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________________ समाजकी सच्ची सेवा। [३१३ चाहिये। दूसरे ही दिनसे सेठजीने स्थानकी तजवीज करना व नकशा बनाकर और पसन्द कराकर होशियार मिस्त्रीके द्वारा काम प्रारंभ करा दिया। __ इसी वर्ष भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभाका चतुर्थ अधिवेशन मिती कार्तिक वदी ५ सं. बईमें दि० जैन प्रां- १९५६से ७ मुताबिक ता: २३ अक्टूबर तिक सभाका स्थापन। १८९९से २५ तक श्री नंबूस्वामीकी निर्वाण भूमि चौरासी मथुरामें हुआ। इस समय इस सभाके महामंत्री मुंशी चम्पतरायजी डिप्टी मजिस्ट्रेट नहर, कानपुर थे जिन्होंने महासभाका कार्य बड़ी ही रुचिसे अपने जीवन पर्यंत किया और अनेक विघ्नोंके आनेपर भी इसे स्थिर रक्खा । महासभाको बाकायदा महासभा बनानेमें स्वर्गवासी बाबू बच्चूलालनी प्रयाग निवासीने अपनी उम्रभर जी तोड़ परिश्रम किया था । उन्हींके उद्योगसे इस महासभाकी रजिष्ट्री सर्कारी एक्ट नं० २१ सन् १८६० ई० के अनुसार हुई। इस बर्ष महासभाने प्रस्ताव नं० १ इस विषयका स्वीकृत किया कि "तमाम भारतवर्षमें प्रान्तिक सभाएं कायम की नावे जो सर्व प्रकारसे इस महासभाके उद्देश्योंको प्रचलित करनेमें सहायता देवें" तथा इस कार्यके करनेका भार बाबू बनारसीदास एम. ए. हेडमास्टर विक्टोरिया कालेज लश्करके सुपुर्द किया गया। यह महासभाके ज्वाइन्ट जनरल सेक्रेटरी कई वर्षोंतक रहे और रातदिन इसकी उन्नतिमें जी तोड़ परिश्रम किया। आपने ही महासभाके दो प्रभावशाली वार्षिक अधिवेशन सन् १९०४ और १९०५ में क्रमसे अम्बाला छावनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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