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सेयांग और वियोग । [३०१ भावनगर बड़ी धूमसे गई। सेठोंने वहां अच्छी रकम खर्च करके बहत नाम किया । रूमाबाईजीने वहां धर्मकी खूब प्रभावना की इसमें ५००० से कम खर्च न पड़े होंगे। सेठ प्रेमचंद चंचलवाईको व्याह कर सुखसे रहने लगे। संवत १९५५ के प्रारंभमें बम्बई में प्लेगका ज़ोर था। तब
सेठ माणिकचंदजी आदि मूरत आए और शेठ माणिकचंद स्वयं यहां कई मास चंदावाड़ी धर्मशालामें ठहरे। अध्यापक। सेठनी नित्य श्रीचंद्रप्रभुके बड़े मंदिरजीमें
सेवा पूना करते, जाप देते व बैठते उठते थे। एक दिन इन्होंने विचार किया कि यहाँ कोई ऐसा साधन अब नहीं है जिससे बालकोंको कोई दर्शन, व भगवानके नाम भी बतावे तथा कुछ बालक यहाँ सीखने योग्य मालूम पड़ते हैं। आपने लोगोंको कहकर बालकोंको २ घंटेके लिये मंदिरजीमें बुलाया और जबतक आप कई मास तक सूरत रहे नियमित रूपसे बालकोंको हररोज रात्रिको दर्शन, स्तुति, णमोकार मंत्र, निर्वाणकाण्ड भाषा, पंच मंगल आदि सिखा कर उनका बहुत ही उपकार किया और उन बालकों को इनाममें भी वार २ छोटी २ धार्मिक पुस्तकें, रूमाल आदि देते थे जिससे बालकोंका उत्साह बढ़ता था। .
सेठ माणिकचंदजीमें और धनाढ्योंकी भांति समयका दुरुपयोग करने व आलस्यमें पड़े रहनेकी आदत नहीं थी। जैसे चीटी हमेशा काम करती नज़र आती है ऐसेही सेठ माणिकचंद सदा ही कोई न कोई काम करते हुए ही देख पड़ते थे । सूरत ऐसे विलासप्रिय नगरमें दूसरे धनाढ्य जैसे राग रंगमें लगे थे ऐसी रुचि सेठ
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