातिकी उन्नतिके सम्बन्धमें कैसे गंभीर व उदार विचार थे। सेठ माणिकचन्द के पत्रकी नकल । " स्वस्ति श्री सोलापुर महाशुभसुथाने पूज्याराध्य दोशी हिराचंद नेमचंद तथा शा. मोतीचंद खेमचंद तथा शेठसरवे जोग मुंबई बंदरथी लि० शा० हीराचंद गुमानजी तथा चिरंजीव भाई पानाचंद तथा माणेकचंद तथा नवलचंद शेठसरवेना घणू करीने धर्मस्नेह वांचजो. जत अत्रे सर्व राजाखुशी छे. आपनी राजी खुशीना कागल लखज्यो. बीजू हमो एहवं सांभल्युं छे के आपने आपना जैन धरमने विशे तथा आपनी हुंबड़नी नात विशे घणी मेहनत लेवा मांडी छे ते सांभली हमो घणा खुशी थया छइये. वली तमोए मासिक चोपानियूं काढयूं छे ते पण घj सारूं उत्तम पगलूं छे, वास्ते मेहरबानी करीने ए मासिक चोपान्यूं हमोने मोकली आपज्यो, अने तेनो जे लवाजम होय ते अगाउथी हमारा पासेथी मंगावी लेजो अने जे दिनथी पेहलो अंक सुरू होय ते दिनथी मोकलज्यो. वली आप सर्व पुन्यशा ळी छो अने सरखे वाते संपूर्ण छो. वास्ते करीने आपणे एक फंड एहवं काढवू जे ते फंडमाथी खर्च करने बे आदमी सारा ज्ञानी अने गुणवान परीक्षा करीने राखवा. तेमने सरखे मुलकमां मोकलवा. अने ते गामोमा उपदेस करे अने नातनी वातोमा सुधारो करे अने ते सर्वे गामोमाथी जे कोई ए फंडमा नाणू आपवा धारे तेना पासेथी उघरावी एक मोहोर् फंड वधे तो खर्च वधारीने सवे देशावरमा एहवां उपदेश करतां माणसो राखी तहानां रिपोट दर महिने मंगाववा अने तहां शं शं बिगाड़ा छे ते सुधारवा अने घरममा केटलोक मिथ्यातनो For Personal & Private Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ ] अध्याय सातवाँ । भाग पेशी गयो छे ते सुधारवो. तथा नातमा केटलाक वांधा तथा तड़ पड़ेला छे ते भेगा करवा तथा दापानो रिवाज काढी नाखवो अने बाललग्न थवा नई देवू जेमके पांच वरसनी कन्या अने पांच वरसनो वर येहवा रीतना लमो नहाणपणमा वेवाह करी मुके छे ते पछी आगल जता घणां बिगाड़ा थाय छे. वली वृद्ध उमरनाने पहसाना लोभथी कन्या आपे छे ने ते विचारी कन्याने बाल रंडापो आवे छे अने पछे आपना धर्म विरुद्ध चाले छे. वास्ते खरो सुधारो ए करवानो छे. वली गुजरातमां रडवा कूट. वानो पण घणो बिगाड़ो छे. ते विशे पण सुधारो करवो. वली जे गाममां आपणा जैन धरमी भाईनी वस्ती वधारे होय तहां जेन पाठशाला कढाववी अने तेनो लवाजम सरवेना माथे नाखवो एहवा प्रकारना सुधारा करवा माटे एक मंडली नेमवी अने तनू फंड चालू करवू एहवा कामोनो आरंभ तमोएज करवा मांडयो छे ते हमो घणा खुशी छईये अने अमारा लायक ए काममा काई काम बतावशो तो बनशे तेटली मेहनत करीशं. गेज कामकाज लखज्यो. जोइतूं करतूं मंगावज्यो. हमारूं ठेकाणुं मुंबइमा मंमादेवी आगल जवेरी माणेकचंद पानाचंदने पोचे ए प्रमाणे सरना करज्यो संवत् १९४१ जेष्ठ बीजा वद ९ सोमे लि० माणेकचंदना जुहार वांचज्यो. हमारे हिन्दीके पाठकगण ऊपरके पत्रका भावार्थ समझ गए होंगे तथापि जो जरूरी बातें हैं उनका भाव नीचे दिया जाता है: " आपने मासिक पुस्तक निकाली है यह बहुत ही उत्तम प्रयत्न शुरु किया है। आप एक फंड ऐसा निकालें For Personal & Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग | [ २१९ कि जिससे दो बहुत अच्छे ज्ञानी गुणवान मनुष्य परीक्षा करके रक्खे जांय और उनको सर्व मुल्क में भेजा जावे और ग्रामोंमें उपदेश करें और जातिकी बातों में सुधार करें और इस फंडमें यदि और लोग पैसा दें तो फंडको बढ़ाकर उसमेंसे सर्व देशावरोंमें उपदेश करनेके लिये मनुष्य रक्खे जाय और उनके का की मासिक रिपोर्ट मंगाई जावे । वहाँ जो २ बिगाड़ हो उसे सुधराया जावे तथा धर्ममें मिथ्यात्वका भाग बहुत घुस गया है उसको दूर करना चाहिये । ज्ञातियोंमें तड़ पड़ गए हैं उनको मिलाना चाहिये । कन्या विक्रयका रिवाज दूर करना चाहिये और बाललग्न नहीं होने देना चाहिये । तथा गुजरातमें रोने पीटने के रिवाज में सुधारा करना चाहिये। बड़े २ ग्रामोंमें जैन पाठशालाएं स्थापित करानी चाहिये । इन कामोंके लिये एक सभा कायम करें | उसका फंड चालू करें इन कामोंका आरंभ आपने जो करना शुरू किया है इससे हमें बहुत ही खुशी है तथा हमारे योग्य कोई सेवा आप बतावेंगे तो हम यथाशक्ति मिहनत करेंगे " अपने अंतःकरणसे जाति व धर्मकी सेवामें अपनी शक्तिको योग देनेकी स्वीकारता बतानेवाली यह चिट्ठी थी इसीलिये सम्पादक जैन बोधकने अपने अंक २ अश्विन शाका १८०७ व अक्टोवर १८८५ सफा १७-१८ में प्रगट कर दी थी । सेठ माणिकचंदजीके पत्रको पाकर हीराचंदजी जाति सुधारके लिये और भी उत्साहसे काम करने लगे । सेठ हीराचंदका जा तथा विद्वान उपदेशक नहीं मिल सक्ते इसी अभी काम में हुए परन्तु त्युन्नतिका प्रयत्न | लिये उक्त सेठजीके उपायको लेनेके पहले दिलमें ही रखते For Personal & Private Use Only 1 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० ] अध्याय सातवाँ । संस्कृत व धार्मिक विद्याकी उन्नतिकी योजना करने लगे। स्वाध्यायके प्रचारार्थ ग्रन्थ भी मुद्रण कराने लगे। शोलापुरमें संस्कृत पाठशाला तो आपने शाके १८०५ पौष मासमें ही चालू कर दी थी, सोलापुरमें संस्कृत उसमें एक मारवाड़ी गृहस्थ शिक्षक नियत पाठशाला। किये गए । इन्होंने १० मासमें कुछ छात्रोंको सारस्वत व्याकरण, अमरकोष, रूपावली, समासचक्र सिखाया । उनके स्वदेश जाने पर शिक्षक न मिलनेसे ४ मास शाला बंद रही थी फिर अक्कलकोटके रा०रा० भीमाचार्यको नियत करके गु० फागुन वदी १० शाके १८०६ से फिर शाला चालू कराई तब १० छात्र भरती हुए ! श्रावण सुदी ६ शा. १८०७ में १९ हो गए इन्हींमें पासू गोपाल शास्त्री भी थे जो उस समय अमरकोश १ कांड, रघुवंश २ सर्ग व एकीभावस्तोत्र पूर्ण कर चुके थेतथा हरीभाई देवकरणवाले सेठ वालचंद रामचंद अमरकोश १ कांड आधा पढ़ चुके थे। इस पाठशालाकी उक्त सेटने इतनी उन्नति की कि शाके १८०८ श्रावण वदी ११ को इसका दूसरा वार्षिक उत्सव किया । उस समय २३ छात्रकी परीक्षा लेक इनाम दिया गया था उस समय पास गोपाल रघुवंश ३ सर्ग, किरा तार्जुनीय १ सर्ग, स्वयंभू श्लोक १५, संस्कृत प्रथम पुस्तक पाठ ५ पढ़ चुके थे। इस वक्त पाठशालाके लिये ६०००) के अनुमान ध्रौव्य फंड भी जमा कर लिया जिसमें सबसे अधिक रकम अपने कुटुम्बसे प्रदान की । इसका वर्णन जैन बोधक सप्टेम्बर सन १८८६में मुद्रित है। For Personal & Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२२१ vya कुरीति निवाणमें यहाँ तक सफलता प्राप्त की कि नवम्बर १८८५ के अंक ३ रेमें १४ महाशयोंकी कुरीति निवारण प्रतिज्ञा प्रगट की कि हम ६० वर्ष पीछे आन्दोलनमें लग्न न करेंगे। इनमें कोठारी केवलचंद सफलता। परमचंद व जोतीचंद भाईचंद बारामती, गुलाबचंद खेमचंद फटलन, नानचंद लक्ष्मीचंद वाटरकर आदि हैं। तथा अगस्त १८८६ के अंकमें ५९ महाशयोंकी प्रतिज्ञाएं प्रगट की कि हम द्वितीय लग्न इतनी उम्रसे आगे नहीं करेंगे। ६५ व ४० वर्षसे आगे लग्न न करेंगे ऐसी प्रतिज्ञा लेनेवाले इनमें ४ महाशय हैं जिनमें ३ आकलनके हैं, ४२ व ४५ वर्षसे आगे न करेंगे ऐसे प्रणकर्ता ४ हैं। ग्रन्थ प्रकाशनका काम भी शुरू करके काव्य प्रकाशिका व सुभाषित छपवाए जिसकी मांग ग्रंथ प्रकाशन कार्य ब्रह्मसूरि शास्त्रीने अपने पत्र वैशाख और ब्रह्मसूरी शुद्ध १२ शाके १८०७ में की है। उस शास्त्रीका पत्र। पत्रकी कुछ नकल यह है।। ,, आपका पत्र आया....चिकपेटाके मंदिरकू कवाड़ दो तयार होके धर दिया. बाकी कवाटका काम चलते है । तथा जिननाथपुर मंदरका काम चार महिना वायदा करके पांचशे पचास रुपये• गुत्ता दिये हैं और काव्यप्रकाशिका तथा सुभाषित छपाये सो पुस्तक दोनोकू जल्दी भेज देना ) हमारे पास बहुत ग्रंथ अपूर्व हैं । प्रत्यंतर अभावसे नष्ट होता है । यह सब ग्रंथ प्रत्यंतर करनेका तरतूद जरूर आप कर देना । बड़े पहाड़ऊपर शिडी For Personal & Private Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२] अध्याय सातवाँ । (पायरी) करनेका काम कुछ हुवा नहीं है । वैशाख शुद्ध १२ शके १८०७ मुक्काम श्रवण बेळगुळ ब्रह्मसूरि शास्त्री. . इस पत्रसे यह भी पता लगेगा कि शास्त्रीजी अपने भंडारके ग्रंथों के प्रकाशनके लिये बड़े उत्सुक थे तथा जो मरम्मत व सीढ़ी आदिके कामके लिये सेठ हीराचंद व माणिकचंदनी अपनी यात्रामें कह आए थे उनकी पूर्तिका उनको कितना बड़ा ख्याल था । उम समय नागपुर गादीके भट्टारक विशालकीर्ति बड़े प्रसिद्ध थे, ‘विद्वान भी थे। आपने एक पत्र सेठ हीराचंदको भाद्र वद ३ शाके १८०७ को लिखा है जो जैनबोधक अंक ५ जनवरी १८८६ में छपा है इसका कुछ अंश प्रगट किया जाता है। " जैन बोधक देखके हर्ष हुआ। इससे जैन मतकी प्रसिद्धि करने में सुलभता होगी। जैन मतके पूजा पाठादिक व पुराणस्तोत्र पाठादिक लेखकोंकी अज्ञानतासे अशुद्ध पाई जाती हैं उनको शुद्ध कराकर प्रगट करो । जैन धर्मी स्वतंत्र छापाखाना रक्खों । उसकी वर्गणी करो हम मी शामिल होंगे। जैनियों के सिवाय दूसरोंको न वेचें । जो पुस्तक छपे वे पहले विद्वान मंडलीसे शुद्ध करा ली जावें।" सन् १८८७में उक्त भट्टारकने शोलापुरमें चातुर्मास किया था। दोनो वक्त शास्त्रका व्याख्यान करते थे । एक दफे सभामें यह प्रश्न हुआ कि रात्रिको अभिषेक व अष्ट द्रव्यसे पूजा करनी या नहीं आपने समाधान दिया कि- रात्रि अभिषेक किंवा अष्ट द्रव्योंसे पूजा करना योग्य नहीं। त्रिकाल पूजा करनेके अर्थ यह है कि रात्रीको पूजा न करना। सवेरे अभिषेक और अष्ट द्रव्यसे पूजा करनी, ..... . दुपहरको पुष्पोंसे पूजन करना ओर संध्याको For Personal & Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग | [ २२३ दीप धूपसे पूजा करना ऐसा त्रिकाल पूजाका अर्थ है । भट्टारक विशालकीर्तिके पुस्तक भंडारकी सूची जैन बोधक अंक २७-२८ नवम्बर व दिस भट्टारक विशालकीर्ति । सं. १८८७ में मुद्रित हैं । इनमें अपूर्व ग्रंथ ये हैं । युक्तयनुशासन सटीक, २ अष्टसहस्त्री सुनहरी स्याहीकी लिखी हुई, ३ यति प्रायश्चित्त, ४ क्रियाकलाप सामायककी संस्कृत टीका, ५ आचारसार वृत्ति वसुनंदी सिद्धांतिकृत, ६ श्वेताम्बर पराजय ग्रंथ, ७ परमत सार ग्रंथ, ८ पच्चखान भाषा, ९ रमल शास्त्र संस्कृत, १० वैद्यसार ग्रन्थ सटीक, ११ एकाक्षरी निघंट, १२ चंडकृत व्याकरण प्राकृत । गु० संवत १९४३ के जाड़े में फिर सेठ माणिकचंदजी के चित्तमें तीर्थ यात्रा करनेकी उमंग हुई। यात्रा श्री त्रुंजयादि । इस समय भी सिवाय नवलचंदजी और उनकी पत्नी के सर्व ही सेठजीका परिवार पानाचंदजी तथा रूपाबाई आदि श्री केशरियाजी गिरनारजी सेतुंजयजी आदिकी यात्राको रवाना हुए। साथमें करीब २०० मनु ष्योंका संघ था। प्रथम ही श्री शेत्रुंजयजी पहुंचे। उस समय यहाँ पालीतानामें नीचे एक पुरानी धर्मशाला थी जो अब भी वर्तमान नए मंदिरजीके पीछे है तथा नये मन्दिजीके सामने एक छोटेसे मकान में श्री पार्श्वनाथ स्वामीकी एक छोटी प्रतिमा विराजमान थी । पहाड़पर दो मंदिर जुने थे जो अब भी हैं । एक छोटेको श्वेताम्बरियोंने छीन लिया है। बड़ा मंदिर कहते हैं कि किसी धनाढ़य भैंसा साहुने बनवाया था। इसमें मूल नायक श्री शांतिनाथ For Personal & Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ] अध्याय सातवा | स्वामी हैं, संवत १६८६ है । इस पर्वत से दि० जैन शास्त्रानुसार गत चतुर्थ कालमें श्री युधिष्ठिर मीमसेन और अर्जुन ऐसे तीन पांडव और ८ कोड मुनि मोक्ष पधारे हैं। सेठजी संघ सहित पहुंचे तो वहाँ ठहरने की बहुत तकलीफ मिली क्योंकि पुरानी धर्मशालाको राज्यने रोक रक्खा था वहाँ कोई प्रबन्ध ठीक नहीं पाया जिससे चित्तमें बहुत उदासी हुई। उस समय वहाँ कोई मुनीम भी नहीं था; केवल पुजारी व नौकर थे, सो भी बहुत ही अव्यवस्थित । सेठजीने, श्वेताम्बर समाजके बड़े २ मंदिर व रमणीक धर्मशालाएं.. देखकर और अपनी स्थितिका मिलानकर बहुत ही खेद माना और दिगम्बरियोंके आलस्यकी अतिशय निन्दा की । यहाँ पहले भवानीप्रसाद नामका एक दिगम्बरी चालाक मुनीम या सो संवत १९४१ तक काम करता रहा था । उस समय राजा पालीताना और श्वेताम्बरियोंमें बहुत झगड़ा चलता था । राजा और भवानीप्रसादका मेल था । इस अवसर को देखकर यह चाहता था कि शहरमें एक बड़ा मंदिर बनवानेको राजासे जगह लेलूं | सो उद्योग करके राजासे इसने वह जगह जहाँ पर अब नया मंदिर है लेली । राजाने बिना किसी लिखा पढ़ीके देदी। यहाँ कुछ मकान बने हुए थे। यह राजाको मुकदमे में मदद करता था । भावनगर के दिगम्बर जैन पंचोंके हाथमें यहाँका प्रबन्ध था । वहाँ दिगम्बरी व श्वेताम्बरीमें मेल था । श्वेताम्बरियोंने मुनीम भवानीप्रसादकी ऐसी शिकायतें की जिससे भावनगर के लोग भवानीप्रसादसे नाराज़ हो गए । भवानीप्रसादने जमीन लेकर भावनगरखालोंसे रुपया मांगा कि मंदिरका काम शुरु हो परन्तु उन्होंने मूनीमको रुपया नहीं भेजा तब इसने For Personal & Private Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजी करीब ४० वर्षकी अवस्था में. J. V. P. Surat. (देखो पृष्ठ २४० For Personal & Private Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२२५ लाचार हो २१०० ) राजासे उधार लिये और मंदिरका काम चालू किया, इसनेहीमें राना पूनेमें गुजर गया तब भवानीप्रसादको श्वेताम्बरियोंने बहुत दिक किया एक रात्रिको भाटोंने इसे इतना पीटा कि यह विचारा अपनेको असहाय देखकर मंदिरकी कुंजियां आदि अपने नीचे जो एक श्वेताम्बरी पुनारी था उसे सौंपकर चल दिया। राजाके मरनेके बाद रियासतसे २१००) का व्याज सहित तकाजा होने लगा तथा जो जमीन राजाने दी थी पर लिखा पढी नहीं की थी उसके दाम मांगे जाने लगे। रियासतने २१००) के बदले उस पुरानी धर्मशालाको कबजे में कर लिया और उसमें एक मुसलमानको रख दिया था। ऐसे ही अवसर पर सेठनी पहुंचे थे सो इनको यहांकी व्यवस्था देखकर बहुत खेद हुआ। यात्रा करके सेठनी संवसहित भावनगर भी गए । वहाँके पंचोंको श्री सेव॒नयकी अव्यवस्थाके कारण बहुत धिक्कारा । वहाँके दि० लोग ऐसी गफलतमें थे कि भवानीप्रसादके स्थान पर किसी श्वेताम्बरी जैनको मुनीम रखनेका विचार कर रहे थे । सेठ माणिकचंदनीने उनको मना किया और यही जोर दिया कि किसी धर्मात्मा दिगम्बर जैनी ही को मुनीम रखना चाहिये जिससे तीर्थकी सुव्यवस्था हो । भावनगरवालों के पास पालीताना तीर्थके १८०००) रु. जमा थे पर उसको उपयोगमें न लगाकर केवल पैसा जमा करना ही जानते थे। वहाँ वालोंने सेठजीको कहा कि आप ही किसीको बताइये। इतनेहीमें इनको सजोत निवासी धर्मचंद हधर्मचंदजी पालीता- रमीवनदासकी याद पड़ गई जिसने सेठजीको नाके मुनीम । त्यागी महाचंद्रनीका भनन भेजा था व जिसने सुरतकी प्रतिष्ठा समय कहा था कि मुझे For Personal & Private Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ ] अध्याय सातवाँ । अनाजके व्यापारसे छुड़ाकर किसी अच्छे काममें लगा दो। सेठनीको अपनी बातका बहुत खयाल रहता था। आपने तुर्त कहा कि आप लोग सनोत पत्र देकर धर्मचंदजीको बुला लेवे , वह बहुत धर्मात्मा और सच्चा आदमी है। सेठजी तो संघको लेकर श्री गिरनार आदिकी यात्रा करते हुए केशरियाजी गए । वहाँ भावसे यात्रा करके खूब दान पुण्य करते हुए बम्बई लौट आए। उधर भावनगरके पंचोंने तुर्त धर्मचंदको पत्र लिखा । धर्मचंद पत्र पाते ही गद्गद् हो गया। ग्रामकी छोटीसी दूकानमें काम करते हुए दुःखी रहता था । इसकी स्त्री भी मालमता बेचनेमें चतुर थी। प्रायः गुजरातकी स्त्रिया छोटे२ दूकानदारोंको व्यापारमें मदद दिया करती हैं । धर्मचंदने दूकान स्त्रीको सौंपी और आप तुर्त भावनगर आ गया । वहाँ वालोंने भी इसको जिनेन्द्र भक्त व धर्मात्मा देखकर इसे मुनीम नियत कर पालीताने भेजा। यह १ मास रहे पर स्वीके विना भोजन बनानेका कष्ट रहता था सो छुट्टी लेकर घोघा बन्दरसे जहाज़ पर सूरत आए। यहाँके दिगम्बर जैन पंचोंको पालीतानामें नया मंदिर बननेकी आवश्यक्ता व वहाँकी दुर्व्यवस्था वर्णन की। यहाँसे अक्लेश्वर जा सजोतकी दूकानको उठा मालमता बेंच स्त्री सहित धर्मचंदजी पालीताना पहुंचे और जहाँ प्रतिमा विराजमान थी उसीके एक तरफ यह स्त्री सहित रहने लगे और सर्व काम सम्हाल कर सेवा पूनामें दत्तचित हो गए । सेठ माणिकचंदको वारवार पत्र लिखा कि आप एक दफे यहां आकर व्यवस्था ठीक करावें For Personal & Private Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२२७ सेठ माणिकचंदने सं० १९४४ में नवलचंद सेठको भेना। सेटनी सपत्नीक आए और यात्रा करके बहुत आनपालीतानाके लिये सेठ न्दित हुए। धर्मचंदजी भनन भाव व पूनाने नवलचंदका प्रयत्न । बहुत निपुण थे । नवलचंदनीका मन अपने में मोहित कर लिया। यह वहाँ धर्म सेवन करते हुए एक मास ठहरे। इस बीचमें इन्होंने सर्व व्यवस्था ठीक कराई । घोघा बन्दरमें त्रिभुवन बावा नामके एक खटपटी इलाल थे । वह भी इनके साथ रहे । इन्होंने राज्यसे पुरानी धर्मशालाको छुड़ाया।२१००)का व्याज जोड़के रु. ३२४८) रानाको भावनगरमें जो १८०००) तीर्थके जमा थे उसमेंसे दिये। राज्य नये मंदिरवाली जमीनका रुपया मांगता था और इसी लिये वहाँ भी कुछ काम नहीं करने देता था अतएव सेठ नवलचंदने १०-) गजके भाव में फैसला करके रु० १४०००) उस १८०००) मेंसे देकर ज़मीनको अपने कबजेमें किया और मंदिर बनानेका काम शुरू किया जाय इस विचारमें दृढ़ हुए। बम्बई आकर भाइयोंसे सब हाल कहा । सेठ माणिकचंदजी - नवलचंदकी कारवाई पर बहुत प्रसन्न हुए पालीतानामें नये म ' और भावनगरवालोंको लिखा कि आप पांच न्दिरका प्रबन्ध । प। आदमी चंदेके लिये बाहर निकले तथा मंदि - रका काम शुरु करा दें। जो रुपया खर्चको चाहिये वह हमारी दूकानसे मंगाते रहें, चंदा आने पर वसूल हो जायगा। अब इस शुभ कार्यमें देर न करें । भावनगर व घोघावालोंने इस बातको स्वीकार किया। सेठ माणिकचंदजीसे १०००) मंगाकर काम शुरु कराया For Personal & Private Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ ] अध्याय सातवाँ। और भावनगरके सेठ नरोत्तम भीखाभाई व घोधेके त्रिभुवन बावा आदि ५ महाशय पहले शोलापुर आए क्योंकि जैसे अब शोलापुर दान करनेमें प्रसिद्ध है ऐसे पहले भी था। वहाँसे तार करके बबईसे सेठ माणिकचंदनीको बुलाया। सेठजीको धर्मकार्योमें बिलकुल आलस्य न था । आप फौरन गए और वहाके पंचोंको सर्व हाल समझा करके ३५००) रु० का चंदा कराया। उस समय सेठ हरीभाई देवकरणने मंदिर बनने पर प्रतिष्ठा कराना स्वीकार किया। इनके साथमें सेठ रावजी कस्तूरचंद हो गए और यह ठहरा कि प्रतिष्ठाके समय जो वर्च पड़े उसके दो भाग हरीभाई देवकरण और १ भाग रावजी कस्तूरचंद खर्च करें तथा उस समय तीर्थके भंडार में ११०००) दोनों देवें । सेठ माणिकचंदजो इस बातको पक्की कराके अपनेको बहुत ही पुण्यवान मानते हुए। आप बम्बई लौट आए और उन लोगोंको और स्थानों में चंदा करने भेजा । मुनीम धर्मचंदजी धीरे २ सर्व व्यवस्था सुधारने लगे और बड़े ही भावसे नए मंदिरजीको तय्यार कराने लगे। सेठ माणिकचन्दनीकी खास प्रेरणासे मुनीम धर्मचन्दजी प्रति ____ वर्ष आमद खर्चका हिसाब बनाकर भावनगर तीर्थक हिसाबका और बम्बई भेजने लगे। जैनबोधक अंक मुद्रण। ३०-३१ मास फेब्रुआरी-मार्च सन् १८८८ में सं० १९४३ और १९४४ का हिसाब मुद्रित है For Personal & Private Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२२९ हिसाब सं० १९४४ कार्तिक सुदी १ से फाल्गुण । वदी ३० तक। खर्च १५)। शिलक १३२॥)। इमारत खाते ५८२%)॥ भंडार उत्पन्न १० )। शुभ खाते ३०-) शुभ खाते i) जीवदया १४॥-) जीवदया खाते ८१) भावनगर ॥-) फुटकल २२)। फुटकल __-)॥ केशर वास्ते गोटी जवेर २०)॥ भावनगरसे रजपूत उका २॥) गोठी जवेर खाते रजपूत नबू ॥-) चांदवा बांधनेको लोहेके ६६५॥2) सिकचे कराये ३०२॥=)। शिलक श्री सेव॒जयकी यात्रासे लौटकर सेठजीने प्रेमचंद व अपनी दोनों पुत्रियोंकी शिक्षा पर विशेष ध्यान बालकोंकी शिक्षा। दिया। फुलकुमरीके साथ मगनमतीजीको भी गुजराती शालामें भेजने लगे । फुलकुमरीकी अपेक्षा इसकी बुद्धि बहुत तीक्ष्ण थी, पढ़ने में इसका मन भी अच्छा लगता था। शालासे सीख कर आवे उसे घर पर देखे । घर पर जो शिक्षक आता था वह भी बहुत भावसे तीनोंको शिक्षा देता था। For Personal & Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० ] अध्याय सातवाँ। सेठ माणिकचंद बहुत मिलनसार थे। समाचार पत्र देखते रहते थे। सं० १९४३ व सन् १८८७के फेब्रुजुबिलीपर बम्बई में आरी मासकी १६ तारीखको महारानी गौवध बन्द। कीन विक्टोरियाकी जुबिली भारत ___ वर्षमें बड़े धूमधामसे मनाई गई। उस दिन कोई भी मुसल्मानादि गौवध न करे ऐसी अर्जियाँ बम्बईके गवर्नरसाहबके पास भेजी गई । जैनियोंकी तरफसे अर्जी भिजवानेमें सेट माणिकचंदने बहुत प्रयत्न किया । इनका फल यह हुआ कि उस दिन किसीने भी गौवध न किया । मुसल्मानोंने इस बातको अच्छी तरह मान लिया ऐसा जानकर ता० २३ फेब्रुआरीको नामदार गर्वनरने प्रशंसाजनक यह प्रस्ताव प्रसिद्ध किया कि हिन्दू और पारसियोंकी इच्छानुसार मुसल्मान लोगोंने श्रीमती महारानी क्वीन विक्टोरियाके सन्मानार्थ जुबिलीके दिन जो गोवध न किया यह बहुत आनंदकी बात है । बम्बईके सर्व लोग परस्पर एकता रखते हैं यह तारीफकी बात है। ___ बम्बईमें बहिरामजी दीनसानी पांडे नामके गृहस्थ थे जो स्वतः मांसाहारके त्यागी थे तथा अन्य पारपारसियोंमें मांसाहा- सियोंसे मांसाहार छुड़ाते थे । सेठ माणिकरकी बन्दी। चंदकी इनसे मुलाकात थी । इस गृहस्थने अगस्त १८८६ में एक मांसाहाररहित भोजन दिया जिसमें २०० पारसी शरीक हुए । इनमें बहुतसे मांसाहारके त्यागी भी कुछ प्रयत्न करनेवाले थे । भोजनके पीछे सभा भी हुई थी उसमें सेठ माणिकचंदनी भी गए थे । बहिरामजीने अपने भाषणमें For Personal & Private Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से क्या २ का लक्ष्मीका उपयोग । [२३१ कहा कि धान्य, वनस्पति और फलोंसे कैसे २ उत्तम भोज्य बनते हैं इसीके दिखानेके लिये यह भोज्य दिया गया है। ऐसे भोजनसे क्षुधा भी तृप्त होती है व आवश्यक शक्ति भी पैदा होती है । मनुष्य अपने खानेके लिये गरीब पशुओंको मारे यह नेचरके नियमके विरुद्ध है । घोड़ा ऐसा शक्तिशाली प्राणी वनस्पति खाकर रहता है तब मनुष्योंको इसकी क्या जरूरत है ? कलकत्तेमें जैसी मांसाहार वर्जक मंडली है वैसी यहाँ भी होना चाहिये तथा कहा कि थोड़े दिन बाद पारसी स्त्रियोंके लिये भी ऐसा भोजन मैं दूंगा। तथा सभामें रुस्तमजी होरमसजी मास्टरको पेश किया जो ३० वर्षसे मांस नहीं खाते और सब तरह तन्दुरस्त थे । अंतमें मांसाहार न करनेसे क्या २ फायदे होते हैं ऐसी इंग्रेजीकी पुस्तकें बांटी गई। सेठजी भी इस पुस्तकको लाए । सेठजी अपने पास जहाँ कहीं सफरमें जाते १०-१५ ऐसी पुस्तकें रखते थे और रेलमें समझदार लोगोंको जिन पर शंका होती थी कि यह मांस खाते हैं बांटते रहते थे और जवानी भी बात करके उनसे इससे घृणा पैदा कराते थे। वास्तवमें भारतसे मांसाहार मिटानेका उपाय शाकाहारका जीमन मांसाहारियोंको खिलाना व पुस्तक बांटना है इसीसे विलायतमें बड़ी सफलता हुई है। इसी वर्ष सन् १८८७के प्रारंभमें कलकत्तेमें प्रथम ही कांग्रेस ___ अर्थात् भारतकी राष्ट्रीय सभाका अधिवेशन कांग्रेस प्रारंभ । प्रारंभ हुआ जिसमें बाहरसे ३५० प्रतिनिधि ___ पधारे । राजसम्बन्धी क्या २ सुधार करने इसपर विवेचन होकर प्रस्ताव पास हुए। । सेठजी और रेलमें सन For Personal & Private Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ ] अध्याय सातवाँ | सेठ माणिकचंदका कुटुम्ब पहले जब सुरतसे बम्बई आयातब एक किराए के मकान में ही जौहरी बाज़ार में जुबिलीबाग का निवास रहता था। जब सं० १९२७ में दूकान और ताराचंदका खोली तब वह भी एक किराए के मकान में ही थी पर द्रव्यकी वृद्धि होनेपर सं० १९३५ में मोती बाजार में एक बड़ा मकान जन्म | ४ खनपर खरीद किया, जबसे उसीमें दूकान रक्खी व वहीं रहने भी लगे । तथा आज भी सेठ माणिकचंद पानाचंदका फर्म उसी मकान में है । शहरकी घनी वस्तीसे कुछ दूर खुले स्थानपर तारदेव मुहल्ले में एक जुबिलीबाग नामका स्थान था । इसको सं० १९३८ में करीब २५०००) में खरीद किया था । अब इसमें बहुतसी दूकानें हैं भीतर कमरे हैं बीचमें बंगला है आगे बगीचा है । इसमें श्राविकाश्रम है । कई वर्ष बाद उस बागकी इमारत के ठीक होने पर हवाकी स्वच्छता के कारण सर्व कुटुम्ब इस बागमें रहने लगा । सेठ नवलचंदकी स्त्री प्रसन्नकुमारीके कुछ वर्ष पहले एक पुत्रीका जन्म हुआ था पर उसका जीवन अल्पकाल ही रहा और वह चल बसी । सं० ० १९४५ मिती कार्तिक सुदी २ का दिन सेठ नवलचंद और उनकी पत्नीको बड़ा ही आनन्दवर्धक हुआ क्योंकि उस दिन इनको एक पुत्रका लाभ हुआ । पुत्रके जन्मसे तीनों भाइयोंको बड़ा ही हर्ष हुआ। मंदिरजीमें पूजा कराई गई, यथोचित दान पुण्य किया गया सम्बन्धियोंको तृप्त किया गया, और पुत्रका नाम ताराचंद रक्खा । पुत्रकी रक्षाका सेठ नवलचंदने पूरा २ यत्न किया, For Personal & Private Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२३३ माता भी बड़े यत्नसे रहकर पालन करने लगी। इन सेठोंके यहां सं० १९३६से ही गाड़ी घोड़ा था। इससे जुबिलीबागसे शहर आनेजानेमें इनको कोई कठिनता नहीं थी । तथा जुबिलीबांगका स्थान टाम्वेके पास ही है । ट्रामके द्वारा कुछ ही मिनटमें चाहे जहां जा सक्ते थे। सेठ माणिकचंदनीका ध्यान चारों तरफ रहता था । व्यापारके अवसर भी देखा करते थे। पाठकोंको मालूम जमीनका व्यापार । ही है कि इनका खास व्यापार विलायतसे शुरू हो गया था। ३ वर्ष तक इनका विलायतका व्यापार ऐसा चला कि उसमें इन्होंने दुगने तिगने भी किये और बहुत रुपया कमाया पर आगे चलकर इतनी उपज नहीं रही। इसका कारण यह हुआ कि जब इन्होंने व्यापार शुरू किया था तबतो यह और साकरचंद लालूभाई दो ही व्यापारी विलायतको मोती भेजने वाले थे। अब कई हो गए तथा विलायत वाले भी आफर बहुत खींच कर देने लगे। जो नए भेजने वाले थे वे थोड़ेसे ही नफेमें माल वेचने लगे । अतएव ३ वर्ष बाद मालमें सवाए व कभी २०) व १५) सैकड़ेसे अधिक लाभ नहीं होता था जिसमें फ्रामजी सन्सका कमीशन व खरचा बहुत पड़ जाता था। संवत १९४५ में सेठ माणिकचंदजीने हीरेके एक प्रसिद्ध मुलाकाती व्यापारी सेठ अबदुल हुसेनके साझे ज़मीनको खरीदने और बेचनेका व्यापार शुरु किया। इसमें भी इन्होंने कई लाख रुपया पैदा किया व बहुतसे मकान व ज़मीन अपने उपयोग व भाड़ा पैदा करनेके लिये अलग रख ली। दो तीन वर्ष तक इसका व्यापार भी खूब चला । For Personal & Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ ] अध्याय सातवाँ । पाठकोंको मालूम है कि सेठ पानाचंदकी द्वितीय स्त्री नवी बाई भी कम संयोगसे सदा बीमार और सेठपानाचंदकी द्वीतीय अशक्त रहा करती थी। रुपाबाईनी बड़ी स्त्रीकी मृत्यु । शांतिसे सर्व बरदास्त करती थी । किसीसे कभी लड़ने झगड़नेका अवसर नहीं आने देती थी। श्री सनयकी यात्रासे लौट कर यह बहुत बीमार हो गई और थोड़े दिन दुःख सह कर शरीरको त्याग गई। इसके द्वारा सेठ पानाचंदनीको सन्तति रत्नका लाभ नहीं हुआ। सेट पानाचंदनीको यद्यपि धनागम व प्रतिष्ठा लाभकी वृद्धिका सम्बन्ध खूब हुआ था पर इनको स्त्री व पुत्रके द्वारा अबतक मनको सन्तोष प्राप्त नहीं हुआ था। वास्तव में यह संसार ऐसा असार है कि इसमें कोई भी प्राणी इतने भारी पुण्यके उदयको नहीं रखता है जो सत्र तरह निराकुल और सुखी रहे । इसीसे योगीनन सांसारिक सुखकी आशाको छोड़कर आत्मिक आनन्दके लाभको ही श्रेष्ठ लाभ मान उसीके लिये प्रयत्नशील रहते हैं। सेठ माणिकचंदनी भी अब इसी जुबलीबागके बंगलेमें रहते थे। प्रतिदिन रोटी खाके दूकान जाते थे । सेठ माणिकचंदके शामको लौट आते थे। धर्मसाधनार्थ श्री पगमें अमिट जिन मंदिरजी कभी पैदल कभी गाड़ी पर चोट। जाते थे। इस समय फुलकुमरीकी उम्र १३ व मगनमतीकी ११ वर्षकी थी। पहली ४ व दूसरी ३ चौपड़ी गुजराती तक पढ़ीं थीं। सेठ माणिकचंदनीको ट्राइसिकिल पर चढ़ना सीखनेका शौक हुआ। आप रोज़ For Personal & Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२३५ शामको सीखते थे। एक दिन आप ठोकर खाकर इस तरह गिरे कि टांगकी हड्डीमें ऐसी भारी चोट आई कि जिससे जन्म पर्यंत टांग सीधी न हुई। पैरका सांवा उत्तर गया। अब उनका दौड़ कर चलना सदाके लिये बन्द हो गया। बहुतसे पारसी हड्डी ठीक करनेवालोंकी दवा की पर आर.म नहीं हुआ। कुछ दिन तक जाना आना कम करना पड़ा । सेठनीको चोट लगी देखकर चतुरबाईको बहुत दुःख हुआ। यह बाई जरा सुकुमार अंगी और अशक्तिके कारण कभी कभी कठोर मन हो जाती थी व चिढ़ जाती थी। इस समयमें इसने घरके कामकाजके कारण दोनों छोकरियोंका पढ़ना शालामें बन्द करा दिया । यद्यपि सेठजीकी टांगमें हड्डीकी चोट आनेसे अशक्ति होगई थी तो भी आपका साहस किसी भी काममें कम नहीं हुआ था । अब आपको चलते वक्त एक लकड़ी रखनी पड़ती थी । लकड़ीके सहारे आप और मनुष्योंकी तरह रास्तेमें चलते थे व विना लकडी भी. थोड़े बहुत कदम चल सक्ते थे । इन दिनों प्रछाल पूजनमें अंतराय आगया था पर दर्शन व स्वाध्याय आप बराबर करते थे । दूकानपर जाकर व्यापार करने में कोई त्रुटि नहीं थी । वास्तवमें विचार किया जाय तो इस कर्म ग्रसित प्राणीको कोई न कोई विघ्न आही जाता है जिससे यह अपनी शक्तियोंको इच्छानुसार वर्तन करनेमें लाचारीसे असमर्थ हो जाता है। ऐसी दशामें भी जन्मभर आपने मिहनत की। प्रतिदिन शामको दो दो मील पैदल विहार किया है। कभी आलस्य प्रमादको अपने में नहीं आने दिया । For Personal & Private Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ ] अध्याय सातवाँ | एक दिन सेठ माणिकचंदने भाई पानाचंद और नवलचंद से सम्मति की कि सूरत में यात्रियोंके आरामका सूरतमें चन्दाबाड़ी व अपनी बिरादरीके जमीन आदि उत्सव करने का कोई स्थान नहीं है अतएव श्रीचंद्रप्रभुजी के मंदिर के पास के स्थानको लेकर एक धर्मशालाका निर्मार्पण | सुन्दर धर्मशाला बनवा दीजाय तो बहुत अच्छा है । भाइयोंने पसन्द किया और इस कार्य में २००००) खर्च करनेका निश्चय किया । सेट माणिकचंद सूरत आए और नकसा वगैरह ठीक करके काम लगा गए । यह धर्मशाला संवत् १९४८ में बनकर तय्यार होगई । यह बहुत सुन्दर कमरोंसे शोभायमान है, हरतरहका आराम है । जीमनके लिये बड़ा स्थान है । इसका नाम भाइयोंने श्री चंद्रप्रभुके नामसे चन्दावाडी रक्खा । तथा इसके खर्चको चलाने के लिये इसके आधीन बम्बईके पहले भोईवाड़े में एक मकान ले लिया और इस वाड़ी व मकानको संवत १९५६ में एक ट्रष्ट कमेटी के आधीन करके उसका ट्रष्ट कर दिया। इससे परदेशी जैन यात्रियों को ठहरनेमें बहुत आराम मिलता है । पालीतानामें पाठकों को मालूम ही है कि धर्मचंद मुनीमके द्वारा मंदिर निर्माणका काम चल रहा था परंतु इससे ही सेठजीको संतोष नहीं हुआ वे हरमासके कामका व्यौरा मंगाते थे और जब कभी आवश्यता होती फौरन चले जाते थे । For Personal & Private Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [ २३७ सं. १९४८ तक आप ७ या ८ वार पालीताना गए । इनके साथ इनकी पुत्री मगनमती सदा जाती पालीतानामें दौरे थी। सेठजी इसको अपने पुत्रके समान और मदद। मानते थे। हरतरहकी शिक्षा देते थे। मगनमतीका भी मन सदा पिता ही के साथ भरता था लड़कईसे साथ २ भोजन करने व बैठनेकी आदत पड़ गई थी। पालीतानामें काम देखते देखते कभी दोपहर होजाती थी पर मगनमती पिताके विना भोजन नहीं करती थी उन्हीके साथ आप भी काम देखा करती, जब सेठजी खाते तब ही जीमती । कई २ घंटे तक कभी २ इसे अपनी भूख दाबनी पड़ती थी। सं. १९४८ तक मंदिरके बनने में बहुतसा रुपया बाहरसे आकर लगा तो भी सेठनीको धीरे २ करके १०००० ) पालीताना क्षेत्रके नाम लिख कर भेजना पड़ा। पालीतानामें एक बड़ी धर्मशालाकी आवश्यक्ता है ऐसा सेठजीके मनमें खटका करता था । नदीके पालीतानामें धर्मशा. तट भैरोपुरा अब वसता है पहले वहां जंगल लाके लिये जमीन । था जब कभी सेठजी उधरसे जाते मुनी ___ मजीको कहते थे कि देखो यह जमीन आगे चलके बहुत कीमती होजायगी इससे इसे मौका लगे तब जरूर खरीद लेना ज्यों २ ढीलकी गई दाम बढ़ गए आखिर ॥) गन पर २७००)में जमीन खरीद ली। रुपया जो कम पड़ा सो सेठोंकी दुकानसे मंगाया गया । यद्यपि मंदिरजी सं. १९४८ में तय्यार हो चुका था पर इसकी प्रतिष्ठाका महूर्त संवत् १९५१ में बना था। For Personal & Private Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ । अध्याय सातवाँ । कभी २ सेठजीको अपने पुत्र न होनेका ख्याल आजाता था। यद्यपि मगनमतीके जन्मके पीछे एक पुत्रका सेठजीको पुत्र की जन्म हुआ पर वह ९ मास पीछे ही मर आशा। गया अब फिर चतुरमतीको गर्भ रहा था और सेठनीकी आशाके अनुसार इस वार भी पुत्रका जन्म हुआ। सेठजीने कोइ खास उत्सव नहीं किया । वह पुत्र धीरे २ बढ़ने लगा। चंदावाडीको स्थापित करके बम्बई आने पर परस्पर माइयोंमें सम्मति हुई कि अपने सर्व कुटुम्बको रत्नाकर पैलेसकी एक साथ उत्तम वायुके स्थान पर रहने स्थापनामें करीब योग्य एक मनोहर बंगला ऐसा निर्मापण १॥ लाखका करना चाहिये जिसमें एक चैत्यालय भी खच । स्थापित किया जाय जिससे धर्म साधनमें किसीको कभी अंतराय न पड़े इसमें एक लाख डेढ़ लाख रुपये के अनुमान खर्च करना विचार किया गया । सेठ माणिकचंदने शास्त्रों में स्वर्गीय महलों व चक्रवर्ती राना आदिके महलोंका वर्णन पढ़ा था । चित्तमें उमंग हुई कि इन्द्र महल समान महल समुद्र तट पर बहुत ही रमणीक पाषाण और ईटका बनवाया जाय । बम्बई में चौपाटी समुद्रके तट पर एक ऐसा स्थान है जहां पर शहरके सर्व ही भले नर नारी शामके वक्त सैर करने जाया करते हैं । सेठजीने ऐसी जमीन इसके लिये तनवीन की जिसके एक ओर बी० बी० सी० आई रेलवे जाती है और दूसरी ओर समुद्र तट परकी बड़ी सड़क है इस ज़मीनको २४०००) रु० में खरीदा For Personal & Private Use Only ___ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग | 1 [ २३९ ओर इस विस्तार पूर्ण जगह में ऐसा महल बनानेका नक्शा तय्यार किया कि जिसमें सड़ककी तरफ आगेको बागीचा हो, भीतर गाड़ी घोड़ा बांधने व सहीसोंके रहने की जगह हो । आगेको नीचे और ऊपर बड़े २ हॉल हों जिनमें पांच पांच सौ आदमी बैठ सके । हॉलके आगे ऊपर व नीचे सुन्दर बरामदा हो । चारों भाइयोंक आराम के लिये अलग २ कमरे हों व और भी पुत्रों के लिये कमरे हों व कोई बाहर के महमान आवें उनके भी ठहरनेका स्थान हो । हरएक कमरे में स्नान घर, पानी रखनेकी जगह हो, रोशनी व हवा खूब आ सके तथा इसीसे लगा हुआ एक हॉलमें चैत्यालय हो जिसके आगे भी १५० आदमीके बैठनेकी जगह हो और इस चैत्यालय के ऊपर कोई मकान न हो तीसरे खनमें भी कमरे हों और स ऊपर एक ऊंची टावर (Tower ) हो जो दूरसे दीखे और जिमपर खड़े होकर दूर तक समुद्र और नगरका दृश्य दिखलाई पड़े | रसोईका स्थान एक कोने पर रक्खा कि किसी तरह धुआं किसी बैठने व सोनेके कमरे में न जा सके । मलविसर्जनका स्थान और भी दूर रखखा गया कि उसकी दुर्गंध कहीं भी नहीं आ सके। ऐसे महल बनानेका नक्शा बनवाया और सर्व भाइयोंने उसे पसन्द किया । इस समय प्रेमचन्द भी १४ वर्षके हो गए थे स्कूलमें बहुत मन लगाकर इंग्रेजी पढ़ते थे। मैट्रिकुलेशन में एक ही वर्ष पहुंचने को भी रहा था। प्रेमचन्दको नक्शा पसन्द कराया । रूपाबाई माता भी बड़ी चतुर थी उसे भी दिखलाया । सबकी राय पड़ने पर सेठ माणिकचंदजीने एक बहुत चतुर मिस्त्रीके सुपुर्द यह काम कर दिया । आप नित्य प्रति घंटा दो घंटा देख चाल रखते थे । For Personal & Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vv २४० ] अध्याय सातवाँ । इस समय आपकी अवस्था ४० वर्षकी थी। अपनी इस उम्र में आप अपनेको ज्यों २ पुग्यशाली सेठजीका परोपकार देखते थे त्यों त्यों अधिक यह धर्ममें तल्लीन व कार्यकुशलता। होते थे । अनेक गुनरात व दक्षिणके जैनि योंको यह आश्रय देकर कुछ मास अपने ही स्थान पर रखकर उनको भोजनादिकी सहायता करते थे फिर आजीविकामें जोड़ देते थे । आम सभाओंमें जाना समाचारपत्र बांचना, जो नई पुस्तक गुजराती भाषाकी निकले उसको पढ़ना; कुछ समय भी वृथा न खोना, सवरेसे रात्रि तक नियमित रूपसे हर एक काममें लगे रहना ही सेठ माणिकचन्दके समयका उपयोग था। जिस लक्ष्मीको इन्होंने और इनके भाइयोंने बुद्धिबलसे उपार्जन किया था उसका भलीप्रकार उपयोग करना यही इनकी भावना थी और व्यापारके समय व्यापार में ऐसी चतुराईसे वर्तते थे कि इनके पास जो ग्राहक आता था वह लौट कर नहीं जाता था । जो दाम यह कह देते थे विश्वासके साथ दे देता था। जाहर लोगोंमें अधिक मिलने जुलनेसे जिस किसीको कुछ जवाहरातकी जरूरत पड़ती थी सेठ माणिकचंदको याद करता था। यह उसकी मरजीके माफिक उसको माल दे देते थे और दाम इतना ठीक लेते थे कि दूसरा कोई भी नहीं दे सक्ता तथा उसे भी विश्वास आता और यदि वह दूसरोंसे बाजारमें जांच कराता तो ठीक पाता । अपने मेलके कारण यह बहुत रुपया कमाते थे इसलिये यह वात प्रसिद्ध थी कि जैसे सेठ पानाचन्द माल खरीदने में चतुर हैं वैसे सेठ माणिकवाद माल वेचने में प्रवीण हैं। For Personal & Private Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 सेठजीका भवन (रत्नाकरन ). चौपाटी - ई. (देखो पृष्ट २३८ ) J. \ For Personal & Private Use Only D Surat. Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२४१ सेठ माणिकचंदनी जब इसतरह लक्ष्मीका उपयोग कर रहे थे तब शोलापुरके दानी सेठोंका मन भी दानमें शोलापुरमें चतुर्विध उत्सुक हो रहा था। उनके मनको उपयोगी दानशाला। कार्योकी ओर आकर्षित करनेवाले सेठ हीराचंद नेमचंद बड़े प्रवीण थे । एक दफे आपने उपदेश दिया कि लक्ष्मीका उपयोग चार प्रकारके दानसे करना चाहिये । गरीबोंको, अनाथ बालक व विधवाओंको अन्न देना आहारदान है, रोगियोंकी आर्ति मिटानेके लिये पवित्र देशी औषधि देना औषधि दान है, मनुष्य पशु आदि संकट में पड़ते हुए प्राणियोंका भय मेट कर रक्षा करना, पिंजरापोलमें मदद देना सो अभयदान है, धार्मिक व लौकिक विद्याकी वृद्धि करने में सहायता करना सो विद्यादान है। इससे धनपात्रों को कुछ अलग धन एकत्र कर उसके व्याजका उपयोग चारों दानों में सदा हुआ करे ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये। शोलापुरकी मंडलीके ध्यानमें यह बात आगई और ताः १२ नवम्बर सन् १८९१ को नीचे प्रमाणे रु. ३८१ १६) का फंड करके उसका व्याज 1) सैकड़ा उत्पन्न करके चारों दानों में खर्च हो ऐमा प्रस्ताव होकर चतुर्विध दानशालाका कार्य प्रारंभ होगया। फल्टनके एक जैन वैद्य बलवंत नेमाजीको वैद्य नियत किया गया। यह कार्य अबतक जारी है और इस फंडके निमित्तसे बहुतसे गरीब छात्र शोलापुर पाठशालामें पढ़ते हुए भोजन पाते रहे हैं। पशुशालाको मदत होती रही है। विद्यादानार्थ पाठशालाको मदत दी गई है। उसका रुपया मुख्य२ सेठोंके यहां जमा है । इसकी प्रबन्धार्थ एक कमेटी है पर उसका ट्रष्ट रजिष्टरी अक For Personal & Private Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२] अध्याय सातवाँ । तक नहीं हुआ है जिसकी बहुत आवश्यकता है ऐसी ध्रौव्य संस्था चारों दानोंके लिये हरएक नगरमें होना चाहिये । दानार्थ लक्ष्मी खरची हुई ही स्व और परका उपकार करती है: नाम चंदा देनेवाले दातारोंके । ७५०१) सेट हरीभाई देवकरण ६१०१) सेठ हरीचंद परमचंद ५७०१) ,, वम्ता खुशाल ४२०१) ,, मोतीचंद परमचंद २५०१),, सखाराम खुशाल १५०१),, रायचंद खुशाल १३०१) ,, रामचंद साकला १२०१) ,, सीखाराम नेमचंद ११०१) ,, मोतीचंद खेमचंद १००१),, नानचंद खेमचंद १००१) ,, पदमसी निहालचंद १००१),, जोतीचंद नेमचंद १००१), गौतम नेमचंद १००१),, पदमसी कस्तूर १००१), मलुक.चंद गणेश १००१), रामचन्द गोवनजी रु. ३८११६) यह संस्था थोड़े ही दिनों में बड़ी उपयोगी हो गई। जैन बोधक अगस्त सन् १८९२ में कार्तिकसे ज्येष्ठ तक ८ मासके सदावर्त बटनेका हिसाब यह है कि ३७३ जैन व २९८५ अनैनोंको व्यवहारके पदार्थ दिये गए । इन ३३९७ में ११७२ प्राणी बिलकुल अशक्त थे । तथा औषधालय में ८०४ रोगीने दवा ली जिनमें ४ १९ अच्छे हुए। For Personal & Private Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग | अध्याय आठवाँ । *99966BK संयोग और वियोग । २४३ सेठ माणिकचंद जब २ सूरत जाते थे इनकी दोनों पुत्रियोंके लिये मांगपर मांग आती थी और निकट फुलकुमरी और मगन- सम्बन्धी वार २ टोंकते थे कि इनका न मतीकी सगाई | करना चाहिये अतएव सेटजी जब चंदावाही धर्मशालाको खोलने सं. १९४८ में सूरत गए थे तत्र फूलकुमरी और मगनमती दोनोंकी सगाई सूरत में ही पक्की कर ली थी। सूरत में एक विसा हुमड़ त्रिभुवनदास ब्रिजलाल रहते थे जो मध्यमस्थितिके गृहस्थ थे । इनके पुत्रका नाम मगनलाल था यह साधारण पढ़ा हुआ व बिसी कुआचरण में नहीं था तथा अपने पिता के साथ व्यापार में लगा हुआ था। फूलकुमरीकी सगाई इसीके साथ पक्की हुई। इन दोनों बहनों में फूलकुमरी बहुत भोली व सीधी थी परंतु मगनमतीका रूपदर्शनीय था । इसके सम्बन्धको अच्छे २ चाहते थे। सूरत में एक धनाढ्य व्यापारी तासवाला वेणीलाल केशुरदासकी कोठी प्रख्यात है। इनके दो पुत्र थे नेमचंद और जयचंद दोनों साथ २ रहते थे। किसीको कोई सन्तान न थी । तब नेमचंद्र ईडरसे खेमचंद नामके लड़केको दत्तक लाए । इसी खेमचंद नेमचंद के साथ भगनमतीकी सगाई पक्की हुई। इस लड़के को साधारण लिखना वांचना आता था | स्वभाव मर्यादाशील, मिलनसार प्रेमालु और धैर्यवान था । स्वरूपमें भी सुन्दर था पर धार्मिक शिक्षा व आचरणकी आदत न डाले जानेसे इसका मन For Personal & Private Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ ] अध्याय आठवाँ । सांसारिक बातोंमें विशेष था। अपने सांसारिक मित्रोंके साथ पैसा खर्च करनेमें हाथ खुल्ला था। बड़े आदमीका दत्तक पुत्र प्रायः ऐसा ही होता है । उसको पैसे खर्चते हुए दर्द नहीं मालूम होता जब इसकी सगाई हुई तब इसकी अवस्था १९ वर्षकी थी। गु.सं० १९४९ में सेठ माणिकचन्दजी सर्व कुटुम्ब सहित सुरत गए और इन दोनों कन्याओंका विवाह दोनों पुत्रीयोंकी लग्न। लगातार एक साथ ही किया । इन विवाहमें . सेठजीने बहुत रुपया खर्च किया तो भी वह १२००२)से अधिक न होगा। तासवालेने भी बड़ी धूमधाम की गई। चंदाबाड़ी में ही सेठ माणिकचंदनीने समारंभ किया । दोनोंकी वरात्क बिदाका जुलूस बहुत सामानसे निकला। वर और बधूकी सवारी हाथीपर हुई। नगरमें गाजे बाजोंकी भरमार ऐसी हुई कि नगरभर इनके देखनेके लिये उमड़ आया। सूरतमें बिरादरीके कई जीमन दिये । बहुतसे सम्बन्धी व मित्र बाहरसे बुलाए गये थे उनकी खातिर की गई । नगरके प्रतिष्ठित पुरुषोंको दावत दी गई और नौकर चाकर मुनीम व सम्बन्धियोंको बहुत कीमती पोशाकें दी गई। इस समय फूलकुमरी १५ तथा मगनमतीकी १३ वर्षकी आयु थी। श्रीमती चतुरबाईकी गोदमें जो छोटा पुत्र था सो सुरतमें लग्नके समयपर ही यकायक बीमार होकर पुत्रकी आशासे १। बर्षकी उम्रमें चल बसा। सेठजीको इस निराशता। तरह पुत्रकी फिर निराशता हो गई। वास्तवमें संसार इसीका नाम है एक तरफ हर्ष होता हैं तो दूसरी तरफ शोक हो जाता है । थोड़े दिन पीछे चतुरबाईको For Personal & Private Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । २४५ फिर गर्भ रहा । तब सेठजीने खास दासियां नियत की कि वे गर्भकी सम्हाल व रक्षा करें। सेठ नवलचंदका प्रथम पुत्र ताराचंद इससमय ४ वर्षका था। इसका शरीर स्वास्थ्ययुक्त था। माता सेठ नवलचंदके बड़ी ही यत्न रखती थी। पिता भी हरसमय द्वितीय पुत्रका सम्हाल करते थे । प्रसन्नबाईको फिर भी गर्भ जन्म। रहा। संवत १९४९ आसोन वदी ३० के दिन शुभ महूर्तमें जुबिली बागके बंगले में बाईने हि. तीय पुत्रको जन्म दिया । यह बालक बहुत ही सुन्दर शरीर न सौम्य बदन था । माता देखकर गद्गद् बदन हो गई। सेठोंको भी बड़ा हर्ष हुआ। विधि सहित सर्व उत्सव किया । दान धर्म न किया और पुत्रका नाम रतनचंद रक्खा । पानाचंद और माणिकचंदके कोई पुत्र न था इससे स्वाभाविक है कि इनके व इनकी पत्नियों के दिलों में कोई ईर्षाभाव उत्पन्न हो । परंतु ये भाई ऐसे सरल प्रकृति व धर्मात्मा थे कि इनको अंत:करणसे हर्ष हुआ। पानाचंद व्यापारकी धुनमें अधिक रहते थे । माणिकचंद और चतुरबाईका चित्त मगनमती पुत्री के कारण भरा हुआ था। ये इसे पुत्रकी भांति चाहते थे । - आगरा निवासी पंडित गोपालदासजी संवत् १९४९ के आषाढ़ मासमें बम्बई रहनेके लिये आए । श्रीयुत पंडित पंडितजीका जन्म संवत् १९२३में बरैया गोपालदासजी। जातिधारी लक्ष्मणदास पिता और लक्ष्मीमती माताके द्वारा हुआ था। पिताका देहात सं. १९३० में हो गया। माताने बहुत कष्टसे इनको मैट्रिकुलेशन तक For Personal & Private Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ ] अध्याय आठवाँ। इंग्रेजी पढ़ायी । गणित में यह बहुत चतुर थे । २० वर्षकी उम्रमें हाईस्कूल छोड़कर अनाजकी दुकान पर लाभ न देखकर अजमेरमें जा सं० १९४४ में रेलवे आडिट आफिसमें नौकरी की। पत्नीका सम्बन्ध १४ वर्षकी उम्र में हुआ था । वहाँ पंडित मोहनलालजीके पास दो वर्षमें गोम्मटसारका अभ्यास किया। सं० १९४६ में दर्शन और बाध्याय प्रतिदिन करनेका नियम किया। इस नौकरीसे काम चलता न देख आगरा आकर १ वर्ष व्यापार किया इतने में अजमेरके सेठ मूलचंदजीने आपको अजमेर बुलाकर अपनी दूकानपर क्लार्क नियत किया। सेठ माणिकचंदकी दक्षिण यात्राका हाल सेठ मूलचंदजीके कानोंतक पहुंच चुका था तथा जैन वोधक पत्र में जो सेठ हीराचंदनीने अपनी यात्राका हाल छापा था उसको भी पढ़कर सेठ मूलचंदनीको बहुतोंने सुनाया। विचार क. रते २ आप संवत १९४८ में दक्षिणकी यात्राको तैयार होकर पं. गोपालदासजीको साथ ले बम्बई आए । यहांसे आप जैनविद्री मूलबिद्रीको गए । मूलबिद्रीमें आपने श्री धवल जयधवलादि ग्रंथोंको जीर्ण दशामें देखकर उनकी प्रति करानेके लिये ब्रह्मसूरि शास्त्रीको आग्रह पूर्वक कहा था । शास्त्रीने ३००के अनुमान श्लोक लिखे ऐसी सूचना भी सेठ साहबको बादमें की थी। उक्त सेठ साहबको विद्याका कुछ प्रेम था । शोलापुरमें आपने जैन पाठशालाकी परीक्षा ले ५०) का इनाम दिया । आपने प्रसिद्ध जैपुरके विद्वान पंडित सदासुखजी की वृद्धावस्थामें अच्छी वैय्यावृत्त्य की थी तथा उनका समाधिमरण भी अजमेर में ही हुआ ऐसा सुनते हैं। गोपालदासनी यात्रासे लौटकर कुछ दिन अजमेर ठहरे पर आजीविका यथेष्ट न For Personal & Private Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । । देखकर सं. १९४९ के आषाढ़ मासमें बम्बई आए ख्यान देने व शास्त्र वांचने का अच्छा अभ्यास था । मंदिर में भादों के दिनो में श्री दशलक्षणजी व सुत्रजीके अर्थ आपने बहुत अच्छी तरह से वर्णन किये। उस समय सेठ माणिकचंदजीने खूत्र ध्यान से सुने । माणिकचंदजीको विद्यावृद्धि, सर्व मुल्क में जैन धर्म प्रचार, कुरीतिके नाशका कितना बड़ा ख्याल था सो पाठकोंको उसी पत्रसे निश्चय हो गया होगा जो उन्होंने सेठ हीराचंद - जीको भेजा था व जिसकी नकल इसके पहले अध्यायमें दी गई है पर बम्बई में कोई सहाई न मिलने से माणिकचंदनी कुछ उद्योग न कर सके थे | अब २६ वर्षके नौजवान गोपालदासको अपने ऐसे विचारोके धारी, परोपकारी और तीव्र वृद्धि देखकर इनको बड़ाही हर्ष हुआ । उजीने इनको अपने पास बुलाकर इनसे बहुत प्रेम जताया । रोज इनसे वार्तालाप करने लगे तथा सेठजीकी सहायता से आप जवाहरातका व्यापार करने लगे और सुखसे बम्बई हीमें रहन लगे । [ २४७ इनको व्या बम्बई के जैन सेठ माणिकचंद की इच्छानुसार गोपालदासजी ने अपने उपदेशोंसे बम्बई के भाइयोंको सभाकं अनेक लाभ मुम्बई दि० जैन दिखाए। उस समय लोग सभा होना क्रिष्टान सभाकी स्थापना | पादरियोंकी नकल करना समझते थे । सर्व भाइयोंकी मरजीसे मिती मांगसिर सुदी १४ संवत १९४९ को मुम्बई दि० जैन सभा स्थापित हो गई जिसके मंत्रीका कार्य सेठ माणिकचंदजी और उपमंत्री का पद पंडित गोपालदासजीको दिया गया । यह सभा प्रति सुदी १४ को होती थी जिसमें नाना प्रकार के व्याख्यान होते थे । इस सभा के प्रतापसे For Personal & Private Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ ] अध्याय आठवाँ । बम्बईवालोंने धर्मरक्षा के अबतक अच्छे२ प्रशंनीय कार्य किये हैं । तीर्थीका सुधार व परीक्षालय द्वारा भारतकी पाठशालाओं की परीक्षा लेना व संस्कृत विद्याकी उन्नति आदि कार्यों में बहुत बड़ा काम किया है | सेठ माणिकचंदजी बड़े ही नियमित काम करनेवाले थे । प्रति सुदी १४ को नियमसे सभाको बुलाते और व्याख्यान कराते थे। स्थापना । सं० १९४९ में चौपाटीका रत्नाकर पैलेस भी बनकर तय्यार हो गया, जो भवनवासी देवोंके भवरत्नाकर पैलेस में श्री नको हंसता था । पैलेसकी ऊंची टावर दूरसे चंद्रप्रभु चैत्यालयकी दिखलाई पड़ती था । समुद्रकी मनोहर ठंडी वायु हर वक्त इस महलकी वैय्यावृत्य में ऐसी लीन थी कि इसे बिलकुल स्वच्छ रखती थी। महल में फर्शसे पत्थर जड़ा हुआ था । भीतों पर चित्रकारी व रंग साजीका काम किया गया था । शीशेके कपाट रत्नाकर पैलेस के नामको सुशोभित करते थे । हरएक कमरे में मनोहर पलंग, कुरसी, टेबुल, अलमारी, लम्प, झाड आदि फरनीचर सजाया गया था । बीचके बड़े हाल में बैटकखाना था जिसमें संगमर्मर की टेबुलें पड़ी थीं। चारों ओर कई कुरसियां पड़ी थीं तथा 'बम्बई समाचार' आदि पत्र रहते थे । हालके चारों ओर भीतके सहारे आराम कुरसियां मनोहर गद्देदार कुछ बैठने लायक और कुछ लेटने लायक थीं, कई बड़े २ दर्पण लगाए गए थे, कई बड़ी २ तसवीरें व कहीं २ पर बड़े सुन्दर खिलौने सजाए गए थे । सारा महल एक दर्शनीय प्रदर्शनी बन गयी थी । चैत्यालय भी बहुत ही टेबुलपर For Personal & Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२४९ उत्तम कांचकी भीतोंका अनेक चित्र सहित बनवाया गया । काचोंमें नारकियोंके दुःखोंके चित्र व कौन २ पापसे कौन २ दुःख होता है ऐसा नकशा दिया गया था। वेदी चांदीकी सुन्दर रची गई। तीन तरफ भीतोंमें ऐसे कांच जड़े गये थे जिससे एक मंदिरके अनेक मंदिर मालूम होते थे । स्फटिकमणिकी मूल नायक श्री चंद्रप्रभुकी प्रतिमा चांदीके सिंहासन पर अतिशय वीतरागता व ध्यानको प्रगट करनेवाली पौन हाथ ऊंची सुशोभित हुई उनके सिवाय और भी कई छोटे २ स्फटिकके बिम्ब विराजमान किये गये। एक धातुका चौवीसी पट्ट भी विराजमान किया गया । चैत्यालयकी ऐसी मनोहर शोभा थी कि दर्शकको सैकड़ों ध्यानाकार प्रतिबिम्बोंके दर्शन उन कांचोंके निमित्तसे होते थे। इस महलकी तैयारी होकर चैत्यालयकी बड़ी धूमसे व भक्ति व पूजा सहित प्रतिष्ठा की गई । सर्व कुटुम्ब एक साथ एक ही पैलेसमें रहकर धर्म कर्म साधन करने लगा। सेठ माणिकचंदनी बड़े प्रेमसे नित्य प्रछाल व पूजन करने लंगे । स्वाध्यायके लिये कपाटोंमें लिखित व मुद्रित ग्रंथ भी रक्खे तथा एक कपाट ऐसा भी रक्खा कि जो उस समय तक ग्रंथ छपे थे उनकी कई २ प्रतियां भेटमें देने व न्योछावर लेकर देनेको रक्खी गई जिससे स्वाध्यायका प्रचार हो। सेठ माणिकचंदजीका यह कायदा था कि स्वाध्याय करते समय ब बड़े हॉलमें बैठते हए जो कोई दर्शनके लिये आते उनसे धर्मकी बात पूछकर स्वाध्यायका उपदेश देते, तथा पुस्तक लेनेको कहते थे । रात्रिको व्याल करके व समुद्र तटपर घूमनेके बाद तथा चैत्यालयमें दर्शन करके सेठनी सदर जीनेके सामने ही बड़ी कुरसीपर बैठ For Personal & Private Use Only only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० ] अध्याय आठवाँ । जाते थे। और दर्शन करने आनेवालों को चाहे धनाढ्य हों चाहे गरीब बड़े प्रेमसे कुरसीपर बिठाकर उनका दुःख सुख पूछते थे । उनको धर्मोन्नति व जात्युन्नतिकी प्रेरणा करते थे। इस महल और चैत्यालयकी ऐसी प्रख्याति हुई कि बम्बईके लोग इसे एक देखने योग्य वस्तुओंमें गिनने लगे और देशी परदेशी जैनी अजैनी सब बिना रोकटोकके बंगलेमें घूमकर देखने लगे। गुजरात व दक्षिणमें परदेका रिवाज नहीं है केवल ड्योढ़ी पर एक जमादार रहता था जो आते जाते लोगोंको देख लेता था । रात्रिको बंगले में रोशनी ऐसी होती थी मानो दिन ही मौजूद है। चैत्यालयमें शामको प्रेमचंद मोतीचंद बड़ी भक्तिसे आरती पढ़ते और करते थे। रूपाबाई अपने पुत्रके भक्तिभरे शब्द सुनकर प्रफुल्लित होती थी। बम्बईके जैनी अब चौपाटीकी तरफ शामको प्रायः सर्व ही आने लगे और चैत्यालयके दर्शन नित्य प्रति करने लगे। तथा सेठजीसे उपदेश पाकर व वार्तालाप करके परस्पर लाभ लेते देते हुए । चतुरबाईको गर्भ था जिसकी सम्हाल संठ माणिकचदजीन बहुत की थी । उसके संतानका जन्म उसी बंगले में तारामतीका जन्म । हो जहाँ गर्भ रहा है ऐसा भाव करके गुज० , कार्तिक मास सं० १९५० तक चतुरबाईनीका जाना चौपाटीके बंगले में नहीं हुआ था जुबिली बागके बंगलेमें ही मिती कार्तिक वदी १ को सेठजीकी पुत्रकी आशाको इसी तरह रखते हुए एक कन्याको जन्म दिया । यह कन्या मी सुन्दरमुख थी। शरीर बड़ा नर्म था। इसकी रक्षा पूरी २ की गई । सेठजीने साधारण रीतिसे जन्मोत्सव किया तथा इसका नाम तारामती For Personal & Private Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग। [२५१ रक्खा । प्रसूतिका समय चले जानेके बाद कन्याको लेकर श्रीमती चतुरबाई चौपाटीके बंगलेमें चली गई और स्वर्गपुरीके समान वहां निवास करने लगीं । यद्यपि मगनमतीकी लग्न हो गई थी पर इसका चित्त पिताजीके पास ही बहुत प्रसन्न रहता था । इस नए बंगलेमें वह मुरतसे आकर महीने दो दो महीने ठहर जाती थी और समुद्र व चौपाटीकी बहारसे संसारिक आनन्द मनाती थी। सेठ पानाचंदनीकी अवस्था सं० १९५० के प्रारंभ में ४५ वपकी थी। यद्यपि इनकी आंतरिक इच्छा सेठ पानाचंदजीकी विवाह करनेकी नहीं थी पर कोई संतानका तृतीय लग्न। लाभ न होनेसे कुटुम्बी जन इनको विवाहका बहुत ज़ोर दे रहे थे । इन्होंने भी स्वीकार कर लिया । इनका शरीर अभी भी भले प्रकार दृढ़ व उद्योग पूण था। परतापगढ़ राज्य जिला मालवामें इमड़ जातिके एक साधारण स्थितिके धारी सेठ शंकरलाल नंदलालनी थे जिनकी पत्नीका नाम चिमनाबाई था इनके एक कन्या रुक्मीबाई थी जो सीधे मिजाजकी व घरके कामकाज में चतुर व दृढ़ शरीर थी, स्वास्थ्य भी अच्छा था । स्वरूप भी ठीक था। इसीके साथ सेठ पानाचंदजीका विवाह परतापगढ़में हो गया। विवाहमें कोई विशेष धूमधाम नहीं की गई। इसकी अवस्था अनुमान १६ वर्षके थी। सेठ पानाचंद तुर्त कन्या विदा कराके बम्बई लाए और चौपाटी बंगलेमें संसारिक सुखमें भ्रमरके समान लिप्त हो गए। इनको यह आशा थी कि पुत्रका लाभ हो क्योंकि पुत्र विना एक गृहस्थी पुरुषकी शोभा नहीं है। For Personal & Private Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ ] अध्याय आठवा । इधर प्रेमचंद मोतीचंद स्कूलमें मैट्रिकुलेशन तक शिक्षा पाचुके थे। इनकी द्वितीय भाषा संस्कृत थी । अवस्था सेठ प्रेमचंदजीको १६ वर्षकी हो गई थी। रूपाबाईनीने अच व्यापारकी शिक्षा। ज्यादा स्कूलमें पढ़ाना टोक न समझा और व्यापारमें झुकाना ही उचित जानकर प्रेमचंदकी आगे पढ़नेकी इच्छा होने पर भी स्कूलसे उटाकर दूकानपर भेजना व मोती पुराना सिखाना शुरू किया। प्रेमचंदका मन बहुत सीधा था तथा अपनी पूच्य माताका परम भक्त था । माताकी आनाका उल्लंघन पाप समझता था। सहर्ष माताकी इच्छानुसार व्यापार सीखने लगा। सेठ माणिकचंदका इसपर बड़ा हेत था क्योंकि प्रेमचंदका मन धार्मिक व परोपकारके कार्यामें अच्छा लगता था । सभामें जाने आने व व्याख्यान सुननेका अच्छा शौक था। कभी २ स्थानीय सभामें कुछ कहनेका भी अभ्यास करने लगा। जैन बोधक मराठी पत्र व मराटीमें छपी जैन पुस्तकोंको अच्छी तरह बांचता था। लौकिक पत्रोंको भी देवता था। जैन जातिकी उन्नति हो इस बातपर पूरा लक्ष्य था। सेठ माणिकचंद पानाचंदका भानना सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद बराबर इन्हींके साथ रहते व दूकानपर काममें सेठ चुन्नीलाल झवेर- मदद दिया करते थे। चौपाटी बंगले में चंद व्यापारमें यह भी अपनी पत्नी जड़ावबाईके साथ शामिल। एक कमरेमें सुखसे रहने लगे। इनको व्यापारमें बहुत ध्यान देते हुए व अपने काममें पूर्ण सहकारी जानकर सेठोंने इनका कुछ भाग अपने फर्ममें नियत कर For Personal & Private Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । लिया और अपने बराबर इनकी प्रतिष्ठा बाजारमें हो ऐसा अवसर इनको दे दिया। चुन्नीलालजी अपने तीनों मामाकी इच्छानुसार व्यापारमें खूब पारश्रम करने लगे। सन् १८९२ के अप्रेल मासमें बम्बईके जैन युनियन कुबमें एक जैनीने "प्रवाससे फायदे'' इस जैनियों में विलायत विषयपर एक निबंध इंग्रेजीमें पढ़ा था फिर जानेकी चर्चा! गुजराती भाषामें कई भाषण हुए थे कि मद्यमांस पदार्थ त्याग करके यदि जैनी समुद्र यात्रा करें तो कोई हनकी बात नहीं है। सन् १८९३में चिकागामें एक बड़ी भारी प्रदर्शनी अमे रिकावालोंने संगठित की थी तथा भारतके अमेरिका प्रदर्शनी में हरएक धर्मवालेको अपने२ धर्मके सिद्धान्तोंको जैन विद्वान भेज- कहनेके लिये बुलाया था। धर्म सम्बन्धी नेकी चर्चा। व्यवस्था करनेके विभागके अधिकारी जान • हेनरी बेरोज थे । इस समय श्वेताम्बरी साधु आत्मारामजी महाराजका नाम बहुत दूर दूर तक प्रसिद्ध था। उनके पास उक्त अमेरिकनका एक पत्र आया जिसकी नकल यह है: "पूज्य महाराज । इस धर्म समाजमें आप खुद जातसे आय सकोगे ? आपका दर्शन होनेसे हमकू बहुत आनन्द होगा जिस जैनधर्मकी अटल वजा आप उड़ाय रहे हो उस धर्मका वर्णन और उपदेशका प्रकाश हरकोई आदमीके दिलपर सुगमतासे पड़े ऐसा एक बाख्यान लिखके यहां भैंजनेकी आप कृपा करोगे ? जो आफ For Personal & Private Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ ] अध्याय आठवाँ । इतना काम करोगे तो हम बहुत खुश हो जायगें और समाज के हेतुओं में कितने एक दरजे फायदा होगा। मेरे दूसरे रिपोर्ट की कितनीएक नकलों मैं आपके तरफ भेज देता हों । ता० ३-४-९३ आशा है के आपके तरफसे ज्यादा खुलासा जल्दी मिलेगा । चिकागो आपका सेवक यूनाइटेड स्टेट्स | जॉन हेनरी बेरोज सभापति ( जैन बोधक जून १८९३ ) इस पत्रको पानेके पहले भी पत्र आया था उसके अनुसार आत्माराजीने बम्बईके जैनियोंको लिखा था कि अपने जैनमतकी तरफसे दो आदमी वहाँ भेजना बहुत ज़रूरी है । एक संस्कृत और मागधी भाषा जानकार पंडित अमीचंदजी और दूसरे वीरचंद राघवजी बी. ए । तत्र ता० २५ मार्च सन् १८९३ को बम्बई जैन एसोसियेशन आफ इन्डियाने सेठ तलकचंद माणिकचंद्रके सभापतित्व में एक सभा की । उसमें सेठ माणिकचंद आदि कई दिगम्बरी भी गए थे। एसोसियेशनने भेजना निश्चय करके खर्च के RET लिये एक कमेटी नियत कर दी जो अहमदाबाद, भावनगर और सूरत के महाजनोंकी सलाह से सब बंदोबस्त करै । दिगम्बर जैनियोंकी सभा में विलायत जा ता० २ अप्रैलको सेठ हीराचंद नेमचंदजीके (जो सभाके कायमके उपसभापति थे । ) सभापतित्त्वमें दिगम्बर "जैनियों की सभा हुई । उपमंत्री पंडित गोपालदासजीने पेश किया कि दिगम्बरियोंकी नेका विचार | तरफ से एक या दो भाइयोंको चिकागो भेजना चाहिये । इस समय सेठ हीराचंदजीने बम्बई में भी दूकान कर ली थी और अधिकतर यहीं रहते थे तथा अप्रैल १८९३ से जैन बो For Personal & Private Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२५५ धक भी निर्णयसागर प्रेस बम्बईमें छपने लगा था। पं० धन्नालाल आदि सभासदोंने आदमी भेजनेकी आवश्यक्ता बताई । सभामें एक मदरदासजी थे। उन्होंने कहा कि ऐसी क्या जरूरत है ? यदि नहीं भेजे तो क्या नहीं चलेगा? तब सेठ हीराचंद सभापतिने समझाया कि दिगम्बर मतका अस्तित्व बतानेको व जैनमत नास्तिक नहीं है किंतु यही सांचा आस्तिक है आदमी भेजना ही चाहिये। दूसरी आवश्यक्ता यह है कि इस भारतमें हिंसा और प्राणीबध बहुत होता है तथा यहां जो वाइसराय आदि हाकिम आते हैं सो लंडनकी पार्लियामेन्टके हुकमके अनुसार सब कानून चलाते हैं । इसमें ७०० सभासद हैं जिनमें कई मांसाहार व मद्यपानके त्यागी हैं। सन् १८३२में वहां सिर्फ ७ आदनी मद्यके त्यागी थे सो सन् १८९२ में फक्त यूनाइटेड किंगडममें ७० लाख आदमी मबके त्यागी हो गए । मांसाहारकी सौगन्ध करनेवाले हालमें ३५०० आदमी हैं । इतना तो जैनियोंके प्रयत्न विना हुआ है। अत्र जो जैनीलोग वहाँ उपदेशक भेजेंगे तो कितने ही मद्य व मांसके त्यागी बन जायगे । जैन धर्मका व्यवहार चारित्र हिंसा मेटना व मद्य मांस छोड़ना छुड़ाना है सो अपना जनी उपदेशक पार्लियामेन्टके निप्पक्षपाती व कोमल हृदयी सभासदोंको जीव हिंसासे भारतमें हिंसा बंद होनेका कानून होजायगा । यह वात असाध्य नहीं है पर कष्ट साध्य है । तब मंदरदासजीने कहा कि रसोई पानीका आगबोटमें कैसे बनेगा इसपर सेठ गुरुमुखरायजीने कहा कि श्रीपाल राजा धवलसेठके साथ जहाजमें बैठकर कई महिने तक समुद्र में फिरा था सो वहां रसोई पानी सब कुछ उसका For Personal & Private Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ ] अध्याय आठवा। होता था कि नहीं ? जहाजमें स्पर्शास्पर्शका कुछ दोष नहीं है। इसके पीछे गोपालदासजीने कहा कि श्रीपालराजाका प्रमाण भी है और अभी उस वक्तमें बहुतपं० गोपालदासजी- से जैनी भाई बम्बईसे कोडियाल बंदर और का विचार समु- मूलबिद्रीसे बम्बईको आगबोटमें बैठके द्रयात्रामें। आते हैं सो वहां रसोई पानी बनाके खाते हैं । गये साल सेठ मूलचन्दनी और दूसरे २०० आदमी नैनबिद्री मूलबिन्द्रीकी यात्राको गये थे उनके साथ मैं भी था और पंडित लक्ष्मीचंदजी लश्करवाले भी थे सो हम सब मंगलोर बंदरसे आगबोटमें बैठके गोवा बंदरको दो दिनमें आए थे। आगबोटमें अपना अलग चुला बनाके रसोई हुई थी, सो सेठ मूलचंदजी और मैं और दूसरे भी कितनेक जैनी भाईयोंने उस आगबोटमें बैठके रसोई जीमना, पानी पीना सत्र किया था तो अमेरिका और इंग्लैंड जाते वक्त आगबोटमें अपना अलग चूल्हा बनाके और अलग पानी रखके शुद्धता पूर्वक रसोई करके जीम लेगा तो धर्मकी अथवा जातिकी भी कुछ हरकत दीखती नहीं है सो सब भाइयोंके दिल में पसन्द होवे तो नीचे लिखी हुई चार बातोंकी अनुकूलता मिलनेसे आदमी भेनदेना ऐसा इस सभाकी अभिप्राय बड़े २ शहरको भेनदेना । चार बातोंकी तफसील १-अंग्रेनी और संस्कृत पढ़ा हुआ एक जैनी मिले तो बहुत उत्तम, नहीं मिले तो एक संस्कृतका विद्वान और एक इंग्रजीका For Personal & Private Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदापाड़ी धर्मशाला सूरत. (देखो पृष्ठ २३६) J. V. P. Surato For Personal & Private Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२५७ विद्वान ऐसे दो और तीसरा एक नौकर ऐसे तीन आदमीका संयोग मिलाना । २-उनके खर्चके वास्ते बन्दोबस्त होना। ३-भोजनकी शुद्धता होनी । ४-जातिकी आज्ञा होनी । सबने उस अभिवायमें हां प्रगट की तत्र गोपालदासजीने जानेके योग्य विद्वानोंके नाम कहे-पंडित पन्नालाल झरगदलाल, भूरामलजी जैपुर बो. ए., भाई मेहरचंनी सुनपत । बाद सभा विसर्जन हुई। (जै० बो• अप्रैल १८९३) ये चिट्ठिया भेनी गई जिनपर ब्रह्मसरी शास्त्रीने जो अभिप्राय भेना उसका सारांश यह है:चिकागो जाने में यदि मकारत्रय, जीवदया, तथा पंच नमस्कार रूप मूल गृहस्थधर्मका लोप नहीं होवै तो ब्रह्मसूरि शास्त्रीका कुछ हानि नहीं है। इस बाबत में प्रमादवशसे समुद्रयात्रा में विचार । अतीचार लगै तोभी उसको प्रायश्चित्त कहा है। प्रायश्चित्त ग्रंथ अकलंक म्वामीकृत, इंद्रनंदि आचार्यकृत, श्री नंदिगुरु प्रायश्चित्त और भी दोय तीन ग्रंथ हैं उनमें मकारत्रय मूलगुगको प्रायश्चित्त कहा है। विदेशगमनको और समुद्रयान करनेके वास्ते कहीं भी प्रायश्चित नहीं कहा है। महापुराणमें ऐसा लिखा है कि जिस २ उपायसे मार्ग प्रभावना होय वह उपाय मत प्रकाशके वास्ते अवश्य करना। समंतभद्र स्वामीने मत प्रभावनाके वास्ते अनेक देशों में संचार किया था। सो चिकागो अमेरिका खंडमें जाकरके अपने जैनधर्मका प्रसंग करके स्थापन करना बहुत उत्तर है। इसमें शास्त्रको तथा १७ For Personal & Private Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ] अध्याय आठवाँ । आचारको विरोध नहीं है ऐमा हमको दिखता है। दर्शनसे भ्रष्ट हुआ सो भ्रष्ट होता है । चारित्रसे भ्रष्ट हुआ सो पुनः स्थितिकरण हो सकता है इसके वास्ते समयभूषणके श्लोकः मनः शुद्धं भवेद्यस्य स शुद्ध इतिपठ्यते । विना तेन कृतस्नानोप्ययं नैव विशुद्धयति ॥ १ ॥ कार्याकार्यविचारज्ञः सर्वभाषाविशारदः । सर्वसामार्थवित्साधुर्धर्मस्य प्रतिपादकः ॥ २ ॥ सगुणो निर्गुणोवापि श्रावको मन्यते सदा । नावज्ञा क्रियते तस्य तन्मूला धर्मवर्तिना ॥ ३ ॥ येन येन हि कृत्येन धर्मवृद्धिः प्रजायते । तत्तत्कुर्वन् यतिान्यो भवेदत्र न संशयः ॥ ४ ॥ सम्यग्दर्शनशुद्धान। तपसाल्पेन जायते । कर्मक्षयस्ततो नूनं तदेव प्रतिपालयेत् ।। ५ ।। सम्यक्तमूलं सर्वं स्याज्ज्ञानं चारित्रमेव वा । विना तेनापरे नैव कुर्यातां मोक्षसाधनं ॥ ६ ॥ दिगम्बर जैन समाज इस तरह सम्प्रतिके वादविवाद ही में पड़ गई और चिकागो भेजनेका कुछ वीरचंद राघवजीका भी प्रबन्ध नहीं किया। उधर श्वेताम्बरचिकागो गमन। समाजने सब प्रबन्ध करके श्रीयुत वीरचंद राघवजी बी. ए को ता: ४ अगस्त १८९३के दिा जहाज़में बिठाके चिकागो भेज दिया। आत्मारामजी महाराजने एक निबंध हिन्दीमें तयार करके वीरचंदनीको दे दिया कि इसका तर्जुमा करके सभामें सुना देवें । सेठ माणिकचंदजीको बड़ा भारी उत्साह था कि कोई दिग For Personal & Private Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२५९ म्बरी जैन विद्वान चिकागो नावे और सत्य जैनधर्मका सिद्धान्त प्रतिपादन करे । पर उद्योग करनेपर भी न कोई जानेवाला वीर ही तय्यार हुआ और न समाजने रुपये का प्रबन्ध किया, इससे सेठजीको बहुत हताश होना पड़ा। इंग्रेजी विद्याकी जैनियों में उन्नति हो और साथमें वे जैन धर्मको भी जाने इस प्रकारकी उत्तेजना देने में चौगले बेलगांवको सेठ माणिकचंद और सेट हीराचंद नेमचंदका छात्रवृत्ति । पुरा ध्यान रहता था। सेट हीगचंदके बम्बई रहनेसे माणिकचंदको धार्मिक व परोपकारके कार्यों में अच्छी२ सम्मति मिलने लगी और असमर्थ जैन परदेशी छात्रोंको मासिक छात्र वृत्तिया देना प्रारंभ की। पाठकगण जानते ही होंगे कि दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभाके मुख्य संचालक व दक्षिणके जैनियों में जागृति फैलाने वाले श्रीयुत अण्णाप्पा फड्याप्पा चौगले बी. ए. एल एल.बी. वकील बेलगांव हैं। यह पृना दक्षिण कालेज में पहला वर्ष बी. ए. पास कर चुके थे । इनको सारसे १५) मासिक छात्रवृत्ति मिलती थी, पर इनके अधिक बीमार होनेके कारण वह मिलना बंद हो गई थी, स्थिति गरीब थी, विना मढ़ आगे पढ़ना बंद होता था । सेठ माणिकचंदनीके पाम इनका पत्र आने से एक वर्षके लिये आपने और हीराचंदनीने ६) छ: छः रु. मासिक छात्रवृत्ति देनी चालू कर दी और धर्मग्रंथ देखने की प्रेरणा की। इस सहायताका फल यह हुआ कि कुछ दिनों बाद इसने संस्कृतमें एक जिनस्तुति बनाके सेटोंके पास भेजी जिसका नाम तापापहार स्तोत्र है सो यहां दिया जाता है-- For Personal & Private Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ] अध्याय आठवाँ । श्रीतापापहारस्तोत्रम् । स्वात्मस्थितं तं परमात्मसंज्ञं सर्व गतं कालकलामतीतम् । विश्वेश्वर विश्वविकाशहेतुं बंदे विभुं वंद्यमगम्यतत्वम् ॥ १ ॥ तापापहारे कुशलो जनानां महापहारेऽपि मदाश्रितानाम् । त्रिलोकनिःश्रेयसदत्तदृष्टिस्तापात्मनः पातु निनो वरेण्यः ॥ २ ॥ इंद्रादिदेवा भुवनैकनाथं स्तोतुं प्रवृत्ता अपि यं न शक्ताः । तत्यानुरूपं स्तवनं विधातुं शक्तः कथं स्यामहमलाबुद्धिः ॥ ३ ॥ रत्नाकरस्यान् पृथानराशीच्योरि स्थितान्तार कसंचयान्वा । गणान् गुणानां भवतश्च देव व्यजीगणन् के मनुनास्त्रिलोक्याम् ।।४। तयाऽपि विश्वेश यथाक्षमं त्वां स्तवीमि भक्त या भक्तापशान्त्यै । अल्पश्रुतोऽ:मीति न बीतराग तन्मय्युपेक्षा भवा विधेया ।। ५ ॥ आस्ताममेयो जिन संस्तवस्ते नामापि ते तापमपाकरोति । दूर यसत्येव शशी तथापि प्रीणाति खिन्नं ससुघोऽस्य रश्मिः ॥६॥ दुर्वाधितर्ण भयकामनाथामहत्वशः सन्ति निसर्गदृष्टाः । तान्धारयेस्तसमा शंको मोऽप्यपाशस्त्वयि बद्धभक्तिः ।। ७ ।। कुठाभिभूतछयुतजीवने छो यष्टिं विना संचरितुं त्वशक्तः । त्ववादपद्मद्रयदत्तमौलिः सद्यो भवेकांचनतुल्यकान्तिः ॥ ८ ॥ भो भो भवाब्धौ मनुजाः पतन्तो श्रयध्वमेतां जिनभक्तिनौकाम् । सुखं तयात्ये यथ यूयमेनं भीमं विपन्नक्रकुलाकुलोमिम् ॥९॥ किं भूषणैः कुंडलकंकगाथै मनोज्ञवषैश्च विनाशशीलैः । यः स्थैर्ययुक्तां जितभक्तिमालां वत्ते स धीरो गतबंधनः स्यात् ॥१०॥ त्वद्भक्तिमालावृतदेहबंध बाह्यः कथं मामरिरुच्छिनत्ति । मच्चित्तवासे त्वयि संहृतारावंतर्बिवामप्यवसानमेव ॥ ११ ॥ For Personal & Private Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । २३१ गंगेति गंगेति जना वदन्ति का वाऽस्ति गंगा तव भक्तितोया | तस्यां कथं भक्तितुरापगायां मनस्य में क्लेशतिर्न गच्छेत् ॥ १२ ॥ तापापहाराय महान तंत्राणि मंत्राणि च योजयन्ति । जानन्ति ये नैव तव प्रभाव तंत्रादिमंत्रादिगुरुत्वमेव ॥ १३ ॥ व्यानातानां सुनिपुंगवानां प्रकाशयत्वं गिरिगगणि । त्रैलोक्यदीपोऽसि न वायुवश्यो विकीर्णनीरंगमस्जिालः ॥ १४ ॥ संयस्य वृत्तिं सकलेद्रियाणामन्विष्य च त्वां ये मनींद्राः । वामेव वा गलितावसंवा जयन्ति जन्मोरसोः ॥ १५ ॥ चित्रं प्रभो यत्सुरसुंदरीणां लीलाकटाक्ष मनस्ते । नाहिलं त्वथवा सुमेरो: श्रृंगं नलं जातु बान्न वायोः ||१६|| किमत्र चित्रं यदि नाम काम: प्रहर्तुकामः सपदि प्रखः । न ते दीपविनाशनार्थ समुत्पतन् किं सहसा पतंगः ॥ १७ ॥ जिनेंद्रचंद्रेण विनातिघोरं जगत्तमो नैव विनाशमति । उच्चारमात्रेण यदीयनाम्नो घोराणि दुःखानि जना जयन्ति ॥ १८ ॥ कृत्स्नैरवेद्यो जिन विधवेत्ता सर्वैरदृश्योऽप्यसि विद्यथा । गुरुर्गुरुणामगुरुर्गुरो सन्ननीश्वरस्त्वं जगदीश्वरोऽसि ॥ १९ ॥ अक्रयमप्यर्थितमर्थयुक्तैर चिंत्यमर्हन्ननुचितये त्वाम् । आवेदमानं सुवृंदवंद्य वंदे जिनेंद्र जितरागमोहम् ॥ २० ॥ विश्वेश्वरं मन्मथधूमकेतुं योगीश्वरं नित्यमसंख्यमेकम् । गुरुं वं स्थूलमथापि सूक्ष्मं त्वां सर्वरूपं प्रवदन्ति संतः ॥ २१ ॥ अशोकभामंडलपुष्पवृष्टिश्वेतातपत्रत्रयचामरौघाः । दिव्यध्वनिश्वासन दुंदुभी च प्रदर्शयन्त्येव तवेश्वरत्वम् ॥ २२ ॥ समीहितार्थप्रतिपत्तिहेतुं त्वां ज्ञानराशि विमलं वरेण्यम् । For Personal & Private Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ ] अध्याय आठवाँ । शक्राधिदेवं सदयं शरण्यं शक्रादिदेवाः शरणं व्रजन्ति ॥ २३ ।। यथोचितं भक्तिविराजमानैर्यक्षरसंख्यैरनुगम्यमानः । त्वत्यापशाखानखदिव्यदीप्त्या विभ्राजमानं कुरुते किरीटम् ॥ २४ ॥ यमोऽपि मत्तं महिष प्ररूढः पत्नीसमेतो धृतधर्मदंडः । बद्धांजलिस्तिष्ठति देव नम्रः करः प्रकृत्याऽपि हि पूजयंस्त्वाम् ॥२५॥ प्राप्ताश्च शेषाः प्रतिहारभूमि नाथा दिशामादरपालिताज्ञाः । कल्पद्रुपुष्पाणि तवांध्रियुग्म किरन्ति भक्तिप्रणतोत्तमांगाः ।। २६ ।। गंभीरमंद्रध्वनिपूरिताशा: प्रशस्तवाचो धृतदिध्यवीणाः । गंधर्वपूंगास्तव कीर्तिमच्छां गायन्त्यहो भक्तिविशुद्धदेहाः ॥ २७ ॥ ध्यायन्ति ये पूज्यमनन्तवीर्य नाथं त्रिसंध्यं करुणापयोधिम् । असंशयं ते क्षतकर्मबंधाः कल्याणभाजो मनुना भवन्ति ॥ २८ ॥ तस्मात्प्रमादानवधूय जन्तोः संरक्षणार्थं भवदुःखसंघात् । लोकस्य निष्कारणबंधुमेतं श्रीशान्तिनाथं भज शान्तिहेतुम् ॥ २९ ।। स्तोत्रैमत्रैः कठिनतपसा चाथ भक्त्याप्रणत्या यः स्मृत्या वा विशदहृदयः सेवते देवदेवम् । पुण्यात्मानं कथभिव नतं संश्रयंते नृवर्यम् । लक्ष्मीविद्याऽभिमतफलदातापशान्तिश्च मुक्तिः ॥ ३० ।। या चौगुलेत्युपाढेन अण्णप्पा नामधारिणा ।। जिनभक्त्यावनम्रेण वेणुग्रामनिवासिना ।। स्तुतिस्तापापहाराख्या जिनस्य रचिता तु सा। तनोतु विदुषो हर्ष पिकस्यैवाम्रमंजरी ।। युग्मम् ।। इति सर्व शुभम् । " करकृतमपराधं संतुमर्हतु संतः ॥" For Personal & Private Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और बियोग। [२६३ इति महाराष्ट्रदेशे पुण्यपत्तनवर्तिनि दक्षिणविद्यालय आंगलविद्यादि संस्कृतकाव्यालंकारव्याकरणाद्यधीयानेन वेणुग्रामनिवासिना चौगुलेत्युपनाम्ना अण्णाप्पाभिधानेन विरचितं श्रीतापापहारस्तोत्रम् । सेठ माणिकचंदनीकी इंग्रेजी पढ़नेवालोंको छात्रवृत्ति दिये जा नेकी खबर दूर दूर फैल गई थी। लखनऊ बाबू अजितप्रसादजी निवासी बाबू अजितप्रसाद एम. ए. का विलायत जानेके एल. एल बी. वकील, सम्पादक, इंग्रेजी लिये निवेदन । जैन 'गजट से हमारे पाठक अच्छी तरह परि चित हैं । आपने सेठजीको पत्र दिया कि मैं सिविल सर्विस पास करनेके लिये विलायत जाना चाहता हूं। मैंने इसी वर्ष (सन् १८९३) वी० ए० पास किया है, उम्र १९ की है । हररोज़ स्वाध्याय करता हूं । दर्शन भी करने जाता रहता हूं। मुझे विलायत जानेको रुपया कर्ज चाहिये । उस समय इनके पिता कमसरियटमें क्लर्क थे। इतनी शक्ति नहीं थी जो द्रव्यका प्रबन्ध कर सकें । दि० जैन समाजमें विलायत भेजनेमें भिन्न २ सम्मति होनेके कारण सेठजीने स्वयं मदद नहीं दी किन्तु जैन बोधक अगस्त १८९३में इनका पत्र प्रगट कराकर अन्योंको प्रेरणा करवा दी कि सहायता करें, पर इसका कोई भी प्रबन्ध नहीं हुआ। वास्तवमें बहुतसे छात्र धनकी मदद के विना अपनी इच्छानुसार विद्या सम्पादन करनेसे वन्धित रह जाते हैं। For Personal & Private Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] अध्याय आठवाँ । भारतवर्षीय दि० जैन महासभा नामकी सभा पंडित चुन्नीलाल मुरादाबाद व अन्य परोपकासेठ माणिकचंदजीका रियोंके उद्योगसे सन् १८९१ में व संवत् महासभा मथुरामें १९५७में मथुरा जंबूस्वामीजीके मेले पर प्रथम गमन। संगठित हुई थी इसके सभापति श्रीमन् सेट लछमनदासजी सी० एम० आई, मथुरा व उपसभापति रायबहादुर सेठ मूलचंदनी सोनी, अजमेर व लाला उग्रसेनजी सहरानपुरवाले आदि थे। संवत १९५० के वार्षिक अधिवेशनके लिये मुम्बई स्थानीय सभाने ३१ प्रतिनिधि चुने थं पर मेलेके समय जो सदा कार्तिक वदी २से ८ तक होता है निम्नलिखित चार महाशय पधारे । (१) सेठ माणिकचंदनी (२) सेठ गुरुमुखरायजी (३) सेट हीराचंद नेमचंदनी (४) और पंडित गोपालदासजी वरैया । इस वर्ष मेलेमें १०, १५ हजार आदमियोंकी भीड़ थी। मथुराके चौरासी स्थानपर शहरसे २ मील एक बड़ा भारी जिन मंदिर है। वहां अंतिम केवली श्री जंबूस्वामीजी महाराजके मोक्ष जानेके चरण चिन्ह स्थापित हैं तथा श्रीअजितनाथजीकी बहुत विशाल वीतरागता प्रदर्शक मूर्ति है। इस वर्ष आगरा, अलीगढ़, हाथरस आदि १३ नगरोंसे श्रीजीकी वेदियां जलेब सहित आई थीं। कार्तिक वदी ७के दिन सेठ लक्ष्मणदासजीके डेरेपर नियमावलीका विचार हुआ। रात्रिको मंदिरजीमें शास्त्र छपने न छपनेकी चर्चा चल पड़ी थी। सेठ हीराचंद नेमचंदने पुस्तक छपनेकी पुष्टि व For Personal & Private Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [ २६५ पंडित प्यारेलाल, छेदालालजीने विरोध में व्याख्यान दिये थे तथा लोगोंको प्रेरित किया था कि कोई मुद्रित पुस्तक न खरीदे । अष्टमी के दिन रायबहादुर सेठ मूलचंदजीके डेरेमें सर्व प्रतिनिधि जमा हुए। मूलचंदजीने कहा कि रायबहादुर सेठ मूल- एकता के अभाव से सभा होना कठिन है । चन्दजीका उपदेश | विद्यावृद्धिके लिये ग्राम २ में पाठशाला खोलो, कालेज के लिये रुपया आना कठिन है। इससे महासभा व कालेजकी बातें सत्र छोड़ो। मद्यमांस छुड़ानेका उपदेश दो । ऐसे बड़े मेले में हजारों आदमी आते हैं, पंडित लोगों की चर्चा वे सुन नहीं सक्ते । ऐसे मेलेमें सब लोग समझें ऐसा साधारण 'धर्मका उपदेश खड़े होकर देना चाहिये। रात्रिको शास्त्रसभा के पीछे सेठ मूलचंदजीने खड़े होकर धर्मके विषय में व्याख्यान दिया तथा सेठ लछमणदास के डेरेपर नियमावली पर विचार हुआ । उस समय लाला रूपचंदजी (सहारनपुर ) ने भी कहा कि यहां तो कुछ सुननेको मिलता नहीं सो कोई खड़े होकर उपदेश देने में ऐसा उपाय सोचो कि जिससे मेलेके सब लाला रूपचंदजीकी राय । लोग शास्त्रजीको सुन सकें। सबको सुनानेके वास्ते खड़ा रहके बांचे तौभी कुछ हर्ज नहीं हैं परंतु सत्रको उपदेशका लाभ मिलना चाहिये । अंत में नियमावली "पसंद हो गई। दूसरे दिन रातको सभा हुई । नियमावली स्वीकृत हुई, कार्याध्यक्ष नियत हुये । सभा के मंत्री पंडित प्यारेलालजी अलीगढ़, मूलचंद वकील मथुरा, व भैरोप्रसादजी इलाहाबाद नियत हुए । 1 For Personal & Private Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ ] अध्याय आठवाँ । अपने डेरेपर आकर सेठ हीराचंद और सेठ माणिकचंदजी बातें करने लगे कि अभी जैनियों में सभाका सेठ हीराचंद और सेठ शौक बहुत कम है तथा अज्ञानता बहुत है। माणिकचंदजीकी इसका कारण यही है कि हमारे भाई शास्त्र वार्तालाप। स्वाध्याय नहीं करते। इसके न होनेमें एक अंतराय सुलभतासे ग्रंथोंको नहीं प्राप्त करना है। यदि ग्रंथ मुद्रित हो जावे तो हरएक भाई इच्छानुसार लेकर पढ़ सक्ता है। देखो अपने मंदिरों में प्रायः पोथियोंमें भक्तामरजी, सूत्रनी, व पूजा पाठ अशुद्ध लिखे मिलते हैं। लोग अशुद्ध ही पाठकर जाते हैं। अर्थ पर तो कुछ ध्यान देते नहीं, पर छापनेमें यह फायदा है कि एक प्रति शुद्ध करली गई तो उससे हज़ारों प्रति शुद्ध तय्यार हो सक्ती हैं, देखो मैं आपको (पुस्तक हाथमें देकर) यह भक्तामरस्तोत्र दिखाता हूं इसमें गुजराती भाषामें अर्थ व पद्य देकर आमोद निवासी सेठ हरजीवन रायचंद शाहने छपवाया है। इससे हमारे गुजराती भाई स्तोत्र का शुद्ध पाठ भी कर सकेंगे व अर्थका भी बोध होगा कितना बड़ा लाभ है। गुजराती अर्थ सहित यह पहली ही पुस्तक है जो गुजरातके दिगम्बर जैनीने छपवाई है। सेठ माणिकचंदने उस पुस्तकको इधर उधर पढ़ा। बड़े ही प्रसन्न हुए और उसका पता ठिकाना अपनी नोटबुकमें लिख लिया। आगे चलके सेठ हीराचंदनीने कहा कि अब ग्रंथोंका मुद्रण बंद नहीं हो सक्ता। आप जानते ही हैं कि मैंने क्रियाकोश रत्नकरंड श्रावकाचार, संस्कृत पूजापाठ, भजनसद्बोध मालिका आदि कई ग्रंथ प्रसिद्ध कर दिये हैं For Personal & Private Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग आर वियोग। [२६७ व अपने पत्रद्वारा भी ग्रंथोंका भाव प्रगट कर रहा हूँ। सोनपतवाले पंडित मथुरादासजीके भाई मेहरचंदनीने सज्जनचितवल्लभ टीका सहित व नाना रामचंद्र नाग जैन ब्राह्मणने निर्वाणकांड, रूपचंद कृत पंच मंगल व त्यागी महाचंद्रकृत समायिक पाठ भाषा छपवाए हैं तथा मदरासमें आपर्ट साहबने शाकटायन व्याकरण छपाया है जो १०)में मिलता है तथा बड़ौदाके महाराजने समाधिशतक व नीतिवाक्यामृत, जैन ग्रंथोंको गुजराती व मराठी भाषांतर कराकर छपानेका विचार किया है। षड्दर्शन समुच्चय, द्वयाश्रय महाकाव्य, बुद्धिसागर आदि जैन कायोंके प्रकाशके लिये बेंगलोरके मैसुर आर्चिलडिकल आफिसमें काम करनेवाले पं० पद्मराजराणाने काव्यांबधि प्रकाश मासिक पुस्तक निकालना प्रारंभ किया है। सेठ माणिकचंदजीने कहा-पंडित प्यारेलालजी कितना ही मना करें परंतु मुद्रित ग्रंथोंका प्रचार अब बन्द नहीं हो सकता और ऐसा विना हुए इस कालमें ज्ञानकी वृद्धि भी नहीं हो सकी। इतना वार्तालाप करके दोनों निद्रित हो गए। .. . बम्बई लौटकर सेठ माणिकचंद आनन्दसे अपने कार्य व्यवहारमें लीन हो गए । यह अपने बंगलेमें रोज प्रातःकाल अनेक समाचार पत्रोंको पढ़ा करते थे । एक दिन एक अखबारमें वीरचंद राघवनीके पत्रकी नकल वांची जो उन्होंने जैन एसोसियेशन आफ इंडियाको भेनी थी और जिसमें चिकागो व अन्यत्र जैनधर्मके व्याख्यानोंसे क्या २ लाभ हुआ सो लिखा था। यह पत्र जैनबोधक अंक १०९ माह सप्टेम्बर १८९४ में मुद्रित है जिसको उपयोगी जानकर हम उसकी पूरी नकल नीचे प्रगट करते हैं: For Personal & Private Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -~ ~ ~ ~ ~ २६८ ] अध्याय आठवाँ । नकल पत्र वीरचंद राघवजी। “में अगाउ चे पत्र सवीस्तर लख्या पछी हुं फरीथी सविस्तर लखी शक्यो नथी तेनु कारण अहिंनी स्थिति संपूर्ण समज्या पछी जाणवामां आवशे. आ देशमां भाषणो आपवानी पण ऋतु होय छे. गरमीना दिवसोमा माग्येन भापणो आपवामां आवे छे. अहिं शियाळाओमां तथा पानम्वर ऋतुमा बहु भापगो आपवामां आवे छे. हूं अहीं सप्टेंबरनो शरूआतमा आयो ते बलते पानखर ऋतु शरू थई हती, जुदा जुदा धर्मा विषे वादविवाद चलावा माटे करवाना आवेला मेलाबडानी बेठक पण ए वखते शरू थई गई हती. अने ते सप्टेंबरनी आखरे खलास थई गई हती. हिंदुस्तानना धम संबंधी ए मेलावडामा सारां भाषणो थवाथी लोकोनी रुचि ए धर्मो उपर वधारे थवा लागी हती. मेलावडामा जुदा जुदा धर्मा संबंधी एटलां बयां भाषणो थवानां हतां के, दरेक प्रतीनिधिने फक्त त्रीस मिनीट बोलवा देवानी परवानगी मी हती. तेने लीधे ब्राह्मण धर्म, बोद्धधर्म तथा जैनधर्म वच्चे शो फेर छे ते लोकोने यथास्थिति मालम पड्युं न हतुं. लोकोनी मात्र एटली खात्री थई हती के, हिंदुस्तानना धर्मो खीस्ती धर्म करतां वधारे उत्तम छे. आटली असर लोकोनां मन ऊपर थया पछी एकदम हिंदुस्तान पाछा चाल्या आवईं ए मने ठीक लाग्यु नहीं. जैनधर्म ए बौद्धधर्म तथा ब्राह्मण धर्म करतां जुदो छे एम समजाववानी मारी फरज हती. अत्यार सुधी अहिंयां केटलाक लोको एम समजता हता के, हिंदुस्तानना लोको तमाम बौद्धधर्मना छे. घणा लोको वळी एम धारता हता के, हिंदुस्तानमां तमाम लोको ब्राह्मण धर्मना छे. जैनधर्म ए शुं तेने For Personal & Private Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२६९ विषे लोकोने जरा पण खबर नहीं हती. आ मेळावडो थयो त्यारे लोकोने मालम पड्यु के " जैन " ए नामनो पण एक धर्म छे.. सर एडवीन आरनोल्ड नामना एक अंग्रेन गृहस्थ " लाइट ओफ एशिया" नामनुं पुस्तक (जेमां गौतम बुधनुं जन्मचरित्र कवीता रूपी आपलं छ ) प्रसिद्ध कर्यु हतुं अने ते आ देशमा बहु फेलाव्युं हतुं, तेने लीधे बौद्धधर्म धर्म जगाए जगाए प्रसिद्ध थयो हतो परंतु जैन धर्म संबंधी लोको. पयोगी पुस्तक अंग्रेजी भाषामां छपायलं नहीं होवाथी ए धर्म संबंधी लोकोने कशी माहीती न हती. आवां कारणोने लीधे मारा मनमां एवो विचार थयो के टुं आ देशमां जैन धर्मन माटे आव्यो अने ए धर्मने माटे माराथी बने तंटली उन्नति न थाय त्यां सुधी मारूं अहीं आवळु नकामुं तुं. आ देशमा लोकोनी खीस्ती धर्म उपरथी श्रद्धा ओछी थती जाय छे त्यारे एवे प्रसंगे मारी फरज छ के, जैन धर्म संबंधी ज्ञान आ देशमां मारे फेलाबबुं जोइए. मेलावडो खलाश थयो एटले चिकागो शहरमां जुदी जुदी जगाए भाषणो आपबानो मारो विचार थयो परंतु ऋतु वणी थंडी हती तथा खुली जगामां भाषणो आपी शकाय नहिं तं होवाथी ते माटे खास बंदोबस्त करवा अहिंना केटलाक उमदा विचारना पादरीओने मळ्यो अने तओए पोताना देवलोमां मने भाषण करवानी परवानगी आपी. चिकागोना लोकोने जाहेर रीते मालूम पडयूं के मेळावडो पुरो थया पछी हुं अहीं थोडो वखत रहेवानो छु तेथी घणा लोको हुँ जे मकानमा रहुं छु त्यां मने मळवा आववा लाग्या. जैन धर्म संबंधी कर्मनु स्वरूप केतुं छे ते तथा स्वर्ग, नर्क, मोक्ष, देवलोक, आ For Personal & Private Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwwwwwwwranam........ २७० ] अध्याय आठवाँ । त्मा, पुण्य, पाप वगेरे घणा घणा विषयो उपर मारे ए लोको साथ वातचीत थई. केटलाक लोकोए मने कडं के जैन प्रतिनिधि तरीके मारी फरज छे के हिंदुस्ताननी जुदी जुदी फिलमुफी अथेति पड़ दर्शननुं स्वरूप मारे समजावई जोईए अने साबित कर जोईए के जैन दर्शन सघळा दर्शनोमां उत्तम छे. ए उपरथी ने मकानोमा हुँ रहूं छु त्यां एक वर्ग उघाडवामां आव्यो, तेमां आशरे ५० पुरुषो तथा स्त्रीओ जैन धर्म अने तेनां तत्व शूछे ते संबंधी ज्ञान मेळववा माटे आववा लाग्या. ता. १५ मी में सुधी में ए प्रमाणे कर्यु. हुं चिकागोना जे भागमा रहुं हुं तेने एंगलवुड कहे छे. त्यांथी आशरे दश माईल उपर वोनु एक वेस्ट चिकागो नामर्नु परुं छे. त्यांना लोकोए पण मने कह्य के तेओ आटले दूर मारां भाषणो सांभळा आवी शके नहिं तेथी मारे ते जगोए जई भाषणो आपवां जोईए. त्यां एक नाहेर मकान नही हतुं अने मकान भाडे लेवा नईए तो पार विनानो खर्च थई नाय तेथी मो. पोटर्सन नामना एक उमदा दिलना ग्रहस्थना घरमां गोठवण करवामां आवी हती, त्यां पण ता. १५ मी मे सुधी में भाषणो आप्यां. एंगलवुडमां युनवर्सलीस्ट चर्च नामर्नु एक स्त्रीस्ती देवल छ, त्यां पण में एक भाषण आप्यु. हाइडपार्क नामर्नु एक परुं छे, त्यांना प्रेसबीटेरियन चर्च नामना देवलमां पण में एक भाषण आप्यु. ओल सोल्स चर्च नामना देवलमा छ वखत में भाषणो आप्यां हतां. हाइलपार्क नामना बीना एक परामां में भाषणो आप्यां.कुक काउनटी नार्मल स्कूल नामनी अत्रे एक प्रख्यात शाळा छे तेना प्रोफेसरो तथा विद्यार्थीओ समक्ष में एक भाषण आप्यु हतुं. इलीनेइस प्रेस For Personal & Private Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२७१ विमेनस कलब हजूर पण में एक भाषण आप्यु हतुं. कोरीसन चर्चमां एक सब जडन शेरमेनना घरमां त्रण अने इवींग क्लबमा एक भाषण आप्यु हतुं. 'धी फर्स्ट सोसायटी ओफ स्पीरिच्युआलीस्ट' नामनी एक मंडलीनी सभामां चार वखत में भाषणो आप्यां हता. ए सिवाय बीजी घणी जगाए में जाहेर भाषणो आप्यां छे, ए जाहेर भाषण सिवाय मारी स्थापित विद्याशाळामां में वारंवार भाषणो आप्यां ते तो जुदा अने सैंकडो लोको हुँ जे मकानमा रहें छु त्यां मळवा आवी धर्म संबंधी चर्चा करे ते पण जुड़ी. आवी रीते अत्यार सुधी मारो तमाम वखत भाषणो आपबामां तथा लोको साधे धर्मनी चर्चा करवामां गयो छे. एक पण दिवसनी रातना १२ वागा अगाऊ सुवा पाम्यो नथी. शियाळो खतम थयो छे तेथी भाषणो आपवानी ऋतु पण खतम थई छे. वसंत ऋतु चाले छे अने गरमी पडवा लागी छे तेथी लोको थंडी जगाओमां जवा लाग्या छे एटले हवं हुं फुरसद लई शक्यो छु. अत्यार सुधी में चिकागो तथा तेनी आसपासनां परांओमां भाषण आप्यां छ. चिकागो तथा शहेरमां पंदर लाख माणसनी वस्ती छे. तेथी त्यां आटलां भाषणो आपवानी जरूर हती, परंतु युनाईटेड स्टेट्स मोटो देश छे अने बीनां शहरोमां पण भाषणो आपवाथी जैन धर्मनी कीर्ति जगाए जगाए फेलाशे, एवा हेतुथी हूं बीना शहेरोमां भाषणो आपवानो इरादो राखं छु. सफ्टेम्बर माप्त पछी भाषणो आपवानी ऋतु शुरु थशे तेटला वखतमा जुदा जुदा विषयो उपर भाषणो आपवानुं हुं नक्की करी राखीश. ऑगस्ट मासनी ता. ५-१२ तथा १९ ना रोजे न्युयार्क पासे आ For Personal & Private Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ ] अध्याय आठवा । वेला लीलीडेल नामना शहेरमा हजारो लोको समक्ष जैन धर्म उपर भाषणो आपवा माटे त्यांना लो कोए मने बोलाव्यो छे. ते वखते हूं त्यां जईश. हिंदुस्तानना लोको विषे ख्रीस्ती धर्मना मिशनरीओ आ देशमां एटला बचा खोटा विचारो दर्शा छे के ते विचार दूर करवानी हिंदुस्तानमां जन्मेठा दरेक ग्रहस्थनी करन छे. दाखला तरीके आ मेलावडामां हाजर रहे ला लंडाना एक मीशरो डाक्टर पेटेकोस्टे हिंदुस्तानना तमाम लो कोनी वर्तणुक उअर मोटो हुमलो को हतो. जैन धर्म संबंधी ते कशु बोल्यो नहतो. पण सामान्य रीते हिंदुस्तानना लोको विरूद्ध तंगे भाषण आप्यु हतुं. बीजे दिवसे जैन धर्म संबंधी भाषण आपवानी मारी वारी हती, तेथी जैन धर्मसंबंधी भाषण आयवा पहेलां में टुंकामां ए मीशनरीने सारी रीते जबाव आप्यो हतो. आ मेलाबडानी मुख्य असर ए थई छे के, अहिंना लोको ख्रीस्ती धर्म उपर श्रद्धा ओछी राख वा लाग्या छे अहिंना खोस्ती देवलमा जनारा लोको केटला छ तेनो तपास करतां मालम पडे छे के चिकागोनी वस्तीमांयी दर बसे माणसे फक्त एकन माणः रविवारे देवलनां जाय छे. बाकीना माणसो बीलकुल देवलां जता नथी. परन्तु में खोस्ती देवलमां भाषणो आप्पां हतां त्यारे जे लोको कोईपग दिवसे त्यां आव्या न हता ते मारा भाषणो सांभळवा आव्या हता. जैन धर्मनी खूबीथी मीसीस चार्ल्स हारवडे नामनी एक बानु एटली बधी खुशी थई छे के तेणीए मांसाहारनो त्याग कर्यो छे. तेणीए तथा तेणीना पतिए चोथु व्रत आदर्यु छे, अने हुँ हिंदुस्तान पहोंचीश त्यार पछी हूं पसन्द करूं तेवा एक जैन छोकराने पुरेपुरी केळवणी आपवाने For Personal & Private Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rekh MOO श्रीमती मगनबाई और उनके पति श्रीयुत खेमचंद जी. (देखो पृष्ठ २४४ ) 100sec J. V. P. Surat. For Personal & Private Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और बियोग । " [ २७३ जेटलो खर्च थाय तेटलो आपत्राने तेओए कबुल कर्युं छे. अमेरिकाना केटलाक वर्तमान पत्रोए जैनधर्म विषे पोताना उत्तम मतो जाहेर कर्या छे. त्यानां ' धी आई नामना एक पत्रमां गई ता० २३ मी मार्चना अंकमां एवं लखाण करवामां आव्युं छे के भाषणनो विषय जैनधर्म अनं ते धर्म विषे मी० गांधी अहींना मेळावडांमां पोताना लोको तरफथी भाषण करवाने आव्या हता. जुदा जुदा देशोमांथी आवेला अनेक विद्वान प्रतिनिधीओए मेळावडामा अने ते खलास या बाद पूर्व देशना धर्मो विषे जे भाषणो कर्यो हतां, ते तमाम धर्मो करतां बुद्धिवान अमेरिकन लोकोनुं वलण जैनधर्म तरफ वधारे सारीरिते युं छे " यह पत्र गुजराती में है तो भी हमारे पाठक समझ गए होंगें । इससे यह झलकता है कि वीरचंदने अपने लगातार व्याख्यानोंका ऐसा असर जमाया कि इनके पास ५० के करीब स्त्री पुरुष जैन तत्वज्ञान सीखने के लिये आने लगे तथा पादरियोंने गिरजाघर में भाषण देनेकी इजाजत देदी । एक स्त्री और उसके पतिने चौथा वन लिया तथा ४ जैन बालक पूर्ण धर्म विद्या पढ़े इसके कुल खर्चको उठाना मंजूर किया। दूसरे किसी दिन सेठजीने एक चिकागोकी मेमकी चिट्ठीका तर्जुमा एक पत्र में पढ़ा जिसमें इंग्रेजी भी छपा था । वह पत्र यह है "To the Editor of the Pioneer. The Jain Community was very' ably represented by Mr. Veerchand Raghaojee Gandhee B. A. of Bombay, who made an exceedingly १८ " For Personal & Private Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ ] अध्याय आठवाँ। favourable impression and continues to do so in the lecture courses which he is still delivering in verious parts of the country. " Chicago 30,2 Merwin Marie Snell. January. भावार्थ । सम्पादक: " पायोनियर " वीरचंद गांधी बी. ए. बम्बईन जैन जातिकी तरफसे बहुत योग्यता दिखाई, बहुत बड़ा असर पैदा किया और अब जो देशके भिन्न २ भागोंमें व्याख्यान दे रहे हैं उससे अमर बढ़ता जाता है... चिकागो, ३. जनवरी। दः मरविन मैरी स्नेल ( जैन बोधक जून १८९४ ) एक दिन सेठ माणिकचंदको महासभाके अधिवेशनकी याद पड़ गई । शास्त्रोंके छपने न छपनकी सेठ हरजीयन गयच- चर्चा दिलमें आ गई । सेटजीके दिलमें न्दसे परिचय। सेठ हीराचंदनीका बहुत बड़ा मान था। प्रेम भी खूब था। हरएक बातमें इनकी साह लेते थे । धार्मिक मित्र ही मानते थे इससे मेट हीराचंदके समान सेठ माणिकचंदजी भी ग्रंथ मुद्रणके पक्षपाती थे । इनको पूर्ण विधास था कि विना मुद्रित ग्रंथोंके स्वाध्यायका प्रचार नहीं हो सकता। इतने हीमें इन्होंने उस भक्तामरजीको याद किया जो गुजराती अर्थ सहित छपा हुआ मथुरामें देखा था । For Personal & Private Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [ २७५ पता इनकी नोटबुक में लिखा ही था। आपने श्री भक्तामरजीकी बहुतसी प्रतियां मंगाकर अपने घरमें व दूसरे पाठ करनेवालको बाटनेके लिये सेठजीने प्रथम ही एक पत्र सेठ हरजीवन रायचंदको आमोद लिखा जिन्होंने अनुवाद करके प्रकाशित किया था । यह नरसिंहपुरा जातिके एक सुशिक्षित गृहस्थ हैं, जैन शास्त्रोंके मननका अभ्यास है, तत्त्व को समझते हैं, परोपकारी हैं, गुजरात में माननीय हैं। सेठजीका पत्र पति ही सेठ हरजीवन रायचंद को बहुत हर्ष हुआ। क्योंकि यह तो इनके कर्ण गोचर हो ही चुका था कि बम्बई में सेट माणिकचंद जौहरी एक बड़ा ही धर्मात्मा, परोपकारी व मिलनसार सेठ है । इनके प्रतापसे बहुतसे गुजराती बंधुओंने बम्बई में बन्दा प्राप्त किया है । सेठ हरजीवन रायचंदने पुस्तकें भेजीं व उत्तरमें एक लम्बा चौड़ा पत्र लिखकर गुजरात देशके अज्ञानकी दशा बतलाई । यह पत्र बांचकर सेठजीको बहुत ही सन्तोष हुआ । सेठजी जैसे पत्थर पहचानमें जौहरी थे वैसे मनुष्यकी भी पहचान करनेवाले सच्चे जौहरी थे। ऐसे विद्याप्रेमी, परोपकारी पुरुषोंके लाभको महान लाभ समझते थे । इस पत्रका उत्तर सेठजीने दिया और उपदेश किया कि वे कुरीतियां बन्द करने में, व स्वाध्यायके प्रचार में परिश्रम करें। तथा बालकोंके लिये पाठशाला खोलें । यहींसे इनका सम्बन्ध प्रारंभ हुआ। अब तो वर्षमें दोचार दफे परस्पर पत्र व्यवहार होने लगा । धर्म सम्बन्धी पुस्तकोंका गुजराती में भाषान्तर करने को कई दफे सेटजीने लिखा । For Personal & Private Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ अध्याय आठवाँ । .. सेठ माणिकचंदजीको पालीताना सेजयके उद्धारका बहुत बड़ा ध्यान था और ऐसा ही मुनीम धर्मचंएक विधवाका दनीको था जो सच्चे दिलसे तीर्थकी उन्न२०००) का तिमें दत्तचित्त थे । दक्षिण हैदराबाद दान। निवासी सेठ पूरणमल हणमंतराम पांड्याकी. विधवा बाई रामबाई पालीताना पधारी थी। आप धर्मचंदजीके उपदेशसे २०००) के दानका उपयोग नीचे प्रमाणे कार्यों में करनेको कह गई: २००) पालीतानाकी नई धर्मशालामें कोटरी नग १ बनाना । ११००) पहाड़पर शांतिनाथजीके मंदिरके मोटे मंडपमें संगमर्मर पत्थर लगाना। ५००) ग्रामके नयं मंदिरजीमें जो गभारा है उसमें चांदीके. द्वार जड़े जावें । २००) सं० १९५१ की प्रतिष्ठाके समय नए मंदिरमें एक प्रतिमा पधराई जावे । इस खबरको सेठ माणिकचंदने सं० १९५० जेठ वदी १४. सोमवारके दिन लिखकर जैन बोधकमें छपाने भेजी दी जो इस पत्रके अंक १०७ जुलाई १८९४ में मुद्रित है। इस पत्रके नीचे सेठजीका यह रिमार्क था " एकठां काम करवाने बे हजार रुपीया बाई आपी गयां - छे तेने संघ तरफथी अने हमारी तरफथी धन्यवाद आपिये छिये । अमें सरवे बंधुजनोने विनंती करिये छीये के एहवा उदार दिलना भाईयोने पईसा सारी ठेकाणे वापरवाने हालमां सउथी उत्तम For Personal & Private Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [ २७७ ठेकाणुं श्री शोलापुरना चतुर्विध दानशालामां मदत करवी. ए ठेकाणुं घणुं लाभनुं छे । " पाठकों को इससे मालूम होगा कि विद्यादान आदि ४ प्रकारके दानोंका व उसके होनेवाले कार्यका कैसा महत्त्व सेठ माणिकचंदजीके दिलमें था । बम्बई दि० जैन सभा सेठ माणिकचंदके मंत्रित्व व पंडित गोपालदासके उपमंत्रित्व में बहुत कायदे से दि० जैन सभाबम्ब- काम करने लगी । इसका प्रथम वार्षिकोत्सव ईके कार्य । मगसर सुदी १४ को हुआ । सालमे १५ अंतरंग व १९ उपदेशक सभाएं हुई। इस समय सभाके आधीन ३ खाते चालू थे । खाता खर्च सभा पाठशाला पुस्तक आमद २२३॥) ३६४॥=)॥ ३४८|||=)|| १२४) ।।। २६५) । १९३/-) बचत ९९| = )| ९९॥ =) १५५ ॥ - ॥ कुल ५८२/८)| ३५४ ॥ ॥ ९३७=) जैन पाठशाला में पं० जीवराम शास्त्री पहले नियत हुए। फिर पं० निवासाचार्य व एक ज्योतिष शास्त्री भी रखा गया। इसका उपयोग स्वयं गोपालदास और पं. धन्नालालजीने भी लिया । सं० १९५९ मगसर सुदी १४ तक पं० गोगलदास शाकटायन, सभासोत, चंद्रप्रभुकाव्य ६ सर्ग, सर्वार्थ सिद्धि पूर्ण, राजवार्त्तिक अध्याय, परीक्षामुख परिच्छेद १॥, अलंकार चिंतामणि प्रथमपरिच्छेद, For Personal & Private Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ ] अध्याय आठवाँ । कुवलयानंद पौन, गृहगणित स्पष्टाधिकारसे पूर्वतक, जिनेन्द्रव्याकरण थोड़ा, आदिनाथ पुराण पत्रे ५५-इतने विषय अपनी तीव्र बुद्धिके कारण पढ़ चुके थे तथा पं० धन्नालाल शाकटायन षड्लिंग, चंदप्रमु काव्य २॥ सर्ग, परिक्षामुख १ परिच्छेद ही कर सके थे । पुस्तक खातेसे लिखित ग्रंथ गोम्मटसार अष्टशती आदि भंडारमें मंगाये जाते थे । तथा सभाने एक परितोषिक भंडार भी कायम कर लिया था कि अमुक २ विषयोंमें परीक्षा देकर जो भारतमें कोई जैन विद्यार्थी उतीर्ण हों उनको ईनाम दिया जाय अर्थात् परीक्षालयकी नींव जेठ सुदी १ सं १९५१ को डाली गई थी। दसहरे आदि तिहवारोंपर बहुतसे रजवाड़ों आदिमें पशवध होता था उसको रोकनेके लिये कई दयावान पशु हिंसावदीका प्रयत्न जैनी भाई प्रयत्न कर रहे थे। उनमें हमारे और सूरतके लोगोंद्वारा सेठ माणिकचंदनी भी थे। प्रयत्नसे क्या मानपत्र । नहीं होता ? धरमपुरके महाराणाने अपने राज्यमें होनेवाले पशुवधको बंद किया तब सूरतके लोगोंने राजाको मानपत्र दिया उसका जवाब जो राजाने दिया वह जैन बोधक अंक ११२ दिस० १८९४ में मुद्रित है. जिसका सारांश यह है___मैं सन् १८९१ में राज्यगद्दीपर बैठा तब ही से मैं ऐसे रिवाजसे विरुद्ध था। मैंने बम्बई, सूरत बड़ौदा आदिके विद्वानोंसे ७५ मत शास्त्रीय प्रमाण सहित इस हिंसाके विरुद्ध मंगाए तबसे मैं बंद करना चाहता था सो इस साल बंद करा दिया है For Personal & Private Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२७९ तथा आमरण तालुकेमें भी कर दिया गया तथा मेरे राज्यमें चैत्र सुदी १५ के दिन मनुष्यको बड़ी निदेयतासे मारते थे व मनुष्यके कपालपर तलवारका जख्म करते थे सो सब बंद करा दिया है आदि।" __इसके बाद नगरसेठ गुलाबदासने महाराणा साहब व कुंवरको हार पहराथा । रूक्मणीबाईको विवाह लानेके बाद ही वह गर्भवती हुई और ९ मास बाद एक कन्याको जन्म दिया। सेठ पानाचंदको यह पहली संतति थी जो सेठ पानाचंदको पुत्रीका लाभ । प्राप्त हुई सेठ । पानाचंदने सामान्य रूपसे उत्सव किया । माता कन्याको पालने लगी। पालीताना राज्यमें जिस नये मंदिरको बड़े परिश्रमसे सेठ माणिकचंद और नवलचंदने तय्यार कराया पालीताना मंदिरकी था उसकी प्रतिष्ठाका मुहूर्त माघ शुक्ल ५ प्रतिष्ठा । सं० १९५१ नियत था। जिसके लिये २ मास पहलेसे खास तयारियां करानेके लिये सेठ माणिकचंदजीने मुनीम धर्मचंदको ताकीद की थी। नई धर्मशालाके ज़मीनमें दो दो सौकी लागतके १० कोठे बनवाए तथा जो २००) दे उसीका नाम लिखा जाय ऐसा प्रस्ताव किया। ठहरनेके लिये श्वेताम्बरी धर्मशालाएं भी ली गई। भावनगर व घोघाके भाई एक मास पहलेसे यहां रहकर सब प्रबन्ध करने लगे। प्रतिष्ठाकार शोलापुरके सेठ हरीभाई देवकरण और रावजी कस्तुरचंदजीने १ मास पहलेसे अपनी ओरसे For Personal & Private Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ~ २८० ] अध्याय आठवाँ। भाजनशाला खोल दी थी कि किसी जैनी भाईको भोजनपानका कष्ट न हो । बम्बईसे तीनों भाई सर्व कुटुम्ब सहित पालीताना कई दिन पहलेसे आ गए थे। शोलापुरके बहुत महाशय तथा गुजरात देशके व कुछ उत्तर हिन्दुस्थानके यात्री करीब ५००० के जैनीभाई एकत्र हो गए थे । भट्टारक कनककीर्ति प्रतिष्ठाकारक थे । श्री शांतिनाथ स्वामीके धातु व पाषाणके मनोहर बड़े २ बिम्ब निर्माण कराए गए थे। मंदिर भी बहुत ही रमणीक स्वर्गपुरीके मंदिरके समान तय्यार हुआ था । रंगावेजी व पत्थर व चांदीका काम था। जो यात्री पालीताना गए हैं उनको उस मंदिरकी शोभा याद होगी। इस समय सूरतकी गादीके भट्टारक श्री गुणचंद्रनीको निमंत्रण नहीं किया गया था तोभी आप आगए थे। दोनों भट्टारक अपने २ मान पुष्ट करने व पैसा एकत्र करनकी ही धुनमें थे उपदेश व धर्मचर्चाका ख्याल न था । दोनोंमें बात बातपर तकरार होती थी। ज्ञान कल्याणकका दिन माघ सुदी ४ रात्रिको ७ बजे था परन्तु श्री गुणचंद्रजी भट्टारकन बड़ा ही विन्न किया और कहा कि मेरे आम्नायवालोंने जितनी प्रतिमा प्रतिष्ठा कराई हैं उनको सूरमंत्र हमदेंगे तथा हमें कितना रुपया दोगे ? जबतक यह पक्का न होगा कल्याणक न होने देंगे। सूरमंत्र देनेके समयमें परस्पर मतभेद होनेसे रात्रिके १२ बज गए तब कल्याणक हुए। यहां तब भाट लोगोंने झगड़ा किया कि प्रतिमाके आभूषण हमको मिलने चाहिये पर पुलिस व राज्यका उत्तम प्रबन्ध होनेके कारण कोई फिसाद न होकर सर्व शांति रही और सानन्द प्रतिमा माघ सुदी ५ को बिराजमान करदी गई । प्रतिष्ठा For Personal & Private Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । २८१ कारकोंने २२००) यहांके ठाकुर साहबको नजरानाके दिये । प्रतिष्ठाकारकोंने अपने प्रणके अनुसार रु० ११०००) श्रीजिन- . मंदिरजीके भंडारमें भी दिया और सर्व खर्चा । उठाया सेठ पानाचन्द माणिकचन्द और नवलचन्दनीने भी रु० २१००) भंडारमें दिये । तीनों भाइयोंने इस प्रतिष्ठाको निर्विघ्न पूरी करनेमें पूर्ण परिश्रम उठाया। मंदिर प्रतिष्ठाके बाद सेठ माणिकचंदको चिंता हुई कि धर्म __शालाका काम पूरा होना चाहिये । उसके पालीताना धर्मशा- लिये आपने अनुमान पत्र १२०००) रु. लाका प्रबन्ध । का बांधा जिसमें २५००) का एक बंगला तथा कुछ कमरे ४००) रु० व कुछ २००) रु० वाले बनने तनवीन किये । यात्रामें आए हुए लोगोंसे बहुत कुछ भरवाए, ४००) आपने दिये और १२०००) का प्रबन्ध कराके काम जारी करनेकी सूचना मुनीम धर्मचंदको की। जो १००००) का कर्ज सेठोंने मंदिर निर्माणके लिये दिया था सो इस प्रतिष्ठाकी आमदसे वसूल हो गया। सेट प्रेमचंदकी माता अपनी वैधव्य अवस्थामें व्रत उपवास करनेमें बहुत ही दक्ष थीं। हर समय धर्मरूपाबाईकी १२३४ ध्यानमें अपना काल बिताना यही इसे इष्ट उपवासकी तपस्या। था। सं० १९५१ में बाईने १२३४ बारहसौ चौतीस उपवासके करनेका नियम धारण किया। For Personal & Private Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२] अध्याय आठवाँ । १२३४ व्रतोंका हिसाब इस भांति है:अहिंसा महाव्रतके भेद १४ सत्य महाव्रतके भेद ८ अचौर्य व्रतके , ८ ब्रह्मचर्य व्रतके , २० परिग्रहत्याग महाव्रतके, २४ रात्रिभोजन त्यागवतके ,, १ मनवचनकाय गुप्ति ३ ईर्या समिति भाषा समिति , १० एषणा समिति आदान निक्षेपण स० १ प्रतिष्ठापना समिति . १३७ को मन वचन कायसे गुणे ४११ हुए, कृत कारित अनुमोदनासे गुणे १२३३ हुए इसमें अनिच्छा रात्रिभोजन त्याग भेद १ कुल १२३४ हुए। (जैनबोधक मार्च-अप्रेल १८९२) इस तरह १२३४ उपवास पूर्ण करनेपर यह व्रत पूर्ण होता है। इन उपवासोंको जब पूर्ण कर ले तब उद्यापन करे। एक वर्षमें जितने कर सके करे । लगातार करनेका अभिप्राय नहीं है । सो रूपाबाईने इस कठिन प्रतिज्ञाको धारण किया । सेठ माणिकचंदजी गृहस्थके व्रतोंके पालनमें भी बड़े. साव धान थे । अन्यायका धन लेना, असत्य सेठ माणिकचंदका बोलना, कुशील आचरणसे इनको पूर्ण परिग्रहप्रमाण व्रत । घृणा थी। जब यह पालीतानाकी प्रतिष्ठामें गए तब इनको परिग्रहका प्रमाण नहीं था। प्रतिष्ठा होनेके बाद रात्रिको एकान्तमें सेठजी और धर्मचंदनी अपने २ For Personal & Private Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ संयोग और वियोग । दुखसुख, धर्म कर्मकी वार्तालाप मित्रके समान कर रहे थे। तत्र धर्मचंदनीने कहा कि आपके पूर्वकृत पुण्यके उदयसे लक्ष्मीका लाभ हुआ है, पर लक्ष्मी तृष्णाको बढ़ानेवाली है। इसकी तृष्णाने बहुतोंको नरकादि नीच गतिमें पहुंचाया है। यह जितनी आती. है उतनी ही अधिक होनेकी वांछा पैदा करती है। किसीको आयुका भरोसा नहीं है। इससे इस तृष्णाको स्वाधीन रखनेका उपाय परिग्रहप्रमाणवत है सो आपको है या नहीं ? सेठजीने जब 'न' कहीं तब धर्मचंदनीने फिर कहा कि आप प्रमाण क्यों नहीं कर लेते कि इतनी लक्ष्मी मेरे भागमें जब हो जावेगी तब मैं नवीन उपार्जन छोड़ दूंगा । आप प्रमाण चाहे जितनेका करें पर प्रमाण होना आवश्यकीय है। सेठजी भी इस बातको अच्छी तरह समझते थे पर धनसंग्रहका लोभ नहीं मिटा था। इससे नियम नहीं ले सके थे । इन्होंने कहा-भाई धर्मचंद, जब मैं बम्बई पहुँचूं तब तुम मुझे पत्र लिखना पर यह तो बताओ क्या तुम्हारे नियम है ? धर्मचंदने कहा कि मुझे अभी तक प्रमाण नहीं है पर आगामीके लिये करनेका विचार हैं। मैं शीघ्र ही प्रमाण करके उसकी नकल आपको भेजूंगा। सेठ माणिकचंद बम्बई पहुंचे ही थे कि भाई धर्मचंदजीका पत्र पहुंचा जिप्समें परिग्रहप्रमाणकी सर्व विगत लिखी गई थी उस समय सेठजीकी दूकानपर सेठ रामचंद नाथारंगजी भी मौजूद थे इन्होंने भी इस पत्रको पढ़ा और धर्मचंदकी वहुत प्रशंसा की। सेठजीने वह पत्र अपनी जेबमें रख लिया । रात्रिको चौपाटी जाकर सेठजीने व्यालु करके समुद्र तटपर घूमकर अपना पक्का विचार कर लिया कि For Personal & Private Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ ] अध्याय आठवाँ । . आज रात्रिको हम भी परिग्रहका प्रमाण कर लेवेंगे । आयु कायका कोई भरोसा नहीं है। लक्ष्मीकी तृष्णा तो जन्म भर नहीं छूट सक्ती । रात्रिको आरतीके पीछे श्री चंद्रप्रभु भगवानकी स्तुति व विनय कर सेठजी चैत्यालयमें बैठे और अपनी नोट बुकमें परिग्रहकी संख्या लिख ली। तथा यह प्रणकर लिया कि अमुक धन मेरे भागका दूकानमें हो जायगा तब मैं अपना सम्बन्ध छोड़कर धर्म व जातिकी सेवामें लीन हूंगा और जवाहरातके कामसे पेन्शन ले लंगा। सेठजी बहुत विचारशील थे। प्रमाण इतनी रकमका किया कि जो न तो बहुत कम था और न बहुत असम्भव था । परिग्रह प्रमाण करके अपनी इच्छाकी सीमा बांधकर सेठजीने गृहस्थ श्रावकका एक स्तुत्य कृत्य पूर्ण किया। बीरचंद राघवजी गांधी बी. ए. चिकागोकी धर्म सभा वीरचंद राघवजीका - शामिल होकर फिर अमेरिका इंग्लैंड, फ्रान्स और जर्मनीमें फिर ता. ८ जून १९९५ अमेरिकासे लौटना। ना' बम्बई आए। उनको जहाज़ परसे लेनेका दो तीन सौ प्रतिष्ठित पुरुष जैसे सेठ तलकचंद माणिकचंद, सेठ वीरचंद दीपचंद, गोकुलभाई मूलचंद आदि गए थे। उनमें हमारे प्रसिद्ध सेठ माणिकचंद भी थे।बड़े सत्कारसे अंग्रेजी बाजेके साथ फूलोंके हार पहराते हुए ६०, ७० गाडी सहित मारकेटसे जौहरी बाजार होते हुए उनके मकान भायखलेपर उन्हे पहुंचाया। अमेरिकामें क्या किया इस बातके जाननेकी लोगोंको अति उत्कंठा थी। वीरचंदजीका एक व्याख्यान भायखलेपर सेठ प्रेमचंद रायचंदके बंगलेमें हुआ वहां अति भीड़ थी। दूसरा लालबाग व तीसरा For Personal & Private Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२८५ मांगरोल सभामें हुआ।हमारे सेठजी सबमें गए थे। वीरचंद राघवजीने कहा कि चिकागोमें उन्होंने सम्यग्दर्शन, पुनर्जन्म, कर्म सिद्धान्त, इश्वर सृष्टि कर्ता नहीं ऐसे बहुतसे व्याख्यान व वोष्टन शहरमें दो माम ठहर कर ८० व्याख्यान दिये । आपने कहा कि हालमें अमेरिकावालोंका विश्वास क्रिश्चियन धर्मपर नहीं है। वे जो बात युक्ति व प्रमाणसे सिद्ध होती है उसको ग्रहण करते हैं। यदि जैनी अपने धर्मके उपदेशका क्रम जारी रखें तो हज़ारों आदमियोंका जेनी होना संभव है । आपने वहां गांधी फिलाज़ाफिकल सोसायटी कायम की है। उपदेशके फलस कईयोंने मांसाहार त्यागा। कई एकान्तमें ध्यान करने लगे। कई णमोकार मंत्र जपने लगे। इन्होंने खानपीनेमें अपने धर्मको बिलकुल हानि नहीं पहुंचाई। आगबाटमें १००) ज्यादा करके अलग चूल्हा रक्खा गया था। इन्होंने आगबोटके क्यापटेन और इंग्लैंड अमेरिकाके विश्वासपात्र आदमियोंके सार्टीफिकट भी दिखलाए कि खानपानमें अशुद्धता नहीं की । तौभी बम्बईके मोहनलाल महाराज श्वे० यतिने तकरार की कि इनका प्रायश्चित होना चाहिये । महाराज आत्मारामजी इसकी आवश्यक्ता नहीं मानते थे । तो भी तकरार मिटानेके लिये इनको आज्ञा की कि वे श्रीजिनेन्द्रदेवका अभिषेक व पूंना करें, एक नौकार मंत्रकी माला जपें व योगशास्त्रके एक अध्यायका पाठ करें, इतना प्रायश्चित्त दिया । वीरचंदनी २२ मास इस - यात्रामें रहे थे। . For Personal & Private Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ ] अध्याय आठवाँ । संवत् १९५२ में सेट माणिकचंदजीने हीराचंद नेमचंदजीसे ___ पूछा कि आपके जैन बोधकसे मालूम हुआ धवलजयधवलके कि रायबहादुर सेठ मूलचंदजी अजमेउद्धारकेलिये चंदा। रके प्रयत्नसे श्री धवलादि ग्रंथोंकी नकल होनी शुरू होगई है तथा ३०० श्लोक पहले लिखे भी गए थे सो क्या वह काम जारी है या बन्द हो गया । तब सेठ हीराचंदने कहा कि वह काम यों बन्द होगया है कि सेठजी उस प्रतिको अजमेरके लिये चाहते थे सो वहांवालोंने इनकार किया इससे वह काम योंही रह गया । तब सेठ माणिकचंदने कहा कि यदि वे ग्रंथ सड़ जायगे तो फिर कहांसे आएंगे ? दूसरे आप कहते थे कि व जिम लिपिमें हैं उसे सिवाय ब्रह्मसूरि शास्त्रीके दूसरा कोई जानता नहीं है तथा शास्त्रीजीकी उम्र ५५ वर्षकी है। यदि यह कालवश होगए तो नकल भी न हो सकेगी । इससे यदि वहांवाले दूसरे स्थानपर ग्रन्थ देना नहीं चाहते तो अभी यही प्रबन्ध कीजिये कि उसकी वहां दो नकलें हो जाय एक कनड़ी लिपिमें व एक बालबोध हिन्दी लिपिमें, इतना काम बहुत शीघ्र होना चाहिये । तब सेठ हीराचंदने कहा कि इसके लिये तो वे लोग अवश्य कबूल कर लेंगे पर हमें ब्रह्मसूरि शास्त्रीके साथ दो प्रवीण लेखक और रखने पड़ेंगे जो कनड़ी व बालबोधमें लिख सकें । इस सबके लिये कमसे कम १००००) का प्रबन्ध होना चाहिये सो कैसे हो, तब सेठ माणिकचंदने कहा कि १००) सौ सौ रुपयेके १०० भागकर लिये जावें पहले दस दस रुपये करके १०००)तहसील कर काम शुरू किया जावे। जब काम For Personal & Private Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियाग । [२८७ चलने लगे तब फिर २५) पचीस २ वसूल किये जावें । इस तरह काम पूरा किया जावे । हीराचंदजीके दिलमें यह बात जम गई, उसी समय ब्रह्मसूरि शास्त्रीको यह सब हकीकत लिखी। वहाँसे उत्तर आया कि इसमें कोई हर्ज नहीं है । मूडबिद्रीवाले खुशीसे स्वीकार करेंगे तथा मैं पूर्ण परिश्रम करके प्रति लिपिका प्रबन्ध कर दूंगा । फिर सेठ हीराचंदजीने जैन बोधक अंक १२९ मास मई १८९६में यह बात प्रकाशित की और सौ सहायक मांगे । इस अपीलको देखते ही सेठ माणिकचंद पानाचंदनीने १०१) का एक भाग लेना स्वीकार किया। उन्हींका अनुकरण धरमचंद अमरचंद, शोभागचंद मेघराज, माणिकचंद लाभचंद, सेठ जवारमल मूलचंद, गुरुमुखराय सुखानंद आदि १३ बम्बईके व गांधी हरीभाई देवकरण आदि १९ शोलापुरके व अन्य फलटन, दहीगांव, इंडी आलंद व सेठ हरमुखराय फूलचंद आदि ११ कलकत्ताके सब मिलाकर अक्टूबर १८९६ तक सत्र १४२२९) की स्वीकारता हो गई । लाला रूपचंद सहारनपुरने जैन गजट पत्रमें मालूम कर १००) की सहायताका पत्र जुलाई मासमें पंडित गोपालदासजीको बम्बई भेजा । सेठ हीराचंदजीने जबानी पक्की बात करनेके लिये ब्रह्मसूरि शास्त्रीको शोलापुर बुलाया । वे मार्गसिर सुदी ४ को आए तब सेठ माणिकचंदजीको बुलानेके लिये तार दिया । तार पाते ही सेठ माणिकचंद गांधी रामचंद नाथाके साथ सुदी ६ को शोलापुर पहुंचे । शोलापुरकी मंडलीके सामने ब्रह्मसूरि शास्त्री को १२५) मासिक व आने जानेका खर्च देनेका ठहराव हुआ तथा शास्त्रीजीने पौष मासमें मूलबिद्री जाकर प्रति For Personal & Private Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ ] अध्याय आठवाँ । लिखना कबूल किया । इनके पास गजपति उपाध्याय भी लिखनेके लिये नियत किये गए। दोनों महाशयोंने मूलबिड़ी जाकर मिती फागुण सुदी ७ बुधवारको पुस्तकोंके लिखनेका काम शुरू कर दिया। फिर शाके १८२७ चैत्र सुद १० को ब्रह्मसूरि शास्त्रीका पत्र शोलापुरवालोंके नाम आया कि जयधवलके १५ पत्रे अर्थात् १५०० श्लोक लिखे गए। इतनेमें मंगलाचरण, मार्गणास्थल और गुणस्थानकी चर्चाका निरूपण है। पुष्पदंत आचार्यने प्राकृत भाषामें सूत्र बनाए उसके ऊपर गुणधर महाराजने ललितपद न्यायसे संस्कृत और प्राकृतमें टीका बनाई है। सेठ माणिकचंद हीराचंद ऐसे धर्मात्मा पुरुषोंके उद्योगसे रुपया भी एकत्र हो गया तथा कई वर्ष तक ब्रह्मसूरि शास्त्री जीते रहे पर वे ग्रंथोंकी लिपिको पूर्ण किये विना ही कालके वश हो स्वर्ग पधारे। तबसे गजपति उपाध्यायने धवल व जयधवल की दोनों प्रति लिखकर पूर्ण कर ली है । तथा इस वर्ष तीसरे महाधवल ग्रंथकी प्रति करानका काम सेठ हीराचंदजी मूलबिद्री जाकर प्रारंभ करा आए हैं। तथा इस बातकी कोशिश चल रही है कि इन ग्रंथोंकी कई प्रतियां होकर भिन्न २ स्थानोंमें रहें जिससे पठनपाठन हुआ करे व एक स्थलमें विघ्न आनेपर भी प्रतियोंकी अनुपलब्धि न हो पर मूलबिद्रीके पट्टाचार्य और भाई अभी तक वृथा ममत्व करके ऐसा करनेपर राजी नहीं हुए हैं। . श्री धवल ग्रंथके जीर्ण ताड़पत्रके पत्रे ५९२ है सो कनड़ी प्रति जो अब हुई इसके २८०० व बालबोध लिपिके १३२३ पत्रे हुए है । इसमें ७३००० श्लोक हैं। ... For Personal & Private Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DURATRO OthaDS स्याहादवारिधि, न्यायवाचस्पति वादिगजकेसरी स्वर्गीय पंडित गोपालदासजी बरैया. J.V.P. Surat. ( देखो पृष्ठ २४३) For Personal & Private Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [२८९ इसका मंगलाचरणका प्रथम श्लोक यह हैगाथा-सिद्धमणंत भणदिय मणुवममप्युत्थ सोक्खमणवज्ज । केवल यहोह णिज्जियदुण्णय तिमिरं जिणं णमह ।। भावार्थ-स्वकार्य सिद्ध करने वाले, अतीन्द्रिय अनुपम व स्तुत्य मुखको प्राप्त करनेवाले तथा केवलज्ञानरूपी सूर्य्यसे मिथ्यातमके अंधकारको हरनेवाले जिनेन्द्रको नमस्कार हो । श्रीजयधवल ग्रन्थके कनड़ी जीर्णपत्रे ५१८ हैं उसकी कनड़ी कापी जो अब हुई उसमें २१०० व हिन्दी कापीमें ७५० पत्रे हैं इसके श्लोक ६००० ० हैं। इसके प्रारम्भमें १ श्लोक मंगलाचरणका यह है-- गाथा--तित्थयण च उवीस विकेवल णाणेण दिह सबछा । पसियंतु सिवसरोवा तिहुवण सिर सेहरा मज्झं ।। भावार्थ-केवलज्ञानसे सर्व पदार्थोको देखनेवाले, मुक्ति पानेवाले व तीन भवनके शिरोमणि ऐसे २४ तीर्थकर मरेपर प्रसन्न होहु । रुम्मणीबाईके साथ लग्न होते ही ९ मास बाद सेठ पाना चंदको सबसे प्रथम जिस पुत्रीरत्नका भी सेठ पानाचंदजीको लाभ हुआ था वह कुछ मास जी कर द्वि० पुत्रीका लाभ । संसारसे चल बसी थी। अब सं. १९५२में फिर सेठ पानाचंदको एक पुत्रीका लाभ हुआ। इसका शरीर शुरूसे ही दृढ़, सौम्य व गठीला था। यथायोग्य जन्मोत्सव करके इसका नाम लीलावती रक्खा गया। माताने इसके शरीर रक्षगमें खूब प्रयत्न किया । For Personal & Private Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० ] अध्याय आठवाँ। मगनबाईनीका विवाह सूरतमें जिस कुम्टुबमें हुआ था वे यद्यपि प्रतिष्ठित और धनाढ्य थे पर एक मगनवाईजीको बहुत साधारण बुद्धि और संकुचित हृदयके पुत्रीका जन्म। थे। सास व पति दोनों यही चाहते थे कि __ यह रात्रि दिन घरका काम काज किया करे, सीना परोना करे, अनाज फटके दले । मगनबाईजीको पुस्तक बांचने व कुछ धर्म ग्रंथ देखनेका शौक था परन्तु सास व पतिके भयसे इनका धर्म व अन्य पुस्तकोंका देखना, लिखना, पढ़ना बिलकुल बन्द हो गया था केवल प्रतिदिन चंद्रप्रमु स्वामीके मंदिरके दर्शन करना व जाप देना इतनी ही धर्म क्रिया होती थी। यह मंदिर उनके घरके निकट ही है। यदि कदाचित् भूलसे कभी कोई पुस्तक हाथमे लेती व सास ससुर देख लेते तो बढ़त ही क्रोधित होते थे । साधारण संसारिक प्राणीकी तरह रहते हुए इस कन्याका चित्त भीतरसे प्रफुल्लित नहीं रहता था। जो अपने पिताकी सुहवतमें बैठती, उनकी बातें सुनती, अनेक समाचार पत्र व पुस्तकें वांचती व धर्म ग्रंथकी भी स्वाध्याय करती उसका मन केवल घरके धन्धोंमें कैसे ठीक रह सक्ता था ? इससे मगनबाईजी थोड़े दिन यहाँ रहकर पिता द्वारा बम्बई बुला ली जाती थी। वहां चित्त प्रसन्न रहता पर पतिसे इसको प्रेम, यह पतिमें अनुरक्त व उसकी भक्त सो बम्बई ज्यादा न ठहरकर सूरत चली आती। खेमचंद और मगनबाईको सं० १९५२में एक पुत्रीका लाभ हुआ। खेमचंदकी माता व पिताको पौत्रीके लाभसे बहुत हर्ष हुआ। मगनबाईजी चंद्रमुखी समान सुन्दर पुत्रीको प्राप्त कर प्रेमसे पालने लगीं For Personal & Private Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग | [ २९१ और अत्र अधिक सूरतमें ही रहने लगीं । धीरे २ धार्मिक रुचि घट गई, संसारिक रुचि वह गई । पुस्तक देखनेकी भी याद न रही सो कायदे की बात है । जिस विषयका संस्कार अधिक रहता है वही पक्का हो जाता है और वह पिछले असरको धो डाला। है । ता० १७ मई सन् • १८९६ को जैन यूनियन कुत्र बम्बई में पंडित गोपालदासजीका "अष्टकर्म" पर व्याख्यान हुआ । इसमें सेठ माणिकचंदजी आदि दिगम्बरी, वीरचंद राघवजी, फतेहचंद कपूरचंद लालन, हीरजीभाई आदि श्वेताम्बरी भाई मौजूद थे । व्या ख्यान बहुत ही युक्ति पूर्ण और विद्वतापूर्ण हुआ । वीरचंद राघवजी व हीरजीने व्याख्यानकी प्रशंसा में धन्यवाद प्रगट किया । सभाके पीछे राघवजी और पं० गोपालदासका परस्पर वार्तालाप होनेसे दोनों विद्वानोंको बहुत आनन्द हुआ । पं० गोपालदासका व्याख्यान व वीरचंद राघवजीका परिचय | श्वेताम्बर जैन समाजने वीरचंद राघवजी के कार्यको इस कदर सराहना दी कि उनके चितमें फिर वीरचंदजीका पुनः अमेरिका जानेका विवार हुआ और सन् विदेश गमन । १८९६ में ही अपने स्त्री बच्चों सहित पं० फतेहचंद कपूरचंद लालनके साथ अमेरिका रवाना हो गए। खेद तो इस बात का है कि ऐसा फल देखकर भी किसी दिगम्बर जैन विद्वानको भेजने का प्रबन्ध दिगम्बर जैन समाजने नहीं किया और न कोई दिसम्बर जैन ग्रेजुएट For Personal & Private Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ ] अध्याय आठवाँ । ही तय्यार मिला कि वह जावे । हरएक काम साहस और पूर्ण प्रयनसे होते हैं। जहां प्रमाद है वहां कार्यसिद्धि कोसों दूर है । सेठ हीराचंद नेमचंद व सेठ माणिकचंद जैनियों में ऐसे प्रख्यात हो गए थे कि हरएक मुख्य कामके लिये लोग इनकी याद करते थे। पं० लालनने चिकागोसे सेठ हीराचंदको ता. ३ फर्वरी सेठ हीराचंदको पं० लालनका पत्र | १८९७ को एक पत्रद्वारा श्री ज्ञानार्णव और आप्तमीमांसाकी बचनका व दूसरे अध्यात्मज्ञानके ग्रंथ मंगवाए और लिखा कि यहां बहुतसे अमेरिकनोंने मांसाहारका त्याग कर दिया है । सेठ माणिकचंदजीके मंत्रित्व और पं० गोपालदासजीके उपमंत्रित्व में बम्बई सभा बहुत कुछ जैन समाज के उद्धारार्थ प्रयत्न करने लगी । पाठकोंने वह गुजराती पत्र वांचा ही होगा जो सेट माणिकचंदने जेठ दूजा वदी ९ संवत् १९४२ को सेट हीराचंदको लिखा था कि एक मंडल ऐसा स्थापित हो जो सम्पूर्ण मुल्कों में जैन धर्मज्ञानको फैलावे, कुरीति मिटवावे आदि । उसी अपने अंतरंग भावकी पूर्ति सेठ माणिकचंदजी, पं० गोपालदासनी आदिकी सहायता से धीर२ करने लगे । वास्तवमें विचार कर होता है और कार्य का होता है । जहाँ विचार पक्का होता है वहाँ कालान्तर में यदि कोई अनिवार्य विघ्न न आवे तो वह पुरा होता ही है । बम्बई सभा में पारितोषिक खाता पहले ही खोल दिया था । जैन बोधक अंक १३४ मास अकटूबर १८९६ में भारत बड़े दिन जैन परीक्षालय For Personal & Private Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयाग आर वियोग । वर्षके १७ शहरोंकी पाठशालाओंके १४६ छात्रोंने रत्नकरंड, द्रव्यसंग्रह, प्रमेयरत्नमाला, चंद्रप्रभुकाव्य आदिमें परीक्षा दी, १०२ घास हुए और ११७) का इनाम बांटा गया । उस समय बम्बई, जैपुर, खुरई, शोलापुर, हिसार, सिरसावा, अलीगढ़, दिहली, मुसदाबाद, कामा, प्रयाग, शिवनी, शेरकोट, वर्धा, अवागढ़, रोहतकको पाठशालाएँ शामिल हुई थी । अधिकसे अधिक विषय धर्ममें तत्वाथैमूत्र, व्याकरणमें कातंत्र, काव्यमें धर्मशर्माभ्युदय, न्यायमें प्रमेयरत्नमाला थे । आज भी वही परीक्षालय सेट राबजी सखाराम दोशी शोलापुरके प्रयत्नसे नियमित रूपसे चल रहा है । यद्यपि पाठशालाओंकी संख्या बहुत नहीं बढ़ी-२०-२५ ही शामिल होती हैं पर पठन विषय बढ़ गया है । अब गोम्मसार, राजवार्तिक, भट सहस्त्री, प्रमेयकमलमार्तड, शाकटायन, जैनेन्द्र, यशस्तिलक आदिने डात्र परीक्षा देते हैं। स्वाध्यायका प्रचार बढ़ानेके लिये सेट माणिकचंदने चौपाटीपर एक पुस्तकालय खोल दिया था। जितनी जैनधर्मपुस्तक जहां कहीं भी पुस्तकें छपती थीं उनको प्रचार । बहुतसी प्रतियां मंगा लेते थे और उन्हे चौशाटी ___ दर्शनार्थ आनेवाले भाइयोंको न्योछावर लेकर व बहुतोंको योंही देते थे । पाठशालाओंमें अर्थ मूल्यपर व कहीं भेट भी भेजते थे। सवेरे रात्रिको आप अपना कुछ समय व उपयोग इस काममें भी लगाते थे। जैन बोधक अंक १३४ माह अकटूबर सन् १८९६ में आपने नोटिल भी छपवा दिया था कि तत्त्वार्थसूत्रकी बालबोधनी टीका हमारे यहाँसे मंगाई जावे । For Personal & Private Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ ] अध्याय आठवाँ। जैन बोधक सन् १८८५ से निकला है परंतु उसमें जैन स्त्री शिक्षा सम्बन्धी लेख अंक १३५-१३६ नवएक जैन भगिनीका म्बर- दिसम्बर १८९६ के पहले नहीं देख-- लेख। नमें आया। इस अंकमें एक बड़ा जोशदार लेख आदिराज देवेद्र उपाध्यायने मुद्रित कराया था। इसको पढ़कर एक गुमनाम जैन भगिनीने अंक १३८ फेब्रुआरी १८९७ में एक मराठी लेख प्रगट करके बहुत हृदयविदारक दशा स्त्रीशिक्षाके अभावकी बतलाई है कि लोग ऐसा कहते हैं कि दूसरेके घर जानेवाली कन्याकी इतनी कौन परवाह करे ? यदि कोई पति अपनी अर्धांगिनीको सिखाने लगता है तो चारों तरफ उसकी निंदा होती है। पूर्वके समान आर्यिका आदिका सम्बन्ध भी नहीं मिलता। इस जैन बहनने प्रार्थना की है कि अपनी कन्या व बहनोंको पढ़ाना चाहिये। उनके लिये छात्रवृत्ति व इनाम नियत करना चाहिये। यह जैन भगिनी कौन है ? कैसी आवश्यक्ता इसने स्त्री शिक्षाकी बताई है ? ऐसा विचार इस लेखको पढ़ते ही सेट माणिकचंदजीका हुआ और अबतक आपको स्त्री शिक्षाका बहुत तुच्छ ख्याल था पर इस लेखने आपको इधर भी आकर्षित कर दिया और यह स्त्री शिक्षाकी भी भावना करने लगे। जैन बोधक जून १८९७में यह पढ़कर कि फलटनके शा. मोतीचंद मलुकचंद कालुसकरने कोल्हापुरकी एक जैन कृष्णाबाईको ५) मासिककी छात्रवृत्ति देना स्वीकार की है व कोल्हापुरकी ४ विद्यार्थिनी रत्नकरंड श्रावकाचारका अभ्यास करती हैं, सेठ मणिकचंदको बड़ी ही खुशी हुई और यह सोचने लगे कि यह सब उस जैन भगिनीके लेखका असर है। For Personal & Private Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [ २९५ सेठ माणिकचंजीने जैन बोधक अगष्ट १८९७ में यह पढ़कर कि एक जर्मन स्ट्रयावगकी यूनिवर्सिटी के जर्मनी के अफसरका संस्कृत प्रोफेसर अर्नस्ट लेनमानने एक पत्र ब्रह्मसुर शास्त्री से भेजा हैं उसमें लिखा है कि ब्रह्मसूरि शास्त्री से कुछ ग्रंथ मिले पर मुझे भगवती आराधना सार और आराधना कथाकोष चाहिये तथा पत्रके सम्बन्ध । ऊपर यह गाथा लिखी थी - जिण पवयणं पसिद्धं जम्बू दीवम्मि चैव सव्वम्मि | कित्ति जस व अचिरा पावेज्जउ सयल प्रढवीए || अर्थ - जैसे भारत में जिन प्रवचनकी ससिद्धि है ऐसी इसकी कीर्ति सर्व लोक में फैले । यह वाक्य पढ़कर सेठजीको आश्चर्य हुआ । ब्रह्मसूरि शास्त्रीने जर्मनवालों को ग्रंथ दिये तथा इस गाथा के अर्थने अपने सेठजीको उत्साहित किया कि अपने जैन ग्रंथों का प्रचार यदि यूरुप में हो तो बड़ा लाभ हो । सं० १९५३ में सेठ नवलचंदजीने अपने भाइयोंसे राय करके स्वतः श्री सम्मेदशिखरजीकी यात्रा करनेका सेठ नवलचंदजीकी निश्चय किया-स्व कुटुम्ब सहित यात्रा - सम्मेद शिखरकी या को पधारे अपने भानजे चुन्नीलाल झवेरचंदत्रा और सीढ़ीका को भी कुटुम्ब सहित साथमें लिया । यह सम्मेदाचल पर्वत हजारीबाग ( बिहार प्रान्त ) - में जैनियोंका महा पवित्र तीर्थ है। खास कर दिगम्बर जैन समाजको यह इसीसे विशेष मान्य है कि इस भरतक्षेत्र में २४ तीर्थंकर जो हरएक दुःखमा सुखमा कालमें होते काम । For Personal & Private Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ ] अध्याय आठवाँ । हैं वे सब यहींसे मोक्ष जाया करते हैं - अनन्ते २४ तीर्थकर हो गए व आगामी होंगे। उनकी व अनन्त मुनीश्वरोंकी मोक्ष इस पर्वत से हुई है इस कारण यह सर्व पर्वत पूज्यनीय है । इसकी दि० जैनियोंमें बड़ी भारी महिमा है । इस वर्तमान दुःखमा सुखमा कालमें हुंडावसर्पिणी कालके निमित्त २४ में से श्री ऋषभदेव कैलाश, श्रीवासपूज्य मंदारगिरी, श्री नेमनाथ गिरनार व श्री महावीर स्वामी पावापुरसे मोक्ष पधारे तौ भी इनकी कूट श्री शिखरजी पर नियत है । जो भाव सहित दर्शन करते हैं उनको दुर्गति नहीं प्राप्त होती । सर्व पहुंचे। सबसे पुरानी कोठी जो उपरैली है जिसको बीस पंथी भी कहते हैं उसमें ठहरे । सेठ नवलचंदजी भी सेट माणिकचंदजीकी तरह प्रबन्ध कार्य करने व क राने में कुशल थे । आप स्नानकर धोई हुई सफेद धोती और चदरा ओढ़कर अष्ट द्रव्य लेकर व कलस झारी रकावी छन्ना आदि लेकर सर्व साथियोंके साथ श्री शिखरजी की यात्राको चले। सीतानालेमें जाकर सामिग्रीको धोकर तय्यार हुए, और कलसमें प्रछालके लिये जल भरा । सीतानालेसे श्री कुंथुनाथकी टोंकको आते हुए पहाड़का चढ़ाव कुछ विकट मालूम हुआ । देखा कि जो वृद्ध स्त्री व पुरुष हैं व बालक उनको इस चढ़ाई चढ़ने में बहुत कष्ट हो रहा है । पर भक्तिवश सब जा रहे हैं। सेठ नवलचंदजी भी चढ़ तो गए पर इनके मन में यह विचार आया कि यदि यहां सीढ़ियां वन जावें तो सबको बहुत सुभीता होवे | आपने सर्व कुटोंपर चरण पादुकाओंकी प्रछाल करते हुए अष्टद्रव्य चढ़ाते हुए, प्रदिक्षणा देते हुये बड़े भावसे नमस्कारपूर्वक भक्ति की । बीच में जलमंदिरजी आता है उसमें तीन स्थानों पर प्रति | For Personal & Private Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियाग । [ २९७ बिम्ब थे, बीच में श्वेतांबरी तथा दो बगलके कोठोंमें दिगम्बरी प्रतिमाओं की बड़े भाव से प्रछाल पूजन की। शाम पडते २ यात्रा करके नीचे आए । महान आनंद माना । रात्रिको चुन्नीलालजीने भी आवश्यक समझा तब वहां एक सभा बुलाकर ४००० सीढ़ियोंके बनवाने का निश्चय करके यात्रियोंसे चन्द्रा किया उसमें सबसे पहले १००१) अपनी तरफ से दिये । सीढ़ी बनवाने में १००१) कुल चन्द्रा ६०१४ ) का किया गया और उपरैली कोटीके मुनीम बाबू हरलालजीको सीढ़ी बनवानेका काम सुपुर्द किया गया । सेठ नवलचन्द सुकुशल अन्य यात्राओंको करके सर्व संवसहित बम्बई लौट आए । मुनीम धर्मचंदजी बहुत परिश्रम करके संवत १९५४ तक पालीतानाकी धर्मशाला नकशे व विचार के पालीतानाकी दि०जैन अनुसार पुरी करवा दी। इसमें १२०००) का धर्मशालाकी पूर्ति । प्रबन्ध सेठ माणिकचन्दजीने किया था पर खर्च रु० १९०००) हुए । ७०००) का कर्ज सेठजीने अपनी दुकानसे दिया । किसी तरह कामको पुरा कराया क्योंकि इनके दिल में यह चिंता थी कि यात्रियोंको कोई कष्ट न हो । यह रुपया धीरे २ आमदनी आनेपर अदल कर दिया गया। तीर्थ धर्म प्रेम इसीका नाम है कि जब काम पड़े तब उसको जिस तरह बने निकाल लेना चाहिये । For Personal & Private Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ ] अध्याय आठवाँ | सेट पानाचन्दको और पुत्रीका लाभ | सेठ पानाचन्दकी पत्नी रुक्मणीबाई की पुत्री लीलावती अब २ ॥ वर्षके करीब हो गई थी तब फिर एक पुत्री - का जन्म हुआ । यद्यपि सेठ पानाचन्दकी यह भावना थी कि पुत्रका दर्शन हो तो शुभ है क्योंकि " सेठ माणिकचन्द पानाचन्दु” जत्र फर्मका नाम था तब जो व्यापारी व मित्रवर्ग इनसे मिलते क इनसे व दूसरोंसे इनके पुत्रोंके सम्बन्धमें प्रश्न करते उसे उत्तर देते वक्त एक प्रकारका संकोच भाव चित्तमें आजाता था, परंतु इस सम्बन्ध में मनुष्यका पौरुष सफल होना उसके बिलकुल आधीन नहीं है । इस पुत्रीका नाम सेठजीने रत्नमती रक्खा और जन्म के समय यथायोग्य पूजा पाठ व उत्सव कराया । रुक्मणीबाई इस पुत्रीको भी बहुत भावसे व लाड़ प्यारसे पालने लगी । जैसा पहले कहा गया है संवत् १९५२ में मगनबाईजी के एक पुत्रीका जन्म हुआ था। तबसे यह अ मगनबाईजीको और धिकतर सूरत रहती थी और गृहस्थी में खूब पुत्रीका लाभ रचपच रही थी इष्ट वियोगका निमित्त होनेवाला था इससे वह पुत्री जिसे मगनबाईजी गोद में रखकर और उसका प्रसन्न मुख देख देखकर मनमें हर्षित होती थी जैसे कोई पक्षी किसी फूलपर आसक्त हो उसको बारबार स्पर्श करे तैसे यह उसके मोहमें लवलीन थी। पर वह जीव बहुत अल्प आयुकर्मको बांधकर आया था । करीब १ वर्षके ही जी कर उस पुत्रीने मगनमतीकी गोदको खाली कर दिया । जैसे किसीके पास १ हजारकी थैली हो और उसे कोई लूटले तब उ For Personal & Private Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग। [२९९ सको जो दुःख होता है उससे असंख्य गुणा दुःख इस समय मगनबाईजीको हुआ। इसको खानापीना न रुचने लगा। नीचा मुख किये आंस वहाया करे । पति खेमचंदको भी शोक हआ था पर उसके संप्तारिक मित्र अनेक सो उनके संग नगरमें रमते हुए थोड़े दिनों में शोक भूल गया । पिता माणिकचंदनीका अपनी पुत्री मग नबाईपर निन पुत्रसे भी अधिक प्रेम रहता था। पुत्रीके इष्ट वियोगमे उन्हें भी कष्ट हुआ पर चित्त थाँभकर एक शिक्षापूर्ण पत्र अपनी पुत्रीको ऐसा लिखा कि जिसके पढ़ते ही इसका चित्त शांत हुआ और पिछली धार्मिक बातें सुनी सुनाई याद हो आई । सेठ माणिः कचंदजी अपनी पुत्रीको महीनेमें दो चार पत्र भेनते ही रहते थे-- सदा शिक्षा देते रहते थे व किसी२ बातमें सम्मति भी पूछते रहते थे । मगनबाईनीको दो वर्ष बाद फिर गर्भ रहा। खेमचंदको आशा होने लगी कि अब पुत्रका लाभ होगा, पर अपना विचारा कुछ होता नहीं । संवत् १९५४ में दूसरी पुत्रीका जन्म हुआ। यह भी सुन्दरशरीर सुडौलअंग व मनहारिणी थी। इसे देखकर माताको बहुत सुख हुआ। इसका नाम केशरमती रक्खा गया। मगनबाईजी इस पुत्रीको पाकर बहुत ध्यान व यत्नसे इसकी रक्षा करने लगीं। प्रायः छोटे २ बच्चे माताकी असावधानीसे मर जाते हैं। जो माताएं अशुद्ध व अनिष्टकारी भोजन करतीं, रोगी रहतीं, आलस्य करतीं, समय पर दुग्ध नहीं पिलाती, गर्मी सर्दी हवाका यथोचित यत्नः नहीं करतीं उनकी सन्तानका जीना बहुत कठिन हो जाता है। यह For Personal & Private Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० ] अध्याय आठवाँ। एक रत्नको हाथसे गमा चुकी थी अतएव अब बहुत ही सावधानीसे केशरकी रक्षा करने लगीं। श्री शिखनीकी यात्रासे लोटनेके बाद प्रसन्नबाईजी घरमें सुखसे रहने लगीं । पुत्र ताराचंद इस समय सेठ नवलचंदको ९ वर्पके थे । शालामें पढ़ते थे । रतनचंद ५ पुत्रीका लाभ । वर्षका था जो अपने सुन्दर शरीर और हंस मुखको प्रगट करता हुआ सर्व कुटुम्बको अपनी रमणक्रियासे आनन्दित करता था । अब मिती श्रावण सुदी १३ सं० १९५४ को प्रसन्नबाईजीको एक पुत्रीका लाभ हुआ। यह भी बहुत सुन्दर मुख गुलाबके फूल समान थी। सेठजीने अत्र भी यथायोग्य जन्मोत्सव किया और इसका नाम माणिकमती रक्खा । माताने जैसे पहली दो सन्तानोंको यत्नसे पाला-किसी तरहका ऐसा निमित्त न आने दिया जिससे अकाल मृत्यु हो, उसी तरह अब यह इस पुत्रीको भी बड़ी ही सावधानीसे पालने लगी। इस वक्त सं. १९९४ में सेठ प्रेमचंद सब तरहसे व्यापार में कुशल, धर्ममें लवलीन व सदाचारसे वर्तन सेठ प्रेमचंदजीकी लग्न। करनेवाले हो गए थे। सेठ माणिकचंदजी और माता रूयाबाई इनको बहुत चाहती थी। अब यह २० वर्षके हो गए। माताने बाल अवस्थामें विवाह करने का बिलकुल भी विचार नहीं किया था क्योंकि रूपाबाई बहुत ही विचारशील थी। भावनगरमें एक सेठ गुलाबचंद अमरचंदनी बागड़िया थे उनकी कन्या चंचलबाई थी जो यद्यपि स्वरूपवान थी पर कुछ सुकुमारांगी तथा अशक्त थी इसीके साथ सगाई हुई। वारात For Personal & Private Use Only ___ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेयांग और वियोग । [३०१ भावनगर बड़ी धूमसे गई। सेठोंने वहां अच्छी रकम खर्च करके बहत नाम किया । रूमाबाईजीने वहां धर्मकी खूब प्रभावना की इसमें ५००० से कम खर्च न पड़े होंगे। सेठ प्रेमचंद चंचलवाईको व्याह कर सुखसे रहने लगे। संवत १९५५ के प्रारंभमें बम्बई में प्लेगका ज़ोर था। तब सेठ माणिकचंदजी आदि मूरत आए और शेठ माणिकचंद स्वयं यहां कई मास चंदावाड़ी धर्मशालामें ठहरे। अध्यापक। सेठनी नित्य श्रीचंद्रप्रभुके बड़े मंदिरजीमें सेवा पूना करते, जाप देते व बैठते उठते थे। एक दिन इन्होंने विचार किया कि यहाँ कोई ऐसा साधन अब नहीं है जिससे बालकोंको कोई दर्शन, व भगवानके नाम भी बतावे तथा कुछ बालक यहाँ सीखने योग्य मालूम पड़ते हैं। आपने लोगोंको कहकर बालकोंको २ घंटेके लिये मंदिरजीमें बुलाया और जबतक आप कई मास तक सूरत रहे नियमित रूपसे बालकोंको हररोज रात्रिको दर्शन, स्तुति, णमोकार मंत्र, निर्वाणकाण्ड भाषा, पंच मंगल आदि सिखा कर उनका बहुत ही उपकार किया और उन बालकों को इनाममें भी वार २ छोटी २ धार्मिक पुस्तकें, रूमाल आदि देते थे जिससे बालकोंका उत्साह बढ़ता था। . सेठ माणिकचंदजीमें और धनाढ्योंकी भांति समयका दुरुपयोग करने व आलस्यमें पड़े रहनेकी आदत नहीं थी। जैसे चीटी हमेशा काम करती नज़र आती है ऐसेही सेठ माणिकचंद सदा ही कोई न कोई काम करते हुए ही देख पड़ते थे । सूरत ऐसे विलासप्रिय नगरमें दूसरे धनाढ्य जैसे राग रंगमें लगे थे ऐसी रुचि सेठ For Personal & Private Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ ] अध्याय आठवाँ । माणिचंदजीकी नहीं थी । इसीसे सेठजीके चित्तमें बालकों पर दया आई और उनको स्वयं धर्मशिक्षा देकर अटूट ज्ञानदान किया । यह उदाहरण इस बात के प्रगट करनेके लिये वश है कि सेठ माणिकचंद्रको धार्मिक शिक्षाका कितना प्रेम था । थोड़े दिन बाद कुछ कार्यवशात् सेठ माणिकचंदजी सूरत आये थे तब एक दिन सेठजी चंद्रप्रभुके मूलचंद किसनदास मंदिरजी में धर्मकार्यसे निवट कर पाटे पर कापड़ियाका प्रथम बैठे थे तब एक बालकको दर्शन करते हुए परिचय | देखकर इनके मनमें आई कि यह कुछ होनहार मालूम होता है, इंग्रेजी पढ़ता मालूम होता है । उसको कुछ उपदेश करना चाहिये । यही वह मूलचंदजी कापड़िया थे जो इस समय भारतवर्ष में प्रसिद्ध हैं, “दिगम्बर जैन" मासिक पत्रके सम्पादक हैं, जैनमित्र साप्ताहिक पत्रके प्रकाशक, 'जैनविजय' प्रेसके स्वामी और रात्रिदिन जैन जातिकी सेवामें लीन हैं। उस समय इनकी आयु १७ वर्षकी थी। यह वीसा हूमड़ मंत्रेश्वर गोत्रधारी सूरतनिवासी सेठ किसनदास पूनमचंद कापड़िया के तृतीय पुत्र 1 इंग्रेजी छठी स्टेन्डर्ड में पढ़ते थे पर धर्म साधनमें सिवाय दर्शन करने के कुछ नहीं जानते थे । जब यह दर्शनकर चुके तत्र सेठजीने इनको बुलाया । पास बैठाकर पूछा कि तुम कुछ धर्मकी बात जानते हो । जबाव ना का पानेपर फिर सेठजीने यह जानकर कि यह संस्कृतके साथ इंग्रेजी पढ़ते हैं कहा कि धर्मज्ञानके बिना धर्म - सेवन नहीं हो सक्ता है - केवल इंग्रेजी पढ़नेसे लाभ न होगा । तुम For Personal & Private Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । मेरी साथ चन्दावाडीमें चलो। मैं एक पुस्तक तुमको दूंगा जिसको तुम हररोज पढ़ना । इस बालकको बड़ा ही हर्ष हुआ जब इसने एक गंभीर मुख धनवान सेठको अपनेसे इस तरह बात करते हुए देखा । सेठजी अपने पास हमेशा ही कुछ धर्मकी व कुछ मांसाहार रोकनेकी पुस्तकें बांटनेके लिये रखते थे। उस समय सेठ हीराचन्द नेमचन्द द्वारा मुद्रित श्री रत्नकरंडश्रावकाचार हिन्दी और मराठी अर्थ सहित इनके पास था वही इनके योग्य है ऐसा समझकर उनको चन्दावाडीमें ले जाकर वह पुस्तक दी और प्रतिदिन बांचनेका नियम दिलाया । मूलचंद इस पुस्तकको पाकर बहुत प्रसन्न हुए और खुशी २ अपने घर गए । अब यह सेठसे कभी २ मिलने लगे और धर्मकी बातें मालूम करने लगे । थोड़े दिन बाद सेठनी बम्बई लौट गए। सेट माणिकचंदजीको सं० १९५५ भारी शोकोदपादक रूपमें आया। श्रीमती मगनबाईजीकी गोदमें मगनबाईजीका जब केशर ११ मासकी खेलती कूदती थी, वैधव्य। अपनी मुलकनसे माता पिताको प्रसन्न करती ____ थी तब यकायक एक दिन सवेरेके समय खेमचंदका मग्न गर्म हो गया, खून चढ़ गया, पलंगमें लेट गए, माता व स्त्री भी आ गई, पिता भी आए, तरह २ के उपचार होने लगे। पर देखते २ बाधा इतनी बढ़ी कि दो घंटे भी पूरे नहीं हुए थे मगनमती बड़े संकोचमें पुत्रीको लिये हुए बैठी देख रही थी, माता दवाई दरमतमें लगी हुई थी कि यकायक खेमचंदने आंखें फाड़ दी, देखते २ जीव शरीरसे निकल गया। सारे अंग उपांग आत्मा For Personal & Private Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ ] अध्याय आठवाँ । विना अनात्मभूत जड़ हो गए- आकार रहते हुए भी चेतना विना किसी कामके न रहे। माता वारंवार पुकारती है-"खेमचंद, खेमचंद पर खेमचंद शब्दको समझनेवाला चेतन ही जब नहीं तब कौन मुखको प्रेरणा करे कि तू हां कह । बेबोल, प्राणरहित, मुर्दा शरीर जानकर माता ज़मीनपर गिर पड़ी । मगनबाई हाय हाय करती हुई धाड़े मारकर रोने लगी । केशरके भी रुआई आ गई। इतनेमें जितने और घरमें थे आए। खेमचंद चल बसे इस खबरने सर्वको शोकसागरमें डुबा दिया। इस समय सबसे अधिक नुकसान यौवनवती १९ वर्षकी अति स्वरूपवती, सुशील, पतिप्रेमिनी मगनमतीको हुआ था । उसके दिलको यांभनेवाला, उसके मुखको प्रेमसे निरखनेवाला, उसे स्नेहभावसे प्यार करनेवाला, उसके यौवनरूपी मकरंदका पिपासु भ्रमर, उसके एक मात्र जीवनका आधार, उसके दुःख सुखमें एक अनुपम साथी इस वर्तमान पर्यायसे चल बसा और इसे अपने जन्मभर एकाकी विधवा अवस्था में छोड़ गया। वह वर जो थोड़ी देर पहले गार्हस्थ्यमई सुखमें डूबा हुआ था सो बातकी बातमें शोकके अंधकारसे व्याप्त हो गया। यदि किसीका राज्य छिन जाय, धन लूट जाय यहां तक कि उसे वस्त्र रहित कर दिया जाय तो भी दुःख नहीं होता है जितना कि एक जीवनके आधार इष्ट वस्तुके सदाके लिये वियोग हो जानेपर होता है । वास्तव में यह संसार असार है, यह एक माया जाल है, जो इसमें लुभाता है वह सदा त्रास पाता है, जो ज्ञानी होता है और अपनी आत्मीक विभूतिको पहचानता है वह जब अपने शरीरमें ही नहीं लुभाता तब उसके सम्बन्धी अन्य वस्तुयोंसे कैसे प्रेम करेगा ? ऐसे ज्ञानीके For Personal & Private Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमती मगनबाई वैधव्यावस्था. (देखो पृष्ठ ३०३) J. V. P. Surat. For Personal & Private Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग | [ ३०५ लिये किसीका संयोग व वियोग हर्ष या विषादका कारण नहीं है पर ऐसे ज्ञानी जगत में विरले हैं । अनादि मिथ्यात्व के संस्कारसे जानते हुए भी तुर्त परके लोभ में फंस जाते हैं। खेमचंद के शरीरकी दाहादि क्रिया हुई । मगनमतीने शृंगार उतारा । सौभाग्यके वस्त्र आभूषण डालकर उदासीन कपड़े पहने क्योंकि अब इसका जीवन वीतराग विज्ञान स्वरूप धर्मके साथ ही रमण करनेमें वीतनेवाला था । बम्बई तार दिया गया। समाचार पाते ही सेठ माणिकचन्दको इतना कष्ट हुआ कि जैसा कोई हृदयमें वज्रका आयात करे । इस समयका दुःख सेठनीको अपने जन्म में और कभी नहीं हुआ था । सेठजी इसे अपने पुत्रके स्थानपर मानते थे । इसकी युवानी में इसके ऊपर विधवापनेका पत्थर गिरते हुए स्वाभाविक है कि ऐसे दयापूर्ण - मायालु पिताको दुःख हो । माता चतुरबाईजीने जब सुना। उसके रोने कूटने विलखनेका पार नहीं रहा । महान त्रास रूप अवस्था में डूब गई। इसकी हाय हायने सर्व कुटुम्बको जमा कर दिया । माता रूपाबाई आदि सर्व ही ऐसे दुःखित हुए कि जिसका वर्णन नहीं हो सक्ता । सबके मुख फीके पाला पड़े वृक्षकी तरह हो गए । परिणामोंकी विचित्र गति है । एक जातिके भाव एक अन्तमूहूर्तसे अधिक नहीं रहते । नाना संकल्प विकल्पोंको करते हुए जब सेठजीके चित्तमें शात्रोंकी बातें याद आने लगीं-सती सीता, अंजना, द्रोपदी, चन्दना, अनंतमती आदि सतियोंके चरित्र स्मृति में आए । जब शंभूकुमार व चंद्रनखाका चरित्र याद आया तब चित्तमें हुआ कि संसार में सर्व ही प्राणी अपने बांधे हुए कर्मोंके बरा | यह दुःख कोई नया नहीं है बड़े २ पुण्याधिकारियोंके ऊपर धैर्य ૨૦ For Personal & Private Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय आठवाँ। भी ऐसे संकट आ जाते हैं, आप सम्हले और फिर सर्व कुटुम्बको संसारकी असारता दिखाते हुए सम्हालने लगे । अब विधवा मगनबाईनीको रह २ कर पतिकी यादके साथ पिताकी संगति याद आने लगी । सेठजी भी यही विचारने लगे कि अब मगनबाईको यहीं अपने पास रखना चाहिये और उसके आत्माका कल्याण हो ऐसा मार्ग उसे विधवा मगनवाईको बताना चाहिये। यदि वह सूरत रहेगी उसका पिताद्वारा विद्या- जीवन बिगड़ जायगा। उसकी सासको भ्यास । धर्मविद्याका प्रेम नहीं है। यह वहां पुस्तक तक न देख सकेगी। घरके कामकाजमें ही फंसकर अपना जन्म खराब करेगी जैसा कि प्रायः होता है कि स्वार्थी साप्त व श्वसुर अपनी विधवा बहूको पढ़ने लिखने व धर्मके तत्व जाननेकी ओर नहीं लगाते। बस उसको एक दासी के समान घरमें रखते हैं। बर्तन मंनवाना, अनान फटकवाना, लड़कीको खिलाना आदि काम अच्छी तरह लेते हैं तब कहीं सबके पीछे बचा खुत्रा व रूखा सूखा भोजन खानेको देते हैं अथवा यदि उम्र छोटी हुई व धनाढ्य हुई तो सास श्वसुर उसे गहने कपड़ेसे लादे रखते हैं। वह सीना परोना करती है व खाली बैठे २ बुरे विचारोंकी सड़क अपने दिलमें बना लेती है। ऐसा विचार कर सेटजी १ महीने पीछे ही मगनबाईजीको बम्बई ले गये। चौपाटीके बंगले में जब यह आई तब माता चतुरबाई इसको लिपट गई और धाड़े मार २ कर रोने लगी ।। चतुरबाईका मन सूक्ष्म बातको गृहण करने योग्य न था । कुटुम्बके मोहमें अति लवलीन था। शरीरकी सुकुमालता, पुत्रके जीवित For Personal & Private Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । [ ३०७ न रहनेकी चिन्ता, शरीरका अस्वस्थ रहना, वे तीनों ही कारण ऐसे थे कि जिनसे उसका चित्त आकुलताका स्थान बन रहा था। अब चौथा अपनी प्राणप्यारी पुत्रोके पतिवियोगका महान क्लेश जिससे चतुरबाईकी चिन्ता और संकटका ठिकाना न रहा। उसके दिलसे यह सदमेंपर सदमें दूर ही नहीं होते थे। सेट माणिकचंदनी और स्वयं मगनबाई बहुत समझाती थी पर मोहकी लहरोंने उसे ऐमा विह्वल कर रेक्वा था कि उसको बिलकुल धैर्य नहीं होता था । चित्तके शोकसे शरीर और अधिक अस्वस्थ होगया था। इधर सेठ माणिकचंदनी अपने पुत्र समान मगनबाईकी आत्माको जानते थे। २, ३ मासमें ही एक वयोवृद्ध, अनुभवी, उदासीन एक विद्वान् पंडित माधवजीको मगनबाईको संस्कृति और धर्म पुस्तक पढ़ानेके लिये नियत किया और मगनबाईको संठने आज्ञा की कि तुम रात्रिदिन विद्या साधनमें ही ध्यान दो इसीसे तेरा भला होगा। तू घरके कामकाज में भी मत फंसे और न व्रत उपवास कर शरीरको सुखावे, तुझे विद्या आजायगी तो तू स्वपरोपकार करके अपना जन्म सफल करेगी। सेठजीके शब्द ये थे "व्हेन, घर कामकाज अने व्रत उपवास बाजुए मुकीने भणो" सेठजी मगनबाईको बहन कहकर पुकारते थे। सेटनीने चतुरबाईको भी समझा दिया कि तुम मगनबाईसे कुछ घरका काम न लेना, इसे मन लगाकर विद्याभ्यास करने देना । परमोपकारी पिताकी ताकीदसे मगनबाईजीका चित्त धीरे २ धर्मसाधन व वैराग्यमें जमता गया। पंडितजीके द्वारा धीरे २ बाईने संस्कृत मार्गोपदेशिका व्याकरण दो भाग, थोड़ा अमरकोश, थोड़ी लघुकौमदी, थोड़ी न्यायदीपिका For Personal & Private Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ ] अध्याय आठवाँ । पढी तथा दि० जैन परीक्षालयद्वारा प्रवेशिकाकी तीन परीक्षाएं धर्म में पास की। इसवक्त लाहौरके बाबू ज्ञानचंदने आत्मानुशासन और मोक्षमार्ग प्रकाशको तथा देवबंदके जैनीलालने बड़े रत्नकरंडश्रावकाचारको छापकर प्रसिद्ध कर दिया था। सेठनी छपी पुस्तकें रखते हैं यह प्रसिद्ध हो गया था, इससे जो कोई भी पुस्तक छपाता था सो पहले सेठजीके यहाँ भेनता था। सेठनी स्वयं पसंद कर यदि उपयोगी समझते तो उसकी बहुतसे कापियां बांटने व न्योछावर लेकर देनेके लिये मंगा लेते थे। नए छपे हुए ग्रंथोंको वैराग्यउत्पादक जान सेठजीने मगनबाईजीसे बांचनेको कहा । धीरे २ मगनबाईजीने आत्मानुशासन, रत्नकरंड श्रावकाचार, व मोक्षमार्गप्रकाशका स्वाध्याय करके अपनी परिणतिमें बहुत फेर कर लिया और स्वाध्यायको बराबर जारी रक्खा । पं. फतहचंद लालनको अध्यात्मज्ञानका अभ्यास था और ___ यह सेठ माणिकचंदजीके पास मिलने आया पं. लालनका उपदेश करते थे। मगनबाईजी चौपाटी बंगलेपर सेठजी के पास ही रात्रिको बैठकखानेमें बैठती थीं। जब सेठजी आनेवालोंसे बात करते तब यह भी सुनती और अपने अनुभवको बढ़ाती थी। पं. लालन द्वारा आत्माकी कथनी सुननेसे मगनबाईजीको अध्यात्मिक रुचि भी हो गई । युवावस्था होनेपर भी इसके भाव वैराग्यमें भर गए और यह पिताकी आज्ञामें चलती हुई, शास्त्रीसे विद्या अभ्यास करती हुई, स्वाध्यायमें मन लगाती हुई अर्थात् ज्ञानके सुखमें मगन होकर धीरे पतिवियोगके शोकको बिलकुल भूल गई और अपने जीवनको ज्ञान मित्रके साथ कल्लोल करनेमें सफल For Personal & Private Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयोग और वियोग । मानने लगी । यह सब पूज्य परोपकारी सेठ माणिकचंदका ही प्रताप था जिससे आन मगनवाईनी दि० जैन स्त्री समाजमें बहुत ही स्तुत्य काम कर रही हैं और श्राविकाश्रम द्वारा अपने समान अनेक बाइयोंको आत्मरुचिवाली और परोपकारिणी बनानेका उपाय कर रही हैं। ए . S + For Personal & Private Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० ] अध्याय नवां । अध्याय नवां । समाजकी सच्ची सेवा । संवत् १९५६का महा विकट साल आ गया । इस वर्ष चारों ओर भारत में दुष्काल ही दुष्काला गया ! सं० १९५६ के दुष्का- गुजरात, काठियावाड़, मेवाड़ भी अन्न और लमें २०००) की जलके महाकष्टसे पीड़ित हुआ। सेट मदद | माणिकचंदजीका चित्त करुणादानसे द्रवीभूत होयगा । इम निकटवर्ती प्रान्तके अकाल पीड़ितों की सहायता के लिये सेटजीने रु० १०००) दान किया तथा बड़ौदामें सेठ फकीरचंद प्रेमचंद जे० पी० ने एक हिन्दबालाश्रम खोला उसमें भी आपने ३०० ) दिये । बम्बई दि जैन सभा के सभासदों को एकत्र कर आपने बेतुल आदि मध्य प्रदेशके जैनी भाइयोंके आए हुए पत्र सुनाकर प्रगट किया कि एक जैनअनाथालय भंडार स्थापित होना चाहिये । चूंकि आप स्वयं दातार और अग्रगण्य थे । आपकी सूचनाको बम्बईके भाइयोंने मान्य करके ता० ९ नवम्बर १८९९ को यह भंडार खोला तथा २११४) का चंद्रा तुर्त हो गया जिसमें आपने १०१) दिये व सबसे अधिक सेठ जीतमल कन्हैयालालने ९०९) व सेठ गुरुमुखराग सुखानंदजीने २२२) प्रदान किये | लाला बैजनाथ हाथरसवालोंने इसमें बहुत मदद दी । सभाकी ओर से भारतवर्षीय दि० जैन महासभाकी आज्ञानुसार बेतुल शहरमें बाबू गोविन्द लाहनूं हेडमास्टर वर्नाक्युलर स्कूलकी मारफत एक आहारदानशाला खोली गई इसके द्वारा ता० ७-१२-९९ For Personal & Private Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [ ३११ को २५ अनाथ नैनचालक रहने गए । इनको भोजन वस्त्र के सिवाय धार्मिक शिक्षा आदि देनेका भी प्रबन्ध कराया गया । आकलूज व पंढरपुर में भी ऐसी आहार दानशालाएं खोली गईं । बेतुलमें ३० बालक हो गए उनकी रक्षा सभा द्वारा बराबर होती रही । ९ लड़कोंको बेतुल से नागपुर विद्याभ्यासके लिये भिजवाया गया । सूरतके एक दिगम्बर जैन छात्र केशवलाल डाह्याभाईने मेट्रिकलेशनकी परीक्षा पास की थी और कालेज में जैन विद्यार्थियोंके कष्ट भरती होनेके लिये बम्बई आया था उस समय निवारणार्थ बम्बई में यहां हिन्दुओंका केवल एक ही बोर्डिग था जि - जैन बोर्डिंगका सका नाम गोकुलदास तेजपाल बो विचार | र्डिंग हाउस था। यह छात्र उसीमें रहने के लिये गया। उसके कार्यकर्ताओंने इसको स्थान नहीं दिया । तथा पुपरिन्टेन्डेन्टकी बातचीत से ऐसा प्रतीत हुआ कि वह इसी लिये स्थान नहीं देते हैं कि यह केशवलाल जैनी है । इसको बड़ी निराशा हुई, तब इसने यह सत्र हाल विद्यार्थियोंके पिता सेठ माणिकचंदजी से कहा । आपको उस वक्त बड़ा भारी खयाल आया कि जैसे यह आज भटकता है व निराश्रय होकर अपमान सहता है ऐसे और भी छात्र भटकते होंगे व उदास होकर वे शिक्षण लेने से बन्द रहते होंगे । जैनियोंमें अब इंग्रेजी पढ़नेकी रुचि हुई है त कालेजमें भी पढ़ने आवें ही गे अतएव परदेशी जैन छात्रों को आश्रय देनेका कोई उपाय अवश्य करना चाहिये । उस छात्र के तो ठहरने का सेठजीने तुर्त प्रबन्ध कर दिया और रात्रिको सेठ हीराचंद नेमचंद जी से सम्मति ली कि क्या करना चाहिये । परम सच्चे मित्र हीराचंदजींन For Personal & Private Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२] अध्याय नवां । सम्मति दी कि आपके पास लक्ष्मीकी कृपा है इससे आप एक जैन बोर्डिङ्ग स्थापित करें, दक्षिण व गुजरातके अनेक छात्रोंको बड़ा भारी लाभ पहुंचेगा । बेलगांव निवासी अण्णाप्पा फडयाप्पा चौगुले बी. ए. भी उस वक्त कालेजमें पढ़ते हुए चौपाटीपर सेठनीके बंगले में ही रहते थे सो रात्रिको सेठजीके साथ बैठकर बातें करते थे और प्रेरणा करते थे कि आप कोई धर्मका काम करो मुख्य संमति बोडिंगकी देते थे जिससे भी सेटजीको इस कार्य करनेपर विशेष रुचि हुई और यह बात सेठजीके दिलमें गड़ गई। वास्तवमें जिम मित्रके ऊपर विश्वास और प्रेम होता है उसकी बात तुर्त ही दिलमें बैठ जाती है फिर आपने दूसरे दिन अपने भाई पानाचंद, नवलचंद और प्रेमचंदसे सलाह ली। अपने पुत्र समान मगनबाईजीको भी विठाला और सब हकीकत बयान की । प्रेमचंदके विचार बहुत ऊंचे थे और सेठ माणिकचंदकी भांति धर्म व विद्याकी उन्नतिमें पूर्ण लवलीन थे। प्रेमचंद बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि काकाजी, आप इस कामको अवश्य करें । सेठ पानाचंदने कहा कि अभी तक हम लोगोंने अपने पूज्य पिताके स्मरणमें कोई काम नहीं किया है इससे उन्हींके नामसे बोर्डिंग कायम किया जाय तथा लाख पौन लाख रुपये लगाकर बहुत अच्छी इमारत तय्यार की जाय जो देखनेमें व आराममें भी ठीक हो। सेठ नवलचंदनीने भी कुछ विरोध नहीं किया तब स्थानकी सलाह हुई तो जुबिलीबागके पास ही स्थान बनाना निश्चित हुआ क्योंकि वह स्थान शहर व कालिजोंसे बहुत दूर नहीं है और हवा भी अच्छी है। तथा यह भी तय हुआ कि इसी वर्ष इस कामको पूरा करना For Personal & Private Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा। [३१३ चाहिये। दूसरे ही दिनसे सेठजीने स्थानकी तजवीज करना व नकशा बनाकर और पसन्द कराकर होशियार मिस्त्रीके द्वारा काम प्रारंभ करा दिया। __ इसी वर्ष भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाका चतुर्थ अधिवेशन मिती कार्तिक वदी ५ सं. बईमें दि० जैन प्रां- १९५६से ७ मुताबिक ता: २३ अक्टूबर तिक सभाका स्थापन। १८९९से २५ तक श्री नंबूस्वामीकी निर्वाण भूमि चौरासी मथुरामें हुआ। इस समय इस सभाके महामंत्री मुंशी चम्पतरायजी डिप्टी मजिस्ट्रेट नहर, कानपुर थे जिन्होंने महासभाका कार्य बड़ी ही रुचिसे अपने जीवन पर्यंत किया और अनेक विघ्नोंके आनेपर भी इसे स्थिर रक्खा । महासभाको बाकायदा महासभा बनानेमें स्वर्गवासी बाबू बच्चूलालनी प्रयाग निवासीने अपनी उम्रभर जी तोड़ परिश्रम किया था । उन्हींके उद्योगसे इस महासभाकी रजिष्ट्री सर्कारी एक्ट नं० २१ सन् १८६० ई० के अनुसार हुई। इस बर्ष महासभाने प्रस्ताव नं० १ इस विषयका स्वीकृत किया कि "तमाम भारतवर्षमें प्रान्तिक सभाएं कायम की नावे जो सर्व प्रकारसे इस महासभाके उद्देश्योंको प्रचलित करनेमें सहायता देवें" तथा इस कार्यके करनेका भार बाबू बनारसीदास एम. ए. हेडमास्टर विक्टोरिया कालेज लश्करके सुपुर्द किया गया। यह महासभाके ज्वाइन्ट जनरल सेक्रेटरी कई वर्षोंतक रहे और रातदिन इसकी उन्नतिमें जी तोड़ परिश्रम किया। आपने ही महासभाके दो प्रभावशाली वार्षिक अधिवेशन सन् १९०४ और १९०५ में क्रमसे अम्बाला छावनी For Personal & Private Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ ] अध्याय नवां । और सहारनपुर में कराए तथा बहुतसी पुस्तकों की मददसे इंग्रेजीमें एक जैन इतिहास सिरीज नं ० १ Jain Itihas Series पुस्तक रची जिसके प्रचारसे यह अज्ञान अंधकार कि जैनी नास्तिक हैं या बौद्ध या हिन्दू धर्मकी शाखा हैं या प्राचीन नहीं हैं बिलकुल उड़ गया। जैन इतिहास सोसायटी कायम कर जबतक आप लश्कर रहे बहुत काम किया | सहारनपुर में वकालत करने के पीछे व परस्पर महासभा के कार्यकर्ताओंमें मनमिलान न रहने से आपने यकायक जैनजाति सम्बन्धी सत्र काम छोड़ दिया । यह जैन कौमके अभा की बात है | बाबू बनारसीदासने बम्बई प्रान्तिक सभा स्थापित होनेके लिये बम्बई सभा के मंत्री सेठ माणिकचन्दजीको पत्र लिखा उसके अनुमार मिती कार्तिक सुदी १ सं० १९५६ को बम्बई सभाकी प्रबन्धकारिणी सभाकी बैठक हुई। इस सभामें यह निश्चित हुआ कि प्रान्तिक सभा स्थापित हो तथा उसकी नियमावली बनाने का कार्य सेठ माणिकचंद हीराचंद, सेठ रामचंद्रनाथा, पं० गोपालदासनी और पं० धन्नालालजी के सुपुर्द हुआ और मिती कार्तिक सुदी १४ को उपदेशकसभा की बैठक में सेठ हरमुखराय अमोलकचंद के सभापतित्वमें वह नियमावली पास की गई तथा तय हुआ कि प्रान्तके मुख्य २ भाइयोंको भेजकर सभासद बनाए जावें और तब इसका काम शुरू किया जावे । बम्बई सभा सेठ माणिकचंद और पं० गोपालदासजी ऐसे उत्साही संचालकोंके द्वारा बहुत कायदे से ऐसे २ काम बराबर करती रही जिससे सारे भारतवर्षको लाभ हो । इस वक्त सभाके पास पाठशाला खातेके सिवाय उपदेशफंडका खाता भी था जिसके द्वारा उपदेशक For Personal & Private Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३१५ भेजकर दौरा कराया जाता था । मिती मगसर सुदी ८से बाबू जुगलकिशोरजी देवबन्द उपदेशक नियत हुए थे जिन्होंने कुछ दिनों तक बहुत स्थानोंमें भ्रमण कर उपकार किया। सरस्वती भंडार खातेसे संस्कृतादि ग्रंथ संग्रह किये जाते थे, पारितोषिक भंडारसे परीक्षालयद्वारा भारतवर्षके विद्यार्थियोंकी परीक्षा लेकर उत्तम छात्रोंको ईनाम दिया जाता था । औषधालय खाता था जिससे दवाई बटती थी! सभामें कभी २ सेठ माणिकचन्दनी भी व्याख्यान देते थे । सं० १९५३ में मिती आषाढ़ सेठ माणिकचंदजी सुदी १४ की सभामें आपने ४ शिक्षाबत व्याख्यानदाता। पर गुजराती भाषामें सेठ हरमुखराय अमो लकचंदके सभापतित्वमें बहुत गंभीरतासे कहा था । सेठजीके भतीजे सेठ प्रेमचंद मोतीचंद जौहरीमें बहुत अच्छी योग्यता थी। यह भी हर एक सभामें आते प्रेमचंद मोतीचंद और कभी २ व्याख्यान दिया करते थे। व्याख्याता । श्रावण सुदी १४ को सेठ माणिकचंदजीके सभापतित्वमें आपने सप्त तत्वोंका वर्णन बहुत योग्यतासे किया जिससे पं० गोपालदास व अन्य सभासदोंको ऐसा निश्चय हुआ कि यह अपने काका माणिकचंदकी भांति परोपकारी व समाजसेवक होगा। For Personal & Private Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ ] अध्याय नवां । प्रेमचंदनीकी प्रथम स्त्री चंचलबाई बहुत अशक्त तथा बीमार रहती थी। १ वर्ष ही के पीछे ही वह प्रेमचंदजीका द्वितीय इस शरीरको छोड़ कर चल दी। माता विवाह । रूपाबाई तथा प्रेमचंदका ऐसा ही भवितव्य था यह जान शांत मन रहे। इस वर्ष माताने प्रेमचंदका द्वितीय विवाह ग्वालियर राज्यके जावद निवासी एक वीसाहूमड़की कन्या चम्पाबाईजीके साथ किया । यह कन्या स्वरूपवान, सरल स्वभावी, और आज्ञानुसार चलनेवाली थी। इसके लाभसे माता व प्रेमचंदको बहुत सन्तोष हुआ। सेठ माणिकचंदनीकी प्रथम पुत्री फूलकुंवरीको एक कन्या जन्मी जिसका नाम कमलावती रक्खा फूलकुंवरीको तथा जन्मोत्सव करके इसकी रक्षाका पूरा कन्याका यत्न किया। इसके दो वर्ष बाद दूसरी पुत्री लाभ। हुई जो सिर्फ पांच दिन ही जीवित रहकर मृत्युके वश हो गई इस समय फूलकुंवरीको मी असाध्य बीमारी हो रही थी और एक मास बाद वह भी चल बसी । सेठ पानाचंदकी स्त्री रुक्मणीबाई संतानकी रक्षामें बहुत चतुर __ थी तथा इसके इस समय संतति-वियोग सेठ पानाचंदजीको करानेवाले कर्मोका उदय न था। लीलावती पुत्रका लाभ। ४ वर्ष और रतनमती २ वर्षकी थी तब भी यह बाई पुनः गर्भवती हुई । इस समय रानाचंदको यद्यपि पुत्रकी निराशासी थी पर पुण्यके उदयसे गुज० For Personal & Private Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सवा । [३१७ मिती आश्विन वदी १४को बाईने एक पुत्ररत्नको उत्पन्न किया । पुत्रका लाभ देख पानाचंदनीको और विषेश कर माणिकचंदनीको बहुत ही हर्ष हुआ क्योंकि अब तक इन दोनोंके कोई भी पुत्र जीवित नहीं था और बाज़ार में ये मान्य गिने जाते थे। सेठ माणिकचंदनीने खूब धूमधामसे मंदिरजीमें पूजन कराई, दान बांटा, वस्त्रादि दिये, गाना बनाना हुआ । बड़े भाईके चित्त प्रसन्नताके अर्थ इस जन्मोत्सवको इसतरह किया कि जिससे इसकी बहुत प्रसिद्धि हुई व माता रुकमणीको बहुत संतोष हुआ। अपनी ५१ वर्षकी आयुमें पुत्रलाभ होनेसे सेठ पानाचंदको अकथनीय आनन्द हुआ। सेठजीने इसकी रक्षाका पूरा २ यत्न किया । मिती मार्गशीर्ष वदी १० संवत १९५६ को सेट माणिकचं दनीने बम्बई सभाकी प्र० कमीटि बुलाई । बम्बई सभामें शिखरजी ८ सभासद एकत्र हुए । सभापति सेठ व जैनमित्र । हरमुखराय अमोलकचंद किये गये, उपमंत्री पं८ गोपालदासनीने भारतवर्षीय दि० जैन महासभाका वह प्रस्ताव नं० ३ जो उसने ता०२४-१०-१८९० को पास किया था, पेश किया। वह प्रस्ताव यह था । " महासभा प्रस्ताव करती है कि श्री सम्मेद शिखरजीके झगड़ेके विषयमें जो सबकमेटी मेले हाथरसमें स्थापित हुई थी वह अब तोड़ दी जाय और उसका चार्ज बम्बई सभाके सुपुर्द हो। इस कामके खजाञ्ची सेठ माणिकचंद पानाचंदजी जौहरी, बम्बई निवासी नियत किये जावें । जिन भाइयोंके पास इस विषय सम्बन्धी द्रव्य हो वह उक्त सेठ साहबके पास मय हिसाब किताबके भेज देवें और आगेको भी उन्हींके पास भेजते रहें (एक For Personal & Private Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ ] अध्याय नवां । नकल इस प्रस्तावकी बजरिये चिट्ठी बम्बई सभाको भेजी जावेगी ) सेठ नवलचंदजी संवत् १९५३ में शिखरजी गए थे तब ६०००) का चंद्रा करके सीतानालेसे कुन्यनाथ स्वामीकी टोंकतक ५००० सीढ़ियां बनवानेका काम मुनीम हरलालजीके सुपुर्द कर आए थे। सीढ़ियों का काम चलाया गया । ७०० सिटियां बन गई थीं । इतने में श्वेताम्बरी लोगोंको यह बात पसन्द न आई । ये सीढ़ियां सर्व जैन स्त्रीपुरुषोंके आराम के लिये बनवाई गई थीं इस बातका कुछ भी विचार न करके श्वेताम्बरी भाइयोंने ता. १२ जनवरी सन् १८९९ को रात्रि के समय चोरी से २०५ सीढ़ियां तुड़वा डालीं और इस अनुचित क्रियासे महान कर्मका बंध किया | इस फौजदारी मुकदमा हुआ जिससे श्वेताम्बर कोठीके दो भाइयों को कुछ दिनकी मजा व मुचलके हुए । इस समय हरलालजी मर गए थे । रावजी वीसपंथी कोठीके मुनीम थे। इसीने यह फौजदारी मुकदमा चलाया था | बम्बई समाने सर्व जैनियोंको सूचनार्थ ४००० विज्ञापन हाथरस के मेलेपर बांटे तथा महासभाको सूचना दी। उसने मुकदमे की पैरवी के लिये एक कमेटी बनाई थी उसने प्रमादवश कोई यथोचित कार्रवाई न की । उधर श्वेताम्बरियोंने हाईकोर्ट में अपील की जिससे दिगम्बरियोंकी तरफसे ठीक पैरवी न होनेसे असफलता हुई इसीपर महासभाने उक्त प्रस्ताव पास किया था । सभासदोंने इस प्रस्तावको स्वीकार किया तथा निश्चय किया कि वकीलोंकी राय लेकर दीवानीमें मुकदमा चलाया जाय और एक होशियार आदमी कोशिश करनेके लिये नियत किया जाय। इसी अंतरंग सभामें सभा के कार्योंको विस्ताररूपमें लाने के For Personal & Private Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३१९ लिये पं. गोपालदासनीने एक मासिक पत्रकी आवश्यक्ता बताई। सबके ध्यानमें जंचने पर "जैन मित्र" पत्रके निकालनेका निश्चय किया गया। सम्पादक पं. गोपासदासजी वरैया और प्रोप्राइटर सेट माणिकचंदजी नियत हुए। आपने स्वीकार किया तथा पत्रमें यदि घाटा रहे तो दो वर्षके वास्ते अधिकसे अधिक १००) साल सेठ माणिकचंद पानाचंदनी और ५०) साल सेठ नाथारंगजीन दना स्वीकार किया। सेठजीको समाजोद्धारका कितना प्रेम था इसका यह भी एक नमूना है। बम्बई में शीघ्र ही बोर्डिंगका मकान सेठ माणिकचंदनीके प्र यत्नसे तय्यार हो गया जिसका वास्तुविधान सेठ हीराचंद गुमानजी (मुहूर्त) मिती मगसर सुदी ६ को बड़ी धूमजैन बोर्डिंगका महूर्त । धामके साथ किया गया। इस बोर्डिंगका नाम सेठ पानाचंद आदि सेठोंने अपने पूज्य पिताके स्मरण के लिये उन्हींके नामसे सेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिंग रक्खा । बोर्डिंगके लिये २६०४ वार जमीन ली गई थी। इस पर तीन खनकी सुन्दर इमारत छात्रोंके रहनेके लिये बनाई गई जिसकी इमारतकी स्थावर मिलकियत २५०००) की तथा बोर्डिगके मकानके सामने इसी ज़मीनमें ४००००) की मिलकियतका एक मकान बनाया गया जिसका भाड़ा बोर्डिगके खर्च में लगे तथा ५०००) की खुली जगह गिल्ड स्ट्रीटके नाकेपर रक्खी गई। कुल ७००००) स्थावर मिलकियतमें १२५०) फरनीचर, ४५०) रसोईके वर्तन इस तरह ७१७००) दृष्टी फंड खाते रखकर यह रकम चारों सेठोंकी तरफसे नीचे लिखे टूष्टियोंको ५ अप्रेल सन् For Personal & Private Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० ] अध्याय नवां । १९००को सुपुर्द करके टूटडीड रजिष्टर कराया गया जिसकी इंग्रेजी नकल पाठकोंके ज्ञानहेतु अंतमें दी गई है। टूष्टी१ सेठ पानाचंद हीराचंद २ सेठ माणिकचंद , ३ सेठ नवलचंद ,, ४ सेठ प्रेमचंद मोतीचंद ५ सेठ हीराचंद नेमचंद दोशी शोलापुर [बम्बई. ६ सेठ राना धरमचंद राजा दीनदयाल प्रसिद्ध फोटाग्राफर, इस बोर्डिङ्गके तीन मंजलों में सुपरिन्टेन्डेन्टके रहनेके स्थान व रसोईघरके सिवाय २३ कमरे हैं जिनमें ४७ छात्र रह सक्ते हैं। ट्रष्टडीडमें खास ३ नियम हैं कि (१) हीराचंद गुमानजीके वंशमेंसे दो टूष्टी हमेशा कमेटीमें रहेंगे यदि वंशमें कोई न रहे तो उनके निकट सम्बन्धियों में रहेंगे। (२) दृष्टीकी संख्या कमसे कम छः व अधिक ८ होगी। (३) दृष्ट कमेटी व उसके द्वारा नियत प्रबन्ध कारिणीमें सत्र मेम्बर दिगम्बर जैन होंगे। (४) इसमें मेट्रिकुलेशन पास जैन छात्र भरती किये जाते हैं उनमें सबसे पहले संस्कृत द्वितीय भाषा रखनेवाले दिगम्बरी छात्रोंको, फिर अन्यभाषा रखनेवाले दिग० छात्रोंको फिर संस्कृतवाले श्वेताम्बरी छात्रोंको फिर अन्यभाषा वाले श्वे० छात्रोंको स्थान दिया जाता है फीस किसीसे नहीं ली जाती। इंटेन्ससे नीचे व चौथे क्लासके For Personal & Private Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only SAPP L सेठ हीराचन्द गुमान जी बोर्डिंग स्कूल-बम्बई. ( देखो पृष्ठ ३१९ ) Jain Vijaya" P. Press, Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३२१ ऊपरके छात्र मेनेनिंग कमेटीकी रायसे भरती होते हैं। (५) दिगम्बर जैनधर्मकी शिक्षा सर्वको लेनी होगी व वार्षिक परीक्षा देनी होगी। (६) नित्य दर्शन पूजाके लिये एक दिगम्बर जैन चैत्यालय रहेगा। (७) २३ कमरों में से ४ संस्कृत विद्यार्थियों रहने के लिये रहेंगे। (८) जो ४००००)की मिलकियतका मकान है उसका खर्च इकर जो भाड़ा बचेगा उसमेंसे ५) रु. सैकड़ा अमानत खाते जमाकर ३००) रु० साल दिगम्बर जैन मंदिरके खर्चके लिये निकालकर बाकी गरीब छात्रों को छात्रवृत्ति देनेमें खर्च किया जायगा जिसमें ५०) सैकड़ा बोर्डिंगमें रहनेवाले छात्रों को, ४०) सैकड़ा परदेशमें पहनेवाले छात्रोंको और १०) सैकड़ा जैन धार्मिक शास्त्रोंको मुख्यतासे पढ़नेवालोंको दिया जाय। ता० १७ जून सन् १९०० को ऊपरके ६ ट्रष्टियोंके सिवाय नीचे लिखे मेम्बर प्रबन्धकारिगीमें और शामिल किये गए--७ पं० गोपालदासजी बरैया, ८ सेठ गुरुमुखराय सुखानंद, ९ गांधी रामचंद नाथा, १० पंडित धनालाल काशलीवाल, ११ परीख चुन्नीलाल प्रेमानंद, १२ जौहरी चुन्नीलाल झवरचंद, १३ अण्णाप्पा फड्चाप्पा चौगुले बी. ए. एल. एल. बी.! इनमेंसे ट्रष्ट के इस नियमके अनुसार कि सेठोंके वंशमें जो बड़ा ट्रस्टी होगा सो सभापति रहेगा, जौहरी पानाचंद हीगचंद सभापति, खनाञ्ची झवेरी प्रेमचंद मोतीचंद सेक्रेटरी, हीराचंद नेमचंद आ० माजिष्टेट शोलापुर तथा ज्वाइन्ट सेक्रेटरी जौहरी चुन्नीलाल अवेरचंद नियत हुए। For Personal & Private Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय नवां। वर्तमानमें टूष्टी इस प्रकार हैं१ जौहरी नवलचंद हीराचंद-प्रमुख । २ सेठ हीराचंद नेमचंद दोशी शोलापुर--मंत्री। ३ जौहरी ताराचंद नवलचंद। ४ मि० लल्लूभाई प्रेमानंद परीख एल. सी. ई. ५ जौहरी ठाकुरदास भगवानदास--उपमंत्री । तथा मनेजिंग कमेटीमें ऊपरके सिवाय नीचे लिखे मेम्बर और हैं६ सेठ गुरुभुखराय सुखानंद। ७ पंडित धन्नालालजी ८ सेठ लल्लूभाई लक्ष्मीचंद चौकसी ९ ,, रामचंद नाथारंगजी १० ,, चुन्नीलाल हेमचंद जरीवाला। ११ , लाला प्रभूदयालजी । १२ ,, अमृतलाल विट्ठलदास धामी १३ ,, पानाचंद रामचंद दोशी । १४ , हीरालाल जयचंद दोशी। इस बोर्डिंगका काम नियमित रूपसे जून १९०० से प्रारंभ किया गया उस समय रा० रा० चौगुले बी० ए० सुप० नियत हए व दि० ३ और श्वे० १० ऐसे १३ छात्र भरती हुए । सन् १९०१ की परीक्षाके समय ३७ छात्र थे जिनमें केवल १० दिगम्बरी व २७ श्वे. थे। इनमें संस्कृत द्वितीय भाषा रखनेवाले २२ थे । पर सन् १९१२ में २४ दि० व ११ श्वे० थे व संस्कृत For Personal & Private Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३२३ भाषावाले ३२ छात्र थे। तथा सन् १९१४ में २९ दि० व १३ श्वे० व संस्कृत भाषावाले ३९ थे तथा वर्तमानमें ३७ दि० व १४ श्वे० छात्र हैं व संस्कृत भाषावाले ४९ हैं। दिगम्बरियोंकी अब संख्या बढ़नेका कारण उनमें शिक्षाकी ओर अधिक झुकाव है। श्व० की कमीका कारण एक तो स्थानका अभाव, दूसरे मंदिरपंथी व स्थानकवासियोंके भिन्न २ बोर्डिंग खुल जाना है। जिस समय यह हीराचंद गुमाननी जैन बोर्डिग, खोला गया उस समय बम्बईके हिंदुओंमें सिवाय गोकुलदास तेनपाल बोर्डिंगके और कोई न था। सन् १९०१ में बोर्डिगमें रहनेवाले ५ छात्रोंको १२) मासिक व परदेशमें पढ़नेवालोंको २६) रु० मासिक छात्रवृत्ति दी गई थी। इनमें सूरत निवासी केशवलाल डाह्याभाई नामका वह छात्र भी है जिसके निमित्त यह बोर्डिग खोला गया । इसे १०) मासिक सहायता दी गई। सन् १९१२ की सालमें बोर्डिंगवासी १७ छात्रोंको अधिकसे अधिक १८) मासिक तक कुल रु० २३४१) सालमें दिया गया। इनमें एक श्वे० छात्र भी शामिल था। तथा परदेशमें पढ़नेवाले १० दिग० छात्रोंको २७०) रू० व अहमदाबाद बो० के छात्रोंको ४८०) ऐसे ७५०) दिये गए। धार्मिक शिक्षा सन् १९०१ में द्रव्य संग्रह, रत्न करंड श्रावकाचार तथा न्यायदीपिकामें हुई थी जिनमें क्रमसे ६, १३ व १ छात्र परीक्षामें लिखित प्रश्नों द्वारा बैठे थे, सर्व पास हुए । सन् १.९१२ में धर्म शिक्षाके तीन क्लास थे, जिसका क्रम इस भांति था- नं० १-रत्नकरंड श्रावकाचार ७५ श्लोक और तत्वार्थसूत्र ३ अध्याय) For Personal & Private Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय नवाँ । नं० २-तत्वार्थसुत्र ४ से ६ अध्याय और पुरुषार्थसिद्धयुपाय ५० श्लोक। नं० ३-तत्वार्थ सूत्र ७ से १० अ० और द्रव्यसंग्रह पूर्ण । सन् १९१२ में ३६ इंग्रेजी पढ़नेवालों मेंसे १८ छात्रोंने परीक्षा दी थी जिसमें १५ पास हुए थे। तथा सन १९१४ में ४२ में से २९ ने परीक्षा दी थी १५ पास हुए । इस बोर्डिगमें कसरतशाला, रीडिंगरूम, लाइब्रेरी भी है। छात्रोंको इतना आराम क राहनेका सुभीता है कि सारी परीक्षाओंमें यहांके छात्रोंका बहुत अच्छा फल रहता है। धर्म शिक्षा लेकर जो छात्र यहांसे निकल कर जाते हैं उन-- मेंमें अधिकांश धार्मिक आचार व उसकी उन्नतिके उपर अपना स्वभाव रखते हुए देखने में आते हैं जिनके कुछ उदाहरण ये हैं-दि० बलवंत बाबाजी बुगटे, मैट्रिकुलेशन पास, पैतृक कृषिकर्म, दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभामें खास भाग । २-दि० लठे अणाप्पा बाबाजी, एम. ए.; सर्कारी काम, द० म० सभामें खास भाग तथा Jainizm पुस्तक रची है। ३-खे० मेहता मकनजी जूठा, बी. ए. बारिष्टरी, श्वे. समाजमें धर्म व जातिकी उन्नलिमें अग्रसर । ४-दि० परीख लल्लुभाई प्रेमानंद, एल. सी.ई., बम्बईमें असिस्टेन्ट कलेक्टर इन्कटैमक्स, अहमदाबाद, रतलाम बोर्डि० व For Personal & Private Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय नवां। श्राविकाश्रा बाईक मंत्री व प्रान्तिक समाके मुख्य कार्याध्यक्ष । ५-२० बरोड़िआ उमेदचंद दौ ठपचं जूनागढ़, बी० ए०, श्वे. जैन कन्फरेन्सके मंत्री। ६-दि० शाह नानचंद पूनाभाई, भरूच, बी०ए०, मास्टर हाईस्कूल बड़ौदा, नित्य धार्मिक क्रिया में लीन व दि जैन पाठशा लाके निरीक्षक 19-श्वे० उदानी मनीलाल हुकमचंद्र जतपुर, एम० ए०, वकील, जाति उन्नतिके कामों में तरयार । -, अंकले यशवंत सांग या वेलगाम, बी० ए०, सर्कारी रेवेन्यूमें चाकरी, धर्ममें बहुत प्रेम हैं। यहांसे जो छात्र पढ़के गए हैं वे अच्छे २ पदों पर प्रतिष्ठित हैं पर उनकी धार्मिक प्रसिद्धिका पता नहीं है जैसे -- २-इवे० परीख परभूलाल वावनी गोंडल, एल. एल. बी., मुनसफ., गोंडल। कोठारी प्रभाशंकर त्रीकमनी एल० एम० एंड० एम०, चीफ मेडिकल आफिसर छतरपुर (बुदेलखंड)। ३-, ' मोदी अमृतलाल बर्द्धमान वांसदा, एम० ६० एल० एल० बी०, नायब दीवान वांसदा स्टेट जिला सूरत । ४-श्वे० नाणावटी चंदुलाल बालाभाई बड़ौधा, बी० ए०, चीन देशमें शांगहाईमें व्यापार। For Personal & Private Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सभी सेवा | ३२६ ] ५ - श्वे० शाह त्रिभुवन ओधवजी भावनगर, बी० ए० एल० एल० सोलीसिटर 1 बी, ६ - २० शाह सोमचंद्र करमचंद राजकोट, बी० ए० एल० एल० बी०, चीफ वकील नवानगर काठियावाड़ | इत्यादि ऊपर लिखित व्यवस्था दिखानेका प्रयोजन यह है कि बोर्डिंग के आश्रयसे कितना लाभ हुआ है । जब तक स्वतंत्र जैन कालेज मुख्य २ प्रान्तों में न हों तब तक ऐसे बोर्डिंगों के होनेसे छात्र ऊंची शिक्षा लेकर लौकिक उन्नति करेंगे तथा धार्मिक शिक्षा के वीनसे अवश्य उनके जीवन में धर्म शिक्षा रहित छात्रोंकी अपेक्षा आचरण आदिमें फर्क रहता है । यहां पर जो छात्र रहते हैं उनको दिवसमें शामकी व्याल करने व कंदमूल आदि अभक्ष्य पदार्थ न देनेका नियम है । सन् १९१६ दिसम्बर तक जबसे बोर्डिग खुला उसक संक्षिप्त नक्शा और भी दिया जरता है । शुरू ३११ २३३ १८ "} १६ वर्षका संक्षिप्त नकशा । ० छात्रोंने लाभ लिया "1 दि० छात्रोंन न एल. एल. बी. परीक्षा पासकी १८ बी० ए० 71 19 "" कुल ३४९८०) छात्रवृत्तिमें खर्च किया गया For Personal & Private Use Only "" 19 Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा | [ ३२७ इस बोर्डिगकी कमेटी के आधीन और भी कई फंड हैं जिनका योग्य उपयोग होता है— उनमें एक बहुत विद्यार्थी लोन फंड | उपयोगी फंड विद्यार्थी लोनफंड है । इसमें से विद्यार्थियोंको कर्ज दिया जाता है। ताकि उनका अभ्यास न छूटे। इसके लिये सेठ माणिकचंदजीने ता: २९--१०--१९०४ को ५०० ) अपनी पुत्री फूलकौरकी यादगार में दिये थे । इसमें रुपया आते जाते रहकर सन् १९१२ के अंत में रु. १०१५ ||| ) | थे इसमें से विलायत इंजीनियरीका अभ्यास करनेको जाते हुए वोरा छोटालाल हरजीवनदासको ३००) दिये गए थे । यह स्था० खे० भाई आजकल बड़ौधा कलाभवन के प्रिन्सिपल हैं। तथा ५० ) बनारसीदास जलेसरको बी. ए. के अभ्यास के समय दिये गए थे । यह अब वकालत करते हैं । यह सब रुपया पीछे आगया है । सन् १९१२ में ४ छात्रों को २२३२ || ) || कर्ज के दिये गए थे। छात्रोंको थोड़ीसी मदद मिलन पर वे अपना अभ्यास अच्छी तरह आगे चला सकते हैं। ऐसे२ फंड बनायको कायम करके छात्रोंकी सहायता करनी चाहिये । प्राचीन शास्त्रोंके उद्धारका प्रेम सेठ माणिकचंद में कितना था इसका एक नमूना तो धवलादि ग्रंथोंकी शेठ माणिकचंदजीका पुनरावृत्ति है सो आगे बता चुके हैं । दूसरा शास्त्र प्रेम । यह है कि जब विद्वानोंसे आपने मालूम किया कि स्वामी समन्तभद्राचार्यने श्री उमास्वामी कृत दशाध्याय तत्वार्थसूत्र पर गन्धहस्त महाभाष्य नामकी ८४००० श्लोकों में वृत्ति बनाई थी तथा अब जिसका पता कहीं नहीं For Personal & Private Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ 1 अध्याय नवां । लगता है तब आपने — जैनमित्र ' अंक २ फर्वरी १९०० में यह नोटिस प्रसिद्ध किया कि जो कोई इस ग्रंथका हमको दर्शन मात्र करा देंगे उन्हें हम बड़ी खुशीसे ५००) रु० इनाम देवेंगे। अपने पूज्य पिताकी यादगार कायम रखनेके लिये सं० १९५६ में जैन बोर्डिगके सिवाय दूसरा स्तुत्य काम सूरतमं ही० गु० सेठ माणिकचंदजीने यह किया कि मरतमें जैन पाठशालाकी एक " हीराचंद गुमानजी जैन पाठशाला " स्थापना। मिती चैत्र सुदी ९ के दिन सवरे खपाटिया चकलाके श्री चंद्रप्रभुके मंदिरजीमें स्थापित की । इसका महूर्त बड़ी धूमधामसे किया गया जिसका सर्व प्रबन्ध सेठ चुन्नीलाल झवेर चंदने किया । सेठ हरगोविन्ददास देवचंद मोतीरुपावालोंके सभापतित्वमें सभा हुई। बालक और बालिकाओं को इनाम दिया गया तथा तीन शिक्षक नियत करनेका ठहराव हुआ । मिती बैसाख सुदी ३ तक इसमें ३० लड़के व लड़कियां हो गई थीं जो संस्कृत, धर्म शिक्षा व इंग्रजी आदि पढ़ते थे जिनमें प्रवेशिका के ग्रंथ पढ़नेवाले ५ छात्र थे। इन्हींमें हमारे उत्साही मूलचंद किसनदासजी कापड़िया भी थे, जिनको सेठजीने रत्नकरंड श्रावकाचारकी पुस्तक देकर उत्साहित किया था तथा इन्हींको पाठशालाका प्रथम उपमंत्री और पीछेसे मंत्री भी किया था। यह पाठशाला कई वर्षों तक ठीक चली फिर सुस्त हो गई। छात्रोंने आना बन्द किया पर मूलचंदजीने बराबर विद्याभ्यास जारी किया जिससे आपने शास्त्रीके पास चंद्रप्रभ काव्य तक देख लिया व व्याकरण तथा धर्ममें महासभाके परीक्षालयसे रत्नकरंड श्रावकाचार, For Personal & Private Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । तत्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह, कातंत्र पंचसन्धि-पलिंग और चंद्रप्रभ काव्य छह सर्गमें परीक्षाएं भी पास की और दो परीक्षाओं में तीन २ रुपये पारितोषक भी प्राप्त किये। सूरतमें एक अति प्राचीन मंदिर जूना पड़ा हुआ था जिसके भूमिवरमें ३ बड़े भव्य प्रतिबिम्ब थे, जिनमें सूरतमें दि० जैन एक जो श्री पार्श्वनाथजीकी है उस पर संवत् मंदिर का जी- १२३५ है और दो पर कुछ भी लेख नहीं र्णोद्धार। है। इस मंदिरका जीर्णोद्धार रु० ७०००) खर्च कर शेट चुन्नीलाल झवेरचंदने कराया तथा इसकी जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा मिती वैसाख सुदी ३ के दिन थी। वास्तुविधान, ध्वजारोहणादि कार्यको विधि पूर्वक करानेके लिये नांदणी ( कोल्हापुर ) के पंडित कलाप्पा भरमाप्पा निटवं आए थे। उत्सव बड़ी धूमधामसे किया गया था । उत्सवमें श्राविकाश्रम बम्बईमें मुख्य आनरेरी संचालिका श्रीमती ललिताबाई अंकलेश्वरसे आई थीं। यह मुनीम ललिताबाईका धर्मचंदनी सेनयकी भाननी हैं । उस समय परिचय। यह संस्कृतका अभ्यास कर रही थीं। सेठ ___ माणिकचंदनीको इसके मिलनेसे बहुत हर्ष हुआ तथा मगनबाईजीको तो एक द्वितीय हस्त ही मानों मिल गया। इसकी भी वैधव्य दशा थी। उमर मगनबाईजीके बराबर ही थी। सेठनीने इस बाईको भी विद्याभ्यासमें खूब दत्तचित रहनेके लिये प्रेरित कर दिया । इस समय वे भूमिघरकी प्रतिमाएं ऊपर वेदी पर बिराजमान की गई। इस मंदिरका नाम श्री शांतिनाथजीका मंदिर प्रसिद्ध हुआ। For Personal & Private Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० ] अध्याय नवां । सेठ माणिकचंदजीको यह जानकर बहुत शोक हुआ कि भारतवर्षीय दि० जैन महासभाके सभापति राजा लक्ष्मणदासजी-राजा सेठ लक्ष्मणदासजी सी० का देहान्त और आई० ई० मथुरा अपनी केवल ४५ धर्मशालाका वर्षकी आयुमें १५ नव० सन् १९०० के विचार। दिन इस संसारसे कुच कर गए। सेठजीको अपनी स्थितिपर ध्यान आया कि मेरी अव क्या अब ४८ वर्षकी है। कालचक्र हरसमय सिर पर धूम रहा है इससे मुझे जो कुछ करना हो मो शीघ्र कर लेना चाहिये। आप लोचने लगे कि बम्बई में दि० जैन यात्रियों को जो श्री पालीताना, गिरनार, पावागढ, आव, तारंगा आदिकी यात्रा करते हुए बम्बई आते हैं ठहरनेकी बड़ी भारी तकलीफ होती है इससे इनके लिये शीघ्र एक बड़ी भव्य धर्मशाला बन जाव तथा उसमें एक लेकचर हॉल भी हो जिससे जैन व जैनेतर विद्वान् अपने अनुभवकी बातें सुनाकर सर्व साधारणका कल्याण करें। दूसरे मेरी इच्छा है कि गुजरात व दक्षिण में शीघ्र ऐसे ही बोर्डिग स्थापित हों तथा जो जैनियोंमें करीति व अनेकता फैली हैं सो मिटै इत्यादि काम जितनी जल्दी हो मुझे करने चाहिये। एक दिन अपने विचार किया कि नियोंमें ८४ जातियां है पर सिवाय दोचारके और किसीके इतिहासका जैनियोमें ८४ जातिके पता नहीं तथा प्राचीन शास्त्रोंमें तो सिवाय इतिहासके लिये ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र चार वर्णो के इनाम। और जातियोंका पता नहीं चलता। येनातिया कैसे हुई इसकी चर्चा भी सभाके मेम्बरोंसे For Personal & Private Use Only ___ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय नवां । चलाई पर चित्तको सन्तोष न हुआ तब आपने एक नोटिस 'जैनमित्रः व जैनगजट में अपने नामसे मुद्रित कराया । यह जैनमित्र अंक १०-११ प्रथम वर्ष सन् १९०० में व जैन गजट अंक ४ छठ वर्ष सन् १९०१ में मुद्रित है। वह इस भांति है ५०) रु. इनाम। " पुराण और शास्त्रोंके देखनसे मालूम होता है कि पहिले समयमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार जातिथेही थीं। यद्यपि शूद्र जातिके गुणकर्मानुसार खाती, रंगरेज, दरजी, धोबी, कुम्हार, लुहार, आदि जातियें प्राचीनकालसे प्रसिद्धि में हैं, परंतु ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तथा खासकर जैन वैश्योंमें जुदी २ जातिय अग्रवाल, खंडेलवाल, ओमवाल, जैसवाल, परवार, सैतवाल, बघेरवाल आदि नहीं थी और वर्तमानमें प्रसिद्धि है कि जैन जाति-- कुछ समय पहले ८४ विभागों में विभक्त (बंटी हुई) थी, जिनमें की २०-२५ जातियां वर्तमान समयमें मोजूद भी हैं और अग्रवाल, खंडेलवाल आदि कई जातियोंकी उत्पत्तिके इतिहास भी प्रसिद्ध हैं सो इन बातोंके विचारनेसे स्पष्टतया सिद्ध होता है कि हमारी यह पवित्र जन जाति (वेश्य जाति) एक ही थी परंतु पीछेसे अनेक कारणोंसे अनेक जातियाँ (टुकडा) हो गई और उनमें से ५०-६० जातियाँ हम लोगोंके जन्मसे ही नष्ट हो गई और रही सही जातिया दिनों दिन नष्ट होती जाती हैं जिसका उपाय अनेक जातिहितैषी महाशय अहो रात्रि सोच रहे हैं परंतु अभी तक नष्ट होती हुई जैन जातियोंके उद्धारका For Personal & Private Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ ] समाजकी सच्ची सेवा । कोई भी उपाय दृष्टिगोचर नहीं हुआ। हमारी इच्छा है कि जातिहितैषी भाइयोंको पहिले यह बात जानना चाहिये कि: (१) हमारी बहुत बड़ी पवित्र जैन जातिके ८४ टुकड़े क्यों हुए? (२) और सिवाय २०-२५ जातियों के अन्य जातियां शीघ्र ही क्यों ना हो गई ? (३) और अब वर्तमानमें कौन २ सी जाति कहां २ पर कितनी २ मौजूद है ? (४) और उनमें से कौन २ सी माति शीघ्र ही नष्ट होने वाली है ? (५) और उनके नष्ट होने के मुख्य २ कारण कौन २से हैं ? ( ६ ) तथा नष्ट होती हुई उन जातियों की वृद्धि (उन्नति )) करनेके कौन २ उपाय हैं: इन ७ प्रश्नोंका उत्तर प्रमाण सहित सविस्तर मिले विना जातिहितैपियोंके जात्युन्नति कारक उपाय करने हमारी समझमें तो वृथा ही हैं । इस कारण हम हमारी जातिके परमहितैषी शोधक विद्वानोंसे हाथ जोडकर प्रार्थना करते हैं कि जो महाशय उक्त प्रश्नोंके उत्तररूप एक “जैनजातिदर्पण" नामक इतिहासकी पुस्तक लिखकर भेजेंगे उनको जातिहित साधनेका महान पुण्य और यशकी प्राप्तिके सिवाय उन पुस्तकोंमेंसे ५ विद्वानों की कमेटीद्वारा जो सबसे अच्छी और प्रमाणीक समझी जायगी उसके रचयिताको ५०) रु. नकद . इनाम दिये जायगे। आशा है कि हमारी इस प्रार्थना पर विद्वज्जन For Personal & Private Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सवा। [३३३ अवश्य ही ध्यान देंगें । जिनको यह पुस्तक बनाना हो वे प्रारंभसे पहले हमको सूचना देकर प्रारंभ करें नहीं तो वह पुस्तक कमेटीमें पेश नहीं हो सकेगी। जैनियोंका हितैषीजोहरी माणिकचंद पानाचंद,, पोष्ट कालवादेवी, कम्बई। इस ऊपर लिखित विज्ञापनको पढ़नसे सेट माणकचंदनीमें जातिप्रियता कितनी चरम सीमाकी थी उसका साक्षात् पता लगता है। जैसे आज कल कोई २ विद्वान् जैन जातिकी कमीके कारणोंको ढूंढ रहे हैं व उसकी वृद्धिके उपायोंको सोच रहे हैं ऐसे ही सेठनीको चिन्ता थी। विज्ञापन देने पर भी अबतक इस जैननातिदर्पणको किसीने भी नहीं लिखा इसका कारण यही है कि हमारे जैन विद्वान प्राचीन वाजलगाने में परिश्रम नहीं उठाते। अव भी यदि कोई इस पुस्तकका पाठक इस सुचनाके अनुसार पुस्तक तय्यार करे तो वह सेठजीकी स्मृतिमें ही समझी जायगी। पाठकोंको आगे चलकर मालुम होगा कि जातियोंकी संख्या आदिका ठीक २ पता लगानेके लिये सेठजीने दि. जैन डाइरेक्टरी अनुमान २००००) खर्च कर दिगम्बर जैन बनानेका बीज । डाइरेक्टरी तय्यार कराके छपाई है जिसका मूल्य ८) है इसके देखनेसे जातियोंकी कमीका पूरा २ पता चलता है पर जो २ विचार उपर दर्शाए गए हैं उन ७ प्रश्नोंके उत्तर में अभीतक किसीने कलम नहीं उठाई है। For Personal & Private Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ ] अध्याय नवां । इस सभाके स्थापित होनेका पक्का विचार तो कार्तिक सुदी १४ सं० १९५६ को बम्बईकी सभामें बम्बई प्रान्तिक हो चुका था पर प्रान्तके सभासदोंको. नियमासभाका कार्यारंभ। वलीके अनुसार एकत्र करनेमें करीव १ वर्षके बीता । मिती आश्विन सुदी २ सं. १९५७ को इसका एक परोक्ष अधिवेशन होकर २१ सभासदोंकी सम्मतिसे ( प्रस्ताव स्वीकृत हुए प्रबन्धकारिणी सभा २८ सभासदोंकी नियत हुई उनमें से मुख्य सभासद व कार्यकर्ता यह हुए--- सभापति-सेठ माणिकचंद पानाचंदनी । उपसभापति राजा दीनदयालजी । महामंत्री व 'जैनमित्र के सम्पादक-पंडित गोपालदासनी बरैया। कोषाध्यक्ष-सेठ गुरुमुखराय सुखानंद । त्री विद्याविभाग-अण्णाप्पा फड्याप्पा चौगुले बी. ए.। मंत्री उपदेशक विभाग-सेट नाथारंगजी । मंत्री तीर्थक्षेत्र-सेठ चुन्नीलाल झवरचंद जौहरी। पुस्तकाध्यक्ष-पंडित धन्नालालनी । शोलापुर, वेलगांव, आमोद, सोजित्रा, आदिके सेठ हीराचंद, कुंवरप्पा भरमाप्पा हंगले, हरजीवन रायचंद, शाह सावलदास प्रभुदास आदि सभासद हुए। मगसर सुदी १५ सं. १९५७को बम्बई सभाने अपने उपदेशक भंडार, अनाथालय, जैनमित्र, व शिखरजी For Personal & Private Use Only . Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [ ३३५ सम्बंधी काम प्रान्तिक सभाके ज़िम्मे कर दिये और यह अपना काम ज़ोर शोर से चलाने लगी । दानार्थ प्रेरणा | जैसे सेठ माणिकचंदजी स्वयं दान करते थे वैसे दूसरोंको भी प्रेरित करते थे । वम्बई के सेठ माणि सेठ माणिकचंदजीकी कचंद लाभचंद चौकसीकी विधवा पत्नी नवलाई गु. भादो वदी ११ सं. १९५६ को गुजर गई । इसको धर्म व विद्याकी रुचि थी। सेठ माणिकचंदजी इसको धर्मार्थ खर्च करनेकी सदा प्रेरणा क रते रहते थे । मरणके पहले इसने १२०४२) का दान करके यह वसीयतनामा किया कि— ५००१) रु. के व्याजसे बम्बई में एक जैन पाठशाला अपने पति के नामसे चले | ३०६५) शुभ खाते में दृष्टियोंकी इच्छानुसार । ३०२) मेंसे १००) चांदीकी प्रतिमा बम्बई मंदिर में, २५० ) सोनेका छत्र सूरतके जुने मंदिर में, ११) फलटन के आदिनाथ मंदिर में छत्र व उपकरण, २०१) कर्मदहन, जिन गुणसंपत्ति, सोलह कारण व दशलक्षणीके उद्यापनमें । ३१५) शिखरजी, गजपंथा, चंपापुर, तारंगा, गिरनार, मांगीतुंगी, पावापुर, कुंथलगिरि, पालीताणा, केशरिया, दहीगांव, सूरत के विद्यानंद स्वामी इन १२ स्थानों में २५) पचीस २ रुपये व १५) बम्बई के तेरापंथी मंदिर में चांदी का छन । For Personal & Private Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय नवां । २०५) मरण क्रियामें खर्च । २८५४) सम्बन्धियोंको बांटा जाय । कुल १२०४२) सेठ माणिकचंद पानाचंद, सेठ प्रेमचंद धरमचंद, सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुर, शाह भगवनदास कोदरजी तथा शाह लल्लूभाई लक्ष्मीचंद टूष्टी नियत हुए। श्रीमती मगनबाईके पतिके वियोगसे माता चतुरबाईके दिलको बड़ा भारी धक्का लगा। एक तो वह पहले ही श्री. चतुरबाईका बीमार रहती थी अब अधिक बीमार रहने परलोक गमन । लगी। जब जब यह मगनबाईजीको देखती इसके आंसू भर आते थे। दूसरा दुःख उसके दिल में पुत्रका जीवित न रहना था। इसको ३ पुत्र व ४ पु. त्रियोंका लाभ हुआ पर केवल ३ लड़किये ही जीवित रहीं, शेष सन्ताने केवल गर्भका भार देकर ही व कुछ दिन माताकी गोदको भरी हुई करके खाली कर गई । शरीरकी अस्वस्थता और मनकी दुर्बलता दोनोंने इसको ऐमा दबाया कि गु० मिती मगप्तर सुदी ८ सं० १९५७ रात्रिको इमको भरोसा हो गया कि अब मेरा जीवन नहीं रहेगा, मगनबाईको पास बिठा लिया। मगनबाईको अंतरंगमें बडा खेद हुआ। मेठनी भी आगए और एक दफे प्रेमदृष्टिसे देखकर बोले--तेरे स्मरणार्थ हम २०००)का दान करते हैं। इसकी दान सूची भी आप कहते गये और मगनबाईनी लिखवी गई। इस भांति दान किया १०००) बम्बईके हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिंगके विद्या For Personal & Private Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजीकी प्रथम पत्नी श्रीमती चतुरबाई. देखो पृष्ठ १४३) J. V. P. Surat. For Personal & Private Use Only only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजीकी द्वितीय पत्नी नवीबाई. J. V. P. Surat. (देखो पृष्ठ ३४२) For Personal & Private Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [ ३३७ थियों को जो धर्मकी परीक्षा में प्रथम रहे उसे इसके व्याजसे प्रति वर्ष इनाम देना । १००) जीवदया के लिये । १००) बाहरगांव के मंदिरों में उपकरण । ९००) बम्बई में दशलक्षणी पर्वके १० दिन ४ वर्ष तक २५ ) की पूरी गरीबों को बांटना | १००) सुगंचदशमी व्रत और फलदशम व्रतका उद्यापन करना । १००) अन्य धर्मकी टीपोंमें देना । १००) बम्वक उपदेशक भंडार में | १००) बम्बई प्रान्तके तीर्थक्षेत्र खाते में । ५०) केशरियानी में सोनेका छत्र भेजना । ५०) सम्मेद शिखर भंडार । ५०) पालोताना ५०) पावागढ़ २५) गजपंजा "" २२ 99 "" ५०) पावापुर "" ५०) शोलापुरकी चतुर्विधदानशाला । २९) गिरनार भंडार "" २५) चंपापुर २५) औषधालय केकड़ी | १६) सूरत जैन पाठशाला के बालकों को इनाम । ५०) मगनबाईको गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी अहमदाबादका लाइफ मेम्बर बनाना । For Personal & Private Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ ] अध्याय नवां । ५०) मगनबाईको मगनभाई प्रतापचंद जैन लाइब्रेरी-सूरतके लिये गु० वर्नाक्युलर सोसायटीका लाइफ मेम्बर बनाना । २२१६ कुल जोड। इन दो सोसायटियोंका लाइफ मेम्बर बननेसे गुजराती भाषा- . की पुस्तकें सब पढ़नेको प्राप्त हो सकती हैं । मगनबाई विद्यामती हो इसी आशासे मातापिताने यह कार्य किया । इस भांति दानका संकल्प किया । मगनबाई रूपाबाईनी आदि रात्रिभर धर्मका उपदेश व णमोकार मंत्र सुनती रहीं । प्रभात होते ही चतुरबाईका आत्मा शरीरको छोड़कर चल दिया। इस समय बाईकी उम्र करीब ४० वर्षकी ही थी। सेठ माणिकचंद और चतुरबाईका परस्पर प्रेम हमेशा ही रहा था इसलिये सेठजीका एक बड़ामारी सहारा जाता रहा । इस समय छोटी कन्या तारामतीकी अवस्था करीब ७ वर्षके थी। यह गुनराती शाला में पढ़ने जाती थी। सेट माणिकचंद और भतीजे प्रेमचंद अब धार्मिक व सामाजिक कार्यों में और भी अधिक भाग लेने लगे। ४२ ग्रामोंका विरोध गुजरात देशमें ओरान प्रान्तके ४२ ग्रामोंमिटाना। के २५० घर हैं। इनमें कई वर्षोंसे विरोध होनेके कारण परस्पर आहार व विवाह सम्बन्ध बंद था। ता० १० जनवरी सन् १९०१ को सेठ माणिकचंद और प्रेमचंद प्रान्तिक सभाके उपदेशक मुन्नालाल राजकुमारको साथ लेकर ओरान आए, उस समय सर्व ग्रामवासी एकत्र हुए। उवदेशकसे उपदेश कराया। फिर सेठोंने सर्व भाइयोंको इस तरह युक्तिपूर्वक समझाया कि उनका परस्परका विरोध मिट गया और For Personal & Private Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [ ३३९ सर्व एक हो गए। तब सेठजीने अपने खर्चसे उन सर्व भाइयोंको एक पंक्ति में बिठाकर भोजन कराया । धर्मके वात्सल्य गुगको बढ़ाकर आपने बड़ाभारी उपकार किया। शोलापुर जिलेमें बार्सी स्टेशनसे ३० मील आकलून ग्राम है। यहां २० घर दि० जैनोंके हैं। प्रसिद्ध आकलूजकी प्रतिष्ठा दानी व व्यापारी जिनवाणीभक्त सेठ नाऔर प्रान्तिक सभाका थारंगजी गांधीका यही जन्म ग्राम है। अधिवेशन । सेठ नाथारंगजीके ७ पुत्र थे । इस सयस सेठ शिवरामके सिवाय सेठ गंगाराम, गमचंद्र, आदि छहों भाई पुत्रादि सहित मौजूद थे । इनकी दूकाने पंढरपुर, बीजापुर, आकलन तथा बम्बई में हैं । एक जिन मंदिर पुराना था पर धर्मध्यान ठीक न होनेके कारण दूसरा मंदिर बनवाया था, इसकी जिनबिम्ब प्रतिष्ठाका उत्सव मिति माघ सुदी ९ सं० १९५७से १३ तक था। प्रतिष्ठाकारक शोलापुर पाठशालासे तय्यार हुए व वहीं प्रथमाध्यापक श्रीमान् पंडित पासू गोपाल शास्त्री थे । इसी अवसरपर बम्बई प्रांतिक सभाको निमंत्रित किया गया था, इस कारण ३००० के अनुमान नरनारी एकत्रित थे । बम्बईके जौहरी माणिकचन्द पानाचन्द सर्व कुटुम्ब सहित व पंडित गोपालदासजी आदि पधारे थे। प्रांतिक सभाकी तीन बैठकें हुई । प्रथम दिन सभापति रा० रा० मोतीचन्द मलूकचन्द कलुनकर फल्टननिवासी हुए । दूसरे दिन माघ सुदी ११ को हमारे चरित्रनायक सेठ माणिकचंदजी सभापति हुए । आपने चौथे प्रस्तावपर बहुत जोर देकर कहा किहम जैनियोंको जैन पडतिसे विवाह करानेका रिवाज For Personal & Private Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० ] अध्याय नवाँ । डालना चाहिये। प्रस्ताव पांचवां यह पास किया कि जैन समाजकी स्त्रियोंमें धार्मिक व तदविरुद्ध सांसारिक शिक्षाका प्रचार किया जाय । ७ वें प्रस्तावमें पं० धन्नालाल उपदेशक विभागके मंत्री और सेठ प्रेमचन्द मोतीचन्द जौहरी सरस्वती भंडारके मंत्री नियत हुए । सभामें सेठजीके मित्र पालीतानेके मुनीम धर्मचन्दजी भी पधारे थे । आपने सत्रुनय तीर्थपर धर्मशालाकी सहायताके लिये लोगोंका ध्यान खींचा । सुदी १२ के दिन तीसरी बैठकमें भी हमारे सेठनी ही सभापति हुए । इस जल्सेमें पंडित गोपालदासने बम्बई में एक संस्कृत विद्यालयके स्थापित होनेकी आवश्यक्ता बताकर अपील की तो तुर्त १३८५)का चन्दा हो गया, जिसमें १०१) सेठजीने अपने पूज्य पिताके नामसे दिये । इस प्रति ष्ठामें जैनसिद्धांतके महत्वपर पं० गोपालदासजीके पब्लिक व्याख्यान बहुत प्रभावशाली हुए। प्रांतिक सभामें स्त्रीशिक्षाका प्रस्ताव पास होनेपर माघ सुदी १२ दुपहरको ६०० स्त्रियोंने एकत्र हो प्रांतिक सभाके साथ स्त्रीसभा की। इसमें अंकलेश्वरकी ललितास्त्रियोंकी प्रथम सभा। बाई, शोलापुरकी रखाबाई, आकलूनकी ज्ञानीबाई, बम्बईकी माता रूपाबाई और मगनबाईजीने धर्म, आचरण, मिथ्यात्व और कुरीति निवारणपर व्याख्यान दिये । मगनबाईनीने अनित्यपंचाशतके संस्कृत श्लोक सार्थ सुनाए, जैन कन्याशाला स्थापित करनेकी प्रेरणा की व पढ़ने पर जो दिया। अनेक स्त्रियोंने पढ़ना स्वीकार किया। इसमें अजैन प्रतिष्ठित स्त्रियां भी आई थी जो व्याख्यान सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। For Personal & Private Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३४१ माघ सुदी १३ की रात्रिको सर्व सभाकी ओरसे सेठ माणिकचन्दजीने पंडित गोपालदास पं० गोपालदास और बरैया और पंडित धन्नालालजी कासलीवालधन्नालालजीको को मानपत्र दिया, क्योंकि इन दोनों विमानपत्र । द्वानोंके प्रयत्नसे सभामें आगन्तुकोंको बहुत धर्मलाभ हुआ था। शास्त्रस्वाध्यायकी आवश्यक्ता बताए जाने पर २५० भाइयों ने स्वाध्यायका नियम लिया था। सेठ नाथारंगजीने ६ जिवनारे दीं। १३५१) मंदिर भंडार व ३०१) संस्कृत विद्यालय बम्बईको दिया तथा ४५० धर्मपरीक्षा, सटीक, ४५० अकलंकस्तोत्र सटीक व ४५० मोतियोंकी जा सेठ हीराचंद नेमचंदकी रायसे धर्मप्रचार हेतु बांटी। इसी वर्ष ता० २२ जनवरी १९०१ को भारतपर अग्वंद राज्य करनेवाली महारानी (एम्प्रेस) विक्टोमहारानी विक्टोरि- रिया परलोकको सिधार गई। आपने १८ याका वियोग। वर्षकी उम्रमें सन् १८३७ को राज्य ग्रहण करके ६४ वर्ष राज्य किया। इनके पीछे महाराजा सप्तम एडवर्ड सिंहासनारूढ़ हुए। दक्षिण महाराष्ट्र प्रांतमें जैनियोंकी संख्या बहुत है जो • मराठी कनड़ी भाषाके बोलनेवाले व अधिक द० म० जैन सभामें खेतीका व्यापार करनेवाले हैं । इस प्रांतकी सेठजीको अभि- दशाके सुधार हेतु एक सभा ३ वर्षसे नंदनपत्र । स्थापित हुई थी। इसकी तीसरी बैठक माघ सुदी १ ता० २१-१ १९०१से कोल्हा For Personal & Private Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ अध्याय नवां। पुरके पट्टाचार्य लक्ष्मीसेन भट्टारकके सभापतित्वमें श्रीअतिशय क्षेत्र स्तवनिधिपर हुई। इसीमें नियमावली ठीक की गई तथा चौगले बी० ए० एल एल० बी० कील जो बम्बई बोर्डिंगके सुप्रिटेंडेंट रह चुके थे व सेठ माणि कचंदकी छात्रवृत्तिसे विद्या लाभमें उत्तेजित हुए थे, ऑनरेरी सेक्रेटरी नियत हुए। कोल्हापुर में संस्कृत पाठशालाके लिये १००००)का चंदा हुआ तथा यह तय हुआ कि बम्बईके प्रसिद्ध व्यापारी सेठ माणिकचंद पानाचंदजी जौहरीने एक बोर्डिंग स्कूल बांधकर अंग्रेजी व संस्कृत विद्याभिलाषी जैन विद्यार्थियों के लिये उत्तम प्रकारकी तजवीज की है व विशेष करके दक्षिणके विद्यार्थियों को अत्यानंदसे उत्तेजन देते हैं इसलिये उनका अत्यंत उपकार मानकर इस सभाकी ओरसे उन्हें एक आनंद प्रदर्शक पत्र भेजा जाय तथा इसी भांति इस कार्यमें उत्तेजना देनेके कारणभूत शोलापुरके सेठ हीराचंद नेमचंदको भी एक अभिनंदनपत्र भेजा जाय। आकलून बिम्बप्रतिष्ठाके समयपर शोलापुर, फलटन आदिके बहुतसे जैनी पधारे थे। सेठ माणिकचंदनीको सेठ माणिकचंदका मिलकर अनेकोंने जोर दिया कि आपके द्वितीय विवाह । पुत्र नहीं है, पुत्र विना आप ऐसे प्रसिद्ध सेठकी शोभा नहीं है, तना यद्यपि आपकी अवस्था करीव ४९ वर्षकी है पर आपका शरीर दृढ़ परिश्रमी और सब तरह बलिष्ट है, आप अवश्य विवाह करा लेवे । सेठजीकी बिलकुल इच्छा नहीं थी कि मैं ऐसा करूं, किन्तु यही भावना थी कि अब हमें धर्मसेवा व परोपकार ही करना है, तो भी जब भावन For Personal & Private Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सवा। [३४३ रूपाबाई व सेठ पानाचंदने बहुत ज़ोर दिया तब आपने स्वीकार कर लिया। ___ फल्टनमें एक बीसा हुमड़ हरीचंद दोदु थे उनकी लड़की नवीबाई उर्फे फूलुबाई हैं, उसीके साथ सेठजीका, चतुरबाईके विवाह मरणके ४ मास पीछे ही, चैत्र मासमें साधारण रीतिसे हो गया। सेठनी पुत्रकी आशासे नवीबाईको लेकर बम्बई आगए । वह पढ़ी लिखी नहीं थीं इसलिये सेठनीने उनको अध्यापिका रखकर लिखना पहाना सिखाया। जैन समाजमें इस समय राय बहादुर सेठ मूलचंदजी अति प्रख्यात थे। आप धर्म पालनमें बड़े प्रवीण रा० ब० सेठ मूल- व शास्त्रके ज्ञाता थे। आपने यद्यपि कोई चंदजीका वियोग विद्योन्नतिका महा स्तम्भ नहीं खड़ा किया, और सेठ माणिक- पर अजमेर में पाषाणकी नसियां बनवाकर चंदके चित्तका उसमें सुवर्णकी अयोध्या, ऋषभदेवके कल्याविचार। कोंका दृश्य बनवानेमें व श्रावक मुहल्लेमें मनोहर सुवर्ण व मीनेकी पच्चीकारी सहित मंदिर बनवाने व उसमें सुवर्णम समोशरण स्थापित करनेमें बहुत द्रव्य लगाया तथा उस मंदिरमें स्थान स्थानपर चर्चा श्लोक, स्तुति, स्तोत्र लिखवाए। आनके दिन अजमेर में ये दर्शनीय पदार्थ हैं। जैन अजैन सब दर्शनका लाभ लेते हैं। मिती आषाढ़ सुदी ३ ता० १८ जून १९०१ को आप भी इस पुद्गलमई शरीरको यहीं छोड़कर चल बसे । आपके मरणके समाचार पाकर सेठ माणिकचंदजी अपनी तरफ देखते हुए। उसी समय इनको For Personal & Private Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ ] अध्याय नवां । अपने परिग्रहप्रमाण व्रतकी याद आ गई और यह सम्मिलित जायदादका हिसाब विचारने लगे। अपने प्रमाणके अनुमान लक्ष्मीको होती हुई देखकर आपने यह इरादा किया कि अबकी दिवालीपर दूकानका सब हिसाब बनवाकर पक्का निश्चय करके फिर अपना सम्बन्ध कार्यसे हटा लूंगा और रात्रि दिन धर्म व जातिसेवामें अपना शेष जीवन बिताऊंगा। मिती आसोज सुदी ८ से १२ तक बम्बई में रथोत्सव हुआ। खुरजे व मेरठसे रथ आये थे। दो जलेव बम्बईमें रथोत्सव बड़े धूमसे निकली थी, जिनमें ३०६१।)। और प्रान्तिकसभा. की उपज हुई। माणिकचन्द पानाचन्दने की बैठक। १२५) देकर चंवर ढोरनेकी बोली ली थी तथा १००१) देकर एलिचपुरके सेठ लालासा मोतीसाकी तरफसे तानासावनीने श्रीजीकी खबासीकी बोली ली थी । इसमें शोलापुर आदिके अनेक भाई पधारे थे । बम्बई प्रान्तिक सभाकी बैठकमें राजा दीनदयालके पुत्र राजा धर्मचंद सभापति हुए । सेठ माणिकचंदजीने स्वागतकारिणी सभाके प्रमुखकी ओरसे भाषण पढ़ा । सभामें मुख्य प्रस्ताव बम्बई संस्कृत विद्यालयके लिये ध्रुवभंडार करनेका हुआ। आश्विन सुदि ९ के प्रातःकाल हीराचन्द गुमानजी जैन बोर्डि ङ्ग स्कूलके मकानमें संस्कृत जैन विद्यालयका संस्कृत जैन विद्या- शुभ मुहूर्त किया गया । राजा दिनदयालके लयकी स्थापना। हाथसे विद्यालय खोला गया। छात्रोंको तीन विद्वानोंके द्वारा धर्मशास्त्र, व्याकरण और न्यायका पाठ दिया गया। For Personal & Private Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३४५ समामें ७ वा प्रस्ताव सेठ माणिकचंदजीने उपस्थित किया कि बालविवाह, वृद्धविवाह और कन्याविक्रयका रिवाज बन्द किया जावे। इस जल्से में एक दिन सेठ प्रेमचंद मोतीचंदने जिनवाणीके उद्धारके लिये बहुत ज़ोरदार भाषण दिया था। सभामें विद्यालयके ध्रुवभंडारके लिये १२०००) के अनुमान चन्दा हो गया । इसमें सेठ माणिकचंद पानाचंदने १००१) दिये थे ।। गु० सं० १९९७ के अंतका सर्व हिमाच तय्यार हो गया । सेठ माणिकचंदने अपना परिग्रहप्रमाण व्रत सेठजीका व्यापारसे पूर्ण होता हुआ जान सेठ पानाचंद और पृथक् होना। नवलचंद तथा प्रेमचंदको बिठाकर कहा कि हम अब दूकानमें शामिल नहीं रह सक्ते, क्योंकि हमारा नियम अब हमें साथमें व्यापार नहीं करने देता है। भाइयोंको सेठ माणिकचंदके नियमका हाल नहीं मालूम था । सब बड़े आश्चर्यमें पड़े कि अति परिश्रमी सेठ माणिकचंद जिनके द्वारा .ज्यापार दिनपर दिन उन्नतिपर है इस तरह क्यों सम्बन्ध छोड़ते हैं। इनको समझाया भी पर इन्होंने तो अब पेन्शन लेनी विचारी थी। अपनेको समाजसेवाके लिये बलि देना था, परोपकारार्थ तन मन धन लगाकर स्वहित करना था। इसी बातपर जोर दिया कि हमारा भाग अलग कर दिया जाय । तब पानाचंदनीने खूब विचार करके जो ज़मीन व मकानोंकी स्थावर मिलकियत थी, उसको बांट दिया। सेठ माणिकचंदके भागमें प्रसिद्ध जुबिलीबागके सिवाय कई और मकान भी आए । जवाहरातकी कीमत जोड़कर विभाग किया गया। For Personal & Private Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय नवां । सेठ माणिकचंदने और भी कहा कि इस धनमेंसे कुछ धर्मादा निकालना चाहिये फिर भाग करना चाहिये। रु० २ लाखके दा- इस पर बम्बईमें धर्मशाला आदि बननेके लिये नका संकल्प। दो लाख का धन धर्मादेके लिये निकालकर शेषका भाग हुआ । दूकानका सम्बन्ध अब सेठजीने छोड़ दिया, तौभी आप प्रतिदिन ४ या ५ घंटे दुकानपर बैठते थे । वहांपर धर्म सम्बन्धी पत्रव्यवहार किया करते थे। किसीको यह प्रतीत नहीं होता था कि इन्होंने अपना सम्बन्ध दूकानसे छोड़ दिया है । सेठ माणिकचंदनीने बड़ी दोनों पुत्रियोंके नामपर एक २ मकान खरीद दिये और ताराव्हेनके नामसे रोक रु० जमा किये जिससे इनको अपने जीवन में कोई कष्ट न हो। मगनबाईकी खास जायदाद कई लक्ष रु० की थी और यही अपनी सास ससुरके पीछे उस सब धनकी मगनबाईकी निलो- स्वामिनी थी, पर पिता माणिकचंदने उसका भता । मन उस धनसे फेर दिया । यही कहा कि तेरे पालनके लिये यहां कुछ कमी नहीं है, यदि जो तू अभी श्वसुरालके धनके लोभमें पड़ेगी तो तू अपने आत्माका हित नहीं कर सकेगी। मगनबाई उसी वक्त इस बातको समझ गई । उस भारी सम्पत्तिसे मोह हटा लिया और बम्बई में ही एक पुत्रकी भांति सेठ माणिकचंदनीके साथ रहने लगी। कभीर दो चार दिनको परदेशीकी भांति श्वसुरालमें हो आती थी। यह बड़े सन्तोषसे पुत्री केशरको पालती और धार्मिक विद्याका अभ्यास करती थी। For Personal & Private Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सी सेवा । [३४७ इसी संवत् १९५८ में सेठ पानाचन्दनी अपनी पत्नी रुक्मणी बाई और दो कन्याएँ व छोटे पुत्रके साथ सेठ पानाचन्दकी श्री शिखरजीकी यात्रार्थ गए । साथमें सेठ शिखरजीकी प्रेमचन्द मोतीचन्द जौहरी और सेठ पानायात्रा। चन्दके साले मोतीलाल और झवेरेलाल भी थे। बड़े आनन्दसे यात्रा की, पर जब श्री पार्श्वनाथनीकी टोकपर पहुंचे तब वहां यह मालूम किया कि राय बद्रीदामनी (श्वे०) कलकत्तेवाले यहां प्रतिमानी बिराजमान करना चाहते हैं तथा आमंत्रण पत्रिकाएँ निकाली हैं। आपने चिठ्ठीमें सब समाचार माणिकचन्दजीको लिखे और शिखरजीसे शीघ्र ही बम्बई लौट आए। ____ बम्बईमें खबर होते ही श्रीमान् लॉर्ड कर्जनको तार दिया गया कि श्री पार्श्वनाथजीकी टोंकार जैसे सदासे चरण पादुकाओंका स्थापन है वैसे ही रहे-प्रतिमा विराजमान न की जावें । तथा जब पानाचन्दनी बम्बई आये तब वहांकी तय्यारीका हाल कहा कि राय बद्रीदास माह सुदी १३को चरणोंके स्थानपर प्रतिमा बिराजमान करनेवाले हैं। और सेठ माणिकचन्दको जोर दिया कि वे स्वयं जावें और इस बातको रुकवावें । सेठ माणिकचन्द तीर्थरक्षामें पूर्ण लौलीन थे । जबसे महासभाने यह काम बम्बई सभाके आधीन किया तबसे ही रात्रिदिन शिखरजीकी सुव्यवस्थाके ही प्रबन्धमें थे। आपके उद्योगसे सीढ़ी तोड़नेके हमेंमें श्वेताम्बरियोंपर ५०००) की दीवानीमें नालिश की गई थी जिसके लिये समाजने ६०००) के करीब चन्दा एकत्र किया था सो खर्च करके रु० १८४५) की For Personal & Private Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८] अध्याय नवां । डिगरी श्वे० पर जज साहबने दी थी। एक चिन्तासे मुक्त हुए ही थे कि दूसरी यह फिकर हुई। आप उसी दिन चलनेको तय्यार हुए। आपके साथ सेठ ___पानाचंद रामचंद शोलापुर, सेठ नाथारंगजी शिखरजीकी रक्षार्थ गांधी आकलून, लल्लभाई प्रेमानंद बोरसद, सेठ माणिकचंदका बालचंद व हीराचंद आदि भाई भी गए । दौरा और उप- आप नागपुर होते गए और वहांकी पाठशासर्ग निवारण। लाके लिये ६५००) का चंदा कराया । वहांकी फूट मेटी व सेठ गुलाबमात्र आदि तीन भाई शिखरजीके लिये साथ हुए। शिवरजी पहुंचे। गीरीडी व आराके भाई आए। वहां लाला सुलतानसिंह दिहलीवाले मिले । उन्होंने चरण उखाड़नेकी बात कही व रुकवाने में पूर्ण मदद देनेका बचन ही न दिया, किन्तु अपने संघसे १०००) जमा कराके दे दिया । कोशिश चल ही रही थी कि लार्ड कर्जनने रांचीके डिप्टी कमिश्नरको जरूरी प्रबन्धके लिये हुक्म दिया । वहांसे चरण उखाड़नेकी मनाईका हुक्म आ गया। उस समय सेठनीने बीसपंठी कोटीके हिसाबादिको संतोषजनक न पाकर वे आरा गए। वहांके पंचोंको समझाया। उन्होंने चैत्र सुदी १ तक सब हिसाव प्रसिद्ध करने व १ साल तक अच्छी कार्रवाई करनेका बचन दिया। सेठ माणिचंदजी फिर बम्बई आ गए। यहां आने घर खबर आई कि प्रतिष्ठा होनेकी तारीख पर २०० कान्सटेबल, दारोगा व सुप०को भेजा गया जिससे मूर्तिकी प्रतिष्ठा न हो सकी। चरण सदाकी भांति विराजित रहे । सर्कारके इस न्यायसे सेठजी व सर्व दिगम्बर जैन समाजको सन्तोष हुआ । इसी वर्ष सेठ माणिकचंदने For Personal & Private Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा। [३४९ पंजीकी बाड़ी नामके स्थानको ३२०००) में खरीद किया, पर यह स्थान पीछेसे धर्मशालाके योग्य न जान कर यों ही रहने दिया। श्रावक मंडली शोलापुरने सेठ माणिकचंदजीके धार्मिक कृत्यों पर मुग्ध होकर ता० ६ अक्टूबर १९०१ को एक मानपत्र अर्पण किया जिसकी नकल इस भांति है मानपत्रजवेरी शेठ माणेकचंद पानाचंद जोग्य प्यारा धर्मबंधु, ___जत अमे नीचे सही करनारा सोलापुरना दिगंबर जैन भावको आप साहेबनी स्वधर्म विषे अत्यंत प्रीति देखीने आ मानपत्र आपने आपवानी रजा लईये छीये ते कृपा करी स्वीकारशो. ____ आपणा जैन बंधुओ स्वधर्म संबंधी तेमज राजकाज संबंधी केवलणीमां घणा पछात पड़ेला जोईने तेमने धर्म संबंधी अने राजकाज, वैदकीय, शिल्पशास्त्र वगेरेनी ऊंचा प्रकारनी केळवणी मेळववानुं अतिशय जरूरनुं साधन जे “बोर्डिंग हाऊस" ते मुंबई जेवां म्होटां शहेरमा पोतानां पोणो लाख रुपिया आशरे खर्च करीने आपे बांधी आप्यु तेथी आपनी धर्मकृत्योमां खरी उदारता प्रगट थाय छे. श्री सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर ज्यां बीस तीर्थकर अने असंख्यात मुनी मोक्ष पाम्यां छे त्यां जात्राळुना सगवड माटे पगथियां करवानुं काम चाल्युं हतुं. ते आपणा श्वेतांवर भाईओए वगर कारणे उखाडी नांखीने क्लेश वधार्यो; ते काममां आपे आगेवान यई महेनत लईने सरकारनी अदालतमां जय मेळव्यो. तेथी आपणे ठेकाणे स्वधर्म वात्सल्य गुण तारीफ करवा लायक छ एम स्पष्ट देखाय छे. जयधवल, महाधवल जेवां प्राचीन अन्योना जीर्णोद्धार करवामां For Personal & Private Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० ] अध्याय नवां। पण आप साहेब आगेवान थई सर्वे भाइओनी मददथी काम चलाव्युं छे तेथी ज्ञानवृद्धि माटे आपनी अत्यंत उत्कंठा देखाई आवे छे. __ श्री गंधहस्तमहाभाष्य नामना अत्यंत उपयोगी परंतु अदृष्ट थयेला धर्म पुस्तकनी तपास लगावी आपनारने पांचसो रुपियानु इनाम आपे जाहेर कीधुं तेथी आपना विषे प्रवचनवात्सल्य गुण रहेलो जणाई आवे छे. तेमज आपणा केटलांक गरीब अने निराश्रीत जैन बंधुओने विद्याभ्यास करवा माटे योग्य पारितोषिक अने स्कालर्शिपो आपीने उत्तेजन आपो छो, तेथी जैनधर्मना यथार्थ दाननो मार्ग आप बतावी आपो छो. एवीज रीते स्वधर्म संबंधी हरएक काममां आप पोताना तन, मन, धनथो महेनत करीने अमारा जेवा धर्मबंधुओने पण साथे लेई 'पुण्यनो लाभ आपो छो. एवां तमारा सद्गुणो जोईने अमने घणो संतोष थयो छे. ते संतोषना बे बोल आ मानपत्रमा टांकीने आपने भेट करी छे, ते आप मानपूर्वक अंगिकार करशो एवी अमे उमेद राखिये छीये. शोलापुर, आपना, तारीख ६ अक्टोबर सन् १९०१ सद्गुण चाहनारा । आकलूनकी बिम्बप्रतिष्ठाके समय सरस्वती भंडारके मंत्री सेठ प्रेमचंद मोतीचन्दको किया गया था। सेठ प्रेमचंदकी स- जबसे आपने बहुत कुछ उद्योग किया । रस्वती भक्ति। आपने मई १९०१ के जैनमित्रमें एक प्रभा वशाली लेख प्रकाशित करके शास्त्रोंकी रक्षाका उपाय बताया था। इस लेखमें आपके अंतरंग मावको झलकानेवाले कुछ वाक्य यह थे-"हमारे भाइयोंके लक्षों करोडोंका व्यापार For Personal & Private Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३५१ समाजकी सच्ची सेवा । होता है । एक सौ रुपयाके व्यापार में ) आना इस कार्य में भी दे दिया करे...." “धर्मकार्यमें किसीकी अप्रतिष्ठा नहीं होती, जैसे अलीगढ़ के सय्यद अहमद खां सिताई हिन्दने जगह २ से मांगकर कालेज बना दिया कि जिसमें लक्षोंका धन जमा होगया । हालमें अभी २०००० ०) सर्कारने भी दिया है । हम हमारे भाइयोंसे एक लाख रुपया भी एकत्रकर कालेज न बना सके। भाइयो ! विचार देखो ! परभवमें सिवाय पुण्यकर्म (धर्म) के दूसरा सुख देनेवाला नहीं है । " यह शरीर जिसको मनुष्य अपना मान रहा है चितापर ही जल जाता है, केवल शुभ या अशुभ जो किया हुआ अर्थात् कमाया हुआ कर्म है वही जीवके साथ जाता है। " " भाइयोंको अपने तनसे धनसे मनसे प्राणी मात्रका भला करनेवाली जिनवाणीका शीघ्र ही जीर्णोद्धार करना चाहिये । बम्बई के गत रथोत्सव व प्रांतिकममा बम्बईकी तीसरे दिनकी बैठक में सरस्वती देवीकी रक्षा पर भाषण देते हुए कहा था कि यदि ५००) रु. की सहायता हो तो ईडरके भंडारका उद्धार हो सक्ता है तथा आपने प्रेरणा करके पन्नालाल बाकलीवालको दो मास के लिये ईडर भेजा । इन्होंने जाकर बहुत से ग्रंथोंकी सूची आदि बनवाई तथा ईडरके पंचोंने कई बंडल संस्कृत ग्रंथ सेठ माणिकईडर के संस्कृत-प्राकृ- चंदजीके पास भेज दिये। सेठजीने एक त ग्रंथों की प्रशस्ति । विद्वान् शास्त्रीको निम्रत कर उन ग्रंथों के पत्र ठीक कराकर सुन्दर वेष्टनों में बांधे तथा उनके मंगलाचरण व अंतिम प्रशस्ति, ग्रंथके नंबर व हकीकत सहित For Personal & Private Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय नवां । रजिष्टरोंमें लिखवा ली और ग्रंथ ईडर भेज दिये। यह रजिष्टर सेठ माणिकचंदके चौपाटीके चैत्यालयमें हैं। विद्वानोंको उससे बहुत हाल मिल सक्ता है। अभी तक ईडरके भंडारका पूर्ण उद्धार नहीं हुआ है। सेठ प्रेमचंद और सेठ माणिकचंद जैन जातिके पत्रोंको बराबर बांचते थे। जैनगजट अंक ८ ता० १ मार्च बाबू बच्चूलालजीका १९०२ में यह पढ़कर कि महासभाके मुख्य अकाल मरण। कार्यकर्ता व गज़टके सहाई तथा समाजो द्धारक पूर्ण उद्योगी बाबू बच्चूलालजी प्रयाग निवासी ता० १ मार्चको स्वर्ग पधारे । दोनों सेठोंको बहुत शोक हुआ, पर इस परसे ये और भी धर्मसाधनमें दत्तचित्त हो गए। सम्वत् १९५९ मिती कार्तिक वदी ५से १० मुताविक ता० २२-१०-१९०२ से २६ तक भा० सेठ माणिकचन्दका दि० जैन महासभाका वार्षिक जल्सा चौरासी महासभामें गमन और मथुरामें बड़ी धूमधामसे हुआ । बहुतसे वितीर्थक्षेत्र कमेटीका द्वान व जातिके मुखिया एकत्र हुए थे। स्थापन। बम्बईसे सेठ माणिकचन्दनी, सेठ रामचन्द नाथा, सेठ गुरुमुखराय, पं० धन्नालाल, पं० जवाहरलाल शास्त्री गए थे। उसी समय पं० गोपालदासजी भी आए, थे । ता० २२ अक्टूबरको पं० गोपालदासके पेश करने व सेठ माणिकचन्द, बावू देवकुमार, मुंशी चम्पदरायके समर्थनसे भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीकी स्थापना हुई, जिसके समासद ३५ चुने गए । सेठ माणिकचन्दनी महामंत्री और For Personal & Private Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KKKKKKKKKKKKKKKKKKK&&&&&& GEEKEEE&&&&&&&&&&&&&&KKKK察 सेठनीके ज्येष्ठ भ्राता सेठ पानाचन्द हीराचन्दनी. &&&& ( 1 && ) J. V. P. Surat. For Personal & Private Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । सेठ चुन्नीलाल झवेरचन्द और लाला रघुनाथदास सरनौ सहायक महामंत्री नियत हुए। जबसे बम्बई प्रान्तिकसभाने यह खाता खोला था और चुन्नीलालनीको तीर्थक्षेत्रका मंत्री नियत किया था तबसे यह तीर्थोके सुधारमें, हिसाब मंगाने आदिमें पूर्ण प्रयत्नशील थे। - सेठ चुन्नीलालजीने भादवा सुदी ५ तक प्रांतिक सभा बम्बईकी रिपोर्ट में अपनी जो रिपोर्ट प्रगट कराई है सेठ चुन्नीलालका उससे विदित हुआ कि आपने ३८ स्थानों. परिश्रम । में व्यवस्था व हिसाबक फार्म भेजे व पत्र व्यवहार किया जिससे २१ स्थानों के फार्म भरकर आए तथा डाह्याभाई शिवलाल इंस्पेक्टरद्वारा तीर्था का निरीक्षण भी कराया। आपने अपनी रिपोर्ट के अन्तमें ये शब्द दिये हैं: - इस प्रकार २१ फार्म आए हैं । यद्यपि सर्वकी हिसाब प्रथा उत्तम नहीं है, दो चारको छोड़ और न हिसाबोंको देख संतोप हो सक्ता है तौभी हम सच्चे दिलसे प्रबन्धकर्ताओं और मुनीमोंकी फार्म भेजनेकी मिहरबानीका धन्यवाद देते हैं । महारान सप्तम एडवर्डके राज्यारोहणके उपलक्ष्यमें भारतके ___ वाइसराय लार्ड कर्जनने ता० १ जनवरी दिहली दार । सन् १९०३को दिहलीमें एक बड़ा भारी दर्बार किया था, जिसका एम्फी थियेटर दिहलीसे ५ मीलपर बना था जिसमें २५ ब्लोक थे। भारतके राजा महाराजा रईस आदिके सिवाय, नेपाल, फारस, अफगानस्तान आदिके भी प्रतिनिधि आए थे । १२००० से अधिक भीड़ थी। विलायतसे डयूक आफ कोनाट भी पधारे थे। लाट साहबने दर्बारमें .. २३ For Personal & Private Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ ] अध्याय नवां। महाराज एडवर्डका तार सुनाया जिसके कुछ शब्द ये हैं:-" मेरी यही आन्तरिक अभिलाषा है कि मैं भी माताके सदृश भारतीय प्रनाका सुशासन करके उनका प्रेम और भक्तिका लाभ करूं । मैं भारतके समस्त करद राजाओंको पुनः विश्वास दिलाता हूं कि मैं उनकी स्वाधीनताका सन्मान, अधिकार और स्वत्त्वका आदर करता हूं तथा उनकी उन्नति और भलाई होनेसे प्रसन्न होता हूं" । दर्वारके दिन जैनियोंने भी अपने २ मंदिर में विशेष पूजा की व बृटिश साम्राज्यकी जय मनाई व दान वांटा । वम्बई में भी ऐसा हुआ । जैपुरमें भी महासभाके सभासदोंने जल्सा करके महासभाकी ओरसे एक अभिनंदनपत्र लाट साहबको महाराज जैपुरके द्वारा भेजा। दक्षिण महाराष्ट जैन सभाका पांचवां वार्षिक अधिवेशन ता० २७ और २८ जनवरी सन् १९०३ को द० म० जैन सभा- क्षेत्र स्तवनिधि पर हुआ । सभापति श्रीमन्त द्वारा अभिनंदन पायप्पा अप्पाजीराव देसाई थे । सभाने एक पत्र । वर्ष पहले एक दक्षिण महाराष्ट्र विद्यालय खोला था उसमें ११ विद्यार्थी पढ़ते थे उसकी रिपोर्ट सुनाई गई । इस सभाने जैन शिक्षण फंडमें २००००) का फंड कर लिया था । सभामें शिक्षाप्रचारके प्रति कोल्हापुरके महाराजका आभार माना गया तथा सेठ माणिकचंद पानाचंद जौहरी बम्बई और सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुरका शिक्षाप्रचारके अर्थ अभिनंदन पूर्वक आभार माना गया। वास्तव में जो सच्चे दिलसे परोपकारार्थ तन मन धन लगाते हैं वे जगतमें बिना चाहे भी परम कीर्ति लाभ करते हैं। For Personal & Private Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३५५ जिस व्यक्तिपर माता रूपाबाईको अवलम्बन था, जो हीरा चंद गुमानजीके कुलका सेठ माणिकचंदकी प्रेमचंदका अचानक तरह एक रत्नमय दीपक था, जिसके स्वभाव, स्वर्गवास और धार्मिक क्रिया व समाजसेवाको देखकर परोपस्वहस्तलिखित कारियोंको सन्तोष होता था कि सेठ माणिदान पत्र। कचंदके पीछे यही दिगम्बर जैन समानमें जागृति फैलाएगा, जिसका परिणाम बहुत शांत, विचारशील और उदार था, जो संस्कृत इंग्रेजी व वर्तमान देश चाल व्यवहारसे अच्छी तरह परिचित था, जो जिनवाणीका ज्ञाता अभ्यासी व पूर्ण भक्त था, जिसका अखंड वात्सल्य और प्रेम अपनी जैन जातिसे था वही प्रफुल्लित चकता हुआ तारा यकायक अपने चहुं ओरके मनुष्योंकी दृष्टिसे इसी संवत १९५९में चैत्र सुदी १४ की रात्रिको लुम हो गया ! शरीर पिंजर वैसा ही दीख रहा है पर शरीरमें अनेक चेष्टाओंको करानेका ज़िम्मेदार चैतन्य आत्मा यहांसे चल दिया है। यद्यपि शरीर छोड़ते समय इसकी अवस्था २५ वर्षकी थी पर यह गाफिल नहीं हुआ था। रात्रिको ही अपनी तबियत जब एकाएक बिगड़ी तब आपने अपनी माता, स्त्री तथा काकाओंके सामने अपने ही हाथसे नीचे लिखा दानपत्र लिखकर हस्ताक्षर कर दिये १-माटुंगा रोडकी जमीन जो अनुमान २००००) की है वह तथा अपनी जिन्दगीके बीमाके ५०००) यह दोनों रकमें हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिगकी कमेटीको इस शर्त पर देना कि "प्रेमचंद मोतीचंद स्कोलरशीप खाता" खोलकर इस For Personal & Private Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ ] - अध्याय नवां । रकमके व्याजसे गुजराती प्रथम पुस्तकसे इंग्रेजी चौथी क्लास तक बिना माबापके निराधार विद्यार्थियोंको स्कालरशिप दी जावे । २-मेरी माताश्रीके बारहसौ चौतीस उपवासके व्रतका उद्यापन ५०००) के खर्चसे करना । ३-अमनगर (ईडरके निकट ) के स्टेशनपर " प्रेमचंद मोतीचंद धर्मशाला ', नामसे १०००) खर्च करके एक धर्मशाला • बनवाना। 2-निम्न लिखित तीर्थी से प्रत्येक तीर्थको इक्कावन इक्कावन रु. की रकम भेजना-१ श्री सम्मेदशिखर, २ श्री चम्पापुर, ३ श्री पावापुर, श्री गिरनार, ५ श्री केशरियाजी, ६ श्री पावागढ़, ७ श्री गजपंथानी, ८ श्री मांगीतुंगी ९ श्री पालीताना, १० श्री तारंगाजी, ११ श्री सिद्धवरकुट, १२ श्री सोनागिरजी, १३ श्री कुंथलगिरजी, १४ श्री ईडरका मंदिर, १५ श्री चतुर्विध - दानशाला सोलापुर । ___ इस तरह रु० ३१७६५) का दानपत्र अपनी माताको देकर आपने मौन धारण कर लिया, हाथ जोड़ सबसे क्षमा मांगी और शांत मनसे भीतर २ अपने शुद्ध आत्मस्वभावका चिन्तवन करते२ बाहरसे णमोकार मंत्रकी ध्वनि सुनते२ स्वर्ग पधारे । चंपाबाई अपनी १५ वर्षकी आयुमें ही वैधव्यताको प्राप्त हो गई ! माता रूपाबाईको पुत्रके वियोगसे बहुत शोक आया, पर धर्मके ज्ञानके कारण अपने चित्तको थांभ व कर्मका उदय विचार शांत चित्त हो गई । सेठ माणिकचंद बहुत विलाप करने लगे, क्योंकि सेठजीको इसके गुणोंपर अतिशय प्रेम था। पानाचंद और नवलच For Personal & Private Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३५७ न्दजीको भी बहुत शोक हुआ, क्योंकि यह दूकानके काममें भी बहुत चतुर था । बम्बई बोर्डिंगकी ट्रष्ट कमेटीमें कोषाध्यक्ष और बम्बई प्रांतिक सभाके सरस्वती भंडार खाते का काम आपने अपने जीवन पर्यंत बहुत ही योग्यतासे सम्पादन किया था इससे बम्बईकी जैन समाजको आपके वियोगका बहुत ही ताप हुआ। आपने संस्कृतका . अच्छा अभ्यास किया था व मराठी लिखना पढ़ना भी आप अच्छा जानते थे । सेठ हीराचंद नेमचंदकृत मराठी व्रतकथासंग्रह और 'महावीरचरित्रका गुजराती भाषामें बहुत ही उत्तम उल्था किया था और उसे प्रकाशित कराया था। इसने प्रसिद्ध तीर्थोकी यात्रा भी कर ली थी। यह बहुत ही दयालु, सहनशील, साहसी व विचारशील था। इसके चित्रसे इस भव्यके गुण स्वयं झलक रहे हैं। हमारी समाजके नव युवक धनाढ्योंको सेठ प्रेमचंद के जीवनचरित्रसे शिक्षा लेनी चाहिये और अपनेको विषय कषायोंसे बचाकर धर्म व नीतिसे परोपकारमें तन मन धन लगाते हुए अपने जीवनको व्यतीत करना चाहिये। सेठ माणिकचंदजी नवीबाईके साथ अपने गृही कर्मको विताते थे कि नवीबाईके गर्भ रहा । सेठनवीवाईके प्रथम जीको बहुत संतोष हुआ और मनकी इच्छापुत्रका जन्म। नुसार नवीबाईने मिती वैशाख सुदी १२ को एक पुत्रका जन्म दिया । पुत्रलाभसे सर्व कुटम्बको हर्ष हुआ । वास्तवमें संसार कैसा विचित्र है कि जिस वरमें १ मास पहले शोक छाया हुआ था उसीमें आज पुत्रजन्मका उत्सव मनाया जाने लगा। नवीबाई पुत्रको बहुत सम्हालसे For Personal & Private Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ ] अध्याय नवां। पालने लगी। सेठजीने भी दासियां नियत की कि इसे कोई कष्ट न हों। सेठ रावजी नानचंद गांधीने शोलापुरमें जिनबिम्ब पंच कल्याणकोत्सव मिती ज्येष्ठ सुदी ६ से ९ वंबई प्रांतिक सभाका सं० १९६० तक बहुत ही समारोहके साथ द्वितीय वार्षिकोत्सव पास गोपाल शास्त्री द्वारा कराया । बाहरसे और शोलापुरकी करीब २००० के भाई आए थे। हमारे बिम्बप्रतिष्ठा। सेठ माणिकचंद आदि बम्बईके अनेक सज्जन पधारे थे। सेठ रावजी नानचंदने नया रथ तैयार कराया था सो पंचायतीमें अर्पण किया तथा प्रतिदिन सबका भोजनसे सत्कार किया। प्रांतिक सभाके सदस्योंका बहुत सन्मान किया और ५०१) सभाको भेंट किये । प्रांतिक सभाकी ४ बैठके हुई । सेठ हरीभाई देवकरणवाले सेठ बालचंद रामचंद सभापति हुए । आपने कहा कि इतनी बातोंका प्रबन्ध किया जाय किदि. जैन धर्मशास्त्रके ज्ञाता विद्वान् तयार हो, जैन धर्मानुसार लग्न, विवाह, मृत्यु आदि क्रियाएं होवें, व्यर्थव्यय रोका जावे, मृत्यु पीछे रोने कूटनेका रिवाज बंद हो, बाल्यविवाह व कन्याविक्रय रोका जावे व तीर्थक्षेत्रोंकी व्यवस्थाका सुप्रबंध हो । १८ प्रस्ताव पास हुए जिसमें मुख्य ये थे-(१) महाराज सप्तम एडवर्डके राज्यारोहाणोत्सवमें हर्ष (२) सर्कारसे प्रार्थना हो कि विद्याविभाग आरोग्य संबंधी तथा जेलखानेकी रिपोर्टोंमें जैनियोंका अलग खाना हो (३) मृत्युके पीछे छाती कूटनेका रिवाज जोधपुर मारवाड़की तरफसे इस गुजरातमें आया है। मारवाडके रजवाड़ोंमें जब राजगोतीका For Personal & Private Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३५९ मरण होता था तो रानिये रोने व छाती कूटनेके लिये महलोंसे बाहर नहीं होती थी। वे सब अपनी दासियोंको बाहर भेनती थीं वे ही रडती पीटती थीं। दासियोंको इस प्रकार करनेमें उनका स्वार्थ सधता था-उनको कपड़े वगैरह मिलते थे । सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदने पेश किया कि जिस २ तीर्थक्षेत्रका हिसाब आया है उन्हें धन्यवाद दिया जाय व जहां २ से हिसाब नहीं आया उसको प्रेरणा की जाय । तीसरे दिन सेठ माणिकचंदनीने प्रगट किया कि शोलापुरके चतुर्विघदानशालाके वैद्यक विभागमें जो वैद्यक शिक्षाकी छात्र पढ़ेगा उसे प्रथम वर्ष ६) दूसरे वर्ष उत्तेजना। ७) व तीसरे वर्ष ८) मासिक मिलेगा इस शर्त पर कि इस प्रान्तके किसी पवित्र औषधालयमें २५) महीने पर औषधालयका काम करें । जिन्होंने जैन पद्धतिसे विवाह कराए थे उनको सभापति द्वारा छपे हुए मनोहर धन्यवाद पत्र दिये गए । प्रान्तिक सभाके फंडमें २१३५) आए तथा बावी निवासी रामचंद्र अभयचंदके निकट ५०००) की एक धर्मादाकी रकम थीं उसके व्याजसे एक विद्यार्थीको वैद्यक पढ़ाई जाय ऐसा जाहर किया गया। इस शिक्षाकी उत्तेजना देनेका अभिप्राय सेठजीका यही था कि हम बम्बईमें औषधालय कायम करें तब उस वैद्यका उपयोग हो। जगत्में किसी भी प्राणीकी एकसी दशा नहीं रहती इसीसे सेठ पानाचंदका ..... यह जगत् परिवर्तनशील है । जिसको जीता ॥ जागता, काम करता हुआ सबेरे देखते हैं स्वर्गवास । वही शामको चेतन रहित होता है। जब तक For Personal & Private Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६०] अध्याय नवां । वह आत्मा अपने स्वाधीन स्वभावको नहीं पाता है तब तक इसका जन्म मरण नहीं मिटता है। आयु कर्मका प्रेरा यह जीव शरीरमें अपनी उम्रसे अधिक नहीं रह सक्ता । मिती कार्तिक वदी ११ संवत् १९६० की रात्रिको सेठ पानाचंद हीराचंदका शरीर अति अशक्त हो गया। तबियत तो कई दिन पहलेसे खराब थी। यथाविधि औषधि होती थी। इस समय सेठ माणिकचंद, नवलंचद, चुन्नीलाल, रूपाबाई, रुक्मणीबाई, मगनबाई आदि कुटुम्बी पास बैठे हैं, सेठ पानाचंद बराबर होशमें हैं, पंडित वंशीधर जो उस समय संस्कृत विद्यालय बम्बईके छात्र थे अब शोलापुर जैन पाठशालामें शास्त्री हैं, पास बैठे हुए समाधिमरण आदिके पाठ पढ़ रहे हैं, पानाचंदजी बड़े ध्यानसे सुन रहे हैं। माणिकचंदनीको इस समय यही ध्यान है कि भाईका मन किसी भी तरह आर्त रौद्र ध्यानमें नहीं फंसे, धर्म ध्यानमें लीन रहें जिसमें दुर्गतिसे बचकर सुगतिमें जावें इसलिये जब कभी उन्हें मालूम होता कि इनका ध्यान और तरफ हुआ है तब ही सेठ माणिकचंद यह वाक्य कहते-"भाई, पंडितजी कहते हैं उधर तुम्हारा ध्यान है ना ? तब वह धीरेसे कहते कि मेरा ध्यान है, बराबर चालू रक्खो। मिलकियनके विभागके समय धर्मशाला आदि कार्योंके निमित्त करीब २ लाखके दानका संकल्प हो ही चुका था। इस समय आपने कहा कि भाई, मेरी प्राइवेट मिलकियतमेंसे १५०००) वागड़ देशके हुमड़ छात्रोंमें विद्या प्रचारके लिये खर्च करना तथा १००) तीर्थ क्षेत्रोंमें देना। संठ माणिकचंदने तुर्त लिख लिया। सेठ माणिकचंदने कहा-भाई, और भी कुछ दान करना For Personal & Private Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३६१ हो सो करो। भाईने कुछ उत्तर न दिया। इतने में देखते २ आंखें फिरने लगीं तब पंच नमस्कार मंत्रकी घोषणा प्रारंभ हुई। सामने तीनों सन्तान भी बैठी थीं-लीलावती ७ वर्षकी, रतनबाई ५ वर्षकी व पुत्र ठाकुरभाई ३ वर्षका था-तीनों माताके पास बैठे हैं। सेठ माणिकचंदका सख्त हुक्म था कि कोई रोने न पावे न कोई शोर करे । उस स्थानपर इतनी शांति थीकि यदि कोई मखमलके गद्दे पर भी पग धरे तो उसका शब्द सुन पड़े । वास्तवमें मृत्यु होते समय पूर्ण शांति रहनी चाहिये जिससे मरनेवालेके भावों में भी शांति रहे, कोई विकल्प न पैदा हो । उस रात्रिको सेउ पानाचंदने चारो प्रकारके भोजन व औषधि तक लेनेका त्याग कर दिया था। सेठ माणिकचंदके पूर्ण प्रबन्धसे पानाचंदनीका आत्मा धर्म ध्यानमें लीन होता हुआ शांतता पूर्वक इस चर्महाड़के पोनरेसे निकलकर स्वर्गधामको पधारा। सेट पानाचंद जवाहरातकी परीक्षामें बम्बईभर में प्रधान समझे जाते थे । आप बहुत ही शांत, विचारशील, उदार चित्त व निराश्रितको आश्रय देनेवाले थे । परोपकारार्थ मेरा धन खर्च हो यही इनके चित्त में रहा करता था, क्रोध करना तो जानते ही नहीं थे, मौन रखकर विचारनेकी आदत थी। यह कैसे गंभीर प्रकृतिके व दृढ़ मिज़ान व शांत पुरुष थे, यह बात रक्त सेटजीके चित्रके दर्शनसे भले प्रकार झलक उठती है। आपने अपने ५४ वर्षमें धर्म अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थीको यथायोग्य पालन करके गृहीके कर्तव्यको सदाचार, सद्वर्ताव और नेक नियतीसे अच्छी तरह निवाहा आपके वियोगसे बम्बई भरमें शोक छा गया। जौहरी बाजारमें For Personal & Private Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२] अध्याय नवा । कई दिन तक बड़ी उदासी रही। दूसरे दिन प्रातःकाल दग्ध क्रियाके अर्थ अब ले गए तब सैकड़ों मनुष्योंकी भीड थी। बिरादरीके सिवाय जौहरीबानारके दूकानदार दलाल आदि जिसने सुना फौरन हाज़िर हो गये थे। अब रुक्मणीबाई जो कि बहुत धीर प्रकृतिकी थी, यद्यपि इसे विशेष पुस्तकों का अभ्यास नहीं था तो भी कुछ अक्षर ज्ञान था, बड़ी शांतिसे अपने तीन संततिरत्नोंका पालनपोषण करने लगीलीलावतीको शालामें भेजने लगी। इस कुटुम्बमें पार्सियोंकी भांति यही रिवाज़ था कि लड़का हो या लड़की शुरूसे विद्याभ्यासमें लगाकर चतुर बनाना फिर लग्न करना । छोटी उम्र में सगाई करना बड़ा पाप समझते थे। पानाचंदजी भी चल दिये । प्रेमचंद इसके पहले ही न रहे थे। अब सेठ माणिकचंदको रात्रि दिन यही सेठ हरजीवन रायचं- ध्वनि रहने लगी कि जो कुछ करना है उसमें दकी सम्मतिकी एक दिन भी ढोल नहीं लगाना चाहिये । कदर। सेठ प्रेमचंद गुजरातके छात्रोंमें शिक्षा प्रचारके अर्थ जो दान कर गए थे उससे सेठजीने यही सोचा कि गुजरातके किसी स्थानपर एक जैन बोर्डिंग खोला जावे तो ठीक हो । आपको विश्वास था कि आमोदके शेठ हरजीवन रायचंद एक विचारशील, धर्मात्मा और शास्त्रके ज्ञाता गृहस्थ हैं । आपका परिचय सं० १९५० में हुआ था जब श्री भक्तामरजी गुजराती टीका सहित सेठनीने मंगाई थी तबसे पत्रव्यवहार बराबर रहता था । सूरत में जब चुन्नीलालने मंदिर प्रतिष्ठा कराई थी For Personal & Private Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा। तब भी आपको बुलाया था । आपसे साक्षात् मिलकर बहुत प्रीति प्रगट की थी तथा सुरतके बड़े मंदिरजीमें तब छपे हुए नोटिस बांटकर आम सभा की गई थी। उस समय इन्होंने ऐक्य पर बहुत अच्छा भाषण दिया था। सेठ हरजीवनको भी गुजरातके बालकोंको धर्म विद्याके साथ लौकिक विद्या दी जावे इसकी बड़ी चिन्ता थी तथा यह सेठजीको अपने पत्रों में इस त्रुटिको दूर करनेके लिये लिखा करते थे । अब सेठजीने इनको पृछा कि गुजरातमें एक बोडिग स्थापन करनेका हमारा विचार है जिसमें मेट्रिक तक छात्र रहकर पढ़ें, शेष कालेजकी पढ़ाई बम्बई बोर्डिंगमें रहकर करें तथा बड़ौदा, सूरत, अहमदाबाद ये तीन मुख्य नगर हैं इनमें से कौनसी जगह तुमको पसंद है, कारण सहित लिखो। तब सेठ हरजीवनने अहमदाबादको पसन्द किया कि यह बड़ा व्यापारी नगर है। सब तरह विद्याका साधन है। जिनके बालक रहेंगे वे बारम्बार आकर देख भी सकेंगे, क्योंकि मालके लिये उनको आना ही पड़ता है तथा यहां कालिज भी है, अच्छा है-मिले हैं आदि। सेठजीको यह बात बहुत पसन्द आई तब हरजीवन रायचंदको लिखा कि गुजरातके लोग अपने छात्रोंको भेनेंगे या नहीं, क्योंकि वे लोग ऐसा समझते हैं कि धर्मके खातेमें हम अपने लड़कोंको क्यों रक्खें ? तब आमोदके यह परोपकारी सज्जनने उत्तर दिया कि इसकी आप चिन्ता न करें तथा एक पत्र आमोदके दिगम्बर जैन पंचानका भिनवाया उसमें पंचोंने हिम्मतके साथ लिखा कि मुहूर्त्तके दिन हम १० विद्यार्थि ओंको साथ लेकर आयेंगे, आप निश्चिन्त रहो। तब सेठजीको बहुत ही संतोष हुआ और तुर्त ही मार्गशीर्ष सुदी ६ को For Personal & Private Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + ३६४ ] अध्याय नवाँ | बोर्डिगका महूर्त अहमदाबादमें किया जाय ऐसा निश्चित करके गुजरात के भाइयों को बुलाने के लिये पत्र दे दिये । सेठ माणिकचंदजीका सदा ही यह कायदा रहा है कि पहले यह किसी नवीन कायको शुरू करके उसकी गुजरात दिगम्बर जैन परीक्षा करते थे। जब वह चल जाता था बोर्डिंग स्कूल - अह - तब उसको सदाके लिये ऐसा पक्का कर देते मदाबाद | थे कि वह कभी किसीके तोड़े न टूट सके । म्बई बोर्डिगकी स्थापना के समय इस नीतिको इसलिये नहीं काममें लिया कि बम्बई में जैनियों के छात्र अवश्य ही आवेंगे इस बातका सेठको दृढ़ निश्चय था। यहांके काममें संदेह था इसीलिये पहले सेठजीने ३ वर्षक निर्वाहके लिये ९०००) बोर्डिंग में दिये तथा २५ छात्रोंका प्रवन्ध करके एक मकान भाड़ेका लेकर बोर्डिंग खोलनेका महूर्त बड़ी धामधूमसे किया । इसमें ईडर, कलोल, सूरत, सोजित्रा, अंकलेश्वर आदि गुजरात के बहुतसे भाई पधारे थे उनमें मुख्य जयसिंहभाई गुलाबचंद्र, हरजीवन रायचंद आमोद, मोतीचंद ईडर पधारे थे । बंबई से पंडित गोपालदास बरैया, लल्लूभाई प्रेमानंददास परीख तथा सेठ माणिकचंदजी आए थे। मगर सुदी ६ सं० १९६० के प्रातःकाल प्रथम ही मंगल कलशके साथ नगरमें १ वरघोड़ा निकाला गया । फिर स्थानपर आकर श्री जिनवाणीकी पूजा करके एक सभाका अधिवेशन बड़े समारोह के साथ किया गया जिसमें अहमदाबाद के प्रतिष्ठित भाइयों को छपे हुए कार्ड द्वारा स्वयं सेठ माणिकचन्द कई भाइयोंके साथ जाकर निमं त्रण कर आए थे वे सत्र शामिल हुए जैसे- रावबहादुर केशवलाल For Personal & Private Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [ ३६५ हीरालाल, जौहरी लल्लूभाई रायचंद, रा० ब० लालशंकर उमियाशंकर, रा० ब० हरगोविन्ददास द्वारकादास कांटावाला, प्रोफेसर आनंदशंकर बापूभाई ध्रुव, डॉ. जोसेफ बेनामिन इत्यादि भाई पधारे थे । सभापतिका आसन रा० रा० दीवान बहादुर अम्बालाल शाकरलाल देशाई एम. ए. एलएल. बी. ने ग्रहण किया था । पं० गोपालदासजीने विद्याभ्यासकी आवश्यक्ता एक प्रभावशाली व्याख्यान देकर बताई तथा लल्लूभाई प्रेमानंददास आदि वक्ताने बोर्डिंगका हेतु समझाया, फिर सभापतिने एक शिक्षापूर्ण भाषण देते हुए कहा-" जिस प्रकार यात्रा करनेवालों में जिनके पास पर्यटनकी पूरी २ सामग्री रहती है वह आगे और जो साधनहीन होते हैं व पीछे पड़ जाते हैं उसी प्रकार संसार यात्रामें जो जाति विद्या साधनसे हीन है वह अवश्य ही पीछे रह जाती है। इस संस्थाके स्थापन कर्ता उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान् नहीं हैं, परंतु वह " द्रव्यका सदुपयोग किस तरह करना चाहिये' इस विषयके सच्चे मर्मज्ञ जौहरी हैं आदि कहा।” इस समय कहा गया कि जो कोई सहायता करेंगे वह सहर्ष स्वीकार की जायगी। तब आकलजके भाईने १०) मासिक एक वर्षके लिये दिया । ८१ गृहस्थोंकी एक विजिटर्स कमिटी बनी । जो ३) वार्षिक दे वह इसका मेंबर हो सक्ता है । इसमें करमसद, इंडर, नहर, नरसीपुर, सोनासन, बड़ौदा, ओरान बोरसद, अहमदाबाद, सूरत आदिके भाई मेम्बर हुए। बोर्डिंगका प्रबन्ध बम्बई बोर्डिंगकी मनेनिंग कमेटीके आधीन रहा । मंत्री For Personal & Private Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय नवां । लल्लूभाई प्रेमानंददास एल. सी. ई. नियत हुए । शुरूमें ही इसमें ३८ छात्रोंकी भरती हो गई अपने द्रव्यसे पढानेवालोंके लिये २५) प्रति छः माहीके लिये लेने नियत हुए। इसमें पहले दरजेसेलेकर छठे दरजे अंग्रेजीतकके छात्र भरती हुए। रूपाबाई संसारके चरित्रोंसे भली प्रकार अनुभव लेती हुई जबसे प्रेमचंद पुत्रका वियोग हुआ तबसे रूपाबाईका व्रतो- और भी अधिक उदासीन रूपमें धर्म साधद्यापन । नमें लीन हो गई। तप करके जैसे अनंतमती, चंदना आदि सतियोंने अपनी पर्यायोंको सफल किया था ऐसे ही यह बाई करती थी। छोटे २ व्रतोंके साथ इसने १२३४ के उपवासों का आरंभ संवत १९५१ में किया था सो ९ वर्ष में उनको निर्विघ्न पूर्ण किया तथा जैसे प्रेमचंद सेठ मरते समय ५०००) इस उद्यापन में खर्च करनेको कह गए थे उसी प्रमाण सेठ माणिकचंद और नवलचंदने रूपाबाईजीकी आज्ञासे पूजनका महा समारंभ रचा। चौपाटीके बंगलेमें ही बड़े हॉलमें सजधनकर मंडप किया गया। जहां कई रोज नित्य पूजन भनन गान हुए। बाहरसे भी खास २ भाइयोंको बुलाया गया था। सेठ माणिकचन्दके परम मित्र भाई धरमचंदनी भी सपत्नीक पालीतानासे बम्बई आ गये थे। यहां कर्मधर्मचंदजीकी स्त्रीका योगसे इनकी स्त्रीको प्लेगका रोग हो गया वियोग। और कई दिन बीमार रहकर माह सुदी ४ सं० १९६०को इस पर्यापको छोड़कर चल For Personal & Private Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३६७ दी। उस समय सेठोंने इनको बहुत धैर्य बंधाया । माह सुदी ५ के आस पास कई दिनों तक चौपाटोका मंदिर नर-नारियोंसे भरा रहता था । भगवत्के गान भनन नृत्य खूब होते थे । जैनी भाईयोंका भोजनादिसे सत्कार, मंदिरों में दान आदि करके यह उद्यापन बड़े भावसे करके रूपाबाईको बहुत सन्तोष हुआ। तथा इस व्रतके हर्षमें ५०००) गुजरात दि० जैन बोर्डिंग स्कूलको दिया गया तथा बोर्डिंगमें विद्यार्थी अच्छी तरह रहनेकी रिपोर्ट जानकर सेठ माणिकचन्दने निश्चय किया कि प्रेमचन्दनीका कहा हुआ २५०००) शीघ्र लगा दिया जाय तथा ५०००) बोर्डिंगके मकानके लिये भी निकालनेका विचार दृढ़ किया । इसी वर्ष सं० १९६० में सेठ माणिकचन्दकी प्रथम पुत्री फूलकौरका यकायक मरण हो गया । सेठजीकी प्रथम शेठजीको यह भी एक भारी शोकका स्थल पुत्रीकी मृत्यु । आन पहुँचा, पर ज्ञानी और विचारवान सेठने इसे भी थिरतासे सहन किया । फूलकौर कमु (कमला) कन्याको छोड़ गई जिसकी प्रतिपालना और रक्षाका भार मगनबाईजीने अपने हाथमें ले लिया। कोल्हापुरसे थोड़ी दूर एक अतिशय क्षेत्र स्टवनिधि है। वहां दक्षिग महाराष्ट्र जैन सभाका वार्षिक अधिस्तवनिधिमें द०म० वेशन माघ सुदी १४ ता. १६ जनवरी सन् जैन समा। १९०४ से १८ तक था। इसमें अध्यक्ष सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुर नियत किये गए थे। सेठ हीराचंदके लिखते ही सेठ माणिकचंदजी भी For Personal & Private Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ ] अध्याय नवां । तुर्त रवाना हुए। शोलापुरसे सेठ वालचंद रामचंद व सेठ रामचंद नाथा आदि कई महाशय पधारे । पहली सभामें कोल्हापुरके एक विद्यार्थीको जिप्सने प्राचीन जैन ग्रथोंके उद्धार पर भाषण दिया था सेठ माणिकचंदजीने प्रसन्न हो ५) इनाममें उसी समय दे दिया । यह सेठनीके विद्या प्रेमका नमूना है। सभापतिका भाषण बहुत विद्वतापूर्ण हुआ, उसको सुनकर मि० यादवरावनी एम. ए. एलएल. बी. कमिश्नर कोल्हापुर जौ अजैन थे बहुत प्रसन्न हुए और उठकर कहा कि-" जैन धर्मके मन्तव्य बहुत उत्तम है। अहिंसा धर्म बहुत ही श्रेष्ठ है आदि ।" तीसरे दिन सेठ माणिकचंदनीने इस बातपर सामान दिया कि चंदे में स्वीकार किया हुआ मूल द्रव्य "व्याज देते रहेंगे " इस मंशासे घरपर नहीं रखना चाहिये, उस द्रव्यसे डरना चाहिये । इस भापणके असरसे बहाना बाकी रूपया लोगों ने अदा करदिया। वास्तवमें यह बात नुचित है कि जब हम कुछ दान करें तो उस व्यको अपने ही पास जमा रखें इससे हमारा ममत्व लगा रहता है अतएव उस द्रव्यको तो अपने यहांसे निकाल कर दे डालना चाहिये । हां, यदि कोई रकम व्याजपर अपने यहां नमः करावे तो फिर जमा करना चाहिये । उसी रकमको विना निकाले लोभ नहीं घटता है। समाने प्रसन्न हो सेठ माणिकचंदनी और सेठ हीराचंदनीको निम्न लिखित मानपत्र दिया For Personal & Private Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजीकी पुत्री फूलकौरवाई. (देखो पृष्ठ १६२) J. V. P. Surat. For Personal & Private Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३६९ दक्षिण महाराष्ट्र जैनसमाजातर्फे मानपत्र. श्रीयुत माणिकचंद हिराचंद जव्हेरी मुंबई जैनप्रांतिक सभेचे सभापति यांस. श्रीमन्माणिक्यचंद्रो जयतु भुवि सदा रश्मिमिः स्वोपकारैः । जैनाः सर्वे समुद्रा इव बहु मुदिता यांतु वृद्धिं तमेक्ष्य ॥१॥ महाशय ! ___ या प्रांतांत आपण प्रस्तुत वर्षाच्या जैनपरिषदेकरितां आमच्या आमंत्रणास मान देऊन केलेल्या आगमनाने येथील आपल्या धमबांधवास अनुग्रहीत केल्याबदल त्यांचेतर्फे आमीं आज फार आनंदाने आपले मनःपूर्वक आभार मानितो. संसारांत मनुष्यांस सतत भोगाव्या लागणा-या दुष्प्रसंगांस अलीकडे आपणांस टक्कर देणे भाग पडले असतांही आपण आपल्या धीर स्वभावास अनुसरून धर्मकृत्यांत आपले मन स्थिर ठेविले आणि आमच्या अल्पशा सार्वजनिक चळवळींना उत्तेनन देण्यासाठी हा त्रासदायक प्रवास स्वीकारिला, हे आह्मांवर आपले उपकार आहेत. या उपकारास मागे सारणाऱ्या आपल्या अनेक सत्कार्याचे आणि त्यांचे मूल आपल्या सच्छोलाचे स्मरण या प्रसंगी सहजच होते. धर्मबांधवांविषयी प्रेम, जात्युन्नतीची उत्कंठ इच्छा, साधे व प्रेमळ आचरण, गरीबांविषयी सहानुभूति आणि अपार औदार्य या गुणांची केवळ जिवंत मूर्तीच आज आमच्या भाग्योदयाने जैनसमाजांत उदय पावली आहे असे आपल्या सहस्रावधि धर्मबांधवांना वाटत आहे. दक्षिणेतील गरीब विद्यार्थ्यास द्रव्यद्वारे साह्य देऊन, प्रसंगी २४ For Personal & Private Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० ] अध्याय नवाँ त्यांस उपदेश करून आणि त्यांजविषयीं प्रेम बाळगून या प्रांतांतील जैन समाजांत जी किंचित् विद्यावृद्धि होत आहे त्याचें बरेंच श्रेय आपल्यास आहे. पाऊण लाख रुपये खर्चून आपण जे विद्यालय मुंबईस जैन विद्यार्थ्याकरितां बांधिले आहे त्या योगान चिरकाल आमच्या समाजास फायदा होईल यांत शंका नाहीं. आपल्या दानशूरतेची उदाहरणे देण्याचे कांहीं कारण नाहीं. तथापि इतके म्हटल्या शिवाय आह्मांस राहवतच नाहीं कीं हिंदुस्था नांतील लक्षावधि जैन लोकांत आपण या गुणाने केवळ अद्वितीय आहां. ज्यांच्या औदार्याची सर्व देशभर पसरलेली मनोहर स्मारके जैनांच्या धार्मिकतेची साक्ष जगास देत आहेत त्या माहात्म्याचा पुण्यश्लोक मालिकेत आपणांस गणण्ययास बिलकूल हरकत नाहीं. जैन लोकांची सर्व प्रकारे उन्नती व्हावी; त्यांची स्थिती ऊर्जित व्हावी; व्यापारांत, शिक्षणांत व धार्मिकर्तेत त्यांना यश मिळत जावे; या चिंतेंत आपण सर्वदा व्याष्टत आहां व या उद्देशानें आपण प्रत्येक धार्मिक चळवळीस उत्तेजन देत आहा. याबदल आपले अभिनंदन करून श्री जिनेश्वरकृपेने या आपल्या सदुद्योगांत आपणांस अखंड सिद्धि मिळों अशी आह्मीं प्रार्थना करितों. तसेंच जैनसमाजाच्या उद्धारासाठी असेंच यत्न पुढेही चालविण्यास आपल्यांस जिनेश्वर देवोंत अशी ही आमची विनवणी आहे. आपले श्री क्षेत्रस्तवनिधि | A. P. Chaugule B. A. LI ता १८ जानेवारी १९०४ ई० A. B. Latthe M. A. &c. &c. For Personal & Private Use Only B. Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा। [३७१ स्तवनिधि क्षेत्रमें एक दिन कन्याविक्रयकी हानिकारक रीति पर चर्चा हुई उस समय बताया गया कि कन्याविक्रयके द्रव्यसे अपनी कन्याओंको बेचनेके समान निन्द्यकर्म ज्ञातिभोजनमें श- और नहीं हैं तथा जो लोग ऐसे द्रव्यसे रीक न होनेकी बने हुए ज्ञाति भोजनमें शरीक होते हैं वे प्रतिज्ञा भी महा निन्द्य काम करते हैं । यह भोजन उच्छिष्टके समान है। उस समय हमारे सेठजीने इस बातकी प्रतिज्ञा की कि हम ऐसे भोजनको नहीं खावेंगे इनके साथ निम्नलिखित भाइयोंने और भी नियम लिये १-सेठ हीराचंद रामचंद (हरीभाई देवकरण)शोलापुर २-,, हीराचंद नेमचंद ३-शा. वालचन्द जीवराज ४-सेठ रामचन्द नाथारंगजी बम्बई सेठ माणिकचंदमें गुणग्राहकताका अच्छा गुण था । आपमें यह आदत थी कि गुणोंको ग्रहण करेंउदार पुरुषका दोषोंकी तरफ ध्यान न देवें । सेठजीने जैनसन्मान। मित्र अंक ८.९ वैशाख, जेठ १९६०, में बम्बई प्रांतिक सभाके सभापतिकी हैसियतसे एक धर्मात्मा सेठकी मृत्यु पर अपना शोकोद्गम प्रगट किया है। शोलापुर में एक धनाढ्य अग्रेसर दानवीररत्न सेठ रावजीभाई कस्तुरचंदजी थे जो मिती चैत्र कृ० १४को लोकबहादुर रावजी अपनी ५६ वर्षकी आयु में परलोक सिधारेकस्तूरचंद शोलापुर। इस नरने अपने पिताकी सम्पत्तिको मुंबई, शोलापुर, पूना आदि स्थानों में व्यापार करके For Personal & Private Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ ] अध्याय नवां | बहुत वृद्धि - गत किया और अपने जीवन में निम्नलिखित उल्लेख योग्य धर्मकार्य किये । (१) सं० १९३३ फागुण सु० २ को रु० ५००००) खर्च कर श्री तारंगाजी में जिनबिम्ब प्रतिष्ठा कराई | (२) सं० १९३४ में सम्मेद शिखरजीकी यात्रा में हजारों खर्च किये । (३) सं० १९३८ में श्री केशरियाजीकी यात्रामें संघ सहित जाकर १००००) खर्च किये । (४) सं० १९४८ में श्रीगोमट्टस्वामीकी यात्रा बड़ी धूमधाम से की, हजारों रुपये खर्च किये । (५) सं० १९४८ में चतुर्विधि, दानशालाको बड़े भावसे स्था पन कराया । (६) सं० १९५१ में पालीतानामें सेठ हरिभाई देवकरणके साथ बिम्बप्रतिष्ठा कराई उसमें ५००००) पचास हजार रु० खर्च किये ! (७) सं० १९५७ में बम्बई संस्कृत विद्यालय फंडमें १००० ) दिये । पालिताना की प्रतिष्ठा के समय इनका पुत्र रामभाऊ २५ वर्षकी आयुमें परलोक सिधार गया । आपने कुछ भी शोक न करके स्वयं शांति रक्खी व औरोंको धैय्य बंधाया। शोलापुर के जैनियोंमें इनकी बहुत बड़ी प्रतिष्ठा थी तथा यह लोक बहादुर कहाते थे । । For Personal & Private Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ov समाजकी सच्ची सेवा । [३७३ बैशाख वदी ३ सं० १९६० को सेठ चुन्नीलालने फल्टन में पाठशालाकी स्थापनाके समय एक मनोफल्टनमें सेठ चुन्नी- हर भाषण देकर उसके लाभ बताए व एक लालका विद्याप्रेम । घड़ी प्रदान की । इसमें गांधी नाथारंगनीकी तरफसे २५) मासिक ५ वर्ष तक देना स्वीकार किया गया था। सेठ माणिकचंदनीकी परोपकारार्थ सेवा जगतके जीवोंके लिये ____दृष्टान्त रूप है। द० महाराष्ट्र जैन सभाको शिक्षण फंडके लिये उन्नति देनेके लिये उसके शिक्षगफंडकी वसेठजीका भ्रमण । सूलीके लिये जैसे आपने स्तवनिधिकी सभामें अपने भाषणसे बहुतसा रुपया एकत्र करा दिया वैसे इसके लिये भ्रमण करना भी स्वीकार किया । ता० २० मई १९०४ को सेठ माणिकचंदनी शिक्षण फंडकी वसूलीके लिये आनेवाले थे पर कार्य बाहुल्यके कारण न आ सके पर उसी रोज रा० रा० ए० बी० लट्ठ०, रा० रा ० हंजे ऑन० जनरल सेक्रेटरी; रा० रा० बलवंत बाबानी बुगटे बेलगांव आगए थे और अपने व्याख्यानोंसे तृप्त कर रहे थे। इतने में सेठ माणिकचंदनी अपने मित्र सेठ हीराचंदनीके साथ बेलगांव स्टेशनपर ता० १ जूनको पधारे । स्टेशनपर बड़े भारी समारोहके साथ स्वागत किया गया । होसुरमें श्री लक्ष्मीसेन स्वाजीके मठमें स्थान दिया गया। कोल्हापुर आदिसे भी कुछ लोग आए थे । एक दिन माणिकचंदजीके, दूसरे दिन रा० रा० दत्तात्रय आण्णा बुणे शोलापूरके सभापतित्वमें सेठ हीराचंदजीके दो व्याख्यान हुए। जैनधर्मकी बड़ी महिमा हुई। For Personal & Private Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ ] अध्याय नवां। एक नवयुवकने तुर्त परस्त्रीत्यागका व्रत लिया। फंडके लिये कहा गया तो रा० रा० चिमप्पा अण्णा लेंगड़ने ५०१) तुर्त रोकड़ा दिये, करीब २०००) की भरती हुई। किसीने नए आंकड़े भरे । रा० रा० प्रवाणेने १०० ) ग्रंथ स्वाध्यायार्थ बांटनेके लिये देना कबूल किये। वास्तवमें शास्त्रदान बहुत कल्याणकारी है। सर्व मंडलीसे सत्कार प्राप्त कर रुपया एकत्र कर दोनों सेठ, लट्टे और अन्य लोग कोल्हापुर गये। वहां रा ० रा ० भैर सेठ, पाटील मजिस्ट्रेट, शास्त्री कल्लाप्पा भरमप्पा निटचे आदिने स्वागत किया। प्रो. बीनापूरकरने सेठजीको बुलाकर पानसुपारी की। यहां उस समय डकन कालेनके प्रोफेसर पाठक श्री लक्ष्मीसेन स्वामीके मठमें ग्रंथ देखने आए थे । यहांसे किणीसगांव गए । यहां ८००) रु० जमा हुए, फिर वडगांव गए, वहां २३२) रु० एकत्र किये । किणीसमें गरीब जैन बालक विद्या पढ़े इसके लिये एक शिक्षक रखनेका खर्च सेठ हीराचंदने देना कबूल किया। फिर कोल्हापुर आए । रा० रा० आपा दादा गोंदा पाटीलकी अध्यक्षतामें उपदेश हुआ। पाटीलजीने ४००) शिक्षण फंडमें देना कबूल किये। यहाँपर हीराचंदजीकी रायसे सेठ माणिकचंदजीने विद्यालयके लिये एक सुंदर इमारत तय्यार कोल्हापुर बोर्डिगकी कराना स्वीकार किया तथा महाराज कोल्हाइमारत बनानेकी पुरकी जब भेट हुई तब सर्कारने भी यथाशक्य स्वीकारता। मदद देना कबूल करके चौफाल्याके मालाकी जगह इमारतके लिये दान की। इस काममें दीवान साहब, रा० सा० सावंत मामलेदार, बापूसाहब आदिने खूब परिश्रम किया। For Personal & Private Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । सेठजी तुर्त बम्बई आए और भाई नवलचंदकी राय लेकर अनुमान २२०००) इस कोल्हापुर बोर्डिगकी कोल्हापुर बोर्डिंगकी बहुत सुन्दर इमारत बनानेके लिये खर्च करना इमारतका महूर्त। निश्चित करके पत्रव्यवहार करके ता० १५ अगस्त १९०४ को नीव डालनेके लिये तजवीज हुई । यह भी तय हुआ कि महाराज कोल्हापुरके हाथसे महूर्त हो । इसी तारीखपर बम्बईसे सेठ माणिकचंदनी, शोलापुरसे सेठ हीराचंदनी व अन्य ग्रामोंसे बहुत आदमी आए थे । शहरके अधिकारी व सभ्य पुरुष सब उपस्थित थे । ठीक २ बजे दोपहरको महाराज छत्रपति थो० एजन्ट सहित आ विराजे, तब मि० लढे एम० ए० ने इंग्रेजी में एक लम्बा भाषण दिया, जिसमें कहा कि यह द० म० जैन सभा अप्रेल सन् १८९९ में स्थापित हुई है, परंतु सन् १९०२ से .एक शिक्षण फंड १२०००) का किया गया और विद्यालय यहां स्थापन किया गया है। फिर इसको बोर्डिङ्गमें बदला गया उसमें अब ३० छात्र हैं जो हाईस्कूलमें पढ़ते हैं तथा फंड अब ४००००) का है इसमें से ६०००)का फंड रोकड़ा आया है जो बम्बईके प्रसिद्ध सेठ माणिकचंद पानाचंद जौहरीके यहां जमा है । बाकी रुपयेका लोग ४) सैकडेका व्यान देते हैं। बोर्डिङ्गके मकानकी बड़ी जरूरत है जिससे १०० छात्र रह सके, जो धर्मशिक्षा लेते हुए रहें। इसके लिये महारानने विक्टोरिया मरहठी बोर्डिंगके पास बहुत अच्छा स्थान दिया है जिसपर सुंदर इमारत बनाना सेठ माणिकचंदजीने कबूल किया है। उसकी नीव आज श्रीमन् महारानके द्वारा For Personal & Private Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ ] अध्याय नवां । डाली जायगी। तब सेठ माणिकचंदनीने महाराजको विनती की कि नीव रखे तब महाराजने चांदीकी थापीसे चूना रक्खा । इस तरह सेठ माणिकचंदने कोल्हापुरमें अति सन्मानके साथ बोर्डिंग बनानेका मर्त किया। इस उत्सवको पूर्ण करके सेठजी जो कि अब परोपकारमें ही अपना जीवन अर्पण कर चुके थे बम्बई होते हुए अहमदावाद आए। यहाँ ता० २२ अगस्तको बोर्डिंगका नामकरण संस्कार था। सेठ माणिकचंदजीने हीराचंद गुमानजी अहमदावाद बोर्डिंगको जैन बोर्डिंगकी मेनेजिंग कमेटीमें ता० २७ ३५०००)का दान । मार्च १९०४के दिन यह प्रस्ताव पेश किया कि नीचेकी शरतोंसे हम ३५००० ) कमिटीके आधीन करते हैं कि गुजरात दि० जैन बोर्डिंग अहमदावादका नाम फेर कर हमारे स्वर्गीय भतीजे प्रेमचंद मोतीचंदका नाम उसमें दिया जावे (१) २५०००) कायम फंडके लिये (२) ५०००) बोर्डिंगके मकानके लिये (३) ५०००) प्रेमचंदकी माता रूपाबाईके १२३४के उपवासके उद्यापनके हर्षमें। इस तरह ३५०००)का व्याज बोर्डिगके छात्रोंके रहने व भोजनादिमें खर्च हो । प्रबन्ध इस कमिटीके हाथमें रहे तथा यह कमिटी अपनी तरफसे एक आनरेरी सेक्रेटरी मनेजिंग कमिटीके मेम्बरोंमेंसे नियत करे। यह मंत्री वार्षिक रिपोर्ट बम्बई बोर्डिंगके मंत्रीको भेजे जो यहांकी रिपोर्टके साथ छपकर बाहर प्रगट हो। यह रकम गवर्नमेंट सिक्युरिटीवाले आचरियेमें या अच्छा माड़ा आवे ऐसे मकानमें रोकना। इस रकमका. For Personal & Private Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [ ३७७ व्याज उपरके हेतुके विरुद्ध कभी खर्च न करना तथा इस बोर्डिंग को कभी उखाड़ना नहीं । यदि कदाचित कोई विद्यार्थी न आनेसे बोर्डिंग न चले तो बम्बई बो० के ट्रस्टी अपनी सम्मति से इसका उपयोग गुजरात के दिगम्बर जैन धर्म पालनेवालोंके अंदर विद्या प्रचारार्थ खर्च करें। इस प्रस्तावको सहर्ष स्वीकार किया गया । इसीके अनुसार ता० २२ अगस्त १९०४ को प्रातः काल अहमदाबाद बोर्डिंगके मकान में रावबहादुर लालशंकर उमियाशंकर के सभापतित्वमें सभा हुई । उस समय ३५०००) देकर नाम बदलनेका महत्व प्रगट किया गया । जयसिंहभाई गुलाबचंद मजि० आमोद, शा० हरजीवन रायचंद व पं० लालन आदिके भाषण हुए । मत्रीने पुस्तकालय के लिये अपील की तो २२५) रु० आये । एक गुम नाम भाईने १०) मासिक छात्रवृत्ति दी । रात्रिको १५००) का चंदा हुआ । गुजरातके बहुत भाई आये थे । इस सभा में रा० रा० लट्टे एम० ए० भी शरीक हुए थे । इन्होंने इंग्रेजी में भाषण दिया था। ता० २३ की रात्रिको रा० रा० रामचंद गांधीने बालविवाहके विरुद्ध जोरदार भाषण दिया जिसका श्रोताओं पर अच्छा असर हुआ । माता रूपाबाईको अपने पुत्रका नाम चिरस्मरणीय रहनेकी स्थापनासे बहुत आनन्द हुआ । अहमदाबादसे सेठ माणिकचंदजी बोरसद पधारे । वहां ता० २६ अगस्तको सेठ जेठालाल प्रेमानन्दकी ओरसे एक सार्वजनिक पुस्तकालयकी स्थापना सेठजीके कर कमलोंसे बड़ी धूमधामसे हुई | स्थापनकर्ताने १०००) नकद For Personal & Private Use Only बोरसद में भ्रमण और मानपत्र | Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ ~ ~ ३७८ ] अध्याय नवां । व २००) की पुस्तकें दी तथा अन्य उपस्थित सज्जनोंने ४००)की मदद दी। सर्व जैन मंडली सेठजीके उपदेश व विद्याप्रेमको देखकर अति प्रसन्न हुई और परम हर्षमें भरकर एक मानपत्र . प्रदान किया जिसकी नकल इस भांति हैं मानपत्र. झवेरी शेठ माणेकचंद पानाचंदनी पवित्र सेवामां. प्यारा धर्मबंधु, ____ आजे अमो बोरसद निवासी दिगम्बर जैनो आप साहेबनी स्वधर्म अने केळवणी प्रत्ये अत्यंत प्रीति देखीने आ मानपत्र आपवानी तक लइये छीये ते स्वीकारी आभारी करशो. श्री जयधवल, महाधवल जेवा प्राचीन ग्रंथोना जीर्णोद्धार करवामां आपे आगेवानी भाग लई सर्वे भाइओनी मददथी काम चलाव्यु छे तेथी आपनी धर्म शास्त्रज्ञान वृद्धिमाटे अत्यंत उत्कंठा जणाई आवे छे. आपे सूरत जेवा पौराणिक शेहेरमां जैनी यात्राल. ओनी उतरवानी सगवड माटे जैन हाल ' जेवू चन्दावाडी नामनुं मकान बंधाववा पाछळ रु० २००००) नो खरच करी जैन कोम उपर जे उपकार को छे ते आपनी जैन भाइओ प्रत्येनी उदार लागणी बतावे छे. आपणा जैनी भाईओ स्वधर्म अने राजकाज संबंधी, राजकीय, वैद्यकीय, शिल्पशास्त्र अने इंग्रजी गुजराती साहित्य वीगेरेनी ऊंचा दरज्जानी केळवणी मेळववामां अत्यावश्यक साधन जे बोर्डिंग स्कूल छे ते मुम्बई जेवा मोटा शहरमां श्वेतांबरी, दिगंबरीनो भिन्न For Personal & Private Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३७९ भाव राख्या विना पोताना आशरे पोणोलाख रुपीयाने खरचे आपना स्वर्गवासी पिताश्री शेठ हीराचंद गुमानजीना स्मरणार्थे आप बांधी आपी समस्त जैन कोम उपर जे उपकार को छे ते पशंसनीय छे अने ते आपनी धर्मसहित ऊंचा धोरणनी इंग्रजी केळवणी आपवानी अपक्षपात लागणी प्रदर्शित करे छे. तेमन गुजरातमां अमारी दिगम्बरी जैन कोममां केळवणीने बोहोळो फेलावो करवा माटे भोजन, अभ्यास वीगेरे बधी सगवडो पुरी पाडनारी एक बोर्डिंगस्कूल आपना कैलासवासी भत्रिजा शेट प्रेमचंद मोतीचन्दना नामथी अमदावादमा रु० ४००००) ने खरचे उवाडी तथा कोल्हापुरमा एवीज सगवडवाली जैन बोर्डिगर्नु मकान पोताने खरचे बंधावी आपी स्वधर्मी भाईओ प्रत्येनी शुद्ध लागणी अंने धर्मकृत्यमां भारे उदारता प्रकट करी छे. मुंबई जेवी अलबेली नगरीमां कोई पण कोमने उपयोगी थई पडे तेवी एक भव्य धर्मशाळा बांधवा पाउळ दोढ लाख रुपीआ धर्मादा काढ्या छे ते आपनी गरीबो प्रति दयावृत्तिनी लागणी प्रकट करे छे. छेवटमां आपनी आवी आवी धर्म, दया, स्वधर्मी प्रति उत्तम सेवाने माटे तथा विद्या अने विद्वान् प्रति आपनी सदैव शुभ लागणीओ माटे अमो आपने आ मानपत्र आपतां श्री जगत्कर्ता (!) पासे अंतःकरणपूर्वक प्रार्थना करीए छीए के आप दीर्घायुषी थाओ ने परमात्मा आपने आवां उत्तम कार्या करवाने सदैव सन्मति आपो,. For Personal & Private Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० ] अध्याय नवां । एवं इच्छी आ मानपत्र मानपूर्वक स्वीकारी आभारी करशो एवी आशा राखीए छीए. तथास्तु. बोरसद २६ ओगस्ट १९१४. __आपना सद्गुण चाहनारापरी० प्रेमानंद नारणदास शा० भाइजी पानाचंद शा० मथुरदास पानाचंद शा० छगनलाल मूलजी शा० काळीदासजेशींग बीन किशोरदास शा० धरमचंद ताराचंद शा० शीवलाल पानाचंद श्री देशभूषण कुलभूषण मुनि जिनके उपसर्गको बलभद्र श्री रामचंद्रने दूर किया था कुंथलगिरि पर्वतसे कुंथलगिरि क्षेत्रपर मोक्ष पधारे हैं। यह पहाड़ उत्तम मंदिरोंसे सड़कके लिये शोभित है। दक्षिणमें बारसी टाउन स्टेशनसे १००१) का १० कोस है। रास्ता बड़ा खराब है। बैलोंको दान। बहुत तकलीफ होती है। पिंपलगांवसे तो बहुत ही खराब है। रास्तेमें सावरगांवकी नदी व पर्वत बहुत कठिन है । गाड़ी छः बैल लगनेपर भी नहीं चलती। यहांसे भूम राज्यके वाकवड़ तक चढ़ उतर बहुत कठिन है। इतनी दूर सड़क बांधनेको १० या १२ हजारका अंदाज किया गया है व सर्कार भूमने चौथाई खर्च देना कबूल किया है For Personal & Private Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । [३८१ तब सेठ माणिकचंदजीने १००१) दिये तथा इसके प्रबन्धके लिये एक कमेटी ७ महाशयोंकी बनी । सेठ माणिकचंद पानाचंद जौहरी बम्बई, गांधी रामचंद नाथा बम्बई, दोशी हीराचंद नेमचंद शोलापुर, गांधी वालचंद रामचंद शोलापुर, शा. हीराचंद प्रेमचंद परंढा, सेठ नानचंद वालचंद धाराशिव, सेठ रावजी सखाराम भूम ! यह सड़क जहां तक मालूम है अब तक बनी नहीं है। नवीबाईके संयोगसे सेठ माणिकचन्दको १॥ वर्षके अनुमान हुआ पुनमचंद नामके एक पुत्ररत्नका लाभ सेठजीको फिर भी हआ था इससे सेठजीको बहुत संतोष पुत्रवियोगका दुःख हुआ था। परंतु आप बोरसदसे बम्बई आए कि व १०००) का पुत्रको बिमार पाया। उसकी औषधिका दान । प्रबन्ध बहुत कुछ किया पर वह जीव उच्च गोत्री होनेपर भी अल्पायु था सो सेठजी और उसकी माताको यकायक शोकसागरमें डुबाकर ता० २८ अगस्तकी संध्याको शरीर छोड़ चल वसा । सेठनीको रंज तो बहुत हुआ पर धैर्य और ज्ञान तथा अनुभवने यही शिक्षा दी कि शोक करना वृथा है। कौन पुत्र और कौन पिता ? यह सब माननेका रिस्ता है। जिसका मेरेसे भला हो वही मेरा पुत्र है । आप अपने जातिके बालकोंको ही अपना पुत्र जानते थे और जहां तहां उनमें धार्मिक और लौकिक ज्ञानके प्रचारार्थ तन मन धनसे मदद करते रहते थे। आपसे जब कभी कोई पुत्रकी बात करता आप यही उत्तर देते कि मेरे जातीय बालक ही सब मेरे पुत्र हैं। मुझे पुत्रकी कामना नहीं है। For Personal & Private Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ ] अध्याय नवां । । . उदारचित्त दानी सेठने पुत्रकी स्मृतिके लिये १०००) का दान इस प्रकार किया २०) जैन महाविद्यालय, मथुरा । ६०) दि० जैन प्रान्तिक सभा, बम्बई । ४०) पंजाब, अवध, मालवा और नागपुरकी दि० जैन प्रान्तिक सभाओंके सहायतार्थ । १००) सेठ प्रेमचंद मोतीचंद दि० जैन बो० स्कूल,अहमदाबाद, १००) श्री कुंथलगिरिकी सड़कके लिये । १००) द० महाराष्ट्र जैन बोर्डिंग, कोल्हापुर । ५०) सिद्धक्षेत्र गनपंथाजी । २५) जैन अनाथालय, हिसार । २५) , जैपुर । १००) पिंजरायोल-सूरत । ५०) रक्तपित्त औषधालय-बम्बई । ५०) महाजन अनाथ बालाश्रम-सूरत । २५) अहमदाबाद। २५) भोजनशाला-सुरत २३०) फुटकल ( इच्छित कार्योंमें ) १०००) कुल पाठकोंको इससे शिक्षा लेनी चाहिये कि सेठजी अपने पैसेसे कितने विचारके साथ उपयोगी कामों में दान किया करते थे। For Personal & Private Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाजकी सच्ची सेवा । सेठ नाथारंगजी गांधीवाले सेठ हरीचंदजी नाथा आकलन (शोलापुर)का आसौज वदी ९ सं० १९६१ सेठ हरीवंद नाथाका के दिन अपनी ६६ वर्षकी आयुमें समाधि मरण और २५०००) मरण हुआ । आपने उस दिन २५०००) का दान। का दान विद्यार्थियोंके उत्तेजन व जिनवाणी के प्रचार आदि दानके अर्थ संकल्प करके व अन्य पुण्य दान करके मरणसे दो घंटे पहले सर्व बाह्य अभ्यंतर परिग्रहको त्याग आत्मध्यानमें उपयोग लगा दिया और उसी अवस्थामें आत्मा निकल स्वर्ग धामको पधारा। यह बड़े उदारचित्त थे । उस समय इनसे छोटे छः भाई रामचंद नाथा आदि मौजूद थे। आप बड़े बुद्धिशाली थे। पिताकी स्थिति साधारण थी। जब वे मरे तब यह २२ वर्षकै थे । इन्होंने ऐसा व्यापार चलाया कि बड़े व्यापारी हो गए और अपनी दूकाने पंढरपुर, आकलन, बीजापुर, गंटूर, मोरेना, बम्बई ऐसी छः जगहें खोल दी । यह उदारचित्त भी थे । आकलूनकी प्रतिष्ठा में १८०००) खर्च किये । यह दि० जैन प्रान्तिक सभा बम्बईके उपसभापति थे। सेठ माणिकचंदके हजारों लाखोंका दान इनकी बुद्धिमें अंकित हो रहा था । लक्ष्मीको अपने हाथसे कमाकर जो अपने हाथसे ही उपयोगी कामों में लगाते हैं वे ही सच्चे बुद्धिमान व चतुर धर्मात्मा हैं । ___ लक्ष्मी ठगनी व चंचल हैं । जो इसे संग्रह करते हैं और दान धर्ममें नहीं लगाते हैं उनके तीन मोह उपना करके यह उन्हें ठग लेती है और वे जीव इसके टगे अपने अशुभ भावोंके अनुसार नर्क निगोदमें व निन्द्य पशुगतिमें जा महान कष्ट उठाते हैं परन्तु For Personal & Private Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ ] अध्याय नवां । जो इसको दासीके समान समझकर मोह नहीं करते सदा इससे अपने आत्माका काम लिया करते हैं वे इसके द्वारा महान पुण्य बांध परभवमें अटूट सम्पदाके स्वामी होते हैं अतएव लक्ष्मीको नित्य दान धर्ममें बहुत विचार पूर्वक खर्च करो, जैसे प्रसिद्ध सेठ माणिकचन्दजी अतिशय आवश्यक कामोंमें लगाकर इसकी सफलता करते रहते थे। उक्त सेठका जीवन भारतवर्षके धनपात्रोंके लिये अतिशय अनुकरणीय है। सेठनी सार्वजनिक संस्थाओंमें भी दान करते रहते थे जैसे बालाश्रम सूरत, अहमदावाद आदि । For Personal & Private Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - chakamaye For Personal & Private Use Only - (देखो ट्रष्ठ ३७६ ) सेठ भै नचन्द मेरी वन्द तिजैन बोर्डिंग स्कूल अहमदाबाद. Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३८५ अध्याय दशका। महती जातिसेवा प्रथम भाग । सन् १९०५के प्रारंभ ही से सेठ माणिकचंदके जीवनचरि "त्रमें नया गुल खिलता है। अब तक सेठनीकी परोपकारताका केन्द्र अपनी और अपनी पत्नी इन दोनोंके जन्मस्थान दक्षिण और गुजरातकी ही तरफ था पर अब क्षेत्र बढ़ते २ सारा भारतवर्ष हो गया । सर्व दिगम्बर जैन जातिका कल्याण पहले आप केवल मनसे ही चाहते थे पर अब वचन और कायसे भी करना प्रारंभ किया, यहां तक कि सारे भारतके भाई आपकी परोपकारताको कभी भूल नहीं सक्ते। . भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाके वार्षिक अधिवेशन __स्थान चौरासी मथुरा ही में होते थे पर लाला अंबालामें महासभाका बनारसीदास जॉइन्ट जनरल सेक्रेटरी महाजल्सा और सेठ सभाके दृढ़ प्रयत्नसे इसका दशवां वार्षिक माणिकचंदको अधिवेशन अम्बाला छावनी में ता० २८ धन्यवाद। दिसम्बर १९०४ से ता० ३० तक बड़े भारी समारोहके साथ हुआ था। पहली बैठकमें लाला सलेखचंद रईस नजीवाबाद सभापति हुए थे तब प्रस्ताव नं. ४ इस तरहका पास हुआ कि " महासभा सेठ माणिकचंद पानाचंदजी साहब जौहरी बम्बई निवासी· को धन्यवाद देती है कि उन्होंने पंडित कन्हैयालाल शेरकोट २५ For Personal & Private Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दशवाँ निवासीको १२०) इनाम देकर इसके लिये उत्साहित किया है कि उसने पीलीभीतके ललित हरी आयुर्वेदीय विद्यालयसे वैद्यराज और वैद्यरत्नकी परीक्षा में उत्तीर्ण पत्र हासिल किया है।" सेठजी अपनी धनवृद्धिके प्रारंभसे ही परदेशी विद्यार्थियोंको छात्रवृत्तियें दे देकर उत्साहित करते रहते थे। इससे सेकड़ों तीव्र बुद्धि छात्र जो धनकी सहाय विना अपने पढ़नेकी उमंगको दवा कर बैठ रहते सो पढ़कर अपनी विद्याकी उमंगको पूर्ण करते हुए। कन्हैयालालजी शेरकोटकी पाठशालाका तीवृद्धि छात्र था जिसके अध्यापक पं० यमुनादत्त शर्मा थे । इनकी पढ़ाईके फलसे प्रसन्न हो पंडित गोपालदास और बच्चूलालजीकी सिफारिशसे उक्त पंडितजीको एक मानपत्र भा० दि० जैन महामभाने ता० २६ अक्टूबर १८९९ सं० १९५६ को दिया था तथा कन्हैयालाल सं० १९५७ की परीक्षामें प्रवेशिका चतुर्थखंडके पांचों विषयोंमें उत्तीर्ण हुआ था उसको २॥) मासिक छात्रवृत्ति श्रीमान् सेठ माणिकचंद पानाचंदकी ओरसे दी गई थी। यही पं० कन्हैयालाल आज कई वर्षोंसे कानपुरके दि जैन ___औषधालयमें इतनी योग्यतासे काम कर रहे छात्रवृत्ति देनेका हैं कि वहांके सर्जन इंग्रेजने उस औषधालअपूर्व फल। यकी प्रशंसा की है। रोगी इनके हाथसे बहुत शीघ्र अच्छे होते हैं। नगर में इनकी चाह भी खूब हो गई है जिससे वह प्राइवेट मकानों में देखनेसे १००) व २००) मासिक कमा लेते हैं। For Personal & Private Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३८७ ता० २९ दिसम्बर १९०४ को मथुराके सेठ द्वारकादामजी अंबाला पधारे। उनका स्वागत बहुत धूमधामसे तीर्थक्षेत्र कमेटीकी हुआ । हाथीपर सवारी नगरमें घूमी। ता : दृढ़ता। ३० दि० की सभामें द्वारकादासजी मभापति हुए तब प्रस्ताव ५ इस विषयका पास हुआ कि प्रस्ताव नं० १० अष्टम वर्षकी दुरुस्ती में महासभा तनवीन करती है कि कमेटी जो तीर्थक्षेत्रोंकी निगरानीके वास्ते महासभाके ७ वे वर्षों नियत हुई थी वह बदस्तूर कायम रहे । उसके कार्यकर्ता भी वे ही रहे तथा महासभा अधिकार देती है कि वह अपनी नियमावली अपने ही मेम्बरोंसे मंजूर कराके कार्रवाई करै । प्र० नं० ६ में महाविद्यालयके लिये एक डेपुटेशन पार्टी बनी जिसने उसी वर्ष मध्यप्रान्तमें चूमकर करीब ६०००) एकत्र किये व धर्मकी प्रभावना की। उस समय भी ६॥ हज़ारका चंदा हुआ जिसमें २०००) लाला सलेखचंद्र किरोडीमलजी रईस नजीबाबादने दिये । जैनगज़ट जो कई वर्णम साप्ताहिकसे पाक्षिक चल रहा था उसकी संतोषजनक कार्रवाई देख फिर साप्ताहिक करनेके लिये प्रस्ताव नं० ८ पास हुआ व प्र० नं. ७में तय हुआ कि आगामी अधिवेशन सहारनपुरमें किया जाय । बम्बई दि० जे० प्रान्तिक सभाके प्रस्तावानुसार सेठ माणि ____ कचंदनीने सभापतिकी हैसियतसे नैनिअर्जीका जबाब व बम्बई योंकी संख्या जेलादिमें भिन्न दिखाने के गवर्नरसे भेट। लिये एक मेमोरियल बम्बई गवर्नरकी सेवाने भेना था जिसका जो जवाब आया वह इस भांति है: For Personal & Private Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ अध्याय दशवां। शिक्षा खाता, बम्बई कौंसिल, ता० १ अगस्ट १९०४ व नाम-सेठ माणिकचंद पानाचंदजी प्रेसीडंट दि० जैन प्रान्तिक सभा, बम्बई । महाशय ! आपके ता. ४ जुलाई १९०३ के पत्रका उत्तर इस प्रकार देनेको मुझे आज्ञा हुई है:(अ) आगामी वर्ष जब परिक्षापत्र जांचके लिये आवेंगे तब देशकी शिक्षा सम्बन्धी दशाकी सूचीमें जैनियोंको पृथक दिखलानेकी बात पर ध्यान रक्खा जायगा। (ब) जुडीशियल और ऐडनिस्ट्रेटिवकी सूचीके तीसरे खाने में बौद्ध और जैन एकत्र दिखलाए जाते हैं इसमें रदबदल करनेकी आवश्यक्ता नहीं है । (क) ज्युडीशियल और ऐडमिनिस्ट्रेटिवकी सूचीके आठवें (जन्म रण सम्बन्धी) खानेमें जनियोंको पृथक् दिखलाना अशक्य है। २- सेनेटरी (आरोग्यता)के कमिश्नर साहबकी रिपोर्टमें जैनियोंके पृथक विवरण देनेके विषयमें आपको फिर लिखा जावेगा। आपका सेवक जै० स्लेडन; गवर्नमेंट सेक्रेटरी। (जैनमित्र वर्ष ६ अं०५) सन् १९०४ दिसम्बरमें राष्ट्रीय सभा अर्थात् कांग्रेसका २०वां अधिवेशन बम्बई में हुआ था । सभापति सर बम्बई बोर्डिंगमें सभा हेनरी काटन हुए थे। प्रदर्शनी भी बड़ी व सेठजीका यश शानके साथ हुई थी। इस निमित्त परदेशी गान। बहुतसे जैनी भी बम्बई पधारे थे। ता० ३१ दिसम्बरकी रात्रिको ७ बजे हीराचंद गुमा. For Personal & Private Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३८९ नजी जैन बोर्डिंगमें श्रीयुत शोलापुर निवासी सेठ वालचंद रामचंदके सभापतित्वमें सभा हुई थी। बोर्डिंगके कार्य विवरणको सुनकर इसकी उपयोगिता प्रगट हुई, पं० बंसीधरको धार्मिक विषयमें निपुणताके अर्थ एक सुवर्ण पदक दिया गया और शेष धर्मशिसामें उत्तीर्ण बोर्डरोंको इनाम दिया गया। सेठ माणिकचंद व प्रेमचंदकी तीन वार जय कही गई । ३००) उपस्थित मंडलीने लाइब्रेरीमें दिये। सेठ माणिकचंदको अपनी जातीय सेवाका यश मिलते हुए देखकर बहुत संतोष हुआ। दक्षिण महाराष्ट जैन सभाका वार्षिक अधिवेशन माघ वदी १४ से माघ सुदी २ ता: ३से ६ फर्वरी १९०५ स्तवनिधिपर द० म० तक स्तवनिधि क्षेत्रपर पड़े समारोहसे जैन सभा। हुआ। अध्यक्ष श्रीयुत सेठ नेमीलाल गुला बसाह नागपुरवाले हुए थे। वरारसे बहुत महाशय आए थे । सेठ माणिकचंदजी स्वागत कमिटीके प्रमुख थे सो पहले ही पहुंचे थे। ता: १ को स्टेशनपर सभापतिका स्वागत किया गया । शिक्षणफंडमें ३०००) की उपज हुई । रा० रा० दादा तात्या चिवटे कुरुंदेवाड़ने १००) उत्पन्नकी जमीन दो। क्षेत्र भंडारमें ३०००) के अनुमान आय हुई सो क्षेत्रमें मरम्मतकी आवश्यक्ता जान सेठ माणिकचंदजीके यहां जमा करा दी गई । सभामें ८ वा प्रस्ताव इस विषयका रा० रा० लट्टे एम. एक ने पेश किया कि जैनियोंकी संख्याकी कमीके कारणोंको दूर किया जाय उसके लिये सभा सम्मति देती है कि दुर्व्यसन जन्य रोगोंके फैलाव व बालविवाह आदि कारणोंको रोका जाय । इसका समर्थन For Personal & Private Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९. ] अध्याय दशवां । श्रीमान् शेठ माणिकचंदजीने बहुत जोरके साथ किया। सेठ माणिकचंदनी सपत्नीक स्तवनिधि पधारे थे। ता० ५ फर्वरीकी रात्रिको स्त्रियोंकी एक महती सभा सेठजीकी पत्नी हुई जिसका अध्यक्ष स्थान सेठनीकी धर्मपत्नी स्त्री समाजकी नवीबाईजीको दिया गया था। इसमें अध्यक्षा। १५०० से अधिक स्त्रियां थीं। इस सभामें श्रीमती डाक्टरनी कृष्णाबाईने स्त्रीशिक्षा पर बहुत ही असरकारक भाषण दिया । जैन समाजकी तरफसे एक अगुठी नज़र की सो डाक्टरनी बाईने विद्याखातेमें दान कर दी। उस अंगूठीका नीलाम सभामें १५०) रु० में हुआ तथा दो इनाम और भी आए थे सो भी १२०) रु० में नीलाम हुए। इस रुपयेसे त्रा शिक्षाकी उत्तेजना दी जाय ऐसा ठहराव हुआ। महाराष्ट्र सभाके जलसे में स्वयं शेठ माणिकचंदने १२ वां प्रस्ताव यह पेश किया-" बाहरसे आए धर्मादेका द्रव्य । हुए व्यापारियोंसे माल विक्री अथवा गाड़ी ___ पर सैकड़ा पीछे कुछ धर्मादा वसुल करनेकी इस ओर प्रथा है, परंतु यह धर्मादेका द्रव्य नाच तमाशोंके सिवाय किसी उत्तम लाभकारी कार्यों में कभी नहीं लगाया जाता है इसलिये प्रत्येक स्थानके मुखिया पंच महाशयोंसे प्रेरणा की जाती है कि वे उक्त धर्मादा द्रव्यको किसी सार्वजनिक कार्यमें लगानेका प्रयत्न करे । इसको वर्णन करते हुए सेठनीने समझाया कि व्यापारमें जो हम धर्मादा जमा करते हैं वह हमारी जातीय मिलकियत नहीं है परंतु धर्मके लिये वह पबलिकका पैसा है । अतएव उसको धर्म व For Personal & Private Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३९१ परोपकार कार्यमें खर्च करना चाहिये । उससे खेल तमाशे कराना अधर्म है । उस पैसेको अमानतमें आप रखनेवाला हैं ऐसा समझें और खर्च करता रहे । बहुतसे लोग ऐसे रुपयेको अपनी वहियों में जमा करते चले जाते हैं पर उसका उपयोग नहीं करते । जब वह द्रव्य ज्यादा हो जाता है तब परिणाम गिर जाते हैं और वे उनको छिपाकर रहने देते हैं खर्चका नाम भी नहीं लेते । ” इस प्रस्तावका समर्थन रा० रा० अणाप्पा भरभाषा चिवटे और विष्णुपंत शास्त्रीने किया । प्रस्ताव पास हुआ । इसका लोगोंपर अच्छा प्रभाव पड़ा । आगामी वर्षके लिये शेठ माणिकचंद पानाचंद बम्बई कोषाध्यक्ष नियत हुए। संवत् १९६१ के जाड़ोंमें शोलापुरके सेठ रावजी नानचंद श्री सम्मेदशिखरजीकी यात्राको रवाना श्रीमती मगनवाईजी- हुए । सेठजीने उन्हींके साथ श्रीमती मगकी तीर्थयात्रा। नवाईनीको अंकलेश्वरकी विदुषी बाई व मग नबाईकी सहधर्मिणी ललिताबाई व रसोइया आदि १० मनुष्योंके साथ यात्रार्थ भेज दिया । सेठजीने मगनबाईजीको संस्कृत व धार्मिक विद्या पढ़ाकर व अनेक गुजराती व हिन्दी उपयोगी पुस्तकें तथा नित्य समाचारपत्र देखनेकी आज्ञा देकर इस योग्य कर दिया कि मगनबाईजी विना संकोचके यात्राका कुल प्रबन्ध कर सकती, टिकट मंगा सक्ती, असवाव तुलवा सक्ती, व आवश्यक्तानुसार बात कर सक्तीं थीं । गुजरात देशमें इस तरहका परदा नहीं है जैसा कि उत्तर भारतमें है कि स्त्री एक गुड़ियाकी तरह होती है। वह स्वयं यात्रा नहीं कर सक्ती। उसके हाथ For Personal & Private Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२ ] अध्याय दसवां । पैर मुंह सब ढका हुआ रहता है । उसको कुछ खबर नहीं। असवावमें एक स्त्री भी मानी जाती है जिसे उठा कर ले चलना पड़ता है। गुजरातकी स्त्रियां मुंह नहीं ढकतीं-ज़रूरत पड़नेपर कायदेके साथ देखभाल व बातचीत कर सकती हैं । अनपढ़ गुजराती स्त्रियोंकी अपेक्षा मगनबाईजी परदा न रखनेका पूरा लाभ ले सकती थी। वह पढ़ी लिखी ऐसी चतुर थी कि जो बातें पुरुषोंको न मालूम उनका इसे ज्ञान था। चौपाटी बंगलेपर जब सेठनी रात्रिको दीवानखाने में बैठते तब यह भी दूसरी कुर्सीपर बैठती और जो २ बाते सेठजी लोगोंसे करते उनको सुनती व कभी ज़रूरत होनेपर बीचमें भी बोलती थी। कुछ व्याख्यान देने व परोपकार करनेका भी शौक हो चला था । वृत्ति भी वैराग्य रूपमें थीं; इसीसे सेठजीने मौका दिया कि इसको प्रवासका अनुभव हो और यह जातिसेवाके लिये तय्यार हो । ललिताबाई भी इसीके समान संस्कृत व धार्मिक विद्या में चतुर थी, परिणति वैराग्य रूप थी। दोनोंका मेल भी था। दोनों एक दूसरेकी रक्षा करें, एक दूसरे का स्थितिकरण करें इसीलिये दोनोंका साथ सेठजीने कर दिया । कई मास यात्रामें विताए । बुन्देलखंडकी यात्राएं भी की। शिखरजीकी यात्रा बड़े भावसे की। फिर लौटते हुए काशी, अयोध्या होती हुई लखनऊ पधारी। लखनऊमें बाबू धरमचंद फतहचंद जौहरीका नाम सेठजीने नोट करा दिया था सो चौकमें आई और बड़े मंदिरजीके निकट स्थानमें उक्त जौहरियोंने बहुत सन्मानके साथ ठहराया । चौकका मंदिर बहुत सुन्दर बना है। भीतर संगमर्मरका जड़ाव For Personal & Private Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३९३ व रंगावेजी अच्छी है। पांच वेदिया हैं। बाबू शीतलप्रसादका मूलनायक श्री नेमिनाथ स्वामीकी परिचय। बड़ी ही शांत दो गन ऊंची पद्मासन प्रति बिम्ब मध्य वेदीमें विराजित है । दर्शन करते हुए जी नहीं तृप्त होता है । दूसरी वेदियां क्रमसे श्वत वर्ण चंद्रप्रभु, चौवीसी, श्वेतकापाषाण श्री पार्श्वनाथनी व श्री शांतिनाथनी की ४ हैं। शांतिनाथकी प्रतिबिम्ब प्राचीन है, परम वीतरागता झलकाती है करीब २। हाथ ऊंची पद्मासन है। दर्शन करते २ जी नहीं तृप्त होता है ऐसे ही चौथी वेदीमें श्री पार्श्वनाथजीकी बड़ी ही प्रसन्नमुख आत्मिक आनंद रसको पीती हुई एक भव्य प्रतिबिम्ब है। इसी वेदीके आगे मगनबाई और ललिताबाई दोनों शुद्ध धोए वस्त्र पहने सामग्री लिये हुए बहुत ही ललित उच्चारणके साथ अष्ट द्रव्यसे पूजा कर रही थीं, करीब ९ प्रातःकालका समय था । इन दोनों स्त्रियोंको नित्य श्री जिनेन्द्रकी पूजा करनेका अभ्यास था । जिस समय ये पूजा कर रहीं थी, मंदिरजी में कई श्रावक शास्त्र स्वाध्याय कर रहे थे। यहां पहले कभी किसीने स्त्रियोंको अष्ट द्रव्यसे पूजा करते हुए नहीं देखाथा सो सब आश्चर्यमें डूब रहे थे और सोच रहे थे कि ये कौन हैं, किस देशको स्त्रियां हैं। उन स्वाध्याय करनेवालोंमें एक बाबू शीतलप्रसाद भी थे जो उस समय मंदिरजीके पासवाले मकानमें अपने बड़े भाई लाला संतूमलके कुटुम्बके साथ रहते थे। शीतलप्रसादकी उस समय अवस्था २६ वर्षकी होगी। यह अग्रवाल वंशन गोयल गोत्रीय लाला मक्खनलालके पुत्रोंमेंसे एक थे। दो सीतलप्रसादसे For Personal & Private Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९४ ] अध्याय दशवां । बड़े और एक छोटा था। पर उस समय केवल दो बड़े भाई ही मौजूद थे। अनंतलाल जवाहरातका और सबसे बड़े संतलाल टोपी चिकनका काम करते थे। सबसे छोटा भाई पन्नालाल था जो अपनी १८ वर्षकी आयुमें इस समयके ( या ९ मास पहले ता० १५ मार्च १९०४ को प्लेग रोगसे पीडित हो परलोक सिधारा था। इसीके दो दिन पहले शीतलप्रसादकी स्त्री भी प्लेग रोगसे मरण कर गई थी। यह स्त्री एक वैष्णव अग्रवालकी पुत्री थी पर जिन वर्ममें ऐसी गाढ़ श्रद्धावान थी कि किसी कुदेवादिकको नहीं पूजती यो । माता पिताने कुछ विद्या नहीं पढ़ाई थी। पतिको विद्या पढ़ानेका शोक सो रात्रिको सोनेके पहले आध घंटा अक्षर व पुस्तकज्ञान कराकर सोनेकी आज्ञा मिलती थी।पतिकी कृपासे थोडे ही दिनों में जैन धर्मकी पुस्तक पढ़ने लगी थी। पतिसे गाढ़ प्रेम था। शरीर अस्वस्थ रहा करता था, इसीके चार दिन पहले ता० ९मार्च १९१३को शीतलप्रसादकी माता श्रीमती नारायणदेवी यकायक एक ही दिन प्लेगमें बीमार रहकर परलोक सिधार गई। यह नारायणदेवी साक्षात् देवी ही थीं। इनको आलस्य छू तक नहीं गया था । आप सवेरेसे रात्रि तक परिश्रम करने में ही सुख मानती थीं। शीतलप्रसादके पिताका १ वर्ष पहले देहान्त हो गया था। शीतलप्रसाद उस समय सर्कारी रेलवे हिमाबके दफ्तरमें क्लर्क थे। माता इन्हींके साथ थी। इनको बहुत चाहती थीं। नारायणदेवी रसोई क्रियामें बहुत निपुण थीं। स्वादिष्टसे स्वादिष्ट भोजन बनाना जानती थीं। थोड़े खर्चमें स्नेह भरा भोजन बनाकर अपनी आयु पर्यंत छोटे पुत्रोंको खिलाती रहीं। घरमें सफाई रखने में चतुर थीं । समय बचनेपर लखनऊके चिकनका For Personal & Private Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३९५ कसीदा काढ़कर महीने में ८) व १०) रु. के अनुमान पैदा कर लेती थीं। बड़ा ही सरल मिनाज़ था । ऐसी माता व आज्ञाकारिणी स्त्री व छोटे भाईके समागममें कुछ दिन शीतलप्रसादको स्वर्गके समान सुख मालूम होता था और अपनेको साता होने का बड़ा गर्व था कि मैं संतोष में दिन बिता रहा हूं, पर संसारकी दशा क्षणभंगुर है, अंतराय कर्म किसी की स्थितिको एकसी नहीं रहने देता । लखनऊमें प्लेग प्रकोप हुआ। और ता० ९ से १५ मार्चके भीतर वे ही तीन साथी जिनके उपर शीतलप्रसादके शरीरका वैय्यावृत्त निर्भर या यकायक इस हाडमई देहको छोड़कर चल दिये। इस घटनासे शीतलप्रसादके चित्तको जो आघात पहुंचा वह वर्णनके बाहर था। पर श्री ज्ञानार्णव, स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा आदि शास्त्रके पढ़नेका ऐसा भारी असर चित्तमें था कि शोककी तरङ्ग आती थी और जाती थी पर इतनी बलवती नहीं हुई थी कि आंखोंसे आंसुओंकी धारा बहा निकाले । शीतलप्रसादको रोते न देखकर लोग आश्चर्य करहे थे । भा० दि० जैन महासभाके साथ शीतलप्रसादका सम्बन्ध बहुत पुराना हो चुका था । जब बाबू सूर्यभानने जैनगज़ट जारी किया था और उसकी प्रतिये श्री शिखरजीमें वांटी थी उसमेंसे एक प्रति शीतलप्रसादके पिता मक्खनलालको प्राप्त हुई थी जो यात्राको गए थे, उस समय शीतलप्रसाद कलकत्तमें थे और अपने मंझले बड़े भाई अनंतलालके साथ जवाहरातका व्यापार व दलाली करते थे। पिताने वह जैन गज़ट शीतलप्रसादको दिया उसीको पढ़कर शीतलप्रसादके भीतरकी ज्ञान चिनगारी जग उठी और इसने जैनगजट मंगाना शुरू किया व उसमें लेख भी भेजने शुरू किये । For Personal & Private Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दशवां। सबसे पहला लेख ता० २४ मई १८९६ के अंक २३ में छपा है जिसमें पंडितोंसे प्रार्थना की गई है कि____“ ऐ जैनी पंडितो, यह जैनधर्म आप ही के आधीन है । इसकी रक्षा कीजिये, द्योति फैलाइय, सोतोको जगाईथे और तन मन धनसे परोपकार और शुद्धाचारके लानेकी कोशिस कीजिये कि जिससे आपका यह लोक और परलोक दोनों सुधरे आदि "। शीतलप्रसादके कुटुम्बकी कलकत्तेकी जैन बिरादरीमें बड़ी मान्यता थी। इसका कारण यह था कि इनके पूज्य पितामह लाला मंगलसैनजी संस्कृत और फारसीके विद्वान् होनेके सिवाय जैन धर्मके अच्छे मरमी थे। यह जैन मंदिरमें सभाका शास्त्र पढ़कर धर्मोपदेश देते थे । गोम्मटसार व समयसारकी चर्चाका अच्छा अभ्यास था । लखनउके शाहजीकी कोठीमें कोषाध्यक्ष थे। इनको गणितमें लीलावतीका अच्छा ज्ञान था। कभी २ इंग्रेन लोग गणितका प्रश्न हल करनेको इनके पास आते थे। शीतलप्रसादपर इनका बड़ा प्रेम था । कभी यह लखनऊ आते तव १० वर्षके बालकको अपने साथ श्री मंदिरजी ले जाकर जो शास्त्र आप पढ़ते सो बंचवाते थे। जैनगज़ट और महासभाके साथ शीतलप्रसादका यहां तक गाढ़ सम्बन्ध हो गया था कि जब यह कलकत्तेसे लखनऊ सन् १८९८ के अनुमान गए तबसे करीब २ प्रतिवर्ष ही श्री चौरासी मथुराके दर्शन किये और महासमामें शरीक हुए । जैनगज़ट पत्रपर अतिशय प्रेम था । बाबू बच्चूलाल प्रयागके देहान्त होनेपर जैनगजटका मुद्रित होना शीतलप्रसादके द्वारा लखनऊमें अंक १० सप्तम वर्ष ता० १ अप्रैल १९०२ से शुरू हुआ, तब यह पत्र पाक्षिक था। उस समय शीतलप्रसाद For Personal & Private Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [३९७ घोष कम्पनीके यहां अमीनाबादमें ५०) मासिकके एकोन्टेन्ट थे । लखनऊ में मिडिल क्लास तक शिक्षा पाकर कलकत्ते व्यापारार्थ गए । वहां कई वर्ष रहे । एक वर्ष सील्स फ्री कालेनमें पढ़कर ता० १५ अप्रैल १८९६ को इन्ट्रेन्स परीक्षाके प्रथम विभागमें उत्तीर्ण पत्र प्राप्त कर लिया था । द्वितीय भाषा शुरूसे हिन्दी और संस्कृत थी। लखनऊमें आकर टामसन सिविल एन्जीनियरिंग कालेज रुड़कीकी फोर्थ ग्रेड एकौन्टेन्टशिप नामकी परीक्षा ११ फर्वरी सन् १९०१में पास की। १॥ वर्ष पीछे फिर अवध रेलवे एकाज़मिनरके दफ्तर में इस गरजसे भरती हुए कि शीघ्र ८०) मासिक पानवाले एकौन्टेन्ट हो जावेगे और तब १५०) तक बढ़कर आगे तरक्की करेंगे। पहले इन्हें स्वाध्यायका शौक न था । जब लखनऊमें इंग्रेजी पढ़ते थे तब नित्य दर्शन व कभी २ प्रछाल पूजन व कभी शाथ सुनते थे । दर्शन करके जीमना यह नियम ८ वर्षकी उम्रमें लिया था इसीसे धर्मकी लग्न लगी रही। यदि यह नहीं होती तो इंग्रेजी स्कूलकी संगतिमें पढ़कर जैसे और बालक धार्मिक क्रिया छोड़ बैठते हैं वैसे यह भी छोड़ बैठते पर दर्शनके नियमने धर्म मार्गपर कायम रक्खा । स्वाध्यायका अभ्यास कलककत्तमें बाबू ऋषभदास प्रयाग निवासीको एक दिन पंडित सदासुखजी कृत रत्नकरंड श्रावकाचार पढ़ते हुए सुनकर प्रारंभ हुआ था। जब तक जैनगजट लखनउमें शीतलप्रसादके द्वारा छपता रहा बाबू देवकुमार आरा निवासी सम्पादक थे। शीतलप्रसादको लेख लिखने व समाचार देखनेका शौक था। बहुतसे लेख स्वयं लि. खकर समाचार छांटकर यह दिया करते तथा प्रूफको जांचकर For Personal & Private Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ ] अध्याय दशवां । पत्रको तय्यार कराकर आरा भिजवा देते थे । यह पाक्षिक रूप में अक ५ दशम वर्ष ता० १६ जनवरी १९०६ तक निकला | फिर शीतलप्रसाद के खास उत्साह व परिश्रमको देखकर व देवकुमारजीकी हार्दिक इच्छा व मददको जानकर महासमाने इसको साप्ताहिक करनेका प्रस्ताव अम्बाला के अधिवेशन में पास किया उसके पीछे ही ता० १ फरवरी १९०९ से अंक नं०६ से साप्ताहिक रूपमें निकलने लगा और इस प्रकार यह पत्र लखनऊ में ता० ११ नवम्बर १९१० तक छपता रहा । जब इसके सम्पादक बाबू जुगलकिशोर देवबन्द हुए तब शीतलप्रसादका खास सम्बन्ध जैन गज़ट से छूट गया । शीतलप्रसाद के चित्तमें जबसे उनकी स्त्री माता व भाईका एक साथ मरण हुआ, संसारसे उदासी छा गई थी । यद्यपि दफ्तर रेलवेमें जाते थे पर मन त्यागके सन्मुख हो रहा था । जब ये दोनों बाइयां पूजन कर चुकी तब शीतलप्रसाद साहस करके उनका नाम ठिकाना आदि पूछने लगे । सेट माणिकचंद को यह अच्छी तरह जानते थे । जैनमित्र, जैनगज़ट में इनके कार्यों की महिमा के सिवाय मथुराके मेलेपर प्रत्यक्ष देखा था । यद्यपि उस समय वार्तालाप करनेका कोई अवसर नहीं मिला था यह जानकर कि यह सेठ माणिकचन्दजीकी पुत्री है, बाबू शीतलप्रसादको बड़ा हर्ष हुआ, तब श्रीमती मगनबाईजीने पूछा कि क्या यहां कोई श्राविका पढ़ी हुई हैं ? उस समय लखनऊमें श्रीमती पार्वतीचाईको शास्त्रका कुछ अभ्यास था व धर्मसे लग्न थी, उन्हीका नाम व पता बताया क्योंकि शीतलप्रसादको भोजन करके दफ्तर जाना था अतएव यह फिर मिलेंगे ऐसा कहकर चल For Personal & Private Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ३९९ दिये । शामको दफ्तरसे आ भोजन करके खबर भिजवानेपर श्रीमती मगनबाईजी मिली तब इन्होंने बाबू अजितप्रसाद वकीलका पता पूछा व मिलनेकी इच्छा प्रगट की । सेठजीने सब नोट करा दिया था कि अमुक नगर में अमुकर से मिलना । शीतलप्रसाद इनको ब इनकी पुत्री केशरमतीको एक मनुष्य के साथ बाबू अजितप्रसादजी के मकान पर ले गये । उस समय जिस ढंगसे बाईजीने वातचीत की उससे मालूम होता था कि इनको दुनियांका, सभा सोसायटी आदिका अच्छा अनुभव है। दो दिनतक दोर बड़ी धर्म चर्चा करनेसे व प्रश्नोत्तर करनेसे दोनों बहनोंको धर्मका अधिक लाभ मालूम हुआ । इनको शीतलप्रसादजीने स्त्रीशिक्षा प्रचारार्थ उत्तेजित किया और प्रेरित किया कि जैनगजट में मुद्रित करानेको लेख भेजे तो शुद्ध करके छपादिये जायेंगे । बाइयोंने स्वीकार किया । मालवा के प्रसिद्ध, प्राचीन नगर में नएपुराके मंदिरका जीर्णोद्धार कराकर विम्वप्रतिष्ठाका पंचकल्याणकोत्सव उज्जैनकी विम्व इन्दौर के सेठ तिलोकचंद कल्याणमलजीने चैत्र तिष्ठा और सेठजी सुदी ९ से १३ सं० १९६१ तक कराया का समागम । था । १६००० के अनुमान जैनी भिन्नर प्रान्तोंके एकत्रित थे | अजमेर के सेठ नेमीचंदजी, पाटनके विनोदीराम बालचंद, लश्करके राजा फूलचंद आए थे । बम्बइसे सेठ माणिकचंदजी सकुटुम्ब व श्रीमती मगनबाई सहित पधारे थे । साथमें पालीतानाके मुनीम धरमचंद हरजीवनदास व अंकलेश्वरकी ललिताबाई भी थी । प्रतिष्ठाकारक पंडित बापूलालजी रतलाम और पं० नरसिंहदासजी थे। त्यागी दौलतरामजी, अनंरात For Personal & Private Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० ] अध्याय दशवां । मनी, जानकीलालजी, शीलचंदनी, मुन्नालालजी आदि भी आए थे। दौलतरामजी गोम्मट्टसारके ज्ञाता, विद्वान व वैराग्य संयुक्त थे । इस उत्सवमें लखनऊ से शीतलप्रसाद भी आए थे । जबसे इनकी पत्नीका देहान्त हुआ था तबसे धार्मिक कार्यों में विशेष मन था सो रेलवे दफ्तरसे छूटी लेकर इस महान उत्सवको देखने व उपदेश करने चले आए थे। शीतलप्रसादको सभामें व्याख्यान देनेका बहुत शौक था । कलकत्तमें मासिक व पाक्षिक सभामें व लखनऊकी सभाओंमें व महासभाके अधिवेशनों में भी व्याख्यान दे चुके थे। इस उत्सवमें सभा होना बड़ा कठिन था। कोई खास प्रबन्ध नहीं था। सेठ माणिकचंदजीको भी सभाका बहुत शौक था। चैत्र सुदी १२ की रात्रिको आपने ठान लिया कि सभा अवश्य कराएंगे । आप एक छोटेसे मंडपमें गए। वहां स्वयं खड़े होकर बिछौना बिछवाया, बुलावा दिलवाया और प्रथम ही १०-२० आदमियोंको लेकर बैठ गए, इतने में सभा जुड़ गई । उस समय सेठ माणिकचन्दके उत्साह व परिश्रमको देखकर बड़ा आनन्द होता था। इसी रात्रिको हकीम कल्याणरायनी, शीतलप्रसादजी, पन्नालालजी गोधा, चिरंजीलाल अनाथाश्रन हिसार, और माणिकचंद विद्यार्थीके व्याख्यान हुए। सेठ माणिकचन्दजी और पं० धन्नालालजीके उद्योगसे मालवा प्रांतिक सभाकी नियमावली संशोधित हुई, कार्यकर्ता नियत हुए व १५००)का चंदा समाके खर्चके लिये हो गया। मेले में आए हुए १५० लडकोंकी परीक्षा ली गई। परीक्षकोंमें पं० धन्नालाल, पं० लक्ष्मीचन्द वागीदोरा, लाला भगवानदास तथा शीतलप्रसादजी आदि कई भाई थे । तथा श्रीमती श्रृंगारबाई ( जो For Personal & Private Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमान् जैन धर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी गृहस्थावस्थामें.. J. V. P. Surat. (देखो पृष्ठ १९३) For Personal & Private Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४०१ गोमट्टसारको अच्छा समझती थीं तथा जिनका चारित्र बहुत उज्वल था ), मगनबाई, ललिताबाई, हंगामीबाई आदि विदुषी स्त्री मंडलीने ५५ कन्याओंकी परीक्षा ली । सर्व बालक बालिकाओंको यथोचित इनाम दिया गया। एक दिन सेठ माणिकचन्दजी दुपहरको अपने बड़े डेरेमें बैठे हुए थे, वहांपर सेठ अमरचंदजी शीतलप्रसादजी व धर्मचन्दनी थे । शीतलप्रसादनी उस समय सेठ माणिकचन्दजीसे खुले दिलसे बात नहीं कर सकते थे, केवल माणिकचन्दनीको बड़े धर्मात्मा सेठ जानकर उनकी बातें सुननेको दूर बैठे थे । मगनबाईजी भी थी, जो सेठ अमरचन्द बड़नगरवालोंसे कुछ धर्मचर्चाके प्रश्न कर रही थीं ( यह अमरचन्दनी अब गृहवास छोड़कर उदासीनाश्रममें शांतताके साथ धर्मसेवन कर रहे हैं )। उस समय वागड़ देशके ५०-६० भाई सेठजीके सामने आकर बैठ गए। ये हमड़ जातिके थे। ये लोग बड़े ही दीन वचनोंसे कहने लगे कि हमारे वागड़ प्रान्तमें धर्मका विच्छेद हो रहा है, कोई सम्बोधने नहीं आता है और न कोई पाठशाला ही है। आप दया करके वहां पधारे और अपने जाति भाइयोंका उद्धार करें । सेठ माणिकचंदनीने बड़े ही वात्सल्यभावसे उनसे वार्तालाप की, वहांका सब हाल पूछा और उपदेश दिया कि आप लोग कन्याविक्रय न करें, न वालविवाह वृद्धविवाह करें, स्नानादि करने में विवेक रक्खें, शास्त्रको पढ़ा करें व बालकोंके पढ़ानेके लिये पाठशालाएँ खुलवावें, उसके लिये थोड़ी बहुत मदद हम भी देवेंगे इत्यादि आश्वासन दिया और यह भी कहा कि हम शीघ्र ही कोई उपदेशक आपके प्रान्तमें भेजेंगे। इतने बड़े धनाढ्य सेठकी इतने प्रेमके साथ Jain Educationnternational For Personal & Private Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwv vavvvvvvvvv vvvvvvv. . ... . ४०२ ] . अध्याय दशवां । साधारण वस्त्र पहने हुए व ठीक २ बात करना न जाननेवाले बागड़के भाइयोंसे बात करते हुए देखकर शीतलप्रसादके चित्तपर सेठनीकी सादगी, निगर्वता, नातिप्रेम, व धर्मोन्नतिके उत्साहका बड़ा भारी असर पड़ा। जैनगजट अंक २२ ता० १-६-०५में सबसे पहले श्रीमती मगनबाईद्वारा लिखित “ स्त्रीशीक्षा " पर मगनबाईजीका एक छोटासा लेख मुद्रित है। इसमें दिखलाया प्रथम लेख। है कि " मालवा बुंदेलखंड आदि प्रांतों में - मैंने यात्रार्थ पर्यटन करते बड़ी ही आश्चर्यात्पादक किम्बदन्ती सुनी । उस देशमें हमारी जैन स्त्रिय बतलाती हैं कि पढ़नेसे स्त्रियां विधवा होती हैं, दोष लगता है....." इन वाक्योंसे पाठकोंको उस समयका हाल मालूम होगा कि जब लोगोंका स्त्रीशिक्षासे बहुत कम प्रेम था तथा विधवा होनेका भय बहुत घुसा हुआ था, परंतु अब १०-११ वर्षमें यह भय बिलकुल मिट गया है। जैसा शीतलप्रसादजीसे प्रण किया था उसीके अनुसार मगनबाईनीने यह पहला लेख भेजा व आगामी भी भेजती रही थीं। सेठ माणिकचंदजीको यह बात पसन्द न थी कि उनकी स्थापित की हुई कोई भी संस्था अहमदाबादमें बोर्डिग- अधूरी स्थितिमें रहे, इसीलिये वे रात्रि के लिये नया मकान । दिन फिकर में रहते थे कि अहमदाबाद बो डिंगको किरायके मकानसे निकालकर अच्छे अपने खास बोर्डिगमें रखना चाहिये । इसके लिये आप बीचमें अहमदाबाद आये और सेठ हरजीवा रायचंद आमोद वालों को मा। For Personal & Private Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४०३ साथ ले एक दलालके साथ बहुतसी जगहोंको देखने गए । साथ वालोंने जो जगह पसंद की सो सेठजीके ध्यान में न आई । हाल जहां बोर्डिग है उस जगहको सेठजीने अपनी दीर्घ दृष्टिसे स्वयं पसन्द की तब और भी सहमत हो गये । इस जगह मकान भी बना हुआ था । कुल जमीन ४०४४ वर्ग गज थी । बोर्डिंग फंडमेंसे १६०००) देकर यह मकान खरीद लिया गया । आज यह ५००००) की मिलकियतका हो गया है। सेठजी कितने अनुभवी थे इस बातका इसीसे अच्छा पता लगता है। सेठ माणिकचंदनीका चित्त जैसे जैन जातिले उद्धारमें लीन था ऐसे ही सर्व मनुष्यसमानकी तथा सेठजीका दया दान । पशु पक्षीकी भी रक्षाका पूर्ण ध्यान था। __ जूनागढ़ निवासी एक दयालु ब्राह्मग लाभशंकर लक्ष्मीदास हैं, उन्होंने अपने जीवनका उद्देश्य जीवदया प्रचार बना लिया है। लंडनमें जो जीवदयाकी सभा सुसायटिये हैं उनसे इनका खास सम्बन्ध है । वहांके इस विषयके समाचारपत्र भी आप मंगाते रहते हैं व वहांकी छपी पुस्तकोंको वितरण कर मांसाहारका त्याग कराने व पशुरक्षा करानेका यत्न करते रहते हैं । सेठ माणिकचंदनीसे आपकी पूर्ण मुलाकात थी। सेठजी लाभशंकरकी सम्मतिसे अपना बहुतता रुपया जीवदयाप्रचारमें खर्च करते रहते व इंग्रजी पुस्तकोंको सदा ही बांटते रहते थे । लंडनमें हमेनीटेरियम लीगकी एक जीवदया सम्बन्धी संस्था है इसका मासिक पत्र भी मंगाते थे तथा इस समय उस संस्थाको ३१ पाउन्ड याने ४६५) रु० भेनकर सहायता पहुंचाई For Personal & Private Use Only E Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ ] अध्याय दशवां । थी । वास्तवमें जो महापुरुष होते हैं उनका उपयोग जीवमात्रके हितमें प्रवर्तन करता है । आपने थोड़े दिन पहले कालेन व स्कूलोंके बड़े भुसल्मान विद्यार्थियोंसे इंग्रेजी पुस्तक देकर अहिंसापर उनके विचारानुसार निबंध लिखवाकर जो उत्तम रहे थे उनको इनाम दिया था।सेठनी नानते थे कि पुस्तक बांचते व लिखते २ मनुष्यके विचारों में फर्क पड़ता है। विचारोंके पलटनेसे ही पशुहिंसा व मांसाहार त्यागका कर्तव्य हो सकता है। द० म. जैन सभाकी ओर आपका बहुत प्रेम था । उस . प्रान्तमें शिक्षाका प्रचार हो इसलिये जो सेठजीका चंदेके लिये शिक्षण फंड हुआ था उसकी वसूलीके लिये भ्रमण। उक्त सेठनी श्रुतपंचमी अर्थात् जेठ सुदी ५ के करीब नांदणी गांवमें गए और भट्टारकजीके मठमें ठहरे थे। वहां क्या देखा कि श्रुतपंचमीके धार्मिक उत्सवके लिये भी आतिशबाज़ी और रोशनीकी तय्यारी हो रही है तथा प्रति वर्षके समान वेश्यानृत्य भी होनेवाला है। इसपर सेठनीको बड़ा आश्चर्य हुआ। आपने भट्टारकसे इन सब कुप्रथाओंको बंद करनेके लिये निवेदन किया । भट्टारक भी समझ गए और इनकी बन्दीका आज्ञापत्र जारी कर दिया । यहां सेठजी को एक माणेकभाई नामके मुसल्मानसे भेट हुई, जिसके कुटुम्बमें कोई मांस नहीं खाता १ दयाप्रेमी मुसल्मान- तथा जिसके उपदेशसे नांदणीके सब मुसल्माका समागम। नोंने मांस खाना छोड़ दिया था । सेठजीको ऐसे व्यक्तिसे मिलनेसे बहुत आनन्द हुआ । आपने उसको जीवदया प्रचारार्थ और भी दृढ़ कर दिया । For Personal & Private Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसवा प्रथम भाग | [ ४०५ ईडरके भंडार से करीब ४०० ग्रंथ सेठजीके यहां आए हुए थे जो संस्कृत व प्राकृतके प्राचीन थे । बंबई सेठजीकी सरस्वती । आते ही इन्होंने एक विद्वान् इसलिये नियत भक्ति । कर दिया कि जो ग्रंथोंका सूचीपत्र बनावे | उसमें इतने विषय लिखे जानेका निश्चय किया - नाम ग्रंथ, आचार्य, लेखक, भाषा, पत्र व श्लोक संख्या, प्रति लिखनेका समय आदि मंगलाचरण, अन्य प्रशस्ति और सहजलभ्य इतिहास | इसके तीन रजिस्टर सेठजीके चौपाटी के बंगले पर मौजूद हैं, विद्वान देखकर लाभ उठा सकते हैं । सेट माणिकचंदजीको, जबसे व्यापारसे निवृत्त हुए रात्रि दिन धर्म व जाति सेवाका ही ध्यान था । धर्मके सेठजी द्वारा स्याद्वाद निमित्त पगसे रुक २ कर चलनेपर भी पाठशाला काशीकी रेलकी व बैलगाड़ी तककी यात्रा करने में स्थापना । कभी कष्ट व प्रमाद नहीं होता था, सबेरेसे १२ बजे रात्रि तक यही विचार रहा करते थे । जेठ सुदी १० सं० १९६२ ता० १२ जून १९०५ को काशी में दिगम्बर जैन जातिकी ओरसे संस्कृत धार्मिक विद्याकी उन्नतिके अर्थ श्रीयुत पं० पन्नालाल बाकलीवाल, बाबा भागीरथजी और पं० गणेशप्रसादजीके उद्योगसे पाठशाला खुलनेका महूर्त्त था । उसका उद्घाटन सेठ माणिकचंदजी करें ऐसी प्रेरणा होनेपर सेठजी बम्बई से तुर्त ही काशी पधारे और मैदागिनी धर्मशाला में ठहरे । शहरवालोंने आपका बहुत सन्मान किया । पाठशालाका महूर्त मैदागिनी जैन मंदिर में सबेरे ८ बजे हुआ । उस समय बाहरके For Personal & Private Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ ] अध्याय दशवां । खास २ भाई आए थे। आरासे बाबू देवकुमार ऑनरेरी मजिस्ट्रेट व किरोड़ीचंदजी रईस, लखनऊ से बाबू अजितप्रसाद एम० ए० एल० एल० बी० वकील और बाबू शीतलप्रसाद, देहलीके लाला मोतीलाल, बरुवासागर के लाला मूलचंद रईस, झांसीके लाला गदूमलजी, आगरेसे लाला घनशामदासजी आये थे । सभामें शहर के दिग० व खे० भाइयों के सिवाय श्वेताम्बर यशोविशय पाठशाला के अध्यक्ष यति धर्मविजयजी, इन्द्रविजयजी व बौद्धोंके महाबोधि सोसायटीके आसि० सेक्रेटरी भी आये थे । बाबू नानकचंदजी बी० ए० हेड मास्टर सागर के पेश करने और बाबू देवकुमार के समर्थन से सेठ माणिकचंदजीने अपनी अयोग्यता प्रगट करते हुए सभापतिका आसन लेकर णमोकार मंत्र पढ़कर पाठशालाका परदा हटाया और अध्यापकों को पाठ पढ़ाने की आज्ञा दी । पाठ हो जानेपर पं० गणेशप्रसादजीने व्याख्यान दिया कि काशी ही संस्कृत व धार्मिक विद्या प्राप्तिका स्थान है। इसका अनुमोदन अजितप्रसादजी और नानकचंदजीने किया । फिर यति धर्मविजयजीने पाठशालाकी चिरस्थायिता चाहते हुए सेठजी भक्त, शूर और दानी हैं ऐसा सिद्ध किया। बाबू शीतलप्रसाइजीने नियमावली व प्रबन्धकारिणी सभाके नाम सुनाए । बाबा भागीरथजीने मूल फंड स्थापनकी प्रार्थना की । बौद्ध साधुने इंग्रजीमें हर्ष प्रगट किया । बाबू शीतलप्रसादजीने सर्वको धन्यवाद दिया । बाबू देवकुमारजीने शोलापुर से आया हुआ बम्बई दिगम्बर जैन प्रान्तिक सभाका सहानुभूति सूचक तार सुनाया । इन्हीं दिनों में सेठ मोतीचंद प्रेमचंद शोलापुरकी तरफ से बिम्बप्रतिष्ठाका उत्सव था तथा बम्बई प्रा० सभाका नैमित्तिक अधिवेशन जेठ सुदी ७ और ८ को For Personal & Private Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातसेवा प्रथम भाग । [४०७ को था। गांधी रामचंद नाथा सभापति थे। इसमें सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद भी बम्बईसे शामिल हुए थे। इन्होंने तीर्थक्षेत्रों के प्रबन्धके उपाय प्रचारमें लाए जावें ऐसा प्रस्ताव किया। जबसे प्रांतिक सभाने तीर्थक्षेत्र सुधार खाता कायम किया सेठ चुन्नीलाल तीर्थीके सुधार में बराबर दत्तचित्त रहे । शिखरजी वीसपंथी कोठीका प्रबन्ध ठीक करानेके सिवाय व इसीके कुछ दिन पहले ता० २६ मई १९०५को आप पावापुरीजी गये। वहां मुनीम राघवजीने भंडारके छत्रचमरादि गिरो रख डाले थे। इनके जाते ही वह भागा। सेठजीने पावापुरीका प्रबन्ध तीर्थक्षेत्र कमेटीके हाथमें लिया। तलकचंद ईश्वरदास और पुनारी हीरामनको काम सौंपा। शोलापुरके तारको सुनकर सबको बड़ा हर्ष हुआ। पश्चात् सभापति साहको पुष्पमालादिसे सन्मानित करके सभाका कार्य समाप्त किया। इस पाठशालाके लिये उक्त तीनों संस्थापकोंने १००) मासि कका प्रबन्ध बाहरसे कर लिया था तथा सेठजीकी २५) मा- काशीमें ता० १४ मई १९०५की सभामें सिककी मदद। ३०) मासिक काशीके भाइयोंने व २०) बाबू देवकुमारजीने देना स्वीकार किया था। सेठ माणिकचंदजीने २५) मासिक सहायता देना स्वीकार किया सो अपने जीवन पर्यंत बराबर दिया तथा बादमें भी उनके जुबलीबागके ट्रस्टियोंने देना प्रारंभ किया है। उस समय १५ महाशयोंकी प्रब० कमेटी बनी थी। सभापति सेठजी व मंत्री बाबू देवकुमारजी, उपमंत्री बा० जैनेन्द्रकिशोर आरा व कोषाध्यक्ष बाबू छेदीलालजी नियत हुए थे। बाबू देवकुमारजी अपने बुजुर्गोंकी बनबाई हुई For Personal & Private Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८] अध्याय दशवां। हुई गंगातटपरे श्रीसुपार्श्वनाथस्वामीके मंदिरके नीचेकी बड़ी धर्मशाला पाठशालाके लिये नियत कर दी। यह स्थान काशी भर में बड़ा ही रमणीक है। नौकामें जानेवालोंकी दृष्टि इस बड़ी इमारतको देख चकाचौंध खानाती है । महूर्तके दिन ५ छात्र भरती हुए, ३ सुयोग्य विद्वान् अध्यापक नियत किये गए। यह पाठशाला अब स्याद्वाद महाविद्यालयके नामसे प्रसिद्ध है। इसने समाजमें संस्कृत विद्याकी रुचि पैदा करा दी है । ३१ जुलाई १९१५ तक ४० विद्वान् यहांसे शास्त्रीय विशारद आदिकी सर्कारी व बम्बई परीक्षालयकी परीक्षाओंको पास करके गए हैं जो समाजका काम कर रहे हैं। जैसे१ न्यायाचार्य ५० गणेशप्रसादजी-अधिष्ठाता जैन पाठशाला, सागर २ , पं० माणिकचंदजी-अध्यापक जैन सिद्धांत विद्यालय, मोरेना। ३ पंडित बद्रीप्रसाद अध्यापक, जैन पाठशाला, कचनेर । ४ ५० वृजलाल जैन महाविद्यालय, मथुरा । ५ पं. निद्धामल , जैन पाठशाला, ललितपुर । ६६ पं० कुमारैय्या , जैन पाठशाला कारकल (दक्षिण) ७ पं० उमरावसिंह , स्याद्वाद महाग्धिालय-काशी। ८ वर्णी नेमिसागर धर्म प्रचारक, दक्षिण प्रान्त । सेठ माणिकचंदजीको इस संस्थासे इतना प्रेम था कि जैसा आगे मालुम होगा । आपने स्वयं २०००) देकर २००००) के करीब चिरस्थायी फंड करा दिया व ६०) मासिककी मदद जौहरी महाजन कांटा बम्बईसे सदाके लिये करा दी । For Personal & Private Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मह ती जातिसेवा प्रथम भाग । [४०९ सेठ माणिकचंदनीकी ज्येष्ठ भगिनी मंछाबाईके एक पुत्र सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद थे और दूसरी एक कन्या सेठ ठाकुरदास भग- धोली बहन थी। इसके और सेठ भगवानदास वानदास और दि- कोदरजीके एक परोपकारी साहसी पुत्र ठागम्बर जैन डाइ- कुरदास उत्पन्न हुआ था। यह पढ़ने में रेक्टरी । शौकीन था । १२ वर्ष तक सूरतमें रहकर शालामें अभ्यास किया, फिर बम्बई जाकर अपने मामा चुन्नीलालके साथ रहने लगा और संस्कृत द्वि० भाषा सहित इंग्रेजीका अभ्यास करते हुए मैट्रिक पास किया और प्रिवियस तक शिक्षा ली । सं० १९५९ से जौहरी माणिकचंद पानाचंदनीकी दुकान में बैठने लगे। यह जिस काममें लगाया जाता था दिलसे करता था ऐसा देखकर सेठ माणिकचंदनीने इसके लिये दिगम्बर जैन डाइरेक्टरीका काम नियत किया। दि. जैनियोंकी कहां२ वस्ती कुल भारतमें है, किस२ जाति के हैं, कहां२ मंदिर व पाठशाला हैं इत्यादि व्यवस्थाके जाने विना कुल समाजका सुधार नहीं हो सकता। इस कामको आवश्यक जानकर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाने अपने हाथमें लिया था पर द्रव्य व उत्साहके अभावसे यह काम कुछ चला नहीं। सेठजीके चित्तमें इसकी बड़ी भारी आवश्यक्ता प्रगट हुई थी। ठाकुरदासनीने फार्म छपवा कर सर्व स्थानोंमें भेजे पर बहुत ही कम भर कर आए। तब सेठजीकी सम्मतिसे प्रवीण मनुष्य भेजे विना फार्म भरकर नहीं आसक्ते ऐसा निश्चयकर जैनमित्र वर्ष ६ अं० ९ में यह नोटिस दिया कि दौरा करनेके लिये जैनी भाई चाहिये। For Personal & Private Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० ] अध्याय दशवां । ठाकुरदासके लगातार परिश्रमसे और सेठ माणिकचंद पानाचंदके करीब २००००) के खर्चसे यह डाइरेक्टरी छपकर सन् १९१४ में १४३१ सफोंकी पुस्तक तय्यार हो गई है जो ८) में बम्बई या सूरतसे प्राप्त होती है । ___ सेठ माणिकचंदनी काशीसे लौटकर आए कि उनको कोल्हा पुर जानकी फिकर पड़ी। वहांकी इमारतके कोल्हापुर जैन बोर्डि- लिये आपने २२०००) का निश्चय किया गकी नई इमारतका था तथा उत्तम कारीगर भेनकर अपने पसन्द वास्तुविधान। किये हुए नकशेसे इमारत बंधवाई थी। पत्र व्यवहार करके निश्चय किया गया कि नई इमारत खोलनेकी क्रिया भी कोल्हापुर महाराज के करकमलोंसे ही कराई जाय । इसके लिये ता. ९ अगस्त १९०५ नियत हुई। इस समारंभके लिये इमारतके आगे एक सुशोभित शामियाना लगाया गया था । बम्बईसे सेठ माणिकचंद, परोपकारी सेठ रामचंद्र गांधी व नवयुवक होनहार ठाकुरदास भगवानदासको लेकर पहुंचे। शोलापुरसे सेठजीके मित्र सेठ हीराचंद नेमचंद, बालचंद रामचंद तथा अन्य आसपापके कई नगरोंसे बहुत जैन मंडली उपस्थित हुई । सबेरे ७॥ बजे सब समा जुड़ गई। राज्यके सरदार आने लगे । ठीक ९ बजे श्रीमन्महाराज छत्रपति सरकार शाहु महाराज कर्नल फेरिसके साथ दरबारमें पधारे । प्रथम ही कोल्हापुर विद्यालयके मंत्री रा. रा. अण्णाप्पा बाबाजी लढे एम० ए० ने इंग्रेजीमें भाषण दिया जिसमें महाराज साहबकी कृपाकी अतिशय सराहनाकी कि जिन्होंने सभाके शिक्षणफंडमें २०००) नकद, ३००) For Personal & Private Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४११ वार्षिक व प्रत्येक कक्षामें एक फ्रीशिप तथा बोर्डिंग बांधनेको जमीन प्रदान की तथा सेठ माणिकचंद पानाचंद जौहरीके कुटुम्बकी प्रशंसा की और प्रगट किया कि आज यह इमारत उनके पूज्य पिताके नामसे प्रसिद्ध होगी अर्थात् "सेठ हीराचंद गुमानजी विद्या मंदिर " तथा इसके खोलनेके लिये महाराजसे प्रार्थना की तब महारानकी तरफसे दीवान साहब रा० ब० सबनीसने भाषण देते हुए कहा कि"प्राचीन कालमें जैन लोग अत्यन्त उन्नतिमें प्राप्त थे। उस समय उनके महत्व भोगनेके व सुधार करनेके जैन समाजपर अजैन बहुतसे प्रमाण हैं । जैन शास्त्रकारोंने ज्ञानविद्वानकी सम्मति। भंडारको बड़ा करके महत सहायता की। “ अहिंसा परमो धर्मः " के तत्वको उन्होंने बहुत ही उत्तम रीतिसे पाला । अब भी ये उसी उन्नतिको पहुंचे । इसके लिये अब इन्होंने आलस्य छोड़ा । सेठ माणिकचंद और उनके बंधुओंने जो शिक्षणकी सुगमताके लिये यह भव्य इमारत तय्यार करा दी है उसको खोलते हुए मुझे बड़ा ही आनंद आता है। फिर महारान साहबने इमारतको खोला । सेठ माणिकचंदजीने हारतुरोंसे महाराजको सन्मानित किया। सभा सानन्द विसर्जन हुई। तब महाराज और कर्नल फेरिसने इमारतको अच्छी तरह देखकर यही कहा कि बहुत अच्छी इमारत तय्यार कराई गई है । उस समय मकानका फोटो भी लिया गया । दोपहरको द० म० जैन सभाका नैमित्तिक अधिवेशन शोला For Personal & Private Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ ] अध्याय दशवां । पुरके प्रख्यात सेट वालचंद रामचंदकेसभापतिद०म० जैन सभाका त्वमें हुआ। शिक्षा खातेमें २०००) की नैमित्तिक अधिवेशन आमद हुई । सेठजीको अभिनंदन देने वाले ___ तार व पत्र दोनों भट्टारक, लल्लूभाई प्रेमानंद व गुरुमुखराय सुखानंद आदिके आए थे सो अध्यक्षने सुनाए । सभाके आश्रयमें बेलगांवमें एक संस्कृत पाठशाला भी स्थापित हुई तथा शास्त्री रक्खा गया। सेठ नाथारंगजीवाले सेठ पन्नालालजी मरते समय २५०००) दान कर गए थे, उसकी व्यवस्थाके लिये ट्रस्ट रु०२५०००)के दान कमेटी नियत हुई जिसमें सेठ माणिककी व्यवस्था। चंदजी व सेठ हीराचंद नेमचंद भी दृष्टी नियत हुए । तय हुआ कि इसके व्याजसे ४० ) सैकड़ा धर्मशिक्षामें, २२॥) सैकड़ा इंग्रेजी शिक्षामें, २२॥) रु. सैकड़ा प्राचीन जैन ग्रंथोद्धारमें व शेष जैन अनाथोंकी मददमें खर्च हो। इस फंडसे पंचाध्यायी, परीक्षामुख, प्रमेयकमलमार्तड, अष्टसहस्री आदि कई उपयोगी ग्रंथ मुद्रित हुए हैं व बहुतसे छात्रोंको सहायता मिल चुकी है। सेठ माणिकचंदने कोल्हापुरसे लौटकर वर्षाकाल शांतिसे व्यतीत करते हुए भादों मासके दशलक्षणी हीराबाग धर्मशाला पर्वमें बम्बई में धर्मजागृति फैलाई तथा बड़ी (बम्बई)में १२५०००) भारी फिकर यह हुई कि धर्मशाला शीघ्र का दान । बन जानी चाहिये । आपने कावसजी पटेल तालावके पास कांदावाड़ीके नाकेपर एक बहुत ही मौकेकी जगह तनवीन की जो शहरके बिलकुल बीच में For Personal & Private Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४१३ ट्राम गाड़ीके सामने व जैन मंदिरके पास है। इसीपर प्रवीण कारीगरोंके द्वारा बड़ी ही सुन्दर धर्मशाला बनवाई, जिसके तीन खन किये । आगेको एक महा सुन्दर लेक्चर हॉल याने व्याख्यान भवन बनवाया जिसके ऊपर गैलेरी रक्खी व सामने प्लेटफार्म बनवाया। इस धर्मशाला में करीब १७०६ चौरस गज़ ज़मीन है, तीन तरफ रास्ता है, पूर्व और उत्तरकी तरफ ब्लाकोंके नीचे दूकानें हैं । पूर्व तरफके ब्लाकके दक्षिण भागमें एक आफिप रूम है, उसके पूर्व में लेक्चर हाल है। उत्तर तरफ ब्लाक सी के मंझला ऊपरके भागमें यात्रियोंके ठहरने, रसोई व पाखानेकी जगह है। इसके दक्षिणमें खुला चौक है। फिर दक्षिणमें ब्लाक बी है। इसके ३ मंझले हैं। हरएकमें रहने, रसोई व पाखाने नलका प्रबन्ध है। इसके तीसरे खनको ट्रष्ट डीडके अनुसार केवल दिगम्बर जैन यात्रियोंके उपयोगके लिये रक्खा गया है। आफिस रूमके ऊपर एक बड़ा कमरा किसी प्रतिष्ठित कुटुम्बके लिये है । सी ब्लाकमें १० कोठरी, ६ रसोईघर, बीमें १२ कोठरी ६ रसोई घर हैं । इनमें से दो कोठरी दवाखानेके लिये हैं । सब मिलके दवाखाना सिवाय २६ रूम और १२ रसोईघर हैं, जिनमें ४०० आदमी ठहर सक्ते हैं। मकानके नीचे २१ दुकानें हैं, जिनका किराया आता है। इस महान धर्मशालाके निर्मापणमें एक लाख पचीस हजार १२५०००) की रकम उदार सेठोंने लगाकर ऐसी आराम देनेवाली जगह बना दी है कि बम्बई में इसके समान दूसरी कोई हिन्दुओंकी धर्मशाला नहीं है। सेठोंने अपने पूज्य पिताके नामसे इसे प्रसिद्ध किया है, जिससे इसे सेठ हीराचंद गुमानजी धर्मशाला या 'हीराबाग' कहते हैं। For Personal & Private Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ ] अध्याय दशवा इसके खोलनेकी क्रिया ता.९ दिसम्बर १९०५को ४ बजे दिनके की गई। शहरके प्रतिष्ठित जन निमंत्रित किये गए थे । न्यायमूर्ति चंदावकर, डॉ० सर भालचंद्र, आनरेवल गोकुलदास कहानदास पारेख, मजि० करसनदास छबीलदास, सर करीमभाई इब्राहीम आदि मंडली उपस्थित थी। प्रथम ही शेठ माणिकचंदजीने कहा “बम्बई में हिंदू व जैन यात्रियों के अधिक आनेके कारण उनको ठहरनेकी बहुत तकलीफ होती थी उसको दूर करनेके लिये ऐसी धर्मशाला बांधनेकी इच्छा हमारे बड़े भाई पानाचंहको थी पर खेद है उनके सामने हम तय्यार न कर सके । अब इस इमारतको मगसर सुदी १ सं० १९६१ में शुरू करके मगसर सुदी १३ सं० १९६२ के दिन हम इसे पूर्ण कर सके हैं। इसके खोलनेके लिये हम सर हरकिशनदास नरोत्तमदास नाइट से प्रार्थना करते हैं । " तब अध्यक्ष सर हरकिशनदासने कहा कि “ इस धर्मशालाके बनानेवाले बहुत ही गरीब स्थितिके थे पर पूर्ण परिश्रमसे संपत्ति मिलाकर यही कार्य नहीं इसके पहले अनेक कार्य किये हैं। यह धर्मशाला सर्व हिंदुओंके लाभके लिये बंधवाई गई है इससे इनकी उदारता व सर्व जन हितपना अच्छी तरह झलक रहा है।" इत्यादि कहकर धर्मशालाके दीवानखानेका ताला खोला ! सभा सानन्द समाप्त हुई। सेठ माणिकचंदनीका हरएक काम पक्का होता है। आपने ता० १०-६-०७ को इसका ट्रष्ट डीड रजिष्टर करा दिया और जो हीराचंद गुमानजी बोके टूष्टी हैं वे ही इसके नियत किये तथा इसकी एक प्रबन्धकारिणी कमिटी भी रच दी। इसके ट्रष्टमें For Personal & Private Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियम है कि जो भाड़ेकी आमदनी हो वीमा वगैरह का खर्च निकालकर जो बचे करना SECON महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४१५ उसमेंसे टैक्स, चालू रिपेरउसका इस तरह भाग ३०) रिज़र्व फंडमें ( काम पड़ने पर खर्च हो ) ४०) औषधालय में । १०) बम्बई प्रान्तिक सभा के प्रबंध खाते में ( जब तक ऑफिस बम्बई में रहे । ) २०) दिगम्बर जैन गरीब लोगों की मदद में | १.००) इसके खास नियम हैं कि यहां मट्टीका तेल न जलाया जावे, कांच के ग्लास में खोपड़ेका तेल जले | जुआ रमना, मांसभक्षण, मदिरापान, व्यभिचार, जीवहिंसा, नाच तमाशा आदि नहीं हो सकेगा । एक सुपरिन्टेन्डेन्ट नियत है उसके पाससे बर्तन, गद्दे, कुर्सी, टेवुल सब मिलता है । सन् १९१२ २५९७ ८२९ ७५७५ दिगम्बर जैन श्वेताम्बर जैन हिन्दू सन् १९१४ ३९३७ ८७३ ४९६२ ११००१ ९७७२ दवाखाना भी शुरू से है । सन् १९१२ में २२७२६ बीमारोकी हाज़री थी, जिनमें नये बीमार ५९८ ६ . इस प्रकार थे ( शेष १७७४० पुराने थे । ) For Personal & Private Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दशवां । दिगम्बर जैन श्वेतांबर जैन ब्राह्मण बनिये परचूरण हिन्दू १०४४ ४७० १५२१ २२६० कुल ५९८६ सन् १९१४ में २९५४९ की हाजरी थी जिनमें नये बीमार ६२७२ इस प्रकार थे दिगंबरी जैन १०७० श्वेतांबरी जैन ६२१ ब्राह्मण ११०८ बनिये .. परचूरण हिन्दू २७८३ कुल ६२७२ दवाखानमें शोलापुर औषधालयमें पढ़ा हुआ दि० जैन वैद्य भरमण्णा बम्मण्णा उपाध्याय हैं, जो बहुत ही योग्य हैं। दवा करने में नामांकित हो गया है। लेक्चर हाल में सन् १९१२ में ८५ व १९१४ में । १३० भाषण हुए । आफिस रूपमें हीराबाग धर्मशालाकी आफिसके सिवाय भा०दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी व बम्बई प्रान्तिक सभा व जैनमित्रके आफिसोंको भी उदारतासे स्थान दिया गया । ट्रष्टकी नकल पीछे दी हुई है। For Personal & Private Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीराबाग धर्मशाला, मुंबाई. हीराबाग धर्मशाला बम्बई. (देखो पृष्ठ ४१२) J. V. P. Surato For Personal & Private Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग। [४१७ इस धर्मशालाके न होनेके पहले दिगम्बर जैन यात्रियोंको महान कष्ट होता था, न तो उन्हें हिन्दू लोग जगहकी कमीसे ठहरने देते न श्वेताम्बर लोग ठहरने देते थे। विचारोंको गलियों में मारे मारे फिरना पड़ता था, पर इस धर्मशालाके होनेसे दिगम्बर जैन यात्रि योंके ठहरनेका कष्ट बिलकुल दूर हो गया। हरएक परदेशी जैनी गाड़ी द्वारा व पैदल सीधा धर्मशालामें आकर ठहर जाता है और सब तरहसे आराम पाता है। श्रीमती मगनबाईजीने लखनऊ में श्री पार्वतीबाईनीको प्रेरित . किया था कि वे प्रति चौदसको स्त्रियोंको मगनबाईजीके उपदे- उपदेश किया करें । तदनुसार बाईजीने एक शका असर । श्राविका तत्तवोधिनी सभा स्थापित की और प्रति चौदसको स्त्रियोंको उपदेश देने लगीं। वास्तवमें सच्चे मनसे दिया हुआ उपदेश अवश्य लाभकारी व असरकारक होता है। सन् १९०५के बड़े दिनोंमें सहारनपुर जैन समुदायके संवयसे प्रफुल्लित हो गया। ता० २४ दिसम्बरको सहारनपुरमें महासभा रथोत्सव हुआ, जिसमें वैष्णव भाई भी और सेठजी सभापति श्रीजीकी भेट · चढ़ाते थे व न्यामतसिंहके भजन जैनधर्मकी प्रभावना करनेवाले बड़े ही चित्ताकर्षक हुए थे। ता० २५ दिस० को ७। बजे सबेरे स्टेशनपर २५० से अधिक प्रतिष्ठित पुरुष महासभाके होनेवाले सभापति बम्बईनिवासी सेठ माणिकचंद हीराचंद जौहरी के स्वागतार्थ एकत्रित हुए । आप सकुटुम्ब श्रीमती मगनबाई व सेठ २७ For Personal & Private Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ ] अध्याय दसवां । हीराचन्द नेमचंद, सेठ माणिकचंद मोतीचंद आलंद और मि० लट्टे एम. ए. सहित ठीक समयपर गाड़ीसे उतरे । उसी समय स्वागतार्थ निम्न लिखित ऐड्रेस पढ़के सुनाया गया नकल स्वागतपत्र । श्रीमान् सद्धर्मप्रचारक, सत्तीर्थसमुद्धारक, जातिहितसाधक, जिनवा लकधर्मधारकानेकछात्रागारकारक, विद्योन्नतिप्रिय, दानवीर मुम्बानगर निवासि श्रेष्ठिवर्य माणकचन्दजी साहब सभापति भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महा सभाकी सेवामें भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाकी ओरसे स्वागत विषयक अभिनन्दनपत्र । ( पद्धरि छन्द । ) श्री मण्डित निर्मलगुण विशाल । शुभ आनन शशि सोहे रसाल ॥ निज अखिल अंशुसे हम अताप | कर दूर प्रगट कीनो प्रताप ॥१॥ पद कमल धरत भू भइ पवित्र । मानों बहु शोभा लइ विचित्र ।। हम जैनिनके वड़ भाग्य आज । श्रीमान पधारे गुण समाज ॥२॥ मुख चन्द्र बिलोकत हृदय दुःख । विनशौ, शुभ पायो बहुत सुक्ख ।। विद्यावर्द्धक वृष जैनपाल । आओ स्वागत बर करें हाल ॥३॥ गणजैन करें वाणि विकाश । ताकर जिन वृषको हो प्रकाश ॥ जय जय जय हो श्रीमान धीर । व्यापि चहुं दिशि कीरति गंभीर ||४|| हैं जैन जातिमें दानवीर । वृषयाचक जनकी हरें पीर ॥ आपहिंसे भई इह जाति आज । शोभित, इससे ये सरे काज ॥५॥ विद्या विन वृष दुःखित निहार । श्रीमान भये अतिही उदार ॥ जहँ तहँ विद्याके धाम खोल । परचारी जिनवाणी अमोल ॥६॥ श्री तीर्थराजके अप्रबन्ध । सब दूर किये कर सुप्रबन्ध ॥ यह आपहिको अखिल प्रसाद । सुख दियो जैनिनको अगाध ॥७॥ For Personal & Private Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४१९ महती जातिसेवा प्रथम भाग | चिरकाल रहो जय आप नाम । सब जैनिनको बहु मोद धाम ॥ ये ही विनती जिनराज सूर | हम करें चरण में आश पूर ॥ ८॥ सोरठा । परम शर्म दातार । जैनधर्म जयवन्त हो || मिथ्या मतको टार । सम्यग्प्रगट करो सदा ||९|| इति शुभम् । फिर हाथीपर विराजमान करके गाजे बाजे सहित नगर में घूमते हुए बंगले पर आ उपस्थित हुए । इस दिन २ बजे से जैन यंग मेन्स एसोसियेशनका अधिवेशन हुआ । शेठजी सभापति हुए । गत वर्ष स्वीकार किये हुए तमगे बाँटे गए व आगामीके लिये अनुमान ५० के नवीन प्रण हुए, जैसे एक ५० ) का तमगा उसे मिले जो २०० आदमियोंसे मदिरापान छुड़ावे, व ५०) नकद और १० ) का तमगा मि० जैन वैद्य जैपुर उसे देवें जो १००० आदमियों से मांसत्याग करावे | रायसाहब फूलचंद इंजिनियर लखनऊने १००) मासिक उसे देना स्वीकार किया जो ३ वर्ष तक जापान में शिल्प विद्या सीखे । बाबू माणिकचंद खंडवाने बी. ए. पास होनेपर जानेकी इच्छा प्रगट की । इसपर राय फूलचन्दजीको “ जैनभूषण " का पद दिया गया था। जहां तक मालूम है अभी तक कोई भी जापान नहीं भेजा गया है । रायसाहबको अपना बचन पूरा करना चाहिये । ता. २६ को फिर एसो० का जल्सा था। मंडप सभा के लिये अलग बना था, स्त्री पुरुषोंसे छा रहा था । स्त्रियोंके बीच में खड़े हो श्रीमती मगनबाईजीने स्त्रीशिक्षापर १ घंटा बहुत ही असरकारक भाषण दिया, जिसपर पं० अर्जुनलाल सेठी बी. ए. को महासभा की ओर से For Personal & Private Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० ] अध्याय दशवां । ५०) का सुवर्ण पदक दिये जानेका हर्ष प्रगट किया । अध्यापिकाओंकी तय्यारीके लिये ४०) मासिक व १४०) नकदका फंड हो गया । सेठ हीराचंद नेमचंदने जेलमें जैनियोंका खाता जुदा रहे ऐसी प्रार्थना सर्कारसे किये जानेका प्रस्ताव किया। बादशाह एडवर्डको धन्यवादके बाद राजकुमार प्रिन्स आफ वेल्स, जो भारतकी सेर कर रहे थे उनको वधाईका तार लखनऊ दिया गया। ता० २७ दिसम्बरको पहले प्रोफेसर जियाराम एम० ए० के सभापतित्वमें अनाथालय हिसारने अपील करके ३०००) का चंदा एकत्र किया, फिर महासभा का कार्य हुआ। सभापति सेठजीने अपना हिन्दीमें व्याख्यान खूब समझाके सुनाया। इसमें तीर्थक्षेत्र कमेटीसे शिखरजी आदि तीर्थों का कैसा सुधारा हुआ है व आगामी होगा इसके लाभ बताए, महाविद्यालयके लिये जैपुर स्थान ठीक बताया और कहा कि यहां पंडित टोडरमल, जयचंद आदि बड़े विद्वान् परोपकारी हो गये हैं तथा आन पं० अर्जुनलाल सेठी पी० ए० हैं, जिन्होंने २००) मासिककी आमद छोड़कर महाविद्यालयकी सेवामें अपना जीवन समर्पण कर दिया है। एकताको रखने और धर्मप्रचार निमित्त रुपयोंका बृहत् कोप करनेकी प्रेरणा भी की। महामंत्री डिप्टी चम्पतरायने दशम वर्षकी रिपोर्ट व हिसाब सुनाया । मुंशी बाबूलाल एम० ए० एल एल० बी० मुरादाबादने डेपुटेशन पार्टी की रिपोर्ट पढ़ी । दिगम्बर जैन सभा भावनगर और बाबू देवकुमार आराके सहानुभूति सूचक तार पड़े गए । ता० २८ की बैठकमें प्रस्ताव हुए। जैन कालेनके लिये १०००) नगद व ३०००) से अधिक वादे हुए। ता० For Personal & Private Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४२१ २९ की बैठक में जैन कालेज के लिये हज़ारोंका चंदा हो गया । इस सबका जोड़ ३०७५३) * का है। सबसे बड़ी रकम हैं१००००) लाला खूबचंद रईस मेरठवाले हाल सहारनपुर । ५०००) चौधरी खूबचंदनी २०००) बद्रीदास पार्श्वदास १०००) लाला रूपचंद रईस 19 For Personal & Private Use Only "" १०००) सेठ द्वारकादास रईस, मथुरा । १०००) सेठ माणिकचंद पानाचंद जौहरी, बम्बई । १०००) बाबू अजितप्रसाद खजांची, देहरादून । यह चंद्रा महासभा के कार्यकर्ताओं में फूट होने के कारण सिवाय एक दो रकमोंके अबतक ( सन् १९१६ तक ) बसूल नहीं हुआ है । वर्तमान महासभा कार्याध्यक्षोंको उचित है कि इसे बसूल कराके दातारोंको पाप बंधसे मुक्त करें, क्योंकि स्वीकार की हुई रकम न देना महा पाप है । 1 रात्रिको स्त्रीसभा में मगनबाईजीने रत्नकरंड श्रावकाचार बांचा | सेठ हीराचंद नेमचंदका धर्मकी उत्तमत्तापर विद्वतापूर्ण भाषण हुआ । हकीम कल्याणराय उपदेशकको महासभा की ओरसे सुवर्णपदक दिया गया। महासभा में प्रस्ताव नं० ६ महाविद्यालयको मथुरासे सहारनपुर लानेका हुआ । N. W. रेलवेका किराया घट जानेसे २००० मनुष्यों की भीड़ हो गई थी। इस मौकेपर सेट माणिकचंद को बहुतसे नवयुवकोंसे परिचय हुआ । * यह सूची जैनगज़ट अंक २३ ता० १६ जून १९०६ में मुद्रित है "9 Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२] अध्याय दशवां। बाबू शीतलप्रसाद जो थोड़े ही दिन पहले सेठ माणिकचंद जीसे काशीमें या उज्जैनमें मिले थे, इस बाबू शीतलप्रसादको अवसरपर भी आए थे और महासभा आदिके सेठ माणिकचन्दसे कामों में बहुत ही खटपट दौड़धूप करते दिख'विशेष परिचय । लाई पड़े थे । सेठ माणिकचन्दजी सभापति थे, उनके पास प्रस्तावादिकोंके विचारने व मंडपमें बुलानेके लिये कई दफे जाना हुआ तब सेठजीसे कई दफे बातचीत हुई । आपने शीतलप्रसादनीका सर्व हाल मालूम किया । यह भी जाना कि यह स्त्रीके देहान्त हो जानेके बादसे उदासचित्त हैं। दफ्तरमें भी ता० १९ आगस्त १९०५ को स्तीफा दे दिया है तथा इच्छा धर्म व जातिकी सेवा करनेकी है। तर आपने कहा कि मैं भी अपना सब समय इसी समाजसुधारकी स्वटयटमें बिताता हूं और यह चाहता हूं कि आप ऐसे धर्मबुद्धि व परिश्रमीका समागम रहे तो मेरेसे बहुत कुछ काम हो सके, सो आप बम्बई आवें, वहीं इच्छानुसार कुछ धन्धा करें व हमें मदद देवें । शीतलप्रसादजीके चित्तमें सेठ माणिकचन्दनीका सरलचित्त, धर्मप्रेम, जातिसुधारका परिश्रम व धर्मात्माओंसे हार्दिक प्रेम आदि मुणोंने ऐसा असर किया कि उन्होंने निश्चय कर लिया कि हम लखनऊ होकर तुर्त ही बम्बई आवेंगे और आपके साथ रह धर्म व समाजकी सेवा करेंगे। शीतलप्रसादनी लखनऊ आए। अपने दो बड़े भाइयोंसे कहा कि हम बम्बई जाना चाहते हैं । इस बातको सुनकर जवाहरातका काम करनेवाले अनन्तलालजीको बहुत दुःख हुआ, क्योंकि विलायतसे जवाहरातके व्यापारके काममें व्यापारियोंके For Personal & Private Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४२३ साथ पत्रव्यवहार करनेका काम सब यही करते थे और जो माल वहां बिकता था उसपर १) सैकड़ा कमीशन लेते थे। जब शीतलप्रसादने जानेका हठ नहीं छोड़ा तब अनन्तलालने कहा कि हमारे कामका कोई प्रबन्ध कर जाओ, तब अपने मित्र पुत्तनलाल अग्रवालको नियत करके शीतलप्रसादनी अपनी आवश्यक पुस्तकोंको लेकर बम्बई आए । जिस दिन सहारनपुरसे घूमते हुए माणिकचंद बम्बई पहुंचे उसी दिन यह भी पहुंचे । सेठजीको इन्हें देखकर बड़ा भारी हर्ष हुआ। सेठजीने अपने चौपाटीके बंगलेपर ही बड़े सन्मानके साथ खखा, तबसे यह वहीं मित्रके समान रहने लगे। अनन्तलालजीसे कभी २ माल मंगाकर व बाजारका माल लेकर यह घंटा दो घन्टा दलालीमें घूम लेते थे, शेष समय सेठजीके साथ विताते, उन्हीं के साथ रे भोजन करके दोपहरको गाड़ी पर दुकान आना, यहां धर्म सम्बन्धी पत्रव्यवहार करना और शामको व्यालके समय बंगलेपर आना, बाद सामायिक करके शास्त्र स्वाध्याय व सेठजीसे वार्तालाप करना । सेठ माणिकचंदजी अपने धर्ममित्रकी तरह बर्ताव करते थे, किसी प्रकारके सन्मानमें कभी नहीं करते थे। बम्बई पहुंचते ही सेठनीको दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभाके वा र्षिक अधिवेशन स्तवनिधिपर जानेकी फिक्र स्तवनिधिपर सेठ- पड़ गई। यह अधिवेशन पौष सुदी १४ जीका गमन ता० ९ जनवरी १९०६ से माह वदी १ ता० ११ जनवरी तक होनेवाला था । सेठ माणिकचंदजी अपनी सुपुत्री मगनबाई सहित तथा बाबू शीतलप्रसाद और सेठ लल्लूभाई लक्ष्मीचंद चौकसीके साथ कोल्हापुर For Personal & Private Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ ] अध्याय दशवां । पधारे। उसी दिन स्टेशनपर मैसूरके श्रीमान् अनंतराज सेठ मोतीखनी म्यूनिसिपल कमिश्नर अपने भतीजे वर्द्धमानैया सहित पधारे । आपका स्वागत सेठ माणिकचंदनी आदिने बड़े हावभाव व गाजे बाजेके साथ किया। स्तवनिधि क्षेत्र कोल्हापुर शहरसे २८ मील है। यह स्थान छोटी२ पहाड़ी व टीलोंसे तीन ओर घिरा स्तवनिधि क्षेत्रका हुआ है। इस क्षेत्रका असल नाम तपोहाल। निधि है, क्योंकि यहां जैन मुनि आकर तप किया करते थे । इस पहाड़ीपर एक १० फुट लम्बी ३ फुट चौड़ी गुफा है, जिसमें श्री वईमानस्वामी मुनि बैठकर ध्यान करते थे, उनका इससे ३ वर्ष पहले देहान्त हो गया था। एक बड़ा मंदिरका घेरा है जिसमें ५ छोटे२ जिन मंदिर हैं। प्रथम मंदिरमें श्री पार्श्वनाथजीकी खड़गासन १ गन ऊंची प्रतिबिम्ब अति वीतराग स्वरूप है । इसीमें १ क्षेत्रपालका मंदिर है । इसकी मान्यता बहुत होती है तथा पहाड़पर भी एक क्षेत्रपालका मंदिर है जिसे ब्रह्मदेवका मंदिर कहते हैं। ता. ९ जनवरीको सभाकी प्रथम बैठक हुई। ३००० स्त्रीपुरुष एकत्र थे । सभापति अनंतराजय्याने आसन ग्रहण किया, पास ही सेठ माणिकचंदजी विराजे । वार्षिक रिपोर्ट मंजूर होते ही लोगोंने रुपया जमा कराना शुरू किया । रात्रिको तात्या केशव चौपड़े मिलौरी जिला सांगलीनिवासीने भजन व कीर्तनके साथ अच्छा उपदेश दिया व श्रीपालचरित्रका वर्णन किया। दूसरे दिन फिर सभा हुई। सभापतिने कनड़ी भाषामें For Personal & Private Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४२५ अपना व्याख्यान पढ़ा जिसमें कोल्हापुर बोर्डिंग और सेठ माणिकचंदनीकी बहुत प्रशंसा की। फिर प्रस्ताव हुए कि सभाकी रजिष्टरी की जाय, जिसका काम सेठ माणिकचंदजीके सुपुर्द हुआ। युवराज प्रिन्स और प्रिन्सेस ऑफ वेल्सको भारतवर्ष में पधारनेकी बधाईका, महाराज कोल्हापुर और सेठ माणिकचंदको कोल्हापुर बोर्डिंगकी सहायतार्थ धन्यवादका भी प्रस्ताव हुआ । शिक्षणफंड एकत्र करनेके लिये डेपुटेशन पार्टीका प्रस्ताव हुआ, जिसका समर्थन शीतलप्रसादनीने किया । पार्टीमें १० महाशयोंने एक या आधा मास भ्रमण करनेकी स्वीकारता दी। इनमें मुख्य सेठ माणिकचंदजी सबसे पहले तय्यार हुए । रात्रिको फिर सभा हुई, उसमें रावसाहब अंकलेने बम्बई यूनिवर्सिटीमें जैन ग्रंथ भरती होनेका प्रस्ताव करते हुए कहा कि मदरास यूनिवर्सिटीमें कनारी भाषामें मल्लिनाथपुराण और पम्प रामायण ये दो जैन ग्रंथ पढ़ाए जाते हैं । जैन जातिमें सत्य उपदेशका प्रचार त्यागी जन करें। इस प्रस्तावको त्यागी पार्श्वनाथस्वामीने पेश किया, जो पहले कनरीके माष्टर थे और १ वर्षसे घर त्यागा था । आपने अपने भ्रमणकी रिपोर्ट बताई कि ४० गांवोंमें दौरा किया जिनमें ३४ मंदिर, ६ धर्मशालाएं, ८७२ पंचम, ३६९ चतुर्थ और ५५ कासार जातिके घर हैं । कुल २१६३ श्रोताओंमेंसे रने पूर्ण ब्रह्मचर्य, १७ने परस्त्री-त्याग, १६ ने रात्रिभोजन-त्याग, २१ ने दशेन व ८४ ने और व्रत लिये । वास्तवमें त्यागियोंका यही कर्तव्य है कि जहाँ नावे सदाचार व धर्मवृद्धि युक्त नियम हर्ष पूर्वक उपदेश देकर करावें । आठवां प्रस्ताव सेठ माणिकचंदजीने पेश किया कि For Personal & Private Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ ] अध्याय दशवाँ व्यापारादिमें जो धर्मादाका पैसा लिया जाता है उसको धर्ममार्गमें लगाया जाय तथा उसमेंसे ।) द० म० जैन सभाको व ॥) पांजरापोल व अन्य उपयोगी कामों में लगाया जावे। आपने एक अच्छा असरकारक भाषण मराठी भाषामें दिया, जिसमें कहा कि"परिणामोंकी विचित्र गति है जिस समय दान करना चाहे उसी समय दानके पैसेको अलग कर देना चाहिये । सभामें चंदा लिखकर देने में ढील नहीं करनी चाहिये। भाइयों ! हमको सभामें विश्वास रखना चाहिये और सभा भी आपहीका विश्वास रखती है। यदि विश्वास रखकर काम न किया जाय तो जगतमें कोई काम नहीं हो सक्ता; और तो क्या वह अन्न जिससे हम पेट भरते हैं कदापि पैदा नहीं हो सकता । किसान लोग पृथ्वीके विश्वासपर सैकड़ों रुपयेका धान्य पृथ्वीमें देते हैं तब ही उसके कारण उससे घनाधान्य पैदा करते हैं। अतः हमें विश्वास रखकर परस्पर सहायता करना योग्य है और धादेके रुपयेसे कृष्ण सर्पके समान भय करना योग्य है "। इस प्रस्तावके होनेपर निपाणी, ओठे, हलकरणी, वेड, कलमके पंचोंने अपने यहांके धर्मादेका रुपया समानके फंडोंमें देना स्वीकार किया । वास्तवमें जहां धनाढय दातार दान करानेका प्रस्ताव करता है वहां उसका असर अवश्य होता है । ९ वां प्रस्ताव पशुओंपर दयाका तथा १० वां स्वदेशी वस्तु प्रचारका हुआ । इस पर शीतलप्रसादजीने भी समर्थन करते हुए कहा कि स्वदेश प्रेम हमको बाधित करता है कि हम देशी वस्तुओंकी उत्पत्तिको बढ़ावें तथा आप कष्ट सहकर भी उनको व्यवहार में लावें । वर्द्धमानैय्या For Personal & Private Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४२७ मैसूरने भी इसका समर्थन किया। ता० ११ को तृतीय सभा हुई। कार्यकर्ता नियत हुए। अध्यक्ष और कोपाध्यक्ष शेठ माणिकचंद हीराचंद जौहरी बम्बई नियत हुए। सभापति अनंतराजैय्याने चांदीके कास्केटमें एक मानपत्र . श्रीमान् शेठ माणिकचंदजीको अर्पित सेठ माणिकचंद जीको किया तथा प्रशंसामें कहा कि " इनके पूज्य मानपत्र । पिता शेठ हीराचंदजी वास्तवमें हीरेके तुल्य अद्भुत गुणधारी थे तथा जिनके पुत्र सेट मोतीचंद मोतीके तुल्य, सेठ पानाचंद पन्नारत्न तुल्य, सेठ माणिकचंद माणिक्य रत्न के समान तथा सेठ नवलचंद नीलरत्नके समान शोभनीय हैं । इनका कुटुम्ब निर्मल रत्नों का भंडार है जिसमें सेट माणिकचंदनीका धर्मकी ओर विशेष राग है तथा इनकी धार्मिक प्रीति सर्व सज्जनोंको राग उपनाती है सो माणिक्य रत्नमें राग होना ही उचित है । इस निर्मल कुटुम्बका निवास भी बम्बईके रत्नाकर पैलेसमें अधिक शोभनीक है।" मानपत्रकी नकल इस भांति हैदक्षिण महाराष्ट्र जैन सभेचें मानपत्र. श्रीमान् दानवीर शेट माणिकचंदजी हिराचंदजी अध्यक्ष, भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा. मु० श्रीक्षेत्र स्तवनिधि यांचे सेवेसी. श्रेष्ठि महाशय ! सहारनपुर येथील महासभेच्या अधिवेशनाचे अध्यक्षस्थान For Personal & Private Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ ] अध्याय दशवां । सुशोभित करून व अखिल भारतीय जैन मंडळाचे धन्यवाद संपादन करून आपण येथे आला आहां. अशा प्रसंगी आपले अपूर्व औदार्य, अप्रतिम समाप्रम, अढळ धर्मतत्परता इत्यादि सद्गुण पाहून आह्मां दाक्षिणात्य जैनसंघांत जो हर्षोद्रेक होत आहे त्याला आपल्यापुढे आमी थोडी वाट करून देत आहों याबद्दल क्षमा करावी अशी विनंती आहे. जैन समाजांत आपले स्थान अनभिषिक्त राजाचेच आहे असे म्हणण्यास आझांस बिलकुल शंका नाही. आपल्या समाजाविषयीं उण्कंठ प्रीति आपल्या अंतःकरणांत प्रज्वलित आहे; व या प्रीतीला दृश्य फल कोणत्या उपायांनी मिळेल हे ठरविण्यास आपले मन रात्रंदिवस उद्युक्त असते, आपले विचार प्राचीन आचार्यप्रणीत शास्त्राविषयीं अचल भक्तीने युक्त असल्यामुळे जैन शासनाच्या सनातन तत्वांचे पुनरुज्जीवन करण्यास आपण तत्पर आहां. तसेच परिस्थितीच्या भेदामुळे ज्या नवीन सुधारणांची समानास अवश्यकता आहे त्याहि आपण पूर्णपणे जाणत आहां. आणि या सर्व ज्ञानास कृतीत उतरविण्यास ज्या साधनांची अवश्यकता असते ती आपल्यास पूर्णत्वाने लाभली आहेत. तात्पर्य कुशाग्र बुद्धी, सदय अंतःकरण, उदार वासना, यथेच्छ संपत्ती, अखंड कीर्ति इत्यादि सद्गुणामुळे व सामग्रीमुळे आज आमच्या समाजांत आपण उच्चतम पदावर स्वभावतःच विराजमान झाला आहां. आपण समाजहितासाठी आजवर सहासात लक्ष रुपये खर्चिले आहेत. आणि ते अशा प्रकारे खर्चिले आहेत की त्यांचा उपयोग चिरकाल सर्व समाजास उत्तमप्रकारे होत राहील. यामुळे आपले For Personal & Private Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४२९ औदार्य व चातुर्य यांचे मिश्रण 'सोने व सुगंध' यांच्या मिश्रणाप्रमाणे झाले आहे. याबद्दल आपणा प्रमाणेच आपले उदार बंधु श्री० शेठ पानाचंद, शेठ नवलचंद वगैरेहि आह्मां सर्वांस पूज्य झाले आहेत. आपली स्तुती कोणतेहि शब्द योजिले तरी जास्त होणार नाही. करितां थोडक्यांत आह्मी जिनेश्वरांच्या चरणाजवळ एवढीच प्रार्थना करितों की आपणांस, आपल्या बंधुवर्गाम व कुटुंबीयांस अशाच प्रकारे समाजसेवा करण्यास उदंड आयुप्य, आरोग्य आणि वैभव प्राप्त होवो. आपला-- श्री स्तवनिधि | अनंतराज शेट्टी मोतीखनी। पौप्य १५ शके १८२७ अध्यक्ष दक्षिण महाराष्ट्र जैन समा। इस मानपत्रको स्वीकार करते हुए सेठ माणिकचंदजीने कहा कि "मैंने व मेरे कुटुम्बने जो कुछ भी धर्म कार्य किया है वह कुछ आश्चर्यजनक नहीं, केवल अपनी शक्ति अनुसार अपना किंचित कर्तव्य पालन किया है । जैन जातिके सर्व धनाढ्यों का यही कर्तव्य है कि इस जैन जातिमें विद्याकी कमी है उसको मिटाने के लिये अपने तन मन धनसे चेष्टा करें। वास्तवमें यह सेठजीके वाक्य बड़े ही अमूल्य हैं। हरएक धनवानको हृदयमें धरकर सेठजीके समान उदार होना चाहिये। रात्रिको स्त्रियोंकी १ बड़ी सभा हुई । २५०० की संख्या थी। श्रीमती मगनबाईने अध्यक्षस्थान ग्रहण किया था। इसमें ८ बाइयोंने थोड़ा २ भाषण दिया। डाक्टरनी कृष्णाबाईने का पहिया For Personal & Private Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० ] अध्याय दशवां। १ घंटा शिक्षाकी जरूरत पर खूब विवेचन किया, फिर अध्यक्षाके भाषणसे सारी सभा प्रसन्न हो गई । वार्षिक छात्रवृत्ति व १५०) का चंदा हुआ। सेठ माणिकचंदजीको मंदिरकी भी अच्छी भक्ति थी। , आपने स्तवनिधिके सर्व मंदिरोंमें संगमर्मर स्तवनिधि क्षेत्रमें जड़ानेका काम शुरू करा दिया जिससे संगमर्मरका जड़ाव । स्वच्छता व शोभा दोनों रहें । कोल्हापुरसे आकर सेठ माणिकचंदनीने समाचारपत्रमें यह पढ़कर बहुत हर्ष प्रगट किया कि श्वेतांबर सेठ माणिकचंदको जैनी बाबू पन्नालाल जो मरते समय हर्ष । ८ लाख रुपया निकाल गए थे उसमें ___ एक बड़ा मकान बनकर १ जैन हाईस्कूल और दवाखाना ता० ९ जनवरी १९०६ को बम्बई गवर्नर लार्ड लैमिङ्गटन के हाथसे खोला गया। खोलते समय लार्ड महो. दयने कहा " जैनियोंका इतिहास घना जानने योग्य है । इनका धर्म जीवदयाके सिद्धांतको पालनेवाला है। मैं जैन जातिका बहुत सन्मान रखता हूं । ये लोग उद्योगी तथा उदार दिलके होते हैं । बच्चोंको मानसिक शिक्षाके साथ २ धर्मशिक्षा अवश्य देनी योग्य है, क्योंकि धर्मशिक्षा ही से यह लोक तथा परलोक दोनों सुधरते हैं। उस समय पन्नालालजीके सुपुत्रोंने ३५५००) हाई स्कूलके फंडमें दिये। For Personal & Private Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४३१ हीराबाग धर्मशालाको चालू हुए १॥ मास भी नहीं बीता था कि इसमें श्री गिरनारजीकी यात्रा करके हीराबाग धर्मशालाका आनेवाले तीन बड़े संघ आए । सबसे मुख्य उपयोग, पानीपतका संघ ६५० भाई बहनोंका इच्छाराम कम्पसंघ और बंबईमें नीवाले लाला बद्रीदास रईस पानी रथोत्सव । पतके साथ था। संघके साथ. श्री मंदिरजी व कई विद्वान शास्त्री पंडित व कवि मुंशी मंगतरायजी थे । बद्रीदासजीके भाई दरबारीलालजी व पुत्र लक्ष्मीचंदनी सुमेरचंदनी संघकी बैय्यावृतमें लीन थे। दूसरा संघ २०० की संख्याका श्रीमन्त सेठ पूरणसाह सिवनी छपराके साथमें और तीसरा १५७ की संख्याका दिहलीसे लाला मोतीलाल जौहरी और जौहरीमल खजांचीके साथ आया था । हीराबागने सबको स्थान दान कर दिया था। ता० १९ जनवरीको श्रीमती मगनबाईने हीराबागके लेक्चर हॉलमें शिक्षाकी उत्तेजनापर स्त्रियोंको भाषण देकर धार्मिक प्रतिज्ञाएं कराई थी। पानीपत बालोंके भाव बम्बई में रथोत्सव करनेके हुए । इस समय राजा दीनदयाल फोटोग्राफरके पुत्र राजा ज्ञानचंदजी बम्बईमें थे । आपके व सेठ माणिकचंदजीके उद्यमसे ता० २१ जनवरीको शोलापुरके मनोज्ञ चित्रित रथमें श्रीजीकी सवारी गाजे बाजे और जुलूसके साथ मुख्य २ बाजारों में होती हुई फिर लौटकर हीराबागमें आई । कालबादेवी रोडपर बाजा बजनेकी मनाई थी, पर इस समय वहां भी बाजा बजता गया था। जैनी स्त्रीपुरुष २०००के साथ थे । दर्शकोंकी भीड़का पार न था । बिना किसी For Personal & Private Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ ] अध्यायं दशवां । द्वेषके सर्व कौमें भगवत्के दर्शनसे आनन्दित होती थीं। ता. १६ जनवरीको सेठ माणिकचंदने सर्व मुख्य भाइयों को लेजाकर सेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिगका निरीक्षण कराया तथा वहाँ बोर्डिंगकी ओरसे एक सभा हुई। सभापति लाला बद्रीदास पानीपत हुए। पंडित मंगतराय व चोखेलाल खजांचीने बोर्डिंग देखकर हर्ष प्रगट किया। सभापतिने १०) दस दस रुपये मासिककी एक संस्कृत व १ इंग्रेजी विभागमें ऐसी दो छात्रवृतिए १ वर्षको दी । बाबू शीतलप्रसादनीको स्त्रीशिक्षा प्रचारकी बहुत रुचि थी। यह जैनगनटमें इसकी उत्तेजनाके बरास्त्रीशिक्षाके लिये अ- बर लेख दिया करते थे। इनको विश्वास ध्यापिकाओंका था कि विना स्त्रीशिक्षाके प्रचारके समान प्रबन्ध। कभी सुधर नहीं सक्ता । लखनऊ में इन्होंने श्रीमती पार्वतीबाईको कुछ विद्याका सहारा देकर स्त्रीशिक्षाके प्रचार में उत्तेजित किया था। फिर जबसे मगनबाईजीका समागम हुआ इनको बारबार लेख लिखने, उनको शुद्ध करने, व्याख्यान देने व स्त्रीशिक्षा-प्रचार में तन मन धन लगानेकी प्रेरणा की तथा तात्त्विक दृष्टिके लिये श्री अर्थप्रकाशिकाजीका स्वाध्याय कराया। नित्य बंगलेपर रहते हुए शीतलप्रसादनीका मगनबाईजीको यही उपदेश होता था कि अध्यापिकाएं जबतक तयार न होंगी तबतक कन्याशालाएं खुल नहीं सक्तीं। इससे बम्बई में एक आश्रम खोला जाय उसमें विधवा व श्राविकाओंको रखकर सिखाया जाय । मगनबाईजीको यह बात पसंद आगई थी, पर जब For Personal & Private Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सेवा प्रथम भाग । [४३३ सेठ माणिकचंदनीसे मगनबाई वर्णन करती तब सेठजीके ध्यानमें यह बात यकायक नहीं आती थी। एक दिन सबेरे जब मंदिरजीसे स्वाध्याय करके सेठनी दीवानखाने में बैठे थे तब शीतलप्रसादजीने मगनबाईजीके सामने सेठजीको घन्टाभर खूब समझाके कहा कि आप यदि जैन जातिका उद्धार करना चाहते हों तो जबतक माताएं धर्मात्मा व सुआचरणी नहीं होंगी, समाजका उद्धार नहीं हो सक्ता; क्योंकि जबतक माताएं अच्छी न होंगी पुत्र योग्य नहीं पैदा हो सक्ते । स्त्रीशिक्षाके लिये अध्यापिकाएं तय्यार करनेका प्रयत्न करेना चाहिये । सेठजीने कहा कि बाहरसे कोई आनेवाली नहीं हैं। तब बहुत जोर देकर शीतलप्रसादजीने कहा कि आप इसका उद्यन तो करें । तब सेठजीने अपने एक मकानमें २, ४ कोठरियां खाली कर दी और मगनबाईनीको आज्ञा दी कि पढ़नेवालियोंको बुलाओ फिर और प्रबन्ध हो । तब मगनबाईजीने ता. १६ फर्वरी १९०६ के जैनगजटमें यह नोटिस प्रसिद्ध किया कि बम्बईमें श्राविकाश्रम खोलनेका प्रबन्ध हुआ है, फार्म मंगाकर श्राविकाएं भर कर भेजें तथा स्वीकारतापर यहाँ आ । यहां उनके भोजनपान आदि व शिक्षाका कुल प्रबन्ध किया गया है। यह नोटिस वर्तमानमें चलने वाले श्राविकाश्रमका बीज भूत है। मगनबाईजीको यह भी प्रेरणा की गई कि वह पढ़ी लिखी स्त्रियोंसे पत्रव्यवहार करे कि वे अपने २ बाहरकी पढ़ी लिखी यहां स्त्रीशिक्षाकी उत्तेजनामें उद्योग करें स्त्रियोंसे पत्रव्यवहार । इस पत्रव्यवहारके प्रभावसे श्रीमती गंगादेवी मुरादाबादने मगनबाईजीको फवरी मासमें लिखा कि मैंने मंदिरजीमें ८ से ९ तक स्त्रियोंको २८ For Personal & Private Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ ] अध्याय दशवां । पढ़ाना शुरू किया है, ४ स्त्रियां छह:ढाला पढ़ती हैं तथा अष्टमी चौदसको उपदेशिका सभा की जायगी। ईडरसे जानकीबाई अध्यापिकाने लिखा कि प्रतिमासकी सुदी १४ को 'स्त्री धर्म प्रकाशिनी सभा' नामकी सभा हुआ करेगी तथा रात्रिको ७ से ८ तक श्रीरत्नकरंडश्रावकाचार स्त्रियोंको सुनाना शुरू कर दिया है। त. २५ फर्वरी १९०६ को हीराबागमें कविराज घेलाभाईकी अपूर्व स्मरणशक्तिका परिचय पाने के लिये कपड़े के मनोहर एक सभा हुई थी। उसमें सेठ माणिकचंदनीने जूते । एक विलायती जूतोंका बहुत मुन्दर और मजबूत जोड़ा दिखलाया था जो केवल कपडेका बना था, पर बनावट, रंग, तथा पालिशमें विलायती चमड़ेके जुतेसे किसी बातमें कम नहीं था। विलायतमें वेजीटेरियन सोसायटी है जिसके सभ्य बनस्पति भोनी और मदिरा, मांस, चर्बीसे अत्यन्त परहेज करनेवाले हैं । इसीने सेठजीके पास नमूनेके तौरपर भेजाथा । सेठजीने बतलाया कि लंडनमें ५०-६० क्लब मांस वर्जित भोजनके हैं। प्रत्येकमें ४००-६०० मनुष्य भोजन करते हैं । चमड़ेसे भी हिंमा होती है ऐसा समझकर यह जूता तय्यार कराया गया है। हमारे देशवासी भाइयोंको उचित है कि चमड़ेका व्यवहार कम करें। . श्रीमती मगनबाईजीके पत्रव्यवहारसे प्रेरित हो श्रीमती ___ ललिताबाई अंकलेश्वरने जैनगजट अंक ललिताबाई का कार्य। ११ वर्ष ११ ता० १६ मार्च १९०६ में 'जैन भगनियों प्रति उत्तेनना। ऐसा लेख प्रगट किया तथा सूचना दी कि वह अपने गांवमें ४ स्त्रियों को मा For Personal & Private Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग [४३५ गर्गापदेशिका नामकी संस्कृत व्याकरण पढ़ाती हैं। जबसे सेठजीने बम्बई में हीराबाग धर्मशाला बनवाई इनकी दान-व उदारताकी प्रसिद्धि आम लोगों में सेठ माणिकचंद हीरा- बहुत हुई। सर्कारके यहां जब ऐसे परोपचंदजीको जे. पी. कारी व जाति व देशहितके काम करनेवालोंकी पदवी। की खबर पहुंचती है तब वह प्रतिष्ठा देनेका विचार करती है। यद्यपि बहुतसे आदमी प्रतिष्ठा पानेके लिये सिफारिश कराते हैं अथवा अफसरोंके द्वारा करार कराते हैं कि हम अमुक रकम अमुक ग्वातेमें देंगे हमें पदवी दिला दी जाय । सेठ माणिकचंदनीको न प्रतिष्ठाको इच्छा थी न किसी उपाधिकी, स्वतः ही इनको विलकुल खबर ही नहीं थी। इनके पास सर्कारी पत्र आया जिसकी नकल नीचे हैं कि तुम बम्बई शहरमें जष्टिश ऑफ दी पीस अर्थात् शांतिके न्यायाधीश नियत हुए। इस पदसे नगरमें मजिष्ट्रेटकासा हक हो जाता है। जिस कागजपर यह दस्तखत कर दें उसे फिर और रजिस्ट्रार या मजिष्ट्रेटसे हस्ताक्षर करानेकी ज़रूरत नहीं है। नकल पत्र सर्कारी। Commissioner of the piece for the city of Bombay. This is to certify that Mr. Manekchand Hirachand was by nomination of Government in the Judicial Department no. 1433 dated the 14th March 1906 appointed under the proyssions of section 23 of the Code of Criminal Procidure 1898 to be a Justice of the Peace For Personal & Private Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६] अध्याय दशवां। within the Limits of the City of Bombay during the pleasure of Government. By order of His Excellency the Right Honourable ihe Governor in Council. Judicial Department (Initial) Bombay Castle Chief Secretary 30th March 1906. to Government.. भावार्थपीस कमिश्नर बम्बई शहरसे यह प्रमाणपत्र दिया जाता है कि सालेके मुआजिम न्याय विभागके १४वीं मार्च सन १९०६से नियम १४३३ नंबरके सरक्युलरके मुताबिक मि० माणिकचंद हीराचन्दको १८९८के क्रिमिनल प्रोसीजर कोड कलम २३के मुताबिक गमर्नमेंटकी मर्जीमें आवे वहां तक बम्बई शहरकी सरहदमें जस्टिस आफ दी पीस नियुक्त किये गये ।। राइट आ० गवर्नर इन कौंसिलके हुक्मसे सहीः गवर्नमेंटके चीफ सेक्रेटरी । न्याय विभाग बम्बई केसल ३० मार्च १९०६ बम्बई में संस्कृत विद्यालयके छात्र पंडित लालारामने इस सन्मान अर्पणके समाचार जानकर संस्कृतमें एक कविता बनाकर सेठजीको भेट की सो इस भांति हैं-- ॥श्री॥ श्रुत्वार्पितां भूपवरैरुपाधि माणिक्यचान्द्री नरभूपमान्याम् । नद्योदिशोवारिधराः सुरम्याः दिक्स्थायिनोजनजनाः प्रहृष्टाः ॥१॥ माणिक्यरोचिः स्वयमेव रम्या चन्द्रस्य कान्तिः सुखदा सुशुभ्रा । भास्येव ताभ्यामनिशं ततोऽद्य जैनैर्नृपैर्मान्यतयाधिकस्त्वम् ॥ २॥ 16. For Personal & Private Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । विद्याप्रदानादिबहुप्रकार-रूपमहैश्चोपकृता हि जैनाः । सर्वोपकारं परमद्य वीक्ष्य सम्राडपि त्वां स्मरति प्रहृष्टः ॥ ३ ॥ कीर्तिस्त्वदीया जगति प्रसिद्धा श्रुता न चेत्कर्जनसर्पराजैः । तथापि तां कर्णसुधाप्रदात्री कथं न श्रूयात्समनस्कमिन्टो ॥ ४ ॥ वदान्यशूरोजिनधर्मनेमिः विद्यार्थिवर्गकसहायभूतः । चिरायुषं धर्मपरायणं त्वं धर्मप्रसादेन लभस्व पुत्रम् ॥ ५॥ प्रमुदितो विनीतश्च लालारामछात्रः । फल्टनके दि० जैन भाइयोंने चैत्र सुदी ११ की खास सभा द्वारा एक छपाहुआ मानपत्र भेटमें जे. पी. पदवीके हर्षमें भेना; रुकडी जिला कोल्हापुरके समस्त . सभाएं। श्रावक और मंडलीने ता. २१ मार्च १९०६ __ को दस्तखती एक सन्मानपत्र छपा हुआ भेजा तथा ता. १५ जुलाईको हीराचंद गुमानजी बोर्डिंगके छात्रोंने .. भी इसी हर्ष में मानपत्र अर्पित किया था। इन तीनों मानपत्रकी नकलें इस भांति हैं नकल मानपत्र (फल्टन) दानवीर श्रीयत सेठ माणिकचन्द हीराचन्द जे० पी० यांचे सेवेशी:सावद्यमुक्तं विमलं चरित्रं विभाति रत्नत्रयरोचि रम्यम् ॥ लोके यदीयं स च दानवीरो माणिक्यचन्द्रो मणिवच्चकास्ति ॥१॥ केचिन्निवासरहिता: कतिचिच्च रोगैराक्रांतदेहलतिकाः कतिचिद्दरिद्राः विद्याजडाः कति च केचन धर्महीना यस्याश्रयाजगतिशांतिमवापुरग्र्याम् ॥२ क्षपाकरस्येव क्षयो न दृष्टो दोषाकरत्वं न च विश्रुतं ते ॥ मित्रोदये नैव रुषं दधासि तले धरित्र्यास्त्वमपूर्वचन्द्रः ॥३॥ For Personal & Private Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ ] अध्याय दशवां । मुदं दधानो मिषतां जनानां चन्द्रोज्ज्वलां पुण्यप्रभां तनोषि ॥ धातोश्वरर्थमकारि सार्थस्तेनात्र लोके प्रथितोऽसि चन्द्रः ||४|| श्रेष्ठिवर्य महाशय ! हल्ली या शहरांत चालू असलेल्या उत्सवाचे व परिषदेच अनुरोधाने आपण येथे येण्याची आम्हांवर मेहेरबानी करून आमच्या जैन समाजावर जो अनुग्रह केला आहे, त्या प्रसंगाचा फायदा घेऊन आपल्या समाज विषयक पुण्यशाली सत्कृत्त्याबद्दलच्या पूज्यताजनित प्रेमाला शब्दरूप देण्याचा यत्न करण्याची आम्हांस उत्कंठा झाली आहे व ती पूर्ण करून घेण्याची आपण परवानगी द्याल अशी उमेद आहे. भरतखंडांत जैनधर्माची प्रभा वारंवार उज्ज्वल करावयासाठी ज्या विभूति आमच्यामध्ये जन्म पावल्या आहेत त्याच्य सन्मान मालिकेत अधिष्ठित करावयासारखे सत्पुरुष आपल्यारूपाने आमच्या कालांत जन्मले आहेत हे आमच्या समाजाच्या पुण्योदयाचेच लक्षण आहे, असे प्रत्येक जैनास बाटत आहे. हें उंचस्थान भारतीय जैन समाजाच्या एक मताने प्राप्त होण्यासारखी अनेक सत्कृत्यें आपण केलीं आहेत हें सर्व विश्रुत आहेच. आपल्या अनुपम औदार्यामुळे आमच्या समाजांतील बहुतेक मोठ्या संस्था आज पोशिल्या जात आहेत; इतकेंच नव्हे तर मुंबई, कोल्हापुर, अहमदाबाद, आगरा, वगैरे ठिकाणच्या विद्याग्रहासारख्या उत्तम संस्था या आपल्या थोर दानवीर्यापासूनच जन्मल्या आहेत. मागासलेल्या जैनजातीची उन्नति करणाच्या आपल्यासारख्या आमच्या समाजांतील थोड्या विभूतींचे जैन समाजावर For Personal & Private Use Only - Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४३९ मोठे उपकार आहेत. या प्रयत्नाने लुल्या पडलेल्या भारतीय जैनसमाजांत चेतना उत्पन्न होऊन त्या योगाने ह्या प्राचीन जैन समानाचा अभ्युदय होईल अशी आम्हांस खात्री आहे. हे लक्षात घेऊनच इतर जातींतील पुढारी आपल्या सत्कृत्याचे अभिनंदन करितात, याचे ढळक उदाहरण येथील प्रभु श्रीमान् सरकार हेच होत. त्यांनी केलेल्या आपल्या सत्कारास कारण आपली थोरवी तर आहेच पण ही गोष्ट जैनजातीच्या उन्नती विषयींच्या त्यांच्या कळकळीची एक साक्ष आहे याबद्दल आह्मीं समस्त जैनलोक श्रीमंत सरकारचे ऋणी आहोत. ___ मुंबई या सूरत सारख्या मोठ्या व्यापार प्रसिद्ध व जेथें जैन व जैनेतर हिंदू तीर्थवासी यांनां उतरल्याशिवाय गत्यन्तरच नाही असे मटले तरी चालेल, अशा ठिकाणी हिराबाग धर्मशाळेसारख्या भव्य धर्मशाला बांधून उतारू लोकाची गैरसोय नाहींशी केली. अशा रीतिने जैन व जैनेतर समाजावर ही अनेक उपकार केले आहेत। ह्या आपल्या दानशौडित्वाबद्दलच स्पृहणीय प्रख्याती झाली आहे, असे नहीं. आपले सौजन्य, आपली जैनधर्माविषयी अपार श्रद्धा, जैनसमानाच्या उन्नति विषयी आपले अव्याहत परिश्रम आणि आपल्या समाजांतील अनाथ व गरजू लोकांस मदत करण्याविषयी आपली निरलस तत्परता इत्यादि अनेक गुणामुळे आपण सर्व समाजास पूज्य व प्रिय झालेले आहां. मुंबई दिगम्बर जैन प्रांतिक सभा, द० म० जैन परिषद्, भातरवर्षीय दि० जैन महासभा इत्यादि सभांचे अध्यक्ष, मुंबई For Personal & Private Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० ] अध्याय दशों शहरातील 'जस्टिस ऑफ दी पीस', तीर्थक्षेत्रप्रबंधकारिणी सभेचे महामंत्री इत्यादि अनेक जबाबदारीची, व समाजोपयोगी कामें अंगावर घेऊन इतर कोणासही न करितां येतील अशा उत्तम त-हेन व प्रचण्ड स्वार्थत्याग करून आपण ती बजाविली आहेत व त्यामुळे आपण सर्व जैनसमाजास कायमचे आपले ऋणी करीत आहां. आपल्या अंगच्या सद्गुणांचे वर्णन करणे अशक्य जाणून त्या उद्योगास न लागतां शेवटी आमांस इतकेच सांगावयाचे आहे की आपला कित्ता थोडाबहुत तरी बळविण्याची आमच्यांतील पुढारी लोकांस आपले तेजस्वी उदाहरण पाहून इच्छा जाहल्यास समाजाने आपल्या उपकारांविषयी थोडी तरी कृतज्ञता दर्शविली असे होईल. आपल्या अपार औदार्याचे अनुकरण करण्यासारखी सुस्थिति जरी फारच अपूर्व असली तरी आपला साधेपणा, निरलसपणा, वगैरे गुणांत आपला कित्ता पुढे ठेवण्याचे काम तरी प्रत्येकाने केले पहिजे. ___असा कित्ता आमच्या पुण्योदयाने आम्हांस आज सजीव स्वरूपाचा मिळाला आहे तो असाच आमच्या पुढे चिरकाल राहो, अशी आमची परमेश्वराजवळ प्रार्थना आहे. आपल्यास व आपल्या कुटुम्बास शुभ कर्मजनित सर्व फलें अखण्ड प्राप्त होवोत अशी जैनसमाजाची इच्छा पुनरपि प्रदर्शित करून, हे मानपत्र आपल्यास सादर करावयाची परवानगी घेत आहों. फलटण. एप्रील १९०७. __ आपले कृपाभिलाषी-फलटण दि० जैनसमाज तर्फे १. शेठ दोशी माणिकचंद रावजी, २. होचंद माणिकचंद दोशी वकील, ३. शा० रामचंद हेमचंद ( अध्यक्ष For Personal & Private Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wimwwwmwwwwww महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४४१ स्वा० क. फलटण ), ४. दोशी रूपचंद लखमीचंद, ५. शा० रामचंद सुरचंद. नकल मानपत्र (रुकडी) श्रीमत्सकलगुणगणसंपन्न राजमान्य राजच्छी शेट माणिकचंद पानाचंद जव्हेरी मुंबई जस्टिस ऑफ धी पीस् । यांचे सेवेसी-रुकडी गांवचे आम्ही सम्मस्त श्रावक व इतरजन आपले अभिनन्दन करितों की---- आपली धर्मसंबंधी व इतर औदार्याची कीर्ति सरकारचे कानावर जाऊन त्यांनी आपला थोरपगा मनांत आणुन सरकारांनी आपल्यास 'जस्टिस आफ धी पीस' ही बहु मानाची पदवी दिली. असे आम्हांस कळल्यावरून आम्हांस फार आनंद झाला व यानबद्दल आम्ही सर्व जैन व ब्राह्मण वगैरे लोक श्रीजीनाचे मंदिरांत जमून आनंदप्रदर्शक सभा भरवून आपल्या थोरपणास उचित असा मान मिळाल्या बद्दल आनंद मानला, व सरकारचे आभार मानिले, आणि आपले असेंच यशस्कर व जनांस सुखकर असे आयुष्य वृद्धिंगत होवो मणुन परामेश्वराची प्रार्थना केली. हा आनंद आपल्यास कळविण्याकरितां हैं अभिनंदनपर पत्र आह्मीं नम्रता पूर्वक आपल्यास लिहून पाठविले आहे. ते आमचे तर्फे चिरंजीव रा० रा. बाबगोंडा आणा पाटील रुकडीकर हे आपणास अर्पण करितील, त्याचा आपण प्रेमाने स्वीकार करावा अशी विनंति आहे. कृपा लोभ असावा ही विनति. ता० २१ मार्च १९०६ ____ आपले-रुकडीकर समस्त श्रावक व इतर मंडली For Personal & Private Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ ] अध्याय दशवां । नकल मानपत्र (बम्बई बोर्डिंग) मेहेरबान सेठजी साहेब, शेठ माणेकचंद हीराचंद झवेरी जे. पी. मानवंता अने सुज्ञ शेठजी साहेब, विशेष अमो शेठ हिराचंद गुमानजी जैन बोर्डीन्ग स्कुलना विद्यार्थीओ आपणी नामदार मायाळु ब्रिटिश सरकार तरफथी आपने जे. पी. नो मानवंतो खेताब एनायत करवामां आव्यो छे तेनी खुशालीना आवेशमां आप साहेबने आ मानपत्र आपवानी रजा लइए छीए. मनुष्यने धन प्राप्ति थवी ए तो सुलभ छे परंतु ते धननो सदुपयोग करवानी बुद्धि तो कोई विरलाओमान पूर्वजन्मना सुकर्मना योगे विकाश पामे छे. आप व्यापारी वर्गना होवा छतां विद्या तथा धर्म तरफ आपनी अभिरूची प्रशंसनीय छे. सरकारी पाठशालाओमां अभ्यास करता जैन विद्यार्थीओने पडती धर्मशिक्षणनी खोट, तेनन परदेशथी अत्रे आवता विद्यार्थीओनी अगवडता दूरे करवाने आपना स्वर्गस्थ पिताश्रीनी यादगीरीमां शेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डीन्ग स्कुल स्थापी तेमन, आपसाहेबर्नु तथा आपना कुटुंबचें नाम अमर कर्यु छे. आ सिवाय विद्यानी तथा धर्मनी अभिवृद्धिने माटे मुंबई, अमदावाद, कोल्हापुर वीगेरे स्थळोए करेली सखावतो जग जाहेर छे. .. आपने जैन तरीके मळेलं मान आखी जैन कोमने मळया For Personal & Private Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४४३ बरोबर छे. नामदार मायाळू ब्रिटिश सरकार के जेना प्रतापी अने न्यायी अमल नीचे आपणे सर्वे सुखशांतिमां रहीए छीए तेनो आपने आ मान आपवा सारु आ प्रसंगे अमे आभार मानीए छीए. छेवटे अमो सर्वे इच्छीए छीए के आ मानवंत पदवी आप लांबा वखत सुधी भोगववाने तथा धर्म अने विद्यानां अनेक उपयोगी कार्यो करी हजु पण मोटा खेताब मेळववाने अने ए रीते सरकार अने प्रनामां वधारे मान प्राप्त करवाने भाग्यशाळो थाओ. तथास्तु। तारदेव मुंबई ता० १५ जुलाई १९०६. ली० आपना आज्ञांकित सेवकोमोदी नाथालाल छगनलाल बी. ए. डाक्टर मोहनलाल पोपटलाल बी. ए. पारेख प्रभुलाल वाघजी बी. ए. लालाराम जैन पंडीत. वीगेरे ! शेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डीन्ग स्कुलना विद्यार्थीओ, शीतलप्रसादजीने जैनधर्मकी प्राचीनता व कुछ उरद्देयोंको प्रगट करनेवाली एक पुस्तक जिनेन्द्रमतप्रयागके माघमेलेमें दर्पण प्रथम भाग रची है उसकी २००० सेठजीद्वारा पुस्तक प्रतियां सेठ माणिकचंदनीकी ओरसे मुद्रित वितरण। होकर प्रयागके माघ मेले में बाबू चेतनदासनी बी. ए. द्वारा वितरण की गई थीं। सेठ माणिकचंदजीने वैद्यराज व वैद्यरत्न उपाधि प्राप्त पं० For Personal & Private Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४ ] अध्याय दशवां । कन्हैयालाल जैनको बुलाकर अपनी बम्बईमें औषधालय। सहायतासे एक पवित्र जैन औषधालय खु लवा दिया जिससे अशुद्ध दवाओंसे बचकर जैन व अजैन शुद्ध औषधिये सुगमतासे प्राप्त करें। सेठ माणिकचंदनी शीतलप्रसादनीके साथ सम्मति किया ही करते थे । एक दिन आपने कहा कि यह बुन्देलखंडमें बोडिंग- बम्बई में बुन्देलखंडके जो यात्री आते हैं और की आवश्यक्ता। इस चौपाटी चैत्यालयका दर्शन करनेके बाद मुझसे मिलकर वातचीत करते हैं तब उधर शिक्षाकी बहुत कमी मालूम होती है तथा ग्रामों में रहनेवालों के लिये पढ़नेका साधन नहीं है, इससे आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं है, इस लिये बुदेलखंडके उद्धारके लिये कहीं न कहीं बोर्डिंग खोलनेकी आवश्यक्ता है। दोनोंकी सम्मतिमें जबलपुर स्थान ठोक जंचा क्योंकि वह मुख्यनगर है तथा वहां कालेन और स्कूल भी हैं, ट्रेनिंग कालिज भी है। जैनियोंकी स्थिति भी अच्छी है । शीतलप्रसादसे सेठनीने कहा कि वहां बोडिंग स्थापित कराने का सिलसिला डालना चाहिये । शीतलप्रसादजी महासभाके महाविद्यालयकी डेपुटेशन पार्टीके साथ कुछ ही मास पहले जबलपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा आदिमें दौरा कर चुके थे जिससे वहांके हालातसे परिचित थे । आपने सब स्थानोंके धनाढ्योंका हाल बताया और यह सम्मति दी कि श्री कुंडलपुर (दमोह) का मेला जो चैत्रमें होता है उसमें आप 'पधारे और वहां मुख्य २ भाइयोंको बुलानेकी प्रेरणा करें। फिर वहांसे जबलपुर चलकर इसका यत्न करें। यह बात निश्चित हो गई For Personal & Private Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४४५ तब शीतलप्रसादजीने जबलपुर, सिवनी, छिन्दवाड़ा, दमोह आदिके भाइयोंको सूचना दी कि शेठ माणिकचंदजी श्री कुंडलपुरकी यात्रार्थ आयेंगे, आप लोग मित्रमंडळीसह पधारें । नाथूराम प्रेमी के यात्रा । सेठ साहब बाबू शीतलप्रसाद और श्रीयुत साथ ता० १५ मार्चकी शामको बम्बई से श्री कुंडलपुरकी चलकर ता० १६ को बीना स्टेशनपर आए । यहांसे २ मील दूर एक धर्मशाला में ठहरे । यहांसे शहर बीना - इटावा २ मील था । दर्शनार्थ गए | यहांसे शामको ही चलकर १२ बजे रात्रिको दमोह स्टेशनपर पहुंचे । बाबू गोकुलचंद वकील जिनको पहले से खबर की गई थी, १०० भाइयोंको लेकर स्वागतार्थ स्टेशनपर आए थे। बड़ी भक्ति से नगर में लाए और धर्मशाला में ठहराया । यहाँ १२५ घर परवारोंके हैं, संख्या ४५० है, जिनमंदिरजी ६ हैं । वर्षाके कारण ता० १७ व १८ को यहीं ठहरे । ता० १७ की रात्रिको मंदिरजीमें सभा हुई । धर्म विषयपर व्याख्यान हुआ । ता० १८ की शामको बैलगाड़ी में चढ़कर २० मील चल ता० १९ को सवेरे कुंडलपुर क्षेत्र में आए। यह क्षेत्र दमोह स्टेशन से २० व बांदकपुर से १५ मील है | कुंडलपुर एक रमणीक और मनोहर गांव है, जो पहाड़की तलहटी में बसा हुआ है। पहाड़का आकार कुंडलके समान है । पर्वतपर २२ तथा तलहटीमें २१ जिन मंदिर हैं । पर्वत से सबसे ऊंचा उत्तरकी ओर छः घरियाजीका मंदिर है जिसपर पहुंचनेको नीचेसे ५०० सीढ़ियां ऐसी बनी हैं कि एक बालक भी सुगमता से चढ़ सक्ता है । पर्वतके मध्य भागमें श्री वर्डमान स्वामीका For Personal & Private Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दशवां। woman विशाल पत्थरका बना हुआ मंदिर है जिसमें लाखों रुपयोंकी लागत . आई होगी। इसमें श्री वीरभगवानकी एक विशाल और दर्शनीय पद्मासन योग प्रतिमा है जिसकी ऊंचाई ४॥ गन व चौड़ाई ३ गनके अनुमान है । यह प्रतिमा बहुत प्राचीन कालकी है। संवत नहीं है, दर्शन करते मन तृप्त नहीं होता । मंदिरजीके जीर्णोद्धारका एक शिलालेख संवत १७५७का है जो द्वार पर लगा है। पहाड़पर और मंदिरोंमें जानेके मार्गमें भी पत्थर जड़ा हुआ है इससे सर्व मंदिरोंकी वंदना ३ घंटे में हो जाती है। सेठ साहबके आगमनको जानकर सिवनीसे श्रीमान् सेठ पूरणशाह आनरेरी मनिष्ट्रेट, खूबचंदनी, धन्नालालनी, मिहनलालनी, जुगरानसाहनी; छिन्दवाड़ासे सिंहई खेमचंद आनरेरी मनिष्ट्रेट आदि; जबलपुरसे सिंहई गरीबदासजी, भोलानाथनी आदि बहुतसे भाइयोंको लेकर आए थे। कुल संख्या २००० की होगी। मेलेके प्रबन्धक सेठ बिन्द्रावनजी दमोह थे । सेठ माणिकचंदनी साहबकी चेष्टा और प्रेरणासे ता० १९, २०, २१ को दिन में तीर्थकी सभाएं और रात्रिको उपदेशक सभाएं हुई। दिनकी सभाओंमें क्रमसे सेठ माणिकचंदनी, सेठ बिंद्रावनजी और सवाई सिंहई खेमचन्दनी सभापति हुए । इनमें ८ प्रस्ताव पास हुए । सेठजी सच्चे तीर्थभक्त व सुधारक थे। आपकी पूर्ण प्रेरणासे इस क्षेत्रके प्रबन्धार्थ एक कमिटी ७ सभासदोंकी बनी जिसके सभापति व कोषाध्यक्ष सेट बिन्द्रावन व. मंत्री बाबू चन्नेलालजी हुए। पहला प्रस्ताव यही स्वीकार कराया गया। यहां १५ दिन मेला रहा करता था जिससे लोग आते जाते रहते थे-जमते न थे, इससे दूसरा प्रस्ताव For Personal & Private Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [ ४४७ सेठ माणिकचंदजीने स्वयं किया कि सिर्फ ४ दिन मेला रहे; तीन दिन धर्म, जाति और तीर्थ सुधारके लिये सभाएं हों और चौंथ दिन यात्रा निकले । इसका समर्थन स्वयं सेठ विन्द्रावनजीने किया । इस क्षेत्रपर लोग विना सलाहके नए मंदिर बनवा दिया करते थे जिनके प्रबन्धकी फिक्र प्रबन्धकर्तापर आ जाती थी । इससे यह प्रस्ताव हुआ कि नया मंदिर प्रबन्धकारिणी सभाकी विना आज्ञा न बने । और भी जो कोई काम इस क्षेत्रपर द्रव्य खर्च कर करना । हो तो प्र० सभाकी राय ले लेवै । प्रस्ताव नं० ४ कन्याविक्रयके विरुद्ध पास हुआ | इसके समर्थन में स्वयं सेठजीने व्याख्यान दिया तथा कहा कि यदि किसी गरीब लड़की वालेके पास रुपया न हो तो बिरादरी प्रबन्ध कर दे, वह लड़केवालेसे न लेवे । इस प्रस्तावको शीतलप्रसादजीने उपस्थित किया था व नाथुरामजीने भी समर्थन किया था । ५ वां प्रस्ताव था कि वृद्ध व निर्बल गाय बैल पशुओंको कसाईके हाथ न बेचकर पिंजरापोल द्वारा रक्षित रखा जाय । इसको शीतलप्रसादने पेश किया और सेठ माणिकचन्दजी, जुगराजशाह आदिने जोरके साथ पुष्ट किया । छठा प्र० सभाओंके स्थापित करने, ७वां विदेशी अशुद्ध चीनी (सर) न वर्तने, वां जैन पद्धति से विवाह करानेपर था । इस समय सेठ माणिकचंदजीने प्रगट किया कि विवाह पद्धतिकी पुस्तक छपी हुई हमारे पाससे मंगाली जावै । मेलेमें आए हुए कटनी, जबलपुर आदि पाठशालाके ६९ बालक और १७ बालिकाओंकी परीक्षा बाबा दौलतराम और ब्रह्मचारी बालकराम के सामने ली गई । ७५) का इनाम बांटा गया । चैत्र वदी १३ के तीसरे I For Personal & Private Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ ] अध्याय दशवां । पहर पालकीपर श्रीजी विराजमान हुए। फूलमालकी बोली १०२५) में सिंहई डालचंद दमोहने ली । सेठजीको संस्कृत विद्या की उन्नतिके लिये स्याद्वाद पाठशाला काशीका बहुत बड़ा ध्यान था। इसके लिये ३२५) की सहायता स्वीकृत हुई । सेठ साहबसे सर्व ही छोटे बड़े उनके ठहरनेके स्थानपर मिलने आते थे । सेठनी उनको विद्या पढ़ने और कुरीति मेटनेका उपदेश देते थे व बोर्डिंगकी जरूरत है कि नहीं ऐसी सम्मति लेते थे। जबलपुर वालोंकी सम्मति देखकर कि यदि बोर्डिंग होवें तो सर्वसे श्रेष्ठ बात है, आप ता० २३ की दोपहरको चलकर ता० २४ मार्चको जबलपुर आए। स्टेशन पर भाइयोंकी बहुत भीड़ थी। सिंहई डालचंद नारायणदासजी यहां उदार बुद्धि धर्मात्मा जबलपुरमें बोर्डिंगकी थे । उन्होंने सेठनीको अपनी धर्मशाला खटपट । लार्डगनमें ठहराया और बहुत ही प्रेम प्रद र्शित किया। सेठनीने २, ३ दिन शहरके मुख्य २ भाइयोंसे मिलने व उनको बोर्डिंगके लिये तय्यार होनेके लिये भारी चेष्टा की। सेठनीको आलम्य बिलकुल न था। शीतलप्रसादके साथ हरएक प्रतिष्ठित भाईके यहां जा जाकर उसे इस कामके लिये मज़बूत किया । आप शहरके प्रतिष्ठित अजैनोंसे भी मिले जिससे जैनियोंको जिन्हे कभी बोर्डिंग ऐसे काम करनेका ढंग नहीं मालूम है मदद मिले । यहां पर रायसाहब मुन्नालालजी पेन्शन याफ्ता बहुत प्रतिष्ठित व परोपकारी पुरुष थे उन्होंने सेठजीके विचारकी पूर्ण सराहना की और हर तरह मदद देनेको For Personal & Private Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४४९ तय्यार हुए। सिंहई गरीबदास जो जबलपुर जैन बिरादरीके मुखिया हैं व अन्य कई साहबोंने कहा कि यहां पर पाठशालाएं कई दफे हो होकर टूट गई हैं किसीको शौक नहीं हैं, तब बोर्डिंग कैसे चलेगा ? सेठजीको अनुभव था। आपने कहा कि आप लोग १ वर्ष तक बोर्डिंगको चलाकर देखें, मुझे तो विश्वास है अवश्य चलेगा और आप लोग सब तरहसे समर्थ हैं। आपके यहां लाला भोलानाथने अपने परलोक गत पुत्र कस्तु. रचंदके स्मरणार्थ २००००) सर्कारको स्कूलके जबलपुर बोर्डिंगके मकानके लिये दे डाले हैं इसी तरह मैं एक वर्षलिये २४००) के लिये ३००)मासिक अर्थात् २४००)बोर्डिका दान। गके लिये देता हूं, आप भी कुछ प्रबन्ध करो। तब सिंहई गरीबदासजीने अपनी पंचायत जोड़ी और वादानुवादके वाद ठहराव किया कि जबतक बोर्डिंग रहे यह पंचायत ५१) मासिक बराबर देती रहे । इसीका मासिक चंदा लिख लिया गया। तब ता० २७ मार्चकी रात्रिको जैनियोंकी आमसभा हुई। सभापति परोपकारी अजैन रायसाहब मुन्नालालजी हुए । एकमत होकर बोर्डिग, स्थापनका प्रस्ताव पास किया गया । २१ मेम्बरोंकी प्रबन्धकारिणी कमिटी बनी । सभापति उक्त रायसाहब, कोषाध्यक्ष सिंहई डालचंद नारायणदास और मंत्री बाबू दयालचंद अकौन्टेन्ट डिवीजनल-जज नियत हुए । बोर्डिंग खोलनेका महूर्त बैशाख सुदी ३ सं० १९६३ ता. २६ अपैल १९०६ नियत हुआ। For Personal & Private Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० ] अध्याय दशवां । कुंडलपुर में सिवनीवालों का बहुत अग्रह था कि जबलपुर होकर आप यहां अवश्य पधारें। सेठजी ता० २८ सिवनीमें स्वागत मार्चकी रात्रिको सिवनी पहुंचे | स्टेशनपर और फूटको श्रीमन्त सेठ पूरणाशह आनरेरी मजिमिटाना | ट्रेट बहुतसे जैनी व अनेक अजैन प्रतिष्ठित भाइयों के साथ जे० पी० महाशय के स्वाग तार्थ स्टेशन पर आए । गाजेबाजे के साथ अपनी कोठीपर लाकर ठहराया । यहाँ विरादरी में ३ वर्षसे ऐसी फूट पड़ी हुई थी जिससे सारी विरादरीको महान कष्ट था व धर्मके सर्व कार्य बन्द थे । सेठजीने निश्चय किया कि इसको अवश्य मिटाना चाहिये । ता० २९ के दिन और सारी रात इसीका प्रयत्न किया गया । सेठजीने जजकी तरह हरएक बयान शीतलप्रसादजीसे कलम बंद कराए व गवाहियां लीं - जांच की। जो जिसने कहा उसको अच्छी तरह सुना और ता० ३० को सबेरे अपना फैसलानामा सुना दिया । सर्व बिरादरीने पहले ही फैसला मंजूर करनेकी स्वीकारता दे दी थी । इस फैसलेको सुनकर सर्व विदरीको हर्ष हुआ, सब गद् गद् बढ्न हो गए । यहाँ तीन पक्ष थे सो एक हो गए, तब उसी दिन यहां के भाइयोंने सानन्द रथोत्सव किया । श्रीजीके रथको सर्व भाई स्वयं खींचते थे । बाजार में गाते बजाते बागमें पहुंचे। वहां २ घंटे अभिषेक व पूजा करके लौटकर पंचायती मंदिरजी में आए । फूलमालकी बोली श्रीमन्त सेठ पूरण नाहने रु. ७५१ ) में ली थी। रात्रिको धर्मशाला में पुन: सभा हुई, २५० से अधिक मनुष्य जमा थे। सेठजीको सभापति किया गया । सर्व बिरादरीने सेठजीको जे० पी० पड़ For Personal & Private Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सेवा प्रथम भाग । [४५१ मिलनेके कारण व फूट मेटने में भारी परिश्रम करनेके कारण एक निम्न लिखित अभिनन्दनपत्र दिया और बहुत धन्यवाद प्रगट किया नकल मानपत्र (सिवनी)। सवैया तेईसा। 'पुन्य प्रताप बढ़ो जगमें यश छाप रहो महि मंडल भारी । खोल दिये चट शाल अनेक रचे धर्मालय हेतु दुखारी ॥ तीर्थनके उद्धारके कारण जैनसमाज भई आभारी । धर्मप्रचारक दानी वीर समान न अन्य भयो अवतारी ॥ १ ॥ सिवनी मध जैनसमाज विषे चिरकाल ते द्रोह बड़ो अतिभारी । उपदेशक औ डिपुटेशनके श्रमते न हटी यह फूट हत्यारी ॥ यह अवसर मुंबई सेठ प्रभाव ते मेल भयो क्षग एक मझारी । माणिकचन्द प्रदानिक जसटिस आफ दि पीस महा पदध री ॥ २ ॥ ज्ञान विधान महा गुण खान प्रसिद्ध विशुद्ध चरित्र प्रसारी। कीरत बेल बढ़ी जगमें लहके बहु मानन पत्र पुकारी ॥ जैनसमाज एकत्रित सिवनी देत हैं मानहि पत्र पुकारी । मानकचन्द प्रदानिक 'जसटिस आफ दी पीस' महा पदधारी ॥ ३ ॥ तीरथ राजके काज रखी तुम लाज कियोःपुरुषारथ भाई । अकलुन अरु शोलापुर जबलपुर मुम्बपुरी विद्योन्नति जारी ॥ छात्रनकी सुपरिक्ष्य लये दिये परितोषक तोषक कारी । प्रेम कियो हम पै इत आय जयो जग में तुम सेठ उदारी ॥ ४ ॥ ता० ३० माचे सन् १९०६ द० जुगराजसाह-मन्त्री, प्रबन्धकारिणी सभा, जैन पंचायत, सिरनी । For Personal & Private Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ ] अध्याय दशवां । फिर मंदिरजीके सुप्रबन्धार्थ एक प्रबन्धकारिणी सभा और दूसरी जात्युन्नतिके लिये-जातिके झगड़े तय करनेके लिये सभा स्थापित हुई। सवाई सि० खेमचंद छिंदवाड़ाके पेश करने और सिंहई जुगराजसाहके समर्थनसे पाठशाला खोलनेका निश्चय किया गया। लोगोंमें बहुत उत्साह था। सभा रात्रिको २ बजे समाप्त हुई। यहांसे सेठजी सीधे बम्बई पधारे। चैत्र सुदी १४ स० ६३की रात्रिको बम्बई स्थानीय . सभाका एक अधिवेशन मि० लल्लूभाई प्रेमासेठजीका बम्बई सभा नन्द एल. सी. ई. की अध्यक्षतामें हुआ। द्वारा हर्ष प्रकाश। बम्बईके सभी मुख्य भाई उपस्थित थे। तक, शीतलप्रसादजीने सर्कारकी ओरसे जे० पी० का पद मिलनेके उपलक्ष्य में सभाकी ओरसे सेठजीको अपना पूर्ण हर्ष प्रगट किया तथा यह कहा कि “ जिस दिन आपको यह. पदवी मिली उस ही दिन आप कुंडलपुरकी यात्रा पधारे। यात्रामें रात्रि दिन जाति व धर्मकी सेवा करनेवाला एक धनवान सेठजीके समान दूसरा देखने में नहीं आया। आपने जबलपुर ऐसे कठिन स्थानमें बोडिंग स्थापनका निश्चय कराया व सिवनीकी फूट मेटी, ये दोनों बड़े ही भारी काम किये हैं। आपको सर्कारने जो यह पद दिया है आप उसके सर्वथा योग्य हैं। काशी स्याद्वाद पाठशालाके छात्रोंने संस्कृतमें एक अभिनन्दनपत्र पत्रमें भेजा था सो वैद्य कन्हैयालालजीने बांचकर सुनाया, फिर सभापतिने सेठजीके करकमलोंमें अर्पित किया। For Personal & Private Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४५३ स्त्रीशिक्षाके प्रचारार्थ जो श्रीमती मगनबाईजी पत्रव्यवहार कर रहीं थी उसके फलसे शोलापुरके सेठ मगनबाईजीके उ- हीराचन्द नेमचन्द आनरेरी मजिष्ट्रेटकी द्योगका फल। सुपुत्री श्रीमती कंकुबाई भी नासमाजकी सेवामें दत्तचित्त हुई और सप्त तत्त्वपर एक लेख भेजा जो जैनगज़ट अंक १७ ता० १ मई १९०६ में मुद्रित है। जब सेठनी जबलपुर बोर्डिंगकी बात पक्की करने आए थे ___ उस समय बोर्डिंगके लिये बहुतसे मकानोंको जबलपुर में बोर्डिंगका तलास किया। जैन बिरादरी में सिंहई महूंत । सद्भूलालजी धर्मात्मा व प्रेमी भाई थे। आपने सेठनीको अपना नया बनवाया हुआ मकान दिखलाया । इसमें अभी प्रवेश भी नहीं हुआ था। सेठजीको २५ बालकोंके रहने योग्य साफ सुधरा देखकर पसन्द आ गया। तब सिंहईजीने कहा कि एक वर्षके लिये विना किराए लिये बोर्डिंगके लिये मैं यह मकान देता हूं, उसीमें महूत्त करना निश्चित हो गया था । नरसिंहपुरमें पन्नालाल मास्टर एक धर्मबुद्धि भाई था इसका हाल मुन्नालाल राजकुमार द्वारा मालूम हुआ था सो इसको सेठजीने बुलाकर सुपरिन्टेन्डेन्ट नियत कर दिया तथा मेज, कुर्सी बर्तन आदि सामान मंगानेकी सर्व सूची कर दी थी तथा शीतलप्रसादनी द्वारा एक नियमावली भी बनाकर दे दी थी। ताः ११ अप्रैलकी समामें यह नियमावली पास कराली गई थी और महतके लिये सर्व प्रबन्ध हो रहा था। कुछ बालक भी बुलाये गए थे। For Personal & Private Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ ] अध्याय दशवाँ इतनेमें महूर्त्तका दिन निकट आनेसे सेठ माणिकचंदजी शीतलप्रसादजी और श्रीमती मगनबाईजीके साथ ता: २४ अप्रैलको जबलपुर पधारे और जल्सेका बहुत उत्तम प्रबन्ध कराया । नगरके प्रतिष्ठित भाइयोंको निमंत्रण भेजा व कई जगह आप भी बुलाने गए। राजा गोकुलदासजी रईसके हाथसे बोर्डिंग खुले ऐसा निश्चय किया। मिती बैशाख सुदी ३ अर्थात् अक्षयतृतीयाके दिन ता. २६ अप्रैल० ६ को सबेरे ही श्रीसरस्वती पूजन करके बजे मंगल कलशको लिये हुए सर्व मंडली गाजे बाजेके साथ लाडेगनकी धर्मशालासे बोर्डिंगके मकानमें पधारी और वहां मंगल कलश पधराया । फिर लार्डगनकी पाठशालाके मकानमें आए। वहां सर्व जैन अजैन १००० मनुष्य एकत्र हुए । नगरके बड़े२ सभी प्रतिष्ठित पुरुष आए थे। राजा गोकुलदासजीने सभापतिका आसन ग्रहण किया। सभापतिने बोर्डिगकी आवश्यक्ता बताते हुए सेठ माणिकचंदजीकी उत्तेजना और कष्टकी सराहना की। फिर बाबू दयालचंद मंत्रीन नियमावली, कमेटीके मेम्बर व प्रवेशार्थ आए हुए छात्रोंके ग्रामादि बताए। फिर शीतलप्रसादनीने बोर्डिंगके लाभपर एक मनोहर व्याख्यान दिया । इसका समर्थन व्यवहारी रघुवीरप्रसादजी, पं० काशीप्रसाद चौधरी, पंडित गिरधारीलाल पेन्शनर तथा रायबहादुर विहारीलाल खजांची भार्गव बेंकने किया। आपने कहा कि भार्गों में ६ बोर्डिंग हैं और सबसे पहले आगरामें खुला था। रायसाहब मुन्नालाल अकौन्टेन्टने सर्वको धन्यवाद दिया। फिर सर्व मंडली बोर्डिगके मकानको पधारी। राजा साहबने मकानका ताला खोला For Personal & Private Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सेवा प्रथम भाग [ ४५५ तथा मकानकी सुन्दरता व सुपरिन्टेन्डेन्टके ऑफिसको देखकर प्रसन्नता प्रगट की । इस दिन नरसिंहपुर, कंदेली, पिपरिया, भौरसिरके ५ छात्र भरती हुए थे, परन्तु थोड़े ही दिनों में २३ छात्र हो गए । २ वर्षात १७ रहे, इनमें ४ संस्कृत, २ हाई स्कूल शेष १९ मिडिल स्कूलकी कक्षाओं में रहे। धार्मिक शिक्षा सुप० द्वारा नित्य दी जाने लगी और वार्षिक परीक्षा भी होने लगी । यद्यपि सेठजीने केवल २४०० ) की ही मदद दी थी, पर धर्मके प्रभावसे १ वर्षमें १३५१ ॥ ) १ खर्च होकर रोकड़ १११२) ५ रही। इस तरह यह बोर्डिंग कई वर्ष तक चलता रहा । सेठजी सिंहई नारायणदासको जो कई लाख के धनी थे पर पुत्र नहीं था, बारबार जब वे मिलते थे यही उपदेश करते थे कि आप इस बोर्डिंगको चिरस्थाई कर देवें, द्रव्य इसी में लगाना सफल है । इस उपदेश के बार२ असरसे सिंहई नारायणदास और उनकी धर्मपत्नीने एक कोठी १५०) मासिककी आमदनीकी दे दी तथा मरते समय २००००) बोर्डिगका मकान बनानेके लिये बाबू कंछेदीलाल वकील बी. ए. एल एल. बी. आदि टूष्टियों के सुपुर्द कर गए । सिंहनीके दो स्त्रियें थीं। दोनों विद्या प्रेमणी श्री । बाबू कंछेदीलालने बहुत ही हवादार स्थानमें जमीन लेकर बोर्डिंग बनवाया । इसके बनवाने में ४००००) लगे सो सत्र सिंहईजीके स्टेटसे लगे । यह बोर्डिंग एक दर्शनीय मकान बनगया है । ४० से अधिक छात्र रह सक्ते हैं। वर्तमान में सेक्रेटरी बाबू कंछेदीलालजी ही हैं। For Personal & Private Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ ] अध्याय दशवां । श्रीमती मगनपाईजीके व्याख्यान सुननेके लिये यहांके स्त्री व पुरुष बहुत उत्सुक थे सो ता० २७ जबलपुरकी स्त्री स- अप्रैलके सबेरे पाठशालामें स्त्री व पुरुषकी माजमें जागृति । सम्मिलित सभा हुई थी। हाजरी ५०० थी। फीमेल ट्रेनिंग कालेनकी लेडी सुप्रिन्टेन्डन्ट मिस रास भी कालेजमें पढ़नेवाली ३ जैन स्त्रियोंको लेकर ठीक ७ बजे पधारी और सभापतिके आसनको सुशोभित किया । श्रीमती बाईजीने विद्याकी आवश्यक्ता पर १॥ घंटा बहुत ही असरकारक व्याख्यान दिया । फिर भगवंतीबाई, जमनाबाई, गौरीबाई तथा मुन्नीबाईने भी अपने २ व्याख्यान पढ़े । मिस साहबाने मगनबाईजीके कथनको सहराते हुए कन्याश ला होनेपर बहुत ज़ोर दिया। उसी समय स्त्रियां दान करने लगीं । ५) मिस साहबाने भी देने कहे तथा दूसरे दिन एक प्रशंसाजनक पत्रके साथ ५) अपने और १) अन्य छात्रका ऐसे ६) भेज दिये । रात्रि तक मासिक व नकद सब मिलकर १५००) रु० का चंदा हो गया । . यह रुपया जबलपुर बोर्डिंग हाउसकी कमेटीके आधीन सेठजीने किया, वह कन्याशाला खुलवावे । रात्रिको भी मगनबाईजीका उपदेश स्त्रियों में विनय व शीलवतपर हुआ । वैशाख सुदी ६ ता० २९ अप्रैलको श्रीनीकी सवारी बड़े ___समारोहसे निकली। सिवनीसे सेठ पूरणशाह छिन्दवाड़ामें सेठजी- भी आये थे । रात्रिको सभामें पाठशालाके का भ्रमण। लिये कहा गया तब निश्चय हुआ कि चिरस्थाई फंडकी जो पट्टी हुई है उसको For Personal & Private Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४५७ जमा खर्च करके पक्का किया जायगा और अध्यापक मिलनेपर काम जारी होगा । सेठ माणिकचंदनीने जबलपुर बोर्डिगका हाल कहकर सहायताके लिये प्रार्थना की तो उसी समय सेठ पूरणशाहने २५०) प्रदान किये तब औरोंने भी लिखाया। दूसरे दिन ता० ३० की शामको मगनबाईजीने स्त्रियोंके कर्तव्यपर व्याख्यान देकर गाली गवानेका त्याग कराया । रात्रिको यहां एक आम सभा राय मथुराप्रसाद वकीलके सभापतित्त्वमें हुई । डिस्ट्रिक्ट जन आदि नगरके प्रतिष्ठित पुरुष आए थे। शीतलप्रसादजीने धर्मविद्याकी आवश्यक्तापर १॥ घंटा व्याख्यान दिया । सभापति साहबने इसकी पुष्टताकी व सेठ माणिकचंदनीने सभापतिको धन्यवाद दिया। दूसरे दिन यहांसे सेठजी सिवनी पधारे। रात्रिको शीतलप्रसादनीने तत्त्वज्ञानके ऊपर व्याख्यान दिया और बोर्डिंगके . लिये मददको कहा तो बहुतसे भाइयोंने सहायता दी । कुल चंदा सिवनीका ७८३) और छिन्दवाड़ेका ५३१) हो गया। सेठनी शीतलप्रसादजीके साथ यहांसे गीरीडी (शिखरजी) गए और मगनबाईजी बम्बई आए। सेठजीका ध्यान चारों तरफ था। गीरीडी जानेकी जरूरत __ यह थी कि शिखरजीकी उपरैली बीसपंथी श्री शिखरजी बीसपंथी कोठीका कुल चार्ज रिसीवरके हाथमें-ट्रप्ट उपरली कोठीका कमेटीके हाथमें लिया जावे। शिखरजी चार्ज। बीसपंथी कोठीका प्रबन्ध हरलालजीके मरनेके बाद बहुत खराब था। प्रबन्ध आरावालोंके हाथ था । बम्बई समाने बारबार चाहा कि आरावाले एक कमेटी For Personal & Private Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ ] अध्याय दशवां । करके प्रबन्ध करें पर कुछ नहीं हुआ। उधर मेनेजर राघवनी और आरावालों में तकरार हो गई तब आरावालोंने अपना कब्जा किया, पर ४ ० ०००) पुलियाके कोर्टमें था उसको लेनेके लिये आरावाले. और राघवजीके मुकद्दमा चला जिसमें १५ या २० हजार खर्च पड़े । अंतमें राघवजीको हुक्म मिला कि आरावालोंके ऊपर असल दावा करो, परंतु द्रव्य न होनेसे राघवनीने ग्वालियरके भट्टारकको मुकद्दमा लड़नेके लिये खड़ा किया। उसने पुरलिया कोर्ट में दरखास्त दी कि रुपै हमें मिलना चाहिये। यह गड़बड़ देखकर सभाकी ओरसे सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद व रामचंद नाथा आकलन आदि मधुवन गए तो मालूम किया कि आरावालोंने भट्टारकजीको २००००) देनेका लालच देकर अपने कब्जे में कर लिया है तब बम्बईवाले मधुवन गए । कोठीके हिसाबकी बहियां आदि मंगी सो मिली नहीं। कहा गया कि आरा गई हैं। ३ मनके ३२५ चांदीके उपकरण भी आरा गए हैं, उस समय देखा गया तो मंदिरोंमें घीके स्थानमें तेलके दीपक जलते थे। गरीब भिक्षुकोंके नामका पैसा कोठोके नौकर खा जाते थे। ऐसी दुर्व्यवस्था देख वे तुर्त ग्वालियरके भट्टारक और आरेवालोंसे मिले । ११ मनुष्योंकी कमेटी बनाई। नियमावली भी बनी तथा उसकी रजिष्ट्ररी करानेका निश्चय किया गया, परंतु आरावालोंने बहाने कर दिये । इतनेमें सुना कि भट्टारकजी व आरेवाले छपरेमें कुछ सलाह कर रहे हैं। इस गड़बड़ीसे विश्वास उठ जानेपर बम्बईवालोंने पुलिया कोर्टमें ४००००)के रक्षणार्थ अर्जी दे दी कि यह दिगम्बर जैन सम्प्रदायद्वारा नियमित कमेटीको मिलना चाहिये, इतनेमें आरावालोंने भट्टारकजीसे मिलकर For Personal & Private Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४५९ एक इकरारनामा रजिष्टरी कराया जिसमें भट्टारकनीको १२०००) नकद और ६००) वार्षिक कोठीसे देना निश्चय किया तथा उसमें यह भी लिखा था कि भट्टारकजी, उनके चेले व अन्य किसी दि० जैनीको हमसे पूछनेका अधिकार नहीं है तथा उसी समय ३१००) नकद कोठीके भंडारसे दे भी दिये तथा पुरलिया कोर्टमें दरखास्त दे दी कि ९०००)भट्टारकजीको, शेष आरावाले प्रबन्धकर्ता शिखरचंदको मिलना चाहिये । ऐसी २ कार्रवाइयोंसे तीर्थक्षेत्र कमेटीको निश्चय हो गया कि विना कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप किये कोठीका प्रबन्ध सुधर नहीं सक्ता और न भंडार ही रक्षित रह सकता है। तब सेठ माणिकचंदजीने मुकदमा नं० १ सन् १९०३ दायर कर दिया। उस पर कोर्टने तुर्त एक रिसीवर साकरचंद देवचंद जैनी बोरसदनिवासीको नियत करके प्रबन्ध उसके हाथसे कराया । इसपर आरावाले घबड़ाए और नागपुरमें आकर सेठ गुलाबशाहजीके द्वारा बम्बईवालोंसे सुलहकर ली, तब केवल छपरावाले बाबू गुलाबचंदजी तथा ग्वालियरके भट्टारक ही मुद्दालय रहे । बम्बई वालोंने स्वयं छपरा जाकर समझानेका प्रयत्न किया, पर कुछ सफलता नहीं हुई। अंत में रांचीके जुडिशल कमिशन मि० डबलू. एच. विन्सेन्टने ता० २९ जून १९०५ को फैसला दिया कि पूराने सब प्रबन्धकर्ता हटा कर नए नियत हों। ता: २२ दिसम्बरको कुछ नियम नियत करके ७ ट्रष्टी तय कर दिये, जिसकी अंग्रेजी नकलका उल्था नीचे प्रकार है उपरैली कोठीके प्रबन्धके नियम । १-मंदिरकी कुल जायदाद नीचे लिखे सात ट्रष्टियोंकी कमेटीके For Personal & Private Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६०] अध्याय दशवां । आधीन रहेगी और मंदिर तथा तत्सम्बन्धी सर्व मकानादिकी कार्रवाई यह कमेटी करेंगी। १-बाबू देवकुमार, आरा. २-सेठ शिवनारायण, हजारीबाग. ३-सेठ माणिकचंद हीराचंद, बम्बई. ४-सेठ हीराचंद नेमचंद, सोलापुर ५-बाबू नन्दकिशोरलाल, आरा. ६--सेठ चुन्नीलाल प्रेमानंद, बोरसद. ७--सेठ नेमीसाह, नागपुर. २--ट्रष्टियोंका यह कर्तव्य होगा कि वह इस बातको देखें कि मंदिरका लहना यथोचित रीति और विचारपूर्वक बसूल होता है, सर्व खर्च सावधानी ( होशियारी) से किया जाता है, तथा जो कुछ खर्च किया जाता है वह धार्मिक कार्य तथा सर्वसाधारणके परोपकारके अर्थ ही है। ३--इस कमेटीको अधिकार रहेगा कि वह ट्रष्टके उचित प्रबन्धके लिये बहुत ही सन्तोषप्रद और आवश्यक रीतियां काम करनेके लिये परस्पर तय करले और ऐसे नियम अपने सभाके जल्सेके स्थान, समय और कार्य प्रणालीके बनावे कि जो आवश्यक मालूम हों-जब सब मेम्बरोंकी किसी प्रस्ताव पर राय न मिले तो वह प्रस्ताव बहु-सम्मतिसे स्वीकृत हो जायगा, परन्तु उसके विरोधकोंको अधिकार रहेगा कि वह इस कोर्टमें कोई भी प्रार्थना उस प्रस्तावके विरुद्धमें कर सक्ते हैं। ४--जमा खर्चका हिसाब प्रतिवर्ष किसी मुयोग्य परीक्षक (auditor ) द्वारा जांचा जायगा और इस कोर्टमें भेजा जायगा और आवश्यकतानुसार ऐसी रीतिसे छपाकर प्रसिद्ध किया जायगा For Personal & Private Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४६१ जैसा कि यह कोर्ट कहेगी और कमेटीकी इच्छा होगी । यह कमेटीकी इच्छापर छोड़ा जाता है कि वह अपना हिसाब तीर्थक्षेत्र कमेटी तथा अन्य किसी योग्य व्यक्तिसे जंचवाए - इस विषय में कमिटीके ऊपर भार देने की आवश्यकता नहीं है । ५ -- यदि कमेटीका कोई मेम्बर कालग्रस्त होवे व साथ में काम चलानेके अयोग्य हो तो शेष दृष्टियों का यह कर्तव्य है कि इस बातकी रिपोर्ट कोर्टको करें उस समय कोर्ट जैसी आज्ञा उचित समझेगी देगी अथवा यदि आवश्यक होगी तो नया ट्रष्टी नियत कर देगी 1 कमेटीको इतना अधिकार दिया जाता है कि किसी ट्रष्टीका स्थान खाली होनेपर वह नया सृष्टीका नाम पेश करें कोर्टको अधिकार है कि वह इस नामको स्वीकार करे व नाहीं कर दे । ६ -- इस कोर्टको यह अधिकार रहेगा कि वह किसी दृष्टीको विशेष कारणोंके आजाने पर उसको उचित सूचना देने तथा उसकी अच्छी तरह जांच किये जानेके पश्चात् उस ट्रष्टीको अधिक काम करनेको अयोग्य समझकर कमेटी से जुदा करदे -- कोर्टको यह भी अधिकार है कि वह अपनी आज्ञा तथा कार्यप्रणालीके किसी अंशको न्यूनाधिक (कमती बढ़ती ) करे और बदल देवे तथा यह भी अधिकार है कि नं. ३ पैरा (वाक्य) के अनुसार प्रार्थना पाने पर कमेटीद्वारा स्वीकृत विषयोंको बदल सके व काट देवे । यही विश्वास रखना चाहिये और यह आशा रहनी चाहिये कि कोर्ट कोई ऐसे ही खास मामलोंके सिवाय कार्य्यके बीच में दखल नहीं देवेगी । इस प्रबन्धक नियमावलीका एक योग्य और विश्वास योग्य जितना कम मौका दखल देनेका दिया जाबै उतना ही अच्छा है । उद्देश्य यही है कि मंदिरका प्रबन्ध कमेटीद्वारा होवै और कोर्टको For Personal & Private Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ ] अध्याय दशवां। कोर्टने बीचमें दखल देनेकी अपनी शक्ति इसीलिये रक्खो है कि अनावश्यक गड़बड़ न होने पावें । और किसी ट्रष्टीकी ओरसे ( कारण वशात् कोई आवश्यक्ता होने पर) कोई अयोग्य वीव न हो। ७-कमिटी जब चाहे इस कोर्टसे किसी मामले में सलाह तथा शिक्षा ले सक्ती है। ता. २२ दिसम्बर १९०५. डबल० एच० विन्सेन्ट-ऑफिशियल जुडिशल कमिशनर । इस आज्ञाके अनुसार तीर्थक्षेत्र कमेटीके महामंत्री सेठजी सिवनीसे सीधे गीरीड़ी आए, और और ट्रष्टियोंको भी बुलाया था सो हज़ारीबागसे सेठ शिवनारायण, आरासे बाबू देवकुमारजी और नंदकिशोरलाल तथा बोरसदसे चुन्नीलाल प्रेमानंद आए । सेठ जीने शीतलप्रसादजीके द्वारा एक नियमावलीका मसौदा तय्यार कर रक्खा था। गीरीड़ीकी बीसपंथी धर्मशालामें मिती ज्येष्ठ वदी १ सं० १९६३ ता० ९ मई १९०६ को २॥ बजे दिनके ५ टूष्टियोंकी कमेटी हुई । सेठ शिवनारायणजी सभापति हुए। नियमावली पास की गई तथा मंत्री परीख चुन्नीलाल प्रेमानंद नियत हुए। इनहीको कोठीका चार्ज देना तय हुआ। सभापति बाबू देवकुमारजी, कोषाध्यक्ष सेठ माणिकचंदजी और निरीक्षक बावू नंदकिशोरलाल आरा नियत हुए। यह भी नियम हुआ कि किसीको नया मंदिर व धर्मशाला बनवानी हो व नई प्रतिमा विराजमान करनी हो तो कमेटीसे आज्ञा लेवें । खर्चका वार्षिक बज़ट ९०००) का पास हुआ। इस प्रस्तावके अनुसार सेठ चुन्नीलालने रिसीवरचे सर्व सामानका For Personal & Private Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४६३ चार्ज ता० १० मईको लिया और डाह्याभाई शिवलालको कोठीका मैनेजर नियत किया । ज्येष्ठ वदी १ तक सरवाया १०४५६८)॥ का था । इस समय ११८९३०) आसामियोंसे, २५९७३।। यात्रियोंसे, ४९१९३||-) छोटा नागपुर बैंकमें, ३१००) मट्टारक सत्येन्द्रभूषणके पास व ३८३३||-) की रोकड़ थी। क्या २ सामान पाया इसका हाल रिपोर्ट नं० १ छपी १९०७ में, जो उपरैली कोठीसे प्राप्त होगी, दिया हुआ है। ऊपरके कथनसे मालूम करेंगे कि वीसपंथी कोठीके उद्धारमें सेठ माणिकचंदनीको कितना परिश्रम करना पड़ा है, तथा वृथाके ममत्वसे कितना धर्मका द्रव्य बर्बाद होता है। इस कोठीके उद्धारके मुकद्दमे में १००००)के अनुमान खर्च हुआ जो शिखरजीके भंडारको ही सहना पड़ा । ऊपरके फैसलेकी हाईकोर्ट में अपील की गई थी जिससे ४ ट्रस्टी और बढ़ाए गए थे। सेठ माणिकचंदनीने चार्ज आते ही उद्योग करके पुराने मध्यके मंदिरजीका जीर्णोद्धार कराया जिसमें २००००) भंडारका खर्च किया तथा धर्मशाला आदि सब ठीक कराई । अब बीसपंथी कोठीका प्रबन्ध पहलेसे बहुत अच्छा हो गया है, यात्रियोंको हर तरहका आराम है। किसी भी मंदिर या तीर्थके भंडारमें बहुत द्रव्य एकत्र न रखके उसको उपयोगी कामों में लगाते रहना चाहिये । स्थान दुरुस्तीके सिवाय शास्त्रभंडार बढ़ाने, शास्त्र लिखवा कर बांटने, जिस तीर्थ या मंदिरके निर्वाह या जीर्णोद्धारके लिये द्रव्यकी जरूरत हो वहां मदद करने, तीर्थपर संस्कृत धार्मिक विद्याका अभ्यास कराने में द्रव्यको लगाते रहना चाहिये । जो भंडारसे खर्च होता रहता है तो प्रबन्ध भी For Personal & Private Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ ] अध्याय दशवां । अच्छा होता रहता है, केवल जमा ही करते जाना यह नीति अच्छी नहीं है। पाठकोंको यहांपर यह भी विचारना है कि सेठजी ५५ वर्षके करीब थे। एक पैर जमीनपर जमता न था, लकड़ीके सहारे चलते थे तौभी आलस्य बिलकुल न था । तीव्र गर्मीके दिनोंमें भी आप धर्मकार्यके प्रबन्धके लिये बम्बईसे इतनी दूर आए थे। बम्बई लौटकर चौपाटीके दीवानखानेमें एक रोज़ सेठजी, श्रीमती मगनबाई और शीतलप्रसादजी बैठे सूरतमें मानपत्र और हुए थे । स्त्रीशिक्षाकी वात चली तब यह ५०००)का दान । प्रश्न उठा कि सुरत नगरमें कोई जैन कन्याओंके लिये पढ़नेका साधन रूप कन्याशाला नहीं है सो यह बड़े अचंभेकी बात है। तब सेठजीने कहा कि वहांकी मंडलीका शिक्षाकी तरफ बहुत कम ध्यान है, तौभी मैं प्रयत्न करूंगा कि वहां कन्याशाला होवे और यह मैं अपनी स्वर्ग प्राप्त पुत्री फुलकुंवरके नामसे खुलवाऊंगा। कई दिन पीछे ही आप शीतलप्रसादजीको लेकर सूरत पधारे । जे. पी. का पद मिलनेके पीछे आप पहेल पहल ही सूरत पधारे थे इसलिये यहांके दिगम्बरियों ने परस्पर सम्मति करके निश्चय किया कि अपने नगरके वतनीको जो प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है उसका हमें मान करके एक मानपत्र अर्पण करना चाहिये। ता० २९ मई १९०६ की रात्रिको नवापुराकी फूलवाड़ीमें सभा भरी। उस समय सेठ मूलचंद किसनदासजी कापड़िया आदि कई वक्ताओंके व्याख्यान हुए । शीतलप्रसादजीने बालक व बालि For Personal & Private Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [ ४६५ काओं की शिक्षापर अत्यन्त जोर दिया व सेठजी धर्मकार्यों में कितने निरालसी व अपने आरामको बलि देनेवाले व रात्रिके ६ घंटे सिवाय सदा जागृत रह काम करनेवाले हैं ऐसा वर्णन किया । सेठ कालीदास वखतचंदने सूरतकी सर्व दिगम्बर जैन समाजकी तरफसे निम्नलिखित मानपत्र चंदनके कास्केटमें अर्पित किया : नकल मानपत्र (सूरत) श्रीमान दानवीर शेठ माणिकचंद हीराचंद झवेरी जे० पी० मुंबाई. महेरबान साहेब, आपनां व्यवहारिक तथा धार्मिक कामोनी योग्य कदर बुझीने नामदार कृपालु ब्रीटीश सरकार तरफथी आपने 'जस्टीस ऑफ धी पीस' (सुलेहना अमलदार) नी मानवंती पदवी आपवामां आवेली छे के जे पढ़वी हमारा धारवा प्रमाणे आखा हिंदुस्तानना दिगंबरी जैनोमां कोईने नथी ते माटे अत्रेंनी आपणी जैन दिगंबरी पांचे गोठ तरफथी अमारा खरा अंतःकरणथी आ मानपत्र आपवानी रजा लइए छीए. आपे अत्रेना आपणा दांडीआ गच्छना देरासरनो जीर्णोद्धार कराव्यो छे तथा सार्वजनिकने माटे चंदावाड़ी नामनी मोटी अने सुंदर धर्मशाळा बनावी छे तथा जैन पाठशाळा आपना तरफथी चाले छे. मुंबई, कोल्हापुर, अमदावाद वीगेरे ठेकाणे आपे बोर्डिंग हाउसो खोलीने ए बतावी आप्युं छे के हालना समयमां जैन श्रीमंतोए For Personal & Private Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ ] अध्याय दशवां | पोताना पैसानो बहु भाग विद्योन्नतिना काममांज वापरवो योग्य छे. मुंबईमां खास करीने दिगंबरी यात्रालुओने उतरवानुं महान कष्ट दूर करवाने अने समस्त हिंदुओना आश्रयने माटे आपे स्वर्गपुरी समान हीराबाग नामनी धर्मशाळा सवा लाख रूपीआ खरचीने बनावी छे. आपनी योग्यता जोईने आप मुंबई प्रांतिक सभा, दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा अने स्याद्वाद पाठशाळानी प्रबंधकारिणी सभाना प्रमुख तथा भारतवर्षीय दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमिटिना महामंत्री निमायला छो. आप धर्मोपदेशनी वृद्धि करवा माटे आपना तन मन अने धनथी हमेशां निमग्न रहो छो तेमज जैनीओना दरेक मेळामां आप आगेवान भाग लईने सरवे ठेकाणे एक संप करीने विद्यानो फैलावो करो छो. आपनी आवी उदारता जोईने भारतवर्षीय दिगंबर जैन महा सभाए आपने गया डिसेंबर मासना सहारनपुरना अधिवेशनमा प्रमुख नीमीने उचित पात्रनो उचित सत्कार कर्यो हतो. आपे आ सिवाय बीजां अनेक धर्म वृद्धिना कार्यो करेला छे जेनी प्रशंसा करवाने हमो शक्तिवान नथी तोपण उपरना वाक्योमा हमारा खरा हर्षने प्रकट करीए छीए. हमो नामदार कृपाळु ब्रिटिश सरकारनो हमारा खरा अंतःक रणथी आपने आ पदवी आपेली छे ते मोठे उपकार मानीए छीए के सरकारे आपना सारा गुणोनी योग्य कदर बुझी छे. For Personal & Private Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग। [४६७ छेवटे हमो हमारा अंत:करणथी एवं इच्छीए छीए के आप आ पदवी लांबो वखत भोगवी एथी वधारे सारी पदवीओ मेळववाने तथा भारतवर्षनी सर्वे जैन जातिनो तथा बीना भाईओनो उपकार करवाने भाग्यशाळी थाओ.. सूरत ता. २९ मे सने १९०६ ली० कालीदास वखतचंद सुरतना जैन दिगंबरी पांच गोटना शेठ उस समय सेठनीने अपनी तुच्छता प्रगट करते हुए कहा कि नवापुरामें मेरी पुत्री फुलकुंवरके नामसे कन्याशाला खुले उसके लिये मैं ५०००) रु० अलग करता हूं। उस समय समाने आपको बहुत २ धन्यवाद दिया। ता० १९ जुलाई १९०५ को हीराचंद गुमाननी जन बोर्डिगके छात्रोंने कार्ड बंटवाकर एक भव्य मिलावड़ा बम्बई बोर्डिगमें सभा सेठ माणिकचंदनीके सम्मानार्थ महेश्री व सेठजीको लखमशी हीरजी बी० ए० एल एल० बी० मानपत्र । के सभापतित्वमें किया और कई व्याख्यानोंमें छात्रोंने व सभापतिने वे अपूर्व लाभ वर्णन किये जो सेठजी द्वारा स्थापित बोर्डिंगसे दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी सर्व ही जैन छात्रोंको मिलते हैं और एक बहुत सुन्दर छपा हुआ मानपत्र चांदीके कास्केटमें अर्पण किया गया जिसकी नकल पृष्ठ ४४२ पर दी गई है। For Personal & Private Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करक मा ४६८ ] अध्याय दशवाँ अजमेरके प्रसिद्ध सेठ नेमीचंदजी साहब बम्बई पधारे । आपकी बम्बईमें बहुत ऊंची और प्रतिष्ठित दूकान हीरावागमें सभा और 'जवारमल मूलचंद । के नामसे है । आपको स्याद्वाद पाठशाला शास्त्रोंका ज्ञान है तथा धार्मिक नित्य काशीके लिये नियमों के पालनेमें इतने सावधान हैं कि यदि १५०००)का शरीर अस्वस्थ न हो तो आप प्रतिदिन श्री संकल्प । जिनेन्द्रकी अष्ट द्रव्यसे पूजा करके व स्वाध्याय करके भोजन करते हैं। यदि परदेशमें भी जावें और ९, १० भी बन जावे तो भी वहां मंदिरजीमें पूनन स्वाध्याय करके भोजन करते हैं तथा आप हर एकको जो मिले उससे स्वाध्याय करनेके लिये पूछते हैं । व्याख्यान देने का भी आपको अभ्यास है । हीराबाग धर्मशालाके लेक्चर हॉलमें ता० १९ जुलाईकी रात्रिको नोटिस बांटकर परोपकारी मि० ए० बी. लढे एम० ए० के सभापतित्त्वमें सभा की गई, उसमें सेठ नेमीचंदनी सोनीने 'विद्योन्नतिपर एक अति प्रभावशाली व्याख्यान दिया तथा संस्कृत विद्याकी जैनियोंमें आवश्यक्ता बताई और जो स्याद्वाद पाठशाला ता० ११ जून १९०५ को काशीमें स्थापित हुई थी उसकी अति प्रशंसा की व काशी ही पंडितोंके पैदा करनेका स्थान है ऐसा कहा और सेठ माणिकचंदनीको इसके स्थापनके लिये धन्यवाद दिया तथा कहा कि उसको चिरस्थाई कर देना चाहिये जिसमें वह सदाको चलती रहे । आपके व्याख्यानके कुछ वाक्य उपयोगी जानकर नीचे दिये जाते हैं"यहां तक हम बे खबर हैं कि हम लोग अपने बालकोंको धर्मविद्या तकका ज्ञान नहींकराते हैं इसी कारण देखने में आता है कि लोग न भाव For Personal & Private Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४६९ सहित जिनेन्द्रका दर्शन पूजन करते हैं न शास्त्रस्वाध्यायमें मन लगाते हैं। लौकिक विद्याकी भी प्राप्ति नहीं करते, जिसमें कोई यंत्र आदि निर्मापण कर व व्यापारको विदेशों में बढ़ाकार लक्षोंका धन एकत्र करें व सर्कारी बड़े २ ओहदे प्राप्त करें जिसमें १०००) व ८००) मासिककी प्राप्ति हो । दान भी हम लोग यथोचित नहीं करते । मेले, प्रतिष्ठाओंमें व अपने पुत्रपुत्रियों के विवाहोंमें लाखों हज़ारों खर्च करना ठीक समझते हैं किन्तु आवश्यकीय आहार व विद्यादानमें नहीं । हमारी जैन जातिमें पुराने विद्वान धीरे २ अन्त होते जाते हैं, परंतु हम नए विद्वानोंके उत्पन्न करनेका दिल लगाकर कुछ प्रयत्न नहीं करते । काशीमें यद्यपि स्याद्वाद पाठशाला नियत हो गई है तथापि विना ध्रौव्य फंडके बालुकी भीतिके । समान है यदि एक मेला करनेकी भांति कोई भाई इस पाठशालाको चिरस्थाई कर दे तो कितनी धर्मकी उन्नति हो। लोग पुनर्विवाह करनेके पक्षको पकड़नेको दौड़ते हैं, पर यह पक्ष नहीं करते कि हम अपनी कन्याओं का विवाह १२ वर्ष से कम उम्र में न करेंगे, न हम लोग अपनी कन्याओंको पढ़ाते हैं। अफसोसकी बात है, क्या हम लोग श्री आदिनाथ भगवानसे भी बढ़ गए ? क्या उनको मालूम नहीं कि श्री आदिनाथनीने अपनी पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरीको अपने आप पढ़ाया था । सदविद्या पढ़नेसे कदापि हानि नहीं हो सक्ती।" सेठ माणिकचंदनीने सेठ साहबके व्याख्यानकी बहुत प्रशंसा की तथा निवेदन किया कि यदि हमारे सेठजी चाहे तो आज यह चिरस्थाई हो जावे । सभा सानन्द समाप्त हुई। रात्रिको ही सेठजीने For Personal & Private Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ ४७० ] अध्याय दशवां । शीतलप्रसादजीके साथ सम्मति की कि यदि एक २ हजार रुपया लोग देखें तो यह पाठशाला सहजमें चिरस्थाई हो जावै । राय ठहरी कि कल सेठजीके पास चलना चाहिये और कहना चाहिये कि एक हजार आप देवें तथा १०००) मैं लिखनेको तय्यार हूं। दूसरे दिन दोपहरको शीतलप्रसादजीके साथ सेठ माणिकचंदनी सेठनीकी दुकानपर गए और कहा कि मैं एक हजार देता हूं आप भी एक हजार देवे। तब सेठ नेमीचंदजीने कहा कि जबतक आप १५ नाम हजार २ वाले न लिखवा लेंगे तबतक मैं रुपया न दूंगा। सेठजीने स्वीकार किया तथा तय हुआ कि पाटशालामें इस सम्बन्धी एक पाटिया टांगा जावे जिसमें ऐसे दातारोंके नाम सुनहरी अक्षरों में लिखे जावें । उसी समय एक कागनपर मसौदा लिखा गया तथा शर्त १५०२०) की डाली गई कि यदि ये न भरें तो यह चंदा रद्द होगा । प्रथम ही सेठ नेमीचंदने जवारमल मूलचंद (अपनी दूकान)के नामसे १०००) लिखे, फिर दूसरा नाम अपने पूज्य पिता का सेटजीने लिखा, उसी दिनसे सेठजीको फिकर हुई कि शीघ्र १५०००) पूरे करने चाहिये। _बम्बईके प्रसिद्ध कोठीवालोंके पास कई वार जाकर व काशी, कलकत्ते, भातकुलीमें घूमकर सेठजीने ता. ३१ दिसम्बर १९०६के लगभग १५ नाम पूरे करलिये । वह नामावली इस भांति है: १-सेठ जवारमल मूलचंद, बम्बई २-सेठ हीराचंद गुमानजी ,, ३-सेठ तिलोकचंद हुकमचंद ,, १०००) १०००) १०००) For Personal & Private Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसवा प्रथम भाग | ४ - सेठ गांधी बालचंद उगरचंद ५ - सेठ हरमुखराय अमोलकचंद ६ - गांधी रावजी साकलचंद, ७ - सवाई सिंहई रिखमसाह गुलाबसाह, नागपुर "" 19 ८- बाबू देवकुमारजी, आरा ९ - लाला रूपचंद रईस, सहारनपुर १० - लाला कुंजीलाल बनारसीदास, बनारस ११ - लाला छेदीलालजी १२- लाला हनूमानदास बाबूनंदनजी १३ - लाला खड़गसैन उदयराज "" "" 93 १४ - बाबू घन्नूलाल एटर्नी, कलकत्ता १५. - जौहरी माणिकचंद हीराचंद जे. पी० बम्बई [ ४७१ १०००) १०००) १५०००) यह फंड बढ़ता रहा यहां तक कि ता. ३१ जुलाई १९१५ तककी रिपोर्ट में रु. २३५००) का हो गया था । १०००) १०००) १०००) १०००) १०००) १०००) १०००) १०००) १०००) १०००) सेठजीका स्वर्गवास हो गया नहीं तो वे इसे ॥) सैकड़े के व्याजसे ६००) मासिक खर्च के योग्य १ लाखका फंड कर देते, परंतु उनके जीवनचरित्रको पढ़कर उदारचित्त धनाढ्योंका कर्तव्य है कि इसके फंडको शीघ्र पूरा करा देवें ताकि यह संस्था अमर रहकर सेठ माणिकचंदजीकी स्मृतिको कायम रखनेके सिवाय सेठ नेमीचंदजीकी इच्छानुसार संस्कृत विद्वानोंको उत्पन्न करती रहे । For Personal & Private Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ ] अध्याय दशवां । होना । सेठ माणिकचंदजीने एक दिन शीतलप्रसादजी से कहा कि तीर्थक्षेत्र कमेटीका मैं महामंत्री हूं तथा वह हीराबाग में तीर्थक्षेत्र कमेटी स्वतंत्रता से काम करनेको महासभा कमेटीका दफ्तर द्वारा स्थापित हुई है पर उसका कोई दफ्तर कायदे से नहीं है । उसका काम शिथिलता के साथ बम्बई प्रान्ति सभाके द्वारा ही चलता है । उसीके द्वारा बीसपंथी कोठी शिखर जीका मुकद्दमा किया गया जिसमें करीब ८००० ) का कर्जा बम्बई प्रान्तिक सभाका है । पं० गोपालदास बरख्या महामंत्री प्रान्तिक सभाके हिसाबको इसी कारण न पास करते हैं न प्रसिद्ध करते हैं । वे कहते हैं कि इस रुपये को चुकाना चाहिये; सो यदि तुम थोड़ा परिश्रम लो और दफ्तर की सार सम्हाल रक्खो तो दफ्तर हीराबाग में खोला जाय और मैनेजर नियत करके कायदेके साथ सब काम तीर्थोंके उद्धारका कराया जाय तथा इस रकमका भी जमा खर्च 発 होकर बम्बई प्रातिक सभाका हिसाब पास हो तथा हमारी दूकान पर जो तीर्थों के लेनदेनके बहुतसे खाते हैं वे भी सब यहीं बदल दिये जावें । शीतलप्रसादने सेठजीकी सम्मतिको बहुत ही पसंद की और यथासंभव मदद देनेके लिये कहा, तब सेठ माणिकचंदजीने हीराSarah दफ्तरवाले हॉल में कायदेके साथ ताः १ अगस्त १९०६ को दफ्तर खोलनेका महूर्त किया तथा बाबू बुधमल पाटनी जो संस्कृत और इंग्रेजीके जानकार धर्मात्मा भाई थे मैनेजर नियत किया तथा सर्व सभासदों, तीर्थक्षेत्र के प्रबन्धकर्ताओं व अन्य महाशयोंको For Personal & Private Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४७३ जैनगजट, जैन मित्र तथा जिनविजय में सूचना प्रगट कर दी कि दफ्तर खुला है इस लिये तीर्थक्षेत्र सम्बन्धी सर्व पत्र व्यवहार व रुपया आदि नीचे लिखे पते पर भजना चाहिये - माणिकचंद हीरा - जे. पी., महामंत्री, भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, हीराबाग धर्मशाला, गिरगांव - बम्बई । उज्जैनकी बिम्बप्रतिष्ठा में सेठ माणिकचंदजी से बागड प्रान्तके बहुत से जैनी भाई मिले थे और निवेदन वागड़ प्रान्तका दौरा किया था कि हमारे प्रान्त में उपदेश करावें, व सेठजीके बचनकी घोर अंधकार है । तबसे सेठजीको ध्यान था सत्यता । कि किसीको भिजवाया जाय । इन दिनों में महा सभा में कोई योग्य उपदेशक न था तव मालवा प्रान्तिक सभाके उपदेशक विभाग के मंत्री लाला हज़ारीलाल नीमचसे सेठनीका पत्र व्यवहार चल रहाथा कि आप अपने यहांके उपदेशकको अवश्य भेजे । मंत्री महाशयने स्वीकार करके मिती आसोज सुदी ११ सं. १९६३ से पं० कस्तूरचंदजी उपदेशकको दाहोद, लेमडी, नालह, रामपुरसे उदयपुर स्टे - शन तक ५० ग्रामों में घूमनेका प्रोग्राम देकर भेज दिया जिसकी सुचना जैन गज़ट अंक ५१ ता० १ नवम्बर ०६ में मुद्रित करा दीं । वास्तव में जो बड़े पुरुष होते हैं उनको अपने बचनों का बड़ा भारी ध्यान रहता है । उपदेशकजी दौरे पर रवाना होगए हैं ऐसा जानकर तुर्त सेठजीने १००) उपदेशक भंडारकी सहायतार्थ नीमच भेज दिये । For Personal & Private Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ । अध्याय दशवां। शेठ प्रेमचंद मोतीचंद दिगम्बर जैन बोर्डिंग स्कूलका वार्षिक अधिवेशन ता० ३० सितम्बर १९०६ को अमदावाद बोर्डिगमें बड़े समारोहके साथ हुआ । इसमें सेठ मासभा। णिकचंदजी शीतलप्रसादनीके साथ गए। ५०० गृहस्थ बाहरसे आए थे। सभापतिका आसन मि० चिनूभाई माधवलालने ग्रहण किया। आपने शिक्षा सम्बन्धी मनोहर भाषण दिया था । मियागांवके भगवानदास हरजी वनदासने १०००) व धनजीशाह मोतीचंद करमसदने १५१) मदद दी । आमोदवाले सेठ हरजीवन रायचंद भी आए थे । सेठनीको गुजरातके भाइयोंकी स्थिति देखकर बहुत दया आती थी और इसके सुधारनेके लिये इनकी समझमें एक गुजराती मासिक पत्र निकालनेकी खास आवश्यकता दीखती थी, जिसके लिये सम्पादकी करने योग्य आपने सेठ हरजीवन रायचन्दको तजबीज किया था । हरएक वार्षिक सभामें सेठनी इनको प्रेरणा करते थे । इस वर्ष विशेष जोर देकर कहा । साथमें यह भी कह दिया कि आप एक योग्य सवैतनिक कारकूनको रखकर उससे काम लेवें जिसका वतन मैं अपनी तरफसे देनेको तय्यार हूं । इस बातको सुनकर हरजीवन रायचंदने सेठजीके आश्चर्यकारक जाति प्रेमकी आति प्रशंसा की और यह कहा कि मैं यथाशक्ति इस कामके करनेका यत्न करूंगा। पत्रका नाम दिगम्बर जैन रखना तजबीज हुआ । यद्यपि सेठ हरजीवन रायचंद इस कामके योग्य थे पर ग्राममें रहने और बहुधन्धी होनेके कारण समय न निकाल सके और वह दिगम्बर जैन एक वर्ष तक फिर भी न निकला ! For Personal & Private Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सेवा प्रथम भाग | [ ४७५ सेठ हरजीवन रायचंद लिखते हैं कि सेठजीको अपने धनवानपनेका जरा भी मान न था । भोजन और शयन भी गुजरातके आनेवाले सर्व भाइयों के साथ एक पंक्ति में ही करते थे, किसी भी तरहका असमान भाव अथवा मोटापन या जुदाईकी ज़रा भी भावना किसीके मनमें नहीं आने देते थे । बोर्डिगके कायदा कानूनकी चर्चा बहुत ही शांतिपूर्वक तथा न्याय से करते थे । हरएक ग्रामके मुख्य गृहस्थीकी मुलाकात लेकर वहांकी वस्ती, शिक्षा, मंदिरकी स्थिति आदि संबंधी बहुतसा हाल मालूम कर उनको योग्य सम्मति व मदद देते थे । शीतलप्रसादजीने इस वर्ष सेठजी में यह बात प्रत्यक्ष देखी और इनके सादे मिज़ाज़, सादे खानपान, रहनसहनको व सबके साथ मिलनसारी देखकर बड़ा ही हर्ष माना । सभा तीर्थक्षेत्र कमेटी के दफ्तर के खुलते ही व मुकद्दमेंकी रकमका जमाखर्च होते ही बम्बई प्रान्तिक सभाका श्री गजपंथाजी पर हिसाब व रिपोर्ट तय्यार हो गई तब परोपTE प्रान्ति कारी सभासदोंने श्री गजपंथाजी पर अधिवेशन करना निश्चय किया । इसके प्रबन्धार्थ हीराबाग में एक सभा हुई जिसके सभापति सेठ माणिकचंदजी हुए । अधिवेशन के खर्च के लिये ११०० ) का बजट हुआ व २५ महाशयोंकी स्वागत कमिटी बनी | सभापति सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद, मंत्री दोशी पानाचंद रामचंद, सहायक मंत्री लल्लुभाई प्रेमानंददास तथा पंडित लालाराम, और कोषाध्यक्ष सेठ सुखानंदजी हुए । For Personal & Private Use Only सेठजीका सरल स्वभाव | Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६ ] अध्याय दशवां वर्षातके मौसममें सेठजी बम्बई ही में ठहरे और तीर्थक्षेत्र कमेटीके दफ्तरमें अपने दिनका बहुतसा समय देने लगे । भादो मासमें आपने शीतलप्रसादनीके द्वारा गुजराती दि० जैन मंदिर में सवेरे दशाध्याय सूत्रजीके अर्थ बँचवाये तथा रात्रिको शास्त्रीद्वारा अनेक प्रकारका उपदेश कराया। बम्बई में सेठजीका सम्मान सर्व ही करते थे। श्वेताम्बरी विद्वद् मंडली भी बड़े आदरसे देखती थी। मांगरोल जैन सभा में यहां श्वेताम्बर जैनियों की एक मांगरोल जैन सेठजी सभापति । सभा है उसका एक अधिवेशन ता. १० सितम्बर०६के रोज हुआ और सेठ माणिकचंद हीराचंद जे. पी. को सभापतिका आसन दिया । इस सभामें अहमदाबाद निवासी मि० नगीनदास पुरूषोत्तमदास संववीने — आहारशुद्धि' पर एक मनोहर व्याख्यान दिया था। सेठ माणिकचंदनीकी दूसरी सुसराल फलटन में थी इसलिये फलटन जानेका बहुत अवसर पड़ता था। · फलटन सरकारसे मि-वहांके राजासे भी आपकी मित्रता ही सी त्रता व कन्याविक्रय थी। सेठजी मकान बनानेके काममें ऐसे निषेध । अनुभवी थे कि अच्छे इंनीनियर जिप्स बात को नहीं सोच सक्ते वह इनके ध्यानमें आती थी। सेठजीने बोर्डिंग व हीराबाग धर्मशालाके सिवाय बम्बई में कई बड़े २ आलीशान मकान अपनी बुद्धिसे बनवाए थे जो आज तक -मौजूद हैं। चौपाटीका रत्नाकर पेलेस समुद्रकी सुन्दर पवन लेनेके लिये बम्बईमें एक अनुपम महल है। महाराज फलटन एक दफे For Personal & Private Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४७७ इसी बंगले में ठहरे थे। आपको बहुत ही आराम मिला तब हीसे मित्रता हो गई थी। मकान बनवानेके काममें सर्कार फलटन आपसे सम्मति लेती थी व आपके द्वारा बम्बईसे सामान भी मंगवाती थी। इसी वर्षके भादो मासमें सेठजीका गमन फलटन हुआ तब वहां एक जैनियोंकी सभामें आपने कन्याविक्रय बंद करनेका ठहराव पास कराया। इसको अमल में लानेके लिये फलटनके दो तीन भुखियोंने वचन दिया । इसकी खटपट करनेके लिये सेठजीने रु० २५) सभाको भेट भी किये। बरार और मध्य प्रदेश दिगम्बर जैन प्रान्तिक सभा भी कई वर्षसे धीर २ कुछ २ सुधार बरारकी ओर सेठजी वरार प्रा० स- कर रही थी जिसके मुख्य कार्यकैर्ता रा. रा. भाके सभापति और जयकुमार देवीदास चौरे बी. ए. बी. एल.. भ्रमण। वकील अकोला थे । इसका चौथा वार्षि कोत्सब मिती कार्तिक वदी ५-६ ता० ६ व ७ नवम्बर १९०६ को भातकुली अतिशय क्षेत्रमें होनेवाला था। यह क्षेत्र अमरावती नगरके पश्चिम १० मीलके अनुमान है । रास्ता बहुत टुटा फूटा खराब है । बैल गाड़ी ३ घंटेमें जाती है। यहां चतुर्थ कालकी अति मनोज्ञ श्रीआदीनाथ स्वामीकी पद्मासन दिगंबर जैन मूर्ति है। आसपास इसकी बहुत . महिमा है । इसके लिये सेठ माणिकचंदनीकी सभापति होनेकी स्वीकारता ले ली गई थी। बम्बईसे सेठ माणिकचंदनी अपनी सुपुत्री मगनबाईनीके साथ तथा शोलापूरके सेठ हीराचद नेमचन्दके पुत्र बालचंद तथा बावू शीतलप्रसादके साथ अमरावती गए। वहांके भाइयोंने For Personal & Private Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ ] अध्याय दशवां । स्टेशनपर बहुत ही सत्कारके साथ स्वागत किया। वहांसे भातकुली गए । अमरावतीसे देशभक्त गणेश कृष्ण खापर्डे वी० ए० एल० एल० बी० व डाक्टर मुंजे व रा० रा० दुरानी वकील भी सभाद्वारा निमंत्रित हो भातकुली पधारे और सेठजीके निकट ही ठहरे । खापर्डे महाशय बड़े ही निरभिमानी व परोपकारी हैं। जैनियोंको उपदेश करनेके लिये आपने इतनी दूर आनेका महान कष्ट उठाया था। अधिवेशनमें शरीक होने के लिये नागपुरसे गुलाबप्साहजी, एलिचपुरसे सेठ नत्थूमाह, अंजनगांवसे सिंहई एसुसिंहई सोनासिंहई, पारोलासे सेठ पीताम्बरदास आदि ५००० स्त्री पुरुष एकत्र हुए थे। कार्तिक वदी ५ वीर सं० २४३३ ता० ६ नवम्बर १९०६ को सभाका प्रथम अधिवेशन हुआ । माननीय खापर्डे 'आदि सर्व उपस्थित हुए । सभा खचाखच मनुष्योंसे भरी हुई थी। सेठजीने सभापतिका आसन एक भारी आनन्द ध्वनिके मध्य ग्रहण करके अपना छपा हुआ भाषण स्वयं खड़े हो बड़ी ही गंभीरता और शांतिसे पढ़ा । इसमेंकी कुछ उपयोगी बातें यहां दी जाती हैं-"जैन जाति घोर निद्रामें सोई पड़ी है उसके उठानेका प्रयत्न सभा ही है। बम्बई प्रान्तिक सभाने इसीके द्वारा बहुत कुछ उन्नति में कदम बढ़ाया है तथा इस बरार सभाके मुख्य संस्थापक सेठ गुलाबसिंहजीने ५००००) .. अलग निकालकर एक कमिटीके आधीन कर दिया है जिसके व्याजसे ६२॥ टका तीर्थोके सुधार व ३७॥ टका विद्योत्तेननमें खर्च हो ऐमा नियम किया है। नागपुर में जैन पाठशाला है तथा बोर्डिंग भी खुला है । सभाको शिक्षाकी ओर विशेष ध्यान देना चाहिये । जैसे विना जड़के वृक्ष नहीं ठहर सक्ते ऐसे विना शिक्षा For Personal & Private Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग [ ४७९ के समाजकी उन्नति नहीं हो सक्ती है । इसमें सर्वसे पूर्व बालकोंको धर्म ही की शिक्षा देनी चाहिये जिससे उनको यह विदित हो जाय कि उनको बाल्यावस्थामें ब्रह्मचर्य पाल विद्याभ्यास करना योग्य है । उच्च शिल्प और व्यापारकी योग्यता प्राप्त करानेके । लिये हमको बड़े २ नगरोंमें जैन बोर्डिग खोल्ने योग्य है । जब छात्र उच्च शिल्पादि जान ले तब उनसे कारखाने खुलवावें व व्यापार में सहायता देवें । जबतक हमारे नित्य कामकी वस्तुएं जैसे कपड़ा, दियासिलाई, छाता आदिक यहां न बनेंगे तबतक हमारे धनकी उन्नति नहीं हो सक्ती | स्त्री शिक्षाकी आवश्यक्ता बताते हुए कहा कि बालकका मन एक प्रकारकी पृथ्वी है जिसमें माता ही उत्तम बीज डालकर कृषकका कार्य कर सकती है । स्त्रीशिक्षाके उत्तेजनार्थ हमको अपने शास्त्रोंमेंसे प्राचीन पढ़ी हुई गृहस्थ स्त्रियोंके जीवनचरित्र जमाकर पुस्तकाकार प्रगट करना चाहिये । व्यर्थव्यय व कुरीतिको दूर करनेकी प्रेरणा करके तीर्थक्षेत्रों के विषय में कहा कि नये मंदिर बनानेकी अपेक्षा प्राचीनका जीर्णोद्धार करना चाहिये तथा प्रबन्धकर्ताओं को उचित है कि वार्षिक हिसाब प्रगट किया करें । प्राचीन जैन ग्रंथोंके उद्धार, अनाथोंकी रक्षा पर कहके अहिंसाके प्रचारपर विशेष जोर दिया। मांसाहार निषेधक पुस्तकें बांटना चाहिये | आपने कहा कि इंग्रेजीमें good news for the afflicted नामकी पुस्तक है जिसमें मांसाहार विरुद्ध प्रमाण और दृष्टान्त है उसका उर्दूमें उल्था करानेके लिये अलीगढ कालिज के मुसलमान छात्रों को इनाम नियत किया था । ११ ने तर्जुमा लिखा जिसमें सर्वोत्तम ३ को ७५ ) का इनाम दिया गया था । सर्वोत्तम उल्था एक बी० ए० का था जिससे प्रगट होता था कि उसने 1 For Personal & Private Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० ] अध्याय दशवां। मांस खाना त्यागा होगा। उसके उर्दू तर्जुमेको इसलामिया हाईस्कूल बम्बईके सेक्रेटरीको दिखाया। उनके अनुरोधसे १००० उर्दु नकलें छपवाई । उस सेक्रेटरीने उस उर्दू तर्जुमेको पढ़कर मुझसे कहा कि मेरी तबियत मांस खानेसे हट गई है और मैं धीरे २ छोड़ता जाता हूं। फिर सेठजीने कहा कि एकताके लिये सभाएं स्थापित करना चाहिये । खापर्डे और डा० मुंजेके स्वदेशी वस्तुओंके प्रचारपर बहुत ही असरकारक व्याख्यान हुए । ता० ७ नवम्बरको महिला परिषद् हुई, २५०० स्त्रियां होगी । सौ० गुंजाबाई प्रमुख हुई । श्रीमती मगनबाईने स्त्रियों के कर्तव्यपर बहुत ही असरकारक भाषण दिया । सौ० सीताबाई आदिने भी कहा । मगनबाईजीने पढ़ी हुई स्त्रियों को जैन पुस्तकें बांटी। बहतसे प्रस्ताव पास हुए उनमें धर्मादेका सदुपयोगके प्रस्तावपर सेठ माणिकचंदनीने बहुत ज़ोर दिया । कारंजा, अमरावती, अंजनगांव आदिकी पाठशालाओंके छात्रोंकी परीक्षा बाबू शीतलप्रसाद आदिने ली । सेठ माणिकचंदजीके पास मिलने प्रायः हरएक गांवके मुखिया लोग आते थे । उनको सेटनी शिक्षा प्रचार, कुरीति निवारणके उपदेश देने में अपना समय लगाते थे। आपने यहां भी स्याद्वाद पाठशालाके चिरस्थायी करनेके खयालको नहीं भुला था। सेठ गुलावसाहनीको समझाकर एक नाम भराया। भातकुलीसे अमरावती होकर आप अपनी मंडली सहित श्री मुक्तागिरजीकी यात्राको पधारे । उस श्री मुक्तागिरजीकी वक्त ४० मीलका बैलगाड़ीका रास्ता था । यात्रा। एलिचपुर होते हुए तीर्थपर पहुंचे। यह तीर्थ सिद्धक्षेत्र है। यहांसे ३॥ करोड़ मुनि मोक्ष For Personal & Private Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४८१ पधारे हैं । पहाड़पुर ४८ दि० जिनमंदिरजी हैं जिनमें प्रतिबिम्ब व चरणपादुकाएं हैं। इनमें कई बहुत प्राचीन हैं। यह पर्वत बड़ा रमणीक है । यहां पहाड़से पानीका झरना बड़ी दूरसे सदा गिरता है जिससे अपूर्व शोभा रहती है । तलहटीमें ९ मंदिर व धर्मशाला है । मुनीम बापूजी लक्ष्मण आगरकर मिले । इन्होंने बहुत अच्छी तरह ठहराया । इस तीर्थकी यात्रा से सवको परमानन्द हुआ । बेतूलके एकष्ट्रा अ० कमिश्नर रायबहादुर बाबू हीरालाल बी०ए०के पास इस तीर्थ सम्बन्धी एक ताम्रपट है उससे राजा श्रेणिक ( बिम्बसार ) व उसके पिता उपश्रेणिकका इस पर्वत से सम्बन्ध मालूम पड़ता है । यह श्रेणिक २ || हजार वर्ष हुए श्रीमहावीर स्वामीके उपदेशका मुख्य श्रोता था । यहां पर निकट ही जो एलिचपुर नगर है वह एल नामके जैनी राजाके नामसे प्रसिद्ध हुआ है जो संवत् १९१५ में हुआ था (देखो इम्पीरियल गैज़ेटियर आफ इंडिया वाल्यूम १२ ) इस पर्वत पर केशरकी वृष्टि कभी २ होती है यह बात सर्व प्रसिद्ध है । यूरुपियन लोग इस तीर्थ के दर्शनको आते हैं। उनका यह श्रद्धान है कि जो एक बार भी इस पर्वतका दर्शन कर जाता है उसकी तरक्की होती है और धन भी प्राप्त होता है । ता० २४ नवम्बर १९०९ को यहां डिप्टी कमिश्नर दोवारा आए थे तब आपने रिमार्क लिखा है "I was much struck with the cleanliness of the plain and arrangement made for visitors" अर्थात् मैं इस क्षेत्रकी निर्मलतासे और यात्रियोंके लिये योग्य प्रबन्धसे बहुत प्रसन्न हुआ । यहां पर ता० २७ – १२ - १९०९ को एच० कैम्पल, मिस ३१ For Personal & Private Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ ] अध्याय दशवा कैरनेन्डर लूसी बरनट ऐसी इंग्रेजोंकी एक पार्टी आई थी उसने बहुत अच्छा रिमार्क किया है This charming place due to the charity and munificence of the Jain Community, so full of beauty and interest perched in such commanding surroundings wrought upon us all sorts of spell. One would well believe that the green moss-grown water fall was fashioned, as we were told by our guide, by the fairies. The images of the Gods, their expressive countenances mysterious and brooding, with foreheads that seem to hide : within themselves great thoughts withdrawn and unspeakable, the courtyards, the temples and all their beauty, brought ' great enjoyment to our party. (Sd). H. CAMPBELL . MISS KIRNANDER LUCY BURNETT भावार्थ-हम लोग इस महा रमणीक स्थानको देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए । इस स्थानकी इतनी सुन्दरता, जैन समाजकी उदारता और दान परायणताके निमित्तसे ही हुई है । जैन देवोंकी मूर्तियां उनके प्रसन्न मुख तथा मस्तक जो कि मानो अकथनीय गंभीर विचारोंको अपने आपमें धारे मग्न किये हैं। यहांका मैदान, मंदिर और इनकी मनोहरताने हम लोगोंको बहुत ही आनन्द प्रदान किया । इस तीर्थक व्यवस्थापक तानासा राजाजी जिंतूकर एलिचपुर हैं। सेठजीने वहांकी त्रुटिये मालूम की कि कुएकी जरूरत है व For Personal & Private Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग [४८३ २ मील सड़क बहुत ही खराब है सो एलिचपुर आकर लालासा मोतीसाके वहां ठहरे और इन दो कामोंके लिये कहा तथा हिसाबादि तीर्थक्षेत्र कमेटीके दफ्तरमें बराबर भेजे जानेकी प्रेरणा की। यहांसे अमरावती आकर नागपुर आए । सेठ गुलाबसाहनीके वहां १ दिन' ठहरे । उनको ५००००) का ट्रष्ट रजिष्टरी करनेके लिये मसौदा लिखाया। वहांसे रामटेक यात्रा करने गए । नागपुरसे २४ मील रामटेक है । एक छोटी लाइन गई है। यहां श्री शांतिनाथ स्वामीकी दिगम्बर जैन रामटेककी यात्रा। खड़गासन मूर्ति १५ फुट ऊंची अतिशय मनोज्ञ है। चौथे कालकी मालूम होती है। यहांकी यात्रा करके सर्व लोग बम्बई आए।। जैन जातिमें कितना अज्ञान, व्यर्थ व्यय व कुरीतिका प्रचार है इस बातको अपनी इधर उधरकी यात्रासे सेठ माणिकचंदजी- व चौपाटीपर दर्शन करने आनेवाले भिन्न २ की धर्मप्रचारकी देशोंके यात्रियोंसे मालूम करके तथा यह चिंता । भी शिकायत मालूम करके कि कोई उपदेशक आता जाता नहीं है तथा उपदेशकोंका दि० जैन समाजमें अभाव देखकर इसकी पूर्ति कैसे हो इसका उपाय सोचते रहते व शीतलप्रसादजीसे पूछते रहते थे। शीतलप्रसादजीने एक दिन यह सलाह दी कि उपदेशकीय परीक्षा कायम की जावे । उसका पठनक्रम नियत किया जावे तथा इनाम दिया जाय । सेटजीने इस बातको स्वीकार किया, तब शीतलप्रसादनीने एक पठनक्रम व नियमायली बना दी जिसे सेठजीने बाबू सुरजभान वकीलको For Personal & Private Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४] अध्याय दशवां । कार्रवाई के लिये भेज दी। बावूनी उस समय मा० दि० जैन महासभाकी ओरसे उपदेशक फंडके मंत्री थे। आपने उसे जैनगनट वर्ष ११ अंक ४४-४८ में प्रसिद्ध की। इसके तीन विभाग रक्खे-उत्तम, मध्यम, प्रथम । जो दि० जैन परीक्षालयकी पंडित परीक्षा पास हो वे उत्तम, जो संस्कृत सहित एन्ट्रेम तक योग्यता रखते उपदेशकीय परीक्षा। हों वे मध्यम और जो हिन्दी अच्छी जाने के प्रथम देवे । प्रत्येक परीक्षा में उत्तीर्ण दो उत्कृष्टको इनाम इस भांति नियत किया नं० १ को नं० २ को उत्तमा परीक्षा १२५) १००) मध्यमा , ७५) ६०) प्रथमा , ५०) : c प्रत्येक परीक्षामें ४ विषय नियत किये उत्तमामें-आप्त परीक्षा, आप्त मीमांसा सार्थ पाठ्य पुस्तककी तरह; स्वाध्याय-समयसार आत्मख्याति और मोक्षमार्गप्रकाश । लेख लिखना ८ फुलस्केप सफोंपर और २ घंटे तक व्याख्यान देना । ___ मध्यमामें--पाठ्य पुस्तक-तत्वार्थसूत्र सार्थ कंठ, द्रव्यसंग्रह सार्थ कंठ, रत्नकरंड श्रावकाचारमें सम्यक्त लक्षणके श्लोक, स्वाध्यायपद्मपुराण व पद्मनंदि पंचविंशतिका; लेख ८ सफेपर व व्याख्यान १॥ घंटे। For Personal & Private Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४८५ प्रथमामें--पाठ्य पुस्तक-रत्नकरंड, तत्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह तीनों सार्थ कंठ, स्वाध्याय-रत्नकरंड श्रा० सदासुखनीकृत, बड़ा पद्मपुराण और आदिपुराण, लेख ६ सफे, व्याख्यान ॥ घंटा। सन् १९०६ के दिसम्बर में कलकत्तेमें राष्ट्रीय सभा (कांग्रेस)की बड़ी धूम थी, इसका २२ वां अधिवेशन था कलकत्तेमें महासभा और देशभक्त परोपकारी वृद्ध मि० दादाऔर कांग्रेसपर भाई नौरोजी कांग्रेसके सभापति होनेवाले सेठजीका थे। साथमें प्रदर्शनी भी थी। ऐसे मौके पर गमन। कलकत्तेके दिगम्बर जैनी भाइयोंने जैन यंगमेन्स एसो० और भा० दि० जैन महासभाको भी निमंत्रित किया। सेठ माणिकचंदजीका विचार महाराष्ट्र सभाके अधिवेशनमें शरीक होनेके लिये श्री स्तवनिधिक्षेत्रपर जानेका था, क्योंकि आप उसके सभापति थे, पर शीतलप्रसादनीने जोर दिया कि इस सभामें तो आप प्रति वर्ष जाया ही करते हैं । अबके आप कलकत्ते में चले और वहांकी प्रदर्शनी व कांग्रेसको देखें तथा महासभामें भी शरीक हों । आपके पधारनेसे महासभाकी बहुत शोभा होगी। तथा लौटते हुए आप काशीमें उस संस्कृत शालाको भी देख आवेंगे जिसे आपने स्थापित किया था व जिसकी चिरस्थायिताके लिये आपको इतना ध्यान है। सेठनीने इस रायको मंजूर किया तथा बम्बईसे अपनी सुपुत्री मगनबाई व निज कुटुम्ब व पुत्रियों सहित शीतलप्रसादजीके साथ कलकत्ते आए। कांग्रेस देखनेके निमित्तसे सेठ हीराचंद नेमचंदके पुत्र बालचंदनी भी कई मित्रोंके साथ एक ही डब्बेमें आए । सेठजी सदा ही अपनी प्रतिष्ठा और आरामके . For Personal & Private Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ ] अध्याय दशवां। खयालसे सेकन्ड क्लासमें ही यात्रा करते थे और अपने साथवालोंको भी अपने ही डिब्बेमें बिठाते थे। सेठजीका कहना था कि यदि यात्रामें शरीरको कष्ट हुआ तो जिस कामके लिये अपनी यात्रा होती है वह काम अच्छा न होगा । शीतलप्रसादजीको सेठनी सदा ही अपने साथ बड़ी प्रतिष्ठासे बिठाते थे और हर तरह उनके शरीर, प्रकृति, व धर्म साधनकी रक्षा करते थे। अपनी स्त्रीके देहान्त होनेके बाद शीतलप्रसादजी चारित्रमें अपना अभ्यास बढ़ा रहे थे सो जबसे लखनऊ छोड़कर बम्बई रहने लगे थ तवसे बराबर सबेरे और शाम सामायिक करते, अष्टमी व चोंदलको उपवास करते थे, रात्रिको जलपानका त्याग था, दर्शनपाठ या स्वाध्यायके विना भोजन नहीं करते थे। इन सब बातोंकी सम्हाल सेठनी पूरी २ रखते थे । प्रायः अष्टमी चौदस आजानेपर इसी निमित्त ठहर जाते थे। कलकत्ते में पहुंचते ही बाबू धन्नूलाल अटार्नी सभापति स्वागतकारिणीने बहुतसे सभासदोंके साथ सेठजीका बहुत ही सन्मान पूर्वक स्वागत किया और घरकी मनोहर गाड़ियोंपर लेजाकर धर्मशालामें ठहराया। सेठजी जब रेल गाड़ीसे उतरे थे तब देखते क्या हैं कि एक पगड़ी पहने हुए चश्मा लगाए हुए युवकने बहुत ही झुककर सेठनीको प्रणाम किया। सेठजीके चित्तमें इस महाशयकी ऐसी विनयका बहुत ही असर हुआ। यह महाशय वही बाबू धन्नूलालजी थे जिनके चित्तमें सेठजीकी परोपकारता व दानवीरताकी कथा अंकित थी। उसी गुणग्राहकताने एक अटार्नीको इतना नम्रीभूत कर दिया था। महासभाके अध्यक्ष लाला रूपचंदजी सहारनपुर नियत हुए थे । आप ता० २४ दिस For Personal & Private Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४८७ म्बरको सबेरे पधारे । आपका स्वागत बड़ी धूमसे हुआ | स्टेशनपर बनात बिछाई गई थी, बैंड बाजा बजा था । बाबू धन्नूलालने अभिनंदनपत्र पढ़कर अर्पण किया । १०० गाड़ियों की कतारके साथ सवारी नगर में घूमकर स्थानपर आई । कलकत्ते में जैनियोंकी बड़ी प्रख्याति हुई। उनके साथ हकीम कल्याणराय उपदेशक भी थे। कांग्रेसका मंडप १२००० मनुष्योंके बैठने योग्य व ३००० के खड़े होने योग्य बना था । खचाखच भरा हुआ था, इसके जलसे ता० २६, २७, २८, २९ दिस० को हुए । दादाभाई नौरोजीका व्याख्यान बड़ा प्रभावशाली हुआ । अति महत्त्व के प्रस्ताव बंगभंगके विरोध, आफ्रिकामें भारतियोंपर अन्यायका प्रतिवाद, प्रारंभिक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य, तथा स्वदेशी आन्दोलनके हुए । कांग्रेसकी प्रदर्शनी २२ एकड़ जमीन में थी । प्रदर्शनी इतनी भारी थी कि गलियोंकी लम्बाई ३ मील थी । इसको ता० २१ दिस० को स्वयं बड़े लाट लार्ड मिन्टोने खोला था | प्रदर्शनीसे मालूम हुआ कि देशी कारीगरीकी चीजें बनानेके लिये लोगोंका ध्यान बढ़ रहा है। चीनी बनानेकी देशी कल देखने में आई । वह बहुत ही योग्य थी । एक ही समय ईख डालकर शक्कर बना ली जाती थी । ता० २४ दिस० को दिनमें और ता० २५ दिस० की रातको जैन यंग मेन्स एसोशियेशनके तथा ता० २५ दिस० के दिनमें व ता० २६ की रातको व ता० २७ के दिन रात्रि में महासभा के जल्से लाला रूपचंदजी के सभापतित्व और बाबू धन्नूलालजी के उपसभापतित्व में हुए । बाबू धन्नूलाल का स्वागतार्थ व्याख्यान बहुत ही विद्वतापूर्ण, For Personal & Private Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ ] अध्याय दशवां । प्रौढ़ और मनोहर हिन्दी भाषामें था । एसो० में मुख्य दो प्रस्ताव हुए । एक तो मेम्बरों में दर्शन स्वाध्यायके प्रचारकी कोशिश की जावे और उसकी रिपोर्ट हर साल प्रगट हो। दूसरे एक ट्रैक्ट कमेटी इंग्रेजी पुस्तकोंके बनाने व संशोधनके लिये बने । महासभामें मुंशी चम्पतरायजीने रिपोर्ट सुनाई, फिर सेठ माणिकचंदजीने प्रस्ताव किया कि महासभा दिगम्बर जैन डाइरेक्टरी तय्यार करै उसका कुल खर्च मैं दूंगा। महासभाने धन्यवाद सहित स्वीकार किया व बाबू सूरजभान वकीलको इसका मंत्री नियत किया । यद्यपि इसका काम सेठ ठाकुरदास भगवानदासने पहले ही शुरू कर दिया था पर घूमनेवाले डाइरेक्टर न मिलने व व्यापारमें सल्लग्न होनेके लिये वह काम कुछ हुवा न था तथा बाबू सूरजभानसे प्राइवेट बात करनेपर सेठनीको यह मालूम हुआ था कि इनके द्वारा यह काम बहुत जल्द और बहुत अच्छी तरह होगा। श्रीमती मगनबाईजीको वह स्वर्णपदक जो सहारन पुरमें देना प्रस्तावित हुआ था महासभाकी मगनबाईजीको खास बैठकके समय सभाके सामने बुलाकर दिया स्वर्ण पदक । गया और इनकी सुकीर्ति वर्णन की गई। श्रीमती मगनबाईजीको परदेकी आदत न थी और न उन्हें पुरुषोंकी सभाके सन्मुख आते संकोच था। आपने स्वर्णपदक लेते हुए अपनी मिष्ट ध्वनिसे श्री जिनेन्द्रको नमस्कार करके अपनी लघुता प्रगट करते हुए महासभा द्वारा सम्मानित होने पर अपना अति हर्ष माना और धन्यवाद दिया। सभाओंकी For Personal & Private Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४८९ स्थिरताके लिये तय हुआ कि व्याख्यानोंकी छोटी २ पच्चीस पुस्तके प्रकाशित हों । पं० मेवारामजीका व्याख्यान बहुत प्रभावशाली हुआ था । लाला रूपचंदजीने १०००) महासभाके महाविद्यालयमें जो सहारनपुरके चंदेमें लिखा था सो प्रदान कर दिया । सेठ माणिकचंदजीने कलकत्तेके कई धनाढयोंसे स्याद्वाद पाठशालाके लिये हज़ार २ की रकम भरानेका उद्योग किया, पर सफलता केवल एक बाबू धन्नलाल अटार्नी पर हुई। आपने एकी दफे कहनेसे स्वीकार कर लिया तथा लाला रूपचंदनीने भी १०००) लिखाए । श्रीमती मगनबाईजीने मंदिरजीमें कई स्त्रीसभाएं करके शिक्षा व धर्मकी जागृतिपर उत्तेजित किया । इसी अवसरपर सेठजीने शिखरजीकी उपरैली कोठीकी प्रबन्धकारिणी सभाका अधिवेशन भी कलकत्तेमें नियत किया था और सर्व मेम्बरोंको खबर की थी। उसीके अनुसार ता: ३० दिसम्बर १९०६ को बैठक हुई, जिसमें बाबू देवकुमारजी, सेठनी, पं० नंदकिशोरजी, छेदीलालजी, शीतलप्रसादजी, सेठ नेमीसाह नागपुर व चुन्नीलालके द्वारा क्रमसे नियुक्त थे। ५॥ मासका हिसाव व रिपोर्ट पास की गई। बड़े मंदिरजीके जीर्णोद्धारके लिये बम्बईसे मिस्त्री भेजकर रिपोर्ट लेना तय हुआ। आगामी वर्षके लिये बजट पास किया गया। मालूम हुआ कि कोठीके चार्ज लेनेसे अब तक बहुत कुछ प्रबन्ध सुधरा है। कलकत्तेसे चलकर सेठजी सीधे बनारस आए और मैदागिनी धर्मशालामें ठहरे। यहां आप ३, ४ दिन काशीमें सेठजीका ठहरे और उदारचित्त धनाढ्य जैनी भाइयोंको आगमन । समझाकर, स्वयं उनके घर तकमें जाकर पाठशालाके चिरस्थाई फंडमें हनार हमारके For Personal & Private Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९० 1 अध्याय दशवीं । नाम भरा लिये । लाला कुंजीलाल, बनारसीदाप्स, और बाबू छेदीलालजीसे तो कलकत्तेमें ही भरा लिये थे, अब बाबू हनुमानदास, बाबू नंदनजी तथा लाला खड़गसैन उदयराजजीसे भराए । खड़गसैनजीकी दो विधवा स्त्रिये थीं। इनको समझाने में मुख्य परिश्रम श्रीमती मगनबाईजीने किया था। यहां तक १४ नाम हो गये थे और सेठ नेमीचंदजीसे १५वें नामकी शर्त थी । एक नाम आपने अपना और भरके १५. नाम पूरे कर दिये और रुपया तहसीलना शुरू करा दिया । साहस इसीको कहते हैं। यदि एक और धनाढ्य उनके साथ भ्रमण करनेमें पूरी २ मदद देता, और सेठजी १० व २० शहरों में घूम लेते तो १०० नाम भराना कोई बात न थी पर जैन जातिके दुर्भाग्यसे ऐसा न हो सका और वह फंड २३०००) ही पर रुक रहा है। ता० ७ जनवरीको स्याद्वाद पाठशालाकी प्रबन्धकारिणी सभामें आप सभापति हुए । कई जरूरी प्रबन्धक कार्रवाइयों के साथ साथ वार्षिक अधिवेशन आगामी फाल्गुण सुदीमें करना निश्चित किया। जिस पाठशालाके लिये सेठनीको इतना प्रेम था उसकी जांच भी कराना आप जानते थे जिससे पंडित शिवकुमार खातरी हो कि पाठशालाका काम ठीक होता शास्त्री द्वारा है या नहीं। आप एक दिन कई विद्यार्थिपरीक्षा । योंको लेकर काशीके प्रसिद्ध विद्वान् पंडित शिवकुमार शास्त्रीके यहां पधारे और प्रार्थना की कि आप इनकी परीक्षा लेवें । पंडितवर्यने परीक्षा लेकर यह सम्मति प्रदान की For Personal & Private Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४९१ माघ कृष्ण पंचम्यां मत्स्थाने स्याद्वाद पाठशालायाश्छात्राः स्वपरीक्षादानार्थमुपस्थिताश्च परीक्षादानोत्तरभारकृताभ्यासत्त्वेन निर्णीताः। भावार्थ-माघ कृष्ण पंचमीको मेरे स्थानपर स्याद्वाद पाठशालाके छात्र आए । परीक्षा ली । अभ्यास अच्छा किया है ऐसा निर्णय हुआ। विद्याप्रेमी सेठ माणिकचंदजीको सिवाय अपने परोपकार कामके और कोई शौक किसी तरहका न था । जिस शहरमें जाते थे वहां श्री जिनमंदिर व कोई प्राचीन स्थान तो देखते थे, पर अन्य किसी मेले ठेले तमाशे आदिमें जानेकी बिलकुल रुचि न रखते थे। खानपान भी बहुत सादा था । तथा सबेरेसे जब तक कोई काम नहीं कर लेते थे तब तक मध्यान्हका भोजन नहीं रुचता था। सेठनीकी यह मंशा थी कि मैदागिनीके बगल में स्थान लेकर एक कायदेका मकान स्याद्वाद पाठशाला व बोर्डिंगके लिये बनवा दें। उस स्थानके लिये आपने बहुत प्रयत्न किया। पोष्ट-माष्टर लाला रघुनाथदासको कई सौ रुपये उसके लिये भेजे उन्होंने बयाना भी दिया, पर वह सेठजीके मरणकाल तक ठीक न हुई । इस दफे आपने काशीसे सिंहपुरी व चंद्रपुरीमें भी जाकर दर्शन किये । श्री श्रेयांसनाथका जन्मकल्याणक सिंहपुरी तथा श्री चंद्रप्रभुनीकी चंद्रपुरी है। आप बनारससे सकुशल बम्बई आए। श्री गजपंथानीमें बम्बई प्रान्तिक सभा होनेवाली थी उसकी फिकर हो गई। जाति व धर्मकी सेवामें धनाढ्य लोग धनके खर्चनेवाले तो बहुत मिलेंगे For Personal & Private Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय दशवां। पर धनके दानके साथ शरीर व वचनसे भी दिनरात मिहनत करनेवाले बहुत कम दीख पड़ेंगे। इसी अद्भुत गुणके कारण जैन जनता सेठजीको बात बातपर याद करती है तथा अब इनके स्थानको पूर्ण करनेवाला कोई दीखता नहीं है। For Personal & Private Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [४९३ ग्यारहवां अध्याय । महती जातिसेवा द्वितीय भाग । सेठ माणिकचंदनी कलकत्तेके प्रवाससे लौटकर बम्बईमें अपनी नित्य क्रियामें लवलीन हो गए । इस अवसेठ माणिकचंदजीकी स्थामें भी जब सेठनी बम्बई रहते तब चौपाटी दिनचर्या । चैत्यालयमें स्वयं श्री जिनेन्द्रकी स्फटिक मणिकी मूर्तियों का अभिषेक करते थे, णमोकार मंत्रकी जाप दे शास्त्र स्वध्याय करके जो मुद्रित पुस्तकें चैत्यालयमें रक्खीं थीं उनको देखते थे तथा बाहरसे बहुतसे स्थानोंकी मांग आती थी उनके लिये पुस्तकों के छांटनेका काम ठाकुरदास भगवानदासके सुपुर्द था । ठाकुरभाई स्वयं करते व और छोटे लड़कोंसे कराते थे, जो बहुधा चारों भाइयोंके कुटुम्बमें कोई न कोई बंगले में रहते थे । तथापि सेठजी उनकी जांच रखते व कभी आवश्यक होनेपर स्वयं भी पुस्तकोंको छांटकर अलग : बिना बंधा बंडल रख लेते थे और उन्हें फिर दूकान जाते हुए ले जाकर भिजवा देते थे। प्रायः जैन पाठशालाओं और खास २ स्वाध्यायके लिये प्रार्थनारूप मांगनेवालोंको आधे मूल्यमें व भेट रूप भी भिजवाते थे। कई हज़ार रुपया इस काममें अटका रखा था। सेठजीके जीवन तक बाहर भेजनेका जितना काम होता था उतना अब नहीं होता है, तथापि अब भी चौपाटीपर पुस्तकालय है जिसमें सर्व प्रकारकी संस्कृत प्राकृत माषाकी पुस्तकें रहती हैं। मंदिरजीसे निकलकर जब तक रसोईका For Personal & Private Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९४ ] अध्याय ग्यारहवां । समय होवे तब तक आप गाड़ीपर बैठकर कभी बोर्डिंग, कभी कोई मकान, कभी किसीसे मिलनेके काममें चले जाते थे । वहांसे आकर रसोई जीमकर सर्वके साथ दूकान जाते थे । रास्तेमें हीराबाग धर्मशालामें उतर जाते थे। जबतक गाड़ी औरोंको जौहरी बाजार पहुंचाकर न लैट आती तबतक आप शीतलप्रसादनीके साथ धर्मशाला में घूमकर सर्व जांच करते, दफ्तरमें आकर सुप० धर्मशालासे हाल मालूम करते, रोज़के फार्मको देखते कि जिसमें यात्रियोंकी आमद लिखी जाती है, फिर तीर्थक्षेत्र कमेटीके मैनेजरके पास बैठकर जरूरी पत्र पढ़ क्या जवाब देना सो समझाकर जब गाड़ी आती तब दूकानपर जाते थे। वहांपर तीर्थक्षेत्रोंके सिवाय और अनेक तरहके धार्मिक सामाजिक पत्रोंको पढ़कर उनका उत्तर लिखते व लिखाते थे। अब सेठजीका सम्बन्ध सम्पूर्ण भारतवर्षसे होगया था। महासभाके सम्बन्धमें भी बहु लिखा पढ़ी होती थी। सेठजीके सामने ही सेठ नवलचन्द, चुन्नीलाल, ठाकुरभाई व्यापारका काम करते थे। कोई २ माल खरीदते समय सेठजोसे सलाह लेते थे तथा जो ग्राहकगण फुटकल मोती लेने आते वे सेठजीकी सलाहसे लेते और जो दाम यह कहते उसे विना दुलखे दे देते थे। सेठजी बड़े न्यायशील व परोपकारी थे। वे विना कोई अपेक्षा रक्खे ऐसे दाम कहते कि उससे कम कहीं बाज़ार में उसे न मिल सके जिससे उसका मन भी प्रसन्न रहे और दूकानवालों को भी योग्य लाभ हो । तीर्थक्षेत्र कमेटीके लिखे हुए पत्र दूकानपर आते . उनको शुद्ध करके हस्ताक्षर करके भेन देते थे। कोई २ आवश्यक .. तीथक्षेत्रके पत्र दूकानपर ही लिखते लिखाते थे। अपना उपयोग . सर्व जैन जातिके सुधारे सम्बन्धी भावों में उलझाए रखकर शामके For Personal & Private Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ४९५ पहले २ जब गाड़ी आती तब उसीमें सबके साथ बैठकर चौपाटी जाते और शामसे पहले २ व्यालू करके पैदल समुद्र तटपर टहलने जाते थे । वहांसे आकर चैत्यालय के दर्शन व जाप कर व कभी स्वाध्याय कर दीवानखाने में ऐसी जगह बैठते थे जो जीनेके सामने है जिससे हरएक दरवाजेसे आता जाता सेठजीको दिखता था और सेठजी उनको देखते थे । इस मनोहर चौपाटी चैत्यालयके दर्शनको बहुत मनुष्य आते थे, उन सबको सेठजी यदि वे स्वयं न आएं तो बुलाकर कुर्सियों पर बिठाते थे, उनके धर्मकी, सुख दुःखकी बात पूछते थे व यदि कोई धार्मिक काम हुआ तो उसमें यथाशक्ति मदद देने को तय्यार रहते थे । रात्रिके १० व १० ॥ तक इस तरह बिताकर रात्रिको दूग्धपान करके शयनालय में जाते थे । सबेरे अति ही सबेरे उठकर फिर नित्य क्रियामें लग जाते थे । आपकी यह इच्छा थी कि जहां २ मुख्य प्रान्तिक कालेज और उनके आसपास दि० जैनी हैं वहां एक २ बोर्डिंग अवश्य स्थापित हो जावे जिससे इंग्रेजी पढ़े छात्र धर्मज्ञान व धार्मिक चारित्र से विमुख न हों। सेठजीको यह भी विश्वास था कि यदि कोई ग्रेजुएट धर्मको जान जायगा तो वह अपने हित के सिवाय अपने लेख व वचनोंसे बहुतों का हित कर सकेगा । जबलपुर बोर्डिग के स्थापन के बाद व उसको चलते हुए देखकर आपने यह संकल्प किया कि लाहौर, अलाहाबाद तथा आगरा में भी बोर्डिंग होना चा हिये । शीतलप्रसादजी सेठजीके साथ ही दूकानपर बैठते थे और कभी २ घंटा दो घंटे के लिये बाजार चले जाते थे । शीतलप्रसादजीको मालूम था कि इन बोर्डिंगों के स्थापन कराने के लिये किन से पत्रव्यवहार For Personal & Private Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९६ ] अध्याय ग्यारहवां किया जाय । लाहौर के निमित्त पहले बाबू चंदूलाल ओवरसियर से, फिर बाबू रामलालजीसे, आगराके निमित्त लाला गोपीनाथनी बजाज और बाबू देवीप्रसादजीसे; प्रयागके लिये बाबू ऋामदास, बच्चूलाल शिवचरणलाल आदिसे पत्रव्यवहार होने लगा । शिखरजी की बीसपंथी कोठी सम्बन्धी पत्रव्यवहार प्रायः सेठजी ही को करना पड़ता था । मैनेजर डाह्याभाई शिवलाल हरएक काममें सेठजीकी सम्मति मांगता व आज्ञा लेता था और सेउनी तुर्त जवाब देकर उसका समाधान करते है । सिद्धक्षेत्र श्री गजपंथाजीपर मिती माघ सुदी १३ सं० १९६३ से १५ तारीख २७-२८ - २९. गजपंथाजीपर बम्बई जनवरीको बम्बई प्रान्तिक सभाका चतुर्थ प्रा० सभाका अधि- वार्षिक उत्सव होनेवाला था । इस उत्सवका वेशन | सब प्रबन्ध बंट चुका था । मंडप तथा केम्पका प्रवन्ध सेठ माणिकचंदजी के सुपुर्द किया गया था इससे शीघ्र ही सेठजीको वहां जानेकी फिकर पड़ी । श्री गजपंथ पर्वत बम्बई प्रान्तके नासिक स्टेशनसे १० मील व नासिक शहर से ५ मील है, पासमें मसरूल ग्राम है । यह दिगम्बर जैनियोंका प्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र है । यहांसे सात बलभद्र और आठ क्रोड़ मुनीश्वरोंने मोक्ष प्राप्त की है । पर्वत ४०० फुट ऊंचा है। सीढ़ियां ३२५ बनी हैं। ऊपर दो प्राचीन गुफाओं में खुदे जिन मंदिर हैं जिनमें पर्वत में उकेरी अति प्राचीन दि० जैन प्रतिबिम्ब हैं। दो चरणादुकाएं हैं। एक बड़ी मूर्ति पार्श्वनाथ स्वामीकी कुछ २ खंडित है । ऊपर व नीचे जलके For Personal & Private Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ४९७ कुंड हैं । नीचे क्षेमेंद्रकीर्ति भट्टारककी समाधि है। गांव म्हसरूल में 1 एक सुन्दर शिखरच मंदिरजी है जिसे उक्त भट्टारककी प्रेरणा से शोलापुर के प्रसिद्ध सेठ रावजी के पिता नानचंद फतह चंदजीने सं० १९४२ में बनवाया था व सं० १९४३ में प्रतिष्ठा कराई थी । मंदिरजी के चारों तरफ कोट है । इसके भीतर दो धर्मशालाएं हैं, जिसमें ३०० मनुष्य ठहर सके हैं । उत्तम धर्मशालाओंके बनने की जरूरत है | यहांका हवा पानी बहुत ही अच्छा है । वम्बईके जैनी बीमार होनेपर यहीं आते हैं और अच्छे भले चंगे होकर लौट जाते हैं । इस अधिवेशनके सभापति श्रीमान् राजा ज्ञानचंदजी फोटोग्राफर हैदराबाद व बम्बई नित हुए थे । ता० २६ के ७|| बजे सवेरे दानवीर सेठ माणिकचंदजी, पं० धन्नालालजी, बाबू शीतलप्रसादजी आदि अनेक सज्जनोंके साथ राजासाहब नासिक स्टेशनपर पधारे । दिगम्बर जैन प्रान्तिकसभा के पट्टे लगाए हुए बालन्टियरोंने गाजे बाजे के साथ स्वागत किया । सेठ दीपचंद्र वीरचंदके बंगले में आराम करके सवारी शहरमें घूमते निकाली गई, जगह २ ध्वजा पताकाएं टंगी थीं। इस जल्से में पं० गोपालदासजी, सेठ सुखानन्दजी, सेठ रावजी नानचंद शोलापुर आदि बहुतसे महाशय शरीक थे । देशभक्त पाटनकर और खरे प्रतिदिन सभा में उपस्थित होते थे । ता० २७ को प्रथम बैठक हुई। सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदजीने स्वागतार्थ भाषण पढ़ा, फिर सेठ माणिकचंदजीके पेश करने सेठ रावजी नानचंद और सेठ नेमीलाल नागपुरके समर्थन से राजा ज्ञानचंदजी सभापति हुए । आपने अपना भाषण दूसरी बैठक ता० २८ की रात्रिको, तीसरी ता० यहां उल्लेख योग्य प्रस्ताव जो सभामें पास हुए वह ये थे: 1 पढ़ा, इसी तरह २९ को हुई । ३२ For Personal & Private Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९८ ] अध्याय ग्यारहवां । (१) अमीर काबूलको धन्यवादका तार भेजा गया जो उन्होंने अपने वास्ते दिहलीके मुसलमानोंको गाय वधसे मना किया (२) सेठ माणिकचंद हीराचंद जष्टिस आफ दी पीस हए इस लिये सभाने हर्ष प्रगट किया (३) स्वदेशी वस्तु प्रचार तथा वाणिज्यवृद्धिका प्रस्ताव पंडित गोपालदासने पेश किया, जिसका समर्थन देशभक्त मि० एन० पी. पाटणकर बी० ए० एलएल० बी० ने एक प्रभावशाली व्याख्यान देकर किया (४) सखाराम वेणीचंद फलटणको सेठ बालचंद रामचंद शोलापुरकी ओरसे सुवर्ण पदक इस लिये दिया गया कि कन्याके पिताके न चाहनेपर भी इसने जबतक अपना विवाह जैन पद्धतिसे नहीं हुआ विवाहके लिये तय्यार न हुआ, नियत महुर्त भी टाल दिया तब दूसरे महुर्तमें जैन विधिसे ही विवाह कराया (५) वैद्यरान और वैद्यरत्न कन्हैयालालनीको सुवर्णपदक प्रदान किया गया (६) सेठ नेमीचंद अजमेरके रायबहादुर होनेपर हर्ष प्रकाश किया गया । आगामी वर्षके कार्याध्यक्षों में सेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० ही सभापति रहे । उपदेशक फंडके मंत्री जौहरी ठाकुरदास भगवानदास व परीक्षालयके सेठ रावजी सखाराम शोलापुर हुए। सेठ हीराचंद नेमचंद की सुपुत्री कंकुबाई व श्रीमती मगनबाईने स्त्रियों में जागृति की। ता० २९ की रात्रिको एक खास आम सभामें कंकुबाईजीने बहुत ही उत्तम व्याख्यान दिया । नासिककी पिनरापोलके लिये चंदा हुआ, जिसमें सेठ माणिकचंदजीने १०१) प्रदान किये । प्रानिक सभाके लिये अपील हुई उसमें भी सेठजीने २०१) सबसे पहिले दिये । इस जल्से में सूरतसे सेठ For Personal & Private Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सेवा द्वितीय भाग । [४९९ मूलचंद किपनदासजी कापड़िया अकेले ही पहुंचे थे और सब कार्यों में सेठ माणिकचंदनीके साथ रहकर बराबर योग देते थे। आगामी अधिवेशन गुजरातमें पावागढ़ सिद्धक्षेत्रपर कानेका बडौदेसे सेठ लालचंद कहानदास द्वाराआया हुआ एक पत्र पढ़ा गया, तब सेठ रावनी भाई सखाराम ( सोलापुर ) ने कहा कि नहीं, आगामी अधिवेशन दहीगांवमें करना चाहिये, इस पर सेठ मूलचंद कितनदास कापडि. याने खड़े होकर जोशीली भाषामें कहा कि हमारा गुजरात प्रांत बहुत अंधकारमें है और वहां कभी ऐसा अधिवेशन नहीं हुआ है इसलिये वहांपर ही होना चाहिये आदि, निससे आगामी अधिवेशन गुजरातमें पावागढ़ तीर्थार करना ही निश्चित हुआ । पहले कहा गया है कि आगरा में जैन बोर्डिग खोलनेकी प्रेरणा सेठनी पत्रद्वारा कर रहे थे उसीके आगरामें बोर्डिगके अपरसे दलीपसिंह जैनी डाक्टरने उद्योग करलिये सेठजीका दौरा के फर्वरी मासमें लोगोंको एकत्र करके जो व प्रयत्न । पत्र सेठजीके लाला गोपीनाथ बजाज और बाबू देवीप्रसादनीके पास आए थे उनको पेश किये और जैन बोर्डिगकी बड़ीभारी जरूरत बताई। सर्व साहबोंने बोर्डिंग होना ठीक समझ कर इसका प्रबन्ध शुरू किया, पर वह कुछ चल न सका । तब सेठजीसे पत्र द्वारा प्रार्थना की गई कि यहां २४से ३१ मार्च सने१९०७तक रथोत्सव है उसमें आप पधारें तो सब प्रबन्ध हो जावे । बार २ पत्रोंके आनेसे सेठजी शीतलप्रसादजीके साथ पंजाब मेलसे रवाना होकर ता० २६ की शामको आगरा पहुंचे । लाला गोपीनाथ आदि अनेक भाई स्वागतार्थ स्टेशनपर For Personal & Private Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० ] अध्याय ग्यारहवाँ। आएथे और बड़ी धूमधामसे सेठजीको लेनाकर गोपीनाथनीने अपने मकानपर ठहराया। रथोत्सवका मेला एक वागमें था जहां स्त्री पुरुषोंकी बहुत भीड़ थी । दूसरे दिन सबेरे सेठजीने आगरा कालेजोंमें पढ़नेवाले जैन छात्रोंको अपने पास बुलाया । ७, ८ छात्र आए और उनसे सर्व हाल पूछा तो मालूम हुआ कि वे धर्मको कुछ भी नहीं जानते, न वे दर्शन स्वाध्याय जाप कभी करते, उनका श्रद्धान मूर्ति पूजासे गिरा हुआ था, करीब २ आर्यसमाजके से ख्याल हो रहे थे; क्योंकि आगरामें आर्य समाजका बहुत जोर है उसके उपदेश पुनः पुनः उनके कानों में पड़े थे इसीसे ऐसा असर हुआ था। सेठनीने पूछा, आप लोग जैनधर्मको क्यों नहीं जानते ? उत्तर मिला कि लड़कईसे हमारे पिताने हमें कुछ बताया नहीं । हम स्कूलमें इंग्रेजी पढ़ते रहे । कभी अनन्त चौदसको दर्शन कर आते थे। हम तो इतना ही जानते हैं कि हम जैन हैं पर जैनमतका कुछ भी हाल नहीं जानते, क्योंकि न हमें बताया गया और न कोई पुस्तकें पढ़नेको मिलीं यद्यपि हम कुछ २ हिंदी जानते हैं पर ज्यादा हमें उर्दूका ही अभ्यास है । सेठजीको इनकी बातोंको सुनकर दिलमें बहुत दया आई तथा इनको बम्बई बोर्डिंगका हाल व धर्मशिक्षाकी बात कही और मूर्ति पूजा आदि पर शीतलप्रसादजीने समझाया । रात्रिको बागमें शास्त्रसभाके पीछे सभा हुई। सेठजीको सभा पति नियत करके आगराके जैनी भाइयोंने आगरामें मानपत्र । निम्नलिखित मानपत्र दिया: For Personal & Private Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५०१ अभिनन्दनपत्रमिदम् । दोहा-सज्जन गुणी दयालुचित, दानवीर कुलचन्द । अहोभाग्य आये यहाँ, श्रेष्ठी माणिकचन्द ॥ श्रीमान् जैनधर्म प्रतिपालक दानवीर सेठ माणिकचन्दनी जैन जौहरी जे. पी. (J. P.) बम्बई । महोदय ! हम समस्त आगरानिवासी जैनी भाई आन परमहर्षको प्राप्त हुए हैं कि जो आपने इतना महान् कष्ट सहन कर यहां ( आगरेमें ) पधारनेकी ( जैनसमाजकी उन्नतिके लिये ) कृरा की है। इससे हम लोग आपके परम धन्यवादी हैं और श्रीमान्की दयालुता तथा सज्जनता खम् धर्मप्रीतिपर दृढ़ताका परिचय तो हम लोगोंको आपके स्थापित किये पुस्तकालय, विद्यालय, औषधालय, धर्मशाला, अनाथालय, जैन बोर्डिङ्ग हाउस व जनसमाज एवम् अनेक धर्म कार्योसे तथा समस्त तीर्थक्षेत्रोंके सुप्रबन्धसे मिल चुका है । श्रीमान्ने हाल ही में अपवित्र वस्तु खांड, केसर आदिके न. वर्ते जानेका अपने यहां जो प्रबन्ध किया है एवम् और बहुतसे ऐसे धर्म कार्य हैं जिनमें आप कटिबद्ध रहते हैं और जो कि आपकी अपने धर्ममें दृढ़ विश्वामता तथा अपनी जातिसे अटल प्रेमका परिचय देते हैं, आपका यश दसों दिशामें सुगन्धित भरा हुआ व्याप्त और प्रफुल्लित हो रहा है । सो आपकी इन कृपाओंके बदले में हमारे पास कोई शब्द नहीं हैं जिसे हम क्षुद्रबुद्धि मनुष्य आपकी प्रशंसा कर सकें । हम आपके इस आगरा नगरीमें साक्षात् दर्शन करके ऐसे प्रफुल्लित और हर्षित एवम् गदगद हुए हैं कि जिह्वाग्रमें कोई स्थान नहीं है कि जिससे एक बात भी आपकी प्रशंसाको मुखसे उच्चारण कर सकें, For Personal & Private Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ ] अध्याय ग्यारहवां । किन्तु हमारे हृदय अत्यन्त प्रेमसे उमड़ रहे हैं और आपकी सेवा करने के लिये चित्त अतिशय उत्कंठित हो रहा है, परन्तु आपको सन्तुष्ट करनेके लिये उपायन्त्रकी अप्राप्तिमें फूल नहीं पंखरी ही सहीकी उक्तिसे यह छोटासा सम्मेलन करके आपके पवित्र कर - कमलों में हृदयके उचित उल्लासको अभिनन्दनपत्रका स्वरूप देकर अर्पण करते हैं। यद्यपि आप सर्वथा समदृष्टि दयावान और सच्चे सज्जन, निज धर्महितैषी हैं, स्वयम् ही आपकी हमारे जैनी भाइयों तथा अन्य मतियोंपर भी बड़ी कृपा रहती है, तौभी हम लोग अपने हृदयकी दुर्बलता से सदैव जैनसमाजपर केवल अधिक कृपा कटाक्ष रखनेकी प्रार्थना करते हैं। आशा है कि आप हम लोगोंकी दृढ़तापर क्षमा करेंगे । और सविनय निवेदन है कि यह मानपत्र जो आपकी सेवा में अर्पण करते हैं इसे आप सादर सहर्ष स्वीकार करके हम लोगोंको अनुगृहीत करेंगे किमधिकम् । वीर संवत् २४३३ मिती चैत्र सुदी १३ तारीख २७ मार्च सन् १९०७ ईसवी आपके कृपाभिलाषी प्रेमी समस्त आगरा निवासी जैन भाइयोंकी ओरसे दलीपसिंह अग्रवाल जैन - उपमन्त्री । फिर शीतलप्रसादजीने धार्मिक शिक्षाकी महिमा बताते हुए आगरा में जैन बोर्डिङ्गकी कितनी आवश्यक्ता है इसको दिखाते हुए जो बातचीत दिनमें कालेज के छात्रों से हुई थी उसका भाव कहा, जिसको सुन कर सभा के चित्त भर आए । इसका समर्थन डाक्टम दलीपसिंह अग्रवालने किया । For Personal & Private Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [५०३ उसी समय सेठजीने आगरा बोर्डिंगके लिये जमीन खरीदने को ४०००) देना कबूल किया, उपस्थित आगरा बो० के लिये भाईयोंने ९ कमरोंके लिये पांच पांचसौ ४०००) का दान। रुपये स्वीकार किये । लाला गोपीनाथनीने ३ हजारका एक मकान व दो कमरे मंजूर किये । बहुतोंने मासिक चंदा लिखाया व एक मुष्ट रकम भी लिखी . गई। थोड़ी देरमें २००००) बीस हजारसे अधिकका चंदा हो गया। इस जलसेमें रायबहादुर घमंडीलालजी मुजफ्फरनगर भी थे । आपने भी २ कमरे बनवाना स्वीकार किये । प्रबन्धार्थ एक कमेटी बनी, जिसके मंत्री राय० ब० घमंडीलाल व उपमंत्री डॉ० दलीपसिंह हुए। दूसरे दिन अंतरंग कमेटीमें नियमावली पास की गई तथा तय हुआ कि मोतीकटरेकी धर्मशालामें इसका महूत ता० १ अप्रैल सन्०७ को कर दिया जाय । कुछ छात्रोंने रहना स्वीकार किया था, सो सेठजीके सभापतित्वमें सबेरे मोतीकटरेमें सभा हुई। बहुल भाई पधारे थे । आचार और शिक्षापर बाबू शीतलप्रसाद और लाला लाडलीदास हेडमाष्टर नार्मल स्कूलने मनोहर व्याख्यान दिये। सेठनीने बोर्डिंगका एक कमरा खोला और समा सानन्द समाप्त हुई। उस समय सभाका फोटो भी लिया गया। सेठनीकी यह रीति थी कि पहले मामूली स्थानपर बोर्डिंग शुरू करना फिर उसके लिये मकान तय्यार कराना इसीसे यह मुहूर्त किया गया। पर जिन छात्रोंने आनेका वादा किया था वे भी न आए, इधर उत्साही दलीपसिंह आगरासे चले गए जिससे बोर्डिंगकी कार्रवाई वैसी ही रही। फिर पत्रव्यवहार होता रहा तब आगरावालोंने यही कहा कि For Personal & Private Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ ] अध्याय ग्यारहवां । जब तक नया बोर्डिंग न बनेगा तब तक कालेजके छात्र नहीं आ सक्ते। तब सेठजीने बाबू देवीप्रसादनीको जमीन लेनेके लिये कहा। बाबूजीने हरि पर्वत थानेके पास एक बड़ीभारी जमीनका टुकड़ा करीब ३६००) में ठीक किया तब सेठजीने ४०००) भेन दिये । जमीन पक्की लेली गई पर मकान बननेका बहुत दिनों तक कोई भी यत्न न हुआ। पीछे फिर सेठजी एक दफे आगरा आए और बहुत जोर देकर मकान बननेका महुर्त कराकर चले गए। फिर भी कुछ कार्रवाई न हुई। एकदफे शीतलप्रसादजीने बहुत समझा बुझाकर कमरोंका पहले आधा रुपया बसूल करवाकर कमरे शुरू करवाए । धीरे२ आठ कमरे तय्यार हो गए, पर सेठजीके जीवन तक यह बोर्डिंग चालू नहीं हुआ था, परन्तु ता० २१ नवम्बर १६ के भैरोंसिंह जैनके पत्रसे विदित हुआ कि बोर्डिंगका काम शुरू हो गया है । आगरेमें लाला गोपीनाथ और सेठ माणिकचंदजीका संयुक्त फोटो भी लिया गया । आगरासे लौटकर आते ही सेठजीके चित्तको महा दुःखित कर देनेवाला डिप्टी कमिश्नर हजारीबागका श्री सम्मेद शिवरपर नोटिस ता० २६ मार्च १९०७ का मिला बंगले बननेका जिसमें लिखा था कि पहाड़पर बंगले बननेके प्रस्ताव । लिये जमीन पट्टेपर देनी है इससे दिगम्बरी और श्वेताम्बरी मुखिया हमसे ५ मई सन् ०७ के अनुमान मिले जिसमें उनके मंदिरोंको हानि न पहुंचे ऐसा विचार किया जाय । यह नोटिस देखते ही सेठजी व अन्य बम्बईके जैनी भाई अचम्मित हो गए । क्योंकि सदासे ही यह पर्वत अति पवित्र For Personal & Private Use Only ___ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५०५ रूपमें सुरक्षित चला आता है। यह पर्वतरान है। दिगम्बर जैनियोंके मन्तव्यानुसार भरतक्षेत्रके अनंते तीर्थकर इसीकी भूमिसे मोक्ष गए हैं व आगामी जावेंगे तथा उनके मध्य अनंते मुनि सम्पूर्ण पर्वतपर ध्यानकर मोक्ष पधारे हैं। इस वर्तमान हुंडावसर्पिणी कालमें काल दोषसे ४ तीर्थकर अन्य स्थानोंसे मोक्ष गए हैं। सेठ माणिकचंदजी तीर्थक्षेत्र कमेटीके महामंत्री थे इसलिये इस पर्वतकी रक्षाका सम्पूर्ण बोझ इनके ऊपर आन पड़ा । अब रात्रिदिन सेठनी इस भारी चिन्तामें फंसे । आपने कमेटीकी तरफसे इस नोटिसकी नकल एक पत्र द्वारा सर्व पंचायतियों और सभाओं में भेनदीं । तथा यह भी लिखा कि बिचारवान भाई जो मिलनेको जावें अपने नाम भेजें । ठीक तारीख डाह्याभाई शिवलाल मैनेजर उपरैली कोठीसे मालूम कर लेवें । इसी बीच में कानपुर में बिम्बप्रतिष्ठा थी जिसमें भा० दि० जैन महासभाका नैमित्तिक अधिवेशन था । १५००० जैनी एकत्र थे । इस खबरको पाते ही महासभाने सभाद्वारा प्रस्ताव करके कि हम लोग पहाड़पर ऐसी बस्तीके बिलकुल विरुद्ध हैं, ता० २२ अपैल १९०७ को तार किया और यह भी लिखा कि दो मास समय बढ़ाया जावे । और भी पंचायतियोंसे तार व अर्जियें इसके विरुद्ध भेजी गई। यहांसे सेठनी ता० १ अप्रैलको चल अजमेर आए। राय बहादुर सेठ नेमीचंदजीने स्टेशन सेठजीका दौरा अ- पर भली प्रकार स्वागत किया । दिन भर जमेर, उदयपुर, यहां ठहरे । सुवर्णकी अयोध्या, कैलाश केशरीयाजी। आदि ऋषभदेवके पंचकल्याणककी रचना देखी। फिर सेठजीने शीतलप्रसादजीके For Personal & Private Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ ] अध्याय ग्यारहवां । साथ मेयो कालेन, दयानंद अनाथालय, हिंदू औषधालय तथा जैन औषधालय देखा । दयानंद अनाथालयमें ६३ कन्या व १३० बालक देखे । इनको कपड़ा बुनना सोना, दरी व निमार बनाना, कुर्सी टेबुल बनाना व रंगना आदि सिखाया जाता है। यहां कपड़ेके जूते अच्छे बनते हैं जो १)में आते हैं । दयानंद प्रेस व हाईस्कूल भी हैं। तैयार अनाथ इनमें काम सीखते या पढ़ते हैं । रात्रिको श्री जिन मंदिरजीमें सभा हुई । पं० नरसिंहदासजीने मंगलाचरण किया तब शीतलप्रसादनीने विद्योन्नति पर भाषण दिया । सेठनीने १०) जैन व १०) हिंद औषधालयको दिये । ता० २ को चलकर ता. ३ अप्रैलको उदयपुर आए। यहां ५ तक ठहरे। स्टेशनपर जैनियोंने बड़ी धूमधामसे स्वागत किया । प्रतिदिन खंडेलवालोंके मंदिरजीमें शीतलप्रसादजीके व्याख्यान होते थे । यहां सेठजीकी भावज रूपाबाईजीने दो वर्षसे एक जैन ___ पाठशाला खुल्या दी थी, जिसका कुल खर्च उदयपुर पाठशाला- बम्बईसे मिनवाती थीं। पाठशालाकी सेठको ६०००) जीने परीक्षा लिवाई । काम ठोक देखकर ____ ता० ३ की सभा सेठजीने सबको जाहर किया कि रूपाबाईजी प्रेमचन्दके स्मरणार्थ इस पाठशालाके लिये ६०००) प्रदान करती हैं। अब इसके व्याजसे इसका खर्च चलेगा। रुपया हीराचन्द गुमानजी जैन बोर्डिंगकी ट्रस्ट कमेटीके आधीन रहेगा तथा पाठशालाका नाम “सेठ प्रेमचंद मोतीचंद दिगम्बर जैन पाठशाला उदयपुर" रहेगा । सर्वने सानन्द स्वीकार किया। सेठनीकी रायसे पाठशालाका स्थान For Personal & Private Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५०७ बदला गया व इस नामका पाटिया लगाया गया। प्रबन्धार्थ १३ महाशयोंकी १ कमेटी बना दी। सभापति जवारमल मूलचन्दके मुनीम शाह छोगालाल, मंत्री कालुराम और रंगलालजी नियत हुए। तथा एक जैनधर्मवर्धिनी सभा कायम कराई जो प्रति चौदसको हुआ करे । यहां छह जातियोंके २५५ घर व ४ दि० जैन मंदिर और ? नसियां है। यहांसे चलकर ता० ६ को टांगोंके द्वारा ३० मीलपर एक परसाद गांवमें आए। यहां ४० घर दि जैनी थे । १ जैन मंदिर है। शिखर गिर पड़ा था सो फिरसे बन रहा है। मुखिया गौतमचंद बालचंद हैं । सेठजीने सबको जमाकर उपदेश देकर पाठशाला खुलवाने पर राजी किया तथा ५) मासिक मदद देना कबूल की। ता० ७को सबेरे चलकर धुलेव गांव पोष्ट रिखभदेव आए । यहां १०० घर दि० जैनियोंके हैं। मुख्य सेठ बच्छराज छगनलाल हैं। गांवमें ब्राह्मग गोटी यात्रियोंको अपने घर पर ठहरा लेते हैं। सेठजी हेमचंद गौतमचंद गोटीके घरपर ठहरे और ता० ८ की दोपहर तक रहे । यहां पर श्री ऋषभदेवजीका एक किलेके समान मंदिर है जिसमें ६-७ फुट ऊंची पद्मासन श्याम वर्ण श्री ऋषभदेवकी दि० जैन मूर्ति चतुर्थ कालकी है। इसके चारों ओर एक धातु पटमें अन्य दिगम्बर मूर्तियां अंकित हैं। इस भव्य मूर्तिका सबेरे जल और दूधसे न्हवन होता है फिर केशर चढ़ाते हैं ब पुष्पोंसे प्रायः ढक देते हैं। ७ से १२ तक दर्शन ठीक नहीं होता । पीछे सर्व अंगको शुद्ध करते हैं और केशर छुड़ानी पड़ती है जिससे चरणकी अंगुलियां घिस गई हैं। १ बजेके अनुमान फिर For Personal & Private Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०८ ] अध्याय ग्यारहवां । जल और दूध चढ़ता है । पीछे सुर्वण व रत्नोंकी आंगी व मुकुट पहनाया जाता है, पुष्पादि चढ़ाए जाते हैं। रात्रिको आंगी उतार कर सारे अंगमें गुलाल उड़ाते हैं । आंगीका चढ़ाना सं० १७०२ से शुरू हुआ ऐसा यहांके श्रावकोंसे मालूम हुआ। दिगम्बर जैन यात्री प्रतिमाजीके अभिषेक समय दर्शन व पूजा करते हैं। यहां चारों तरफ मंदिरों में दि० जैन बिम्ब हैं जिसके प्रतिष्ठाकारक मूलसंघी व काष्ठासंघी भट्टारक हैं । यद्यपि यह सर्व मंदिर दिगम्बर जैनियोंके लक्षोंके व्ययसे बने हैं पर अब इन सर्वके प्रबन्धका अधिकार उदयपुर रानाके आधीन ८ मेम्बरों की एक कमेटी करती है जिसमें उस समय २ वैष्णव व ६ श्वेताम्बर जैनी मेम्बर थे, दि० कोई नहीं था । मुख्य मेम्बर म्हेता मनोरसिंहजी, मगनलाल पूनावत्, महेता वखतसिंह हाकिम हैं । एक ही वेदीमें एक ओर श्वेताम्बरी दूसरी ओर दिग० पूनन होती है। गांव घविड़ासे धुलेव तक २ मीलका रास्ता बहुत खराब है। सेठजीने बड़े भावसे दर्शन किये तथा देखा कि यहां केवल एक हिन्दी मदरसा है जिसमें २ अध्यापक हैं, अधिकांश दि० जन छात्र हैं पर धर्म शिक्षाका कोई प्रबन्ध नहीं है । सेठजीने वहांके लोगोंको बुलाकर समझाया कि जैन पाठशालाका प्रबन्ध करें, उन्हें मासिक सहायता भी दी जायगी। पत्रव्यवहारका पता छगनलाल मेहता दुकान सेठ धनराज रतनचंद पोष्ट रिखभदेव जिला मेवाड लिखलिया। यहां ईडरके पंचोंकी बनवाई हुई एक बड़ी धर्मशाला है जिसमें ठहरनेका आराम है। दिगम्बर यात्री बहुत आते हैं। यहांसे चलकर परसाद गांवमें फिर आए। पाठशालाके लिये उत्तेजन करके For Personal & Private Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५०९ १०) नकद दो मासके लिये दिये । फिर उदयपुर आए । तालावके बीचमें राजा साहबका शिव महल देखा, जिसमें कांचकी नक्कासीका काम अति प्रशंसनीय है। यहां चितेरा पन्नालाल वल्द गोपाल मेवाड़ा सुतार कांजीकी हाटमें रहता है उसीके हाथका यह काम है। यहांके पहाड़ोंमें संगमर्मर पाषाणकी खान है। यहां चक्कियों द्वारा पत्थरका सिमंट पिसवाकर राना साहबके काममें आता है। यह बहुत उत्तम होता है। यदि मशीनमें तय्यार हो तो वह बहुत लाभदायक हो जावे । रात्रिको सभामें बालविवाह कन्याविक्रय आदि पर भाषण हुए। शीतलप्रसादनी और सेठजी दोनोंने बहुत जोर दिया। कई भाइयोंने कन्याका विवाह १२ वर्षसे कममें न करनेका प्रण लिया । औरोंने स्वाध्यायादिके नियम लिये। सेठजी यहां हाकिम वखतसिंहजीसे मिले और कहा कि धुलेव मंदिरकी प्रबन्धकारिणी कमेटीमें दिगम्बर जैनी भी मेम्बर होना चाहिये तथा सेठजीने प्रार्थना की कि दो मीलकी सड़क ठीक करा दी जावे । उक्त महाशयने कमेटी द्वारा विचार करना स्वीकार किया। __यहांसे सेठजी रतलाम आए और यहांके लोगोंसे मिले. व स्कूल आदि देखे । सेठ पानाचंदनीकी रतलाम बोर्डिङ्गकी इच्छा बागड़के हूमड़ नातिके बालकोंको फिक। । शिक्षा प्रदान करनेकी थी। रतलामसे बागड़ करीब है इससे सेठनी रतलाममें एक बोर्डिंग खोलना चाहते थे। १ दिन ठहरकर सुरत आए। अब तक फुलकोर कन्याशाला नहीं खुली थी। सेठनीने तुर्त एक मकान नवापुरामें ढूंदा और एक वृद्ध शिक्षकको तलाश किया: For Personal & Private Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१०] अध्याय ग्यारहवां । जो सर्कारी कन्याशालामें पढ़ा चुका था तथा मईमें महूर्त किया जाय ऐसा निश्चय कर आप बम्बई आ गए। इतने ही में फलटन स्थानमें मिती चैत्र सुदी ९से बिम्ब प्रतिष्ठा थी तथा बम्बई प्रान्तिक सभा और दक्षिण फलटनमें बिम्ब प्रतिष्ठा महा० जैनसभाका नैमित्तिक अधिवेशन था। और मानपत्र । सभापति सेठ हीराचंद नेमचंदनी नियत हुए थे। यह सेठजीके मित्र थे तथा सेठजी दोनों सभाओंके सभापति थे इसके सिवाय भी फलटनसे खास सम्बन्ध था इसलिये सेठनी फलटन जानेका विचार करने लगे । यह प्रतिष्ठा सेट वस्ताराम पूनारामकी ओरसे हुई थी जो मरते समय १००००) पंचोंके आधीन कर गए थे। सभाका अधिवेशन चैत्र सुदी ११ से शुरू हो गया था पर श्रीमान् सेठजी चैत्र सुदी १२को शीतलप्रसादजीके साथ पहुंचे । आपके स्वागतार्थ वस्तीके बाहर सैकड़ों जैनी पहुंच गए थे। मुख्य २ भाई मिले फिर फलटनबालोंने फूलोंकी माला गले में डाली। सेठजी सेठ हीराचंद नेमचंदके साथ गाड़ी में बैठे । दि० जैन प्रान्तिक और द० म० जैन सभाके वालन्टियरोंने घोड़ोंको गाड़ीसे हटाकर स्वयं गाड़ी खींचना शुरू किया। सेठनीको यह बात पसंद न आई। आप गाड़ीसे उतरने लगे तब वालन्टियरोंने उतरने न दिया और गाड़ीको स्वयं खींचते हुए धीरे २ बैंड बाजेके साथ ५०० से ऊपर भीड़के मध्यमें सभामंडपमें लाए। उच्चासनपर बिराजमान कराके स्वागतकारिणी सभाके सभापति सेठ रामचंद हेमचंद म्हसवड़ने स्वागतका भाषण किया जिसका समर्थन बलवंत बाबाजी बुक्टे सम्पादक " जिनविजय" ने किया और कहा कि आज आपने जिस व्यक्तिका इतना आदर किया For Personal & Private Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ५११ है उसका क्या कारण है ? आप लोग विचारते होंगे सो इस सभ्य मूर्त्तिके सन्मान में इसका विद्यानुराग ही कारण है । आपने सबसे अधिक द्रव्य विद्या हीके लिये अर्पण किया है। जैनियों में अनेक आपसे भी धनाढ्य पड़े हुए हैं परंतु परोपकारी और शिरोमणि आप ही हैं । सभा अधिवेशन ता० २७ अप्रैल तक हुए । जन संख्या ३००० से अधिक थी । ता० २६ अप्रैलको शीतलप्रसादने श्री शिखरजी के दुःखको कहकर प्रस्ताव किया कि सभाकी ओर से चंगले बननेके विरुद्ध तार जाना चाहिये । इसका समर्थन स्वयं सेठजीने किया और कहा कि अपने पूज्य महापर्वतकी सर्वस्व भूमिको रक्षित रखना हमारे भाइयों का कर्तव्य है । प्रस्ताव पास होकर दोनों - सभाओं की ओर से तार दिया गया । सभामें चंदेकी अपील होनेपर सेठजीने तीर्थक्षेत्र कमेटीको २०१), संयुक्त सभाको ५१ ) तथा पींजरापोल फल्टनको ५१ ) इस तरह ३०३ ) का दान किया ।, तथा सेठ हीराचंद ने भी १०२) संयुक्त सभा व ११) पिंजरापोलकों दिये | कोल्हापुर सर्कारने बन्दर मारनेकी मनाईका हुक्म जारी किया इससे धन्यवाद दिया गया। श्रीयुत नारायण गोविंद कीचक मुंसिफ साहबके सभापतित्वमें सेठजी और सेठ हीराचंद नेमचंद को मानपत्र दिये गए । वास्तव में इस समय ये ही दोनों वीर जैन समाजका अविद्यारूपी राक्षसकी सेनाको हटानेके लिये रामलक्ष्मणकी तरह उद्योगशील हो रहे थे अथवा सारे भारतकी जैन समाजमें चंद्र और सूर्यकी भांति प्रकाशमान थे। रात्रिदिन परोपकारतामें तनमन धन व्यय करना इस वीरोंका कर्तव्य था । इस उत्सव में - श्रीमती मगनबाई तथा कंकुबाईने स्त्रियों में उपदेश देकर ज्ञानमार्गकी For Personal & Private Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ ] अध्याय दशवां । वृद्धि की। ता० २७ अप्रैलको एक महिला परिषद बड़ी घूमधामसे हुई। अध्यक्षस्थान श्रीमती कंकुबाईने ग्रहण किया था । कई स्त्रियोंके भाषण हुए । ५०० भाषाप्रवेशकी पुस्तकें बांटी गई । स्त्री शिक्षार्थ कुछ चंदा भी हुआ । फल्टनमें एक धनाढय कुटुम्बके भ्राताओंमें जायदाद सम्बन्धी कुछ फूट पड़ी हुई थी। सेठनी और हीराचन्दनीने दो दिन परिश्रम कर इस फूटको मेटकर ऐसा उम्दा फैसला कर दिया जिससे सर्वको समाधानी हुई । जष्टिश आफ धी पीसकी उपाधिको सार्थक किया । फल्टनसे लौटकर सेठजी बम्बई आए ही थे कि सर्व दिगम्बर जैन संघकी एक सभा ता० ६ मई १९०७ बम्बई में सभा और की सोमवारकी रात्रिको दूसरे भोईवाड़ेके सेठजी सभापति । मंदिरनी में हुई। सेठनीको ही सभापतिका - आसन ग्रहण कराया गया । पंडित धन्नालालजीने पर्वतराज श्री शिखरजीपर आनेवाले उपसर्गकी बात सविस्तर सुनाई तथा प्रस्ताव किया कि डिप्टी कमिश्नरको तार किया जावे व यहांसे ५ महाशय ता० २५ मईके लिये जावें । मि० मालगावे आदिने पुष्टि की । सर्व सम्मतिसे नीचा लिखा तार भेना गया “Digambar Jain Community of Bombay protest against granting buiiding leases to Europeans etc. on Parasnath Hill as it will cause extreme dissatisfaction to the entire Jain society. The whole hill being sacred nothing should be done there to hurt the religious feelings of the Jains, as carryiug of flesh, wine and For Personal & Private Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५१३ other forbidden things on the hill is totally against Jain views, hence such proposal should entirely be dropped.” भावार्थ-बम्बईका दि. जैन संघ पहाड़पर मकानोंके लिये युरुपियन आदिको पट्टे जमीन देनेके विरुद्ध है, क्योंकि इससे सर्व जैन जातिको महान असंतोष होगा । पूर्ण पर्वत पवित्र है। मांस मदिरा व अन्य निषेध्य पदार्थ पर्वतपर ले जाना जैनधर्मसे विरुद्ध है, कोई काम जैनियोंके परिणामोंको दुःखी करनेवाला न होना चाहिये इससे इस विचारको बिलकुल छोड देना चाहिये । यह सभामें प्रगट हुआ कि डिप्टी कमिश्नरके पास चारों ओरसे तार व अर्नियोंकी वर्षा हो रही है। कलकत्ता, शोलापुर, सुरत, भावनगर, अहमदाबाद, इन्दौर, मद्रास आदि प्रसिद्ध २ स्थानोंसे तार पहुंच गए हैं। इसनेहीमें डिप्टी कमिश्नर हजारीबागका दूसरा नोटिस ता० २९ अप्रैल १९०७का आया कि हम ऐसी डिप्टी कमिश्नरका कोई बात नहीं कर सक्ते जिससे पर्वतके मालिकदूसरा नोटिस । को हानि पहुंचे । जैनियोंका सिवाय मंदिरोंके पर्वतपर कोई हक नहीं है । यदि अधिक हक मांगा जायगा तो पट्टे देते हुए कोई भी शर्त जैनियोंके लाभकी नहीं रख सकेंगे। यदि अदालती कार्रवाई न हो तो डि० क० पर्वतपर जैनियोंकी पूजामें हानि न पहुंचे इस बातका पट्टा देते समय स्मरण रखनेकी आशा कर सक्ते हैं । इस नोटिसको पढ़कर सेठमी व अन्य भाई बहुत ही हताश हुए। कमेटीके महामंत्रीकी तरफसे ता० १० मईकी दस्तखती सूचना जैनमित्र ता० १४ मई १९०७ में प्रगट Jain Education nternational For Personal & Private Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ ] अध्याय ग्यारहवाँ । की जिसमें यह भी बताया कि कलकत्तेके अटार्नी बाबू धन्नूलालने डिप्टी कमिश्नर साहबसे मिलकर समझाना स्वीकार किया है। अन्य जैनी वकील भी ता० २५ को पहुंचे तथा सर्व भाई तन मन धनसे सहायता करनेको तयार हो जावें । मई मासहीमें सेठजीके भ्राता सेठ नवलचंदके सुपुत्र ताराचंदका : विवाह सूरतमें शाह किसनदास अमीचंदकी सेठ नवलचंदके पुत्र पुत्री मानकौरसे बड़ी धूमधामसे हुआ। हाथी ताराचंदका विवाह। पर बरातका वरघोड़ा निकला था। पं० __ . पासू गोपाल शास्त्रीने जन पद्धतिसे विवाह कराया था। सेठजीका सर्व कुटुम्ब सूरत गया था । जातिके कई जीमनवार हुए थे। इस समयपर ता० २३ मई सन् ०७ को चंदावाड़ी में सबरे ९ बजे सेठ हरीभाई देवकरणके प्रपौत्र सेठ फुलकौर कन्याशा- हीराचंदजी शोलापुर निवासीके सभापतित्वमें लाकी स्थापना। एक महती सभा हुई। मूलचंद किसनदास कापड़ियाने कहा कि आज नवापुरामें सेठ माणिकचंद हीराचंदजीकी परलोकवासिनी पुत्री फुलकोरके स्मरणार्थ कन्याशाला खोली जाती है, जिसके लिये उक्त सेठजीने ५०००) एक मुश्त प्रदान किये व दो वर्ष तक जो कमी रहे उसको पूरा करना स्वीकार किया है । इसमें व्यवहारिक शिक्षाके साथ जैनधर्मकी शिक्षा प्रदान की जावेगी । १५ महाशयोंकी एक प्रबन्धकारिणी कमेटी बनाई गई । सेठ चुन्नीलाल झवरचंद तथा बाबू शीतलप्रसादने बालकोंकी अपेक्षा कन्याओं की शिक्षाकी For Personal & Private Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५१५ बहुत आवश्यक्ता बताई। उसी समय दातारोंने ९८४) का दान किया, जिसमें सेठ नवलचंद ने अपने पुत्रके विवाहोत्सव में २५०) व सेठ माणिकचंदजीने श्रीमती मगनबाईके नामसे १२५ ), छोटी पुत्री ताराबाई के नामसे १२५), व फुलकौरकी माता के नामसे १२९) इस तरह ३७५) दान किये । फिर सर्व भाई कुंभ कलश लेकर नवापुरा आए । शाला के मकान में सरस्वती पूजन होकर २५ कन्याएं भ -रती जिनको णमोकार मंत्र के साथ२ पाठारम्भ कराया गया । ता० २५ मईको मधुवनमें सबेरे ७ बजे हजारीबाग के डि क०मि० वेरी साहब से जैनी लोग मिले । डिप्टी कमिश्नरकी कलकत्ते से बाबू धन्नूलाल आदि, बम्बई से मुलाकात | लाला प्रभुदयाल, पानाचंद रामचंद्र आदि, फीरोज़पुरसे लाला देवीसहाय, जैपुरसे सेठ सर्वसुखदास आदि व खे० लोग राय बद्रीदास आदि एक साथ मिले । जैनियोंने बहुत कुछ समझाया पर साहबने यही कहा कि बंगले बनना निश्चित हो गया है। मंदिरोंके पास थोड़ी २ जगह . छोड़ दी जायगी । आपलोग कल पहाड़पर सबेरे मिलें | वहां बाबू धन्नूलाल आदि ८ महाशय पहुंचे। साहबने टोंकोके कुछ पास ही बंगले बनाने की बात कही । सबके होश दंग हो गए। इन लोगोंने ३ मासकी मोहलत मांगी पर साहब ने कहा कि अगस्त महीने में छोटे लाट यहां आकर देखेंगे तब पट्टे दिये जायेंगे। इससे दो मासके भीतर जो जैनियोंको करना हो कर लेवें । इस भयानक खबर - की सूचना कमेटी के महामंत्री - सेठजीको की गई। सेठजी महा दुःखी हुए। आपने ता० २ जूनको जैनमित्रमें एक सूचना सर्व For Personal & Private Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६] अध्याय ग्यारहवां । जैनियोंके लिये प्रकट की कि डि. क० के पास ४५० से अधिक तार पहुंचे व लोगोंने समझाया भी तब भी विचार नहीं बदला है। ता० २५ जूनके पहले२ भी अर्जियां पंचायतोंसे जावें । सेठजीके मनमें रात्रिदिन अब शिखरजीकी रक्षाका ही ध्यान था। आपने ता० ९ जूनको बम्बईमें शिखरजीके हीराबागमें एक आमसभा एकत्र की और निमित्त सभा। खुर्भावाले सेठ रामस्वरूपजीको सभापति नियत किया। बम्बईसे जो डेप्युटेशन गया था उसका हाल दोशी पानाचन्द रामचंदने कहा । बड़े लाट व छोटे लाट व स्टेट सेक्रेटरीको अर्जी भेजनेके लिये और एक डेप्युटेशन जानेके लिये कमेटियां बनीं। इस कमेटीने अर्जी तैय्यार करके तीनों जगह बम्बई सभाकी ओरसे ता. १४ जूनको अर्जी भेजी । सेठजीने जैनमित्रमें प्रगट कराया कि ताः २५ जून तक और भी पंचायतें ऐसी अर्जियां या तार भेजें। ता. १८ जूनको फिर भी हीराबागमें एक सभा हुई उसकी मम्मतिसे भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीकी तरफसे सेठजीने एक तार बड़े लाट महोदयकी सेवामें भेना, जिप्सका आशय यही था कि उस पूज्य पर्वतपर मांस मद्य शिकारादि नहीं हो सक्ते इससे छोटे लाट साहबसे सुचना की जावे कि वे इस प्रस्तावको बंद रक्खें । आरानिवासी बाबू देवकुमारजी दक्षिणकी यात्रा करके बम्बई आए थे। ताः २० जूनको दूसरे बम्बईमें स्त्री सभा। भोईबाड़ेके जिन मंदिरमें बाबू साहबकी धर्मपत्नी गुलाबदेईकी अध्यक्षतामें एक स्त्रीसभा हुई उसमें श्रीमती मगनबाईजीने धर्मशिक्षा और For Personal & Private Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५१७ गृहस्थधर्मपर प्रभावशाली व्याख्यान दिया तथा प्रति मास सभा करनेका निश्चिय किया गया । सूचना | सेठ माणिकचंदजी हर समय पवित्र पर्वतराजके उपसर्ग लाट साहेबके आनेकी दूर करनेकी फिक्र में ही रहते थे । ताः २८ जूनको खरजे में तीर्थक्षेत्र कमेटीका अधिवेशन करना विचार कर सर्व मेम्बरों व खास २ भाइयोंको बुलाने के लिये खास पत्र लिखे तथा पत्रों में प्रगट कराया कि छोटे लाट अगस्त मासमें शिखरजी जावेंगे सो सर्व पंचायतों से प्रतिनिधि भेजे जाने चाहिये । सेठ माणिकचंदजी बम्बईसे शीतलप्रसादनीको लेकर खुरजे जाने वाले थे इसी बीचमें बाबू जबलपुर बोर्डिङ्गका देवकुमार आरानिवासीसे भी आपने प्रार्थनाउत्सव और १०००) की कि आप मेरे साथ चले । पहले जबलपुर का दान | बोर्डिङ्गके वार्षिकोत्सव में शरीक हों फिर खुरजा चलें। बाबू साहब सकुटुम्ब थे और दक्षिणकी यात्रामें बहुत दिन लगा चुके थे वहां भ्रमणकर मूडबिद्रीके प्राचीन ग्रंथ भंडारकी दुरुस्ती कराई । मूडबिद्री व कारकल में संस्कृत पाठशालाका ध्रुव फंड कराया आदि अनेक उत्तमोत्तम कार्य किये तथा बम्बई में भी एक बड़ा सरस्वती भंडार खोलनेके लिये श्रुतपंचमी के दिन सभा द्वारा उद्योग किया था, जिसमें बाबू साहबने ५ वर्ष के लिये २५०) वार्षिक तथा सेठ माणिकचंदजीने १२५) वार्षिक स्वीकार किया था । सेठजी श्रीमती मगनबाई ललिताबाई आदिके साथ जबलपुर पधारे । ता० For Personal & Private Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ ] अध्याय ग्यारहवां । २५ जून १९०७ को बाबू देवकुमारजीके सभापतित्त्वमें बोर्डिगके. वार्षिकोत्सवकी सभा हुई। रिपोर्ट सुनकर सर्व भाई कार्यसे बहुत प्रसन्न हुए और उसी समय २०८५) का चंदा हो गया, जिसमें १०००) सेठजी व १०००) सिंगई नारायणदासजीने दिये । विदेशी गरीब छात्रोंको वहीं सहायता देनेके लिये १०००) के करीब छात्रवृत्ति फंड हुआ । इसमें भी सेठनीने २५०) और बाबू देवकुमारने ५१) दिये। बाबू देवकुमारजीके छोटे भाईकी विधवा स्त्री चंदाबाई वैष्णव धर्मसेवी वृन्दावननिवासी माता पिताकी पुत्री जबलपुर में स्त्री होकर भी देव समान धर्मात्मा देवकुमारके सभाएं। कुलके प्रसंगसे व अपने पूज्य पिता बाबू नारायणदास बी. ए. द्वारा दी हुई हिन्दी और संस्कृत विद्याके ज्ञानबलसे जैनधर्मकी परीक्षा कर उसे ही अपने जीवनका दृढ़तासे आभूषण बनाकर जैन स्त्रीप्तमाजमें ज्ञानप्रचारकी भावना करनेवाली भी मौजूद थीं। ता० २३, २५, २९ को स्त्रीसभाएं बड़े जोर-शोरके साथ हुई जिसमें ललिताबाई मगनबाई व चंदाबाई तथा अन्य जबलपुरकी बाइयोंके व्याख्यान हुए। कन्याशा-- लाएं यहां चल रही थीं। परीक्षा लेकर पारितोषिक बांटा गया व २८१॥) का नवीन चंदा भी स्त्रीसमाजने दिया। लेडी सुप० ट्रेनिंग कालेज भी ता० २६ जूनको पधारी थीं। बाबू देवकुमारजीके प्रयत्नसे जबलपुरमें शिखरजीके उपसर्ग निवारणार्थ एक बृहत् सभा हुई। एक जबलपुरमें शिखर- कमेटी बनी । सिंगई नारायणदासजीने जीकी सभा। संस्कृतशाला खोलना स्वीकार किया व एक भोजनालय भी खोला, जिससे असमर्थ दिगम्बर जैनी ३ दिन तक भोजन पा सकें। सेठ माणिकचंदनी For Personal & Private Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ५१९ जबलपुर से सीधे खुरजा आए । स्टेशनपर श्रीमान् पंडित सेठ मेवाराम - जी बहुत से भाइयों के साथ उपस्थित थे। सेठजीका बहुत सन्मानसे स्वागत करके एक उम्दा कोठी में ठहराया। मुख्य २ बहुतसे भाई आए थे। सर्वका रानीबालोंने खान पानादिसे खूब ही सत्कार किया । ī ता. २८ को राय बहादुर सेठ अमोलकचंदजीके सभापतित्वमें सभा हुई जिसमें शिखरजी रक्षार्थ भारी चंदा के शिक्षरजीके रक्षार्थ करनेकी बात हुई। यह भी तय हुआ कि रुपया १०००० ) का दान | खर्च करके कुछ पहाड़को अपने कबजेमें कर लिया जाय इसके लिये २८ महाशयों की कमेटी बनी और चंदेकी सूची खोली गई । जब सेठजीने सर्वसे निवेदन किया कि आप लोग योग्य रकम कहें तब आध घंटे तक कोईने कुछ न कहा । लाला देवी सहाय फीरोजपुरबाले शिखरजीकी रक्षार्थ बड़े ही प्रयत्नशील थे | आपने सर्वसे पहले ५१००) कहे तथा अपने साथके लाला डालचंदजीकी ओर से ५५०० ) कहे । तब सेठ माणिकचंद पानाचंद बम्बईकी ओर से सेठजीने १००००) कहे, तब खुरजे वाले सेठ हरमुखराय अमोलकचंदने १५०००) लिखाए । लाला रूपचंद सहारनपुरने ५१००) कहे, लाला सुलतानसिंह दिहलीने ४१००) कहे | लाला ईश्वरीप्रसाद दिहलीने २१००) कहे । बाबू प्यारेलाल वकील दिहलीने १५०० ) कहे । लाला देवीसहाय सोहनलाल रावलपिंडीने २५०० ) कहे । इस प्रमाण चंदा शुरू हो गया। वहांसे सेठजी अजमेर गए । वहां रायबहादुर सेठ नेमीचंदजीने भी १५०००) भरे । | For Personal & Private Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२०] अध्याय ग्यारहवां । समामें सेठ हुकमचंदनी ईन्दौरसे नहीं आए थे, तब सेठजी इन्दौर गए । वहां रात्रिको बड़े मंदिरजीमें सेठजी इन्दौर में। सभा हुई । शीतलप्रसादनीने सर्व हकीकत सुनाई, तब सेठ हुकमचंदजीने सर्वसे सम्मति करके तुर्त २५०००) का चंदा इन्दौर पंचायतीका कर दिया । यहांसे सेठनी बम्बई लौटे । पत्रद्वारा चंदेका उद्योग किया, तब शोलापुर पंचानने २५०००) व जैपूर पंचानने २१०००) के चंदेकी स्वीकारता भेनी । इसी तरह सेठजीके बार बार पत्रव्यवहारसे बड़ी रकमें और भी स्वीकृत हुई जैसे९५२०) पंचान जिला बिजनौर मा० साहु सलेखचंद जुगमं दरलाल, नजीबाबाद ५०००) पंचान गया २५४१) ,, मऊ छावनी २१००) राजा ज्ञानचंद, सिकन्द्राबाद २०१५।-) पंचान, नसीराबाद २०००) ,, देहरादून १५००) श्रीमंत सेठ पूरनसाह, सिवनी ११००) पंचान, बड़नगर ११०१) ,, ललितपुर १०७३) ,, नीमाड़ प्रांत १०७१), पंढरपुर १०३१), अलवर १००१) रा० रा० हरघर धरणप्पा, रायचूर For Personal & Private Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५२१ १००१) राजा फूलचंद, लश्कर १०००) पंचान, बनारस १२००) , सादरा (गुजरात) २०००) ,, वांसवाड़ा, जिला उदेपुर २५००) ,, ईडर २०००) मित्रसेन जंबूप्रसाद सहारनपुर २१००) बद्रीदास दरबारीलाल इच्छाराम क० अम्बाला १०-१५ दिनके भीतर सेठ माणिकचंदने अपनी दानवीरता व उदारताके असरसे करीब दो लाख सेठजीके उद्योगसे रुपयेका चंदा कर लिया। जो स्वयं २ लाखका चंदा। दान करता है वह दूसरोंसे भी दान करा सक्ता है । सेठजीके वचनोंको उलंघन करना सहज बात नहीं थी। जिससे जो कहते वह मान लेता था। सेठजी बड़े न्याय चित्त, विचारवान, गंभीर, सहनशील, परिश्रमी तथा धर्म व जातिकी सेवार्थ अपने तनको विदेश भ्रमण आदिके अनेक कष्ट देकर भी न्योछावर करनेवाले थे। यह इन्हींकी दम थी जो बातकी बातमें इतना भारी चंदा हो गया । वृद्ध लोग कहते हैं कि जहां तक हमारा होश है इतना भारी चंदा कभी नहीं हुआ था । जो तार तीर्थक्षेत्र कमेटीने ता. १८ जून को बड़े लाट साहबकी सेवामें भेजा था उसका जवाब जी. बी. बड़े लाटका पत्र । एच. फेल डिपुटी सेक्रेटरी गवर्नमेन्ट आफ इन्डियाने अपने पत्र नं० १७४९ ता. १६ जुलाई १९०७ को सेठनीके पास इस आशयका भेना कि “ छोटे For Personal & Private Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ ] अध्याय ग्यारहवां। लाट पूरी जांच करने जायगे वहां जैनियोंको अपना हाल कहनेका पूरा मौका दिया जायगा, तथा जब तक छोटे लाट जांच न कर लेंगे बंगलोंके लिये पट्टे न दिये जायगे "-वे कुछ वाक्य ये हैं(I am to add that no action whatever will be taken towards granting leases on the Hill until the enquiry has been held by His Honor the Lieutenant Governor. ) सेठजीने बातको बढ़ते हुए देखकर बम्बई में सलाह की कि यदि राजा पालगंज द्वारा बंगलोंकी इन्कारी सेठजीका परस्पर हो जाय व श्वेताम्बरी लोग मिलकर उद्योग निबटानेका प्रयत्न । करें तो शायद शीघ्र यह उपसर्ग दूर हो इसलिये आपने मिती आषाढ़ सुदी ४ ता. १४ जुलाई के दिन बम्बईसे अपने भानजे सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदको लाला प्रभुदयालजी, सेठ पदमचंदनी, मि. चुन्नीलाल बी. ए. सुप० जैन बोर्डिंग बम्बई, आदि भाइयोंके साथ गिरीडी भेना । आरासे बाबू देवकुमार व बाबू किरोड़ीचंद भी आए। बहुत कुछ चेष्टा की। राय बद्रीदास कलकत्ताकी असम्मतिसे दि० व श्वे० में मेल न हुआ और न राजाही के द्वारा कोई सफलता हुई । इस समय वहां वर्षात बडीभारी पडी थी। पालगंज जाने आनेमें वर्षाकी बाधा इन सब लोगोंने सहन की, क्योंकि बराकर नदीको पार करना पड़ता है जो वर्षातमें बहुत बढ़ जाती है । आबोहवाकी खराबीसे करीब २ सर्व पार्टी बीमार हो गई। सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदको कलकत्तेमें टांगमें ऐसा फोड़ा For Personal & Private Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५२३. हो गया जिससे दुःखित हो वे सर्वको छोड़ सीधे बम्बई. आए और बीमार हो गए। __ताः १ अगस्तको फिर पहाड़पर कमिश्नर साहब आए। उस वक्त भी तीर्थभक्त बाबू धन्नूलाल अटार्नी कमिश्नरसे मुलाकात । सेठ परमेष्टीदास व बम्बईके लोग आदि. मिले । सब लोगोंने इन्कार किया कि हम पर्वतकी पवित्रताकी कुछ भी हानि नहीं सहन कर सक्ते । बम्बईके सेठ पदमचंद व प्रभुदयालजी भी बीमार होकर लोटे व कई मासतक बीमार रहे । चुन्नीलाल सुप० का मगज फिर गया । वे बहुत दिनों तक मेड हाउसमें रहे । जब २ जीवोंके तीत्र कर्मका उदय हो आता है तब तक तप, ध्यान, पूना कैसा भी धर्म कार्य करे उस उदयजनित कर्मका फल भोगना ही पड़ता है। बड़े२ मुनियोंको भी तीव्र कर्मोदयसे उपसर्ग सहना पड़ा है । सेठजी चुन्नीलालको बीमार देख बहुत दुःखित हुए तथा योग्यरीतिसे दवाई में लग गए । इतनेमें सेठजीको डि. क. हजारीबागसे सूचना मिली कि लाटसाहब ता० २८-२९-३० अगस्तको पहाड़ पर आवेगे । सेठनीने ४ अगस्तको सर्व जैनियोंको प्रतिनिधि भेजनेके लिये जैनमित्र ता. ११ अगस्त द्वारा सूचना की। सेठ माणिकचंदजीको भी ता० २८ के लिये कई दिन पहलेसे जाना था पर सेठ युन्नीलालको ऐसी बीमारीकी दशामें छोड़कर जाना आपने ठीक नहीं समझा और चुन्नीलालजीसे अपने न जानेकी बात कही तब साहसी तीर्थभक्त चुन्नीलालने कहा-"मामा, मारी फिकर करता ना, तमे For Personal & Private Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ ] अध्याय ग्यारहवां । शिखरजी जाओ अने पहाड़नो झगडो मटाहो" यह धीरजके शब्द सुनकर सेठजीने जाने का निश्चय किया। सेठजी शीतलप्रसादनी व मैनेजर कमेटीको लेकर शिखरजी आए और यहां आनेवालोंके आरामका प्रबन्ध कराने लगे । सेठ मेवारामजी भी कई दिन पहलेसे आगए थे और खास २ लोगोंको अर्जन्ट तार देकर बुलाया था। ता० २५ से २७ तक २५०० दि० जैनी भिन्न २ प्रान्तोंके आगए थे । बंगालसे बा. धन्नूलाल अटार्नी, सेठ परमेष्टीदास आदि, पंजाबसे लाला ईश्वरीप्रसाद, लाला रामलाल फीरोजपुर आदि, युक्तप्रान्तसे बा० जुगमन्धरदास सहायक महामंत्री महासभा, रायबहादुर नत्थीलाल खुरजा आदि, मालवासे सेठ हुकमचंद, अमोलकचंद आदि, राजपुतानासे रायबहादुर सेठ नेमीचंद व रा० ब० घमंडीलाल आदि, बम्बईसे सेठजी व चौगले बी. ए. एलएल. बी. वकील बेलगाम आदि, मध्य प्रदेशसे सेठ पूरणसाह, सुखलालमल, नेमिलाल आदि, दक्षिणसे अनन्त राजय्या मैमुर, भट्टारक लक्ष्मीसेन, राजा ज्ञानचंदजी आदि । बम्बईसे सेठजी शिखरजीके लिये रवाना हुए थे कि एक दिन बाद ही मिती श्रावण वदी १ सं० १९६३ सेठ चुन्नीलाल झवेर- (गुज०) तारीख २४ अगस्तको प्रातःकाल चंदका स्वर्गवास । श्रीजिनेन्द्रका व शिखरनीका ध्यान करते सेठ चुन्नीलालका आत्मा इस क्षणिक देहको छोड़ स्वर्गधाम पधारा । आपने मरते समय ५०००) धर्मादेके निकाले। यह बड़े भारी तीर्थभक्त थे। इन्होंने तीर्थोके उद्धारके लिये बहुत कुछ परिश्रम उठाया था। श्री शिखरजी और पावापुरी For Personal & Private Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । जीके दिगम्बर जैन कारखानोंकी व भंडारकी रक्षा आपके बड़े भारी जातीय परिश्रमका फल है । ३० वर्षकी उमरसे आप बराबर नियमसे स्वाध्याय करते थे । सं० १९४२ से १९५५ तक श्री शिखरजी, गोम्मटस्वामी, गिरनारजी, शेजा, केशरिया आदिकी अनेक तीर्थयात्रा करके धर्ममें द्रव्य लगाया। श्री गजपंथाजी और शोलापुरके बम्बई प्रांतिक सभाके उत्सवोंका बहुत ही प्रशंसनीय प्रबन्ध सेठ चुन्नीलालने किया था । इनकी बुद्धि बहुत तीक्ष्ण थी। व्यापारमें भी बहुत कुशल थे । यह सेठ माणिकचन्दके कुटुम्बके हर काममें दाहने हाथ थे । इनके दो पुत्रीं हुई थीं, जिनमें इनके मरते समय एक पुत्री कीकीब्हेन २६ वर्षकी मौजूद थी। सेठ चुन्नीलालकी धर्मपत्नी जड़ावबाईकी धर्ममें विशेष लग्न है। थोड़े दिन हुए इसने २५००) खर्चकर सुरतके शांतिनाथनीके मंदिरजीमें चांदीकी वेदी बनवाई है तथा मांगीतुंगी और पावागढ़में मंदिरोंमें संगमर्मर लगवाया है। ___ यह स्वाध्याय पूजन नित्य करती है व धर्म कार्यों में नित्य थोड़ा बहुत दान करती रहती है । स्त्रीशिक्षाकी उत्तेजनापर भी ध्यान है। सेठ चुन्नीलालने केवल ३९ वर्षकी आयु पाई। इतनी उम्र में आपने जैन समाजकी जो सेवा बनाई उससे यह समाज आपका सदा कृतज्ञ रहेगा। तीर्थभक्तिमें अपूर्व परिश्रम करने व मरण समय श्री शिखरजी हीका ध्यान करनेसे अवश्य आपको उत्तम गतिका लाभ हुआ होगा For Personal & Private Use Only . Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ ] अध्याय ग्यारहवां | सेठजी मधुवन में तीर्थरक्षा में अनुरक्त थे कि ता० २६ को तार पाया कि सेठ चुन्नीलालका देहान्त -सेठजीको चुन्नीलाल- हुआ । सुनते ही आपको यकायक मूर्छा आ गई । जैसे किसीका दाहना हाथ टूटने से दुःख होता है ऐसा दुःख सेठजीको हुआ । थोड़ी देर में सचेत हुए, फिर भी शोक में बैठ की मृत्युकी खबर । गए । आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी । सेठजीको यह शोक इस कारण से नहीं हुआ था कि वह इनके भानजे थे, पर शोकका - कारण यह था कि तीर्थोकी रक्षामें व बम्बई प्रान्तिकसभा के कामों में जो अपूर्व सहायता प्राप्त होती थी वह बंद हो गई । शीतलप्रसादजी पास में ही थे । सेठजीको अनेक दृष्टांत देकर संसारकी असारता व शरीरकी क्षणभंगुरता समझाई तथा तीर्थभक्ति में निश्चल ठटे रहने की प्रेरणा की। सेठजी स्वयं भी विचारशील थे । अंतर्महूर्त ही क्लेशित परिणामी रहे फिर तुर्त सचेत होकर अपने उसी तीर्थभक्ति के काम में लग गए। किसीसे उस बातका वर्णन न किया, न कोई जान ही सका ! शिखरजी में ता० २६ को बीसपंथी कोठो में दिनके एक सभा लाला सुलतानसिंह दिल्ली के । शिखरजीवर लोर्ड सभापतित्वमें हुई जिसमें तीर्थक्षेत्र कमेटीद्वारा फ्रेज़रका आना । तयार किया हुआ मेमोरियल शीतलप्रसादजीनेसुनाकर मंजूर कराया और मेम्बरोंके लाट साहब के पास दूसरे दिन भेजा गया । मिलनेके लिये प्रतिनिधियोंकी एक नामा दस्तखत से पहाड़ पर फिर लाट साहब से - For Personal & Private Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५२७ वली लिखी गई। रात्रिको भी मंदिरजीमें सभा हुई। कुल नाम ६५ चुने गए । ता० २७ को सवेरे लाट साहब आए । दिगम्बरी मंदिरजी व धर्मशालाका निरीक्षण कर पर्वतपर एक बंगले में गए तथा ता० २८ को सवेरे प्रतिनिधियोंको मिलना था । लाट साहबने थोड़े ही आदमी बुलाये थे तब ६५ मेंसे २८ नाम छोटे गए। सबेरा होते ही कोई डोलीपर कोई डोली न मिलनेसे पेदल रवाना हो गए। राय ब० घमंडीलाल, लाला ज्ञानचंद, सेठ हुकमचंद, बाबू धन्नूलाल अटार्नी, राय० ब० नत्थीलाल, लाला रामलाल आदि १५ दिग० ठीक समय पर पहुंचे उनको लेकर लाट साहब पार्श्वनाथस्वामीकी टोंकसे कुंथुनाथस्वामीकी टोंक तक आए फिर सीतानाले तक आए । श्वेता बरियोंको भी बुलाया था पर इनमेंसे कोई न पहुंच सका । उस दिन सर्व ही दि० यात्री धोए हुए धोती डुपट्टे पहनकर पूजाकी सामग्री लेकर पहाड़ पर बन्दनार्थ गए थे। लाला साहबके दिलमें चारों ओर नग्न सिर यात्रियोंको पूजा करते देखनेसे बड़ा भारी प्रभाव पड़ा । बहुतोंसे लाट साहबने बात भी की। इसदिन बहुतसे यात्रियोंने उपवास किया। सेठजी पैर में चोट होने व डोली न मिलनेसे पर्वतपर . न जासके । जैनियों ने अच्छी तरह पर्वतकी पवित्रता समझाई। लाट साहब २ बजे बगलेपर लौटे तब राय बद्रीदास आदि ७-८ श्वे० व कुछ दिगम्बरी मिले। इस अवसर पर श्वेताम्बरी करीब १०० के ही कुल आए थे जव कि दिगम्बरी २५०० के करीब जमा हुए थे । इस समय कोई बात नहीं की । ता० २९ को सवेरे लाट साहब नीचे उतरे । तथा दिगम्बरी मंदिरमें कपड़ेके जूते पहनकर गए। वहांसे आ लक्ष्मी सेन भट्टारक कोल्हापुरसे मिले । उन्होंने For Personal & Private Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ ] अध्याय ग्यारहवां । संस्कृत श्लोक कहकर आशीर्वाद दिया । वहांसे मंडपमें आए. जिसमें सर्व दिगम्बरी कायदे से बैठे थे । प्रतिनिधियों से परिचित होने पर लाला सुलतानसिंह रईस देहलीने एड्रेस पढ़ा और मनोहर कास्केटमें भेट किया । यह कलकत्ते में बाबू धन्नूलालजीकी मार्फततय्यार हुआ था । इसके उत्तर में लाट साहबने एक स्पीच दी जिसमें जैनियोंको संतोष नहीं हुआ तथापि आखरी हुकम बंद रक्खा | लाट साहबके जानेपर तीन बजे बड़ी भारी सभा सेठ पूरणसाहके सभापतित्त्वमें हुई जिसमें व रातकी समामें पर्वत रक्षार्थ चंदे की उत्तेजना दी गई व पर्वत रक्षार्थ एक कमेटी बनाई गई जिसका मुख्य भार बाबू धन्नूचाल और सेठ परमेष्टीदासको दिया गया । लाट साहब चलते वक्त दिगम्बरियों से बात करनेको दो प्रतिनिधिके नाम मागे गए थे सो इन्हीं दोनोंके नाम सेठजीने भेज दिये तथा कलकत्ते में पर्वत रक्षाका दफ्तर हुआ जिसमें मौजीलाल क्लर्क जो बम्बई प्रान्ति सभामें था उसे नियत कर दिया । सेठजी शिखरजी से चलकर गयाजी होते हुए काशी आए । वहां ता० ३ सितम्बरको प्रथम वार्षिक काशी स्याद्वाद पाठ - अधिवेशन था । यद्यपि सेठजीको चुन्नीलालशाला वार्षिकोत्सव जीके वियोगका बहुत दुःख था परंतु आप में सेठजी । स्याद्वाद पाठशाला के सभापति थे, आपने ही यह मिती नियत की थी इससे आपको आना ही हुआ । वास्तवमें सेठजीमें धर्म व जाति प्रेम ऐसा ही था जिससे वह अपने शोकादि कषायके निमित्तसे कभी धार्मिक कामों को बंद नहीं कर सक्ते थे । इस समय शिखरजीसे लौटते हुए For Personal & Private Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6) सेठ चुन्नीलाल जवेरचन्द्र बम्बई. (देखो पृष्ठ ५२३). ... P. Surat For Personal & Private Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५२९ लाला जुनमन्धरदास नजीबाबाद आदि अनेक सज्जन काशी आ गए थे । पाठशालाके मकान में ही सभा हुई। बाबू देवकुमारजीके पेश करने और शीतलप्रसादजीके अनुमोदमसे पंडित रामभाऊ नागपुरने सभापतिके आसनको ग्रहण किया। पं० माणिकचंद, उदयलाल, कुमारैय्या, निद्धामल, मक्खनलाल आदि छात्रोंके व्याख्यान हुए । दो वर्षकी रिपोर्ट सुनकर सर्वको बहुत संतोष हुआ। छात्रवृत्ति फंडकी अपील बा० देवकुमारने की। चिरंजीलालजी हिसारने अनुमोदन किया तब उसी समय करीब ५००) के फंड हो गया जिसमें २००) सेठ माणिकचंदजीने व १००) देवकुमारजीने दिये । फिर अध्यापकोंको भेट व छात्रोंको इनाम दिया गया जिसमें वर्तमान में समाज में काम करनेवाले विद्वानोंको उस दिन विद्यार्थीकी अवस्थामें ७) माणिकचंदनी, ६) गणेशप्रसादजी, ३) कुमारैया, ३) बनलाल, २) बद्रीप्रसाद आदिको मिले तथा नागपुरके सेठ नेमीसाहने व्याख्यानोंसे प्रसन्न हो माणिकचंदजीको ४), कुमारैय्याको ४), उदयलालको २), मक्खनलालको २), निद्धामलको २) आदि पारितोषिक दिया । काशीसे सेठजी बम्बई आए । और शेष भादों मास व दशलाक्षणी धर्मसेवनमें विताई। - सेठ प्रे० मो० दि० जैन बोर्डिगका ४ था वार्षिकोत्सव आसौन सुदी १४ ता० २० अक्टूबर अहमदाबाद बोर्डिंग- १९०७ को था। उसमें शामिल होनेके का वार्षिकोत्सव । लिये सेठनी शीतलप्रमादनीके साथ अहम दाबाद आए। बम्बईसे माता रूपाबाई, लल्लभाई लक्ष्मीचंद व परोपकारी मंत्री परीख लल्लूभाई प्रेमानंद For Personal & Private Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० ] अध्याय ग्यारहवाँ। एल० सी० ई० आदि आए थे। और सूरतसे मूलचन्द किसनदास कापड़िया भी आए थे । प्रोफेसर आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुव एम० ए. एलएल० बी० के प्रमुखत्वमें जल्सा हुआ । मुजरात विभागसे ४०० गृहस्थ आए थे । प्रमुख साहब व चीनूभाई माधोमाई सी० आई० ई० ने विद्यार्थियोंको बहुत बोधदायक उपदेश दिया । बोर्डिगके सहायतार्थ ११००) के अनुमान द्रव्य आया । इस समय छात्र ३५ थे। ... सेठजीने रात्रिको आमोदवाले हरजीवन रायचंदको 'दिगम्बर . जैना पत्र न निकालनेके कारण बहुत कुछ "दिगबर जैन " कहा तब हरजीवनजीने बिलकुल इनकार कर मासिकके लिये दिया । सेठनी उदास हो गए और विचारने प्रयत्न । लगे कि किसको सम्पादक किया जाय । इतनेमें शीतलप्रप्तादजीने सूरतनिवासी मूलचंद किसनदास कापड़ियाकी तरफ इशारा करके कहा कि यह नवयुवक उत्साही, धर्मप्रेमी व कुछ शास्त्रका ज्ञाता मालुम होता है, उसे ही सम्पादक बनाना चाहिये ।। पहले तो सेठजीके ध्यानमें यह बात नहीं आई चुप हो रहे, तब शीतलप्रसादजीने अपने अनुभवसे कहा मूलचन्द किसनदास कि यह उत्साही हैं। यदि उद्योग करेंगे तो कापडियाको संपा- अवश्य पत्रको चला लेंगे । तब सेठनीने दक होनेकी सेठ- मूलचन्दनीको सम्पादक होनेको कहा, जीकी सूचना। सुनते ही मूलचंदनी चौंक पड़े और बोले कि मैंने आजतक कभी एक लेख भी नहीं . लिखा है। मुझे इसका अनुभव बिलकुल नहीं है। मैं व्यापार में For Personal & Private Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सेवा द्वितीय भाग। [५३१ 'फंसा हूं। मैं पत्रकी सम्पादकी कैसे कर सकूँगा ? तब सेठनीने समझाया कि तुम साहस करो तथा हरजीवन रायचंदनी सहायता करेंगे । छोटेलाल अंकलेश्वरने भी लेखादिसे मदद देनेका वादा किया फिर भी मूलचंदजीने इनकार किया तब शीतलप्रसादनीने कहा कि साहस करो मासिकपत्र चलाना कोई बात नहीं है हमने तो साप्ताहिक पत्रको लौकिक बहुतसा काम करते हुए भी चलाया है। चारचार कहनेसे मूलचंदजीको अंतरंग ज्ञान शक्तिने गवाही दी कि तू कर सकेगा। मूलचंदनीने उस समय बेमनसे इस बातको स्वीकार कर कहा कि मैं सूरत जाकर इसके लिये यथाशक्ति प्रयास करूंगा। शीतलप्रसादजीने पीठ ठोकी । आज उसी मूलचंदजीने इस दिगम्बर जैन पत्रको इस सभाके पीछे ही कार्तिक मार्गशीर्षका मम्मिलित अंक निकालकर व बराबर उन्नत रूप व एक समान समय पर प्रगट करते रहकर इस सीमाको पहुंचा दिया है कि दिगम्बर जैन समाजके सर्व पत्रोंके ग्राहकोंसे अधिक ग्राहक इस पत्रके हैं अर्थात् अनुमान २००० हैं और इसे साधारण सर्व ही देशके जैनी भी रुचिसे लेते हैं। हिन्दी भाषी देशमें भी इसका अच्छा प्रचार है। प्रति वर्ष खास अंक अनेक विद्वानोंके उत्तमोत्तम लेख व अनेक चित्र सहित १५० व २०० सफोंका निकालकर अच्छा सन्मान प्राप्त किया है । जैनियोंके और पत्र हरवर्ष जब घाटा सहन करते हैं तब यह पत्र ही नफा करके उसे धर्मद्रव्य समझ उसे पत्रकी विशेष उन्नति व उपहारकी पुस्तकों के देनेमें लगाता है। इस बोर्डिंगमें चैत्यालय शुरूसे ही था । यह सेठजीका कायदा रहा है कि नितने छात्र बोडिंगमें रहें वे दर्शन अवश्य करें। यदि मंदिरजी निकट For Personal & Private Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२] अध्याय ग्यारहवां । नहीं है तो चैत्यालय अवश्य होना चाहिये। इसी भावसे बम्बई वोर्डिंग व कोल्हापुर बोर्डिंगमें चैत्यालय था वैसा ही यहां हुआ था। इसकी शोभा माता रूपाबाईके द्वारा दिनपर दिन बढ़ती थी। इस वर्ष माताने चांदीका छत्र, कटोरी व जर्मन सिलबरका कलस भेट किया था। सेठजी यहांसे लल्लूभाई लक्ष्मीचन्द और शीतलप्रसादजी को लेकर श्री तारंगाजी सिद्धक्षेत्र रवादि० श्वे० की फूट ना हुए । साथमें बम्बईके श्वे० भाई रायचन्द मेटनको तारंगाजी लल्लुभाई भी थे। यहां आने का यह कारण की यात्रा। था कि तारंगाजीपर एक कुंड है जिसकी __मोहरीसे दि० श्वे. दोनों पानी लेते हैं। उस मोहरीको दि० कोठीके आदमी मरम्मत कराना चाहते थे । श्व० के आदमियोंने झगड़ा करके रोका । फरियाद पुलिसतक गई। इसीको परस्पर निबटानेके लिये आना हुआ था । ताः २१ अक्टूबर ०७ को गुजरातके बड़नगर स्टेशनपर आए। वहां श्वे० सेठ फतहचन्द सांकलचन्दनी अनेक भाइयोंके साथ स्टेशनपर मिलने आए थे। उस दिन उन्हींके यहां ठहरे। उन्हींने ही कच्चो रसोई बनवाई थी जिसको २० व दि० भाइयोंने अलग २ बैठकर एक साथ खाई थी। यहांसे ११ मील गाड़ीपर तलहटी आए । वहां कोई आश्रय स्थान नहीं था। पहाड़पर १ मील चढ़नेसे कोठी व धर्मशाला आती है यहां दि० के २ मंदिर हैं। एक बहुत प्राचीन है जिसमें मूलनायक श्री संभवनाथ स्वामीकी बहुत मनोज संवत रहित प्रतिमा है । दूसरा मंदिर भी आदिनाथ स्वामीका For Personal & Private Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ५३३ शोलापुर के सेठका बनवाया हुआ है इसीके आसपास ४ वेदियां हैं। ० का एक बड़ा मंदिर ३० लाखकी लागतका कहा जाता है। सेठजीकी खबर पाकर सेठ पूनमचंद सांकलचंद आदि महाशय ईडरके व सुदासण, दांता, भाटवास, खेरालु आदिके दि० जैनी व कई श्वे ० जैनी भी आए थे । ताः २२ की रात्रिको दोनों सम्प्रदायवालों की कमेटी होकर यह तय हुआ कि यह तीर्थ दोनोंका है । जिस आदमीने दि० को रोका उसने भूल की। वह नौकरीसे अलग किया गया तथा दि० कोठीवाले बगिचेके भीतर के रास्तेसे भी कुंडका पानी ले सकते हैं । दि० व वं० दोनों ही यात्रियोंके आरामके लिये अपने २ प्रबन्धक कार्यको कर सकते हैं, कोई किसीके काममें बाधा न डाले । मुनीम द्वारा यह मालूम हुआ कि कोट शिलापर दो दिगबरी देहरियों को मरम्मत करने में श्वताम्बरी रोकते हैं तब ताः २२ को सवेरे दि० ० भाई सेठजी के साथ ऊपर गए । सेठजीका पैर एक अशक्त था तौभी आप बड़े साहसके साथ लकड़ी के सहारे पहाडपर चढे चले गए। यह १ मील उंची है। १ देहरी छोड़कर दिगम्बरी देहरी मिली जिसको चांद सूरजकी देहरी कहते हैं उसके भीतर ही यह लेख था --- " संवत् १६२५ वर्षे पौष वदी ५ शुक्ले श्री मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे आचार्य कुन्दकुन्दान्वय भट्टारक श्री शुभचंद्र स्तत्पट्टे भट्टारक श्री सुमतिकीर्ति गुरुपदेशात्हूंमड ज्ञातीय गांधी नरपति भार्या. ....... इसी देहरीकी मरम्मत में श्वे ० रोकते थे सो यह दि० लेख श्वे • .... " For Personal & Private Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ ] अध्याय ग्यारहवां। भाइयोंको अच्छी तरह वंचाकर उनके मनका समाधान किया गया। आगे दुसरी एक दिगम्बरी देहरी है जिसमें बहुत मनोज्ञ दिग० जैन प्रतिमा पद्मासन विराजमान थी। यहां दिग० लोग पत्थर जड़ाना चाहते थे सो श्वे० रोकते थे। इस प्रतिमामें श्वे. मूर्तिके चिन्ह जो कमरमें कंडोर। व आसनमें लंगोटका चिन्ह होता है तो न थे तौभी इवे० ने हर्ष सहित कबूल नहीं किया। नीचे आकर सेठ फतेहचंद सांकलचंदके सामने तीसरे पहर बात होकर यह तय हुआ-चांद सूरजकी देहरीको व उसके जाने के मार्गको दि० लोग दुरुस्त करें हमें कोई उनर नहीं है । पर दूसरी देहरीका झगड़ा बाकी रक्खा और यह कहा कि हम अपने संघ व साधुको दिखाकर निर्णय करेंगे, यद्यपि हमें दिगम्बरी मालूम होती है तबतक न इस पर चक्षु चढेंगे न आंगीकी रचना होगी । पूना दोनों करें-मरम्मत उस समय तक कोई न करावे । ___ यह सिद्धक्षेत्र इस कारणसे है कि यहांसे वरदत्त सागरदत्त आदि मुनीन्द्र व साढ़े तीन करोड़ मुनि मुक्ति पधारे हैं । सिद्धशिला दूसरी ओर है। वहां एक गुफाके पास दो स्थानोंपर पुरानी दिगम्बर जैन मूर्तियां हैं। ऊपर जाकर एक दिगम्बर देहरीमें चारों ओर ४ प्रतिमाएं व उनके चारों ओर चरण हैं। दोमें जीर्णोद्धार सम्वत् १६११ और १९२१ है। दिगम्बरी कारखानेका प्रबन्ध ईडरके पंचोंके आधीन था पर व्यवस्था कायदेसे नहीं होती थी, तत्र ताः २१ की शामको सब दिगम्बरियोंको समझाकर सेठनीने प्रबन्धकारिणी सभाके लाभ समझाए और तीर्थक्षेत्र कमेटोके आधीन एक प्रबन्धकारिणी कमेटी बना दी जिसके सभापति लल्लूभाई For Personal & Private se Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५३५ : लक्ष्मीचंद बम्बई, कोषाध्यक्ष मोतीचंद लीलाचंद ईंडर व मंत्री वेणीचंद उगरचंद ईडर नियत हुए । नियमावली भी बनाकर दे दी गई । ता: २४ को चलकर दिग० व श्वे० पार्टी सीरपुर गांव में आई। यहां श्वे० के ६० व ७० घर हैं । झगडेका फैसला | रात्रिको उपाश्रय में सभा हुई । शीतलप्रसादीने एकता, विद्योन्नति, बालविवाह निषेध पर १ || घंटा व्याख्यान दिया । डाह्याभाई नगीनदास श्वे० ने समर्थन किया । फिर सेठजीने बालकोंकी छोटी अवस्था में सगाई न की जावे इस पर बहुत जोर दिया। यहां ऐसा बुरा कायदा था कि जो जैनी कन्या व पुत्रकी सगाई उसकी ४ वर्षकी उमर तक न करे उसे ५) दंड हो ! इससे बहुतेरे जन्मते ही सगाई कर देते हैं । ऐसी खोटी बंदी करनेका कारण मुसलमानों का जोर जुल्म हो सक्ता है । यहां जैनियोंके दो घड़े थे उसके मेटने का अधिकार सेठजी, शीतलप्रसादजी, सेठ फतहचंद और डाह्याभाईके आधीन किया गया । सबेरे चलकर बड़नगर आए। सेठ फतह चंद के वहां ठहरे। उन्होंने बहुत सन्मान किया तथा सीरपुर गांव का फैसला लिखके दे दिया गया । ता० २६ को सूरत आए । फूलकौर कन्याशालाका निरीक्षण किया। उस समय ७५ कन्याएं थीं जिनमें २३ दिग०, १४ श्वे० व शेष उच्च हिन्दू वर्णकी थीं। एक अध्यापिका व दो अध्यापक पढ़ाते थे । जैन धर्मकी शिक्षा के साथ व्यवहारिक ज्ञान दिया जाता था ।.. For Personal & Private Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६] अध्याय ग्यारहवां । . तारंगीजी पर्वतपर पहले केंगर नामकी लकड़ी होती थी जो जलती व सड़ती नहीं है। अग्निमें न जलने- ऐसी कुछ लकड़ियां श्वे. मंदिरमें लगी वाली लकडी। हुई पाई जाती है । अब भी यह लकड़ी __ यहांसे थोड़ी दूर ब्रह्माकी खेडक पास धूलिया वालरण गांवमें होती है। यहांसे सेठजी बम्बई आए । मिती कार्तिक सुदी १४ ता० १७ नवम्बर ०७को दूसरे भोईवाडेके मंदिर में वम्बईमें शिखरजी- शिखरजी सम्बन्धी सभा हुई। सेठ माणिकी सभा। कचंदनीके पेश करने व लल्लुभाई परीखके समर्थनसे सेठ सुखानंदनी सभापति हुए । इसमें शीतलप्रसादजीने पर्वतरक्षा कमेटो जो १२ महाशयोंकी शिखरजी पर बनी थी उसकी कार्रवाई सुनाई कि बाबू धन्नूलालजी छोटे लाटको समझानेके लिये दारनिलिंग गए व ता० ६ नवम्बरको फिर छोटे लाट शिखरजी आए तब सेठ परमेष्टीदास धन्नू बाबू आदि कई साहब मिले तब छोटे लाटने बहुत कठोर शब्द कहे कि हम पर्वतपर बंगले बनावेंगे, केवल टोंकके चारों तरफ कुल जमीन छोड़ देंगे। इस बातको सुनकर सभाने अदालती कार्रवाई करनेका प्रस्ताब किया व धन्नूबाबूको धन्यबाद पत्र भेजा जो वह अटार्नी होनेपर भी शिखरजीकी रक्षामें इतने दृढ़ प्रयत्नशील होकर दौड़धूप कर रहे हैं। सेठजीने सभाकी ओरसे खुरजेके सेठ हरमुखराय अमोलकचंदको खुरजेकी सभाकी सफलताके लिये धन्यवाद दिया । For Personal & Private Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५३७ माता रूपाबाईने सं० १९६० में १२३४ उपवासके उद्या पनमें २५००) बम्बई बोर्डिंग कमेटीको इस बम्बई बोर्डिंगमें लिये सुपुर्द किये थे कि इसके व्यानसे हर उत्सव। वर्ष कार्तिक सुदी १५के दिन बोर्डिंगमें मंडलकी पूजा करके उत्सव किया जावे, उसीके अनु:सार इस सं० १९६४ में भी हुआ । रात्रिको सभा हुई । अलबरके पं० महाचंद्रजीका संस्कृत विद्याकी आवश्यक्तापर भाषण हुआ। संस्कृत विद्यालय के परीक्षोत्तीर्ण छात्रोंको पारितोषिक और प्रशंसा पत्र दिये गए। इधर जब सेठनी समग्र भारतवर्षके जैनियोंके महा हितकारी कार्य में लगे हुए थे उधर इनकी दीर्वदर्शिनी, श्रीमती मगनवाई- सुविचारधारणी पुत्री अपनी आत्मोन्नति जीका आम करने तथा जैन स्त्रीसमानके उद्धार व अपनी व्याख्यान। लेखन व व्याख्यानशक्ति बढ़ानेके प्रयत्नमें लगी थीं। अर्थप्रकाशिकाजी अच्छी तरह मनन करके आपने श्री पंचास्तिकायका संस्कृत टीकाके साथ मनन किया तथा बृहत् द्रव्यसंग्रहकी संस्कृत टीका देखी । ऐसे ही संस्कृत ग्रंथोंके देखनेका अभ्यास शीतलप्रसादनीकी संगतिमें होता रहा तथा लेख भी लिखकर इन्होंसे शुद्ध करा लेती थी । सामायिक व ध्यानका अभ्यास भी सवेरे व शामको अच्छा होने लगा था। बम्बई में एक हिन्दू यूनियन क्लब है उसकी ओरसे हिम ऋतुमें प्रति शनिवारको अनेक विद्वता पूर्ण व्याख्यान हुआ करते हैं। इस वर्ष वह हेमन्त व्याख्यानमाला सेठजीके मनोहर हीराबागके लेक्चर हॉलमें हुई। ताः ७ नवम्बर ०७ को श्रीमती मगनबाईने 'आये स्त्रियोंके चरित्र' पर एक बहुत ही प्रभावशाली व्याख्यान दिया था। For Personal & Private Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vvwww ५३८] - अध्याय ग्यारहवी । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाका वार्षिक अधिवेशन इस वर्ष कहां हो इसकी आपको बहुत बड़ी सेठजीका वार्षिक चिंता थी। मुंशी चम्पतरायजी महामंत्रीसे उत्सवोंके लिये व बाबू देवकुमारजीसे व बाबू जुगमन्धरदास उद्योग। नजीवावादसे पत्र व्यवहार करके कुंडलपुर क्षेत्र (दमोह) में उसके वार्षिक मेलेपर उत्सक करना इस लिये उचित समझा कि सेठजी इस क्षेत्र पर हो गए थे व बुदेलखडके दिगम्बर जैनियोंकी अवनति दशाको जान चुके थे। यहांके जैनियोंमें उन्नतिका पवन भरे, इसी आकांक्षासे निश्चय करके सेठ बिंद्रावनजी दमोहसे लिखा पढ़ी करके समझाया। उक्त सेठजीने महासभाको बुलानेके लिये निमंत्रण पत्र दफ्तर महा सभाको मेज दिया, तब महा सभाके दफ्तरसे इस जल्सेकी सफलताके लिये तय्यारी होने लगी। इस समय महासभाके ज्वाइन्ट जनरल सेक्रेटरी बाबू जुगमन्धरदास रईस नजीबाबाद थे जो बहुत दिल लगाकर काम कर रहे थे। महासभाका काम इस समय बहुत जागृति पर था। सन् १९०७ में सूरतके दिसम्बर मासके अंतिम सप्ताहमें राष्ट्रीय कांग्रेसका अधिवेशन होनेवाला था । सूरतमें कांग्रेस और इसकी स्वागतकारिणी सभामें सेठ माणिकजैन यंग मेन्स चंदनी भी मेम्बर थे। गुजराती मिती . एसोसियेशन। कार्तिक वदी ४ को सूरतमें स्वागतकारिणी कमिटीकी सभा थी। इसमें सेठनी हरजीवन . रायचंद आमोद, लल्लूभाई प्रेमानंद आदिको लेकर गए थे। कां For Personal & Private Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५३९ ग्रेसके लिये सभापति चुननेके लिये बैठक थी। इसी रात्रिको ७॥ बजे चंदाबाड़ीमें लल्लभाई प्रेमानन्द एल० सी० ई० के सभापतित्वमें एक सभा हुई । सेठ हरजीवन रायचंदने विद्योन्नतिपर भाषण दिया तथा "दिगम्बर जैन” पत्र मूलचंद किसनदास कापड़िया द्वारा शुरू होकर उन्नतिमें आवे ऐसी भावना प्रगट की । फिर सेठ. माणिकचंदजी जे० पी० ने इसकी पुष्टता की और सभाजनोंका आभार माना और मूलचंदनीको पत्र चलानेमें उत्तेजना दी । सेठजीको मूलचंदजीपर अधिक प्रेम इसी कारणसे था कि यह सेठजी द्वारा स्थापित हीराचंद गुमानजी जैन पाठशाला सूरतका फलरूप एक रत्न था। इन्होंने व्याकरण साथ चंद्रप्रभु काव्य तक अभ्यास कर लिया था। सूरतमें जैनियोंकी अच्छी वस्ती है, इसलिये बाबू चेतनदास बी० ए० जनरल सेक्रेटरी, एसोसियेशनने वार्षिक जल्सा सूरतमें करना ठीक समझ कर सेठ माणिकचंदनी बहुत जोर देकर लिखा । सेठजीने मूलचंद किसनदास कापडियासे यह बात पत्रद्वारा प्रगट की । मूलचंदजी अभी ताजे ही ताजे जैन जातिके कार्यक्षेत्रमें आए थे। इन्होंने कुछ श्वेतांबरी सभासदोंसे वार्तालाप की और अति उत्साहसे सेठजीको लिख दिया कि सर्व प्रबन्ध हो जायगा । तब सेठजीने चेतनदासनीके साथ मूलचंदनीका पत्रव्यवहार कर दिया। ता० २२ नवम्बर १९०७ को चंदावाड़ीमें सर्व जैनियोंकी एक जाहर सभा नगरसेठ बाबूभाई गुलाबभाईके सभापतित्वमें हुई, जिप्तमें दि.० श्वे० स्थानकवासी जैनियोंमेंसे १५० मेम्बरोंकी एक रिसेप्सन कमेटी नियत हुई, इसके सभापति सेठ माणिकचंद हीराचंद For Personal & Private Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४० ] अध्याय ग्यारहवां । . जे० पी० हुए तथा एसोसिएशनके प्रमुख पदको जैपुरनिवासी बाबू गुलाबचंद ढढा एम० ए० ग्रहण करें ऐसा निश्चित हुआ । पावागढ़ बड़ौदाके पास सिद्धक्षेत्र है । जहांसे श्रीरामचंद्रके पुत्र लव और कुश और ५ करोड़ मुनि पावागढ़में बम्बई मोक्ष पधारे हैं। यहांपर बम्बई प्रान्तिक प्रां० सभा। सभाका वार्षिक उत्सव मेलेके समय माह सुदी १२ से १५ तक करनेके प्रबंधार्थ ता० ७ दिसम्बर सन् ०७को हीराबागमें एक सभा हुई। सेठनी भी उपस्थित थे। जल्सेका खर्च ११००) का तजवीज हुआ व सेठ लालचंद कहानदास स्वागतकारिणी सभाके सभापति नियत हुए । इस जल्सेके लिये सेठ हीराचंद नेमचंद-आनरेरी मजिस्टेट शोलापुर सभापति नियत किये गए थे। इसी तरह दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभाका अधिवेशन जो प्रति वर्ष हुआ करता है उसके प्रबन्धार्थ ता० द० म० जैन सभाका १७-११-०७को चिंचलीमें सभा हुई बार्षिक जल्सा। जिप्समें सेठ माणिकचंदजी स्वागत कमेटीके अध्यक्ष नियत किये गये । जैन यंगमेन्स एसोसियेशन कि जिसका नाम अब भारत जैन महामंडल है उसका नवमाँ वार्षिकोत्सव सूरतमें जैन यंगमेन्स एसो० ता० २९-३०-३१ दिस०को नगीनचंद सूरतमें। इन्स्टीटयूट हॉलमें हुआ । बाबू चेतनदासनी, बाबू सुलतानसिंह वकील मेरठ, पं० अर्जुनलाल सेठी जैपुर आदि अनेक दिगम्बरी व अहमदाबाद भावनगर आदिसे श्वेताबरी स्थानवासी आए थे। For Personal & Private Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५४१ जैयपुरवाले सेठ गुलाबचंदनी ढहाका स्टेशनपर अच्छी तरह स्वागत किया गया । पहली बैठकमें सेठ माणिकचंदजीने स्वागत कमेटीके प्रमुखकी हैसियतसे अपना भाषण पढ़ा तथा धार्मिक, औद्योगिक, स्त्रीशिक्षा, बालविवाह, वेश्यानृत्य निषेध, श्री सम्मेदशिखर, तीर्थोके झगड़े, ऐक्यता आदि विषयोंपर विवेचन किया। ऐक्यताके सम्बन्धमें आपने कहा " मैं सर्व जैन प्रतिनिधियोंसे प्रार्थना करता हूं कि तीर्थोके सम्बन्धमें जो किसी तरहका खराब भाव हो उसको निकाल देवे और परस्परके झगड़ोंको मिटानेके लिये एक सम्मिलित कमेटी बना लेवें। इन्हीं तीर्थोके लिये कर्मबंध करानेवाले झगड़ोंके कारण हम लोग परस्पर मेल नहीं रख सकते, और इस एकताके अभाव में जैसे सिया और सुन्नी दो भिन्न २ संप्रदायके लोग एक होकर शिक्षा और सुरीतिका प्रचार करते हैं वैसे हम नहीं कर सक्ते।" धार्मिक शिक्षापर कहते हुए आपने कहा कि “ धार्मिक शिक्षाक लिये शिक्षकोंकी प्राप्तिके लिये संस्कृत पाठशालाएँ भी खोलनी चाहिए, जिनमें ऐसी पद्धतिकी शिक्षा होनी चाहिये जो हमारे नए जमानेके लोगोंको समझानेमें अत्यन्त उपयोगी होवे ।" गुलाबचंदजी ढहाने हिंदीमें भाषण दिया । कुल प्रस्ताव १३ पास हुए जिनमें खास ये थे १. शोलापुरके सेठ हीराचंद नेमचंद द्वारा अणाप्पा फड्याप्पा चौगले बी० ए० एलएल० बी० को सोनेका एक तमगा इसलिये दिया जाय कि इन्होंने सर्वार्थसिद्धि संस्कृत धार्मिक ग्रन्थकी For Personal & Private Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२] :. अध्याय ग्यारहवा । .. परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। वह तममा भेज दिया गया तथा अन्य भी विद्वान् धार्मिक शिक्षा लेवें ऐसी प्रेरणा की गई। वास्तवमें जब तक इंग्रेजीके ग्रेजुएट लोग धर्मके ऊँचे तात्विक ग्रंथोंको न जानेगे तब तक जैन तत्वज्ञानका विस्तार नहीं हो सक्ता । ____२. उदेपुर, बडौदा, जामनगर, राधनपुर, गोंडल, मोरबो व अक्कलकोटके अधिकारियोंने पशुवध बंद किया या घटाया इससे धन्यवाद दिया जाय । ३. सेठ माणिकचन्द हीराचंदजीने प्रस्ताव किया कि तीर्थक्षे. त्रोंके झगड़ोंको मिटानेके लिये ६ दि० और ६ श्वे० सज्जनोंकी कमेटी नियत की जावे ।। ४. पं० लालनने प्रस्ताव किया कि जैनियोंके तीनों फिरकोंमें एकता रहे । इसका समर्थन सेठ माणिकचन्दजीने भी किया। ५. एक जैन बेकमें तीर्थ व मंदिरोंके रुपये रोके जांय, इसकी व्यवस्थाके लिये कमेटीमें दि० की ओरसे सेठ माणिकचन्दनी नियत हुए। ६. शिखरजीपर बंगले बंधनेका विरोध सम्बन्धी प्रस्ताव रांदेरके नगरसेठ छोटालाल नवलचन्दने पेश किया, जिसका समर्थन बाबू शीतलप्रसादनीने भी किया। ७. लेजिसलेटिव कौंसिलोंमें जैनियोंका एक २ मेम्बर हो । सेठ माणिकचंदजी और मूलचन्द किसनदाप्त कापड़ियाके प्रयत्नसे बिना किसी अंतरायके ऐसोसियेशनका काम पूर्ण हो गया। For Personal & Private Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५४३ सुरतमें कांग्रेस गर्म और नर्म दलमें विभक्त हो गई। इससे अधिवेशन होते२ बन्द हो गया। इसमें श्री सोशल कान्फरन्समें शिखरजी सम्बन्धी प्रस्ताव लेना भी स्वीकृत श्रीमती मगनबाई। हुआ था तो भी गर्मदलकी सभामें यह प्र ___स्ताव पास हुआ कि शिखरजी पर्वतपर बंगले बंधनेका विचार सर्कारको छोड़ देना चाहिये। कांग्रोसके मंडपमें सोशल कान्फरन्सका जल्सा हुआ। उसमें श्रीमती मगनबाईजीने स्त्री शिक्षा पर एक प्रभावशाली व्याख्यान दिया था। इस अवसरको देखकर सेठ माणिकचंदजीके उत्साहसे फुलकौर कन्याशालेकी इनामकी सभा सूरतमें नवापुरामें फुलकौर कन्याशाला- ता० ३१ दिगम्बरको सबेरे ९ बजे इन्दौरका उत्सव । बाले सेठ झुन्नालाल मुन्नालालके सभापतित्वमें हुई। बालिकाओंने गीत गाया । एक वर्षकी रिपोर्ट पढ़ी गई । इस समय ७९ कन्याएं थीं, इनमें ४० जैन थीं। लौकिक परीक्षाका फल ८० टका व धार्मिकका ९४ टका आया था । बाबू शीतलप्रसादजीने स्त्रीशिक्षाके लाभ दिखाए । मेरठके बावू सुलतानसिंह बकीलने मिशनरी कन्याशालाओं में जानेसे क्या२ गैरलाभ हैं सो बताए । फिर ओढ़नी, पुस्तकें व मिठाई आदि इनाममें दी गई । सभापतिने प्रशंसा करके ५१) दिये, फिर सर्व मंडली गाने बाजेके साथ कन्याशालाके मकानमें आई। वहांपर सेठजीने अपनी स्वर्गवासिनी पुत्री फुलकौरकी छबि खोलनेकी क्रिया की। किसी फोटो या तसवीरका होना उसके गुणोंको प्रदर्शित करनेके लिये एक दर्पणके समान है ! इस For Personal & Private Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय ग्यारहवां । । vvvvvvvvvvvv. समय सेठ माणिकचंदजीने १०१) कन्याशालाको भेट किये। जगह २ दानकी बर्षा करना ही सच्चा दानवीरपना है, जिस गुणसे सेठजी भलीभांति सज्जित थे। अजमेरसे श्री गिरनारजीकी यात्राको जाते हुए रास्तेमें आबूरोड (खरेड़ी) स्टेशन है । यहां श्वेताआबूजीके मंदिरके म्बरियोंकी दो व हिन्दुओंकी १ धर्मशाला है। उद्धारका प्रयत्न । कुछ परदेशी दिगम्बर जैनी हैं जिन्होंने दो मंजिला एक मंदिर बनवाया है। यहांसे आबूपहाड़के दिलवाड़ा स्थान तक २८ मील सड़क्र है । टांगे इक्के बैल गाड़ी जाती हैं। रास्तेमें सिरोही राज्यकी चौकी व कुएं दो दो मीलके फासले पर हैं। दिलवाड़ामें ५ जैन मंदिर ९०० वर्षके पुराने ३७२७२१८८००) रु. की लागतके हैं जिसकी प्राचीन पत्थरकी शिल्पकला दुनियां में अद्वितीय है । इन्ही मंदिरोंके मध्यमें एक दिगम्बरी बड़ा प्राचीन मंदिर है, जिसमें २३ बिम्ब हैं । मूलनायक श्री कुंथनाथ स्वामी हैं। इसके सिवाय इन मंदिर समूहके बाहर सरकारी सड़ककी दाहनी ओर दिगम्बरी श्रावकोंका एक बड़ा मंदिर श्री नेमनाथ स्वामीका है इसमें भिन्न २ तीर्थकरोंके १६ विम्ब हैं। शिलालेखसे मालूम होता है कि इस जिनालयकी प्रतिष्ठा ईडरके भट्टारक द्वारा वि० सं० १४९४ वैसाख सुदी १३ को हुई थी। इस मंदिरमें प्रायः देव अतिशय हुआ करते हैं, जैसे रात्रिको १२ बजे दीपकोंका उजियाला व बाजोंका बजना । बीचमें कुछ कालसे दिग० ने अपने मंदिरोंकी तरफ बिलकुल बेपरवाही कर रक्खी थी, श्वे० कारखानेकी तरफसे साधारण सम्हाल रहती थी, पर न पूजनादि For Personal & Private Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५४५ कायदेसे होती न जीर्णोद्वारकी ओर ध्यान दिया गया । जो यात्री वहां जाते उन्हें धर्म साधनमें व ठहरने आदिमें व मंदिरजीकी कुव्यवस्थाको देखकर बहुत दुःख होता था। यह सब समाचार सेठनीको जबानी व पत्रद्वारा मालूम होते रहते थे, इसलिये इस क्षेत्रका सुप्रबन्ध किस तरह हो यह ही बड़ी भारी चिंता सेठजीको थी। अजमेरके एक जवाहरातके दलाल पन्नालाल दिगम्बर जैनी थे, जो बहुधा सेठजीको बंबई में मिला करते थे। एक दफे इनसे आवूजीका वर्णन आगया, तब पन्नालालजीने कहा कि आबूमें मेरे एक मित्र बाबू पूनमचंद कासलीवाल एजन्ट साहबके दफ्तर में अकान्टेन्ट हैं यह बड़े धर्मात्मा हैं । मैं इनको आबूजीकी व्यवस्थाके लिये ज़ोर देकर लिखता हूं। आप कमेटी द्वारा पत्रव्यवहार करें । तब सेठनीको बड़ा हर्ष हुआ । दफ्तर द्वारा ता० १ नवम्बर १९०७ को पूनमचंदनीको आबू पत्र लिखा तथा दिगंबरी मंदिरोंका प्रबन्ध अपने हाथमें लेनेके लिये पूरा अधिकार दिया। पूनमचन्दनीका दबाब सबपर था । आपने श्वेताम्बरियोंसे मिलकर बहुत समाधानोके साथ प्रबन्धको अपने हाथ में लिया । सेठजीने अपनी तरफसे पूजाका सामान वर्तन और शास्त्र भेजे तथा कमेटीसे १ पूजारीको भिजवाया । ता. २१ फरी १९०८ से पुजारी और अन्य ८ सेवक नियत किये गये और दोनों मंदिरों में शास्त्रानुसार अष्टद्रव्यसे पूजन प्रक्षाल होने लगा। फिर सेठजीने यात्रियोंके आरामके लिये धमशालाके वास्ते लिखा । उस समय अलग जमीन न मिलती हुई देखकर पूनमचन्दजीने उस बड़े मंदिरजीके हातेमें ही चारों ओर धर्मशाला बनवाना ठीक समझा । तब सेउ माणिकचन्दजीने पुराने बरांडेमें ४ For Personal & Private Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ ] अध्याय ग्यारहवां । कोठरियां व सामने ४ वरांडा और १ रसोड़ा बनवानेकी परवानगी अपनी ओरसे दी । २, ३ वर्षके भीतर रायबहादुर सेठ निमीचंद, हरमुखराय अमोलकचंद, विनोदीराम बालचंद, माणेकचाई बम्बई, आदिको उपदेश देकर पूनमचंदजीने १५० मनुष्योंके ठहरने योग्य स्थान बनवा दिया | हालमें पूनमचंदजी कोटा में हैं । प्रबन्ध आप ही करते हैं । सेठ साहबके तन मन धनके योग देनेसे और पूनमचंदजीके पूर्ण परिश्रम से श्री आबूजीका प्रबन्ध बहुत अच्छा हो गया है । इन दोनों को इस क्षेत्रका उद्धारक कह सक्ते हैं । | द० महाराष्ट्र जैन सभाका दशवां वार्षिकोत्सव पौष सुदी १४ से बढ़ी २ तक ताः १७ जनवरीसे द० म० जैन सभा २० तक श्रीस्तवनिधिक्षेत्र में बड़े ठाउसे व श्राविकाश्रम हुआ । इसमें देशभक्त रा० रा० गोपालकृष्ण कोल्हापुर | देवघर एम० ए० व श्रीधर गणेश बी० ए० आदि कई सज्जनोंने भी पधारकर शिक्षा आदिके सम्बन्ध में उपदेश दिया था। इस उत्सव में सेठ माणिकचंदजी इस कारण से नहीं जा सके थे कि वे इसी समय शोलापुर गए हुए थे । आप स्वागत कमेटी के प्रमुख थे । आपने बहुत उदा सीके साथ तार भेज दिया था । श्रीमती मगनबाई भी नहीं आई थीं, पर उनका भेजा हुआ लेख " श्राविकाश्रमकी आवश्यक्ता " पर ताः १८ की महिला परिषद में सुनाया गया | महाराष्ट्र समाने पांचवा प्रस्ताव यह किया कि श्रीमती मगनबाईजीकी प्रेरणानुसार कोल्हापुर में एक श्राविकाश्रम खोला जावे । इसके लिये दानवीर सेठ माणिकचंदजीने १०) व बाबू देवकुमारजी, आरावालोंने भी For Personal & Private Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५४७ १०) मासिक मदद एक २ वर्षको स्वीकार की थो तथा कुछ स्त्रियों में भी फंड हो गया था । सभाने १० वें प्रस्तावमें नादणीके भट्टारकके मठकी व्यवस्थाके लिये एक कमेटी नियत की उसमें सेठजीको भी मेंम्बर किया तथा छठेमें श्री सम्मेदशिखर रक्षा सम्बन्धी व १५ वे में तीर्थभक्त सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदके वियोग पर शोक प्रगट किया गया । इस सभाके नाम बम्बईके गवर्नर सर जार्ज क्लार्कका तार भी आया कि जैनियों में शिक्षाके प्रचारकी उत्तेननामें मैं सहानुभूति प्रदर्शित करता हूं। “I cordially wish su zcess to your efforts to encourage education among Jains. ” ता. ३० जनवरीको कोल्हापुर श्राविकाश्रम खोलने का महत श्रीमती मगनबाईजीकी अध्यक्षतामें जिनसेन भट्टारकके मठमें किया गया । १ वर्षके लिये भट्टारकजीने स्थान दे दिया था। डा० कृष्णाबाई केलवकर एल० एम० डो० भी हाजिर थीं। मगनबाईजीने अपने सुन्दर भाषण में-जो उन्होंने मराठी में कहा था क्योंकि बाईजीको गुजरातीके सिवाय मराठी और हिन्दी में भी भाषण करनेका अच्छा अभ्यास था-दिखलाया कि केवल कोल्हापुर प्रान्तमें ५००० जैन विधवाएं हैं तथा दक्षिण महाराष्ट्र में १५०० ० हैं जो ज्ञान बिना व्यर्थ जीवन बिता रही हैं, इनके ज्ञान सम्पादनार्थ हरएक प्रान्तमें श्राविकाश्रम खोलने चाहिये । द. म० सभाको इस कार्यके लिये धन्यवाद है। जो आज यह खोला जाता है । श्रीमतीने ३००) की मदद भी दी व प्रबन्धार्थ कमेटो For Personal & Private Use Only Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ ] अध्याय ग्यारहवां । बनी जिसमें अध्यक्षा मगनबाईजी हुई । १२ स्त्रियां दाखल हुई. जिनमें ४ को छात्रवृत्ति दी गई । 4 शोलापुर जिले में दूमड़ोंकी वस्ती ग्रामोंमें अधिक है, जहां उनको विद्या प्राप्तिका साधन नहीं है। शेठ सेठजीके अनुकरणसे माणिकचंदजी शोलापुर के धनवानोंको एक शोलापुर में बोर्डिगका बोर्डिग के लिये बार बार प्रेरणा कर रहे थे । विचार | उसका फल यह हुआ कि जैसे पहले प्रसिद्ध नाथारंगजी आकलूजवालोंके घरानेने २५०००) संस्कृत ग्रंथप्रचार व छात्रवृत्ति आदिके लिये निकाले थे वैसे ही उसी कुटुम्बने सठजीकी बातपर ध्यान देकर २५०००) का फंड बोर्डिग के लिये अलग किया । ता० १५. जनवरीको शोलापुर में एक सभा सेठ बालचंद रामचंद के प्रमुखत्व में हुई, इसमें सेठ माणिकचंदजी बाबू शीतलप्रसादजी के साथ आए थे। आनेवाले फाल्गुण मास में “ सेठ नाथारंगजी दिगम्बर जैन बोर्डिङ्ग स्कूल " खोलनेका निश्चय हुआ । फंडके व्याजसे ४० टका संस्कृत विद्या के लिये व ६० टका अंग्रेजी व औद्योगिक शिक्षा में खर्च हो । छात्रोंको धर्मशिक्षा के साथ ये विद्याएं पढ़नी होगीं । गरीबोंको छात्रवृति भी दी जायगी । ६ महाशयोंकी कमेटी में धर्मात्मा परोपकारी सेठ माणिकचंदजी जे० पी० भी नियत किये गए । १३ महाशयोंकी मेनेजिंग कमेटी हुई व नियमावली तय्यार हुई | सेठजीने बोर्डिंग के लिये स्थान पसंद किया व सर्व सामान मंगानेका प्रबन्ध बांध दिया । For Personal & Private Use Only Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५४९ ता० १ फर्वरीको कलकत्तेमें बाबू धन्नूलाल, सेठ परमेष्टीदास, आदि ४ प्रतिनिधियोंसे लाट साहबने मुलाकात कलकत्ते में लाट करके बहुत देर तक वादानुवाद किया । साहबका उत्तर। अंतमें आपने वादा किया कि हम फिर इस विषयमें विचार करेंगे, ऐसा तार पाकर सेठजीकी चिंतामें कुछ कमी अवश्य हुई। ता. ६ फर्वरी १९०८को बम्बईके माधोवागमें श्वेताम्बर जैन बीसा श्रीमालियोंकी एक सभा हुई थी श्वेताम्बर जैनसभामें जिसमें सभापतिका आसन सेठ माणिकचंदनीको समापति। अर्पण किया था। इस सभामें सेठ देवकरण मूलजी संघवीको सौराष्ट्र बीसा श्रीमाली शुभेच्छुक मंडलकी तरफसे मानपत्र इसलिये भेट किया गया था कि आप कपड़ेके व्यापरी व मिलके दलाल हैं। आपको १ लाख रुपयेकी परिग्रहका प्रमाण था। उससे अधिक बढ़े तो धर्ममें लगाऊँगा, सो पुण्ययोगसे आपका धन पूर्ण होने पर अब जो पैदा करते हैं सो अपनी जातिके गरीब अनाथोंको विद्या व आजीविकादानमें लगाते हैं । आपकी पुत्रीका विवाह इसी दिन था, आपने न वेश्यानृत्य होने दिया न आतशबाजी छुडवाई जैसा कि अभी तक रिवाज उस जातिमें था, किन्तु ६५५) का दान इस भांति किया-२०१) मित्र मंडल सभा, १०१) काठियावाड़ मंडल, १००) मांगरोल जैन कन्याशाला, १०१) पालीताना बालाश्रम, १०१) निराश्रित जैनी, ५१) उद्योग वृद्धि । इसके सिवाय जूनागढ जिलेके पुस्तकालयोंमें कन्याविक्रय निषेधकी पुस्तकें बांटना स्वीकार For Personal & Private Use Only Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Arowowovvvvvvvvvvvnr ५५० ] अध्याय ग्यारहवां । किया । सेठजीने आपकी प्रशंसा करके मानपत्र भेट किया। ऐसे मानपत्रके भेटकी शोभा वास्तवमें ऐसे दानवीर परिग्रह परिमाण व्रत धारी सेठके द्वारा ही उचित थी। पावागढ़में मिती माह सुदी १२ से १५ तक बम्बई दि० जैन प्रान्तिक सभाका उत्सव बड़ी धूमधामसे पावागढ़में बंबई हुआ । गुजरात देशके कई हज़ार जैनी प्रांतिक सभा। एकत्र हो गए थे। सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुर जो इस सभामें प्रमुख नियत हुए थे सेठ माणिकचंदनी जे० पी०, लल्लूभाई प्रेमानंद व सेठ रावजी सखारामके साथ ता० १३ फरीको सबेरे बड़ौदा स्टेशनपर पधारे। उस समय बड़ौदाके पंचोंने हारतोड़ा व मानपत्रसे सम्मानित किया। शीतलप्रसादजी यहां १ दिन पहले आ गए थे । फिर यहांसे सब मिलके चांपानेर स्टेशनपर पहुंचे । वहां बालन्टियरोंने गाजे बाजेके साथ सम्मानित किया। यहां कलेवा करके पार्टी गाड़ियों द्वारा पावागढ़ पहुंची। वहां एक जुलुसके साथ स्वागत हुआ। स्वयंसेवकोंने अपने हाथसे गाड़ी खींची। ता० .१४ फर्वरीसे सभाकी तीन बैठकें हुई। प्रथम ही हरजीवन रायचंद आमोदके पुत्र शांतिलालने संस्कृत श्लोकों में मंगलाचरण किया। फिर स्वयंसेवकोंने सेठ माणिकचंद और सेठ हीराचंद, दो धार्मिक परोपकारी मित्रोंके गुणानुवाद वर्णन किये। सेठ लालचंद कहानदासने स्वागतकर भाषण दिया। फिर सेठ माणिकचंदनीके प्रस्ताव व जयसिंहभाईके अनुमोदनसे सेठ हीराचंदजी सभापति हुए । आपने अपना विद्वत्तापूर्ण छपा हुआ भाषण सुनाया फिर लल्लूभाई प्रेमानंददासजीने रिपोर्ट पढ़ी। पहली For Personal & Private Use Only Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५५१ बैठकमें पंचमहालके कलेक्टर और शिवराजपुरकी सोनेकी खानके फोरेस्टर कई इंजिनियरोंके साथ आए थे। समाने बहुत सत्कार किया । कलेक्टर साहब बहादुरने आभार माना। तब लल्लूभाई प्रेमानंदने कहा कि पावागढ़ जैनियोंका अतिशय पवित्र स्थान है । आशा है साहबबहादुर उसे अपवित्र होनेसे बचाये रखनेका स्मरण रक्खेंगे । फिर १४ प्रस्ताव पास हुए। जिनमें मुख्य ये थे १-सेठ नाथारंगजीको २५०००) पहले व २५०००) अब शोलापुर बोर्डिगके लिये निकालनेके अर्थ धन्यवाद । सभापतिने कहा कि उपयोगी विद्यादानमें सेठ माणिकचंदजीसे दूसरा नम्बर इनका है। २-महासभाके सभापति सेठ द्वारकादासजी, मथुरा जिनका मरण ता० २० जनवरी १९०८ को हुआ व सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदके मरणार शोक । ३-रा० रा० अण्णाप्पा फड्याप्पा चौगले बी० ए०, एलएल०, बी०, बेलगांवको सर्वार्थसिडि ग्रंथमें परिक्षोतीर्ण होनेपर सेठ नाथारंगजीकी ओरसे एक स्वर्णपदक प्रदान किया जाय । इसको सेठ माणिकचंदजीने पेश करते हुए कहा कि "मि० चौगले ने अपनी बम्बई बोर्डिंगमें शिक्षा ली है और बहुत थोड़े समयमें · यह विद्वान् होकर जाहर कामों में भाग लेने लगे हैं। अब यह बेलगांवकी म्यूनिसिपालिटीके सभापति तथा दि० म० जैन सभाके सेक्रेटरी हैं। इन्होंने सबसे कठिन संस्कृतके सर्वार्थसिद्धि ग्रंथमें बहुत ऊंचे नंबरों में परीक्षा पास की है जिससे सेठ नाथारंगजीने स्वर्णपदक. For Personal & Private Use Only Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ ] अध्याय ग्यारहवां । दिया है। ऐसे पास होनेवाले गृहस्थोंको शिक्षाके उत्तेजनार्थ ऐसे मेडलोंके देनेकी जरूरता है।" ४-उपदेशकोंके भ्रमणकी आवश्यक्ता-इसको शीतलप्रसादजीने पेश किया व लल्लूभाई प्रेमानंदने समर्थन किया तथा इसी समय अपील करनेपर १२००) का चंदा तुर्त हो गया। इसमें सर्वसे पहले दानवीर सेठ माणिकचंदनीने २०१) व सेठ हीराचंदने १५१) प्रदान किये। ५-ता० १ फर्वरीको कलकत्ते में जो श्रीयुत छोटे लालने शिखरजी पर्वत सम्बन्धमें पूरा विचार करनेको कहा है, उनको यह प्रान्तिक सभा फिर सूचित करता है कि सम्पूर्ण पर्वत पवित्र है इससे वहां बंगले हरगिज़ न बनाए जावे व इसकी नकल छोटे लाटकी सेवामें भेजी गई। ६-पावागढ़पर एक अंग्रेन कम्पनीने तांबेकी खान जानकर उसके खोदनेकी परवानगी सर्कारसे मांगी थी, इसका विरोध दिगम्बर जैनियोंने किया था तब इसकी जांच करनेको बम्बईके दयालु गवर्नर सीडनहेम क्लार्क बड़ौदाजपके रेसिडेन्टके साथ ता० २४ जनवरीको ४ बजे पावागढ़ पहाड़पर गए थे । उस समय बड़ौदा, बोरसद, करमसद आदिके बहुतसे दिगम्बर जैनी हानर थे। सबने योग्य सन्मान किया। फिर दाहोदके वकील जौहरी कालीदास जसकरण बी० ए० एलएल. बी. ने खान खोदनेसे जैनियोंके मंदिरोंको कैसी भारी हानि होगी व जैनियोंको धर्म सेवनमें क्या बाधाएँ आएंगी सो एड्रेसके रूप में समझाई । फिर सेठ लालचंद कहानदास प्रबन्धकर्ता तीर्थने हार तोडा पान गुलाबादिसे सत्कार किया। तब गवर्नर साहमने आभार मानते हुए कहा कि For Personal & Private Use Only Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ५५३ तुमको जोर विघ्न आ सक्ते हों व जिससे तुम्हारा मन दुखता हो उन्हें मैं दूर करूंगा । इस उत्तरसे सर्वको सन्तोष हुआ | ता० २५ को गवर्नर साहब और उनकी पुत्रीने पहाड़के दर्शन किये और प्रसन्नता प्रगट की । ता. २६ को नीचे मंदिरजी के दर्शन करते हुए २० ) की भेट दी थी। इस कारण प्रांतिक समाने गवर्नर साहबको धनवाद दिया जो उन्होंने जैनियोंका जी न दुखाने का वचन दिया है । ता० १६ की रात्रिको महिला परिषदका एक बृहत् अधिवेशन हुआ । अध्यक्षस्थान सेठ माणिकचंदकी धर्मपत्नी श्रीमती नवीबाईने ग्रहण किया था। श्रीमती कंकुबाई, ललिताबाई व मगनबाई तीनों विद्यावती बहनोंन अनेक उत्तमोतम विषयों पर व्याख्यान दिये जिससे कई स्त्रियोंने गाला न गाने व रोने कूटनेका त्याग किय। । परोपकारिणी मगनबाईजीने पढ़ी हुई स्त्रियोंको श्रावकाचार नामकी पुस्तक भेटमें दी । ता० १७ फर्वरीको गुजरातके सर्व भाइयोंने सेठ माणिकचंदजीकी सेवामें चंदनके कास्केटमें निम्न लिखित मानपत्र अर्पण किया । नकल मानपत्र ( पावागढ़ ) झवेरी शेठ माणेकचंद हीराचंद जे. पी. नी पवित्रसेवामां प्यारा धर्म बंधु, • आजे अमो श्री गुजरात भागना दिगंबर जैनो आप साहेबनी स्वधर्म अने केलवणी प्रत्ये अत्यंत प्रीति देखीने आ मानपत्र आपवानी तक लइए छीए ते स्वीकारी आभारी करशो. For Personal & Private Use Only Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vrwww ५५४ ] अध्याय ग्यारहवाँ। श्री शिखरजीना पवित्र पहाड उपर ज्यां वीस तीर्थकर अने असंख्यात मुनि मोक्ष पाम्या छे त्यां यात्रालुओना सुख माटे पगथीओ करवामां आवतां हतां ते आपणा श्वेतांबरी भाईओए वगर कारणे उखेडी नांख्यां; ते काममां तथा वीसपंथी बडी कोठीनो वहीवट सुधारवाना कार्यमां आपे आगेवान थई महेनत लईने बधी को मां जय मेळव्यो, जेथी आपनामां स्वधर्म वात्सल्य गुण तारीफ करवा लायक छे एम स्पष्ट देखाय छे. श्री जयधवल जेवां प्राचीन ग्रंथोना जीर्णोद्धार करवामां आपे आगेवानी भाग लई सर्व भाईओनी मददथी काम चलाव्यु छे जेथी आपनी धर्मशास्त्रज्ञान वृद्धि माटे अत्यंत उत्कंठा जणाई आवे छे. आपे सुरत जेवा पौराणिक शहेरमां जैन यात्रालुओनी उतरवानी सगवड माटे जैन होल जेवू चंदावाडी नामर्नु मकान बंधाववा अने वधारवा पाछळ रु. ३००००)नो खर्च करी जैन कोम उपकार कयों छे ते आपनी जैन भाईओ प्रत्येनी उदार लागणी बतावे छे. आपणा जैनीभाईओने स्वधर्म संबंधी, राजकीय, वेद्यकीय, शिल्पशास्त्र, अने इंग्रजी गुजराती साहित्य वीगेरेनी उँचा दरज्नानी केलवणी प्राप्त करवामां अत्यावशक साधन जे बोर्डिंग स्कुल छे, ते मुंबई जेवा मोटा शेहेरमां श्वेतांबरी, दिगंवरीगो भिन्नभाव राख्या विना पोताना आशरे एक लाख रुपीयाने खरचे आपना . स्वर्गवासी पिताश्री सेठ हीराचंद गुमानजीना स्मरणार्थे आपे बांधी आपी समस्त जैन कोम ऊपर जे उपकार को छे ते प्रशंसनीय छे अने ते आपनी धर्म सहित ऊंचा धोरणनी इंग्रेजी केळवणी आपवानी अपक्षपात लागणी प्रदर्शित करे छे. तेमन गुजरातमां आपणी दिगंबर जैन कोममां केळवणीनो बहोळो फेलावो करवा माटे भोजन For Personal & Private Use Only Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । अभ्यास वीगेरे बधी सगवडो पुरी पाडनारी एक बोर्डिंग स्कुल आपना कैलासवासी भत्रिजा शेठ प्रेमचंद मोतीचंदना नामथी अमदावादमा ३४०००) ना खरचे बंधावी आपी स्वधर्मी भाईओ प्रत्येनी शुद्ध लागणी अने धर्म कृत्यमा भारे उदारता प्रगट करी छे. मुंबाई जेवी अलबेली नगरीमां कोईपण कोमने उपयोगी थई पडे तेवी भव्य धर्मशाला (हीराबाग ) बांधवा पाछळ दोढ लाख रुपीआ धर्मादा खरच्या छे, जेमां एक धर्मादा स्वदेशी दवाखानू, पण उघाड्यं छे; ते आपनी गरीबो प्रति दयावृत्तिनी लागणी प्रगट करे छे. वळी हालना राज्यकर्तानी गया वर्षनी वर्षगांठनी खुशालीमां नामदार ब्रिटिश सरकारे जे मान अने मरतबाथी वगर प्रयत्ने 'जस्टीश ओफ धी पीस (जे. पी.)नो मानवंतो खीताब आपने नवाजेश को छ ते आपणी दिगंबर जैन कोममां आप पहेल वहेला मेळववा भाग्यशाशाली थया छो, अने सरकारे जे आपनी स्वधर्म सेवानी योग्य पीछान करी ते माटे अमो मायाळु सरकारनो आ तके उपकार मानवानी अमारी फरज समजीये छीये. छेवटमां आपनी आ आवी धर्म, दया, स्वधर्मी प्रति उत्तम सेवाओ माटे तथा विद्या अने विद्वान प्रति आपनी सदैव शुभ लागणीओ माटे अमो प्रार्थना करीये छिये के आप आवा हजारो खीताबो भोगववाने दीर्घायुषी थाओ, अने परमात्मा आपने आपयां उत्तम कार्यों करवाने सदैव सन्मति आपो, एवं ईच्छी आ मानपत्र आपने अर्पण करीये छीये ते मानपूर्वक स्वीकारी आभारी करशो एवी आशा राखीये छीए. तथास्तु. चांपानेर (पावागढ ) । ता:१७-२-१९०८ । आपना सद्गुण चाहनारा-, For Personal & Private Use Only Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ ~~ -~ ५५६ ] अध्याय ग्यारहवां । लालचंद कहानदास, वडोदरा. मोहनलाल विठ्ठलदास धामी, भावनगर. जेठाभाई गोरदनदास, आमोद. नरसीदास गंगादास, इसणाव. शीवलाल तुलसीदास, मोरड. गुलाबचंद लालचंद, गांधी जेचंद नाथजी, दाहोद. प्रेमचंद हरगोवनदास, सुरत. दलपतभाई केवलदास, बोरमद, हरजीवन रायचंद, आमोद. नगीनलाल शोभाचंद, दाहोद. अमीचंद वस्ता, ईडर. वीरचंद त्रीकमदास वडोदरा. भाईजी नाथाभाई, बोरसद. गांधी जीवाभाई वहालचंद, सोनासण. कोठारी नानचंद पुनीराम ईडर. गीरधरलाल फूलचंद बहेचर भवानदास, गांधी जीवाभाई उगरचंद,सोनासण.छोटालाल घेलामाई गांधी, अंकलेश्वर, हरीभाई मंगलदास. जीवणलाल हलोचंद. • पदमसी फतेचंद, साणोदा. रामचंद नानचंद.. ताराचंद हीराचंद. जमनालाल परभुदास. जेठालाल गीरधरलाल. रेवचंद बहेबरदास. वास्तवमें जो निःस्वार्थ बुद्धिसे जगतके उपकारमें अपने तन मन धनका भोग करता है उसका विना चाहे जगत आदर करता है । सेठनीसे कोई कभी अप्रसन्न नहीं होता था। वह छोटे व बड़े सबसे समान व सरल भावसे कपटरहित बात करते थे व अपने बचनोंके बड़े पाबन्द थे । जिस सत्य वचनके For Personal & Private Use Only Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । प्रभावसे सेठजीने अपने व्यापारमें उन्नति की उसका हमेशा निवाहनेका उद्योग किया। लखनउ निवासी पार्वतीबाईजीको जबसे श्रीमती मगनबाईजी . का समागम हुआ तबसे आपको भी स्त्री समा-- श्रीमती मगनबाईके जकी सेवा करने का बहुत बड़ा. ध्यान हो उद्योगका फल। गया था। जबतक आपके पिता लाला दर बारीलालजी वृद्धावस्थामें सजीवित रहे तबतक बाईजीने उनकी भले प्रकार सेवा की थी। पिताके देहान्त. होने पर बाईजीने धीरे २ घरका सम्बन्ध छोड़कर एक बाईके साथ मुख्य २ स्थानों में अपने ही खर्चसे भ्रमण करना प्रारंभ किया और उपदेश देकर स्त्रियोंको सुधारा, स्वयं भी शिक्षा दी व कन्याशालाओंके लिये उद्योग किया । लाला जग्गीमलजी देहली ताः ८ मार्च ०८ के जैनगनटमें प्रगट करते हैं कि बाईनीने बागमत, रोहतक तथा मेरठमें दो दफे जाकर स्त्री समाजका बहुत बड़ा उपकार किया है तथा दिहलीमें आपने कई सभाएं की जिसमें एक ताः २१ फर्वरीको बड़े समारोहके साथ की, २०० स्त्रियां हानिर थीं। इसमें आपने कन्याओंका विवाह जैन पद्धतिके अनुसार करानेपर बहुत जोर दिया। कई स्त्रियोंने इस बातको मानकर प्रतिज्ञा की । मेरठ में आपने कन्याशाला भी स्थापित करा दी है। इसी तरह जबलपुरमें श्रीमती मगनबाईकी संगतिसे श्रीमती जमनाबाईको भी उपदेशका अभ्यास हुआ। ताः २३ फर्वरी १९०८ को छपाराकी बिम्बप्रतिष्ठाके अवसरपर बाईजीने एक स्त्री सभा की जिसमें १००० स्त्रियां मौजूद थीं। चारों गतिके दुःखोंपर व्याख्यान For Personal & Private Use Only Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ ] अध्याय ग्यारहवां । दिया । पिंडरईकी कन्याओंकी परीक्षा ले इनाम बंटवाया फिर कन्याशालाके लिये चन्दा करके शाला भी खुलवा दी व जैनी अध्यापिका भी नियत करा दी। मिती फाल्गुण सुदी १० गुरुवारको शोलापुरमें " सेठ नाथारंगनी दिगम्बर जैन बोर्डिग स्कूल " के शोलापुरमें बोर्डिंगका स्थापनका मुहूर्त था। बम्बईसे सेठ माणिमुहूर्त। कचंदजी पं० धन्नालालजी और शीत लप्रसादजीको लेकर १ दिन पहले पहुंच गए थे। शामकी सभामें शीतलप्रसादनीने "प्रभावना अंग" पर व्याख्यान देकर शिखरजीके रक्षार्थ उद्योग करनेपर जोर दिया, इसका समर्थन पं० धन्नालालजीने किया। और फीरोजाबादमें शिखरजीके निमित्त होनेवाली सभाके लिये प्रतिनिधि चुने गए। सभापति सेठ सखाराम नेमिचंद हुए थे । दूसरे दिन ७॥ बजे सबेरे रावबहादुर केल्कर डिप्टी कलेक्टर के सभापतित्त्वमें सभा हुई। पहले ही कुंभ स्थापन कर सरस्वतीपूजन की गई । फिर सेठ हीराचंद नेमचंदने सेठ माणिकचंदजीको बोर्टिगोंका बीनभूत कहकर नियमावली आदि सुनाई। तब सभापतिने बोर्डिगका द्वार खोला । पं० पासू गोपाल शास्त्रीने छात्रोंको रत्नकरंडश्रावकाचारका पाठ दिया । शीतलप्रसादनीने विद्याके महत्वपर उपदेश दिया। फिर सभापतिने अपने विद्वता पूर्ण भाषणमें कहा कि " हिन्दू लोग जैन धर्मके कारणसे ही मांससे बचे हुए हैं। आजकल भारतमें भारी दान देनेकी उत्तम रीति पहले पारसियोंने चलाई, फिर उन्हींका अनुकरण जैनियोंने For Personal & Private Use Only Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५५९ किया" उपस्थित मंडलीने बोर्डिंगको १६७५) भेट किये । आजकल यह बोर्डिंग एक नए मकानमें बहुत उन्नतिके साथ चल रहा है। मंत्री सेठ हीराचन्द नेमचन्द बड़े उद्योगी हैं। पर्वतरक्षाकमेटी कलकता श्रीशिखरजीके लिये पूर्ण उद्योग कर रही थी। फीरोजाबादके मेले का मौका फीरोजाबादमें शिख- जानकर शिखरजीके लिये खास विचार रजीकी सभा। करनेको खास २ महाशयोंकी एक सभा बुलाई गई। कलकत्तसे भी बाबू धन्नूलाल और सेठ परमेष्ठीदासजी आए थे। इन्दौरसे सेठ हुकमचंदजी, फीरोजपुरसे लाला देवीसहायजी, शोलापुरसे सेठ हीराचंद व सखाराम नेमचंद आदि अनेक तीर्थभक्त उपस्थित थे। बम्बईसे सेट माणिकचंदनीने अपने कुटुम्बको श्रीमती मगनबाईजीके साथ कुंडलपुर ( दमोह ) में महासभाके उत्सवपर भेन दिया, क्योंकि महासभाका अधिवेशन ता २८ मार्चसे था और फीरोजाबादमें ता० २४ व २५ मार्चको सभा थी। सेठजीको धर्म कार्यके निमित्त शारीरिक कप्टकी बिलकुल भी परवाह नहीं थी। आपने यही निश्चय किया कि फीरोजाबाद होकर कुंडलपुर चले आवेंगे। शीतलप्रसादनीके साथ आप फीरोजाबाद पहुंचे। वहां सेठ मेवारामजी आदि रानीवालों ने सब तरह सर्व भाइयोंका सन्मान किया। पर्वतकी रक्षा तन मन धन लगाकर की जावे, इसमें कोई बात उठा न रक्खी जाय ऐमा निश्चय किया गया । यहांसे सेठनी दमोह स्टेशनको रवाना हो गए। For Personal & Private Use Only Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय ग्यारहवां । दमोह जिलेमें कुंडलपुर अतिशयक्षेत्र है, जहां प्रति वर्ष चैत्र में मेला हुआ करता है । इस वर्ष मा० दि० जैन महासभाका बारहवां अधिवेशन बड़े समारोह के साथ ता० २८ मार्च ३१ त ५६० ] कुंडलपुरकी महासभा सेठजी । बाबू देवकुमारजी जमीनदार आराके सभापतित्वमें हुआ । आजकल ऐसा भारी समारोह किसी जल्सेमें नहीं हुआ था । इस मेले में १२००० जैन व २८०० अजैन एकत्र हुए थे । दमोहकी स्वागतकारिणी समाने व उत्साही स्वयंसेवकों ने बहुत ही प्रशंसनीय प्रबन्ध किया था। मंडप भी बहुत बड़ा रचा गया था । प्रायः सर्व प्रान्तोंके प्रतिष्ठित दि० जैनी उपस्थित थे । सेठ माणिकचंदजी फीरोजाबादसे शोलापुरवाले व शीतलप्रसादजी के साथ ता० २६ की शामको दमोह आए और उसी समय कुंडलपुरको रवाना हुए। बैठक ता० २८ से शुरू हुई। श्रीमान सेठ मोहनलाल खुरईने स्वागतका भाषण सभापतिको हैसियत से पढ़ा | फिर सेठ माणिकचंदजीके पेश करने और सेठ पूर - णसाह 'सिवनी के समर्थन से बाबू देवकुमारने सभापतिके आसनको ग्रहण किया । आपने अपना विद्वत्तापूर्ण भाषण करके इतनी शांति से प्रस्ताव सब्जेक्ट कमेटीमें ठीक कराके आमसभा में पास किये कि विघ्न आनेपर भी कोई अंतराय नहीं पड़ा। वेश्यानृत्य, बालविवाह, वृद्धविवाह आदि कुरीति निषेधके प्रस्तावका समर्थन सेठ माणिकचंदजी और इनके मित्र धर्मचंदजी मुनीम पालीतानावालोंने किया था । उपयोगी प्रस्तावों में एक जाति व धर्मकी सेवा करनेवालोंको पद दिये जानेका हुआ। दूसरा श्री सम्मेदशिखरजी सम्बन्धी हुआ । For Personal & Private Use Only Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५६१ सभामें बाबू देवकुमारजी सभापतिक नाम ए० एच० बी० अंडर __ . सेक्रेटरी गवर्नमेंट बंगालका पत्र ता० २४ लाट साहबका विरुद्ध मार्चका इस आशयका आया था कि बीहक्म और जैन स- चकी टेकरी या रास्ता छोड़ दिया जाय तथा माजका जोश। इसे भी जैनी लोग अच्छे दाम देकर सदाके लिये खरीद लें या पट्टेपर ले लें । पश्चिमीय पहाड़ यूरुपियन और पूर्वीय देशियोंके बंगलोंके लिये दिया जाय तथा नीमियाघाटसे नई वास्ती तक नई खड़क बने । तथा अंतमें लिखा था कि यह भारत सारका हुक्म है, सर्व जैनियों में प्रसिद्ध किया जाय तथा और जो कुछ कहना हो वह कोर्ट आफ वाइससे शीघ्र कहा जाय । इस पत्रको सुनते ही सेठ माणिकचंदनी बहुत ही उदाप्त हो गए तथा हजारों आदमी असंतोषसे घबड़ा गए । तब महासभाने प्रस्ताव नं० १४ इस आशयका पास किया कि इप्स हुक्मसे सर्व जैन जातिके हृदयपर बहुत चोट लगी है। सर्कारने इस कार्रवाईसे व्यर्थ असन्तोष फैलाया है। जो असन्तोष है व होगा उसे महाप्तमा रोक नहीं सक्ती क्योंकि यह पर्वत अनादि कालसे पूज्य और पवित्र है । इसपर ऐमा कृत्य किसी मुसल्मान राजाने भी नहीं किग तथा इस प्रस्तावकी नकल इंडिया गवर्नमेन्ट व स्टेट सेक्रेटरी लंडनको भेजी गई तथा जैन जातिसे प्रेरणा की गई कि वह जन धन और सहानुभूतिने पूर्ण उद्योग करे । पंडित गोपालदास व पं. धन्नालालने इस प्रस्तावका हाल सर्वको समझाकर पास कराया । प्रस्ताव नं. १६ इस विषयका हुआ कि महासमाके भंडार में जैनी मात्रसे प्रति मास एक पैना For Personal & Private Use Only Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ ] .. अध्याय ग्यारहवां । वसूल किया जावे । प्र० नं० २० में बाबू देवकुमारजी महासभाके. सभापति नियत हुए। प्रं० नं० २२ में महाविद्यालय सहारनपुरसे काशी बदला गया । श्रीमान् पंडित गोपालदासनीका पुरुषार्थ पर, देशभक्त खापर्डे महाशयका भारतकी दशा पर बहुत प्रभावशाली व्याख्यान हुआ, बुन्देलखड प्रांतिक सभाकी स्थापना हुई। श्रीमती पावतीबाई, कंकुबाई, मगनबाईजी आदि पही हुई बहनोंने स्त्रियोंको अनेक विषयोंपर उपदेश दिया । मगनबाईजीने २००० भाषाप्रवेशकी पुस्तके स्त्रियोंको बांटी और पढ़नेकी प्रेरणा की। दमोहमें कन्याशालाके लिये २२६) रु० वार्षिकका चंदा कराया । इसी मेले में मगनबाईजीको बेसरबाई बड़वाहाका परिचय हुआ जिमने स्त्रीसमानमें विद्याप्रचारार्थ अपनी लक्ष्मीका अच्छा भाग खर्च करना प्रारंभ किया है । यद्यपि इस सभामें कोई भारी चंदा नहीं हो सका तथापि बुंदेलखन्डके भाइयोंपर अपनी उन्नतिको कमर कसनेके लिये बहुत उत्तेजना हुई। सेठजी भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीका जल्मा करना चाहते थे पर नियमावलीके अनुकूल एक मेम्बरकी कमी होनेसे जल्ला न हो सका। कुंडलपुरमें सेठजीके चित्तको श्री सम्मेदशीखरजी सम्बन्धी सर्कारी आज्ञासे बहुत बड़ा कष्ट हुआ । सेठजीको शीखरजी- यह मर्कारी हुक्म कैसे टले और परम पवित्र की चिन्ता। पर्वतकी रक्षा हो इस विचार में दिन रात ली न हो गए। इस मेले में १२००० जैनियोंके भारी क्षोभ और उनके क्लेशित चित्तसे निकले हुए वचनोंको सुनकर For Personal & Private Use Only Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग | [५६३ और भी सेठजीको चिन्ता होती थी कि क्या होनेवाला है। कई तो यही कहते थे कि यदि बंगले बनने लगे तो हम पहाड़पर पड़ जायगे, मार खांयगे, मरेगे, पर परम पूज्य शानकी भूमिको गृह स्थियोंका प्रपंचघर व पशु हिंसा, मदिरापान, विषयभोग, विलासका स्थान कभी न बनने देंगे। इस समय भारतमें स्वदेशी आन्दोलनकी बड़ी धूम थी। जैनियोंको भी व्याख्यानों व अखबारोंसे यह सब चर्चा मालूम होती थी। उधर जैसे बंगाल बंगभंगके कारण विक्षिप्त चित्त था और विदेशी माल न व्यवहार कर सादेशी कारखाने, विद्यालय खोलनेमें अनुरक्त था ऐसे ही जैनसमाजका चित्त हो गया था। जैन अखबारोंके सिवाय अन्य पत्र भी सर्कारकी इस आज्ञाको बहुत ही अनुचित और नियों के पवित्र धर्म व श्रद्धाके बाधक मानकर सम्पादकीय लेख लिखने लगे। जैनसमान में सदेशी वस्तु ग्रहण व शिखरजीपर प्राग न्यौछावर करनेके प्रस्ताव होने लगे। सर्व देशीय सभाओंने भी अनियोंके इस दुःख में सहानुभूति दर्शाई । विहार प्रान्तिक कानफरेन्स वांकीपुरमें यह प्रस्ताव पास किया "सम्मेदशिखर पर बंगले बनानेकी आशासे जैन प्रना क्षुब्ध हो उठो है। सरकारको चाहिये कि इस अनुचित कृत्यसे अपना हाथ खींच ले " ।। मुगलहाट जिलारंगपुरके भाइयोंने इस शिखरजीके उपसगको सुनकर विलायती नमक बेचना बंद कर दिया, जो वर्ष में रु. २०००) का खपता था । परम पवित्र तीर्थरानकी रक्षाकी चिन्तामें भग्न भारतवर्षों तीर्थक्षेत्र कमेटी के अधिकारी और तीर्थोकी रक्षाके जिम्मेदार For Personal & Private Use Only Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ ] अध्याय ग्यारहवां । सेठ माणिकचंदजीके हार्दिक दुःखका अनुभव करना कठिन है । बम्बई आकर ताः ९ अप्रैल ०८ को हीराबाग में एक सभा बुलाई | सेठ हरमुखराय अमोलकचंदजीके मुनीम लाला मिश्रीलालजी सभापति हुए । सर्व जैनियोंने सर्कारी आज्ञाका विरोध करके वादानुवादके वाद यही निश्चय किया कि अब केवल दो ही उपाय शेष हैं - एक मुकद्दमा चलाना दूसरा अपने प्राणों का विसर्जन करके पर्वतकी रक्षा करना । सभा में दो प्रस्ताव पास हुए - एक शोक प्रकाश करने और दूसरा गवर्नमेन्टकी आज्ञा अस्वीकार करनेके विषय में। दोनोंकी नकल भारत सर्कारको भेज दी गई । ता. ५ अप्रैल को निम्बगांव ( पूना ) में दिगम्बर जैन प्रान्तिक सभाका नैमित्तिक अधिवेशन सेठ सखाराम शिखरजीपर बंगले नेमचंद, शोलापुर के सभापतित्वमें हुआ । उसमें वननेका विरोध | शिखरजी पर बंगले बनने का विरोध व स्वदेशी ग्रहण और विदेशी बहिष्कारका प्रस्ताव पास हुआ। सेठ माणिकचंदजीने कमेटी द्वारा इस सर्कारी धर्मघातक आज्ञाकी खबर सर्व पंचायतियोंको कर दी। तब जगह२ सभाएं होकर विरोध किया गया । ता. ३० अप्रैलको बम्बई प्रान्तिक कॉनफरेन्सका जलसा धूलिया में राव बहादुर जोशी के सभापतित्वमें हुआ उसमें येवला के दामोदर बापूने सन् १८५८ की घोषणापत्र के विरुद्ध जैनियोंके धर्मघातको होते देख इस सर्कारी आज्ञाका विरोध किया । इसका समर्थन सेठ वालचंद हीराचंद, मालेगांव, मुंशी गुलाम मुहम्मद (नगर), लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने किया। ता. २९ अप्रैलको बम्बईके - For Personal & Private Use Only Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५६५ लालबाग में श्वेताम्बर जैनियोंकी एक विराट सभामें इस आज्ञाका पूर्ण विरोध किया गया । अहमदनगरकी सर्व देशीय जिला कॉन्फरेन्स में भी इसका विरोध हुआ । सेठजीने गुजराती पंचसे जानकर कि महाराज दुर्भगा १ लाख रुपया लगाकर पहाड़ शिखजोपर सैनिटेरियम बनाना चाहते हैं, महाराज दुर्भगाको १ अर्जी ता. ४ मईको लिखी, जिसका उत्तर ता. १० मईको आया कि यह बात बिलकुल असत्य है | जैनियोंकी अति क्षुब्ध अवस्था व विरोधको सुनकर छोटे लाट बंगालने ता. १६ मई १९०८ को कलकत्ते में बाबू धन्नूलाल, परमेष्ठीदास, महाराज बहादुरसिंह, व राय मनीलाल, नाहर बहादुर से की और उसी दिन एक पत्र वी० एका लिन्स प्राइवेट सेक्रेटरीने राय मनीलालके नाम भेजा जिसकी नकल बम्बई सेटजी के पास आई। इसमें भी पहली आज्ञाको दृढ़ करते हुए इतना आश्वासन दिया गया कि जो कुछ प्रतिनिधियोंने खरीदने व पट्टे पर सदा के लिये लेनेको कहा है, उसके सम्बन्धमें कमिश्नर से रिपोर्ट करके कहा जायगा । जब तक जमींदार व कोर्ट ऑफ बाड्ससे जांच न हो मामला योंही रहे । यद्यपि इस पत्र से कुछ अधिक संतोष न हुआ पर इतना अवश्य प्रगट हुआ कि अभी बंगला बनना रोक दिया गया है तथा सम्पूर्ण पर्वतको पट्टेपर लेने का प्रयत्न होना चाहिये । सेठजीने कलकत्ते वालोंको लिखा कि खुलासा आज्ञा निकलना चाहिये कि बंगले न बने तथा पर्वतकी रक्षाका पूर्ण सम्पूर्ण पर्वतको f प्रयत्न किया जाय । बंगाल सर्कारका दूसरा पत्र | For Personal & Private Use Only Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ ] अध्याय ग्यारहवाँ । बम्बई प्रान्त में इस विषयका विरोध सीमासे बाहर देखकर बम्बई गवर्नरने प्रसिद्ध प्रतिष्ठित जैनियोंसे इसका बम्बई गवर्नरका कारण पूछा तो सबने यही कहा कि लोग आश्वासन पत्र । सर्कारकी बंगले बनने की आज्ञासे घबड़ा गए. हैं। तब बम्बई गवर्नरने बंगाल सर्कार से मालूम करके जून मास १९०८ में एफ पत्र वीरचंद दीपचंद सी. आई.. ई. को लिखा, सो अखबारों में प्रसिद्ध हुआ जिसका यह आशय था कि जब कि आपकी जातिने राजासे कोई ऐसा प्रबन्ध नहीं किया है कि जिससे आप पहाड़ खरीद लेवें या जिससे राजा उसपर बंगले जनवानेका विचार छोड़ देवे । वर्तमानमें जब तक पहाड कोर्ट आफ वॉर्डसके आधीन है इस प्रश्नको रोक देना ठीक समझा जाता है (The question should be dropped at any rate so long as the property remains under the Court of Wards at present ) इससे आप देखेंगे कि सर्कार जैन जातिके धार्मिक विचारोंको हानि पहुंचाना नहीं चाहती है। यह मामला जमींदार और जैनजातिका है और आशा होती है कि परस्पर योग्य फैसला जल्द हो जायगा और जैन जाति सदा राजभक्त होगी जिस राज्यके द्वारा उसने उन्नति प्राप्त की है 1 इस पत्रको देखकर सेठ माणिकचंदजीको कुछ और भी सन्तोषकी मात्रा हुई पर बंगाल गवर्नमेन्टकी कोई आज्ञा न निकलने से पूरा भरोसा नहीं हुआ कि बंगले बनेंगे या नहीं | ता० ११ जुलाईको छोटे लाटने जैनियोंके दि० और स्वे० प्रतिनिधियोंसे फिर कलकतमें मुलाकात की। इस समय बम्बई से शीतलप्रसादजी और फिरो - For Personal & Private Use Only Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [५६७ जपुरसे देवीसहायजी भी आए थे और धन्नूबाबू व परमेष्टीदासके साथ लाट साहबसे मिलेथे . परंतु बातचीतमें कोई निश्चित बात नहीं कही तथा रात्रि में फिर बुलाया । ... पावागढ पर्वतपर तांबेकी खानके मौकेको देखने बम्बईके गवर्नर ता० २४ जनवरीको आए थे तब दिग० पावागढ़में तांबेकी जैनियोंने पर्वतरक्षाकी प्रार्थना की थी, उसके खान खोदनेकी उत्तरमें विचारनेको कहा था। तीर्थक्षेत्र आज्ञा। कमेटीने भी एक प्रार्थना पत्र भेजा था उसका उत्तर बम्बई गवर्नरके चीफ सेक्रेटरीने नं० ६३३६ ता० २४ जूनमें लिखा कि सेठ माणिकचंद महामंत्री ती० क्षे० कमेटीकी अर्जी ता० २४ मईके उत्तर में सूचित किया जाता है कि सर्कार पावागढपर खान खोदनेकी इजाजत नहीं देती है ( The Government not allowing prospecting or mining operations in the Pawagarh Hill. ) सेठनीके आकुलित चित्तको पावागढ़ सिद्धक्षेत्रकी चिंताकी निवृत्ति होनेसे कुछ शांति हुई । परंतु तुरत ही कलकत्तेसे खबर आई कि महासभाके सभा पति आरा निवासी बाबू देवकुमारजी एक भारी शोकमें रुग्ण अवस्थामें कई मास रहकर अंतमें सेठजी। अपने धर्ममित्र ब्रह्मचारी नमिसागरसे मरणके ६ घंटे पहले समाधिमरण लेकर ता० ५ अगस्त १९०८की रात्रिको ११ बजे स्वर्गधाम पधारे । आपकी अवस्था केवल ३२ वर्षकी ही थी। इतनी उम्रमें ही आपने महा For Personal & Private Use Only Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ ] अध्याय ग्यारहा। समाकी व जैन जातिकी बहुत कुछ सेवा की थी। स्थद्वाद पाठशाला काशीको अपनी धर्मशालामें आश्रय दिया व जीवन पर्यत उसकी रक्षा की। दक्षिणयात्रामें ग्रंथोंके भंडार ठीक कराए। सरस्वती भवन खोलनेकी फिक्रमें थे, किन्तु यह नियम ले लिया था कि जब तक भवन न खोलूं तब तक ब्रह्मचर्य पालूंगा। ऐसे होनहार धनाढ्य और एफ० ए० तक संस्कृत इंग्रेजी पढ़े हुए धर्मप्रेमी देवकुमारका स्वर्गारोहण जानकर सेठजी शोकसागरमें डूब गए। बाबू साहबकी सेठ माणिकचंदमें अनन्य भक्ति थी। अन्तमें वे कह गए कि " दानवीर सेठ माणिकचंदजी आदिसे मेरा धर्म स्नेह पूर्वक जुहारु कहना और उनसे सरस्वती भंडार शीघ्र स्थापित करनेकी प्रार्थना करना।" पीछे जब सेठजीने सुना कि वे अपने एक वसीयतनामें में १००००) नकद व १ गांव ६०००) वार्षिककी लागतका धर्म कार्योंके लिये दे गए हैं, तब आपको कुछ संतोष हुआ। इस दानकी विगत जैनमित्र अंक २१ ता० २८ आगस्त १९०८ में छपी है। इसमें १५००) वार्षिक सरस्वती भवन, ८००) औषधालय शिखर जी और ५००) छात्रवृत्ति धर्मशिक्षार्थ भी हैं। ता० ११ अगस्तको सेठ माणिकचंदजीके सभापतित्वमें सभा ___ होकर बाबू देवकुमारजीकी मृत्युपर शोक बम्बईमें सभा। प्रगट किया गया। बाबू शीतलप्रसादजीने _मरणके थोड़े दिन पहलेकी अपनी मुलाकातका हाल वर्णन किया । जब वह कलकत्ते गए थे कि बाबुसाहब एकान्त में For Personal & Private Use Only Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५६९ बड़े कमरे में लेटे थे, शरीर सुख गया था, अपने पास कुटुम्बीको बैठने नहीं देते थे, धर्मात्मा ब्र० नेमीसागर आदिको बिठाए रखकर धर्मभावकी वृद्धिमें लीन थे । प्रकरण । छोटे लाट सर फ्रेजरने शिखरजी सम्बन्धी वात करनेको रांची में जैन प्रतिनिधियोंको बुलाया उस रांची में शिखरजी समय बम्बई से सेठ माणिकचंदजी शीतलप्रसादजीको लेकर रांची गए । ता. १६ सितम्बर १९०८ को वार्तालाप हुआ। कुल पर्वतको पट्टापर देने की बातें हुई। यहां राजा भी बुलाया गया था। लाट साहबने २ लाख रु० नकद व १५ हजार रु० वार्षिक मांगे । जैनियोंने अपनी सामर्थ्य न समझकर इनकार किया - मामला तय न होकर यही रह गया । सेठ माणिकचंदकी भावज सेठ प्रेमचंद मोतीचंदकी माता रूपाबाई बड़ी ही धर्मात्मा थीं। अपने द्रव्यका माता रूपावाईको निरन्तर सदुपयोग विचारा करती थीं। अहमानपत्र । मदावाद बोर्डिंगके चैत्यालय के लिये आपने ४०००) लगाकर एक मनोहर चांदीका समवशरण बनवाया था । उसे स्थापित करानेके लिये आप मिती ज्येष्ठ सुदी २ को अहमदाबाद गई थीं । वहां विधि से पूजन कराई तथा यह ठहराव किया कि प्रति भादों सुदी ५ को श्री सम्मेद - शिखरजीकी पूजा ठाठवाटसे हुआ करे जिसके खर्चको एक रकम अलग कर दी कि इसके व्याजसे हर वर्ष पूजा हो । उस समय बोर्डिङ्गके कार्यकर्ता और विद्यार्थियोंने श्रीमती बाईजीको अति For Personal & Private Use Only Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० ] - अध्याय ग्यारहवां । । प्रतिष्ठाके साथ अपनी कृतज्ञता प्रगट करनेको एक मानपत्र अर्पण किया । वास्तवमें धर्मात्मा स्त्री व पुरुष सर्वके अंत:करणको प्यारे लगते हैं। रांचीसे आते हुए सेठजी काशी आए । आपको तीर्थ भक्तिके स्या० महा वि०की साथ २ विद्यावृद्धिके कामों का भी हर समय प्रवन्धकारिणी ध्यान रहता था। ता. २० सितम्बरको मैदागिनी जैन मंदिरमें सभा हुई । बाबू देवसभामें सेठजी। ___ कुमारजीके वियोग पर शोक प्रगट करके बाबू जैनेंद्रकिशोर मंत्री और लक्ष्मीचंद्रजी उपमंत्री नियत हुए। सभासदोंकी संख्या फिरसे ठीक हुई । महाविद्यालय और स्याद्वाद पाठशालाके सम्बन्धका प्रस्ताव हुआ । देशी गणित और इंग्रेजी पढ़ानेका प्रस्ताव हुभा । अध्यापकोंका वेतन बढ़ाया गया। पंडित माणिकचंदने प्रमेयकमलमार्तड और पं० गणेशप्रसादने अष्ट सहस्रीमें परीक्षा पास की थी। ये दो ग्रंथ जैनियों में गंभीर न्याय विषयके हैं । इससे इनको विशेष पारितोषिक देनेका प्रस्ताव हुआ। यहांसे सेठजी ता० २२ सितम्बरको प्रयाग आए । आप अलाहबादमें बोर्डिङ्ग स्थापित करनेके लिये अलाहबादमें जैन बो- पत्रव्यवहार तो कर ही रहे थे । बाबू डिङ्गकी कोशिश। शिवचरणलाल रईसको तार कर दिया था। स्टेशनपर उक्त बाबू साहब कई भाइयोंको लेकर उपस्थित हुए । अति सन्मानसे अपने यहांकी गाड़ियोंपर ले जाकर अपने मकानमें ही ठहराया और बहुत खातिर की। ता० २२ की रात्रिको सेठजीके सन्मानार्थ बाबू साहबके मकानपर स्टेशन For Personal & Private Use Only Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५७१ ही सभा हुई । सभापति सेठजीको ही नियत किया। बाबूलालजी प्रयागकी प्रार्थनापर कि शिखरजी व स्याद्वाद पाठशालाका हाल बताया जावे शीतलप्रसादजीने कहा कि हम लोग रांची गए थे। लाट साहब कुल पर्वतका पट्टा देनेको तयार हैं पर वह २ लाख नकद व १५०००) वार्षिक मांगते हैं। जब कि इधरसे अर्जी दी गई कि सदाके लिये झगड़ा मिटानको हम लोग २॥ लाख नकद और ४०००) वार्षिक देना चाहते हैं अभी मामला तय नहीं हुआ है तथा काशी विद्यालयमें २७ छात्र भली प्रकार संस्कृत अध्ययन कर रहे हैं । इतना कह धार्मिक विद्याकी आवश्यकताको बताते हुए जहां कालेन हों वहां जैन बोर्डिङ्गकी जरूरत दिखाई। इसका समर्थन बाबू जुगमन्दरलाल एम० ए० के भाई समन्दरलाल और बाबू बच्चूलालने किया । सेठजीन भी इसकी पुष्टि करके सभाको समाप्त किया । दूसरे दिन जैनधर्मशाला में सभा हुई । बाबू शिवचरणलालजी सभापति हुए । शीतलप्रसादजीने ऐकता और प्रेमपर व्याख्यान दिया । समर्थन पंडित झम्मनलालजी अध्यापक जैन पाठशालाने किया। फिर सेठजीने जैन बोर्डिंगकी आवश्यकतापर कहा । बाबू शिवचरणलालने पुष्टि की और चंदा खर्चका लिखनेको तय्यार हुए पर पूरा होनेकी आशा न देखकर काम बंद रहा । दूसरे दिन सबेरे सेठजी शीतलप्रसादभी और गजकुमारजी आराको लेकर स्वर्गवासी बाबू सुमेरचंदनीकी धर्मपत्नीको बोर्डिगकी आवश्यकता बताने गए तथा यह सुन रक्खा था कि उक्त बाई २५०००) किसी धर्मकार्यमें लगाना चाहती हैं। इनसे समझाया गया कि यहां बोर्डिंग होनेसे कालेनके छात्र जैन धर्मके श्रद्धानसे च्युत न होंगे, बड़ा भारी उप-- For Personal & Private Use Only Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ ] अध्याय ग्यारहवां । कार होवेगा । बाईजीने विचार कर १५ दिन बाद उत्तर देने को कहा । सेठजीने गजकुमारजीको अच्छी तरह जंचा दिया जो इस बाईके भ्राता हैं व स्टेट प्रवन्धकर्ता थे। यहांसे चलकर सेठजी बम्बई आए । श्रीमती मगनबाईजीकी प्रेरणा से लखनऊ निवासी श्रीमती पार्वतीबाई इधर उधर स्वखर्च से भ्रमणकर बहुत उपकार कर रहीं थीं । सर्धना जिला मेरठ में स्त्रियोपकारक नामकी सभा स्थापित की जिसकी सभा प्रति चतुर्दशीको होनी निश्चित हुई । वहांकी पाठशाला के प्रबन्धको ठीक किया तथा शिखरजीक - रक्षार्थ यहां व मुबारकपुर जाकर रु० ५००) का चंद्रा कराया । वहांसे सहारनपुर जाकर आश्विन सुदी ८ को किरपीबाईजी के - मंदिरजी में सभा की । स्त्रियोंकी ऋतु सम्बन्धी क्रियापर उपदेश देकर कई नियम लिया । आश्विन सुदी १० को आप नकूड़ गई। वहां तीन दिन सभा की। वहां विधवाश्रम कायम करनेको उपदेश देकर रु० १०२) का चंदा कराया । यहां से मुजप्फरनगर, खतौली व मेरठ उपदेश देती हुई दिहली पधारीं । श्रीमती पार्वतीबाईजीका कार्य व तीर्थभक्ति । श्री किष्किन्धापुर श्री पुष्पदन्त स्वामीका जन्मक्षेत्र है । वहां पर श्री जिनमंदिरजी व उस सम्बन्धी जमीनको सर्कार अपने किष्किंधापुरकी रक्षा। ज़मीन है । इस कब्जे में करना चाहती थी तथा इसकेलिये नोटिस दिया था । इसकी उजरदारी गोरखपुर के भाईयोंन की तथा सेठजीको सुचना की । सेठजीने तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा छोटे 1 For Personal & Private Use Only Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५७३ लाटको अर्जी भेजी । इसका अंतिम उत्तर आया कि सरकारने गोरखपुर जिले के खुखुंदो स्थान पर ६४ एकड़ जमीन जैन मंदिर, धर्मशाला, और बागकी अपनी आधीनताईसे निकाल दी है। ऐसी सूचना नं० २९९७ / ३६७ ता० १२ नवम्बर १९०८ में प्रगट की है। वास्में जो शांति व प्रभावके साथ उद्यम किया जाय . उसमें अवश्य सफलता होती है । भादों मास धर्मध्यान सहित पूर्ण होनेपर मिती आसोज सुदी १४ को बम्बई में सेठ माणिकचंदजी के सभाबम्बई में सभा । पतित्व में एक सभा हुई जिसमें सम्मेदशिखर सम्बन्धी हकीकत जो रांची में हुई थी सो सत्र वर्णन की गई । तथा फीरोजपुर छावनीके धर्मात्मा दानी लाला रामलालजी ( पिता लाला देवीसहाय ) की मृत्यु पर शोक प्रदर्शित किया गया। आपने शिखरजीकी रक्षा में बहुत मिहनत की थी। आप १००) मासिक जैन अनाथाश्रम हिसारकों देते थे। मरने के पहले १४३०४) रु० का दान कर ता० २ अक्टूबर १९०८ को परलोक सिधारे | इसमें १००००) रु० वास्ते धर्मशाला और जैनमंदिर स्टेशन ईसरी शिखरजीके मार्ग में, ५२५) जैन अनाथालय हिसार, २२५ ) के आटा चावल शिखरजी पर व २२५) हस्तनापुर के दीनोंको, १०१) अयोध्या व १०१) गिरनार के दीनोंको वटे; . २५००) रथ बनानेको, ५२५) जैनमंदिर रिवाड़ी, ११) पं० रिवाडीकी नसियां व ५१) गौशाला फीरोजपुर में दिये । सेठ साहबने आपके गुणोंकी सराहना करते सभा विसर्जन की । For Personal & Private Use Only Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७४ ] अध्याय ग्यारहवां जैपुरमें पं० अर्जुनलाल सेठी द्वारा स्थापित जैन शिक्षा प्रचारक समितिका वार्षिक अधिवेशन कार्तिक सुदी जैपुरमें श्री० मगनबाई। १ को था । सुदी २ को बम्बईसे श्रीमती मगनबाईजी भी जयपुर पधारीं । आपके कई व्याख्यान हुए । इनके असरसे गुमानीजीके मंदिर में पद्मावती कन्याशाला समितिकी तरफसे खोली गई तथा विधवाश्रमके लिये जोर दिया जिसमें १०) मासिक विधवा फंडसे व ५) रु० मासिक स्वयं मदद देना कहा। सेठ माणिकचंदजीको सदासे ही जातिकी बालविवाह आदि कुरीतियोंके निवारणका खयाल था। दहीगांव दहीगांवमें सेठजीका एक अतिशय क्षेत्र शोलापुरके तालुके माडभ्रमण। सिरसमें दिग्सल स्टेशनसे २२ मील दहीगांव है। यहां एक वृहत् श्री महावीरस्वामीका दि० जैन मंदिर विशाल, मानस्तंभ और शिखरोंसे दूर २ तक अपनी प्रभा चमका रहा है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १९१२में फलटनके बालब्रह्मचारी सेठ हीराचंद अमोलकके उपदेशसे हुई, जिन्होंने अपने गुरु ब्रह्मचारी महतीसागरके स्मरणमें यह मंदिर निर्माण कराया। यह ब्रह्मचारी बड़े धर्मात्मा तथा त्यागी थे । इनके उपदेशसे दक्षिणमें बहुत सुधार हुआ था। यहां प्रतिवर्ष मगप्तर वदी २ से ७ तक रथोलवका मेला भरता है जिसमें वीसाहूमड़ भाई अधिक आते हैं । इस बर्ष गांधी नाथारंगजीने कुरीति निवारणका विशेष प्रबन्ध करेंगे ऐसी सूचनाके छपे हुए नोटिस भेजे थे । इसीपरसे सेठ माणिकचंदजी सकुटुम्ब शीतलप्रसादनीके साथ मेलेपर पधारे । For Personal & Private Use Only Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । आकलुजसे सेठ. गंगाराम और उत्साही नवयुवक बापूजी पानाचंद नाथा तथा फल्टनसे बाबू चंदूलाल वकील आदि आए थे । मगसर वदी ६ को ब्र० महतीसागरजीके स्मरणार्थ महतीसागर धर्मोद्योतनी नामकी सभा स्थापित हुई। यह प्रतिवर्ष इस क्षेत्रपर होवे और धार्मिक व सामाजिक उन्नति करे। इसका अधिवेशन हुआ। सेठ माणिकचंदजी सभापति हुए। शिक्षा प्रचार, कन्याविक्रय निषेध, स्वदेशी वस्तु व्यवहारके प्रस्ताव पास हुए । रात्रिको फिर जल्मा हुआ। शीतलप्रसादनीने सभाके लाभ बताए । फिर क्षेत्रके सुप्रबन्धार्थ ७ महाशयोंकी कमिटी बनी । मंत्री बाबू चंदूलालजी हुए। फिर सेठ वीरचंद कोदरजी फल्टनने कहा कि कल रात्रिको वीसाहुमड़की पंचायतने सेठ माणिकचन्दजीकी सम्मतिके अनुसार नीचे लिखा पंचायती ठहराव स्वीकार किया है " बासाहुमड जाति सुधारिणी सभा “ऐसा ठहराव करती है कि कोई भी वसिाहूमड़ अपनी लडकीकी सगाई १० वर्षकी कम अवस्थामें न करे।" . इस पर उपस्थित भाइयों के दस्तखत हुए हैं । शेष हस्ताक्षर कराये जायगे । मैं मंत्रीका काम करूंगा । कन्याविक्रय न करेंगे इस पर भी बहुतले भाइयोंने दस्तखत किये । इस मौके पर कुरीति निवारण पर एक भाषण जो स्वयं सेठजीने लिखकर छपवाया था पहा । यहां जैनियोंके ७ घर व संख्या ३० होने पर भी स्वागत व भोजन सत्कारका प्रबन्ध अच्छा था । ८०० जैनी स्त्री पुरुष एकत्र हुए थे। For Personal & Private Use Only Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय ग्यारहवां । यहांसे सेठजी फल्टन गए। वहां पाठशाला स्थापित कराई । ५७६ ] फिर बम्बई आए । सेठ माणिकचंदजी कभी मौका चूकने वाले न थे। श्री सोनागिर सिद्धक्षेत्र दतिया रियासत में है । इस पर्वत से श्री नंगानंग प्रभृति ५॥ करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं । बहुत से मंदिर हैं पर व्यवस्था बराबर नहीं थी । इमकी बम्बई में दतिया नरेश और मानपत्र | सेठजीको बड़ी चिन्ता थी । कारणवश महाराज दतिया श्रीमान लोकेन्द्र गोविन्दसिंह बहादुरजू बम्बई पधारे। तत्र शीतलप्रसादजीके साथ आप बहुतसी सामग्री भेट लेकर गए । मिलकर तीर्थकी उन्नति के सम्बन्ध में बात की । फिर ता. ३१ अकटूबर १९०८ की रात्रि से हीराबाग लेक्चर हॉलमें एक महती सभा बुलाकर और राजा साहबका स्वागत करके तीर्थक्षेत्र कमेटी और बम्बई निवासी दि० जैनियोंकी तरफसे एक सुन्दर मुद्रित अभिनन्दनपत्र अर्पित किया गया । पं० धन्नालालजी द्वारा सुन कर पंडित रघुनाथ रावजी प्राईवेट सेक्रेटरी महाराजने उत्तर देते हुए कहा कि - महाराजा साहब अपनी प्रसन्नता प्रगट करते हैं और चाहते हैं कि १३ और वीस पंथियोंमें ऐक्य हो, जैन सभाकी वृद्धि हो और दतिया रियासतका क्षेत्र सोनागिरि पर्वत व्यापार प्रधान, विद्याकी पीठ और परोपकारकी मुख्य जगह जल्द हो जावे 1 For Personal & Private Use Only Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only श्रीमती चतुरबाई सभाग्रह कोल्हापुर. (देखो पृष्ठ ५८२) J. V. P. Surat. Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सवा द्वितीय भाग । ५७७ इस सन् १९०८ में सेठजी प्राय: बम्बई में इसी कारण ठहरे कि आपको शिखरजी पर्वतकी श्री शिखरजी सम्ब- रक्षाकी बड़ी भारी चिन्ता थी तथा उस न्धी चिन्ताका सम्बन्धी पत्र व्यवहार कलकत्ता आदिसे उपशमन । बहुत आवश्यक करना पड़ता था । कलकत्ते में पर्वतरक्षा कमेटी रक्षा के पूर्ण उद्योग में लगी थी, लाट साहब से पूर्ण पर्वत के पट्टे की बात चल रही थी, कि इतने में पहले तारसे फिर पत्र द्वारा मालूम हुआ कि लाट साहबने दिगम्बर जैनियोंको पूर्ण पर्वतका पट्टा देदिया । ५०००० ) नजरानाके जमा करालिये और १२००० ) प्रतिवर्ष पालगंज स्टेटमें देनेका ठहराव हुआ । जो पट्टे उस वक्त तक थे उनको कायम रखके जो आमदनी हो सो दिगम्बरियों को मिले। इसकी स्वीकारता एफ. डबलू, डयूक चीफ सेक्रेटरी बंगाल सकरिने अपने पत्र नं. ४७०२ ता; ३० नवम्बर १९०८ को बाबू परमेष्ठीदास सरावगी और धन्नूलाल अग्रवालको दी तथा पत्र नं० ४७९१ ता० ३०-११-०८ उक्त सेक्रेटरीने सर्कारी सोलीसिटरको लिखा कि डिप्टी कमिश्नरकी रायसे लिखा पढ़ी करा लेवें । इस पत्र को पढ़कर सेठजीकी बहुत बड़ी चिन्ता दूर हुई और यह निश्चय हो गया कि अब पूज्य पर्वतवर बंगलोंकी वस्ती न बनेगी । द० म० जैन सभाकी वार्षिक बैठक श्री स्वनिधि क्षेत्रपर ता० ५ जनवरी से ८ जनवरी तक थी । सेठ माणिकचंदजी अपनी सुपुत्री मगनबाई सहित पधारे। इन दिनों शीतलप्रमादजीका शरीर ज्वरादिमं पीड़ित था इससे यह साथ नहीं गए । सुमा के अध्यक्ष श्रीमंत पायप्पा द० म० जैन सभा और सेठजी । ३७ For Personal & Private Use Only Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ अध्याय ग्यारहवां । नक्कप्पा उर्फ आप्पा साहब देसाई हनगंडीकर हुए । सेठ माणिकचंदनीने इनके अध्यक्ष स्थान लेनेके लिये अनुमोदन दिया। सभामें सेठ रामचंद्र नाथा आकलन व अनेक अजैन विद्वान् भी थे। इनमेंसे ता० ५ को अध्यक्षके भाषणके पीछे बेलगांवके प्रसिद्ध वकील रा. रा. श्रीपादराव छत्रेने व्याख्यान देने हुए कहा कि. "ऋग्वेदके काल में जैन मत उच्च दशामें था। ऋग्वेदकार जैन तीर्थकरोंको बहुत पूज्य मानते थे। जैन लोग पाखंडी या नास्तिक नहीं है।" बहुतसे प्रस्तावोंमें कई उपयोगी हुए जैसे ( १ ) कोल्हापुर बो० के लिये स्थान मुफ्त देनेके उपलक्ष्यमें महारान कोल्हापुरको धन्यवाद, (२) धन्यवाद सेठ नाथारंगजीको जो दो वर्ष में २४०) प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति देते हैं, (३) शिखरजीका मामला संतोषकारक निबटने के कारण बाबू धन्नूलाल, सेठ परमेष्ठीदास और सेठ माणिकचंदनीका उपकार, (४) हुबली में कनड़ी छात्रोंके लिये एक बोर्डिंग स्थापन हो इसके लिये रा० रा ० ब्रह्मप्पा तवनप्पवरने ५०१) दिये। सभापतिने २०००) दिये कि व्याजसे राजाराम कालिनमें सर्वोच्च जैन छात्रको छात्रवृत्ति दी जाय (५) प्रौढ़ विवाह किया जाय इस प्रस्तावको शेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० ने इन शब्दोंमें एक जोरदार भाषणके साथ पेश किया। _ "बालक और बालिकाओंकी लग्न बड़ी उम्र में करनेसे उनकी प्रकृति अच्छी रहेगी, विद्याभ्यास अच्छी तरह चलेगा, तथा बाल वैधव्यके संकट कम होंगे" । (६) धर्मादे पैसेके उपयोगके प्रस्तावका For Personal & Private Use Only Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५७९. अनुमोदन करते हुए सेठजीने कहा कि धर्मादेवी इकट्ठी की हुई रकम सत्कार्य में लगाना अपना कर्तव्य है, दूसरे काम में नहीं, इतना ही नहीं, उस पैसेको प्रत्येक गांवके व्यापारी पंचायत द्वारा एकत्र करके सत्कार्य में लगा सकते हैं । बम्बई आदिमें ऐसी व्यवस्था भी चालू है । (७) हुबली में बोर्डिंग स्थापन के लिये एक कमेटी बनी, (८) मैसूर सर्कारने शालाओं में धार्मिक शिक्षा देनेका जो प्रस्ताव किया है उसपर अभिनंदन, (९) कोल्हापुर बोडिंग में अलग जिनमंदिर बांधने की स्वीकारता पर भूपाल अप्पाजी जिरगेको धन्यवाद । श्रीमती कंकुबाईजीकी अध्यक्षता में महिला परिषद हुई जिसमें श्राविकाश्रम कोल्हापुरकी बाइयोंने व श्रीमती मगनबाईजीने भाषण किया । मगनबाईजीने कहा कि "जैसे तुम लोग कभी २ अपने पुरुषों से गहनों के वास्ते हठ करती हो ऐसे ही विद्या सीखनेक लिये हठ करो ।" समामें दो कन्याओंने मगनबाईजीकी स्तुति एक ललितपदमें की वह इस प्रकार है [ चाल:- "चंद्रकांत राजाची कन्या सुगुण रूप खाणी." }; धन्य ! धन्य ! तूं सुगुणशालिनी मगनबाइ भगिनी ॥ भूषविला स्त्रीसमाज आजी ज्ञानदान करुनी ॥ धू० ॥ इहलोकी स्त्रीपुरुषां मोठे भूषण ज्ञान असे ॥ भगिनिजनां तें प्राप्त हो कसें तुज चिंता विलसे ॥ कलिकालाचा दुस्तर फेरा अज्ञाना तिरी ॥ त्यायोगें ज्ञानांध जाहले समाज एकसरी ॥ भरतजननिच्या शुभ देवानें आंगलप्रभु मिलले ॥ ज्ञानबले आर्यातें त्यांनी बुद्धिवंत केलें ॥ आमुचा बनला जैनसंघ तंब प्रागतीक जगतीं ॥ हिरे माणके तयांत रहने चकाकती पुढतीं ॥ For Personal & Private Use Only Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० ] . अध्याय ग्यारहवा। ज्ञानार्जनिं गृहिसंघ पुढे हों त्रीसमाज मागें ॥ उरला देखुनि भगिनीहृदयी चिंता बहु जागे ॥ 'अनभिषिक्त भूपा' ची कन्या धर्मशील बाला ॥ स्वी उन्नति होण्यास स्थापी श्राविकाश्रमाला' ॥ त्यां आश्रमिच्या आम्ही बाला ज्ञानार्जन करुनी ॥ समें बागोनी जाऊं भावोदधी तरुनी ॥ स्त्रीवर्गावर मगनबाईने केला उपकार ॥ जन्मोजन्मीं न हों! तयाचा आम्होंतें विसर ॥ अनभिषिक्त राजा करवी हो ! समाजहितकृत्ये ॥ स्त्रीउन्नतिपर कार्ये होवो ! भगिनीच्या हस्ते ॥ भो ! जिनवरा जगन्मंगला, ठेव सुखी आमुची ॥ राजकन्यका मगनबाह ही पित्यासवें साची ॥ १ ॥ सेठजी बम्बई आकर तुर्त ही श्री तारंगाजी पर्वतको ___ रवाना हुए ( यहां भी शीतलप्रसादनी तारंगाजी में बम्बई प्रा० शरीरमें रोगके कारण न जा सके ) जहां सभा व सेठजी। बम्बई प्रांतिक सभाका छठा वार्षिकोत्सव मिती माघ सुदी २ से था । इस जल्सेके. नियत किये हुए अध्यक्ष सेठ हीराचंद अमीचंद, शोलापुरनिवासी, श्रीमान् दानवीर सेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० व अन्यों के साथ माघ सुदी १ प्रातःकाल अहमदाबाद पहुंचे । जैसिंहभाई हरजीवनदासकी तरफसे बालन्टियरोंने हातोरे आदिसे सन्मानित किया। दोपहरको खेरालू स्टेशनपर आए । स्टेशनपर २०० भाइयोंके साथ सेठ लल्लूभाई लक्ष्मीचंद अध्यक्ष स्वागत कमेटी उपस्थित थे । स्वागत करके अनेक पताकाओं के साथ गानते बजाते धर्मशालामें गए। यहां शामको दिगम्बर और श्वेताम्बर भाइयोंकी सभा हुई। जिसमें श्वे० For Personal & Private Use Only Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५८१ ने तारंगाजीपर चलनेवाली तकरारको आपसमें निवटानेका बादा किया। रविवारको सबेरे पर्वतपर पहुंचे। पर्वतपर ठहरानेका सुप्रबन्ध था । ४००० आदमियों के बैठने लायक मंडप था। रात्रिको हमारे सेठनीके सभापतित्वमें उपदेशक सभा हुई जिसमें सेठ मूलचंद किसनदास कापड़िया सम्पादक “ दिगम्बर जैन "ने सभाके लाभ बताए । सोमबारसे जल्से शुरू हुए। ६००० जैन एकत्र थे। ठाकुर साहब, पृथ्वीसिंह तखत सिंहनी व सर्कारी अमलदार वर्ग उपस्थित थे । सेठ माणिकचंदजीने सभापतिका प्रस्ताव करते हुए कहा कि हमारे सभापति इंग्रेजी मराठीके विद्वान, धर्मात्मा तथा एक प्रतिष्ठिा पुरुष हैं । इनके बड़ोंने इसी तीर्थपर एक शिखरबंद मंदिरकी प्रतिष्ठा कराई है । सभामें १३ प्रस्ताव पास हुए, इनमें मुख्य ये थे (१) शिखरजीके निकालपर सेठ माणिकचंदजी आदिका आभार (२) मुम्बई समाचार, गुजराती व अन्य पंचांगोंमें वीर संवत् व दि. जैन त्योंहारकी टोप रहे व इसका प्रबन्ध सेठ माणिकचंदजीके सुपुर्द हुआ। (३) जैनमित्रके सम्पादक शीतलप्रसादजी नियत हुए । तारंगानीमें सभाके उपदेशक खाते आदिके लिये करीब १५००) के चंदा हो गया। इसमें सभापति और सेठनी प्रत्येकने २०१) दिये । यहां मंदिरजीके ध्वजा दंड चढाई गई जिसमें ५०००) की उपन हुई। जैन महिलाओं की एक भारी सभा सेठ हीराचंद अमीचंदकी धर्मपत्नी नवलबाईकी अध्यक्षतामें हुई। इसमें श्रीमतो मगनबाईनीने अहमदावादमें दिगम्बर जैन श्राविकाश्रम स्थापित होनेकी आवश्यक्ता बताई और स्वयं १०००) देनेका उत्साह - For Personal & Private Use Only Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२] - अध्याय ग्यारहवा बताया । तब और स्त्रियोंने भी चंदा दिया जो कुल ४०००)का हो गया। सेठ माणिकचंदजीके पूर्ण उद्योगसे सभाका काम निर्विघ्न हो गया, तब सेठनी बम्बई आये । सेठजीका कोल्हापुर जानेका बहुत प्रसंग रहता था । वहां भारी सभा भरनेको कोई सभागृह नहीं था। • कोल्हापुरमें चतुरवाई एक दफे आपके चित्तमें आई कि बन जाना सभागृहके लिये चाहिये । इससे जैनियोंके सिवाय सर्व ४०००) खर्च । साधारणको भी लाभ पहुंचेगा । आप इमारत शुरू करानेके लिये न्यूका पत्थर रखनेको मुम्बईसे चलकर ताः ११ मार्चको कोल्हापुर आए और एक भारी सभा करके युवराज राजाराम महाराजके हस्तसे अपनी स्वर्ग प्राप्त धर्मपत्नी चतुरबाईके स्मरणार्थ सभागृह बनानेका पत्थर रखवाया। बहुतसे बाहरके जैनी भी आए थे । इसमें ४००० ) खर्चनेका विचार किया। इस मभारंभके पीछे सेठनीने कोल्हापुरके जैन व्यापारियोंके धर्मादे पैसेकी सुव्यवस्थाके लिये कहा, तब धर्मादेके प्रस्तावकी सबने कबूल करके कुछ भाग जैन बोर्डिंगमें अमली कार्रवाई। देना स्वीकार किया। शाहपुरकी मंडलीने अपने यहांके धर्मादेको एकत्र कर एक जिन मंदिर बांधनेका प्रस्ताव किया । वास्तवमें यदि जैन व्यापारी वर्ग सच्चे दिलसे अपने २ यहांकी धर्मादेकी रकमोंको जो पैसा वास्तवमें सर्व साधारणके लाभमें ही उपयोग आने लायक है, एकत्र कर एक साथ राय करके खर्च करें तो हर स्थानमें पाठशाला, औषधालय For Personal & Private Use Only Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vum __ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५८३ आदि धर्मके काम सहनमें हो जावें । ऐसा करनेमें सत्यता व नेक नियतीकी जरूरत है। बड़े २ व्यापारी बहुत धर्मादा काढते हैं वे ही देनेसे हिचकते हैं इसीसे योग्य उपयोग नहीं होता। धर्मादा द्रव्य हमारा नहीं हैं यह भाव यदि हो तो बड़ा उपकार हो सक्ता है । दूमरे दिन जैन बोर्डिङ्गके छात्रोंने सेठजीका बहुत सन्मान किया। सेठजी फौरन बम्बई आए । बड़े ही आनन्द व आश्चर्यकी बात है कि सेठनीको यात्रा करने व देश परदेश जान में शरीर कष्ट व खर्चका कुछ भी खयाल नहीं होता था। वास्तवमें जो ऐसे ही निरालसी दातार होते हैं वे ही कुछ कर जाते हैं। जैसे गृहारंभादिके कामों में नाना चिन्ताएं रहती हैं इसी तरह व्यवहार धर्मके साधनमें भी बहुतसी श्री अंतरीक्षजीमै चिन्ताएं हो जाती हैं। अब सेठंनीको धम मारामारी और सम्बन्धी ही चिन्ताएं रहा करती थीं। सेठजीको भारी श्री शिखरजीकी चिन्तासे कुछ मुक्त हुए थे चिता । कि यकायक अंतरीक्ष पाश्वनाथके . झगड़ेसे भारी चिंता हो उठी । बरार प्रान्तमें अकोला स्टेशनसे ४० मील सीरपुर गांव है वहां श्री अंतरीक्ष पार्श्वनाथजीकी भव्य दिगम्बर जैन मूर्तिसे शोभायमान एक जिन मंदिर है । यह अतिशयकारी प्रतिमा है। व्यापारार्थ आनेवाले श्वेताम्बरी भी दर्शन करने जाने आने लगे थे । बम्बईसे एक संघ यात्राके लिये पन्यास मुनि आनंदसागरजीके साथ वहां गया था। उसने श्वेताम्बरी २ प्रतिमा व १ यंत्र वहां सदाके लिये विराजमान करनेका उद्यम किया तब For Personal & Private Use Only Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ ] अध्याय ग्यारहवां । वहांके दिगम्बरियोंने मना किया इसपर बोलचाल बढ़ी । वे० के साथ तलवार बंदूक आदि थी उससे ७ दिगम्बरी घायल किये गए । पुलिस आई । २० वे० व आनन्दसागरजी के ऊपर मुकद्दमा चलाया | इस सम्बन्धी विचारके लिये हीराबाग में फाल्गुन सुदी ८ को दिग म्बरियोंकी एक आम सभा राजा ज्ञानचंद के सभापतित्वमें हुई । सेट माणिकचंदजी और पं० धन्नालालने सर्व हकीकत वर्णन की। सर्व सभासद इसके लिये योग्य प्रबन्ध करें ऐसी प्रार्थना सेठजीने की । यह मुकद्दमा बहुत दिन चला इसमें सेठजीने तीर्थक्षेत्र कमेटी से रूपयोंकी बहुत मदद दी । जातिसेवा के लिये कमर कसे हुए सेठजी शीतलप्रसादजीको लेकर ता० २५ मार्च ०९ को सबेरे बंबई बेलगांव स्टेशन पहुंचे । उत्तम प्रकार से स्वागत हुआ। शामको जैन लोगोंकी तरफसे सेठजी के सन्मानार्थ सभा हुई। उसमें शीतप्रसादजीने विद्योन्नतिपर भाषण देते हुए जैन बोर्डिग के लाभ वर्णन किये । रा० रा० चौगलेन समर्थन किया व बेलगांव में भी ऐसे बोर्डिंगकी आवश्यकता बताई | बेलगांव के अजैन वकील रा० रा० छत्रेने शीतलप्रसादजी के व्याख्यानकी प्रशंसा पूर्वक अनुमोदना की। अंत में सेठ माणिकचंदजीने कहा कि लोगों की इच्छा प्रमाण यहां भी बोर्डिगकी जरूरत है पर यह काम एकदम नहीं हो सकता । स्थापना के पहले बहुत परिश्रमकी आवश्यकता है। रात्रिको यहांसे बहुतसे महाशय डुबली सबेरे सेठजीके साथ पधारे । जैन बोर्डिंग खोलनेका मुहूर्त्त चैत्र सुदी ६ ता० For Personal & Private Use Only सेठजीका हुवली बोर्डिग के लिये भ्रमण । Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५८५ २७ मार्चको होगा ऐसी सूचना पाकर बहुतसे भाई परदेशसे आए थे जैसे मैसूरसे श्रीयुत अनंतराजय्या, वर्धमानैय्या, दाबणगिरीसे ब्रह्मप्पा आणा तवनप्पा आदि। ता० २७ को सवेरे कुंभ ले र बोडिङ्गके स्थानपर जाकर सरस्वती पूजन हुई । व बोर्डिङ्गमें प्रवेश होनेवाले छात्रोंको रत्नकरंड श्रावकाचारका पाठ दिया गया। श्री पायसागर स्वामी विदरेने स्थापन विधि की । शामको ५ बजे मंडपमें एक मारी सभा की गई जिसमें नगरके प्रतिष्ठित पुरुष भी आए। अध्यक्ष स्थान धारवाड़ जिलेके कलेक्टर मि० हडसन साहबने ग्रहण किया। रा० रा० चौगले बी० ए० एलएल० बी० वकील बेलगामने इंग्रेजीमें द० म० जैन सभा व बोर्डिङ्ग खोलनेका उद्देश्य बताया व साहब बहादुरको प्रार्थना की कि बोर्डिङ्ग खोले। अध्यक्ष महोदयने 'बोर्डिंग खोला गया ऐसा जाहर करके कहा कि “ जैन लोग प्राचीन कायदेके अनुसार विद्याकी तरफ जो ध्यान दे रहे हैं सो स्तुत्य है। विद्या में जैन लोग आगे बढ़े ऐसी मेरी उत्कट इच्छा है।" कई भाषण हुए। शीतलप्रसादजोने जैनियोंकी प्राचीन गुरुकुल प्रद्धतिको समझाया तथा बोर्डिङ्ग उसीका कुछ अनुकरण है ऐसा बताया। बेलगांवके धरणप्पा सेठीने कलेक्टरका आभार माना। बादशाह एडवर्डकी तीन जय बोलकर सभा समाप्त हुई। रात्रिको पायसागर स्वामी विदरेके सभापतित्वमें सभा हुई तब शीतलप्रसादनीने श्रावकके षटकर्मपर सेठजीका १०००) कहते हुए धर्म शिक्षमकी आवश्यकता कालेनके दान हुबली बो० । छात्रोंके लिये बतलाई तथा इस बोर्डिंगरूपी. वृक्षको द्रव्यरूपी पानीसे सींचनेको कहा। रा० सा० चौगले व अन्य के समर्थन होनेपर उदारचित्त भाइयोंने इस भांति दान किया। For Personal & Private Use Only Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय ग्यारहवां । १०००) दानवीर सेठ माणिकचंदजी | ५० १) तबनप्पा आण्णा लेंगडे, शाहपुर । ५०१) धर्मराव सुभेदार, बेलगांव । ५०१) चंद्राप्पा भीमराव देसाई, ५८६ ] कुछ रकम फुटकर भी आई। रात्रिको पायसागर विदरेके सभापतित्वमें फिर सभा हुइ । ऐलक त्यागी पन्नालालजी महाराजके साथ जैनबिद्री जाते पं० पासू हुए गोपाल शास्त्रीका दान पर भाषण हुआ । श्रीयुत यल्लाप्पा मंटगणी कर मास्तरने स्त्री शिक्षा पर कहा । श्रीयुत बुरसेने हुबली के शिक्षण फंडमें १२००) दिये । सेठजी के प्रयत्न से वोर्डिङ्गके प्रबन्ध व धर्मादा रकमकी व्यवस्था के लिये १३ महाशयोंकी स्थानीय कमेटी बनी । सेक्रेटरी श्रीयुत कृष्णराव बुरसे हुए तथा यह ठहराव हुआ कि धर्मादेकी रकम कोषाध्यक्ष जमा करके बोर्डिङ्ग, पाठशाला व जिन मंदिर के लिये खर्च करें । यहांके परदेशी श्वेताम्बरी लोगोंने एक प्राचीन दिगम्बर मंदिरको ठीक कराकर अपनी प्रतिमाएं बिराजमान की हैं जिसमें दिगम्बर प्रतिमा भी हैं । इनकी ओरसे पाठशाला व कन्याशाला चल रही है। सेठजी व शीतलप्रसादजीने परीक्षा ली । फल अच्छा ही रहा । हुबली से सीधे बम्बई आए । 1 हुबली कर्णाटक भाषी देश है । सर्व स्त्री पुरुष कनड़ी भाषा बोते व लिखते हैं । यह भाषा हिन्दी से गुजराती व मराठीकी अपेक्षा अनमिल है तौ भी यह देखने में आया कि हिन्दी भाषा भी यहां वाले समझ लेते हैं व हिन्दी बोलनेवाले से हिन्दी में बात कर लेते हैं । यह दशा देखकर भारत में जो एक For Personal & Private Use Only कर्नाटक देशमें हिन्दी भाषा । Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ५८७ राष्ट्रीय भाषा करना चाहते हैं उनका अवश्य यह निश्चय होना चाहिये कि हिन्दी ही इस सम्मानके योग्य है । गुजरातकी दिगम्बर जैन कौम शिक्षा में बहुत पीछे पड़ी हुई थी, इसको विद्याकी ओर उत्तेजना देनेवाले दानवीर सेठ माणिकचंदजी थे । बोरसद निवासी मेवाड़ा जातिके परीख लल्लुभाई प्रेमानंददास एल० सी० ई० सेठनीके धार्मिक कामोंमें पूर्ण मददगार थे और अब भी हैं। बम्बई प्रान्तिक सभा के सहायक महामंत्रीके सिवाय अहमदाबाद बोर्डिंगके मंत्रित्वका काम बहुत ही दिलसे करते थे । आप इन्कमटैक्स ऑफिस में अच्छे पदपर थे । सकरिने इस समय इनको काम चलाऊ डिप्टी कलेक्टरका पद दिया तब सेठनीने इनके परिश्रम व उन्नतिका दृष्टान्त और गुजराती बालक लेवें इसलिये वैशाख वदी ३ ता० ८ अप्रैल १९०९ को हीराबाग में एक आम सभा आनरेबल मि० गोकुलदास कहानदास पारेख के सभापतित्वमें की। इसमें जैन अजैन बहुतसे विद्वान् व प्रतिष्ठित पुरुष शामिल हुए । सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुरने इनके जीवनका हाल कहते हुए वर्णन किया कि सन् १९०३ में यह एल० सी० ई० की परीक्षा में पास हुए तथा अपने परिश्रम और योग्यता से केवल ५ वर्षमें ही ऐसे ऊंचे पदको प्राप्त हुए हैं। फिर शेठ माणिक-चंदजीने कहा कि इस उच्च पदपर पहुंचने का कारण Baat प्रमाणिकता और सत्यता है इनको बहुत प्रमाणिकपने से ही जोखमदारीके काम मिले पर यह आज तक लल्लूभाई परीख के गुणकी कदर । | For Personal & Private Use Only Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ ] अध्याय ग्यारहवां । चलते आए हैं । हमारे और बंधुओंको इनका अनुकरण करना चाहिये । तब प्रमुखने कहा कि जैन कौम व्यापारमें धनी कुशल और बुद्धिशाली होती है ऐसे ही विद्या में भी कुशल होनेका यत्न करना चाहिये। तब लल्लूभाईने कहा कि मैं इस मानके योग्य नहीं हूं। कौमकी सेवा करना हर एकका फर्ज हैं। सम्पूर्ण गुजरातमें हमारे दिगम्बर भाइयोंको विद्यामें अग्रसर करनेवाले हमारी कौमके दानवीर सेठ माणिकचंदजी हैं, और मैं जिस मान पानेका भाग्यशाली आज हुआ हूं वह दानवीर सेठके प्रतापसे ही है। मैं सेठनीका अंतःकरणसे आभारी हूं। ता० ३ मईको श्री महाराज सयाजीराव गायकवाड़ बड़ौदाने ___कोल्हापुर जैन बोर्डिंग और श्राविकाश्रमका महाराज बड़ौदा और निरीक्षण किया । जैन कौमने बहुत सन्मान सेठजी। दिया। प्रोफेसर लटेने बोर्डिग व श्राविकाश्रमका __ हाल सुनाया, तब महाराजने अपने भाषणमें स्त्रीशिक्षाकी बड़ी आवश्यकता दिखाई व कहा कि जैनियोंको ज्ञान प्रसारार्थ यत्न चालु रखना चाहिये । मैं अपनी प्रनाको शक्तिके अनुसार जो शिक्षण दे रहा हूं उससे मुझे समाधान नहीं वह और बढ़ना चाहिये। जैसे सेठ माणिकचंद पानाचंदजीने इस इमारतको बंधवा दिया है ऐसे ही प्रत्येकको ऐसे कार्यों में -मदद करना चाहिये। For Personal & Private Use Only Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [५८९ बम्बई में त्यागी ऐलक पन्नालालजी महाराज जो केवल एक ___ लंगोटी मात्र परिग्रह रखते हैं, भिक्षावृत्तिसे बंबईमें त्यागी पन्नाला- एक दफे आहार करते हैं, शीत उष्ण पवनकी लजीका केशलोंच। परीषह सहते हैं, रात्रिको गमन नहीं करते हैं, ध्यान स्वाध्यायमें लीन रहते हैं, पधारे । आपके केशोंको अपने ही हाथसे लोच करनेका समय आ गया, तब बंबईवालोंने रथोत्सव किया व माधोवागमें पूजन व सभाएं हुई । बाहरसे भी बहुत लोग आए । मिती वैशाख सुदी १५ बुधवार ता. ५ मई १९०९को सबेरे ८ बजे हजारों नरनारियोंके मध्यमें अपने हाथसे अपने मस्तक, डाढ़ी और मूंछके वालोंको आध घंटे में पद्मासन बैठकर बड़ी शांतिसे उपाड़ डाला । सर्व जन आश्चर्य में भर गए उस समय सबके मनमें वैराग्य आ गया, बहुतोंने पस्त्री त्याग आदिके नियम लिये । त्यागीनीने थोड़ासा उपदेश केशलोंच करनेके पहले किया था। उसके व इस दृश्यक प्रभावसे उपस्थित. मंडली. व खासकर सेठ माणिकचंदनीके भाव चढ़ आए। उसी समय औषधालयके लिये ८००० ) का चंदा हुआ, जिसमें सेठ. माणिकचंद पानाचन्दनीने भी ५०१) दिये। सेठजीकी कुटुम्बकी स्त्रियोंने १०१) रु. देकर स्त्रियों में ३००) का चंदा कराया। श्रीमती मगनबाईजीकी प्रेरणासे श्रीमती बेसरबाई बड़वाहा ने ११००) श्राविकाश्रमके लिये दिये। सेठ माणिकचंदनीने अपने हीराबागके देशी औषधालयका नाम बदलकर ऐलक पन्नालाल औषधालय रख दिया और वह रकम इसी काममें खर्च होने लगी। यह दवाखाना बंबईमें बहुत प्रसिद्ध हो गया है । वैद्य एक For Personal & Private Use Only Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९० ] अध्याय ग्यारहवां । जैनी शोलापुरका पढ़ा हुआ बहुत योग्य है । इससे सैकड़ों गरीबोंको लाभ पहुंच रहा है ! वर्षातमें प्रायः सेठनी बम्बई ही में ठहरे और धर्मध्यानमें लीन रहे । इस वर्ष शीतलप्रसादनीने दशलाक्षणीपर्व बोरमद ग्राममें सेठ चुन्नीलाल प्रेमानंद मंत्री उपरैली कोठी शिखरनी बीस पंथी कोठीकी प्रेरणासे विताया था और वहां १० दिन तक शास्त्रसभामें सूत्रनीके अर्थके साथ २ धर्मोपदेश दिया था। भादोंके कुछ दिन. पीछे ही सेठजी कोल्हापुर गए। वहां ता: ५ सितम्बर ०९ को श्रीमती चतुरबाई कोल्हापुरमें सेठजीका हालमें दक्षिण महाराष्ट जैन समाकी प्रबन्ध गमन । कारिणी सभाकी बैठक सेठजीके सभापतित्वमें हुई, निश्चय हुआ कि कार्तिक अष्टान्हिकामें कोल्हापुर में वार्षिक परिषद की जायव उसके साथ कलाकौशल्य और खेतीकी प्रदर्शनी दिखाई जाय । सभापतिके लिये श्रीयुत ब्रह्मप्या आण्णा तवनप्पवर नियत हुए। सर्व मेम्बरोंने अनेक कार्य बांट लिये । इसी अवसरपर श्री अनंत जिनकी पंचकल्याणक पूना व नवीन मंदिरकी प्रतिष्ठा करना भी निश्चय हुआ जो सेठ भूपालजिरगेने बोर्डिंगके छात्रोंके लाभके लिये निर्मापण कराया था। सेठ भूपालने ३०००) से अधिक मंदिर निर्मापणमें लगाए व ३०००) की कीमतकी जमीन मंदिर खातेको दी जिससे १००) वार्षिककी उत्पन्न हो ।.. For Personal & Private Use Only Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातियोवा द्वितीय भाग। [५९१ आश्विन वदी १३ ता. १२ अक्टूबर ०९को हीराबाग धर्मशाला में सभा हुई। सेठ शामलाल चांदवड़ सभापति हीराबागमें सभा व हुए। सेठ माणिकचंदजी व अन्य अनेक सेठजीके अनुकरणमें भाई नासिक जिलेके मौजूद थे। बम्बई २००००)का दान। प्रान्तिक सभाका वार्षिक अधिवेशन श्री मांगीतुंगीमें मिती कार्तिक सुदी १२, १३ और १५ ता० २४-२५ और २६ नवम्बर ०९ को करना निश्चित हुआ था । उसके लिये सभापति हरीभाई देवकरणवाले सेठ हीराचंद रामचंद निश्चित हुए । स्वागतकारिणी कमेटोके सभापति सेठ गुलाबचंदनी हीरालालजी धूलिया व मंत्री सेठ शामलाल चांदवड़ नियत हुए। हमारे सेठजीको उस बातका खयाल था जो बेलगांवके लोगोंने हुबली बोर्डिंगकी स्थापनाके लिये जाते हुए सेठजीसे कहा था कि यहां बोर्डिंग होना चाहिये। आपने इस कार्यको कराने लायक शाहपुर बेलगांव निवासी धर्मप्पा सबेदारको पक्का किया जो कि जवाहरातके व्यापारी थे और बहुधा बम्बई आया जाया करते थे। सेठजीने २००००) बीस हजार रुपयेकी स्वीकारता करा ली। वह भी इस सभामें मौजूद थे। सेठजीने प्रेरणा करके कहा कि सूबेदार साहब कोई हर्षका समाचार प्रगट करना चाहते हैं। तब सूबेदार साहब उठे और प्रगट किया कि वेलगांवमें बोर्डिंगकी बहुत बड़ी जरूरत है अतएव उसके लिये मैं अभी २००००) बीस हजारका संकल्प करता हूं व आवश्यक्ता होनेपर दस पांच हजार और भी लगाउंमा ।" इस समाचारको सुनके समाको बड़ा आनन्द हुआ। For Personal & Private Use Only Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९२ ] अध्याय ग्यारहवां । जव भारतमें यह कनून पास हुआ कि हिन्दू और मुसलमानोंके प्रतिनिधियोंके सिवाय (सिक्ख और नैनी ऐसी) सर्कारी कौन्सिलों में आवश्यक जातियोंके भी प्रतिनिधि रहेंगे, तब जैन प्रतिनिधि | भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा की ओरसे लार्ड मिन्टोकी सेवामें कलकत्ते जो अर्जी सेठजीने भेजी थी कि जैनियोंकी तरफसे भी प्रतिनिधि लिया जाय, वह अर्जी नीचे प्रगट की जाती है । उसका जवाब ता० ६ अक्टूबरका नं० ३८४३ में आया कि बम्बई जवाबके लिये भेजी गई है तथा बम्बई से नं० ५४०३ ता० १५ अक्टूबर १९०९ के पत्र में जो जवाब आया वह यह है कि अल संख्यक जातियों के प्रतिनिधियों के लिये कुछ जगहें संरक्षित रक्खी गई हैं उनको देते हुए उपयोगी जैन जातिकी मांगका पूरा खयाल किया जायगा । ये दोनों जवान भी इंग्रेजी के प्रगट किये जाते हैं। क्योंकि अभी तक इनकी अमली कार्रवाई नहीं हुई है अतएव जैनियोंको उचित है कि सर्कारको अपने पत्र में किये हुए वादेकी याद दिलावे तो अवश्य सफलता प्राप्त होगी । To, (1) His Excellency the Earl of Minto, P. C., G. C. M. G., G. M. S. I, G.M. I. E., Viceroy & Governor General of India, • CALCUTTA. May it please Your Excellency, The Humble Memorial of the Bharat Varshiy Digamber Jain Maha Sabha, For Personal & Private Use Only Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ maan महती जातिसवा द्वितीय भाग । Most respectfully showeth : That in the matter of popular representation in Council thu Government having recognised. the principle of the representation of “ Important minorities ” the Jain Community of India begs leave to approach your Excellency with its humble claim for special recognition as an " Important minority. 2. That the Jain Community does constitute an “ Important Minority” and should not be neglected in this matter, has been admitted in the Despatch of the Government of India dated the 1st October 1908. 3. That as regards literary the Jain Conmuuity holds the second place throughout India, the first place of honor being held by the Parsees. 4. That in the Departments of Agriculture, Trade and Commerce, also the Jain Community of India is fairly, advanced to claim recognition. 5. That the importance of this comparatively speaking small community and its conspicuously humble, peaceful, lawabiding, quiet and no-agitating character must have come to the prominent notice of your Excellency's Government in the recent matter of the Parashnatlı Hill. 6. That the separated widely in matters of religious belief social custom, and way of living, from the other religious communiti:s o India For Personal & Private Use Only Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9887 अध्याय ग्यारहवां । which group themselves as “ Hindus” as the Jain Community of India is, it has no reasonable hope of success in the matter of obtaining representation in Council if it is left to take its chance with the general "Hindu' community. 7. That the Jain Community of India fervently hopes and feels confident that your Excellency will be most graciously pleased to reserve one seat in your Excellency's Legis. lative Council for a member of the Jain Community of India. And Your Excellency's Humble Petitioner as in duty bound will ever pray. I have the honor to remain, Your Excellency's most obedient servant. i. e. Maneckchand Hirachand J. P. Bombay. Offg. President, Bharat Varshiya Digambar Jain Maha Sabha.. Office :Khurai, Dist. Saugor C.P. Dated the 2nd September 1909. (2) Copy of the reply from the Home Depart. ment received under letter No. 3843 dated 6th. October 1909. The undersigned is directed to inform Mr. Maneckchand Hirachand that his letter dated the 2nd September 1909 regarding the representation of the Jain Community on the Legis For Personal & Private Use Only Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५९५ lative Council has been transferred to the Government of Bombay for dia posal. Sd. H. C. STAKE. Deputy Secretary to the Government. (3) No. 5403 of 1909 General Department. Bombay castle, 15 the October 1909, To Mancckchand Hirachaud Esquire otfy. pre. sident, Bharat Varshiya, Digambar Jain Maha sabha. Sir, With reference to your memorial to His Exellency the Viceroy and Governer General of India, dated the 2nd September 1919, praying that a seat in the Imperial Legis Lative council may be reserved for a member of the Jain Community, I am directed to inform you that a Number of seats have been reserved for the representativn of minorities by nomination and that in allotting them the claims of the important Jain Community will receive full consideration. I have the honour to be, Sir Your most obedient servant Sd/for Secretary to Government For Personal & Private Use Only Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९६ ] - अध्याय ग्यारहवाँ। सेट माणिकचंदजी अहमदावादमें प्रेमचंद मोतीचंद दि० जैन बोर्डिंगका वार्षिक कोत्सव करने व अमदावाद बोर्डिंगका श्राविकाश्रम स्थापन करनेके लिये सातवां वार्षिकोत्सव । शीतलप्रसादजीके साथ आए । बाहरसे बहुतसे भाई आए थे। आसोज सुदी १० को सवेरे एक भारी सभा जुड़ी। नगरके प्रतिष्ठित पुरुष मौजूद थे। सेठ माणिकचंदजी हीराचंदनीके प्रस्ताव करने और संठ जैसिंहभाई गुलाबचंदके समर्थनसे ट्रेनिंग कालेनके प्रिन्सपल स. मा. कमलाशंकर प्राणशंकर त्रिवेदी बी. ए. ने सभापतिका आसन ग्रहण किया। सेक्रेटरी लल्लूभाईने रिपोर्ट पढ़ी फिर शीतलप्रसादजीने बोर्डिगका कार्य संतोषकारक है ऐसा कहकर शुद्ध आहारके लाभ व अशुद्ध आहारके अलाभ बताते हुए हड्डीके संसर्गस बनी हुई परदेशी शक्करके निषेधपर कहकर धार्मिक शिक्षाकी उपयोगिता बताई। सेठ हरजीवन रायचंद अमोदवालेने समर्थन किया फिर सभापतिने अपने भाषण में कहा कि सेठ माणिकचंदजीका ध्यान शिक्षाप्रचार पर है, इससे मुझे बड़ा आनन्द है, तथा बोर्डिंगकी संस्थासे रीति भांति सुधरती व मनमें एकाग्रता आती है । रात्रिको विजिटर्स कमेटीकी बैठक इसणाववाले सेठ नरसी गंगादासके सभापतित्वमें हुई। पालीतानावाले मुनीम धरमचंदजी हरजीवनने मनोहर कविता पढ़ी। श्राविकाश्रम खोले जानेकी सूचना हरजीवन रायचंदने की। छोटेलाल घेलाभाई अंमलेश्वरने श्राविकाश्रमके लिये प्रबन्धकारिणी कमेटीके नाम सुनाए । सभापति सेठ माणिकचंदनी व मंत्री छोटेलाल घेलामाई हुए। नारायणदास मोतीलालने ५५०) बोर्डिगमें दिये । शीतलप्रसादजीने For Personal & Private Use Only Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [५९७ कहा कि धर्मशिक्षामें बालकोंको विशेष ध्यानकी जरूरत है। सम्पादक दि० जैनने बोर्डिंगके छात्रोंको जैनधर्मकी माहिती और नियम पोथी भेटमें दी। आसौन सुदी ११ ता० २५ अक्टूबर १९०९ सोमवारको ७॥ बजे बोर्डिंगके सामने एक मकानमें . श्राविकाश्रमकी दिगम्बर जैन श्राविकाश्रमकी स्थापनाका. स्थापना। महुर्त बम्बईकी परोपकारिणी सार्वजनिक कामों में भाग लेनेवाली जमनाबाईजी सकईकी अध्यक्षतामें बड़ी धूमधामसे हुआ। तारंगाजीपर पाम हुए प्रस्तावके अनुसार अध्यापिका व उपदेशिका तय्यार करनेके लिये यह आश्रम खुला । इसमें धर्मशिक्षाके साथ उद्योग धंदा व लिखना वांचना सिखलाया जावेगा ऐमा विवेचन श्रीमती ललिताबाईने किया। प्रमुखाने आश्रम खोलते हुए कहा कि धर्म और नीतिकी ज्ञाता पवित्र माता बनानेसे ही इस आर्यभूमि में धर्मिष्ट और परोपकारी प्रना रत्न उत्पन्न होंगे । अज्ञान माताकी अज्ञान प्रजा देशको अधम बनावेंगी। श्रीमती जमनाबाईजीने अजैन होनेपर भी ५१) भेट किये । श्रीमती मगनबाईजीने सर्वका आभार माना । यद्यपि बम्बई में सेठ माणिकचंदजीने कुछ मकान अलग करके श्राविकाओंको परदेशसे आनेके लिये पत्रोंमें नोटिस सन् १९०६ में ही दिलाया था परन्तु उससे सिवाय एक इन्दौरकी आनंदीबाईजीके और कोई नहीं आ सकी । इस बाईको मगनबाईजीने अपने ही साथ रक्खा व छ: ढाला आदिका ज्ञान कराया । तब यह सलाह करके कि आश्रम ऐसे स्थानपर हो जहांसे विधवाएं सुगमतासे अपने देश भी जा सकें व For Personal & Private Use Only Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ ] अध्याय ग्यारहवां गुजरातका विशेष हित हो, सेठजीने अहमदाबादमें खो लनेका प्रबन्ध करा दिया । अब मगनबाई व ललिताबाई वहीं रहने लगीं और शिक्षादानमें मन वचन कायसे लीन हो गई। रात्रिकी सभामें ३००) का फंड आश्रमके लिये हुआ । . यह आश्रम अब बंबई आगया है। इससे बहुत लाभ हुआ है । जिस समय स्थापित हुआ केवल ४ बाइयें ही भरती हुई थीं। पर १ वर्षके भीतर २२ श्र विताएं हो गई जिनमें कन्याएं ७, सधवाएं ३ व विधवाएं १२ थीं, जो आमोद, छाणी, बड़ौदा, बसो, शाहपुर, अंकलेश्वर, कलोल, सोजित्रा, जंबूमर आदि ग्रामोंकी निवासिनी थीं। इनमें से श्रीमतीव्हेन तबनप्पा तय्यार होकर अब बड़वाया जिला नीमाड़की कन्याशालामें शिक्षा दे रही हैं। प्रभावतीव्हेन शीतलसा शिक्षिकाका अभ्याप्त अहमदाबाद ट्रेनिंग कालेनमें कर रही हैं। श्रीगिरनारंजी सिद्धक्षेत्र जूनागढ़ रियासतसे ४ मीलपर बहुत ही मनोज ऊंचा व रमणीक अनेक प्रकार सेठजीका काठिया- जंगलोंसे सुशोभित प्रसिद्ध पर्वत है इसको बाड़में भ्रमण । उज्जयंतगिरि भी कहते हैं। यहांसे श्री कृष्णके चचेरे भाई जैनियोंके बाईसवें तीर्थकर श्री नेमीनाथ व वरदत्तादि ७२ करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं। , पर्वत पर व नीचे दिगम्बर जैन मंदिर हैं, जूनागढ़में कारखाना है। यद्यपि इस तीर्थकी बहुत बड़ी सेवा परतापगढ़ जिला मालवाके दिगम्बर जैनियोंने की थी तथापि जबसे बड़ी मन्नालालजी प्रबन्धकर्ता हुए, अन्धेर बहुत होने लगा। यात्रियोंको कष्ट-जिसकी For Personal & Private Use Only Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सेवा द्वितीय भाग । [ ५९९ शिकायेतीं चिट्ठियां सेठ माणिकचंदजीके पास बराबर आती रहीं । हिसाब व भंडारका भी कुछ पता नहीं । तीर्थक्षेत्र कमेटीने फार्म वार २ भेजे । सेठ चुन्नीलालने बहुत लिखा पढ़ी की पर फार्म हिसाबका भरकर नहीं पहुंचा । वहां सब जगह श्वेतांबर जैन पुजारी रक्खे हुए व मुनीम ब्राह्मण था । कटनीके संत्रकी ताकीदसे कमेटीने जब दिगम्बर जैन मुनीम भेजा तब उससे फौजदारी होगई । पर सेठजीने मुनीमको बराबर वहीं ठहरने दिया तथा उसको दूर कराकर परतापगढ़वालोंको वार २ लिखा गया कि ऐसी प्रबन्धका रिणी कमिटी बनाओ जिसमें बाहर के भी प्रतिष्ठित पुरुष हों व हिसाब बराबर प्रगट करो | कुछ भी सुनाई न होनेपर सेठजीने अप्रैल १९०९ में माष्टर दीपचंदजी उपदेशकको भेजा । यह १५ - २० दिन ठहरे, बहुत समझाया पर सफलता न हुई । पत्रोंके द्वारा बहुत धमकी देनेपर वहांसे शाह जवाहरलाल गुमानजी बम्बई एक नियमावली बनाकर लाये । इसको सहायक महामंत्री लाला प्रभूगालने ठीक कराई और कहा कि यही छपे व इसी तरह कार्रवाई हो, परंतु ऐसा न हुआ । उन्होंने मनमानी नियमावली छपवा दी व बाहरके मेम्बर प्रबन्धकारिणी से हटाकर जनरल सभा में कर दिये तथा ८ वर्षका एक हिमात्र भी संवत् १९५७ से १९६५ तकके जैनगजट ता० ८-९-०९ में प्रगट कर दिया। सेठजीने इन दोनोंको ठीक न समझा और परताबगढ़वालोंको लिखा कि आप गिरनारजी आवें मैं भी आता हूं। वहां हम आप मिलके प्रबन्ध करें । सेठजीने आसोज सुदी १५ ता० २८ अक्टूबर ०९ मिती कायम करके २२ दिन पहले परतावगढ़, भावनगर आदिके भाइयों को 1 For Personal & Private Use Only Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय ग्यारहवां । आनेके लिये सुचना की। इसी कारण अहमदाबादसे सेठनी आसोज सुदी १२ को शीतलप्रसादनी और धर्मचंदजी हरजीवनके साथ रवाना हुए। इन्हीं दिनों रानकोटमें गुजराती साहित्य परिषद थी। ___ अबके परिषदके कार्यकर्ताओंने प्रगट किया राजकोटमें गुजराती था कि प्राचीन ग्रंथों व शिलालेखोंकी - साहित्य परिषद प्रदर्शनी भी कि जायगी । सेठजीको भी निमंत्रण आया था। आपने शीतलप्रसादनीसे राय करके अपनी चौपाटीके चैत्यालयमें विराजित प्राचीन लिखित गोमट्टसार, आदिपुराण, अष्टसहस्री, द्विसंधानकाव्य, उत्तरपुराण आदि २५-३० ग्रंथोंको और कुछ माड़वाड़ी दि० जैन मंदिरसे लेकर राजकोट रवाना कर दिये थे । इनमें संवत् १५०० व १४०० तककी लिपिके ग्रंथ थे। तथा भावनगरके दिगम्बर जैन भंडारसे भी सेठनीने ग्रंथ भिनवाए थे । वहांसे एक ग्रंथ अनुमान १३०० संवत्का लिखा आया था । सेठजी ताः २७ अक्टूबर १९०९ को सबेरे रानकोट पहुंचे । जिस सेकन्ड क्लासमें सेठनी गए थे उसी में इस परिषदके प्रमुख दीवान बहादुर अम्बालाल साकरलाल एम. ए. एलएल. बी. आदि भी थे । राजकोट स्टेशन पर स्वागत कर्ताओंने सेठजीका भी बहुत सन्मान किया और एक अच्छे मकान में ठहराया। प्रदर्शनीका समय १० बजे तक ही था। इससे सबेरे ही देखनेको प्रदर्शिनीमें आए । एक बड़े कमरेमें चारों ओर शीशेके कपाटोंमें व टेबुलोंमें ग्रन्थ व शिलालेख देखनेमें आए । हरएकका अंतिम पत्रा खुला था ताकि प्रशस्तिको पढ़कर दर्शक उसके कर्ता व लिपिके . For Personal & Private Use Only Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [६०१ समयका ज्ञान करसके । अनेक प्राचीन ग्रंथ गुजराती भाषाके भी देखने में आए परंतु उनकी लिपि हिन्दी ही थी। इससे प्रगट होता है कि पहले हिन्दी अक्षरों में ही गुजराती भाषा लिखनेका महत्त्व था। यहां २०० वर्षके पुराने गुजराती भाषाके पर हिन्दी लिपिके इस्तावेज भी मौजूद थे। राजकोट दिन भर ठहरकर रात्रिको चलकर ताः २८ को सबेरे जूनागढ़ आये। कमेटीके लिये यही दिन गिरनारजीका नियत था । अपनी धर्मशाला बहुत ही मरम्मत निरीक्षण। तलव व ठहरनेके अयोग्य थी। तब सेठजी एक भाटियेकी धर्मशाला में ठहरे । इन्दौर, अजमेर रतलामादि भी पत्र दिये थे पर सिवाय भावनगरके शा. नारायणदास नरोत्तमदास, शा. हीराचंद गीगामाई, शा. अमृतलाल विठ्ठलदासके और कोई नहीं आए । सेठजीने इन्हीं उपस्थित छः महाशयोंकी कमेटी नियमानुसार करके रिपोर्ट तय्यार की उसमें बम्बई में दुरुस्त की हुई नियमावली व छपकर प्रसिद्ध की हुई नियमावलीके फर्क बताए व उस नियमावली तथा बाहरके मेम्बरोंको प्रबन्धकारिणीमें रखनेको लिखा । ८ वर्षका हिसाब योग्य आडिटरोंके द्वारा जांचा जावे तथा पूनाके उपकरण, पोथी व कहां २ क्या २ मरम्मत की जरूरत है सो सर्व रिपोर्ट लिख दी व मुनीम अमृतलालजी उस समय जैनी था उसको सर्व समझाया व वही खाता लिखनेकी रीति बताई तथा कमेटीके भेजे हुए मुनीम भगवानदासको-जो वहां ठहरा हुआ था-सब मेम्बरोंने एक लिखित सूचनापत्र यात्रियोंके दिखानेके लिये दिया कि जब For Personal & Private Use Only Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ ] अध्याय ग्यारहवां । तक योग्य प्रबन्ध हो और नियमावली दुरुस्त न की जावै तब तक कोई यात्री श्री गिरना जीके भंडार में द्रव्य न देवे किन्तु तीर्थक्षेत्र कमेटी के दफ्तर में भेज कर रसीद मंगा लेवें । सेठजीने बड़े आनन्दके साथ ता. २९ को पर्वतकी यात्रा की। श्री नेमनाथ स्वामीके चरणोंके वहां एक दिगम्बर जैन प्रतिमा कोरी हुई परम शांतताको लिये हुए है दर्शन कर शीतलप्रसादजीने उसी समय भक्ति रससे पूर्ण हो एक भजन बनाकर गाया । लौटते हुए सहश्राम्र वन में आए। यहांसे नीचे जानेको रास्ता बहुत विकट है । यदि और जगहों की भांति यहांसे नीचे तककी भी सीढ़ियां बन जायें तो बहुत उपकार हो । ता. ३० को जूनागढ़ लौट कर सर्व देखभाल की। सेठजी कई सर्कारी अफसरों से मिले । 1 यहांसे चलकर ताः ३१ को पालीताना आए । नवीन दि० जैन मंदिरके रमणीक सभामंडप में शेत्रुंजयकी यात्रा व रात्रि को एक आम सभा श्वे० नगरसेठके अभिनंदनपत्र । सभापतित्वमें हुई। पहले शीतलप्रसादजीने 'धर्मोन्नतिपर व्याख्यान दिया फिर नगर सेठने सर्व उपस्थित नगरवासी भाइयोंकी तरफसे सेठजीको सन्मानसूचक अभिनंदनपत्र दिया व पढ़कर सुनाया और सेठजीकी सर्व जैनियों के साथ इस समान दृष्टिकी बहुत २ प्रशंसाकी कि" वह अपने बम्बई की बोर्डिंग में दिग० से ० स्था० तीनोंके विद्यार्थियोंको रख कर एकसा वर्ताव करते हैं । 'धर्मचंदनीने भजन गाकर मंडलीको प्रसन्न किया । ताः १ नवम्बरको सेठजी ने सबके साथ बड़े आनन्दसे यात्रा की । यद्यपि सेठजी नीचेसे डोली पर गए थे पर ऊपर आदिनाथ मंदिरक बाहर ही डोली छोड़ For Personal & Private Use Only Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ६०३ केवल लकडीके सहारे ऊपर गए, यात्रा की और लौटे - सेठजीका साहस देखकर आश्चर्य होता था । ताः १ को चलकर फिर सेठजी अहमदाबाद आए और अपने श्राविकाश्रमको देखकर उसकी व्यवस्था ठीक कराई तथा इस निमित्त कि कोई बाई सर्कारी स्त्रीशिक्षकशाला में पढ़ने भेजी जावे लक्ष्मीबाई फीमेल ट्रेनिंग कालेज व उसके बोर्डिग को देखा । इसमें ५० बाइयें हैं। यहां मांसाहार किसी को नहीं दिया जाता है। यहांसे ता० २ की रात्रिको चलकर ता० ३को दाहोद आए । यहांवाले बहुत दिनोंसे सेठजीको बुला रहे मानपत्र । 1 दाहोद में पाठशाला के थे । स्टेशनपर गाजेबाजे सहित बहुत भाई लिये फंड व मौजू थे। यहां १०० वर दुमड़ दि० सेठजीको जैनियोंके व दो जिनमंदिर हैं । माष्टर दद्दुलालकी अध्यापकी १ में वर्षसे पाठशाला चल रही थी । सेठजीने परीक्षा लिवाई | रात्रिको सभा हुई । शीतलप्रसादजीने धर्मपर व्याख्यान देते हुए । पाठशालाको चिरस्थाई करनेके लिये जोर दिया । तुर्त दानवीर सेटनीने १०१) दिये, बातकी बात में २५०० ) का धौव्य व ३५० ) का चालू फंड हो गया | दूसरे दिन सबेरे मि० प्लेन केन यूरुपियन डिप्टी कलेक्टर के सभापतित्व में छात्रों व छात्राओंको इनाम बांटने के लिये एक भारी सभा हुई । शीतलप्रसादने धर्मका स्वरूप कहा । सेठजीने बाबू बनारसीदास एम० ए० रचित जैन इतिहास सेरीज़ नं० १ इंग्रेजी में कलेक्टर साहबको भेट की। पाठकोंको यह मालूम ही For Personal & Private Use Only Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ ] अध्याय ग्यारहवां । है कि सेठजी यात्रा के समय अपने बाहर के एक पैकेट में बांटने के लिये जैनधर्म व जीवहिंसा मांसाहार रोकनेवाली पुस्तकें हमेशा रक्खे रहते थे और जहां जिसको जब जो देनेका अवसर होता था हर्षसे देते थे व जवानी भी समझाते थे। बहुतसे इंग्रेज सेकन्ड क्लासमें आपसे पुस्तक प्राप्ति करते थे। सभापतिने इनाम बांटकर अपने भाषण में कहा कि " विद्यार्थियों को अन्य शिक्षाके साथ धार्मिक शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिये, तथा यदि कन्याओंको योग्य सुशिक्षिता माता बनाया जावे तो तीन पीढ़ी में यह भारत अपनी प्राचीन उन्नतिको प्राप्त कर ले । " इसी समय दाहोदके भाइयोंने सेठनीके सन्मानार्थ निम्नलिखित मानपत्र अर्पण किया— नकल मानपत्र ( दाहोद ) | मङ्गलाचरण | तजयति परंज्योतिः समं समस्तैरनन्तपय्यैः । दर्पणतल इव सकलाः, प्रतिफलति पदार्थमालिका यत्र ॥१॥ दोहा | धन्य दिवस तिथि आजकी धन संवत्सर वार । सभ्य कुमुद विकशित किरण, सभा चांदनी सार ॥ परम हर्ष ? परम हर्ष ? ? परम हर्ष ? ? ? भारतवर्ष के विख्यात सूरत नगर में एक प्रतिष्ठित नररत्न श्रीयुत् - सेठ गुमानजी के सुपुत्र हीराचन्दजीके चार पुत्ररत्नों (मोतीचंदजी, - पानाचंदजी, माणिकचन्द्रजी, नवलचन्द्रजी) की उत्पत्ति हुई । पश्चात् For Personal & Private Use Only Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग धर्म सम्बन्धी [ ६०५ मोतीचंद्रजी के पुत्र प्रेमचन्द्रजी, पानाचन्द्रजीके पुत्र रत्नचन्द्रजी, माणिकचन्द्रजीके पुत्री मगनव्हेन, नवलचन्द्रजीके पुत्र ताराचन्द्रजी हुए। स्वकीय नामकरणों को अपने गुणोंसे विभूषित किया - "यथा नाम तथा गुणः " इस कहावत को चरितार्थ किया । प्रथम ही तो बम्बई में हीराचन्द्रजी गुमानजी के नामसे बोर्डिंग स्थापित किया, इन्हीं नररत्नोंने हीराबागका बृद्धन यात्रीगणोंके विश्रान्तिके लिये बनाया . और आपहीके घरानेसे अहमदाबाद, कोल्हापुर, जबलपुर इत्यादि स्थानों में दिगम्बर जैन बोर्डिंग स्थापित किये हैं, धार्मिक विद्या के प्रचारार्थ उदैपुर में एक पाठशाला स्थापित की है और स्याद्वाद पाठशाला काशी, तथा अन्यान्य पाठशाला तथा कार्यों में तन मन धन से सहायता करते रहते हैं वर्षीय धर्मसंक्षिणी दिगम्बर जैन महासभा के ( जंबूस्वामी के मेले ) पर श्रीमान् परम दयालु गुणज्ञ राजा लक्ष्मणदासजी सी० आई० ई० ने भारतवर्षीय तीर्थक्षेत्र कमेटीका कार्य सम्पादन करनेके लिये आप ही को महामंत्री नियत किया था, सो आपने सहर्ष स्वीकार करके सपरिश्रम तन मन धन द्वारा स्वकीय धर्मनिष्ठा से दिगम्बर जैन तीर्थो का सच्चा महदुपकार किया । और सम्मेद शिखर, गिरनारजी, शत्रुंजय, अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ, तारंगा, मांगीतुंगी आदि तीर्थक्षेत्रोंपर कितनी विपत्तियां थीं सो सर्व आपकी पूर्ण सहानुभूति से सहज ही में दूर हो गईं और भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के अधिवेशन ( सहारनपुर ) में सभापति के आसनको सुशोभित करके आपने जैन जातिकी भरसक सेवा की थी । आप ९ वर्ष दिगम्बर जैन प्रांतिक सभा बम्बईकी तन मन और भारतवार्षिकोत्सव For Personal & Private Use Only Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ ] अध्याय ग्यारहवां। धनसे सेवा कर रहे हैं। हमारी न्यायशीला. भारत . गवर्नमेन्टने भी आपको जे० पी० ( Justice of the Peace ) की पदवीसे विभूषित किया है; और आज श्री वात्सल्यादि गुण मंडित दानवीर महानुभाव माननीयका शुभागमन हुआ है। आपके मुखारविंदके दर्शनसे हम सर्व लोगोंको असीम हर्ष हो रहा है। आपने संपूर्ण जैन जातिपर जितने उपकार किये हैं उनके प्रत्युपकार करनेके लिये हम अशक्य हैं। अतः आपकी सेवामें यह तुच्छ अर्पणपत्रिका समर्पण करते हैं। और आशा रखते हैं कि आप इसे सहर्ष स्वीकार करेंगे और सर्व सभा शुद्धान्तःकरणसे कोटिशः धन्यवाद देती हुई परम पूज्य श्री सर्वज्ञदेवसे प्रार्थना करती हैं कि चारों तरफ जैसी आपकी कीर्ति विस्तृत है उसमें दिन दूनी रात्रि चतुर्गुणी वृद्धि होवे और आपको सहकुटुंब चिरायु करें। अलमिति विस्तरेग । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः। कार्तिक वदी ७ । दाहोद ( पंचमहाल ) वीर सं० २ ४३५ । की समस्त पंचानकी तरफसे सेठ चुनीलाल हंसराज, गांधी जैचंद नाथजी, गेबीलाल सुंदरलालजी बगेरे, रात्रिकी सभामें शीतलप्रसादनीने निश्चय और व्यवहार धर्मपर इसलिये कहा कि यहां कई भाई मनसुख दादा श्वे० के उपदेशसे केवल निश्चायावलंबी हो रहे थे । उनको निश्चय साध्य व. व्यवहार परम्पराय साधक है ऐसा बताया । फिर सेठजीके बम्बई बोर्डिङ्गमें रह कर एलएल. बी. पास करनेवाले शा. चंदूलाल मेहता श्वेताम्बरी वकीलने धर्म और स्त्रीशिक्षापर असरकारक For Personal & Private Use Only Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसवा द्वितीय भाग । [ ६०७ व्याख्यान दिया। यहांसे सेठजी ता. ४ को चलकर सूरत होते हुए ता. ६ नवम्बरको बम्बई आए । : इतनेमें कार्तिककी अष्टान्हिका निकट आगई तब सेठजीको विचार हुआ कि इन्हीं दिनों बम्ब प्रान्तिक सभाका अधिवेशन तो मांगीतुंगीपर है और द० म० जैन सभाका कोल्हापुर में है तथा दोनोंका में स्थाई सभापति हूं, दोनों में मुझे कहां जाना चाहिये इस विषय में सेठजीने शीतलप्रसादजी से सम्पति की, तब यही राय रहरी कि कोल्हापुर में प्रदर्शनी व पंचकल्याणकोत्सव है तथा जिम मंदिरकी प्रतिष्ठा है उसे सेठ भूपाल जिरगेने सेठजीकी प्रेरणा से ही निर्माण कराया है इससे कोल्हापुर ही जाना ठीक है । तब शीतलप्रसादजीने कहा कि श्री मांगीतुंगी उत्सव की शोभा आपके विना कुछ न होगी । तब आपने कहा कि हम अपने भाई नवलचंदजी व श्रीमती मगन्बाईको मांगीतुंगी भेजेंगे व आप भी मांगीतुंगी जावें जिससे जल्ला सफलता से हो | कोल्हापुरमें आपके न जाने से कुछ क्षति न पड़ेगी । इसी भांति तय हुआ । सेठजीने नवलचंदजीको बहुत समझाकर मांगातुंगी जानेको सुरत लिखा और आप कोल्हापुर गए । सेठ नवलचंदजी सुरतसे मूलचन्द किसनदास कापड़ियाको साथ लेकर मांगीतुंगी गये । मांगीतुंगी नासिक जिले में २|| मैल ऊँचा जँगलोंके बीचमें एक पर्वत है, यहाँ से श्रीरामचंद्र हनुमानजी, नील, महानील आदि ९९ करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं । इस पर्व के दो भाग हैं। एकको मांगी दूमरेको तुंगी कहते हैं । बहुत ही प्राचीन कालके तीन मंदिर हरएक पर हैं, जिनमें दिगम्बर मांगीतुंगी में प्रां० सभा व सेठ नवलचंदजी | For Personal & Private Use Only Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८] अध्याय ग्यारहवां । जैन प्रतिमाएं कोरी हुई हैं। एक जगह पर पद्मासन मूर्तिकी पीठकी पूजा होती है। यह बलिभद्र बलदेव मुनिकी कही जाती है, जो पांचवें स्वर्ग गए हैं। मांगीतुंगी जाते हुए बीचके पर्वतकी मार्गपर एक दग्धस्थान है। कहते हैं कि श्री कृष्णजीके शरीरकी दग्ध क्रिया यहां ही हुई थी। नीचे १ मंदिर सेठ हरीभाई देवकरण शोलापुरवालोंसे सं० १९१७ में प्रतिष्ठित, दूसरा बार्सीवाले एक सेठका है, तीसरा अधूरा पड़ा था जिसको पूरा बनाने में सेठ पूरणमाह सिवनीने व्यकी मदद की है । सेठ नवलचंदनी एक वर्ष पहले भी यहां हो गए थे तब आपने बार्सीवाले मंदिरमें पत्थर जड़वाया था। - यहां कार्तिक सुदी ११ से १५ ता० २४ नवम्बरसे २८ तक बम्बई दि. जैन प्रान्तिक सभाका सातवां वार्षिकोत्सव था । मनमाड़ स्टेशनसे ३२ मील होने पर भी २००० से अधिक संख्या आ गई थी । शोलापुरसे सेठ हीराचंद रामचंद व कई भाई आए थे । सेट नवलचंदकी तबियत कुछ अस्वस्थ थी तौभी आप गए और वहां सभाके कार्यों में मन लगाकर उद्योग किया। समाके लिये भिन्न मंडप बना था, प्लेटफार्म उचा था । सुदी १२ को २ बजेसे कार्रवाई शुरू हुई। शीतलप्रसादनीने मंगलाचरण किया, तब सेठ गुलाबचंद हीरालाल धूलियाने अपना स्वागतका भाषण पढ़ा । सेठ नवलचंद हीराचंदके प्रस्ताव व रतनचंद मुसावल के समर्थनसे सेठ हीराचंद रामचंदने प्रमुखपद ग्रहण करके अपना व्याख्यान सुनाया। दूसरे दिन मूलचंद किसनदास कापड़िया, सम्पादक दि० जैनने गत वर्षकी रिपोर्ट सुनाई, जिसका अच्छा प्रभाव पड़ा। मार्गशीर्ष वदी For Personal & Private Use Only Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । ६०९ - १ तक सभाकी बैठकों में १५ प्रस्ताव पास हुए जिनमें मुख्य ये थे(१) पुत्र पुत्रियोंको धार्मिक व व्यवहारिक शिक्षा दी जावे । इसको शीतलप्रसादजीने पेश कर के बम्बई प्रान्तके जैनियोंकी शिक्षाकी शोचनीय दशा बताई कि २८०००० पुरुषोंमें केवल ७१४०० पढ़े हुए व २५६०० स्त्रियोंमेंसे ३५८४ ही पढ़ी ( २ ) उपदेशकोंकी आवश्यकता है । हरएक भाषाके ज्ञाता तय्यार हो। इसको मूलचंद किसनदासने पेश किया व सीतलप्रसादजीने समथन किया (३) जैन संस्कार विधिका प्रचार - इसको भी शीतलप्रसादजीने एक व्याख्यान द्वारा स्पष्ट किया । (४) दिगम्बर जैन धर्मानुयायी सर्व जातिया परस्पर खानपान करें। ( ५ ) जातीय समाएं स्थापित हों ( ६ ) औद्योगिक उन्नति के लिये स्वदेशी वस्तुएं काममें ली जावें । इसको सेठ रावजीभाई नेमचंद शोलापुरने पेश किया व शीतलप्रसादजी, मूलचंदजी आदि कई भाइयोंने समर्थन किया । (७) मांगीतुंगी तीर्थ प्रबन्धकारिणी सभा तीर्थका हिसाब प्रगट करें व हर वर्ष करती रहे इसको शीतलप्रसादजीने पेश किया और सेठ नवलचंदजीने समर्थन किया । श्रीमती मगनबाईजी के प्रयत्नसे स्त्रियों में भी उपदेश अच्छा हुआ । वदी १ की रात्रिको भारी महिला परिषद सभापतिकी धर्मपत्नी जीवूबाई के सभापतित्वमें हुई । मगनबाईनी व कस्तूरीबाई जीके व्याख्यान हुए। जैन नियमपोथी और गीतावली पढ़ी हुई बहनों को बांटी गईं। स्त्रीशिक्षा प्रचारार्थ १६५|| ) | का फंड हुआ । कार्तिक सुदी १४ को प्रायः सर्व स्त्री पुरुष यात्रार्थ पर्वतपर For Personal & Private Use Only Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० ] अध्याय ग्यारहवां । गए । सेठ नवलचंदजी भी गए। दोनों पहाड़ोंपर अभिषेक पूना हुई। करीब ६००) की उपज हुई । मांगीसे तुंगी जाते हुए बीचमें एक ऐसी जोखमकी जगह आती है जहां केवल १ आदमी कठिनतासे चल सकता है । इस स्थानपर दोनों ओर पकड़कर जानेके लिये बुद्धिमान् सेठ नवलचंद हीराचंदने ५ वर्ष हुए लोहेके सीकचे व तार लगवा दिये थे, इससे किसीके गिरनेकी जोखम नहीं रही थी। इस पर्वतकी ऐसी महिमा है कि इस दिन एक स्त्री रजस्वला थी तो उसके चारों ओर भ्रमरोंने घेर लिया और ऐसा काटा कि वह बेहोश . हो गई और डोलीसे नीचे लाई गई। ___ सुदी १५ को यहां रथ उठता है, अजैन हजारों आते हैं, अबके ८००० आदमी आए जो पहले पर्वतपर जा बलभद्रकी पीठकी पूजा करते नारियल चढ़ाते फिर नीचे आकर मंदिरोंके दर्शन करते हैं। एक हाथीपर अंबाडी रखकर श्रीजीको विराजमान किया गया था । सभापति प्रतिमानीका सिंहासन लेके आगे बैठे, पीछे महावतके स्थानपर सेठ गुलाबचंद हीरालाल धूलिया, दो छड़ी लेकर दोनों ओर सेठ पीताम्बरदास पारोला ब शा० नेमचंद कस्तूरचंद सूरत तथा दो सुवर्णके चमर लेके दोनों ओर सेठ नवलचंद हीराचंदनी और चिमनलाल जैसिंगभाई अहमदाबाद बैठे । इस सर्वकी ७००) की बोली हुई । सबेरे दोनों मंदिरों में अभिषेकके समय भी ३००) की उपज हुई। १०००० से अधिक जनसमूहके साथ सवारी बागमें गई। वहां अभिषेक हुआ जिसमें ८००) की उपज हुई। इस भीड़में मराठाओंको मदिरा त्यागका उपदेश देनेपर २०० ने नियम लिया। For Personal & Private Use Only Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [६११ सेठ लालसा भीखासा मालेगांवने हरएक नियम लेनेवालेको एक २ नारियल दिया। सभामें अपील करनेका अवसर न आनेपर जब तीर्थका भंडार मगसर वदी १ को लिखा जाने लगा तब सभाके लाभार्थ सेठ नवलचंदनी मूलचंदनी और उपदेशक दीपचंदनीके साथ कई घंटे तक वहां बैठकर सभामें भी लोगोंसे द्रव्य भराते गये । इस उद्योगसे ४०००) जब भंडारमें भरे तब १०००), सभाके खातेमें भी आए। जिसमें सभापतिने २५१) सेठ माणिकचंद पानाचंदने १०१) प्रदान किये। हर वर्ष यहां ५००) की उपज होती थी पर अबके प्रान्तिक सभा व सेठ नवलचंदजीके परिश्रमसे अच्छी उपज हुई। ता. २० नवम्बरसे २४ तक दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभाकी १२ वी परिषद कोल्हापुर में बड़े आनन्दसे कोल्हापुरमें द० म० हुई। चारों ओरसे १०००० जैनी स्त्री जैन सभा और सेठ- पुरुष एकत्र हुए । दानवीर सेठ माणिकचंद जीका १००००)का हीराचंद जे० पी०, सेठ हीराचंद नेमीचंद दान । दोशी, रावजी सखाराम, पंडित दौर्बल्य शास्त्री श्रवण बेलगोला आदि परोपकारी सज्जन भी पधारे थे । पहले दिन सभाके अध्यक्ष श्रीयुत ब्रह्मप्पा मल्लाप्पा तबनप्पवर स्टेशन पर पधारे। स्वागत भले प्रकार किया गया। सभा २॥ बजेसे एक मंडपमें शुरू हुई । स्वागत कमेटीके प्रमुखका भाषण होने पर सभापतिने कनड़ी में व्याख्यान पढ़ा । फिर बोर्डिङ्गके स्थानमें नवीन मंदिर बंधवानेवाले श्रीयुत भूपालराव आप्पाजी जिरगेकी आइल पेईन्टिंग तसबीरके खोलनेकी क्रिया अध्यक्ष द्वारा For Personal & Private Use Only Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२] अध्याय ग्यारहवां । की गई। ता; २४ तक ५ बैठकें हुई जिनमें २१ प्रस्ताव पास हुए उनमें उल्लेख योग्य ये हुए:-(१) अहमदावादमें बांम्बके हमलेसे बचनेके कारण बड़े लार्ड मिन्टोके लिये आनन्द प्रदर्शन करके तार भेजा गया (२) प्राथमिक शिक्षणका प्रसार हो, (३) नवीन कायदे कौन्सिलमें जैन प्रतिनिधि रखनेका बम्बई सारने जो वचन दिया है इसके लिये सर्कारका आभार माना गया, (४) धर्मशिक्षणके प्रचारकी जरूरत। इसको पेश करते हुए सेठ हीराचंद नेमचंदने कहा कि इस महाराष्ट्र देशमें जव १०० में १५ धर्मको जानते, तब उत्तर हिन्दुस्तान में १०० में ७५ हैं, (५) खेती व व्यापार ये जैनियोंके मुख्य धंदे हैं इस लिये इनमें पाश्चात्य विद्याकी सहायतासे नवीन सुधारणा करनेका प्रयत्न जैन लोगोंको करना चाहिये । इसका समर्थन करते हुए सेठ माणिकचंद हीराचंद जे. पी. ने कहा कि कच्छी और माड़वाड़ी लोग अपने देशसे फक्त डोरी और लोटा लेकर आते हैं और इस देशमें आकर थोड़े ही वर्षों में धनवान बन जाते हैं । इस उदाहरणको मनमें लेओ। उन लोगोंको अपने घरमें छुटपनमें ही व्यापारी शिक्षण मिलता है इसी तरह जुमलोग भी पद्धतिसे उद्योग करोगे तो संपन्न हो जाओगे।" वास्तवमें सेठजीके वचन बहुत उपयोगी हैं कारण जो बालकोंको बड़े होने तक भी व्यापार करना नहीं सिखाते हैं वे व्यापार करने लायक नहीं बनते हैं। व्यापार करना भी एक शिक्षा है। जैसे और कला चतुराई शिक्षा विना नहीं आती ऐसे ही व्यापार करना नहीं आसक्ता है। (६) उपाध्यायोंको शास्त्रानुसार रीतियां जानकर संस्कार क्रिया आदि व उपदेशादि क्रियाएं For Personal & Private Use Only Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ६१३ करनी चाहिये । ( ७ ) स्त्री शिक्षा प्रचारार्थ श्राविकाश्रम कोल्हापुरको समाज आश्रय देवै इस प्रस्तावके समर्थन में सौभाग्यवती गोदूबाई उपाध्येने प्लेटफार्मपर आकर भाषण दिया । ( ८ ) समाके कार्यों में द्रव्यकी सहायता की जावे इसका अनुमोदन सेठ माणिकचंदजीने किया और कहा कि जब तुम सभाको द्रव्य न दोंगे उन्नति नहीं हो सकती । तब सभापति महोदयने ५०१ ) दिये, औरोंने भी दिया। इस वक्त सभामें शाहपुर बेलगांव के धर्मराव आप्पाजी सुबेदारकी बहुत प्रशंसा की गई जिन्होंने बेलगांव बोडिंगके लिये २००००) देनेका बचन दिया था | पांचवे दिन सभा में पोलिटिकल एजन्ट व दीवान साहब रघुनाथ व्यंकाजी सबनिस आदि आए। सभा में धन्यवाद देनेका काम चल रहा था । तब सेठ माणिचंदजीने दीवानमाहबको चार शब्द बोलनेके लिये विनती की । तत्र दीवान साहब ने कहा कि ' कोल्हापुरमें जैनी बहुत हैं पर बहुत सुस्त हैं। अब इस परिषद के अविश्रांत खटपट व सेठ माणिकचंदजीके उदार कृत्य से, इन लोगों का लक्ष्य उन्नतिकी तरफ झुका है । हिंसा न करके प्रत्येक उत्तम काम मन बचन कायसे करो ऐसा अपना जैन धर्म कहता है । यह सर्व धर्मापेक्षा विशेष है। "पृथ्वी के सर्व धर्मों में ऐसा कहनेवाला कि हिंसासे निवृत्त हो, यदि कोई धर्म है तो वह एक जैन धर्म ही है । " इतने में महाराज सर्कारकी सवारी समामें आ पहुंची। सेठ हीराचंद नेमचंदने एक प्रशंसनीय भाषणसे महाराजका स्वागत किया । फिर सेठ माणिकचंदजीने महाराजको पुष्पहारादिसे सन्मानित किया । महाराज विदा हो गए। तब सेठ माणिकचंदजीने For Personal & Private Use Only Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ ] अध्याय ग्यारहवां सभापतिको धन्यवाद दिया । आगामी वर्षके लिये श्रीयुत राघोबा आनन्दराव खाड़ेने अध्यक्ष स्थान स्वीकार किया । इस समामें इसी साहूकारने इस बोर्डिंगमें एक व्यायामशाला बनवानेको ५०१) दिये व ५०१) शाहपुरके तवनप्पा आण्णा लेंगडेने होनेवाले बेलगांव बोर्डिंग व्यायामशालाके लिये दिये। ताः २४ को पहली जैन महिलापरिषद सौ० फूलबाई भ्र० रावजी नानचंद गांधी शोलापुरकी अध्यक्षतामें हुई । अनेक जैन व अजैन स्त्रियोंने भाषण कहे। ताः २५ की शामको लेडी मूर मेकेन्झीके सन्मानार्थ सभा हुई । लेडी साहबाने अपने भाषणमें स्त्री शिक्षाकी उत्तेजना दी, कहा कि बालकके माता पिता यदि सुशिक्षित होंगे तव ही बालककी मानसिक शक्ति सुदृढ़ रह सकेगी । इस समारंभमें प्रदर्शनी भी सभाने अच्छी सजाई थी जिसके खोलनेका महूर्त बम्बई सरकारके मुख्य कौन्सलर सर जान मूर मेकेन्झी द्वारा ता: २५ नवम्बर ०९ को बड़े ठाठके साथ हुई। जैन बोर्डिंगके हातेमें मंदिरकी पंच कल्याण पूजापूर्वक प्रतिष्ठा महोत्सवकी विधि कार्तिक सुदी ५ से १३ तक दौर्बल्य शास्त्री द्वारा पूर्ण की गई । इस उत्सवमें सभाको जैनयोंमें जागृत्ति पैदा करनेका अच्छा मौका मिला । सेठ माणिकचंद और प्रोफेसर लद्वेके दृढ़ प्रयत्नसे काम निर्विघ्न समाप्त हुआ । इसी वर्ष सेठजीने अपनी जिन्दगीके १००००) वीमेकी रकम प्रसन्न हो द० म० जैन सभाको प्रदान कर दी। फिर सेठनी वम्बई आए । For Personal & Private Use Only Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [६१५ इन दिनों ऐलक पन्नालालजी इसी तरफ थे। शोलापुर वालोंकी इच्छानुसार आपने अपना केशलोंच शीतलप्रसादजीके मिती मगसर सुदी १ वीर सं० २४३६ ब्रह्मचारी होनेका ताः १३ दिसम्बर १९०९ नियत किया था। कारण। अतः शोलापुरमें बडी तैय्यारियां हो रही थी। - शीतलप्रसादजी मांगीतुंगीजीसे बम्बई आकर एक दिन एकांतमें विचारने लगे कि हे आत्मन् ! अब तेरी स्थिति कैसी है ? तुझे क्या कर्तव्य है ? तुझे इस शरीरमें रहते हुए अनुमान ३१ वर्ष हो चुके । तेरा बड़ा भाई अनन्तलाल ८ मास हुए करीब ३८ वर्षकी आयुमें ही यकायक चलबसे । यदि तुमभी थोड़ी ही उम्र में चल दोगे तो तुमसे कोई भी विशेष लाभ नहीं हुआ । तुम्हारा यह अमूल्य जीवन वृथा ही गया ऐसा होगा। इससे तुम्हें कुछ विशेष काम करना चाहिये । इस समय शीतलप्रसा जीको अध्यात्मिक ज्ञानका मनन रहता था । जिसका कारण यह था कि चौपाटीके संस्कृत ग्रन्थों में श्री कुंदकुंदाचार्य महाराजकृत समयसार ग्रंथकी तात्पर्यवृत्ति टीका बहुत सुगम थी। उसे एक दफे स्वयं समझकर दुवारा श्रीमती मगनबाईजीको बंचवाई व बृहद् , द्रव्यसंग्रह और पंचास्तिकायकी संस्कृत टीकाका भी भाषाकी सहायतासे मगनबाईनीके साथ स्वाध्याय किया था व गोम्मट्टसार जीवकांडकी संस्कृत टीका जो चौपाटीपर थी उसका भी विचार किया था। इससे परिणामोंमें शुद्ध आत्म मननकी कुछ रुचि हुई थी। उस रुचिके ही कारण अनुभवानंद नामका लेख जैनमित्रमें निकलने लगा था । सन् १९०९में कर्मयोगसे शीतलप्रसादनीको For Personal & Private Use Only Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . अध्याय ग्यारहवां । ज्वरकी ऐसी बाधा रही कि बम्बईमें बहुत दवाई करनेपर भी वह दूर न हुई इससे यह लखनऊ गए । वहां १५ दिनमें ही ठीक हो गए । उसी बीचमें इनके मंझले भाई जो कलकत्तमें थे व जिन्होंने अपने उद्योगसे अनुमान एक लक्ष रुपये जवाहरातके काममें पैदा किया था सो लखनऊ आए। शीतलप्रसाद उनसे मिलकर बम्बईको लौटे। रास्ते में इनकी इच्छा अध्यात्मप्रेमी वीरसेन स्वामीसे कारंना जाकर मिलनेकी हुई। यह अकेले भुसावलसे कारंजा गये । वहां गंगादास देवीदास चौरे व प्रद्युम्नकुमारसे आत्मिक चर्चा करके बहुत आनन्द पाया। यहां स्वामी न थे। मालूम हुआ कि सिरपुर ( अंतरीक्ष ) के पास मालेगांवमें हैं। तुर्त वहां गए । तब ही अंतरीक्ष पार्श्वनाथजीके दर्शन किये। वहांसे स्वामी अकोलाकी तरफ चल दिये थे तब यह उसी तरफको आए। वहां मालूम हुआ कि बनारसको रवाना हो गए । तब यह निराश हो अकोलासे बम्बई आए । यहां बंगलेपर जाते ही लखनऊका तार मिला जो यहां पहले ही आ गया था कि अनन्तलालका बोल बंद हो गया जल्द आओ । विश्वास न होनेपर फिर तार किया। जवाब ताकीदीसे बुलानेका आया। फिर यह लखनऊ लौटे। जब यह पहुंचे अनन्तलालका आत्मा वहां न था। वह अन्यत्र जा चुका था शरीर भी स्मशानमें दग्ध हो चुका था । उदास मन उनकी स्त्री और एक छोटीसी कन्या सजीवित थी। मालूम हुआ कि लकवा यकायक गिरनेसे बोलना बंद हो गया। हाथ कांपता था इससे न तो कुछ बोल सकते और न लिख सकते थे। मन में इच्छा होती थी कि कुछ जायदादके विषयमें कहें व कुछ For Personal & Private Use Only Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [६१७ धर्ममें लगावें पर वचन और काय दोनोंकी क्रिया मानसिक भावको प्रगट करनेसे लाचार हो गई थी। अंतमें तडफ़२ कर सिर पटकर कर बहुत दुःखसे ३ दिन ही बीमार रहकर प्राण त्याग दिये थे। धन होनेपर भी एक पैसेका भी दान न कर सके । इस असमय वियोग व अनित्य संसारकी घटनाने शीतलप्रसादके चित्तमें बहुत बड़ा असर जमा दिया और इनको अपने आपकी फिकर पड़ने लगी। सर्वसे बड़े भाई संतलालजी सकुटुम्ब थे। उन्होंने बहुत चाहा कि शीतलप्रसाद सब कारवार सम्हाले और गृह जंजालमें फंसे पर शीतलप्रसादका मन जो । दिनमें माता, स्त्री व लघु भ्राताके वियोगसे पहले ही उदास था, अब इस दृश्यके होनेपर कैसे जम सकता था। १९ व २० दिन बाद शीतलप्रसाद बंबई आगए। और अमृतचंद्र महाराजकृत समयसार कलशोंका अर्थ श्रीमती मगनबाईके साथ विचारने लगे। इन श्लोकोंमें अद्भुत रस है। इनका मनन चित्तको बहुत शान्ति देने लगा । इस दिन ये ही सब बातें याद आने लगीं। मनने कहा कि तू न तो गृही है न त्यागी-यह बीचकी अवस्था अच्छी नहीं। एक तरफ होनाना चाहिये, तुर्त ही श्री महावीर स्वामीका जीवनचरित्र हृदयके सामने आ उपस्थित हुआ कि प्रभुने ३० वर्षकी आयुमें गृहवास छोड़ दिया था इसी लिये कि आत्माके भीतर भरे हुए रत्नत्रय भंडारको प्रकाशमें लाया जाय। तू तो ३१ वर्षका हो चुका । आयुकायका कोई भरोसा नहीं। यह अवसर चुकेगा तो फिर भेद विज्ञान द्वारा आत्मोन्नति करनेका अवसर हाथ आना अति कठिन हो जायगा । ऐसा विचार त्यागकी ओर वृत्ति जमी For Personal & Private Use Only Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ ] अध्याय ग्यारहवां | फिर श्रावकाचारका स्वरूप ध्यानमें ले व देशकालको विचार यही निश्चय किया कि श्रावककी सातवीं प्रतिमा तकके नियमोंका अभ्यास करना चाहिये और उदासीन ब्रह्मचारी होजाना चाहिये । इस समय ऐलक पन्नालालजी सूरत में ठहरे हुए थे। शीतलप्रसादजी दूसरे दिन सूरत गये । एकांत में मिलके अपना हाल कहा व जो २ नियम धरने थे उनको महाराज के सामने लिख लिया - वस्त्र श्वेत व लाल चाहे जैसे उदासीन पहनो, प्रमाणकर द्रव्य रक्खो, तीन काल सामायिक करो, अष्टमी व चतुदर्शीको प्रोषधोपवास करो इत्यादि भोजन पान सम्बन्धी सर्व नियम ठीक कर लिये । उस समय भी शरीर कुछ अस्वस्थ था । ऐलकजीने आज्ञा की कि ब्रह्मचारी होकर शुद्ध भोजन करनेसे तुम्हारा शरीर बिलकुल अच्छा रहेगा । तुम कुछ चिन्ता न करो। शोलापुर के केशलोंच के समय तुम प्रगट रूपसे नियम धार लेना । इस तरह सर्व तरह चित्तकी समाधानी करके शीतलप्रसादजी बम्बई आए और अपना इरादा केवल एक श्रीमती मगनबाईजीसे बताया । बाईजी सदाही से शीतलप्रसाद के परिणामों को आत्महित में स्थिर करती रहती थीं। इस वक्त भी आपने कोई भी अंतरायकी वात नहीं की किन्तु यही कहा कि यदि तुम निर्वाह सको तो इससे बढ़कर दूसरा काम नहीं है । फिर बाईजीने ही उदासीन वस्त्रोंका नया सामान तयार कर दिया । इस बातकी खबर सेठ माणकचंदजीको भी नहीं हुई । For Personal & Private Use Only Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [६१९ सोलापुरमें उत्सवका दिन निकट आगया । इस उत्सवमें सेठजी नहीं गए थे । मगनबाईजी आदि २ सोलापुर में त्यागी दिन पहले पहुंच गये थे। मिती मगसर पन्नालालजीका वदी १५ की रातको मेलमें शीतलप्रसादनी केशलोंच। माता रूपाबाईके साथ एक ही डब्बेमें शोलापुर रवाना हुए। इस रात्रिको बहुत भीड़ थी सो बैठे बैठे ही जाना हुआ। करीब तीन बजेके जब रात्रि हुई तब सर्व डब्बेवाले करीब करीब ऊंघ गये या सुस्त हो गए थे तब शीतलप्रशादनी कुछ गाने लगे-चित्तमें कुछ वैराग्यकी तरंगे उठ आई जिससे १२ भावनाओं का १ मजबून सबेरे शोलापुर पहुंचने तक बनाकर पेन्सिलसे नोट बुकमें लिख लिया ।वे १२ भावनाएं ये हैं--- बारह भावना । (१) अनित्य भावना। है नित्य न कोई वस्तु जान संसारी ॥ याके भ्रममें नित फसे रहें व्यवहारी ॥ तन धन कुटुम्ब ग्रह क्षेत्र क्षणकमें बिनसे ॥ भावो अनित्य यह भाव आत्म चित्त परसे ॥ १ ॥ .. (२) अशरण भावना । कोई न शरण त्रैलोक्य माहिं तुम जानो ॥ नर नारकदेव तिर्यञ्च, काल गति मानो ॥ रे आतम, शरणा गहो पवित्रातमकी । निर्भय पद लहके तजो फिरन गतिगतिकी ॥ २ ॥ . (३) संसार भावना । चउ गति दुखकारी जीव सुक्ख नर्हि पावे । गयो काल अनन्ता बीत छोर नहिं आवे ॥ For Personal & Private Use Only Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० ] अध्याय ग्यारहवां । जिनवरके धर्म बिन ग्रहे सुमग न लखावे ॥ सुख समुद्र है जिन धर्म, भव्य नित न्हावे ॥ ३ ॥ (४) एकत्व भावना । इकले ही जन्मे मरे कर्म फल भोगे इकलो रोवे दुःख लहै पापके जोगे ॥ जब मरे छोड़ सब साथ एकलो जावे ॥ एकाकी आतम सत्य सुधी मन ध्यावे !! ४ ॥ (५) अन्यत्व भावना । हैं स्वारथके सब सगे पुत्र तिय जननी ॥ . बिन टके न पूछे कोय नार मित सजनी ॥ है अन्यं अन्य सब जीव-अणु पुद्गलका ॥ पर मोह छोड लेले तू आसरा निजका ॥ ५ ॥ (६) अशुचित्व भावना । है देह अपावन जगको अपावन करती ॥ मलसे बनकर नवद्वारोंसे मल स्रवती ॥ जिन कीनी यासे प्रीति ठगे जाते हैं ॥ जिन जाना पावन आप मुक्ति पाते हैं ॥ ६ ॥ (७) आश्रव भावना । मन बचन कायका हलन चलन दुखकारी ॥ कर्माश्रव होवे बनें पीजरा भारी ॥ कोई पाप ढेर कोई पुण्य ढेर जोड़े हैं । करे दोनों जो चकचूर स्वफल तोड़े हैं ॥ ७ ॥ (८) संवर भावना । संवर सुबीरने संजम शस्त्र उठाया ॥ आश्रव चोरोंका गृह प्रवेश रुकवाया ॥ समिति गुप्ति दश धर्मके ताले लगाये संतोषसे घरमें बैठ सु आनंद पाये ॥ For Personal & Private Use Only Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसवा द्वितीय भाग। [६२१ (९) निर्जरा भावना । ग्रह देख कर्म मल ढेर भयंकर भारी ॥ ध्यानाग्नि मूल एकादश तप हितकारी ॥ तू मेल्हके ध्यान समाधि अग्नि प्रगटावै ॥ धग धगसे बलै सब कर्म निर्जरा छावै ॥ (१०) लोक भावना। हैं पुरुषाकार अकृत्रिम लोक अनादि ॥ षट द्रव्य दिखावै रूप करें बरबादी ॥ चित रज नभ धर्म अधर्म काल आबादि ॥ तू सिद्ध लोकको खोज रहित दुख व्याधि ॥ १० ॥ (११) बोधि दुर्लभ भावना ॥ चउ असी लाख कोठोंमें फिर फिर आया । पर रत्नत्रयका पता कहीं नहिं पाया ॥ अति दुलर्भ है, निज हृदय बकसका खुलना ॥ सम्यक्त तालिसे खुले बोधित्रय मिलना ॥ ११ ॥ (१२) धर्म भावना । है धर्म आपका रूप उसे नहीं जोवें ॥ पर रूपोंमें निज धर्म जान पत खोवैं ॥ दश धर्म दों संजम तीन रत्न हैं तारक ॥ भावों भावो निज धर्म आत्म उद्धारक ॥ १२ ॥ भावना फल। बारह भावोंको भाव नित्य संसारी ॥ ज्यों रात मिथ्यातम मिटे प्रभा हो जारी ॥ आतम सूरजका भेद ही ज्ञान उजियाला ॥ जिसके प्रगटेत पीवै अमृत प्याला ॥ १३ ॥ ज्यों ज्यों स्वतृप्तता बढ़े विषय सुख भूले ॥ चारित्र नाग तिस घरके द्वारपर झूले । For Personal & Private Use Only Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ ] अध्याय ग्यारहवां । चढ़चले सुगम पद धरे मोक्ष वस्तीको ॥ पहुंचे शिव तियको मिले तजे हस्तीको ॥ १४ ॥ यह छन्द अघहन दो चौ त्रय छेमें गाये ॥ बदि पंदरस परथम सांज मगमे उपजाये || मन वचन शुचिकरि जो नरनारी गावे ॥ सुखोदधिमें डूब सब चित्त विकार मिटावे ॥ सवेरे शोलापुर पहुंचे । सेठ हीराचंद नेमचंद के मकानपर ठहरे। यहां श्रीमती कंकुबाईजीको ही पहले यह खबर हुई थी और शोलापुर में किसीने नहीं जाना । मगसर वदी १ के दिन शहरके बाहर एक बड़ा भारी मंडप बनाया गया तथा श्री जिनेन्द्रदेवकी प्रतिबिम्ब रथद्वारा लाकर अलग मंडप में विराजमान की गई थी। ८ बजे सवेरे ही १५००० नर नारी अपने स्थानपर बैठ गए थे । इनके बिठाने व शांत करनेको शोलापुर के सेठोंके पुत्र नवयुवक वालन्टियर होकर चारों ओर खड़े थे । जिससे सब चुप और शांत थे प्रबन्ध बहुत अच्छा था । ऐलकजी महाराज उच्च आसनपर एक पत्थरशिला पर पद्मासन विराजमान हुए । प्रथम भजन हुए, फिर शोलापुर पाठशाला के एक विद्यार्थीने पंडित सदासुखजी कृत सोलह कारण भावनामेंसे शक्तिस्ता नामकी भावनाको मराठीमें बडी ही शांतितासे सुनाया । सेठ जीवराज गौतम केशलोंच की महिमा सूचक छा पत्र पढ़ा, जो वितीर्ण किया गया था । सेठ हीराचंद नेमचंदजीने ११ प्रतिमाओंका स्वरूप, केशलोंच की महिमा और विद्यादानकी सर्वोत्कृष्टता बताई। फिर ऐलक महाराजने मनुष्यजन्मकी दुर्लभता बताते हुए शीलव्रत धारने व दान धर्म करनेका उपदेश दिया । तब बहुतोंने परस्त्री त्याग व्रत लिया व For Personal & Private Use Only Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग। [६२३ पोंके दिनोंमें पूर्ण शीलवत ग्रहण किया । तब एक भाईने कहा कि आज इस नगरके हिन्दू मुसलमान सबने पशुवध करना बंद किया है तथा धीवरोंने ३ दिन तक मछली पकडना बंद रक्खी है। फिर शीतलप्रसादजीने त्यागीजीके व्याख्यानको दुहराते हुए दानार्थ प्रेरणा की तथा प्रगट किया कि सेठ हरीभाई देवकरण शोलापुर श्राविकाश्रमके लिये ७०००) प्रदान करते हैं उसी तरह यहांकी पाठशाला यदि ऐलकजीके नामसे हो जावे तो महाराजकी स्मृति रहे। इसमें आपलोग सहायता कर प्रबन्ध करें। इसका समर्थन कोल्हापुरके बुगटे महाशयने किया तथा किसीने हजार किसीने ५००) इस तरह बातकी बातमें १२०००)का चंदा दि० जैन पाठशालाके लिये होगया। एक अजैन मिलके मालिकने भी हर्षित हो ५००) रु० दिये । यह दानका प्रवाह रात्रि तक जारी रहा । इस अवसरपर सेठ नाथारंगजी गांधीने जो ५००००) का उपयोगी दान पहले कर चुके थे ९०००) और जैन बोर्डिंग शोलापुरमें अर्पण किये । तथा धाराशिवके शेठ नेमचंद वालचंदने प्राचीन जैन ग्रंथोंके जीर्णोद्धारके लिये ७०००) दान किये । ७५०) अमरावती जैन बोर्डिंगके लिये हुए व ३००) के करीब बोधेगांवके भाइयोंको दिये गए । दानकी अनुमोदना करके शीतलप्रसादजीने ऐलक महाराजके सामने अपना प्रतिज्ञापत्र शीतलप्रसादजी रक्खा तथा प्रार्थना की कि मैं ब्रह्मचर्य ब्रह्मचारी प्रतिमाके नियम धारना चाहता हूं। हुए। ऐलकजीने आज्ञा दी। तब शीतलप्रसादनी मंडपसे बाहर गए । इधर ऐलकजीने करीब ९॥ के केशलोंच शुरू किया। इसी बीचमें शीतलप्रसादजी, जो For Personal & Private Use Only Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ ] अध्याय ग्यारहवाँ। पहिले बाबूके लिवासमें थे अब गेरुए रंगका मुरेठा, धोती, चादर व रूमाल लेकर ऐलकजीके प्लेटफार्म पर आकर बैठ गए। . .. .... पौन घंटेमें केशलोंच समाप्त हुआ। सर्व लोग इस दृश्यसे वैराग्य में भर आए। इसी समय सेठ रावजी नानचंदने ९ लाख रु. के परिग्रहका नियम लिया । शोलापुरमें बड़ी भारी धर्म प्रभावना हुई । उसी दिन स्त्रियों की सभामें श्रीमती रखाबाई, कंकुवाई तथा मगनबाईजीके धर्मोपदेशसे ५००) का चंदा पाठशालाके लिये हुआ। शोलापुरमें यह पाठशाला श्रीमान् ऐलकजीके प्रतापसे ५००००) से अधिक फंडको रखनेवाली बहुत उत्तम प्रकारसे चल रही है। ऐलकजीने शोलापुर जिले में घूमकर पाठशालाके फंडके लिये द्रव्य एकत्र कराने में बहुत परिश्रम उठाया । शोलापुरके लोगोंको शीतलप्रसादजीके ऐसे यकायक परिवर्तनसे आश्चर्यके साथ आनंद भी हुआ। अब शीतलप्रसादजी नियमित रूपसे सामायिक आदि क्रिया करने लगे, एक दफे शुद्ध भोजन लेकर संतुष्ट रहने लगे। ऐलकनीकी संगतिमें दो दिन टहरे । फिर आज्ञा लेकर बम्बई आए । __अब यह चौपाटी बंगलेमें न ठहर कर हीराबाग धर्मशालामें हरे । सेठ माणिकचंदनी सुनते ही धर्मशालामें आए। और देख कर कायदेसे वन्दना की, हाथ जोड़े और आंखोंमें आंसु लाकर कहने लगे कि आपने मुझे कुछ खबर नहीं की नहीं तो हम बड़ा उत्सव करते । आपने जो यह व्रत ग्रहण किया है सो मुझे बड़ा आनन्द है। आप अच्छी तरह इसे पालिये पर मुझे जो आप For Personal & Private Use Only Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमान् जैन धर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी ब्रह्मचर्यवस्था में.. For Personal & Private Use Only (देखो पृष्ठ ६१५ ) Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwwwwwwwwwwww महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ६२५ सहायता देते थे उसमें कभी कमी न कीजिये मेरा काम सब धर्मका ही काम है। मुझे आपने धार्मिक कामोंमें बहुत मदद दी है पर जब तक मैं जीवित हूं तब तक मुझे आप मदद करेंगे तो मैं कुछ भी धर्म व जातिकी सेवामें अपने मन, बचन, कायको लगा सकुंगा । शीतलप्रसादनीने कहा कि मेरे इन नियमों के धारनेसे आपके काममें किसी प्रकारकी वाधा नहीं पड़ेगी । आप निश्चिन्त हो जसे धर्मकार्य करते थे वैसे ही करें। मुझसे जहाँतक बनेगा आ की सहायताको तैय्यार रहूंगा । आपका जो काम है सो मेरा ही है। इस तरह कहनेसे सेठनीको बहुत सन्तोष हुआ वास्तव जबतक बाह्यमें निवृत्ति मार्गको धारण नहीं किया नाताक चित्तके संकल्प विकल्प नहीं मिटते । तथा जबतक निय तिज्ञा नहीं होती तबतक मन चन्दर व इन्द्रिय काबूमें नहीं आती जबतक मन और इन्द्रिये स्थिर न हों तबतक ध्यान स्वाध्याय नहीं हो सकता। और जबतक ध्यान स्वाध्याय नहीं हो तबतक इत्मोन्नति नहीं हो सकती। इस आत्मोन्नतिकी तरफ लक्ष्य धरना यही सर्वसे पवित्र काम मनुष्यके जीवनका है। इसके पथपर चलना और इसके विराधक काम, क्रोध, लोभ, मोह, शत्रुओंको विजय करते जाना यही वीरता व वीर पुरुषका कार्य है । आस्माकी उन्नति केवल बातें बनानेसे व अपनेको ज्ञानी व अकर्ता मान लेनेसे नहीं होती। ज्ञानपूर्वक रागद्वेषादि विकारोंको जब हटाया For Personal & Private Use Only Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ ] अध्याय ग्यारहवां । जायगा तब ही आत्मध्यान होगा । आत्मध्यान है मो ही आत्मोन्नतिका सोपान है। कहा है तव सुद् वद वञ्जेदा झाण रह धुरन्धरो हवे जह्मा । तम्हा तत्तिय णिरदो तल्लद्धीए सदा होह ॥ (द्रव्यसंग्रह) भावार्थ-जो तप करे, शास्त्र जाने, व्रत धारे सो ही ध्यान रूपी रथकी धुरीको धर सकता है। अतएव ध्यानकी सिद्धिके लिये इन तीनोंमें अर्थात् तप, शास्त्र औ वतोंमें सदा हीन रहो। For Personal & Private Use Only Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तसेवा तृतिय भाग। कां अध्याय। HODHEER:जातिसेवा तृतिय भाग । मान् सेठ माणिकचंदजी ऐसे पुरुषों में नहीं थे कि जैसे प्रायः वे ज़मीदार लोग होते हैं जो तकियेके सहारे पड़े हुए अपना अमूल्य जीवन बिताते हैं और जिनके गावों की बंधी हुई आमदनी चली आती है, अथवा जैसे वे पेन्शन याफ्ता होते हैं जो सर्कारसे माहवारी लेकर घरमें पड़े हुए बच्चोंको खिलाया करते, चौसर सतरंज खेला करते व आलस्यमें पड़े हुए इधर उधर करवट बदला करते हैं । सेठजी एक कर्मवीर महान आत्मा थे। जिनको अपने जागनेके समयसे रात्रिके शयनके समय पर्यंत जातिहित, देशहित, जगतहितका ध्यान था। जिस दिन सेटजो सबरे कुछ न कुछ जातिसेवा सम्बन्धी विचार, खटपट व दौड़धूप नहीं कर लेते, थे तबतक उनको रोटी खाना अच्छा नहीं मालूम होता था। इस समय सेठजीकी अवस्था अनुमान ५८ वर्ष की थी। पैरमें चोट थी ही, तौभी साहस व उत्साह २५ वर्षके युवानके समान था । ठंडकमें पैर देर तक रहनेसे आपके सांधेमें दर्द हो जाया करता था तौभी कभी उसके पीछे पड़ नहीं रहते थे। अपने समयको वृथा न खोकर उपयोगमें लगाए रखना सेठजीके जीवन का मुख्य उद्देश्य था। For Personal & Private Use Only Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ 1 अध्याय बारहवां बहुत दिनोंसे सेठनी इस चिन्तामें थे और आगरा कालेज़ोंमें सेठजीका पंजाबमें छात्र बहुतायतसे पढ़ते | गमन । रहे । लाला लाजपतरायके समीप ___ जन्म लेकर भी जैनधर्मको न! न हो। इसीलिये इन तीनों स्थानोंमें आपका उद्योग जार आगरा और प्रयाग तो एक दफे आप दौरा भी कर आए थे, पर लाहौर नहीं गए थे। लाहौर में बाबू रामलाल सब-डिवीजनल अफसरसे बहुत दिनोंसे पत्रव्यवहार चल रहा था। सन् १९०९ दिसम्बरमें लाहौरमें राष्ट्रीय कांग्रेस होना निश्चित हुआ तथा इसी समय जैन यामेन्स एसोसियेशनका वार्षिकोत्सव भी निश्चित हुआ। तब बाबू रामलालने सेठनीको लिखा कि यदि ऐसे समयपर आप यहां पधारे तो शायद बोडिंगका कुछ प्रबन्ध हो सके । सेठजीने शीतलप्रसादजीको यह बात बयान की । शीतलप्रसादनीने सेठनीको पुष्ट किया कि आप अवश्य चलें । आपके पधारनेसे अवश्य कार्य की सफलता होगी। शोलापुरसे लौटनेको एक सप्ताह ही बीता था कि शीतलप्रसादनीको लेकर सेठजी लाहौरको रवाना हुए। साथमें प्रोफेसर ए० बी० लटे एम० ए० को भी लिया। ता० २३ दिसम्बरको मेलसे चलकर ताः २४ को ललितपुर आए। -शीतलप्रसादजीके निमित्तसे एकदम नहीं जा सकते थे। पहले तार कर दिया था सो सेठ मथुरादास टडैयाने भले प्रकार स्वागत किया। शहरसे बाहर क्षेत्रपाल स्थानपर ठहरे । यहांका जिनः मंदिर बहुत रमणीक है । थोड़े दिन हुए महोबेमें कुछ प्राचीन For Personal & Private Use Only Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जाति सेवा तृतिय भाग । ६२९ प्रतिमाएं मिली थीं जो सर्कारके कब्जे में थीं । राजाराम बांदाकी प्रेरणा से तीर्थक्षेत्र कमेटी और भारतवर्षीय दि० जैन महासभाने लिखा पढ़ी करके छोटे लाट युक्तप्रान्तकी आज्ञासे उन प्रतिमाओंको प्राप्त किया । उनमेंसे श्रीअभिनन्दननाथकी करीब १२०० के सम्वत् की बहुतही ध्यानाकार २ || हाथ ऊंत्री पद्मासन प्रतिमाको सेठ मथुरादासजीने लाकर यहां विराजमान की । शेष बांदा में रहीं। रात्रिको पाठशालाकी परीक्षा ली। यहां इस समय स्याद्वाद पाठशाला काशीसे विशारद परीक्षोत्तीर्ण पं० व्रजलाल हो मास से अध्यापक थे। सेउ माणिकचंदनी ने सेठ मथुरादासजीको बहुत उपदेश किया कि आप यहां एक छात्रालय खोलें, उसमें बुदेलखंडीय छात्रोंको रखकर संस्कृतादि पढ़वावें । शहरके लड़के विशेष नहीं पढ़ते । उनका विद्वान् बनना कठिन है । शास्त्रसभा में कुछ भाइयोंने स्वाध्यायका नियम लिया । . यहांसे ताः २५ को चलकर सीधे ताः २६ को लाहौर आए । भावड़ा गली के दिगम्बर जैन मंदिरके निकट एक मकान में लाहौरवालोंने बड़े सम्मान के साथ ले जाकर सेठजीको ठहराया। ता: २६ और २७ को एसोसियेशन के अधिवेशन हुए । इनमें एक दिन शीतलप्रसादजीने श्रावक धर्म, प्रोफेसर लट्ठेने जैनधर्मका महत्व और पं० अर्जुनलाल सेठी बी० ए०ने कर्म सिद्धान्तपर व्याख्यान दिये । सेठजीने बहुन से इंग्रेजी पढ़े जैनियों को स्वाध्यायका उपदेश देकर छः ढाला दौलतरामकृत याद करनेको कहा तथा जिसने स्वीकार किया उनको इसकी प्रतिये व जैन लाहौर दि० जैन बोर्डिंगका प्रबन्ध For Personal & Private Use Only Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० ] अध्याय बारहवां। नियमपोथी बांटीं। पहलीका उल्था शीतलप्रसादनीने श्री गजपंथाजीमें अपनी बीमारीकी हालतमें वीर सं० २४३५ मार्गसीर्ष सुदीमें किया था व नियमपोथी श्रीमती मगनबाईजीकी प्रेरणासे रची थी, ताकि जैनियोंमें नियमोंके ग्रहणका प्रचार हो। इन दोनोंको मुफ्त बांटनेके लिये सेठजीने छपवा लिया था। ताः २७ की रात्रिको दिगम्बर जैनियोंकी खास बैठक हुई इसमें दिगम्बर जैन ग्रेजुएट एसोसियेशन स्थापित होने का प्रस्ताव हुआ । श्वे. ताम्बरी जैनियोंमें ऐसा एक श्वे. जैन ग्रेजुएट एसो० है जिसके द्वारा श्वे० समानका बहुत कल्याण होता है। अपने दिगम्बर समाजकी सेवामें मुख्यतासे दिग० जैन पढ़े हुए ध्यान देवें इसलिये सेठजीके पूर्ण प्रयत्नसे इसका प्रस्ताव हुआ व प्रोफेसर लढे मंत्री नियत हुए । खेद है कि इसकी अबतक कोई अमली कार्रवाई न हुई। इसी समय सेठनीने पंजाबमें बोर्डिगकी आवश्यक्ता प्रगट की। सर्वने पसन्द किया तथा तय हुआ कि एक वर्षका चंदा लाहौरवाले जमाकर बोर्डिंग चलावें, फिर पंजाबके सर्व स्थानोंसे चंदाका खास प्रबन्ध किया जावे । उसी समय सेठ माणिकचंदजीने १ वर्षके लिये २५) मासिक दिया, ऐसा ही २५) मासिक लाला जियालाल खनांची बंगाल बैंकने दिये, यही मैनेजिंग कमेटीके सभापति और कोषाध्यक्ष नियत हुए। उसी समय १४०) मासिकका प्रबन्ध हो गया। मंत्री बाबू रामचंद्र एम० ए० व उपमंत्री बाबू शामचंद बी० ए० बी० एस० सी० मास्टर सेन्ट्रल ट्रेनिंग कालेन नियत हुए। ता० ३१ दिसम्बरको मेनेजिंग कमेटीकी बैठक हुई जिसमें मुख्य दो नियम रक्खे गए-कि सर्व छात्रोंको धार्मिक शिक्षा लेनी For Personal & Private Use Only Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतिय भाग। ६३१ होगी व बोर्डिगमें चैत्यालय रक्खा जाय ताकि सर्व छात्र नित्य दर्शन करें । छात्रोंको धार्मिक व्याख्यानोंको देनेका काम लाला प्र. भूलाल और मुरारीलालनीने लिया । सेठजीने शहर में घूमकर कई मकान देखकर बोर्डिंग के लिये छोटे और खोलनेके लिये १ मासका समय दिया गया । यहांसे ता: १ को चलकर अमृतसर आए । लाला उमैदसिंह मुसद्दीलालने ठहरानेका प्रबन्ध किया था। यहां अमृतसरमें सेठजीका १४ घर दि.जैनियोंके हैं। कई लक्षपति मारप्रयास। वाड़ी हैं जैसे रामलाल, गनपतराय, परन्तु धर्मसे प्रेम नहीं है। एक जैन मंदिर है, उसमें दि० जैन प्रतिमाएं हैं परन्तु लोग दर्शन नहीं करते । अलग मंदिरके लिये चंदा ४५००) हो चुका है पर बना नहीं है । सेठनीने बहुत प्रेरणा की । ता: २ को गुजराती मित्र मंडल लाइब्रेरीके मेम्बरों और स्थानकवासी जैनियोंने सेठजीके सन्मानार्थ सभा की । धर्मोन्नतिपर प्रो० लट्टे और शीतलप्रसादजीने व्याख्यान दिया। यहां स्थानकवासी जैन पाठशालाको सेठनीने १०) की मदद दी व लाइब्रेरीमें पुस्तके भेजना स्वीकार किया। यहां सेठजीने नानक शाही सुनहरी मंदिर देखा। ता० ३ जनवरीको दिहली आए पहाड़ी पर लाला दिहलीमें जैन हाई जग्गीमलजीके कमरेपर ठहरे। यहांकी २ शालाओंका निरीक्षण कर सेठजीने छात्र लकी प्रेरणा। व छात्राओंको मिठाई वितरण की। शामको शहरकी कन्याशाला देखी। ५) का इनाम दिया। ता० For Personal & Private Use Only Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ ~ ~ ~ ~ अध्याय बारहवां । . ४ की रात्रिको पहाड़ी धीरजमें आम सभा हुई, जिसमें प्रो० लडे और शीतलप्रसादनीने धर्मपर व्याख्यान दिया । ता० ५ की रात्रिको शहरमें लाला मगुनचंदके मंदिरनीमें सभा हुई । इसमें उक्त दोनों महाशयोंने मिथ्यात्व, अन्याय और अभक्ष्य त्यागपर उपदेश दिया । बहुतसे भाइयोंने वेश्यानृत्य न करानेका व पर स्त्रीत्यागका नियम लिया। सेठ माणिकचंदनीने विद्योन्नतिपर कहते हुए दिहलीमें जैन हाईस्कूल और बोर्डिङ्गकी आवश्यक्ता बताई। यहांसे चलकर ताः ६ को आगरा आए। ताः ७ को मोती कटरे के बड़े मंदिरजीमें आम सभा आगरा बोर्डिंगका हुई । शीतलप्रसादजीने बोर्डिंगकी आवश्यक्ता प्रबंध । बताई । इसका समर्थन भा० दि० जैन महा सभाके महामंत्री मुशी चम्पतराय, प्रोफेसर लढे और सेठ माणिकचंदनीने किया । सेठजीने ४०००) भेनकर हरिपर्वतके पास जमीन पहले ही ले दी थी। रायबहादुर घमंडीलालने कहा कि आगामी पौष सुदी ६ को चौधरी मोतीलालके हाथ मुहूर्त बोर्डिंग मकान बनानेका करा दिया जायगा। कमेटीके उपमंत्री बाबू अमृतलाल बी० ए० नियत हुए। चंदा देनेकी प्रेरणा करके सेठजी यहांसे बम्बई आगए। श्रीमान् सेठजीकी धर्मपत्नी नवीबाईजीको कई मास पहलेसे गर्भ था। सेठजीको निराशा ही थी कि पुत्रसेठजीको पुत्रका का लाभ होना कठिन है। आपकी निरालाभ । शाका बहुत बड़ा उदाहरण यह है कि एक दिन शीतलप्रसादजीसे आपने कहा कि मैंने अपनी स्त्रीके लिये बहुत कुछ जायदाद अलग करली है, पुत्रका For Personal & Private Use Only Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतिय भाग। [६३३ लाभ तो मुझे होना ही नहीं है। मेरे तो बोर्डिंगके छात्र हैं सो ही मेरे पुत्र हैं। मगनबाई व ताराबाईको बीत २ हजारकी जायदादके मकान दे चुका हूं। ऐमा ही बड़ी कन्याको दिया है। यद्यपि वह मर गई है परन्तु उनकी पुत्री कमला है। अब मुझे कुछ और दान करना है । जुबलीबागमें ११००) मासिकके भाड़े की आमदनी है इसको मैं अपने जीतेनी रजिष्ट्री करके पक्काकर दूं। यह बात होकर आपने किस२ मद्देमें देना सो खूब सोच बिचारकरे वकीलसे ट्रष्टका मसौदा ठोक करा शीतल प्रसादजीके साथ रजिष्ट्रारके यहां जा रजिष्टरी करा दिया था । पुण्य योगले मिती पौष सुदी १ सं० १९६६ व वीर सं० २५३६ ता० १२ जनवरी १९१० के दिन सेठानीने एक पुत्ररत्नको जन्म दिया । सेठनीको कुछ आनन्द तो हुआ पर उसके जीवनकी आशा नहीं इससे कोई विशेष न किया । क्योंकि एक पुत्र थोड़े ही दिन पहले प्राणान्त हो चुका था पर सेठजी का पुण्य तीव्र था कि आपने अपने मरण समय तक इस पुत्रको सजीवित खेलता हुआ देखा । यह पुत्र जीवनचंद अब अपनी माताकी रक्षामें शिक्षा पारहा है। सेठजी मांसाहार रोकनेके लिये अच्छी २ विलायतकी छपी पुस्तकोंको बांटा करते थे। कलकत्तानिवासी सेठजीके द्वारा महान् बाबू रज्जूलाल जैनी जब यात्रा करते हुए लाभ । बम्बई आए तब उनको उत्साही व उद्योगी जानकर (Uric acid) यूरिक एसिड नामकी पुस्तक दी थी। उक्त रज्जूलालने वह पुस्तक बेचूलाल चैरीटेबल डिस्पेन्सरीके डाक्टर आशुतोष बनर्जी एल. एम. एस. को पढ़नेको For Personal & Private Use Only Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय बारहवां । दी । डाक्टर साहबको अब तक मांस व मत्स्यका त्याग न था, पुस्तक पढ़नेसे ऐसी घृणा हुई कि डाक्टर साहब और उनकी पत्नी दोनोंने मांस मत्स्यका खाना त्याग दिया। इन अभक्ष्योंके छोड़नेसे डाक्टर साहबकी कई बीमारियां जाती रहीं । सेठनीने सुनकर बड़ा आनन्द माना। मिती पौष शुल्क १४ वीर सं० २४३६ को बम्बई मारवाड़ी मंदिरमें सभा हुई । उसमें दक्षिणकी यात्रासे बम्बईमें आम सभा । लौटकर आए हुए अलीगढ़निवासी पंडित श्रीलालजीका व्याख्यान धर्मकी महिमापर हुआ। इसी दिन भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाके वार्षिकोत्सवके लिये जो श्रीसम्मेद शिखरजीपर माव सुदी १ से ५ तक होनेवाला था, बम्बई दि. जैन पंचायतकी तरफसे सेठ माणिकचंद हीराचंद जे. पी, ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी, पं० धन्नालालजी, लाला प्रभुदयालजी आदि प्रतिनिधि चुने गए । माघ कृष्ण २ को हीराबागमें बिलसन कॉलेनके संस्कृत प्रोफेसर श्रीयुत हरि महादेव भड़कमकर बी० ए० के सभापतित्वमें सेठजीने सभा करवाई। इसमें पंडित श्रीलालजीने जैनधर्म ही जीवका कल्याणकारी धर्म हो सकता है-ऐसा सिद्ध किया। श्रीमन्त सेठ पूरणप्ताह सिवनी छपारा मध्यप्रदेशने श्री शिख रजीकी तेरापंथी कोठीमें एक नवीन जिन सम्मेद शिखरजीमें मंदिर तैयार कराकर उसकी बिम्बप्रतिष्ठा महासभा । कराई थी। इसकी बड़ी धूम हुई । मेले में ___ ३०००० से अधिक मनुष्य आए थे । विद्ववर पंडित नरसिंहदासजीके द्वारा बिम्बप्रतिष्ठाका समारम्भ एक बड़े For Personal & Private Use Only Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतिय भाग । भारी मंडपमें विधिपूर्वक हुआ। सभी प्रान्तोंके धनवान, विद्वान् व परोपकारी आगए थे। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाका १४ वां वार्षिकोत्सव माघ सुदी १ ता० १० फर्वरी १९१० से प्रारम्भ हुआ। इस जल्सेके लिये श्रीमान् सेठ हुकमचंदजी इन्दौर निवासी सभापति नियत हुए थे सो माघ वदी ३० ता० ९ फर्बरीको गाजेबाजे के साथ अपने पुत्र हीरालालके साथ १ हाथीपर विराजमान हो आए। सर्व भाइयोंने स्वागत करके मनोज्ञ डेरेमें ठहराया। बम्बईसे सेठ माणिकचंदजी, ब्र० शीतलप्रसादजी, मूलचंद किसनदास कापड़िया-सम्पादक दि, जैन भी आए थे । २॥ बजे दिनको जल्सा शुरू हुआ। पहले ही श्रीमान् पंडित गोपालदासजीने मंगलाचरण किया । फिर महामंत्री मुंशी चम्पतरायजीने सभापति होनेके लिये सेठ हुकमचंदजीका प्रस्ताव किया। इसका समर्थन श्रीमन्त सेठ मोहनलाल खुरई और श्रीमान् सेठ माणिकचंद हीराचंद जे. पी. ने किया। सेठजीने अपना भाषण पढ़कर १००००) महासभाके प्रबन्ध खाते में दिये। कुल बैठकों में १९ प्रस्ताव पाप्त हुए, जिनमें मुख्य ये थे-(१) सर्कारसे प्रार्थना-कि बड़े लाटकी धारा सभामें जैन जातिका प्रतिनिधि नियत किया जावे जैसा कि ता० १९-१०-०९ के पत्रमें आशा दिलाई गई है । व इसका तार भेना जावे, (२) ११ प्रतिमाधारी ऐलक पन्नालाल और ब्रह्मचारी शीतलप्रसादके साहसपर हर्ष, (३) जैन बैंक खोला जावे, (४) वाइसरायसे प्रार्थना की जाय कि भादों सुदी ५ और १४ को जो दिगम्बरियोंके महान पवित्र दिवस हैं, तमाम भारतमें नाहर छुट्टी मनाई जावे, (५) सभापति-दानवीर सेठ माणिकचंदजी व महामंत्री सेठ हुकमचंदनी और कोषाध्यक्ष मुंशी चम्पतरायनी For Personal & Private Use Only Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६] अध्याय बारहवां हुए। इनको महामंत्रीके पदसे १ वर्षको छुट्टी दी गई, (६) श्वेताम्बर दिगम्बरोंके परस्परके तीर्थ सबंन्धी झगड़ों को तय करनेके लिये यदि श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेंस पंच नियत करके भेन दे तो महासभा भी अपनी तरफसे पंच नियत कर देगी। वसंत पंचमीके दिनकी बैठक में प्रस्ताव हुआ कि सेठ माणिकचंद हीराचंद जे. पी० के अद्भुत कार्यकी कदर -सेठजीको दानवीर जैन करके 'दानवीर जैनकुलभूषण' का कुलभूषणका पद। पद अर्पण किया जावे व मुंशी चम्पतरायने १४ वर्ष तक जो समाजसेवा की है उसके उपलक्ष्यमें "जैन जातिभूषण" का पद दिया जावे । पंडित गोपालदासने आशीर्वाद सूचक शब्द कह कर नारियल और निम्नलिखित मानपत्र दोनों परोपकारियों की सेवामें भेट किया। नकल मानपत्र (महासभा) श्री बीतरागाय नमः। स्थान श्री समेदशिखरजी, मधुवन पो० पारसनाथ (हजारीबाग) श्री वीर निर्वाण संवत् २४३६. मिती माघ शुक्ला ५. १४ फेब्रुवरी १९१०. सन्मानपत्र। भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभाकी तरफसे श्रीमान् दानवीर सेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० जौहरी बम्बईनिवासीकी श्रीयुत मान्यवर महोदय, सेवामें अर्पित । ___ आपने इस दिगंबर जैन जाति और पवित्र जैनधर्मकी उन्नति करनेमें जो अपना तन, मन और धन लगाकर असीम परिश्रम उठाया For Personal & Private Use Only Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतिय भाग। [६३७ है तथा अब भी उठा रहे हैं इससे समस्त दिगंबर जैन समूह आपका अंत:करणसे कृतज्ञ है। आपने अपने बुद्धिबल और अटूट परिश्रमके द्वारा न्यायपूर्वक व्यापार करके जो प्रचुर सम्मत्ति उपार्जन की तथा उसमें से कई लक्ष रुपयोंसे ममत्व छोड़ उसको मुख्यतया छात्रालयों के द्वारा विद्यादान और धर्मशालादिके द्वार। अभयदानमें व्यय किया तथा धर्मायतन, तीर्थक्षेत्र और जैन मंदिरोंके रक्षार्थ अकथनीय परिश्रम उठाया तथा द्रव्य खर्च किया इत्यादि अनेक शुभ कृत्य करके आपने शास्त्रोक्त गृहस्थ धर्मका पालन किया है। यह बात सब जन समूहके लिये अनुकरणीय है। आपने लक्ष्मी उपार्जन करके भी कभी अपने धार्मिक नित्य नियमको नहीं छोड़ा तथा स्वयं शास्त्राभ्यासी रहकर अपनी सन्तानको भी प्रसिद्ध सद्विद्या रत्नसे विभूषित कर अपने रत्नस्वामित्वको सार्थक किया है। आपके इन्हीं सदकृत्योंपर मोहित होकर गवर्नमेंटने जे० पी० (Justice of Peace ) की तथा श्री दक्षिण महाराष्ट्र जैन समाने दानवीरकी पदविएं प्रदान की हैं, और यह भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा आपके उपकारकी ओर अपनी भक्ति प्रकट करनेके लिये आपको उन पदविओंसे मी विशेष " जैन कुलभूषण" की सुपदवीसे सम्मानित कर अपना हार्दिक प्रेम पुष्प अर्पण करती है। आशा है आप इसे स्वीकार कर जैनसमाजको कृतार्थ करेंगे। द. हुकमचंद ___सभापति भारतवर्षीय दि० जैन महासमा । For Personal & Private Use Only Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ ] अध्याय बारहवां | सेठ माणिकचंदजीने अपनी लघुना प्रगट करते हुए उपरोक्त मानपत्र स्वीकार करके ५०१) महासभा के प्रबन्ध खाते, १०१ ) जयपुर जैन शिक्षाप्रचारक समिति व १०१ ) महासभाकी लाइफ मेम्बरीको दिया । डिप्टी चम्पतरायजीने भी अपनी आधीनता बताई और ५००) की छात्रवृत्तियां उन छात्रोंको देने को कहा जो पंडित गोपालदासजी के पास धर्मशास्त्र पढ़ेंगे । प्रबन्ध खाते में और भी मदद आई (बाबू किरोड़ीचंदजी आराने एक चित्र द्वारा शास्त्रों के भंडारोंकी दुर्दशा दिखाई व सरस्वती भवनकी आवश्यक्ता बताई। उसी समय अपील करने से ७००) वार्षिक उपजके वादे १० वर्ष तक के लिये हो गए । कई उपदेशक सभाएं हुई। माह सुदी ३ को शिक्षाप्रचारक समिति जयपुरका जल्सा हुआ। उसमें ब्रह्मचर्या - श्रमकी आवश्यक्ता बताई गई। इसके लिये बाबू गेंदनलालजीने १०००) नकद प्रदान कर दिये। इस समय कुल फंड ३०००) का हुआ । अनाथालय हिसार को भी ८००) का फंड हुआ । सेठनीने अपनी ओरसे कटनी निवासी भाई मन्नूलालको एक सोनेका चांद अर्पण किया, क्योंकि महासभा के काम में उसने सभासद आदि बढ़ाने में बहुत परिश्रम किया था । माह सुदी ३ की रात्रिको भारतवर्षीय दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीका बड़ा प्रभावशाली अधिवेजन सेठ जल्सा तीर्थक्षेत्र कमेटी । हुकमचंदजी के सभापतित्वमें हुआ, जिसमें महामंत्री सेठजीने अपनी रिपोर्ट सुनाई, जिसका बड़ा प्रभाव हुआ । बंडी मन्नालाल गिरनार तीर्थके प्रबन्धक आए थे। सेठ हुकमचंदजीके समझानेसे उन्होंने दूसरी कमेटी ठीक की जिसमें बाहरवाले भी मेम्बर हुए । For Personal & Private Use Only Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतिय भाग । रिपोर्टका सारांश कहते हुए सेठ माणिकचंदजीने प्रबन्ध खाते में द्रव्यकी जरूरत बताई तथा १०००) आपने दान किये। तब सेठ हुकमचंदजीने ९०१) दिये इस तरह ३१२२)का चंदा हो गया। सोनागिरजी व तेरापंथी कोठीके लिये कमेटियां बनाई गई । शिखरजी पर्वत रक्षाके लिए द्रव्य एकत्र करनेको भाई नियत हुए। श्रीमती मगनबाई, जानकीबाई, ललिताबाई, पार्वतीबाई, लाजवंतीबाई, चंदाबाई आदि पढ़ी हुई धर्मकी भा. दि. जैन महिला जानकर बहनोंके उद्योगसे छह स्त्रीसभाएं हुई। परिषदका स्थापन । अनेक प्रकारके उपदेश हुए। ६०)की मुद्रित पुस्तकें पढ़ो बहनोंको बांटी गई और स्त्रीशिक्षाके लिये ५५०)के अनुमान फंड हुआ तथा महासभाके समान सारे भारतको जगानेके लिये भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला परिषद् स्थापन हुई । इसकी प्रबंधकारिणी सभामें श्रीमती मगनबाईजी मंत्री व पार्वतीबाईजी प्रमुखा नियत हुई। मंदिर प्रतिष्ठामें भंडारके जो २००००)के अनुमान आए सो पर्वतरक्षा फंडमें शामिल होनेको सेठ परमेष्ठीदास कलकत्ताको दिये गए। - सेठनीने उपरैली कोठीके बड़े मंदिरजीके जीर्णोद्धारमें भंडारसे २५०००) खर्चकर एक बड़ा रौनउपरली कोठीमें कदार भव्य मंदिर कर दिया था, उसीपर • कलश व ध्वजा- वजा चढ़ानेका कार्य वसंत पंचमीके प्रातः . रोपणोत्सव । काल हुआ। कलश चढ़ानेकी बोली सेठ . सुखलालजी हजारीलाल छिन्दवाड़ाने ५५००) में, ध्वजा चढ़ानेकी सूरतके जयचंद हीराचंद तासवालेकी विधवा कंकु For Personal & Private Use Only Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० ] अध्याय बारहवाँ । बाईने १०००) में ली। सेठजीने मंदिर जीर्णोद्धार करनेवाले मिस्त्री जवेरदास व कोठीके सर्व कर्मचारियोंको मुद्रिका, कंठी, शाल दुशाले आदि इनाममें दिये । उपरैली कोठीके टूष्टियोंकी मीटिंग हुई। सभापति बाबू देवकुमारके स्थानमें बाबू गुलाबचंद अनरेरी मजिष्ट्रेट छपरा तथा मंत्री सेठ हरसुखदास हजारीबाग हुए। कोषाध्यक्ष सेठजी ही रहे । सेठ माणिकचंदनीके ध्यान देनेसे ही उपरैली कोठीके द्रव्यकी केवल रक्षा ही नहीं हुई, किन्तु मंदिर धर्मशाला आदि सुधार होकर द्रव्यका सदुपयोग भी हुआ। शिखरनीकी यात्रा भले प्रकार करके सेठ माणिकचंदनी, शीतलप्रसादजी, मूलचंद किसनदासनी सेठजीका दौरा। कापड़िया व श्रीमती मगनबाईजीके साथ ईसरी स्टेशनसे चल ता० १९ फर्वरीको गयाजी आए । यहां बुद्ध-गयाका मंदिर देखा । यहां बुद्धकी मूर्ति बैठे आसन दो गज ऊंची है। एक हाथ गोदमें व एक हाथ लटकाए हैं। मंदिरका शिखर १८२ फुट ऊंचा है । इस मंदिरके पीछे पीपल वृक्ष है । कहते हैं यहां बुद्धको ज्ञान हुआ। यहांसे चलकर शेठनी ताः २० को काशी आए । उसी दिन पाठशालाका वार्षिकोत्सव लाला भगवाकाशी स्याद्वाद पाठ- नदास एम.ए. अग्रवालके सभापतित्व हुआ। शालाकावार्षिकोत्सव १८ विद्यार्थियोंको १०० के करीब इनाम दिया गया। विद्याप्रेमी माती जमशेदजी नौरोजी ऊनवाला भी आए थे । सभापति साहबने एक विद्वता पूर्ण भाषणमें कहा कि न्याय (तर्क) विद्या सत्य बात निर्णयके लिये For Personal & Private Use Only Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजी ५० वर्षकी अवस्थामें. For Personal & Private Use Only Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग [६४१ हैं न कि जल्प और वितंडाबादके लिये । संस्कृत विद्याके बिना धार्मिक विद्यामें प्रवेश नहीं हो सक्ता । राजभाषा भी संस्कृतवालोंको सीखना चाहिये । सेठ माणिकचंदनीने सभापतिको धन्यवाद देते हुए कहा कि “ जैसे हिन्दू काले नमें स्वार्थ त्यागी जीवन अर्पण करनेवाले विद्वान् काम करते हैं ऐसे हमको मिलें तो बहुत उत्तम काम हो । हमारे भाईयोंको ५० वर्ष तक खूब परिश्रम करके धनोत्पत्ति करके फिर शेष जीवन परोपकार में बिताना चाहिये । " सेठजीने १०१) दिये । बाबू छेदीलालने भी १०१) दिये। सब मिलके ५००) की उपज हुई। यहांसे चल ता० २८ को श्री अयोध्याजी आए । जहां इस चतुर्थ कालमें श्री ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ और अनन्तनाथ स्वामीका जन्म हुआ था। यहां पांचों स्थानोंके दर्शन किये । इस क्षेत्रके सम्बन्ध में ऐसी मान्यता है कि सदा ही भरतक्षेत्रके सर्व ही तीर्थंकर यहां जन्मते और श्री सम्मेद शिखरजीसे मोक्ष प्राप्त करते हैं । हुंडावसर्पिणी कालके दोषसे गत चौथे कालमें फेरफार हुआ । यहां केवल एक पुनारी था । मुनीम नहीं था न प्रबन्धकारिणी कमेटी न रसीदवही न वहीखाते थे। सेठजीने यहां बम्बईसे एक घड़ी भेजनेको कहा । यहांसे रात्रिको चल सबेरे ता० २३ को लखनऊ आए। स्टेशनपर मुख्य जैनी भाईयोंने भले प्रकार स्वागत किया। यहां दो शास्त्र सभा व दो उपदेशक सभा हुई । सेठजीको निम्नलिखित मानपत्र अर्पण हुआ For Personal & Private Use Only Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ ] अध्याय बारहवां । नकल मानपत्र (लखनऊ) श्रीमहावीराय नमः। दोहा। "शीतल' देखत शिथिल भये, सर्व कर्मके फन्द । भाग हमारे उदय भये, आये माणिकचन्द ॥ १ ॥ इस समय हम अपने परम पूज्य श्री वीतराग परमेश्वरको नमस्कार करते हुए, अङ्ग में फूले नहीं समाते हैं कि आज कैमा सुअवसर है, कि जिस महानुभावकी कीर्ति हम सब बहुत कालसे श्रवण करके अपने कर्णो को तृप्त किया करते थे, आज वही शानिा छवि, अपने चन्द्रसम मुख कमलके दर्शन देकर हमारी नेत्ररूपी कमलिनीको प्रफुल्लिन कर रही है व यों कहिये कि जिस प्रकाशमान चन्द्रमाके देखनेके वास्ते हमारे चितचकोर बहुत कालसे तृषित थे, आज वही शुभ चन्द्र स्वच्छ स्फटिक शोभाविरनिरनि श्री श्रेष्ठि "माणिकचंद" अपने पूर्ण रूपसे दर्शन देकर अपनी सौम्य चित्तहारी दृष्टिरूपी किरणोंसे हमारे हृदयको शान्ति और आनन्द उत्पन्न कर रहे हैं । महाशय ! हम आपकी प्रशंसा (स्तुति) करनेके लिये असमर्थ हैं क्योंकि सम्पूर्ण भारतवर्षमें जैन समाजमें ऐसा कौन जन होगा जिसके मुखसे आपका सुयश, कीर्ति, गुणगान व नाम न लिया गया हो ! जैन समाज व हम सकल लखनऊ निवासी श्रीमान्के परम आभारी हैं, कि आपने अपने सुकृत्यसे सञ्चित किये हुए धनको अपनी मान बड़ाईके लिये व्यर्थ व्यय न कर जैन धर्म व जैन जानिक, परोपकारक मार्गमें लगाया। आपने विद्यावृद्धिके For Personal & Private Use Only Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग | [६४३ लिये यत्र तत्र जैन बोर्डिङ्गहाउस नियत किये, पाठशालायें स्थापित कराई, यात्रियोंके सुभीतेके लिये तीर्थक्षेत्रोंका सुधार किया, धर्मशालायें निर्माण करवाई, आपको इस पतित पावन जैन धर्म व धर्मात्माओंसे अत्यन्त प्रीति है । आपके इस सुकर्तव्यके लिये हम सम्पूर्ण जन व जैन मतावलम्बी आपको शुद्ध अन्तःकरणसे कोटिशः धन्यवाद देते हैं और ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं कि आप जैसे धर्मात्माओंको सदा दीर्घायु बनावे । भागगयो मनको तिमिर, भयो परम आनन्द । पुण्य उदय दर्शन भये, शीतल माणिकचन्द ।।२।। ____ आपका कृपाभिलाषीमाघ शुक्ला १५ सं. १९६६ दामोदरदास मंत्री, जैनधर्मप्रवर्धिनी सभा, लखनऊ यहांकी पाठशाला व औषवालयको देखकर सेठजीने प्रसन्नता प्रकट की। तथा इन कार्योंके प्रबन्धार्थ एक नियमावली व प्रबन्धकारिणी सभा बनवा दी तथा अयोध्या, रत्नपुरी और सहेठ महेठके. प्रबन्धार्थ कमेटी बनानेकी प्रेरणा की। भाईयोंने चैत्रमें होनेवाली रथयात्रामें बनाना स्वीकार किया। यहां जैनसभाके मंत्री लाला दामोदरदासजी शास्त्रज्ञाता, प "रोपकारी धर्मात्मा हैं। श्रीमती मगनबाईने कन्याशालाके लिये २०) मासिकका चंदा कराया । मूलचन्द किसनदासजीने वेश्यानृत्य, बाललग्न आदि कुरीति निवारण पर उपदेश दिया । भाईयोंने आगामी प्रबन्ध करना स्वीकार किया । वास्तवमें सेठनी ऐसे परोपकारीकी सुपुत्री ऐसी शिक्षा प्रचारिका जैन स्त्री समानके सुचारमें दत्तचित्ता For Personal & Private Use Only Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ ] अध्याय बारहवां । थीं कि जहां पधारें वहां अवश्य सुधार होता है। यहांसे ता० २५ को चल २६ फर्वरीको बम्बई आए। जिस बातको चाहते हो यदि वह हो जावे तो चित्तकी आ कुलता मिटती है। और आकुलताके मिटनेसे लाहौर बोर्डिङ्गकी ही सुखका अनुभव होता है। कई वर्षों से स्थापना और सेठजी पंजाबमें बोर्डिग हाउस स्थापित कसेठजीको हर्ष। राना चाहते थे सो ता० ३० जनवरी १९१० के दिन लाहौरके दिगम्बर जैन पंचानने अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार बोर्डिंग खोल दिया । उस दिन १० छात्र भरती हुए । सेठजीके पास जब पत्रद्वारा खबर आई, आप बड़े ही आनन्दित हुए। यह बोर्डिंग अभी तक उन्नतिरूपमें चल रहा है। १ वर्षमें ही २३ छात्र हो गए थे अर्थात् ला कालेन (कानून) के ५, बी० ए० के ३, एफ० ए०के ७, इजीनियरिंग ४, मैट्रकुलेशन २ और मिडिलके दो। धर्मशिक्षा छःढाला दौलतरामकृत पढ़ाया गया व लिखित उत्तरोंसे परीक्षा ली गई । फल अच्छा रहा । पारितोषिक भी दिया गया । आगे वर्षों में द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थसुत्र तककी पढ़ाई होती रही है। बोर्डिंग जब खुला तब ही लाला देवीसहाय फीरोज़पुर छावनी और लाला लक्ष्मीचंद इच्छाराम कम्पनीवालोंने देखा और उन्होंने बहुत प्रसन्न होकर २५१) और २००) की क्रमसे सहायता दी। __ वर्तमानमें करीब ४० के छात्र हैं। मकान अभी किरायेका ही है पर जमीन बहुत मौकेसे मिल गई है। कोई धर्मात्मा सेठ For Personal & Private Use Only Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६४५ माणिकचन्दनीके जीवनका यदि अनुकरण करके बोर्डिंग बना दें तथा खर्च जो कि कठिनतासे चलता है उसके लिये कुछ ध्रौव्य फंड दे दें निसके व्यानसे काम चले तो पंजाबमें जैनधर्म का झंडा गाड़नेके समान महान पुण्य बंच हो । मंत्री लाला रामलालजी व उपमंत्री बाबू शामचंदजी बी० ए० व सभापति लाला जियालाल खनांची इस संस्थाकी उन्नतिमें दिनरात दत्तचित्त रहते हैं। लाहौरमें १०० जनी छात्र कालिजोंके पढ़नेवाले हैं। स्थान विना चाहे जहां रहकर धार्मिक ज्ञान व आचरणसे भ्रष्ट हो रहे हैं। यहां पर पहले छात्रोंके खयाल आर्य समाजी थे पर अत्र सब जैन धर्मके गौरवको समझ गए हैं और अपने अनेकांन्त मई तत्वके सामने एकांत तत्वोंको तनने योग्य ही जान रहे हैं। इसका प्रमाण यह है कि इस छात्राश्रमसे लाभ लेकर आजीविका पर लगे हुए परमानंद एम० ए० सियालकोटसे अपने ता० २१ सितम्बर १५ के पत्र में लाला रामलाल मंत्री बोर्डिगको लिखते हैं कि मैंने यहां तीन वर्ष रहकर उन अमूल्य जैन धर्मके रत्नोंको जाना है जिनको मैं बिलकुल भूल रहा था। अब मुझे घमंड है कि मैं जैन धर्ममें पैदा हुआ । मैं छात्राश्रमके उपकारको कभी भी भूल नहीं सक्ता । आपके इंग्रेजीके कुछ वाक्य ये हैं: Ram Kaur Lane SIALKOTE CITY. 21-9-15. my dear........ I have lived for full three years at the Lahore Jain Boarding House. Unless I am to For Personal & Private Use Only Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ ] अध्याय बारहवां | be ungrateful and thankless, I cannot possibly forget it. I have no hesitation in adding that the institution shall always be near and dear to me. The Jain Boarding House has afforded me an invaluable opportunity for realising what Jems are embedded in the jain religion and how miserably I was neglecting them. I come out of the Boarding House as a Jain, proud of Jainism and its brilliant heritage. 1 shall always look upon the institution which has been a means of providing me with an eyeopener in the matter of religion. May to Jainedra that my interest in Jainism may be ever-increasing. as one I am, Yours very Sincerely, PARAMANAND ( M. A. ) 1 पाठकगण | इससे समझेंगे कि पंजाब में जैनधर्मकी जड़ इस छात्रामने जमादी है। सेठ माणिकचंदजीकी दीर्घदृष्टिकी प्रशंसा सहस्र मुखसे भी नहीं हो सक्ती । कालिजोंके साथ जैन बोर्डिंगका होना ही विद्वान् छात्रोंको जैन धर्मका प्रेमी बना सक्ता है । अन्यथा एकान्त मतके रंगो में रंग जाना नव युवकों का बहुत सुगम है । धनवानों को जिनमंदिरसे भी अधिक पुण्य श्रद्धानको दृढ़ करानेवाले उपायोंके लिये क्रय खरचने में होता है । ऐसा जान इन पंजाब बोर्डिगको पक्का कर देना एक अमूल्य धर्मका अंग होगा | क्या सेठ • माणिकचंदजी के समान धनवान देहली, पानीपत, फीरोजपुर, अम्बाला For Personal & Private Use Only Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । ६४७ आदिमें नहीं हैं ? अवश्य हैं। केवल उदार बुद्धि व परोपकार दृष्टिकी आवश्यक्ता है। जिन सेठ माणिकचंनीदने अनेक बोर्डिंग स्थापित किये तो क्या पंजाबके धनाढ्य मिलकरके भी एक बोर्डिगको भी पक्का नहीं कर सक्ते ? सेठ माणिकचंदनी सदा ही गुणग्राही और गुणवानोंका मान ___ करते रहे हैं। सहारनपुर निवासी बाबू सेठजीका विद्या प्रेम। जुगमन्दिरलाल एम० ए० हैं। यह पहले अलाहाबादमें थे, जब ही से इंग्रजी 'जैन गनट की सम्पादकी करनी शुरू की। फिर आप बैरिष्टरी आदि कई परीक्षाओंको पाप्त करनेके लिये विलायत गये। वहां करीब चार वर्ष रहे । जब शिखरजी पर बंगले बांधनेकी आपत्ति आई तब सेठजीने आपको विलायत लिखा था। आपने अपने ता० ३ अक्टोबर १९०७ के पत्रमें लिखा कि यह सम्पूर्ण पर्वत पवित्र है । मैंने ४ दफे शिखरजीकी यात्रा की है और कुल पर्वतकी प्रदक्षिणा दी है। यदि उसके कहीं पास भी शराब मांसका संसर्ग होगा तो यह बड़ी आपत्ति होगी। कुछ वाक्य यह हैं: It will be indeed a sad sight that after so many centuries meat and wine may be sold and taken, and perlaps cyen prepared in the near vicinity of Sikharji, it is tragic.........I have myself made this round four times my Pilgrimage to Sikharji.......... For Personal & Private Use Only Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ ] अध्याय बारहवां । आपने वहां इंग्रेनोंमें बहुत उद्योग किया और पार्लियामेन्ट तक यह बात पहुंचाई। बाबू साहबको जैन धर्मका प्रेम बाल्यावस्थासे ही था । आप बड़े धार्मिक थे । इसी संस्कारसे आपने विलायतमें भी जैन धर्मका उपदेश जब जिससे अवसर बात करनेको मिला उसको दिया तथा सन् १९०९ में वहां एक जैन लिटरेचा सोसायटी कायम कराई जिसके मंत्री मि० हर्बर्ट व रन (नं ८४, शेल गेट रोड, लंडन एस० डबलू०) नियत किये जो बाबू साहबकी संगतिसे जैनधर्मके पक्के श्रद्धालु हुए। इसमें हमारे सेठजी भी १ पाउन्ड भेजकर मेम्बर हुए । आप ता० ११ मार्च १९१० को जहाजसे बम्बई उतरे, उस समय सेठ माणिकचंदजी डाकपर आपको लेने गए और सन्मान पूर्वक अपने ही चौपाटीके रत्नाकर पैलेसमें उतारा । आपने एकान्तमें उक्त बाबू साहबको लेनाकरके बातचीत की जिससे आपको निश्चय हो गया कि जुगमन्दिरलालजीने अपना खानपान भ्रष्ट नहीं किया है । सेठनीने स्नानादि कराया और अपने साथ चैत्यालयमें ले गए । उस समय बाबू साहबने बड़े भावसे श्री चंद्रप्रमुस्वामीकी ध्यानाकार प्रतिबिम्बके दर्शन किये और नमस्कार किया। फिर थोड़ी देर सामायिक की। उक्त बाबू साहब विलायतमें भी नित्य सामायिक करते थे। यह आपकी नित्यकी क्रिया है। जब सेठजी चौके में भोजन करने गए अपने साथ ले गए और एक ही पंक्ति में बैठ भिन्न २ थालोंमें सेठजी व दूसरोंके साथ बाबू साहबने भोजन किया । सेठजीके इस धार्मिक प्रेमसे बाबू साहबके चित्तपर बहुत बड़ा असर हुआ । For Personal & Private Use Only Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [६४९ इसी अवसरपर खुरजेवाले पंडित सेठ मेवारामजी दक्षिणकी यात्रासे लौटकर बम्बई आए थे और इसी पंडित मेवारामजीका तारीखकी रात्रिको आपका व्याख्यान नियत व्याख्यान । हुआ था। जिसके छपे नोटिस वितरण हो चुके थे । सेठजी रात्रिको हीराबाग लैकचर हालमें उक्त बाबू साहबको ले गए। सभामें जैन अजैन अनेक प्रतिष्ठित भाई थे। प्रथम ही ब्र० शीतलप्रसादनीने मंगलाचरण करके सभाका हेतु कहकर कहा कि आन पंडित मेवारामजी " जगत्कर्ता ईश्वर नहीं है " इस विषयपर भाषण देंगे। सभाको बाबू जुगमन्दिरलालका परिचय कराया और कहा कि आप ४ वर्ष विलायत रह बैरिस्टरी पास करके आज ही बम्बई पधारे हैं । दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचंदनी जे० पी० की प्रार्थनासे एलफिंस्टन हाईस्कूलके संस्कृत प्रोफेसर मगनलाल दलपतराम शास्त्री एम० ए०ने सभापतिका आसन ग्रहण किया। सभापति के बैठनेपर पंडितजीने अपना व्याख्यान बहुत ही विद्वत्तापूर्ण दिया जिसको सुनकर पंडित लालनने उठकर कहा कि इस अपूर्व विद्वत्तापूर्ण व्याख्यानको सुनकर मैं इतना मुग्ध हो गया हूं कि जी चाहता है कि पंडितजीका साथ निरंतर करूं । बाबू जुगमन्दिरलालने भी व्याख्याताको धन्यवाद दिया और कहा कि मैं आज इनके युक्तिपूर्ण व्याख्यानको सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ हूं। सभापतिजीने कहा कि आजके व्याख्याता एक बड़े अच्छे पंडित हैं। मेरा जैनधर्मसे जो परिचय हुआ है उससे मैं कह सक्ता हूं कि इसके बहुतसे अंश वैष्णव धर्मसे साम्यता रखते हैं। यदि जैन और वैष्णव धर्मके आचार्य मिलकर एक विश्व धर्म निर्मापण करें तो भारत क्या बल्कि जगत्का उदय हो जाय। For Personal & Private Use Only Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० ] अध्याय बारहवाँ। सेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिगकी लिटरेरी सोसायटीकी ___ तरफसे ताः १४ मार्च सन् १९१० को बैरिष्टर जुगमन्दिरला- हीराबागमें सेठ गुलाबचंदनी ढढ्ढा एम. ए. के लजीका व्याख्यान । सभापतित्वमे एक बृहत् सभाका अधिवेशन हुआ । सभापतिने आसन लेते वक्त यह कहा कि आजके व्याख्याता इतनी डिगरी प्राप्त करनेपर भी अपने धर्ममें दृढ़ रहे हैं। फिर व्याख्याता जुगमन्दिरलालजीने विद्यार्थियों के कर्तव्यपर अपना विद्वत्ता पूर्ण भाषण कहा उसमें यह बातें भी कहीं कि भारतवर्षकी प्राचीन कालकी शिक्षा में तीन बातें थीं-सादगी, सस्तापन और धीमापन-साद। भोजन, सादा आसन, सादी शय्या रहती थी । गुरुओंको फीस नहीं देती पड़ती थी सुगमतासे गुरुओंके पास विद्यार्थी हर समय प्रश्न कर सक्ता था । एक ही विषय बहुत धैर्यके साथ पढ़ा जाता था । आजकलकी भारतीय शिक्षामें तीनों का अभाव है । विलायतकी और यहांकी पढ़ाई में बहुत अंतर है। वहां शारीरिक, मानसिक और आत्मिक तीनों विषयों में पूरी २ शिक्षा दी जाती है। विलायत जानेसे जैन धर्म टूट जाता है ऐमा कहना ठीक नहीं है । विलायतमें आप जैन धर्म अच्छी तरहसे पालन कर सक्ते हैं। भक्ष्याभक्ष्यका विचार भी रख सक्ते हैं । मैं चार वर्ष विलायतमें रहा लेकिन मांसके एक अणुने भी मेरे उदर में प्रवेश नहीं किया । वहांपर शाक भोजी सोसायटी बढ़ती जाती है । सेठ जी को आपके व्याख्यानको सुनकर बड़ा ही हर्ष हुआ । बम्बईमें बाबू साहब सेठजीके पास ही ठहरे रहे । इस For Personal & Private Use Only Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६५१ वक्त सेठजी श्री गोम्मट स्वामी ( जैनविद्री) जानेकी तैयारी कर रहे थे क्योंकि वहां श्री बाहुबलि स्वामीकी मूर्तिका मस्तकाभिषेक समारंभके साथ २ भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाका नैमित्तिक अधिवेशन था जिसके लिये हमारे सेठजी ही सभापति निर्वाचित हुए थे । मस्ताभिषेककी मिती चैत वदी ५ नियत थी तथा महासभाका अधिवेशन चैत्र वदी १ से ४ ताः २६ मार्चसे २९ तक नियत था। सेठजीने बाबू साहबको कहा कि इस समय आप हमारे साथ दक्षिणकी यात्रा करिये और जैनविद्री सरीखे अति प्राचीन स्थलके दर्शन कीजिये, जहांसे श्रीभद्रबाहु श्रुतके वलीने समाधिमरण प्राप्त किया व जहां श्री बाहुबलि स्वामीकी अति मनोज्ञ ध्यानाकार ५६. फुट ऊँची प्रतिबिम्ब विराजमान है । सेठजीने बाबू साहबके चित्तको ऐसा आकर्षित कर लिया था कि आपने तुर्त ही अपनी ___स्वीकारता दे दी । अब सेठजी सकुटुम्ब रश्री बाहुबली मस्तका- वाना हुए । साथमें ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी भिषेक और और बाबू जुगमन्दिरलालजी थे। एक ही सेकंड महासभा । क्लासमें बैठकर मदरास मेलसे सब लोग बेलगाम हुबली होते हुए टिपटूर स्टेशन प. हुंचे। वहांपर अनेक जैनी जन स्वागतार्थ खड़े थे। सेठनीको बड़े सम्मानके साथ स्टेशनसे ३० मीलके करीब श्रवणबेलगोला नगरसे एक मील इस तरफ ले जाकर ठहराया। इतने में हज़ारों भाई नानाप्रकारकी पगड़ी व वस्त्र पहरे एक पालकी लेकर आए। सेठ वर्धमानैय्या मैसूरने सेठजीके गले में हार क्षेपण किया। दूसरोंने सेठजीपर पुष्पों For Personal & Private Use Only Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ ] अध्याय बारहवां की वर्षा की। पालकीपर बिठाया ओर गाजेबाजेके साथ नगरमें ले गए । इधर रिमानके मुवाफिक लोग रास्तेमें नारंगी, नारियल आदि फलोंकी भेट चढ़ाते हुए नमस्कार करते थे। सेठनीकी सवारी शहरमें फिरी । एक स्थानपर फोटो लिया गया। एक खास तंबूमें सेठजीको ठहराया था । इस वक्त सेठ नवलचन्दजी भी सकुटुम्ब पधारे थे । इस समय अनुमान ४०००० स्त्री पुरुष आगए थे । बाबू अजितप्रसाद वकील, पं० अर्जुनलाल सेठी आदि अनेक जन उत्तर भारतसे आए थे । यहां पंचकल्याणकोत्सव भी हुआ था जिसका प्रारम्भ फाल्गुण सुदी ३से हुआ था। ____फाल्गुण सुदी १३को जन्मकल्याण कमें १००८ कलशोंसे दर्शनीय अभिषेक हुआ था । उसी दिन तपकल्याणक, सुदी १४को केवलज्ञानकल्याणक और सुदी १९को मोक्षकल्याणककी अपूर्व रचना हुई थी। इस समय जैनबिद्री महा आनन्दमागरमें निमग्न थी। चहुंओर स्त्री पुरुष दोनों पर्वतोपर मंदिरोंके दर्शन पूजन करते दिखाई देते थे। श्री बाहुबलि स्वामीकी शांति मूर्तिकी पूजन करते हुए चरणों का अभिषेक करते हुए हज़ारों स्त्री पुरुष परमानन्दमें निमग्न दृष्टिगोचर होते थे। स्वागतकारिणी सभाके सभापति अनन्तरानैय्या व मंत्री सेठ वर्धमानैय्या थे । महासभाकी बैठकें चैत्र वदी १ ता० २६ मार्चकी दुपहरसे प्रारम्भ हुई। सभामंडप बहुत बड़ा बना था। इसमें भट्टारक और ब्रह्मचारियोंके बैठनेको भिन्न उच्च स्थान नियत था। कांची, मूडबिद्री, कारकल, कोल्हापुर आदिके भट्टारक ब्रह्मचारी सब For Personal & Private Use Only Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६५३ २४ व २५ आर्यिकाएं मेले में उपस्थित थीं। सेठनीको डेरेसे गाजे बाजेके साथ मंडपमें ले गए । दौर्बल्य जिनदास शास्त्रीने मंगलाचरण किया। सेठ अनन्तराजैय्याने स्वागतका भाषण कनड़ीमें पढ़ा निसका हिन्दी उल्टा बाबू जुगमन्दिरलालने सुनाया । सभामें दोनों भाषाओंमें हरएक काम होता था । हिन्दीको सिवाय इधरके ग्रामवासियोंके और सब समझते थे उनके लिये कनड़ीकी ज़रूरत होती थी। आपके भाषणमें यह कहा गया कि “ श्री बाहुबलीकी प्रतिबिम्ब बहुत प्राचीन है । राना रामचंद्र और रावणने भी इनकी पूजन की थी। चामुंडरायके पीछे मैसुरके महाराना यहांके जीर्णोद्धार करानेवाले हुए हैं । यह श्वेत सरोवर मैसुर महारानसे बनवाया गया है। " जी० के० पद्मराजैय्याके प्रस्ताव व बाबू किरोडीचंद आरा व हीराचंद नेमचंदके समर्थनसे सेठजीने श्री महावीर स्वामीकी जयध्वनिके मध्यमें प्रमुखके आसनको ग्रहण किया । और अपना भाषण हिन्दीमें पढ़ा जिसका कनड़ी उल्था वर्णी नेमीसागरजीने सुनाया। समापति नीके अंतिम वाक्य थे “ विना स्वार्थ त्याग किये कभी जैन समाजकी उन्नति नहीं हो सकती। विद्वानोंको अपना जीवन और धनाढ्योंको लाखों रुपया विद्याप्रचारमें प्रदान करना चाहिये । खास करके जो व्यापारी बहुत समय तक व्यापार करके धन कमा चुके और अपने पुत्रोंको सामर्थ्यवान बना चुके है तथा जो सर्कारी नौकरी करके पेंशन पाते हैं उन्हें अपना शेष जीवन जैनधर्म और जैन जातिकी उन्नति तथा आत्मकल्याणमें विताना चाहिये ।" बैठकोंमें १२ प्रस्ताव पास हुए जिनमें मुख्य ये थे:(१) मैसूर प्रांतके २००० सादर जातिके घरोंको जो For Personal & Private Use Only Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ ] अध्याय बारहवां । धर्ममें अब शिथिल हैं धर्ममें स्थिर करनेके लिये ११ महाशयोंकी कमेटी बनी । (२) श्रवण बेलगोलामें एक छात्राश्रम खोला जावे व कोल्हापुर, हुबली और मंगलौरके छात्रालयोंकी मदद की जावे । वहांके छात्राश्रमके लिये एक कमेटी बनी। (३) धर्मादेका सदुपयोग हो । (४) मैसूर दिगम्बर जैन प्रांतिक सभा स्थापित की गई । (५) खिरासतके कानून ठीक कराने के लिये कमेटी बनी । यही मलावार प्रान्तमें जारी आलिया संतानके कानूनको भी ठीक करे जिसस पुत्र जायदादका मालिक न होकर भानना होता है नहीं तो माल सरकार में जप्त हो जाता है । (६) श्री बाहुबलि स्वामी की मूर्तिकी रक्षाके लिये एक फंड स्थापित हो इसमें महा मस्तकाभिषेक सम्बन्धी आमदनी शामिल हो । इसकी व्यवस्था एक कमेटी करे तथा यही इस तीर्थके सुप्रबन्धको भी करें । ___ इस कमेटीके अध्यक्ष-पंडिताचार्य भट्टारक श्रवण बेलगोला व मंत्री जी० के० पद्मराजैय्या बेलगोला हुए । ता० २७ मार्चको श्रवण बेलगोला छात्राश्रमके लिये ८७५०) व कोल्हापुर आदि ३ बोर्डिंगके लिये २२००)का चंदाहुआ । इनमें दानवीर सेठ माणिकचंदने दोनों फंडमें ५०१), ५०१) प्रदान किये। ता० २९के दिन श्री बाहुबलि स्वामीकी प्रतिमाजीपर क्रमशः कलसोंके न्हवनकी बोली हुई। जो पहली बोली ले वह पहला कलश चढ़ावे ऐसा सेठ माणिकचंदीने ठहराव किया । आज तक यहां कभी ऐसा हुआ नहीं था। सेठनीने इस भव्य मूर्तिके रक्षार्थ एक भारी चंदा हो जाय इस निमित्त सर्वको राजी करके यह रीति निकाली । यद्यपि यहांके उपाध्याय इस बातसे कुछ विरुद्ध भी रहे, पर सेठनीकी वातको For Personal & Private Use Only Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । खंडन करनेका किसीका हौंसला नहीं पड़ता था। १ हजार रुपयेके ऊपरकी बोलिके ७ कलश हुए जो यहां इस बात के जाननेको दिये जाते हैं कि लोगोंमें अभिषेक करनेका कितना उत्साह था । नं० कलश १-जल-सेठ विनोदीराम बालचंद झालरापाटन । ५१०१) २-दूध-सेठ ओंकारजी कस्तूरचंद ईन्दौर । ३१०२) ३-दही-सेठ नंदराम लक्ष्मणलाल पांड्या बम्बई । १५०१) ४-घृत-प्सेठ दौलतराम कुन्दनलाल बूंदीवाला ,, ११०१) ५-इक्षुरस-सेठ जीवनराम लूणकरणजी पांड्या झालरापाटन १५०१) ६-सवैषिधि-सेठ ओंकारजी कस्तुरचंद इन्दौर ३००१) ७-ईशानकोण-बाबू रामलाल पन्नालाल धर्मपुरी ११०१) कुल ३०० कलशोंकी बोली हुई-४०१)से लेकर १०) तक २५००२) की बोली हुई। यह सर्व सेठनीके उद्योगका फल था । इसी दिन सभामें जब कलशोंकी बोलियां हो रही थी महारान मैसूरके कौन्सलर व डिप्टी कमिश्नर आदि सभामें पधारे । बाबू अजितप्रसादजीने इंग्रेजीमें मैसूर राज्यका धन्यवाद माना तब कौन्सलर साहबने कहा कि " मैसूर गवर्नमेन्टको यह देखकर परम अभिमान होता हैं कि उसके प्रान्तमें जैनियों का एक ऐसा उत्कृष्ट तीर्थस्थान है जहां पर जैनी आकर अपना आत्मकल्याण और धोन्नतिका विचार करते हैं। मैसूर महाराजको जैनजाति अति प्रिय है। मैसूर सरकार यह जानती है कि यह जैन जाति दानवीर, उदार, दयामय और सहनशील है । For Personal & Private Use Only Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ ] अध्याय ग्यारहवां । चैत्र वदी १ ता० ३० मार्चको मस्तकाभिषेकका दिन था । कई सौ रुपया खर्चकर प्रवीण कारीगर द्वारा सीढ़ी ऊपर जानेको बनाई गई थी जिसपर खड़े होकर मस्तक पर धारा डाली जावे । तीन बजेसे अभिषेक प्रारंम हुआ। जिस जिसका जो कलश था वह नम्बरवार ऊपर जाकर चढ़ातो था । दर्शक लोग चारों ओर खड़े बैठे थे। पहले ही सेठ माणिकचंद पाटनवालोंने जल कलशकी धारा दी । वह धारा प्रभुके मस्तक परसे नीचे पग तक आती हुई महा शोभाको विस्तारती थी। फिर सेठ कस्तूरचंदने दूधका बड़ा घड़ा लेकर धारा छोड़ी। दूधके कई घड़े छोड़ने पर वह प्रतिमा श्वेतवर्ण निर्मल प्रति भासती हुई उस समय दर्शकों को जो आनन्द आया वह कथनसे बाहर है । प्रतिमाजीका दर्शन कोसोंसे होता था ! बस देखनेवाले दूर २ बैठे हुए अभिषेकका आनन्द ले रहे थे-भीड़ बहुत बड़ी थी-सेठ माणिकचंद और नवलचंद दोनों हरएक प्रबन्धमें लवलीन थे कि सानन्द अभिषेक हो जाय । रात्रिके २ बजे तक अभिषेकका कार्य पूर्ण हुआ। यह अभिषेक २२ वर्षके पीछे हुआ था। दूसरे दिन सेठनीने पर्वतोपर क्या २ मरम्मत व सुधारकी जरूरत है सो वहांके लोगोंको दिखाई और कहा कि हम मिस्त्री भेजेंगे, आप सर्व ठीक करालेवें व इस फंडसे तीर्थकी उन्नति करें । अब यहांसे सेठजी बम्बई लौट गए। शीतलप्रसादजी, बाबू किरोडीचंद आदि आरावालोंके संघके साथ मूडविद्रीकी यात्राको चले गए। वहां श्री जयधवल महा धवलादि ग्रंथोंके दर्शन भी किये व उनकी बालबोध लिपिको पढ़कर भी आनन्द लिया। बाबू जुगमन्दिरलाल For Personal & Private Use Only Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only 6 ఈ (देखो पृष्ठ ६६१ ) जैन शिक्षा चारक समिति जयपुरकी तरफसे सेठजीको मानपत्र. : Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग [६६७ श्री गोमटेशकी पूजासे महा आनन्द लाभ लेकर अपने देश सहारनपुरको रवाना हुए। यहां श्रीमती कंकुबाई व मगनबाईजी पार्वतीबाईके व आरा . निवासिनी चंदाबाईजीके परिश्रमसे स्त्रियोंमें भी भारतवर्षीय दि० जैन बहुत उपदेश हुआ।ता: ३१ मार्चकी रात्रिको महिला परिषद । महासभाके मंडपमें भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला परिषदकी बैठक बड़े ठाठसे हुई। सेठ हीराचंद नेमचंदकी धर्मपत्नी सौ० सखुबाईने अध्यक्षस्थान धारण किया। अनेक प्रकार उपदेश हुए। यहां कन्याशालाकी आवश्यकता बताकर उसके लिये ५००)का चंदा हुआ। सूरत में शा. कीकाभाई किसनदासका पुत्र कीकाभाई ( गुलाबशाह ) अनुमान २० वर्षका व्यापार सेठजीकी पुत्री तारा- कुशल व साधारण सौम्य प्रकृतिका था। उसीके मतीका विवाह साथ सेठजीने अपनी तृतीय पुत्री तारामतीका शुभ लग्न मिती वैशाख सुदी १० के दिन जैन पद्धति अनुसार कर दिया । इस समय ताराकी उम्र १४ वर्षकी थी। छोटालाल छेलामाई अंकलेश्वर वालेने जैन विधि कराई थी। इस विवाहमें दोनों ओर वेश्या त्य नहीं हुआ । केवल साधारण गीतोंके दो जल्से हुए थे । स्त्रियोंने खोटे गीत बिलकुल नहीं गाए तथा सर्व मिठाई स्वदेशी खांड़की बनी। सेठजीने १०००) रु. के करीव खर्च कर बम्बई प्रसिद्ध चित्रकारसे पापकर्म और उसके फलनर्कके कष्ट इनको दिखानेवाले चित्र तैयार कराकराके विता सहित 'नर्कदःखचित्रादर्श' पुस्तक छपवाली थी। इस अवसर पर सेठजीने ४२ For Personal & Private Use Only Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ ] अध्याय बारहवां यह पुस्तक तथा एक गीतावली अपनी बिरादरी में बांटी व खास २ व्यक्तियोंको दी। भानी बाटनेकी अपेक्षा पुस्तकोंकी भेट बहुत लाभदायक है तथा फूलकुंगर कन्याशालाकी बालिकाओंको इनाम वितरण करनेकी सभा चंदावाड़ी में बैशाख सुदी १३को सेठ तुलसीदास त्रिभुवनदासके प्रमुखत्वमें करके इनाम बटवाया तथा तारामतीके लग्नके हर्षमें ५००, कन्याशालाको भेट किया। तथा स्याद्वाद पाठशाला आदि संस्थाओंको दस २के हिसाबसे ११०) रु. का दान किया। इस प्रसंग पर सेठ नवलचंद हीराचंवनीके पुत्र रत्नचंदकी सगाई सूरत में ही पक्की हुई जिपके हर्षमें लघु अभिषेककी पुस्तक वितरण की । पुम्कोंकी भेट सर्व भेटोंसे श्रेष्ठ भेट है। जेठसे भादों तक सेटजी शांतिसे बम्बई रहकर यथा सार धर्म साधन करते रहे व तीर्थक्षेत्र कमेटीके कार्यों में विशेष लक्ष्य दिया। शिवरजी पर्वतके पट्टेपर देनेकी स्वीकारता बंगाल गर्नमेन्टने कर दी थी व ५००००) जमा भी करा दिये शिखरजीकी फिर थे। डिप्टी कमिश्नर हजारीबागकी आज्ञासे चिंता । पहाड़की माप आदि होने लगी इसी में बहु तसा समय बीता । पकी लिखा पढ़ी हो नहीं पाई थी कि यकायक गवर्नमेन्ट बंगालके सेक्रेटरी डबलू. आर. गोरलेका पत्र नं० १३८० टी. आर. ताः ६ सितम्बर १९१० का मार्गन एंड कम्पनीके नाम आया जो दिगम्बरियोंकी तरफसे सोलिसिटर नियत थे, जिसका आशय यह था कि श्वेताम्बरी सम्प्रदायके हकको ज्यादा पसन्दगी देकर जो पट्टा ता० २६ नवम्बर १९०८को हुआ था उसे भारत सर्कार न्याय रूप नहीं समझती For Personal & Private Use Only Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर वता महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६५९ इससे वह रद्द हो गया, रुपया ५००००) ४) फी सदी व्याजसे लौटा दिया जावे। इस पत्रको सुनकर सेठजीको आश्चर्य के साथ बड़ा शोक हुआ और यही खयाल आया कि यह कार्रवाई शोकसागरमें अवश्य श्वेताम्बरियोंके खोस प्रयत्नका फल सेठजी। है । यद्यपि पट्टा दिगम्बरियोंको मिलनेसे श्वेताम्बर समानके पर्वत सम्बन्धी हकमें किसी प्रकारकी बाधा नहीं थी और इसीलिये पट्टा तय होते वक्त श्वेताम्बरियोंने परवाह नहीं की और दिगम्बरियोंको लेने दिया पर श्वे० भाइयोंको अपनी हानि न होते हुए भी यह बात न रुची और वे अवश्य इसके रद्द करानेकी चेष्टामें लग गए और अन्तमें वे भारत सर्कार द्वारा कृतकार्य हुए। तब सेठजीने धैर्य प्रकट कर सर्व बड़े २ स्थानों में खबर भिजवाई और कमेटोके ओरसे ता० १९ सितम्बरको भारत सर्कारको तार भेना कि दिगम्बरी लोगोंका पर्वत पर हक श्वेताम्बरियोंसे अधिक है तथा छोटे लाटका फैसला आखरी है अतएव पहला बन्दोबस्त रद्द न किया जाय । ऐसे ही तार कलकत्ता, खुरई, फीरोजपुर, मुजफ्फरनगर, झालरापाटन आदिसे भी गए व बम्बई सभाने भी तार किया था, इस तारका जवाब भारत सर्कारके उपमंत्री बौसन साहबन्ने दिया कि आपकी प्रार्थनाको बंगाल सर्कारके पास कार्रवाई के लिये भेन दिया है। तब दिहलीमें भारत के मुखिया भाइयों की एक सभा करने का निश्चय ता० २६-१०-१० के रोज किया गया इसके लिये सेठनीने सर्व स्थानों में सुचनाएं भेज दीं और आप बम्बईसे अहमदाबाद होते हुए रवाना हुए। For Personal & Private Use Only Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० ] अध्याय बारहवाँ। अहमदावादके सेठ प्रेमचन्द मोतीचन्द दिगम्बर जैन बोर्डिंग स्कूलका ८ वां वार्षिक उत्सव आसौज सुदी अहमदाबाद बोर्डिङ्ग- १३ ता० १६ अक्टूबरको सवेरे रमणभाई का वार्षिकोत्सव । महिपतराम नीलकंठ बी० ए० एलएल० बी०के सभापतित्वमें हुआ। सेठ माणिकचन्दजी आ गए थे। आप ही ने प्रमुखकी प्रस्तावना की थी। लल्लूभाई लक्ष्मीचन्द चौकसीने रिपोर्ट सुनाई इसमें कहा कि दिगम्बर जैन मुम्बई परीक्षालयमें २२ विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी, २० पास हुए हैं व इस बोर्डिंगकी कमेटी तरफसे प्रगट होनेवाले "दिगम्बर जैन” पत्रने बहुत कुछ जागृति जैन समाज में फैलाई है इससे श्रीयुत मूलचंद किसनदास कापड़िया धन्यवादके पात्र हैं। फिर नानचंद पूंनाभाई बी० ए० व मूलचन्द किसनदासजी आदिने भाषण कहे । प्रमुखने अपने भाषणमें सेठ माणिकचन्दनीको धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसे बोडिगोसे तुतं फायदा नहीं मालूम होता है लेकिन २५ वर्ष पीछे एक आश्चर्यकारक फायदा आप देख सकेंगे। मैंने इसी मकान में इंग्रजी पहली पुस्तक पढ़ी थी जहां मैं अब प्रमुख हुआ हूँ। दोपहरको अहमदावाद श्राविकाश्रमका प्रथम वार्षिकोत्सव उक्त प्रमुखकी पत्नी सौभाग्यवती विद्यागौरी श्राविकाश्रमका बी० ए०के सभापतित्वमें बहुत धूमसे हुआ। वार्षिकोत्सव । रिपोर्टके सुनाने बाद जीवकोरबाई आदिके भाषण हुए । परीक्षामें १५ में १४ पास हुई थीं। उनको इनाम दिया गया । शा० हरजीवन रायचंदने For Personal & Private Use Only Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [ ६६१ भक्तामर स्तोत्र बांटे | सेठ माणिकचन्दजीकी तरफ से एक स्त्रीको सोनेके रंगकी १ पेन्सिल भेट की गई । फिर मदद फंडके लिये कहते ही ४८४) रु० भर गए जिसमें हरगोविंददास प्रभुदास करमसदने १०१) व हरजीवन लालचंद बडौघाने १०१) दिये । प्रमुख भाषणके पीछे श्रीमती मगनबाईने सर्वका आभार माना । रात्रिको सेठजीके सभापतित्वमें सभा हुई जिसमें सेठजीने प्रगट किया कि हमारी भावज रूपाबाईने बोर्डिग के स्थान में धर्मशाला के लिये दो कमरे बनवाने की इच्छा दर्शाई है। सेठजीने यहां बहरे गूगों की शाला देखी कि उन्हे कैसे शिक्षण दिया जाता है । सेठजी मूलचंद किसनदास कापड़िया के साथ ता० १८ अक्टूबर को अजमेर पहुंचे । सेठ नेमीचन्दजीने बहुत सत्कार किया। रात्रिको जैनमंदिर में सभा हुई और १५ प्रतिनिधि दिल्ली के लिये चुने गए । ता. २० को जैपुर आए। स्टेशनपर १०० भाई हाजिर थे। सेठ बालमुकन्द वनकी हवेली में उतरे। यहां जैपुर में प्रवास व सेठ - पर ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद चातुर्मास के प्रारंभजीको मानपत्र । से ठहरे हुए थे । ठोलियोंके मंदिर में तेरह - द्वीप विधान पूजा बहुत ठाठसे हो रही थी । रात्रिको भजन व कीर्तन होते थे । ता. २१ की दोपहरको वर्द्धमान जैन विद्यालय में जिसको पं० अर्जुनलाल सेठीने अपने खास प्रयत्नसे स्थापित किया था जैन शिक्षा प्रचारक समितिकी तरफ से ठाकुर कुंवर भोजराजसिंह के प्रमुखत्वमें एक मानपत्र अर्पण किया गया । सेठजीने उत्तर में कहा कि For Personal & Private Use Only अजमेर में सेठजी और सभा | Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ ] अध्याय बारहवां । “मैंने कुछ नहीं किया है । मेरे समान ओरोंकी भी तारीफ होय तो मैं बहुत खुशी होऊं । जैपुर में ५००० घरोमेंसे १८०० रह गए इसका कारण कुरीतियों का प्रचार मालूम होता है । इस कलंक से जैपुरको दूर करो । " ब्र० शीतलप्रसादजीने मरण पीछे जीमनके खर्चको घटानेको कहा । सेठजीने समितिको १०१) प्रदान किया अन्तमें | सभाका फोटू लिया गया जो अन्यत्र मुद्रित है । रात्रिको ठोलियोंके मंदिर में बड़ी उपदेशक सभा हुई जिसमें ब्र० शीतलप्रसाद, अर्जुनलाल सेठी व मूलचंदजी के भाषणों के पीछे सेठनीने विद्यापर बहुत बहुत उत्तेजना दी । ता. २२ को मुख्य भाइयोंकी समासे २० प्रतिनिधि दिल्ली के लिये चुने गए। ता. २३ को सांगानेरके अद्भु 1 जिन मंदिरोंके दर्शन किये। दो पहरको ब्र० शीतलप्रसादजीके साथ २५ वर्ष से स्थापित जैन महा पाठशालाका निरीक्षण किया । पाठशाला में एक सभा हुई । सेठजीको मानपत्र दिया गया । सेठजीने कहा कि जैपुर जो एक वर्षके लिये भी जोमनों को बंद करके उस रुपयेको महा पाठशाला में देदें तो एक मोटा फंड हो जावे । आपने १०१) पाठशाला में दिये । फिर समितिके बोर्डिंग व दफ्तरको देखकर इसी रात्रिको चल ता. २४को दिल्ली आए । ता. २६ अक्टूबरको लक्ष्मीनारायणकी धर्मशाला में सभा हुई। ३०० भाई हजारीबाग, कलकत्ता, इन्दौर, देहली में शिखरजी लखनउ आदि स्थानोंसे आए थे । सब विषयक सभा | १००० दि. जैनी जमा थे। सेठ माणेक 1 चंदजी के प्रस्ताव व रा० ब० घमंडीलालजी के समर्थनसे लाला ईश्वरीप्रसादजी रईस म्यूनिसिपल कमि For Personal & Private Use Only Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६६३ भर व गव० ट्रेजरर दिल्ली सभापति व बाबू धन्नूलाल अटार्नी उपसभापति हुए। बहुत विचारके बाद सेठ माणिकचंदजीके प्रस्ताव करने व बाबू धन्नूलाल और अर्जुनलाल बी. ए. के समर्थनसे यह प्रस्ताव हुआ कि दिगम्बरियोंको पैरवीका कोई समय न दिया जाकर पट्टा रद्द किया गया इससे यह सभा क्षोभ प्रगट करती है तथा पुनः विचारके लिये निवेदन करती है। इसकी नकल तारा द्वारा भारत सर्कारको भेजी गई। फिर सेठ हुकमचंदजीके प्रस्ताव व बा० सुलतानसिंह मेरठके समर्थनसे बड़े लाटको मेमोरियल भेजना निश्चय हुआ। इसकी एक सब कमेटी बनी। तीसरा प्रस्ताव डेप्युटेशन भेजे जानेका हुआ। व तीर्थक्षेत्र कमेटीको पत्रव्यवहारकी सत्ता दी गई। यहांसे ता० २७ को चलकर ता० २९को सेठजी बम्बई आ गए। अहमदाबादसे श्राविकाश्रमका प्रचार करनेके लिये श्रीमती ___ मगनबाई और ललिताबाई ता० २६ अक्टूश्रीमती मगनबाईजी- बरको चलकर अजमेर आए। रात्रिको सभा की यात्रा। करके मिथ्यात्वका त्याग कराया। ता० २८ मीको जैपुर गए। यहां पर कई सभाएं करके स्त्रीशिक्षाका प्रचार किया। ___ नं० १-ता० २९-१०-१० को पाटोदी मंदिरमें " स्त्रियोंका अज्ञान कैसे मिटे" इस विषयपर । २-ता० १-११-१०को महावीर स्वामी मंदिर में "ज्ञानकी महिमा" के ऊपर । ३-ना० २-११-१०को शास्त्र सभाद्वारा नियमादि दिलाए For Personal & Private Use Only Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ ] अध्याय बारहवां । व सरस्वती कन्याशाला देखी जो समितिके आधीन चलती थी। इसमें अनुभवके साथ ज्ञान दिया जाता था। ता० ३-११-१०को सांगानेर में जाकर दर्शन किये व उपदेश दिया। ता० ४-११को आमेरमें जाकर प्राचीन मंदिरोंके दर्शन किये, पूनन की। ता० ६को सार्वजनिक खास सभा करके शीलवतकी महिमा कही। अनुमान २००ने नियम लिया । ता० ७ को रत्नत्रय धर्म पर व्याख्यान दिया। ता० १२ को दारोगाजीके मंदिरमें सभा हुई। आश्रमके लिये २३०)का फंड हुआ। समितिके आधीन तीन कन्याशाला व बोर्डिगके छात्रोंको मिठाई बांटी व इनामके लिये २५) दिये। इन बाइयोंके उपदेशसे जैपुरकी स्त्रीसमान स्त्रिशिक्षामें जो कुछ बुराई समझती थी उसे दूर कर कन्याओंके पढ़ाने में रुचि करनेवाली हुई व पढ़नेकी निन्दा त्यागती हुई। वास्तव में जैसे सेठजी बालकोंके उद्धारमें कमर कसे हुए थे ऐसे ही उनके यशको विस्तृत करनेवाली उनकी सुपुत्री मगनबाईनी स्त्री समाजके उद्धारमें दृढ़ प्रयत्नशील थीं। इष वर्ष ऐलक पन्नालालजीने अपना चातुर्मास शोलापुर में किया था। वहांसे त्यागीनी मगसर वदी बारामतीमें २ को बारामती पहुंचे । सेठ माणिकचन्दनी सेठजी। बम्बईसे और श्रीमती मगनबाईजी सीधी जैपुरसे यहां आगई थीं। मगसर वदी ४ को त्यागीजीका केशलोंच हुआ । इस अवसरपर सेठ हीराचन्द For Personal & Private Use Only Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [ ६६५ नेमचंद ने 'दान' पर व्याख्यान दिया, उसी समय ३०००) का फंड बारामती पाठशाला के लिये हुआ । १००००) का पहले था । इसका नाम “ ऐलक पन्नालालजी पाठशाला रक्खा गया। अर्जुनलाल सेठी भी आये थे । समितिके लिये ७००) का व अहमदावाद श्राविकाश्रम के लिये १२५ ) का चंदा हुआ । यहांसे सेठजी नातेपुते गए। वहां मगसर वदी ८ को पाठशालाकी परीक्षा लेकर इनाम बांटा। यहांसे आप दहीगाम आए । २ वर्ष हुए तत्र ब्र० शीतलप्रसादजीके साथ यहां हो गए थे। उस वक्त हूंमड़ ज्ञाति सुधारक कमेटी नियत हुई थी । उसके मंत्री बापूभाई पानाचंदने २ वर्षकी रिपोर्ट सुनाई जिससे मालूम हुआ कि १० वर्षसे नीचे लड़की की सगाई न करना ऐसी प्रतिज्ञा जिन्होंने लीथी उन्होंने अच्छी तरह पाली । जिन्होंने सही नहीं भी की थी उन्होंने पाली । तथा जिन्होंने कन्याविक्रय न करनेकी प्रतिज्ञा ली थी वे भी दृढ़ रहे । सेठजीको इससे बहुत संतोष हुआ । सभामें कितनेक भाईयोंके मुंह से सेठजीने सुना कि जो ५ वर्ष तक ऐसा ही नियम चला तो कन्याविक्रय आपसे आप बंद हो जायगा । इस अवसरपर सेठजीने मराठी में कुरीति निवारण पर भाषण भी कहा। सेठजी मराठी, गुजराती, हिंदी तीनों भाषाएं अच्छी तरह बोल लेते थे । नातेपुतेमें इनाम वांटा | सेठ नवलचंदजी जब गोमटस्वामी के मस्तकाभिषेक पर मूड़विद्रीकी तरफ गए थे तब आप कार्कल कार्कल में सेट नवल- भी पधारे। वहां पर संस्कृत पाठशाला तो चंदजीका दान | चल रही थी पर परदेशी छात्रोंके लिये बोर्डिङ्गकी बड़ी आवश्यकता थी । तब उस समय वहां सेठ ओंकारजी कस्तूरचंदजी भी थे । सेठ नवलचंद - For Personal & Private Use Only Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६६ । अध्याय बारहवां । प्रेरणासे ४०१) कस्तूरचंदजीने, २५१) सेठ हीराचंद गुमानजी व ५१) तीर्थभक्त स्वर्गवासी सेठ चुन्नीलालकी धर्मपत्नी जड़ावबाईने दिये थे । वास्तवमें सेठनीका घरानाभर ही उदारचित्त धारी है। फतहपुर (सीकर) निवासी सेठ गुरुमुखराय सुखानंदकी कोठी बम्बईमें बहुत प्रसिद्ध है । आप दिगम्बर महाराज सीकरको जैन समाजमें अग्रगामी उदारचित्त धर्मप्रेमी हीराबागमें ____सज्जन हैं । किसी कारणवश सीकर महाराज मानपत्र। आपसे अति प्रसन्न हुए तब आपसे कहा कि जो कोई हमारे लायक काम हो सो कहो तब दयालुचित्त सेठने अपने स्वाथको त्यागकर यह अभयदान मांगा कि सीकर, लछमनगढ़, फतहपुर, और रामगढ़ में भादों सुदी ५ से १४ तक १० दिन दशलाक्षणो और हर मालकी चौदसको कोई जीव हिंसा न हो-कसाईखाने बंद रहें। महाराजने यह स्वीकार करके सेठ सुखानंदनीको पत्र मिती मगसर वदी १३ संवत् १९६७ को लिख दिया और राज्यमें घोषणा करनेकी प्रतिज्ञा की । इस दयालुताको देखकर बम्बई दिगम्बर जैन प्रां० सभाने ता० ३ दिसम्बरको हीराबाग लेकचर हॉलमें श्रीमान् महारानके सन्मानार्थ सभा की। श्रीयुत् खेमराज श्रीकृष्णदास वेंकटेश्वर ' पत्रके स्वामी, सेठ ओंकारनी कस्तूरचंद आदि ५०० से अधिक भाई सभा भवन में विराजित थे । श्रीयुत १०८ श्री माधवसिंहजी महाराजकी सवारी मोटर द्वारा ७ बजे रात्रिको पधारी। स्वागतके लिये सेठ माणिकचंदजी आदि कई भाई द्वारपर खड़े थे। उनके साथ पहले आप दफ्तर तीर्थक्षेत्र कमेटीमें आकर बिराजे और सेठ माणिकचंदजीसे For Personal & Private Use Only Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [६६७ धर्मशाला आदिके सम्बन्धमें बहुत वार्तालाप की । फिर हॉलमें विराजमान होनेपर मंगलाचरण आदिके पीछे श्रीमान् सेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० और सेठ गुरुमुखराय सुखानन्दजीने दिगम्बर जैन सभाकी ओरसे एक मनोहर कासकेटमें अभिनन्दन पत्र अर्पण किया। इसका उत्तर महाराजकी ओरसे कहा गया कि मैंने जो कुछ किया है इसमें सिर्फ अपना फर्ज अदा किया है। इस वर्ष अलाहाबादमें बड़े दिनोंमें कांग्रेसका अधिवेशन था ___ तथा प्रदर्शनीकी बड़ी धूम थी। ऐसे अवअलाहाबादमें बोर्डिंग- सरपर सेठनी भी श्रीमती मगनबाईनीको का निश्चय व सेठजीका लेकर प्रयाग आए। ब्र० शीतलप्रसादनी, गमन । कुंवर दिग्विजयसिंह, पं० अर्जुनलालजी सेठी, सेठ हुकमचन्दजी, पंडित गणेशप्रसादजी सागर, मुंशी चम्पतरायजी आदि अनेक परदेशी जैनी आए थे । इस वक्त सेठजीके आगमनका उद्देश्य प्रयाग बोडिंगका निश्चय करना था । सेठनी और मगनबाईजीने धर्मपत्नी लाला सुमेर चंदजीसे मिलकर अच्छी तरह समझाया कि आप अपनी इस पच्चीस हज़ारकी रकमको अपने पतिके नामसे बोर्डिंग कायम करनेके लिये ही अर्पण करके पुण्य और यशका लाभ लेवें। ब्र० शीतलप्रसादनीने भी समझाया कि यह सर्व धर्मका काम है। धार्मिक शिक्षा लेनेसे कॉलेजके छात्रों का बहुत कल्याण होवेगा। दूसरी तरफ सेठजीने प्रयागके भाईयोंको राजी किया कि वे इस काममें मन वचन कायसे मदद देवें । ता० २८ और २९ दिसम्बर १० को For Personal & Private Use Only Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ ] अध्याय बारहवां । जैनधर्मशालामें दानवीर सेठजीके सभापतित्वमें दो सभाएं हुई जिनमें ब्र० शीतलप्रसादजी और पंडित अर्जुनलाल सेठीके बोर्डिंगकी आवश्यकता पर व्याख्यान हुए । ता० २९की सभामें प्रकट किया गया कि प्रयागनिवासी लाला सुमेरचंदकी धर्मपत्नी "सुमेरचंद दिगम्बर जैन बोर्डिङ्ग हाउस" स्थापित करनेके लिये २५०००) पच्चीस हज़ार प्रदान करती हैं। इस बातके सुनते ही सर्व सभाने कोटिशः धन्यवाद दिया। उसी समय १५ महाशयोंकी एक प्रबन्धकारिणी सभा बनाई गई जिसके सभापति दानवीर सेठ माणिकचन्दजी, उपसभापति लाला शिवचरणलालजी, कोषाध्यक्ष लाला मूलचन्दनी, मंत्री बाबू जगमन्दिरलाल, उपमंत्री बाबू बच्चूलाल व धर्मोपदेशक बाबू ऋषभदासजी नियत हुए तथा तय हुआ कि कोई बंगला शीघ्र तलाश कर बोडिंग खोलनेका प्रबन्ध किया जायगा । सेठजीने सब वात पक्की कर दी । फिर आप बंगलोंको देखनेके लिये निकले । एक बंगला ठीक भी किया पर उसको खाली होनेसे विलम्ब था । यहां ३ सभाओंमें जैन विद्वानोंके भिन्न २ विषयोंके व्याख्यान हुए तथा सेठजीने प्रदर्शनी और राष्ट्रीय सभाके अधिवेशन भी देखे । जमना तटपर प्रदर्शनीका अद्भुत ठाठ था । यहांपर एक अंग्रेन हवाई विमान लाया था जिसपर लोगोंको बिठाकर आकाशमें दूरतक फिराता था । फिर सुगमतासे उतार लाता था। एक दिन सेठ हुकमचंदनीने १२५) दिये और जहानपर बैठकर आकाशकी सैर की। प्रयागमें श्रीमती मगनबाईजीने स्त्रियोंको उपदेश दिया व श्राविकाश्रमके लिये १५०) का चंदा किया। For Personal & Private Use Only Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग | सेठजी श्रीमती मगन बाईजी और सेठ हरीभाई देवकरणजी बाले जीवराज बालचंदके साथ काशी ता० सेठजीका दौरा काशी १-११-११ को आए। ब्र० शीतलऔर जबलपुर । प्रसादनी भी सेठजी के साथ थे। स्याद्वाद महाविद्यालयका प्रबन्ध संतोषजनक पाया। दिहलीके बाबू नंदनिशोरजी ३ मास पहलेसे आकर प्रबन्धकी देखभाल रखते हुए यहां विद्याध्ययन करते थे। प्रबन्यसे प्रसन्न हो जीवराजने २५०) प्रदान किये तथा सेठ कल्याणमल इन्दौर ने प्रयागसे १००) की सहायताका वचन सेठजीको दिया था। यहांसे सेठजी जवलपुर आए । इस समय सिंघई नारायणदा सजी बीमार थे । शरीर बहुत अस्वस्थ था। जबलपुर बोर्डिंगको सेठनीने लक्ष्मीका उपयोग बोर्डिङ्गके निमित २००००) नकद करनेके लिये उपदेश दिया उसी समय और एक बंगला- आपने एक बंगला जिसकी आमद करीब का दान। १५०)के मासिक है तथा २००००) नकद बोर्डिंग और धर्मशाला बांधनेको निकाल दिये जिसका प्रबन्ध सेठनी व अन्य चार जबलपुरके भाइयोंकी ट्रष्टोमें सौंप दिया । वार वार उपदेश कभी न कभी अवश्य अपना फल दिखलाता है। सिंघई नारायणदासजीसे जब कभी सेठनी मिलते ये लक्ष्मीके सदुपयोगका उपदेश दिया करते थे। For Personal & Private Use Only Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय बारहवां | पावागढ़ सिद्धक्षेत्र के पर्वत पर कई जिन मंदिर जीर्ण पड़े हुए हैं इनमें से एक मंदिरका जीर्णोद्धार सेठ चुन्नीलाल हेमदूसरे का बेड़च पावागढ़ में बम्बई दि. माणिकचंदजी के भानजे सेठ जैन प्रा० सभा और चंद जरीवाले बम्बई और मगनबाईजीका निवासी जीवाभाई काशीदासकी विधवा इच्छाबाईने कराया । तथा इसीके साथ बिम्ब प्रतिष्ठाका उत्सव भी किया गया था । माह उद्योग । सुदी ७से ढाईद्वीपका पाठ प्रारंभ हुआ व अंकुरारोपण विधान हुआ । प्रतिष्ठाकारक भट्टारक श्री गुणचंद्रजी थे। इसी अवसर पर बम्बई दिगम्बर जन प्रान्तिक सभाका वार्षिक अधिवेशन प्रसिद्ध दानी नाथारंगजी गांधीवाले सेठ रामचंद नाथा के सभापतित्व में हुआ। स्वागतकारिणी सभा के सभापति सेठ चुन्नीलाल हेमचंद थे । जल्सा बहुत सफलतासे हुआ। श्री शिखरजी सम्बन्धी प्रस्ताव पास हुआ । पंडित गोपालदासजीको 'स्याद्वादवारिधि' का पद प्रदान किया गया तथा तीर्थके प्रबन्धके लिये एक कमेटी बनी जिसके सभापति सेठ चुन्नीलाल व कोषाध्यक्ष व मंत्री लालचंद कहानदास बड़ौधा हुए। इस सभा के अवसर पर सेठ माणिकचंदजी दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा के अधिवेशनपर सांगली गए हुए थे इससे वे जल्से में नहीं आ सके थे । उनकी सुपुत्री श्रीमती मगनबाईजी आई थीं जिन्होके उद्योगसे माह सुदी ११ ता० १०- २ - ११ की रात्रिको चुन्नीलाल हेमचंदकी धर्मपत्नी नंदकोरबाईके सभापतित्वमें ६७० ] For Personal & Private Use Only Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७१ महती जातिसेवा तृतीय भाग । सभा हुई। १५०० स्त्रियां थी। श्राविकाश्रमकी बाईयोंने उपदेश दिया। अहमदावाद श्राविकाश्रमके लिये ३५०) का चंदा हुआ जिसमें प्रमुखाने १००) दिये। दूसरी स्त्रीसमा माह सुदी १३ को प्रतिष्ठा मंडपमें हुई। इसमें १००० स्त्रियां थीं। मगनबाईनीने स्त्री'धर्म और आचारपर व्याख्यान दिया जिसका अच्छा प्रभाव पड़ा। प्रान्तिक सभाके उपदेशक फंडके लिये २५००)रु.का चंदा हुआ। पर्वत पर कलश स्थापनादिकी उपज ३२००)की हुई। बाबू माणिकचंदनी बैनाड़ा प्रान्तिक सभाके महामंत्री और सेठ माणिकचंद पानाचंद जोहरी कोषाध्यक्ष नियत हुए । त्यागी ऐलक पन्नालालजीके पधारनेसे बहुत ही प्रभावना हुई । ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी भी आगए थे। पं० अर्जुनलाल सेठी बी० ए० व सेठ नवलचंद हीराचंदनी भी आए थे। समिति जपुरके लिये ३००) की उपज हुई। भंडारमें कुल आमद ७०००) हुई। जन संख्या ६००० थी। सेठ मूलचंद किसनदास कापड़िया संपादक “ दिगम्बर जैन " ने इस महोत्सवके लिये बहुत परिश्रम उठाया था। सेठ माणिकचंदनीने सांगलीसे सहानुभूति सूचक तार व सभापतिपदसे स्तीफा भेजा। समाने स्तीफा अस्वीकार किया और सेठजी जैसे इस सभाकी रक्षा अब तक करते रहे हैं वैसे करते रहें ऐसी सर्व सभाने इच्छा प्रकट की। बेलगांवके निकट सांगली एक राज है। यहां माघ सुदी ७ __ता० ५ फर्वरीसे ११ से माघ सुदी १२ सांगलीमें द० म० ता० १० फर्वरी तक बिम्ब प्रतिष्ठा व रथोजैन सभा और त्सव था। तथा इसी अवप्तर पर दक्षिण सेठजी। महाराष्ट्र जैन सभाका तेरहवां वार्षिक अधि वेशन था । इस उत्सवमें हमारे प्रसिद्ध दानवीर सेठ माणिचंदजी पधारे थे। सभापति सेठ हीराचंद For Personal & Private Use Only Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ ] अध्याय बारहवां । अमीचंद शाह शोलापुर हुए थे। इसके साथ सेठ हीराचंद नेमचंदनी भी आए थे। पं० अर्जुनलालजी सेठी भी मौजूद थे। कुल २६ प्रस्ताव पास हुए इसमें मुख्य २ प्रस्ताव ये थे___ (१) बादशाह सातवे एडवर्डकी मृत्यु पर शोक, (२) बादशाह पंचम जोर्जके सिंहासनारूढ़ होने पर अभिनंदन, (३) जीवहिंसा बन्द की जाय । कई रजवाड़ोंने हिंसा कम की है, बादशाह जार्न भी दयाका विस्तार करै । इस प्रस्तावको सेठ माणिकचंदजीने प्रस्तावित किया था (४) सभाके शिक्षण सम्बन्धी फंड वसूल करनेको डेपुटेशन हुआ जिसमें सेठ माणिकचंद हीराचंदजी भी सभासद नियत हुए। सांगली सरकार श्रीमंत आपा साहबने विद्याकी ओर बहुत रुचि दिखलाई । सेठ माणिकचंदजीने यहांके छात्रोंको विद्यासम्पादनार्थ उद्यम करके एक दिगम्बर जैन बोर्डिग कायम करानेका प्रबन्ध कराया जिसमें वहांके निवासियोंने अपना धर्मादा देना स्वीकार किया। प्रबन्धार्थ स्थानिक कमेटी बनाई जिसके अध्यक्ष श्री बाबाजीराव शांतप्पा औरबाड़े, मंत्री श्रीयुत बालप्पा चंदप्पा धावते हुए। इस बोर्डिंगको खोलना जून मासमें निश्चय हुआ। जबलपुर दि० जैन बोर्डिगमें आना द्रव्य सेठ माशिकचन्दनीकी प्रेरणासे लगाकर सिंघई नारायणदासजी फासिंघई नारायणदास- गुण वदी ८ को अपनी दो पत्नियोंको जीका परलोक। निःसन्तान छोड़ इस शरीरको त्याग गए। ___ इस समाचारसे सेठजीको कुछ शोक हुआ पर धर्मात्मा सेठजी इस बात में सन्तोष मानते हुए जो थोड़े ही दिन For Personal & Private Use Only Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KWY, VRHOD सेठजीके पुत्र चिरंजीव जीवनचंद. J. V. P. Surat. (देखो पृष्ठ ६३२) For Personal & Private Use Only Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग [६७३ पहले सेठजीकी मुलाकातसे उन्होंने २००००) बोर्डिंगका मकान बनाने व एक बंगला खर्च चलानेको अर्पण कर दिया था । सेठ माणिकचन्दनीके पत्रव्यवहारकी प्रेरणासे पंजाब दिगम्बर जैन बोर्डिंगका वार्षिकोत्सव ता० २६ फरी पंजाब दिगम्बर जैन ११को हुआ । सेठजीने ब्रह्मचारी शीतलबोर्डिंगका बार्षिको प्रसादजीको भेज दिया था, आप अति दूरीके त्सव । कारण नहीं जा सके । यह बोर्डिंग ६४) ____ मासिकके किराये पर एक मकानमें स्थापित था। इसीके - हातेमें दिनको ११ बजेसे लाला रामानंद रईस फीरोज़पुर शहरके सभापतित्वमें वार्षिकोत्सव हुआ । रामलालजी मंत्रीने रिपोर्ट पढ़ी, पीछे लाला कूड़ामल छात्रको एक चांदीका तमगा इनाम दिया गया कि उसने १२२) बोर्डिंगके लिये एकत्र किये व महावीरसिंहको धर्मशास्त्र दिये गये क्योंकि उसने ९९) जमा किये थे। ब्र० शीतलप्रसादजीने बोर्डिंगसे धर्मकी स्थिरता व चारित्रकी शुद्धता होती है ऐसा कहकर दानकी प्रेरणा की तव उसी समय २०००) से अधिक चंदा हो गया। मंत्री रामलालनीने बोर्डिंग मकानके एक कमरेके लिये ५००) देनेका प्रण किया । दो दिन तक धार्मिक व्याख्यानोंका अच्छा आनन्द रहा । आम सभा में अन्यमतियोंने भी लाभ लिया। सेठजी जल्सेकी सफलता जानकर हर्षित हुए। For Personal & Private Use Only Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ । अध्याय बारहवां । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महा सभाका, जिसके सेठ माणि कचंदजी सभापति थे, १५वां वार्षिकोत्सब भा० दि० जैन महा मुजफ्फरनगरमें रायसाहब द्वारकासभा मुजफ्फर- प्रसादजी सब इंजीनियर कलकत्ताके नगर में। सभापतित्वमें सानन्द हुआ। तथा भारत जैन महामंडलका भी, जिसका पूर्व नाम जैन यंग मेन्स एसोसिएशन था, वार्षिक जल्ला बाबू जुगमन्दिरलाल जैनी एम. ए. बैरिष्टरके सभापतित्वमें हुआ । सेठनी नहीं आसके । श्रीमती मगनबाईजी, चंदाबाईजी, गंगाबाईजी आदि महिलाएँ परिषदके लिये आई थीं । ब्र० शीतलप्रसादजी, व कुंवर दिग्विजयसिंहनी भी आए थे, जिनके व्याख्यानोंका अच्छा प्रभाव पड़ा। कुंवर दिग्विजयसिंहजी पहले क्षत्री ठाकुर आर्यसमाजके अनुयायी थे पर पं० पुत्तलाल इटावाकी संगतिसे जैन धर्मको श्रेष्ठ जान पहले जैनी हुए । अब वे ब्रह्मत्रारीकी ७ प्रतिमाके नियम पालते हैं। अपने तीन पुत्र व स्त्री होते हुए भी घरसे स्नेह हटा दिया है। चैत्र सुदी ३ ता. २ अप्रैल १९१२को महासभाके मंडपमें ही भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला परिमहिला परिषदका २ पदका, जो शिखरजीमें स्थापित हुई थी, रा:जल्सा व मगन- दूसरा अधिवेशन बड़े प्रभावसे हुआ।३००० बाईका उद्योग । स्त्री संख्या थी । शहरकी प्रतिष्ठित अनैन महिलाएं भी आई थी । श्रीमती चमेलीबाई लाला अजितप्रसाद खज़ाञ्चीकी धर्मपत्नीने, जो बहुत उदारचित्त हैं, सभापतिका . आसन ग्रहण किया था। जैसे For Personal & Private Use Only Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। ६७५ महासभाके जल्से होते हैं-एक प्रस्ताव करता है दूसरा समर्थन करता है इसी तरह यह परिषद भी हुई। प्रस्ताव नं० १ में नियमावली पाप्त हुई । ता० ३ अप्रेलको दानका स्वरूप श्रीमती चंदाबाईने कहा जिससे प्रमुखा चमेलीबाईने २५०) सरस्वती भवन आरा व २५०) महिला परिषदके स्त्रीशिक्षा फंडमें दिये और स्त्रियोंने ६२६॥2॥ भेट किये। ४ अप्रैलको करीब ६० परदेशी वालिकाओंकी परीक्षा लेकर इनाम दिया गया। पुस्तकें व दस्तकारीकी चीजें श्राविकाश्रमकी बनी हुई दी गई। मुजफ्फरनगरकी कन्याशालाको ५०) मगनबाईनीने स्त्रीशिक्षा फंडसे दिये । फिर ८ प्रस्ताव और पास हुए जिनमें मुख्य दो (१) श्रीमती जानकीबाईजी पहले ईडरकी कन्याशाला फिर आराकी शाला में अध्यापिका थी, धर्ममें बहुत दृढ़ व परोपकारिणी थीं, उनकी मृत्यु पर शोक तथा उनके स्मरणमें 'गृहस्थ स्त्री धर्मपर' सर्वोत्तम लेख लिखे उसे ९) ७) व ५) का इनाम दिया जाय, (२) श्रीमती मगनबाई एक मासिक पत्र हिन्दी लिपिमें निकालें । इसी प्रस्तावके अनुसार सेट माणिकचंदनीकी सम्मतिसे अलग पत्र न निकाल २ पेन जैनमित्रमें महिला परिषदके बढ़ाए गए, (३) अहमदावाद श्राविकाश्रमका लाभ सर्व लेवे, (४) स्त्री समाज देशकी बनी चीजें पहने व देशी कारीगरीकी उत्तेजना देवें। इस जल्सेकी नियमित कार्रवाई देखकर और शांततासे सर्व कार्यका होना जानकर स्त्रियोंकी व खास कर मगनबाईजीकी कार्यकुशलता पर सबको आश्चर्य होता था। इसके पहले श्रीमती मगनबाईनी करहलके मेलेमें गई थी वहां ता० २४ मार्च से २९ तक रथोत्सव था। दो दिन स्त्रियोंको उपदेश करनेसे १० For Personal & Private Use Only Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ ] अध्याय बारहवां बाईयोंने अपनी पुत्रियोंके बालविवाह न करनेका नियम लिया । तथा ९) मासिक चंदा कन्याशालाके लिये हुआ था। सेठ माणिकचंदनीको मगनबाईजी पुत्रके समान थीं। जबसे श्राविकाश्रम अहमदाबादमें खोला गया श्राविकाश्रमका तबसे बाईजीका बम्बईमें जाना क्वचिद् ही बम्बई में आना। होता था इससे सेठजीको धार्मिक कामों में सम्मति करनेका बिलकुल मौका न मिलता था । तथा पूर्व सम्बन्ध भी कुछ ऐसा था कि मगनबाईजीके विना बम्बई निवास सेठजीको फीका लगता था तब आपने यही विचार किया कि श्राविकाश्रमको बम्बई ही में स्थापित किया जाय । एक त्रुटि अहमदावादमें यह भी थी कि द्रव्यकी मदद भी नहीं होती थी। बम्बई में परदेशी बहुत आते हैं इससे द्रव्यकी मदद भी हो सकेगी इत्यादि विचार कर सेठजीने अपने जुबली बागके बीचके बंगलेको, जिसका किराया अनुमान ८०) मासिकके आता था खाली कराया तथा कुछ कोठरियां उसके पीछे खाली कराई और निश्चय कर लिया कि वैशाख सुदी ३ वीर सं० २४३७ अक्षय तृतीयाके दिन आश्रम बम्बईमें खोला जावें। तारदेवके सेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिंगमें छात्रोंके दर्शनार्थ एक कोठरीमें चैत्यालय था पर बम्बईमें नवीन मंदि- टूष्ट फंडमें मंदिरजीके लिये कुछ रकम निकारकी प्रतिष्ठा । लनेका नियम था इससे कुछ हज़ार रुपये जमा होनेपर एक छोटासा मंदिरे बोर्डिंगके हातेमें बनवाया तथा उसका शिखर बनानेको सेठ गुरुमुखराय For Personal & Private Use Only Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [६७७ सुखानंदनीने ५००) से ऊपर रुपया दिया। मंदिर तैय्यार होनेपर उसकी प्रतिष्ठा श्रीयुत गनपति उपाध्यायने वैशाख वदी १४ ता० २७ अप्रैल ११से वैशाख सुदी ३ ता० १ मई तक की। पहला रथोत्सव पहले दिन दूसरा अंतिम दिनको हुआ । चैत्र वदी १४ की रात्रिकी सभा सेठ माणिकचन्दजीने यह प्रस्ताव मंजूर कराया कि जो कासार, पंचम, सेतवाल आदि बम्बई में व्यापार व नौकरीके लिये आते हैं उनको भोजनका कष्ट रेहता है इससे एक जैन रसोईघर खोला जाय । वैशाख सुदी १ की समामें श्रीयुत् गनपति उपाध्यायने श्री जयधवल महाधवल ग्रन्थोंके लिखने में जो कष्ट पड़े थे उनका वर्णन किया तथा कहा कि अजमेरवाले सेठ नेमीचन्दजीने जयधवलादि ग्रन्थोंकी एक प्रति लेनेको भट्टारकनीको १००००) देने कहे पर ग्रन्थ न दिये गये । सेठ माणिकचंद और हीराचंद नेमचंदका ही प्रयत्न था जिससे उनकी कनड़ी और हिन्दी भाझामें लिपि मेरे द्वारा हो सकी। सं० १९५३से मैंने नकल शुरू की जब तक पहले कनड़ी फिर बालबोध लिपि पूरी करके मैं यहां आया हूँ । एक राद्धान्त ग्रन्थ ३००००) श्लोकोंका और नकल होनेके योग्य है। ___अक्षयतृतीयाके सबेरे मंदिरजीकी प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण हुआ उस समय अच्छी उपज हुई । प्रतिष्ठाके पीछे ही सब स्त्री पुरुष पास ही जुबली बागके बंगलेमें गए । वहां सेठ हीराचंद बम्बईमें श्राविका- नेमचंदजीके द्वारा आश्रमका मकान श्रमका स्थापन । विधि सहित खोला गया । रिपोर्ट सुनी गई व आश्रमके लाभार्थ व्याख्यान हुए। अहमदा For Personal & Private Use Only Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७८] अध्याय बारहवाँ। वादमें यह आश्रम आसौज सुदी ११ ता० २५ अक्टूवर १९०९ को स्थापित हुआ था। १॥ वर्ष तक वहां अपना काम निर्विघ्न चलाकर यह बम्बई आया। अब यह बम्बई में बहुत उन्नति पर है । श्राविकाओंको धर्मका ज्ञान देनेमें शुरूसे अब तक श्रीमती ललिताबाई परिश्रमशील हैं। आश्रमकी ओरसे कई श्राविकाएं पूना कर्वेके विधवाश्रममें उच्च शिक्षा ले रही हैं। एक बाई अहमदावाद ट्रेनिंग कॉलिजमें शिक्षिकाका कम सीख रही हैं। सेठ माणिकचंदजी दूसरे तीसरे दिन आश्रममें जाकर घंटा दो घंटा सेठजीकी श्राविकाश्रम सर्व देखते थे व मगनबाईजीको सुप्रबन्धार्थ पर महती कृपा। सम्मति देते व लेते थे। कुछ दिनोंमें आपने ७०) मासिक करीबके कई कभरे और खाली कराके आश्रमके सुपुर्द किये जिसमें छात्राएं खूब अच्छी हवादार जगहमें रहें तथा वहीं एक कोठरीमें चैत्यालय भी कर दिया कि नित्य धार्मिक क्रियाको दूर न जाना पड़े। कोई २ बाईएं नलका पानी नहीं पीती थीं उनके लिये एक कुआं भी खुदवा दिया व बंगलेके आगे व बगलमें खूब वृक्षोंकी बहार व पानीका फंवारा चलने लगा जिससे श्राविकाओंको वृक्ष स्पर्शित सुन्दर स्वास्थ्ययुक्त पवनका लाम हो । इस समय आश्रम इसी स्थानपर है। खेद है सेठजी यकायक मृत्युवश हुए नहीं तो वे इसको भी चिरस्थाई कर जाते जैसे उनकी आदत थी कि जो काम अपने हाथसे खोलना उसे सदाके लिये पक्का कर देना, जिसमें दीर्घकाल रहकर वह काम अपना लाम बता सके । For Personal & Private Use Only Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६७९ जिस दिन श्राविकाश्रम बम्बई आया उसी दिन हस्तनापुरमें ऐलक पन्नालालजीके करकमलोंसे वह ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम- ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम भी खुला जिसके लिये 'का स्थापन । लाला गेंदनलालजीने अपनी १००) मासिककी नौकरी छोड़ी व जिसमें १०००) नकदके सिवाय अपना जीवन अर्पण किया व १ पुत्रको भी दाखल कराया। लाला भगवानदीननीने भी अपनी स्त्रीको त्यागकर केवल एक छोटे पुत्र और अपनी बहनके पुत्रको आश्रममें दाखल कराकर आश्रमके. लिये अपना सर्वस्व दान किया। बाबा भागीरथजीने इसके लिये बहुत प्रयत्न किया । सेठनी इस बात को जानकर बहुत ही हषित बुए । शीतलप्रसादनी इस समय हस्तनापुरमें थे। पाठकोंको यह बात मालूम ही है कि सेठजी प्रवास करनेमें बिलकुल आलसी न थे। जिसदिन किसी भी धर्म कार्यको जाना होता था तुरत ही चल देते थे। हरएक यात्राका खर्च अपने पाससे ही करते थे। ता: १४ मई को आप सितारा गए। वहां जैनियोंके १०० घरका सार जातिके हैं पर वहां सितारामें जैन मंदिर जिन मंदिर न होनेसे व जैन धर्म क्या है स्थापनमें सेठजीका ऐसा न जाननेसे ये लोग कालिका देवीके मंदिप्रयत्न। रही में जाते थे जब कि इनके जो सम्बन्धी कोल्हापुर और पूनामें हैं वे जिन मंदिरनी जाते हैं वे भी अपनेको जैन कहते हैं। सेठजीने मराठीमें उपदेश देकर जैन धर्मका व्यवहारिक ज्ञान कराया व जिनेन्द्रविम्ब दर्शनका For Personal & Private Use Only Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८०] अध्याय बारहवां। महत्त्व बताया। तब लोगोंने प्रतिमानीकी स्थापना होनेपर दर्शन करना कबूल किया । सेठजीने चैत्यालयके लिये सूरत व अन्यत्रसे जिनबिम्ब भेजना स्वीकार किया। धन्य सेठजीका धर्म प्रेम व श्रद्धा! जेष्ठ सुदी ५ अर्थात् श्रुत पंचमी वीर सं. २४३७की बहुत ___ नामांकित हुई कि उस दिन ता० १ जून श्रुत पंचमीमें बेलगांव १९११को एक काम तो यह हुआ कि जिसकी दि० जैन बोर्डिंगका कामनाको हृदयमें रखते हुए आरा निवासी स्थापन व सेठजीका बाबू देवकुमारजी स्वर्गधाम पधारे थे अर्थात गमन। ब्रह्मचारी नेमीसागर और बाबू कीरोड़ोचंद आराके उद्योगसे बहुतसे ताड़पत्रके ग्रंथ एकत्र करके बड़े ठाठसे जैन सिद्धान्त भवनकी स्थापना हुई जिसमें ब्र० शीतलप्रसादनी भी शरीक हुए थे तथा सठनीने सहानुभूति प्रदर्शक तार भेना था। इसी दिन बेलगाममें श्रीयुत धर्मराव सुबेदारके २००००) रु. के दानका कार्य अर्थात् ५० छात्रों के लायक एक भाड़ेके मकानमें दिगम्बर जैन बोर्डिंगकी स्थापनाका जल्सा हुआ। हमारे सेठजी व अन्य आसपासके भाई पधारे थे । कुंभोत्सव होकर गाजेवाजेसे स्थानपर जाकर सरस्वती पूजन हुई। फिर सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुर सभापति नियत हुए । फिर ए० बी० लट्टे आदिके भाषण हुए । नियमावली व १७ मेम्बरोंकी कमेटी ठीक की गई। सभापति ए० पी० चौगले वकील व मंत्री वालप्या भुनप्पा मिरजी हुए । सुबेदार साहबने कहा कि वह रकम टूष्टियोंके सुपुर्द की गई। १४०१) व्याज प्रति वर्ष आवेगा सो एक वर्षका मैं अभी For Personal & Private Use Only Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६८? देता हूं तथा फरनीचर वर्तन आदि अलगसे खरीद दिया गया है। सर्वने दातारको धन्यवाद दिया । सेठनी मानो बोर्डिंगके भक्त थे। इस बोर्डिगके खुलनेसे आपको बहुत ही आनन्द हुआ। सांगलीके गत उत्सवके समय सांगलीके भाईयोंने अपनी पंचायती धर्मादे की रकमसे दिगम्बर जैन सांगली दिगम्बरजैन बोर्डिंग स्थापनका विचार परमोपकारी सेठ बोर्डिगका स्थापन माणिकचन्दनीके उपदेशसे किया था, उसीके व सेठजीका १०१) स्थापनका महूर्त जेठ सुदी १२ वीर सं० का दान। २४३७ ता० ८ जून १९११को प्रातःकाल बड़े ठाठवाटसे परमोपकारी दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणकचंदजी जे० पी० के द्वारा हुआ। कुंभ स्थापन व सरस्वती पून नके वाद हो सेठनीकी प्रमुखतामें सभा हुई । सेठजीके उपकारमें श्रीयुत वालचंदजीने विस्तार पूर्वक विवेचन किया कि उन्हींके प्रतापसे यहांके धर्मादेकी रकम सार्थक हुई । फिर राज्यमें प्रतिष्ठित न्यायाधीश रावबहादुर पाटकरने अनैन होने पर भी कहा कि " कितने समयसे जैनी लोग विद्या में बहुत पीछे थे परंतु अब सेठजीके महान प्रयाससे शिक्षाके साधन बनते जाते हैं इससे मैं सेठजीका अति आभार मानता हूं"। फिर सभापति सेठजीने कहा कि आपने जो आज मुझे मान दिया हैं उसके लिये में योग्य नहीं हूं कारणकि अपनी मनुष्य जातिका यह कर्तव्य ही है कि दूसरोंका उपकार करना ही चाहिये । और उसीके अनुसार मैं केवल अपना कर्तव्य बनाता हूं इसमें मैं कुछ विशेष नहीं करता हूं।" For Personal & Private Use Only Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NA ..'.'VVVVVVUNNY. ६८२] अध्याय बारहवां । फिर बोर्डिगका मकान सेठजीने खोला। ८ छात्रोंको रत्नकरंड श्रावकाचारका पाठ दिया गया। सेठनीने १०१)का दान दिया उसी समय अनुमान ९००) रुपयेकी आमदनी हो गई। सेठजीको इस नवीन बोर्डिंगके स्थापनसे और भी आनन्द हुआ। वास्तवमें आत्म समाधि जब परमानन्द प्रदायक है तब उसके मुकावलेमें शुभोपयोगमें चित्तका आल्हाद होना भी आनन्ददायक और पुण्यवर्धक है । जो केवल इन्द्रियों के विषयोंसे सुख मानते हैं उन्हें इन शुभ कार्योंसे पैदा होनेवाले स्वाभाविक आनन्दोंकी ओर दृष्टिपात करना चाहिये । जब कि विषय सुखोंमें आत्मिक व शारीरिक शक्तिका क्षीण करना है तब इस स्वाभाविक आनन्दमें दोनों शक्तियोंको बढ़ाना है। सेठजी तीर्थोके सुधारके भी अनन्य भक्त थे । आप श्री गिर नारजीके सुधार में लगे हुए थे। श्रीशिखरजी श्री गिरनार क्षेत्रके पर सेठ हुकमचंदजीके उद्योगसे प्रबन्धकर्ता सुधार के लिये पर- बंड़ी मन्नालालजीने नियमावली व योग्य तापगढ गमन। रीतिसे कमेटी करना व योग्य प्रबन्ध करना स्वीकार कर लिया था, परन्तु उसके अनुसार कोई कार्रवाई जब नहीं हुई तब ता० ५-६-१० को तीर्थक्षेत्र कमेटीने अपने सभासदोंसे प्रस्ताव पास करा लिया कि अदालती कार्रवाई की जावे तो भी पत्र व्यवहार होता रहा कि किसी तरह समझ जावें चूंकि अदालतमें बहुत परेशानी व खर्च पड़ता है। सेठजीने एक दफे यही विचारा कि हम स्वयं परतापगढ़ नाकर निवटारा करें, यदि काम सीधा न हो तब For Personal & Private Use Only Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [ ६८३ अदालत से निबटा जाय । अतएव आप मूलचन्द किसनदास कापड़िया सम्पादक “दिगम्बर जैन " को लेकर रतलाम दोपहरको ता: ३० जून ११ को पहुंचे। यहां सेठजी बोर्डिंग खोलना चाहते थे सो घूमकर मकानोंको तलाश किया। फिर लौटकर आनेका निश्चय कर आप सांझको ही चल कर रात्रिको इन्दौर पहुंचे । सेठ हुकमचंदजीने भले प्रकार स्वागत किया । ताः १ जुलाईको ६ मंदि - रोंके दर्शन करके सेठ हुकमचंद बोर्डिंग देखी । १७ छात्र माष्टर दर्यावसिंह सोंधिया की सम्हाल में थे । इस छात्राश्रम में प्रति छात्रको ६) मासिक छात्रवृत्ति मिलती थी । हरएक अपने हाथसे रसोई करता था । रात्रिको १० की गाड़ीसे सेठ हुकमचंदजी और लाला हजारीलालजी को लेकर ताः २ जुलाईको सवेरे मंदसोर पहुंचे। वहां रु. १५०००) खर्च कर जो मनीराम गोरधनवालेने नई धर्मशाला बनवाई थी उसमें ठहरे। यहां अच्छा स्वागत हुआ। यहांसे मंदसोर के तीन मुख्य भाईयों को लेकर २० मील परतापगढ़ दोपहर को १ बजे पहुंचे । सेठ कस्तूरचंद तलेटी के यहां ठहरे । बंडी मन्नालालजी आदिसे मिले। रात्रिको ८ बजे कमेटी हुई जिसमें यहां के खास २ भाई बुलाए गए। वादविवाद के पीछे जो नियमावली छपी थी उसमें नियम ठीक किये गये और वह नियमावली छपाने के लिये मूलचन्दजीको सौंप दी गई । इस नियमावलीके नवीन कार्यकर्ताओंने प्रबन्ध करना स्वीकार किया । सभापति सेठ गुमानजी और बंडी मन्नालालजी, कोषाध्यक्ष और उपसभापति सेठ कस्तूरचंद तलहटी, मंत्री शाह कपूरचंद अमृतलाल खासगीवाले व उपमंत्री शाह गुमानजी जवाहरलाल हुए । नियमावली में नियम हुआ कि १०००) For Personal & Private Use Only Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ ] अध्याय बारहवां । कोषाध्यक्ष रक्खें वाकी सेठ हुकमचन्दनीके पास भेजें । वे अपने, कोषाध्यक्ष और सेठ नेमीचंदनी, ऐसे तीन नामोंसे योग्य स्थानपर जमा करावें । हिसाब प्रतिवर्ष प्रगट करना व कमेटीके दफ्तरमें भेनना निश्चित हुआ । उपमंत्रीको आज्ञा की गई कि एक मासके भीतर शिलक व हिसाब कस्तूरचन्दजीके सुपुर्द किया जाय। बंडी मन्नालालने भी स्वीकार किया। ___ यह सब बातें रात्रि ८ से २ बजे तक तय हुई। फिर ३॥ वजे तक गिरनार तीर्थके एक मकानका झगड़ा सुलझानेमें सेठजी लगे, इतनेमें सेठ हुकमचंदनी तांगेपर बैठ मंदसोर आ इन्दौर रवाना हो आए । सेठनीने दूसरे दिन मंदिरोंके दर्शन कर रात्रिको नवीन मंदिरमें सभा की। १००० उपस्थिति थी। सभाने सेठजीको सभापति नियत किया। मूलचंदजीने — अपनी स्थिति और उन्नतिके उपायों पर अनुमान १० बजे तक भाषण दिया। फिर कुरीति निवारणके लिये अग्रगामी व उद्योगी सेठनीने अपने पहले रात्रिके जागरणकी कुछ परवाह न करके वीसा मड़की पंचायत जोड़ी और इस विषयका लिखित प्रस्ताव करानेकी चेष्टा की कि १० वर्षसे पहले कन्याकी सगाई नहीं करनी । उस समय सफलता न हुई, आगे प्रतिज्ञा करेंगे ऐसा कबूल किया । ता. ४ को सवेरे ही चलकर मंदसोर होते हुए शामको ५ वजे रतलाम आए। रतलाममें रात्रिको दीवानसाहबसे मिलकर बोर्डिग खोलनेकी बात कही। दीवान साहबने मदद करना रतलाम बोर्डिंगके स्वीकार किया । ता. ५ जुलाईको दोपरह लिये प्रबन्ध । तक मकान तलाश किये । शामको महाराज सर सज्जनसिंहजी बहादुरजीसे For Personal & Private Use Only Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृताय भाग । [ ६८५ मिले । राजासाहबने १ घंटा वात की व बोर्डिग खोलना जानकर सेठजीको धन्यवाद दिया तथा बोर्डिंगके लिये ज़मीन मुफ्त व और भी मदद देनी कबूल की। फिर सूरत निवासी यहांके सर न्याया धीश मि. मगनलाल आत्माराम काजीसे मिले । इस दिन घूमकर चांदनी चौक में एक मकान पसन्द किया और आगामी आसौजमें बोर्डिग खोलने का निश्चय किया। यहांके हाईस्कूल के हेडमास्टर मि. कान्तीलाल के. नानावटी एम. ए. से मिले । हेडमाष्टर साहबने छात्रों को फ्री दाखल करनेकी इच्छा दर्शाई। यहां सेठ गंगाराम गुलाबचंदने बहुत मदद दी शाभको चलकर ८ बजे रात्रिको दाहोद आए । ७ जुलाईको सवेरे गाजे बाजेसे अष्टान्हिकाकी पूतन हुई । १० से १२ तक सभा हुई । मूलचंदजीने उन्नति पर भाषण दिया | पाठशाला जो बंद हो गई थी चालू करने, सभा स्थापित करने आदि पर कहा । सेठजीने उपदेश देकर लगभग ४० दशा हूमड़ भाईयों के हस्ताक्षर एक प्रतिज्ञापत्र पर लिये कि हम कन्याकी सगाई १० वर्ष से कम में न करेंगे, औरोंसे कराना स्वीकार किया | यहांसे रात्रिको चलकर सेठजी ता. ८ जुलाई १९१९ को बम्बई आए । सेठ माणिकचंदजी जैसे प्रत्येक प्रांत में बोर्डिंग स्थापनमें लीन वैसे ही उनकी एक विद्वान् सत्पुत्रके समान मगनवाईजी के अस- परम यशस्विनी मगनबाईजी प्रति प्रान्तमें श्राविकाश्रम स्थापित कराना चाहती थीं। मुज़फ्फरनगर में श्रीमती मगनबाई और चंदाबाईजी आराने ( जो प्रसिद्ध बाबू रसे मुरादाबाद में श्राविकाश्रम | For Personal & Private Use Only Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ ] अध्याय बारहवां । देवकुमारके छोटे भाई धर्म कुमारकी विधवा स्त्री वैष्णव कुलमें जन्म लेने पर भी जैन धर्मके मर्मसे भले प्रकार विज्ञ हैं ) श्रीमती गंगादेवीको आश्रमके लिये दृढ़ किया व चमेलीबाई देहरादूनसे मिलकर मासिक चंदा करा दिया । मुरादाबादकी स्त्रियोंने भी सहायता करके कुल चंदा ५०) मासिकका हो गया । तब गंगादेवीने आश्रमका महू आषाढ वदी ११ वीर सं० २४३७ को लोहागढ़वाले मंदिरकी धर्मशाला में करके स्वयं पढ़ाना व रहना स्वीकार किया । ८ पुरुषों की निरीक्षक व ९ स्त्रियोंकी कार्यकारिणी कमेटी बनी। यह आश्रम अब तक कायम है । इसमें परदेशी सात विश्वाएं हैं । ४ यहांसे निकलकर फीरोजपुर, अम्बाला, रोहतक आदि स्थानों में काम कर रही हैं। श्रीमती गंगादेवी मुकुन्दरामकी पुत्री हैं जो जैनजातिमें कालेन कायम करनेके लिये सबसे पहले पं० चुन्नीलालके साथ दौरा करने गए थे व अच्छे विद्वान् थे । इनके पुत्र लाला संतलाल मुरादाबादके रईस हैं। सेठ माणिकचंरजीने षोडशकारण भावना व उसके आसपासके दिन सुखशांतिसे बिताए तो भी शिखरजी रतलाम बोर्डिङ्गका पर्वतकी चिंता मनमें सदा ही बनी रहती थी। रतलाम नरेश भादों बाद आपने रतलाम बोर्डिङ्ग खोलनेके द्वारा स्थापन। लिये विचार किया । वागड़ प्रान्तमें शिक्षाका बहुत ही अभाव है इस बातको आपने पं० कस्तूरचंद उपदेशक द्वारा सं० १९६३ में अच्छी तरह जान लिया था। उनके दौरेकी रिपोर्टसे मालूम हुआ था कि ४२ ग्रामों में केवल एक ग्राममें ही जैन पाठशाला है तथा ५७०० जैनियों में For Personal & Private Use Only Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [ ६८७ सिर्फ १५० पुरुष और ७ स्त्रियां ही स्वाध्याय करने के योग्य हैं । बस आपने वागड़ प्रान्तको सुशिक्षित बनानेके लिये वागड़ के नाके रतलाम नगर में बोर्डिंग खोलनेका निश्चय करके उसमें नियम रक्खा कि ८ वर्ष से ऊपर के लड़के वागड़ व उसके आसपास के मुख्यतासे डूमड़ भरती हों । मिती आश्विन सुदी १२ गुरुवार ता० ५ अक्टूबर १९११ को मुहूर्त नियत करके बाहरसे बहुत लोगोंको बुलाया । मंदसोर, दाहौद, उज्जैन, इन्दौर आदि स्थानोंके भाई आए । आमोद वाले सेठ हरजीवन रायचंद को आपने खास तौर से आनेको लिखा सो सेठजीसे ट्रेन में मिल गये, एक साथ रतलाम पहुंचे । सभा के लिये एक बड़ा मंडप बांधा गया था । सवेरे ही १००० स्त्री पुरुष हाजिर हो गए थे। पहले कुंम स्थान और सरस्वती पूजन हुई उस समय प्रभावना में नवीन सामायिकपाठ बांटा गया था। दीवान साहब आदि राज्यकारवारी आनेके बाद ठीक ९ बजे रतलाम नरेश मोटर में आए। तुर्त कार्रवाई शुरू हुई । मास्टर दीपचंद उपदेश कने मंगलाचरण किया | फिर सेठजीने एक सुन्दर मानपत्र बड़े सन्मानसे भेट किया जिसको पंडित कस्तूरचंद उपदेशक मालवा प्रान्तिक समाने पढ़कर सुनाया । सेठ मूलचंद किसनदासजी कापड़ियाने बोर्डिङ्गका हेतु व नियमावली बताई और कहा कि इस बोर्डिंग २५०००) नकद व के निमित्त सेठ माणकचन्दजीके कुटुम्बयोंके १२५) मासिक की तरफ से २५०००) नकद व करीब १२५ ) मिलकतका दान । मासिककी मिलक्त प्रदान की जाती है । सेठ हरजीवन रायचन्द्र व सेठ कस्तूरचन्दके For Personal & Private Use Only Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ ] अध्याय बारहवां । भाषण हुए, इन सवका उत्तर देते हुए महाराजने अपने व्याख्यानमें बहुत उपयोगी बातें कहीं "अर्थात् बचपनकी उम्र गीली मिट्टी या हरी लकड़ी के समान होती है । गीली मिट्टीसे जैसी मूर्ति चाहो वैसी बना सकते हैं। हरी लकड़ी निधर चाहो मोड़ सक्ते हो। सु० सुआ-- चरणी होना चाहिये । शारिरीक उन्नति भी करानी चाहिये। जिस लड़केका शरीर अच्छा और निरोग है उसका दिमाग भी तन्दुरस्त होना चाहिये और वह काम भी अच्छा कर सक्ता है । तव दीवान साहाने प्रगट किया कि राजा साहब १५०) वार्षिक आश्रम जब तक कायम रहे तब तक देनेकी कृपा दर्शाते हैं । फिर महाराज साहबने बोर्डिंगका मकान खोला तथा फिरकर देखा । फिर आसन ग्रहण करनेपर सेठ माणिकचन्दनीने नजराना दिया और राना साहबका बहुत उपकार माना । पुष्पादिके सम्मानके पीछे जलता १०। बजे समाप्त हुआ। दिनको उपदेशक सभा हुई। आसौन सुदी १४को १० महाशयोंकी स्थानीय प्रबन्धकारिणी कमेटी नियत हुई । सभापति सेठ कस्तूरचन्द व सेक्रेटरी मि० कांतीलाल नाणावटी एम. ए. हुए। रतलामका काम समाप्त करके सर्व मंडली अहमदाबाद आई। और आसौज सुदी १५ को सबेरे मि० अहमदावाद बोर्डिंग- जीवनलाल वनराय देशाई बैरिष्टरके सभाका वार्षिकोत्सव। पतित्वमें सेठ प्रेमचन्द मोतीचन्द दिगम्बर जैन बोर्डिंग स्कूलका नवमा वार्षिकोत्सव हुआ। लल्लूभाई लक्ष्मीचंद मंत्रीने रिपार्ट सुनाई। फिर मूलचंद किसनदासजीने परीख लल्लुभाई प्रेमानन्द एल. सी. ई. को मानपत्र For Personal & Private Use Only Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PB- Rs क्षेत्र माणिक वन्द पाच दि. जैन बोडिंग हाउस-रतलाम. ( 322 For Personal & Private Use Only Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Awarwww महती जातिसेवा तृतीय भाग [६८९ अर्पण करनेकी दरख्वास्त की और कहा कि यह ७ वर्षसे इस छात्रा. श्रमके मंत्री रहे हैं । मेवाड़ा कौममें यह माननीय ओहदेदार हैं। हाल में यह जर्मनीके प्रभाससे लौट कर आए हैं नहा यह व्यापारके लिये गए थे । परीख लल्लूभाई अपने भाई मन्नूलालके साथ ता. १३ ___ अगस्त १९०८ शनिवारको बम्बईसे इजिप्त परीख लल्लूभाई नामके जहाज़ पर बेठे । उसमें ३५ और भी प्रेमानंदको हिन्दुस्तानी थे । ये अपने साथ पूरी, मिठाई, मानपत्र। और फलादि ले गए थे। उन ही को रास्त में खाते थे। यह जहाज़ अरेवि न समुद्र में चलता हुआ बुधवार तक पानी ही पानी का दिखाव करता था । झोंकोंसे मस्तक फि'ता था व भोजनकी रुचि कम होती थी। ५ दिन बाद गुरुवारकी मांझको ४ बजे महाज़ एडन शहरके पास पहुंचा। यहां २ घंटे ठहरा । फिर रेड सीमें जाने लगा। यहां हवा अच्छी थी। से मबारको १२ बजे सबेरे जहान विलायतकी यात्रा । सुएजकी नहर में चलने लगा। बंबईसे एडन १६०० मील व एडनसे सुएज ११०० मील था । सुएजसे पोर्ट सेड तक १०० मीलकी नहर खोदी हुई है। सुएज़ एक गांव आफ्रिकाके इजिप्त राज्यके आधीन है। देश ऊनड़ मालूम होता था । नहरके दोनों तरफ रेतीके समूह देख पड़ते थे। यहां ३ घंटे ठहर कर जहाज़ ३॥ बजे पोर्टसेड़में पहुंचा यहां १२ घंटे तक स्टीमर ठहरा । यह पोर्टसेड इजिप्त राज्यके आधीन है । अरबोंकी वस्ती है जो मांसाहारी हैं। शहर कुछ शोभनीक है । खच्चरोंकी ट्रामगाड़ी है । स्त्रियां परदा करती हैं। ४४ . For Personal & Private Use Only Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९० ] अध्याय बारहवां । बुरका पहनती हैं । ता० २३- ८-१० मंगलवारकी सांझको २३-८-१० ४ बजे जहाज सुएज़ नहर के उत्तर मुखको छोड़ कर भूमध्यसागर में चलने लगा | ता० २१ - ८-१० के दोपहर को मेसीनाकी खाड़ीमें पहुंचा। यहां तटपर ऐसा मालूम होता था कि पहले कोई मोटा शहर होगा | आगे चलकर एटनाका ज्वालामुखी पर्वत दीखता था जहांसे धुआं व पदार्थ निकल कर एक तरफ गिरते थे । ता० २८-८-१० को स्टीमर फ्रेंचोंके आधोन मार्सेल्स बंदर में पहुंचा । यह शहर व्यापारी है । कारखाने हैं । फ्रेंच भाषा है, फ्रान्क सिक्केका चलन है जो || = ) का होता है । यहां पर जहाज़ से उतर रेलवे द्वारा ३० घंटे चलकर दूसरे दिन पेरिस आए । रास्ते में हरएक गांवमें गिरजाघर देख पड़ता था । खेतों में क्यारियां कायदेसे थीं। ठंडी पड़ती थी । रेलवे में सफाई नहीं; चोरी व जैव काटे जानेका भय था । पेरिस एक सुन्दर नगर है । ३० लाखकी वस्ती है । मकानोंकी कतारें सीधी थीं । बड़े रास्ते पर ४ खनसे नीचेके मकान नहीं हैं। शहर में ज़मीन के नीचे मोटरोपोलोटन नामकी विजलीकी रेलवे चलती है । हरएक पांच२ मिनटमें आती है । व्यापारी शहर है । ये लोग अपने एक महचनिवासी देशी मित्रके यहां जीमते व होटल में ठहरे थे । यहां हरएक बालक बालिकाको ६ वर्ष से १४ वर्ष तक पढ़ाना ही पड़ता है । नीच जातिकी स्त्रियां भी पढ़ना लिखना जानती हैं। फूल बेचनेवाली, व गाड़ीवाला, व कूडेको ढोनेवाला भी समाचारपत्र वांचता है। यहां हरएक पुरुषको १९ या २० वर्ष की उम्र के पीछे २ वर्ष तक लशकरी खाते में For Personal & Private Use Only Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६९१ आनरेरी नौकरी करनी पड़ती है । ये लोग २ दिन पेरिसमें रहे । फिर ३० घंटे रेलमें चलकर जर्मनीके हेम्बर्ग नारमें ता० १-९-१०को सबेरे पहुंचे । यहांके लोग प्रेमी व उद्यमी थे। यह जर्मनीका द्वितीय भारी नगर व दुनियांके व्यापारी नगरोंमें चौथे नम्बरपर है । यहां व्यापार बहुत भारी है । रंग, व कपड़ों के बड़े २ कारख ने हैं। यहां एक्सचेंज आफिसमें ? ॥ बजे दिनसे २॥ तकमें ७००० व्यापारी और दलाल एक होकर सौदा कर लेते हैं। शेष कान टेलीफोन और पत्रसे होता है। शरदी बहत है। ॥) आनेवाला मार्क सिक्का चलता है । यहांके लोग विवेकी व साफ मनके हैं । ९ लाखकी वस्ती है। कुछ शौकीन भी हैं। अरहरकी दाल विना सब वस्तुएं दूध, शाक आदि मुम्बईके समान मिलता है। वी वैसा सहा नहीं मिलता है । ठंडीके सबब हरएक घरमें अग्निकी अंगीठी जलती है या विजलीसे हवा गर्म को जाती है । ये लोग व्यापारके लिये गए थे सो वहां १ मकान भाड़े लेकर दूकान खोल दो । कुछ दिन व्यापार किया, पर योग्य लाभ न देखकर लौट आये थे। बोर्डिंगकी तरफसे लल्लूभाई प्रेमानन्दको प्रमुखके हाथसे मानपत्र अर्पण किया गया । इसका जवाब देते हुए परीख लल्लूभाईने कहा कि “ मैं इस मानके लायक नहीं हूं पर इस मानके योग्य सेठ माणिकचंदजी हैं, जिनकी सूचना और सलाहसे मैं कोई भी सेवा व ना सका हूं। प्रमुख ने अपने भाषणमें कहा कि " विद्यार्थियोंको नौकरीकी आशा न रखके स्वतंत्र व्यापारके योग्य हों ऐसी शिक्षा लेनी योग्य है । दोपहरकी सभामें माता रूपाबाई For Personal & Private Use Only Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९२ ] अध्याय बारहवां को धर्मशाला बांधनेके लिये धन्यवाद दिया गया। मास्टर दीपचन्दनीके उपदेशसे चैत्यालयमें विद्यार्थियोंने हररोज अष्ट द्रव्यसे पूजनका नियम लिया व ५ वर्ष तक पूनाके द्रव्यका खर्च अहमदाबादके महासुखभाई दामोदरदासने देना स्वीकार किया। श्रीमती मगनबाईजी भी अपने पिताके समान अपने वचनोंकी पावन्दी व वर्तव्य पालनमें दृढ़ हैं। इसी प्रस्तावकी पाबन्दी । सुटेदके कारण अपने मुज़फ्फरनगर में होने वाली महिला परिषदके प्रस्ताव नं० ३ के अनुसार महिला परिषदकी तरफसे २ पेन “जैनमित्र'' में वीर संवत् २४३८ के प्रारंभी बढ़वा दिये और उसमें स्त्रियोंके लेख स्त्रियोपयोगी प्रकट होने लगे। सेठ माणिकचंदजीको सेठ नाथारंगजीके कुटुम्बके एक होनहार परोपकारी रत्न बाचंद पानाचंदका एक समाज सेवी होन- वियोग मिती आसौज वदी १५ सं १९६७ हार रनका के दिन २७ वर्षकी आयुमें ही सुनकर वियोग। चित्तको बहुत उदासीनता हुई। दहीगांव क्षेत्रमें वीसाहूमड़ सभा व महतीसागर उद्योतनी सभा सं० १९६५ में स्थापित कर उसके मंत्रीपनका काम बहुत योग्यतासे किया था । सेठजी इसीके उत्साहके कारण दो दफे दहीगांव गए व शिखरजी में जब पहाड़पर लाट साहब आए थे तब भी आप सेठजीके साथ गए थे। सेठजीके इस उपाय पर कि १० वर्षसे कमकी कन्याकी सगाई कोई न करे, आपने बहुतसे वीसा इमड़ोंके दस्तखत लिये थे व दक्षिणके वीसा हुमड़ोंकी For Personal & Private Use Only Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । डाइरेक्टरी तैयार की थी। धर्मशिक्षाके असरसे मरते समय १००००) शोलापुरमें बोर्डिंगकी इमारत ११५००) का बनाने व १०००) जैनियोंमें ज्ञान वृद्धि व दान। ५००) बम्बई प्रान्तके गरीब अनाथ किसानों के लिये दान किया और शांतिसे णमोकारमंत्र जपते हुए प्राग छोड़ा । वास्तवमें यह दानवीरता दानवीर सेठ माणिकचंदजीके ही संसर्गले प्रादुभूत हुई थी। मिती कार्तिक सुदी १४ वीर सं० २४३८ ता० ६ नवम्बर १९११ को श्रीमती मगनबाईजीने श्राविकामुम्बई श्राविकाश्रम- श्रमका वार्षिकोत्सव गोंडलकी युवराज्ञी श्री का वार्षिकोत्सव। राजकुंवरबाई के सभापतित्वमें बड़े समारोहके साथ किया था। ललिताबाईजीने रिपोर्ट सुनाई । आश्रमकी श्राविकाओंने पद व भजन, श्लोक कहे । इनाम बांटा गया । प्रमुखाने कहा-“ व्या धर्मके कारण जैन धर्म प्रसिद्ध है इससे वह स्त्रियों व विशेषकर विधवाओं के दुःखोंकी तरफ दुर्लक्ष रक्खेगा यह बात संभव नहीं है । उनको शिक्षा देना यही उनके साथ दया करना है।" __ मिती कार्तिक सुदी १४ कोही काशी स्याद्वाद महाविद्यालय का वार्षिकोत्व जैनजातिभूषण डिप्टी स्याद्वाद महाविद्याल- चम्पतरायजीके सभापतित्वमें बड़े समायका वार्षिकोत्सव रोहके साथ हुआ। उसमें दानवीर जैनव सेठजीका चित्र कुलभूषण सेठ माणिकचंद हीराउद्घाटन। चंद जे. पी. का अति मनोहर विशाल चित्रपटका उद्घाटनमहोत्सव उक्त सभापति For Personal & Private Use Only Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९४ ] अध्याय बारहवां । जीने किया उस समम आपने कहा: ___ "जैन जातिमें लोग सिंघई, सवाई सिंघई, श्रीमन्त आदिकी पदवियां पानेके लिये केवल रथयात्रा और जातिको जिमाने में लाखों रुपया खर्च किया करते थे और अब भी करते हैं । जिससे वास्तविक अज्ञानांधकारको मेटनेवाली प्रभावना नहीं हो सकती है । धन्य है जाति शिरोमाणि सेठ माणकचंदजीको कि जिसने विद्याकी वृद्धि में छह लाखके अनुमान द्रव्य खर्चकर चिरकाल के लिये ज्ञान वृद्धि का पथ स्थापित कर दिया है । ऐसे शिरोमणिका सन्मान यह जाति करनेसे असमर्थ है। इस विद्यालय के स्थापकों और पोषणकर्ताओंमें आप मुख्य हैं । इसलिये ऐसे महानुभावका चित्र विद्यालयके छात्रोंको उदाहरण बतलाने के लिये अत्यन्त आवश्यक है। सेठजीने कई वर्ष पहलेसे उपदेशकोंकी जरूरत देखकर उप देशकीय परीक्षाका पठनक्रम व नियम ठीक सेठजीका उदाहरण करके उपदेशक भंडार महासभाके मंत्री वाबू व धर्मप्रचारका सूरजभानके सुपुर्द किया था पर उसमें कोई गाढ़ प्रेम । भी कार्य हुआ न जानकर आपने स्वयं नो टिम निकलवाकर ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीके द्वारा वीर सं. २४३७में परीक्षा लिबाई । मध्यमामें कुंवर दिग्विजयसिंहनीने परीक्षा देकर २२) पारितोषिकके पाए। जघन्यमें हीराचंद सखाराम कोठारी आलंद और पीताम्बरदास बांसाने उत्तीर्णता प्राप्त की । प्रथमको १८) तथा द्वितीयको १०) इनामके मिले । इन तीनोंसे ही धर्मोपदेशका अच्छा उपकार हो रहा है। पीताम्बरदासजी बम्बई प्रान्तिक सभाके उपदेशक हैं और समाधानकारक कार्य कर रहे हैं । अब यह परीक्षा बंद है। यदि " पारि For Personal & Private Use Only Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृताय भाग। [६९५ तोषिककी उत्तेजना देकर यह परीक्षा जारी रखी जावे तो जैनियोंमें जो उपदेशकोंकी भारी कमी हो रही है सो दूर होजावे । भारतमें विलायतके बादशाहोंमें सबसे पहले ही आगमन महाराज पंचम जार्जका ता. २ दिसम्बर बादशाह जार्जका १९११ को हुआ तथा ता. १२ दिसम्बरको भारत आगमन व दिहली में एक बड़ा स्मरणीय दरि हुआ था। बम्बई में समा । . उसमें महाराजने भारतीयोंके लिये ये आनन्द वचन भी कहे कि “ हमारे बड़ोंने तुम्हारे हकोंको कायम रखने तथा तुम्हारी भलाई व सुख शांतिके लिये जो विश्वासपात्र वचन दिये हैं उन्हींको फिरसे ताजा करनका अवसर मुझे आज मिला है, उसके लिये मैं अपना हर्ष प्रकट करता हूं।" दरबार में बहुतसे जैनी भाई गए थे, पर हमारे सेठजी नहीं जासके थे । आपने इसी ता. १२ की शामको दूसरे भोई. वाईके जिन मंदिरजीमें लाला छन्जूमल अलीगढ़ निवासीके सभापतित्वमें सभा की और महाराजको सुख शांति रहे ऐसा तार भिजवाया । सवेरे यहां व चौपाटीके जिन मंदिरजीमें श्री जिनेन्द्र देवकी पूजा की गई व राज दम्पतिके कल्याणकी भावना भाई गई । इसी दिन भूखोंको अन्न भी बांटा गया। श्री सम्मेदशिखरजी पर्वतकी रक्षाके लिये जो पट्टा दिगम्ब रियोंको हुआ था उसको रद्द होनेका हुकम पर्वतरक्षार्थ सेठजी वाईसरायका जबसे आया था तवसे उसकी कलकत्तेमें। एक भारी चिंता सेठजीके चित्तमें थी। कलक त्तेमें बाबू धन्नूलाल अटार्नी और सेठ परमे For Personal & Private Use Only Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९६ ] अध्याय बारहवां । ष्ठीदासजीको प्रेरणा करके आप उद्योग कराते रहे । इन लोगोंने बंगाल सर्कारसे लिखापढ़ी की तथा ता. २८ दिसम्बर १९.११ के दिन कलकत्तमें मुख्य २ भाईयोंकी एक कमेटी नियत की। सेठनी सेठ बालचंद रामचंद और बालचन्द्र नेमचन्द्र शोलापुरवालोंके साथ कलकत्ते पहुंचे और ता. २८को विचार किया गया । बाबू धन्नूलालने भरोसा दिया कि बंगाल सर्कारसे बातचीत हो रही है, आप चिंता न करें। सेठजी यहां २ दिन ठहरे और श्वेताम्बरी भाईयोंसे मिलापकी भी चेष्ठा की परंतु कोई सफलता न हुई। ता. ३०की रात्रिको कि जव महाराज पंचम जार्ज और महारानी मेरी कलकत्ते पधारे थे, नए दि जैन मंदिर में सेठ बालचंद रामचंदके सभापतित्वमें सभा हुई । सेठजीने हरीभाई देवकरणके घरानेकी बहुत प्रशंसा की। इस सभामें बादशाहकी सुख शांतिका प्रस्ताव पास हुआ। ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने “ जैन धमकी महिमा" पर व्याख्यान दिया । इस वर्ष यद्यपि सेठजी आवश्यक कार्यवश बाहर जाते थे पर पहलेकी अपेक्षा शरीरकी स्थिति बहुत सेठजीके शरीरकी निर्बल हो गई थी जिससे आप बहुधा घंटा स्थिति व रुचि । दो दो घंटा सवेरे मंदिरजीसे आकर कौचपर लेट जाते थे व रात्रिको भी दीवानखाने में थोड़ा बैठकर लेट जाया करते थे। परंतु अपने नित्यकर्मको छोड़ा नहीं था। चौपाटी चैत्यालयमें प्रक्षाल पूजा व स्वाध्याय करना तथा हीराबाग धर्मशाला व दूकानपर जाना बिलकुल बंद नहीं किया था। ___ आपको अपने आधीन धर्मकार्योके सम्हालकी बहुत बड़ी चिंता थी, अतएव अपने परोपकारी मित्रोंको अपना हाल For Personal & Private Use Only Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६९७ महती जातिसेवा तृतीय भाग । सेठ हरजीवन रायचंद को लिखा करते थे । आमोद आपने एक दफे लिखा " हवे मारूं शरीर सारूं रहेतुं नथी अने मारी शारीरिक शक्ति घटती जाय छे, तेथी जे खातांओ अने हिलचालो हाल चाले छे तेनो भार हवे तमारा जवाए उपाड़वानी इत्यादि. जरुर छे "" पाठक देखेंगे कि सेटजीको भविष्य के सुप्रबन्धकी कितनी भारी चिन्ता थी । T लेटे लेटे भी आप कभी सुस्त नहीं रहते थे, पुस्तकें पढ़ा करते थे । इन दिनों आपके हाथमें भारत और विलायत के प्रवासकी पुस्तकें गुजराती भाषामें पढ़ने में आई जिससे कभी २ मनमें तरंग उठती थी कि जो स्थान हमने नहीं देखा है उसे अवश्य देखलेना चाहिये | आपने ब्रह्मदेश ही नहीं देखा था । रंगूनसे यद्यपि आपका पत्र व्यवहार था तथा अपने आढतियेको आप प्रेरणा करते थे कि बौद्ध लोगोंसे मांसका आहार छुड़ानेका यत्न करें। पुस्तकें भी बटवाते थे तथा वहां एक फलाहारी होटल खुलवाना चाहते थे कि जिससे मांसाहारियोंको भोज्य पदार्थ खिलाकर उनकी रुचि स्वादिष्ट और उत्तम मांसवर्जित भोजन पर आकर्षित की जावे । इसके लिये आप लिखापढ़ी कर रहे थे । अब आपने अपना पक्का विचार जानेका कर लिया था और कलकत्ते की कमेटी करके आप ता० ३० ब्रह्मदेशकी यात्रा । दिसम्बर को रंगून खाना हो गए और वहां सैर करके कलकत्ते ता; १५ जनवरीको For Personal & Private Use Only * Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९८ । अध्याय बारहवां । आए । वहांसे श्री शिखरजीकी यात्रा करते हुए आप ता० २. मनवरीको माह सुदी १ के दिन पीछे बम्बई आए। आपने अपनी यात्राका हाल अपने हाथसे लिखकर “दिगम्बरजैन” पत्र फाल्गुण सं० १९६८ अंक ५ में प्रकाशित कराया है सो नीचे प्रमाण है-- ब्रह्मदेशनो प्रवास. व्हाला बंधुओ ! गत मासमां अमोए रंगुन (ब्रह्मदेश)नी मुसाफरी करी हती, जेमांनी केटलीक जाणवा लायक हकीकत अबो प्रकट करवानुं योग्य धारीए छीए केमके एथी ब्रह्मदेशनी स्थिति अने देखाव- भान वांचकोने मळी शकशे. प्रथम हमो ता. २६-१२-११ (पोस सुद ५) ने दिने मुंबईथी नीकळी ता. २८मीए सांजे हावरा (कलकत्ता) स्टेशने पहोंच्या, ज्यांथी हेरीसन रोडपर आवेली हरकीसनदास बाबूनी दिगंबर जैन धर्मशाळामां उतर्या, जे पछी ता. ३१-१२-११नी सवारे रंगुन जती मेल स्टीमरमां जवाने रेमघाट उपर आव्या, के जे घाट एटना गार्डननी सामे चांदपाल घाट नजीक आवेलो छे. त्यां सामे एलेनकोरा स्टीमर आवेली हती तेमां जईने अमारी जग्याए बेठा. ए स्टीमरनी टिकिट त्रण वर्गनी होय छे, तेमां पहेला वर्गना रु.९५), बीजा वर्गना रु. ४५) अने त्रीजा वर्गना रु. १०) होय छे. अने टिकिट स्टीमरना उपडवाना मुकरर दिवस पहेलां पण मळी शके छे. आवी रीते अठवाडीआमां त्रण स्टीमरो कलकत्तेथी रंगुन जाय छे. - हवे स्टीमर कलाक ७-१० मीनीटे बारा उपरथी उपडी.. For Personal & Private Use Only Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६९९ आ स्टीमर वराळयंत्रथी चाले छे. ए स्टीमरमा छ माळ हता, तेमां अडधा माळ पाणीमां रहे छे, तेमां नीचला त्रण मालना आगळना अडधा भाग सुधीमां सांचा रहे छे अने वळी अडधा भाग सुधीमां लगेजनो सामान भराय छे, तेमज चोथा माळना थर्ड कलासना (त्रीजा वर्गना), पांचमां माळमां सेकन्ड कलासना अने छट्ठा माळमां फर्स्ट कलासना पेसेन्नरो बेसे छे. अमो लेकन्ड कलासमां बेठा हता, जेतुं वर्णन नीचे मुजब छे-सेकन्ड कलासना पेसेन्जरो माटे एक केबीन (ओरडी) होय छे, जे ओरडी आशरे आठ चोरस फुट होय छे, तेमां त्रण पेसेन्जरोनी सगवड करेली होय छे, जेपने माटे वीछानु, कवाट, दीवो तथा ओरडी दीठ एक सर्वट (नोकर) होय छे. फर्स्टकलासमां आधी पण घणी सारी सगवड होय छे, स्टीमरमां अनेक देशोना पेसेन्जरो होय छे, तेथी तेमनी भाषानी माहिति तेमज व्यापार उद्योगने सारो फायदो थाय छे. स्टीमरमां फूट मेवो वगेरे जे कांई जोइए ते पण मळी शके छे. अने त्यां हिंदु होटल पण होय छे, तेथी आपणे जेम घरमां बेठा होईए तेमन लागे छे. हवे आ स्टीमर ता० ३-१-१२नी सवारे सात वागते रंगुनना बारा उपर आवी अने अमो मीनापुल घाट उपर उतर्या अने त्यांथी मोगलस्ट्रीट नं० १४मां आवेली सूरजमल लल्लुभाई झवेरीनी पेढीमां उता. एन दिने अमो शहेर जोवाने गया, त्यां चव (अपासरा) तेमन रोयल लेक (तळाव) के जे बहुन विशाळ छे, ते जोई त्यांथी सुलेढोंगफयो (बौद्ध धर्मनुं देवल) जोवाने गया के जे रोयल लेक उपर आवेलुं छे. For Personal & Private Use Only Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०० ] अध्याय बारहवां। आ देवल बौद्धोनुं मोटामां मोटुं देवल (मंदिर) छे, जेमां आशरे १५ फुट ऊंची आरसपहाणनी प्रतिमाओ छे. आ चौदसना दिवस होवाथी त्यां घणा कुंगी (साधु)ओने स्वाध्याय करता जोया. आ लोको धर्म उपर घणाज श्रद्धाळु तेमज मायाळु होय छे. तेओना आचरण तेमज देवल अंदरनी रचना जोई अमोने अत्यंत आनन्द थयो. जेम बावन जंजाळी देवल होय छे, तेमज आ देवळ पण हतुं. तेमां एक देवलनुं खर्च रु० १२००००) थएडं छे. आ देवल जोया पछी अमो भेमोरीयल गार्डन तथा केन्टोमेन्ट गार्डनो (बगीचाओ ) जोवा गया. आ गार्ड नो (बगीचाओ ) सारा छे. ए पछी कोलेज, होस्पीटल अने अने सुलेफयो पेगोडा ( बौद्ध धर्मनुं देवल ) जोतां केमीन डाइनमां गया के ज्यां धातुनी प्रतिमाओ सारी बने छे आ शहेरमां इलेक्ट्रीक (वीजलीक) ट्राम, टेलीफोन (तार) तथा बीजी दरेक व्यवस्था मुंबईना जेवीज छे. अत्रे हिंदुस्ताननी वस्ती पोणो भाग अने वाकीनी ब्रह्मी लोकोनी वस्ती छे. आ शेहेरनी वस्ती आशरे बे लाखनी छे. अत्रे आशरे ५० जैनी व्यापारार्थं रहेला छे अने आपणु मंदिर पण छे. अहीं मुख्य पेदाश चोखानी छे अने हीरानो व्यापार सारो छे. अत्रेथी ता. ५-१-१२ने दीने उपडी ट्रेनमां बेसी ता. ६ ठी ए मांडले गया अने शा. जमनादास उदेचंदने मुकामे उतर्या अने तेज दिने अमो राजा थीबोनो मेहेल जोवा गया, आ मेहेल बहुज पुरातन छे अने एनी बांधणी लाकडानी छे. मेहेलनी आसपास एकेक माइल फरतो कोट छे, जे जोई अमो मांडला हील जोवाने गया. आ हील ( टेकरी ) उपर जवाने पगथी For Personal & Private Use Only Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [७०१ बंधावेलां छे. सौथी उंचे फयो ( देवल ) छे, ते फयामां आशरे २५ फुट उंची कायोत्सर्ग प्रतिमा छे. अत्रेथी शहेरनो देखाव रमणीय ननरे पडे छे. ए पछी नीचे उतरीने अमो मांडलानी पासे सांजो गाम छे त्यां ट्राममां बेसीने फयो ( देवल ) जोवाने गया. आ फयानी अंदरनी व्यवस्था घणीज रमणीय छे. ए पछी बीजे दिने केरोसीन ओइल मील ( ग्यासतेलनो मील ) जोवाने लांच ( नानी होडी )मां बेमीने गया, के जे मीलमां रंगुननी खाडी ओळंगीने जवाय छे. त्यां प्रथम ४० कोस उपर ग्यासतेलना कुवा होय छे, त्यांथी स्टीमरमां भरीने कचरावाळु ग्यासतेल लावे छे, जेमांथी पछी मीलमां प्रयोगो करीने प्रथम चोख्खं ग्यासतेल जुएं पाडे छे, जेमांथी पेट्रोल काढे छे अने बाकी रहेला कचरामांथी मीणवत्ती बनाव छे अने तेथी बाकीनो कचरो मीलमां बाळवाना उपयोमा ले छ. अने तथी बाकीनो भाग सडक उपर छांटवाना उपयोगमा ले छे आवी रीते दरेक चीज उपयोगमां ले छे. आ मील जोया पछी अमे मांडलेनी पासे भामो नामनुं गाम छे त जोवा गया. ज्यां एक मोटो घंट छे के जेना जेवडो मोटो बंट आखी दुनिआमां नथी. मांडलामां हिंदुस्ताननी वस्ती पा भाग अने बाकीनी ब्रह्मी लोकोनी मालम पडे छे. आ देशनी हवा बहु सारी छे. आ शहेर ब्रह्मदेशनी राजधानीनुं शहेर छे. अत्रे दरेक जातनुं अनाज पण सारं पाके छ. तेमज हीरा, पानां अने माणेकनो व्यापार सारो चाले छे, शहेरनी अने बजारनी बांधणी बहुज सारी छे. ए पछी ता० (-१-१२ ने दिने गोकटेक जवाने नि For Personal & Private Use Only Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय बारहवा । कळ्या. अहीं ट्रेन डंगर उपर थईने जाय छे. आ डंगर साडात्रण हजार फुट ऊंचो छे. ऊंचागमां मेमीयो शहेर छे. त्यांनी हवा बहुन सारी छे. त्यांथी नीचाणमा जतां गोकटेक स्टेशन आवे छे. त्यां अमो ता० ९ भीए उतर्या अने तेज दिने गोकटेकनी खीण जोवाने गया के जे खीग पुलथी (७५ फीट नीचाणमां छे. आ खीणमा २५० फुटनुं बोगद् मालम पडे छे. आ बोग, कुदरती छे. त्यां लांबेथी पाणीनो धोध जबरो आवे छे. आ पाणीना धोधन उंडाण आशरे ५० फुट हशे. बोगदा उपर ३०० फीट ऊंचो डुंगर छे अने तेना उपर ३२५ फुट उंचो पुल छे अने ते पुल डुंगरनी ऊंचाईथी ४०० फीटथी वधारे नीचाणमां हशे. ___ ता० १०मीए आ खीण जोईने पाछा फरी ता. ११मीनी सांजे अमो रंगुन पहोंच्या. अत्रे लाकडाना कामनी मील सारी चाले छे, ते जोईने अमो ता० १२-१-१२ ने दिने कलकत्ते जवाने उपड्या अने एलीफंटा स्टीमरमां ता० १५ मीए कलकत्ते आवी पहोंच्या अने तेज दिने त्यांथी समेदशिखरजी जई यात्रा करीने पाछा कलकत्ते आव्या. ज्यांथी अमो कालीघाट स्टेशनथी बे माइल दूर आवेला टाटा आयन कुंपनी ( टाटान लोखंडनु कारखानुं ) जोवाने गया. अत्रे पासेनी लोखंडनी खाणमांथी माटी लावे छे अने ते माटीने पहेला हाइड्रोजन ग्यास वती गाळे छे अने पछी जेवू जोईए तेवा आकार- लोखंडकाम बनावे छे. हालमां आ मीलमां १०००० माणसो काम करे छे, जेमने रहेवाने माटे कंपनी तरफथी मकानो बंधावी आपबामां आवे छे एटले त्यां एक नानुं गाम जेवू थई पड्युं छे. आ कंपनी For Personal & Private Use Only Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । हालमां सारं काम करे छे अने हजु वधुं काम चालु छे, जे बे मासमां पुरुं थवे आ कंपनी वणुंज सारं बीझनेस करी शकशे एम स्पष्ट जणाय छे. आ कंपनी जोया पछी बीजेन दिने एटले ता. १७-१-१२ नी सांजे त्यांची उपडी अमो ता. २०-१ -१२ (माहा,सुद १) नी सवारे पाछा मुंबाई आवी पहोंच्या. ता. ५-२-१२. जाति सेवकमाणेकचंद हीराचंद जे. पी. मुंबाई. यद्यपि आप रंगूनमें फलाहार होटल स्थापित करना चाहते थे परंतु व्यवस्थाके लिये कोई प्रबन्धक न मिलनेसे आपने अपने विचारको बंद रक्खा । सेठजी बम्बई आए तब यह चर्चा चली कि दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकवासी तीनों आम्नायोंके बादशाह पंचम जार्ज- जैनी भाई मिलकर अपनी २ महासभाके की सेवामें मुख्य कार्यकर्ताके हस्ताक्षरसे एक सम्मिलित मानपत्र। मानपत्र श्रीमान् महाराज पंचमना और महाराणी मेरीकी सेवामें अर्पण करें। यह मानपत्र बम्बई कलेक्टरके द्वारा ता० ३० जनवरी १९१२ को महाराजकी सेवामें भेज दिया गया । इसमें सेठजीने भा० दि० जैन महासभाके सभापतिकी हैसियतसे, सेठ कल्याणमल सौभागचंदने जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्सकी हैसियतसे और राय सेठ चांदमलजीन जैन स्थानकवासी कानफरेन्सकी हैसियतसे हस्ताक्षर किये थे। For Personal & Private Use Only Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ ] ०४ ] अध्याय बारहवां । ता. १ मार्च १२ से ६ मार्च तक बेलगांवमें पंचकल्याण कोत्सवके समय दक्षिण महाराष्ट्र दि० जैन दक्षिण म० जैन सभाका चौदहवां वार्षिकोत्सव श्रीमान् स्याद्वादसभाका १४ वां वारिधि पं. गोपालदास न्यायवाचवार्षिकोत्सव और सातिके सभापतित्वमें बड़े समारोहके साथ सेठजी। हुआ । उत्तर हिंदुस्तानके केवल दिग्वि जयसिंह आदि अनेक महाशय पधारे थे । श्रीमान् सेठजी साहब भी ता० २ री माचको पहुंच गए थे जिनका यथायोग्य सत्कार किया गया था । कुल प्रस्ताव २१ पास हुए थे जिनमें उल्लेख योग्य ये थे:(१) श्रीमान् सेठ माणिकचंद पानाचन्दजीको २५०००) नकद व १५०) मासिक रतलाम बोर्डिंगके लिये देने पर धन्यवाद। (२) बाललग्न निषेधके प्रस्तावको मराठी, हिन्दी, कनड़ी, गुजराती, संस्कृत व बंगाली ऐसी छः भाषाओंमें विवेचन किया गया। इस समय सभाका फोटो लिया गया था। (३) डेपुटेशन शिक्षण फंड वसूल करनेको बाहर निकले इसको सेठ माणिकचंदजीने स्वयं पेश किया था। (४) बेलगाममें बोर्डिंग खोलनेके सम्बन्धमें सेठ धर्मराव सूबेदारका आमार मानना। (५) धर्मादे द्रव्यका सदुपयोग। For Personal & Private Use Only Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । ७०५ इस सभामें कोल्हापुर निवासी मि० कलाप्पा सावर्डेकरको चित्रकला सीखनेको इटाली भेजनेके लिये ११९४) का फंड कर दिया गया। इसमें सेठ माणिकचन्दनीने बहुत परिश्रम उठाया। ता० ४ मार्चको जिलेके कमिश्नर मि. शेपर्ड साहबका स्वागत सभामें हुआ । उस समय साहाने अपने भाषणमें कहा “ जैन कोमका वर्तन बहुत सरल, उद्योगी और कर्तव्य दक्षताका होता है, जैनधर्म पृथ्वीके अत्यंत पवित्र और शुद्ध धर्मो में से एक धर्म है। इसके अनुयायी शांतताप्रिय और सुधारणाशील होते हैं, ऐसा मुझे मालूम होता है।" श्रीमती मानवाई कंकुबाई आदि पहोपकारिणी स्त्रियोंके उद्योगसे ता० ४ और ५ मार्चको भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला परिषदकी दो बैठकें सेट हीराचन्द नेमचन्दकी धर्मपत्नी सौ० सकूबाईके सभापतित्त्वमें हुई। ४ प्रस्ताव पास हुए । स्त्रीशिक्षा फंडमें ३००) नकद आए । ४००० स्त्रियोंको उपदेश मिलनेसे स्त्री समाजमें अच्छी जागृति हुई थी। बेलगांवमें मि. ए. पी. चौगले बी० ए० एल एल० बी० ने १००००) खर्च कर एक सुशोभित मंदिरजी बनवाया था उसकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा लक्ष्मीसेन भट्टारक कोल्हापुरके द्वारा फाल्गुण सुदी १२ से वदी ३ तक हुई थी। सेठ माणिकचन्दजी ललितपुरके सेठ मथुरादास टडैया और . पन्नालालजीको वार वार यह उपदेश किया ललितपुरमें बोर्डिंग करते थे कि ललितपुरमें आप ग्रामीण बास्थापन । लकोंको विद्या पढ़ानेके हेतुसे बोर्डिंग खोलें। उपदेशका असर कभी न कभी होता ही है। Jain Edualan International For Personal & Private Use Only Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ ] अध्याय बारहवां | वीर सं० २४३८ में क्षेत्रपालपर बोर्डिंग सहित संस्कृत एंग्लो पाठशाला खुल गई और ११ छात्र बोर्डिंग में रहने लगे । खामगाम जिला वरार में नवीन जिन मंदिर व बिम्ब प्रतिष्ठाका उत्सव वैशाख सुदी ३ से १५ तक हुआ था । इसी बीचमें ताः २६ अप्रैल १९११ से ३० अप्रैल तक बंबई दि. जैन प्रान्तिक सभाका नवम वार्षिकोत्सव रानीवाले सेट पदमराज फूलचंद कलकत्तानिवासी के सभापतित्वमें बड़े समारोहसे हो गया । सेट माणिकचंदजी भी पधारे थे । कुल १२ प्रस्ताव पास हुए, जिनमें उल्लेख योग्य प्रस्ताव ७ शिखरजी व चंपापुरकी तेरापंथी कोठीके सुधारके विषय में व नं. १२ बरार प्रांतमें छात्रवृत्ति देनेके लिये था । इस आखरी प्रस्तावका समर्थन हमारे सेटजीने किया था । सेठजीकी प्रेरणास रा. रा. देवीदास चौरे बी. ए. एल एल. बी. वकील अकोला ने एक बोर्डिङ्ग १६-६-१९१० को अकोला में खोल दिया था; पर उसकी आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी। सेठजी के इशारा करनेसे तुर्त ११०० ) का चंदा बरार शिक्षाप्रचारक खातेमें होगया तथा सुभाके खातों में भी ४५० आए। बाबू करोड़ीचंद आराके उद्यो सरस्वती भवन आरा के लिये भी ४०० ) हो गए । भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिने आरा भवनको १९१ ) नकद व १ प्रति संस्कृत गोमहसार की भेट की । खांमगाम में सभा और सेठजी । For Personal & Private Use Only Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७०७ महती जातिसेवा तृतीय भाग । जब सेठजी ब्रह्मदेशकी यात्रा सहीसलामतीसे जहाज़ व रेल द्वारा पूर्ण करके लौट आए तब आपके भाव विलायत यात्राके भी हुए। आपकी इच्छा थी कि लंडनमें एक जैन बोर्डिङ्ग हाउस स्थापित करा दिया जाय जिससे जैनी छात्र व व्यापारी अपने धर्म व खानपान आचारकी रक्षा करते लौकिक लाभ हुए उठा सकें । यह विचार अप्रैल मास १९१२ में पक्का भी हो गया यहां तक कि ताः २८ अप्रैल १९१२ के 'प्रगति आणि जिनविजय' में यह प्रसिद्ध भी होगया कि सेट वालचंद हीराचंद व २-३ गृहस्थों के साथ सेठजी जूनके आरंभ में विलायत जानेवाले हैं । परंतु शरीरअस्वस्थता के कारण आप जा नहीं सके। विलायत जानेकी उत्कंठासे आपने कई मास पहलेसे एक माटर के द्वारा बंगलेपर इंग्रेजी पढ़ना भी शुरू कर दिया था । आपका यह विचार कितना पुखता था इसके प्रमाणमें पाठकोंको एक कार्डकी नकल बताई जाती है जो सेठजीने ता: ३१ मई १९९२ में बाबू सुमतिलाल बनारसको लिखा था । "Your kind letter of 24th instant to hand सेठजीके विलायत जाने की इच्छा । and I am very glad to read it. For a long time I am intending of opening a vegetarian or Jain Boarding House at England and still having that intention, I am now thinking over its scheme and will let you know soon in the subject. "" अर्थात् - आपका २४ तारीखका पत्र पढ़कर हर्ष हुआ । मैं बहुत दिनोंसे इंग्लैंड में एक जैन बोर्डिङ्ग खोलने का इरादा कर For Personal & Private Use Only Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ ] अध्याय बारहवां। रहा हूं और अब भी वही विचार है। मैं उसका उपाय सोच रहा हूं और आपको शीघ्र इस विषयपर लिखूगा। पाठको ! सेठजीका स्वर्गवास थोड़े ही काल पीछे हो गया । यदि उनका जीवन दो चार वर्ष और रहता तो संभव था कि. विलायतमें एक जैन बोर्डिग खुल जाता। अब उनके पीछेके धनवानोंका कर्तव्य है कि इस आवश्यकताको पूरी करें । निस बोर्डिङ्गके खोलनेके लिये सेठजी बहुत ही उत्सुक थे व जिसके लिये आपने २५०००) का दान अलाहाबाद दि० जैन कराया था उस बोर्डिंगके खोलनेका मुहूर्त बोर्डिगकास्थापन। आषाढ़ ददी २ ता० १ जुलाई १९१२ को पार्क रोडपर एक किरायेके बंगले में बाबू शिवचरणलाल बी० ए० एलएल० बी० रईस-म्यूनिसिपल कमिश्नर प्रयागके द्वारा बड़े समारोहसे सरस्वती पूजनके साथ हो गया । बम्बईसे सेठजो स्वयं नहीं आ सके थे पर अपनी सुपुत्री मगनबाईनी व श्रीमती कंकुबाईजीको भिजवा दिया था व ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनीको भी काशीसे वहां बुलवाया था । धर्मपत्नी ला० सुमेरचंदजीने सर्व प्रबन्ध योग्य रीतिसे कराया था। मास्टर दीपचंदजी उपदेशक बम्बई प्रान्तिक सभाको सेठजीने यहांकी सुपरिन्टेन्डेन्टीके लिये भेजा था । प्रारंभमें ५ ही छात्र भरती हुए । फिर बढ़ते २ ता० ३१ जुलाई १९१४ तक १५ छात्र बी० ए०, बी० एस० सी०, एम० ए० आदि कॉलेजकी पढ़ाईके अजमेर, सीतापुर, मेरठ, विजनौर आदिके हो गए। ये सब गोमट्टसारसे लेकर तत्त्वार्थ सूत्र छहढाला तक धर्मशिक्षा लेने लगे । तथा इसके लिये मेयो कॉलेजके For Personal & Private Use Only Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग | [७०९ पास ही पीली कोठी नामकी एक हवादार इमारत ९०००) के अनुमानमें खरीद ली गई है तथा इस २५०००) की रकमका ट्रष्टडीड भी हो गया है। मास्टर दीपचंदके उद्योगसे इस बोर्डिगका काम अब बहुत पक्का हो गया है । बाबू बच्चूलाल मंत्रीका काम बहुत विचारसे करत हैं । स्थापनाके समय सेठजीने अपनी पुत्रीद्वारा ३००) फंडमें दिये, तब सभापति शिवचरणलालन २५०) इस तरह ९६२) का चंदा हो गया। इस बोर्डिंग से भी बहुत बड़ा लाभ हो रहा है। छात्रों में जैनधर्मसे प्रेम बढ़ रहा है। वास्तवमें सेठजीको Will power ( आत्निक दृढ़ता ) बड़ी प्रबल थी। यह इसीका ही प्रताप था कि जो वह चाहते थे उस कार्यको कभी न कभी पूरा कराके ही छोड़ते थे। पूज्य पिताश्रीकी आज्ञा लेकर परोपकारी सुपुत्रके समान कार्यकुशला श्रीमती मगनबाईजीने श्रीमती श्रीमती मगनवाईजीका कंकुबाई शोलापुर और श्रीमती चंदाबाई पंजाब भ्रमण । आराके साथ ता: २९ मई १९१२ से २ जुलाई तक पंजाबमें भ्रमण करके अपने धर्मोपदेशसे स्त्रियोंमें उत्तेजना दी तथा श्राविकाश्रम बम्बईका प्रचार किया । आपके भ्रमणका संक्षेप हाल यह है:____ ताः १ जूनको मथुरासे मेरठ होती हुई हस्तिनापुरमें पहुंचकर ता: ३से तक ठहरीं। ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रमका निरीक्षण किया। बाईनीने ५१) व चंदाबाईने ५१) व ३०)के कपड़े, व कंकुबाईजीने ५) आश्रमको भेट किये। बहसूमा ग्राममें दर्शन करके सभा की। यहांसे चलकर मेरठ शहरमें आई। वहां रत्नत्रयपर व्याख्यान देकर For Personal & Private Use Only Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० ] अध्याय बारहवाँ | आश्रम के लिये ३२५) का चंदा किया । सदरमें भी स्त्रीसभा की व कन्याओं की परीक्षा लेकर इनाम बांटा । ता० ११ जूनको जालंधर गई। यहां उपदेश होकर २२५) सरस्वती भवन आरा व २४) आश्रमको प्राप्त हुए । कन्या महाविद्यालय देखा । वहां ३०० कन्याएं रहकर पढ़ती हैं । २०००) मासिकका खर्च है । २९ शिक्षिकाएं व शिक्षक हैं । ११ श्रेणियां हैं। ता० १३ जूनको अमृतसर जाकर यहां सिक्खोंका मंदिर देखा । ता० १४ जूनको लाहौर गई, बोर्डिंग देखा व स्त्रियोंको श्राविकाचार समझाया ! ताः १६ को देहरादून आई। यहां धर्मात्मा चमेलीबाईने १००) बम्बई व १००) मुरादाबाद आश्रमको दिये । कुल ३२४) का चन्द्रा हुआ। तीनों बाइयोंके व्याख्यानोंसे धर्मकी जागृति हुई। यहां १० अजैन बाइयोंने पानी छानकर पीने व रात्रिमें भोजन न करने व मद्य मांस त्यागका नियम किया । ता. १८ जून को हरिद्वार जाकर कांगड़ी गुरुकुल देखा फिर ता० २० को मुरादाबाद आई। वहां श्राविकाश्रमको देखा व जैनधर्म पर उपदेश किया। ता. २४ जूनको देहली आई | पहाड़ी धीरजशाला देखी व शिक्षाप्रचार, सद्विद्या व रत्नत्रयकी दुर्लभतापर तीनों बाइयोंके उपदेश हुए | दूसरे दिन शहरकी शाला देखी व सभा षट्कर्म व ब्रह्मचर्यपर उपदेश दिया । ता. २६ जूनको प्रयाग आकर बोर्डिगका मुहूर्त करके ता. २ जुलाईको बम्बई आ गई तथा श्रीमती चंदाबाई देहलीसे वृन्दावन रवाना हुई। सेठजीने सर्व हाल प्रवासका जानकर इनके कार्यपर सन्तोष प्रकट किया । श्री शिखरजीकी तेरापंथी कोठीका प्रबन्ध बहुत दिनोंसे.. For Personal & Private Use Only Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७११ खराब था जिसकी लिखित व जबानी शिकाशिखरजीकी तेरापंथी या सेठजीके पास वर्षोंस आती थीं । जब . कोठीका व चंपापुर- लाट साहब शिखरजीपर आए थे तब सेठ जीका उद्धार । हुकमचंद आदिने इसके प्रबन्धार्थ एक कमेटी बना दी थी जिसके मंत्री बाबू धन्नूलालजी व कोषाध्यक्ष सेठ परमेष्ठीदासजी नियत हुए थे । इन्होंने उपाय किया पर काम हाथमें नहीं आया । तब सन् १९१० में शिखरजी पर तीर्थक्षेत्र कमेटीके अधिवेशनक समयपर यह प्रस्ताव कमेटीने पास किया कि वह कमेटी एक माहके भीतर प्रबन्ध हाथमें ले ले नहीं तो अदालती कार्रवाई की जावे। इस कमेटीने फिर भी शिथिलता की। यकायक बाबू छन्नूलाल जोहरी-प्रवन्धकर्ता तेरापंथी कोठीका देहान्त हो गया। तब सेठजीने उसका प्रबन्ध अति शीघ्र होना उचित समझकर इन्सपेक्टर बाबू वंशीधरको कलकत्ते भेजा। वहांपर यह एक मास ठहरे। तब ता. ३ जुलाई १९१२को कलकत्ताके दिगम्बर जैनियोंकी एक पंचायत हुई, जिसमें १५ महाशय कलकत्तके प्रबन्धार्थ नियत किये। तब बाबू वन्नूलालने वंशीधरजीको लिखित पत्र देकर तेरापंथी कोठी शिखरजी और चंपापुरीका चार्ज लेनेको भेजा । बंशीधरजीने ता. ९ व १० जुलाईको चंपापुरीजीका चार्ज लिया। फिर ७ जुलाईसे २० तक शिखरजीकी कोठीका अधिकार हाथमें लिया, तबसे प्रबन्ध दोनों स्थानोंका ठीक चल रहा है। चंपापुरी नीका प्रबन्ध सेठ हरनारायण भागलपुर तथा तेरापंथी कोठीमें बाबू बंशीधर मैनेजर हैं। हिताब आदि अब ठीक रहता है। इन दोनों कोठियोंके उद्धारमें सेठजी और उनके सहायक लाला प्रभुदयाल नीने बहुत उद्योग किया । For Personal & Private Use Only Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ ] अध्याय बारहवां भागलपुरसे १६ कोस मंदार हिल नामके स्टेशनसे १ मील मंदारगिरि नामका पर्वत है। यहींसे श्री वासपूज्य मंदारगिरि क्षेत्रका स्वामीकी मुक्ति हुई है, चरण पादुकाएं हैं उद्धार व ५००) कुछ दिनोंसे जैनियोंने जाना आना बंद की मदद । कर दिया था । बाबू देवकुमारजी आरा निवासीकी खास प्रेरणासे सेठजीने इस क्षेत्रका सुप्रबन्ध करानेको बाबू बंशीधर इन्सपेक्टरको भेजा। बंशीधरजीने सेठ हरनारायणजीके दृढ़ प्रयत्नसे इसका प्रबन्ध हाथमें लिया और बालचंद मुनीमको ता० १६ दिसम्बर ११ को नियत कर कोठी कायम कर दी । जबसे इसका प्रवन्ध बराबर चला आरहा है। सेठ हरनारायणनी प्रबन्धकर्ता हैं। बारामतीनिवासी सेट तलकचंद कस्तूरचंदकी ओरसे पहाड़के मंदिरके जीर्णोद्धारका काम हो रहा है । सेठजीके जीवन में इस सिद्धक्षेत्रका उद्धार होना भी एक महा पुण्यदायक बात हुई है। शोलापुर जिलेके दिगम्बर जैनी वास्तवमें उदारचित्त हैं। श्रीमान् सेठ गुलाबचंद रेवचंदगुंजेटी वालोंने चतुरबाई श्राविका अपनी पूज्य माता चतुरबाईके स्मरणार्थ विद्यालय शोलापुर ११०००) दान करके श्राविकाओंके लाभार्थ उद्धाटन। एक श्राविका विद्यालय खोलनेका निश्चय किया व जिसका मुहूर्त श्रावण सुदी ३ गुरुवार ता० १५ अगस्त १९१२ को ठीक करके दानवीर सेठ माणिकचंदजी और उनकी सुपुत्री मगनबाईजीको निमंत्रित किया। श्रीमान् सेठजी अपनी सुपुत्री व श्राविकाश्रमकी For Personal & Private Use Only Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [ ७१३ सुपरिन्टेन्डेन्ट बाई यशोदाको साथ लेकर शोलापुर पहुंचे । नियत स्थानमें पं० पासू गोपाल शास्त्रीद्वारा सरस्वती पूजन होकर सभाका कार्य पं० वंशीधरजीके मंगलाचरण पूर्वक प्रारंभ किया । ऊपर लिखित ११०००) के सिवाय सेठ देवचंद हीराचंदकी पत्नी राजूबाईने भी १००००) देना मंजूर किये। इस २१००० ) ५ के टूष्टि नियत हुए । प्रबन्धकारिणी कमेटी में मंत्री रावजी सखाराम हुए। सेठ माणिकचंदजीने स्त्रीशिक्षाकी आवश्यकता बताते हुए श्राविका विद्यालयका बोर्ड खोला। उस समय उपस्थित मंडलीने २६५७ ) की भेट की, जिसमें १०००) झुमाबाई भर्तार गौतमचंद नेमचंदने ५००), नवलबाई भर्तार परमचंद रामचन्द, १०९) सेठ माणिकचन्द हीराचन्द जे. पी., १०१ ) सेठ हीराचन्द नेमचन्द, १०१) सेठ माणिकचन्द आलंद आदि । श्रीमती श्यामाबाई जैन और राधाबाई हेड मिस्ट्रेस शिक्षिकाएं नियत हुई। इसका काम भी भले प्रकार चल रहा है । यद्यपि सेठजीका शरीर अस्वस्थ्यतासे थका हुआ रहता था तौभी आपको आवश्यक कामोंके लिये जाने आनेमें जरा भी आलस्य न था । शोलापुर से लौटकर आए थे कि बनारस से पत्र आने लगे कि यहांपर आकर प्रबन्ध ठीक करें | वहां विद्यालय से ७ छात्र एकाकर चले गये थे, उनके समझानेका प्रयत्न था । सेठजीकी इच्छा वहां जानेकी बिल्कुल न थी, पर पत्रोंके आने तथा अपनी सभापतिकी जिम्मेदारीको समझ कर आप इच्छा न रहते भी काशी पधारे और ता० २५ अगस्त काशी विद्यालय सेठजीका गमन For Personal & Private Use Only Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ ] अध्याय बारहवां । १२ को कमेटी करके प्रबन्ध सत्र समाधानी की। सेठ माणिकचन्दजीकी चलाई हुई बोर्डिंगकी पृथाने बहुतसे स्थानके भाईयोंको इस कामके लिये उत्तवर्धा दिगंबर जैन जित कर दिया। उन स्थानों में एक मध्य बोर्डिग। प्रान्तका वर्धा स्थान भी है। यहां जैनि योंके ७० वर हैं। आसपास भी जैनी हैं। यहांके भाई प्रति वर्ष रथोत्सव भादों पीछे करते हैं। वीर सं. २४ ३ ८ में इन्होंने बोर्डिग खोलनेका निश्चय करके बम्बईसे बोर्डिंगके जन्मदाता सेठ माणिकचन्दजीको निमंत्रित किया। नि रालसी सेठजी अपनी सुपुत्री मगनवाई और श्रीमती कंकुवाईके साथ वर्षा पधारे । आसोज वदी ५को रथोत्सवका समारम्भ होने पर दूसरे दिन ता० २ अक्टूबर १९१२ को सबेरे ८ बजे वोडिंग खुलनेका मुहूर्त हुआ। सरस्वती पूजन पं० हीरालाल नागपुरने कराई। फिर ममा हुई । तब सेठजी सभापति नियत हुए। जयकुमार देवीदास चौवरे वकीलने 'विद्यादान' पर मनोहर भाषण दिया। उसके प्रभाव व सेठजीके गुप्त प्रयत्नसे तुर्त १५०००) का चंदा हो गया,, जिसमें २१००) सेठ पन्नालाल, २०००) सेठ वकाराम वाइकाजी व १०००) सेठ मानमल पुलगांव इस तरह उदारचित्तोंने दान किया। सेठजीने बोर्डिग भाड़ेके मकानमें खोला तथा मकान बनवानेका भाईयोंने प्रण किया । ता० ३ को श्रीमती मगनबाई और कंकुबाईजीका ' स्त्रीशिक्षा' पर भाषण होकर १००) बम्बई श्राविकाश्रमके लिये एकत्र होगए । इस बोर्डिंगमें १ वर्षमें ही २४ की संख्या छात्रोंकी होगई, इनमें ५ बोर्डिगके खर्चसे. For Personal & Private Use Only Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [ ७१५ रहनेवाले थे | अब इसका काम अच्छी तरहसे चल रहा है । सन् १९१५ - १६ की परीक्षामें रत्नकरंड श्रावकाचार में ८-१० छात्रोंने परीक्षा दी। जिसमें प्राय: सबने अच्छे नम्बर पाये । मगनबाई और कंकुबाईजीने ता० ३की रात्रिको एक सार्वजनिक सभा की " जिसमें स्त्रियोंके कर्तव्य " पर व्याख्यान देकर गाली गाना व होली खेलने का त्याग कराया । यहां एक महेश्री रईस सेट जमनालाल हैं जिन्होंने मारवाडी विद्यालय व बोर्डिङ्गको चला रक्खा है, ४०००० से ऊपर अपनी रकम प्रदान की है। इनकी धर्मपत्नीने १०१) मदद श्राविकाश्रम बम्बईको दी । ता. १९ अगस्तको बम्बई से कोल्हापुर निवासी श्रीयुत कलापा बाबाजी सावर्डेकर और श्रीयुत बंबई में परदेशगमनमें चिंतामणि नागेन्द्र पत्रावली ऐसे दो दि० जैन विद्यार्थी बम्बई जे जे आर्ट स्कूल में चित्रकलाका पठनक्रम समाप्त करके विशेप सभा । शिक्षण लेनेके लिये साडिनी स्टीमर द्वारा इटाली देश के फ्लारेन्स शहरके लिये रवाना हुए। उस समय हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिंगके छात्रोंने अभिनन्दन किया ब ता. १४ को इनके सन्मानमें १ दावत दी व रात्रिको लल्लूभाई प्रेमानंद परीख के सभापतित्वमें सभा करके सन्मान किया । तत्र प्रमुखने दोनों छात्रोंको श्री रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रंथ भेट किया और कहा कि परदेशमें जिन धर्मपर पूर्ण श्रद्धा रखना । इनके भेजने में दक्षिण महाराष्ट्र सभासे वेलगाम में जो फंड हुआ था उसके सिवाय सेट माणिकचंदजी और सेठ नाथारंगजीने भी छात्रवृत्तियें दीं । For Personal & Private Use Only Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१६ ] अध्याय बारहवां । सेठ माणिकचंदनी जैन जातिमें हरएक विद्योन्नतिके काममें अग्रगामी रह थे। शोलापुरकी मंडलीने गायन वर्ग आसोज सुदी १० के दिन एक जैन गायन प्रारंभ । समाज वर्ग स्थापित किया उसका समारंभ दानवीर सेटजीके द्वारा बडे समारंभसे हुआ था। शोलापुरसे आकर सेठजी रतलाम पधारे। अपने स्थापित बोर्डिङ्ग का प्रथम वार्षिकोत्सव मिती आसोन रतलाम बोर्डिंगका सुदी १४ को सबेरे ९ बजे एक भव्य मंडप्रथम वार्षि- पमें यहां के दीवान रायबहादुर पं० वृजमोहन कोत्सव। बी. ए. एल एल. बी. के प्रमुखत्वमें बड़े समारोहके साथ हुआ। सेठनीने सभापतिका प्रस्ताव किया । सेक्रेटरी लल्लूभाई प्रमानंदने वार्षिक रिपोर्ट पढ़ी, जिसमें बताया कि अब १९ हमड़, ५ खंडेलवाल, १ बघेरवाल ऐसे २५ छात्र दाहोद गढ़ी, कुशलगढ़ आदिके हैं जो धर्मशिक्षा सिवाय चौथी इंग्रेजी क्लास तक के हैं। पं० कस्तूरचन्दनी व मूलचन्द किसनदासजीके भाषगके पीछे दीवान साहबने अपने भाषणमें बहुतसी उपयोगी बातों में यह भी कहा कि जैनियोंमें जीमन वगैरहमें बहुत द्रव्य उड़ाते हैं तथा सुना गया है कि यहांकी ५ जातियोंमें जो ज्योनार होनेवाली है उसमें २ लाख रुपया खर्च हो जायगा, इस रकमको विद्यादानमें खर्चना जरूरी है । वापदादोंके रिवाज़ फेरनेके लिये हिम्मतकी जरूर है । इसका ताजा दृष्टांत यह है कि महाराज रतलामके For Personal & Private Use Only Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग [ ७१७ यहां प्रति वर्ष श्राद्ध होता था जिसमें २०००) ब्राह्मणोंके जिमानेमें खर्च होते थे, महाराजने इस खचको बन्द करनेको १५०) मासिकके खर्च में ब्राह्मणोंके लिये एक बोर्डिंग खोले जानेका हुक्म किया है। व्यापार में धर्मादा जो कटे सो विद्यामें लगाना चाहिये तथा इस बोर्डिंगके मकानके लिये रजपूत बोर्डिंग जो बंधवानी है उसके लिये भी महाराजा साहब मुफ्त ज़मीन दे सकेंगे। सेठनीने सभापतिका हार तोरा आदिसे सन्मान किया। यहां विज़िटर कमेटी बनी जिसमें ३० मेम्बर हुए । इनको अहमदाबाद ‘दिगम्बर जैन - पत्र मुफ्त दिया जाना बोर्डिंगका निश्चय हुआ । विद्यार्थियोंकी धार्मिक शिक्षामें वार्षिकोत्सव । परीक्षा लेकर इनाम दिया गया। उद्योगशील सेठजी रतलाममें अनी लक्ष्मीके सदुपयोगको देखकर अहमदावाद पधारे । कार्तिक वदी २ को सबेरे अनेक परदेशी व शहरके जैन व अन प्रतिष्ठित पुरुषोंकी सभामें परीख लल्लूभाईके प्रस्ताव करने व सेट माणिकचन्दजीके समर्थनसे आनरेरी मजिस्ट्रेट रायबहादुर जीवनलाल प्राणजीवनदास लाखिया सभापति हुए । लल्लूभाई लमीचन्द सेक्रेटरीने रिपोर्ट सुनाई. इसमें कहा कि धर्म शिक्षा में ३१ में २९ पास हुए हैं व श्रीमती रूपाबाईने ३२००) में नवीन धर्मशाला बनवा दी है। फिर स्वयं सेठ माणिकचंदनीने रा० ब० लालशङ्कर उमियाशङ्करकी मृत्युके लिये शोक प्रदर्शक प्रस्ताव पेश किया । पं० कस्तूरचंद आदिके व्याख्यानोंके पीछे प्रमुखने अपने भाषणमें कहा कि सेठ माणिकचन्दजीने अनेक स्थानों में बोर्डिङ्ग खोलके तुम्हारी कौमके ऊपर भारी उपकार किया For Personal & Private Use Only Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ | अध्याय बारहवां । है। तुम श्रीमानों को इनका अनुकरण करना चाहिये । " रात्रिको सभामें अंकलेश्वरके वीसा मेवाड़। दिगम्बर जैन पंचोंको निम्न लिखित जातीय प्रस्ताव करनेके उपलक्ष्य में धन्यवाद दिया गया। कन्याकी उम्र १० वर्ष हुए विना सगाई या लग्न करना नहीं तथा कन्यासे वरकी उम्र छ वर्ष बड़ी होना चाहिये जो इस प्रस्तावका भंग करे तो दोनों पक्षको ५०१) रु. दंड देना पड़ेगा " विद्यार्थियोंको इनाम दिया गया व बोर्डिङ्गके लिये करीब ३००) के फंड हुआ । यह बड़े आनन्दकी वात देखने में आती थी कि श्रीमती मगनवाईजीने जिम कामको अपने हाथ में भा०दि० जैन महि- लिया उसको व वरावर नियमित रूपसे ला परिषदका तृतीय करती चली आती थीं। जो भारतवर्षीय वार्षिकोत्सव । दिगम्बर जैन महिला परिषद सन् १९१०में श्री शिखरजीपर स्थापित हुई थी उसका तीसरा बार्षिकोत्सव श्री जम्बूम्वामीके मेले पर मथुरामें ता. १ नवम्बरसे ३ तक स्वर्गवासी राजा सेठ लक्ष्मणदासकी धर्मपत्नी चांदवाईके सभापतित्वमें बड़ी सफलतासे हुआ । कायदेके अनुसार प्रमुखाजीका भाषण होनेके पीछे श्रीमतो मगनवाईजी संचालिकाने रिपोर्ट सुनाई । ६ प्रस्ताव पास हुए । गंगादेवी मुरादाबाद, व लड़तीबाई इटावा आदिके व्याख्यान हुए । अध्यक्षाने श्राविकाश्रम बम्बईको १०) मासिककी सहायता दी व स्त्री शिक्षा फंडमें १००) का चंदा हुआ। For Personal & Private Use Only ___ Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृाय भाग । [७१९ सेठजीके पास जबलपुरसे पत्र आया कि जिस बोर्डिंगके बनानेके लिये सिंघई नारायणदासजी सेठजीको हर्षके २००००) दे गये थे उसके मकान बननेका समाचार। मुहूर्त आश्विन वदी ५ को दीवान बहादुर सेट वलभदासजीके द्वारा बड़े समारोहके साथ हुआ। शहरके प्रतिष्ठित जन पधारे थे तथा उस समय धर्मपत्नी नागयणदासजीने कई सौ रुपये दान भी किया । जैन मंदिर व संस्थाओंके सिवाय १००) हितकारिणी हाईस्कूल ५०) अंजुमन ( मुसल्मान ) हाईस्कूल व ५० मिशन .हाईस्कूलको, भी दिये । सेठजी इस पत्रको पढ़कर बहुत ही आनन्दित हुए क्योंकि जिस बातकी आपकी भावना थी वह बात अपनी सफलताके निकट आने लगी। वीर सं० २४३९ मिती पौष कृष्ण ३ से ९ मी तक ता० २६ दिसम्बर १९१२ से १ जनवरी १९१३ बम्बईमें रथोत्सव तक बम्बई में रथोत्सवका समारंभ व मुम्बई तथा प्रान्तिक सभाका दि० जैन प्रान्तिक सभाका बारहवां अधिवे १२ वां शन बड़े ममारोहके साथ लखनऊ निवासी वार्षिकोत्सव । बाबू अजितप्रसादजी एम. ए. एलएल. बी. के सभापतित्वमें हुआ। इसके प्रबन्धमें सेट माणिकचंदजीने खास तौरस उद्योग किया। इस सभा श्रीमान् न्यायवाचस्पति पं० गोपालदास, पं० अर्जुनलाल सेठी, कुंवर दिग्विजयसिंह, बाबू जुगमन्दिरलाल एम० ए०, ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी आदि पधारे थे जिससे धर्मोपदेशका अच्छा समागम रहा था । कुल ९ प्रस्ताव For Personal & Private Use Only Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० ] अध्याय बारहवां । पास हुए। जिनमें मुख्यये थे । (१) ता० २३ दिसम्बर १९१२ को जो उपसर्ग दिहली में बड़े लाट वाइसरायको हुआ उसपर खेद प्रकाश व उससे रक्षित रहनेपर हर्ष (२) आगामी अधिवेशन पालीताना सिद्धक्षेत्र पर हो । श्रीमान् पंडित गोपालदासजीको स्याद्वादवारिधिके पदका अभिनन्दन पत्र व न्यायवाचस्पतिकं पदका संस्कृत मानपत्र जो कलकत्तेकी विद्वज्जन समाजसे आया था सो अर्पण किया गया। यहां रथोत्सवकी बोली २५००) की हुई जिसमें सेठ माणिकचन्द पानाचन्दने खवासीकी बोली २०१) रु. में ली । श्रीमती मगनबाईजीने भी इस मौकेपर ता. २८ और ३१ दिसम्बरको दो स्त्री सभाएं कीं । एकमें श्रीमती नानीबाई गजार (अजैन) वनिताविश्राम की संचालिका और दूसरीमें सेठ सुखानंदकी धर्मपत्नी प्रमुखा हुई । अनेक उत्तम व्याख्यान हुए। श्राविकाश्रम बम्बईको ३६७) का लाभ हुआ इस सभा में प्रान्तिक सभाको कोई फंड नहीं हुआ इसका कारण यह हुआ था कि बाबू अजितप्रसादजीने अपना विद्वत्तापूर्ण व्याख्यानमें यह बताया था कि जैनियोंको परस्पर खान पनके साथ परस्पर सम्बन्ध भी करना चाहिये ऐसा ही प्राचीन शास्त्रीय नियम था । इस वातको सुनकर यहांके मारवाड़ी लोग भड़क उठे थे। इसीसे धनवानोंको हाथ सकोड़ने का मौका लग गया । For Personal & Private Use Only Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (देलो पृष्ठ ७११ ) काश्मीरका प्रवास. J. V. P. Surat. For Personal & Private Use Only Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( देखो पृष्ठ ७२५) काश्मीरके प्रवासमें सेठ जी. J. V. P. Surat. For Personal & Private Use Only Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग [ ७२१ जबसे वाइसराय लार्ड मिन्टोने श्री शिवरजी पर्वतके पट्टेके ___बंगाल गवर्नमेन्टके हुक्मको रद्द किया तबसे सेठ माणिकचंदजीकी सेठजीको बहुत बड़ी चिंता थी तथा आप चिंतामें वृद्धि और उस पट्टेके पुनः स्थिर करानेके उद्योगमें थे। शिखरजीके लिये चूंकि उस पट्टेके लिये ५००००)का बयाना प्रयत्न। दिया जा चुका था इससे वह रद्द नहीं होना चाहिये था । इसलिये बाबू धन्नूलालजीने ता. १६ मार्च १९११ को अदालती नोटिस भी बंगाल गवर्नमेन्टको दिया था तथा ता. १६ अक्टूबर १९१२को कमेटीके सभासदों द्वारा यह प्रस्ताव भी स्वीकार करा लिया कि गवर्नमेन्टपर मुकद्दमा चलाया जाय । उधर जो पहाड़का सरवे हुआ था उसमें यह लिखा गया था कि पहाड़के मंदिर और धर्मशालाओंमें सर्व जैनियोंको विना किसीकी इजाज़तके जाने व पूजन करने व ठहरनेका हक है। इस बातकी उजरदारीमें श्वेतांबरी लोगोंने ता: ७ मार्च १९९२ को मुकद्दमा नं० २८८ दायर कर दिया कि दिगम्बरियोंको श्वेतांबरोंकी इजाज़तसे पूजनेका हक है, सो भी उनकी ही आम्नायके अनुसार । इस मुकद्दमेंसे सेठजीको और भी भारी चिंता हो गई। तब लाला प्रभुदयालकी सलाहसे एक मुख्य सभासदोंकी कमेटी कानपुरमें ता० ८ और ९ फर्वरी १९१३ को बुलाई गई, जिसमें सेठनी भी पधारे व कलकत्तेसे धन्नू बाबू व ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी भी आए थे। सहारनपुरसे जम्बूप्रसादनी आदि १४ मेम्बर खास २ कानपुरवालोंने उत्तम स्वागतका प्रबन्ध किया था। For Personal & Private Use Only Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ ] अध्याय बारहवां। लाला सुलतानसिंह रईम देहलीके सभापतित्वमें प्रस्ताव ३ पास हुए (१) जो शिखरजीकी प्रतिष्ठामें रुपया आया था वह पर्वतरक्षा फंडमें मिलाया जाय (२) मुकद्दमा नं. २८८ चलाया जाय तथा इसका खरचा आधा २ तेरापंथी व बीसपन्थी कोठीसे लिया जाय (३) मुकद्दमेंके प्रबन्धके लिये १५ महाशयोंकी कमेटी बनाई जाय जिम्के मंत्री और खजान्ची सेठ हरसुखदाप्स हजारीबाग हों। यहांसे सेठजी बम्बई आए कि आपको दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभाके पंद्रहवें वार्षिक अधिवेशनमें जानेकी फिक्र हुई। यद्यपि सेठजीका शरीर बहुत अस्वस्थ था । अब थोड़ासा भी परिश्रम करने व चलनेसे जिप्स पगमें चोट थी उसमें दर्द हो उठता था तौभी जाति प्रेम इस कदर था कि आप इधर उधर जाने आनेसे घबड़ाते नहीं थे । दूसरे द० म० सभा पर आपका अधिक प्रेम इसलिये था कि इस सभाके कार्यकर्ता सेठजीकी आज्ञानुसार काम करते व बहुत ही दिलचरपी दिखलाते थे। अतएव सेठनी कानपुरसे लौटते ही दक्षिणको रवाना हो गए। इस वर्ष सभाका पंद्रहवां वार्षिकोत्सव श्री - स्तवनिधि क्षेत्रपर सेठ रामचंद नाथा द०म० जैन सभाका गांधीके सभापतित्त्वमें हुआ। हमारे सेठजीने १५वां वार्षिकोत्सव सभापतिके प्रस्तावका अनुमोदन किया । स्तवनिधि। सभामें २१ प्रस्ताव पास हुए जिनमें मुख्य ये थे (१) लार्ड हार्डिगके उपसर्गसे बचनेपर हर्ष । इसका अनुमोदन सेठजीने किया (२) कोल्हापुर बोर्डिंगकी जमीनपर धर्मशाला व यति For Personal & Private Use Only Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७२३ आश्रम बांधनेके लिये श्रीयुत भूगल आप्पानी जिरगेने जो २३००) सभाको दिये हैं व मंदिरके खर्चके लिये १००) वार्षिकका उत्पन्न देनेका विचार किया है इसके लिये आभार माना जावे (३) लाहौरके लाला रामचंद एम. ए. सबसे पहले जैनियोंमें सिविल सरविशकी परीक्षामें उत्तीर्ण हुए इस पर आनन्द प्रकाश (४) जैनियों की संख्याकी कमीके कारणोंकी जाँच कीनावे (५) सच्चे धर्मोपदेशकों के भ्रमणका प्रबन्ध कराया जावे (६) व्यापारमें एकत्रित धर्मादेकी रकम धार्मिक कामों में लगाई जावे । इस प्रस्तावको स्वयं सेठनीने पेश किया । यह सेठनी का खास अमली प्रस्ताव था। इसके बदौलत आपने बहुतसा रुपया इधरके लोगोंकी जो यातो खाली जमा रहता व ऐसे वैसे काममें जाता उसे शिक्षा प्रचार आदि उपयोगी कामों में खर्च करा दिया यहां तक कि सांगलीकी बोर्डिंग इसी रकमसे हो खुल गया। खेती सम्बन्धी वस्तुओंकी प्रदर्शनी भो एकत्र को गई थी जिसको स्वयं सेठजीने अपने हाथसे खोला । वास्तवमें दक्षिण महाराष्ट्र सभाके कार्य अतिशय श्लाघनीय हुए हैं। निस समय यह पंद्रहवी बैठक हुई थी उस समय इस सभा द्वारा कार्योंकी स्थिति निम्न प्रकार थी:(१) जैन बोर्डिंग कोल्हापुरमें ६० विद्यार्थी कालेन व हाईस्कूलका शिक्षण धर्म शिक्षाके साथ लेते थे। ३२०००) की इमारत विद्यार्थीगृह, चतुरबाई सभागृह, श्री अनंतनाथ मंदिर वगैरह लेकर बंधी हुई थी। For Personal & Private Use Only Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय बारहवां । (२) सांगली विद्यार्थीगृहमें १५ छात्र छात्रवृत्ति लेकर सीख रहे थे । (३) सुभेदार विद्यार्थीगृह बेलगांव में २००००) के फंड से जो स्थापित हुआ था । १८ विद्यार्थी थे । (४) हुबली बोर्डिंग में १८ छात्र थे । इमारत के लिये ६०००) जमा थे तथा ४०००) की ज़मीन एक गृहस्थने दे रक्खी थी। ७२४ ] (५) 'जिनविजय' कड़ी में मासिक व साप्ताहिक मराठी " प्रगति आणि जिनविजय " ऐसे दो पत्र जारी थे क श्रीत चौपड़े कीर्तन के साथ उपदेश करते हुए भ्रमण करते थे । (६) स्त्रीशिक्षा के लिये छात्रवृत्तियें देकर अध्यापिकाएं तैयार कराई जा रहीं थीं । (७) स्तवनिधि क्षेत्र में सड़क, तालाब आदि ठीक कराने में हजारों रुपये खरचे थे । सेठ माणिकचंदजी एक दक्षिण प्रान्त में ४ बोर्डिगों के द्वारा जैनियों में शिक्षाका प्रचार होते हुए देखकर बहुत ही हर्षित थे । आप स्तवनिधिसे लौटते हुए सांगली गए। वहांके कामको ठीक होते हुए देखकर आपके चित्तमें वहां इमारत बांधने की आ गई क्योंकि सेठजीको मकान बनवानेका व अच्छे हवादार, रोशनीवाले मकानोंमें छात्रों को रहते हुए देखने का शौक था । आप अपने समान अपने छात्रों को भी समझते थे । जैसे आप योग्य महल में रहते थे. ऐसे ही छात्रोंके लिये भी चाहते थे । आप सेठ रामचंद नाथाके For Personal & Private Use Only Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७२५ साथ सांगलीके महाराजसे मिले । महाराजने इमारतके लिये ज़मीन देनेका व अन्य प्रकारसे सहायता करनेका वचन दिया । वास्तवमें उद्योग इसको कहते हैं । सेठनी बम्बई आ गए। विक्रम सम्बत् १९६९ जेष्ठ मासमें सेठ माणिकचन्दनीने शोलापुर निवासी सेठ वालचन्द हीराचन्द काश्मीरका प्रवास । दोशी, सेठ जीवराज गौतमचन्द गांधी और सेठ जीवराज वालचन्द्र गांधीके साथ ३ मास तक काश्मीरमें भ्रमण किया। इसका विवरण बहुत कोशिस करने पर हमें नहीं मिल सका परन्तु जो बहुत ही संक्षिप्त हाल जाना गया-नीचे प्रकट करते हैं । बम्बईसे रवाना होकर आगरा पहुंचे और बोर्डिंगकी व्यवस्था ठीक कराई। यहां से दिल्ली होकर मेरठ पहुंचे और यहांकी बोर्डिगका निरीक्षण किया। यहांसे हस्तिनापुरके दर्शन करके देहरादून और मसूरी पहाड़ होकर शिमला पहुंचे और यहां मन्दिर स्थापन के लिये प्रेरणा की और दान भी दिया। यहांसे अमृतसर पहुंचे। यहां सोनेका नानकसाई देखा। यहांसे लाहौर जाकर अपनी बोर्डिंगका निरीक्षण किया। यहांसे साम्भरलेक जाकर सैन्धवको देखा । यहांसे जम्बू और रावलपिन्ड़ी होते हुए फिटन व तांगेमें बैठकर काश्मीर पहुंचे। यहां १२ दिन ठहरे। यहां जेलम नदी, बाग, बड़ी मसजिद आदि देखे और केशरके खेत देखकर केशर खरीद की। यहांसे रावलपिन्डी, पेशावर, मुल्तान, करांची, जोधपुरमें जा कर २ या ३ दिन तक ठहरे और जोधपुरसे सीधे श्रावण मासमें बम्बई आ पहुंचे। इस भ्रमण में दो स्थानपर ग्रुप फोटो लिये गये थे जो अन्यत्र मुद्रित हैं। For Personal & Private Use Only Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय बारहवां | बम्बई नगर में पुराना गुजराती दिगम्बर जैन मंदिर है । यहां पर माणिकचंद लाभचंद नामकी जैन पाठशाला चालू की गई थी। उस मंदिर के मुख्य प्रत्रन्धक नेमचंद ने इसका विरोध किया जिसपर ७२६ ] बम्बई गुजराती दि० जैन मंदिर | पत्रों में परस्पर झगड़ा हुआ | मामला अदा लत तक पहुंचा। इसमें सेठजीको उल्झकर कोशिस करनी पड़ी । इससे मंदिरका छः या ७ हजारका भंडार खर्च हो गया। तथा जिन प्रतिपक्षियोंके पास भंडार न था उनका जातीय रुपया खर्च हुआ। अंत में आपस में समाधानी हुई। कोर्टने कुछ नियम बनाके पांच टूष्टी निवत कर दिये जिनमें सेट माणिकचंदजी भी एक हुए । जव सेठ पानाचंदजीका देहान्त हुआ तब आपके अंतिम विवाह से अर्थात् स्वमणीबाईसे तीन संतान सेट पानाचंदजीकी सजीवित थीं, उनमें से लीलावतीका संतान । विवाह परोपकारी, विद्याप्रेमी व उद्योगी जौहरी ठाकुरदास भगवानदास के साथ हो गया जिनके संयोगसे वर्तमान में एक पुत्री है। सं. १९६९ में लीलावती १७ वर्षकी थी । इसी समय दूसरी कन्या रतनबाई जो सं० १९६९ में १५ वर्षकी थी व पढ़ने में बहुत ही चतुर थी, जिसने ६ वी श्रेणी तक चंदाराम गर्ल हाईस्कूल में इंग्रेजी शिक्षण प्राप्त किया था सो यकायक बहुत सख्त बीमार होकर सुरतमें ज‍ For Personal & Private Use Only Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [७२७ ता. ३ मार्च १९१३को इस संसारसे चल वसी । इसको शिक्षाका बहुत प्रेम था । मरनेके पहले इसने अपनी एक कन्याका इच्छासे ही १५०००) का दान स्त्री शिक्षा१५०००)का दान । के लिये किया और मातासे कह गई कि इस रकमसे दि० जैन समानमें स्त्री शिक्षा का प्रचार किया जाय । वास्तवमें दानियोंकी संतान भी दानी होती है। इसके वियोगसे इसकी माता रुक्मणीबाईको तो शोक हुआ ही पर सेठनीको भी भारी दःख हुआ क्योंकि ऐसी शिक्षित सुशील कन्यासे सेठनी भविष्यमें जैन जातिकी उन्नतिकी बहुत कुछ आशा रखते थे । रुक्मणीबाईको अपनी तीसरी संतानपु-त्र ठाकुरभाईको देखकर संतोष हो जाता था । सं० १९६९ में यह १३ वर्षका था और नित्य स्कूल में पढ़ने जाता था। इसका चित्त सरल व कुछ धर्मपरायण है । सेठ पानाचंदकी कीर्तिको यह विस्तृत करेगा ऐसी आशा रुक्मणीबाई व अन्य कुटुम्बी जनोंको है । पिताके समान आलस्य रहित श्रीमती मगनबाईजीने इन्दौर छावनी में सेठ गेंदनलाल और भूरीबाई द्वारा श्रीमती मगनबाईजी- निर्मापित नवीन जिन मंदिर बिम्ब प्रतिका उद्योग। प्ठोत्सव पर जाकर ८ दिन तक कई स्त्री सभाएं ____ करके मिथ्यात्वत्याग, शीलवत आदि पर व्याख्यान देकर सैकड़ों स्त्रियोंसे नियम कराए। श्रीमती पार्वतीबाई, गुलाबबाई, हंगामीबाई आदि पढ़ी हुई बहनों के साथ ज्ञान चर्चा करके बहुत लाभ प्राप्त किया, फिर ता. २८-२-१३ को बम्बई लौट आई। For Personal & Private Use Only Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ ७२८ ] अध्याय बारहवां हम ज्यों २ सेठजीके कृत्योंका विचार करते हैं त्यों २ . सेठजीके निरालस्य और शिक्षाप्रमी स्वभावसेठजीका विद्यार्थियोंसे की कोमलता देखकर आश्चर्य होता है । प्रेम और कोल्हापुर कोल्हापुर बोर्डिंगके विद्यार्थियोंने एक विद्यार्थी गमन । सम्मेलन स्थापित कर रक्खा था जिसका उत्सव ता० २१ अप्रैल १९१३ को बड़े समारोहसे करना विचार कर सांगली, हुबली, शोलापुर व बेलगांव बोर्डिंगों के छात्रोंको व अन्य गांवों की करीब ४०० जैन मंडलीको एकत्रित किया। मि० ए० पी० चौगले, रा० रा० रु तथा विद्यार्थियों के सच्चे पिता सेट माणिकचंदजीको भी बुलाया था। ध्वजा पताकाओंसे सुशोभित करके एक मंडर बांधा गया था । सबेरे ही दर्शन पूनादि नित्य कर्मके पीछे सर्वका दूध चायसे सत्कार किया गया। फिर सर्व विद्यार्थियोंका फोटो लिया गया। सेठनीने अखाड़े का द्वार खोला । कुस्तियोंकी कसरतके साथ २ पटा खेलना, दौड़ना, गेंद फेंकना आदि खेल दिखलाए गए । हरएक खेलमें सर्वोत्तम तीनको इनाम दिये गए । १०॥ बजे प्रोफेसर शिंदेका जादूका खेल हुआ। फिर सर्व मंडलीका विद्यार्थियोंने पक्वान्न मिठाई आदिसे खूब भोजन सत्कार किया। फिर ४ बजे सभा प्रारंभ हुई। अजैन विद्वान् भी पधारे थे । सभापतिका आसन हमारे दानवीर सेठजीको प्रदान किया गया। गानके बाद श्रीयुत् हाल सेठीने रिपोर्ट सुनाई । उसके भीतर कहा कि द० म० जैन समाके स्थापनके पहले इस प्रांतमें शिक्षा प्रचारका प्रयत्न रा० रा० चौगले, हंजे, लट्टे, आवटेने किया था। फिर समा स्थापित For Personal & Private Use Only Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [७२९ हुई और सेठ माणिकचंदजीका समागम मिला जिससे यह बोर्डिग व उस सम्बन्धी अनेक सभाएं हुई। इस बोर्डिंगसे आज तक १५० छात्र पढ़कर चले गए हैं और अब भी ६० पढ़ रहे हैं । फिर छात्रोंके इंग्रेजी व मराठी में भाषण होनेपर रावसाहब जादवरावने विद्यार्थियोंको उपदेश किया उसमें कहा कि "सत्य बोलो, कर्तव्य कर्म करो तथा अपनी शिक्षामें प्रमाद न करो-यह उपदेश पूर्वके गुरु देते थे, उसीको ग्रहण कर सबको चलना चाहिये। रा० रा० डोंगरे, व लट्टेके भाषणके पीछे अध्यक्ष सेठजीने कहा कि “ यहां विद्य र्थियोंका सम्मेलन देखकर मुझे बहुत ही आनन्द हुआ है। विद्यार्थी अपना २ काम अच्छी तरह करते हैं, यह बात भले प्रकार देखी जाती है । बम्बई बोर्डिगकी अपेक्षा कोल्हापुर बोर्डिगकी व्यवस्था अच्छी नजर आती है। इसका कारण रा० रा० लट्टेका नित्य निरीक्षण है।" फिर रा० रा० डोंगरेने अच्छे निबन्ध लिखनेपर दो छात्रोंको १०) व ५) इनामके दिये । पहलेने १०) बोर्डिंगकी होटलके इमारत फंडमें अर्पण कर दिये । रात्रिको ८ बजे पूनाका वृहत् सभारंभ हुआ। इस तरफ रात्रिको पूजन करनेका खास कर समारंभके अवसरपर बहुत बड़ा रिवाज है। पूजनके पीछे रा. रा. चौगलेके समापतित्वमें मि. बुगटेने जैनधर्मपर व्याख्यान दिया। दूसरे दिन कोल्हापुर और बेलगांवके विद्यार्थियोंका मैच हुआ, जिसमें कोल्हापुरके विद्यार्थी जीते । सेठ माणिकचंदनी इन छात्रोंकी कार्रवाईको देखकर व अपने तन, मन, धनके उपयोगकी सफलताको जानकर अतिशय आनन्दमें लीन हो गए। सेठ नवलचंदके तीन संतान हैं । इनमें पुत्र ताराचंदका लग्न For Personal & Private Use Only Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७०] अध्याय बारहवाँ। सं. १९६३ में सुरतमें हुआ था उससे अक्षय तृतीयामें व्यव- ताराचंदको १ पुत्रीका लाभ चैत्र वदी १४ हारिक कार्य और सं. १९६५ को हुआ था पर वह वैशाख सुदी सेठ नवलचंदजीकी ७ को संसारसे कूच कर गई। फिर आषाढ़ . संतान । सुदी १२ सं. १९६७ को निर्मला नामकी कन्याका जन्म हुआ जो अब आनन्दसे बालक्रीड़ामें लवलीन है । इस वीर संवत् २४३९ में पुत्री माणिकबाईकी अवस्था १५ वर्षकी हो गई थी। वैशाख सुदी ३ के शुभ दिनमें सेठ नवलचंदजीने अपनी इस पुत्रीका पाणिगग्रहण पूना निवासी सेठ जैचंद मानचन्दके सुपुत्र हीरालालके साथ बड़े उत्साहसे जैन विधिके अनुसार बम्बई ऐलक पन्नालाल देशी दवाखानेके जैन वैद्य भरमण्णा बम्मण्णा उपाध्यायसे कराया । यथायोग्य संस्थाओं आदिको दान भी किया गया । अहमदाबादमें सेठ प्रेमचन्द मोतीचंद दिगम्बर जैन बोर्डिंगके हातेमें थोड़े ही दिन हुए सेठ माणिकचन्दजीकी अहमदाबादमें माता भाबी रूपाबाईजीने एक धर्मशाला बनवा दी द्वारा थी। एक दिन आपके चित्तमें आई कि १५०००का विद्यार्थियों व अन्य नगरनिवासियोंको औषधालय। शुद्ध देशी दवाओंका दान हो तो बड़ा उपकार हो । ऐसा विचार कर माताजीने अपने मनका अभिप्राय सेठ माणिकचन्दनीको कहा। सेठजी ऐसे कामोंके लिये सदा ही अग्रगामी रहते थे। आप तुर्त ही अहमदाबाद और वहां एक वैद्यको तलाशकर श्रुत पंचमी अर्थात् जेष्ठ सुदी For Personal & Private Use Only Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । ५ वीर सं. २४३९ ब विक्रम सं. १९७० (मारवाड़ी) ता. ९ जून १९१२के दिन प्रसिद्ध वैद्य जटाशंकर लीलाधरके सभापतित्त्वमें सभा करके धर्मार्थ औषधालयकी स्थापना करा दी। माता रूपाबाईने इसके लिये १५०००) हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिंग स्कूल वम्बईके टूष्ट कमेटीके आधीन कर दिये हैं। मिती आषाढ वदी ४ ता. २२ जून १९१३ को सेठ _माणिकचंदनीने सूरतमें फूलकौर कन्याशालाका फलकौर कन्याशालामें दूसरा वार्षिक अधिवेशन सरदा सेठ ईश्वरदास सेठ जी। जगजीवनदास स्टोरके सभापतित्त्वमें किया। मूलचन्द किसनदासजीने रिपोर्ट सुनाई। बालिकाओंसे धर्म सम्बन्धी श्लोक व स्तोत्रं सुननेके पीछे वार्षिक परीक्षाके उपलक्षमें कन्याओं को पुस्तक व वस्त्रा दिकका इनाम दिया गया। "पुत्रीने मातानी शिखामण" और "नारी दर्पणमां नीति वाक्यो" पुस्तके वांटी गई। इस समय ९२ बालिकाएं थीं जिनमें २४ दिग० व २१ श्वे० जैन थीं। सेठजीने सर्वका आभार मान व कन्याओंको चतुर देख अपनी लक्ष्मीके सदुपयोगसे परम हर्ष माना। __ श्रीमती मगमबाई अपने श्राविकाश्रम द्वारा योग्य कार्य होने में कभी चूकती नहीं थीं। श्रीमान् श्राविकाश्रम बम्बईमें लॉर्ड हार्डिंग महोदयके वर्षगांठके दिन ता. सभा । २० जून १३को श्राविकाश्रममें धर्मपत्नी सेठ हरनारायणदास रामनारायणदासके सभापतित्वमें सभा हुई, जिसमें लार्ड हार्डिंगकी दीर्घायु होनेका गीत गाया गया मिष्टान्न वितरण हुए तथा शिक्षा विभागसे जो लार्ड For Personal & Private Use Only Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAAAMANN.........ANnANINnnnnnnArum ७३२] अध्याय बारहवां । और लेडी महोदयके फोटो प्राप्त हुए थे सो बांटे गए । इस समय श्रीमती पार्वतीबाईने ५०) आश्रमको दिये । और भी १००) से उपरका फंड हुआ। श्रीमान् सेठ जमनालाल वर्धाकी धर्मपत्नीने लार्ड महोदयके फोटोपर व प्रमुखाको हार पहनाया। मगनबाईजीने सबका आभार मान समा विसर्जन की। दानवीर सेठजीके भानजे स्वर्गवासी सेठ चुन्नीलाल झवेरचंदकी विवाहिता पुत्री कीकीव्हेन स्त्री शिक्षामें ५०००) उर्फे परसनबाई का मरण ता. २५ जून . १९१३ को हो गया । इस बाईको भी धर्मका अनुराग था सो मरणके पहिले ५०००) स्त्री शिक्षा प्रचार व ५००) अन्य धर्म कार्यमें दान किये । इसकी माता जड़ावबाईको इसके वियोगसे बहुत कष्ट हुआ, क्योंकि जड़ावबाईके दो पुत्रियां थीं-एक तो पहले ही चल बसी थी दूसरी अब चल दी। सेठ माणिकचंदजी और मगनबाइजीक समझानेसे जड़ावबाईनीको सन्तोष हुआ और यह अपने जीवनको धर्मकार्यमें लोन करने लगी। सेठनीको यह जानकर बहुत हर्ष हुआ कि विलायतमें वेरि ष्टर जगमन्दिरलालजीके प्रयत्नसे ता. १४महावीर ब्रदरहुड ८-१३को महावीर ब्रदरहुड स्थास्थापन। पित हुई, जिसके सभापति मि. हर्बर्ट वारन, ___उपसभापति जुगमन्दिरलाल जैनी और मंत्री अलेक्जेन्डर गॉर्डन और उपमंत्री उनकी स्त्री मिस गॉर्डन है जो जैनधर्म धारण करते हैं वे इसके सभासद होते हैं । For Personal & Private Use Only Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७३३ सेठ हीराचन्द गुमानजी जैन बोर्डिंग बम्बई में ता० २ सितम्बर १९१३ को मणीलाल होकमचंद उदाणी हीराचन्द गुमानजी एम० ए० एलएल० बी० ( जो इसी बोर्डिगमें सभा। बोर्डिगके छात्र थे ) के सभापतित्वमें सभा हुई, जिसमें सेठनी भी उपस्थित थे। उस समय ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने जैन समाजोन्नतिके विषयमें व्याख्यान दिया । प्रमुखके विवेचनके पीछे सेठनीने सर्वको धन्यवाद दे सभा विसर्जन की । इस समय इस बोर्डिंग के छात्र सेठनीको बड़ी ही भक्तिसे देख रहे थे, क्योंकि जिस बम्बई स्थानमें ठहरनेको जगह नहीं मिलती थी वहां अनेकों छात्रोंने इस स्थान में सुखसे रहकर विद्याका लाभ किया था, इसी उपकारकी स्मृति छात्रोंकी भक्ति सेठजीपर कराती थी। वर्धा दिगम्बर जैन बोर्डिंगका वार्षिकोत्सव मिती आसोन वदी ५ सं० २४३९ ता० २१ सितम्बर वर्धा दि० जैन बोर्डिंग १३ को हुन धूमधामसे हुआ। वहांके व सेठजी। भाइयोंके प्रेमसे आकर्षित होकर सेठनी भी पधारे थे । वहांके कार्यका निरीक्षण कर आप संतोषित हुए । मिती कार्तिक वदी १ ता० १६ अक्टूवर १३ की रात्रिको हीराबाग लेक्चर हॉलमें सेठ कस्तूरचंद इंदौररायबहादुरको सन्मान निवासीको सरिसे रायबहादुरका पद और २५००) मिलनेके उपलक्षमें सेठ माणिकचंदजीके सभाका दान। पतित्वमें बम्बईके दिगम्बर जैनोंकी समाई। - ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी भी मौजूद थे। चांदीके For Personal & Private Use Only Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ ] अध्याय बारहवां कास्केटमें एक सुन्दर मानपत्र सेठ कस्तूरचंदजीको अर्पित किया गया । सेठजीने इस अवसरपर २५०० ) स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस के ध्रुवफंड में प्रदान किये। हज़ारोंके दानकी प्रथा चलाने में सेठ माणिकचंदजीकी उदारता ही कारण गजपंथाजी तीर्थका प्रबन्ध केवल सेठ रावजी नानचंद शोलापुरके ही आधीन था जिससे प्रायः शिकायते श्री गजपंथाजी रहा करती थीं । सेठजीने हीराबाग धर्मशातीर्थके लिये लामें ता० २७ अक्टूबर १९१३ को रावजी प्रबन्धकारिणी नानचंद, ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी और बालचंद्र सभा । रामचंद दोशी से सम्मति करके एक नियमावली व ११ महाशयोंकी सर्व प्रान्तीय प्रबन्धहीराचंद अमीचंद और कारिणी कमेटी बनाई, जिसके मंत्री शाह सभापति सेठ रावजी नानचंद नियत किये यह कमेटी सन्तोषकारक कर रही है 1 । जबसे तीर्थका काम इन्दौरके विद्याप्रेमी सेठ तिलोकचंद कल्याणमलने २ लाख संग्या विद्याप्रचार के लिये निकालकर विद्वानोंसेठजी इन्दौर में और की सम्मति ली थी कि किस काम में २ लाखका दान | लगावें तथा इसीलिये कार्तिक सुदी ८ वीर संवत् २४४० ता. ६ नवम्बर १९१३ गुरुवार को आपने खास २ भाइयोंको निमंत्रण कर बुलाया । बम्बईसे सेठजी भी पहुंचे थे। पं० गोपालदासजी, पं० अर्जुनलालजी सेठी, ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी आदि भी आए थे । बहु सम्मति से "तिलोकचंद जैन हाईस्कूल " का खोलना निश्चय हुआ व मैनेजिंग For Personal & Private Use Only Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [७३२ कमेटी बनी । इस सभामें सेठ हुकमचंदनी सभापति हुए थे जिनके नियत होनेके प्रस्तावका समर्थन दानवीर सेठजीने किया था। सेठ माणिकचंदनीकी ओर विशेष लक्ष्य होनेसे उसीके अनुसार ही हाई स्कूल खोलनेका दृढ़ विचार हो गया। यह दान व ऐसा विचारे यह सब सेठजीकी दानवीरताका अनुकरण है। ___ सेठ माणिकचंदजी जिस काम में रुपया लगाते थे उस कामको इतना पक्का कर देते थे कि उस कार्यकी सेठजीके कार्योकी नींव कभी भी न बिगड़े। आपने बम्बई, दृढ़ता। अहमदाबाद, रतलाम बोर्डिग व हीराबाग धर्मशालाके फंडोंको एक रजिष्टरी हुई ट्रष्ट कमेटीके सुपुर्द कर दिया था कि जिसमें कोई भी उस रकमको सिवाय उस निपत कामके और किसी काममें कोई खर्च न कर सके व यदि कभी किसी दृष्टीकी नियत खराब हो तो वह सर्कार द्वारा भी दंडित हो सके। कोल्हापुर बोर्डिमके लिये राजा साहबसे जमीन मुफ्त लेनमें व इमारत बांधनेमें सेठजीने बहुत परिश्रम कोल्हापुर बोर्डिगकी उठाया था। आपने ता. १४ जुलाई १९१३ ___ ट्रष्ट डीड। के रोज ५ टूटी नियत कर कोल्हापुर बोर्डिंगकी ट्रष्ट डीड रजिष्टरी कराके बोर्डिंगकी जमीन व इमारतकी अनुमान ५००००) की मिलकियत उनके सुपुर्द कर दी । ५ ष्टी ये हुए-(१) स्वयं सेठजी (२) आप्पा साहब देसाई परगणेतेर दाल ठाणे हनगंडी (३) चौगले वकील (४) रा. रा. लढे एम. ए. (५) भूपाल आप्पाजी जिरगे कोल्हापुर । For Personal & Private Use Only Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय बारहवां । ट्रष्ट डीडमें नियत किया कि इस रकमका उपयोग दिगम्बर जैन विद्यार्थियों के विद्याप्रचार ही में हो तथा जमीनपर विद्यार्थियों के लाभार्थ व धर्म सम्बन्धी इमारतके सिवाय और कोई इमारत न बने तथा सब छात्रोंको दिगम्बर जैनधर्मका शिक्षण अवश्य लेना पड़ेगा । यह ट्रष्ट डीड सेठ माणिकचंद हीराचंदके हस्ताक्षरसे "प्रगति आणि जिनविजय" पत्र ता. ९ नवम्बर १९१३में प्रगट. हो गया है । धन्य है सेठजीकी दूरदर्शिता ।। ता. १५ नवम्बर १९१३को सम्पूर्ण जैनममानके सबसे प्रथम I. C. S. कलेक्टरकी परीक्षामें सेठजी द्वारा विद्वान्- उत्तीर्ण होकर लाहौर निवासी लाला का सन्मान मनोहरलाल दिगम्बर जैनके सुपुत्र बाबू रामलाल डबल एम.ए. विलायतसे जहाजपर बम्बई बंदरपर पधारे । सेठनी विद्याप्रेमके वश होकर उनके पिता व अन्य महाशयोंके साथ बंदरपर गए । हार तोरासे भले प्रकार स्वागत करके रामचन्द्रनीको गुलालबाड़ीके दिगम्बर जैन मंदिरजीके दर्शन कराकर हीराबाग धर्मशालामें लाकर भले प्रकार ठहराया व सन्मान किया । विद्यार्थियोंसे सेठनीका प्रेम स्वाभाविक होता था । सांगलीनिवासी सेठ देवचंद सांकलचंदने ५०००) मृत्युके पहले धर्मार्थ दिये व यहींके एक जैन व्यापारी सेठजीके दानका रा. रा. बालगौंडानखगौंडा पाटीलने सांगलीके अनुकरण । बोर्डिगको अपने १०००) की बीमेकी रकम दे डाली तथा शोलापुरके प्रसिद्ध सेठ हरीभाई देवकरण वाले सेठ बालचन्द रामचन्दकी माता श्रीमती For Personal & Private Use Only Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाई रूपामाजी,मातुश्री प्रेमचन्द मोतीचन्दनी. 10) J. V. P. Surato ( For Personal & Private Use Only Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग [७३७ मैनाबाई ७२ वर्षको आयुमें ता० ३ नवम्बर १९१३ को स्वर्गधाम पधारीं । उनकी स्मृति में उनके सुपुत्रोंने १५०००) रु० विद्यादानके अर्थ निकाले । नए वर्ष अर्थात् १९१४ के प्रारंभसे सेठमीका शरीर यद्यपि ___ बाहरसे किसी प्रकारके रोगोंसे पीड़ित नहीं सेठजीकी शरीर हुआ था पर अंतरगमें आपको बहुत निर्बलता स्थितिमें अशक्तता । मालूम होती थी-किसी भी बातका बहुत विचार करनसे आपको चक्कर आ जाया करता था। इस समय आपके चित्तमें बड़ी भारी चिंता श्री सम्मेदशिखर पर्वतरक्षाकी मौजूद थी। लाला प्रभूदयालकी प्रेरणा व तीर्थक्षेत्र कमेटीके परोक्ष प्रस्ताव नं० २ ता० १६-१०-१२ के अनुसार ता. ५ सितम्बर १९१३को हजारीबाग कोर्टमें पर्वतका पट्टा कायम रक्खा जावे या उसका हर्जा २ लाख रुपया मिले। ऐसा मुकद्दमा बाबू धन्नूलाल और सेउ परमेष्ठीदासजीकी ओरसे राजा रणवहादुरसिंह पालगंज और बाबू कृष्णचंद्र घोष मैनेजर कोर्ट ऑफ वाईसपर दायर कर दिया गया । एक मुकद्दमा जो श्वेताम्बरियोंने दिगम्बरियोंको स्वतंत्र पूजनके हक न होनेका किया था, कोर्टमें अटका पड़ा हुआ था। इन्हीकी पैरवी अच्छी तरह हो कि जिसमें परम पूज्य पर्वतकी रक्षा रहे और दिगम्बर जैनियोंकी भक्तिमें कभी कोई अन्तराय न पड़े ऐसी सेठजीको चिन्ता रहती थी और कमेटीके दफ्तरमें आपको पत्रों के उत्तर देने पड़ते थे । यद्यपि शरीर अशक्त था, पैरोंमें विशेष दर्द होचला था, तौभी आप नियमके अनुसार ही सब काम करते थे। समय पर ही हीराबाग व दुकान ४७ For Personal & Private Use Only Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ ] अध्याय बारहवां। पर जाते व समयपर ही लौटकर आते, सर्वसे बातचीत करते व समयपर ही रात्रिको शयन करते थे। इस वर्ष श्री स्याद्वाद महाविद्यालय काशीके संचालकोंने बना रसमें नवम वार्षिकोत्सव ता. २३ से २९स्याद्वाद महा विद्यालय १२-१९१३ तक बड़ी धूमधामसे टौनहालमें काशीका नवम मनाया था। सेठ माणिकचंदनी इस संस्थाके वार्षिकोत्सव । सभापति थे । आपको पधारनेके लिये प्रेरणा भी बहुत हुई तथा आना भी चाहते थे पर शरीरकी अशक्तता काशी आनेके लिये गवाही नहीं देती थी इससे आप नहीं आए पर समानके अच्छे २ व्यक्ति पं. गोपालदासजी, पं. अर्जुनलालजी, जुगमन्दिरलालजी एम. ए., अजितप्रसादजी एम. ए. आदि उपस्थित थे । जर्मनीके प्रोफेसर हमन जैकोबी भारतमें आए थे। इनका स्वागत भले प्रकार करके सभापति बनाये गये थे । सर्व दिगम्बरियोंकी ओरसे आपको मानपत्र अर्पण किया गया था। ता. २५ दिसम्बरको मिस ऐनीबिसेन्टने सभापतिका आसन ग्रहण किया था उस समय भारत जैन महामंडलकी ओरसे श्रीमती मगनबाईकी स्त्री शिक्षा मगनबाईको जैनमहि- प्रचारकी सेवाको ध्यानमें लेकर उनको जैनलारत्नका पद महिला रत्नका पद प्रदान किया गया और एक मनोहर कविताके साथ भेजा गया । बाई जी जल्सेमें आ नहीं सकी थी। __ ता. २६ को सभापति पंडित गोपालदासजी हुए थे। ता. २७ को महामहोपाध्याय डा. सतीशचंद्र विद्याभूषण एम.ए. पी. For Personal & Private Use Only Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [७३९ एच. डी. प्रन्सिपल संस्कृत कालेज कलकत्ता सभापति हुए। तब डा. जैकोबीको मानपत्र दिया गया व भारत जैन महामंडलकी ओरसे " जैनदर्शनदिवाकर" की उपाधि डा. जैकोबीको प्रदान को गई । २८ को हर्मन जैकोबी सभापति हुए तब डॉ० सतीशचंद्रको 'सिद्धांतमहोदधि' का पद दिया गया। ता. २९ को प्रोफेसर डाक्टर ओ० स्ट्रास कलकत्ता सभापति हुए तब हर्मन जैकोवीने अपना व्याख्यान पढ़ा उसमें दिखलाया कि(Jainism is independent of Budhism, Jainismu is even older than Budhism, Budhists Borrowed from Jains the technical term Ashrava. ") जैन धर्म बौद्ध धर्मसे स्वतंत्र है, जैन धर्म बौद्धसे भी बहुत पुराना है, बौद्धोंने आश्रव का विशेष शब्द जैनियोंसे लिया है। इसी दिन भारत जैन महामंडल की ओरसे सेठ कल्याणमलजी इन्दौरको "दानवीर" ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीको जैनधर्मभूषण' व प्रयाग बोर्डिंगके लिये २५०००) दान करनेवाली सुमेरचंदजीकी धर्मपत्नीको ' विद्याप्रेमिणी' का पद दिया गया। आमद ३०००)की हुई। बावू देवेन्द्रकुमार, और बाबू नंदकिशोरने बहुत परिश्रम उठाया। तथा बाबू चेतनदास बी. ए. महामंत्री महामंडलने अपने मेम्बरोंको भी बुला लिया था जिससे उसका भी जल्सा साथमें ही हो गया था। सेठजीके पास सर्व रिपोर्ट गई। आपने पढ़कर हर्ष माना कि अपने निमित्तसे खुलनेवाला स्याद्वाद महाविद्यालय प्रसिद्धिमें आ रहा है। नकल कविता उपाधि जैनमहिलारत्न । श्री मगनबाई देवि !, जय जयति जिन-पद-सेवि । For Personal & Private Use Only Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NvM ७४० ] अध्याय बारहवां । तुम धन्य है सु-प्रयत्न, हो जैन-महिला-रत्न ॥ १ ॥ तुम्हारो सबै स्वच्छन्द, स्वागत करें सानन्द । तुम किये बहु शुभ कृत्य, चुकीं तुम कृतकृत्य ॥ २ ॥ महिला रहीं जो अज्ञ, तुम्हारी भई सु कृतज्ञ । "शिक्षा'' प्रचार प्रशस्त, तुम कियो घूमि समस्त ॥ ३ ॥ दै "धर्म"को उपदेश, · पूरण कियो उद्देश । मृदु मधुर बानी बोलि, शुभ "श्राविकाश्रम" खोलि ||४|| "छात्रालयन'' खुलवाय, "विधवाश्रमन" बनवाय । करि सके नरन प्रवीन, वह काम तुम करि दीन ॥ ५ ।। सत् दानवीर अमंद, श्रीसेठ माणिकचंद । जे. पी., कुलालङ्कार, जिन लह्यो शुभ सत्कार ॥ ६ ॥ तिन योग्य तुम सन्तान, कहि सब करें सामान । बढि पुत्र सों तुम काज, कीन्यों सुता कै आज ॥ ७ ॥ "जैनी-महिला-परिषद् का संस्थापन करने वाली ! करें कहाँ तक, देवि, प्रशंसा, तुम हो नारि निराली ! ॥ ८ भारत-जैन-महामण्डल यह, आदर सों आराधि । "जैनी-महिलारत्न' नाम की, अर्पण करै उपाधि ॥९॥ आशा है, निज जनन को, यह सादर उपहार । उत्सवके आनन्द महँ,' है है अङ्गीकार ॥ १० ॥ कुमार देवेन्द्रप्रसाद जैन-काशी। वीर सं० २४४० में मार्गशीर्ष सुदी ३ के दिन श्रीमती मगनबाईजीने अपनी एक मात्र कन्या केशर मगनबाईजीकी पुत्रीका मती की लग्न सूरतमें जाकर पूना निवासी विवाह । जेचंद मानचंदके पुत्र चंदूलालके साथ बड़े समारोहके साथ जैन पद्धतिके अनुसार की। For Personal & Private Use Only Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७४१ उस समय सूरतकी फुलकुंवर कन्याशालाकी कन्याओंसे गायन गरबा आदि गवाया व कन्याओं को मिठाई सहित प्याले व अध्यापकोंको भी इनाम दिया । (५) जैन संस्थाओं में बांटे। केशरमतीको गुजराती, हिन्दीकी शिक्षा होकर इंग्रेजीकी शिक्षा हो रही थी, संस्कृतमें मार्गोपदेशिका चल रही थी। अपनी पुत्रीके पढ़ानेमें माता मगनबाईने कोई कसर नहीं रक्खी थी। तथा इसके वर चंदूलाल भी धर्मप्रेमी व कालेनकी पढ़ाई पढ़नेवाले हैं जिनकी द्वितीय भाषा संस्कृत है । अब ये दोनों दम्पति मुखले बम्बई में ही निवास करते हैं। श्रीमती मगनबाईजीका चित्त भी समाजसेवा करनेसे कभी उकताता नहीं था । आप पुत्रीके लग्नसे बड़वानीके मेलेमें छुट्टी पाकर बम्बई आ श्री बड़वानी सिद्धक्षेत्रमगनबाईजी। के मेलेमें उपदेशार्थ पधारी । यह नीमाड़ जिलेमें मउकी छावनीसे ८० मील एक देशी रियासत है । वहीं श्री चूलगिरि पर्वत है जहांसे प्रसिद्ध रावणके पुत्र इंद्रजीत और कुंभकरणने मुक्ति प्राप्त की है। पर्वतपर ८४ फुट ऊंची श्री ऋषभदेवकी अति प्राचीन दर्शनीय मूर्ति है जिसको बावन गजाजी कहते हैं। इसकी बड़ी महिमा है। यहां मालवा प्रान्तिक सभाका वार्षिक जल्सा था। सेठजीको बहुत आग्रह करके बुलाया गया पर सेठजी न आ सके । ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी आए थे । मेला पौष सुदी ८ से १५ तक था। दानवीर सेठ हुकमचंदजी आए थे । माघ सुदी १३, १४, १५ को जल्से हुए। खास बात बावनगजाजीके जीर्णोद्धारके लिये For Personal & Private Use Only Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ ] अध्याय बारहवां । ११४१२) का चंदा हुआ। जिसमें सेठ हुकमचंदजीने २१००), व रोड़मल मेघराज सुसारीने १००१) दिये। बड़वानी बोर्डिंग कमेटी बनी तथा सुदी १५ को दीवान स्थापन । साहब कुंवर भारतसिंह द्वारा दिगम्बर जैन बोर्डिग खोला गया जिसमें श्रीमती मगनबाईजीने १०१) दिये व श्रीमती मगनबाईके व्याख्यानोंको राज्य वर्गने भी सुना। स्त्रियोंमें आपके जानेसे बहुत जागृति फैली। २०० श्राविकाश्रमके लिये चंदा भी हुआ । बहुतसी स्त्रियोंसे अनेक नियम लिवाये। श्री सेव॒जय तीर्थ पालीतानामें बम्बई प्रान्तिक सभाका वार्षि कोत्सव मिती माघ सुदी ३ से ६ तारीख पालितानामें प्रांतिक २९ जनवरीसे १ फर्वरी तक था। सेठ सभाका जल्सा। माणिकचंदजीको जानेकी बहुत बड़ी आ वश्यक्ता थी पर आपने शरीरकी अशक्तताके कारण जाना उचित नहीं समझा पर आपके छोटे भाई सेठ नवल.. चंदनीको भेज दिया । सभापति श्रीमान् सेठ हुकमचंदजी हुए थे। आपने अपने व्याख्यानको पढ़ते हुए विद्या४ लाखका दान । प्रचारादि कार्योंके लिये ३ लाखका दान व अपनी धर्मपत्नी कंचनवाईके ओरसे १ लाखका दान किया । १३ प्रस्ताव मामूली पास हुए। सभाके लिये जनरल फंडकी अपीलमें १००१) दानवीर सेठ हुकचंदनीने दिये । कुल फंड करीव १७००) का हुआ। इस समय यात्री ४०००) के अनुमान आया था । संठ नवलचंदनी और For Personal & Private Use Only Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [ ७४३ मूलचन्दजी कापड़ियाने निर्विघ्न सर्वका स्वागत, पूजा व सभाका प्रबन्ध आदि करनेमें खूब परिश्रम लिया। ___ श्रीमती कंकुबाई, ललिताबाई व कई श्राविकाश्रमकी बाईयोंके पधारनेसे स्त्रियोंमें भी खूब उपदेश हुआ। शरीरकी बीमारीके कारण श्रीमती मगनबाईजीका आगमन नहीं हुआ था। भारत दि० जैन महिला परीषदकी चौथी वार्षिक सभा शोला ___पुर निवासी सेठ जीवराज गौतमचंदकी महिला परिषदका धर्मपत्नी रतनबाईके सभापतित्वमें हुआ। चौथा वार्षिक २ बैठकें हुई। चार प्रस्ताव पास हुए। उत्सव । श्राविकाश्रमके लिये २५०) का फंड हुआ जिसमें श्रीमती ललिताबाईने स्वयं १०१) दिये । यह बाईजी ऑनरेरी रूपसे श्राविकाश्रम खुलनेकी मितीसे बराबर काम कर रही हैं। आनी प्राइवेट कुछ सम्पत्ति है उसमें से यह रकम दानमें लगादी है। शोलापुरमें सेठ नाथारगंजी गांधीने २६०००) खर्च करके एक मनोज्ञ मकान बोर्डिगके लिये बनवाया शोलापुरमें बोर्डिगके था तथा सेठ हीराचंद नेमचंद मंत्रीने ऐलक मकानका खुलना। पन्नालालजी जैन पाठशालाके लिये भी एक मकान उसी हातेमें बनवा दिया था । इसीके उद्घाटनकी क्रिया फाल्गुण सुदी २ को इन्दौर निवासी रायबहादुर सेठ कस्तूरचंदजीके सभापतित्त्वमें हुई । शरीर ठीक न रहनेपर भी दानवीर श्रीमान् सेठजी बोर्डिंगके प्रेमवश पं० धन्नालालजी आदिके साथ बम्बईसे पहुंच गए थे। उत्सव सानन्द हुआ तब For Personal & Private Use Only Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४४ अध्याय बारहवां प्रमुखने १०००) पाठशाला व ७००) बोर्डिगके फंडमें दिये व १ वर्षतक दो छात्रोंके लिये मासिक वृत्तिये नियत की । सेठजी मकानको देखकर बहुत प्रसन्न हए क्योंकि इनको मकान बनवानेका बहुत शौक था तथा इस फंदमें एक अच्छे इंजीनियरसे भी अच्छी सलाह दे सकते थे। सेठजीको बम्बई लौटकर यह सुनकर और भी हर्ष हुआ कि बड़वाहा जिला नीमाड़में भी श्रीमती भागाबड़वाहामें बोर्डिंग । बाईने १००००) दानकर अपने पतिके नामसे "प्यारचन्दशा दिगम्बर जन बोर्डिङ्ग " रायबहादुर सेट तिलोकचन्द कल्याणमललके हाथसे मिती फाल्गुण सुदी २ ता० २६ फवरी १४को खुलवा दिया । __बम्बईमें सेठ माणिकचंदजीकी भावज सेठ मोतीचन्द हीरा राचंदकी धर्मपत्नी श्रीमती रूपाबाईका शरीर धर्मात्मा रूपाबाईजीका वृद्धावस्थाके कारण अशक्त हो गया । परलोक। खाना पीना कम हो गया। अवस्था भी इस समय ५८ वर्षकी थी। आपने मिती फाल्गुण सुदी ३ सं० १९७० के दिन अपने होशमें णमोकारमंत्रका जाप जपते व श्री चंदाप्रभु स्वामीका ध्यान करते हुए अपने इस नाशवन्त देहको छोड़कर स्वर्ग में विहार किया। सेठजीके कुटुम्बमें माता रूपाबाईके समान धर्मबुद्धि, वात्सल्यगुणधारी, वैयावृत्यमें सावधान, दान धर्म तप करनेमें लवलीन दूसरी स्त्री नहीं हुई । २२ वर्षकी उम्र में ही आपको वैधव्य प्राप्त हुआ तबसे बाईजीने अपने धमको परम श्रद्धाके साथ आजन्म निवाहा । For Personal & Private Use Only Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७४५ आपने अपने जीवन में उद्यापन सहित जितने व्रत उपवास सहित किये उनकी गिनती इस प्रकार है ( १ ) १२३४के उपवास सं० १९५१ से ६० तक । ( २ ) कवलाहार व्रत । (३) कर्मदहनके १७५ उपवास । ( ४ ) भक्तामर स्तोत्रके ५१ उपवास । ( ५ ) सहस्रनाम स्तोत्रके १३ उपवास । (६ ) तत्वार्थसूत्रके १३ , ( ७ ) मुक्तावली व्रत ९ वर्ष तक । (८) चौवीस तीर्थकरोंके २४ उपवास । (९ ) अष्टान्हिका वृत ८ वर्ष तक । ( १० ) रविवार व्रत ९ वर्ष तक । ( ११ ) फलदशमी व्रत १० वर्ष तक । ( १२ ) चांद्रायण व्रत ६ वर्ष तक । ( १३ ) निर्वाण तला ३ दफे । ( १४ ) फूलवत । ( १५ ) दीपकवत । ( १६ ) फलव्रत । (१७) द्रव्यव्रत । (१८) देवव्रत । इतने व्रतोंके सिवाय आपने श्री सम्मेदशिखरजी, चंपापुरजी, पावापुरजी व राजगृही आदिकी यात्रा सं. १९५८ और सं. १९५६ में दान धर्म सहित की। For Personal & Private Use Only Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४६ ] अध्याय बारहवाँ। इस महान् यात्राके सिवाय नीचे लिखीं यात्राएं और भी की। श्री गोम्मटस्वामीकी यात्रा दो दफे सं. १९४१ और १९६६ । श्री केशरिया, पालीताना, गिरनार सं. १९४३में । श्री गजपंथाजी सं. १९३६ और १९५६ में । कुंथलगिरिजीकी दो दफे। तारंगाजी। पावागढ़जी। मक्सीजी आदि। तथा आपने अपने परिणामोंसे पौना लाखसे अधिकदान अति उपयोगी कामोंमें इस भांति किया३५००० ) अहमदावादमें प्रेमचंद मोतीचंद बोर्डिङ्गके लिये। ५०००) १२३४ व्रतके उद्यापनमें । २५००) बोर्डिग बम्बईमें कार्तिक सुदी १५को वार्षिक पूजोत्सवार्थ । ६०००) उदयपुरमें दि. जैन पाठशालाके लिये। १५००० ) अहमदावाद बोर्डिगमें देशी औषधालयके लिये । ४८००) , में धर्मशालाके लिये । ३३०० ) ,, ,, में चांदीके समवशरणके लिये । ११००) ,, ,, दशलाक्षणीमें पूजनके लिये । ३५०० ) मुडेटी ( गुजरात ) में ध्वजादंड उत्सवके लिये। ५५००) मरते समय भिन्न २ धार्मिक कार्योंके लिये । कुल ८१७०० )रुपये । For Personal & Private Use Only Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग। [७४७ इनमें छोटे दान नहीं गिने गए हैं। उन सबको जोड़ा जाय तो १ लाखसे अधिक रकम हो जायगी। एक विधवा द्वारा उपयोगी कामोंके दानका किया जाना एक बड़ा भारी उदाहरण अन्य विधवा बहनोंके लिये है। प्रेमचंद पुत्रके वियोगके पीछे १५ वर्षकी चंपाबाई विधवाको आपने नित्य विद्या पढ़ने, शास्त्र स्वाध्याय करने, व्रत उपवासमें लीन रहनेमें उपयुक्त कर दिया और उसकी गोदमें एक सुशील पुत्र रतनचंद बिठा दिया जिससे प्रेमचंदका वंश सजीवित रहे और चंपाबाईको कष्ट न हो। अब चंपाबाई भी रूपाबार्डके समान दान धर्म में लीन हैं, निरंतर रतनचंदके पढ़ानेमें दत्तचित्त हैं, रतनचन्दका विवाह भी कर दिया है और अपनी सुकीर्तिको विस्तारती हुई चौपाटी बंगलेको सुशोभित कर रही है। माता रूपाबाईकी स्मृतिको क़ायम करनेके लिये अहमदाबाद बोर्डिगमें ता० २८ फर्वरीको एक स्मृति फंड माता रूपाबाईका कायम हुआ जिसमें छात्रों व सुपरिन्टेन्डेन्टने स्मारक। ७३/-) उसी समय जमा कर लिये । “दिगम्बर जैन " के ग्राहकोंको बाईजीके स्मरणार्थ श्रीपालचरित्र भेट किया गया था । श्रीमन्त सेठ मोहनलालजी, भा० दि. जैन महासभाके सहायक महामंत्री व बुंदेलखंड दि० जैन प्रान्तिक बम्बईमें जैन सभा। सभाके सभापति यात्रा करते हुए बम्बई पधारे । श्रीमान् सेठ माणिकचंदजीने आपका. For Personal & Private Use Only my Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४८ । अध्याय बारहवां । बहुत सन्मान किया और मिती चैत्र वदी ६ ता० १८ मार्च १९१४ की रात्रिको हीराबाग धर्मशालामें आपके सभापतित्वमें सभा हुई, जिसमें शामलालजी उपदेशकका 'जीवनके कर्तव्य'पर व्याख्यान हुआ। सेठजीन हार तोरा आदिसे सन्मान करके सभा विसर्जन की। इन्दौरमें रायबहादुर सेठ तिलोकचंद कल्याणमलजीकी माताने तकगंजमें एक नवीन जिन मंदिर निर्मापण इन्दौर में धार्मिक कराया था जिसकी प्रतिष्ठा पं० बालावक्सकार्य। जीके द्वारा चैत्र सुदी ६ से १२ व ता० ३१ मार्चसे ६ अप्रैल तक बड़े समारोहके साथ हुई । सेठ माणिकचंदजीको बुलाया गया पर आप शरीर अस्वस्थ्यताके कारण तथा इन्दौर में आवश्यक काम न होनेके कारण नहीं आए थे। सुपुत्री मगनबाईजीको भेजा था। मालवा प्रान्तिक सभा नमित्तिक अधिवेशन शोलापुरके परोपकारी सेठ हीराचंद नमचंदके सभापतित्त्वमें बड़ी सफलताके साथ हुआ। ३०००के अनुमान भाई पधारे थे । पं० गोपालदासजी भी आये थे । तिलोकचंद हाई स्कूल खुलनेका मुहूर्त भी इन्ही दिनोंमें था पर अचानक स्कूलके अधिष्ठाता पं० अर्जुनलाल सेठी जयपुर निवासी पर आपत्ति आ गई कि उनको संदेह पर सर्कारने गिरफदार कर लिया और नज़रबन्द कर दिया इस कारण वह कार्य तो बन्द रहा । जन संख्या ३००० हो गई थी। मालवा सभाके जनरल फन्डमें ५००) का चंदा हुआ । ११११)के ११ यावज्जीव सभासद हुए । इन्दौरमें उदासीनाश्रम खोलना निश्चय होकर सेठ For Personal & Private Use Only Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७४९ हुकमचंद, कल्याणमल व कस्तूरचन्द तीनों भाईयोंने दस दस हज़ार याने ३००००) व २०००) फुटकल ऐसे ३२०००) का फन्ड हुआ । मोरेना विद्यालयको सेठ हुकमचन्दने १००००) व रोड़मल मेघराज सुसारीने १०००) कुल १३०००) का ध्रुव फन्ड हुआ। सेठ कल्याणमलजीकी माताने २५०००) कन्याशालाके लिये दिये जिसका मुहूर्त ता०६ अप्रैलको हुआ। मुनीम धर्मचंदनीने पालीताना धर्मशालाके लिये कहा-तो तुर्त ही १०००) का चंदा हो गया । श्रीमती मगनबाई, कंकुबाई आदि विद्यावती बहनोंके पधारनेसे बहुतसी स्त्री सभाएं हुई । स्त्री शिक्षा फंडमें ८००) का चंदा हो गया। श्राविकाश्रम बम्बई में जंबूसर जिला भडोच निवासिनी श्रीमती जीवकोरबाई कई बर्षतक एक श्राविकाका वियो-रहकर अर्थ प्रकाशिका आदि ग्रंथोंकी जानग व मगनबाईजीको कार हो गई थी व उससे बहुत कुछ आशा थी शोक । सो बीमार हो गई और वैशाख वदी ३ सोमवार ता० १३ अप्रैलको समाधिमरण महित २५ वर्षकी आयुमें स्वर्गधाम पधारी । मरण पहिले अपनी १५०००) की जायदादमें से ३०००) धर्मार्थ दान कर दिये जिसकी विगत अति उपयोगी जानकर यहां प्रकट की जाती है। १००१) श्राविकाश्रम बम्बई । ५००) अथप्रकाशिका छपानेको । ५००) जंबूसरमें संस्कृत पाठशाला । १००) धर्म पुस्तकें रखनेकी ४ अलमारीके लिये । For Personal & Private Use Only Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५० ] अध्याय बारहवां । १००) शास्त्रदानके लिये श्रावकवनिता बोधनीका गुजराती भाषांतर “ दिगम्बरजैन” के ग्राहकोंको देनेके लिये २०१) पावागढ़ तीर्थमें । १००) गरीबोंको औषधिदान । १४७) परचूरन भंडार, मंदिर व तीर्थ । ५०) जैन धर्मकी पुस्तकें मंदिरमें रखनेको । ५०) ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर । ५०) श्राविकाश्रम बम्बई, कपड़ा और भोजनके लिये । २५) सोजित्रा जैन पाठशाला । २५) करमसद ,, ,, १५) जयपुर शिक्षा प्रचारक समिति । १५) बनारस स्याद्वाद महाविद्यालय । १५) फुलकोर कन्याशाला, सूरत । १५) जैन सिद्धान्त पाठशाला, मोरेना । १५) अहमदावाद दि० जैन बोर्डिंग । १५) रतलाम दि० जैन बोर्डिङ्ग। १५) वनिताविश्राम, सूरत । श्रीमती मगनबाईजीको इस वियोगसे महान् कष्ट हुआ। सेठ माणिकचंदजीको रूपाबाई ऐसी धर्मात्मा सेठजीको शोक। भावजके वियोगसे भी शोक हुआ था । इतनेमें आपने मालूम किया कि महासभा महामंत्री जैनजातिभूषण मुंशी चम्पतरायजी वैशाख सुदी १३ ता. For Personal & Private Use Only Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग । [७५१ १८ मई १९१४ को स्वर्गधाम पधारे । आप महासभाके आजन्म रक्षक रहे थे । इस ग्वबरसे सेठनीका चित्त और भी उदास हो गया। सेठ माणिकचन्दनीके चित्तमें जो बात बहुत कालसे जमी थी कि दिगम्बर जैनियोंकी संख्या दिगम्बर जैन डायरेक्ट- व अवस्थाकी दिखलानेवाली कोई पुस्तक रीका छपकर तैयार तैयार हो वह कामना इस सन् १९१४ में होना व १५०००) पूर्ण हो गई । बाबू सूरजभानजीने इस विषयमें का व्यय कार्य प्रारम्भ नहीं किया। तब इसको स्वयं सेठजीने बम्बई में अपने ही भानजेके भानजे सेठ ठाकुरदास भगवानदास जौहरीके अधीन किया। ठाकुरदासने ता. १५ नवम्बर १९०७से इसका कार्य उत्साह पूर्वक करना प्रारंभ किया और ७ वर्षोंके लगाकर परिश्रमसे अब इसकी १ बड़ी पुस्तकको जिसमें १४२३ सफे हैं छपाकर प्रसिद्ध कर दिया निसका मूल्य ८) रक्खा इस । कार्यमें दौरा करनेवाले डिरेक्टरोंने फार्म भरवाए जिनके छांटनेका काम हीराबाग धर्मशालाके सुपरिन्टेन्ट माणिकचन्द रावजी और भालचन्द्र महादेव द्वारा तथा क्लार्क कुन्दनलाल और गुलाबचन्द लुहाड्या द्वारा हुआ।मुख्य डाइरेक्टरोंने इस तरह प्रांतवार संस्था ली:-- मध्यप्रदेश राजपूताना और मालवा--फतहपुर जिला दमोह निवासी खूबचंद जैन । संयुक्तप्रांत बंगाल और पंजाब, जुगमन्धरदास जैन बाराबंकी बम्बई हाता और मैसूर प्रांत बारसीवाले तात्या नेमिनाथ पांगल व अन्य दो कर्मचारी। For Personal & Private Use Only Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ ] अध्याय बारहवां । कर्नाटक और मद्रासप्रांत कुंभकोणम निवासी एस जयराम । इस पुस्तकमें मुख्य २ शहर व स्थानोंके इतिहास भी दिये हुए हैं। ऐसी पुस्तककी तैयारीके सेठ माणिकचंद पानाचंर जौहरीके १५०००)से अधिक खर्च पड़े । सेठजी अपनी आंखोंसे तैयार सजिल्द पुस्तकको देखकर अतिशय आनन्दित हुए। और अंत:करणमें भाई ठाकुरदासके परिश्रमको खूब ही सराहा यह । डयरेक्टरी ८)में दिगंबर जैन पुस्तकालय सूरतसे मिल सकती है। __ जिस बोर्डिंगका मकान बनवानेके लिये सिंहई नारायणदासजी मरनेके समय २००००) देगये थे । उस मकान डालचंद नारायणदास को बहुत ही उम्दा करीब ५० छात्रोंकेरहने दि जैन बोर्डिंग लायक तय्यार करानमें मंत्री बाबू कंछेदीजबलपुर। लाल बी. ए. एल एल. बी. ने बहुत परिश्रम उठाया तथा भवनकी तैयारोमें ४००००) रु. लगे उसको सिंहईजीकी धर्म पत्नियोंने स्वीकार किया । इस भवनके तैयार होनेपर इसके खोलने का मुहूर्त ता. ३ जुलाई १९१४ को कमिश्नर साहब बहादुरके द्वारा अनेक प्रतिष्ठित महाशयोंके समक्ष्य किया। इस भवनका नाम डालचन्द नारायणदास दि.जैन स्कूल जबलपुर रक्खा गया तथा १५ मेम्बरोंकी एक ट्रष्ट कमेटी बनगई । सेठ माणिकचन्दनीके हार्दिक उपदेशसे सिंहईजीका द्रव्य एक उपयोगी काममें व्यय हुआ। इस भवन बननेके सिवाय ३५०००) की एक कोठी भी आपकी स्टेटसे बोर्डिंगके आधीन हुई थी। जिसका किराया १५०) मासिक आता है । सेठ माणिकचन्दनी शरीरकी अस्वस्थतासे स्वयं नहीं आएथे पर पत्र द्वारा जानकर बहुतही हर्षित हुए। For Personal & Private Use Only Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mammmmmmitma सेठजीका जुबिलीबाग बम्बई. (देखो पृष्ठ ७५६) For Personal & Private Use Only Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७५३ महती जातिसेवा तृतीय भाग । श्रीमान् सेठ माणिकचंदजीके चित्तको इस समय एक ऐसा धक्का लग गया था कि जिसके कारण आपका स्पेशी बैंकका दिवाला जातीय द्रव्य वहुतसा हानिमें जानेके सिवाय और सेठजीके जिन २ संस्थाओंके द्रव्यकी व्यवस्था आपके चित्तको धक्का | द्वारा होती थी, उसमेंसे प्रायः सर्वको हानि उठानी पड़ी। उसका कारण यह हुआ कि मिस स्पेशीबैंक पर बम्बईवालों का बहुत बड़ा विश्वास था उसका दिवाला निकल गया । स्पेशी बैंक के शेयर बहुतसे सेठजीने दलालोंके कहने में आकर खरीद लिये थे । इस भारी कई लाखकी हानिसे आपके चित्तको इस समय एक बड़ा धक्का लगा था। जिससे श्री शिखरजीकी चिन्ताके सिवाय यह चिंता और भी आपके चित्तपर बैठ गई । इन्ही के कारण आपका देह और भी भीतर २ अशक्त हो गया, गद्यपि बाहरसे आपको अन्तिम दिनतक कोई बीमारी नहीं आई। मिती श्रावण वदी ९ वीर सं. २४४० वं ता. १६ जुलाई १९१४ को सबेरे सदाकी तरह सेठजीने सेठजीका स्वर्गवास प्रातः काल उठकर श्री जिनेन्द्र चंद्रप्रभु भगवान्और एक सूर्यका का अभिषेक व पूजन अपने चौपाटी के लुप्त होना । चैत्यालय में किया, फिर जाप, पाठ और स्वाध्याय करके प्रतिदिन के समान भोजन करके हीराबाग आए और तीर्थक्षेत्र कमेटीके दफ्तर में शामको ६ बजे तक काम करते रहे। इसदिन आप बम्बई श्राविकाश्रम व हीराचंद गुमानजी जैन श्रोडिंगका निरीक्षण करते हुए हीराबाग पहुंचे थे । For Personal & Private Use Only ૪૮ Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५४ 1 अध्याय बारहवां । वहां बहुतसे पत्र लिखवाए, १ पत्र दि० जैनक्षेत्र आबूजीके प्रबन्धकर्ता बाबू पूनमचंद कासलीवालको कोटा रियासतमें भी लिखा जिसकी नक़ल आपके हस्ताक्षर सहित कमेटीकी कापी बुकमें मौजूद है। शामको भोजनके पीछे आप नियमानुसार समुद्र तटपर कुछ टहल कर लोगोंसे बातें करते रहे व रात्रिको ९॥ बजे तक श्री मगनबाईजीसे अनेक धम व जात्युन्नति सम्बन्धी वार्तालाप की। जब वह श्राविकाश्रमको रवाना होगई तब आप चैत्यालयमें गये, दर्शन करके १ घंटे तक सामायिक करते रहे । चैत्यालयसे लौट कर आप शयनालयमें आए और अपनी धर्मपत्नीसे सम्मति ली कि यह चिरंजीव बाबू (जीवनचंद ) ४ वर्षका हो गया है । इसे कुछ अक्षर ज्ञान कराना चाहिये। आज गुस्वारका शुभ दिवप्त है। कल शुक्रवार पड़ जायगा। आप रात्रिको ही करीव ११ बजे पुत्रको अक्षर पढ़ाने और लिखाने लगे, मानों उस बालकको अपने अंतिम समय पर यह शिक्षा देगए कि ज्ञानकी प्राप्तिसे ही तू अपना सच्चा हित समझना । विद्याके प्रेमीने विद्याका संस्कार अपने पुत्र में कर दिया। इतने में आपके उदर में कुछ दर्द हुआ, आप बाधा निवारणार्थ शौचको गए। लौटकर आये फिर भी शान्ति नहीं हुई। आप फिर गए लौटकर उदरमें अधिक पीड़ा होनेके कारण आप शांत चित्तसे कौच पर लेट गए और अपने भाई नवलचंदनीको बुलाकर कहा कि उदर में कुछ शूल मालूम होती है। भाईने बाहरी उपचार किया और वैद्य बुलानेको गाड़ी भेनी । इतनेहीमें आप अहंत, सिद्ध जपते २ वैद्योंके आनेके पहले ही इस जीर्ण शरीरको छोड़कर स्वर्गधाममें पधार गए । वैद्य आया । उधर भतीना ताराचंद आया For Personal & Private Use Only Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महती जातिसेवा तृतीय भाग [७५५ पर सबने परम प्रकाश रहित जड़पिंजरको ही पाया । वह आत्मा जो इस पर्याय में सेठ माणिकचन्द कहलाता था नहीं रहा । आपकी शुभ भावना इंग्लैंड में एक जैन बोर्डिग स्थापित करनेकी थी। जिसके लिये आपने मरणके दिनको भी बोर्डिंगमें देखते हुए मि. उदाणी एम. ए. से कहा था । यह आपकी भावना पूर्ण नहीं हो सकी। सेठनीको धार्मिक कार्यों का कितना बड़ा ध्यान था इस सम्बन्धमें आपके लिखे सन् १९-१२-१३के पत्रकी नकल यहां प्रकट की जाती है जो उन्होंने सेठ रोडमल मेघराजजी सुसारीको भेजा था । पत्र नकल सेठ रोडमल मेघराजजी। श्रीमान् सेठ रोडमलजी मेघराजजी सुमारी। मान्यवर महाशय, धर्म स्नेहपूर्वक जुहारु । अपरंच आपका पत्र नं० ११४ ता० १४-१२-१३ ई० का मिला । बांच कर हर्ष हुआ कि आप लोगोंने समाजकी उन्नतिका भार अपने ऊपर लिया है। सिर्फ अफसोस इतना ही है कि उस उन्नतिके भारमें मैं आप लोगोंका सहायक नहीं हो सकूँगा । तथापि आशा है कि जब आप सरीखे महानुभाव, उत्साही, उद्यमी, धनाढ्य, समाजसेवाके लिये तन, मन, धनसे कटिबद्ध हो गये हैं, अवश्य ही समाज अपनी उन्नति कर लेगी इसमें शक नहीं। यह भी आशा है कि आप मुझे इसके लिये क्षमा करेंगे। बावनगजाजीकी मूर्तिका जीर्णोद्धार, तीर्थक्षेत्र बड़वानीजीका सुप्रबन्ध तथा बोर्डिंग हाउसका स्थापन ये तीनों ही कार्य अत्यन्त आवश्यक हैं। मेरी श्रीजीसे यही प्रार्थना है इनके सम्पादनमें आप For Personal & Private Use Only Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५६ ] अध्याय बारहवां । महाशयोंको बल प्राप्त हो । इस समय मुझे पूरा विश्वास है कि आप लोग इन तीनों कार्योंको पूरा कर देंगे। इसकी सूचना पानेकी मैं प्रतीक्षा करता रहूंगा | ता. १९-१२-१३ आपने अपने सर्व स्टेटकी लिखा पढ़ी दो वर्ष पहले ही कर रक्खी थी व करीब ढाई लाखकी मिलकियतका जुबली बाग ११००) मासिक किराये का धर्मार्थ दान कर पहले ही उसकी रजिष्टरी करा दी थी । मरणके पीछे इसका प्रकाशः हुआ और जिसने सुना उसने सेठजीकी इस उदारताका धन्यवाद दिया । सवे दानवीर ने अंतसमय तक दानसे अपनी जातिकी महती सेवा करके एक अपूर्व उदाहरण जगत्के अनुकरण के लिये स्थापित कर दिया | २५०००० ) का अंतिम दान | आपका कृपाकांक्षी, माणिकचंद हीराचंद । For Personal & Private Use Only Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास | अध्याय तेरहवाँ । [ ७५७ दानवीरका स्वर्गवास । गुजराती आषाढ वदी ९ ( मारवाड़ी श्रावण बढी ९) वीर सं० २४४० विक्रम संवत् १९७० ता० श्रवण वदी ९ की १६ जुलाई १९१४ बृहस्पतिवार की रात्रि बड़ी भयानक थी कि जब चौराटीका जीता भयानक रात्रि | परम जागता बंगला महान् दीपक के बुझ जाने से अंधकारमय हो गया । देखते देखते बिना किसीके दिलमें पहले से इस बात का खयाल भी आए हुए और बिना किसी महान् कटके सेठ माणिकचंदजीका चेतन स्वरूप आत्मा ६२ वर्ष तक औदारिक शरीरकी झोंपड़ी में रहकर अपने सुकृतमयी जीवनमें महा शुभ कर्म वर्गणाओंका बंधकर तैजस और कार्माण शरीरको लिये हुए किसी बैकिक शुभ शरीर में प्राप्त होकर अपने तन, मन, धनके निःस्वार्थपने दान करनेके महान् फल स्वरूप मनको सातादायक 1 शुभ सामग्रीका लाभ लेता हुआ उस शरीर में अमररूप या दीर्घकाल स्थायी हो गया । यह नियम है कि जैसा भाव अंत समय में होता है वैसा ही पर्याय में जाता है । नर्क और तिर्थचगतिमें ले जानेवाला रौद्र और आर्तध्यान होता है जो हिंसानंद मृपानंद, चौर्यानंद, परिग्रहानन्द तथा इष्ट वियोगज, अनिष्ट संयोगज, पीड़ा चिन्तवन, व निदान रूप होता है । तो यह कोई ध्यान सेट माणिकचन्दजीको न था । परोपकारता, धर्म व जातिकी अवस्था की उन्नति, छात्रों का For Personal & Private Use Only Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८८ ] अध्याय तरहवां। कल्याण, उनको धर्म विद्याका लाभ, श्री शिखरजी पर्वतकी रक्षा व पशुओंकी दया इत्यादिमें से कोई न कोई भाव होगा जिसमें सेठजीका मन अटक रहा हो व केवल पंच परमेष्ठी या श्री अरहंतके स्वरूप में लगा हो यही संभव हो सकता है। यह सब धर्मध्यान है। सेठजीको जैन धर्मका पक्का श्रद्धान था। श्रद्धाकी नीवपर जमा हुआ धर्म ध्यान शुभ लेश्यारूप होता है और नियमसे देव पर्यायमें पहुंचाता है। जैन सिद्धान्तानुसार सेठनीकी अंतिम चेष्टा अवश्य इस बातका विश्वास दिलाती है कि दानवीरका आत्मा स्वर्ग में पधार कर उत्तम देव हुआ हो । वास्तवमें ऐसे महान् पुरुष जो परके कल्याण निमित्त अपने आपको बलिदान करते हैं और जगतके अज्ञान और अधर्म मेटनेका उद्यम करते हैं, परम्पराय तीर्थकर ऐसे महान् पदके अधिकारी होते हैं। सिद्धान्त कहता है कि इस पंचमकालके जन्मे १२३ मनुष्य इस क्षेत्रसे सीधे विदेह क्षेत्रमें जन्म प्राप्त करके उसी भवसे मोक्षको प्राप्त करेंगे। यह पंचमकाल या दुखमाकाल २१००० बर्षका है। इसके तीन २ हजारके ७ भाग किये जावे सो पहले ३००० वर्षके काल विभागमें ६४, दूसरे में ३२, तीसरेमें १२, चौथ में ८, पांचवे में ४, उठेमें २ तथा अंतिम ७ वें तीन हजार में एक मनुष्य इस भरतक्षेत्रसे सीधे विदेहमें जन्म ले कर्म काट परमानन्दमई सिद्ध होवेंगे । वर्तमानमें अभी यहां पहला भाग ही वर्त्त रहा है। अब श्री महावीरस्वामी मोक्ष पधारे थे तब चौथे दुःखमा सुखमा कालके तीन वर्ष साढ़े आठ महीने बाकी रहे थे । वीर सं. २४४० में २४३६ वर्ष साढ़े तीन महीने ही पंचमकालको. For Personal & Private Use Only Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७५९ वीते थे यह ६४ जीव वास्तव में सेठ माणिकचन्दजी ऐसे धर्मात्मा और परोपकारी तथा जगत्के हितमें उद्यमी ही लेसकते हैं। इससे यह भी अनुमान किया जासकता है कि सेठजीका आत्मा इस ६४ जीवों में से एक हो और अब वह विदेह क्षेत्रमें उत्तम मनुष्यकी बनऋषभनाराच संहनन ( वज्रके समान दृढ़ वेस्टनके जाल, कीले व हड्डीवाली ) रूपी देहमें विराजमान हो बालपनेकी क्रीडा कर रही हो । सिवाय उत्तम मनुष्य या देव पर्यायके और किसी भी पर्यायमें सेठनी ऐसे महान् शुभ भाव धारक आत्माका गमन नहीं हो सकता। सेठजीके सर्व चैतन्यपनेकी चेष्टासे रहित मृतक शरीरको देख देखकर चौपाटी बंगलेके नरनारियोंको शोकने घेर लिया और रात्रिभर सबने महाशोक रुदन व उदासीमें विताई। सेठजीकी पत्नीजीवनचन्दकी माता सिर पटक व छाती कूटकर समय समय पर रो उठती थी जिसकी आर्तनादको सुनकर कठोर मन भी पिघल जाता था । मगनबाईजी रात्रिको ही तारदेव श्राविकाश्रमसे आई और जिस अपने पूज्य पिताकी शरणको अपना श्वसुर गृहका ममत्त्व त्यागकर आलम्बन कर रक्खा था उस शरणका इस तरह अकस्मात् निराकरण देख कर महान् आर्त्तध्यानमें मग्न हो गई। वार वार पिताके उस अनबोल कलेवरको, जिसने घंटे पहले अच्छी तरह बर्तालाप की थी अब चेतनता रहित देखकर मगनबाईजीका चित्त परम अशरण मावको प्राप्त होगया। धर्मज्ञानके कारण इस बाईको मन कभी आतध्यानमें व कभी वैराग्यमई धर्मध्यानमें कल्लोलें मार रहा था। सेठ नवलचंदको भी अपने जाति प्रसिद्ध नामांकित भाई For Personal & Private Use Only Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० ] अध्याय तेरहवां | के वियोगसे परम निराधारता प्रकट हुई । रात्रिभर सर्वने उदासी में विताई, सवेरा होते ही यह खबर विजलीकी झड़पके समान बम्बई में फैल गई, जिसने सुना वही रोता, उदास होता हुआ चौपाटी बंगलेपर आ पहुंचा । बात की बात में सैकड़ों जैन और अजैन जमा हो गए । दानवीर सेठ हुकमचन्दजी भी बम्बई में थे। यह भी तुर्त आए । सेठ सुखानन्दजी भी आए । प्रसिद्ध २ मारवाड़ी व गुजराती कोई भी जैनी ऐसा न था जो इस समय न आया हो । पुण्यात्मा नरके प्रेतको एक बड़ी भारी भीड़के साथ स्मशान में ले गए और चन्द्रदि सुगन्ध वस्तु तथा उत्तम का प्रेरको विराजित कर असंस्कार किया गया । उस समय सर्व भाइयोंने " सेठ माणिकचन्दजीकी जय " ऐसे शब्द किये थे | हरएक सेठजी के साधारण व मिलनसार मिज़ाजको विचार २ कर व इनके कृत्योंको याद करके इनके ऐसे पुरुष जैनियोंमें जब नहीं हैं, यह एक अपूर्व पुरुष थे, अब इनके स्थानको कोई पूर्ति करनेवाला नहीं है, यही परस्पर चर्चा होती थी । वास्तव में सेठजीका जीवन एक श्रद्धावान, कर्मवीर, निरालसी, सत्यवादी, स्वावलम्बनधारी जैन गृहस्थीका जीवन था । जिसने अपने तन मनके उपयोगसे अपनी आर्थिक स्थितिको एक साधारण मज़दूरसे लक्षोंके स्वामित्वमें पहुंचा दिया था । बम्बई में चारों ओर वीसों बंगले और मकान आलीशान सेटजीके हाथसे बनवाए हुए शोभाको दे रहे हैं। आर्थिक उन्नति करने में सेठनीने अन्याय और असत्यको अपना हथियार नहीं बनाया था । किन्तु सत्य और न्यायसे द्रव्य उपार्जन किया था । यह इसीकी महिमा थी जो For Personal & Private Use Only Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [७६१ उस धनको दिल खोलकर उत्तम कामों में खर्च किया और अपने पीछे महान् भंडार छोड़ गए । आजके दिन भी सेठजी द्वारा स्थापित 'माणिकचन्द पानाचन्द ' नामका फर्म जौहरियोंमें सर्वसे अधिक महत्त्व व नामांकितताको धारण कर रहा है जिसका . ताजा प्रमाण यह है कि इसी सन् १९१६ में स्पेशी बैंकके मोतीके स्टाकको एक मुष्ट १५ लाखमें खरीद कर लिया। बम्बईमें और किसी जौहरीकी हिम्मत नहीं हुई जो ऐसे भारी विकट यूरोपियन युद्धके समय इतनी रकमके सौदेको एक साथ कर सके । यह स्थिति न्यायोपाजित धन ही की होती है। जो धन अन्यायसे इसरोंको कष्ट देकर पैदा किया जाता है वह प्रायः बहतकाल नहीं टिकता है। नीतिकारोंने कहा है: अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति । प्राप्ते त्वेकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति ॥ १ ॥ अर्थात् अन्यायसे पैदा किया हुआ धन १० वर्ष तक रहता है और ग्यारहवां वर्ष प्राप्त होने पर वह मूल रहित नष्ट हो जाता है । बहुतसी कोठियं कई २ दफे दिवाला निकालकर फिर फिर स्थापित होती हैं। पर सेठ माणिकचंद पानाचंदके फर्मको संवत् १९२७ से आजतक व्यापार करते हुए कभी भी इस कलंकके लगनेका अवसर नहीं प्राप्त हुआ। सेठ माणिकचन्दनी वास्तवमें सोती हुई दिगम्बर जैन समानको जागृत करनेके लिये एक महान् पुरुष ही जन्मे थे। उत्साही और उद्योगी सेठनीने जैनियोंको निम्नलिखित उन्नतियोंके मार्गमें डाल कर चिरस्मरणीय उपकार कर दिया है: For Personal & Private Use Only Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ ] अध्याय तेरहवां । (१) धार्मिक विद्याने साथ २ इंग्रेजी आदि लौकिक विद्याओंका अभ्याप्त करना और इसीलिये आपके जीवन में इतने स्थानोंमें छात्राश्रम खुल गए । जैसे-बम्बई, अहमदाबाद, रतलाम, इन्दौर, बड़वाया, बड़वानी, जबलपुर, ललितपुर, वर्धा, अकोला, नागपुर, कटनी, अलाहाबाद, विजनौर, मेरठ, आगरा, लाहौर, कोल्हापुर, हुवली, सांगली, बेलगांव, मैसुर, कारकल, मंगलोर तथा सारे भारतके जैनछा त्रों को स्कालरशिप देकर उनका पढ़ना आगे जारी करना । (५) संस्कृत दिगम्बर जैन साहित्यका प्रचार करना । इसके लिये आपने बम्बई तथा काशी में संस्कृत विद्यालय खुलवाया व ग्रंथोंके मुद्रणमें पं. पन्नालालजी, नाथूरामजी आदिको सहायता दी व इनके द्वारा पुण्याश्रय कथाकोश आदि ग्रंथोंको प्रकाश कराया व स्वयं पुस्तकालय रख कर अर्ध मूल्यमें व भेट रूप पुस्तकोंका प्रचार किया। (३) तीर्थोका उद्धार व सुप्रबन्ध कराना । सेठजीके प्रयत्नके पूर्व तीर्थोपर बहुत अन्धेर था । यात्रियोंको बहुत कष्ट होता था । हिसाबादि ठीक नहीं रहता था, सेठजीके प्रभावसे प्रायः सर्व ही तीर्थों का प्रबन्ध ठीक हो गया व उनकी उन्नति भी हुई। जगह २ धर्मशालाएं बनी। हिसाब वार्षिक प्रकट होने लगा। तीर्थोके सुधार में आपके जैसा परिश्रमी विरला ही होगा। मुख्यतासे पालीताना, तारंगा, आबू, गिरनार, राज For Personal & Private Use Only Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवरिका स्वर्गवास। . [७६३ गृही, पावापुर, कुन्डलपुर, गुनावा, श्री शिखरजी तथा मन्दारगिरिका उद्धार हुआ। सोनागिरजीके उद्धारके लिये आपने बहुत परिश्रम उठाया । एक मुनीम वहांपर रक्खा जो अब भी मौजूद है पर इसका सुधार आप अपने जीवन में पूरा न कर सके। (४) धर्मोपदेशका प्रचार करानेके लिये व जाति सुधारके आन्दोलनके लिये सभाओं व कमेटीयोंके स्थापित करानेमें उद्योग करना । इसीलिये आप बहुतसी सभाओंके सभापति और कोषाध्यक्ष थे। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा, बम्बई दि० जैन प्रान्तिक सभा, व द० महाराष्ट्र जैन सभाके सदा तक सभापति रहकर बहुत कुछ उन्नतिका मार्ग शोधा । (५) कुरीतिनिवारणमें पूर्ण चेष्टित होना-बुहुतसा बालविवाह का रुकना आपके उपदेशसे हुआ। हुमड़ जातिके सुधारका आपको बहुत बड़ा ध्यान था । आप यह भी चाहते थे कि दुमड़ जाति के दसा और वीसा दोनों मिल जावे क्योंकि इनमें कोई फर्क नहीं है दोनों ही श्रीजिनेन्द्र देवकी पूजा प्रक्षाल करते व साथ २ खाते पीते हैं और दोनोंके गोत्र एकसे हैं परन्तु इसकी सफलता नहीं हुई । आप इस बातके भी पक्षपाती थे कि वे सर्व दिगम्बर जातियां जो साथ खा पी सकती हैं परस्पर सम्बन्ध भी कर सकती हैं। (६) स्त्रीशिक्षाके प्रचारमें पूर्ण उत्साही होना । मगनबाईजी For Personal & Private Use Only Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ ] अध्याय तेरहवां । द्वारा भारतमें स्त्रीशिक्षाकी जागृति फैलना आप ही की अंतरंग इच्छाका प्रभाव था। (७) जीवदया प्रचार व मांसाहार त्याग कराने में पूर्ण खटपट करना । इसके लिये आप पुस्तकें बांटते, इनाम देते, दया प्रचारक संस्थाओंको मदद देते रहते थे। आपने बम्बईमें दो वर्ष तक इस बातकी पूरी २ खटपट की कि जो भैंसे व गाएं दूध देना बन्द करें व फिर दूध देने लायक जब तक न हों तब तक उनको पालनेका एक कारखाना खोलना और उनको कसाइयों के हाथ विक्री होनेसे बचाना । आपने जो स्कीम बनाई थी वह व्यापारके दंग पर थी कि जिन दामोंमें ग्वाले लोग पशुओंको कसाइयोंके हाथ वेचते हैं उन दामों में खरीद लेना व गाभिन न होनेपर अच्छे दामों में बेचना । इससे नफा भी दिखलाया। इसकी कार्रवाई रेवाशंकर जगजीवन आदिके सम्बंधमें कुछ दिन चली भी, पर सच्चा व ईमानदार कार्यकर्ताके विना यह काम नहीं हो सका । (८) जैन ग्रन्थोंको मुद्रित कराना । आपने अपने पुस्तकालयके साथ २ जैन नियम पोथी, नर्क दुःख चित्रादर्श, छ:ढाला, दिवालीपूजन, न्यायदीपिका, आदि ग्रन्थ मुद्रित किये थे और उनका बहुत अल्प मूल्य में प्रचार किया था। आपके विचारे हुए काम अपूर्ण व अधूरे जो रह गए हैं उनमें रंगूनमें मांसरहित भोजनालय स्थापित होना, तथा इंग्लैंडमें जैन बोर्डिंगका होना मुख्य है। और सर्वसे बड़ा काम For Personal & Private Use Only Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७६५ जिसको आप कराना चाहते थे वह जयववल, महाघवल ग्रंथोंका प्रकाश होना है । यद्यपि आपके व सेठ हीराचन्दजीके उद्योगसे इनकी बालबोध लिपिये हो गई हैं पर इनका प्रचार नहीं हुआ था । एक यह काम बड़ा भारी अधूरा रह गया है । इसके सिवाय आप यह भी चाहते थे कि दिगम्बर जैन धर्मका विद्वत्ता पूर्ण उपदेश सारे भारत में व विदेशों में भी हो । यह कार्य भी होना बाकी है । जिन २ कार्यों से आपको बहुत प्रेम था उनको सहायता देने के लिये आपने अपने जुबली बागका दान कर दिया था और उसकी आमदको नीचे प्रमाण खर्च किये जानेके लिये नियम बांध दिए था । जुबीली बागका दान । ११००) मासिक किराये की आमदनी से ५०) मासिक मकान की रक्षा के लिये बचाकर शेष में से MODES (१) १४) सैकड़ा हीराचन्द गुमानजीकी सर्व संस्थाओंके निरीक्षण के लिये एक योग्य सुपरिन्टेन्डेन्ट नियत करने में ! (२) ७) सैकड़ा - बम्बई प्रान्तिक समाके परीक्षालय में । 92 (३) ७) बम्बई दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बई के दफ्तर खर्चमें । (४) १२) सैकड़ा दिगम्बर जैन धर्मके उपदेशके प्रचार में । 25 (५.) ५०) छात्रवृत्ति देने में, जिसमें से ३३ ) सैकड़ा वागड़ प्रान्तवालोंके लिये, ३०) सैकड़ा मध्य प्रान्तवालों के लिये और ३७) सैकड़ा सर्व प्रकार के छात्रोंके लिये । For Personal & Private Use Only Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय तेरहवां । (६) १०) सैकड़ा ऊपरके किसी भी खातेमें कमी हो तो पूरी करने में । १००) तथा इस ट्रष्ट डीडके ट्रस्टी । हैं (१) सेठ नवलचंद हीराचंद, (२) सेठ ताराचंद नवलचंद, (३) सेट हीराचंद नेमचंद, शोलापुर (४) सेठ लल्लूभाई प्रेमानंददास, (५) सेठ ठाकुरदास भगवानदास जौहरी मंत्री। इसीसे प्रकट है कि आप अपनी धर्म व जातिके कैसे प्रेमी थे । आपके हाथसे ८ व १० लाखका दान हुआ है । पर जो अति प्रसिद्ध २ काममें आपने दान किया है वह नीचे गिनाया जाता है: दानावलि। संवत् नाम काम रकम दान १९३९ सूरत मंदिर प्रतिष्ठा ८०००) १९४० गोमटस्वामी सीढ़ी बनवाना १०००) १९४८ सूरत चंदावाड़ी धर्मशाला २५०००) १९५१ पालीताना मंदिर व धर्मशाला ३१००) १९५५ बम्बई बोर्डिंग ८००००) १९५६ गुजरात दुप्काल . ५०००) १९५७ बम्बई महा विद्यालय २०००) १९५१ कोल्हापुर बोर्डिंग का मकान २२०००) १९६१ अहमदाबाद बोर्डिंगके स्थापनेमें ४०००००) बम्बईमें हीराबाग धर्मशाला १२५०००) For Personal & Private Use Only Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७६७ २००० ) १९६२ १९६२ जबलपुर बोर्डिंग ४०००) १९६२ उदयपुर पाठशाला ६०००) १९६४ शिखरजी रक्षाफंड १००००) १९६४ सुरतमें फुलकौर कन्याशाला ५०००) १९६४ सं. १९७० तक दि० जैन डायरेक्टरी बनना १५००० ) १९६५ हुबली बोर्डिंग १९६५ आगरा बोर्डिंग के लिये जमीन १९६५ १९६५ १९६५ १९६८ १९५९ १९७० काशी स्याद्वाद पाठशाला १०००) ४०००) बम्बई श्राविकाश्रम २०००) कोल्हापुर चतुरबाई लैक्चर हॉल ४०००) द. महाराष्ट्र जैन सभाको जिन्दगीका बीमा १००००) रतलाम बोर्डिंग ५५०००) १५००० २५०००० ) अनुमान जोड़ ६९४१००) सेठजी वास्तव में दिगम्बर जैन कौममें एक राजा के समान थे । आपके स्वर्गवासकी खबर सारे भारत में पहुंच गई। जगह २ शोक मनाया गया व सभाएँ हुई । ता० १९ जुलाई रविवारको दिनके १ बजे हीराबाग लेक्चर हॉल में एक बड़ी भारी सभा हुई बम्बई में शोक सभा । जिसमें दिगम्बरी जैनी भाइयों के सिवाय श्वेताम्बरी जैनी तथा वैष्णव भी पधारे थे । अहमदाबाद देशी दवाखाना जुबेलीबागका बृहत दान For Personal & Private Use Only Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८] अध्याय तेरहवां । सर्व हॉल ऊपरसे नीचे तक खचाखच भर गया था। ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी जो इस समय काशी में थे सभाके समय तार जानेसे आजके दिन आ गएथे। प्रथम ही पं० खूपचन्दनीने सेठजीके आत्माकी शांतिके लिये श्री शांतनाथ स्वामीकी स्तुति की फिर परीख लल्लूभाई एल० सी० ई० के पेश करने व माणिकचंद बैनाड़ा महामंत्री, बम्बई प्रान्तिक सभाके समर्थनसे दानवीर सेठ हुकमचंदजीने सभापतिका आसन ग्रहण किया । सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुरने सेठजीके गुण गाए और ये वाक्य भी कहे " सेठनीकी मृत्युसे दि० जैन समाजने एक शांत महान् दानवीर रत्न खोदिया........सेठजी बिल्कुल निरभिमानी, सादे स्वभाव, परमार्थके काममें अतिशय भाग लेनेवाले और अनेक सभा सोसाइटियोंके आधारभू। शे........वे महा पुरुष थे इस लिये अब अपनेको जो उनकी य 'गारीमें करनेका है वह यह है कि उनके द्वारा की हुई अधूरी योजनाओंको पूर्ण की जावे और उनके सदगुणों का शक्त्यनुसार अनुकरण किया जावे। फिर ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने सेठजीकी महिमा वर्णन की जिसमें यह भी कहा कि " स्वर्गीय सेठ साहब अपने जीवनमें एक उच्च और उम्दा जीवनका आदर्श जैन और जैनेतरोंके लिये छोड़ गए हैं। वास्तवमें जैन कोमका पथप्रदर्शक लुप्त हो गया है। उनके गुणका उत्तम लक्षण विद्याकी रुचि है........" फिर (श्वे०) पंडित फतहवंद कपूरचंद लालनने कहा "उनके जीवनका उद्देश्य ज्ञान और दया था। और उन्होंने इनको पूर्ण किया है। उनकी मृत्युसे दिगम्बरियोंको ही नहीं परंतु श्वेताम्बर और For Personal & Private Use Only Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only (>1) सोलापुर व्यायामशाला में, सेठजी. Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवरिका स्वर्गवास। . [ ७६९ स्थानकवासी कौमको भी बड़ा भारी आघात पहुंचा है। उनके हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिगसे हरएक जैन लाभ ले सकता है। - फिर जीवदया ज्ञान प्रसारक फंडके मंत्री (श्वे०) मि० लल्लूभाई गुलाबचंदने कहा-"स्वर्गीय सेठ साहबका जीवदयासे बहुत प्रेम था। इस कार्यमें अच्छी सलाह और मदद दिया करते थे........जो हनारों मांसाहारी वनस्पत्याहारी बने हैं, उनके पुण्यमें उनका भी हिस्सा है।" श्वे० संघपति सेठ रतनचंद तलकचंदने कहा-" धनाढ्य लोग बहुत द्रव्य दान करते हैं परन्तु दानके अंतिमसे अंतिम ढंगकी शुरूआत सेठ माणिकचंदजी ही ने की थी। उनका दान शिक्षाके लिये ही होता था"। मि० उदानी एम०ए० ने कहा-" सेठ साहक्की इच्छाएँ बहुत ऊंची थीं। उनका विचार बम्बईमें मांसाहारियोंके सुभीतेके वास्ते एक वेजीटेरियन रसोड़ा और लंडनमें बोर्डिग स्थापन करनेका था । वे तो गए परन्तु उनकी कमी प्रत्येक जैनको मालुम हुए विना न रहेगी।" फिर पं० नाथूराम प्रेमीने कहा-"सेठजी साहबने १५ वर्षके भीतर जैन समाजमें एक नया युग खड़ा कर दिया है। वे नित्य शामको भोनन करनेके बाद अपने दीवानखानेमें बैठते थे और उस वक्त उनसे मिलने या सलाह लेने जो कोई भी छोटेसे बड़ा, गरीबसे अमीर तक आता था उसे सन्मान पूर्वक बिठाते, उसका हाल सुनते और उसको योग्य सलाह देते थे। परदेशी जैनियोंसे आप बड़े प्रेमसे बिठाकर उनके देशका, उनके गांवका हाल पूंछते थे कि आरके गांवमें कितने घर जैनियोंके हैं ? पाठशाला स्कूल है या 8s International For Personal & Private Use Only Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० ] अध्याय तेरहवां । 1 नहीं ? कितने लड़के लड़की पढ़ने योग्य हैं, फिर आप वहां पाठशाला क्यों नहीं स्थापित करते आदि बातें पूंछते और उन्हें सामाजिक और धार्मिक कार्योंके लिये उत्साहित करते थे ।........ सेठजी एक महात्मा थे । विद्यार्थियोंके लिये तो आप कल्पवृक्ष । थे । अंतमें सभापति सेठ हुकमचंद जी ने जोशदार भाषण में कहा कि हमारी दिगम्बर जैन कौम में सेठ माणिकचंदजीकी मृत्युसे हुई क्षतिको पूरा करनेको कोई पुरुष नहीं है । हमारी कौमको बड़ा आघात पहुंचा है और उससे हमको बहुत नुकसान हुआ है । सेठ साहबका स्मारक अवश्य स्थापित करना चाहिये । " फिर सभापति साहबने उनके कुटुंबियों पर सहानुभूतिसूत्रक पत्र भेजनेका व स्मारक स्थापनका प्रस्ताव पास कराया । और कहा कि सेठ साहबकी स्मृति में मैं नसियां इन्दौरकी धर्मशाला में ५००० ) की कोठरियां सेठ माणिकचंदजी के नाम में बनवाऊंगा व १००१) स्मृतिफंडमें यहां प्रदान करता हूं। इस गुरुमुखराय सुखानंद, २५१) गुरुमुखराय नाथारंगजी गांधी बम्बई, २०१) जौहरी अनूप चंद माणकचंद बम्बई, २०१) खेमचंद मोतीचंद, १०१) हीराचंद नेमचंद शोलापुर, १०९) देवचंद धनजी गुंजोटीवाले, १०१ ) की काभाई कसनदास झवेरी, १०१) सूरजमल लल्लूभाई, इस तरह ३८७२ ) का चंद्रा उस वक्त हुआ । समय ५०१ ) सेठ निहालचंद, २५१ ) लल्लूभाई प्रेमानंद ने आभार मान श्री महावीर स्वामीकी जय बोलकर सभा विसर्जन की । बम्बई स्मारक फंडके प्रबन्धके लिये नीचे लिखे ११ महाशयों For Personal & Private Use Only Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vvvv.ru दानवीरका स्वर्गवास । [७७१ की कमेटी नियत है। इस फंडसे संस्कृत प्राकृत दिगम्बर जैन ग्रंथों को ही प्रकाशित करना व मूल्य लागत मात्र रखना तय हुआ है। कमेटो कभी कोई देश भाषाका महत्वपूर्ण ग्रंथ भी प्रकाशित कर सकेगी । इसने अब तक ये ग्रंथ प्रकट किये हैं १ लघीयस्त्रयादि संग्रह-इसमें भट्टाकलंक देवकृत लघीयस्वपादि संग्रह सटीक, आचार्य अनंतकीर्तिकृत लघु सर्वज्ञसिद्धि और बृहत् सर्वज्ञसिद्धि तथा अकलंकदेव कृत स्वरूप संबोधन मूल्य ) २-तागारधर्मामृत सटीक-पंडित आशाधरकृत , 2) ३-विक्रांतकौरवीय नाटक-श्री हस्तिमल्लकृत ४-पार्श्वनाथ चरित्र-वादिराज सुरिकृत ५-मैथिली कल्याण नाटक-कवि श्री हस्तिमल्लकृत , ६-आराधनासार स्टी:-मूल गाथा श्री देवसेनाचार्यकृत और संस्कृत टीका , ॥ ७-जिनदत्त चरित्र-आचार्य गुणभद्र कृत (-पद्युम्न चरित्र-आचार्य महासेनकृत ९-चारित्रसार--श्री चामुंडराय विरचित १०-प्रमाणनिर्णय-श्री वादिराजसुरिकृत कमेटीके मेम्बर। १-रायबहादुर सेठ स्वरूपचंद हुकमचंद। २- , तिलोकचंद कल्याणमल । ३- , ओंकारजी कस्तूरचंद। ४-सेठ गुरुमुखराय सुखानंद बम्बई ५-, हीराचंद नेमचंद आनरेरी मजिष्ट्रेट शोलापुर For Personal & Private Use Only Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ ] अध्याय बारहवां । ६-मि० लल्लूभाई प्रेमानंद परीख एल० सी० ई० ७-सेठ ठाकुरदास भगवानदास जौहरी ८-ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी ९-पंडित धन्नालालजी १०-५० खूबचंदजी ११-६० नाथूराम प्रेमी (मंत्री) सम्पादक " दिगम्बर जैन " ने भी एक स्मारक फंड स्थापित किया और अपने ग्राहकों के द्वारा १३९१।-) एकत्र किया है और उसमें सेठजीके कुटुंबियोंने ५००) की सहायता की है । इससे यह सुन्दर जीवनचरित्र और अन्य उपयोगी दि० जैन साहित्य प्रकट किया जायगा। सेठनीकी खबर पाते ही बहुतसे नगरोंमें सभाएं हुई, कहीं बाजार बंद रहे और सेव डों सहानुभूति सूचक तार व पत्र आए। कोष्टक बाबत सभा । १. तारीख सभाकी स्थान सभापति । १९-७-१४ बम्बई दानवीर रायबहादुर सेठ हुकमचन्दजी इन्दौर। २. १९-७-१४ सभापतिके स्थानपर सेठजीका फोटू रक्खा गया। १. करीब ४०००) स्मारक फंड हुआ और ५०००) रुपयेसे इन्दौर बोर्डिङ्गमें सेठजीके नामका एक मकान बनानेकी सभापपतिने इच्छा प्रकट की जो बन चुका है। २. 'दि. जैन' द्वारा स्मारक फंड चालू हुआ उस वक्त करीब २००) रु. भरे गये। For Personal & Private Use Only Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ~ दानवीरका स्वर्गवास । | ७७३ तारीख सभाकी स्थान सभापति। ३. २१-७-१४ अंकलेश्वर ४. २१-७-१४ बड़ौदा सेठ लालचन्द कानदासजी ५. २२-७-१४ व्यारा ६. २२-७-१४ अलाहाबाद श्रीयुत जगन्नाथप्रसाद शुक्ल मार्फत निखिल भारतवर्षीय वैद्य सम्मेलन । ७. १५-८-१४ बेलगांव एस. एम. अंकले । ८. २६-७-१४ मेरठ ९. २६-७-१४ अलाहाबाद लाला होशियारसिंहजी जैन मुजफ्फरनगर। १०.२१-७-१४ आलन्द अध्यक्ष माणिकचन्द मोती चन्दजी। ११. २५-७-१४ झालरापाटन सिटी १२. २९-७-१४ रणासण सेठ पूनमचन्द साकलचन्दजी १३. १९-७-१४ बोधेगांव १४. १९-७-१४ रतलाम १५. २०-७-१४ अहमदाबाद सेठ रूपचन्द्रजी मुनीन गोधन मिल्स, मन्दसौर। ३. ८२।) स्मारक फंडमें भरे गये । ४. ४००) स्मारक फंडमें हुए। ५. ५४॥) स्मारक फंडमें हुए। For Personal & Private Use Only Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७४ ] तारीख सभाकी १६. ३०-७-१४ अध्याय तरहवां । स्थान बम्बई १७. २३-७- १४ हस्तिनापुर १८. २३ - ७- १४ १९.२१-७-१४ सभापति । स्या. वा. न्या. पं. गोपालदा सजी बरैया । अधिष्ठाता ऋषभब्रह्मचर्याश्रम | झाबुआ कलकत्ता २०. २२-७-१४ दिल्ली २४. २१-७-१४ फतहपुर २२.२८-७-१४ मुलतान २३. २४-७-१४ बड़वानी बाबू देवीसहायजी स्टेट एका ० इसके सिवाय प्रान्तिज, पावागढ़, पादरा, सोजित्रा, बोरसद, सोनासण, आमोद, बाकरोल, सायमा, शोलापुर, कोल्हापुर, दाहोद, भावनगर, ईडर, मांडवी, करमसद, वेड़न, वलासण, डक्का, मखिआव, इन्दौर, नांदगांव, महुआ, मधुवन, मालावाड़ा, बसो, खंडवा, रणासण, गोटेगांव, होसूर, राणापुर, बनारस, लाकरोड़ा, जबलपुर, बोधेगांव, घायज, कुशलगढ़, लाहौर, ओरण, सतना, गया, अजमेर, मैसुर, सिवनी, बिजनौर, बड़ौत, ललितपुर, फल्टन, भागलपुर, बड़नगर, वर्धा, शाहपुरा, बेलगांव, नासिक, बाराबंकी, मुरवाड़ा इत्यादि अनेक शहरों और गामोंमें शोकसभाएं हुई थीं और कई स्थानों पर तो एक दिन के लिये व्यापारधन्दा बन्द कर दिया था और मन्दिरों में पूजन की गई थी । ६. सेठजीके अन्तिम ढाई लाखके दानके लिये कुटुम्बियों को धन्यवाद । श्रीमान् बाबू धन्नूलालजी जैन सेठ जग्गीमलजी जैन मेहता मणिकचन्द्र छगनलालजी For Personal & Private Use Only Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवारका स्वर्गवास। ___ [७७५ कोष्टक सहानुभूतिसूचकपत्र जो आये। संख्या तारीख नामावली स्थान १. १७-७-१४ सेठ मूलचंद किसनदास कापड़िया सं० "दिगम्बर जैन" सूरत २. २३-७-१४ रा ० रा. दोशी दलुचंद जैन कुंभारगांव ३. २८-७-१४ दिगम्बर जैन पंच घायन ४. २४-७-१४ रोड़मलनी मेघराजनी सुसारी ५. २६-७-१४ सेठ भीमचन्द्र टोडरमलजी उदयपुर ६. २७-७-१४ Ugrasen Jain मेरठ U .P. ७. २०-७–१४ खचन्द छगनलालजी जैन रंगून ८. २८-७-१४ समस्त प्रयागस्थ जैन पंच मा. दीपचन्द परवार सुपरिन्टेन्डेन्ट अलाहाबाद ९. २५-७-१४ रामलाल मुरारीलाल जैन छावनी जालंधर १०. २५-७-१४ श्रीमती राधा छावनी जालंधर ११. २५-७-१४ दयाचंद गोयलीय, वैरूनीखंदक, लखनऊ १२. २१–७–१४ हीराचन्द्र सखाराम कोठारी मु० आलंद १३. २५-७–१४ बाबू धूलचंद्र धनराजजी महेता कुशलगढ़ १४. २२-७-१४ देवीदास शंभुराम जैन मुलतान सिटी १५. २५-७-१४ दिगम्बर जैन सभा झालरापाटन सिटी १६. २७-७-१४ दिगम्बर जैन पंच मालावाड़ा १७. २९-७-१४ पूनमचंद सांकलचंद रणासण १८. ३-८-१४ दगडुसा सेवकदास सामोड़ा १९. ९-८-१४ घासीराम परवार दि० जैन पावापुरी For Personal & Private Use Only Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७६ ] अध्याय तेरहवां। संख्या तारीख . स्थान २०. ८-८-१४ गोविन्द नरसिंह सिखेर(अजैन) कोल्हापुर २१. १-८-१४ प्रबन्धकर्ता स्या. महाविद्यालय बनारस सिटी २२. १-८-१४ छोटालाल बाबरदास करमसद २३. १-८-१४ श्रीमती लाजवन्तीबाई सरधना २४. १२-८-१४ दशाहू मड़ दिगम्बर जैन पंच पाटनाकुआ २५. १२-८-१४ दिगम्बर जैन पंच बुहारी २६. ५-८-१४ किसनदास ईश्वरदास जलालपुर २७. १२-८-१४ बलवन्त बापुराव क्षीरसागर बोधेगांव २८. १२-८-१४ मंत्री जैन सभा कालका २९. ८-८-१४ दिगम्बर जैन पंच हरदा ३०. ८-८-१४ सुरजमल जैन हरदा ३१. १५-८-१४ दिगम्बर जैन पंच बारसी ३२. १२-८-१४ बाबू सुधारसीलाल जैन अलीगढ़ ३३. २७-७-१४ भट्टारक सुरेन्द्रकीर्तिजी सोजित्रा ३४. २१-७-१४ दिगम्बर जैन पंच वलासण ३५. २२-७-१४ नाथालाल सोभागचन्द ३६. २२-9-१४ दिगम्बर जैन पंच बडू ३७. २२-७-१४ दिगम्बर जैन पंच महुआ ३८. २१-५-१४ बालचन्द सखाराम आदि मोहोल ३९. २१-७-१४ सौ. काशी अंकलेश्वर ४०. २२-७-१४ मैनाबाई जैन पाठशाला ईडर ४१. २३-७-१४ नाथीबाई करमसद For Personal & Private Use Only Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास। [७७७ संख्या तारीख नामावलि स्थान ४२. २२-७-१४ अप्पाराव वरूर विरापुर ४३. २२-७-१४ पं० माणिकचन्द जैन सु. जन बोर्डिंग बिजनौर ४४. २२-७-१४ सेठ हरजीवन रायचन्द आमोद ४५. २१-७-१४ ईश्वरलाल ठोलिया जयपुर ४६. २१-७-१४ संगप्पा मल्लप्पा अंमले बेलगांव ४७. २३-७-१४ वीरचन्द्र कोदरजी फलटण ४८. २६-७-१४ रायबहादुर सेठ कस्तूरचन्दनी इन्दौर ४९. २३-७-१४ सकल जैन पंच नांदगांव ५०. २२-७-१४ ब्रह्मचारी हेमसागरजी करमसद ५१. २३-७-१४ बलीभद्र तुकाराम पानगांव पूना कर (अजैन) ५२. २४-७-१४ पानाचंद कुबेरदास वेडच ५३. २२-७–१४ बाबू सुन्दरलाल बैनाड़ा झालरापाटन सिटी ५४. १८-७-१४ मोहनलाल हेमचन्द्र (श्वे०) अहमदावाद ५५. १८-७-१४ छोटालाल घेलामाई गांधी अंकलेश्वर ५६. वीसा मेवाड पंच समस्त , ५७. १८-७-१४ परीख चुन्नीलाल प्रेमानन्ददास बोरसद ५८. , परीख जेठालाल प्रमानन्ददास , ५९. १८-७-१४ रतलाम मा. पा. दिगम्बर जैन बोर्डिङ्गके सु. और विद्यार्थीगण रतलाम ६०. १९-७-१४ समस्त दिगम्बर जैन पंच रतलाम For Personal & Private Use Only Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७८ ] संख्या तारीख ६१. "" रतलाम ६२. १८-७-१४ केशवलाल डाह्याभाई बी. ए. अहमदाबाद ६३. १८-७-१४ कालीदास जसकरण जवेरी 19 ६४. १८-७- १४ मनसुख रवजीभाई म्हेत। मा. रायचंद साहित्य मंदिर ६५. १८- ७ - १४ गोरधनदास सुरजराम ६६. १९-७-१४ जैन हितेच्छु मण्डल ६७. सेठ लालचन्द कानदास ६८. दिगम्बर जैन पंत्र ६९ १८-७-१४ K. N. and A. S. Framjee की ओर से गुस्तादजी सोराबजी भरूचा 17 अध्याय तेरहवां | मामावलि मैनेजिङ्ग कमेटी मा. पा. दिगम्बर जैन बोर्डिंग "" ७०. ३० - ७ - १४ गुलाबचन्द्र हीरालाल ७१. १९-७-१४ माणिकवाई दिगम्बर जैन पाठशाला की ओर से गांधी पूनमचन्द्र सांकलचन्द्र ७२. २०-७-१४ जगमोहनदास वरजीवनदास ( अजैन ) ७३. १२-७-१४ चिमनलाल जयसिंहभाई ७४. की क़ाबाई वखतचन्द्र For Personal & Private Use Only स्थान बी. ए. एलएल. बी (०) अहमदाबाद अहमदावाद सूरत करमसद बड़ौदा व्यारा बम्बई धूलिया ईडर पूना अहमदाबाद: सूरत Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " दानवीरका स्वर्गवास । [ ७७९ संख्या तारीख नामावलि स्थान ७५. १९-७-१४ रामचन्द्र उदयचन्द्र लौल ७६. १२-७-१४ भूखणदास हरजीवनदास सूरत ७७. १९-७-१४ सेठ हीराचन्द्र वेणीलाल तासवाला सूरत ७८. , महेताजी परमानन्द इच्छाराम (अजैन) ७२. १६-७-१४ सेठ विनोदीराम बालचन्द्र झालरापाटन (०. १९-७-१४ जयचन्द्रभाई जीवनचन्द्र (श्वे.) भोयणी ८१. दिगम्बर जैन पंच पादरा ८२. छोटालाल वे चरदास बोरसद ८३. १८-७-१४ वोहरा लीलाचन्द हरिचन्द्र पूना केम्प ८४. शाह भगवानदास शोभाराम , ८५. १४-७-१४ सेठ भगवान छगन भावनगर ८६. २०-७-१४ दोशी तलकचन्द कस्तूरचंद बारामती ८७. १९-७-१४ नरोत्तमदास भीखाभाई भावनगर ८८. २०-७-१४ गांधी नाथारंगजी आकलुन ८९. १९-७-१४ दोशी पदमशी जोयतादःस ईडर ९०. गांधी हरिभाई देवकरण शोलापुर ९१. गांधी रावजीभाई नानचंद , वालचंद गुलाबचंद वागडया भावनगर तवनप्पा अणप्पा लेगड़े शाहपुर ९४. २०-७-१४ दिगम्बर जैन पाठशाला बड़ोदरा ९५. , लल्लुमाई करमचंद दलाल वीनापुर ० ० For Personal & Private Use Only Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय तेरहवां । संख्या तारीख नामावलि ९६. २१-७-१४ मनसुख अनूपचंद शाह (वे.) ९७. १९-७ - १४ दोभाड़ा बाबूभाई देवचंद ९८. २०-७-१४ बाबा तवनप्पा कावलक्कीया ९९. २०-७-१४ नरसिंहपुरा दिगम्बर जैन पंच १००. २०-७-१४ अहमदाबाद प्रे० मो० दि० जैन बोर्डिङ्ग ७८० ] ११८. १९१-७-१४ डाह्याभाई शिवलाल मैनेजर वीसपंथी कोठी १०९. २२-७-१४ कालिदास सांकलचन्द्र ११०. २२-७-१४ जीवण जेठीराम १११.२० – ७ - १४ माणिकचन्द मोतीचन्द्र ११२.३०-७-१४ गांधी माणिकचन्द्र ११३. २०-७-१४ विचित्रशोध रत्नाकर का. ११४. जीवण रावजी 99 ११५. १५-७-१४ सन्तुमलजी उमेदचंद्र कंकुचंद "" १०१. १०२. २१-७- १४ गोर्धन हरचंद १०३. २३-७-१४ मणीलाल जीवराम १०४. २२-७-१४ दोशी अमूलक जयचन्द समस्त दिगम्बर जैन पंच दाहोद 19 १०५. १०६. २१–७–१४ बाबू नवलकिशोर मा बार लायब्रेरी कानपुर १०७. २४-७-१४ दिगम्बर जैन पंच मखी आव स्थान अहमदाबाद टेम्भुरणी For Personal & Private Use Only शाहपुर नरोड़ा अहमदाबाद वीजापुर मखी आव विसनगर देशोत्तर गिरीड़ी उजड़िया दहीवडी भावनगर आरा सागर माढ लखनऊ Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [७८१ संख्या तारीख मामावलि स्थान ११६. २२-७-१४ फूलचन्द छगनलाल मगरोळ ११७. २०-७-१४ सामन्तराम सेवाराम उज्जन ११८. , राय ब० सेठ घमंडीलालजी मुनफरनगर ११९. २०-७–१४ भारतीय जैन सिद्धांत प्रका शिनी संस्थाके संचालक पं. पन्नालालजी बाकलीवाल, पं. श्रीलाल, पं. गजाधरलाल, पं. मुन्नालाल, पं. वृजभूषणलालजी, आदि बनारस १२०. २२-७-१४ पं. फतेहचन्द कपुरचन्द लालन देवलाली १२१. २१-७-१४ माणिकचाई लायब्रेरीके प्रमुख बोरसद १२२. ३०-७–१४ बुधमल पाटनी इन्दौर १२३. २०-७-१४ दिगम्बर जैन पंच शाहपुर १२४. १८-७-१४ दिगम्बर जैन पंच काणीसा खम्भात १२५. २१-७-१४ घीया कुन्दनजी कपुरचंद परतानगढ़ १२६. १७-७-१४ सुरजमल लल्लुभाईकी कंपनी रंगुन १२७. १८-७-१४ जीवदया ज्ञान प्र० फंड वम्बई १२८. २-८-१४ J. L. Jaini M. A. Stockport Bar-at-law. (England) मा० महावीर ब्रदरहुड-लण्डन १२९. २५-८-१४ पण्डिताचार्य मट्टारक श्री चा । रुकीर्तिजी महारान श्रवणवेल्गुल For Personal & Private Use Only Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय तेरहवां | संख्या तारीख नामावलि १३०. २–८-१४ मोतीलाल वकील जैन ओफैनेज मा० १३१. २६-७-१४ बेचरदास भाईदास (अजैन) १३२. २४-८-१४ मेहरचन्द पुत्र ला. धवलकिशोर ७८२ ] ( रईस ) १३३. २५-७-१४ मदनमोहन जैन १३४. २९-०-१४ दिवम्बर जैन पंच १३५. २४-७-१४ काशीबाई १३६. २५-१- १४ हीराबाई १३७. १८-७-१४ श्री. ती चन्दाबाई १३८. श्यामाबाई अनन्त मुरूशे १३९. १२-१-१४ दिवम्बर जैन पंच १४०. २ - ७ - १४ बी० ए० पाटील १४१. २२-७-१४ दिगम्बर जैन बोर्डिङ्ग १४२. १४-७-१४ विजकोरबाई १४३. ३१ - १ - १४ दलपतभाई केवल भाई शाह १४४. ३१-७-१४ सेठ गुलाम हुसेन कासमभाई १४५. ३०-७-१४ रावसाहब गुलाबचन्द्रजी १४६. ३१-७-१४ पं० गोपालदास बरैया, सभापति दि० जैन सभा ܕܕ १४७.२३-७-१४ ला० जग्गीमलजी १४८. २४-७-१४ दीवान ब. अम्बालाल साकरलाल देशाई एम० ए० For Personal & Private Use Only स्थान दिल्ली राजकोट सहारनपुर झालरापाटन साया पाटण सादरा आरा कोहापुर ड़ौरा सिरोल हुबली वलसाड़ "; जूनागढ़ छपरा बम्बई दिल्ली अहमदाबाद Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७८३ स्थान भागलपुर हस्तिनापुर फिरोजपुर ईडर मिरत तारङ्गानी आरा जुनागढ़ दानवीरका स्वर्गवास। संख्या : तारीख नामावलि १४९. २०-७-१४ सेठ हरनारायण जैन १५०. २१-७-१४ भगवानदीननी अधिष्ठाता ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम १५१. २१-७-१४ देवीसहायजी जैन १५२. २५-७-१४ पीताम्बरदास उपदेशक १५३. २३-१-१४ बाबू ऋषभदास वकील १५४. २४-७-१४ नानचन्द्र पदमसिंह मुनीम १५५. २१-७–१४ बच्चूलाल जैन १५६. २१-७--१४ मोदी अम्माशी जेठाभाई १५७. २३-७-१४ ज्योतिसादनी सं० जैन प्रदीप १५८. २२-७-१४ दि. मालवा प्र. महा सभा के मभापतिकी ओरसे सेठ वालचन्दजी १५९. २३-9-१४ दिम्बर जैन पंच १६०. २२-७-१४ फुलचन्द रुवनाथदास १६१. २३-७-१४ सर्वसुखदास खजांची १६२. २५-७-१४ घनश्यामदास लल्लूभाई गु ___ जम क्लार्क (जैन) १६३. २३-७-१४ धन्नूलाल अग्रवाल, सभापति दि. और पंचायती १६४. २३--१४ भगवानदास झवेरदास देवबन्द इन्दौर डबका पेटलाद जयपुर सूरत कलकत्ता सोनित्रा For Personal & Private Use Only Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८४ ] अध्याय बारहवां । बेडच संख्या तारीख नामावलि स्थान १६५. २५-७-१४ दोशी हिराचंद नीलुचंद कुंभारगांव १६६. २३-७-१४ दिगम्बर जैन सभा पहाड़ीधीरज १६७. , चुनीलाल उगरचन्द फतेहपुर १६८. २५-७-१४ दि. जैन पंच अलुवा १६९. २५-७-१४ जयसिंहभाई गुलाबचंद प्रभासपाटण १७०. २५-७-१४ सेठ भीखाभाई बेचरदास - बांच १७१. २२-७-१४ दिगंबर जैन पंच १७२. २७-७-१४ चौथमलजी मुलतान १७३. १७-७-१४ तासवाला वेणीलाल केशुरदास सूरत १७४. १८-७-१४ ए. बी. लढे एम० ए० कोल्हापुर १७५, १७-७-१४ चुन्नीलाल एम० कापड़िया बम्बई १७६. , नगीनदास हरजीवनदास, नानावटी (अजैन) १७७. १८-७-१४ ताराचंद मगनलाल बड़ोदरा १७८. २०-७-१४ मोहनलाल कालीदास शाह मुंबई . १७९. १८-७-१४ दुलीचंद ओंकारदास खामगांव १८० १७-७-१४ सरदार सेठ ईश्वरदास जगजी वनदास स्टोर (अजैन) सुरत १८२. १९-७-१४ कांतिलाल नाणावटी एम. ए. . हेडमास्तर दरबार, स्कूल ( अजैन ) रतलाम १८२. १९-७-१४. छोटालाल घेलामाई गांधी अंकलेश्वर सुरत For Personal & Private Use Only Page #874 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजी ६० वर्षकी अवस्थामें. For Personal & Private Use Only Page #875 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #876 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरत दानवारका स्वर्गवास । [७८५ नामावलि ग्राम १८३. १४-७-१४ सौ. गिरजाबाई सोलापुर १८४. १७-७-१४ प्रमुदास हेमचन्द्र १८५. १७-७-१४ त्रिभुवनदास ब्रिजलाल १८६. १७-७-१४ नवलचंद सौभागचंद १८७. १७-७-१४ अमरचंद उर्फ कीकाभाई अभेचंद १८८. १७-७-१४ प्रेमचंद हरगोवनदास मोतीरूपावाले १८९. १७-७-१४ दलीचंद गणपत मिरघा (अन) १९०.२०-७-१४ रुस्तम सिपोडिया फोटोग्राफर बम्बई १९१. ३०-७-१४ मोतीलाल दिल्लीवाले मंसूरी १९२. २०-८-१४ सं. बन्दे जिनवरम् . निकाणी १९३. ३०-७-१४ राजवैद्य पं० बाबूलाल जैन सहडोल १९४. २९-७-१४ दि० जैन पंच राणापुर १९५. १-८-१४ व पूलाल काला इन्दौर १९६. ३१-७-१३ मेहता हुक्मीचन्द मगनलाल मीडर १९७. १-८-१४ चिरजीलाल बड़जात्या मा० दि. जैन पंचान वर्धा १९८. २८-७-१४ दिगम्बर जैन सभा मुलतान १९९. १८-७-१४ मोहनलाल चुन्नीलाल पाटण २००. २५-७-१४ लक्ष्मीनाराणजी (गुनावा) ५० For Personal & Private Use Only Page #877 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ག་ན अध्याय तेरहवां । नंबर तारीख नामावलि २०१. २३-७-१४ नानारावनी पड़ेकर मन्त्री शिक्षण प्रसारक संस्था दुधगांव २०२. १८-७-१४ मोतीलाल त्रिकमदास मालवी बाकरोल २०३. २-७-१४ मूलचन्द्र सरीफ बरुआसागर २०४. १८-७-१४ हरजीवन रायचन्द शाह आमोद २०५, १८-७-१४ J. C. फिलिप्स, प्रबन्धक, किलिक निकशनकी कंपनी बम्बई २०६. १८-७--१४ रूपसी जैन श्राविकाशाला बम्बई २०७. १७-७-१४ मा. गंगाशंकर सु० प्रे० मो० दिगम्बर जैन बोर्डिंग अहमदाबाद २०८. १९-७-१४ समस्त दिगम्बर जैन पंच २०९. समस्त दि० जैन पंच, बोवा . और भावनगर भावनगर २१०. वीसामवाड़ा जैन पंच समस्त बोरसद २११. १८-७-१४ बी. पी. प टील २१२. १८-७-१४ दिगम्बर जैन पंच बनारस २१३. १९-७-१४ दिगम्बर जैन कारखाना पालीताणा २१४. २७-७-१४ देवीसहार जी स्टेट अकांउंटन्ट बड़वानी २१५. १७-७-१४ टाकोरदास नवलचन्द सबनन सूरत २१६. १७-७-१४ हेमचन्द जैन . मुरत २१७. ७-८-१४ भगवानदास दुल्लभदास बम्बई २१८. ८-८-१४ जयवन्ती गौरा अस्पताल रायबरेली सूरत होमर For Personal & Private Use Only Page #878 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । ७८७ नंबर तारीख नामावलि ग्राम २१९. २८-७-१४ महामन्त्री सेठ झुन्नालालजी इन्दौर २२०. ५-८-१४ हीरालाल महामन्त्री राघोगढ़ २२१. ३-८-१४ श्रीमती........ मेरट २२२. ३-८-१४ समस्त जैन पंच आर्वी २२३. ११-८-१४ सुखदेव वर्मा, मंत्री, जैन कुमार सभा । मुलतान २२४. ३-८-१४ सकल जैन पंच बड़ोदरा २२५. २१-७-१४ जुगमन्दिरदास (रई) नजीबाबाद २२६. १५-७-१४ जगन्नाथप्रसाद शुक्ल अनैन) प्रयाग २२७. २३-७-१४ Kalidas K. Patel मंत्री आर्यसमाज मन्दिर बम्बई २२८. १-८-१४ S. M. Ankle बेलगांव २२९. १९-७-१९ समस्त दि० जैन पंच बम्बई २३०. २०-9-१४ प्राणशंकर लल्लूभाई देशाई अहमदाबाद २३१. २०-७-१४ श्री जमनाबाई नगीनदास सकई बालकेश्वर २३२. १८-७-१४ श्रीमान् श्रीमन्त सेठ पूरनसा जी सिवनी २३३. १९-७-१४ झवेरी लल्लूभाई रायचन्द अहमदाबाद -000 -- For Personal & Private Use Only Page #879 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ अध्याय तेरहवां । कितनेक शोकजनक पत्र । श्रीयुत सेठ नवलचन्दजी हीराचन्द जौहरी, बम्बई, · स्वर्गीय स्वनाम धन्य दानवीर सेठ माणिकचन्दनीके असमय वियोगका जो असह्य शोक आप पर और आपके परिवारपर आकर पड़ा है वह ऐसा नहीं है कि शब्दोंके द्वारा प्रकट किया जा सके। हमको सूझ नहीं पड़ता कि हम आप लोगोंके शोक सन्तप्त हृदयको किन शब्दोंसे शान्त करें, और आपको धीरज बंधावें । इस शोकका आपके ही समान प्रत्येक सहृदय जैनी अपने हृदयमें अतिशयताके साथ अनुभव कर रही है। क्योंकि स्वर्गीय सेठजीने अपने कृत्योंसे प्रत्येक व्यक्तिके हृदयमें सदाके लिये स्थान बना लिया है। उन्होंने जैन समाजपर जो २ उपकार किये हैं वे बहुत बड़े और चिरस्थाई हैं। जैन समान उनके उपकारों के एक अंशका बदला देनेको भी समर्थ नहीं है। इसलिये उनके वियोगका शोक होना हम लोगोंके लिये भी बिल्कुल स्वाभाविक है। हमें नहीं सम पड़ता कि हम आपके प्रति सहानुभूति प्रकट करें या अपने शोक प्रति औरोंकी सहानुभूतिकी आशा करें । इसलिये सेठ जीके दुःख में हम और आप समदुःखी हैं। इस समय इस शोकसे मुक्त होनेका इमके सिवा और कोई उपाय नहीं है कि हम संसारके स्वरूपका चितवन करें। इसका यह नियम ही है कि जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी होती । “मरणःप्रकृति शरीरिणाम्।" मृत्यु होना प्राणी मात्रके लिये स्वाभाविक है। इसका विचार करके आप लोग शोकका परित्याग करें और सेठजी जो कीर्तिका मार्ग For Personal & Private Use Only Page #880 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७८९ बना गये हैं उसपर से उन्ही के पदचिन्हों परसे आप आपकी संतान के महित चलें जिससे आपके परिवार में स्व० सेटजीके हो समान अनेक दानवीर सेठजी पाकर हम लोग भी इस शो को भूल जावें । श्री जीकी कृपा से सेठजीकी आत्माको शान्ति लाभ हो । और आप लोग भी इस शोकसे मुक्त होनेकी शक्ति प्राप्त करें । विज्ञेष्वलमति विस्तरेण । 1 हीराबाग - बम्बई | ता. १९-७-१४. समस्त दिगम्बर जैन समाजकी ओरसे सरूपचंद हुकमचंद (मभापति) London, 2nd August 1914. Dearest Sister Maganbai, My soul is strocked to silence at the loss of my beloved Sethji. He was a friend, leader and colleague and to me almost like a father. Your loss is very great, but our sympathy and loyalty to you and your family, to your little brother and our beloved Sethani will never fail. Now a few things have to be done. (1) A Committee must be formed of 5 or 3 members to prepare an authoritative life of Sethji. A fund must be set apart for this. (2) One good memorial must be raised to Sethji. He was the pioneer lover and founder of Jaina Boarding Houses. His unimost ambition was to establish a Jaina Home in England. We should try and "" open a Manekchand Jain For Personal & Private Use Only Page #881 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९०] अध्याय तेरहवां । Home" in London. For this, dear Maganbai, you should devote your splendid talents and in one or two years time we can have a big Jaina Home in London. But a beginning can be made witii cven one lac of Rupeess.-Allow me to assure you of way loyalty and service to you and the family. Consult my friends Br. Sital Porsi adji and Seth Hirachand Nemchand of Sholal" or this. In mourning, Yours Sincerely, J. L. Jaini Bar-at-Law. श्रीमान सेठ नवलचद हीराचंद, आदि सुकुटुम्ब सेठ माणिकचंद पानाचंद प्रति। . समस्त दिगम्बर जैन पंचान् बम्बईकी ओरसे विदित हो कि ला. ३:--७-१४ को हीराबागमें एक बृहत ममा हुई। उसमें जो प्रस्ताव स्वीकृत दुआ सो आपकी सेवामें प्रेषित किया जाता है । "स्वर्गवासी श्रीमान् दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचंद हीराचन्द जे. पी. ने जो अपना अंतिम दान ढाई लक्ष रुपयेका किया है व जिपके लिये जुबली बागका मकान ट्रष्ट कर दिया है और उसकी आमदको परीक्ष लय, उपदेश फंड, तीर्थरक्षा व विद्याथियोंको छात्रवृत्ति देनेके प्रशनीय कार्यों में खर्च करना निश्चय किया है उसके लिये बम्बईका समस्त दिगम्बर जैन समाज उक्त सेठजी व उनके सर्व कुटुम्बका अतिशय कृतज्ञ है और आशा करता है कि जिस भांति स्वर्गवासी सेठजीका लक्ष अपनी समाज व धमकी For Personal & Private Use Only Page #882 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७९१ उन्नति पर था उसी तरह उनके उदार और माननीय कुटुम्बी जनोंका भी पूरा २ ध्यान इस पवित्र जिन धर्म और समाजकी उन्नतिमें कटिवद्ध रहेगा । " आपका हितकांक्षीगोपालदास बरैया, सभापति । श्रीमती मगनबाईजी, श्री० सेठ जै० माणिकचंदजीका स्वर्गवास सुन सारी समाज में शोकरूपी मेघाच्छादित हो गया । हृदय कम्प होकर वेदना अनुभव होने लगा । हा ! समाजका इन्दु कालरूपी केतुसे दब गया | इस समय हमारे यहां के सर्व नरनारी शोकातुर हैं - आपके प्रति तथा मातुश्री आदि सर्व कुटुम्बियों प्रति समवेदना प्रकट करते हैं । अन्तमें यह मनोकामना है कि पूज्य सेठजीके पवित्र आत्माको शान्ति मिले और आप लोग भी बारह भावना भावें । दुःख हृदया - चंदाबाई, आरा । श्रीमती पंडिता मगनवाईजी, मुंबई. जैन समाजाचे पिते - सूत्रधार - आधारस्तंभ - एक अमूल्य रत्न - असे आपले वडील व आमचे पितृसदृश्य दा० जै० कु० शेट माणिकचंद यांच्या आकस्मिक मरणाची वार्त्ता काल रोजी येथे पसरली. मी हल्लीं थोडासा शीक ( अमांशाच्या विकाराने ) असल्या मुळे घरींच असतो. कालरोजी आमच्या एका मित्राने सदर बातमी मला घरी येऊन सांग - तांच एकदम विद्युत्पात झाल्या सारखे वाटलें ! फारच दु:ख झालें. माझ्यावर तर त्यांची फारच प्रीती. उपाय नाहीं. कर्मेच्छेपुढे कोणाचें काय For Personal & Private Use Only Page #883 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९२ ] अध्याय बारहवां । चालणार ? आपण सूज्ञच आहां. त्यांच्या मरणाने जैन समाजाची किती नुकसानी झाली आहे हे लक्षात आणून ह्यांतल्या ह्यांत समाधान पानाल अशी आशा आहे. जैनसमाजाचा एक आधार व चालक नाहीसा झाला. आज जैनसमाज लंगडा-पंग झाला असे म्हटले तरी चालेल. आपले बंधु चि. बाबूस दीर्घकाल आयुरारोग्य प्राप्त होवो व आपल्या वडिलांचा कित्ता बरोबर गिरवो अशी श्रीजिनेश्वरचरणी प्रार्थना करून हे दुःखवट्यांचे पत्र संपवितों. कळावे ही विनंती ता० १९-७-१४. आपला एक बंधुभरमप्पा पदमप्पा पाटील, होसूर । मान्यवर महोदयजी! यह हृदयविदारक दुःसमाचार 'हकर अत्यन्त शोक हुआ है कि जैन जातिके चिरस्थाई सभापति जैनकुलभूषण दानवीर सेठ माणिकचन्द्रजी जे. पी. बम्बईका अकस्मात् स्वर्गवास हो गया है। हाय! बड़ा अनर्थ हुआ। यह समाचार मैंने सभामें सुनाया। सभामें जितने जन उपस्थित थे सब हीके चित्त शोकातुर होने लगे और इस असार संसारकी छिन भंगुर अवस्थापर विचार करने लगे और कहने लगे कि हाय काल! तु बड़ा अन्यायी है। योग्यायोग्यका रंच मात्र भी विचार नहीं करता । अपनी गतिमें अरोक गमन करता रहता है। (विचार पूर्वक) वस्तुका स्वरूप ही ऐसा है । जिसका संयोग है उसका वियोग अवश्य होता है। यथा गाथाज किचिण उप्पण्णे तस्स विणासो हवई णियमेण । परिणामसरूवेण वि किंधिविसायं अत्थि ॥ ऐसा विचार कर धैर्यका अवलंबन करना उचित है। इस For Personal & Private Use Only Page #884 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास। [७९३ प्रकार यह जैन सभा काल का शोकातुर होती हु । अंतमें श्रीमान् सेठनीके कुटंबी जनोंसे प्रार्थना करती है कि इस रिके स्वभावको विचार करके संतोषावलंबन करें । दोहेकाल बड़ा विकराल है सोच नाही नेक । अज्ञानी निर्दयी कुटिल राखे अपनी टेक ॥ १ ॥ अंर ! दुष्ट पापात्मा करुणा हीन कटोर। जैन जातिके रलको हा हा ! कीन विछोर ॥ २ ॥ हा ! हा ! दिनेश छिप गयो भयो घोर अँधिया । हीरा कीसी ज्योति थी सो कित गई धार ॥ ३ ॥ हा ! हा! माणिक जगति सम हा ! उड़गनमें च ।। हमें छोड़ तुम कित गए हे ! प्रफुलि अंग ॥ ४ ॥ ज्ञानी धनी मुशील वर नीन सो पर उपकार । तुम विन इाइम सबनको कोन कर . द्वार ॥ ५॥ सागरवत गंभीर हृदय कल्पवृक्ष मुख देन।। तुम विन इवत तातिकी को शुध ले कि रन ॥ ६ ॥ जैनोनतिकी आशको ले गयो मास अपाद ।। कृष्णा नवमीके दिना जाति भई अनाथ ॥ ७ ॥ हाय देव ! यह क्या कियो सुनत ही भये अधीर। हृदय शोक बाढ़ो अवे वहता नयनों नीर ॥ ८ ॥ चाहत हूँ उन दर्शको पर नहिं पार वसात । देख कालकी चालको काँपत है निज गात ॥ ९ ॥ काहे हृदय अधीर हो वस्तु स्वरूप विचार ।। मनमें अब धीरज धगें यह संसार असार ॥१०॥ श्री अरहंतसे वीनती करूं जौर युगपान । श्रीमन्जीकी आत्मा वसे शांत मुखधाम ॥११॥ होय कुटंबी जननके हृदयशांतको वास। जैनजाति जिनधर्मसे नितप्रति प्रेम व्यवहार ॥१२॥ For Personal & Private Use Only Page #885 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९४ ] अध्याय तेरहवां । जैनन दीन विलोकिकें करो सुनाथ हे नाथ । यह सुबुद्धि अब दीजिये करे निज पर उद्धार ॥१३॥ जैन सभा कालिकातनी सुनहु बीनती ऐम । करों कृपा इम जाति में स्वजनन प्रति यह वीनती करहुं हृदय घर धीर । जासो वा प्रेम ॥ १४ ॥ अथिर चरित संसार लखि घर संतोष चितवीर ॥१५ ॥ बनारसीदास जैन, मंत्री, जैन सभा, कालका | सुप्रसिद्ध धार्मिक सिरोमणि श्रीमान् माणिकचन्दजीकु अक्रस्मात् स्वर्गवास हुआ कर्के वृत्त पत्र से मालुन हुवा - इस्से ऐसा धार्मिक सिरोरत्नका वियोग हूये सो हं लोकके सहस साधु लोककुं भी व्याकुलता संपादक है तुम लोककु कहना क्या है, तथापि आप लोक व्याकुलतासे निवृत्त होकर सेष्टिनीके सहस परोपकार कार्य में व्यापृत होकर ऐहिकामुष्मिक सुखप्रद धर्म कार्य में निरत होना चाहिये । म० चारूकीर्ति पंडिताचार्य, श्रवण बेलगुल ( सही कर्णाटकी भाषा में ) श्रीयुत मान्यवर सेठ नवलचंदजी हीराचंदजी, जुहारू | दानवीर जैन कुलभूषण सेठ माणिकचंद हीराचंद जे० पी० के अचानक स्वर्गवास से आज हमें अतिशय दुःख है । सेठजी के स्वर्गवासके कारण जैन समाजको एक सच्चे मित्र और रक्षककी असह्य हानि उठानी पड़ी है । श्रीमान् सेठजी न केवल आपके ही बंधु थे किन्तु वे लक्ष लक्ष जैन धर्मियोंके भाई थे और उन एकके मरणसे For Personal & Private Use Only Page #886 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वगवास । [ ७९५ आज लाखों जैनी अपने अपने भाई के खोजानेके समान दुखी हैं । तौ भी संसारकी स्थितिको देखकर हृदय संतोषित करना पड़ता है । हम आपके दुःख से सहानुभूति प्रकट करते हैं और निवेदन करते हैं कि आपको भी संसार के स्वरूपका ध्यान मनमें संतोष रखनेके साथ स्वर्गीय सेठजीके पदानुसारी होनेका प्रयत्न करना चाहिये । शोकाकुलसूरजमल जैन, हरदा । महोदयजी ! आजदिन इस शोक समाचारको प्रकट करते लेखनी धर्म रही है । विवश लिखना पड़ता है कि ऐसा विषय कभी न लिखना पड़े । श्रीयुक्त माणिकचन्द हीराचन्द जे. पी. के मृत्युपर बड़ा ही दुःखदायी आघात पहुंचा है। आपके योगसे वैद्य शास्त्रीय हर एक प्रकारकी समुन्नतिकी आशा ही थी इतना ही नहीं आपने हीराबाग में धर्मार्थ औषधालय अपना अमर नामरक्षक नियत कर दिया है । ऐसे रनरत्नके न रहनेसे आजआयुर्वेद के शुभचिन्तक सभी सुजनोंकी बड़ी भारी हानि हुई है । आपकी आत्माको स्वर्गवास हो । मुझे श्रा. सुदी ४ के कमेटीमें इस समाचार पर " निखिल भारतवर्षीय वैद्यसम्मेलन " की स्थायी समितिने आपलोगोंसे (सेठजीकी बाई और पुत्र आदि कुटुम्बी) समवेदना प्रकट करनेकी आज्ञा दी है। तदनुसार मैं इस महा घोर दुःखप्रद समाचारको । लिये सम दुःखी होते हुए आपलोगोंको वज्र हृदय कर धैय धार For Personal & Private Use Only Page #887 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९६ । अध्याय तेरहवां । मके लिये दृढ़ता दिलाता हुआ कहता हूं कि आप भविष्यमें सेठजीके आयुर्वेद प्रेमको अटल सिद्धान्तपर रेखायुक्त करते हुए अपने कर्तव्य पथपर आरूढ़ रहेंगे। भवदीयजगन्नाथप्रसाद शुक्ल, प्रयाग। व्हाला व्हेन ग० स्व० मगनबहेन माणेकचंद. दिगम्बर जैन कोमना अग्रेसर धुरंधर दानवीर-तमारा पृज्य पिताभाई मागेकचंद हीराचंदना एकाएक दिलगीरी भन्ला मृत्यु समाचारथी हुँ घणीज दिलगीर थई छ. जैन कोममां अने देशना मार्वजनिक कामोमां पोतानी जात महेनतथी प्रमाणिकपणे वेपारमा सम्पादन कीधेली लाखोनी दोलतनो दिलनी उदार लागणीथी सदुपयोग करनार महुम भाई माणकचंद हीराचंदना मृत्युथी-खंग्खर जैन कोमे तेमज देशनां केटलांक सार्वजनिक खातांओए एक महान दानवीर नरने पोतानी वच्चेथी गुमाव्यो छे तमाग कुटुम्ब उपर आ अणधारेली आची पडेली आफतमां हूं, घणीज दिलगीर थई छं-दुःख सहन करवा इवर शांति आपो...... शुभेच्छक बहेन जमनाबाई नगीनदाम सकई, वालकेश्वर. शेठजी, श्रीमान शेठ माणेकचंदजीना अकस्मात देवलोक थयाना समाचार सांभळीने घणोज खेद कुदरती रीते थयो छे. आपना कुटुंबने तो एमनी पूरी खोट लागेज परंतु आखी जैन जनसमाज साथे देशना मोटा भागने तेमनी खोट थई पडी. एवा दानवीर 'पुरुषो क्या छे के आ खोट पूरी पडे...... कदमलाल केशवराम नाणावटी, रतलाम For Personal & Private Use Only Page #888 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ७९७ आत्मस्नेही व्हेन मगनव्हेन, ना तनदुरस्तीए देवलाली हतो. " जामे जमशेद " पत्रमां जे समाचार वांचवामां आव्या तेथी हृदयना ऊंडा भागमां जे शोक थाय छे तेनो पार नथी. तमारी स्थीतीने त्यारे केवो आघात थयो होवो जोईए. ओ तमारी साथे जैन कोमना पिता हता, तेमां पण त्रणे सम्प्रदायना अभेद भावे विद्यार्थी, दुःखी जैनोना, अवस्य हता, पण व्हेन, आपणा पुण्यनी अवधि होय छे, आ अवधिनी पर रहेता आत्मामां रही आत्मबळ संपादन करी पितृश्रीने पगले चालवामां तेओश्रीना आत्माने शांति अने आपणनुं कल्याण छे. शासन देवो तमारा कुटुंबने आ असह्य आघातमां रक्षण करो. तमागे शोकातुर, वीरवाळ पं० लालन मान्यवरा श्रीमती मगनबाईजी । -. यह सुन कर कि श्रीमान् दावीर जैनकुलभूषण सेठ मानकचन्दजी अकाल मृत्युके ग्रास हो गए अत्यंत शोक हुआ । न जाने इस जातिका कैसा दुर्भाग्य है कि प्रथम तो इसमें नररत्नों की उत्पत्ति ही नहीं, यदि एक दो की उत्पत्ति होती है तो उन्हें मृत्यु अपना ग्रास बना लेती है। सेठजीकी इस अकाल मृत्युसे जो दुःख आपको तथा आपके कुटुम्बी जनों को हुआ है उससे कई गुणा अधिक हम लोगों को हुआ है जिसका हम शब्दों द्वारा प्रकाश करने में असमर्थ हैं। बाईजी, आप स्वयं विदुषी हैं। आप संसारकी अवस्थाको भलीभांति जानतनी हैं, इसमें जो जन्म लेता है वह अवश्य एकदिन विनाशको प्राप्त होता है । इस पृथ्वीवर कितने बल्देव, कामदेव, नारायण, प्रति नारायण हुए परन्तु सबके सब कालके ग्रास हुए, अतएव यह संसार असार ह अशरण है, यह जान कर For Personal & Private Use Only Page #889 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९८ ] अध्याय बारहवां । आप शोकको त्याग करें और धैर्य धारण करें और सर्वज्ञ देवसे प्रार्थना करें कि सेठनीकी आत्माको भव २ में शांति मिले।.... ___ आपके दुःखका साथीदयाचन्द गोयलीय, बैरूनी खंदक-लग्वनऊ । परम स्नही परम विवेकी शेठ नवलचंद हीराचंद जोग___ आजे सवारे एकदम ओचिंता शेट माणेकचंदजीना स्वर्मवास थवाना समाचार तार द्वारा सांभळी अजायबी अने दिलगीरीनो पार रह्यो नथी के ओचिंतुं आ शुं थई गयु ! कांईपण मांदा वगर आम ओचिंतु मृत्यु थवाना समाचार सांभळी हैयुं भराई आवे छे ने शुं लखवू. ते समज पडती नथी. आथी दिगंबर जैन कोम उपर तेमां आपना कुटुंब उपर आ फटको जेवो तेवो लाग्यो नधी अने आ घा कदी रुझाय एम नथी. आम ओचितुं थवाथी घणी घणी बाबतोना खुलासाओ करवाना आपने रही गया हशे तेम अमारा पण मनना उमेद मनमा रही गया केमके घणी बाबतोना खुलासा अमने करवाना हता. शेठजी! आ गमगीन बनावथो आपना कुटुंब उपर जे कवखतनुं अने ओचिंतुं दुःख आवी पडयुं छे तेमां अमो अंत:करणथी भाग लीए छिए. आवतुं ' दिगंबर जैन ' आ शोक समाचार सहित बहार पाडवू पडशे, माटे शेठे जे पोता पाछळ वापरबानी व्यवस्था माटेनुं वील करेलुं छे तेनी नकल अमने बीडी आपशो तथा शेठजीना पुत्रनुं नाम शुं छे अने उमर शुं छे ते जणावशो. महेरबानी करी विगतवार समाचार लखशो तो उपकार थशे. एज कामकाज लखशो. अत्रे आजे चंदावाडीमा स्नान मंडाया हता. रडवा कुटवार्नु बंध राखवामां आव्युं हतुं ने धर्मनां गीतो गवायां हतां.... आपनो आज्ञाकारी-मूलचंद किसनदास कापड़िया-सूरत. For Personal & Private Use Only Page #890 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । गंगास्वरूप व्हेन मगनब्देन, आपना पूज्य शिरछत्र पिताना अचानक मृत्युना समाचार वांचीने अमो घणा दिलगीर थया छीए. जैन कोमनी उन्नति माटे तेओश्रीए जे भोग आप्यो छे, तेवो भोग जैन कोमना श्रीमंतांमांथी आज पर्यंत कोईए पण असेल नथी. तेओश्रीना कार्योंथी तेमना देहनोज आपण वियोग थयेल छे, बाकी तेओ जीवताज छे एम मानवामां अमो भूल करता नथी. तेमना वियोगथी आपने असह्य दुःख थतुं दशे अने थाय तो तेमां नवाई नथी, पण दुष्ट काळ कोईने छोडतो नथी, एम धारीने तेमना जेवा उच्च कार्यो करवा एज आ मनुष्य भवनी सार्थकता छे. तेमना स्मरणार्थे आप बनतुं करशो एवी अमारी नम्र विनंति छे. मेघजी हीरजी -मुंबाई . [ ७९९ सेठ नवलचंदभाई तथा बहेन मगन बहन, पू० श्री माणेकचंदभाईना देह त्यागना अत्यंत दुःखदायक खबर जाणी बहु दिलगीरी थई. तेओना जेवा सुंदर आत्माओ विरलज होय छे. तेओना जवाथी आप तो कुटुम्बरत्न गुमाव्युं छे पण अमारा जेवा संबंधीओए एक पवित्र स्नेही गुमावेल छे अने आखी जैन समाजे एक परोपकारी पुरुष गुमाव्यो छे. तेओना जवाथी आपना कुटुंम्ब उपर एक घणोज कारी घा वाग्यो छे; पण देहनी स्थितिज अनित्य होवाथी आपणे ज्ञान दृष्टिए आ खेद विचारी वदवो घंटे छे. मनसुखलाल रवजीभाई महेता - अमदावाद. For Personal & Private Use Only Page #891 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८..] अध्याय तेरहवां । श्रीमती विदुषी जैनगुणभूषण मगनबाई प्रति जग्गीमलका धर्मस्नेह पूर्वक जयजिनेन्द्र ! कलके रोन हमने अति हृदयविदारक महान् शोककारक. यह अपने भाईयों द्वारा मालुम हुआ कि सेठ माणिकचन्द्रजीका अचानक देवलोक हो गया। अश्रुधारा वह चली, कलेना काँप उठा, हे विकराल काल ! तूने यह क्या किया ? वास्तव में सेठजी जैन सम्प्रदायमें एक अपूर्व पुरुष थे । इनके गुणानुवाद करना, इनकी कीर्तिको गान!, जैन सम्प्रदायको जो २ लाभ हुए हैं उसका वर्णन करना, मेरी लेखनीमे बाहर है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आपको और आपको मातादिको अतिशोकदायक बात है मगर आप तत्ववेत्ता हो । संपारकी दशा कैसी नि:मार है आप जानो हो इसलिये सब कुटम्बी जनोंको समझाकर संतोषित करें और आप, स्वयं भी संतोष प्राप्त करें। आपका कृपाभिलापी, जग्गीमल जैन । परमस्नेही परमविवेकी श्रीमती मगनव्हेन, सप्रेम सविनय जयजिनेंद्र. आजे सवारे एकदम ओचिंता आपना बापाजीना स्वर्गवास थवाना समाचार सांभळी आश्चर्य अने दिलगीरीमा गरकाव थई गया छिए के आ ओचितुं शुं थई गयुं ! बे दिवसपर तो एमनो कागळ आव्यो हतो ने एकदम शुं मांदगी थई ने ओचितुं आ शुं थई गयु ! आ गमखार बनावथी आपना कुटुंब ऊपर तेम आखा दिगम्बर जैन कोम ऊपर जबरदस्त फटको लाग्यो छे. अमे तो एम कहीए छिए आखी दिगम्बरी कोम रंडाई छे. आपने मेलाप थयो हतो के नहि के श्राविका For Personal & Private Use Only Page #892 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानपत्रों के कास्केटका ग्रूप. जैनविजय ' प्रेस-सूरत. For Personal & Private Use Only Page #893 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #894 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास। [८०१ श्रममां हता! आपना काकी तथा कीको हाल मुंबाईज छे केनी ? शुं मांदगी अने शुं बनाव ! कई समज पडती नथी. शुं शब्दोमां आपने आ दीलगीरी भरेलो पत्र लखवो ते समज पडती नथी. काळनी गति अति विचित्र छे! आजे शुं छे अने काले शुं थशे तेनी खबर नथी. आ संसार अनित्य छे माटे आवे समये धैर्य धारण करवा सिवाय छुटको तो नथी, पण आथी तमारो जे एक आसरो हतो ते विलय थई गयो छे. शं करीए ! भावी बळवान छे. आपने पण केटलाक खुलासा करवाना रही गया हशे ने अमारे पण केटलाक खुलासा करवाना रही गया छे........ मूलचन्द कसनदास कापडिया, सूरत. गंगास्वरुप मगनबहेन, तमने अने महारे रुबरु मळवानो प्रसंग पडया नथी पण आपना स्वर्गस्थ पिताना साथे माहरे घणो प्रसंग पड्यो छे अने मारी विद्यार्थी अवस्थामां आपना पिताए जे कोमना हितार्थे कार्यो करलां तेमांना जैन बोगिनो लाभ पण लीधेलो छे एटले हुं तेमना उपकार तळे छं. आजना “बोम्बे कोनीकल 'मां आपना पिताना एकाएक स्वर्गस्थ ययाना समाचार जाणी घणो खेद थयो. मनुष्य कर्माधीन छे ए तमारा जेवां सुज्ञ बेहेनने जणाववा जरूर नथी. आपना पिताना मरणथी आपना कुटुंबमे जे भारे खोट पडी छे तेनुं वर्णन करी शकुं तेम नथी एटलुंज नहीं पण तेमना मरणथी आखी जैन कोम अने मुख्यत्वे करीने दिगम्बर जैन कोम दुःखी थई छे. जे कोमे आपना पिता जेवा नर पेदा करेला ते कोममां बीजा एवाज नर पेदा थशे एमां शंका लाववानी नथी, पण अत्यारे तो आवा सखी दिलोनी खोट जैन कोमने घणी भारे थई छे. आपना पिताए जैन कोमना त्रणे फिरकाओना हित माटे दि० For Personal & Private Use Only Page #895 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०२ ] अध्याय तरहवां । जैन बोरडींग विगेरे योजनाओ करी आपी तेवी योजना करी आपनार विरला नर हालना जमानामां थोडा मळे छे. आ सिवाय पण आपना पिताए घणीज रीते हिन्दुस्तानना जैनोनु भलु करवा अथाग मेहेनत करी छे. अने अमारा पालणपुरने पण तेमनाथी बने तेटली मदद आपी छे एटले ते नरने विसरवो घणी मुश्केली भरेलुं छे. धार्मिक लागणी साथे पाश्चात्य विचारोने उत्तेजन आपवान आपना पितानुं कार्य घणुंज स्तुतिपात्र हतुं. आ साथे तमो बेहेने दुःखी विधवाओने मदद करवान जे कार्य माथे लीधुं छे तेने माटे धन्यवाद घटे छे. ... छेवटे आपना कुंटुंबने माथे पडेल दुःखनी अंदर हुं भाग लेउ छु अने आपने बधांने विनती करूं छु के हवे गयाने संभारी खेद नहिं करतां तेमना पगले पगले चालवायी घणोज फायदो छे एम मानी ते प्रमाणे चालवा आपनो प्रयास चालु राखशो, ते साथे मारी प्रार्थना छे के तेमना आत्माने शांन्ति मळो। कालीदास जश्करण झवेरी, अमदावाद. गं, स्वरुप व्हेन मगनव्हेन, आपना परमपूज्य पिताजी, आ शाळाना खरा शुभेच्छक अने दरेक सारां अने जैन समाजना हितनां कामना प्रेरक शेठजी माणेकचंद हीराचंदना अचानक अने अकाल स्वर्गवासना समाचार वांचतांज स्वाभाविक खेद थयो हतो, आ शाळा उपर एओना उपकारो अपरिमित हता. एओश्रीनी प्रेरणाथीज स्वर्गस्थ रा. रा. लालशंकरभाईए आ शाळा उपस्थित करवान बीडं झडप्यु हतु एटले के एओश्री आ शाळाना मूळ उत्पादक हता एम कहेवामां आतशयोक्ति नथी. आ वस्तुस्थितिमां आ दुःखद समाचार जाणवाथी अमने बधांने स्वाभाविक खेद थाय एमां कोई नवाई नथी. For Personal & Private Use Only Page #896 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवरिका स्वर्गवास | [ ८०३ आपनी न्यातनां बाळकोने विद्यादान आपी तेमने जन्म जन्मातरने माटे सुखी करवाने हिंदुस्थानमा ठेक ठेकाणे एओए बोर्डिंगो स्थाप्यां छे. एओ आपणी समीपथी स्थूल रूपे गया छतां आ संस्थाओना रूपमा एओ जाथुने माटे जनसमाजनी समझ रहेवानाज. जे वखते आपने, आपना कुटुबने, आपनी कोमने अने दुःखी जनसमाजने एमना समीपनी, शुद्ध भावथी भरपुर बोधनी अने हरेक प्रकारनी मददनी जरूर इती ते वखते दैवे एमना अमूल्य आत्माने आपणी पासेथी झुंटावी लीधो छे. एओना अकाल स्वर्गवासथी आपने अने आपना कुटुंबाने जे मोटी खोट पडी छे ते पूरा तेम नथी. आपना पिताजीए शरू करेलां शुभ कार्योंने खीलववाने जोईए तेटलुं मनोबळ अने अनुकुलता ए दयाळु विभू आपने तथा आपना कुटुंबीजनोने हमेशां आपो एवी मारी एमने नम्र प्रार्थना छे. स्वर्गस्थ शेठजीनो आत्मा अखंड शांति भोगवो ए शुभेच्छाथी आ लांबो कागळ अटो छु. ली० शुभेच्छक, प्राणशंकर लल्लुभाई देशाई । ब्रां मुंगानी शाळा, अमदावाद मे. शेठजी साहेब, नवलचंद हीराचंद जोग, आपना जेष्ठ बंधु मे. शेठजी साहेब शेठ माणेकचंद हीराचंदे स्वर्गवास कर्याना एकाएक कमकमाट उपजावे. तेवा दुःखदायक समाचार वर्तमानपत्रोथी ओचींता सांभळीने आ फंडने जे लागणी थई छे ते तदन अवर्णनीय छे. मर्छुम शेठश्री आ फंडना एक खरा शुभेच्छक अने एक सलाहकार होवाथी तेओए करेला स्वर्गवासथी फंडे एक महोटामां महोटो वगदार सलाहकार गुमाव्यो - अने आखी जैन प्रजा बल्के मुंबई इलाकामा एक महान दानवीय For Personal & Private Use Only Page #897 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०४ ] अध्याय तेरहवां । दयालू नर गुमावेलो छे ते माटे आ फंड जेटली दिलगीरी दर्शावे तेटली ओछीज छे. ते सद्गत शेठ साहेबे पोताना निखालस अने मलतावडा उत्तम निरभिमानी स्वभाव वडे समग्र प्रजानी प्रीति संपादन करी हती ते जगजाहेर होवाथी ते महान् परोपकारी सज्ज - नो दुःखदायक वियोग असह्य थई पड़े ए देखीतुं छे, पण जे काळे जे मांडयुं होय ते कदी पण मिथ्या थतुं नथी एटले जे बाबतनी लगाम परमात्माना हाथमां छे ते बाबतमां आपणे तद्दन निरुपाय छई माटे जे सुखदुःख माथे आवी पडे ते शांत पणे सहन कर अने मरनारना आत्माने अखंड शांति इच्छवी एज आपणुं कर्तव्य छे. महुम शेठ श्रीना वियोगथी खेदयुक्त थयेला 'श्री जीवदया - ज्ञान- प्रसारक फंड' (मुंबई) तरफथी हुं हुं आपनो नम्र सेवक, लल्लुभाई गुलाबचंद झवेरी. कोष्टक सहानुभूति सूचक तार ओ आए । स्थान नं० १. दिगंबर जैन पंचान गोटेगांव (सी. पी.) २. आवनीस दीवान कोल्हापुर कोल्हापुर ३. महाराजा साहब कोल्हापुर भेजनेवाला ४. शांतप्पा सेठी ५. सभापति, दि० जैन बोर्डिंग ६. कंछेदीलालजी जैन ७. सोहनलाल मा० जैन पंचान For Personal & Private Use Only "" मंगलोर लाहौर जबलपुर देहली Page #898 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८०५ स्थान म्हैसुर मेंगलोर लखनऊ इन्दौर सोलापुर फलटन कलकत्ता अजमेर दानवरिका स्वर्गवास । . भेजनेवाला ८. अनंतराजय्या मा० जैन पंचान ९. भट्टारक श्री जिनसेनजी स्वामी नांदणी १०. अजितप्रसादनी एम. ए. एलएल. बी. ११. रा० ब० दानवीर सेठ कल्याणमलजी १२. सेठ बालचंद रामचंद मा० जैन पंचान १३. महाराजा साहब फलटन १४. बाबू धन्नूलाल अटर्नी १५. रा० ब० सेठ नेमीचंदजी आ० मजिस्ट्रेट १६. धूमसिंह जैन मा० १७. मंत्री, नैनाथ लायब्रेरी १८. विद्यार्थीगण, जैन बोर्डिंग १९. मोनीलाल बंशीधर क्लर्क तीर्थक्षेत्र कमेटी २०. दि० जैन पंचान २१. विद्यार्थीगण, सुमेरचंद दि० जैन बोर्डिंग २२. दि. जैन पंचान २३. हरनारायण जैन २४. कुमार देवेन्द्रप्रसाद और मा० दीपचंदनी २५. सेठ बालचंदनी अजमेरा २६. रिखबचंद केशरीमल २७. शाह गोरधन हरचंद २८. बावू सुन्दरलाल बैनाडा २९. सभापति दि० जैन सभा मुजफ्फरनगर आथनी कोल्हापुर कलकत्ता प्रान्तिन . अलाहाबाद सतना भागलपुर सिटी अलाहाबाद इन्दौर गया मखिआव झालरापाटन अजमेर For Personal & Private Use Only Page #899 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०६ । अध्याय तेरहवां। नं. भेजनेवाला स्थान ३०. कालूराम परवार सु०, मा० पा० दि० जैन बोर्डिग रतलाम ३१. दिगंबर जैन पंचान खंडवा ३२. डाह्याभाई शिवलाल मैनेजर, वीसपंथी उपरेली कोठी शिखरजी मधुवन ३३. सेठ मथुरादासजी टडैया ललितपुर ३४. बाबू जुगमंदरदास सभापति दि० जैन बोर्डिंग बिजनौर ३५. प्रो० ए० बी० लढे एम० ए० कोल्हापुर ३६. सेठ मूलचन्द किसनदास कापड़िया सुरत ३७. पं० धन्नालालजी कासलीवाल इन्दौर ३८. लाला देवीदासजी, सभापति दि० जैन सभा लखनऊ ३९. मोरालीटी (Morality) रंगून ४०. परीख चुन्नीलाल प्रेमानंददास बोरसद ४१. दिगंबर जैन पंच बोरसद ४२. जैन मंडली वीजापुर ४३. दिगंबर जैन पंचान आकलन ४४. सेठ हीराचंद नेमचंद दोशी ओ० मजिस्ट्रेट सोलापुर ४५. रेवचंद छगनलाल शाह ४६. लक्ष्मीचंद वेलचंद ४७. सेठ माणिकचंद मोतीचंद सभापति दि० जैन पंचान सांगली ४८. शा. हाथीचन्द माणेकचन्द दलाल मा० दि० जैन पंचान सोनासण ४९. बी. वी. जाधव, सभापति जैन सभा कोल्हापुर रंगून रंगून For Personal & Private Use Only Page #900 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८०७ भेजनेवाला स्थान ५०. सेठ दालचन्दनी, सभापति, मालवा नीमाड़ प्रान्तिक सभा, इन्दौर ५१. दिगंबर जैन पंचान लाकरोडा ५२. मुंगीलाल पाटनी मंत्री, जैनधर्म प्र. सभा ___ इन्दौर ५३. दिगंबर जैन पंचान अमदावाद ५४. सेठ झुन्नीलाल मुन्नालाल मा० मालवा नीमाड़ प्रान्तिक सभा ५५. पं० पीताम्बरदासजी उपदेशक दि० जैन प्रान्तिक सभा ईडर ५६. मिसिप्त बापुजी (अजैन) पूना ५७. बापुलाल काला मा० रा० ५० सेठ ओंकारजी कस्तूरचंद इन्दौर ५८. नगीनदास मोतीचंद शाह मांडवी ५९. सेठ गुलाबचंद हीरालाल, सभापति जैन पंचान ६०. सेठ कस्तूरचंद कल्याणमल इन्दौर ६१. सेठ लूणकरण मदनमोहनजी उज्जैन ६२. रायबहादुर सेठ कस्तूरचंदनी उज्जैन ६३. सेठ बिनोदीराम बालचन्दनी ६४. पं० धन्नालालनी इन्दौर ६५. नरसिंगपुरा दि. जैन पंचान कलोल ६६. समस्त दि. जैन पंचान घोघा और भावनगर भावनगर ६७. हुमड़ पंच समस्त ईडर ६८. श्रीयुत अण्णाप्पा लेंगडे शाहपुर ६९. समस्त छात्रगण आदि, स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस ७०. श्रीमंत सेठ मोहनलालजी खुरई धूलिया उज्जैन For Personal & Private Use Only Page #901 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नं. स्थान वसई ८०८ ] अध्याय तेरहवां । भेजनेवाला ७१. रेवचंद मगनलाल महेता ७२. श्रीमान् श्रीमंत सेठ पूर नसावजी सिवनी ७३. बापीची ( Bappiche ) पेरिस ( फ्रान्स ) ७४. दिगंबर जैन पंचान, शांतिनाथ मंदिर झालरापाटन सिटी. ७५. समस्त जैन पंचान वर्धा गंज ७६. समस्त जैन पंचान बडौत ७७. बाबू देवीसहायजी हेड एकाउन्टंट बडवानी ७८. जैन समाज झांसी ७९. नेमचन्द रवचन्द मंत्री, दि० जैन हितवर्धक सभा ८०. मंत्री, मालवा प्रांतिक दि० जैन सभा बडनगर ८१. सिंघई नाथुरामजी मा० दि० जन पंचान नरसिंगपुर ८२. समस्त जैन पंचान कानपुर ८३. सेठ येसुसिंघई सोनासिंगई अंजनगांव ८४. चौतर कन्ननम सेठी मूडबिद्री ८५. जैन पंचान, बेलगाम, शाहपुर और होसूर शाहपुर ८६. जैन फ्री लायब्रेरी मांडवी ८७. मुलामचन्द जैन माल जैन कुमार सभा गोटेगांव ८८. जैन कुमार सभा और हितोपदेशिनी समा बीना ८९. सिंघई फतेहलालजी, सभापति, जैन पंचान मुरवाड़ा ९०. दि० जैन मंडली कपडवंज ९१. सेठ जुगराजसाव कुंवरसाव सिवनी ९२. जैन सिद्धान्त प्रचारिणी सभा मोरेना -000 For Personal & Private Use Only Page #902 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [co दानवरिका स्वर्गवास । कितनेक शोकजनक तार । Sorry Shethaji died. My sincere condolence with your family. May Jineshwar bless noble soul of Shethaji. JINSEN BHATTARAK Swami Nandni, Kolhapur. Sorry to learn Maneckchand's death. Convey my sincere condolence to Nabibai on the sad bereavement. CHIEF OF PHALTAN (FIZZUE HETTIFT) Pandita Maganbai, Offer sincere sympathy for your father's death whom I always admired for his public charity and philanthrophy. MAHARAJAH of KOLHAPUR Offer hearty condolences for death of Manik Shet, who was a great benefactor of Jains of India. ABNIS DIVAN of Kolhapur. Dhannoolal, Parmestidass, Dayachand, Padam raj, Durgaprasad, Baldeodass, Birdhichand and others much shocked and aggrieved at sad news of Danbir Manakchand's death which caused irrepare able loss to Digamber Jain com For Personal & Private Use Only Page #903 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय तेरहवां । munity and offer sincere condolences to his yenerous widow, noble, daughter son and family members. DHANOOLAL-Calcutta. Extreamly sorry for sudden death of Sheth Manekchandji. By this Digamber Jain community has become without leader. MOOLCHAND KASONDAS KAPADIA, Surat. Deepest condolences of myself and Jains of Southern Maratha Country in your sad bereavement. A. B. LATHE M. A., Kolhapur. · Jain Community of Dhulia have heard with deep sorrow the death of Danavir Sheth Maneckchand Hirachand. In him we have lost a prominent leader and sincere worker of Jain Digamber Community. We offer our sincere condolence and sympathy to you and all family for sad death of Sheth Maneckchand. GULABCHAND HIRALAL, Dhulia. On behalf of Sangli Jain Community I beg to offer our most respectful and heartfelt-sympathy on the sad and untimely death of Sheth Manickchand and pray that God may give you For Personal & Private Use Only Page #904 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास [८११ and your family strength and fortitude to bear this irrecoverable loss I shall ever remember the great services benevolently endured by Shett to the Jains. MANICKCHAND MOTICHAND, Sangli. Jains in Mysore assembled at special meeting learnt with profound sorrow the demise of Sheth Manickchand, offer their heart-felt condolence to his family in their sad bereavement. ANATRAJAIYA, Mysore. I mourn deeply Maneckchand Sheths death post dignified phillanthrophist. REVCHAND CHHAGANLAL, Rangoon. Deeply grieved at the suddun death of Shethji an irrepairable loss to jain community. HARNARAIN JAIN, Bhagalpur City. शोकजनक कविताएं। रंज! शत् रंज!! सहस्त्र रंज !!! मर गये जगमें मनुष्य, जो मर गये अपने लिये । पर वे अमर जगमें हुए, जो मर गये जगके लिये ॥१॥ जो उपजता सो विनशता, यह तो जगत् व्यवहार है। पर देश, जाती, धर्महित, मरना यही जग सार है ॥२॥ श्रीमान् अरु धीमान् राज्यऽरु लोकमान अनेक हैं। पर सेठ माणिकचंद सा, दिखता मुझे नहीं एक है ॥ ३ ॥ For Personal & Private Use Only Page #905 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१२ ] अध्याय तेरहवां । बह सेठ माणिकचंद हीराचंद जे. पी. है नहीं । वह बीर दानी जैन कुलभूषण कहीं दिखता नहीं ॥ ४ ॥ चववीससो चालीस श्रावण कृष्ण नवमी दुःखमई । जिस रैन माणिकचद विछुड़े हा ! दियो क्या दुःख दई ॥ ५ ॥ वह अंधकी थी लाकड़ी अरु रंककी पूंजी हुती । । धर्म जाती उन्नतीके कुलुनकी कुंनी हुती ॥ ६ ॥ घाटा अरब दीनारका श्रीमान् कुछ गिनते नहीं । पर एक कौड़ी रंक खोकर दुःख सह सक्ते नहीं ॥ ७ ॥ वे शिर उठा देखें जहां दिखता वही अंधयार है । अघ खोई लाकड़ी हा ! दुःखका क्या पार है ॥ ८ ॥ शोक भू फटती नहीं जाते समा उसमें कहीं । दुर्दैव प्रेरित जनों अब आश्रय दिखता नहीं ॥ ९ ॥ आश्रय जिमका जहां जब दीन जैनोंने लिया । आनकर पीछा किया ॥ १० ॥ कार्य जिसको सौंपकर तब काल निर्दयीने वहां ही उन्नती जात्यरु धर्मके कुल सो रहे थे जैन सारे हिन्दुके हो वे फेकरे ॥ ११ ॥ तब काल रक्षक पुरुषको ले गया इकला पायकर । सोते हुए ये लुट गये हे नाथ ! इनहिं सहाय कर ॥ १२ ॥ यह वज्रपात हुआ अचानक हाय प्रभु अब क्या करें | सच्चा हितैषी रतन खोकर किस तरह धीरज धेरै ॥ १३ ॥ पर रुके नहीं होनी कभी होत अन - यह जानकर धीरज घरो जो उपजता अरु शोक क्या है सेठका वे सुख शांति पायेंगे । For Personal & Private Use Only होनी नहीं । विनशे वही ॥ १४ ॥ Page #906 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८१३ घरघरके हम हो जायगे कहो कौन हमहिं जगायंगे ॥१५॥ क्या मर गये हैं सेठनी ? नहिं वे अमर भूपर भये । अदृश्य उनको देखकर ही लोग कहते मर गये ॥१६॥ महिमा उन्होंके दान पुण्यऽह शांति सरल स्वभावकी। घरघरमें गायी जा रही है उन्नतीके चावकी ॥१७॥ ये सभा बोर्डिंग आश्रम चटशाल जो हैं दिख रहे । सो सब उन्हींकी सौम्य दृष्टिसे अनहुँ लहरा रहे ॥१८॥ अब नाथ ! ऐसे नरतनके आत्माको शांति दे। अरु कर सनाथ हमहिं प्रभो ! उत्साह अरु सद्बुद्धि दे। ॥१९॥ दुःखित कुटुम्बी जनों अरु जैनोंको हे प्रभु ! धैर्य दे। दीप शांतिः दे प्रभुः ! नित शांति दे, नित शांति दे ॥२०॥ शोकासितमास्टर दीपचंदजी परवार, नरसिंहपुर (C. P.) शेठ माणेकचंदजीना विरहनी वेदना । अरर दवरे, आ ते शु बन्युं, माणेकचंदनुं मृत्यु तो थयु; जैन कोमर्नु भूषण तो गयुं, रत्न एवं कां खरे ना रह्यु. १ हिंदनो दीवो अस्त तो थयो, तिमिर कोममां व्यापीने रह्यो। अखिल कोमनां हृदय फाटीयां, नेत्रसरीतथी अश्रु तो झर्यो. २ मेघ नृपतिए, वृष्टि तो करी, एना शबपरे मौक्तिथी खरी; स्वर्गलोकमां वास तो कर्यो, संसार त्यागीने सुखथी रह्यो. ३ तुन विरह तो, ना खमायरे, एकवार तुं दृष्टि फेंकरे, अंतः प्रार्थना, एटलीन हवे, प्रभु तेमने शांति आपजे. ४ For Personal & Private Use Only Page #907 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१४ ] अध्याय तेरहवां । अजब कोप दैवे आ कीधो रत्न जैन लीधुं हारी; धर्मी प्राणीना प्राण हर्या छे, घा दोधो तें बहु कारी. १ अखील कोम आ रुदन करे छे, नर बच्चांने कारणरे; धन्य धन्य माणेकचंद तुं ने, धन्य छे तुन माताने. २ गरीब विचारां बाळकने तो, सहाय करीने सुख दोघां; विद्यारूपी दानन दीg, पुत्र रूप मानीन लीधा. ३ वाळको ते रुदन करे छे, अम सहायक ते शीद गयो; माणेकचंदे विश्वन मुक्यु, फानी ने ते स्वर्ग गयो. ४ शोकोद्गार। अहा दैव ! तुं छेकज निर्दय, केर कारमो गनव को; झपट मारीने झड़पी लीधो, लेश नहिं तुं हृदय डर्यो । हतो हीरलो नायक नृाप्सम, तेर लक्ष जैनोमा जे । खोळी खोळीने लीधो खुंचवी, नड्यो नहिं शुं बीनो के ? दिंगबरीमां दीपक सरखो, हतो वीर ए माणेकचंद । कोम डुबेली तारी लाववा, धार्या हृदये रुड़ो छंद ।। केळवणी दई कइक तारख्या, बांधी बोर्डिगो बेस कयु । दया लावीने दिलमां अनहद, दीन दुःखी दुःख दूर कयु; विधवा अबला बालक केरा, कष्ट निहाली कांप्यो जे; तेवा परदुःखभंजन नरने, जतो मुक्यो ना जमड़ा तें. दानवीर हिंमतपुरण जे, काळ खरे ते को गुलाम; काळ सुणी कंपे अम दिलडां, शु सरीयुं यम तारुं काम ? पण एमां शुं वांक ताहरो, खुटयु तेल दीप अस्त थयो, गयो गयो पण रही सुकीर्ति जीवन सुयश झलकावी गयो. जीवणलाल कसनदास कापड़िया-सूरत. For Personal & Private Use Only Page #908 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । शेठ माणेकचंदजीनो विरह. ___शादुलविक्रीडीत छंद. आ संसार असार म्हांय भरती ने ओट दीठा घणा; जेणे हर्ष विषादने सम गण्या गर्वे न जेने हण्या. सादा शांत दयाळ दान गुणथी दीप्या बंधा देशमां; ते पंथी माणेकचंद चंद्र अथम्यो हा हा थयो लेशमां. ( बेडो बाई बुडतो तारो रे अंबे आई पार उतारोरे-ए राग. ) गयो वीररत्न स्वधामे रे, शठ माणेकचंदभाई नामेरे. विक्रम संवत ओगणीशेने, सीत्तेर वेरी साल; । अषाड वदी नोमने दीने, शेठ गया करी काळ-गयो १ तारथी माठी खबर ज्यां पहोंची, गाम सुरत शहेर; हाहाकार पड़ी हड़तालो, वरतायो बहु केर-गयो २ लोक कहे गयो गरीबनो बेली, निराधार आधार; धर्मनो धोरी गयो अहींथी, हा रूठयो कीरतार-गयो ३ शांत सरळ सादा सोमागी, गंभीर निर्मळचंद; विद्या विनय विवेकी थशे कोइ, विरला माणेकचंद-गयो ४ सत्य क्षमा शोल सत्वथी शोभीत, काया कंचनवान; लक्षण लक्षीत अंग सुकोमळ, लेश नहि अभिमान-गयो ५ मुंगळ सम कर ढींचण सुधी, रेखा युक्त विशाळ; शरद शशिसम मूखनी शोमा, तेजे तपे शुभ माळ-गयो ६ नाशिका कर्ण ने नेत्र अनोपम, कोमळ हृदय विशाळ; भाग्यशाळीनां चिन्ह हतां सौ, सफळ थयां तत्काळ-गयो ७ For Personal & Private Use Only Page #909 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१६ ] अध्याय तेरहवां । गजगति गेले चाल हती जस, वाणी अमीरस पुर; वदन सरोवरथी फूल खरतां, बोलता बोल मधुर - यो गरिब कुटुंबमां सुरत गामे जन्म्या हता महाभाग्य; पडती ने चढ़ती दीठी आभवमां, धिरज न करी त्याग - गये। भाग्य उदयथी वधी संपत्ति, बध्यो क्षमा पर भाव सज्जन संगथी हर्ष शोकमां, रह्यो सदा समभाव - गयो १० राज्य प्रजानो मित्र शुभेच्छक, देश स्वजातिनो मित्र; क्वां गयो जैन जवाहीरमाथी, हीरो अमुल्य पवित्र - गयो ११ अकस्मात् ए पुरुषना मरणे, वरत्यो बधे हा-हा - कार; स्वजन ने परजन रुदन करे बहु, क्यों गयो दीनदातार - गयो १२ ललीत छंद. कर्यो, गरिन्नो खरो आशरो हर्यो; " अरर दैव ते कोप शो सकल संघनो मित्र क्यों गयो, अरर चंद तुं चालतो थयो १ विकट आसमे क्या गयो अरे, परम मित्र तुं प्राण संहरे; धरम धामनां काम क्यों थशे, तीरथ वाळवा कोण दोडशे. २ विरह ताहरो ना खमायरे, तुज वियोगथी खेद थायरे; पलक एकमां प्राण जायरे, धरम ध्यानमा मौन थायरे. ३ अमर आतमा कृषथी शम्यो, शरीर धर्मयी भिन्नय रम्यो; नियम कालनो ना कदी फरे, जनमनार ते प्राणीयो मरे. ४ सफल जन्म तो तेहनो खरो, सुकृत पंथमां जेह संचर्यो; जगतमा रह्यो जीवतो खरे, विजय वावटो विश्वमां फरे. ९ H. V. ሪ For Personal & Private Use Only Page #910 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेठजीके लघु भ्राता सेठ नवलचंद हीराचंदजी For Personal & Private Use Only Page #911 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #912 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८१७ शोक सप्तकम्। न्यपतत्किमु हाशनिर्गिरीशे चपला स्फटिकमंदिरेऽमले वा । अथवा हिमसंहतिर्विकाले फलसंपादकभूतलेऽनुकूले ॥१॥ जनताशमतोषकोऽमृतांशुर्यदि वार्कस्तिमिरापहा गृहीतः । नियतोऽदयराढुणा यमेन प्रहतो माणिकचंद्र एष मेशः ॥ २॥ निहता यमनाथ भूरिबोधाः शुभसंपन्निधयः पुरा प्रभूताः । अतृपन्न तथापि रे खलेयं विहिता जातिरपि त्वयाद्य दीना ॥ ३ ॥ प्रचुरानवबोधसौरभासा चिरसंतापित एष जैनलोकः । परिशांतिभियाय यस्य मूले क्षितिनं त्वां परिलोचयामहे व ? ॥ ४ ॥ गुणमाल ! विनम्रभालनातिन हि चक्रे परिभूषणं परं त्वां । गुणमानदभारतीयराज्यं पढ़ जे० पि० प्रतिदानतोऽपि भूयः ॥ ५ ॥ समतोषि सुदर्शनं यदीयं विविधेहाकुलितेक्षणान्मनुष्यान् । गुणपत्रविलंबिबाहुशाख शुभकल्पद्रुममाप्नुमः कुतस्त्वाम् ॥६॥ धनविग्रहमानसेषु केचिद्भुवि जाता विकलेन कार्यकाः प्राक् । सकलेन बलेन किंतु धीमन्नजनि त्वां परिलोचयामहे व ? ॥ ७ ॥ अनिंद्यसंपन्निधनाकुलं त्वत्कथंचनाबोधिमनः परत्र । त्वमेहि शांतिं तव यांतु वंश्याः शुभाभिवृद्धिं ननु कामना नः ॥ काशीस्थ विद्यार्थिसप्तक । भावार्थ-हाय ! क्या यह पर्वतपर वज्र गिरा ? या निर्मल स्फ. टिक-मन्दिरपर बिजली गिरी? अथवा वृक्षोंके फलनेका अनुकूल समय आनेपर उनपर हिम समूहने गिरकर उन्हें जला दिया ? ॥१॥ ___जैसे मलिनात्मा राहुने लोगोंको सुख-शान्ति देनेवाले चन्द्रमाको या अन्धकार नष्ट करनेवाले सूयको असा हो, उसी तरह सेठ माणिकचन्द्रजी निर्दय काल द्वारा ग्रसे गये ॥२॥ For Personal & Private Use Only Page #913 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१८ ] अध्याय तरहवां । पापीकाल ! तू पहले बड़े बड़े ज्ञानी और बुद्धिमानोंको अपना ग्रास बना चुका हैं, तब भी तुझे सन्तोष नहीं हुआ, जो आज तूने सेट माणिकचन्द्रजीको हरकर सारी जातिको भिखारिणी बना दिया ? ॥३॥ जैनसंसार बहुत समयसे अज्ञानरूपी भयंकर गर्मीसे संतप्त हो रहा था। भाग्यहीसे उसे सेठ माणिकचन्द्रजी सरीखे शीतल-वृक्षके नीचे आकर शान्ति मिली थी। हाय ! उसे अब हम कहाँ देखेंगे ? ॥४॥ हे गुणाकर ! इस विनीत जातिहीने आपको अपना भृषण नहीं बनाया, पर गुणियोंका आदर करनेवाली भारत सरकारने भी जे० पी० का पद प्रदान कर आपका उचित सम्मान किया ! ॥५॥ अनेक प्रकारकी वस्तुओंको देखनेकी इच्छासे असन्तुष्ट नेत्रोंको जिसका सुन्दर दर्शन सन्तुष्ट करता था, उस श्रेष्ठ कल्पवृक्षको अब हम कहाँ प्राप्त करेंगे ? जिसके पत्रकी जगह तो आपके गुण थे और उँगलियोंकी जगह हाथ ॥६॥ सेठ साहब ! ऐसे तो बहुत लोग हो चुके हैं, जो किसीने धनको, किसीने शरीरको और किसीने मनको समाजके हित लगाया, पर उन सबमें आप एक ही हुए जो आपने अपना तन, मन और धन समाजके लिये अर्पण किया। हाय ! आप जैसे पुरुष रत्नको अब हम कहाँ देख पायेंगे ? ॥७॥ हे दयासागर ! आपकी मृत्युसे हमारे अशान्त मनको किसी तरह समझाना ही पड़ेगा। ( क्योंकि उसके लिये सिवा इसके कुछ गति ही नहीं है )। अन्तमें हम चाहते हैं कि आपका पवित्र आत्मा शान्ति लाभ करे और आपका कुटुम्बवर्ग भी सुखी हो । काशीके सात विद्यार्थी । शेठ माणेकचंदजी यांचा निधनजन्य विलाप (चाल-चन्द्रकांत राजाची) खनिजोद्भिज (ज) तिर्यञ्च-मनुज हे कोटि-चतुष्टय की। असे तयां सकलांत श्रेष्ठ परि मानव इहलोकीं ॥ धु For Personal & Private Use Only Page #914 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास। दुर्लभ ही मानव-तनु लाधे पुण्यबले जीवां । कांत, सदय, अव्यंग असा नरदेह सौख्य-टेवा ॥ उच्च वस्तु न्यूनत्व पावती नीच बहुत जगतीं। मनुज, रत्न, गुण, धर्म असो सकलांचि हीच रीति ॥ अखिल जीवसृष्टीस अभयकर श्रेष्ठ दयाधर्म । उच्चस्थानी तया ठाव जा धम मूर्त-शर्म ॥ सत्य सनातन अनुपम सुंदर परम धर्म ऐसा । असे अहिंसा प्रमुख जयामधिं जैन धर्म खासा ।। प्रसिद्ध श्रावक विशुद्ध विलसे भुवनीं इंदुपरी । __निपजे " नर-माणिक्य " तयामधिं वर्णवे न थोरी । लक्ष्मीचे चिरनिवास-स्थानचि मुंबापुरि नगरी । ____ भरतभूमि भूषण इहलोकी मानव-इंद्रपुरी ।। पूनित केली सुरत भूमिका जन्मा येवोनी । विराजिती मुंबापुरिमाजी माणिक गुणखाणी ।। दानवीर महशूर अस। माणिक्यचन्द्र श्रेष्ठी। ___औदार्य शृंगारिलि अक्षय खिल जैन-सृष्टि ।। दिधली पुष्टी धर्म तरूतें धनबल भाक्ति जलें। शांतिवायुमें आंग्लराज्यि तो स्वातंत्र्य डोले ॥ अतिशय सिद्धक्षेत्रं तीर्थं तदीय शक्तीने । विराजिती वहरांत फुललि की धर्म-द्रुम-सुमनें ॥ ठायी ठायीं विद्यासदने जैनशिशुस्तव तीं। स्थापुनि केली सकल भारती जिनविद्योन्नति ती ॥ चिरशिवदायक, भेषजमंदिर, विद्यार्थी-सदने । __ रुग्णमंदिर, चैत्य उठविले, मूर्तिमंत पुण्ये ॥ आखिल हिंदु पांथस्थां सुंदर धार्मिक नव शाला । स्थापियल्या बहु प्रमुख शोभते हिरावाग' अतुला ॥ For Personal & Private Use Only Page #915 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० ] अध्याय तेरहवां । । व्याख्यानालय, सभामंडपा, जिनकन्याशाला । श्राविकाश्रमा स्थापुनि केल्या संस्कृत जिनबाला ॥ विद्यार्जनार्थसाह्य देउनी तुष्टविले छात्रां । __ भाविक सुजना सवें घेउनी भूषविल्या यात्रां ॥ निखिल भारत जैन जनपद परिचय-ग्रंथाला । श्रमुनी केलें पूर्ण 'दिगंबर जैन डिरेक्टरिला' ॥ स्थापियले त्या विद्वद्-खचिता काशिपुरिमाजी । 'स्याद्वाद महाविद्यालय' जिनवाणो ती गाजी ॥ प्रामाणिक माणिक आणिक या लोकं न नर कोणी । जे. पी. पदवी अपि तयाते अवनिपाल वाणी ॥ शांत, सरल, अतिप्रेमळ सर्वप्रिय नच लव मानी । आप्त, जाति, साधर्मि, देशजन स्वकीय स्वच मानी । करुनी स्वोन्नति, जात्युन्नति, धर्मोन्नति देशाची । सेवा करुनी मेवा मिळवी ठेवचि पुण्याची ॥ यापरि वेंचुनि कायावाचामने धनें आयु । विद्याहाराभयभेषजदाने हो चिर-आयु ॥ झाले सुरवर माणिक स्वर्गी गेले वां मोक्षीं । शांत जाहला तदीय आत्मा सुकृते ती साक्षी ॥१॥ (चाल-आज अक्रुर हा) अजि अवचित हा जैनसुकृतनिधि सरला । माणिक्यचंद्र मावळला ॥ ध्रु० ॥ ती प्रेमाची धर्मचंद्रिका साची । जाहली नष्ट की अमुची ॥ जिनवाणीचा मेघाच बोधसुधेचा । वितुळला जैनवृंदाचा । चाल || भरविल धर्मसभा कणि आतां । For Personal & Private Use Only Page #916 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास | होइल कवण तयांचा नेता । खुलविल धर्मविभव तें आतां ॥ मालाकारचि तो धर्मतरूचा गेला । जनि हाहा: कारचि पडला ॥ २ ॥ शोकविकल - गणपत सोमाजी काळे - चिनावलकर.. विरह विलाप | [ ८२१ *0K ( राग मरशिओ ) रेहाय ! केम, आज रहेशे जैनो आ रंडापो । स्हेशे, जैनो आरंडापो, प्रभु शान्ति माणेकने आपो-रेहाय० १ मानवता मुंबाईमां गणाय, शहेर सुरतना वतनी जणाय: कहेतां उठे छे अंतरमां ल्हाय-रेहाय २ अशाड कृश्न नवमी केरी रात्रे, बार उपर एक कलाक जाते; ० वार गुरु सीत्तेरनी राते-रेहाय० ३ कीवो शान्तिथी स्वर्गे जई वास, पड्यो भारतमां भारे आत्राश; काळे कीधो कोहीनूर नाश - रेहाय० ४ आश्रम, शाळा जनो दुःखी भारी, सुणी चोंक्या छोडी देई वारी; चाहे चाहे करे नर नारी - रेहाय० ५ मित्रो संबंधी कुटुंत्र रुवे, आंख चोवारा आंसुज चुवे; जैन ज्ञाती सुखे नव सुवे-रेहाय० ६ पाछळ पुत्र जीवणचंद मेली, पूत्री मगन, तारा दूर ठेली; जैन ज्ञातीनो कोण हवे बेली-रेहाय० For Personal & Private Use Only Page #917 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२२ ] अध्याय तेरहवां । जैन संघना स्थंभरूप स्वामी, शिक्षण संस्था पिता शीरनामी; भारत प्रजा वियोगे दुःख पामी - रेहाय० ८ जैन शासन शान्ति सदा आपो, आवी आफत दीलाशाथी कापो; करो दूर प्रभु परितापो - रेहाय० ९ हाथी चंद्रनं हृदय बळे छे, स्मारक फंडनी अपील करे छे, भावी बनवा काळ बने छे, रेहाय केम आज रहेशे जैनो आ रंडापो० १० वियोगी - हाथीचंद माणेचंद - सोनासण | निर्दय काळने ठपको । गझल - कवाली. अरे न गुणा ! अरे निर्दय ! अदेखा काळ शुं कीधुं ? अमे भूख्या तं भाणं, भरेलुं तें लई लीधुं.- अरे० १ साखी - बार दुई बासेठने, लेवा बेठो हाल; पाटुं मारी पतितने, जरी न आवी व्हाल. रतन आ रंकना करथी, अचानक छीनवी लीधुं - अरे ० २ साखी -अभागीओ आ देश छे, अभागणी आकोम; हीरो हस्त थकी गयो, उकळे रोमे रोम. हता मगरूर जे नरथी; उडी गई ते बधी आशा - अरे ० साखी - खीलता पहेल डोलर कळी, पवन झपाटा साथ; ढळी पडी पृथ्वी परे, दुई न शकयो को हाथ. हवं ए पुष्पनी सुरभी, मळे क्यांथी अमोने ते - अरे ० ४ साखी - पुनर्जन्म लईने अहीं, करजो पूरण आश; For Personal & Private Use Only Page #918 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवारका स्वर्गवास। [ ८२३ ज्यां हो त्यां सुख पामजो, व्हाला माणेकचंद. हती ए रत्ननी प्यासा, पड्या अवळा बधा पासा-अरे० ५ मोतीलाल त्री० मालवी-बाकरोल. दानवीरनो स्वर्गवास. (काळने ठपको.) ओचीती आफत शुं !आ, स्वप्नमांके शुद्धिमां र्छ ? मांघेलं " माणक " मारूं, गयु केम हाथथी ? काळ विकराळ तने, लज्जा जरी आवी नहि; हिंदना हीरानो तन, झाल्यो केम झडपथी ? संवत सीतेर ओगणीश, केरी सालमां शुं ? ___अषाड अंधारी नवमीए, केम आवीओ ? जैन कुल जाति कुल, दानवीर जे. पी. हरी; दीपक बुझाव्यो जैन कोम रडती करी. ( यक्षदेवे कहेली आगाही.) चैत्रमा चळाव्युं मैन मांधेरो माणेक पिता, पर्युषण प्हेलां जई, स्वर्गमां सीधावशे ! पण में तो मान्यु नहि, खोटो आ आभास थाय; ___ आबु याद लावी शाने, दीलने दुःखाव ? बीजीवार कीधी वात, जाणी गई नहि रात; ___ पत्र ते लग्वाय केम ? ध्रुने तन तापथी, भाद्रवे भूलावी वात, प्रीतिमाही कीधो घात; दैव यक्षराज तीथि, आपवामां शु डर्यो ? २ For Personal & Private Use Only Page #919 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२४ ] अध्याय तेरहवां । (सुप्रसिद्ध कार्यो) बोर्डिंग ने हीराबाग, मुंबाइमां भावे को, जुबेली, मंदीर, श्राविकाश्रम ज्यां शोभतां; चंदावाड़ी सुरतमां, कन्याशाळा, पाठशाळा, कोल्हापुर, काशी, उदेपूर मांही ओपतां; “ राजनगर " बोर्डिंगने, दवाशाळा, धर्मशाळा, पक्षपात वीण नरनारी, बहु शोभतां; कथे हाथीचंद्र जैन, जातिना मुगटमणी, __ रुदन करे छे हिंद, वियोगना तापथी. कंकर समान द्रव्य, लक्ष दश दीधा दाने, हिंदना हाकेमोमां, प्रसिद्धी बहु पामीया; मारवाड, मेवाड ने गुर्जर, दक्षिण देशे, कोन्फरन्स सभामांही, जाणे झट आवीआ; पाठशाळा, ज्ञानशाळा, भूवन ने आश्रमोमां, लक्ष्मिनु देई दान, सज्जनोने भावीआ; कथे हाथीचंद्र मारा, तुरंगोने आपी मान, ___ हठीसंघ कही मने, प्रेमथी बोलावता. जैनोना प्रमुख प्यारा, बोर्डिगोना पिता व्हाला, कमिटी मीटींग मांहे, क्यारे हवे आवशो ? कुधाराओ तोडवाने, सुधाराओ जोडवाने, केशरी समान फरी, क्यारे शीख आपशो; धर्म, अर्थ, काम माट, धारी कर्या घाटठाठ, स्वर्गे सीधाव्या नाथ, असार संसारथी; ४ For Personal & Private Use Only Page #920 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवरिका स्वर्गवास । [८२५ कथे हाथीचंद्र मारा, शीरोमणी शाणा शेठ, दीननी उच्चारी वात, क्यारे दीले लावशो ? ५ हीराबाग बेठकमां, मीटींग भरेली रहे, देश ने विदेशना, भावे पधारे भेटवा; रीडिमां कुबेर सम, दान कर्णराय सम, बुद्धिमां अभयकुमार, प्रेमथी पधारता; पंडितोनो सुणी पाठ, प्रश्न पूछो प्रेमे करी, समाधान थाए पछी, शान्तिए सीधावता; कथे हाथीचंद्र मने, बतावो माणेक पिता, जैन जाति उन्नतिना, रसता बतावता. शान्ति सम दयावान, ढकाळमां दीधां दान, ठामठाम गामगामे, घास धन मोकल्यां; कमीटी सभाओ स्थापी, देशोदेश ज्ञान आपी, उंघथी जगाडी कोम, झाली रुडा हाथथी; श्रीमंतोने स्थान आप्यां,पंडितोने मान आप्यां, दरिद्रनां दुःख काप्यां, खरी धरी खतथी; कथे हाथीचंद्र थयु, वियोगे विशेष दु:ख, ___मेळाप थयो न मने, पूरवना पापथी. मंदिरनी अंदरमां, भावे जिनराज भनो, ___ पास आवे तेने बहु, प्यारथी बोलावता; देईने सुपात्र दान, मनुष्य मात्र देई मान, ___ वाणिज्य विद्या तणेरी, नीतिने बतावता; युनिव्रष्टि जैन ग्रंथ, प्रीते त्यां पढावा पंथ, For Personal & Private Use Only Page #921 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय तेरहवां । जैनना त्हेवार माटे, प्रयत्न कर्यो प्रेमथी; डिरेक्टरी, धवलजय, धार्मिक नैतिक ग्रंथ, ___ भंडारो खूलावीने, छपाव्या रुड़ी छापथी. उंची डीग्री आपवाने, बाळ दुःख कापवाने, __स्कोलरशीप स्थापवाने, कोण व्हारे आवशे ? ग्रेज्युएट गणवामां, विदेशे चढाववामां, हाम दाम काम आपी, कोण दुःखो कापशे ? तीर्थाना तोफान बुरां, आप विना कोण पुरां, ___ हाल रह्यां जे अधुरां, सल्लाह कोण स्थापशे ? कथं हाथीचंद्र सदा, शान्ति, अविनाशी सुख, प्रेमे परम आनंद, जिनराज बहु आपशे. ९ समेद, पावन, चंपा, पावा, गज, तारंगाने, ___ तुंगी, मांगी, बद्रीजैन, आदिनेक भेटीआ; दान तणुं देई दान, तीर्थोनासुधार्या स्थान, __ आपी मान खोली कान, वेगे व्हेला आवीआ; ज्ञान रुडं आपवाने, तिमिरने कापवाने, ___ उपदेशको घेर घेर, खते बहु फेरव्या; मासिक, ने पाक्षिक, पत्रो कढावीया, स्वर्गे सीधावी बहु, शान्ति जई पामीआ. १०. लघुभ्रात, नव्लभाई, के पुत्र जीवणचंद्र, तारा, रत्न, ठाकोरने शान्ति सदा आपजो; व्हेन मग्न, तारा व्हेन, केशर के शेठाणीने, दिलासो देईने प्रमु, दुःख पडयुं कापनो; For Personal & Private Use Only Page #922 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । शीरोमणी शेठतणी, अंतरमां थाय याद, परमेष्ठी उच्चारे पंच एवी बुद्धि आपजो. कथे हाथीचंद्र बंधु, “स्मारक खोली फंड, नामना अमर करी, कीर्तिने दीपावजो. ११ वियोगी - हाथीचंद माणेकचंद - सोनासण. 22 शोकजनक अवसान. अमूल्य हीरा रत्नने, माणकना भंडार, माणेकचंद्र उड़ी गया, नभ छायो अंधार! [ ८२७ गुणानुवाद. पानानी खाणमांथी, माणेक उत्पन्न थया; माकना यत्ने, बहु रत्नो उभराव्यां छे, पूर्वजनां नामोने, तार्यां धन धामोने; पुण्यमय कामो, पृथ्वीमां पथराव्यां छे. धर्म ध्वजा फरके छे, यश कीर्ति चळके छे; रंक मुख चातक, रसदाने मलकाव्यां छे, तप्तचित ठार्या, बहु दुखीयां उगार्या न; निर्धननां द्वारो, धन धान्ये छलकाव्यां छे, अनाथालयो, देवालयो अने विद्यालयो; आनंदारोग्यालयो, बांधनार क्यों गयो ? जनसेवा, देवसेवा, राज्य अने देशसेवा, सेवाना मेवा चखाडनार क्यां गयो ? सभाओ गजावनार, शान्ति रेलावनार, For Personal & Private Use Only Page #923 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२८ ] अध्याय तेरहवां | संपना सीतारनो ए सांधनार क्यां गयो ? धर्मवृत्ति धारनार, दया प्रेम पाळनार, अधर्मने कापनार असिधार क्यां गयो ? स्वभाव परिचय. कलि काल करालनी जाळ महिं, भय व्याकुळ भारत व्यस्त थयो; सूर्य वह्यो अस्ताचळ त्यां, शशीने निरखी मन मस्त थयो . ए ताप प्रताप जतां हजीये, सहभागी शशीनो दस्त रह्यो; मणि माणेक मन्दिर शून्य करी, श्री माणेकचंद्र शुं अस्त थयो ? वीर हता वीर शासनना, अति धीर गंभीर सुधीर हता; नरवीर उदार पवित्र छतां, अभिमानी न लेश लगीर हता, स्वार्थ त्यजी, परमार्थ त्यजी, निज मार्गने कोण सुवारी शके ? अहिं माणेकचंद्र जतां जिन शासन, आसन आश न धारी शके ? डुबता दुःख दुःखना आरा विषे, हती एकन आश तुं शासनने; लई पामती धर्म प्रवृत्ति टकावी, शिखावी दया जिन सज्जनने. करी कार्य अनेक प्रजा हितना, नहीं प्यारा गण्यां तन के धनने जन्म्या जगमां ते भले जन्म्या, कर्य सार्थक उन्नत जीवनने. शान्तिर्वाचन. गुमायुं श्रेष्ठ वन आजे, हमारूं रत्न रोळायुं, शशी परलोकमां राजे, सुधानुं जाम ढोळायुं; गयो नरवीर ए शूरो, दया धर्मे हतो पूरो, करी दुःख दर्दनो चुरो, जीवननुं सत्व चोळायुं ? ! यताका कीर्तिनी राजे, जगत्मां नामना गाजे, सुखेथी स्वर्गमां साजे, सुधा सर्वस्व घोळायुं; For Personal & Private Use Only Page #924 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । थयो तुं देवमां आदि, पडावी इन्द्रनी गादी, नमी तुंन धर्मनी डांडी, हशे ज्यां पुण्य तोळायुं ! निवेदक:-शोकनिमग्न सरैया (सूरत) शेठ माणेकचंदजीनो विरह. हरिगीत. गंभीर दरियामां डुबातुं व्हाण " दिगम्बर " हतुं पण दैवयोगेथी बची खडको महिं सपडायु'तुं; रस्ते च्हडावी तारवानो यत्न त्हें कीधो खरो, पण व्हाण भरदरिये मुकी तुं चतुर नाविक क्यांगयों? १ नामाक्षरो जेनी ध्वजाना नष्टप्राय थया हता, अंगो शीथील थइ अने जे भागवा मांडया हता; ऐक्य त्हें करी गगनमा सोनेरी ध्वज चोंड्यो खरो, पण व्हाण भरदरिये मुकी तुं चतुर नाविक वयां गयो? २ त्हें मुक्त करवा व्हाणने फरी डुबवाना भय थकी, कुशळ नाविको बनावा संस्था स्थापी घणी; आ कार्य कुशळता बड़े बहु त्हारो यश वाध्यो खरो, पण व्हाण भरदिये मुकी तुं चतुर नाविक क्यां गयो? ३ विकट मार्गोमां कसोटी छे खरी नाविक तणी, ते मार्गमांथी डाघ विण त्हें चालवा हिंमत धरी; छे धन्य त्हारा धैर्यने पण मार्ग पुरो ना कर्यो, तोव्हाण भर दरिये मुकी तुंचतुर नाविक क्यां गयो? ४ तुं मध्यदरिये एकलां चाल्यो गयो अमने मुकी, लाग्युं खरं ते ते कयु पण उर विषे न दया धरी; For Personal & Private Use Only Page #925 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३० ] अध्याय तेरहवां । हे तारवा त्हारी पछी कप्तान कुशळ ना मुक्यो, तो व्हाण भरदरिये मुकी तुं चतुर नाविक क्यां गयो ? ५ हे व्हाणना माणेक नाविक रत्न अरज उरे धरो, शाश्वत सुखो बहु भोगवो शान्ति सदा तुपे रहो; अम उर विषे उत्साह आदि सद्गुणो भरपुर भरो, आ व्हाण पार उतारवा अदृश्य रही स्हायी बनो. ६ Shah. P. C. शोकदर्शक संदेशो. ( रचनारः-जेठालाल भाईलाल शाह, पादरा. राग सैंदानो ) माणेक तुं स्वर्ग सिधाव्योरे! दया नहि दीलमा लाव्योरे, चौद लक्ष तारा साथीने छोडी, गयो प्रभु केरे द्वार; तथी रुवे तारा साथी सर्वे, जोई तुन गुण अपार-माणेक. १ माणेक तुं खरे माणेक हतुं, तुज वीन शून्याकार; जैन कोमे एक रत्न गुमाव्यु, तेथी थयो अंधकार-माणेक. २ एकाएक काळ बळे आवी, ऊंचकी लीधो झट वार; जुलम वर्ताव्यो जगमांही, कीधा सर्वे निराश-माणेक. ३ धर्म कार्य अने विद्या मार्गे, धन खरचे अपार; धर्म मार्गमां पाछी पानी, काढे नव तुं लगार--माणेक. ४ सगां सहोदर साथीने छोडी, गयो तुं स्वर्ग मोझार; हाय ! हाय ! थयो भूतळ विषे, देखी दीनकर अस्त-माणेक. ५ सने ओगणी चौदनी साले, जुलाई छे मास; For Personal & Private Use Only Page #926 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । तारीख सोलनी काळी रात्रे, हीरो गयो प्रभू पास - माणेक याचे जेठालाल प्रभू पासे, आप सुगति तत्काल दीर्घायुषी कर पूत्र तेनाने करवाने धर्म काज--माणेक विलाप । कुलभूषण दूषणरहित, हरन जाति संताप | दानवीर अति धीरचित, गये हाय! कित आप || छन्द राधिका ( २२ मात्रा ) कित गमन कियो हे ! जैनजाति उपकारी ! महसभा भई है आज, बिना सहकारी ॥ व्याकुल विछोहसे भये, सकल नर नारी । हग टपटप टपकत नीर, प्रकट दुख भारी ॥ २ ॥ तजि निज विलासता आप, स्वार्थ पर कीना । अरु त्याग रमासे मोह, दान बहु दीना ॥ आहार औषधी अभय, शास्त्र परचारी | अब कियो गमन कित 'दानवीर' पदधारी ॥ ३ ॥ जैन जातीसे । पुनि कीना बहु उपकार, अत्र त्याग तासुकी बांह, किस कारण से हुए देव, देव-पुर - चारी ॥ ४ ॥ जब यह अनुशासन प्रकट, हुआ सरकारी ! सम्मेद शिखर पर बनें, भवन सुखकारी ॥ वह आमिष भक्षण करें, केलि विस्तारें । तत्र होय वर्गकी नि, जीव बहु मारें ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only [ ८३१ विविध भांती ॥ छोड़ मझवारी । 5 Page #927 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय तेरहवां | यह विपत परी अति आन, धर्मपर भारी । सब रुदन करत थे जैन, अजैन दुखारी ॥ तत्र धारि हृदय सन्तोष, शान्ति विस्तारी । कर अमित परिश्रम आप, विपत निरवारी ॥ ६ ॥ ८३२ ] तुम सत् विद्या परचार हेतु श्रम कीना । " चंचल लक्ष्मीसे नेह, त्याग तुम दीना ॥ तुम धन्य धन्य नररत्न, दीन दुख हर्त्ता । निज करनी के वश सुयश, जगत विस्तर्ता ॥ ७ ॥ वह हीरासी उद्यान, लगत है सूना । हिय' आवत ताकी याद, होय दुख दूना ॥ बहु सभा सुसैटी स्यादवाद चटशाला । बिन तेरे विधवा हुई, हाय ! तव बाला ॥ ८ ॥ सदविद्या प्रेमी छात्र - वृन्द बहु तेरे ॥ होगये सकल असहाय, हाय ! बिन तेरे || इक तुम्हरे ही अवलम्ब, रही जिन जाती । अत्र तु विछोहसे रुदन करत दिन राती ॥ ९॥ " तसु डूबत दृति मंझवार, शरण तुम दीनी । अब त्याग ताससे नेह, स्वर्ग गति लीनी ॥ नहिं धारी किंचित दया, मार्ग गह लीना । हा ! शोक जलधिमें डुबो, कहां चल दीना ॥ १० ॥ इस आर्य भूमिपर उपजे, पुरुष घनेरे । पर बिरले ही नररत्न, हुए सम तेरे ॥ १ हीराबाम धर्मशाला. For Personal & Private Use Only Page #928 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ME शेठजीकी स्त्री नवीबाई वैधव्यावस्थामें और चीरंजी जीवनचंद. जैन विजय प्रेस, सूरत। For Personal & Private Use Only Page #929 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #930 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवरिका स्वर्गवास । मर जाय मनुजपर नहीं, सुयश मरता है । दिन दिन दूना निश चतुर - गुणित बढ़ता है ॥ ११ ॥ तेरे बिछोहसे हाय ! हृदय जलता है । पर काबलीपर किसका, वल चलता है । जो उपजत है जग मांहि, अवशि मरता है । हो पूर्ण आयु फिर नहीं, समय टरता है ॥ १२ ॥ वहु इन्द्र चन्द्र अवनीन्द्र, आदि पदधारी । परि गाल कालके हुए, मृत्यु- मग चारी ॥ यह है अशरण संसार, मरणकी बेरा । नहीं मेट सकत है कोई, कालका फेरा ।। १३ । गुरु साधु सिद्ध अरहंत, आदि उपकारी । हैं जिन शामनमें शरण, बाह्य विवहारी ॥ पर निश्चयनयसे शरण आप अपना है । यह जानि शोकके ताप, नहीं तपना है ॥ १४ ॥ ये शोक आताप, प्रगट दुखकारी | दुःख अति करत असाता बंध, सुगति सुख टारी ॥ इमि जान शोकका तजन, करौ सत्र भाई | नित प्रति जिनवरका भजन, करौ सुखदाई ॥ १५ ॥ [ ८३३ हे दीनबंधु सर्वज्ञ, जगत हितकारी । हों श्रेष्ठ श्रेष्ठ अवनीन्द्र विदेह मंझारी ॥ तजि सकल परिग्रह सर्व, महाव्रत धारें । घर घरम शुक्ल मुनि छपक, मोह निरवारें ॥ १६ ॥ हनि चार घातिया कर्म, धर्म विस्तारे । For Personal & Private Use Only Page #931 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय तेरहवां | पुनि गह अयोग गुनठान, कर्म बसु टारे ॥ वे केवलज्ञान उपाय, तत्त्व परकाशें | हों मुक्ति बधूके कंत भ्रमण भव नाशें ॥ १७ ॥ तसु शेष सकल परिवार, बंधु सुत नारी । लहि शोक सिंधुसे पार, धैर्य दृढ़ धारी ॥ करि करि तिनको अनुकरण, करणसे दानी | बनि बनिकें होर्वे 'मूलचन्द' सुख खानी ॥ १८ ॥ मूलचन्द बड़कुर जैन, दमोह | ८३४ ] "दिगंबर जैन" के कितनेक शोकजनक लेख । **** दिगंबरीनो दीवो बुझाई गयो ! आ परिवर्तनशील संसारमां जीवधुं अने मधुं सर्वनी साथ लागेलुं छे. जे मेरे छे ते पुनर्जन्म ले छे अने जे जन्मे छे ते निश्चय एक दिवस मरशेन, पण जे पुरुषना जन्मथी देश, धर्म, जाति अने कुलनी उन्नति थाय तेबाज पुरुषनुं जीववुं सार्थक छे अने तेन पुरुष इतिहासमा अमर नाम करी जाय छे. .... .... दिगंबरीना राजा । आ दानवीर सेठथी आखा हिंदनो एक पण जैन अजाण्यो नहि होय, केमके एमनी दानवीरता अने आखा हिंदना जैनो प्रत्येनी एकसरखी प्रिय लागणीथी शेठ माणेकचंदजीनुं नाम सर्व स्थळे घरगथुन हतुं. दिगंबरीमां एमना करतां विद्या अने समृद्धिमां For Personal & Private Use Only Page #932 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८३५ बीना घगाए पुरुषो छे, पण शेठ माणेकचंदनी स्वभाव, उदारता अने जातिभोगादिने लीधे आखा हिंदना दिगंबर जैनोना एक राजा याने वायसरॉय जेवा हता, केमके ए जे कहेता, ते सर्वे मान्य करता हता, तेम भारतवर्षीय दिगबर जैन महासभाना प्रमुख पण आ महान पुरुषन हता, तेथी दि. जैनोना राजा कहेवा ए योग्यन लागे छे. एमणे निंदगी दरम्यान दानपूण्पनां शु शु महान कार्यों करेला छे ते आ अंकमां आपेठा जीवनचरित्रमांथी वांचकोने म्ळी आवशेन, पण एटलं तो अत्रे जणवीर छिए के आ महान नरना वियोगथी दिगंबर जैन कोमे एक महान संचालक गुमाव्यो छे अने तेनी खोट कदी पण पुराई शकवानी नथी. गुजरात, मुंबाईमां दिगंबरी कोण, ए कोई जाहेरमां जाणतुं नहोतुं अने जैनो ते मात्र श्वे. जैनोन छे एम भासतुं हेतुं, पण लगभग २५ वर्ष थयां गुजरातनां अने आखा हिंइमा जे धर्मजागृति आ शेठे फेलावी छे, तेथी जैनोमां दिगंबरी नैनो पण एक मोटो विभाग छे, एवं जगनाहेर थई गयुं छे. तन, मन अने धननो भोग. कोई तनथी कार्य करे छे, कोई मनथी कार्य करे छे अने कोई धनथी कार्य करे छे पण तन, मन अने धन त्रणेने एक सरखी रीते रोकनार जो कोई वीरनर जैनोमां थयो होय तो ते आ शेठ माणेकचंदनीन हता, के जेओ दश पंदर वर्ष थयां व्यापार धंधाथी फारेग थई रात्रिदिन पोतानो समय जैन कोमनी उन्नति थाय एवा धार्मिक कार्योमांज जातिभोग आपीने रोकता हता; अने लगभग ६२ वर्षनी उमर थवा छतां एक युवान माणसनी माफक दरेक कार्य For Personal & Private Use Only Page #933 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३६ ] अध्याय तरहवां | उमंगथी करता हता. मकानो बांधवा संबंधीनी माहिती अने अनुभव एमनो एटलो विशाळ हतो के कईपण संस्था के मकान बांधवाना प्लान माटे संत्र.डो लोको एमनी सलाह लेता. ए शेठ तीर्थक्षेत्र कमीटीना महामंत्री तेम अनेक सभा, बोर्डिगो, पाठशालाओ वगेरेना प्रमुख तथा ट्रस्टी हता तेथी ते दरेक खाताने एमना अणधारेला ओचिंता स्वर्गवासी घणीज अगवडो पडशे अने ते खोट पुरावी मुश्केलज छे. महूमने कुंटुंब संबंधी अनेक आफतो स्हेवी पडी हती, छतां पण धर्मकार्यमा पाछा न हठतां वधु ने वधु धार्मिक कार्यो ठेठ सुधी करता हता. एमना भत्रिना शेठ प्रेमचंद मोतीचंद तथा भाणेज शेठ चुनीलाल झवेरचंदना अकाल वियोगथी तेमने असह्य आफत पडेली अने आबे पुरुषो एवा विरला हता के तेओ जो आजे होत, तो दानवीर शेठ माणेकचंदजीनुं दरेक कार्य हेलाईथी उपाडी लेत. आ शेठने बीजी आफत पोतानी एक मोटी भने भोळी पुत्री फूलकोर मृत्यु पामवानी अने बीजी पुत्री मगनव्हेनने २० वर्षनी मां वे प्राप्त थवानी हती, पण जेवं पुरुषोमां माणेकचंद शेठे नाम मेळ छे, तेवुन नाम हिंदुना तमाम स्त्री वर्गमां श्रीमती मगनव्हेन मेळावा भाग्यशाली थया छे, तेना प्रताप तेमना पुण्यशाळी पिताज हता. वळी आ अल्पज्ञ सेवक उपर शेठ माणेकचंदजी एक पुत्र करतां पण वधु स्नेह राखता हता अने आजे अमो समाजनी जे कई अल्प सेवा बजावी रह्या छिए, तेनुं मूळ कारण तेमज " दिगंबर जैन " पत्र शरू थवानो मूळ पायो आ शेठथीज रचायो हतो. घणां वणां स्थळोए समाओमां, मेळावा वगेरेमां अमो आ शेठ साथे जता, जेथी अमने घणुज For Personal & Private Use Only Page #934 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८३७ जाणवानुं अने जोवानुं मळयुं छे, जे पाड कदि पण विसरी जवाय तेवो नथी. विद्यादाननो महान पाट. चारे प्रकारना दानो पैकी मुख्यत्वे करीने दानवीर शेठ माणेकचंदजी विद्यादान माटेनां जे महान कार्यो करी गया छे तेनो पाठ दरेक व्यक्तिए शीखवानो छे. जे पारसी कोम आजे बेएक लाखनी संख्यामां छे ते केळवणीने लीवेज हिंदुमां अप्रगण्य गणाय गणाय छेः तेवी रीते शेठ माणेकचंदजी केळवणीना जे महान कार्योंनो आरंभ एवी युक्ति पुरःसर करी गया छे के ते जो पुरां थशे तो एक समय एवो आवशे के जैन कोम पण केळवणीनी वाचतमां अग्रगण्य गणाशे. तीर्थोनी संभाळ अने डिरेक्टरी. मम शेठ माणकचंदजीए दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्रो, सिद्धक्षेत्रो, अतिशयक्षेत्र तथा अनेक मंदिरोनी एटली बधी सारसंभाळ अने सुयवस्था जातिभोग आपीने करी छे के जे माटे जैन इतिहासमा आ वीरनरनुं नाम सोनेरी अक्षरे कोतराय रहेशेन; तेमज आखा हिंदुना दिगंबर जैनोनो अने तीर्थोनो पूर्ण इतिहास, अथाग परिश्रम अने खर्चथी तैयार करावी जे " दिगंबर जैन डिरक्टरी " आ शेठ प्रकट करावी गया छे, तेथी आखा हिंदूना दिगंबर जैनोनी माहीति सर्वेने घेर बेठां मळी शके एम छे अने ए उपकार कई जेवो तेवो नथी. हीराबाग धर्मशाळा. मुबाईमां एक सार्वजनिक महान काय जो दानवीर शेठ माणकचंदजी करी गया होय तो ते ' हीराबाग याने 'हीराचंद For Personal & Private Use Only Page #935 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३८ ] अध्याय तेरहवां । गुमानजी धर्मशाळा'ज छे, जे रुप्या सवा लाखना खरचे एवी तो उत्तम सगवड अने व्यवस्थावाळी बंधावी छे के दरेक यात्रीने तेमां घर करतां पण वधु सगवड मळे छे, तेम तेमां लेक्चर हॉल बांधेलो होवाथी व्य रूपानभूवन माटे पण आ हीराबाग जगनाहेर थई गयो छे. आखी हिंदु कोम माटेनी आ मखावत कई जेवी तेवी नथी अने तेनुं अनुकरण बीना श्रीमानोए करवानुं छे. कुल सखावत. __दानवीर शेठ माणकचंदजीए विद्यादान. आहाग्दान, अभयदान अने औषधदान माटे करेली सखावतोनो आंकडो रु. ८ थी १० लाखनो थवा जाय छे के जेवं महान गंजावर दान समग्र जैनोमां आज सुधीमां कोईए कर्यु होय, तो ते आ शेठज करी गया छे अने तेनो घडो आखी जैन कोमे लेवानो छे. लाखोपतिओ अने करोडपतिओनो जैनोमा टोटो नथी, पण आवा महान दानीओ. नोज टोटो छे, ते ज्यारे पुराय त्यारे एक समय एवो आवे के जैन कोम दुनीयाना बधा धर्मोमां सर्वोपरी गणाय. स्मारक फंडनी स्थापना. __दुनियामां ज्यारे कोई वीरनानो वियोग थाय छे त्यारे तेनुं नाम अने कीर्ति अमर राखवाने तेना नामना स्मारक फंडो थाय हे एटले के ते महान नरनी यादगीरी हमेश कायम राखवाने एक फंड ( मोटी टीप ) भराववामां आवे छे अने पछी जे रकम थाय ते स्थायी राखी तेनी उपनमाथी ते वीरनरना नामनी एक अथवा वधु संस्थाओ खोलवामां आवे छे, तेमन तेना गुणो अहर्निश याद आवे ते माटे ते पुरुषना बावलांओ स्थळे स्थळे उभा करवामां आवे Ford For Personal & Private Use Only Page #936 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८३९ छे, ते प्रमाणे दानवीर शेठ माणेकचंदजीनी यादगीरी हरहमेश कायम रहेवाने स्मारक फंड खोलवानी जरूर छे, जेथी मुंबाईमां एक स्मारक फंड खोलवामां आव्युं छे, तेम अत्रे ( सुरतमां ) पण एक " दानवीर शेठ माणेकचंद हीराचंद स्मारक फंड" खोलवामां आव्यु छे अन तमां दिनपर दिन रकमो भराती जाय छे अने आवतो जाय छे, तेथी आ फंड गंजावर थगनी आशा बंधाय छे, माटे "दिगंबर जैन," ना वहाला वांचको ! माणकचंद शेठे आपणे माटे घणुन कर्यु छ, तेनो बदलो आपवा कोई पण समर्थ नथी, छतां पण 'फुल नहि अने फूलनी पांखडी' नी उक्ति मुजब तेमण करेलां कार्योना बदला तरीके आ स्मारक फंडमां कई ने कई रकम भरीने तरतन अत्रे (मनीओर्डरथी) मोकलो, केमके " तरत दान महा कल्याण " छे अने आवा कार्यमां उघराणी ! करवानुं के उधार : राखवायूँ होयज नहि. जीवनचरित्रनी जरूर. दानवीर शेठ माणेकचंदजी त्रण वर्ष थयां अमने कहेता हता के मारूं जीवनचरित्र तमे मारी हयातीमां बहार पाडो, पण अमारे पारावार दिलगीरी सार्थ जणाव_ पडे छे के अमो ए दानवीर शेठनी आ सूचना अमलमां लावी शक्या नथी, पण हवे एमनुं गंजावर जीवनचरित्र २५ थी ५० चित्रोसहित जन्मथी स्वर्गवराम सुधीना लंबाण इतिहास साथे बहार पाडवानो प्रयास करवानो अमारो इरादो ढे अने ते फळिभूत करवा अमो भाग्यशाळी थईए एन अमारी आंतरिक इच्छा छे ! मूलचन्द किसनदास कापड़िया ( संपादक ) ( 'दिगम्बर जैन' वर्ष ७ अंक १०) For Personal & Private Use Only Page #937 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४० ] अध्याय तेरहवां । विनोद-बाण । भाईओ ! गया मासनों गंडेरीना ककडा जेवो अने वळी बेहद काळा लीटा खेचेलो “ दिगंचिंतामणी रत्न बर जैन " नो अंक जोई हुं तो आश्च यमांन गोथां खावा लाग्यो के आ वळी शी आफत ! काळा लीशोटा तो शोकदर्शक गिणाय, तो ' दिगंबर जैन • ने एवो शु जबरो शोक पडी गयो हशे के ठाम ठाम लीशोटाज लीशोटा : खेंची माछे, पण उपर लपेटेली दानना सागर माणकचंदनीनी छबो जोई बंदो व्हेमायो के आ मोटी छवी बळी शं काम ? विचार थयों के अंदर बांचं तो खरो, शी भय र खवर छे ? वांचु मार क.पळ! पहेले पानेन " दिगंरीनो दीवो बुझाई गया " झगझगता हीरातुल्य वीरपुत्र माणेकचंनुं जादुई रीते मरण! हाय ! शु ते वखतनी मारा हृदयनी स्थिति ! चोपान युं पण ह थमांथी पडी गयु. एक पछी एक अनेक तर्कवितक दोडी आवे के हाय, हाय! आ शुं स्वप्न के साची बात, पण खोटुं शुं होय ? आपणा दिगंबरीओनां नशीवन ढूंकां त्यां काळनो शुं वांक ? गयुं ! गयु ! चिन्तामणी रत्त हाथथी गयुं !!! जे नरबच्चाए पोतानी कोमने माटे दश लाख रुपिया कांकरा माफक खरची विद्यादाननो अमुल्य स्तंभ स्मारक फंड माटे रोप्यो ! ऊंबती दिगंबरी कोममां जागृति स्वार्थत्यागनी जरूर पेदा करी, असंख्य अभण बाळकोने विद्वान बनाव्या, अनेक अनहद दुःखी विधवाओने सुमार्गे लगाडी, अनेक For Personal & Private Use Only Page #938 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८४१ तीर्थोनुं रक्षण कयु, अनेक टंटा बखेडा पताव्या, ते महान् नरनो खाली अफसोस करी बेसी रहे ए शं आपणे माटे योग्य गणाय ? नहि, कदी नहिंज. त्यारे शु करवू ? स्मारक फंड खोलेलं छे तेमां नाणां मोकलवां के फंड गंजावर थाय तो तेमनी यादगीरी कायम विनोदी. ( 'दिगंबर जैन' वर्ष ७ अंक ११) हाय ! दुर्भाग्य ! न जाने जैन समाजका कैसा दुर्भाग्य है कि यह सदा किसी न किसी विपत्तिमें ही फंसी रहती है । इसके जीवनका एक एक पल शोक और दुःखमें ही वीतता है । इसके दुर्भाग्यसे प्रथम तो इसके जीर्ण रोगके दूर व रनेवाले वैद्यों का ही अभाव है, यदि दैवयोगसे मिल भी जाते हैं तो इसके तीत्र अशुभ कर्मोके उदयसे स्वयं वैद्यराज ही यम देवकी भेंट हो जाते हैं । किरने ही महापुरषोंने दृढ़ संकल्प किया कि हम इस जातिको शीघ्र दुःखावस्थासे निकालकर रोगसे मुक्त करेंगे, परंतु शोक है कि वे शीघ्र अकाल मृ युके ग्रास बन गए । अभी हम बाबू देवकुमारजी आदि महापुरुषोंका शोक न भूले थे और समाजमें उनकी त्रुटि पूरी न हुई थी कि यकायक एक दूसरी आपत्ति हम पर टूट पड़ी, जि ने सर्वत्र भारतमेंजैनसमानमें खलबली मचा दी । उत्तर से दक्षिण तक, पूर्वसे पश्चिम तक जैन संसारमें शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो श्रीमान् दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचन्द हीराचन्दजी जे. पी. बम्बई निवासीका यशस्वी नाम न जानता हो । नहीं २ जैन समाजका बच्चा २ आपके नामसे परिचित है। आपके उदारता, दयालुता For Personal & Private Use Only Page #939 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४२ ] अध्याय तेरहवां । आदि गुणोंसे सम्पूर्ण भारतभूमि गूंज रही है । शोक, महा शोक ! कि आज आपकी दिव्यमूर्ति इस संसारमें हमारे नेत्रोंसे अदृश्य हो गई !! हा ! दुष्ट काल, तुझे किंचित भी दया न आई ? क्या तुझे किंचित भी दया न आई ? क्या तुझे अपने पापी पेटकी क्षुधा मिटानेके लिए और कोई न मिला ? क्या तुझे जैन समाजको ही दुःखी करना अभीष्ट था ? निर्दई, पापी, तूने १३ लाख जैनियोंके दिलोंको दुखाकर अपने वज्र हृदयको शांत किया ! अरे दुष्ट पापी ! शेठजी जैसे सरल स्वभावी, शांतचित्त मनुष्यने तेरा क्या बिगाड़ा था ? वे स्वप्न में विचारते थे, किंतु सदा इसी चिंता में रहते थे कि समाज जिसकी बड़ी हीन अवस्था हो रही है अन्य समाजोंकी समान उच्चावस्थाको प्राप्त हो । किसीका बुरा न किसी तरह जैन उन्नति करे और उनके जीवनका एक मात्र यही उद्देश्य था । बहुत दिनोंसे व्यापारादिका काम भी छोड़ दिया था और केवल धर्मोन्नति व समाजोन्नत्तिके कार्यों में ही अपना सम्पूर्ण समय व्यय करते थे । एक प्रतिष्ठित धनाढ्य होनेपर भी आप स्वार्थी और अभिमानको तिलांजली देकर शारीरिक कष्टों को सहते हुए चहूं ओर भ्रमण करते थे और जहां जिस चीजकी कमी देखते थे तत्काल उसे दूर कर देते थे । आज समाजमें जितनी संस्थाएं हैं, जितने आंदोलन हैं, उन सबके नेता आप ही थे। ऐसा कोई भी उन्नात्तका काम समानमें नहीं हुआ, जिसमें आपने अग्र भाग न लिया हो और तन मन धन से सहायता न की हो । आपने जैन समाजका जितना उपकार किया उसके प्रकट करनेके लिए हमारी लेखनीमें सामर्थ्य नहीं । हम केवल For Personal & Private Use Only Page #940 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास | [ ८४३ इतना ही कह कर संतोष करते हैं कि वर्त्तमानमें आपके समान सज्जन, धर्मात्मा, निस्वार्थी, समाज हितैषी, परोपकारी इस समाजम न कोई था और न कोई है । आपने अपना तमाम जीवन जैन समाके हितार्थ अर्पण कर दिया था और आपके हो प्रभावसे आपका सम्पूर्ण कुल आपके समान उदार और दयालु हो गया था । आपके आश्रयसे कितने ही निर्धन धनवान हो गए और कितने ही मूर्ख विद्वान् हो गए । अतएव जैन समाजका कर्तव्य है कि आप जैसे महापुरुपका एक स्मारक चिन्ह बनावें, जिससे सदैव के लिए उनका नाम चिरस्मरणीय रहे और आपकी आपके उपकारियोंके प्रति भक्ति, प्रेम, वात्सल्य और कृतज्ञताका प्रकाश हो। हमें आशा है कि जैन समाज शीघ्र रुपया इकत्रित करके एक स्मारक चिन्ह बनायगी स्मारक क्या होना चाहिए इसका पीछेसे विचार किया जायगा । अन्तमें हम श्री सर्वज्ञ देवसे प्रार्थना करते हैं कि सेठजीकी पवित्रात्माको भव में शांति मिले और उसके द्वारा सदा जैनधर्म और जैन समाजका कल्याण होता रहे । हम स्वर्गीय सेठजीकी पत्नी, पुत्री तथा अन्य कुटुम्बीजनोंसे विनयपूर्वक निवेदन करते हैं कि इस संसारकी असारता पर विचार करके शोकको त्याग करें और धैर्य धारण करें | सेठजी के वियोगसे दुःखी - दयाचंद्र गोयलीय-लखनऊ । ( ' दिगम्बर जैन ' वर्ष ७ अंक ११ ) * * * For Personal & Private Use Only Page #941 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४४ ] अध्याय तेरहवां । अब क्या करें ? बन्धुओं ! हमारा अग्रेसर तथा जैन मात्रका सच्चा हितैषी धर्मबीर दानी जैन कुलभूषण तो लोगों से सदाके लिये मोह छोड़कर अमरपुर ( स्वर्ग ) को प्रस्थान कर गया ! चारोंओर करुणाननक ध्वनि सुननेमें आ रही है । जैनों ही के नही, किन्तु उक्त महानुभावसे परिचित स्वदेशी तथा विदेशी अजैनोंके भी चेहरेपर शोक चिन्ह दृष्टिगा होते हैं, सो क्यों ? इसका कारण यह है कि उक्त सेठजी (माणि चंद हीराचंद) ने अपने सरल स्वभाव, कार्यकुशलता मिष्टभाषण, परोपकार, दान, शील, उत्साह, उद्योग, प्रेप आदि सग्दुणों द्वारा हम सब पर ऐमा प्रभाव डाल रक्खा था, जिससे कि बार बार भुलानेपर भी वह गंभीर मूर्ति हमारे नेत्रोंसे अलग नहीं होती है। यही कारण है, कि चढू ओरसे यह ध्वनि ध्वनित हो रही है-अब क्या करें ? हाय ! अब क्या करें ? इत्यादि सो ठोक है। शोकाकुल और निराधार मनुष्योंके मुंहसे ही ऐसे ब क्य निकलते हैं । यथार्थमें जैन समाज इस समय बिलकुल ऐसी ही निराधार हो रही है। वह शोकग्रसित है। उसे इस समय और कुछ सिवाय " अब क्या करें " के नहीं दिखता है, भला, जव रामचंद्रजी, बलदाऊ जैसे महान नररत्न भी भाईके शोकसे विह्वल हुए छ:माह तक भटकते फिरे थे तो हमारे मस्तकका क्षत्र उतरे अभी ६ सप्ताह भी नहीं हुए हैं, सो भला विह्वल क्यों न होगें ? परन्तु भाइयों, यह अनादिका नियम है कि प्रायः ज्यों ज्यों दिन वीतते जाते हैं, त्यों त्यों जीव अपने विषय कषायोंमें फंसकर For Personal & Private Use Only Page #942 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ ~ दानवारका स्वगवास । [८४५ शोकसे शांति पाते जाते हैं। यहां तक कि स्त्री अपने सर्वस्व पतिको खोकर विधवावस्थामें भी ( अधिकतर ) खान पान श्रृंगार भूषणादिको नहीं त्याग सक्ती और कुछ दिन रड़ (रो) कूटकर 'हाय हाय हैई रे' के गीत गाकर फिर अपने रागमें मस्त हो जाती है। आजकल कितनो तो पतिको यहां तक भूल जाती हैं " कि वे फिरसे सुहागिन बन बैठती हैं" इसी प्रकार ज्यों ज्यों दिन बीतते जांयगे, त्यों त्यों इधर उधरकी चिंताओंमें पड़कर भाइयों, आप लोगोंको शोक तो क्या शायद सेठजीकी याद तक भी भूल जायगी। थोड़ी देरके लिये हम यह मान भी ले कि जिन्होंने सेठजी साहबको देखा है व जिनको परिचय है वे कदाचित न भी भूले तो भी उनकी भावी ( होनहार ) सन्तानको तो नाम भी सुनना एक तरह कठिनसा हो जायगा । यों तो सेठ साहेबका नाम दुनियांके इतिहासमें चिरकाल तक स्थान पावेगा, परन्तु उससे लाभ बहुत कम लोगों (खोजियों के सिवाय) को मिलेगा। ऐसी अवस्थामें हमारा क्या कर्तव्य है कि जिससे हमारे सेठीनीका नाम और उनके गुण सदा तक हमें और हमारी परम्परा सन्तानके उत्साहोंको बर्धनार्थ चिरकाल स्मरण रहे। और हम लोग उनका अनुकरण करनेके लिये उत्साहित होते रहें। यों तो सेठनी साहेबने अपनी अवस्थितिमें ही ऐसे २ स्मारक कार्य किये हैं, कि जिससे उनका नाम कल्पांत तक अमर रहेगा, तो भी हम लोगोंपर जो उनका असीम उपकार है, उसका परिचय यद्यपि हमारा आत्मा उनके आत्माके प्रति दे रहा है, किन्तु व्यवहारापेक्षा अब प्रत्यक्ष भी कुछ ( परिचय ) देना For Personal & Private Use Only Page #943 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४६ ] अध्याय तेरहवां। आवश्यक है। यह परिचय देना भी उनके लिये कुछ नहीं है, किन्तु हमारी वर्तमान व भावी जाति के लिये एक प्रधान गौरवकी बात होगी। यह बात आगे चलकर बतायगी, कि जैनियों में ऐसे आदर्श पुरुष हो गये हैं, कि जिनकी कीर्ति चिरकाल तक चल रही है, उनका इतिहास हम लोगोंके मुर्दे दिलोंमें जीवत्व शक्ति पैदा कर देगा, इसलिये माइयो, शोकको छोड़ो, अब क्या करें ? अब क्या करें ? ही मत करते रहो, किन्तु क्या करें का उत्तर भी सुनो बड़े पुरुषोंकी सन्तान अपने पूर्वजोंके मरने पर ' हाय, हाय हरे । का पाठ नहीं पढ़ती है। न क्या करें क्या करें, इत्यादि कायरों जैसे शब्द मुंहसे निकालती है, किन्तु अपने पूर्वजोंकी कीर्ति सदा स्थिर रखके उनका स्मारक ( यादगार ) बताती है । उनके उत्तम गुणों का अनुसरण करके केवल उनके कुलकी ख्याति ही नहीं फैलाती है, किन्तु अपना स्वार्थ भी साधन करती है, अर्थात् पुरुषत्व पैदा करके महत्वता प्राप्त करती है । ऐसा समझकर भाइयों ! आपका कर्तव्य है। यदि आपको सेठजीके वियोगका दुःख है, यदि आपके मनमें कुछ भी कृतज्ञताका अंश है, तो स्वर्गवासी सेठ साहबके चिरस्मरणार्थ उनका एक बड़ा भारी स्मारक बना डालो । जैसे रायचन्द्रनी आदिके नामसे " रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला " निकल रही है इत्यादि । इस स्मारक बनाने के लिये बम्बई व सूरतमें एक 'दानवीर सेठ माणिकचन्द हीराचन्द स्मारक फंड ' खोला गया है, और अनुमान ५-६ हजारके चंदा भी भरा गया है, परन्तु इतनेसे अभी कुछ कार्य न चलेगा । क्योंकि कोई For Personal & Private Use Only Page #944 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८४७ बृहत् कार्य होना चाहिये और उसके लिये लाखों रुपयोंकी आवश्यकता है, और हमारी कृतज्ञ समाज के लिये यह कुछ (चंदा करके भेजना ) कठिन कार्य नहीं है । सहज में ही हो सकता है इसलिये इस दशलक्षण ( पर्यूषण ) पर्व में प्रत्येक ग्रामके भाइयोंको स्वशक्ति अनुसार रुपया एकत्र करके संपादक, "दिगम्बर जैन " - सूरत के पते पर सेठ माणिकचन्द हीराचन्द स्मारक फंडके नामसे भेजना चाहिये और सेठ साहबके गुणों का अनुकरण करके उनके बोये हुए अंकुरोंकी सेवा करना व और भी नवीन बीज बोना चाहिये । देखें, कौन कौन सज्जन अपनी कृतज्ञता व दिली शोकका परिचय देते हैं ? बस बन्धुओं, अब क्या करें ? का उत्तर मिश्र, कि स्मारक बनावो, ( उसके लिये द्रव्य एकत्र करके भेजो ) और उनके गुणोंका अनुकरण करो, तथा सेठजी के अनुसार आप भी अपने गुणों से संसारको मोहित करके स्वर्ग मोक्षका मार्ग पकड़ो। यही करो, अब यही करो, अब यही करो । आपका कृपाभिलाषी मा० दीपचन्द परवार - नरसिंहपुर ( सी० पी० ) ( " दिगंबर जैन " वर्ष ७ अंक ११ ) * * * शोकोद्गार. आजे आपणी आसपास जे ग्लानि तथा शोकनी छाया प्रसरी रही छे ते शानी छे ? सर्व कोई आ दुनियाना दिगम्बर जैन नानाथी ते मोटा सुधी गळगळा कन्ठे वही शके छे के आ असह्य ग्लानि ते आपणा अभेद मार्ग प्रवासी, ब्रह्मनिष्ट सुरलोकमां विरहनार, तत्वविद् तथा मानवकूलमां मनुष्याकृतिथी फिरस्ताना रूपमां आवेला For Personal & Private Use Only Page #945 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४८ ] अध्याय तेरहवां । दिगम्बर कोमने आखा गुजरातमां ओळखावनार अग्रगण्य दानवीर जैनकुलभूषण श्रीमान शेठ माणेकचंद हीराचंद जे. पी. ना अवसानने लीधेन छे. अवसान समय व्यतीत थयो, तोपण ते विषेनो विचार करीए छिए, तो आपणुं हृदय एकाएक विदीर्ण थाय छे. सन्ध्याकाळ पछी रात्रि पडवाना समये ज्यारे एकाएक मेवयूथ च्हडी आववाथी तेन:पूंन नष्ट थाय छे अने बधे शून्य निरव अने शमशमाकार लागे छे, तेम आजे पण जैन को ना आगेवान श्रीना स्वर्गपन्थ तरफ रखाना थतां जे शोके आपणा हृदयने घेरी लीयो छे तेथी खरेखर आनन्द रूप तेज:पुंज आजे आपणामांथी नष्ट थयुं छे. हा! आजे ते पुण्यात्मा अने परोपकारीना गुण स्मरण थई आवतां हुं बोलवा कंइ प्रयास करूं छु के तरतन हृदय एकाएक कम्पवा लागे छे. मन जाणे के बेशुद्धिमां पडयुं न होय एम लागे छे अने कण्ठ पण बाप्प • कलुषित थई जाय छे. हा ! आ बनावे आपणा हृदयाकाशने घेरी लई जे आपणा मनना तरंगोमा विकृति उत्पन्न करी छे, ते हवे आपणा उद्गार रूपे कोना आगळ ढोळीशु? हा, प्रभो ! आ हृदय स्वार्थने लीधे एटटुं बg कठण थई गयुं छे ते फाटीने चुरा थई जतुं नथी. __अहा महात्मन् ! आखरे ए मधुर! ए दयानी खाण परोपकारी जीवडो! अनन्त विश्वनी अपरिमित लीलामां जीवननुं ट्रंकुं प्रयाण आदरी आपज्योति रूपे सूर्य लोकना पडदा भेदी परमपूराण विमुना अलौकिक धाममां विरमो छो. प्रेमाळ सात्विक तेजथी भर्या नयनो आ फानी दुनीयामांथी हमेशने माटे उडी गयां. आ विचार हृदयभेदक छे. हे कुलभूषण! आप आ स्थळनो त्याग करी दिव्य प्रदे. For Personal & Private Use Only Page #946 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८४९ शमां सीधाज्या, पण आपणी पाछळ रहेला दिगंबर जैनगणनी शी अवस्था थशे? छोडवाओनी दरकार राखनार खरो माळी चाल्यो गयो, पछीथी उद्यान शोभा केवी रीते नवपल्लव कुसुमवासित थाय ? प्रजान्तक आ दयाशीळ जैनोनो शो अपराध हतो के हें छळ कपट करी हेमना परोपकारी जीवडाने त्हारी पासे बोलावी लीधा. अरे जनापकारिन् प्रजान्तक ! खरेखर मनुष्योने फसाववाने तुं कई कई उपाय करी रह्यो छ. अरे विधि ! तुं जाणे छ के हुँ तो आ जगतमा एक जातनी क्रीडा करुं छु, पण " कागडानुं बेसबुं अने ताडनुं पडवू " ए प्रमाणे खरेखर अमारूं तो आथी विपरीत थयुं छे. अरे ! आ समये जो कोई मृत्युभूमिना माणसे आवो छळ कपट को होत तो अमे न्यायमंदिरमा जईने तेनी सामे लढत, पण हवे हे क्रूर विधि ! हारी सामे अमे कया न्यायमंदिरमां नईने दावो करीए अने त्यां अमारो पक्ष करनार कया वकील या बेरीस्टरने शोधवो ? अमारे नसीब तो हमेशने माटे रोदणां रडवानां रह्यां अने अमें ते प्रमाणे रोदणां रडीशं. __महात्मन् ! सर्व सामग्रीथी भरेला वहाणना जेवी तमारी मान. सिक समृद्धिनी स्थिति हती थी जे बंदरे आ वहाण उतरतुं त्यां यश दाखवतुं अने विनयी प्रकाशतुं. आपे आपनुं जीवन जीवनतत्त्वनो ए गंमीर अर्थ करी गाळयुं हेतुं. आपना हृदय-गिरिमांथी अनुकम्पा, स्नेह, उत्साह, प्रशभ, संवेग, आस्तिक्य अने औदार्यनां विमळ झरणां हमेशां वह्यां करतां हता. जीवननी गांभीर्यताना विचारे आपना हृदय उपर एटली ऊंडी असर करी हती के तेथी For Personal & Private Use Only Page #947 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५० ] अध्याय तेरहवां । आपे जीवनशैलनी कई दिशामां विशाळ अने रमणीय उच्च मूमिका आवी छे ते विषे सारूं संशोधन करी जीवनयात्राने ते पंथे स्वीकारीज हती. आधीन दिन प्रतिदिन उर्ध्व प्रयाण करता एमना आत्माए देहरूपी मृतपिंडनी अवगणना करी हती. प्रेन स लो तूटी गई, संसारनी स्वप्न वस्तु अदृश्य थई । परोपकारनो अखूट भंडार, दयानिधान हमेशाने माटे विलोप थयो ! हा ! अरेरे मनोहर मूर्ति....परोपकारी जीवडो अदृश्य थयो ! शु हवे ते आ स्वप्न माया तरफ प्रयाण करशे ? हे बोर्डिग वत्सल ! शु हारी ऊं। माश'ओ फलिभून करशे ? रे कोन्फरन्म! शुं त्हारो नेता फरीथी रहने बोलाववाने मोटा सादे हांक मारशे ? ना, ना. अपत्यना तिमिरो भेद्या, सत्यना द्वारे पेठा अने स र्गी सुखो अनुभववा लाग्या. संसारने तुच्छ गण्यो, मायाथी अळगा थया अने अमरत्वमा एकाकार थई गया. काष्ठनी चीता प्रदिप्त करी अने काष्ठात् शरीरने अग्निनाळमां प्रवेश कराव्यो। पंचतत्वो पंचमहाभूतमां मळी गया अने स्थुल मूर्ति सर्वने माटे अदृश्य थई. आहाहा ! सवनो संबंध तूट्यो, सरिताना निर्मळ जळमां स्नान करी प्रेनो प्रभाव, परोपकारनो अखूट भंडार हमेशने माटे तस्तो मूक्यो अने ते अंतिम मूर्तिने छेल्ला नमस्कार करी दुनियानां स्वकार्यमां लक्ष आप्यु. हे विभो! अमारा आ परोपकारी जीवडाने अने सर्वे मित्रोना आत्माने शान्ति आपी सुखमय कोषमा प्रवेश कराव अने स्वप्नवत् दुनियामां विखुटा पडेला आत्माओने आश्वासन आप. For Personal & Private Use Only Page #948 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८५१ हे प्रभो ! जे अनुपम गुणनिधान पवित्र आत्माना प्रकाशयी दिगंबर जैन कोम झडळी रही ते अत्यारे अमारा हत्भाग्यने लीधे सदाने माटे चाया गया छे अन्तिममां हे प्रभु ! अमारी एटली विज्ञापना छे के ते पुण्यात्माने हमेशां शान्ति आपो. मनसुख कालीदास - बोरसद. ( दिगंबर जैन वर्ष ७ अंक ११ ) X X X कर्मवीर माणेकचंद | चलं वित्तं चलं चित्तं चले जीवित यौवने || चलाचलमिदं सर्वं कीर्तिर्यस्य स जीवति ॥ भावार्थ- -धन मंत्रळ छे, चित्त चंचळ छे, जीवित चंचळ छे, यौवन चंचळ छे, अने बधुं चळाचळ छे, तेथी जेनी सारी कीर्ति छे ते पुरुषन जीवे छे. X प्रिय वांचक ! सूर्य उगे छे अने आयमे छे, नदीमां पूर आवे छे अने जाय छे, श्रावण मासे वरसादना झपाटा पडे छे अने घडीमां तरोधान थई जाय छे, बीज चमकारा करी आपणा चक्षुओने आश्चर्यमा गरकाव करी छेतरी अदृश्य थई जाय छे, वडानी रेटमाळ फरी फरीने पाछी त्यांनी त्यांन आवे छे तेमज पाणीना परपोटा जेबो बनेलो आ नाशवंत देहधारी मनुष्य जन्मे छे अने मरे छे, त्यारे आषा अनियमित जातनां कार्यो माटे मनुष्ये शोक अने हर्प शापाटे धारण करवो जोईए ? खरेखर ! जे सूर्य सदैव पोतानां किरणोद्वारा प्रकाश आपी आपणने तेजोमय बनावी रह्यो होय, जे नदी निश्चितपणे म्होटुं पेट For Personal & Private Use Only Page #949 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ८५२ ] अध्याय तेरहवां । राखी आवता पुग्ने शान्ति आपी रही होय अथवा तृषातुर दुःखी पुरुषने रहेनी तृषाने शान्त करी आश्वासन आपती होय, जे वरमाद धीमे धीमे वर्षी जमीनमां पाणी पचावी कृषिकारोनां मन रंजन करतो होय, जेने वीजने आकर्षी पोताने स्वाधीन बनावी जगत्नी विशाळ दृष्टि समक्ष मूकी होय, जे जीवात्मा पोताना जीवनने अल्प गणी पोताना सहचारी बन्धुओ माटे, पोतानां प्रान्तनां बाळको माटे के तेओनी दशा शोकजनक देखी तेओने उगारवा माटे के दुनियानी हरिफाईमां आगळ वधारवा माटे जेने अनेक संस्थाओ खोलवा खोलाववा अनहद परिश्रम लीधो होय, एवा सूर्य जेवा प्रकाशमान, सरिता जेवो समभाव राखनारा, आस्ते आस्ते दरेक कार्यो उत्साहपूर्वक करी बतावनारा, जेने विजळीक बळ आणी आपणने न जीवन प्राप्त कराव्युं होय, जे मनुष्ये पोतानुं जीवन समाजना उत्कर्ष माटेज अर्पण वर्यु होय, जेओए आपणे माटे लक्ष्मीनो भोग आपी अगणित प्रयासो आदर्या होय, तेमज आलोक अने परलोक बन्ने ने सुधारनार जे सरस्वती, तेनो जेणे उद्धार कर्यो होय, तेमना गुणानु वाद देशदेश गवाय, तेओने माटे तेमनो समाज, आबालवृद्ध शोका ग्रस्त, निस्तेज अने विदीर्ण थयेलो दृष्टिगोचर थाय, तेमज तेओने माटे पवित्र प्रेमीओ अनेक राग रागणीमां गुणानुवादोनां ब्युगलो फूके, पत्रकारो शोक प्रदर्शित करवा पोताना हृदय घटरूपी पत्रोपर विरह भावनाओ रूपी काळी बोर्डरनी मर्यादा बांधी हृदयाकर्षक लखाणो लखी कोल्मो भरे एटलुंज नहि, पण तेओनी छबी प्रेमी हृदयोमा कोतराई रहे मां शुं आश्चर्य ? वदनं प्रसादसदनं सदयं हृदयं सुधामुचो वाचः करणं परोपकारणं येषां केषां न ते वन्द्यः For Personal & Private Use Only Page #950 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास। [८५३ भावार्थ--जेओर्नु मुख प्रपन्नतानुन घर छे, जेओर्नु हृदय दयावंत छे, जेओनी वाणी अमृतने वरसावनारी छे अने जेओनुं परोपकार ( पारकाने माटे उपकार करवो ) एन कर्तव्य छे, तेवा पुरुषा कोने वंदन करवा योग्य नथी ? ज्यारे एम छे त्यारे तेवा सर्व सद्गुणभूषितने नेताओनो समागम दूर थां कयो सत्य धर्मानुरागी तेमना गुणानुवाद गावानी इच्छा नहि करे ? कयो कठोर हृदगनो पुरुष तेओना स्मारकमां नाणां भरवा इच्छा नहि करशे ? अलबत करशेन ! विशुद्ध प्रेमीओ! आवा एक कर्मवीर समाजनेता, हिंदुस्तानना एक सुप्रसिद्ध, श्रीमान, उदारचित्त धर्मात्मा अने दानवीर, बोर्डिग हाउस अने शिक्षण संस्थाओना पिता, दिगंबर जैन समुहना एक जळळता कोहिनुर, तेमन समग्र जैन संवना स्तंभरूप गणाता अने उत्साही अग्रेसर जैनकुलभूषण दानवीर सेठ माणेकचंद हीराचंद जे. पी. ना अचानक स्वर्गवासथी कदिपण न पूराय एवी जे भारे खोट आपणने पडी छे ते माटे आ लेखनी, आ हृदयनी अवस्थाओ प्रगट करवा असमर्थ छे, तेनुं व्यान म्हारे कया शब्दोमां करवं ! अरे ! हाय ! माणेक मोत लखतां, दर्द दिलमां थाय छे; लखतां अचानक मोतने, मुज कलम भ्रूजी जाय छे. हे गुणियल समाज ! एक वखत आपणे धर्मानुराग छोडी मिथ्यात्वना खाडामां पड्या हता, एक वखत आपणा पुत्रोने केवी केळवणी आपवी तेनी आपणने खबर पण नहोती अथवा केलवणी एटले शुं तेथी पण आपणे अज्ञान हता, एक वखत आपणी बाळाओने केवी केलवणी आपवी के जेथी खरी साध्वी, सन्नारी के गृहि For Personal & Private Use Only Page #951 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५४ ] अध्याय तेरहवां । णीओ उद्भवी शके विगेरे अनेकानेक बाबतोथी आपणने वाकेफ करनार जो कोई होय तो एक श्रीयुत् माणेकचंदन हता. तेओना अने तेमना कुटुंबीओना भेगा बळथी परन्तु वीरनर माणेव चंदना उपदेशामृतथी आपणा अंगणा पासे (गुजरातमां) अने एओश्रीनु अनुकरण करी आजे आणी समाजमां लाखोना दान थवा मांडयां छे, तेमज घणे भागे एमनाज प्रयासथी समस्त भारतमा दिगंबर संप्रदायमां बोर्डिगो, श्राविकाश्रमो, पाठशाळाओ, कन्याशाळ ओ, पुस्तकालयो, ओषधालयो विगेरे संस्थाओ पुर जाहोजलालीमा चालती द्रष्टिगोचर थाय छे. तमन आपणा गुजरातमा एमणेन स्थापेली बोर्डिंगमाथी बी. ए. सुधीनी उच्च डिग्री संपादन करी वेटलांक रत्नो बहार पड्या छे अने केटलाको एवी डिग्रीओ मेळववा भ ग्यशाळी थशे ए संशय छेज नहि, परन्तु दिलगीरी माथे म्हारे हेवू पडे छे के ए बी. ए.नी डिग्री संपादन करनाराओ जाणे बी. ए. ना अभ्यासमां बीधा होय तेम अथवा तो बी. ए. नो अभ्यास करता मगज कंटाळी गया होय अथवा पहोंचेला श्रमथी शान्ति लेता होय तेम गुजरातमां एक पण व्यक्ति अग्रगण्य भाग लेवा अथवा समाज हितार्थ आ पत्र द्वारा बे शब्द लखवा उत्सुक थई नथी, ए केटलु शोचनीय छे ? आपणापर अगणित उपकारोमांथी ए नररत्नना एक महद उपकारनो उल्लेख करूं तो ते अस्थाने नहि गणाय. गुजरातना मशहुर शहेर सुरतना वत्नी रा. केशवलाल डाह्याभाई कोलेजमां अभ्यास करवा मुंबाई गया हता, ते वखते त्यां गोकलदास तेजपाळनी एक हिन्दु बोर्डिग हयात हती, ते बोर्डिंगनां कार्यवाहकोए जैन जाणीने रा. केशवलालने रहेवा देवा ना पाडी हती For Personal & Private Use Only Page #952 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANA दानवीरका स्वर्गवास। [८५५ त्यारे निराश, लाचार अने उदासिन च्हेरे रा. केशवलाल धर्मप्रेमी शेट माणेकचंद पासे गया अने बोर्डिंगमा जे बीना बनी हती ते सर्व विदित करी. सांभळतां श्रीमान् सेठ माणेकचंदन हृद। अत्यंत शोकनिमग्न थयु, परन्तु जैनधर्मना महान उसके, स्वधर्मी युकोनी आवी आपत्ति दूर करवा, ए उद्देशने हृदयस्थ करी विद्या विवासी माणेकचंदे तत्काळ मुंबाईमां बोडिंग खोली हती. प्रिय गुर्जरीना वीर तन्यो ! शं आरणा पर आ जेवो तेवो उपकार ? वीरना ए वीर पुत्रे आपणा माटे सर्वस्व मेळवी अप्युं छे, परन्तु तेनो उपभोग करी वीतरागी महावीर पितानी काति-धर्मध्वजा पृथ्वी तलपर फेलावी एज कर्तव्य छे. .... .... .... .... जे गुजरातीओ अने दिगंबर संप्रदाय जेमो के एक वखत हस्तीमांन नहोतो, जे गुजरातीओने घे घेर शास्त्र शुं छे, मैनधर्मना व्रत नियमो केवां छे, जैनधर्ममा आहारविहार केवां छे तेनुं शिक्षण आफ्नार, जे जैन देहेरासरोमां के भंडारोमा उध ना भोग थयेला शास्त्रो, तेनो उद्धार करी आधुनिक पद्धति पुर:पर लखावी, छपावी आपणी समक्ष मुकनार, जे शस्त्रोना अध्ययनथी थई गयेला पवित्र मुनिगणोना सत्य शब्दनुं पान करी भावी सुधाग्वा उत्सुक बन्या छिए, विशेषमा जेने प्रतापे आपणे केलवणी पाम्या छिर, आपणने तेमन आपणा दिगंबर संप्रदायने दुनियामां ओळवाव्यो छे, तेमन आपणा दिगंबर जैनो माटे अनेक विद्यालयो उभा को छे, कगव्यां छे अने तेथीन आजे जैनोना त्रण फिरकामा दिगंबर संप्रदायने मुख्य नंबरे मुकवा भाग्यशाळी थया छिए, एवा श्रेष्ठ पुरुषने माटे पोतानी समाज जे को ते थोडंन छे. हे महावीर प्रभो ! ए पवित्र मुनिगणोना मुकनार, जे मानक पद्धति पुर.. For Personal & Private Use Only Page #953 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय तेरहवां । आत्माने अहोनिश शान्ति बक्ष एटली हमारी अनन्य भावे प्रार्थना छे, तेमन आपणे "गोल्डस्मिथ " ना शब्दोमां कहीशु केम्हारी रमतगमतना मित्र, पुराण शी प्रोत, सदा सुखी रहेजे: तुज घरनी चोकी प्रतिपाळ करो, स्थळी देव जे जे ते. ॐ शांतिः शांतिः शांतिः लघभ्राता-सरैया, सुरत. ('दिगंबरजैन' वर्ष ७, अंक ११) ___ अनुकरणीय पुरुषतुं अवसान. प्रिय जैन बंधुओ, महात्मा कबीग्नुं वाक्य छे के" जब तुम आये जगतमें, सब से तुम रोयः ऐसी करणी कर चलो, तुम हसे सब रोय." __ अर्थ-हे पुरुष ! ज्यारे तारो जन्म आ दुनियामां थयो हतो, ते वखते तु तो रोतो हतो, पण तारा मातापिता तथा अन्य सगांसंबंधी तारा जन्म (पुत्रप्राप्ति) ना समाचार जाणीने हस्तां हता; हवे तुं एवी करणी करीने दुनियामांथी जजे के जेथी मरते समये तुं हसे ने तारा मरणथी अन्य मघळा रडे. भावार्थ-ए छे के ज्यारे मनुष्य सुकृत करीने आ दुनियामांथी जाय छे, त्यारे तेने एमन लागे छे के आ दुनियामां आवीने में तो मारुं कर्तव्य बजाव्युं छे, पण तेवा माणसना वियोगथी सबळा आप्तजनो रुदन करे छे. . आजे आपणे तेवा एक नररत्नने आ संसारमांथी विदाय थई गएल जोईए छिए. दिगंबर जैन समाजमां एवा भाग्येन कोई माणस (al. For Personal & Private Use Only Page #954 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८५७ हशे के जे दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणेकचंदनी जे० पी० ना नामथी अपरिचित हशे. ता. १९ मी जुलाईनो दिवस दिगंबर जैन समाजने माटे वणोज कमनसीब लेखाशे के जे दिवसे उपरोक्त सेठ साहेब तेमना कुटुंबीओ तथा अन्य आप्तजनोने बरके आग्वा दिगंबर जैनप्तमाजने शोकमागरमां छोडी हरहमेशने माटे आ दुनि मांथी चाली गया छे. जे महान पुरुषे निद्रामां पडेली जैन समानने जगावी पोताना कर्तव्यनुं भान कराव्यु छे एटलंन नहीं पण खुद पाते तन, मन अने धनथी भगीरथ प्रयत्न आदरी ठाम ठाम सभा, सोसायटीओ, शालाओ, बार्डिगो-कूलो स्थापी छे, आवा एक महान नरने लई लेवामां देवने पण केम दया नहीं आवी ? अत्यारे तेना विना सारी समाज सुनी पड छे. सामानिक नावने भरदरिये छ'डी सुकानी अन्तर्गत थयो छे. हवे सदरहु नावने कयो वीरपुरुष (सुकानी) कये किनारे लईने छोडशे, तेन जोवान रा छे.. वांचको, म बधान छे, मरण कोईने छोडनार नथी, पण जन्मबुं अने पर तेनुंन सार्थक छे के जेणे पोतानुं जीवन परोपकार अर्थे खयुं छे; तेवा माणसो मरवा छतां पण तेमनी कीर्ति तो अचकन रहे छे. शेठ माणेकचंदजी आज आ दुनियामां नथी, पण तेमणे जे कृत्य कर्या छे, तेथी तेमनुं नाम हरहमेंशने माटे अमरन रहेवार्नु. दिगम्बर जैन समाजनी अवनत दशा थवानुं मूळ कारण जे अविद्या हती तेने दूर करवाने माटे शेठ साहेबे जे जे स्तुत्य पगलां भर्या छे ने विद्या प्राप्त करवाने माटे जे जे साधनो तेमणे पुरां For Personal & Private Use Only Page #955 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५८ ] अध्याय तेरहवां । पाड्यां छे, ते सर्वने जाहेरन छे. आनथी वीस वर्षपर गुजरातमां अंग्रेजी भणनार विद्यार्थीओने केटलं खर्च करवू पडतुं, तेम अमदावाद तथा मुंबाई शहे मां के ज्यां खावानुं मळे पण रहेवार्नु न मळे तेवे स्थाने रहेवामां के टली अगवडो वेठवी पडती तेनो अनुभव जेने ते अत्यारे शेठ साहबनो अन्तःकरणपूर्वक आभार माने छे. पैसा कमावा तो सौ कोई जाणे छे, पण तेने साइरस्ते लगावी जाणनार थोडान छे. पोतानी नामनाने खातर पैसा खर्चनारनी जैन समाजमां खोट नथी, पण जमानाने अनुरी कये रस्ते पैमा खर्चानी जरूर छे ते समजनार तो शेठ माणे चंदनान प्रथम हता. कोई पोताना कुटुम्बनाज श्रेयने खातर, तो कोई पोतानी ज्ञातिना हित खातर, तो कोई पोताना गामनी भलाइन वास्ते, तो कोई खास पोनाना प्रांतमा रहेनारा भाईओना भलाने खा.र नाणां खर्चे छे, पण सदरहू शेठ साहेबे ज्ञाति के कुळनः भेर राख्या सिवाय जैन समाजने वसुधैव कुटुंबकम् गणीने गराच विद्यर्थीओने जे म्हाय करी छे ते बदल जैनसमान शेठ माहेनो जेटलो आभार माने तेटलो आछो छे; आवा एक परोपकारी नरना मरणन लीधे शु गुजरात, शुं पंजाब, शुं दक्षिण अने शुं हिंदुस्थान सारा भारतवर्षना जैन समाजे एके अवाजे दिलगिरी जाहेर करी छे. शेठ माणेकचन्दनीने महात्मानी उपमा आपवामां जरा पण अतिशयोक्ति नथी; कोईपग दृष्टिथी तपासतां मालुम पडशे के एक मित्र तरीके, समाज तथा तीर्थना उद्धारक तरीके, गुरु तरीके,. निराभिमानी पुरुष तरीके, पैसानो सद्व्यय करनार तरीके तथा सलाहकारक तरीकेना हरेक गुण तेओनामां हता; आटला गुणो एकी. For Personal & Private Use Only Page #956 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८५९ वखते एक पुरुषमा होय एवो नर दिगम्बर जैन समाजमां तो हाल छेज नहीं अने भविष्यमां कोई विरलज पेदा थशे. जे जे माणसो शेठ साहेबना समागममां आव्या हशे तेमने मालूमज हशे के तेओ केवा सादा मिजाजना तेम निरभिमानी पुरुष हता; चाहे गरीब, चाहे अमीर, चाहे छोटो, चाहे बडो कोई माणस तेमनी पासे जतो तो तेओनी साथे ते घणी छुटथी वात करता हता; गरीब आदमीओने धन्धे वळगाडवानी सलाह आपबामां तथा विद्यार्थीओनो उाह वधारवामां ते एकाज हता. कहेवू अने करवू ए बेमां घणो तफावत छे. भूल काढवी सहेन छे. 'परोपदेशे पांडित्र म्' दर्शावनारा तो घणा मळी आवशे, पण पं ते क्हेवा मुजव वरी बतावनारा तो घणा थोडज शे. तीर्थो उपर जैन समाजना हमारो रुपिया हरसाल जाय छे तनो गेरव्यय थतो देखी तथा तीर्थंना हकोने नुकसान तुं देखी शेटजीना दिलमा जे लागणी उदभवेली तेना परीणामे तीर्थक्षेत्र कमीटीनी स्थापना करावी तीर्थनी उन्नति माटे शेठ साहेवे जे जे करज अदा करी छे ते आबालवृद्ध जैनथी अजाण्यु नी अने तेनेन परिणामे आजे शेठ साहेनुं नाम घर घर जाणं तुं थयुं छे. शीखरजीनो पहाड अपवित्र थतो अटकावामां, गोमदृस्वामी, गिरनार, पालीताणा, गजपंथा, तारंगा तथा घणां तीर्थोनो वहीवट सुधारी तेने उन्नत दशाए पहोंचाडवामां कोईए पहेल करी होय तो ते ए शेठ साहेबज छे, अने तीर्थाना उत्तम नमुना रूपे जे लोको शीखरजी तथा पालीताणा विगेरे स्थळे गया हशे ते लोकोए जोयुं हशे के वीस वर्ष पहेलानां ने हालना वहिवट For Personal & Private Use Only Page #957 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६०] अध्याय तेरहवां । मां केटलो तफावत छे. यात्रीओने आराम पहोंचाडा केटली तनवीजो करवामां आवे छे ? पैसानो केवी रीते उपयोग करवामां आवे छे तथा ते तीर्थोना हिमाव जे आन लगी अन्धारामा रहेला ते प्रगट करी तीर्थनी हालतथी समाजने केवी वाकेफ करी छे ? लांबा टीलां टपकां करीने हाथमां माळा झालबाथीज भगतनी व्याख्यानी समाप्ति थती नथी, तेम हाथमां माळाने पेटमां लाळा, समाजने अवनत दशाये पहोंचती जोईने जेने जरा पण दया आवती नी एवा माणसो खरा भगत नहीं मण बगभगतोज छे. खरो भक्त तो तेना कृत्य परथीन जगई आवे छे. पुण्य शु चीन छे तथा शु कार्य करे पूण्यत्री प्राप्ति थाय छे, ते शेठजीना तीर्थ सम्बन्धीना कार्यथीज जणाई आवे छे; हजारो माणस तरफथी भली बुरी सुणीने पण काम कीनो कंईपण बदलो मेळावानी आशा विना निस्वार्थपणे पोताना कर्तगमां मरता सुधी दत्तचित्त म्हेनार पुरुषने महात्मा नहीं तो बीजो शु कहेगय ? धन्य छे तेवा पुरुषने अने धन्य छे तेनी जननीने के जेणे आवा महात्माने पोतानी कुग्वे अवतार आप्यो. कां छे के " जननी जणजो भक्त जन, कां दाता कां शुर; नहीं तो रहेजे वांझणी, न गमावीश फोकट नूर' महाशयो, आ एक महात्मानु मण सांभळीने एवो कोण कठिन हृदयनो पुरुष हशे के जेनुं हृदय पीगळ्या विना रहेशे । निद्रामां पडेली तथा कर्त्तव्यन भान मूलेली समाजने जगाडवी ए वीर पुरुष सिवाय बीजो कोण करी शके ? तीर्थ प्रत्येनी खरी भक्ति ने समाजना दुःखे दुःखी ते एक भक्त नहीं तो बीजो शुं कहेवाय ? For Personal & Private Use Only Page #958 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८६१ स्वार्थन अंगे तो सघळी दुनिया काम करे छे, पण निःस्वार्थ-- पणे अने ते पण बीजाना श्रेयने माटे महेनत करनारज महात्मा गणाय छे. एवी कोण सभा ने सोसायटी, कमीटी के मिटींग हती के जेमां शेठ माणकचंदनीए हाजरी नहीं आपी होय. जिंदगीनो घणो भाग जेणे परोपकार अर्थेन गाळ्यो हतो एवा महात्माने तो हालनी प्रनाए जाते निहाळ्यो छे, अने तेवो एक नर पोतानी कोममा होवानुं जे अभिमान आपणने हतुं ते महात्मानुं नाम भविष्यनी प्रजा पण याद करे तने माटे एक स्मारक फंड उभं करी हरेक आदमी पोतानी शक्ति तथा भाव मुजब ते फंडमां पैसा भरी पोताना उपर करेला उपकारनो बदलो फुल नहीं अने फुलनी पांखडी रूपे वाळशे एम लेखक इच्छे छ. आधुं फंड सुरतमा खोलायलुं छे अने तेमां रु. २५) मोकली आपुं हुं अने एन मुजब बीजा वांचकोने ए फंडमां रफमो मोकलवाने आग्रह करूं छु. आवी रीते उपकारी पुरुपनो यत् किंचित बदलो वाळवामां ज्यारे जैनसमाज पाछी पानी करशे तो एमन समजवु के समाज स्वार्थनीन सगी छे, तेम तेनी दशा सुधरवानी हजु घणीवार छे. आवा स्मारक फंडमां पण अगर कोईनुं श्रेय होय तो ते पण समाजनुंज न के मरनारन. फक्त शेठजीनी यादगारी रूपमांन आ पोतानाज फायदाने माटे करवानुं छे. आवा स्मारक फंडमांथी विद्यादान तथा विद्यावृद्धि के जे मरनारनो मूळ मंत्र हतो, तेने सारु कोई संस्था स्थापी अगर जे छे. तेमांथी लायक गणी तेने उन्नत दशाए पहोंचाडवामां आवशे, तो मरनारनो आत्मा स्वर्गमां रो रह्ये पण संतोष पामशे के तेना चाहनाराओए तेना उद्देशनी पुष्टि करी छे. For Personal & Private Use Only Page #959 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६२] अध्याय तरहवां । प्रिय वांचको, शेठ माणेकचंदजी एक ख गी गृहस्थ तरीके, कुटुंब वत्सल पिता तरीके. जाहेग्मां समान उद्धारक तरिके, सर्वना उद्धारक तरीके, उदार सुजन तरीके, क्षमा, निामिपान ने चारिबनी मूर्ति तरीके पोतानुं जीवन सुगसमय, आनंदमय, दृष्टान्तमय करी गया छे. सुम्वनिद्रामा शान्त हृदये कांईपण मंदवाड वेठ्या सिवाय एमनो आत्मा निज स्वरूपमा ममाई गयो, एन बतावी आपे छे के " आनुं नाम ते मरण. " एमना जवाथी एमना नामथी जाणनार एवा प्रत्येक जने कांई ने कांई खोयुं छे. कुटुंबीओए अनुकरणीय महात्म्य दृष्टिगंथी जतुं जोयु छे, मित्रोए हृदयनो विश्राम खोयो छे, लोकोए चारित्रनो नमुनो खोयो छे, प्रिय वांचक, मरनारना चारित्र परथी तने ग्रहण करवा योग्य काइपण शिक्षण मळ्यु होय अने ते प्रमाणे चाली समाननी सेवा करवामां तुं शक्त्यनुसार बहु नहीं तो थोडो पण भाग लेशे, तो सदरहु लेखनी सार्थकता गणाशे. __ शेठजीना मरणथी जे शोक थाय छे ते करतां तेमनी जग्या पुरनार कोई पुरुष नजरे नहीं आववाथी विशेष शोक थाय छे. इश्वर तेमना आत्माने शांति आपो अने तेमना कुटुंबमां तेमनाथी पण विशेष उज्वल कीर्ति प्राप्त करनार पुरुष पेदा थाओ, एन हृदयनी प्रार्थना छे. शांति ! शांति ! ! शांति ! ! ! डाह्याभाई शीवलाल शाह, गिरिडी. ('दिगंबर जैन’ वर्ष ७ अंक ११) हझारो बाळकोना पिता। अन्य कोमोना मुकाबले आ हरीफाईनां युगमां जैन कोम वणी For Personal & Private Use Only Page #960 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८६३ पाछळ छे. आ कोमनी उन्नति माटे तेर लाख जैनोमांथी मात्र एक बे सुशक्तिमपन्न नरवरो सुमार्गे तन मन धनथी कोमनी सेवा स्वीकारी कर्त क्षेत्रमा मान-अपमाननी दरकार विना कार्य करवा मंडी पड्या छे जे जैन समाननी भविष्योन्नतिनी आशानां चिन्हो बतावे छे. जे जैन कोमने जमानाने अनुसरती उन्नतिना मध्य मार्गे लावी जैन कोमनो तन मन धनथी सेवा करनारो, हृदयथी जैन कोमनी उन्नति इच्छनारो अने ते मार्ग भगीरथ प्रयास करनारो सुलेहनो अमलदार दानवीर जैनकुलभूषण श्रीमान् शेठ माणेकचंद हीराचद झवेरीना पवित्र शरीरने गई ता. १६मी जुलाईए क्रूर काळ-हजारो विद्यार्थीना भविष्यना कल्याणनी दरकार कर्या विना-कोळी ओ करी गयो छे, ए परोपकारी शरीर आ पृथ्वी तलपरथी अदृश्य थथु छे, एवा हृदयवेधक अमंगळपय अशुभ समाचार "दिगंबर जैन" मांथी बांची आ हृदयने अकथ्य अनुग्म दिलगीरी सर्व कोई कबुल करशे के-दरेक समान, ज्ञाति, कोम अने देशनी भविष्यनी उन्नतिनो आधार उक्त श्रेणीना बाळको-विद्यार्थीओपर अवलंबी रहेलो छे. बाळको किंवा विद्यार्थीओने वेलवायेल अने खरा मनुष्यो बनाववाने जैन कोममां बोर्डिंग हाउसो स्थापवानो प्रारंभ करनार नरवर शुं आ पृथ्वी तलपरथी चाल्यो गयो छे ? अरे कुदरती कर कायदा! तारा! हृदयमांथी अनुकंपा-दयानुं बळ नष्ट थयुं छे ? सर्वने अनाण्या मनुष्य होय, तोपण-निर्दोष जीवन गाळनारा बाळको For Personal & Private Use Only Page #961 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६४ ] अध्याय तेरहवां । प्रति प्रेम उद्भवे छे. अरे! कुदरती क्रूर कायदा ! नारा हृदयमांथी प्रेमनुं नाम निशान पण अदृश्य थई गयु छे के शु? जो तारामां प्रेमनी ज्योत होय, तुं दयानुं नाम जाणतो होय ता उ.मारा रंक विद्यार्थीओन छत्र-रत्न हरी लेवाने अयोग्य वर्तन चलावो शके नहि.. गृहमां शिक्षण मेळवनाराओ करतां बोर्डिंगमा रही शिक्षण मेळवनाराओवें वर्तन ऊंच बने छे, मगन उच्च संस्कारी बने छे, अने तेवा मनुष्या पोते सुधरी पोताना कुटुम्बने-ज्ञातिने अने देशने सुधारी शके छे. एवा बोर्डिंग हाउसो आ नरवरे मुंबाई, अमदावाद, कोल्हापुर, रतलाम विगेरे स्थळे पोताना खर्चथी स्थापित के छे. बीना स्थ-- पायला अने स्थाता बोर्डिंग हाउसोमां पण तेमनो फाळो प्रथम जडी आवशे. सनाथ अने अनाथ श्राविकाओना हितन थे मुंबडमां स्थपायेल श्राविकाश्रम तेमना कर्तव्यपरायणी, तेमन सुमार्गना अनुकरणीय विदुषी महिलारत्न बहेन मगनव्हेनना श्रय ळे चाले छे. केटलीक पाठशाळाओ, संस्कृत शाळाओ ने कन्याशाळ ओ तेमना पोताना खर्चथी के मुख्य फाळाथी चाले छे, ते उपरांत मुंबाई सुरत-अमदावाद अने बीजे अन्य स्थळे जैन बंधुओना सगवड अर्थे धर्मशाळाओ घणान साधन साथे स्थापी छे. आ बघां खातांओ स्थापी पोताना प्रवृत्तिमय धंधा चलाववानी साथे प्रांतिक कोन्करन्सनी उत्तमोत्तम व्यवस्था राखवा साथे तेनापर घणीन बारीक देखरेख जोई कोई अवलोकनकार आश्चर्यमां लीन थया विना रहेन नहि, जेनो एक नमुनो-हुँ गई सालमा विद्याभ्यास माटे मुंबाई गयो हतो त्यारे सुरतथी रवाना थती वखते लाखोने खर्चे सर्वे लोकोने उपयोगी हीराबाग धर्मशाळा माटे वपराय छे, त्यां उतरवाना प्रोग्राम For Personal & Private Use Only Only Page #962 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास। [८६५ साथे रवाना थयो हतो, पण कोई कारणथी (के जे जाहेरमां न मुकी शकाय) मेनेजरे उतारो आपवा आनाकानी करी हती. आनुं खुल्लु कारण "दिगंबर जैन " पत्रना अधिपति श्रीयुत मुलचंदभाईने नणावता अने ते श्रीमान् शेठ साहेबना जाणवामां आवतां मने बोलावी तेमणे करेली तपास तेमनी एक स्थानकवासी जैन फिरकाना विद्यार्थी तरफनी सहानुभूति, प्रेम, बर्तन अने वार्तालापना समयनो विचार करतां आ वखते ते परोपकारी शेठनी मूर्ति म्हारा हृदय समक्ष खडा थाय छे. ते समयने आजे याद करतां, तेमनी अनुकरणीय प्रवृत्ति गाद करता थोडाक श्रु विंदुओ मुबा सिवाय हृदयतुं यथेच्छ शान्नयन थई शकतुं नथी. तेमन सहवासमां आपलां बळी किंवा वृद्धोने तेमना उच्च रिस, ते नी मा लु दृत्ति-निर. भिमानी म वादिमांथी ईक ने कंईक वू शी व नुं मळी आवतुं. .. तेओश्री माधग्ण स्थितिमाथी लक्षाधिपति बन्या हता. नामदार सरकारे तेनने जटश ओफ धी पीस बनावी तेम्नी कीर्ति वधारो को हतो छतां तेओ वतनमा हुँ श्रीमान् छं के मोटो छु एवं कशुए जण तुं नहि. आजकाल निर्धन स्थितिमाथी सामान्य पैना प्राप्ति थली छ एवा केटलाक पुरुषोना सहवासमां आव्या हशो तो जणाई आव्यु हशे के तेमनी प्रकृतिमा केटलो फेरफार थाय छे ? तेओ गामना नहि, पण जगत्ना स्वामी बन्या होय, तेम जगतना पुरुषोने तुच्छ के तृणवत् गणता अभियानमां आंधळा बने छे ! वीरनर माणेक ! त्हारी आवी उदार शक्तिने याद करतां खरेखर मगज भ्रमित थई जाय छे. For Personal & Private Use Only Page #963 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६६ ] अध्याय तेरहवां | गयो ! वीर माणेक ! गये। ! भविष्य विद्यार्थीओ कोने शरणे नशे ! भविष्यनी श्राविकाओने कोण सहाय करशे ? उतारूओनी साची संभळ कोण लेशे ? प्रांतिक कोन्फम्सनी उच्मोत्तम व्यवस्था कोण चलावशे? तीर्थोनी संभाळ कोण लेशे ? आ सर्वनी उपेक्षा करी आपने तेना मानव शरीरे देवना कार्य करी बतावी तेना सुगुणो- उच्च विचारोना यशोगानमा अथडाता मुकी ते तो स्वर्गपये चाल्यो गयो ! आपण वारसाम नाम तेनो नाश छे. The rich, the poor, the great the small are levelled death confounds them all जे खील्युं छे ते खम्बा माटे, जे जन्म्युं छे ते मरवा माटे, एम मानी अहर्निश सत्कार्यो करी आ मनाता दुर्लभ मनुष्यदेहनु मार्थक कर ए तेमनुं हृदयवेत्रक अवसान मृत्यु आरणने - अमूर। हृयां कोतरी राखवालायक अमूल्य पाठ शीखवतुं गये छे. नरवर माणेकचंदजी शेठे जैन कोमनी उन्नति अर्थ लगभग दश बार लाखनी गंजावर सखावत- जेनो उपयोग जेम तेम नहि करतां उत्तमोत्तम खातांओ स्थापी कर्तव्यपरायणी बनी परम पूज्य महावीर पिताए बतावेला मोक्षना चार मार्ग दान - शील - तप - भावना ए चारमांथी प्रथम मार्गे शूरवीर बनी आत्मश्रेय करी पोताना नरतननुं सार्थक युं छे. आपगा जैन समान प्रति तेमणे जे उपकारो कर्या छेतेनी कदर जैन कोम केटले दरज्जे करी शके छे, ते आपण जोनुं छे. अतमां 'गुणा: पुजा स्थानं गुणित्रु न च लिङ्गम् न च वयः ' ए सुत्रने अनुमरी तेमनुं अनुकरण करनारा नरवरो जैन समाजने प्राप्त थाय अने स्वर्गवासी शेठनी खोट पुरी पडे ए हृदयनी शुभेच्छा साथ For Personal & Private Use Only Page #964 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८६७ महुंम शेठ माणेकचंदजीना पवित्र आत्माने शांति इच्छु छु. ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति । लघुनम बीरबाळ-वाडीलाल मुळजी भाई संघवी( ' दिगंबर जैन ' वर्ष ७, अंक १२ ) * जड देहनो त्याग अने यशःपीडनु अवतरण । अनादि काळथी जड देहनी क्षणभंगुरता मिद्ध थयेल छे. ए. जड देहरा निकट संमां रही अज्ञ तिमिर पडळने दूर करवा " ए सिद्धांतने अनुसरा चैतन्य अने जडनी संयोग थाय छे. वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोडाराणि तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही || भगवद्गीता । जेवी रीते एक माणस जुनां लुगडां काढी नांखी बीजां नवां लुगडां पहेरे ले, ते प्रमाणे 'आत्मा' जुन अंगनो त्याग करी दई नवा अंग धारण करे छे." वेदांतनो आ सिद्धांत जैनदर्श-ने मळतो . ए सरळ दृष्टां - तथी आत्मानी प्रतीति थाय छे; अने व्यवहारिक दशामां थता शोकादि विकारोने दावी आत्मानुं अमरत्व साबित करे छे. जे व्यक्ति संसारमा रही पोताना देहने अनुमरतां कर्तव्य बजाव्यां छे, जेणे मिथ्यादृष्टि टाळी स्वतः प्रकाशित दृष्टिथी व्यव हारिक वर्तन चलाएं छे, जेणे क्रोधादी महान शत्रुओनी समीपमां रही, तेमना पासमा न पडतां तेमनी साथे अडग युद्ध चलाव्युं छे, जेणे समयोचित नीतियुक्त कार्यदक्षतावडे देशी, विदेशी बंधुओनुं हित करवा यावज्जीवन कमर कसी छे, जेणे हृदयनुं अपरिमित For Personal & Private Use Only Page #965 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६८ ] अध्याय तेरहवां । सामर्थ्य व्यवहारिक अने पारमार्थिक कार्योमां बतावी आप्युं छे, आवी रीते तन मन अने धन- संप्तार यज्ञमां रहेतुं के बलिदान आपनार 'कर्मवीर दानवीर शेठ माणेकचंदजीना जडपींडर्नु अवसान थाय, तेमां शोक शेनो? संसारनी विचित्र घटनाना भार तळे दबार लो आत्मा योग्य समये ते बोजो आघो फैकी दई, निरुपाधि थई वधाममा जई रहे एमां शोक शानो ? अनंत चतुष्टयधारक.आत्मा पोतानी सुखवीर्यदि शक्तिओनो योग्य आविर्भाव करी संसार समुद्रनी पार जवा मथन करे तेमां शोक शेनो? बधुओ! व्यवहार योगीना जडदेहन अवसान शोककारक लेखातु नथी. कोई स्नही संबधीने श्रम• उठावामाथी बचेला जोईने आपणने हर्ष थाय के शोक थाय ? कोई स्नेही सबधीने विलायतमां ऊंचा प्रकारनो अधिकार मळ. एथी आपणने हर्ष थाय के शोक ? बेशक, आपणी स्वार्थबुद्धिथी नहि, परन्तु निर्मळ वात्सल्यभावथी आपण आपणा संबंधीनी अधिकतर सारी स्थिति जोई आनंदित थईए छिए कारण:-- भले ते दरियापार, देशपार के पछी देहबहार होय; परन्तु तेना यशःपींडना परमाणुओ आपणा वातावरणमांज प्रसरी रहे छे.. ते परमाणुओना स्कंध बने छे अने ते स्कंधो बीजा पुद्गळ रचवामां सहायभूत थई नवीन तेजथी प्रकाशी नीकळे छे." ___ आ सिद्धांत सत्य हो वा असत्य हो, परन्तु एटलं तो सत्यज For Personal & Private Use Only Page #966 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८६९ छे के भक्तिभावथा द्रवित थयेलां अंतःकरणो तो आ यशपींडना परमाणुओने ग्रहण करशेन करशे. नागरदास नरोत्तमदास संघवी, केरवाडा - ( भरूच.) ( दिगंबर जैन वर्ष ७ अंक १२ ) 1 कितनेक पत्रोंके अभिप्राय । सेठ मानिकचंद हीराचंद, जे० पी० । गत आषढ़में एक बड़े दानी और धर्मनिष्ठ जैनका देहान्त बम्बई में हो गया । इनका नाम सेठ मानिकचन्द्र था। इनके पिता, हीराचन्द सूरत के रहनेवाले थे। उनके चार पुत्र हुए- मोतीचन्द, पानाचंद, मानिकचन्द और नवलचंद | इन चारों भाइयोंने बम्बई में पहले मोतीका रोज़गार शुरू किया; पीछेसे वे जवाहरात का रोजगार भी करने लगे । धीरे धीरे इनका रोजगार बढ़ा | लाभ भी होने लगा | मानिकचन्द पानावन्द जौहरीकं नामसे ये कान करने लगे । सेउ मानिचन्दने अपने व्यवसायकी इतनी उन्नति की कि कुछ ही वर्षों में ये अमीर हो गये । ६२ वर्षकी उम्र में इन्हीं सेट मानिकचन्दने, बिना किसी बीमारीके, परलोक के लिए प्रस्थान कर दिया । रातको ११ बजे ये आरामसे लेटे । कुछ देर बाद अकस्मात् हृदयका स्पन्दन बन्द हो गया और इनकी इस लोककी लीला समाप्त हो गई। इनकी दानशीलतासे प्रसन्न होकर गवर्नमेंटने इन्हें जे० पी० ( जस्टिस आबू दि पीस) की पदवीसे अलंकृत किया था । इन्होंने अपने जीते जी आठ नौ लाख रुपया जैन मन्दिरों, तीर्थों और ग्रन्थोंके जीर्णोद्धार करने, धर्मशालायें और For Personal & Private Use Only Page #967 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७०] अध्याय तरहवां । छात्रावास बनवाने, स्कूल, औषधालय और श्राविकाश्रम खोलने और छात्रवृत्तियां देने में खर्च कर दिया । इसके सिवा २॥ लाख रुपयेकी वसीयत भी कर गये हैं, जिसके व्याजसे जैन तीर्थ-रक्षा, परीक्षालय, छात्रवृत्तियां और धर्मो देश आदिका काम होता रहेगा । रुपये का मद व्यय इसे कहते हैं। “ सरस्वती " (सितम्बर १९१४) दानवीरका देहान्त । बड़े शोकसे लिखना पड़ता है, कि इस सताहमें जैन जातिका एक रत्न इस अपार संभार उठ गया । बम्बईक जैनकुलभूषण दानवीर स्ट माण नन्द हीरचन्द जे. पी. अब इस संमार में नहीं हैं। संठनीकी विद्वत्ता, धार्मिकता, दानशीलता और उदारताकी जितनी प्रशंसा करें, थोड़ी है। आप सच्चे जैनी और अपनी जातिके अग्रगण्य गुमा थे। मृत्यु मम आपकी अवस्य ६३ वर्षकी थी। आपके समान दानी इस समय भारतमें विरले ही होंगे । इसीसे आप दानवीर कहे जाते थे। जैनियों में आपका ख ली स्थान मुश्किलसे पूरा किया जा सकेगा। "वेंक्टेश्वर समाचार" (मुंबई) ता. २४-७-१४. माणिकचन्द हीराचंद जौहरी। माणिकचन्द जौहरीकी मुत्युसे जैनजाति और भारतवर्षका एक जवाहिर उठ गया। माणिकचन्द बंबईके बड़े धनी व्यापारी थे। बहुत दिनोंसे धर्मके अर्थही अपना जीवन उन्होंने समर्पित कर दिया For Personal & Private Use Only Page #968 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८७१ था। उन्होंने बंबई, रतलाम, प्रयाग, जबलपुर आदि स्थानोंमें बोर्डिग हाउस विद्य र्थियों के लिए खोले । हीराबाग धर्मशाला गिगांव, बंबई में ।। लक्ष रुपये लगाकर बनवाई । कोई ५-६ लाख रु० विद्याके लिए अर्थदान कर चुके थे। मरते समय २॥ लक्ष रु० जैन बच्चोंकी शिक्षाके लिए दिए । इनका जन्म सूरत में कार्तिक २० १३ सं० १९०८ मे हुआ था । मृत्यु इसी श्रावण ब० ९ को बंबई में हुई । संस्कृत पर इनका प्रे: था, धर्मनिउ जैन थे, स्त्री शिक्षाके पक्षपाती थे। सूरतमे सर्वदेशीय कन्याशाला खोली, जो अब तक जारी है। इनकी अन्तिम इच्छा थी कि लन्दन में एक मैन बोडिङ्गहाउस स्थापित करे जि-यो धम पूर्व विद्यर्थी रह : के। स्वयं सिफ गुजराती औ: हिी जानते थे। जै। लंगों में विधाका विशेष आदर है और हिन्दी भाषाकी इस समय उनम विशेष उन्नति हो रही है यापाक तो वे स्तम्भ हुई हैं। __ " पाटलीपुत्र” ( बांकीपुर ) ता. ८-८-१४. दिगम्बर जैन अग्रेसर दानवीर सेठ मणेकचंद हीराचंद जे. पी. गई ता० १६ जुलाईए एकाएक हृदय बंद पडा थो स्वर्गवासी थया छे. आ गृहस्थ आजना १४ लाव जैनो एक अनुकरणीय पुरुष हता. विद्यादान, अभयदान, औषधदान वगेरेमां मळीने एमणे पोतानी हयातीमां (-१० लाख रुपियानी सखावत वरी हती अने मृत्यु वखते पण २॥ लाखनी सखावत करता गया छे. संख्खाबंध बोर्डिङ्ग हाउसो तेमणे स्थाप्यां छे. रु० १५०००)ना खर्चे For Personal & Private Use Only Page #969 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७२ ] अध्याय तेरहवां । दिगम्बर जैन डिरेक्टरी तैयार करावी छे. धर्मरक्षण अने धर्मसेवानां काम माटे तेओ मुसाफरी पण बहु करता. स्वभावे सादा, सरळ, निरभिमानी अने मायाळू हता. आ नररत्ननी खोट जैन वर्गभां वर्षो सुधी पुरावी मुश्केल छे. आवा पुरुषोनी सद्गति माटे कोई इच्छवानुं रहेतुन नथी. एमनी पाउळ एक स्मारक फंड थयुं छे, जे संतोष लेश जेवू हे. * जैनहितेच्छु" (बम्बई) ओगष्ट १९१४. THE LATE " DANVIR" SHETH MANECKCHAND HIRACHAND On this side of India Sheth Maneckchaud was known as it erat philantlispist. Born in Surat in Vikrain Samvat yer 1908, he died only a short time ago at the agee of 62. His father Hirachand was poor and so was his grandfather Gumarji who migrated to Siras. from Brinar ( Udaypore ) in A. D. 1840 to trade in opium in a wmall way. Circumstances made the family to go to B mbiy, where Maneckchand with his "hree brotbers be an business in & humble way and learnt the profession of pearlborers and stringers. Fortune favored their honest efforts, and in a short time they began to purchase and sell land in Bombay at a great proflt. Ultimately they settled down as pearl merchants; exporting pearls to Europe and making huge profits. Although a man witb comparatively very little education, Maneckcband's outlook on life was very wide, and just as he was able to amass a huge fortune, so be spent generously buge sums in works of charidy. His total gifts come to near ten lacs of Rupees and he For Personal & Private Use Only Page #970 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wally deserved the word on hitu Digambe hapa [८७३ दानवीरका स्वर्गवास। fully deserved the appelation of “Danvir Jainkulbhusan" which was bestowed on him in these parts. He belonged to the Digambar sect of Jains, and in all parts of India, bis helping hand reached the needy and poor of his community and assisted them most liberally. He early saw the utility of Boarding Houses if education was to spread, and his long purse was always op aud to plan out and build Hostels in several towns in and out of the Bombay Presidency. Io B mbay proper, he wuld best be remembered by the splendid pile of building, which he has ererted in that part of the town which is most thickly inhabited by Hindus, and called the Hirabag. It is ustd as a Dharmashala for: all Hindu pilgrims, where they get accommodation of the best class aud as an appa vago of which is a fiue lecture hall, which is used as a T..wa Hall of the locality. A mere p rusal of the list obis donations is enough to engend-r feelings of almiration for a man, who in raising himself from pov: riy to wealth, never forgot the uses t, which is «norm:»us wealth could be put, and consequenily gave thrun & practical and enduring shape Even ou his death bid he has made a trust of Rupees two lace and a half, all to be utilised for (sectarian) charitable purposes. He gavo anay Rs. 8,000 for repairing & Jaia temple at Surati, Rs. 25 000 for building a Dharmashala at Surat; Rs. 2 1000 for repairing a Dharmashala at Palitana; Rs. 80,000 for a Jain Boarding House in Bombay; Rs. 22,000 for a Jain Boarding House at Kolbapur; Rs. 40,000 for a similar institution at Ahmedabad; Rs. 1,25,000 for a Dharmabala (Hirabag) in Bombay: Rs. 50,000 for a boarding houss at Jabbalpore; Rs. 15,000 for a dispensary at Ahmedaabd. For Personal & Private Use Only Page #971 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮૭૪ ] अध्याय तेरहवां । Various small sums between 6,000 to 10,000 for charit able purposes such as founding schools for girls, scholarships, preparing Jain Directories, have not been included in the list. Government rewarded him with a justiceship of the peace. It is no small wonder if the Digambar Jain community is mourning his loss as they would mourn the loss of a king. "Modern Review" Calcutta September. 1917 4 राजा गणा छत्रपति हथिय के असवार । मरना सबको एक दिन अपनी अपनी वार ॥ दल बल देवी देवता मात पिता परिवार । मरती बिग्यिां जीवको कोई न राखनहार ॥ A great soul has passed away from amongst us, to accelerate its evolution to perfection. Dana-veer, Juinkula Bhu han, Shriman Seth Maneckchand Hirachand Justice of the Frace, Bombay, was a respec ed and hon red name in every Jain family throu, hout India; and the grief caused by his parting is as general and wide-spread Jati sewak or servaut of the community is a title lightly adopted by many a young and old hypocrite as a means for gaining low personal ends But the great man, for whose loss to us we are in mourning today, was a real benefactor and had the service of the jain community at heart. Born in 1851 in a great and famous family of jewellers, he for the last 16 or 17 years devoted the greater part of his life and fortune to the service of religion and community. He did not know the English language, but in the Jain community he was the first to conceive the idea of establishing Jain Boarding Houses to afford large and special facilities to students. In 1898 at a cost of Rs. 80,000 he founded For Personal & Private Use Only Page #972 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास। [col the Hirachand Gumanji Jain Boarding House in Bombay, named after his respected father. He was a lover of Boarding Houses, a Boarding-Premi as some of his malevolent critics at one tine nicknamed him. The Students’ Boarding Elouses at Ahmedabar, Kolhpur, and Rutam gradually came into existence Tie first impulse and initial support to what is now a splendid Boarding House at Jubbulpur was also given by him. His berion factions were not limited to any city or province. He worked hard, and contributed fibe:sally wherever vecessary, towards tho e-tablishment of such В arding Houseg. at Agra, Al'a! abd, L'hore, Sholapur, Hubli, Sünyli, diyor, Bianglore, Vardha, and Aka. His activitiis were not, however, limited in one directiou The K shi Syaival Mahavidyalaya, was opened by his, and he made subtannial di nations to the pernian-nt and current funds of the instiinti.n. He was the Presideut of its Committee of managemeni. He was a firm believer in "fen ale education." His beloved daughter Muhrla Ratna - ( 1hr j- wel aming ladies ) Shrimati Magan bai is a well-rean echolar of Jain Scriptures, 8 d her koowledge of Jain philosophy is quite adi quate to place her in the frono rank of Pandits. Här Shravikashrain at Jubil-e Bagh, Tardeo, Bombay, a splendid building wbich was dedicates to the Ashram by her father, is the only institution of its kind in the community. It is both a Model School for girls and a Training College for lady tracters. He was also the President of the Tirtha Kshetra Committee, in which is vested the management of all places of pilgrimage among Jains. This was an arduous task, and he performed it with a diligence, which is rare among the favoured sons of Dame Fortune. For Personal & Private Use Only Page #973 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60€ ] अध्याय तेरहवां। His charities again were not limited 30 the Jain community alope. The Hirabigh Dharamshala is a splendid rest-house at Bombay where all persons who abstain from animal food, cap stay free of charge. Special furniture and necessary articles are also supplied to those who require them at very moderate charges. The lecture Hall at Hirabagh is a well-known place for public lectures at Bimbay. In his mercy for the dumb creatures, be constantly distributed free and gratis a vast litera; ure of the Hu. manitarian L-ague and Vegetariau Societies. Iu his la-t days he was maduring a scheme for the efficient protection of milch-catile, who, when they can. pot supply milk are generally sild to the bulch-r fur their fresh and skin. His death was a sudden and painless cne. He worked as usual til within an hour or two of his last breath. His ast idei which he discussed on the disy he. dient with Mr. M. H. Udani, M. A., was tha: bere shule be established a Boarding House, with a Chaityt. laya (ulice of worship , in Loudon for the convenience of Jain students and visitors there. And we trust that the Jain community will carry out this last wish of their great departed benefactor by establishing a Maneckchand Boarding House in London, and thus perpetuate his illustrione name for ages to come. . W offer our sincere and heartfelt condolence to the illustrious lady, Jain Mahila Ratna, Shrimati Maganbai, and to all other members of the family, in the sad bereavement, which, we seriously say, is a bereavement pot theirs alone, but of the whole Jain community throughout India. For Personal & Private Use Only Page #974 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [ ८७७ The 'Digamber Jain' of Surat has brought out an obituary number giving a brief life sketch of the Philanthrophic Seth and a pathetic poem extolling his deeds and virtues and has enclosed a good portrait of the deceased. Death has no power th' immortal soul to slay, That, when its present body turns to clay, Seeks a fresh home, and with unlessened might, Inspires another frame with life and light. Souls cannot die. They leave a former home. And in new bodies dwell, and from them roam Nothing can perish, all things change below, For spirits through all forms may come and go. Good beasts shall rise to human forms, and men, If bad, shall backward turn to beasts again. Thus, through a thousand shapes, the soul shall go,. And thus fulfil its destiny below. 66 · Jain Gazette" (Lucknow) July 1914. 噪 * हाय ! जैनसंसारके भाग्याकाशका चमकता हुआ तारा टूट पड़ा ! ! ! समाचार तो केवल इतना ही है कि जैनसमाजके प्रसिद्ध दानी और मान्य श्रीयुत सेठ माणिकचन्द्रजी जे. पी. अब इस संसार में नहीं हैं। पर हाय ! कैसा भयानक, कैसा लोमहर्षण समाचार ! एक महान आत्मा बातकी बात में चल बसा ! जिसका स्वप्न में भी मान नहीं था, वह बात आँखों के सामने आ उपस्थित हुई ! जैनसमाज वैसे ही तो दुर्बल है, उसे अभी उठने तककी भी तो शक्ति प्राप्त नहीं हुई कि उसे हाथका सहारा देकर उठना सिखानेवाला ही एकाएक गायब ! जैनसमाज अभी थोड़ा भी कष्ट उठा लेने को तैयार For Personal & Private Use Only Page #975 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७८ ] अध्याय तेरहवां । नहीं हुआ, कि उसपर अनायास यह आपत्ति का पहाड़ आ गिरा ! हाय ! अब कौन बेचारे दुर्बल समाजकी रक्षा करेगा ? कौन उसे अपने हाथका सहारा देगा ? निर्दयी काल ! तूने उसका एक मौलिक रत्न छीनकर उसे पथ पथका भिखारी बना दिया है ! अन्धेके हाथकी लकड़ी छीनकर उसे गहरी खाई में ढल दिया है ! हाय ! हम अपने इस दुःखका हाल लिसे नाकर कहें ! कौन हमें प्याके साथ अपने पास बैठाकर हमारी इस मर्मवेदनाको सुनेगा ? कौन हमें इस दुःखमें मान्त्वना देकर स्वयं भी शामिल होगा? हाय! कहते हृदय फटता है कि जो हमारी दुःख दशाका सुननेवाला था, जो बड़े प्रेमके साथ दुःखमें सान्त्वना देकर हमें धैर्य बँधानवाला थाहमारे दुःखपर प्रेमके दो आसू बहानवाला था, वह अब इस भौतिक देहको छोड़कर स्वर्गमें जा बसा ! महात्मा माणिक ! आपको खोकर आज जैनसमाज बहुत दुःखी है। उसका बच्चा बच्चा आज आपके लिये आंसू बहा रहा है। उसने आपको खोकर आज सब कुछ खो दिया। वह कंगाल हुआ, भिखारी हुआ । उसके भाग्याकाशमें आज फिर अन्धेरा छाया । महात्मन् ! जैनसमानमें आप सच्चे महात्मा थे, दानी थे, उपकारक थे, वीर थे, रत्न थे, क्योंकि आप ही इस बीसवीं सदीमें सबसे पहले पहल उसके कल्याणपथ-प्रदर्शक हुए। आपहीने अपने धनका उपयोग समाजकी जरूरतोंको देखकर किया । आपहीने अज्ञानके समुद्र में डूबते हुए समाजको बिद्या-तरणिका सहारा देकर बचाया । आपहीने सबसे पहले अज्ञानरूपी भयंकर राक्षसका साम्हना कर उसे मार भगानेका साहस किया । आपहीने For Personal & Private Use Only Page #976 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास | [ ८७९ जैन समाज के हृदयपर पहले शिक्षाका प्रकाश डाला । इस लिये कहते हैं कि जैनसमाजने आपको खोकर अपना सर्वस्व खो दिया । सेठ साहब ! हमारे दुःखी आत्माको सान्त्वना देनेके लिये कदा चित आप स्वर्ग सन्देशा भेजो और कहो कि “भाई एक मेरे लिये तुम इतना क्यों दुःख करते हो ? जैन समाज में तो अभी मुझसे भी बड़े बड़े धनी मानी पुरुष हैं । " हाँ हम भी करते हैं कि हैं, पर वह उदारता, शान्ति, परोपकार, प्रेम, सहनशीलता, निरभिमानता आदि गुणोंकी पवित्र मूर्ति वहाँ ? क्या अब हमें कमी उसके दर्शन होंगे ? नहीं । आजके धनिक जैनसंसार में न उदारता है, न शान्ति है, न सच्ची परोपकारता है, न प्रेम है, न सहनशीलता है और न निरभिमानता है । फिर हमें उससे क्या आशा हो सकती है ? समाजको किसी कारण सहायता देना दूसरी बात है और उसके लिये हार्दिक प्रेम बतलाकर अपना कर्त्तव्य पालन करना दूसरी बात है । आपमें प्रेम था, आपने जो कुछ किया वह अपना कर्त्तव्य समझकर किया है, इसीलिये आज सारा जैनसंसार आपके लिये हृदयसे रो रहा है और शताब्दियों तक रोयेगा । सेठ साहब, आपकी जगह की पूर्ति करनेवाला जैनसंसार में इस समय तो कोई हैं नहीं, आगे होगा या नहीं ? यह भगवान् जाने, पर ऐसी आशा करनेका अभी कोई लक्षण नहीं है । सेठ साहब, आपके वियोगसे हमें जो दुःख है, उसे तो हमारा हृदय ही जानता है; पर - " गतिर्देवी बलीयसी " इस वाक्यका स्मरण कर मन मारकर रहजाना पड़ता है । अस्तु, हमारा जैसा भाग्य है, उसे हम तो भोगेंगे ही, पर आपके पवित्र आत्माको शान्ति For Personal & Private Use Only Page #977 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८० ] अध्याय तेरहवां । प्राप्त हो और अधोगत जैनसमाजकी सेवाके लिये; नहीं, उद्धारके लिये आपका फिर भी भारतमें अवतार हो, यह हमारी हार्दिक कामना है। आपके कुटुम्बके साथ भी इस भयानक आपत्तिके समय हम समवेदना प्रकाश करते हैं। शान्तिः शान्तिः । “ सत्यवादी" (बम्बई) जुलाई १९१४ दानवीरका देहपात। " अच्छा-बुरा बस नाम ही रहता सदा है लोकमें, वह धन्य है जिसके लिए हों लीन सज्जन शोकमें ॥" -जयद्रथवध । यह प्रकट करते हुए हमें बड़ा ही दुःख होता है कि ता० १६ जुलाई की रातको २ बजे श्रीमान् दानवीर सेठ माणिकचन्द हीराचन्द जे. पी. का एकाएक स्वर्गवास हो गया । दो घंटे पहले जिमकी कोई कल्पना भी न थी, वह हो गया। भारतके आकाशसे एक चमकता हुआ तारा टूट पड़ा, जैनियोंके हाथसे चिन्तामणि रत्न खो गया, समानमन्दिरका एक सुदृढ़ स्तंभ गिर गया । जहाँ जब निसने यह खबर सुनी, वही भोंचकसा होकर रह गया और 'हाय हाय ' करने लगा । मृत्युकी वह अचिन्त्य शक्ति देखकर विचारशील काप उठे। सेठ माणिकचन्दनीसे हमारा जो कुछ परिचय रहा है, उससे हमारा हृदय कहता है कि उनके स्वर्गवाससे जैनसमानकी जो बड़ी भारी हानि हुई है, उसकी पूर्ति होनेका इस समय कोई भी चिह्न नहीं दिलखाई देता है और वह पूर्ति आगे जल्दी हो जायगी इसकी For Personal & Private Use Only Page #978 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८८? भी बहुत कम संभावना है । यद्यपि आज सारे जैनसमाज में सेठजीकी कीर्तिपताका फहरा रही है और समी लोग उनकी मुक्तकण्ठसे प्रशंपा कर रहे हैं, तो भी हमारा विश्वास है कि वास्तवमें सेठनी किस श्रेणीके पुरुषरत्न थे, इस बातको बहुत ही कम लोग जानते होंगे। उनके हृदयमें जैनसमाजके प्रति नो भावनायें रहती थीं, जिन निष्कपट:वृत्तियोंसे वे समाजसेवामें अहर्निश तत्पर रहते थे और जिन शान्तता उदारता तथा धीरतादि गुणोंसे उन्हें प्रत्येक काममें सफलता मिलती थी, उन सबके परिचय प्राप्त करनेका जिन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है वे उन्हें केवल दानवीर और धनी ही न समझते थे, किन्तु एक महात्मा समझकर अतिशय पूज्यदृष्टिसे देखते थे। सेठनीने गत बारह वर्षोमें जो जो काम किये हैं, उन सब पर दृष्टि देनेसे यदि यह कहा जाय कि वे इस समयके युगप्रवर्तक थे-उनके प्रयत्नोंने जैनसमानमें एक नया युग उपस्थित कर दिया है, तो कुछ अत्युक्ति न होगी । केवल स्थप्रतिष्ठाओंमें और मन्दिर बनवानेमें ही लाखों रुपया प्रति वर्ष खर्च करके सन्तुष्ट हो जानेवाले जैन समाजके धनियोंका चित्त विद्यामन्दिर स्थापित करनेकी ओर आकर्षित करनेका प्रधान श्रेय सेठ माणिकचन्दजीको ही प्राप्त था। उनकी देशापी अनन्यसाधारण कीर्तिने धनियों पर वह प्रभाव डाला है, जो बीसों समाचारपत्र, पचासों उपदेशक और सैकड़ों सभा समितियों नहीं डाल सकती हैं। यह आपहीके सभापति-पदका प्रभाव है, जो सभा सुसाइटियों को बच्चोंका खेल समझ र उनकी ओर आख न उठानेवाले धनाढ्य लोग आज उन्हीं सभाओंके सभापति बननेके लिए लालायित रहते हैं और अपने प्रसादलब्ध For Personal & Private Use Only Page #979 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८२ ] अध्याय तेरहवां । पुरुषों के द्वारा इसके लिए प्रयत्न तक कराते हैं। सेठजी केवल दानवीर ही थे, वे कर्मवीर भी थे। धनवानोंमें दानवीर तो अनेक हैं और आगे और भी हो जायेंगे, परन्तु सेठनी जैसा कर्मवीर होना कठिन है। उन्होंने जैनसमानके लिए अपने पिछले जीवनमें कई वर्षों तक अश्रान्त परिश्रम किया है। यदि उनकी पिछली चार पाँच वर्षकी दिनचर्या देखी जाय, तो मालूम होगा कि जैनसमाजकी संस्थाओंके लिए उन्हें प्रतिवर्ष कमसे कम तीन महीने प्रवास–पर्यटनमें रहना पड़ा है और अपने व्यापारादिके तमाम काम छोड़कर प्रतिदिन चार पाँच घण्टे प्रान्तिक समा, तीर्थक्षेत्र कमेटी तथा अन्यान्य संस्थाओं के लिए देना पड़े हैं ! समानके किसी कार्यके लिए उनको आलस्य न था। हर समय हर कामके लिए वे कटिबद्ध रहते थे । इस समय दिगम्बर जैनियों के जो डेड़ दर्जनसे अधिक बोर्डिंग स्कूल हैं, उनमें आपकी दानवीरताकी अपेक्षा कमवीरताने अधिक काम किया है।.... सेठनी न अँगरेज़ी के विद्वान् थे और न संस्कृतके; वे साधारण देशभाषाका पढ़ना लिखना जानते थे। परन्तु उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ किया है, उससे बाबू लोग और पण्डितगण दोनों ही बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञानकी अपेक्षा आचरण अधिक आदरणीय है। उनका अनुभव बहुत बढ़ाचढ़ा था। जैनसमाजके विषयमें जितना ज्ञान उनको था, उतना बहुत थोड़े लोगोंको होगा।.... यदि संक्षेपमें पूछा जाय कि सेठनीने अपने जीवन में क्या किया ? तो इसका उत्तर यही होगा कि जैनसमाजमेंसे जो विद्याकी For Personal & Private Use Only Page #980 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वर्गवास । [८८३ प्रतिष्ठा उठ गई थी, उसको उन्होंने फिरसे स्थापित कर दिया और जगह जगह उसकी उपासनाका प्रारम्भ करा दिया। सेठ नीके हृदयमें विद्या प्रति अमाधारण भक्ति थी। यद्यपि वे स्वयं विद्यावान् न थे, तो भी विद्याके समान मूल्यवान् वस्तु उनकी दृष्टि में कोई २ थी ।.... संठन, हृदयमें यह बात अच्छी तरह जम गई थी कि अंगरेगी स्कूलों और कालेनोमें जो शिक्षा दी जाती है, वह धर्मज्ञानशून्य होती है। उनमें से बहुत कम विद्यार्थी ऐसे निकलते हैं जो धर्मात्मा और अपने धर्मका अमिमान रखनेवाले हों। अपनी जाति और समानके प्रति भी उनके हृदयमें आदर उत्पन्न नहीं होता है। परन्तु वर्तमान समयमें यह शिक्षा अनिवार्य है-अंगरेजी पढ़े विना अब काम नहीं चल सकता है, इसलिए कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे इनके हृदयमें धर्मकी वासना स्थान पा लेवे । इसके लिए आपने 'जैन बोर्डिग स्कूल' और उनमें स्कूल कालेनके विद्यार्थियों को रखकर उन्हें प्रतिदिन एक घण्टा धर्म शिक्षा देना लाभकारी समझा । इस ओर आपने इतना अधिक ध्यान दिया और इतना प्रयत्न किया कि इस समय दिगम्बर समाजके लगभग २० बोर्डिंग स्कूल काम कर रहे हैं ! संस्कृत पाठशालाओंकी ओर भी आपका ध्यान था-संस्कृतकी उन्नति आप हृदय से चाहते थे; परन्तु इस ओर आपके दानका प्रवाह कुछ कम रहा है-पूर्ण वेगसे नहीं हुआ। इसका कारण यह था कि एक तो कोरी सस्कृत शिक्षाको आप अच्छी न समझते थे-इस समय वह जीविकानिर्वाहके लिए उपयोगी नहीं और For Personal & Private Use Only Page #981 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८४ ] अध्याय तेरहवां | संस्कृत पाठशालाओं की पढ़ाईका पुराना ढचरा तथा उनके प्रबन्धकी कठिनाइयाँ आपको इस ओर प्रवृत्त न होने देती थीं। तो भी आप संस्कृत के लिए बहुत कुछ कर गये हैं । बनारस की स्याद्वाद - पाठशालाने आपके ही लगातार उद्योगसे चिरस्थायिनी संस्थाका रूप धारण किया है, आपके बोर्डिग स्कूलों में वे विद्यार्थी प्रथम स्थान पोते हैं जिनकी दूसरी भाषा संस्कृत रहती है और संस्कृत के कई विद्यार्थियों को आपकी ओरसे स्कालरशिप भी मिलती हैं । अपने पिछले दानमें बे जैनपरीक्षालयको स्थायी बना गये हैं । उक्त दानका और भी बहुत अंश संस्कृत की उन्नतिमें लगेगा | 1 सेठजी बड़े ही उदार हृदय थे । आम्नाय और सम्प्रदायों की शोचनीय संकीर्णता उनमें न थी । उन्हें अपना दिगम्बर सम्प्रदाय प्यारा था, परन्तु साथ ही श्वेताम्बर सम्प्रदाय के लोगों से भी उन्हें कम प्रेम न था । वे यद्यपि बीसपंथी थे, पर तेरहपंथियों को अपने से जुदा न समझते थे । उनके बम्बई के बोर्डिग स्कूल में सैकड़ों श्वेताम्री और स्थानकवासी विद्यार्थियोंने रह कर लाम उठाया है । एक स्थानकवासी विद्यार्थीको उन्होंने विलायत जानेके लिए अच्छी सहायता दी थी। उनकी सुप्रसिद्ध धर्मशाला हीराबाग में निरामिषभोजी हिन्दूमात्रको स्थान दिया जाता है। साम्प्रदायिक और धार्मिक लड़ाईयों से उन्हें बहुत घृणा थी। उनकी प्रकृति बड़ी ही शान्तिप्रिय थी । पाठक पूछेंगे कि यदि ऐसा था तो वे मुकद्दमें बाजी - में सिद्धहस्त रहनेवाली तीर्थक्षेत्र कमेटीके महामंत्री क्यों थे? इसका उत्तर यह है कि वे इस कार्यको लाचार होकर करते थे ।.... अपने ढाई लाखके अन्तिम दानपत्र में वे तीर्थक्षेत्रोंकी रक्षा के लिए For Personal & Private Use Only ॐ १०० Page #982 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दानवीरका स्वगवार्स। भाग दे गये हैं, परन्तु उसमें साफ शब्दोंमें लिख गये हैं कि इसमेंसे एक पैसा भी मुकदमों में न लगाया जाय इससे सिर्फ तीर्थोका प्रबन्ध सुधारा जाय। जैनग्रन्थोंके छपाने और उनके प्रचार करनेके लिए सेठजीने बहुत उद्योग किया था। यद्यपि स्वयं आपने बहुत कम पुस्तकें छपाई हैं; परन्तु पुस्तकप्रकाशकोंको आपने खूब नी खोलकर सहायता दी है । उन दिनोंमें जब छपे हुए ग्रन्थोंकी बहुत कम विक्री होती थी, तब सेठजी प्रत्येक छपी हुई पुस्तककी डेड़ डेड़ सौ, दो दो सौ प्रतिया एक साथ खरीद लिया करते थे जिससे प्रकाशकोंको बहुत बड़ी सहायता मिलती थी। इसके लिए आपने अपने चौपाटीके चैत्यालयमें एक पुस्तकालय खोल रक्खा था-उसके द्वारा आप स्वयं पुस्तकोंकी विक्री करते थे और इस काममें आप अपनी किसी तरहकी बेइज्जती न समझते थे। जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय तो आपका बहुत ही उपकृत है। यदि आपकी सहायता न होती, तो आन वह वर्तमान स्वरूपको शायद ही प्राप्त कर सकता। आप छापेके प्रचारके कट्टर पक्षपाती थे; परन्तु इसके लिए लड़ाई झगड़ा खण्डन मण्डन आपको बिलकुल ही पसन्द न था । जिन दिनों अखबारों में छापेकी चर्चा चलती थी, उन दिनों आप हमें अक्सर समझाते थे कि " भाई तुम व्यर्थ ही क्यों लड़ते हो ! अपना काम किये जाओ-जो शक्ति लड़ने में लगाते हो, वह इसमें लगाओ, तुम्हें सफलता प्राप्त होगी-सारा विरोध शान्त हो जायगा।" सेठजीके कामों को देखकर आश्चर्य होता है कि एक साधारण पढ़े लिखे धनिक पर नये जमानेका और उसके अनुसार काम For Personal & Private Use Only Page #983 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAAAAAAAAmms ८८६] अध्याय तेरहवां । करनेका इतना अधिक प्रभाव कैसे पड़ गया। जिन कामोंमें जैनसमाजका कोई भी धनि खच करनेको तैयार नहीं हो कता, उस काममें सेठजीने बड़े उत्साहसे द्रव्य खर्च किया है । दिगम्बरजैन-डिरेक्टरी जो छपकर तैयार हुई है-एक ऐसा ही काम था । इसमें सेठजीने लगभग १५ हजार रुपये लगा दिये हैं। दूसरे धनिक नहीं समझ सकते कि डिरेक्टरी क्या चीन है और उससे जैनसमाजको क्या लाभ होगा। विलायतमें एक जैन छाप्रावास ' बनवानेकी ओर भी सेठजीका ध्यान था; परन्तु वह पूरा न हो सका। दिगम्बर जैनसमाजमें इस समय कई पक्ष या दल हो रहे हैं। जिसे देखिए वही अपने पक्षका गीत गाता है और दूसरेको नीचा दिखानेका प्रयत्न करता है; परन्तु सेठजीका पक्ष इन सबसे निराला था, उनकी दृष्टि सदा समूचे जैनसमानके कल्याणकी ओर रहती थी। किसी भी पक्षसे वे द्वेष न रखते थे। जब कभी इन पक्षों में लड़ाई झगड़ोंका मौका आता था और वह शान्त न होता था तब आप तटस्थवृत्ति धारण कर लेते थे। ऐसे अनेक मौके आये हैं जब अखबारोंमें आप पर बहुत ही अनुचित आक्रमण हुए हैं; परन्तु आपने उनमे से एकका भी खण्डन या परिहार करनेका प्रयत्न नहीं किया है ।.... धनवैभवका मद या अभिमान सेठनीको छू तक न गया था। इस विषयमें आप जैनसमाजमें अद्वितीय थे। गरीबसे गरीब ग्रामीण जैनीसे आप भी बड़ी प्रसन्नतासे मिलते थे-उससे बातचीत करते थे और उसकी तथा उसके ग्रामकी सब हालत मान लेते थे। For Personal & Private Use Only Page #984 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mmmmmmmm vvvvvvvvv दानवीरका स्वर्गवास। [८८७ आप शामके दो घण्टे प्रायः इसी कार्यमें व्यतीत करते थे। सैकड़ों कोसोंकी दूरीसे आये हुए यात्री जिस तरह आपकी कीर्तिकहानियाँ सुना करते थे, उसी तरह प्रत्यक्षमें भी पाकर और आपके मुँहसे चार शब्द सुनकर अपनेको कृतकृत्य समझने लगते थे।.... विलासिता और आराम-तलबी धनिकोंके प्रधान गुण हैं। पान्तु ये दोनों बातें आपमें न थीं। आप बहुत ही सादगीसे रहते थे और परिश्रमसं प्रेम रखते थे। अनेक नौकरों चौकरोंके होते हुए भी आप अपने काम अपने हाथसे करते थे। इस ६३ वर्षकी उमर तक आप सबेरेसे लेकर रातके ११ बजे तक काममें लगे रहते थे।.... सेठजीकी दानवीरता प्रसिद्ध है। उसके विषयमें यहाँ पर कुछ लिखनेकी जरूरत नहीं । अपने जीवन में उन्होंने लगभग पाँच लाख रुपयोंका दान किया है जो उनके जीवनचरितमें प्रकाशित हो चुका है। उसके सिवाय उनके स्वर्गवासके पश्चात् मालूम हुआ कि सेठजी एक २॥ लाख रुपयेका बड़ा भारी दान और भी कर गये हैं जिसकी बाफायदा रजिस्ट्री भी हो चुकी है। बम्बईमें इस रकमकी एक आलीशान इमारत है जिसका किराया ११००) महीना वसूल होता है। यह द्रव्य उपदेशकभण्डार, परीक्षालय, तीर्थरक्षा, छात्रवृत्तियाँ आदि उपयोगी कार्योंमें लगाया जायगा। इसका लगभग आधा अर्थात पाँच सौ रुपया महीना विद्याथियोंको मिलेगा। सेठजीके किन किन गुणोंका स्मरण किया जाय; वे गुणोंके आकर थे। उनके प्रत्येक गुणके विषयमें बहुत कुछ लिखा जा सकता है।.... "जैनहितैषी " ज्येष्ठ वीर सं० २४४.. For Personal & Private Use Only Page #985 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८८ अध्याय तेरहवां । ग्रन्थकर्ताका प्रयोजन । माननीय सम्पादक, " दिगम्बर जैन,” सेठ मूलचंद किसनदासजी कापड़ियाकी प्रेरणा और सेठ साहबके वे अलौकिक गुण जो ग्रन्थकर्तान स्वयं अनुभव किये हैं और जिनका वर्णन वाचकोंको सुमार्ग पर आकर्षण करनेवाला है इन दोनोंने मुझे प्रेरित किया कि मैं सेठजीकी जीवनी जो एक बहुत बड़ी इतिहासकी वार्ताओंकी माला है लिखनेका उद्यम करूँ। मेरा प्रयोजन इस जीवनके प्रकाशमें अपनी शुभ भावनासे अपना लाभ और दूसरा वाचकोंको पढ़नेसे जो उनके जीवन पर असर पड़ेगा उसका अपूर्व लाभ है। जहां तक मसाला संग्रह कर सका वर्णन यथाशक्ति यथार्थ लिखा गया है तो भी यदि कहीं अज्ञान व प्रमादवश भुल रही हो उसको विज्ञ पाठकगण सुधार लेवें तथा प्रकाशकको खबर करें जिससे आगामी आवृत्तिमें ठीक हो जावै । प्रजा वल्सल व शिक्षाप्रचारके अग्रगामी महाराज सयाजीरावके शांतमय बड़ौधा राज्यमें वीर सं० २४४२-४३ के चातुर्मासमें ठहरकर व रात्रि दिन उपयोग लगाकर इस जीवनचरित्रको आजकी रात्रिमें पूर्ण किया है। यद्यपि इसका प्रारंभ बड़ौधा आनेके पहले हो चुका था पर बहु भाग इसी शुभ स्थानमें ही लिखा गया है।। इस ग्रंथको पढ़कर पाठकगण सेठ माणिकचंदजीके सद्गुणोंका अनुकरण करके पवित्र जिन धर्मके प्रचारमें व जैन जातिको शिक्षित बनानेमें तन, मन, धन अर्पण करनेवाले हों। यही भावना करता हुआ विश्राम लेता हूं और अपने द्वारा रही हुई इस ग्रंथमें त्रुटियोंके लिये सजनोंसे क्षमाका प्रार्थी हूं। दिगम्बर जैन मंदिर, वाड़ी-बड़ौधा। ) पवित्रधर्म व समाजकी वृद्धि चाहनेवालावीर सं० २४४३ मगसर वदी १० ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद ता. २०-११-१६. सम्पादक " जैनमित्र"-सूरत । *समाप्त ।* For Personal & Private Use Only Page #986 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE TRUST DEED OF Sheth Kirachand Comanji Dharmshala HIRABAĞ STAMP Rs. 500. Daily No. 7, Presented at the Bombay Sub-Registrar office on Monday the 10th June 1907 between the houre of 2 and 3 p. m. માનેચંદ હીરાચંદ. MESSRS. MULJI AND KHAMBATTA. Stamp Rs. Five hundred only Assistant Superintendent of S'amps J. C. D. Almeida, Ag. Sub.Registrar. Received fees as follows :Registration fee ... Rs. 100 ( Copying fee Folios 38 5 15 General Stamp Office ; Bombay 18th February 1907. CERTIFIED under section 32 of Act No. 11 of 1899 phat the full stamp duty Rupees (500) Five hundred only with wbich this instrument is charge. able bas been paid. TOTAL Rs. 105 15 ) .C. D. Almeida. Ag sub. Registero Seal of Court. (Sigoaure.) Collector, For Personal & Private Use Only Page #987 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) This Indenture made the tenth day of June one thousand nine hundred and seven BETWEEN MANEKCHAND HIRACHAND and NAVALCHAND HIRACHAND both of Bombay Digamber Jain Hindu Inhabitants of the one part and MANEKHAND HIRACHAND NAVALCIANI) HIRACHAND, HIRACHIAND NEMCHAND, CAOONILAL JAVERCHAND, LALOOBHAI PREMANAND, RAJA GNANCHAND, son of Raja Babadur Musavir Jung Raja (Deen Dayal) and TARACHAND NAVALCHAND all of Bombay Digamber Jain Hindu Inbabitants hereinafter unless otherwise designated called the said trustees which trust shall unlegg repugnant to the context or meaning thereof include the survivors or survivor of them and the heirs executors and administa bors of such survivor their successor or successors and the trustees for the time being of these presents) of the other part Whereas one Panachand Hirachand, Premchand Motichand, the said Manekchand Hirachand and the said Navalcband Hirachand were carrying on business in partnersbip as jewellers and abroffs in Bombay had with the intention of perpetuating the memory and comemorating the name of Sheth Hirachand Gumanit deceased, set apart a certain sum of money from the profits of their business for the purpose of building a Dharamgala to be called Hirabagli and for diverse other charitable purposes hereinafter mentioned for the use and benefit of the Jains in the first instance and generally for the benefit of other high caste Hindus visiting Bombay for a temporary purpose or staying in Bombay for a short period that is to say for the purposes of travel, business, trade, profession service For Personal & Private Use Only Page #988 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) pilgrimage and other like purposes and whereas the said Premchand Motichand and Panachand Hirachand died in Bombay on or about the eleventh day of April one thousand nine hundred and three and the fifteenth day of October one thousand nine hundred and three respectively and whereas the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand out of the said sum so set apart as aforsaid purchased at a cost of Rupees fifty six thousand in the names of both of them the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand & piece or parcel of land or ground hereditaments and premises situate at Kavasji Patel Tank Road within the town of Bombey More particularly described in the schedule hereunder written and subsequently made certain alterations and additions in the said premises at a total cost of Rupees forty three thousand and hence the whole property is about a lac of Rupees worth. And Whereas the said manekchand Hirachand and Navalchand Hirach and are desirous of establishing in the said premises hereinafter unless otherwise designated referred to as the trust estate a Dharamsala for the use and benefit of the persons aforesaid. And also a charitable dispensary and are further desirous of allowing a portion to be used as a Hall for the purpose and with the object hereinafter mentioned. And of setting apart a portion of the said premises to be used as an office for the purpose of transacting such business as may be connected with the diverse charities established or that may be established hereafter by the descendant of the said Hirachand Gumanji and whereas the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand are desirous of declaring a trust thereof and of inviting some other fit and proper persons to join with For Personal & Private Use Only Page #989 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 4 ) them as trustees upon the trusts and uses and fort he ends intents and purposes and with and subject to the powers, provisoes, charges, declarations and agreements bereinaftermentioned, declared and contained concerning the same. And Whereas the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand having requested the said Hira. chand Nemchand, Choonilal Javerchand, Laloobhui Pre. manand, Raja Gnanchand son of Raja Bahadur Musavir Jung (Deen Dayal) and Tarachand Navalchand to act as trustees along with them the said Manekchand Hiracband and Navalchand Hirachand they the said Hirachand Nemchand, Choonilal Javerchand, Laloo. bhai Premanand, Raja Goanchand son of Raja Babadur Musavir Jung (Deen Dayal) and Tarachand Navalchand have consented to act as such trustees by being parties to these presents. Now this Indenture witnesseth and it is here by declared, that the lands hereditaments and premises hereinafter described were purchased out of the said trust moneys. and this indendure further witnesseth that in pursuance and in consideration of the premises they the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand do and each of them doth by these presents grant convey and assure into the said trustees the said trust estate being all that piece or parcel of land or ground 'together with all buildings standing thereon situate lying and being at the said Kavasji patel Tank Road within the Town and Island of Bombay and more particularly described in the Schedule hereunder written tnd delineated on the plan hereto annexed and therein surrounded by a red boundary line together with all houses, out houses buildings, yards, ways, wells, waters, water courses, For Personal & Private Use Only Page #990 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 5 ) sewers, ditches, drains, lights, liberties, easements, advantages, profits, privileges and appurtenances whatsoever to the said trust estate or any part thereof belonging of in anywise appertaining or with the same or any part thereof now or at any time heretofore usually held, used, occupied or enjoyed or reputed to belong or be appurtenant thereto. And all the estate, right, title, interest, claim and demand whatsoever both ag law and in Equity af them the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand into or upon the said trust estate and every part thereof. To have and to hold the said trust estate hereby granted and assured or expressed so to be unto the said trustees to the use - upon the trusts and for the ends intents and purposes and with under and subject to the powers, provisoes, charges, declarations and agreements hereinafter limited, declared and contained of and concerning the same that is to say tbat the said trustees shall hold and stand possessed of the said trust estate upon trust Fir. stly to allow such portion of the said trust estate as is coloured yellow on the plan here to appexed to be used as a Dharamsala or resting-place for the use and benefit of Jains and other high caste Hindus visiting Bombay for the purpose of travel, business, trade, profession, service, pilgrimage and other like purposes with power to the said trustees to allot and seta part for the purposes aforesaid such further portion or portions out of the said trust estate as are hereinafter directed to be let to tenants as the trustees may from time to time deem fit and proper. Provided always and it is hereby further agreed and declared that preference shall always be given to the Hindus professing the Jain pursuasion. For Personal & Private Use Only Page #991 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) Secondly to allow a portion of the said trust estate for the purpose of opening a Dispensary replete with such drugs and chemicals as may not be repugnant. to the feeling of a person Professing thə Jain religion for the use and benefio of such persons and on such terms and conditions as the trustees may from time to time prescribe. Thirdly to allow a portion of the said of trust estate to be used as a Hall or meetiug-place (for the use of the Jains and other Hindus generally) for the purpose of delivering sermons, or lectures on 'relig. jon, ethics, science, educatioc, or for holdings meetings for any lawful purpose or for performing Jain religious rites and ceremonies or for such other purposes of a like nature and on such terms and conditions as the said trustees may think fit or proper. Fourthly to allow a portion of the said trust estate for opening an office for the transaction and management of business aforesaid as well as of business relating to diverse charitable institutions established or to be established by the heire. and descendants of Seth Hirachand Gumanji. Fifthly to let out such portion of the trust estate as is coloured red on the plan hereto annexed to such tenants or tenant and on such rent or rents and upon such terms and conditions as the said trustees in their absolute discretion may deem fin, and the said trustees shall' collect, get in and recover the rents and profits thereof and pay thereout in the first instance all rates and taxes of what nature and kind soever payable to the Government of Bombay and the Municipality of Bombay, Secondly such sum or sums as shall be requisite or necessary for the purpose of keeping the said trust estate in good order and Condition and insured against: For Personal & Private Use Only Page #992 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (7) loss by fire or accident and lastly the costs and expenses of and incidental to the management of the said trust estate and shall out of the residue of such rents and profits thereof set apart (1) a sum equal fo thirty por cent thereof to form the nucleus of a reserved fund to be used on occasions of urgency and emergency or accident such as in making repairs of a specjal kind and in making additions and alterations into or upon the said trust estate or any part thereof from time to time as to the trustees may seem fit and proper (2) a sum equal to forty percent. for the purpose of establishing, equipping and maintaining the said Dispensary replete with all necessary instruments and appliances and also with such drugs, powders and chemicals as may not be repugnant to the feelings of persons professihg the Jain religion for the use and benefit of persons profossing the Jain religion and generally for all classes of high caste Hindoos and for the purpose of giving free of charge medical help and advice and dispensing medicines and for defraying the expenses of keeping a proper staff that is to say Doctors, Compounders and other servants as may from time to time be found necessary. And the trustees shall out of the residue of the said rents and Profits further set apart a sum equal to ben percent thereof and shall pay the same from time to time to the Secretary of the Digamber Jain Praptic Sabha of Bombay as long as the office of the said Sabha remaios in and continues to work in Bombay but if the said Sabba removes its office to any other place out of Bombay then the said payment shall discontinue and shall accumulate until the time the said Sabha a gain removes its office to and works in Bom For Personal & Private Use Only Page #993 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) bay when the accumulated amount should be paid over to the said Sabha and payment of the said ten percent should thereafter be continued and the trustees shall out of the remaining twenty percent of the said residue pay such sum or sums of money on the poor members of the Jain Digamber Community who to the said trustees may appear deserving of support either in their business or for the purpose of maintaining them. And it is hereby further agreed and declared that the Reserved Fund to be set apart as aforesaid and all sums of moneys remaining unexpended in the hands of the said trustees shall be invested in securities authorised under the provisions of the lodian Trust Act II of 1882 Section 20 or any of them or in the purchase of an immoveable property in Bombay which investiments shall form part of the reserve fund and shall be utilised for the purposes hereinbefore mentioned in connection with the Reserve fund. And it is hereby further provided and declared that for the proper mit nagement of the said trustees shall appoiot a Managing Committee which shall from time to time make such rules and regulations in respect of the proper and better management of the several objects of the trust as the said committee shall think fit and proper. And it is hereby further agreed and declared that it shall be lawful for the managing committee to reserve from time to time such portion or portions of the said Dharamsala for the use and benefit of Digamber Jains only as they may from time to time think fit. And that the said managing committee for the purposes afore. said shall consist of the trustees for the time being of these presents and of such other persons as shall from For Personal & Private Use Only Page #994 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9) time to time be elected members of the Managing Committee of Sheth Hirachand Gumanji Jain Boarding School. And it is hereby agreed and declared that if at any time the said trust estate or any part thereof shall be purchased or taken possession of by the Government or the Municipality of Bombay or by the Bombay City Improvement Trust for any public purpose under any law for the time being in force relating to the acquisition of land then and in that case it shall be lawful for the trustees of these presents to apply the moneys or compensation to be received therefor for the purpose of erecting one or more new building or buildings at such place or places in Bombay as the trustees may from time to time agree upon for the purpose of the trusts of these presents. And it is hereby further agreed and declared that the trustees of these presents sball at all times be pot less than six and more tban eight and that two male descendants from the family of the said Hirachand Gumanji shall always act as trustees of these presents but if there be po such male descendant then two persons from the nearest male relations of the said Hirachand Gumanji and who may be found fit to act shall be appointed trustees of these presents. And it is hereby further agreed and declared that Sheth Manekchand Hirachand shall be the Chairman of the trustees hereby appointed and after his decease sh eldest surviving male member of the family of Sheth Hirachand Gumanjj shall be appointed to act as chairman of the trustees and if there be no such member living then in such case any of the nea rest male relations of the said Hirachand Gumanji shall be appointed to act as Chairman of the For Personal & Private Use Only Page #995 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) trustees and that such Chairman shall also be the Chairman of the Managing Committee and shall preside at every meeting of the trustees and the Managing Committee and in his absence the trustees and the Man aging Committee shall have power to appoint any one of them to act as such Chairman. And it is hereby further agreed and declared that the business of the trust shall be carried on by majority of votes and the Chairman shall have in addition to bis own vote & castiug vote Provided always and it is lastly declared that if the trnstees hereby appointed or to be appointed as hereinafter mentioned or any of them shall happen to die or continue to reside abroad for a period of more than twelve calender mopths or become bankrupt or take the benefit of apy Act for relief of Insolvent Debtors or resign or be desirou s of being discharged or disclaim neglect or refuse to any or become incapable of acting in the trusts hereinbefore declared before the same shall have been fully executed then and in every such case and so often as the same shall happen it shall be lawful for the said Manekchand Hirachand and Naval. chand Hirachand during their joint lives and after the decease of any of them or the survivor of them and. after the decease of such survivor for the surviving or continuing trustees or trustee for the time being of these presents or for the executors or dministrators of the last surviving or continuing trustee by any deed or instrumont in writing from time to time to substitute or appoint within a period of three montbs from the happening of any of the aforesaid contingencies any persons or person in the place or stead of such trustees or trustee so dying or continuing to reside abroad bec For Personal & Private Use Only Page #996 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (11) oming Ban krupt or Ibsolvent desirous to be discharged disclaiming neglecting cr refusing to act or becoming, incapable of acting as aforesaid and immediately the reupon all the aforesaid trust estate and premises shall be forthwith conveyed, assigned and assured so and in such manner as that the same may become legally and effectually vested in such new trustee or trustees either jointly with the survivirg or continuing trustees or trustee or solely as the case may be to the uses upon the trust and to the ends intents and purposes herein before limited and declared or such of them as shall be then subsisting, undetermined and capable of taking effect and every instruinent expresied to be made in pureuance of the aforesaid power and not appearing on the face of it to be invalid shall although not so made be valid and effectual for all purposes other than the exoneration of the parties to the making thereof from responsibilities and that every such new trustee or trustees either before or after such con veyance assignment or assurance as aforesaid shall have the same power and authority in all respects as if he or thay had been originally appointed a trustee or trustees by these presents Provided always and it is bereby declared that. the trustee or trustees to be appointed as hereinabove mentioned shall be appointed from the trustees of Sheth Hirachand Gumapjis Jain Boarding school and that there shall be at least two meetings of the trustees -- in a year but if any two trustees desire a meeting of the trustees to be held the chairman shall convene & meeting of the trustees. And that accounts and the reports sball be printed and published every year, that. bills of monthly income and expenses should bear the For Personal & Private Use Only Page #997 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (12) signature of at least two trustees and that no trustee or trustees hereby appointed or to be appointed as aforesaid be responsible for the acts deeds or defaults of any co-trustee or co-brustees nor for involuntary losses nor for moneys .expressed to have been receivel in any receipt or receipts in which they or he shall join for the sake of conformity only nor be accountable for any banker broker attorney solicitor. agent or auctioneer or any other person or persons whomsoever with whom any of the trust monies may be deposited for safe custody or otherwise in execution of the aforesaid trust nor for the insufficiency or deficiency of any stock funds or securities nor for any other loss of damage that may bappen to arise to all or any part. 2 the said trust estate monies and premises unless through the wilful neglect or default of such trustees respectively and that the present or any future trustees or trustee shall or may reimbures himself and themselves out of the monies which shall come to his or their hands by virtue of these presents all such costs damages and expenses as he or they shall incur or sustain in or about the execution of the aforesaid trust, or in relation thereto and the said Aanekchaad Hirachand and Navalchand Hirachand do hereby for themselves heir heirs executors and administrators covenant with the said trustees that notwithstanding any act deed or thing whatsoever by them the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand or any person or persons lawfully or equitably claiminy by from through under or in trust for them made, . done or committed or omitted to the contrary they the · said Manekchand Hirachand and Navalch and Hirachand For Personal & Private Use Only Page #998 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (13) vow have in tbemselves good right full power and absolute authority to grant and assure the said trust Estate hereby granted and assured or intended so to be unto and to the use of the said trustees in manner aforesaid. And that it shall be lawful for the said. trustees from time to time and at all times hereafter peaceably and quietly to enter upon possess and enjoy the said trust estate and to receive and take the rents and profits thereof and of every part thereof without any lawful eviction interruption claim or demand whatsoever of from or by them the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand or any person or persons lawfully or equitably claimivg or to claim by from under or in trust for them or any of them and tbat free from all incumbrarcers whatsoever and further that they the said Manekchand Hirachand, Navalchand Hirachand and their beirs executers and administrators. and all and every other person or persons whosoever having or claiming any estate or interest whatsoever in the said trust estate or any of them or any part thereof from under or in trust for the said Manekchand Hirachand and Navalchand Hirachand their heirs or any of them shall and will from time to time and at all times hereafter upon every reasonable request and at the costs of the said trustees do and execute or cause to be done and executed all such further and other lawful acts deeds and things whatsoever for the For Personal & Private Use Only Page #999 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (14) better and more perfectly conveying and assuring the said trust estate and every part thereof the unto said trustees in manner aforesaid as by the said trustees shall be reasonably repuired, in witness where of the parties hereto have hereunto set their respective. hands and seals the day and year first hereinabove written. Schedule. All that piece or parcel of Pension and Taxland being a portion of all that land or cart which is known by tbe name of Kapoorwady together with the messuages, tenements or buildings hereditaments and premises standing thereon lying end being in the Kandewady Lane at the corner of the Khatar Gully Lane opposite the Cawasji patel Tank out of the Fort in the Town and Island and in the Registration Sub. District of Bompay containing by admeasurement 1706 equare yards or obereabouts and bearing Collectors Old No. 17 and 140 Now No- B-77 and B-1273 Old Survey No-459, 462 and New Survey No. 7521 and assessed by the assessor and Collector of Municipal rates and taxes under D. Ward No. 1266, 1267, 833, 832, 825, 827, and 830 ond street Nos. 70, 72, 74, 149, 151, 147, 135, 3 and 5 and which said premises are bounded on the North partly by the said Kandewady Street and partly by the Bhooleshwar Road joins the said Kandewady Street on the East by vacant land formerly be For Personal & Private Use Only Page #1000 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (15) longing to Damodar Balaji but now belonging to Ardesir Hormusji Wadia and on the South by the strip of land belonging to the Vendors falling within the regular line of street and iptended to be acquired by the Municipality of Bombay for widening Kbutar Gully Lane beyond which the said Khutar Gully Lane and which said premises are now and for many years past have been the possession of the said Vendor and his tenants. Signed. For Personal & Private Use Only Page #1001 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #1002 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JIS UN U 3 The Trust-deed of Sheth Birachand Gumanji Jain Boarding School Stamp Rs. 200. Daily No. 6 of 23rd 1 January 1900. Received fees as follows:- Presented at the Registration fee Rs. 40-0-0 Bombay Sub-Registrar Copying fee Rs. 6-9-0 office on Tuesday the (12 Fols.) 23rd January 1900 at Total Rs. 46-9-0 2-15 P. M. માણેકચંદ હીરાચંદ. M. W. Gadgil, M. W. Gadgil, Sub-Registiar. Sub-Registrar. This Indenture p a le the 4th day of December in the Christian year one thousand eight hundred and ninty nine betw en Panachand Hirachand, Manekchi ni Hirac hand, Navalchand Hjrachand and Premchand Motichand all of Bombay Hindocs professing the Jain Digaml'er faith (hereinafter unless otherwise designated called the settlors) of the one part and the said Panachand Hirachand, Manekohand Hirachand, Navalchand Hirachand, Premchand Motichand, Raja Dba: amchandra, son of Raja Bahadur Nussavir Jung (Deen Dayal) and Hirachand Nemchand all of Bombay Hindoos following the same Digamker Jajn religion (her in: iter For Personal & Private Use Only Page #1003 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (18) unless otherwise designated called the trustees) f the other part. Whereas the said Panachand Hirachand, Manekchand Hirachand, Navalchand Hirachand and Premchand Motichand aro absolutely possessed of or otherwise well and sufficiently entitled to the piece or parcel of land or ground hereditaments and pren ises hereinafter described (and here palter unless otherwise designated referred to as the trust estate) free from in :umbrances. And Where is the said settlors are desirous of establishing a Jain Boarding House for the use and benefit of their fellow countrvmen, of the Jain casto in order to perpetuale he memory of their father Hirachand Gumanji, and whereas for the charitable purposes aforesaid the said settlors are desirous of settling the said trust estate to the uses upon the trusts and for the ends, intents and purpos-s and with and subject to the powers, provisoes, charges, declarations, and &greements hereinafter limited, declared and contain=d. Now this Indenture witnesseth that in pursuance of the said desire and in consideration of the premises they the said Panachand Hirachand, Manekchand Hirachand, Navalchand Hirachand an] Premchand Motichand do by these presents .grant, convey and assure unto the said Panachand Hirachand, Mauekchand Hirachand, Navalchand Hirachanda For Personal & Private Use Only Page #1004 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (19) Premchand Motichand, Raja Dharamchandra son of Raja Bahadur Mussavir Jung (Deen Dayzl) and Hira :hand Manekcband and the Survivors and Survivor of them and their and his successors and assigns. All that piece or parcel of land or salt balty ground with the messuage tenements and buildings standing thereon situate on the west side of the Gilder Street outside the Fort of Bombay in tho Registration Sub-District of Bombay containing by admeasurement two thousard six hundred and sixty square yards be the same little moro or less and assessed by the Collector of Land Revenue New Nos. 13862, 13874, 13930, a 1662 under old Nos. 346, 131, and old Survey Nos. new Survey Nos. T04 2003 2004 and by the Assessor and Collector of Municipal rates and taxes under ward No. E. 2829, 2830, 2625, 2778 (1), (2) 2779; (2). (3) 2831 to 2833, 2626, and street No. 1, 3, 174, 5 to 9,476 to 480 and bounded as follows, that is to say on or towadrs the East by the said Gilder Street, on or towards the West by the other property of the said Panachand Hirachand, Manekchand Hirachand, Navalcband Hirachand, and Premchand Motichand, on or towards the north partly by the Falkland road, partly by the Low Lover road and partly by property of Cawasjee Kharadi For Personal & Private Use Only Page #1005 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) and on or towards the South by the Public Passage and which said land hereditaments and premises are now in the possession of the said Panachand Hirachand,Manekchand Hirachand Nawalchand Hirachand, and Premchand Motichand and which said premises are particularly delineated in the ground plan thereof hereto annexed and marked with the letter A. and therein coloured by a red boundary line and which said land hereditaments and premises are for the purpose of the Stamp Act, estimated to be of the present market value of rupees forty thousand. Together with all houses, cut houses, buildings yards, ways, wells, waters, water courses, sewers, ditches, drains, lights, liberties, easements, profits, privilages and a appurtenances, whatsoever to the said piece or parcel of land or ground hereditaments and premises or any part thereof belonging or in any-wise appertaining or with the same or any part thereof now or at any time heretofore usually held, used, occupied or enjoyed or reputed to belong or be appertenant thereto, and all the estate, right, title, interest, claim and demand whatsoever both at Law and in Equity of them the said Panachand Hirachand, Manekchand Hirachand, Navalchand Hirachand and Prem. chand Motichand into or upon the said piece or parcel of land or ground hereditaments and For Personal & Private Use Only Page #1006 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 81 ) premises and every part thereof. To Have and to hold the said piece or parcel of land or ground hereditaments and premises hereby granted and assured or expressed so to ke unto the trustees and the survivors and survivor of them and their and his sucessors and assigns to the use upon the trusts and for the ends, intents and purposes and with under and subject to the powers, provises, charges, de:larations and agreements, hereinafter limited, declared and contained of and concerning the same that is to say that the said trustees or trustee for the time being of these presents shall hold and stand possessed of the said land hereditaments and promises herein before described and shall collect and get the rents and profits thereof and shall pay thereout all the rates and taxes payable to the Government of Bombay and the Municipality of Bombay and shall spend such portion thereof as sball be requisite or necessary for the purpose of keeping the said hereditaments premises in the good repair and condition and of keeping them insured and for the purposes of managing the said trust and shall out of the residue of the rents and profits set apart at least five percent of the net annual income to wards forming a reserved fund to be used on occasions of urgency, emergeney or accident as the trustees may think proper and out of the For Personal & Private Use Only Page #1007 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (22) residue the trustees shall set apart a sum of Rupees twenty five per month for the purposes of the maintenance of a Dera (temple) to be hereafter erected on a position of the said land such as paying as a Poojari and lighting the temple and keeping Pooja articles such as Kesar e. and out of the residue shall pay the salary of a propers superintedent and shall appoint a proper person as superintendent to look after the boys or youngmen to be admitted to the Boarding House under or by virtue of this settlement with power to remove him and to appoint another in his stead and shall appoint & managing Committee for the management of the said Boarding House with power to remove the Fame or any member thereof and to appoint others, and shall have full power to make rules. and from time to time to abrogate, alter, and add to the game for the guidance of such mana... ging Committee and superintendent and generally for the purpose of carrying out this settleinent and the object thereof provided only that. no such rule shall be against the law or in consistent with the provisions hereof. Further that the said trustees shall out of the residure of the income and rent including the general charges of carrying one tenth for payments of scholarships to poor Jains engaged in learning the Jain Shashtras in Sanskrit and another four For Personal & Private Use Only Page #1008 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (23) tenths towards payn.ent of scholarships to the Degamber pcor Jains who are taking general education in or out of Bombay and the remain. ing five tenths towards the payment of the Scholarship to the students residing in the Boarding House which shall be called “Sheth Hirachand Gumanji Jain Boarding House." FURTHER that any sums remaining un. expended shall be invested in securities of Govern. ment of India or upon any of the public stock fund port trust Bonds or Debentures or Municipal Loons or other elisgible securities under the Law for the time being in force in this respect and form reserve funds for the purposes for which the unexpended sums are by this set. tlement intinded. Further that the premises marked B on the accompanying plan shall be used for Boarding purposes and that the premises marked C on the accompanying plan sball be used for Dharmsa's, and that the plate containing the inseription as to such Boarding House shall be fixed upon some conspicuous part of the said Boarding House and that the said trustees shall allow the Jain boys who have pass :d the Matriculation Examination and who intend to prosecute their studies in some College or are studying for the District Pleader's and Sub-judge's Examinatiors to live in the said Paording House free of rent provided For Personal & Private Use Only Page #1009 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (24) always that preference shall be given to the Digamber Jains who have passed their Matriculation examinations with Sanskrit as their second Language and provided further if there is any surplus accomodation in the Jain Boarding House Digambari Jain Students who have passed tne fourth English standard and are studying for the higher stand-rds or for the Matriculation examination may also be allowed to live therein free of rent Provided always that in the event and for the time there are no students living in the said Boarding House, the same may be tem. porarily used for such Jain religious purposes as the trust zes for time being may dee in meet. Provided further that Digambari Jain (Traveller3 ) may be allowed to lodge in the Dharmshala free of l'eut. Provided further that any person of Jain religion desiring to build a Digambari Jain Dera (temple) on the premi:e3 hereby granted or intended so to be at his own coit expenses may be allowed to do so subject to such terms and conditions as to site and style of building as may be laid down by the trustees. But no such person shall have any right whatever over the said temple after it is built and completed but the same shall vest in the tru tees and only the ceremonies relating to the Jain Digamber religion shall be allowed to be performei in the temple. that For Personal & Private Use Only Page #1010 -------------------------------------------------------------------------- ________________ the said trustees shall be at liberty to accept and take such sum or sums of money which shall be given by any Jain towards the purposes of the said trust and such monies shall form a part of this trust estate. that the trustees for the time being of these presents shall appoint a Managing Committee which shall from time to time make such rules and regulations in respect of the proper and better management of the said Boarding House, Dharmsbala, and Temple if built as they shall think fit and proper. Chat there shall be a Managing Committee for the purpo e3 &oresaid which shall coosist of the trustees for the time being of these presents and of such other persons from time to time as may be elected by such trustees out of the Jains following Digamber Jain religion. That there shall always be two trustees out of the male descendants of the said Hirachand Gumanji and if t'ere shall be no made descendent of the said Hirachand Gumanji, such two trustees shall be appointed from the nearest relation of the suid Hirachand Gumanji. Provi. med always that if at any time the said land hereditaments or premises or any part thereof shall be taken by the Government for any public purpose under any Law for the time being in force the amount of compensation that For Personal & Private Use Only Page #1011 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (26) may be given for the same or any part thereof shall be applied for the ends, intents and purposes afore-said. Tht the number of the trustees shall be at least six and shall not exceed eight. That Sheth Panachand Hirachand shall be the Chairman of the first trustees and after his decease the elder living scion of Sheth Hirachand Gumanji shall be appointed the Chairman of the trustees. That the Chairman of the trust es shall also be the President of the Managing Committee unless he resigns. During the temporary absence of the Chairman the trustees may appoint any one of themselves to act as chairman for the time being. Provi· ded always and it is hereby lastly declared that 3the trustees hereby appointed or to be appointed as hereinafter mentioned or any of them shall happen to die, continue to reside abroad for fhe space of more than twelve calendar months or shall become a bankrupt or take the benefit of any act for the relief of insolvant debtors or be desirous of being dischaarged from disclaim neglect refuse to act or become incapable of acting in the trust herein Lefore declared before the same shall be fully performed and then and in such case and so often as the same shall happen it shall be lawful for the said Panachand Hirachand, manek chand Hirachaud, Navalchand Hirachand and For Personal & Private Use Only Page #1012 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Premchand Moticband, during their joint lives. and after the decease of any of them for the survivor and after the decease of such survivor for the surviving or continuing trustees of trustee of these presents for the time being or the executors administrators of the last surviving or continuing trustee by any deed or instrument in writing from time to time to sulstitute or appoint within three months at the most any persons or person in the stead or place of such trustees or trustee so dying continuing to reside abroad le oming bankrupt or insolvent, desirous to ke discharged, disclaiwining, neglecting or refusing to act or Lecoming incapable of acting as aforesaid and immediately tbereupon all the aforesaid trust estste and premises shall be forth.with conveyed assigned and assured so and in such manner as è hat the same may become legally and effectually vested in such new trustee or trustees either jointly with the surviving or continuing trustees or trustee or solely as the case may be to the uses, upon the trust and to the ends intents and purposes hereip before limited and declared or such of them as shall be then subsisting undetermined and capa! le of taking effect and every instrument express d to be nade in pursuance of the aforesaid power and not appearing on the face wf it to be juyalid shall although not so: For Personal & Private Use Only Page #1013 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (28) or made be valid and effectual for all purposes other then the exoneration of the partics to the making thereof from responsibities and that every such new trustees or trustee either before after such conveyance assignment or assurance as aforesaid shall have the same power and authority in all respects as if he or they had been originally appointed a trustee or trustees by these presents and that there shall be at least two meetings of the trustees in a year but if any two trustees desire a meeting of the or co-trus trustees to be held the Chairman shall convene a meeting of the trustees That accounts and the reports shall be printed and published every year, that the bills of monthly incomes and expenses should bear the signatures of atleast two trustees and that no trustee or trustees hereby appointed or to be appointed as aforesaid shall be responsible for the acts deeds or defaults of any co-trustee tees, nor for involuntary losses nor for monies expressed to have been received in any receipt or receipts in which they shall join for conformity only, nor be accountable for the sufficiency of any banker, broker, attorney, solicitor, agent or au tioneer or any other person or persons whomsoever with whom any of the trust monies may be deposited for safe custody or otherwise or who may receive the same in For Personal & Private Use Only Page #1014 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (29) execution of the aforesaid trust, nor for the insufficiency of any stock funds or securities. nor for any other loss or damage that may happen to arise of or to all or to any part of the said trust estate, trust monies and pre-. mises unless through the wilful default of such trustees respectively and that the present or any future trustees or trustee shall and may reimburse themselves and each other out of the monies which shall come to their respective hands by virtue of these presents all such costs.. damages and expenses as they or any of them shall or may sufler, sustain expend disburse or be put into in or about the execution of the aforesaid trust or in relation thereto and the said Panachand Hirachand, Manekchand, Hira. chand, Navalchand Hirachand and Premchand Motichand do hereby for themselves their heirs, executors and administrators convenant with the said trustees, their successors and assigns. and their heirs, executors, administrators and assigns, that notwithstanding any act deed or thing whatsoever by them the said Panachand Hirachand, Manekchand Hirachand, Navalchand Hirachand and Premchand Motichand or any person or persons lawfully or equitably claimo. ing by through, under or in trust for them made, done or comạitted or omitted to the For Personal & Private Use Only Page #1015 -------------------------------------------------------------------------- ________________ contrary they the said Panacnund Hirachand, Manek chand Hirachand, Navalchand Hirachand and Premchand Motichand, now have in themselves good right full power and absolute authority to grant and assure the hereditament and premises hereby granted released and assured or intended so to be unto and to the use of ihe said trustees, their successors and assigns and their hoirs, executors, administrators and assigns in manner aforesaid. And that it shall be lawful for the said trustees their successors and assigns and their heirs, executors administrators and assigns from time to time and at all times hereafter peacably, quietly to enter upon, possess, and enjoy the said hereditaments avd premises and to receive and take the rents and profits thereof and of every part thereof without any lawful eviction, interruption, claim or demand whatsoever of, from, or by them the said Panschand Hirachand, Manekchand Hirachand, Navalchand Hir achand, and Premchand Motichand or any person or persons lawfully or equitably claiming or to claim by, from, under or in trust for them or any of them, and that free from all incuinbrances, and further that they the said Panachand Hirachand, Manekchand Hirachand, Navalohaod Hirachand and Premchand For Personal & Private Use Only Page #1016 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (31) Motichand and their heirs executors and administrators and all and every other person or persons whosesoever having or claiming any estate or interest whatsoever in the same bereditaments and premises or any of them or any part thereof, from, under, or in trust for the said Panachand Hirachand, Manekchand Hirachand, Navalchand Hirachand and Premchand Motichand or their heirs or any of them shall and will from time to time and at all times hereafter upon every reasonable request and at the costs of the said trustees, their successors, and assigns and their heirs, executors, administrators or assigns do and execute or cause to be done and executed all such further and other lawful acts deeds and things wbatsoever for the better and more perfectly conveying and assuring the said heredituments and premises and every part thereof unto the said trustees their successors and assigns and their heirs, executors, administrators and assigns in manner aforesaid as by the said trustees their successors and assigns and their heirs, executors administrators or assigns or their counsel in the Lair shall be reasonably required. In Witnega Whereof the parties bereto have respectively hereunto set their respective hands and seals, the day and year first abover written. Signed. For Personal & Private Use Only Page #1017 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #1018 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only