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उच्च कुलमें जन्म ।
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इसकी बोली भी बड़ी ही मीठी थी। माताने इसको न तो कोई अपशब्द सिखाए थे और न मारना पीटना ही सिखाया था जैसे बहुधा करके माता पिता व कुटुम्बीजन छोटे २ बच्चोंको गाली देना व मारना पीटना सिखाते हैं । माता विजलीबाई हेमकुमरीका हाथ पकड़कर जिन मंदिरजीमें ले जाया करती थी और वहाँ पर कायदेसे हाथ जोड़ना व दंडवत करना सिखलाती थी व भगवानके २४ नाम बुलवाती थी। विजलीबाईने हेमकुमरीकी ऐसी अच्छी आदत डलवाई थी कि वह नित्य प्रति समय पर ही भोजन करती थी और रात्रिके पहले ही भोजनसे निश्चिन्त हो जाती थी। रात्रिको भोजन मांगती ही न थी। हां जल व दूध लिया करती थी। सबेरे उठकर 'जयजय चंद्रप्रभुकी जय' ऐसा कहती थी।
विजलीने जैसे हेमकुमरीके पालने में परिश्रम किया था वैसी ही मिहनत मंच्छाके भरणपोषणमें की। विजली अपनी कन्याको न कभी मारती थी न गाली देती थी और न कभी क्रोधभरे शब्द कहती व आकृति दिखाती थी । न कभी उसके मनमें यह खयाल आता था कि यह कन्या पर वर जानेवाली है, इसकी अच्छी तरह रक्षा क्यों करे जैसा बहुधा पुत्रमोही माताएँ स्वार्थ वश खयाल किया करती हैं और कन्याओंको सैकडों गालिया सुनाकर व मारकूटकर, रुलाकर, पटककर, कोसकर, कुढ़कर अपना जला दिल ठंडा करती है और समयपर भोजनपान नहीं खिलाती हैं। बहुधा कन्याएं माता पिताकी बेगौरी और अनुत्साहरूप पालनसे शीघ्रही कालका ग्राप्त हो जाती हैं। साह हीराचंद दोनों पुत्रियोंकी प्रफुल्लित
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