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३५४ ] अध्याय नवां। महाराज एडवर्डका तार सुनाया जिसके कुछ शब्द ये हैं:-" मेरी यही आन्तरिक अभिलाषा है कि मैं भी माताके सदृश भारतीय प्रनाका सुशासन करके उनका प्रेम और भक्तिका लाभ करूं । मैं भारतके समस्त करद राजाओंको पुनः विश्वास दिलाता हूं कि मैं उनकी स्वाधीनताका सन्मान, अधिकार और स्वत्त्वका आदर करता हूं तथा उनकी उन्नति और भलाई होनेसे प्रसन्न होता हूं" ।
दर्वारके दिन जैनियोंने भी अपने २ मंदिर में विशेष पूजा की व बृटिश साम्राज्यकी जय मनाई व दान वांटा । वम्बई में भी ऐसा हुआ । जैपुरमें भी महासभाके सभासदोंने जल्सा करके महासभाकी ओरसे एक अभिनंदनपत्र लाट साहबको महाराज जैपुरके द्वारा भेजा। दक्षिण महाराष्ट जैन सभाका पांचवां वार्षिक अधिवेशन ता०
२७ और २८ जनवरी सन् १९०३ को द० म० जैन सभा- क्षेत्र स्तवनिधि पर हुआ । सभापति श्रीमन्त द्वारा अभिनंदन पायप्पा अप्पाजीराव देसाई थे । सभाने एक पत्र । वर्ष पहले एक दक्षिण महाराष्ट्र विद्यालय
खोला था उसमें ११ विद्यार्थी पढ़ते थे उसकी रिपोर्ट सुनाई गई । इस सभाने जैन शिक्षण फंडमें २००००) का फंड कर लिया था । सभामें शिक्षाप्रचारके प्रति कोल्हापुरके महाराजका आभार माना गया तथा सेठ माणिकचंद पानाचंद जौहरी बम्बई और सेठ हीराचंद नेमचंद शोलापुरका शिक्षाप्रचारके अर्थ अभिनंदन पूर्वक आभार माना गया। वास्तव में जो सच्चे दिलसे परोपकारार्थ तन मन धन लगाते हैं वे जगतमें बिना चाहे भी परम कीर्ति लाभ करते हैं।
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