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उच्च कुल में जन्म |
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साह हीराचंद को पुत्र लाभकी चिन्ता अवश्य रहा करती थी सो धर्म और न्याय प्रकृतिधारीके पुण्यके सेठ मोतीचंदका उदयसे संवत् १९०३ में प्रथम पुत्ररत्नका जन्म | लाभ हुआ । साहनी और उनके कुटुम्बि
योंने पुत्र लाभका बड़ा ही आनन्द माना । 'हीराचंद धनाढ्य नहीं थे, साधारण गृहस्थ थे, इससे इन्होंने किसी प्रकारका नाच तमाशा न करके केवल मंदिरजीमें उत्सव सहित - पूजन कराई, कुटुम्बियों का भोजनसे सत्कार किया और याचकोंको यथाशक्ति दान बाँटा । खूत्र विचार कर पुत्रका नाम मोतीचंद - रक्खा । यह पुत्र सुन्दराकार और गोल मोतीके समान मुखवाला था। विजलीबाईके पुत्रपालनके हुनरसे पुत्र धीरे २ बढ़ता गया और किसी प्रकार के रोग में ग्रसित न हुआ । इस समय हेमकुमरी १० वर्ष व मंछाकुपरी ६ वर्षकी थीं। हेमकुमरीको माताने वरका कामकाज सर्व धीरे २ सिखला दिया था। साधारण स्थितिके कारण हीराचंद के घर में नौकर चाकर नहीं थे । हेमकुमरी और मंच्छाकुमरी छोटे बच्चेको खिलाने में बहुत सहायता देती थीं। उस समय कन्याओंके पढ़ानेका रिवाज़ बहुत ही कम था इससे हीराचंदने अपनी कन्याओंको अक्षरज्ञान करानेका कुछ उपाय नहीं किया । तौभी जहाँ माता धर्मात्मा, प्रवीण और गुणवाली होती है वहाँ उसकी कन्याएं भी यदि माता चाहे तो प्रवीण बना सक्ती है । विजलीबाईके दिलमें सर्वसे पवित्र काम भगवत् भजन और तब फिर अपने बालकोंकी सेवा थी । - बालिकाकी सुश्रूषा के सामने पतिभक्ति व पतिसेवा भी गौण रूपसे थी । मेरे लड़का लड़की बड़े यशस्वी व उपयोगी हों, धर्मकर्ममें सावधान
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