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________________ १८] अध्याय दूसरा । सन् १९०८का गैजेटियर बताता है कि रांदेरकीजमा मसजिद, मियां खखा व मुन्शीकी मसजिदें, जैन मंदिरोंको तोड़कर बनाई गई हैं। नर्मगद्यके कर्त्ताने सूरत नगरके नाम होनेके विषयमें कुछ और भी दंतकथायें लिखी हैं। उनका भी सारांश पाठकोंके ज्ञान हेतु कह देना अनुचित न होगा। ___ताप्ती नदीके तटपर सुरत नगरकी ओर बहुतसे जहाज़ ठहरा करते थे। जहाजका काम करनेवाले माछी लोग वहांपर रहते थे। इससे उस तटके बहुतसे प्रदेशका नाम माछीवाड़ा प्रसिद्ध था । उसी महल्ले में कुछ नागर ब्राह्मग भी रहते थे। उनमें एक ज़मीदारकी विधवा स्त्री अपने पुत्र गोपीके साथ रहा करती थी। उसकी स्थिति बहुत गरीब हो गई थी। रांदेरके एक मुसल्मान नवायताके यहां नृत्यकला करनेवाली एक सुरज नामकी कंचनी इस माछीवाडेमें आकर ठहरी। इसके पास धन भी बहुत था। उस समय गोपीकी गरीब मा उस कंचनीका यथायोग्य काम करके उसकी अधिक स्नेहपात्रा हो गई तथा उसके बालक गोपीको वह सूरज बहुत प्यार करने लगी। जब वह नृत्यकारिणी उस मुसल्मान नवायताके साथ हन करनेके लिये करीब १५०० सन् ई० के जहाज़पर बैठ मक्का जाने लगी तब उसने गोपीकी माको विश्वासपात्रा जान अपना लाखोंका जवाहरात उसको अमानत सौंप दिया। इसमें सन्देह नहीं कि ईमानदारी, सचाई और सरलता ऐसे गुण हैं जो सबको वश कर सक्ते हैं। जब वह सूरन कंचनी लौट कर आई, गोपीकी माने विना किसी कपटके जो कुछ जवाहरात उसने सौंपा था उस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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