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११६ ] अध्याय चौथा। हुआ। अब वह घर जो विनलीवाई सरीखी स्त्रीरत्नके रहते हुए विजलीके समान चमकता था, बिलकुल सुनसान हो गया। मानो एक प्रकाशमान दीपक ही बुझ गया ।
घरमें कोई भी स्त्री न होनेसे कुछ दिन तो हेमकोर और मंच्छाने रसोई बनाकर खिलाई तथा घरका कामकाज किया, पर जब वे अपनी ससुराल चली गई तब फिर अकेले हीराचंदजीको द्रव्य कमाने के साथ २ स्त्री सम्बंधी आरंभ कार्य भी करने पड़े, क्योंकि स्थिति साधारण थी, इससे कोई रसोई करनेवालेको नहीं रख सक्ते थे । पर साह हीराचंद बड़े ही बुद्धिमान, धर्मबुद्धि व धैर्यधारी थे, समताके साथ सारा काम करते हुए अपना समय विताते थे, पर जब जरा भी खाली होते थे तभी बिजलीबाईकी स्मृति बिनलीके समान इनके चित्त के सन्मुख चमक उठती थी। वे ऐसी पतिव्रता स्त्रीको कत्र भूल सक्ते थे ? इस समय हेमकुमरी जब बम्बई जाने लगी तब अपने पितासे
विनती की कि सूरत में जब व्यापार कम मोतीचंदका बम्बई हो चला है और बम्बई में व्यापारकी वृद्धि जाना। है तब उचित है कि आप मोतीचंदको मेरे
साथ कर देवें तो मैं इसे कोई. व्यापारकी शिक्षामें डाल दूँ । हीराचंदकी दशा बहुत शोचनीय थी। इस समय इनके अशुभ कमेका उदय था । यह चाहते ही थे कि मोतीचंदकी उम्र १३ वर्षकी है, इसे कोई आलम्बन मिले; क्योंकि अफीमका व्यापार मंद दशापर है, इसे उसमें जोड़नेसे कोई लाभ न होगा।
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