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सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । [११७ पुत्री हेमकुमरीके साथ पिताने मोतीचंदको बम्बई भेज दिया । उस वक्त सूरतमें बम्बईकी शोभा और महत्ताकी बड़ी धूम थी। मोतीचंद अपने साथके लड़कोंसे व इधर उधर बम्बईकी बातें सुन चुका था। पिताकी आज्ञा पाते ही यह खुशीसे बहिनके साथ बम्बई चला गया।
हेमचंदजीने मोतीचंदको बड़े प्यारसे स्क्वा। भोजनपानादिमें भले प्रकार खातिर की कि जिसमें इसका मन उचाट न हो, और हेमकुमरीकी सम्मतिसे मोतीचंदको मोती पुराना सिखानेके लिये मोती पोरनेवाले एक प्रवीण जौहरीके सुपुर्द कर दिया मोतीचंद बड़े आनन्दसे रहता और मोती पोरनेके हुनरको बड़े प्रेमसे सीखता था। उस समय बम्बईमें मोती पोनेका हुनर जिनको अच्छी तरह आ जाता था वे प्रतिदिन दो २ तीन २ रुपयेकी मजदूरी सुगमतासे कर लेते थे । जब इसको बम्बईमें दो वर्षके अनुमान हो गया और यह इस हुनरमें चतुर हो गया तथा इसे कुछ लाभ भी होने लगा तब हेमकुमरीने अपने पिताको खबर की कि द्वितीय पुत्र पानाचंदको भी यहां भेज दो। पानाचंदकी उमर उस समय १३ वर्षकी थी। यह गुजराती स्कूलमें
पांचवीं कक्षा तक पढ़ चुके थे । पिताने इस पानाचन्दका बम्बई भारी आशासे, कि यह बालक चारोंमें तीव्र ___ जाना। बुद्धि और साहसी है, अवश्य यह एक दिन
भारी व्यापारी हो जायगा, हेमकौरके लिखते ही इसे भी बम्बई भेज दिया। इसका मन पढ़नेकी अवस्थामें भी द्रव्य कमानेको चला करता था। पितासे आज्ञा पाते ही यह किसी
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