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________________ ३१४ ] अध्याय नवां । और सहारनपुर में कराए तथा बहुतसी पुस्तकों की मददसे इंग्रेजीमें एक जैन इतिहास सिरीज नं ० १ Jain Itihas Series पुस्तक रची जिसके प्रचारसे यह अज्ञान अंधकार कि जैनी नास्तिक हैं या बौद्ध या हिन्दू धर्मकी शाखा हैं या प्राचीन नहीं हैं बिलकुल उड़ गया। जैन इतिहास सोसायटी कायम कर जबतक आप लश्कर रहे बहुत काम किया | सहारनपुर में वकालत करने के पीछे व परस्पर महासभा के कार्यकर्ताओंमें मनमिलान न रहने से आपने यकायक जैनजाति सम्बन्धी सत्र काम छोड़ दिया । यह जैन कौमके अभा की बात है | बाबू बनारसीदासने बम्बई प्रान्तिक सभा स्थापित होनेके लिये बम्बई सभा के मंत्री सेठ माणिकचन्दजीको पत्र लिखा उसके अनुमार मिती कार्तिक सुदी १ सं० १९५६ को बम्बई सभाकी प्रबन्धकारिणी सभाकी बैठक हुई। इस सभामें यह निश्चित हुआ कि प्रान्तिक सभा स्थापित हो तथा उसकी नियमावली बनाने का कार्य सेठ माणिकचंद हीराचंद, सेठ रामचंद्रनाथा, पं० गोपालदासनी और पं० धन्नालालजी के सुपुर्द हुआ और मिती कार्तिक सुदी १४ को उपदेशकसभा की बैठक में सेठ हरमुखराय अमोलकचंद के सभापतित्वमें वह नियमावली पास की गई तथा तय हुआ कि प्रान्तके मुख्य २ भाइयोंको भेजकर सभासद बनाए जावें और तब इसका काम शुरू किया जावे । बम्बई सभा सेठ माणिकचंद और पं० गोपालदासजी ऐसे उत्साही संचालकोंके द्वारा बहुत कायदे से ऐसे २ काम बराबर करती रही जिससे सारे भारतवर्षको लाभ हो । इस वक्त सभाके पास पाठशाला खातेके सिवाय उपदेशफंडका खाता भी था जिसके द्वारा उपदेशक For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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