________________
सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । [१२१ लेता है व समझ लेता है। उपयोगके एक ओर देर तक जमाए रखनेके कारण एक व्यापारी व्यापारके ढंग भले प्रकार सोच सक्ता है। प्रयोजन यह कि हरएक कामको धैर्यके साथ पूरा करनेके लिये उपयोगकी थिरताकी आवश्यकता है। एडिसन जैसे अमेरिका आदि देशोंके विद्वानोंने इसीकी बदौलत नाना प्रकारके यंत्र निर्माण किये हैं। विद्वान् लोग जब एकान्तमें किसी विषयका मनन करते हैं तो उसके भेदको खोज लेते हैं। टेलीग्राफ, टेलिफोन, वेतारका तार, मोटर गाड़ी, हवाई विमान आदि सर्व ही उपयोगकी थिरताके फल हैं । माणिकचंद इस उपयोगी गुणके आश्रयसे कुछ ही महीनों में ही मोती पुराने में चतुर हो गए और अपने दोनों भाइयोंके साथ मोती पोकर द्रव्य कमाने लगे। बाजार में लोग पानाचंद और मणिकचंदके कामको बहुत ही पसंद करते थे और इनको खूब ही काम मिलता था । कामकी अधिकता व अपना यश फैलता देख भाइयोंने पिता
जीको कहा कि नवलचंदको भी यह काम नवलचंद भी व्यापारमें सिखाना चाहिये। नवलचंद अब अनुमान
शामिल। ११ वर्षके थे । नवलचंदने भी १ वर्ष परिश्रम कर इस कामको सीख लिया। अब चारों भाई मिलकर बाजारके व्यापारियोंका मोती ले लेकर
और पो पोकर देते थे। इनको सबसे अधिक एकतासे चारोंकी बाजारमें काम मिलने लगा, क्योंकि यह बहुत व्यापार में वृद्धि। चित्त लगाकर और सफाईसे वक्तके ऊपर
सबका काम कर देते थे। चारों भाइयोंमें पूर्ण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org