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________________ समाजकी सच्ची सेवा । तत्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह, कातंत्र पंचसन्धि-पलिंग और चंद्रप्रभ काव्य छह सर्गमें परीक्षाएं भी पास की और दो परीक्षाओं में तीन २ रुपये पारितोषक भी प्राप्त किये। सूरतमें एक अति प्राचीन मंदिर जूना पड़ा हुआ था जिसके भूमिवरमें ३ बड़े भव्य प्रतिबिम्ब थे, जिनमें सूरतमें दि० जैन एक जो श्री पार्श्वनाथजीकी है उस पर संवत् मंदिर का जी- १२३५ है और दो पर कुछ भी लेख नहीं र्णोद्धार। है। इस मंदिरका जीर्णोद्धार रु० ७०००) खर्च कर शेट चुन्नीलाल झवेरचंदने कराया तथा इसकी जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा मिती वैसाख सुदी ३ के दिन थी। वास्तुविधान, ध्वजारोहणादि कार्यको विधि पूर्वक करानेके लिये नांदणी ( कोल्हापुर ) के पंडित कलाप्पा भरमाप्पा निटवं आए थे। उत्सव बड़ी धूमधामसे किया गया था । उत्सवमें श्राविकाश्रम बम्बईमें मुख्य आनरेरी संचालिका श्रीमती ललिताबाई अंकलेश्वरसे आई थीं। यह मुनीम ललिताबाईका धर्मचंदनी सेनयकी भाननी हैं । उस समय परिचय। यह संस्कृतका अभ्यास कर रही थीं। सेठ ___ माणिकचंदनीको इसके मिलनेसे बहुत हर्ष हुआ तथा मगनबाईजीको तो एक द्वितीय हस्त ही मानों मिल गया। इसकी भी वैधव्य दशा थी। उमर मगनबाईजीके बराबर ही थी। सेठनीने इस बाईको भी विद्याभ्यासमें खूब दत्तचित रहनेके लिये प्रेरित कर दिया । इस समय वे भूमिघरकी प्रतिमाएं ऊपर वेदी पर बिराजमान की गई। इस मंदिरका नाम श्री शांतिनाथजीका मंदिर प्रसिद्ध हुआ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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