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________________ गुजरात देशके सूरत शहर का दिग्दर्शन। [१७ रांदेर व्यापारमें प्रसिद्ध स्थान था। ताप्तीद्वारा जहाज़ोंका आना जाना खूब होता था और वे जहाज़ कुछ ताप्तीके इधर कुछ उधर कलकत्ते और हवड़ाकी भांति अपना लंगर डाला करते थे। ___ अरब व फारसके व्यापारी भी आया जाया करते थे। ईसवी सन् ७५० में मुसल्मान अब्दुलआबाद सेफा नामके खलीफा अपने बहुतसे साथियोंको लेकर रांदेरमें आकर रहने लगे और धीरे २ मुसल्मानी धर्मका प्रचार करने लगे। ये लोग धीरे २ व्यापारादिसे अपनी सत्ताको मजबूत करने लगे। इनका दल अब्बासी खलीफा या नवायंता (नया आया हुआ) नामसे यहां प्रसिद्ध हुआ। उस वक्त रांदेरकी जैन और हिन्दू वस्ती सुख शांतिमें लीन थी। पर कालांतरमें जैन और हिन्दओंका जोर घटता गया और मुसलमानोंका जोर बढ़ता गया। यहां तक कि ५०० वर्षके अनुमानमें वे ऐसे दृढ़ हो गये कि उन्होंने राज्य सत्ता इनसे छीन ली। सन् १९०८का गैजेटियर बताता है कि बादशाह कुतबुद्दीनके समय १३ वीं सदीमें मुसल्मानोंने अनहिलवाड़के राजपूत राजा भीमदेवको हराकर रांदेर और सूरत लिया। वह हिन्दू राजा सुरतसे १३ मील पूर्व कानरेजके किलेसे भागा और आधीन हो गया। सन् १३४७में मुहम्मद तुघलकके समयमें बलवा होनेपर सूरत जिला लुटा गया। पर सन् १३७३में फीरोज़शाह तुघलकने सूरतकी रक्षार्थ भीलोंसे बचानेके लिये एक किला बनवाया। मुसल्मानोंने यहांके बहुतसे मंदिरोंको तुड़वाकर मसजिदें बनवाई। तथा जैन मंदिरों व मूर्तियोंके पत्थरोंको भी तोड़कर कई मसजिदें बनवाई गई। एक मसजिद ऐसी ही बनी मौजूद भी है जिसपर हिजरी ६४१ व सन् १२२५ है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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