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________________ ८६६ ] अध्याय तेरहवां | गयो ! वीर माणेक ! गये। ! भविष्य विद्यार्थीओ कोने शरणे नशे ! भविष्यनी श्राविकाओने कोण सहाय करशे ? उतारूओनी साची संभळ कोण लेशे ? प्रांतिक कोन्फम्सनी उच्मोत्तम व्यवस्था कोण चलावशे? तीर्थोनी संभाळ कोण लेशे ? आ सर्वनी उपेक्षा करी आपने तेना मानव शरीरे देवना कार्य करी बतावी तेना सुगुणो- उच्च विचारोना यशोगानमा अथडाता मुकी ते तो स्वर्गपये चाल्यो गयो ! आपण वारसाम नाम तेनो नाश छे. The rich, the poor, the great the small are levelled death confounds them all जे खील्युं छे ते खम्बा माटे, जे जन्म्युं छे ते मरवा माटे, एम मानी अहर्निश सत्कार्यो करी आ मनाता दुर्लभ मनुष्यदेहनु मार्थक कर ए तेमनुं हृदयवेत्रक अवसान मृत्यु आरणने - अमूर। हृयां कोतरी राखवालायक अमूल्य पाठ शीखवतुं गये छे. नरवर माणेकचंदजी शेठे जैन कोमनी उन्नति अर्थ लगभग दश बार लाखनी गंजावर सखावत- जेनो उपयोग जेम तेम नहि करतां उत्तमोत्तम खातांओ स्थापी कर्तव्यपरायणी बनी परम पूज्य महावीर पिताए बतावेला मोक्षना चार मार्ग दान - शील - तप - भावना ए चारमांथी प्रथम मार्गे शूरवीर बनी आत्मश्रेय करी पोताना नरतननुं सार्थक युं छे. आपगा जैन समान प्रति तेमणे जे उपकारो कर्या छेतेनी कदर जैन कोम केटले दरज्जे करी शके छे, ते आपण जोनुं छे. अतमां 'गुणा: पुजा स्थानं गुणित्रु न च लिङ्गम् न च वयः ' ए सुत्रने अनुमरी तेमनुं अनुकरण करनारा नरवरो जैन समाजने प्राप्त थाय अने स्वर्गवासी शेठनी खोट पुरी पडे ए हृदयनी शुभेच्छा साथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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