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________________ ३२८ 1 अध्याय नवां । लगता है तब आपने — जैनमित्र ' अंक २ फर्वरी १९०० में यह नोटिस प्रसिद्ध किया कि जो कोई इस ग्रंथका हमको दर्शन मात्र करा देंगे उन्हें हम बड़ी खुशीसे ५००) रु० इनाम देवेंगे। अपने पूज्य पिताकी यादगार कायम रखनेके लिये सं० १९५६ में जैन बोर्डिगके सिवाय दूसरा स्तुत्य काम सूरतमं ही० गु० सेठ माणिकचंदजीने यह किया कि मरतमें जैन पाठशालाकी एक " हीराचंद गुमानजी जैन पाठशाला " स्थापना। मिती चैत्र सुदी ९ के दिन सवरे खपाटिया चकलाके श्री चंद्रप्रभुके मंदिरजीमें स्थापित की । इसका महूर्त बड़ी धूमधामसे किया गया जिसका सर्व प्रबन्ध सेठ चुन्नीलाल झवेर चंदने किया । सेठ हरगोविन्ददास देवचंद मोतीरुपावालोंके सभापतित्वमें सभा हुई। बालक और बालिकाओं को इनाम दिया गया तथा तीन शिक्षक नियत करनेका ठहराव हुआ । मिती बैसाख सुदी ३ तक इसमें ३० लड़के व लड़कियां हो गई थीं जो संस्कृत, धर्म शिक्षा व इंग्रजी आदि पढ़ते थे जिनमें प्रवेशिका के ग्रंथ पढ़नेवाले ५ छात्र थे। इन्हींमें हमारे उत्साही मूलचंद किसनदासजी कापड़िया भी थे, जिनको सेठजीने रत्नकरंड श्रावकाचारकी पुस्तक देकर उत्साहित किया था तथा इन्हींको पाठशालाका प्रथम उपमंत्री और पीछेसे मंत्री भी किया था। यह पाठशाला कई वर्षों तक ठीक चली फिर सुस्त हो गई। छात्रोंने आना बन्द किया पर मूलचंदजीने बराबर विद्याभ्यास जारी किया जिससे आपने शास्त्रीके पास चंद्रप्रभ काव्य तक देख लिया व व्याकरण तथा धर्ममें महासभाके परीक्षालयसे रत्नकरंड श्रावकाचार, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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