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________________ ३१० ] अध्याय नवां । अध्याय नवां । समाजकी सच्ची सेवा । संवत् १९५६का महा विकट साल आ गया । इस वर्ष चारों ओर भारत में दुष्काल ही दुष्काला गया ! सं० १९५६ के दुष्का- गुजरात, काठियावाड़, मेवाड़ भी अन्न और लमें २०००) की जलके महाकष्टसे पीड़ित हुआ। सेट मदद | माणिकचंदजीका चित्त करुणादानसे द्रवीभूत होयगा । इम निकटवर्ती प्रान्तके अकाल पीड़ितों की सहायता के लिये सेटजीने रु० १०००) दान किया तथा बड़ौदामें सेठ फकीरचंद प्रेमचंद जे० पी० ने एक हिन्दबालाश्रम खोला उसमें भी आपने ३०० ) दिये । बम्बई दि जैन सभा के सभासदों को एकत्र कर आपने बेतुल आदि मध्य प्रदेशके जैनी भाइयोंके आए हुए पत्र सुनाकर प्रगट किया कि एक जैनअनाथालय भंडार स्थापित होना चाहिये । चूंकि आप स्वयं दातार और अग्रगण्य थे । आपकी सूचनाको बम्बईके भाइयोंने मान्य करके ता० ९ नवम्बर १८९९ को यह भंडार खोला तथा २११४) का चंद्रा तुर्त हो गया जिसमें आपने १०१) दिये व सबसे अधिक सेठ जीतमल कन्हैयालालने ९०९) व सेठ गुरुमुखराग सुखानंदजीने २२२) प्रदान किये | लाला बैजनाथ हाथरसवालोंने इसमें बहुत मदद दी । सभाकी ओर से भारतवर्षीय दि० जैन महासभाकी आज्ञानुसार बेतुल शहरमें बाबू गोविन्द लाहनूं हेडमास्टर वर्नाक्युलर स्कूलकी मारफत एक आहारदानशाला खोली गई इसके द्वारा ता० ७-१२-९९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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