SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 671
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०२ ] अध्याय ग्यारहवां । तक योग्य प्रबन्ध हो और नियमावली दुरुस्त न की जावै तब तक कोई यात्री श्री गिरना जीके भंडार में द्रव्य न देवे किन्तु तीर्थक्षेत्र कमेटी के दफ्तर में भेज कर रसीद मंगा लेवें । सेठजीने बड़े आनन्दके साथ ता. २९ को पर्वतकी यात्रा की। श्री नेमनाथ स्वामीके चरणोंके वहां एक दिगम्बर जैन प्रतिमा कोरी हुई परम शांतताको लिये हुए है दर्शन कर शीतलप्रसादजीने उसी समय भक्ति रससे पूर्ण हो एक भजन बनाकर गाया । लौटते हुए सहश्राम्र वन में आए। यहांसे नीचे जानेको रास्ता बहुत विकट है । यदि और जगहों की भांति यहांसे नीचे तककी भी सीढ़ियां बन जायें तो बहुत उपकार हो । ता. ३० को जूनागढ़ लौट कर सर्व देखभाल की। सेठजी कई सर्कारी अफसरों से मिले । 1 यहांसे चलकर ताः ३१ को पालीताना आए । नवीन दि० जैन मंदिरके रमणीक सभामंडप में शेत्रुंजयकी यात्रा व रात्रि को एक आम सभा श्वे० नगरसेठके अभिनंदनपत्र । सभापतित्वमें हुई। पहले शीतलप्रसादजीने 'धर्मोन्नतिपर व्याख्यान दिया फिर नगर सेठने सर्व उपस्थित नगरवासी भाइयोंकी तरफसे सेठजीको सन्मानसूचक अभिनंदनपत्र दिया व पढ़कर सुनाया और सेठजीकी सर्व जैनियों के साथ इस समान दृष्टिकी बहुत २ प्रशंसाकी कि" वह अपने बम्बई की बोर्डिंग में दिग० से ० स्था० तीनोंके विद्यार्थियोंको रख कर एकसा वर्ताव करते हैं । 'धर्मचंदनीने भजन गाकर मंडलीको प्रसन्न किया । ताः १ नवम्बरको सेठजी ने सबके साथ बड़े आनन्दसे यात्रा की । यद्यपि सेठजी नीचेसे डोली पर गए थे पर ऊपर आदिनाथ मंदिरक बाहर ही डोली छोड़ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy