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७०८ ] अध्याय बारहवां। रहा हूं और अब भी वही विचार है। मैं उसका उपाय सोच रहा हूं और आपको शीघ्र इस विषयपर लिखूगा।
पाठको ! सेठजीका स्वर्गवास थोड़े ही काल पीछे हो गया । यदि उनका जीवन दो चार वर्ष और रहता तो संभव था कि. विलायतमें एक जैन बोर्डिग खुल जाता। अब उनके पीछेके धनवानोंका कर्तव्य है कि इस आवश्यकताको पूरी करें । निस बोर्डिङ्गके खोलनेके लिये सेठजी बहुत ही उत्सुक थे
व जिसके लिये आपने २५०००) का दान अलाहाबाद दि० जैन कराया था उस बोर्डिंगके खोलनेका मुहूर्त बोर्डिगकास्थापन। आषाढ़ ददी २ ता० १ जुलाई १९१२ को
पार्क रोडपर एक किरायेके बंगले में बाबू शिवचरणलाल बी० ए० एलएल० बी० रईस-म्यूनिसिपल कमिश्नर प्रयागके द्वारा बड़े समारोहसे सरस्वती पूजनके साथ हो गया । बम्बईसे सेठजो स्वयं नहीं आ सके थे पर अपनी सुपुत्री मगनबाईनी व श्रीमती कंकुबाईजीको भिजवा दिया था व ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनीको भी काशीसे वहां बुलवाया था । धर्मपत्नी ला० सुमेरचंदजीने सर्व प्रबन्ध योग्य रीतिसे कराया था। मास्टर दीपचंदजी उपदेशक बम्बई प्रान्तिक सभाको सेठजीने यहांकी सुपरिन्टेन्डेन्टीके लिये भेजा था । प्रारंभमें ५ ही छात्र भरती हुए । फिर बढ़ते २ ता० ३१ जुलाई १९१४ तक १५ छात्र बी० ए०, बी० एस० सी०, एम० ए० आदि कॉलेजकी पढ़ाईके अजमेर, सीतापुर, मेरठ, विजनौर आदिके हो गए। ये सब गोमट्टसारसे लेकर तत्त्वार्थ सूत्र छहढाला तक धर्मशिक्षा लेने लगे । तथा इसके लिये मेयो कॉलेजके
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