________________
१८६ .
अध्याय छठा ।
जो अपने स्वार्थका खयाल न करके अपने पुत्रोंको सुपुत्र बनानेमें पूरी २ चेष्टा करें, उनके सच्चे हितको देखें । हमारे पुत्र धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थके पालनमें प्रवीण हों यही भावना मातापिताके दिलों में यदि हो और वे उस मावनाकी सफलतामें प्रमादी न हों तो उनकी सन्तान अवश्य सुयोग्य बन सकती है। भारतका उद्धार उस समय तक होना कठिन है जब तक संतानकी रक्षा और शिक्षाका योग्य प्रबन्ध न होगा। हमारे पाठकोंको सेठ हीराचंदके जीवनसे पूरी २ शिक्षा लेनी चाहिये।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org