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________________ ६०४ ] अध्याय ग्यारहवां । है कि सेठजी यात्रा के समय अपने बाहर के एक पैकेट में बांटने के लिये जैनधर्म व जीवहिंसा मांसाहार रोकनेवाली पुस्तकें हमेशा रक्खे रहते थे और जहां जिसको जब जो देनेका अवसर होता था हर्षसे देते थे व जवानी भी समझाते थे। बहुतसे इंग्रेज सेकन्ड क्लासमें आपसे पुस्तक प्राप्ति करते थे। सभापतिने इनाम बांटकर अपने भाषण में कहा कि " विद्यार्थियों को अन्य शिक्षाके साथ धार्मिक शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिये, तथा यदि कन्याओंको योग्य सुशिक्षिता माता बनाया जावे तो तीन पीढ़ी में यह भारत अपनी प्राचीन उन्नतिको प्राप्त कर ले । " इसी समय दाहोदके भाइयोंने सेठनीके सन्मानार्थ निम्नलिखित मानपत्र अर्पण किया— नकल मानपत्र ( दाहोद ) | मङ्गलाचरण | तजयति परंज्योतिः समं समस्तैरनन्तपय्यैः । दर्पणतल इव सकलाः, प्रतिफलति पदार्थमालिका यत्र ॥१॥ दोहा | धन्य दिवस तिथि आजकी धन संवत्सर वार । सभ्य कुमुद विकशित किरण, सभा चांदनी सार ॥ परम हर्ष ? परम हर्ष ? ? परम हर्ष ? ? ? भारतवर्ष के विख्यात सूरत नगर में एक प्रतिष्ठित नररत्न श्रीयुत् - सेठ गुमानजी के सुपुत्र हीराचन्दजीके चार पुत्ररत्नों (मोतीचंदजी, - पानाचंदजी, माणिकचन्द्रजी, नवलचन्द्रजी) की उत्पत्ति हुई । पश्चात् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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