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दानवीरका स्वर्गवास ।
[ ८६९ छे के भक्तिभावथा द्रवित थयेलां अंतःकरणो तो आ यशपींडना परमाणुओने ग्रहण करशेन करशे.
नागरदास नरोत्तमदास संघवी, केरवाडा - ( भरूच.) ( दिगंबर जैन वर्ष ७ अंक १२ )
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कितनेक पत्रोंके अभिप्राय । सेठ मानिकचंद हीराचंद, जे० पी० । गत आषढ़में एक बड़े दानी और धर्मनिष्ठ जैनका देहान्त बम्बई में हो गया । इनका नाम सेठ मानिकचन्द्र था। इनके पिता, हीराचन्द सूरत के रहनेवाले थे। उनके चार पुत्र हुए- मोतीचन्द, पानाचंद, मानिकचन्द और नवलचंद | इन चारों भाइयोंने बम्बई में पहले मोतीका रोज़गार शुरू किया; पीछेसे वे जवाहरात का रोजगार भी करने लगे । धीरे धीरे इनका रोजगार बढ़ा | लाभ भी होने लगा | मानिकचन्द पानावन्द जौहरीकं नामसे ये कान करने लगे । सेउ मानिचन्दने अपने व्यवसायकी इतनी उन्नति की कि कुछ ही वर्षों में ये अमीर हो गये । ६२ वर्षकी उम्र में इन्हीं सेट मानिकचन्दने, बिना किसी बीमारीके, परलोक के लिए प्रस्थान कर दिया । रातको ११ बजे ये आरामसे लेटे । कुछ देर बाद अकस्मात् हृदयका स्पन्दन बन्द हो गया और इनकी इस लोककी लीला समाप्त हो गई। इनकी दानशीलतासे प्रसन्न होकर गवर्नमेंटने इन्हें जे० पी० ( जस्टिस आबू दि पीस) की पदवीसे अलंकृत किया था । इन्होंने अपने जीते जी आठ नौ लाख रुपया जैन मन्दिरों, तीर्थों और ग्रन्थोंके जीर्णोद्धार करने, धर्मशालायें और
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