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अध्याय ग्यारहवां ।
यहांसे सेठजी फल्टन गए। वहां पाठशाला स्थापित कराई ।
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फिर बम्बई आए ।
सेठ माणिकचंदजी कभी मौका चूकने वाले न थे। श्री सोनागिर सिद्धक्षेत्र दतिया रियासत में है ।
इस पर्वत से श्री नंगानंग प्रभृति ५॥
करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं । बहुत से मंदिर हैं पर व्यवस्था बराबर नहीं थी । इमकी
बम्बई में दतिया
नरेश और
मानपत्र |
सेठजीको बड़ी चिन्ता थी । कारणवश महाराज दतिया श्रीमान लोकेन्द्र गोविन्दसिंह बहादुरजू बम्बई पधारे। तत्र शीतलप्रसादजीके साथ आप बहुतसी सामग्री भेट लेकर गए । मिलकर तीर्थकी उन्नति के सम्बन्ध में बात की । फिर ता. ३१ अकटूबर १९०८ की रात्रि से हीराबाग लेक्चर हॉलमें एक महती सभा बुलाकर और राजा साहबका स्वागत करके तीर्थक्षेत्र कमेटी और बम्बई निवासी दि० जैनियोंकी तरफसे एक सुन्दर मुद्रित अभिनन्दनपत्र अर्पित किया गया । पं० धन्नालालजी द्वारा सुन कर पंडित रघुनाथ रावजी प्राईवेट सेक्रेटरी महाराजने उत्तर देते हुए कहा कि - महाराजा साहब अपनी प्रसन्नता प्रगट करते हैं और चाहते हैं कि १३ और वीस पंथियोंमें ऐक्य हो, जैन सभाकी वृद्धि हो और दतिया रियासतका क्षेत्र सोनागिरि पर्वत व्यापार प्रधान, विद्याकी पीठ और परोपकारकी मुख्य जगह जल्द हो जावे
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