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________________ समाजकी सच्ची सेवा। [३७१ स्तवनिधि क्षेत्रमें एक दिन कन्याविक्रयकी हानिकारक रीति पर चर्चा हुई उस समय बताया गया कि कन्याविक्रयके द्रव्यसे अपनी कन्याओंको बेचनेके समान निन्द्यकर्म ज्ञातिभोजनमें श- और नहीं हैं तथा जो लोग ऐसे द्रव्यसे रीक न होनेकी बने हुए ज्ञाति भोजनमें शरीक होते हैं वे प्रतिज्ञा भी महा निन्द्य काम करते हैं । यह भोजन उच्छिष्टके समान है। उस समय हमारे सेठजीने इस बातकी प्रतिज्ञा की कि हम ऐसे भोजनको नहीं खावेंगे इनके साथ निम्नलिखित भाइयोंने और भी नियम लिये १-सेठ हीराचंद रामचंद (हरीभाई देवकरण)शोलापुर २-,, हीराचंद नेमचंद ३-शा. वालचन्द जीवराज ४-सेठ रामचन्द नाथारंगजी बम्बई सेठ माणिकचंदमें गुणग्राहकताका अच्छा गुण था । आपमें यह आदत थी कि गुणोंको ग्रहण करेंउदार पुरुषका दोषोंकी तरफ ध्यान न देवें । सेठजीने जैनसन्मान। मित्र अंक ८.९ वैशाख, जेठ १९६०, में बम्बई प्रांतिक सभाके सभापतिकी हैसियतसे एक धर्मात्मा सेठकी मृत्यु पर अपना शोकोद्गम प्रगट किया है। शोलापुर में एक धनाढ्य अग्रेसर दानवीररत्न सेठ रावजीभाई कस्तुरचंदजी थे जो मिती चैत्र कृ० १४को लोकबहादुर रावजी अपनी ५६ वर्षकी आयु में परलोक सिधारेकस्तूरचंद शोलापुर। इस नरने अपने पिताकी सम्पत्तिको मुंबई, शोलापुर, पूना आदि स्थानों में व्यापार करके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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