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________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ६०३ केवल लकडीके सहारे ऊपर गए, यात्रा की और लौटे - सेठजीका साहस देखकर आश्चर्य होता था । ताः १ को चलकर फिर सेठजी अहमदाबाद आए और अपने श्राविकाश्रमको देखकर उसकी व्यवस्था ठीक कराई तथा इस निमित्त कि कोई बाई सर्कारी स्त्रीशिक्षकशाला में पढ़ने भेजी जावे लक्ष्मीबाई फीमेल ट्रेनिंग कालेज व उसके बोर्डिग को देखा । इसमें ५० बाइयें हैं। यहां मांसाहार किसी को नहीं दिया जाता है। यहांसे ता० २ की रात्रिको चलकर ता० ३को दाहोद आए । यहांवाले बहुत दिनोंसे सेठजीको बुला रहे मानपत्र । 1 दाहोद में पाठशाला के थे । स्टेशनपर गाजेबाजे सहित बहुत भाई लिये फंड व मौजू थे। यहां १०० वर दुमड़ दि० सेठजीको जैनियोंके व दो जिनमंदिर हैं । माष्टर दद्दुलालकी अध्यापकी १ में वर्षसे पाठशाला चल रही थी । सेठजीने परीक्षा लिवाई | रात्रिको सभा हुई । शीतलप्रसादजीने धर्मपर व्याख्यान देते हुए । पाठशालाको चिरस्थाई करनेके लिये जोर दिया । तुर्त दानवीर सेटनीने १०१) दिये, बातकी बात में २५०० ) का धौव्य व ३५० ) का चालू फंड हो गया | दूसरे दिन सबेरे मि० प्लेन केन यूरुपियन डिप्टी कलेक्टर के सभापतित्व में छात्रों व छात्राओंको इनाम बांटने के लिये एक भारी सभा हुई । शीतलप्रसादने धर्मका स्वरूप कहा । सेठजीने बाबू बनारसीदास एम० ए० रचित जैन इतिहास सेरीज़ नं० १ इंग्रेजी में कलेक्टर साहबको भेट की। पाठकोंको यह मालूम ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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