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उच्च कुलमें जन्म ।
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संघवी बर्षावत भार्या नानी रुक्ष्मणी तयोः पुत्र सं० वर्द्धमान भ्राता उदैभाण साह इंदर खेमजीसा चंद्रमानजी गोविंदजी वल्लमजी, श्री मल्लिनाथप्रासाद प्रतिष्ठा महामहोत्सवैः सह कराविता ।
बर्द्धमानजीके वंशमें किशनजी अबसे २५ वर्ष पहले हो गए हैं उनके दो महल अब भी यहाँ मौजूद हैं एकमें राज्यका डॉक्टर रहता है।
इस बड़े मंदिरजीमें एक वेदी श्री आदिनाथ स्वामीकी हैं इसकी प्रतिष्ठा हूंबड ज्ञातीय अगस्त्य गोत्रे पाड़लिया धारी शाहजी रघुनाथजीने सं० १८३८में कराई थी उस समय यहा सामंतसिंहजीका राज्य था। इनके वंशमें शाह हीरालाल जागीरदार अब भी मौजूद हैं। इसी बड़े मंदिरजीमें एक सहस्रकूट चैत्यालय है जिसकी प्रतिष्ठा पाड़लिया गोत्र धारी फौजके कामदार राघोजी वख्सीने कराई थी। इनके वंशमें अब रामलाल फूलचंद बम्बईमें एक धनिक व प्रतिष्ठित व्यापारी है । देवगढ़में हुमड़ जैनियोंका इतना जोर था कि राज्यकी ओरसे यह आज्ञा हो गई थी "कि दिगम्बरियोंके १० दिन दशलाक्षणी व श्वेताम्बरियोंके ( दिन पर्यसन व सालमें २४ चौदस, २४ आठम व वर्षके पहले दीतवारके दीन कोई पशुघात न करे, न मदिरा बेची जाय ।" इस भावार्थका शिला लेख सं० १७७४ वैसाख सुदी १३ का श्रीपृथ्वीसिंहजी महाराजका देवगढ़के खास चौक बाजार में अब भी लगा हुआ है। ___ अब यहाँ दिगम्बर हुमडोंके केवल ९ घर रह गए हैं क्योंकि अब इसकी वसती उजाड़ है। एक ग्रामके समान है। मनुष्य संख्या २० है । मुखिया भाई कानजी कून्पा, मगनलाल गांधी, गेबीलाल दोसी और बर्द्धमान खापरा है।
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