________________
महती जातिसेवा प्रथम भाग |
[ ४६१ जैसा कि यह कोर्ट कहेगी और कमेटीकी इच्छा होगी । यह कमेटीकी इच्छापर छोड़ा जाता है कि वह अपना हिसाब तीर्थक्षेत्र कमेटी तथा अन्य किसी योग्य व्यक्तिसे जंचवाए - इस विषय में कमिटीके ऊपर भार देने की आवश्यकता नहीं है ।
५ -- यदि कमेटीका कोई मेम्बर कालग्रस्त होवे व साथ में काम चलानेके अयोग्य हो तो शेष दृष्टियों का यह कर्तव्य है कि इस बातकी रिपोर्ट कोर्टको करें उस समय कोर्ट जैसी आज्ञा उचित समझेगी देगी अथवा यदि आवश्यक होगी तो नया ट्रष्टी नियत कर देगी 1
कमेटीको इतना अधिकार दिया जाता है कि किसी ट्रष्टीका स्थान खाली होनेपर वह नया सृष्टीका नाम पेश करें कोर्टको अधिकार है कि वह इस नामको स्वीकार करे व नाहीं कर दे ।
६ -- इस कोर्टको यह अधिकार रहेगा कि वह किसी दृष्टीको विशेष कारणोंके आजाने पर उसको उचित सूचना देने तथा उसकी अच्छी तरह जांच किये जानेके पश्चात् उस ट्रष्टीको अधिक काम करनेको अयोग्य समझकर कमेटी से जुदा करदे -- कोर्टको यह भी अधिकार है कि वह अपनी आज्ञा तथा कार्यप्रणालीके किसी अंशको न्यूनाधिक (कमती बढ़ती ) करे और बदल देवे तथा यह भी अधिकार है कि नं. ३ पैरा (वाक्य) के अनुसार प्रार्थना पाने पर कमेटीद्वारा स्वीकृत विषयोंको बदल सके व काट देवे । यही विश्वास रखना चाहिये और यह आशा रहनी चाहिये कि कोर्ट कोई ऐसे ही खास मामलोंके सिवाय कार्य्यके बीच में दखल नहीं देवेगी ।
इस प्रबन्धक नियमावलीका एक योग्य और विश्वास योग्य
जितना कम मौका दखल देनेका दिया जाबै उतना ही अच्छा है ।
उद्देश्य यही है कि मंदिरका प्रबन्ध कमेटीद्वारा होवै और कोर्टको
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org