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दानवीरका स्वर्गवास ।
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महुंम शेठ माणेकचंदजीना पवित्र आत्माने शांति इच्छु छु. ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति । लघुनम बीरबाळ-वाडीलाल मुळजी भाई संघवी( ' दिगंबर जैन ' वर्ष ७, अंक १२ )
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जड देहनो त्याग अने यशःपीडनु अवतरण । अनादि काळथी जड देहनी क्षणभंगुरता मिद्ध थयेल छे. ए. जड देहरा निकट संमां रही अज्ञ तिमिर पडळने दूर करवा " ए सिद्धांतने अनुसरा चैतन्य अने जडनी संयोग थाय छे.
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोडाराणि तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही || भगवद्गीता । जेवी रीते एक माणस जुनां लुगडां काढी नांखी बीजां नवां लुगडां पहेरे ले, ते प्रमाणे 'आत्मा' जुन अंगनो त्याग करी दई नवा अंग धारण करे छे."
वेदांतनो आ सिद्धांत जैनदर्श-ने मळतो . ए सरळ दृष्टां - तथी आत्मानी प्रतीति थाय छे; अने व्यवहारिक दशामां थता शोकादि विकारोने दावी आत्मानुं अमरत्व साबित करे छे.
जे व्यक्ति संसारमा रही पोताना देहने अनुमरतां कर्तव्य बजाव्यां छे, जेणे मिथ्यादृष्टि टाळी स्वतः प्रकाशित दृष्टिथी व्यव हारिक वर्तन चलाएं छे, जेणे क्रोधादी महान शत्रुओनी समीपमां रही, तेमना पासमा न पडतां तेमनी साथे अडग युद्ध चलाव्युं छे, जेणे समयोचित नीतियुक्त कार्यदक्षतावडे देशी, विदेशी बंधुओनुं हित करवा यावज्जीवन कमर कसी छे, जेणे हृदयनुं अपरिमित
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