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________________ ३५६ ] - अध्याय नवां । रकमके व्याजसे गुजराती प्रथम पुस्तकसे इंग्रेजी चौथी क्लास तक बिना माबापके निराधार विद्यार्थियोंको स्कालरशिप दी जावे । २-मेरी माताश्रीके बारहसौ चौतीस उपवासके व्रतका उद्यापन ५०००) के खर्चसे करना । ३-अमनगर (ईडरके निकट ) के स्टेशनपर " प्रेमचंद मोतीचंद धर्मशाला ', नामसे १०००) खर्च करके एक धर्मशाला • बनवाना। 2-निम्न लिखित तीर्थी से प्रत्येक तीर्थको इक्कावन इक्कावन रु. की रकम भेजना-१ श्री सम्मेदशिखर, २ श्री चम्पापुर, ३ श्री पावापुर, श्री गिरनार, ५ श्री केशरियाजी, ६ श्री पावागढ़, ७ श्री गजपंथानी, ८ श्री मांगीतुंगी ९ श्री पालीताना, १० श्री तारंगाजी, ११ श्री सिद्धवरकुट, १२ श्री सोनागिरजी, १३ श्री कुंथलगिरजी, १४ श्री ईडरका मंदिर, १५ श्री चतुर्विध - दानशाला सोलापुर । ___ इस तरह रु० ३१७६५) का दानपत्र अपनी माताको देकर आपने मौन धारण कर लिया, हाथ जोड़ सबसे क्षमा मांगी और शांत मनसे भीतर २ अपने शुद्ध आत्मस्वभावका चिन्तवन करते२ बाहरसे णमोकार मंत्रकी ध्वनि सुनते२ स्वर्ग पधारे । चंपाबाई अपनी १५ वर्षकी आयुमें ही वैधव्यताको प्राप्त हो गई ! माता रूपाबाईको पुत्रके वियोगसे बहुत शोक आया, पर धर्मके ज्ञानके कारण अपने चित्तको थांभ व कर्मका उदय विचार शांत चित्त हो गई । सेठ माणिकचंद बहुत विलाप करने लगे, क्योंकि सेठजीको इसके गुणोंपर अतिशय प्रेम था। पानाचंद और नवलच Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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