________________
समाजकी सच्ची सेवा ।
[ ३११ को २५ अनाथ नैनचालक रहने गए । इनको भोजन वस्त्र के सिवाय धार्मिक शिक्षा आदि देनेका भी प्रबन्ध कराया गया । आकलूज व पंढरपुर में भी ऐसी आहार दानशालाएं खोली गईं । बेतुलमें ३० बालक हो गए उनकी रक्षा सभा द्वारा बराबर होती रही । ९ लड़कोंको बेतुल से नागपुर विद्याभ्यासके लिये भिजवाया गया ।
सूरतके एक दिगम्बर जैन छात्र केशवलाल डाह्याभाईने मेट्रिकलेशनकी परीक्षा पास की थी और कालेज में जैन विद्यार्थियोंके कष्ट भरती होनेके लिये बम्बई आया था उस समय निवारणार्थ बम्बई में यहां हिन्दुओंका केवल एक ही बोर्डिग था जि - जैन बोर्डिंगका सका नाम गोकुलदास तेजपाल बो विचार | र्डिंग हाउस था। यह छात्र उसीमें रहने के लिये गया। उसके कार्यकर्ताओंने इसको स्थान नहीं दिया । तथा पुपरिन्टेन्डेन्टकी बातचीत से ऐसा प्रतीत हुआ कि वह इसी लिये स्थान नहीं देते हैं कि यह केशवलाल जैनी है । इसको बड़ी निराशा हुई, तब इसने यह सत्र हाल विद्यार्थियोंके पिता सेठ माणिकचंदजी से कहा । आपको उस वक्त बड़ा भारी खयाल आया कि जैसे यह आज भटकता है व निराश्रय होकर अपमान सहता है ऐसे और भी छात्र भटकते होंगे व उदास होकर वे शिक्षण लेने से बन्द रहते होंगे । जैनियोंमें अब इंग्रेजी पढ़नेकी रुचि हुई है त कालेजमें भी पढ़ने आवें ही गे अतएव परदेशी जैन छात्रों को आश्रय देनेका कोई उपाय अवश्य करना चाहिये । उस छात्र के तो ठहरने का सेठजीने तुर्त प्रबन्ध कर दिया और रात्रिको सेठ हीराचंद नेमचंद जी से सम्मति ली कि क्या करना चाहिये । परम सच्चे मित्र हीराचंदजींन
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International