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________________ सठ माणिकचंदकी वृद्धि । [ ११९ करते हुए देखा तब बहुत ही प्रसन्न हुई और लौटकर अपने पिताको सर्व हाल कहा, तथा यह भी कहा कि यदि आप भी इन दोनों पुत्रोंको साथ लेकर बम्बई जावें तो अच्छा हो । इधर पानाचढ़ने भी अपने पूज्य पिताजीको पत्र लिखा कि आप वहाँ अफीमका काम बन्दकर दोनों भाइयों को लेकर बम्बई चले आवें, जिससे हम सब मिलकर यहां अपना भाग्य अजमावें । साह हीराचंदका काम यहाँ नहीं चलता था, रोज़ स्वयं हाथसे रोटी बनाकर खिलाते थे, इससे साहजीने भी बम्बई चलनेकी ठान ली । इस समय माणिकचंदकी अवस्था १२ वर्षकी थी । यह देशी निशालसे उठकर गुजराती शाला में ५वीं सेठ माणिकचंदजीका कक्षा तक भाषा आदिका ज्ञान कर चुके थे 'छोटे भाई के साथ तथा नवलचंद केवल ९ वर्षके थे । यह देशी बम्बई जाना | निशालसे उठकर किसी गुजराती शाला में भरती नहीं हो सके। घर ही में अपने पूज्य पितासे गुजराती आदि सीखे थे। साह हीराचंद ने अपना सब काम समेट कर बाज़ार में जिसका जो देना था सो सब चुका दिया और संवत् १९२०के प्रारंभ में ही हीराचंदजी दोनों पुत्रोंको लेकर बम्बई आ गए और एक 'वाकनीनी चाल' नामक भाड़ेके मकान में ठहरे | साह हीराचंदजी को यह पसन्द नहीं था कि ब्राह्मण आदि अजैनोंकी व अविवेकी जैनोंकी बीसीमें हीराचंदजीकी पुत्र मूल्य देकर अशुद्ध भोजन किया जाय । उन्होंने जाते ही मोतीचंद और पानाचंदको मी बीसी में नहीं जीमने दिया, अपने हाथसे सेवा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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