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________________ ३७२ ] अध्याय नवां | बहुत वृद्धि - गत किया और अपने जीवन में निम्नलिखित उल्लेख योग्य धर्मकार्य किये । (१) सं० १९३३ फागुण सु० २ को रु० ५००००) खर्च कर श्री तारंगाजी में जिनबिम्ब प्रतिष्ठा कराई | (२) सं० १९३४ में सम्मेद शिखरजीकी यात्रा में हजारों खर्च किये । (३) सं० १९३८ में श्री केशरियाजीकी यात्रामें संघ सहित जाकर १००००) खर्च किये । (४) सं० १९४८ में श्रीगोमट्टस्वामीकी यात्रा बड़ी धूमधाम से की, हजारों रुपये खर्च किये । (५) सं० १९४८ में चतुर्विधि, दानशालाको बड़े भावसे स्था पन कराया । (६) सं० १९५१ में पालीतानामें सेठ हरिभाई देवकरणके साथ बिम्बप्रतिष्ठा कराई उसमें ५००००) पचास हजार रु० खर्च किये ! (७) सं० १९५७ में बम्बई संस्कृत विद्यालय फंडमें १००० ) दिये । पालिताना की प्रतिष्ठा के समय इनका पुत्र रामभाऊ २५ वर्षकी आयुमें परलोक सिधार गया । आपने कुछ भी शोक न करके स्वयं शांति रक्खी व औरोंको धैय्य बंधाया। शोलापुर के जैनियोंमें इनकी बहुत बड़ी प्रतिष्ठा थी तथा यह लोक बहादुर कहाते थे । । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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