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________________ लक्ष्मीका उपयोग । [२१३ ग्रंथका वर्णन सुननेसे जो आनन्द सर्वको हुआ था उसको विचारते हुए उन लोगोंसे नाहीं न होसकी और वे इस बात पर राजी होगए। दूसरे व तीसरे दिन भी सर्व संघने शास्त्रीजीके मुखसे श्री धवल और जयधवलके इधर उधरके कई भाग सुनके बहुत आनन्द प्राप्त किया । सेठ हीराचंद लिखते हैं कि इन पुस्तकोंकी लिपि जूनी कनड़ी है तथा सुनते समय हमने कुछ श्लोक लिख भी लिये थे। इस तरह सेठजीने अपनी खातरी करके कि यही धवल जयधवल हैं तथा अति जीर्ण होगए हैं इनकी नकल होनी चाहिये इस विचारको अपने मनमें रक्खा और ब्रह्मसूरी शास्त्रीसे सम्मति मिलाते रहे कि इनकी प्रति आप कर देखें तो बहुत अच्छा है क्योंकि उस लिपिको उस प्रान्तमें भी पढ़नेवाले सिवाय वृद्धमूरि शास्त्रीजीके और कोई नहीं था। सूरि शास्त्रीने कहा कि यह काम बहुत काल लेवेगा तथा यहाँके भाइयोंको भी समझाना होगा । यह काम कई वर्षोका है । मुझे व एक दोको और कई वर्षों तक ठहरना हो तव ही इनकी नकल होसक्ती हैं क्योंकि इनमें क्रमसे ६०००० और ७२००० श्लोक हैं। सेठ हीराचंद मंगलोर बंदरसे जब बम्बई आए तब एक दिन ठहरे थे औरसेठ माणिकचंदसे मिलधवलजयधवलकी प्रति-कर सव हाल कहा। दोनोंने परस्पर लिपिका विचार। बात की कि किसी उपायसे इन धवलादि ग्रन्थोंकी प्रतिलिपि हो और बालबोधमें भी होकर हम सवको उनका लाभ मिले तो एक बहुत आवश्यक काम हो जावे । हीराचंदजी बहुत गंभीर थे। सेठजीसे कहा कि हम कोई न कोई उपाय करेंगे, आप चिंता न करें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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