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________________ ३१२] अध्याय नवां । सम्मति दी कि आपके पास लक्ष्मीकी कृपा है इससे आप एक जैन बोर्डिङ्ग स्थापित करें, दक्षिण व गुजरातके अनेक छात्रोंको बड़ा भारी लाभ पहुंचेगा । बेलगांव निवासी अण्णाप्पा फडयाप्पा चौगुले बी. ए. भी उस वक्त कालेजमें पढ़ते हुए चौपाटीपर सेठनीके बंगले में ही रहते थे सो रात्रिको सेठजीके साथ बैठकर बातें करते थे और प्रेरणा करते थे कि आप कोई धर्मका काम करो मुख्य संमति बोडिंगकी देते थे जिससे भी सेटजीको इस कार्य करनेपर विशेष रुचि हुई और यह बात सेठजीके दिलमें गड़ गई। वास्तवमें जिम मित्रके ऊपर विश्वास और प्रेम होता है उसकी बात तुर्त ही दिलमें बैठ जाती है फिर आपने दूसरे दिन अपने भाई पानाचंद, नवलचंद और प्रेमचंदसे सलाह ली। अपने पुत्र समान मगनबाईजीको भी विठाला और सब हकीकत बयान की । प्रेमचंदके विचार बहुत ऊंचे थे और सेठ माणिकचंदकी भांति धर्म व विद्याकी उन्नतिमें पूर्ण लवलीन थे। प्रेमचंद बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि काकाजी, आप इस कामको अवश्य करें । सेठ पानाचंदने कहा कि अभी तक हम लोगोंने अपने पूज्य पिताके स्मरणमें कोई काम नहीं किया है इससे उन्हींके नामसे बोर्डिंग कायम किया जाय तथा लाख पौन लाख रुपये लगाकर बहुत अच्छी इमारत तय्यार की जाय जो देखनेमें व आराममें भी ठीक हो। सेठ नवलचंदनीने भी कुछ विरोध नहीं किया तब स्थानकी सलाह हुई तो जुबिलीबागके पास ही स्थान बनाना निश्चित हुआ क्योंकि वह स्थान शहर व कालिजोंसे बहुत दूर नहीं है और हवा भी अच्छी है। तथा यह भी तय हुआ कि इसी वर्ष इस कामको पूरा करना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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