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अध्याय तीसरा ।।
त्योंकर एक साथ रहा परंतु अब मुझको साथ रहना नहीं है इससे आप सर्व मालका विभाग कर देवें ।
साह हीराचंदको यह वात वज्रके समान लगी। क्योंकि यह अपने छोटे भाईसे अति प्रेम करते थे और अपनी संतानसे इनकी अधिक खातिर करते थे व किसी प्रकारका कष्ट नहीं होने देते थे। दूसरे हीराचंदनीको अब तक किसी पुत्ररत्नका लाभ भी नहीं हुआ. था, अतएव वह अपने भाईही को देखकर हर तरह सन्तोष मानते थे। .
हीराचंदजीने वग्वतचंदसे इस नादानीका कारण पूछा परन्तु कुछ उत्तर न पाकर परम्पर मेलके लाभ और भिन्नताके अलाभ भले, प्रकार समझाए, पर जिसकी बुद्धिमें किसी प्रकारका हठ होजाता है वह उसको नहीं छोड़ता। निदान जब वखतचंदकी समझमें कुछ भी नहीं आया तब हीराचंदने लाचार हो पृथक् होनेका प्रबन्ध किया। १५ दिनका समय लेकर सर्व हिसाब तय्यार करके सर्व मालमता रुपया पैसा आधा आधा इस तरह बाँट दिया कि वखतचंद और उसकी स्त्रीको इसमें पूरा २ सन्तोष हुआ। यद्यपि हीराचंदकी कमाई प्रायः उसीके ही परिश्राकी थी पर हीराचंदने अपना स्वार्थ, कुछ न रख धर्म सम्बन्धको मध्यमें डाल कर पुरा २ न्याय कर दिया। विनलीबाईको भी इसमें किसी तरहकी नाराजी नहीं हुई। यद्यपि पृथक् होनेमें अवश्य उसको दुःख हुआ क्योंकि वह वखतचंदकी वहको बहुत चाहती थी और घरके कामकाजमें उससे मदद भी बहुत मिलती थी । पुराना मकान साह हीराचंदके ही अधिकार में आया। वखतचंद दूसरे मकान में रहने लगे।
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