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________________ ५८२] - अध्याय ग्यारहवा बताया । तब और स्त्रियोंने भी चंदा दिया जो कुल ४०००)का हो गया। सेठ माणिकचंदजीके पूर्ण उद्योगसे सभाका काम निर्विघ्न हो गया, तब सेठनी बम्बई आये । सेठजीका कोल्हापुर जानेका बहुत प्रसंग रहता था । वहां भारी सभा भरनेको कोई सभागृह नहीं था। • कोल्हापुरमें चतुरवाई एक दफे आपके चित्तमें आई कि बन जाना सभागृहके लिये चाहिये । इससे जैनियोंके सिवाय सर्व ४०००) खर्च । साधारणको भी लाभ पहुंचेगा । आप इमारत शुरू करानेके लिये न्यूका पत्थर रखनेको मुम्बईसे चलकर ताः ११ मार्चको कोल्हापुर आए और एक भारी सभा करके युवराज राजाराम महाराजके हस्तसे अपनी स्वर्ग प्राप्त धर्मपत्नी चतुरबाईके स्मरणार्थ सभागृह बनानेका पत्थर रखवाया। बहुतसे बाहरके जैनी भी आए थे । इसमें ४००० ) खर्चनेका विचार किया। इस मभारंभके पीछे सेठनीने कोल्हापुरके जैन व्यापारियोंके धर्मादे पैसेकी सुव्यवस्थाके लिये कहा, तब धर्मादेके प्रस्तावकी सबने कबूल करके कुछ भाग जैन बोर्डिंगमें अमली कार्रवाई। देना स्वीकार किया। शाहपुरकी मंडलीने अपने यहांके धर्मादेको एकत्र कर एक जिन मंदिर बांधनेका प्रस्ताव किया । वास्तवमें यदि जैन व्यापारी वर्ग सच्चे दिलसे अपने २ यहांकी धर्मादेकी रकमोंको जो पैसा वास्तवमें सर्व साधारणके लाभमें ही उपयोग आने लायक है, एकत्र कर एक साथ राय करके खर्च करें तो हर स्थानमें पाठशाला, औषधालय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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