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________________ ८६८ ] अध्याय तेरहवां । सामर्थ्य व्यवहारिक अने पारमार्थिक कार्योमां बतावी आप्युं छे, आवी रीते तन मन अने धन- संप्तार यज्ञमां रहेतुं के बलिदान आपनार 'कर्मवीर दानवीर शेठ माणेकचंदजीना जडपींडर्नु अवसान थाय, तेमां शोक शेनो? संसारनी विचित्र घटनाना भार तळे दबार लो आत्मा योग्य समये ते बोजो आघो फैकी दई, निरुपाधि थई वधाममा जई रहे एमां शोक शानो ? अनंत चतुष्टयधारक.आत्मा पोतानी सुखवीर्यदि शक्तिओनो योग्य आविर्भाव करी संसार समुद्रनी पार जवा मथन करे तेमां शोक शेनो? बधुओ! व्यवहार योगीना जडदेहन अवसान शोककारक लेखातु नथी. कोई स्नही संबधीने श्रम• उठावामाथी बचेला जोईने आपणने हर्ष थाय के शोक थाय ? कोई स्नेही सबधीने विलायतमां ऊंचा प्रकारनो अधिकार मळ. एथी आपणने हर्ष थाय के शोक ? बेशक, आपणी स्वार्थबुद्धिथी नहि, परन्तु निर्मळ वात्सल्यभावथी आपण आपणा संबंधीनी अधिकतर सारी स्थिति जोई आनंदित थईए छिए कारण:-- भले ते दरियापार, देशपार के पछी देहबहार होय; परन्तु तेना यशःपींडना परमाणुओ आपणा वातावरणमांज प्रसरी रहे छे.. ते परमाणुओना स्कंध बने छे अने ते स्कंधो बीजा पुद्गळ रचवामां सहायभूत थई नवीन तेजथी प्रकाशी नीकळे छे." ___ आ सिद्धांत सत्य हो वा असत्य हो, परन्तु एटलं तो सत्यज Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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