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महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४६३ चार्ज ता० १० मईको लिया और डाह्याभाई शिवलालको कोठीका मैनेजर नियत किया । ज्येष्ठ वदी १ तक सरवाया १०४५६८)॥ का था । इस समय ११८९३०) आसामियोंसे, २५९७३।। यात्रियोंसे, ४९१९३||-) छोटा नागपुर बैंकमें, ३१००) मट्टारक सत्येन्द्रभूषणके पास व ३८३३||-) की रोकड़ थी। क्या २ सामान पाया इसका हाल रिपोर्ट नं० १ छपी १९०७ में, जो उपरैली कोठीसे प्राप्त होगी, दिया हुआ है।
ऊपरके कथनसे मालूम करेंगे कि वीसपंथी कोठीके उद्धारमें सेठ माणिकचंदनीको कितना परिश्रम करना पड़ा है, तथा वृथाके ममत्वसे कितना धर्मका द्रव्य बर्बाद होता है। इस कोठीके उद्धारके मुकद्दमे में १००००)के अनुमान खर्च हुआ जो शिखरजीके भंडारको ही सहना पड़ा । ऊपरके फैसलेकी हाईकोर्ट में अपील की गई थी जिससे ४ ट्रस्टी और बढ़ाए गए थे। सेठ माणिकचंदनीने चार्ज आते ही उद्योग करके पुराने मध्यके मंदिरजीका जीर्णोद्धार कराया जिसमें २००००) भंडारका खर्च किया तथा धर्मशाला आदि सब ठीक कराई । अब बीसपंथी कोठीका प्रबन्ध पहलेसे बहुत अच्छा हो गया है, यात्रियोंको हर तरहका आराम है।
किसी भी मंदिर या तीर्थके भंडारमें बहुत द्रव्य एकत्र न रखके उसको उपयोगी कामों में लगाते रहना चाहिये । स्थान दुरुस्तीके सिवाय शास्त्रभंडार बढ़ाने, शास्त्र लिखवा कर बांटने, जिस तीर्थ या मंदिरके निर्वाह या जीर्णोद्धारके लिये द्रव्यकी जरूरत हो वहां मदद करने, तीर्थपर संस्कृत धार्मिक विद्याका अभ्यास कराने में द्रव्यको लगाते रहना चाहिये । जो भंडारसे खर्च होता रहता है तो प्रबन्ध भी
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