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४६२ ] अध्याय दशवां।
कोर्टने बीचमें दखल देनेकी अपनी शक्ति इसीलिये रक्खो है कि अनावश्यक गड़बड़ न होने पावें । और किसी ट्रष्टीकी ओरसे ( कारण वशात् कोई आवश्यक्ता होने पर) कोई अयोग्य वीव न हो।
७-कमिटी जब चाहे इस कोर्टसे किसी मामले में सलाह तथा शिक्षा ले सक्ती है। ता. २२ दिसम्बर १९०५.
डबल० एच० विन्सेन्ट-ऑफिशियल जुडिशल कमिशनर ।
इस आज्ञाके अनुसार तीर्थक्षेत्र कमेटीके महामंत्री सेठजी सिवनीसे सीधे गीरीड़ी आए, और और ट्रष्टियोंको भी बुलाया था सो हज़ारीबागसे सेठ शिवनारायण, आरासे बाबू देवकुमारजी और नंदकिशोरलाल तथा बोरसदसे चुन्नीलाल प्रेमानंद आए । सेठ जीने शीतलप्रसादजीके द्वारा एक नियमावलीका मसौदा तय्यार कर रक्खा था। गीरीड़ीकी बीसपंथी धर्मशालामें मिती ज्येष्ठ वदी १ सं० १९६३ ता० ९ मई १९०६ को २॥ बजे दिनके ५ टूष्टियोंकी कमेटी हुई । सेठ शिवनारायणजी सभापति हुए। नियमावली पास की गई तथा मंत्री परीख चुन्नीलाल प्रेमानंद नियत हुए। इनहीको कोठीका चार्ज देना तय हुआ। सभापति बाबू देवकुमारजी, कोषाध्यक्ष सेठ माणिकचंदजी और निरीक्षक बावू नंदकिशोरलाल आरा नियत हुए। यह भी नियम हुआ कि किसीको नया मंदिर व धर्मशाला बनवानी हो व नई प्रतिमा विराजमान करनी हो तो कमेटीसे आज्ञा लेवें । खर्चका वार्षिक बज़ट ९०००) का पास हुआ।
इस प्रस्तावके अनुसार सेठ चुन्नीलालने रिसीवरचे सर्व सामानका
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