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________________ १२० ] ...अध्याय चौथा। रसोई बनाकर रोज चारों पुत्रोंको खिलाने लगे और समयपर बाजार में भी जाकर कुछ साधारण व्यापार करने लगे। - माणिकचंदकी रुचि हिसाब किताबमें देखकर एक सराफके यहाँ बही खाता सीखनेके लिये बैठाया । १ वर्षमें ही यह सब दंग जान गए तब हेमकौरके कहनेसे सेठ हेमचंद प्रेमचंदने अपनी दुकानपर बिठाकर मुनीमतका काम लेना शुरू किया। थोड़े दिनोंके बाद पानाचंदने पिताजीसे कहा कि माणिकचंद बहुत परिश्रमी और चतुर है, मेरी रायमें इसे भी मोती पुराना सिखलाना चाहिये । हीराचंदजीने यह बात मानकर मोती. पुराना सिखलानेमें माणिकचंदको भी लगा दिया। वास्तव में माणिकचंद पानाचंदकी उच्च स्थिति लानेमें मूल निमित्त कारण सेठ चुन्नीलाल हेमचंदकी हेमकुमरीका उपकार । माता हेमकुमरी थी, जिसने अपने पिताको सुखी करने व भाईयोंकी उन्नत दशा कराने में पूरी २ सहायता दी । हेमकुमरीने अपना सच्चा बहिनपना पालन किया । माणिकचंदमें एक यह बड़ाभारी गुण था कि जिस काममें दिल लगाते थे उसमें बिलकुल लवलीन हो जाते थे, वास्तवमें सेठ माणिचंदका उपयोगकी एकाग्रता बड़े २काम व्यापार में लगना। कर सकती है। यह उपयोगकी एकाग्रता है जिसके कारण एक मुनि धर्मध्यानसे शुक्लध्यानको पाकर कर्मोको काट मोक्ष अवस्थाको प्राप्त कर लेते हैं। उपयोगकी एकतासे ही एक विद्यार्थी थोड़े ही कालमें किसी पाठको कंठ कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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